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तुम देना साथ मेरा

तुम देना साथ मेरा : भाग 2

जीप सफारी में सभी ने बहुत आनंद उठाया. हालांकि शेर के दर्शन नहीं हुए पर कल सुबह हाथी की सवारी पर शेर देखने की आशा लिए चारों रिजोर्ट लौट आए. पूरे दिन के थके हुए खाना खा कर चारों अपनेअपने बिस्तर पर ढेर हो गए. कल सुबह जल्दी उठना था सो जल्दी सोने का निर्णय पहले ही तय था.

सोते हुए अचानक माहिर को ऐसा प्रतीत हुआ कि बिस्तर पर कुछ हलचल हो रही है. उस ने उठ कर देखा तो ईशान बड़ी व्याकुलता से अपनी छाती सहला रहा था. ‘‘क्या हुआ?’’ माहिरा ने पूछा ईशान हौले से बोला, ‘‘अजीब घबराहट सी हो रही है. करीब 1 घंटे से जागा हुआ हूं. टौयलेट भी हो आया पर ऐसा लग रहा है जैसे छाती में गैस हिट कर रही है. कोई चूरण लाई हो क्या?’’

ईशान की छटपटाहट देख माहिरा बेचैन हो उठी. इतनी रात गए, यहां घर से बाहर…समय देखा तो रात के 2 बज रहे थे. ‘‘बाहर का खाना खाया है, क्या पता उसी से अपच हो रही हो. थोड़ा टहल कर देखो.’’ माहिरा के सु झाव पर ईशान उठ कर कमरे में ही धीरेधीरे टहलने लगा, ‘‘काफी देर से टहल रहा हूं पर आराम नहीं आया तब जा कर वापस बिस्तर पर बैठ गया था.’’

ईशान के बिगड़ते मुंह से माहिरा सम झ रही थी कि उसे तकलीफ हो रही है. उस ने तत्काल रिजोर्ट की रिसैप्शन पर फोन किया. यहां कोई डाक्टर औन कौल की सुविधा तो नहीं थी पर हल्द्वानी में कई अच्छे अस्पताल हैं, यह बताया गया. बच्चे सो रहे थे. ईशान की तबीयत में कोई सुधार न आता देख माहिरा ने अस्पताल जाने का निर्णय ले एक टैक्सी बुलवा ली. बच्चों को यहीं रूम में सोता छोड़ कर दोनों टैक्सी से हल्द्वानी के लिए रवाना हो गए. हल्द्वानी के ब्रिजपाल हौस्पिटल तक पहुंचने में उन्हें पूरा 1 घंटा लग गया.

रास्ताभर ईशान अपनी छाती सहलाता रहा और माहिरा उस के माथे पर बारबार छलक आई पसीने की बूंदों को पोंछती रही. सारे रास्ते दोनों चुप रहे, किसी की सम झ में नहीं आ रहा था कि क्या कहे. माहिरा हताश होने वालों में से नहीं थी, किंतु वर्तमान स्थिति के कारण उस में नैराश्य की भावना उभरने लगी थी. उसे आने वाले कल की चिंता ने घेर लिया. उस ने खामोशी से ईशान का सिर अपने कंधे पर टिका लिया. इस 1 घंटे के रास्ते में न जाने कितनी भावनाओं के ज्वार दोनों के मन में शोर मचाते रहे. दोनों के मन के अंदर न जाने कितने विचारों का आवागमन निर्बाध चल रहा था. अस्पताल पहुंचे तो इमरजैंसी में दाखिल किया गया. औन ड्यूटी डाक्टर ने चैकअप किया, पहले भी हुआ है कभी ऐसा?’’ फिर रिपोर्ट बना कर ईशान को फौरन आईसीयू में भरती किया गया. ईसीजी करवाया, फिर ईशान के हाथ में कैन्यूला लगा कर कुछ देर के अंतराल में 2 इंजैक्शन दिए. कुछ टैबलेट्स दीं. थोड़ीथोड़ी देर में नर्स बीपी चैक करने लगती.

ऐसे ही अगले 2 घंटे बीत गए. बाहर सूरज की किरणें हर ओर छिटक कर नए सवेरे का संदेश देने लगी थीं, किंतु माहिरा और ईशान की रात अभी खत्म नहीं हुई थी. दोनों बहुत व्याकुल थे, माहिरा ने रिजोर्ट में फोन कर अपने बच्चों के नाम संदेश छोड़ा ताकि उठने पर वे इन्हें अपने पास न पा कर डरें नहीं. जब ईशान की तबीयत में थोड़ा सुधार आया तब डाक्टर ने माहिरा को अपने कक्ष में बुलाया, ‘‘देखिए मैडम, जब आप आए तब आप के हसबैंड का बीपी रेट 210/110 था जो सामान्य से काफी अधिक है… खतरनाक लैबल तक. इन की यह हालत बीपी अटैक के कारण भी हो सकती है, और हो सकता है कि यह एक हार्ट अटैक भी हो. इस की जांच करने के लिए हमें इन्हें ऐडमिट रखना होगा. ट्रौप टी टैस्ट भी करना होगा,’’ कहते हुए डाक्टर ईशान की फैमिली मैडिकल हिस्ट्री पूछने लगे.

माहिरा इतनी डीटेल्स सुन कर काफी घबरा गई. वह यहां अकेली थी. ऐसे में कोई भी निर्णय अकेले लेना उसे  ठीक नहीं लगा. उसे ईशान से डिस्कस कर के ही आगे का कदम उठाना सही लगा.‘‘कहो ईशान, क्या तबीयत में थोड़ा सुधार फील कर रहे हो? माहिरा ने पूछा. उत्तर में ईशान ने तबीयत में सुधार बताया तब माहिरा ने उसे वस्तुस्थिति सम झा कर पूछा, ‘‘ऐडमिट करने के लिए हामी भर दूं? कहो तो तुम्हें ऐडमिट करवा कर रिजोर्ट जा कर बच्चों को ले आऊं?’’

ईशान विषादग्रस्त हो बोला, ‘‘सौरी माहिरा, मेरे कारण तुम सब को कितनी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है…कहां तो हम सब हौलिडे मूड में आए थे और ये सब हो गया… तुम्हें अकेले ही…’’ ‘‘कैसी बातें करते हो, ईशान? यह समय परेशान होने का नहीं, सही निर्णय लेने का है. अच्छा, तुम रैस्ट करो, मैं अपने फैमिली डाक्टर से फोन पर राय लेती हूं,’’ कह माहिरा ने उन का फोन मिलाया और सारी स्थिति विस्तार से सम झाई. उन की बात लोकल डाक्टर से भी करवा दी. उन की सलाह पर ट्रोपोनिन टी टैस्ट भी करवाया.

जब तक उस की रिपोर्ट आई, माहिरा टैक्सी से वापस रिजोर्ट गई. वहां चैक आउट किया, बच्चों को ले कर अपनी कार से ड्राइव करती हुई अस्पताल पहुंची. डैडी को इस हालत में पा कर बच्चे काफी परेशान हो उठे. कितनी प्रसन्नता से छुट्टी मनाने आए थे. उन को खिन्न देख कर ईशान भी तनावग्रस्त हो गया. कुछ ही घंटों में ट्रौप टी टैस्ट की रिपोर्ट आ गई. शुक्र है कि रिपोर्ट नैगेटिव आई. इस का सीधा तात्पर्य यह था कि ईशान को बीपी का अटैक आया था, हार्ट अटैक नहीं. स्थानीय डाक्टरों से प्रैस्क्रिप्शन ले कर माहिरा ने ईशान को डिस्चार्ज करवाया और कार में सवार हो सभी घर रवाना हो गए. रास्ते में बच्चे फोन पर गेम खेलने में मगन हो गए. किंतु ईशान और माहिरा का

मन अभी भी भूत, वर्तमान और भविष्य के जाले पोंछ रहा था. कल और आज इन 2 दिनों में उन की जिंदादिली से दौड़ती जिंदगी को बड़ा  झटका लगा था. इस अनुभव ने दोनों को  झक झोर दिया. उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि उन के स्वप्नमहल की ऊंची दीवारों को हिलाना इतना आसान हो सकता है.आगे ऐसी स्थिति न उत्पन्न हो यह सोच कर माहिरा ने अपने गृहस्थजीवन को और प्रबल करने की ठान ली. जैसे नई रैसिपीज माहिरा में एक नया जोश फूंक देती है वैसे ही ईशान का स्वास्थ्य वापस ठीक करने की इच्छा ने उस के अंदर एक नव ऊर्जा का संचार कर डाला. जीभ का जनून छोड़ा नहीं जा सकता पर कंट्रोल तो किया जा सकता है. लाइफस्टाइल बदलाव की मदद से अनहैल्दी हो चुकी जिंदगी को वापस ट्रैक पर लाने के लिए उस के हाथ में अभी समय है.

सुबह नाश्ते की टेबल पर दलिया देख ईशान का चौंकना स्वाभाविक था. अकसर माहिरा दलिया के कबाब या टिक्की बनाती थी. दलिया उन्हें बीमारों का खाना जो लगता था. ‘‘खा कर तो देखो,’’ ईशान के चेहरे पर उभर आए भावों को परखते हुए माहिरा बोली. ‘‘दलिया भी टेस्टी हो सकता है मैं ने कभी सोचा नहीं था.’’

ईशान के मुंह से नाश्ते की प्रशंसा सुन माहिरा को अपनी स्ट्रैटेजी पर कौन्फिडैंस बढ़ गया.आज का सारा दिन उस ने बढ़ते वजन का सेहत पर असर और वजन बढ़ाने के तरीकों के बारे में सर्च करने में बिताया. दिन ढले जब ईशान घर लौटा तो वह पूरी तैयारी के साथ सब के सामने आई. माहिरा के हाथ में कौपी, पैन और कुछ प्रिंटआउट्स देख कर ईशान को थोड़ा अचंभा हुआ.

परिवार के 5 लोगों को डसने वाला आस्तीन का सांप

सौजन्य- सत्यकथा

एक बीघा के 50 लाख से ले कर एक करोड़ रुपए सुन कर किसानों का मुंह खुला का खुला रह जाता है कि इतना तो वे सौ साल खेती कर के भी नहीं कमा पाएंगे. और वैसे भी आजकल खेतीकिसानी खासतौर से छोटी जोत के किसानों के लिए घाटे का सौदा साबित होने लगी है. लिहाजा वे एकमुश्त मिलने वाले मुंहमांगे दाम का लालच छोड़ नहीं पाते और जमीन बेच कर पास के किसी कसबे में बस जाते हैं.

इसी गांव का एक ऐसा ही किसान है 48 वर्षीय लीलू त्यागी, जिस के हिस्से में पुश्तैनी 15 बीघा जमीन में से 5 बीघा जमीन आई थी. बाकी 10 बीघा 2 बड़े भाइयों सुधीर त्यागी और ब्रजेश त्यागी के हिस्से में चली गई थी.जमीन बंटबारे के बाद तीनों भाई अपनीअपनी घरगृहस्थी देखने लगे और जैसे भी हो खींचतान कर अपने घर चलाते बच्चों की परवरिश करने लगे. बंटवारे के समय लीलू की शादी नहीं हुई थी, लिहाजा उस पर घरगृहस्थी के खर्चों का भार कम था.

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गांव के संयुक्त परिवारों में जैसा कि आमतौर पर होता है, दुनियादारी और रिश्तेदारी निभाने की जिम्मेदारी बड़ों पर होती है, इसलिए भी लीलू बेफिक्र रहता था और मनमरजी से जिंदगी जीता था.
साल 2001 का वह दिन त्यागी परिवार पर कहर बन कर टूटा, जब सुधीर अचानक लापता हो गए. उन्हें बहुत ढूंढा गया पर पता नहीं चला कि उन्हें जमीन निगल गई या आसमान खा गया.कुछ दिनों की खोजबीन के बाद त्यागी परिवार ने तय किया कि सुधीर की गुमशुदगी की रिपोर्ट पुलिस में दर्ज करा दी जाए. लेकिन इस पर लीलू बड़ेबूढ़ों के से अंदाज में बोला, ‘‘इस से क्या होगा. उलटे हम एक नई झंझट में और फंस जाएंगे. पुलिस तरहतरह के सवाल कर हमें परेशान करेगी. हजार तरह की बातें समाज और रिश्तेदारी में होंगी. उस से तो अच्छा है कि उन का इंतजार किया जाए. हालांकि वह किसी बात को ले कर गुस्से में थे और मुझ से यह कह कर गए थे कि अब कभी नहीं आऊंगा.’’

परिवार वालों को लीलू की सलाह में दम लगा. वैसे भी अगर सुधीर के साथ कोई अनहोनी या हादसा हुआ होता तो उन की लाश या खबर मिल जानी चाहिए थी और वाकई पुलिस क्या कर लेती.वह कोई दूध पीते बच्चे तो थे नहीं, जो घर का रास्ता भूल जाएं. यह सोच कर सभी ने मामला भगवान भरोसे छोड़ दिया. उन्हें चिंता थी तो बस उन की पत्नी अनीता और 2 नन्हीं बेटियों पायल और पारुल की, जिन के सामने पहाड़ सी जिंदगी पड़ी थी.

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यह परेशानी भी वक्त रहते दूर हो गई, जब गांव में यह चर्चा शुरू हुई कि अब सुधीर के आने की तो कोई उम्मीद रही नहीं, अनीता कब तक उस की राह ताकती रहेगी. इसलिए अगर लीलू उस से शादी कर ले तो उन्हें सहारा और बेटियों को पिता मिल जाएगा. घर की खेती भी घर में रहेगी.गांव और रिश्ते के बड़ेबूढ़ों का सोचना ऐसे मामले में बहुत व्यावहारिक यह रहता है कि जवान औरत कब तक बिना मर्द के रहेगी. आज नहीं तो कल उस का बहकना तय है, इसलिए बेहतर है कि अगर देवरभाभी दोनों राजी हों तो उन की शादी कर दी जाए.

बात निकली तो जल्द उस पर अमल भी हो गया. एक सादे समारोह में लीलू और अनीता की शादी हो गई जो कोई नई बात भी नहीं थी. क्योंकि गांवों में ऐसी शादियां होना आम बात है, जहां देवर ने विधवा भाभी से शादी की हो. इतिहास भी ऐसी शादियों से भरा पड़ा है.देखते ही देखते अपने देवर की पत्नी बन अनीता विधवा से फिर सुहागन हो गई और वाकई में पारुल और पायल को चाचा के रूप में पिता मिल गया.
इस के बाद तो बड़े भाई सुधीर की जमीन भी लीलू की हो गई. जल्द ही लीलू और अनीता के यहां बेटा पैदा हुआ, जिस का नाम विभोर रखा गया. घर में सब उसे प्यार से शैंकी कहते थे.

कभीकभार जरूर गांव के कुछ लोगों में यह चर्चा हो जाती थी कि चलो जो हुआ सो अच्छा हुआ, लेकिन
कभी सुधीर अगर वापस आ गया तो क्या होगा.मुमकिन है जी उचट जाने से वह साधुसंन्यासियों की टोली में शामिल हो गया हो और वहां से भी जी उचटने के कारण कभी घर आ जाए. फिर अनीता किस की पत्नी कहलाएगी?सवाल दिलचस्प था, जिस का मुकम्मल जबाब किसी के पास नहीं था. पर एक शख्स था जो बेहतर जानता था कि सुधीर अब कभी वापस नहीं आएगा. वह शख्स था लीलू.

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इसी तरह 5 साल गुजर गए. अब सब कुछ सामान्य हो गया था, लेकिन कुछ दिनों बाद ही साल 2006 में पारुल की मृत्यु हो गई. घर और गांव वाले कुछ सोचसमझ पाते, इस के पहले ही लीलू ने कहा कि उसे किसी जहरीले कीड़े ने काट लिया था और आननफानन में उस का अंतिम संस्कार भी कर दिया.
गांवों में ऐसे यानी सांप वगैरह के काटे जाने के हादसे भी आम होते हैं, इसलिए कोई यह नहीं सोच पाया कि यह कोई सामान्य मौत नहीं, बल्कि सोचसमझ कर की गई हत्या है. और आगे भी त्यागी परिवार में ऐसी हत्याएं होती रहेंगी, जो सामान्य या हादसे में हुई मौत लगेंगी और हैरानी की बात यह भी रहेगी किसी भी मामले में न तो लाश मिलेगी और न ही किसी थाने में रिपोर्ट दर्ज होगी.

इस के 3 साल बाद ही पायल भी रहस्यमय ढंग से गायब हो गई तो मानने वाले इसे होनी मानते रहे. लेकिन अनीता अपनी दोनों बेटियों की मौत का सदमा झेल नहीं पाई और बीमार रहने लगी, जिस का इलाज भी लीलू ने कराया.अब सुधीर की जमीन का कोई वारिस नहीं बचा था, सिवाय अनीता के, जो अब हर तरह से लीलू और बड़े होते शैंकी की मोहताज रहने लगी थी.

लीलू की तो जान ही अपने बेटे में बसती थी और वह उसे चाहता भी बहुत था. लेकिन यह नहीं देख पा रहा था कि उस के लाड़प्यार के चलते शैंकी गलत राह पर निकल पड़ा है.और देख भी कैसे पाता क्योंकि वह खुद ही एक ऐसे रास्ते पर चल रहा था, जिसे कलयुग का महाभारत कहा जा सकता है और वह उस का धृतराष्ट्र है, जो पुत्र मोह में अंधा हो गया था.इसी अंधेपन का नतीजा था कि बीती 9 जुलाई को लीलू गाजियाबाद के सिहानी गेट थाने में पुलिस वालों के सामने खड़ा गिड़गिड़ा रहा था कि शैंकी मेरा इकलौता बेटा है, आप जितने चाहो पैसे ले लो लेकिन उसे छोड़ दो.

बेटा छूट जाए, इस के लिए वह 10 लाख रुपए देने को तैयार था. लेकिन जुर्म की दुनिया में दाखिल हो चुके बिगड़ैल शैंकी ने जुर्म भी मामूली नहीं किया था, लिहाजा उस का यूं छूटना तो नामुमकिन बात थी.
दरअसल, शैंकी ने केन्या की एक लड़की, जिस का नाम रोजमेरी वाजनीरू है, से 7 जुलाई को 12 हजार रुपए नकद और एक मोबाइल फोन लूटा था. रोजमेरी से उस का संपर्क सोशल मीडिया के जरिए हुआ था. जब वह दिल्ली आई तो शैंकी बहाने से उसे अपनी कार में बैठा कर गाजियाबाद ले गया और हथियार दिखा कर लूट की इस वारदात को अंजाम दिया.दूसरे दिन सुबह रोजमेरी ने सिहानी गेट थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई तो शैंकी पकड़ा गया. वारदात में उस का साथ देने वाला शुभम भी गिरफ्तार किया गया था. वह भी मुरादनगर का रहने वाला है.

दोनों से वारदात में इस्तेमाल किए गए हथियार, 11 हजार रुपए नकद और वह कार भी बरामद की गई थी, जिस में बैठा कर रोजमेरी से लूट की गई थी. कुछ दिनों बाद दोनों को अदालत से जमानत मिल गई थी.
लेकिन अब खुद जेल में बंद लीलू को जमानत मिल पाएगी, इस में शक है. क्योंकि उस के गुनाहों के आगे तो बेटे का गुनाह कुछ भी नहीं.

बीती 24 सितंबर को लीलू को गाजियाबाद पुलिस ने अपने भतीजे रेशू की हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया तो सख्ती से पूछताछ में उस ने खुलासा किया कि उस ने कोई एकदो नहीं बल्कि 20 साल में एकएक कर 5 हत्याएं की हैं. और ये पांचों ही उस के अपने सगे हैं.

यह सुन कर पुलिस वालों के मुंह तो खुले के खुले रह गए, साथ ही जिस ने भी सुना उस के भी होश उड़ गए कि कैसा कलयुग आ गया है, जिस में जमीन के लालच में एक सगे भाई ने दूसरे सगे बड़े भाई और 2 भतीजियों जो अनीता से शादी के बाद उस की बेटियां हो गई थीं, सहित 2 सगे भतीजों को भी इतनी साजिशाना और शातिराना तरीके से मारा कि किसी को उस पर शक भी
नहीं हुआ.रेशू की हत्या के आरोप में वह कैसे पकड़ा गया, इस से पहले यह जान लेना जरूरी है कि इस के पहले की 4 हत्याएं उस ने कैसे की थीं. इन में से 2 का जिक्र ऊपर किया जा चुका है.

अपने बड़े भाई सुधीर की हत्या लीलू ने एक लाख की सुपारी दे कर मेरठ में करवाई थी और लाश को नदी में बहा दिया था. इसलिए अनीता से शादी करने के बाद वह बेफिक्र था कि सुधीर आएगा कहां से, उसे तो मौत की नींद में वह सुला चुका है.यह कातिल कितना खुराफाती है, इस का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वह 20 साल पहले ही अपने गुनाहों की स्क्रिप्ट लिख चुका था और हरेक कत्ल के बाद किसी को शक न होने पर उस के हौसले बढ़ते जा रहे थे.जब शैंकी पैदा हुआ तो उसे लगा कि सुधीर की जमीन उस की बेटियों के नाम हो जाएगी, लिहाजा पहले उस ने पारुल को खाने में जहर दे कर मारा और फिर पायल की भी हत्या कर उस की लाश को नदी में बहा दिया.

इस दौरान जमीनजायदाद का धंधा करने के लिए उस ने अपने हिस्से की जमीन बेच दी और मुरादनगर थाने के सामने एक आलीशान मकान भी बनवा लिया. जब इस निकम्मे और लालची से दलाली का धंधा नहीं चला तो उस की नजर दूसरे भाई ब्रजेश की जमीन पर जा टिकी. उसे लगा कि अगर ब्रजेश और उस के बेटों व पत्नी को भी इसी तरह ठिकाने लगा दिया जाए तो उस की ढाई करोड़ की जमीन भी उस की हो जाएगी.

नेकी तो नहीं बल्कि बदी और पूछपूछ की तर्ज पर उस ने साल 2013 में ब्रजेश के छोटे बेटे 16 वर्षीय नीशू की भी हत्या कर लाश नदी में बहा दी और अपनी गोलमोल बातों से पुलिस में रिपोर्ट लिखाने से ब्रजेश को रोक लिया था. यह उस के द्वारा की गई चौथी हत्या थी.अब तक उसे समझ आ गया था कि और साल, 2 साल या 4 साल लगेंगे, लेकिन जमीन तो उस की हो ही जाएगी. असल में वह चाहता था कि पूरे कुटुंब की जमीन उस के बेटे शैंकी को मिल जाए, जिस से उसे जिंदगी में मेहनत ही न करनी पड़े जैसे कि उसे नहीं करनी पड़ी थी. जाहिर है रेशू की हत्या के बाद वह ब्रजेश और उन की पत्नी को भी ऊपर पहुंचा देने का मन बना चुका था.

ब्रजेश का बेटा 24 वर्षीय रेशू बीती 8 अगस्त को गायब हो गया था. यह उन के लिए एक और सदमे वाली बात थी. क्योंकि नीशू को गुजरे 8 साल बीत गए थे, अब रेशू ही उन का आखिरी सहारा बचा था जिस की सलामती के लिए वे दिनरात दुआएं मांगा करते थे.लेकिन यह अंदाजा दूसरों की तरह उन्हें भी नहीं था कि परिवार को डसने वाला सांप आस्तीन में ही है. लीलू ने इस बाबत और लोगों को भी अपनी साजिश में शामिल कर लिया था.

उस ने योजना के मुताबिक रेशू को फोन कर गांव के बाहर मिलने बुलाया और घूमने चलने के बहाने कार में बैठा लिया. इस आई ट्वेंटी कार में इनदोनों के अलावा विक्रांत, सुरेंद्र त्यागी, राहुल और लीलू का भांजा मुकेश भी मौजूद था. चलती कार में ही इन लोगों ने रेशू की हत्या रस्सी और लोहे की जंजीर से गला घोंट कर दी और उसे सीट पर जिंदा लोगों की तरह बिठा कर बुलंदशहर की तरफ चल पड़े.कहीं किसी को शक न हो जाए, इसलिए कुछ दूर जंगल में कार रोक कर इन्होंने रेशू की लाश को कार की डिक्की में डाल दिया. असल काम हो चुका था, बस लाश और ठिकाने लगानी बाकी थी. इस के लिए मूड बनाने के लिए इन लोगों ने बुलंदशहर में विक्रांत के ट्यूबवैल पर जोरदार पार्टी की.

जब रात गहराने लगी तो इन वहशियों ने रेशू की लाश को एक बोरे में ठूंसा और बोरा पहासू इलाके में ले जा कर गंगनहर में बहा दिया. इस के बाद सभी अपनेअपने रास्ते हो लिए. आरोपियों में से सुरेंद्र त्यागी हापुड़ का रहने वाला है और पुलिस में दरोगा पद से रिटायर हुआ है जबकि राहुल उस का नौकर था. लीलू ने सुरेंद्र को रेशू की हत्या की सुपारी दी थी, जिस ने बुलंदशहर के आदतन अपराधी विक्रांत को भी इस वारदात में शामिल कर लिया था.

इन दोनों का याराना विक्रांत के एक जुर्म में जेल में बंद रहने के दौरान हुआ था. लीलू ने हत्या के एवज में 4 लाख रुपए नकद दिए थे और बाकी बाद में एक बीघा जमीन बेचने के बाद देने का वादा किया था.
रेशू के लापता होने के बाद ब्रजेश ने बेटे को काफी खोजा और फिर थकहार कर 15 अगस्त को मुरादनगर थाने में रिपोर्ट दर्ज करा दी. हालांकि लीलू ने इस बार भी उन्हें यह कह कर रोकने की कोशिश की थी कि पुलिस में रिपोर्ट लिखाने से क्या फायदा होगा.

लेकिन फायदा हुआ. 24 सितंबर को वह पकड़ा गया और अपने साथियों सहित जेल में है. लीलू इत्तफाकन पकड़ा गया, नहीं तो पुलिस भी हार मान चुकी थी कि अब रेशू नहीं मिलने वाला.पुलिस के पास रेशू को ढूंढने का कोई सूत्र नहीं था, सिवाय इस के कि उस के और लीलू के फोन की लोकेशन एक ही जगह की मिल रही थी, जो उसे हत्यारा मानने के लिए पर्याप्त नहीं था. लेकिन इनवैस्टीगेशन के दौरान एक औडियो रिकौर्डिंग पुलिस के हत्थे लग गई, जिस में लीलू रेशू की हत्या का प्लान बाकी चारों में से किसी को बता और समझा रहा था.

फिर लीलू ने 5 हत्याओं की बात कुबूली. हत्याओं में 2-3 साल का गैप वह इसीलिए रखता था कि हल्ला न मचे और लोग पिछली हत्या का दुख भूल जाएं.पुलिस हिरासत में लीलू कभी यह कहता रहा कि उसे उन हत्याओं का कोई मलाल नहीं. तो कभी यह कहता रहा कि सजा भुगतने के बाद वह भाईभाभी की सेवा कर किए गए जुर्म का प्रायश्चित करना चाहता है.

हैरानी की बात सिर्फ यह है कि 5 हत्याओं का यह गुनहगार लीलू जेल से छूट जाने की उम्मीद पाले बैठा है. वह शायद इसलिए कि 5 में से एक भी लाश बरामद नहीं हो सकी.
लेकिन अब लोगों की मांग है कि ऐसे आस्तीन के सांप का जिंदा रहना ठीक नहीं है, लिहाजा उसे फांसी की सजा मिलनी चहिए. यदि ऐसा नहीं हुआ तो यह जरूर एक बड़ी कानूनी खामी साबित होगी.

तुम देना साथ मेरा : भाग 1

इसबार शादी की सालगिरह पर कुछ खास करने की इच्छा है माहिरा की. बेटे अर्णव और आरव भी यही चाहते हैं. वैसे तो टीनएजर्स अपनी दुनिया में मगन रहते हैं, लेकिन इवेंट में जान डालने को दोनों तैयार हैं. 20वीं सालगिरह है. अकसर लोग 25वीं को खास तरह से मनाते हैं पर माहिरा की सोच वर्तमान में जीने की रही है कि जो खुशी के पल आज मिल रहे हैं उन्हें कल पर क्यों टाला जाए? पकौड़े खाने के लिए उस ने कभी बारिश की बूंदों का इंतजार नहीं किया. जब उस का जी किया या ईशान ने फरमाइश की उस ने  झट कड़ाही चढ़ा दी.

दरअसल, माहिरा और ईशान दोनों ही खाने के शौकीन हैं. अपने को ‘बिग फूडी’ की श्रेणी में रख दोनों ही खुश रहते हैं. शादी के बाद से खाने के शौक ने दोनों को एक मीठे बंधन में बांधा. ईशान को मीठा पसंद है तो माहिरा को तीखा भाता है. एकदूसरे की खुशी का ध्यान करते हुए हर भोजन में कुछ तीखा पकता तो कुछ मीठा भी बनाया जाता. दोनों तरह के व्यंजनों को पूरे स्वाद से खाया जाता, कोई नई रैसिपी पता चलती या किसी के घर कुछ नया पकवान खा कर आते तो माहिरा साथ ही उसे बनाने की विधि भी पूछ आती. इस वीकैंड यही ट्राई करूंगी, सोच वह भी खुश होती और न्यू फ्लैयर खाने को मिलेगा सोच ईशान भी कभी किसी मराठी दोस्त की पत्नी से पूरनपोली सीखी तो कभी तमिल दोस्त की पत्नी से अड़ा, कभी बिहार का लिट्टीचोखा ट्राई किया तो कभी राजस्थान की मावाकचौरी.

‘‘माहिरा, तुम सच मेें माहिर हो. यथा नाम तथा गुण. नईनई रैसिपीज बखूबी बना लेती हो,’’ ईशान अकसर अपनी पत्नी की पाककला पर बलिहारी जाता.‘‘मेरी मां ने सिखाया था कि आदमी के दिल का रास्ता उस के पेट से हो कर जाता है. बस वही फौलो कर रही हूं, जानेमन,’’ माहिरा भी हंस कर कहती.

‘‘पेट ही नहीं तुम ने इस फूडी के मन को भी संतुष्ट कर रखा है,’’ ईशान के कहने पर दोनों ठहाका लगाते.स्वादों के इस मेले में घूमतेफिरते इतने साल निकल गए. जाहिर है जब स्वादिष्ठ खानों का शौक होगा तो उन के संग शरीर में आई कैलोरी भी अपना रंग दिखाएगी. थोड़े बड़े पेट और फैली कमर की ओर लटकते लव हैंडल्स के लिए माहिरा के पास एक बढि़या जवाब तैयार रहता कि 2-2 बच्चों की मां हूं. 16 साल की लड़की तो रही नहीं अब मैं.

ईशान भी कब कोई ताना  झेलने वालों में से होता. वह भी चुटकी लेता कि मैं भी तो 2-2 बच्चों का बाप हूं, मेरी तोंद को नजर क्यों लगाती हो? इस लजीज मस्ती में विघ्न तब पड़ा जब पिछले साल एक शाम औफिस से लौट कर ईशान ने बताया कि आज कंपनी की तरफ से हैल्थ कैंप लगा था.‘‘थोड़ा ज्यादा हो गया है वेट… 115 किलोग्राम आया,’’  झेंपते हुए ईशान बोला.

‘‘क्या?’’ माहिरा की छोटी सी चीख निकल गई, ‘‘थोड़ा ज्यादा वेट? 115 किलोग्राम को तुम थोड़ा ज्यादा वेट बोल रहे हो? अब मेरी सम झ में आ रहा है कि आजकल तुम्हारे घुटनों में दर्द क्यों रहने लगा है. इतना वजन उठाएंगी तो भला टांगों का क्या दोष…’’ माहिरा ने महसूस नहीं किया  था कि कब वे दोनों ‘मीडियम’ से ‘लार्ज’ और  फिर ‘ऐक्स्ट्रा लार्ज’ साइज में तबदील हो गए.आज औफिस में हुए हैल्थ कैंप की रिपोर्ट ने ईशान को परेशान कर दिया. जीभ

का चटोरापन अपनी जगह है पर उस की सजा पूरे शरीर को भुगतनी पड़े, यह बात ठीक नहीं. माहिरा के मनमस्तिष्क में आज केवल ईशान का बिगड़ा स्वास्थ्य चक्कर काट रहा था. डिनर पश्चात बच्चे गुडनाइट कह अपने कमरे में चले गए और ईशानमाहिरा अपने कमरे में. माहिरा जल्दी सोने वालों में से है, लेकिन आज नींद बैडरूम में घुसने का नाम नहीं ले रही थी.

उसे जागता हुआ देख शायद ईशान को एहसास हो गया कि  आज माहिरा को किस बात ने परेशान किया हुआ है. उस के बालों में अपनी उंगलियां फेरते हुए बुदबुदाया, ‘‘माहिरा, तुम अच्छी तरह वाकिफ हो मेरी टेस्टी खाने की आदत से. खाने में स्वादिष्ठ भोजन के बिना मु झे कुछ अच्छा नहीं लगता और इसी कारण मेरा वजन बढ़ गया है. आज कैंप के डाक्टरों ने मु झे और भी कई ब्लड टैस्ट करवाने को कहा, साथ ही काफी हिदायतें भी दीं कि तलाभुना खाना, मीठा खाना, बेकरी प्रोडक्ट्स वगैरह सब बंद,’’ इतना कह वह धीरे से हंसा, ‘‘इन्हें क्या मालूम एक फूडी के लिए जीभ का स्वाद क्या होता है. इन की सलाह मान कर जीना भी कोई जिंदगी हुई… जिंदगी जिंदादिली का नाम है. डरने वाले क्या खाक जीया करते हैं?’’

‘‘डाक्टरों की बात को इतना लाइटली मत लो ईशान. अगर अभी से शरीर अनहैल्दी हो जाएगा तो बुढ़ापे में क्या होगा?’’ माहिरा ने अपनी चिंता व्यक्त की. ‘‘तुम हो न मेरा बुढ़ापा संभालने के लिए. अभी का टाइम तो अच्छी तरह जीएं. वैसे भी मैं ने कई इंश्योरैंस पौलिसियां ले रखी हैं. डौंट वरी, डियर.’’

ईशान की बातों से माहिरा को सम झते देर न लगी कि वह अब भी अपना स्वाद त्यागने को तैयार नहीं है.‘‘एक गुड न्यूज दे दूं तुम्हें… मैं ने इस लौंग वीकैंड के लिए कौर्बेट नैशनल पार्क में रिजोर्ट बुक करा लिया है. बस, अब तैयारी कर लो एक छोटे से हौलिडे की.’’

कुछ समय के लिए माहिरा चिंतित अवश्य हो उठी थी, लेकिन ईशान की जिंदादिली ने जिंदगी को फिर यथावत चला दिया. 2 दिनों में एक शौर्ट वैकेशन के लिए जाना था, सो माहिरा तैयारी में जुट गई. मौसम के अनुसार सभी के कपड़े, कैमरा, दूरबीन, चार्जर, कुछ खानेपीने का सामान आदि पैक करते हुए उस ने अगले 2 दिन बिताए. ईशान को उस के हाथ के बने स्नैक्स इतने भाते थे कि उस ने पूरे मन से चकली, मठरी और नमकपारे बनाए, साथ ही मफिन और नट्स ऐंड डेट केक सूखे नाश्ते के लिए बना लिए. शनिवार की अल्पसुबह चारों अपनी गाड़ी में सवार हो निकल पड़े. हलकाफुलका नाश्ता रास्ते में चलती कार में करते गए. जब गजरौला पहुंचे तब जा कर सब ने गियानी ढाबे पर पेट भर कर खाया. ढाबे के खाने की बात ही और होती है. साथ ही कड़क चाय पी कर सब की थकान, छूमंतर हो गई. पूरे 5 घंटों का सफर तय कर उन की कार जिम कौर्बेट नैशनल पार्क पहुंची. रामनगर में बुक किए रिजोर्ट में पहुंच कर सब कुछ देर सुस्ताए.

‘‘बच्चो, आज का प्लैन है जीप सफारी. शाम 4 बजे चलेंगे.’’ईशान की बात सुन कर दोनों बच्चे खुश हो उठे. बच्चों के साथ घूमने का यही आनंद है. उन का उत्साह बड़ों में भी उमंग और ऊर्जा भर देता है.‘‘आज जीप सफारी के मजे लेते हैं और कल सुबह चलेंगे ऐलीफैंट सफारी पर. सुबह के समय में शेर देखने के चांस बहुत होते हैं और फिर हाथी के ऊपर बैठ कर जंगल की सैर के क्या कहने.’’ईशान की योजना ने बच्चों को ‘ये…ये’ के नारे लगाने पर विवश कर दिया.

धूमावती- भाग 1: हेमा अपने पति को क्यों छोड़ना चाहती थी

मुंबई के एक बैंक के अपने केबिन के अटैच बाथरूम से निकलते हुए ब्रांच मैनेजर 45 साल के प्रभास ने अपने फुल स्लीव सी ग्रीन कलर के हलके चेक शर्ट और ब्लैक जींस को थोड़ा एडजस्ट किया, बाथरूम के आईने में घूम कर एक बार और अपने चेहरे का मुआयना किया और बालों को करीना करते हुए अपनी कुरसी पर आ कर बैठे और तुरंत ही टेबल पर रखी घंटी बजाई.

नियमानुसार दरवाजे से पियोन के झांकते ही प्रभास ने उस से कहा, “हेमाजी को बुलाओ.”अभी दोपहर के डेढ़ बजने में एक घंटा बाकी ही था, इस बीच 10 बजे से 3 बार हेमा प्रभास के कमरे में आ चुकी थी. ये चौथी बार, और फिर डेढ़ बजे लंच भी साथ ही होने वाला था.

कुछ महीनों से हेमा अपने लंच बौक्स में प्रभास की पसंद का खाना भी लाती है.प्रभास को अपनी मूंछों की याद आ जाती है, और अपने औफिस टेबल के ड्रायर से छोटा सा आईना निकाल कर मूंछों को देखता है, कुछ दिन पहले किए रंग ठीक है, वह आश्वस्त होता है.

दरवाजे की ओर देखते ही हेमा अंदर आती है. 5 फुट 5 इंच की हेमा गोरी और खूबसूरत है, फिगर तो 36 की उम्र में 25 का है ही, 2 बच्चों की मां भी वह कहीं से नहीं लगती. हो भी क्यों न… जिंदगी में आजादी है, सुकून है, पैसे की खनखन है, जो चाहा सब है उस के पास… और एक पति भी. घर और बाहर का काम संभालने, बच्चों को पालने, हुक्म बजाने, उस की डांटडपट खा कर भी उस की सारी जरूरतों को पूरी करने के लिए एक शांतमिजाज आम सा दिखने वाला खास पति. खास ही हुआ न ऐसा पति, जो भारतीय समाज में अजूबा ही है.

प्रभास की आंखों की चमक देखते ही बनती थी इस वक्त. हेमा ने भी प्रभास की आंखों में छिड़े सुरताल को महसूस किया और आसानी से प्रभास की ओर बढ़ आई. हेमा चतुर और बेहद स्वार्थी स्त्री है. वह प्रभास जैसे शातिर और मतलबी बौस का पूरा उपयोग करना जानती है. “सर, फाइल रेडी कर के ले आई हूं.”

“इधर बताओ. अरे, सिर्फ फाइल दे रही हो?” प्रभास ने द्विअर्थी मुसकान के साथ हेमा की आंखों में देखा. वह मुसकराते हुए आगे बढ़ी, तो बगल में रखी कुरसी के हैंडल में झालर वाली उस की क्रौप टौप अटक गई, और पहले से ही नाभी का दिखता हिस्सा अब और प्रभास की आंखों को तड़पा गया. नीचे के हिस्से में बटम टाइट कैप्री जींस कमाल किए हुए थी ही.

हेमा ने झेंपने का अभिनय किया. वह प्रभास के पास अब तक आ चुकी थी. प्रभास 6 महीने से जिस जुगत में लगा था, आज अचानक ही हिम्मत की बलिहारी से वह कर गुजरा .एक झटके से उस ने हेमा को अपने ऊपर खींच लिया.

हेमा के अंदर क्या था, वह हेमा ही जानती है. जो दुनिया में सब से ज्यादा खुशी चाहता हो, सब से बढ़िया पाना चाहता हो, जो दूसरों के पाने का खुद के पाने से हर वक्त तुलना करता हो, वही जानता है. तरुण जैसा पति पा कर भी वह कितनी प्यासी है. प्रभास ने उठ कर दरवाजा लगा दिया. और वे दुनियादारी से विमुख हो कर खुद को दुनिया का सब से छला हुआ इनसान मान कर खुद की सुखतृप्ति में बेसुध हो गए.

बाहर की दुनिया अपने हिसाब से आगे बढ़ती है, और कई मामलों में लोग अपनी आंखें बंद कर लेते हैं, तो दुनिया को और तेजी से आगे बढ़ने में सुविधा होती है. लिहाजा, तेजतर्रार हेमा और शातिर दिमाग बैंक मैनेजर प्रभास की जाति जिंदगी में ताकाझांकी से स्टाफ दूर ही रहते थे, यद्यपि हेमा के पति तरुण को यहां के काफी स्टाफ पहचानते थे, लेकिन सब को अपने हिस्से का सुकून प्यारा है.

शाम को तरुण अपनी एक्टिवा में हेमा को लेने आ गया था. हेमा को टू व्हीलर चलाना आता था, लेकिन यह काम उसे लगता था कि वह क्यों करे, जब तरुण है. तरुण का बैंक हेमा की बैंक के पास की दूसरी गली में ही था. यह एक तरह से कौमर्स एंड बिजनेस इलाका ही था. दोनों की एक समय की छुट्टी थी, तो तरुण ही आ जाता था, और जिस दिन तरुण किसी काम से रुकता था, उसे एक्टिवा और चाबी पहुंचा कर फिर से औफिस चला जाता था, बाद में वह पब्लिक ट्रांसपोर्ट से घर आ जाता था.

दुबलापतला मुश्किल से 5′-7” की हाइट का सामान्य सा दिखता तरुण हेमा से एक साल छोटा 35 साल का था. तरुण स्कूल का पढ़ाकू बालक लगता है. बहुत सीधा, सच्चा, विनम्र और वचन का पक्का. इसी वचन की जिम्मेदारी ने ही तो तरुण को हेमा के साथ बांधा और बांध रखा है. कालेज के वे स्नातक के दिन थे दोनों के. हेमा और तरुण दोनों के ही कौमर्स विषय थे.

यद्यपि दोनों के कालेज अलग थे, लेकिन उन में दिनोंदिन पहचान बढ़ रही थी. दरअसल, इस के पीछे वह कोचिंग सेंटर था, जहां तरुण पढ़ने आया करता.

निचली मंजिल पर कोचिंग सेंटर के हेड सर का घर था, जहां उन की 2 बेटी हेमा, रीमा और एक बेटे के साथ उन का परिवार रहता था. बाजू की सीढ़ी होते हुए ऊपर 2 और 3 मंजिलें पर मैथ, बायो और कौमर्स के कोचिंग सेंटर थे.

हेमा और तरुण दूसरी मंजिल पर आसपास के क्लास में होते थे, लेकिन वह यहां के हेड सर की बेटी होने और क्लास में एक साल सीनियर होने के कारण अकसर वैसे क्लास संभाल दिया करती, जहां कौमर्स का कोई फैकल्टी क्लास में उस दिन अनुपस्थित हो.

हेमा खूबसूरत तो थी ही, बोनस में लटकेझटके के साथ खिलखिलाती भी थी. कच्चा दिमाग तरुण यह नहीं समझ पाता कि हेमा जैसी चालाक लड़कियां दूसरों को अपनी ओर आकर्षित कर उन पर अपनी सुप्रीमेसी साबित करने के लिए अकसर ऐसे लटकेझटके लगाती हैं.

दीवार – भाग 1 : इंस्पेक्टर जड़ेजा का क्या मकसद था

लेखक- अमित अरविंद जोहरापुरकर

“आप महंत हैं… मतलब, साधु हो ना?” इंस्पेक्टर जड़ेजा ने कड़ी आवाज में इंद्रपुरी महाराज से पूछा. अहमदाबाद शहर के उत्तरी छोर पर एयरपोर्ट से 10 किलोमीटर दूर कलवाड पुलिस स्टेशन में महंत इंद्रपुरी महाराज इंस्पेक्टर जड़ेजा के सामने बैठे हुए थे.

खानाबदोश जाति आयोग ने उन्हें यह काम नहीं सौंपा होता तो वह अहमदबाद से अब तक कच्छ में अपने मठ में वापस पहुंच गए होते. इंस्पेक्टर जड़ेजा की आवाज में दिख रही तुच्छता को अनदेखा कर महाराज बोले, “बापू, मै महंत हूं… मेरे बावरा लोगों के लिए. आप के लिए तो मैं एक आम आदमी हूं. यहां अहमदाबाद में मैं एक अनुष्ठान के लिए आया था.”

इंस्पेक्टर जड़ेजा अब और बेरहमी से बोले, “इन बावरा लोगों का काम क्या होगा, चोरी या लूटमार. मैं कहे देता हूं, यहां मेरे इलाके में मैं कुछ भी तमाशा नहीं चलने दूंगा.””बापू, मैं क्या तमाशा करूंगा? मैं तो यहां अपने काम से आया था. लेकिन दिल्ली से आयोग ने मुझे कहलवा भेजा कि यह जो दीवार का इंस्पेक्शन कर के उन को रिपोर्ट दूं. सरकार एयरपोर्ट के रास्ते पर जो बावरा बस्ती है, उस के सामने जो लंबीचौड़ी दीवार नई बनी है, वो गलत है, ऐसा हमारा कहना है. उसी की बात करने तो मैं यहां आया हूं.”

“आप जिसे दीवार कह रहे हैं, वह तो कंपाउंड वाल है. ऐसी कंपाउंड वाल तो जगहजगह बनाई जाती है. आप ही के लोग रास्ते पर आ कर गंदगी करते हैं, आसपास की बस्तियों में चोरियां करते हैं.”अब देखिए, इस रास्ते पर इतनी अच्छी बंगलोज सोसाइटी है. इतना बड़ा स्टेडियम बन रहा है. अब ये सब लोग इतनी मेहनत से देश की तरक्की कर रहे हैं. वो सिर्फ यह गंदगी देखते रहे?” अब तक इंस्पेक्टर जड़ेजा के साथ शांति से बैठ कर बातें सुनते हुए शाह साहब बोले.

एके शाह अहमदाबाद अर्बन डेवेलपमेंट अथारिटी कलवाड विभाग के प्रमुख अधिकारी थे.अब इंद्रपुरी महाराज बेचैन हो गए. असल में इन सब मामलों में पड़ना उन्हें अच्छा नहीं लगता था. वह बावरा जाति के, जो एक खानाबदोश और पैदाइशी गुनाहगार समझी जाने वाली जाति के महंत और गुरु (जिन्हें गोर कहा जाता है) थे. उन के लोगों पर ऐसे आरोप हमेशा से लगाए जाते रहे थे, लेकिन अब वही सुनसुन कर उन्हें गुस्सा आने लगा था. वह कहने लगे, “आप लोग उन्हें पढ़ाओगे नहीं, मारोगेपिटोगे, उन से शराब का गैरकानूनी धंधा करवाओगे… और ऊपर से उन्हें ही गुनाहगार कहोगे तो कैसे चलेगा?”

“आप चाहते क्या हैं?” बात शराब के कारोबार पर जाते देख इंस्पेक्टर जड़ेजा रुख बदलते हुए बोले, “कोर्ट ने आप को यहां क्यों भेजा है?””खानाबदोश जाति आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दी है कि अहमदाबाद और बड़ोदा में बावरा लोगों की बस्ती के बाहर सरकार जो नई दीवार बनवा रही है, वह तोड़ी जाए. इसीलिए आयोग और कोर्ट ने मुझे यहां भेजा है.

“हमारा मानना है कि ऐसी दीवारें खड़ी कर के आप हमें भी और दलितों को भी बहिष्कृत करना चाहते हो. यह तो नगरनिगम की बात है, सिविल मैटर है. आप लोग हर चीज सुप्रीम कोर्ट में क्यों ले जाते हो?” इंस्पेक्टर जड़ेजा बोले.लेकिन महाराज के चेहरे का नूर देख कर थोड़ी नरमाई से बोले, “ठीक है, मुझे कमिश्नर साहब से बात करनी पड़ेगी.”

उस कचहरी में बैठ कर इंद्रपुरी महाराज खिड़की से बाहर देखने लगे. उन के मठ का छोटा झंडा और चिह्न अंकित की हुई उन की पुरानी मारुति कार बाहर खड़ी दिख रही थी. एक सबइंस्पेक्टर उस कार को करीब से देख रहा था, मानो उसे लग रहा हो कि यह गाड़ी चोरी कर के लाई गई है. शाह साहब तो अखबार खोल कर बैठ गए थे, तभी इंस्पेक्टर जड़ेजा वापस आए और बोले, “चलिए, कमिश्नर साहब ने आप को दीवार दिखाने के लिए कहा है.”

“बहुत अच्छा. मैं भी तो वही कह रहा था,” महाराज बोले. इंद्रपुरी महाराज इंस्पेक्टर जड़ेजा के साथ बाहर आए. उन की कार को जो सबइंस्पेक्टर घूर रहा था, वह अब उन के साथ आ गया. “झाला, चलो हमारे साथ,” इंस्पेक्टर जड़ेजा बोले. बड़ी जिल्लत से सबइंस्पेक्टर झाला ने महाराज को नमस्ते किया और घिनौनी नजरों से उन्हें देख कर बीह अपना हाथ पिस्तौल पर ले गया.

इंस्पेक्टर जड़ेजा खुद ही जीप चलाने बैठ गए और इंद्रपुरी महाराज उन की बगल में बैठ गए. पिछली सीट पर झाला और एक कांस्टेबल बैठ गए. वे लोग अपने पीछे बंदूक तान कर ही बैठे हैं, ऐसा महाराज को लग रहा था. सिर्फ 10 मिनट में उन की सवारी एयरपोर्ट रोड पर स्टेडियम के सामने बावरा बस्ती में पहुंच गई.

ज्यादातर एकमंजिला झोंपड़ीनुमा घरों की उस बस्ती के सामने करीब साढ़े 7 फुट ऊंची कंक्रीट की दीवार खड़ी हुई थी. दीवार के सामने जीप खड़ी कर के इंस्पेक्टर जड़ेजा स्टेडियम की ओर जाने वाले रास्ते पर जाने लगे, वैसे उन्हें रोकते हुए महाराज बोले, “साहब, हम लोग तो यह दीवार और यह बस्ती देखने आए हैं. उस के लिए तो दीवार के उस पार जाना पड़ेगा.””जैसी आप की मरजी,” कह कर इंस्पेक्टर जड़ेजा फिर से जीप घुमा के चलाने लगे और तेजी से सीधे जा कर एक दीवार जहां खत्म हुई, वहां से उन्होंने कच्चे रास्ते से जीप बस्ती के अंदर मोड़ ली.

उस घनी और संकरी बस्ती के शुरू में ही कुछ बावरा औरतें झुंड बना कर खड़ी थीं. पुलिस की जीप देख कर एक बूढ़ी औरत गालियां बकते हुए थूकने लगी. कुछ मर्द और लड़के जोरजोर से चिल्लाते हुए दीवार तोड़ने की बातें कर रहे थे.

पशु पालन को बनाएं उद्योग

लेखक-भानु प्रकाश राणा

खेती के साथसाथ अनेक ऐसे काम किए जा सकते हैं, जो किसानों को अतिरिक्त मुनाफा तो देते ही हैं, साथ ही रोजगार भी मिल जाता है. ऐसा ही काम है पशुपालन, जो किसानों के लिए बेहतर आमदनी का जरीया हो सकता है. सरकार की भी अनेक योजनाएं पशुपालन के क्षेत्र में आती रहती हैं, जो किसानों की राह आसान बनाती हैं. पिछले कुछ समय में भारत सरकार ने किसानों और पशुपालकों को ले कर लगातार योजनाएं लौंच की हैं. केंद्र सरकार ने आत्मनिर्भर भारत के तहत पशुपालन अवसंरचना विकास निधि यानी एनीमल हसबैंडरी इंफ्रास्ट्रक्चर डवलपमैंट फंड (एएचआईडीएफ) के लिए 15,000 करोड़ रुपए भी आवंटित किए हैं.

योजना के उद्देश्य

* दूध और मांस प्रसंस्करण की क्षमता और उत्पाद में विविधीकरण को बढ़ाना.

* पशुपालकों को दूध और मांस पर सही रेट उपलब्ध कराना.

* घरेलू उपयोग के लिए गुणवत्तापूर्ण दूध और मांस उत्पाद उपलब्ध कराना.

* देश की बढ़ती आबादी की प्रोटीन समृद्ध गुणवत्ता वाले भोजन की आवश्यकता को पूरा करना.

* कुपोषण को खत्म करना.

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* उद्यमिता विकसित करना और रोजगार पैदा करना.

* दूध और मांस के क्षेत्र में निर्यात योगदान बढ़ाने के लिए.

* मवेशियों के लिए सस्ते दाम पर चारा मुहैया कराना. लगा सकते हैं पशुओं से जुड़े उद्योग किसान केंद्र सरकार की पशुपालन अवसंरचना विकास निधि यानी एनीमल हसबैंडरी इंफ्रास्ट्रक्चर डवलपमैंट फंड (एएचआईडीएफ) के माध्यम से लोन ले कर पशुओं से जुड़े कई उद्योग लगा सकते हैं.

इन उद्योगों को लगाने के लिए वे बैंकों से लोन के रूप में 90 फीसदी तक की वित्तीय सहायता बाजार से कम ब्याज दर पर ले सकते हैं. साथ ही, किसान उद्यमी मित्र पोर्टल पर जा कर उन बैंकों की सूची भी देख सकते हैं, जो इस तरह के लोन की सुविधा देते हैं. इन उद्योगों यानी निर्माण इकाइयों के लगाने पर पशुपालन विभाग की तरफ से लोन की सुविधा दी जा रही है :

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* आइसक्रीम इकाई

* पनीर निर्माण इकाई

* अल्ट्रा उच्च तापमान (यूएचटी) टैट्रा पैकेजिंग सुविधाओं के साथ दूध प्रसंस्करण इकाई

* फ्लेवर्ड मिल्क निर्माण इकाई

* मिल्क पाउडर निर्माण इकाई

* मट्ठा पाउडर निर्माण इकाई

* विभिन्न प्रकार के मांस प्रसंस्करण इकाई ऐसे करें लोन के लिए आवेदन एनीमल हसबैंडरी इंफ्रास्ट्रक्चर डवलपमैंट फंड यानी एएचआईडीएफ के तहत लोन के लिए आवेदन करना बेहद ही आसान है. इस के लिए सब से पहले उद्यमी मित्र पोर्टल पर जा कर रजिस्ट्रेशन करना होगा. इस के बाद आप के सामने आवेदन प्रकिया को शुरू करने के लिए पेज खुल कर सामने आ जाएगा. वहां आप लोन के लिए आवेदन दे सकते हैं. आवेदन देने के बाद पशुपालन विभाग के द्वारा आप की एप्लीकेशन की समीक्षा की जाएगी.

विभाग से अनुमति मिलने के बाद बैंक/ऋणदाता द्वारा लोन की स्वीकृति दे दी जाएगी. इस के बाद सभी जरूरी प्रकियाएं पूरी कर किसान के खाते में लोन की राशि ट्रांसफर कर दी जाती है. इस योजना के बारे में किसान अगर और अधिक जानना चाहते हैं, तो उद्यमी मित्र पोर्टल पर जानकारी ले सकते हैं.

कांग्रेस की अहमियत

कांग्रेस ने अब मान लिया है कि गांधी परिवार का कोई पर्याय नहीं है और सोनियां गांधी तब तक अध्यक्ष रहेंगी जब तक वे पूरी तरह बीमार नहीं पड़तीं. यह भारतीय जनता पार्टी के लिए बुरी खबर है क्योंकि बड़ी मेहनत से उस ने 8-10 सालों में राहुल गांधी की एक नितांत बचकाने, बेवकूफ, बुद्धू नेता की तसवीर बनाई थी और बात की खाल निकाल कर भाजपाइयों ने उन पर आक्रमण किया था यह सोच कर कि कैंसर पीड़ित सोनिया तो आज गईं कल गईं.

कांग्रेस का वजूद आज भी भाजपा को डराता है. उत्तर प्रदेश में प्रियंका गांधी ने लखीमपुर खीरी आंदोलन में जो तेवर दिखाए और जिस प्रकार वे केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा के पुत्र आशीष मिश्रा को गिरफ्तार करवा कर ही मानीं, उस से यह साफ हो गया है कि मोदी के मुकाबले भीड़ जुटाने में गांधी परिवार आज भी सक्षम है. भारतीय जनता पार्टी काफी कोशिश कर रही है कि कांग्रेस में विभीषण पैदा हो जाएं, सुग्रीव मिल जाए तो अपने भाई को ही मरवा डाले, परशुराम सा पुत्र मिल जाए जो मां को भी न छोड़े, सिंधिया परिवार जैसे मिल जाएं जिन में एक का पैर कांग्रेस में हो और दूसरे का पैर भाजपा में. भाजपा को काफी सफलता भी मिली है, इस से इनकार नहीं, पर उस के बावजूद कांग्रेस टूटफूट कर दलितों की रिपब्लिकन पार्टी की तरह बिखर नहीं पा रही और ऊंची जातियों के जमघट यानी जी-23 की मुखरता बेकार चली गर्ई है.

कांग्रेस फिर भाजपा के खिलाफ खड़ी हो पाएगी, इस में संदेह है क्योंकि धार्मिक कट्टरता का जो फायदा 1947 से पहले और बाद में कांग्रेस अपने चुने नेताओं से छिपे तौर पर लेती थी, अब वह कुंद हो गई है क्योंकि वे सब नेता भाजपा में ही जा कर बैठ गए हैं चाहे उन्हें सिर्फ मूर्तियों के पैर रातदिन धोने में लगा भर दिया गया हो. कांग्रेस अब कट्टर ऊंचों की हिंदू पार्टी का गुप्त हथियार इस्तेमाल नहीं कर सकती क्योंकि इसे आज भाजपा खुल्लमखुल्ला कर रही है. किसी भी राजनीतिक दल की सफलता में उस का थिंक टैंक होता है. उस में अपनी बात कहने की कला और एक ही संदेश को बारबार अलगअलग शब्दों में दोहराने की क्षमता होती है. भाजपा का थिंक टैंक बहुत मजबूत है. उस के पास सारा बिका हुआ मीडिया भी है. मंदिरोंमठों पर उस का एकाधिकार है जहां से पार्टी अपने आघोषित कार्यालय चला सकती है. कांग्रेस इस भारीभरकम मशीनरी का इंतजाम नहीं कर सकती पर पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी ने इस मशीनरी को हरा दिया, उस से राजनीतिक दृश्य बदल सा गया है.

सोनिया या गांधी परिवार के साथ या उस के बिना कांग्रेस अभी भी कुछ दम रखती हैं, यह इस से साबित है कि भाजपाई नेताओं के ज्यादातर बयान कांग्रेसराज को कोसने में लगे होते हैं जबकि 7 वर्षों का लंबा समय उन्हें सत्ता में आए हो चुका है.

जिम जाने से होते हैं ये 7 फायदे, क्या आपको है मालूम

वैसे तो खुद को फिट रखने के लिए हमारे पास ऐक्सरसाइज, डांस क्लासेज जैसे कई विकल्प मौजूद हैं, लेकिन जिम जाना एक बेहतरीन विकल्प है. जिम जाने से न सिर्फ फैट कम होता है, बल्कि कई बीमारियों से भी दूर रहते हैं.

दे अट्रैक्टिव बौडी

स्लिमट्रिम बौडी सब को आकर्षित करती है. जिम जाने से ऐब्स डैवलप होते हैं. हाथों और पैरों की मसल्स स्ट्रौंग होती हैं. महिलाओं की कमर पतली होने लगती है. बौडी में कर्व्स दिखते हैं. प्यार के उन खास पलों में आकर्षक बौडी पार्टनर को और करीब ले आती है.

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स्ट्रैस बस्टर

आमतौर पर स्ट्रैस के कारण कपल्स अंतरंग पलों को पूरी तरह ऐंजौय नहीं कर पाते. तनावग्रस्त होने पर उन की सैक्स की इच्छा नहीं होती. ट्रस्ट से स्टैमिना भी घटता है. जिम में नियमित ऐक्सरसाइज स्ट्रैस बस्टर का काम करती है. ऐक्सरसाइज करने के बाद आप रिलैक्स महसूस करते हैं.

बैलेंस डाइट की आदत

जिम में ऐक्सरसाइज के साथ ही ट्रेनर डाइट चार्ट भी देते हैं. वे ऐक्सरसाइज टाइप और शरीर की जरूरतों के अनुसार डाइट चार्ट बनाते हैं. वर्कआउट के बाद शरीर को पोषक तत्त्वों की जरूरत पड़ती है. मसल्स और बौडीबिल्डिंग के लिए हाई प्रोटीन और जिंक युक्त डाइट लेनी चाहिए. हैल्दी सैक्स लाइफ के  लिए बैलेंस डाइट बहुत ही जरूरी है.

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बढ़ाएं टेस्टोस्टेरौन हारमोन का लैवल

अंतरंग पलों में टेस्टोस्टेरौन हारमोन महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है. यह हारमोन सैक्स की इच्छा और क्रियाशीलता के लिए उत्तरदाई है. रिसर्च बाती है कि नियमित ऐक्सरसाइज खासकर जिम में किए जाने वाले स्क्वैट्स से टेस्टोस्टेरौन हारमोन का लैवल बढ़ता है.

जगाए आत्मविश्वास

मोटापा सैक्स के लिए हानिकारक है. इस से जल्दी थकान महसूस होने लगती है. मोटापे का शिकार व्यक्ति पार्टनर को संतुष्ट नहीं कर पाता. इस से उस का आत्मविश्वास टूट जाता है और वह सैक्स से दूर भागने लगता है. जिम में ऐक्सरसाइज करने से मोटापा कम होता है, जिस से आत्मविश्वास बढ़ता है.

ऐनर्जी लैवल करे बूस्ट

नियमित ऐक्सरसाइज से शरीर का ऐनर्जी लैवल बूस्ट होता है. जिम जाने से काफी देर तक काम करने पर भी थकान महसूस नहीं होती है. आलस कोसों दूर रहता है. इसलिए शरीर के ऐनर्जी लैवल को बनाए रखने के लिए जिम जरूर जाएं.

बनाए और्गैज्म को बेहतर

रिसर्च से यह बात सामने आई है कि जो महिलाएं नियमित ऐक्सरसाइज करती हैं वे जल्दी उत्तेजित हो जाती हैं और और्गैज्म को ऐंजौय करती हैं. दरअसल, ऐक्सरसाइज से उन में सैक्स हारमोंस का लैवल बढ़ जाता है, जिस से वे बेहतर सैक्स पार्टनर साबित होती हैं.

ब्रीदिंग कंट्रोल

ऐक्सरसाइज ब्रीदिंग पर कंट्रोल करना सिखाती है. सही ब्रीदिंग टैक्नीक से सैक्स का ड्युरेशन और प्लैजर दोनों बढ़ जाते हैं.

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