शावर की ठंडी बूंदें जैसेजैसे शार्लिन के बदन पर गिरती हैं, उस के वहां होने और सिसकियों से सिमटने की आवाजें मानो नेपथ्य में नाद कर रही हों.

वासु संपूर्ण कमरे में झांकता है, जैसे सबकुछ अनजाना हो, बिलकुल नया सा. जैसे 7-8 साल पहले हो गया था बिलकुल तनहा सा. जब घर छोड़ने के लिए उसे विवश किया जा रहा था. वो घर में ही किसी अपराधी की भांति हो गया था. ना कोई बात करता था, ना संग रहता था और फिर एक दिन भाईबहन ने भी उसे अपने कमरे से निकाल दिया था. मातापिता ने भी उन को समझाने की जगह मुझे ही निकल जाने के लिए बाध्य कर दिया था. पहले दो रोज बीते, फिर 3-4 और महीने, साल, पर किसी ने मेरी कोई सुध नहीं ली.

अगर शार्लिन न मिलता तो शायद आत्महत्या ही कर लेता. शायद कोई किसी का नहीं, सब मतलबी हैं, दंभी हैं, घृणित हैं. हर ओर दिखावे से भरी जिंदगी है. सब के हृदय कुत्सित हैं. शार्लिन औफिस के लिए तैयार हो जाता है. नाश्ते के बाद वो वासु के करीब आ कर उस की आंखों में झांकता है और उस के माथे को चूम लेता है. उस को प्रेमवश गले लगा कर कहता है, 'वासु, तुम बिलकुल भी चिंता न करो. मैं तुम्हारे साथ हूं. हम दोनों एक हैं. ज्यादा न सोचो. अब मैं सब ठीक कर दूंगा.

'अच्छा, मैं औफिस चलता हूं. शाम को अमरकांत से मिलना है. हो सके तो तुम साढ़े 6 बजे उन के निवास पर पहुंच जाना. एड्रेस डायरी में है और दूध पी लेना. दूध कुछ ज्यादा ही गरम है. जरा ध्यान से लेना. दो टोस्ट भी हैं प्लेट में. 'अब मेरे भाई हंस भी दो, मेरी जान हो ना?

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