कृषि विज्ञान केंद्र, फतेहपुर अक्तूबर माह में फसल संबंधित सलाह धान की फसल में यूरिया की दूसरी व अंतिम टौप ड्रैसिंग रोपाई के 55 से 60 दिन बाद 60-65 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से करें. ध्यान रहे कि टौप ड्रैसिंग करते समय खेत में 2 से 3 सैंटीमीटर से अधिक पानी न हो.
* मक्के की फसल में बारिश न होने की स्थिति में जरूरत के मुताबिक हलकी सिंचाई कर उचित नमी बनाए रखें.
* किसान वर्षाकालीन प्याज की पौध की रोपाई इस समय कर सकते हैं. जल निकास का उचित प्रबंध रखें. * जिन किसानों की टमाटर, हरी मिर्च, बैगन व अगेती फूलगोभी की पौध तैयार है, वे मौसम को मद्देनजर रखते हुए रोपाई मेंड़ों (उथली क्यारियों) पर करें और जल निकास का उचित प्रबंध रखें.
* केले/पपीते के बागों की गुड़ाई कर के तने के चारों तरफ 25 से 30 सैंटीमीटर ऊंची मिट्टी चढ़ा कर स्टैंडिंग करें. फसल सुरक्षा
* इस मौसम में धान की फसल मुख्यत: वानस्पतिक बढ़त की स्थिति में है. लिहाजा, फसल में पत्ता मरोड़ या तना छेदक कीटों की निगरानी करें. तना छेदक कीट की निगरानी के लिए फैरोमौन प्रपंच 3-4 प्रति एकड़ लगाएं.
* इस समय धान की फसल में खैरा रोग के प्रकोप की संभावना होती है, जिस में पत्तियां पीली पड़ जाती हैं. बाद में इन पत्तियों पर कत्थई रंग के धब्बे पड़ जाते हैं. इस के नियंत्रण के लिए जिंक सल्फेट की 5 किलोग्राम मात्रा को 20 किलोग्राम यूरिया के साथ 1,000 लिटर पानी में घोल कर प्रयोग करें.
* टमाटर, मिर्च, बैगन, फूलगोभी व पत्तागोभी वगैरह सब्जियों में फल छेदक, शीर्ष छेदक व फूलगोभी व पत्तागोभी में डायमंड बैक मोथ की निगरानी के लिए फैरोमौन ट्रैप 3-4 प्रति एकड़ लगाएं. * कद्दूवर्गीय सब्जियों को ऊपर चढ़ाने की व्यवस्था करें, ताकि वर्षा से सब्जियों की लताओं को गलने से बचाया जा सके.
* किसान प्रकाश प्रपंच यानी फैरोमौन ट्रैप का भी इस्तेमाल कर सकते हैं. इस के लिए एक प्लास्टिक के टब या किसी बड़े बरतन में पानी और थोड़ी कीटनाशक दवा मिला कर एक बल्ब जला कर रात में खेत के बीच में रखे दें. रोशनी से कीट आकर्षित हो कर उसी घोल पर गिर कर मर जाएंगे. प्रकाश प्रपंच से अनेक प्रकार के हानिकारक कीटों का नाश होगा.
* किसानों को सलाह है कि बाजरा, मक्का व सब्जियों में खरपतवार नियंत्रण के लिए निराईगुड़ाई का काम शीघ्र करें और सभी फसलों में सफेद मक्खी और चूसक कीटों की नियमित निगरानी करें.
* कद्दूवर्गीय व अन्य सब्जियों में मधुमक्खियों का बड़ा योगदान है, क्योंकि वे परागण में मदद करती हैं, इसलिए जितना संभव हो सके, मधुमक्खियों के पालन को बढ़ावा दें. कीड़ों व रोगों की निरंतर निगरानी करते रहें, कृषि विज्ञान केंद्र से संपर्क रखें व सही जानकारी लेने के बाद ही दवाओं का प्रयोग करें.