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‘खट... खट... खट...’ दरवाजे की दस्तक ने निकहत को चौंका दिया. वह पलंग पर बैठी एक रोमान्टिक सा गीत लिखने में मशगूल थी. दरवाजे पर संजीव के होने के ख्याल से उसका दिल बल्लियों उछलने लगा. वह लगभग भागती हुई सी दरवाजे तक पहुंची. कुंडी खोली तो उसके चेहरे पर खुशियों के हजारों रंग बिखर गये. सामने उसका संजीव खड़ा था. वो उससे लगभग लिपटते हुए बोली...

‘आज जल्दी कैसे आ गये...?’

‘कुछ काम था...’ छोटा सा जवाब देकर संजीव तख्त की ओर बढ़ गया, ‘अम्मी नहीं हैं...?’ उसने इधर-उधर दृष्टि घुमायी.

‘नहीं, जाहिद के साथ वैद्यजी के पास गयी हैं, मालिश का तेल लेने...’ निकहत ने उसे प्यार से देखते हुए कहा और उसके बगल में बैठ गयी.

‘निकहत... मैं बिजनेस के काम से कुछ दो-तीन महीने के लिए बाहर जा रहा हूं...?’

‘दो-तीन महीने के लिए... क्यों... कहां...?’ निकहत ने बेचैनी से पूछा.

‘कोलकाता...’ संजीव ने संक्षिप्त सा उत्तर दिया, ‘पापा चाहते हैं कि वहां हमारा एक नया शोरूम खुल जाए... वो अब बिजनेस बढ़ाना चाहते हैं.... इसके लिए मेरा जाना जरूरी है...’

‘कब तक वापस आ जाओगे...’ निकहत ने उदास होते हुए पूछा.

‘कम से कम तीन महीने तो लग ही जाएंगे... ज्यादा वक्त भी लग सकता है...’ संजीव ने जवाब दिया.

‘मैं यहां तुम्हारे बिना कैसे रहूंगी...’ निकहत परेशान हो गयी.

‘अरे यार, समय जाते देर नहीं लगती, फिर ये भी तो सोचो अगर कोलकाता में हमारा बिजनेस सेट हो गया तो हमें कितना फायदा होगा... फिर पापा भी मुझसे खुश हो जाएंगे... क्या तुम यह नहीं चाहतीं...?’ संजीव प्यार से उसका चेहरा अपनी हथेलियों के बीच लेते हुए बोला.

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