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अपने घर पहुंच कर निकहत सीधी अपने कमरे में पहुंची. दरवाजा बन्द करते-करते वह फूट-फूट कर रो पड़ी. संजीव से उसे ऐसे धोखे, ऐसी बेरुखी और ऐसी बेशर्मी की उम्मीद नहीं थी. उसको तो यकीन ही नहीं हो रहा था कि यह वही संजीव है, जिसने उससे बेइंतहा मोहब्बत की थी. यह वही संजीव है जो उससे मिलने के लिए हर दिन भागा चला आता था. यह वही संजीव है जिसको इबादत की हद तक उसने चाहा था. कोई ज्यादा वक्त तो नहीं हुआ है. महज तीन महीने में ही वह क्या से क्या हो गया? निकहत की आंखों के सामने से संजीव के संग बिताया वक्त और प्यार का एक-एक पल चलचित्र की तरह घूम रहा था. वह बिस्तर पर पड़ी ज़ार-ज़ार रोये जा रही थी. रात गुजरती जा रही थी और उसके आंसू थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे. इतना तो वह अपने अब्बा के मरने पर भी न रोयी थी. आज तो जैसे वह सारी जिन्दगी का रोना रो लेना चाहती हो. चाहती थी कि आज उसके सारे आंसू बह जाएं... हमेशा-हमेशा के लिए खत्म हो जाएं. सारी रात रो लेने के बाद सुबह तक उसका मन काफी हल्का हो गया था. दिमाग कुछ सोचने के काबिल हुआ तो उसने उठकर हाथ-मुंह धोया. कपड़े बदल कर कमरे से बाहर आयी, तो देखा अम्मी लाठी के सहारे खड़ी होकर चूल्हे पर चाय का पानी चढ़ा रही थीं.

‘क्या बात है बेटा...? कल रात तो तूने खाना भी नहीं खाया. मैं तो दरवाजा पीटते-पीटते थक गयी. बड़ी जल्दी सो गयी थी...?’ अम्मी ने उसे रसोई में देखा तो बोलीं.

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