Download App

जीवनसंगिनी : भाग 1

लेखिका- निधि अमित पांडे

पवित्रा को आवाज देते हुए पराग जैसे ही घर में दाखिल हुआ,  शालिनी को वहां बैठा देख उस के होश उड़ गए थे. शालिनी मां और बाबू जी के साथ बैठ कर ऐसे बातें कर रही थी मानो कब से उन्हें जानती हो. पराग की आंखें पवित्रा को ढूंढ रही थीं.  पवित्रा वहां नज़र नहीं आ रही थी.

पराग ने गुस्से से शालिनी को पूछा, “तुम यहां कैसे, यहां का पता तुम्हें किस ने बताया?” शालिनी ने कहा, “बहुत दिन हुए आप मेरा फोन नहीं उठा रहे थे. आप से कुछ बहुत जरूरी बात करनी थी, इसलिए आप से मिलने आप के औफिस गई थी. वहां जा कर पता चला कि आप  घर जा चुके हैं, इसलिए आप से मिलने यहां चली आई. औफिस से आप के घर का  पता मिल गया. बधाई हो आप को, सुना है कंपनी आप को विदेश भेज रही है.”

शालिनी की बातों से पराग का गुस्सा और तेज हो गया था. विदेश जाने की बात वह खुद अपने परिवार को देना चाहता था. घर में सब का मुंह मीठा करवा कर वह यह खुशखबरी देगा, ऐसा सोच कर पराग औफिस से लौटते हुए  मिठाई लेने चला गया था जिस के कारण उसे घर आने मे देर हो गई थी. शालिनी का इस तरीके से घर तक चले आना उसे बिलकुल पसंद नहीं आया था. वह ऐसा कर सकती है,  इस बात का  पराग को जरा भी अंदाजा न था.

इस से पहले कि पराग शालिनी को वहां से चले  जाने के लिए कहता, पवित्रा चायनाशता ले कर आ गई थी. उस ने पराग से कहा, “अरे, आप ने शालनीजी के बारे कभी बताया नहीं कि ये आप के पुराने औफिस में आप की सहायक थीं.पराग समझ गया था कि शालिनी ने अपना यही परिचय दिया होगा. उस ने पवित्रा से कहा, “हां, कभी मौका ही नहीं मिला पर तुम ये सब छोड़ो और अपना मुंह मीठा करो.”

पवित्रा ने कहा, “मुंह मीठा किस खुशी में?”पराग ने कहा, “बताता हूं,” उस ने मां व बाबूजी के पैर छुए, फिर बताया कि कंपनी ने उस के काम से खुश हो कर  उसे प्रमोशन पर  विदेश भेजने का निर्णय लिया है.” पवित्रा ने कहा, “यह तो बहुत ही ख़ुशी की बात है. और आप इसी तरह से सफ़लता की सीढ़ियां चढ़ते रहें.”

बाबूजी ने पराग से पूछा, “कितने दिनों के लिए जाना है बेटा?”पराग ने कहा, “मुझे एक नए प्रोजैक्ट के साथ वहां भेजा जा रहा है. जब तक वह पूरा नहीं होता, वापस आना नहीं होगा.”  मांजी ने कहा, “ऐसी बात है तो बहू और अपनी भी तेरे साथ जाएंगे. इतने दिन ये दोनों तेरे बिना  कैसे रहेंगी. शालिनी ये सब सुन कर अंदरअंदर बेचैन हो रही थी.

पवित्रा ने सब को  टोकते हुए कहा, “ये सब बातें हम बाद में करेंगे. शालिनीजी पहली बार हमारे घर आई हैं, इन को चायनाश्ता तो करने दो.”पवित्रा ने ऐसा कहा तो शालिनी जाने के लिए उठ खड़ी हुई  और बोली, “नहीं फिर कभी, अब मैं चलती हूं. मुझे घर पहुंचने में देर होगी.”

पवित्रा ने शालिनी का हाथ पकड़ कर उसे वापस बैठा दिया और कहा, “आप पहली बार हमारे घर आई हैं, मैं बिना कुछ खाएपिए आप को जाने नहीं दूंगी. चिंता मत करिए, पराग आप को घर छोड़ आएंगे. चायनाश्ता होने के बाद पवित्रा के कहने पर पराग शालिनी को  छोड़ने चला गया था. शालिनी के जाते ही  मांजी ने पवित्रा से कहा, “बहू,  मुझे यह शालिनी  कुछ ठीक नहीं लगी,  देखा नहीं तुम ने, पराग से कैसे  बातें कर रही थी.”

पवित्रा ने हंसते हुए कहा, “अरे नहीं, मांजी. मुझे तो ऐसा कुछ नजर नहीं आया. दोनों ने काफी समय साथ में काम किया है, इसलिए दोस्ती जैसा रिश्ता तो बन ही जाता है.” मांजी ने पवित्रा से कहा, “तुझे आज तक किसी में कोई  बुराई  दिखी है जो इस शालिनी में दिखेगी.” शालिनी को घर छोड़ कर आने के बाद पराग थोड़ा  परेशान सा लग रहा था. वह सीधे अपने कमरे में चला गया था.

पवित्रा खाना खाने के लिए उसे बुलाने गई तो देखा,  पराग अपने कमरे की दीवार पर लगी  पवित्रा और अवनी की तसवीर को बडे धयान से निहार  रहा था.पवित्रा ने पीछे से आ कर उस के कंधे पर अपना हाथ रखा और कहा, “क्या देख रहे हैं इतने धयान से, चलिए खाना खा लीजिए.”

पराग ने उस का हाथ अपने हाथों में लिया और उस से पूछा, “पवित्रा, सच बताओ अगर मेरे से कभी कोई गलती हो गई तो क्या तुम मुझे माफ कर पाओगी?” पवित्रा ने हंसते हुए कहा, “नहीं करूंगी क्योंकि मुझे पता है कि आप से कभी कोई गलती हो ही नहीं सकती और आप मुझे चिढ़ाने के लिए ही यह सवाल बारबार पूछते हैं. अब चलिए, हाथमुंह धो लीजिए. मैं खाना लगाती हूं.”

पवित्रा के जाने के बाद पराग सोचने लगा, पवित्रा मेरे ऊपर  कितना अटूट विश्वास करती है. मेरी  इतनी बडी भूल को पवित्रा स्वीकार नहीं कर पाएगी. उसे जिस दिन भी पता चलेगा, उस के विश्वास की तो धज्जियां उड जाएंगी. वह पूरी तरह से टूट जाएगी. अपनी इस भूल का सुधार मैं कैसे कर पाऊंगा, पता नहीं.थोड़ी देर बाद  पराग फ्रैश हो कर खाने की टेबल पर आ कर बैठ गया था. उस ने पवित्रा से पूछा, “तुम ने खाना खाया?”

पवित्रा ने कहा, “18 वर्षों में आप को खिलाए बिना मैं ने कभी  खाया है,  जो आज खा लूंगी.” उस ने खाने की  थाली परस कर पराग के सामने रख दी थी.थाली देख कर पराग ने कहा, “अरे वाह, मेरी पसंद की चावल की खीर और पूडी, पर किस खुशी में?”पवित्रा ने कहा, “आप की सफलता की खुशी में, विदेश जा कर काम करने का सपना आप कितने सालों से देख रहे थे.”

पराग ने पवित्रा से कहा, “तुम सच में  मुझे कितने अच्छे से समझती हो. मेरे बिना कहे ही  मेरे  मन की हर बात को महसूस कर लेना जैसे तुम्हारी आदत बन गई है. न जाने क्यों, पर मुझे कभीकभी  ऐसा लगता है कि मैं तुम्हारे लायक नहीं हूं.  तुम सच में  बहुत ही खास हो, पवित्रा. तुम ने सही माने में  मेरी जिंदगी को रौशन किया है. कितनी बातों के लिए तुम्हारा शुक्रिया अदा करूं.”

Winter 2021 : सर्दी में आपको फिट रखेंगे ये 5 सूप, जानें 11 फायदे

सूप को ज्यादातर खाने से पहले सर्व किया जाता है और सर्दियों में तो इसे पीने का मजा ही अलग है. सर्दी में सूप पीना चाहिए क्योंकि यह काफी हैल्दी होता है. सूप में विटामिंस, प्रौटीन, एंटीऔक्सीडैंट्स और मैग्नीशियम जैसे कई गुण होते हैं. आप को हैरानी होगी कि सब्जियों के अलगअलग रंग में अलगअलग तरह के एंटीऔक्सीडैंट्स होते हैं. ये शरीर को उन फ्री रेडिकल्स से बचाते हैं, जो शरीर के ऊतकों को खराब करते हैं. उबली हुई सब्जियों को सूप में डालें, ताकि सूप के साथ सब्जियां भी खाई जाएं. इस से शरीर को फाइबर भी मिलेगा.

सर्दियों में टमाटर, पत्तागोभी, स्वीट कौर्न सूप के साथसाथ बीमारियों से बचने के लिए कद्दू, मशरूम, बींस या साबुत दालों से बना सूप भी पी सकते हैं. अगर नौन वैजिटेरियन हैं तो सर्दियों में चिकन सूप भी पीना बेस्ट औप्शन हो सकता है. इस से आप को प्रौटीन भी प्राप्त होगा.

ये भी पढ़ें- 35 साल के बाद गर्भावस्था जोखिम भरी?

सूप पीने के फायदे

1. सूप पौष्टिक तत्त्वों से भरपूर होता है. दरअसल जिस सब्जी या अन्य खाद्य पदार्थ का सूप बनता है, उस का पूरा सत्त्व सूप में होता है. इस के अलावा कई तरह के पोषक तत्त्वों से भरपूर सूप अंदरूनी तौर पर ताकत देने का काम करता है.

2. फाइबर से भरपूर होने के कारण इस का सेवन इम्यून सिस्टम को मजबूत करता है, जिस से शरीर कई बीमारियों से बचा रहता है. साथ ही एक्ने, रिंकल्स और एंटी एंजिंग की समस्याओं से भी बचे रहते हैं.

3. सर्दियों में पानी न पीने की वजह से शरीर डिहाइड्रेट हो जाता है. मगर रोजाना सूप का सेवन शरीर को डिहाइड्रेट नहीं होने देता जिस से शरीर कई समस्याओं से बचा रहता है.

4. सूप एक लो कैलोरी फूड है इसलिए इस का सेवन मोटापा कंट्रोल में रखता है. वहीं अगर आप वजन जल्दी कम करना चाहते हैं तो फाइबर और पोषक तत्त्वों से भरपूर सूप पीएं.

5. अगर आप को भूख नहीं लगती या कम लगती है, तो सूप पीना बहुत अच्छा विकल्प है क्योंकि इसे लेने के बाद धीरेधीरे भूख खुलने लगती है और भोजन के प्रति आप की रुचि भी बढ़ती है.

ये भी पढ़ें- सही डाइट से ऐसे कंट्रोल करें कोलेस्ट्रॉल

6. सूप का सेवन बीमारियों में इसलिए भी किया जाता है, क्योंकि यह आसानी से पच जाता है. इस से बीमारी के बाद सुस्त पड़ा पाचनतंत्र भी सुव्यवस्थित तरीके से काम करने लगता है.

7. सूप में सभी मिनरल्स और विटामिंस होते हैं इसलिए इस का सेवन ब्लड प्रैशर को भी कंट्रोल में रखता है.

8. सर्दी के दिनों में सर्दीजुकाम, गले में खराश और खांसी जैसी समस्याओं से लोग अकसर परेशान रहते हैं. इन से बचने के लिए रोजाना गरमागरम सूप का सेवन करें. गले में खराश या खांसी है तो सूप में हलकी सी कालीमिर्च डाल लें.

9. अगर आप के मुंह का स्वाद बिगड़ गया है तो सूप पीएं. इस से आप के मुंह का स्वाद वापस आ जाएगा.

10. कमजोरी होने पर म्यूकस मोटा हो जाता है, जिस के कारण बैक्टीरिया और वायरस का खतरा बढ़ जाता है. सूप का प्रतिदिन सेवन करने पर म्यूकस पतला हो जाता है जिस से संक्रमण नहीं होता.

ये भी पढ़ें- मौसम सर्द…न बढ़ाए जोड़ों का दर्द, करें ये उपाय

11. एक रिपोर्ट के अनुसार, सूप ब्रैस्ट कैंसर के रिस्क को कम करता है. इस के अलावा सूप पीने से प्रौस्टेट और ब्रैन कैंसर के होने का खतरा भी कम होता है.

सर्दी के मौसम के कुछ खास सूप

पालक का सूप :

आयरन, विटामिंन और प्रौटीन का बहुत अच्छा स्रोत पालक का सूप सर्दी के मौसम में पीना बहुत ही लाभकारी है. इसे पीने से सर्दीजुकाम से बचाव रहता है और हड्डियां भी मजबूत बनती हैं.

चुकंदर का सूप :

कैल्शियम, लौह, पौटेशियम, विटामिन ‘ए’ व ‘सी’ और कोलिक एसिड से यह सूप भरपूर होता है. इसे पीने से पेशाब में जलन की समस्या खत्म होती है. आंखों की रोशनी तेज होती है और शरीर में खून बनता है.

टमाटर का सूप :

टमाटर में विटामिंस और एंटीऔक्सीडैंट्स भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं. शरीर में रक्त संचार सही बना रहता है. इस सूप में मौजूद विटामिन ‘के’ और कैल्शियम हड्डियों को मजबूत बनाते हैं.

अदरक और गाजर का सूप :

अगर आप ठंड से बचना चाहते हैं तो रोजाना अदरक और गाजर का सूप पिएं. कितनी ही ठंड क्यों न हो शरीर में तुरंत गरमी आ जाती है.

चिकन सूप :

चिकन सूप सब्जियों के साथ मिक्स कर के बनाने से इस की पौष्टिकता कई गुणा बढ़ जाती है. इस में कैलोरी काफी कम होती है और सर्दियों मेें इसे पीने का मजा ही कुछ और होता है.

प्यार का खौफनाक जुनून

सौजन्या- सत्यकथा

उस दिन शाम को सुखविंदर सिंह कुलवंत सिंह के घर पहुंचा तो अजीब नजारा देखने को मिला.
मकान का दरवाजा खुला था लेकिन अंदर किसी प्रकार की रोशनी नहीं थी. सुखविंदर हैरत में पड़ गया कि आखिर ऐसा क्यों है. वह दरवाजे से अंदर घुसा तो अंधेरे में उसे रूपिंदर कौर चहलकदमी करती दिखाई दी, वह काफी बेचैन दिख रही थी. रूपिंदर कुलवंत सिंह की पत्नी थी.

रूपिंदर ने दरवाजे पर खड़े सुखविंदर को देख भी लिया था. इस के बावजूद उस ने चहलकदमी करनी बंद नहीं की. न जाने वह किस उधेड़बुन में लगी थी, जिस कारण टहलती रही.सुखविंदर बराबर कुलवंत के घर आताजाता रहता था. कौन सी चीज कहां है, वह बखूबी जानता था. उस ने दरवाजे के पास लगे स्विच बोर्ड से स्विच औन कर दिया. तुरंत ही कमरा रोशनी से जगमगा उठा.सुखविंदर रूपिंदर कौर के चेहरे पर नजरें जमा कर बोला, ‘‘भाभी, बडे़बुजुर्ग कहते हैं कि जब दिनरात मिल रहे हों, तब घर में अंधेरा नहीं रखना चाहिए, अपशकुन होता है.’’

रूपिंदर के मुंह से आह निकली, ‘‘जिस के जीवन में अंधेरा हो, उस के घर में अंधेरा क्या और शकुनअपशकुन क्या.’’‘‘आज बड़ी दिलजली बातें कर रही हो. पूरा मोहल्ला जगमगा रहा है और तुम अंधेरा किए टहल रही हो. बात क्या है भाभी?’’ वह बोला.‘कुछ नहीं बस यूं ही.’’ रूपिंदर कौर ने जवाब दिया.
‘‘टालो मत,’’ सुखविंदर ने रूपिंदर का हाथ पकड़ लिया, ‘‘बताओ न भाभी, क्या बात है?’’प्रेम व अपनत्व से बोले गए शब्द बहुत गहरा असर करते हैं. रूपिंदर कौर पर भी असर हुआ. उस की आंखों से आंसुओं की झड़ी लग गई. सुखविंदर विवाहित था, इसलिए उसे औरतों का मन पढ़ना और समझना आता था.

ये भी पढ़ें- Satyakatha: लौकडाउन की लुटेरी दुल्हन

वह जानता था कि कोई भी औरत पराए मर्द के सामने तभी आंसू बहाती है, जब वह अंदर से बहुत भरी होती है. उस की भड़ास का प्रमुख कारण पति सुख से वंचित होना भी होता है.सुखविंदर ने हाथ में लिया हुआ रूपिंदर का हाथ आहिस्ता से दबाया, ‘‘बताओ न भाभी, तुम्हें कौन सा दुख है. संभव हुआ तो मैं तुम्हारे जीवन में खुशियां भरने की कोशिश करूंगा.’’सुखविंदर के हाथों से हाथ छुड़ा कर रूपिंदर कौर ने दुपट्टे के पल्लू से अपने आंसू पोंछे, फिर धीरे से बोली, ‘‘मेरे नसीब में पति का प्यार नहीं है. यही एक दुख है, जो मुझे जलाता रहता है.’’सुखविंदर चौंका, ‘‘यह क्या कह रही हो भाभी?’’‘‘हां, सही कह रही हूं सुखविंदर.’’

‘‘अगर कुलवंत सिंह तुम को प्यार नहीं करता तो 2 बेटे कैसे हो गए.’’‘‘वह तो मिलन का नतीजा है और एक बात बताऊं कि बच्चे तो जानवर भी पैदा करते हैं. औरत सिर्फ प्यार की भूखी होती है. उसे पति से प्यार न मिले तो उसे अपनी जिंदगी खराब लगने लगती है.’’सुखविंदर आश्चर्य से रूपिंदर कौर का मुंह ताकता रह गया. उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि रूपिंदर मन की बात इस तरह खुल्लमखुल्ला कह सकती है.सुखविंदर के मनोभावों से बेखबर रूपिंदर अपनी धुन में बोलती रही, ‘‘सैक्स और प्यार में अंतर होता है. खाना, कपड़ा देने और सैक्स करने से औरत के तकाजे पूरे नहीं होते. कोई दिल से चाहता है, खयाल रखता है, तब औरत पूरी तरह से खुश रहती है.’’

ये भी पढ़ें- Satyakatha: बेवफा बीवी

सुखविंदर सोचने लगा कि रूपिंदर की बात में दम है. मात्र खाना, कपड़ा, सुहाग की निशानियां और सैक्स ही औरत के लिए सब कुछ नहीं होता. दिल और रूह को छू लेने वाला प्यार भी उसे चाहिए होता है. दिल ठंडा होता है और रूह सुकून पाती है, तब कहीं औरत के प्यार की प्यास बुझती है.सुखविंदर समझ नहीं पा रहा था कि वह इस सिलसिले में क्या कहे. रूपिंदर का मामला सुखविंदर के अधिकार क्षेत्र से बाहर था. इसलिए उस ने इस मामले में चुप रहना उचित समझा. लेकिन रूपिंदर चुप रहने वाली नहीं थी. जिस मुद्दे को उठा कर उस ने बात शुरू की थी, वह उसे अंजाम तक पहुंचाना चाहती थी.

कुछ देर तक रूपिंदर सुखविंदर का हैरानपरेशान चेहरा ताकती रही. फिर उसी अंदाज में उस का हाथ पकड़ लिया, जिस तरह सुखविंदर ने उस का हाथ पकड़ा था, ‘‘तुम मेरी परेशानियां दूर कर के जिंदगी खुशियों से भरने की बात कह रहे थे, मुझे तुम्हारा प्रस्ताव मंजूर है.’’सुखविंदर ने रूपिंदर कौर के हाथों से अपना हाथ खींच लिया, ‘‘भाभी, वो तो मैं ने ऐसे ही बोल दिया था.’’‘‘ऐसे ही नहीं बोले थे,’’ रूपिंदर ने फिर उस का हाथ पकड़ लिया, ‘‘मैं जानती हूं तुम्हारे दिल में मेरे लिए प्यार है. उसी प्यार के नाते तुम ने मेरे जीवन को खुशियों से भरने की बात कही. जो कहा है उसे पूरा करो.’’

‘‘भाभी, जो तुम चाहती हो, मुझ से नहीं होगा.’’ वह बोला.‘‘तुम्हारा यह सोचना गलत है कि मैं तुम से सैक्स संबंध चाहती हूं.’’ रूपिंदर सुखविंदर की आंखों में आंखें डाल कर बोली, ‘‘पति मुझे यह सब तो देता है, लेकिन मुझे प्यार नहीं करता.’’सुखविंदर उलझने लगा, ‘‘तो मैं क्या करूं?’’‘‘क्या तुम मुझे प्यार भी नहीं दे सकते,’’ रूपिंदर उस की आंखों में देखते हुए मुसकराई, ‘‘शब्दों से मेरे मर्म को स्पर्श करो. आमनेसामने बात करने में शर्म आए तो फोन पर बात कर लिया करो. अपनी भाभी से बातें करने में तुम्हेंकिसी किस्म का ऐतराज नहीं होना चाहिए.’’सुखविंदर से कुछ कहते नहीं बना. रूपिंदर कौर के सामने खड़ा रहना उस ने मुनासिब नहीं समझा. उस से बिना कुछ बोले वह बाहर निकला, बाहर खड़ी बाइक पर सवार हुआ और वहां से चला गया.

दरवाजे पर आ खड़ी रूपिंदर कौर के चेहरे पर कुटिल मुसकान थी. मर्द पर औरत का वार कभी खाली नहीं जाता. प्यार का जाल फेंकना रूपिंदर कौर का काम था, वह उस ने कर दिया. अब आगे का काम सुखविंदर को करना था.पंजाब के गुरदासपुर जिले के काहनूवान थाना क्षेत्र के बलवंडा गांव में रहते थे कुलवंत सिंह. वह सेना में थे. सेना से रिटायर होने के बाद उन्होंने पुणे की एक निजी कंपनी में सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी कर ली थी.उन के परिवार में पत्नी रूपिंदर कौर और 2 बेटे रणदीप उर्फ बौबी (26) और करणदीप (24) थे. रणदीप की शादी हो चुकी थी. उस की पत्नी कनाडा में रहती थी. रणदीप पास के ही एक पैट्रोल पंप पर काम करता था. करणदीप सेना में नौकरी करता था.

45 वर्ष की उम्र हो गई थी रूपिंदर की, 2-2 जवान बेटे थे. लेकिन उस के शरीर की आग इस उम्र में भी भभक रही थी. रूपिंदर स्वभाव की अच्छी नहीं थी. वह काफी स्वार्थी और महत्त्वाकांक्षी औरत थी. उसे सिर्फ अपना सुख प्यारा था, न उसे अपने पति की चिंता होती थी और न ही अपने बेटों की.
कुलवंत जब तक सेना में था तो वहीं रहता था, कभीकभी घर आता था. जब रिटायर हो कर घर आया तो उस का घर में रहना मुश्किल होने लगा. दिन भर रूपिंदर के तरहतरह के ताने, लड़ाईझगड़ा तक उसे झेलना पड़ता.

सैक्स की भूखी रूपिंदर को हर रोज ही बिस्तर पर पति का सुख चाहिए होता था. इस सब से आजिज आ कर ही कुलवंत पुणे चला गया था और वहां सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करने लगा था.
घर पर अकेली ही रहती थी रूपिंदर कौर. बेटा रणदीप रात में ही घर आता था. ऐसे में रूपिंदर का समय काटे नहीं कटता था. पति के अपने से दूर चले जाने के बाद रूपिंदर कौर पति सुख से भी वंचित थी. ऐसे में रूपिंदर ने भी वही करने की ठान ली जो उस जैसी औरतें ऐसे हालात में करती हैं यानी अपने सुख के साथी की तलाश.

रूपिंदर की जानपहचान चक्कशरीफ में रहने वाले सुखविंदर सिंह उर्फ सुक्खा से थी. वह उस के पति का दोस्त था. सुखविंदर उस से मिलने उस के घर आयाजाया करता था.एक दिन रूपिंदर कौर अपने सुख के साथी के बारे में सोच रही थी कि कौन हो कैसा हो तो अचानक ही उस के जेहन में सुखविंदर का चेहरा कौंध गया. बस, उस के बाद रूपिंदर कौर सुखविंदर को नजदीक जाने की योजना बनाने लगी.उस शाम वह कमरे में चहलकदमी करते हुए सुखविंदर को अपने जाल में फांसने की सोच रही थी. यही सोचतेसोचते कब अंधेरा हो गया, उसे पता ही नहीं चला. संयोग से तभी सुखविंदर भी आ गया.

उसे देखते ही जिस आइडिया के लिए रूपिंदर कौर कई दिन से परेशान थी, वह एकदम से उस के दिमाग में आ गया. उस के बाद रूपिंदर कौर ने ऐसा प्रपंच रचा कि सुखविंदर उस में फंस गया.सुखविंदर आपराधिक प्रवृत्ति का था. पठानकोट में उस के खिलाफ लूट के कई मामले दर्ज थे. एक मामले में वह कुछ दिन पहले ही जेल से छूट कर आया था. रूपिंदर कौर क्या चाहती है, क्यों उसे अपने जाल में फांस रही है, यह बात वह बखूबी जान रहा था.शिकारी रूपिंदर को लग रहा था कि सुखविंदर को अपनी बातों के जाल में फंसा कर उसे अपना शिकार बना लेगी. मगर सुखविंदर खुद ही बड़ा शिकारी था.

उसे तो खुद रूपिंदर का शिकार होने में मजा आ रहा था. वह अपनी मरजी से रूपिंदर का शिकार बन रहा था. उस की बातों व हरकतों का मजा ले रहा था. आखिर इस में फायदा तो उसी का था. रूपिंदर को इस बात का आभास तक नहीं था.सुखविंदर रूपिंदर की बातों को सोचसोच कर बारबार मुसकराता. उस की आंखों के सामने रूपिंदर कौर का रूप चलचित्र की भांति घूमने लगता. ऐसे में सुखविंदर भी रूपिंदर के रूप का प्यासा बन बैठा.अब जब भी रूपिंदर के घर जाता तो उसे प्यासी नजरों से निहारता रहता. दिखाने के लिए रूपिंदर की चाहत का मान रखते हुए उस से प्रेम भरी बातें करता. उन प्रेम भरी बातों में पड़ कर रूपिंदर उस से सट कर बैठ जाती.

वह कभी उस के कंधे पर सिर रख कर उस से बातें करती तो कभी उस के सीने पर अपना सिर रख देती और कान से उस के दिल की धड़कनों को सुनती रहती. तेज धड़कनों का एहसास होते ही वह मंदमंद मुसकराने लगती.एक दिन ऐसे ही सुखविंदर के सीने से अपना सिर लगा कर रूपिंदर बैठी थी. उस की चाहतें उसे कमजोर बनाने लगीं. काफी समय से वह अपनी चाहत को पूरा करने का इंतजार कर रही थी.अब जब एक पल का इंतजार भी बरदाश्त नहीं हुआ तो उस ने सुखविंदर के होंठों को चूम लिया. सुखविंदर भी इसी मौके की तलाश में था. उस ने भी रूपिंदर को अपनी बांहों में भर लिया.

उस के बाद उन के बीच शारीरिक रिश्ता कायम हो गया. रूपिंदर ने अपनी चाहत को अंजाम तक पहुंचाया. इस के बाद उन के बीच यह रोज का सिलसिला बन गया.23 मई, 2021 को गांव झंडा लुबाना के डे्रन के पास एक अधजली लाश पड़ी थी. वहीं पास में ही झंडा लुबाना गांव निवासी गुरुद्वारा साहिब कमेटी के प्रधान त्रिलोचन सिंह का खेत था. वह खेत में पानी लगाने के लिए आए, वहां उन्होंने एक युवक की अधजली लाश पड़ी देखी. उन्होंने पुलिस कंट्रोल रूम को इस की सूचना दे दी.

घटनास्थल काहनूवान थाना क्षेत्र में आता था, इसलिए घटना की सूचना काहनूवान थाने को दे दी गई.
सूचना मिलने पर थानाप्रभारी सुरिंदर पाल सिंह अपनी टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. एसएसपी डा. नानक सिंह व अन्य पुलिस अधिकारी भी मौके पर पहुंच गए.लाश पूरी तरह नहीं जली थी. देखने में वह किसी 25 से 28 साल के युवक की लाश लग रही थी. जिस जगह लाश पड़ी थी, उसे देखने पर अनुमान लगाया गया कि हत्यारों ने लाश को वहीं जलाया था. उस जगह पर जलाए जाने के निशान मौजूद थे.
आसपास के लोगों को बुला कर लाश की शिनाख्त कराने की कोशिश की गई, लेकिन शिनाख्त न हो सकी. शिनाख्त न होने पर लाश के कई कोणों से फोटो खिंचवाने और जरूरी काररवाई करने के बाद थानाप्रभारी सुरिंदर पाल ने लाश सिविल अस्पताल में रखवा दी. उस के बाद थाने वापस आ गए.

इस बीच उन्हें पता चला कि बलवंडा गांव का युवक रणदीप सिंह लापता है. इस पर थानाप्रभारी रणदीप सिंह के घर गए. वहां उस की मां रूपिंदर कौर मिली.उन्होंने रूपिंदर कौर को बताया कि डे्रन के पास एक अधजली लाश मिली है. उस की शिनाख्त होनी है, हो सकता है वह उन के बेटे की हो.रूपिंदर कौर ने उन के साथ अस्पताल जा कर लाश को देखा. देखने के बाद रूपिंदर कौर ने लाश अपने बेटे की होने से साफ इनकार कर दिया.फिलहाल लाश का पोस्टमार्टम कराया गया तो पता चला कि मृतक के एक पैर में रौड पड़ी हुई है. थानाप्रभारी सुरिंदर पाल ने पता किया तो पता चला कि रणदीप के पैर में भी रौड पड़ी हुई थी. इस का मतलब यह था कि लाश रणदीप की ही है.

रणदीप की लाश को उस की मां रूपिंदर कौर ने पहचानने से क्यों इनकार कर दिया. इस का जवाब रूपिंदर ही दे सकती थी. वैसे भी इस स्थिति में थानाप्रभारी सुरिंदर पाल का शक रूपिंदर कौर पर बढ़ गया कि हो न हो इस घटना में रूपिंदर कौर का ही हाथ हो सकता है.इस के बाद रूपिंदर कौर को हिरासत में ले लिया गया. पहले तो वह पुलिस को गुमराह करती रही, पर जब सख्ती की गई तो उस ने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया.घटना में उस का प्रेमी सुखविंदर उर्फ सुक्खा और सुक्खा का दोस्त गुरजीत सिंह उर्फ महिकी भी शामिल था. तत्काल उन दोनों को भी गिरफ्तार कर लिया गया.

जांच में पता चला कि रूपिंदर कौर और सुखविंदर सिंह के अवैध संबंधों के बारे में रणदीप को पता लग गया था. इसे ले कर रोज घर में कलह होने लगी. इस के बाद रूपिंदर को अपना ही बेटा दुश्मन लगने लगा. वह बेटे रणदीप से नफरत करने लगी.रणदीप के बैंक खाते में 5 लाख रुपए थे. रणदीप अपनी पत्नी के पास कनाडा जाना चाहता था, उसी के लिए उस ने पैसे जमा कर रखे थे. शातिर रूपिंदर ने उसे बहलाफुसला कर वे रुपए अपने खाते में ट्रांसफर करा लिए.रणदीप का विरोध बढ़ता गया. इतना ही नहीं, रूपिंदर का सुखविंदर से मिलना मुश्किल होने लगा तो उस ने रणदीप को रास्ते से हटाने का फैसला कर लिया.

रूपिंदर ने सुखविंदर से बेटे रणदीप की हत्या करने की बात कही. सुखविंदर तो वैसे ही अपराधों में लिप्त रहने वाला इंसान था, इसलिए वह तुरंत तैयार हो गया. रणदीप की हत्या करने के लिए उस ने अपने ही गांव चक्क शरीफ निवासी गुरजीत सिंह उर्फ महिकी को भी शामिल कर लिया. इस के बाद तीनों ने रणदीप की हत्या की योजना बनाई.22 मई, 2021 की रात रूपिंदर कौर ने रणदीप के खाने में नींद की गोलियां मिला दीं. खाना खाने के बाद रणदीप सो गया. गोलियों के कारण नशे की हालत में वह बेसुध था. सुखविंदर तय समय के हिसाब से दोस्त गुरजीत के साथ रूपिंदर के घर पहुंच गया.

तीनों ने मिल कर चाकू और हथौड़ी से वार कर के रणदीप को मौत के घाट उतार दिया. फिर आधी रात को रणदीप की लाश गांव झंडा लुबाना के डे्रन के पास ले जा कर डाल दी और पैट्रोल डाल कर आग लगा दी. फिर वहां से वापस अपने घरों को लौट गए. लेकिन लाश पूरी तरह जल नहीं पाई.तीनों का गुनाह छिप न सका और पकड़े गए. पुलिस ने उन के खिलाफ हत्या और सबूत मिटाने का मुकदमा दर्ज कर दिया. तीनों को न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया गया.

जीवनसंगिनी

मेरे पति मेरी पड़ोसिन में रुचि ले रहे हैं ,मैं सोचती हूं कि कहीं उन का पड़ोसिन से चक्कर तो नहीं चल रहा, अपने शक को कैसे दूर करूं?

सवाल
मेरी उम्र 32 वर्ष है, कई दिनों से मैं महसूस कर रही हूं कि मेरे पति मेरी पड़ोसिन में रुचि ले रहे हैं. यहां तक कि उन्हें अपनी 2 वर्ष की बेटी से भी लगाव नहीं है. मैं परेशान हूं, सोचती हूं कि कहीं उन का पड़ोसिन से चक्कर तो नहीं चल रहा. मैं उन को कहांकहां नोटिस करूं, क्योंकि वे दोनों एक ही औफिस में काम जो करते हैं. आप ही बताएं कि मैं अपने शक को कैसे दूर करूं?

गलतफहमियां जब रिश्तों में जगह बनाने लगें

जवाब
मन तो दुखता ही है, जिसे आप सब से ज्यादा चाहें और जिस की खातिर आप अपना सबकुछ छोड़ दें वह धोखा देने लगे. आप हिम्मत रखें और कुछ दिन पति की गतिविधियों पर अच्छे से नजर रखें और जब क्लीयर हो जाए कि उन का पड़ोसिन के साथ सच में अटैचमैंट बढ़ रहा है तो प्यार से समझाएं कि आप की 2 साल की बेटी है जिस के प्रति आप की ढेरों जिम्मेदारियां हैं. आप इस तरह अपनी जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ने लगेंगे तो कैसे चलेगा. आप की इन बातों का असर अगर उन पर हो जाए तो अच्छा है, वरना सख्ती का रुख अपना कर बता दें कि आप यह सब सहन करने वाली नहीं हैं.

ये भी पढ़ें…

 

राधा और अनुज की शादी को 2 वर्ष हो चुके हैं. राधा को अपनी नौकरी की वजह से अकसर बाहर जाना पड़ता है. वीकैंड पर जब वह घर पर होती है, तो कुछ वक्त अकेले, पढ़ते हुए या आराम करते हुए गुजारना चाहती है या फिर घर के छोटेमोटे काम करते हुए समय बीत जाता है.

अनुज जो हफ्ते में 5 दिन उसे मिस करता है, चाहता है कि वह उन 2 दिनों में अधिकतम समय उस के साथ बिताए, दोनों साथ आउटिंग पर जाएं, मगर राधा जो ट्रैवलिंग करतेकरते थक गई होती है, बाहर जाने के नाम से ही भड़क उठती है. यहां तक कि फिल्म देखने या रेस्तरां में खाना खाने जाना भी उसे नागवार गुजरता है.

अनुज को राधा का यह व्यवहार धीरेधीरे चुभने लगा. उसे लगने लगा कि राधा उसे अवौइड कर रही है. वह शायद उस का साथ पसंद नहीं करती है जबकि राधा महसूस करने लगी थी कि अनुज को न तो उस की परवाह है और न ही उस की इच्छाओं की. वह बस अपनी नीड्स को उस पर थोपना चाहता है. इस तरह अपनीअपनी तरह से साथी के बारे में अनुमान लगाने से दोनों के बीच गलतफहमी की दीवार खड़ी होती गई.

अनेक विवाह छोटीछोटी गलतफहमियों को न सुलझाए जाने के कारण टूट जाते हैं. छोटी सी गलतफहमी को बड़ा रूप लेते देर नहीं लगती, इसलिए उसे नजरअंदाज न करें. गलतफहमी जहाज में हुए एक छोटे से छेद की तरह होती है. अगर उसे भरा न जाए तो रिश्ते के डूबने में देर नहीं लगती.

भावनाओं को समझ न पाना

गलतफहमी किसी कांटे की तरह होती है और जब वह आप के रिश्ते में चुभन पैदा करने लगती है तो कभी फूल लगने वाला रिश्ता आप को खरोंचें देने लगता है. जो युगल कभी एकदूसरे पर जान छिड़कता था, एकदूसरे की बांहों में जिसे सुकून मिलता था और जो साथी की खुशी के लिए कुछ भी करने को तैयार रहता था, उसे जब गलतफहमी का नाग डसता है तो रिश्ते की मधुरता और प्यार को नफरत में बदलते देर नहीं लगती. फिर राहें अलगअलग चुनने के सिवा उन के पास कोई विकल्प नहीं बचता.

आमतौर पर गलतफहमी का अर्थ होता है ऐसी स्थिति जब कोई व्यक्ति दूसरे की बात या भावनाओं को समझने में असमर्थ होता है और जब गलतफहमियां बढ़ने लगती हैं, तो वे झगड़े का आकार ले लेती हैं, जिस का अंत कभीकभी बहुत भयावह होता है.

रिलेशनशिप ऐक्सपर्ट अंजना गौड़ के अनुसार, ‘‘साथी को मेरी परवाह नहीं है या वह सिर्फ अपने बारे में सोचता है, इस तरह की गलतफहमी होना युगल के बीच एक आम बात है. अपने पार्टनर की प्राथमिकताओं और सोच को गलत समझना बहुत आसान है, विशेषकर जब बहुत जल्दी वे नाराज या उदास हो जाते हों और कम्यूनिकेट करने के बारे में केवल सोचते ही रह जाते हों.

‘‘असली दिक्कत यह है कि अपनी तरह से साथी की बात का मतलब निकालना या अपनी बात कहने में ईगो का आड़े आना, धीरेधीरे फूलताफलता रहता है और फिर इतना बड़ा हो जाता है कि गलतफहमी झगड़े का रूप ले लेती है.’’

वजहें क्या हैं

स्वार्थी होना: पतिपत्नी के रिश्ते को मजबूत बनाने और एकदूसरे पर विश्वास करने के लिए जरूरी होता है कि वे एकदूसरे से कुछ न छिपाएं और हर तरह से एकदूसरे की मदद करें. जब आप के साथी को आप की जरूरत हो तो आप वहां मौजूद हों. गलतफहमी तब बीच में आ खड़ी होती है जब आप सैल्फ सैंटर्ड होते हैं. केवल अपने बारे में सोचते हैं. जाहिर है, तब आप का साथी कैसे आप पर विश्वास करेगा कि जरूरत के समय आप उस का साथ देंगे या उस की भावनाओं का मान रखेंगे.

मेरी परवाह नहीं: पति या पत्नी किसी को भी ऐसा महसूस हो सकता है कि उस के साथी को न तो उस की परवाह है और न ही वह उसे प्यार करता है. वास्तविकता तो यह है कि विवाह लविंग और केयरिंग के आधार पर टिका होता है. जब साथी के अंदर इग्नोर किए जाने या गैरजरूरी होने की फीलिंग आने लगती है तो गलतफहमियों की ऊंचीऊंची दीवारें खड़ी होने लगती हैं.

जिम्मेदारियों को निभाने में त्रुटि होना: जब साथी अपनी जिम्मेदारियों को निभाने या उठाने से कतराता है, तो गलतफहमी पैदा होने लगती है. ऐसे में तब मन में सवाल उठने स्वाभाविक होते हैं कि क्या वह मुझे प्यार नहीं करता? क्या उसे मेरा खयाल नहीं है? क्या वह मजबूरन मेरे साथ रह रहा है? गलतफहमी बीच में न आए इस के लिए युगल को अपनीअपनी जिम्मेदारियां खुशीखुशी उठानी चाहिए.

वैवाहिक सलाहकार मानते हैं कि रिश्ता जिंदगी भर कायम रहे, इस के लिए 3 मुख्य जिम्मेदारियां अवश्य निभाएं-अपने साथी से प्यार करना, अपने पार्टनर पर गर्व करना और अपने रिश्ते को बचाना.

काम और कमिटमैंट: आजकल जब औरतों का कार्यक्षेत्र घर तक न रह कर विस्तृत हो गया है और वे हाउसवाइफ की परिधि से निकल आई हैं, तो ऐसे में पति के लिए आवश्यक है कि वह उस के काम और कमिटमैंट को समझे और कद्र करे. बदली हुई परिस्थितियों में पत्नी को पूरा सहयोग दे. रिश्ते में आए इस बदलाव को हैंडल करना पति के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है, क्योंकि यह बात आज के समय में गलतफहमी की सब से बड़ी वजह बनती जा रही है. इस के लिए दोनों को ही एकदूसरे के काम की कमिटमैंट के बारे में डिस्कस कर उस के अनुसार खुद को ढालना होगा.

धोखा: यह सब से आम वजह है. यह तब पैदा होती है जब एक साथी यह मानने लगता है कि उस के साथी का किसी और से संबंध है. ऐसा वह बिना किसी ठोस आधार के भी मान लेता है. हो सकता है कि यह सच भी हो, लेकिन अगर इसे ठीक से संभाला न जाए तो निश्चित तौर पर यह विवाह के टूटने का कारण बन सकता है. अत: आप को जब भी महसूस हो कि आप का साथी किसी उलझन में है और आप को शक भरी नजरों से देख रहा है तो तुरंत सतर्क हो जाएं.

दूसरों का हस्तक्षेप: जब दूसरे लोग चाहे वे आप के ही परिवार के सदस्य हों या मित्र अथवा रिश्तेदार आप की जिंदगी में हस्तक्षेप करने लगते हैं तो गलतफहमियां खड़ी हो जाती हैं. ऐसे लोगों को युगल के बीत झगड़ा करा कर संतोष मिलता है और उन का मतलब पूरा होता है. यह तो सर्वविदित है कि आपसी फूट का फायदा तीसरा व्यक्ति उठाता है. पतिपत्नी का रिश्ता चाहे कितना ही मधुर क्यों न हो, उस में कितना ही प्यार क्यों न हो, पर असहमति या झगड़े तो फिर भी होते हैं और यह अस्वाभाविक भी नहीं है. जब ऐसा हो तो किसी तीसरे को बीच में डालने के बजाय स्वयं उन मुद्दों को सुलझाएं जो आप को परेशान कर रहे हों.

सैक्स को प्राथमिकता दें: सैक्स संबंध शादीशुदा जिंदगी में गलतफहमी की सब से अहम वजह है. पतिपत्नी दोनों ही चाहते हैं कि सैक्स संबंधों को ऐंजौय करें. जब आप दूरियां बनाने लगते हैं, तो शक और गलतफहमी दोनों ही रिश्ते को खोखला करने लगती हैं. आप का साथी आप से खुश नहीं है या आप से दूर रहना पसंद करता है, तो यह रिश्ते में आई सब से बड़ी गलतफहमी बन सकती है.

तिलापिया मछली का करें पालन

लेखक- विकास कुमार उज्जैनियां, डा. बीके शर्मा, डा. सुबोध कुमार शर्मा, डा. नेमी चंद

उज्जैनियां तिलापिया मछली दुनिया में दूसरी सब से ज्यादा पाली जाने वाली मछली है, परंतु भारत में इस का व्यावसायिक पालन सीमित है. तिलापिया मछली को पालने के लिए एशियाई देशों का मौसम और पर्यावरण स्थितियां अनुकूल होती हैं. किन्हीं कारणों से 1959 में भारतीय मात्स्यिकी अनुसंधान समिति द्वारा इस मछली के पालन पर रोक लगा दी गई थी. दरअसल, तिलापिया मछली शीघ्र परिपक्व होने वाली व साल में कई बार प्रजनन करने की क्षमता के कारण किसी भी अनुकूल जलाशय में तेजी से पनपती है, जिस से यह अन्य स्थानीय प्रजातियों से प्रतिस्पर्धा कर उन्हें विस्थापित कर सकती है.

लेकिन वर्तमान में कुछ राज्यों की स्थितियों के कारण इस के नियंत्रित वातावरण में पालन से रोक हटा दी गई है. इस की तेजी से वृद्धि करने की विशेषता के कारण मछलीपालकों और ग्राहकों में इस की काफी मांग है. यह प्रकृति में सर्वआहारी है. स्थानीय किसानों और यहां तक कि इंटरनैशनल मार्केट में इस की रोगरोधक गुणवत्ता के कारण इस की मांग बढ़ती जा रही है. यह प्रतिकूल परिस्थितियों में जिंदा रह सकती है और इस में प्राकृतिक भोजन खाने की अतुलनीय क्षमता होती है. इस की अच्छी तरह से देखरेख की जाए, तो बेचने के समय इस का भार 500-600 ग्राम होता है. मुख्यत: 20,000-25,000 मछलियां प्रति एकड़ क्षेत्र में पाली जा सकती हैं. पिछले 20 सालों के दौरान विकसित मछली को पालने की तकनीकों ने तिलापिया के पालने में एक क्रांति ला दी है, जिस से यह तकनीक दुनिया में फिनफिश जलीय कृषि में सर्वाधिक उत्पादन देने वाली मछली बन गई है.

ये भी पढ़ें- धनिया में लगने वाले कीट व रोग और उन का प्रबंधन

दुनियाभर में तकरीबन 85 देशों में इस का पालन किया जा रहा है और इन देशों में उत्पादित तकरीबन 98 फीसदी तिलापिया उस के मूल निवास के बाहर पाली जा रही है. साल 2020 में तिलापिया मछली जलीय कृषि का वैश्विक उत्पादन 6.0 मीटर टन था. जलीय कृषि के लिए उपयुक्त प्रजातियां तिलापिया मछली झील या तालाब के तल में निर्मित घोंसले में अंडों का संरक्षण कर उन्हें सेती है. तिलापिया की तकरीबन 70 प्रजातियां हैं, जिस में से 9 प्रजातियां दुनियाभर में जलीय कृषि में पाली जाती हैं. तिलापिया मछली एक उष्णकटिबंधीय मत्स्य प्रजाति है, जो उथले पानी में रहना पसंद करती है. यह एक सर्वभक्षी मछली है, जो पादप प्लवक, पेरीफाईटौन, जलीय पौधों, छोटे व सूक्ष्म जीवों को खाती है. तालाबों में ये 5-6 महीने के समय में लैंगिक परिपक्वता तक पहुंच जाती हैं. जब जल का तापमान 24 डिगरी सैल्सियस पहुंच जाता है, तो ये अंडे देना शुरू कर देती हैं. आश्चर्यजनक रूप से मादा मछली अंडों को अपने मुंह में सेती है और उस के बाद जब तक की जर्दी की थैली सूख नहीं जाती, तब तक बच्चों को सेती है.

मादा की प्रजनन क्षमता उस के शरीर भार के अनुपात में होती है. एक 100 ग्राम की मादा हर ब्यांत में तकरीबन 100 अंडे देती है, जबकि 100-600 ग्राम भार की मादाएं 1000 से 1500 तक अंडे उत्पादित करती हैं. तिलापिया 10 सालों से ज्यादा जिंदा रह सकती है और 5 किलोग्राम से अधिक भार तक पहुंच सकती है. तिलापिया की आजादी में मादाओं की तुलना में नर तेजी से और आकार में ज्यादा बढ़ते हैं. मादा मछली की पहचान उस के जननांगों (मूत्र जननांग) पैपिला की जांच कर की जाती है. जल आधारित पालन प्रणालियां पिंजरा (केज) पालन: तिलापिया मछली का पालन पिंजरों में ज्यादा प्रजनन की समस्या से बचाता है, क्योंकि अंडे पिंजरे की जाली से गिर जाते हैं. दूसरा खास फायदा यह है कि पालकों के लिए जहां पिंजरे रखे जाने होते हैं, वह जल निकाय खुद का होना होता नहीं है. पिंजरों को जाल या बांस से या फिर स्थानीय स्तर पर उपलब्ध अन्य सामग्री से बनाया जा सकता है.

मछली अपना अधिकांश पोषण चारों ओर के जल से लेती हैं, तथापि उन्हें परिपूरक आहार भी खिलाया जाता है. खासतौर पर पालन की मत्स्य बीज संग्रहण दर अधिकतम 10 किलोग्राम प्रति घनमीटर रखी जाती है. आजकल सघन पिंजरा पालन तकनीक में तकरीबन 25 किलोग्राम प्रति घनमीटर की संग्रहण दर भी लोकप्रिय हो रही है. औसत उत्पादन स्तर विभिन्न प्रणालियों और देशों में परिवर्तनशील होता है. सघन पिंजरा पालन में 100 से 305 किलोग्राम प्रति घनमीटर तिलापिया मछली का उत्पादन स्तर दर्ज किया गया है. भूमि आधारित प्रणालियां तालाब : तालाबों का फायदा यह होता है कि निशेचन के जरीए बहुत ही सस्ते में मछली को बड़ा किया जा सकता है. तिलापिया मछली को पालने के लिए विभिन्न प्रकार के तालाबों का उपयोग किया जाता है.

ये भी पढ़ें- सब्जियों की बर्बादी को रोकने में मददगार ‘सोलर कोल्ड स्टोर’

खास बात यह है कि इन्हें बड़े पैमाने पर निम्न लागत वाले तालाबों में पाला जाता है. इस प्रकार से कम उत्पादन के साथसाथ अनियंत्रित प्रजनन और अनियमित हार्वेस्टिंग की समस्याओं का काफी सामना करना पड़ता है. इन का उत्पादन 500-2000 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर हर साल होता है और मछली असामान्य आकार की होती है. यदि मोनोसैक्स (एकल लिंग) मछली का स्टौक किया जाता है और नियमित खाद व परिपूरक आहार दिया जाता है, तो उत्पादन 8000 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर हर साल तक और एकसमान आकार की मछली प्राप्त की जा सकती है. कई प्रदेशों में मीठे जल के तालाबों में, कृषि व पशुपालन के साथ एकीकृत रूप से तिलापिया का दूसरी देशी मछलियों के साथ पालन भी किया जा रहा है. टैंक में तिलापिया मछली : टैंक में तिलापिया अत्यधिक प्रजनन की समस्याओं से बचाता है, क्योंकि नर के पास अपना अलग क्षेत्र बसाने के लिए जगह नहीं होती है. इस प्रकार के टैंक में गुरुत्वीय प्रवाह या पंप के माध्यम से निरंतर जल की आपूर्ति की जाती है. प्राय: टैंक में अधिकतम स्टौकिंग दर (जहां जल प्रत्येक 1-2 घंटे में बदला जाता है), तकरीबन 25-50 किलोग्राम/मीटर के आसपास रखी जाती है.

जीवनसंगिनी : भाग 2

लेखिका- निधि अमित पांडे

पवित्रा ने मुसकराते हुए कहा, “अब, बस भी करिए. अपनी तारीफों से ही मेरा पेट भरने का इरादा है क्या?”पराग ने कहा, “तुम बैठो, आज मैं अपने हाथों से तुम्हारी थाली परोसता हूं.” पवित्रा ने चुटकी लेते हुए कहा, “फिर तो खीर की मिठास और बढ़ जाएगी.” मां और बाबूजी बेटे बहू की इस हंसीठिठोली को दूर से  देख कर मन ही मन खुश हो रहे थे.

अगले दिन पराग औफिस से लौटा तो उस ने देखा, घर में मां, बाबूजी और पवित्रा के बीच में बहस छिड़ी थी.  पराग की इच्छा थी कि पवित्रा और अवनी भी उस के साथ विदेश जाएं और पराग कि इच्छा देख कर मांबाबूजी भी इसी बात की ज़िद किए बैठे थे. पर पवित्रा ने जाने से  साफ इनकार कर दिया था. पराग ने प्रस्ताव रखा था कि मांबाबूजी के लिए फुलटाइम केयरटेकर रख देंगे. मांबाबूजी को भी इस बात से कोई एराज न था. पर पवित्रा ने इस बात का पूरा

विरोध करते हुए पराग से कहा था कि इस उम्र में मांबाबूजी की जिम्मेदारी मैं किसी और के हाथों में नहीं सौप सकती. बाबूजी की तबीयत अकसर ऊपरनीचे होती रहती है. अवनी की पढ़ाई भी बीच में छोड़ कर जाना सही नहीं है और आप के वापस लौटने का कोई समय भी निर्धारित नहीं है. इसलिए आप अपने जाने की तैयारी कीजिए. मैं और अवनी यहीं रहेंगे मांबाबूजी के साथ. और अब इस बारे में कोई चर्चा नही होगी. ऐसा कह कर पवित्रा ने सब को चुप करवा दिया था.

मांबाबूजी मन ही मन सोच कर खुश हो रहे थे कि आज के जमाने में  पवित्रा के जैसी बहू मिलना उन के किसी  अच्छे काम का ही फल होगा.पराग के जाने का समय  नजदीक आ रहा था. पवित्रा उस के जाने की तैयारी में ही जुटी थी. पराग के साथ रखने के लिए उस ने बहुत सा नाशता घर पर ही बना कर तैयार कर दिया था और बारबार पराग से कह रही थी, ‘मुझे तो आप के खानेपीने की चिंता लगी रहेगी.’

देखते ही देखते पराग के जाने का दिन आ गया था.  पराग ने मांबाबूजी का आशीर्वाद लिया, अवनी को गले से लगाया और पवित्रा से अपना और सब का खयाल रखने के लिए कहा  और उस की चिंता न करने की हिदायत भी दी.पराग के जाने के बाद घर का माहौल एकदम शांत हो चुका था. अवनी भी मुंह उतार के बैठी थी. मांबाबूजी का मन भी बहुत  उदास था. बुढ़ापे में बेटे को खुद से दूर करना किसी भी मातापिता के लिए दिल पर पत्थर रखने जैसा होता है.

दुख तो पवित्रा को भी था. शादी के इतने सालो में यह पहला अवसर था जब वह पराग से इतने समय के लिए दूर हुई थी. मांबाबूजी का सोच कर उस ने पराग के साथ जाने से इनकार तो कर दिया था पर अपनी पीड़ा वह किसी से कह भी नहीं सकती थी.  घर का माहौल ठीक करने के लिए पवित्रा ने  ऐलान कर दिया था कि आज रात को डिनर के बाद हम सब आइसक्रीम खाने बाहर जाएंगे. कोई बहाना नहीं बनाएगा.

रात को बाहर से आने के बाद सब का मूड थोड़ा ठीक हो गया था. अगले  दिन पराग का फोन भी आ गया था कि वह खैरियत से पहुंच गया है. मांबाबूजी को तसल्ली हो गई थी. पराग के जाने के लगभग 2  महीने बाद अचानक एक दिन पवित्रा को एक फोन आया और वह किसी को बिना कुछ बताए भागती हुई घर से निकल गई थी. पवित्रा को जा कर काफी समय बीत चुका था. बाबूजी दरवाजे पर ही कुरसी डाल कर बैठ गए थे और उस की राह देख रहे थे. लगभग 3 घंटे बाद अचानक एक टैक्सी घर के सामने आ कर रुकी. पवित्रा घर आ चुकी थी. बाबूजी ने उस के अंदर आने की भी प्रतीक्षा नहीं की थी और उस से पूछा, “कहां चली गई थी

बेटा? चिंता के कारण तेरी सास का बुरा हाल है. सब ठीक तो है न?”“सब ठीक है बाबूजी,” पवित्रा बहुत ही संक्षिप्त जवाब दे कर सीधे अपने कमरे में चली गई. रात के खाने के बाद उस ने मांजी से कहा, “कल मुझे किसी काम से बाहर जाना पड़ेगा. थोड़ा समय लग सकता है. मैं खाना बना कर जाऊंगी. आप लोग खा लेना. अवनी को भी मैं ने समझा दिया है,” इतना बोल कर वह अपने कमरे में जाने लगी, तो मांजी ने उस का हाथ पकड़ कर उसे रोक लिया और अपने पास बैठा कर उस से बोलीं, “क्या बात है बेटा? ऐसी कौन सी परेशानी है जिस ने तेरे चेहरे का रंग उड़ा दिया है? सुबह भी तूने कुछ नहीं बताया, बोलनेबताने से मन हलका हो जाता है, बेटा और समस्या का समाधान भी निकल आता है.”

पवित्रा ने कहा, “ऐसा जरूरी नहीं है मांजी, कुछ समस्याओं का न तो कोई अंत होता है और न ही उन का कोई हल होता है. वे जीवनपर्यंत हमारे साथ ही रहती हैं. रात बहुत हो गई है, आप सो जाओ.” अपने कमरे में आ कर पवित्रा लेट गई थी पर  आज की रात काटना उस के लिए कितना  भारी था, यह किसी को नहीं पता था. उस ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि जीवन में कभी  इस तरह की स्थति का सामना भी करना पडेगा.

अगले दिन सुबह जल्दी उठ कर उस ने सब के लिए नाश्ता और खाना बना कर तैयार कर दिया था. घर से निकलने के पहले वह मांबाबूजी के पास गई. उन के पैर छू कर आशीर्वाद लिया और बोली, “मेरे पीछे अगर पराग का फोन आए तो उन से कुछ मत कहिएगा.” पवित्रा के जाने के बाद मांबाबूजी सोच रहे थे, इतने सालों में पवित्रा को कभी इतना परेशान नहीं देखा, आखिर ऐसी कौन सी परेशानी है जो पवित्रा किसी को नहीं बताना चाहती थी.

रात को पवित्रा घर लौटी तो वह अकेली नहीं थी. उस के साथ ग्यारहबारह साल का एक लड़का भी था.  मां जी  ने उस को देखते ही पवित्रा से सवाल किया, “यह किस का बच्चा है? बहुत ही प्यारा बच्चा है. इस को देखते ही  ऐसे लगा, मानो पराग का  बचपन लौट आया हो.”

मांजी के इन शब्दों ने पवित्रा के कानों में जैसे  जहर घोल दिया था. उस ने मांजी से कहा, “यह मंयक है. मेरी एक बहुत ही खास सहेली का बेटा जो अब इस दुनिया में नहीं है और मरते समय इस की जिम्मेदारी वह मुझे सौंप गई है. मंयक अब हमारे साथ ही रहेगा.” मांजी ने पूछा, “और इस के पिता?”

पवित्रा ने कहा, “इस के पिता कोई गैरजिम्मेदार इंसान ही होंगे, जिन्होंने इस से मुंह मोड़ लिया.” मांजी ने पवित्रा से कहा, “पर बेटा, इतना बड़ा फैसला लेने से पहले एक बार पराग की राय ले लेती, तो अच्छा होता. अगर उसे कोई एतराज हुआ तो?”

पवित्रा ने कहा, “क्यों मांजी, क्या मेरा इस घर पर कोई अधिकार नहीं है? मैं अपनी मरजी से कोई निर्णय नहीं ले सकती? पराग से अभी इस बारे में बात करना मैं ने जरूरी न समझा.  उन के वापस आने के बाद मैं उन से बात करूंगी, पवित्रा ने बात जारी राखी, “अगर आप को और बाबूजी को मंयक के यहां रहने से कोई एतराज हो तो कह दीजिए.”

मांजी ने पवित्रा से कहा, “कैसी बात कर रही है बेटा, हमें पता है कि तू कभी कोई गलत फैसला नहीं  लेगी.” पवित्रा ने मंयक का दाखिला अवनी के स्कूल में ही करवा दिया था. मंयक के आने से घर का वातावरण बदल चुका था.मां और बाबूजी का समय दोनों बच्चों के साथ बहुत अच्छा गुजर रहा था. बाबूजी की तबीयत में भी काफी सुधार आ गया था. लेकिन  इस सब के बीच में पवित्रा की खामोशी दिनोंदिन बढ़ती ही जा रही थी. अब उसे सिर्फ पराग के वापस आने का इंतजार था.

दूर से सलाम

लेखिका- शालिनी गुप्ता 

जबमैं शौपिंग कर के बाहर निकली तो गरमी से बेहाल थी. इसलिए सामने के शौपिंग मौल की कौफी शौप में घुस गई. बच्चे आज देर से लौटने वाले थे, क्योंकि पिकनिक पर गए थे. इसीलिए मैं ने सोचा कि क्यों न कोल्ड कौफी के साथ वैज सैंडविच का मजा उठाया जाए.

वैसे मेरा सारा दिन बच्चों के साथ ही गुजर जाता. पति शशांक भी अपने नए बिजनैस में व्यस्त रहते. ऐसे में कई बार मन करता है कि अपनी व्यस्त दिनचर्या में से थोड़ा वक्त अपने लिए भी निकालूं, पर चाह कर भी ऐसा नहीं कर पाती. पर आज मौका मिला तो लगा कि इस टाइम का भरपूर फायदा उठाऊं.

अभी मैं और्डर दे कर सुस्ता ही रही थी कि मेरा फोन बज उठा. फोन पर शशांक थे.

ये भी पढ़ें- सोचा न था : भाग 2

‘‘कहां हो?’’ वे शायद जल्दी में थे.

‘‘बस थोड़ी देर में घर पहुंच जाऊंगी,’’ मैं अटकते हुए बोली.

‘‘अच्छा, ऐसा करना कि करीब 4 बजे रामदीन आएगा, उसे वह फाइल दे देना, जिसे मैं गलती से टेबल पर भूल आया हूं,’’ और शशांक ने फोन काट दिया.

शशांक की यह बेरुखी मुझे अखरी तो सही पर फिर मैं ने तुरंत ही खुद को संभाल लिया. मैं मानती हूं कि काम भी जरूरी है पर इतनी भी क्या व्यस्तता कि कभी अपनी पत्नी से प्यार के दो बोल भी न बोल पाओ?

फिर मुझे वह समय याद आने लगा जब शशांक एक दिलफेंक आशिक की तरह मेरे आगेपीछे घूमा करते थे और अब काम की आपाधापी ने उन्हें लगभग खुश्क सा बना दिया है. पर दूसरे ही पल तब मेरी यह नीरसता झट से दूर हो गई जब मेरे सामने कौफी और सैंडविच रखा गया.

अभी मैं ने कौफी का पहला घूंट भरा ही था कि मेरे कानों में एक जानीपहचानी सी हंसी सुनाई दी. जब मैं ने पलट कर देखा तो हैरान रह गई. एक अधेड़ उम्र के पुरुष के साथ जो महिला बैठी थी, वह मेरे कालेज में मेरे साथ पढ़ती थी. उस महिला का नाम मानवी है.

जब मानवी को देखा तो मेरा मन एक अजीब से उल्लास से भर उठा. कालेज का बीता समय अचानक मेरी आंखों के आगे घूम गया…

ये भी पढ़ें- मजाक: अच्छी पड़ोसन का दर्द

सच, वह भी क्या समय था? बेखौफ, बिना किसी टैंशन के मैं और मेरी सहेलियां कालेज में घूमा करती थीं, पर मुझ में और मानवी में एक बुनियादी फर्क था.

जहां मैं पढ़ाई के साथसाथ मौजमस्ती को भी तवज्जो देती थी, वहीं मानवी सिर्फ मौजमस्ती और घूमनेफिरने का ही शौक रखती थी.

कालेज से बंक कर के वह सैरसपाटे पर निकल जाती थी, जिसे मैं ठीक नहीं मानती थी. अपनी बेबाकी के लिए मशहूर मानवी लड़कों पर जादू चलाना खूब जानती थी, शायद इसीलिए मैं उस से एक दूरी बना कर चलती थी.

मैं जब भी उस के घर जाती वह मुझे अपने चेहरे पर फेसपैक लगाए ही मिलती.

‘‘परीक्षा नजदीक है और तुझे फेसपैक लगाने की पड़ी है,’’ मैं उस से चुहल करती.

‘‘अरे मैडम, यही तो अंतर है तुम्हारी और मेरी सोच में,’’ फिर वह जोर से हंस देती, ‘‘तू तो आती है कालेज में पढ़ने के लिए पर अपनु तो आता है लड़कों को पटाने के लिए.

अरे भई, अपना तो सीधा फंडा है कि अगर माया चाहिए तो अपनी काया का ध्यान तो रखना ही पड़ेगा.’’

उस की ये बातें जब मेरी समझ से बाहर हो जातीं तब मैं नोट्स बनाने के लिए लाईब्रेरी का रुख करती और ये मैडम कैंटीन में पहुंच जातीं, कोई नया मुरगा हलाल करने के लिए.

समय अपनी गति से आगे बढ़ता रहा. इस बीच मानवी के कई प्रेमप्रसंग परवान चढ़े और कई बीच में ही दम तोड़ गए. पर बहती नदी सी मानवी इस सब से न कभी रुकी और न ही कोई उसे रोक पाया. आखिर अमीर परिवार की इकलौती बेटी की उड़ान भी तो ऊंची थी. उस का अमीर लड़कों को पटाना, उन से अपना उल्लू सीधा करना लगातार जारी रहा.

कई बार तो ऐसा भी होता था कि मानवी की बदौलत उस की कुछ मनचली सहेलियों को भी मुफ्त में पिक्चर देखने को मिल जाती थी या उस के आशिक की कार में घर तक लिफ्ट मिल जाती थी. तब सभी उस की प्रशंसा करते नहीं थकती थीं. अपनी प्रशंसा सुन मैडम मानवी का हौसला और बुलंद हो जाता.

इस बीच हमारी पढ़ाई पूरी हो गई और हमारा साथ छूट गया. पर मानवी के प्रेम के किस्से जबतब मुझे सुनने को मिलते रहे.

जब मानवी की शादी की खबर कानों में पड़ी तो लगा कि शायद अब उस की जिंदगी में एक स्थिरता आएगी, जिस का अभाव उस की जिंदगी में शुरू से ही रहा है.

बीतते समय के साथ मैं उसे पूरी तरह भूल गई, पर आज अचानक उसे देख कर लगा कि अब उन सहेलियों के संपर्कसूत्र मिल जाएंगे, जिन से मिलने की कब से तमन्ना थी.

मैं हमेशा यही सोचती थी कि हमारी कुछ सहेलियों में से कुछ तो जरूर ऐसी होंगी जिन का मायका और ससुराल यहीं दिल्ली शहर में होगी. अब मानवी मिली है तो शायद उन सहेलियों को ढूंढ़ने में आसानी होगी, जिन्हें मैं अकेली शायद ही ढूंढ़ पाती.

तभी मेरी नजर उस पुरुष पर पड़ी जो अब उठ चुका था और बाहर चलने की तैयारी में था. उस आदमी के जाते ही मानवी भी उठ खड़ी हुई. इस से पहले कि वह मेरी आवाज सुन कर मेरे पास आती, वह खुद ही मेरे पास आ गई.

‘‘अरे सुमिता, तू यहां कैसे?’’ वह मेरी तरफ आते हुए बोली.

‘‘बस, शौपिंग करने आई थी,’’ मैं पास पड़ी कुरसी उस की तरफ खिसकाते हुए बोली.

‘‘तू इतनी मोटी कैसे हो गई,’’ वह हंसते हुए मुझ से पूछ बैठी.

‘‘अब 2 बच्चों के बाद तो ऐसा ही होगा,’’ मैं थोड़ा झेंपते हुए बोली, ‘‘और तू सुना?’’

‘‘भई, अभी तक तो अपनी लाइफ ही सैट नहीं हुई है, बच्चे तो बहुत दूर की बात है.’’

‘‘पर तेरी शादी तो…’’

‘‘अरे, नाम मत ले उस शादी का. वह

शादी नहीं हादसा था मेरे लिए,’’ कह कर मानवी सुबक पड़ी.

‘‘पर हुआ क्या है? बता तो सही?’’ उसे परेशान देख कर मैं उस से पूछ बैठी.

‘‘शादी से पहले तो मेरा पति विरेन बहुत बड़ीबड़ी बातें करता था, पर शादी के बाद उस का व्यवहार बदलने लगा. तुझे तो पता है कि मैं शुरू से ही आजाद जिंदगी जीने की शौकीन रही हूं… अब क्लब जा कर ताश खेलूंगी तो हारूंगी भी… बस, धीरेधीरे यही कहने लगा कि मानवी तुम क्लब जाना छोड़ दो, क्योंकि मेरा बिजनैस घाटे में चल रहा है. अब उस का बिजनैस घाटे में चले या मुनाफे में, मुझे क्या? मुझे तो अपने खर्च के लिए एक तयशुदा रकम चाहिए ही, जिसे मैं चाहे ताश में उड़ाऊं या ब्यूटीपार्लर में फूंकूं,’’ कह व मेज पर रखे पानी के गिलास को झट से उठा कर पी गई.

पानी पी कर जब वह थोड़ी नौर्मल हुई तब बातचीत का सिलसिला आगे बढ़ा और वह मुझ से कहने लगी, ‘‘पर जब उस की हर बात में टोकाटाकी बढ़ने लगी तब माथा ठनक गया मेरा. बस, तब मैं ने अपने वकील दोस्त के साथ मिल कर पूरे 50 लाख का दहेज उत्पीड़न का केस कर दिया पति पर.

‘‘बच्चू को अब आटेदाल का भाव मालूम पड़ेगा. मैं ने अपनी याचिका दायर करते समय ऐसीऐसी धाराएं लगाई हैं कि अब बेचारा सारी उम्र कोर्ट के चक्कर लगाता रहेगा,’’ कहतेकहते मानवी के चेहरे पर कुटिल मुसकान तैर गई.

मानवी की ये बातें सुन कर मैं हैरान थी. पर उन मैडम के चेहरे पर तो शिकन तक नहीं थी. मानवी अपनी पूरी कहानी एक विजयगाथा की तरह बयान कर रही थी.

‘‘पर मानवी, क्लब जाना बुरा नहीं है, पर अगर घर की आर्थिक हालत बिगड़ रही हो तो ऐसे खर्चों पर रोक लगानी ही पड़ती है और फिर पत्नी के बेलगाम खर्च पर पति ही रोक लगाएगा न,’’ मैं उसे समझाते हुए बोली.

‘‘बस, जो भी मिलता है, तेरी तरह मुझे समझाने लगता है. यह मेरी लाइफ है और इस के साथ अच्छा या बुरा करना, इस का हक सिर्फ मुझे है,’’ मानवी अचानक आक्रामक हो उठी, ‘‘जब मेरी ममा ही मुझे नहीं समझ सकीं तो औरों की क्या बात करूं? मुझे तो यह बात समझ नहीं आती कि एक तरफ तो हम नारी सशक्तीकरण की बातें करते हैं और दूसरी तरफ अगर महिलाएं अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ने की कोशिश करें तो उन के पांवों में पारिवारिक रिश्तों की दुहाई दे कर बेडि़यां डालने की कोशिश करते हैं,’’ मानवी अपनी रौ में बोले जा रही थी और मैं चुपचाप सुन रही थी.

अब यह बात मैं समझ चुकी थी कि जो लड़की अपनी मां की बात नहीं समझ पाई, वह मेरी बात क्या समझेगी? अत: मैं ने बातचीत का रुख बदलते हुए उस के लिए 1 कप कौफी का और्डर दे डाला

कौफी पी कर जब उस का दिमाग तरोताजा हुआ तब वह कहने लगी, ‘‘पता है, जो मेरे पास बैठा था, वह निकुंज है, हमारे शहर का जानामाना वकील. पता है वह बावला मेरे एक इशारे पर करोड़ों रुपए लुटाने को तैयार है.

‘‘बस, जब उसे पता चला कि मेरा पति मुझे तंग कर रहा है तो झट से बोला कि मानवी डार्लिंग, तुम्हें अपने पति की बेवजह की तानाशाही सहने की कोई जरूरत नहीं है.

अरे, तुम तो ऐसी बहती नदी हो, जिसे कोई नहीं बांध सकता, तो फिर तुम्हारे पति की क्या बिसात है?

‘‘वैसे तो मैं अपने तलाक के सिलसिले में ही निकुंज से मिली थी, पर मेरी व्यथा सुन कर दिल पिघल गया था बेचारे का. वह खुद ही मुझ से बोला था कि तुम्हारे पति को यों सस्ते में छोड़ देना ठीक नहीं होगा. जब बच्चू को कानूनी दांवपेंच में उलझाऊंगा तब जा कर उस के होश ठिकाने आएंगे.

‘‘बस, फिर उसी के कहने पर मैं ने अपने पति व सास पर दहेज उत्पीड़न का केस बनाया है. मेरी वही सास जो पहले मेरे क्लब जाने पर ऐतराज करती थी, वही सास आज मेरे आगे केस वापस लेने के लिए गिड़गिड़ाती है, पर मैं ने भी कच्ची गोलियां नहीं खेली हैं. मैडम को मुझ पर हाथ उठाने के झूठे आरोप में ऐसा उलझाया है कि शायद अब उसे आत्महत्या ही करनी पड़े. पर मुझे क्या? मुझे तो अपना बदला चाहिए और वह मैं ले कर ही रहूंगी,’’ इतना कह कर वह चुप हो गई.

यह सुन कर मेरा मन खिन्न हो उठा. रहरह कर मैं मानवी के पति व सास के लिए हमदर्दी महसूस कर रही थी.

‘‘अच्छा, मैं चलती हूं, बच्चे आने वाले होंगे,’’ मैं उठते हुए बोली.

‘‘मैं अभी ब्यूटीपार्लर जा रही हूं. रात को डिनर फिक्स है मेरा निकुंज के साथ,’’ कह उस ने अपनी एक आंख शरारत से दबा दी, ‘‘भई, आज रात के लिए निकुंज ने फाइवस्टार होटल का आलीशान कमरा बुक किया है. अब कुछ पाना है तो यू नो, कुछ करना ही पड़ेगा… पर हां, मैं परसों फ्री हूं. अपना नंबर दे, मैं तेरे घर आऊंगी, तेरे बच्चों से मिलने और फिर तेरे बच्चों की तो मौसी हूं मैं,’’ वह अपना मोबाइल फोन निकालते हुए बोली.

‘‘मेरा फोन तो खो गया था. उस का मिसयूज न हो, इसलिए मेरे पति ने उस नंबर को ब्लौक करा दिया है. अब नया फोन और नया नंबर ही लेना पड़ेगा,’’ मैं ने झूठा बहाना बनाया और तेजी से बाहर निकल आई.

आज के बाद मैं मानवी से नहीं मिलूंगी. यह मैं ने पक्का तय कर लिया था. ऐसे लोगों को दूर से सलाम जो अपनी स्वार्थसिद्धि के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं. तभी सामने से आते औटोरिकशा को रोक मैं उस में बैठ कर घर लौट आई.

औरों से जुदा: निशा ने जब खुद को रवि को सौंपने का फैसला किया

लेखिका- करुणा शर्मा 

अपनीसहेली महक का गुस्से से लाल हो रहा चेहरा देख कर निशा मुसकराने से खुद को रोक नहीं सकी. बोली, ‘‘मयंक की बर्थडे पार्टी में तेरे बजाय रवि प्रिया को क्यों ले जा रहा है?’’ निशा की मुसकराहट ने महक का गुस्सा और ज्यादा भड़का दिया.

निशा ने प्यार से महक का हाथ थामा और फिर शांत स्वर में जवाब दिया, ‘‘परसों रविवार को मेरा जापानी भाषा का एक महत्त्वपूर्ण इम्तिहान है, इसलिए मैं ने रवि को सौरी बोल दिया था. रही बात प्रिया की, तो वह रवि की अच्छी फ्रैंड है. दोनों का पार्टी में साथ जाना तुझे क्यों परेशान कर रहा है?’’ ‘‘क्योंकि मैं प्रिया को अच्छी तरह जानती हूं. वह तेरा पत्ता साफ रवि को हथियाना चाहती है.’’

‘‘देख एक सुंदर, स्मार्ट और अमीर लड़के को जीवनसाथी बनाने की चाह हर लड़की की तरह प्रिया भी अपने मन में रखती है, तो क्या बुरा कर रही है?’’ ‘‘तू रवि को खो देगी, इस बात को सोच कर क्या तेरा मन जरा भी चिंतित या परेशान नहीं होता है?’’

‘‘नहीं, क्योंकि रवि की जिंदगी में मुझ से बेहतर लड़की और कोई नहीं है,’’ निशा का स्वर आत्मविश्वास से लबालब था. ‘‘उस ने पहले मुझ से ही पार्टी में चलने को कहा था, यह क्यों भूल रही है तू?’’

‘‘प्रिया को रवि के साथ जाने का मौका दे कर तू ने गलती करी है, निशा. तुम जैसी मेहनती लड़की को इम्तिहान में पास होने की चिंता करनी ही नहीं चाहिए थी. रवि के साथ पार्टी में तुझे ही जाना चाहिए था, बेवकूफ.’’ ‘‘सच बात तो यह है कि मेरा मन भी नहीं लगता है रवि के अमीर दोस्तों के द्वारा दी जाने वाली पार्टियों में, महक. लंबीलंबी कारों में आने वाले मेहमानों की तड़कभड़क मुझे नकली और खोखली लगती है. न वे लोग मेरे साथ सहज हो पाते हैं और न मैं उन सब के साथ. तब रवि भी पार्टी का मजा नहीं ले पाता है. इन सब कारणों से भी मैं ऐसी पार्टियों में रवि के साथ जाने से बचती हूं,’’ निशा ने बड़ी सहजता से अपने मन की बात महक से कह दी.

‘‘तू मेरी एक बात का सचसच जवाब देगी?’’ ‘‘हां, दूंगी.’’

‘‘क्या तू रवि से शादी करने की इच्छुक नहीं है?’’

कुछ पलों के सोचविचार के बाद निशा ने गंभीर लहजे में जवाब दिया, ‘‘यह सच है कि रवि मेरे दिल के बेहद करीब है…उस का साथ मुझे बहुत अच्छा लगता है, लेकिन हमारी शादी जरूर हो, ऐसी उलझन मैं अपने मन में नहीं पालती हूं. भविष्य में जो भी हो मुझे स्वीकार होगा.’’ ‘‘अजीब लड़की है तू,’’ महक हैरानपरेशान हो उठी, देख, ‘‘अमीर खानदान की बहू बन कर तू अपने सारे सपने पूरे कर सकेगी. तुझे रवि को अपना बना कर रखने की कोशिशें बढ़ा देनी चाहिए. इस मामले में जरूरत से ज्यादा आत्मविश्वासी होना गलत और नुकसानदायक साबित होगा, निशा.’’

‘‘रवि को अपना जीवनसाथी बनाने के लिए मेरा उस के पीछे भागना मूर्खतापूर्ण और बेहूदा लगेगा, महक. अच्छे जीवनसाथी साथसाथ चलते हैं न कि आगेपीछे.’’ ‘‘लेकिन…’’

‘‘अब लेकिनवेकिन छोड़ और मेरे साथ जिम चल. कुछ देर वहां पसीना बहा कर मैं तरोताजा होना चाहती हूं,’’ निशा ने एक हाथ में अपना बैग उठाया और दूसरे हाथ से महक का हाथ पकड़ कर बाहर चल पड़ी. निशा ने अपनी मां को जिम जाने की बात बताई और फिर दोनों सहेलियां फ्लैट से बाहर आ गईं.

जिम में अच्छीखासी भीड़ इस बात की सूचक थी कि लोगों में स्वस्थ रहने व स्मार्ट दिखने की इच्छा बढ़ती जा रही है. निशा वहां की पुरानी सदस्य थी, इसलिए ज्यादातर लोग उसे जानते थे. उन सब से हायहैलो करते हुए वह पसीना बहाने में दिल से लग गई. लेकिन महक की दिलचस्पी तो उस से बातें करने में कहीं ज्यादा थी.

खुद को फिट रखने की आदत ने निशा की फिगर को बहुत आकर्षक बना दिया था. उस का पसीने में भीगा बदन वहां मौजूद हर पुरुष की प्रशंसाभरी नजरों का केंद्र बना हुआ था. उन नजरों में अश्लीलता का भाव नहीं था, क्योंकि अपने मिलनसार स्वभाव के कारण वह उन सभी की दोस्ती, स्नेह व आदरसम्मान की पात्रता हासिल कर चुकी थी. लगभग 1 घंटा जिम में बिताने के बाद दोनों घर चल पड़ीं.

‘‘यू आर द बैस्ट, निशा,’’ अचानक महक के मुंह से निकले इन प्रशंसाभरे शब्दों को सुन कर निशा खुश होने के साथसाथ हैरान भी हो उठी. ‘‘थैंकयू, स्वीटहार्ट, लेकिन अचानक यों प्यार क्यों दर्शा रही है?’’ निशा ने भौंहें मटकाते हुए पूछा.

‘‘मैं सच कह रही हूं, सहेली. तेरे पास क्या नहीं है? सुंदर नैननक्श, गोरा रंग, लंबा कद… एमकौम, एमबीए और जापानी भाषा की जानकारी…बहुराष्ट्रीय कंपनी में शानदार नौकरी…एक साधारण से स्कूल मास्टर की बेटी के लिए ऐसे ऊंचे मुकाम पर पहुंचना सचमुच काबिलेतारीफ है.’’ ‘‘जो गुण और परिस्थितियां कुदरत ने दिए हैं, मैं न उन पर घमंड करती हूं और न ही कोई शिकायत है मेरे मन में. अपने व्यक्तित्व को निखारने व कड़ी मेहनत के बल पर अच्छा कैरियर बनाने के प्रयास दिल से करते रहना मेरे लिए हमेशा महत्त्वपूर्ण रहा है. अपनी गरीबी और सुखसुविधाओं की कमी का बहाना बना कर जिंदगी में तरक्की करने का अपना इरादा कभी कमजोर नहीं पड़ने दिया. मेरे इसी गुण ने मुझे इन ऊंचाइयों तक पहुंचाया है,’’ अपने मन की बातें बताते हुए निशा की आवाज में उस का आत्मविश्वास साफ झलक रहा था.

‘‘अब रवि से तेरी शादी भी हो जाए तो फिर तेरी जिंदगी में कोई कमी नहीं रहेगी,’’ महक ने भावुक लहजे में अपने मन की इच्छा दर्शाई. कुछ पल खामोश रह कर निशा ने किसी दार्शनिक के से अंदाज में कहा, ‘‘मैं ने अपनी खुशियों को रवि के साथ शादी होने से बिलकुल नहीं जोड़ रखा है. कुछ खास पा कर अपनी खुशियां हमेशा के लिए तय कर लेना मुमकिन भी नहीं होता है, सहेली. जीवनधारा निरंतर गतिमान है और मैं अपनी जिंदगी की गुणवत्ता बेहतर बनाने को निरंतर गतिशील रहना चाहती हूं. मेरे लिए यह जीवन यात्रा महत्त्वपूर्ण है, मंजिलें नहीं. रवि से मेरी शादी हो गई, तो मैं खुश हूंगी और नहीं हुई तो दुखी नहीं हूंगी.’’

‘‘तुम दूसरी लड़कियों से कितनी अलग हो.’’ ‘‘सहेली, हम सब ही इस दुनिया में अनूठे और भिन्न हैं. दूसरों से अपनी तुलना करते रहना अपने समय व ताकत को बेकार में नष्टकरना है. मैं अपनी जिंदगी को खुशहाल अपने बलबूते पर बनाना चाहती हूं. इस यात्रा में रवि मेरा साथी बनता है, तो उस का स्वागत है. ऐसा नहीं होता है, तो भी कोई गम नहीं क्योंकि कोई दूसरा उपयुक्त हमराही मुझे जरूर मिलेगा, ऐसा मेरा विश्वास है.’’

‘‘शायद तेरे इस अनूठेपन के कारण ही रवि तेरा दीवाना है… तेरा आत्मविश्वास, तेरी आत्मनिर्भरता ही तेरी ताकत और अनूठी पहचान है.’’ महक के मुंह से निकले इन वाक्यों को सुन कर निशा बड़े रहस्यमयी अंदाज में मुसकराने लगी थी.

महक और निशा ने घर का आधा रास्ता ही तय किया होगा जब रवि की कार उन की बगल में आ कर रुकी. उसे अचानक सामने देख कर निशा का चेहरा गुलाब के फूल सा खिल उठा. ‘‘हाय, तुम यहां कैसे?’’ निशा ने रवि से प्रसन्न अंदाज में हाथ मिलाया और फिर छोड़ा

ही नहीं. ‘‘पार्टी में जाने का मन नहीं किया,’’ रवि ने उस की आंखों में प्यार से झांकते हुए जवाब दिया, ‘‘कुछ समय तुम्हारे साथ बिताने के बाद पार्टी में जाऊंगा.’’

‘‘क्या? प्रिया को भी साथ ले जाओगे?’’ महक चुभते से लहजे में यह पूछने से खुद को नहीं रोक पाई. ‘‘नहीं, वह अमित के साथ जा चुकी है. चलो, आइसक्रीम खाने चलते हैं,’’ रवि ने महक के सवाल का जवाब लापरवाही से देने के बाद अपना ध्यान फिर से निशा पर केंद्रित कर लिया.

‘‘पहले मुझे घर छोड़ दो,’’ महक का मूड उखड़ा सा हो गया. ‘‘ओके,’’ रवि ने साथ चलने के लिए महक पर जरा भी जोर नहीं डाला.

निशा रवि की बगल में और महक पीछे की सीट पर बैठ गई तो रवि ने कार आगे बढ़ा दी. ‘‘पहले तुम दोनों मेरे घर चलो,’’ निशा ने मुसकराते हुए माहौल को सहज करने की कोशिश करी. ‘‘नहीं, यार. मैं कुछ वक्त सिर्फ तुम्हारे साथ गुजारना चाहता हूं,’’ रवि ने उस के प्रस्ताव का फौरन विरोध किया.

‘‘पहले घर चलो, प्लीज,’’ निशा ने प्यार से रवि का कंधा दबाया, ‘‘मां के हाथ की बनी एक खास चीज तुम्हें खाने को मिलेगी.’’ ‘‘क्या?’’

‘‘वह सीक्रेट है.’’ ‘‘लेकिन…’’

‘‘प्लीज, बड़े प्यार से करी गई प्रार्थना को रवि अस्वीकार नहीं कर सका और फिर कार निशा के घर की तरफ मोड़ दी.’’

महक अपने घर की तरफ जाना चाहती थी, पर निशा ने उसे प्यार से डपट कर खामोश कर दिया. वह समझती थी कि उस की सहेली रवि को उस के प्रेमी के रूप में उचित प्रत्याशी नहीं मानती है. महक को डर था कि रवि उसे प्रेम में जरूर धोखा देगा. काफी समझाने के बाद भी निशा उस के इस डर को दूर करने में सफल नहीं रही थी. इसीलिए जब ये दोनों उस के साथ होती थीं, तब उसे माहौल खुश बनाए रखने के लिए अतिरिक्त प्रयास हमेशा करना पड़ता था.

रवि मीठा खाने का शौकीन था. निशा की मां के हाथों के बने शाही टोस्ट खा कर उस की तबीयत खुश हो गई. मीठा खा कर महक अपने घर चली गई. निशा ने रवि को खाना खिला कर ही भेजा. हंसतेबोलते हुए 2 घंटे कब बीत गए पता ही नहीं चला.

‘‘लंबी ड्राइव पर जाने का मौसम हो रहा है,’’ ताजी ठंडी हवा को चेहरे पर महसूस करते हुए रवि ने कार में बैठने से पहले अपने मन की इच्छा व्यक्त करी. ‘‘आज के लिए माफी दो. फिर किसी दिन कार्यक्रम…’’

‘‘परसों चलने का वादा करो…, इम्तिहान के बाद?’’ रवि ने उस की आंखों में प्यार से झांकते हुए पूछा. ‘‘श्योर,’’ निशा ने फौरन रजामंदी जाहिर

कर दी. ‘‘इम्तिहान खत्म होते ही निकल लेंगे.’’

‘‘ओके.’’ ‘‘पूछोगी नहीं कि कहां चलेंगे?’’

‘‘तुम्हारा साथ है, तो हर जगह खूबसूरत बन जाएगी.’’

‘‘आई लव यू.’’ ‘‘मी टू.’’

रवि ने निशा के हाथ को कई बार प्यार से चूमा और फिर कार आगे बढ़ा दी. रवि के चुंबनों के प्रभाव से निशा के रोमरोम में अजीब सी मादक सिहरन पैदा हो गई थी. दिल में अजीब सी गुदगुदी महसूस करते हुए वह अपने कमरे में लौटी और तकिए को छाती से लगा कर पलंग पर लेट गई. रवि के बारे में सोचते हुए उस का तनमन अजीब सी खुमारी में डूबता जा रहा था. उस के होंठों की मुसकान साफ जाहिर कर रही थी कि उस वक्त उस के सपनों की दुनिया बड़ी रंगीन बनी हुई थी.

रविवार को दोपहर 12 बजे निशा की जापानी भाषा की परीक्षा समाप्त हो गई. वह हौल से बाहर आई तो उस ने रवि को अपना इंतजार करते पाया. सिर्फ 1/2 घंटे बाद रवि की कार दिल्ली से आगरा जाने वाले राजमार्ग पर दौड़ रही थी. दोनों का साथसाथ किसी दूसरे शहर की यात्रा करने का यह पहला मौका था.

मौसम बहुत सुहावना था. ठंडी हवा अपने चेहरों पर महसूस करते हुए दोनों प्रसन्न अंदाज में हसंबोल रहे थे. कुछ देर बाद निशा आंखें बंद कर के मीठे, प्यार भरे गाने गुनगुनाने लगी. रवि रहरह कर उस के सुंदर, शांत चेहरे को देख मुसकराने लगा.

‘‘तुम संसार की सब से सुंदर स्त्री हो,’’ रवि के मुंह से अचानक यह शब्द निकले, तो निशा ने झटके से अपनी आंखें खोल दीं.

रवि की आंखों में अपने लिए गहरे प्यार के भावों को पढ़ कर उस के गौरे गाल गुलाबी हो उठे और फिर शरमाए से अंदाज में वह सिर्फ इतना ही कह पाई, ‘‘झूठे.’’

रवि ने कार की गति धीमी करते हुए उसे एक पेड़ की छाया के नीचे रोक दिया. फिर उस ने झटके से निशा को अपनी तरफ खींचा और उस के गुलाबीि होंठों पर प्यारा सा चुंबन अंकित कर दिया. निशा की तेज सांसों और खुले होंठों ने उसे फिर से वैसा करने को आमंत्रित किया, तो रवि के होंठ फिर से निशा के होंठों से जुड़ गए.

इस बार का चुंबन लंबा और गहन तृप्ति देने वाला था. उस की समाप्ति पर दोनों ने एकदूसरे की आंखों में गहन प्यार से झांका. ‘‘तुम एक जादूगरनी हो,’’ निशा की पलक को चूमते हुए रवि ने उस की तारीफ करी.

‘‘वह तो मैं हूं,’’ निशा हंस पड़ी. ‘‘मेरा दिल इस वक्त मेरे काबू में नहीं है.’’

‘‘मेरा भी.’’ ‘‘मैं तुम्हें जी भर कर प्यार करना चाहता हूं.’’

‘‘मैं भी.’’ ‘‘सच?’’

निशा ने बेहिचक ‘हां’ में सिर ऊपरनीचे हिलाया, तो रवि की आंखों में हैरानी के भाव उभरे. ‘‘क्या तुम्हें अपनी बदनामी का, अपनी छवि खराब होने का डर नहीं है?’’

‘‘क्या करना है और क्या नहीं, इसे मैं दूसरों की नजरों से नहीं तोलती हूं, रवि.’’ ‘‘फिर भी शादी से पहले शारीरिक संबंध बनाने को समाज गलत मानता है, खासकर लड़कियों के लिए.’’

निशा ने आगे झुक कर रवि के गाल को चूमा और फिर सहज अंदाज में बोली, ‘‘स्वीटहार्ट, पुरानी मान्यताओं को जबरदस्ती ओढ़े रखने में मेरा विश्वास नहीं है. मैं इतना जानती हूं कि मैं तुम्हें प्यार करती हूं और तुम्हारा स्पर्श मेरे रोमरोम में मादक झनझनाहट पैदा कर देता है.’’ ‘‘तुम्हारे साथ सैक्स संबंध बनाने का फैसला मैं तुम्हारी और अपनी खुशियों को ध्यान में रख कर करूंगी. वैसा करने के लिए तुम मुझ से शादी करने का झूठासच्चा वादा करो, यह कतई जरूरी नहीं है.’’

‘‘तो क्या तुम मेरे साथ सोने को तैयार हो?’’ ‘‘बड़ी खुशी से,’’ निशा का ऐसा जवाब सुन कर रवि जोर से चौंका, तो वह खिलखिला कर हंस पड़ी.

‘‘तुम्हें समझना मेरे बस की बात नहीं है. साधारण से घर में पैदा हुई लड़की इतनी असाधारण… इतनी अनूठी… इतनी आत्मविश्वास से भरी कैसे हो गई है?’’ कार को फिर से आगे बढ़ाते हुए हैरान रवि ने यह सवाल मानो खुद से ही पूछा हो. ‘‘जिस के पास अपने सपनों को पूरा करने के लिए हिम्मत, लगन और कठिन मेहनत करने जैसे गुण हों, वह इंसान साधारण घर में पैदा होने के बावजूद असाधारण ऊंचाइयां ही छू सकती है,’’ होंठों से बुदबुदा कर निशा ने रवि के सवाल का जवाब खुद को दिया और फिर रवि के हाथ को प्यार से पकड़ कर शांत अंदाज में आंखें मूंद लीं.

आत्मविश्वासी निशा अपने भविष्य के प्रति पूरी तरह आश्वस्त थी. मस्त अंदाज में सीटी बजा रहे रवि ने भी भविष्य को ले कर एक फैसला उसी समय कर लिया. ताजमहल के सामने निशा के सामने शादी करने का प्रस्ताव रखने का निर्णय लेते हुए उस का दिल अजीब खुशी और गुदगुदी से भर उठा था, साधारण बगीचे में उगे इस असाधारण फूल की महक से वह अपना भावी जीवन भर लेने को और इंतजार नहीं करना चाहता था.

शापित- भाग 4: रोहित के गंदे खेल का अंजाम क्या हुआ

Writer-आशीष दलाल

‘कब तक लड़ता रहेगा वह अपनेआप से. रोहित यहां से दूर पूना में था तो एक तसल्ली थी कि कम से कम उसे अपनी नजरों के सामने न पा कर नमन सारी बात पीछे छोड़ जल्दी आगे बढ़ जाएगा, पर अब तो वह नालायक वापस यहां आ कर चाचाजी की दुकान संभालने लगा है. उसे देखदेख कर मेरा बेटा कुंठाभाव से तिलतिल कर मर रहा है,’ सुनंदा साड़ी के पल्लू से आंखों में आ गए आंसुओं को पोंछते हुए संकेत के पास हीबैठ गई.

‘सुनंदा, समय किसी को नहीं छोड़ता. हमारे बेटे का भी समय आएगा. तुम चिंता मत करो. सब ठीक हो जाएगा,’ संकेत उसे सांत्वना दे कर चुप करने लगा.

समय बीतने के साथ नमन 12वीं की परीक्षा पास करने के बाद इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के लिए दिल्ली चला गया. इस बार जब वह छुट्टियों में घर आया तो रोहित के 5 साल के बेटे चिंटू को समयबेसमय अपने घर आते देख वह उस पर झुंझलाने लगा. उसे देख नमन को अपने बचपन की घटना याद आ जाती और राहित पर अपना आक्रोश व्यक्त न कर पाने से वह एक द्वेषभाव उस के बेटे पर रखने लगा था. आज एक बार गुस्सा कर उसे वापस भेजने के बाद वह थोड़ी ही देर में वापस आ गया. इस बार उस के हाथ में एक खिलौने वाली कार थी. वह चुपचाप आ कर नमन के पास खड़ा हो गया.

‘भैया, मेरी कार चल नहीं रही है. ठीक कर दो न. मैं आप को इस में बिठा कर घुमाने ले जाऊंगा,’ चिंटू की मासूमियत भरी बात सुन कर नमन के चेहरे पर मुसकराहट छा गई. उस ने उस के गालों को सहलाया और उस के हाथ से कार ले कर उसे ठीक करने लगा. थोड़ी ही देर में चिंटू की कार फर्श पर दौड़ने लगी. फिर तो चिंटू बारबार आ कर नमन के संग खेलता रहता था.

ये भी पढ़ें- अन्यपूर्वा: क्यों राजा दशरथ देव ने विवाह न करने की शपथ ली?

नमन के मन में भी उस के प्रति रहा द्वेषभाव तिरोहित होने लगा. अब वह जब भी घर आता तो चिंटू के लिए कुछ न कुछ ले कर आता.

सुनंदा और संकेत भी नमन के बदले हुए व्यवहार को देख कर अब खुश थे. उन के बेटे के मन में भाव वर्षों बाद अब भर कर ठीक हो रहे थे.

4 साल की कड़ी मेहनत के बाद कैंपस इंटरव्यू में चयनित हो कर दिल्ली की ही एक प्रतिष्ठित कंपनी में नौकरी का औफर पा कर नमन ज्वाइन करने से पहले अपने घर कुछ दिन छुट्टियां बिताने आया हुआ था. सुनंदा और संकेत अपनेअपने औफिस को चले गए थे. खापी कर नमन दोपहर के वक्त घर पर अकेला बैठा किसी नौवेल के पन्ने पलट रहा था, तभी दरवाजे पर दस्तक हुई. उस ने दरवाजा खोला तो बाहर चिंटू खड़ा हुआ मुसकरा रहा था.

नमन उसे देख मुसकराया, तो वह दौड़ कर घर के अंदर घुस गया. बाहर का दरवाजा बंद कर नमन उसे ज्यादा शोर और मस्ती न करने की हिदायत दे कर अपने कमरे में चला गया. थोड़ी ही देर में चिंटू उस के पीछेपीछे उस के कमरे में आ कर खेलने लगा. उसे खेलता देख सहसा नमन के मन में पुरानी कड़वी यादें उमड़ कर मन को कसैला कर गई. तभी कुछ सोच कर उस ने चिंटू को खींच कर बिस्तर पर ले लिया.

‘कौन सा खेल भैया?’ चिंटू ने बड़ी ही मासूमियत से नमन की ओर देखा.

‘बड़ा ही मजेदार खेल है. हम दोनों को बहुत मजा आएगा,’ जवाब देते हुए नमन की आंखों में कुटिलता छा गई.

‘तो चलो न भैया. जल्दी से खेलते हैं,’ कहते हुए लाड़ लड़ाते हुए चिंटू नमन से लिपट गया.

‘हां मेरे शेर, चल यहां लेट जा,’ चिंटू को अपने से अलग कर नमन ने उसे बिस्तर पर लिटाते हुए कहा.

‘नहीं, आप तो दादी की तरह झूठ बोल कर मुझे सुला दोगे. मुझे नींद नहीं आ रही है. मुझे तो खेलना है,’ चिंटू ने बैठते हुए कहा.

‘ये नया खेल है और लेट कर ही खेला जाता है,’ नमन ने चिंटू को अपनी बातों में लेते हुए कहा.

‘तो ठीक है,’ कहते हुए चिंटू खुद ही फिर से लेट गया. अपनी शर्ट उतार कर नमन चिंटू की बगल में लेट गया.

‘भैया, गुदगुदी हो रही है,’ चिंटू नमन का क्लीन शेव्ड चेहरा अपने गालों पर से हटाने की कोशिश करते हुए हंसते हुए बोला.

‘मजा आ रहा है न. अब और मजा आएगा,’ कहते हुए नमन के हाथ चिंटू के शर्ट के बटन छूते हुए उस की कमर तक जा पहुंचे.

चिंटू नमन के बगल में लेटा चुपचाप उस की हरकतों पर गौर करता हुआ निर्बोध भाव से खिलखिला कर हंस रहा था. नमन के हाथ चिंटू की चड्डी के इर्दगिर्द घूमने लगे. सहसा उस की आंखों के आगे एक बार फिर वही पुराना दृश्य घूम गया. चिंटू की जगह वह अपने को लेटा हुआ देख रहा था और खुद की जगह पर रोहित को.

ये भी पढ़ें- शरणागत: डा. अमन की जिंदगी क्यों तबाह हो गई?

‘जो घाव मेरे मन पर कालिख की तरह जम कर मुझे पलपल पीड़ा दे रहे हैं, आज उन्हीं जख्मों पर मलहम लगाने का वक्त आ गया है. तुम्हारा तो कुछ न बिगाड़ सका रोहित अंकल, पर तुम्हारी जगह तुम्हारा बेटा ही सही,’ मन ही मन रोष व्यक्त करते हुए नमन ने एक बार जोर से चिंटू को दबोच लिया.

‘भैया, दुख रहा है. धीरे से पकड़ों न हाथ,’ चिंटू ने नमन के हाथ से अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश करते हुए दर्द से तिलमिलाते हुए कहा.

नमन ने चिंटू की आंखों में देखा. उस की मासूमियत भरी आंखों में उसे एक अटूट विश्वास की झलक दिखार्ई दे रही थी.

‘मेरी आंखों में भी तो यही विश्वास था,’ मन ही मन कुछ विचारते हुए नमन की पकड़ चिंटू पर ढीली पड़ गई.

‘भैया, बताओ न कि नया खेल कब खेलेंगे?’ सहसा चिंटू फुरती से उठ कर नमन के पेट पर चढ़ कर बैठ गया.

‘खेल? हां… हां… खेलेंगे. जरूर खेलेंगे,’ कहते हुए नमन ने अपने पेट पर से चिंटू को उतार कर अपनी बगल में लिटा दिया.

चिंटू का मासूमियत भरा सवाल सुन कर नमन सोच में पड़ गया.

‘उस वक्त जीत किस की हुई थी? मेरी या… पर, बदले में मुझे क्या मिला? बस एक घृणा, अविश्वास, दर्द, जिंदगीभर की तड़प… मैं भी तो यही सब इस मासूम की जिंदगी में घोलने जा रहा हूं,’ अपने किए जा रहे कृत्य पर घृणा करते हुए वह एक झटके से उठ खड़ा हुआ और पास ही पड़ी शर्ट बदन पर चढ़ा ली.

‘बोलो न भैया…? मैं अगर जीत गया तो मुझे क्या मिलेगा?’ बिस्तर पर लेटा हुआ चिंटू अब भी अपना प्रश्न दोहरा रहा था.

‘तू खेले बिना जीत गया रे मेरे शेर. तुझे जिंदगीभर मेरा विश्वास मिलेगा. मेरे मन में जमा हुई कड़वाहट से तेरी जिंदगी बदरंग नहीं करूंगा,’ चिंटू के बालों को सहलाते हुए नमन ने मुसकराते हुए उसे गोद में लेते हुए कहा.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें