लेखिका- डा. दीपिका अग्रवाल

गर्भधारण के समय स्त्री का स्वस्थ होना सब से ज्यादा जरूरी होता है, पर देखा गया है कि 35 वर्ष की उम्र के बाद महिलाओं को स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं घेरने लगती हैं, जिस के चलते गर्भावस्था में 20 प्रतिशत तक खतरा होने का अंदेशा बढ़ जाता है. जीवनशैली के साथसाथ समाज में हो रही सांस्कृतिक तबदीलियों की वजह से दंपतियों में 30 साल की उम्र के बाद परिवार बढ़ाने की तरफ ?ाकाव होना आम बात है. गर्भधारण में देरी की वजह से माताओं को कुछ समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है. मानसिक रूप से शायद आप बच्चे संभाल भी पाएं, लेकिन शारीरिक रूप से 35 साल की उम्र के बाद गर्भधारण की अपनी कुछ समस्याएं होती हैं. आप में भले ही कोई मौजूदा बीमारी न हो, फिर भी 30 साल की उम्र के बाद गर्भधारण चुनौतीपूर्ण साबित हो सकता है.

दौड़भाग वाली जीवनचर्या और बढ़ती उम्र जोखिमभरे गर्भधारण की संभावना बढ़ा देते हैं. अध्ययनों के मुताबिक, आमतौर पर 20 साल से कम और 35 साल से ज्यादा उम्र वाली महिलाओं में गर्भधारण जोखिमभरा हो सकता है. 30 से 40 साल की उम्र वाली महिलाओं में गर्भपात की आशंका ज्यादा होती है क्योंकि अंडाणुओं की संख्या और गुणवत्ता समय के साथ कम होती जाती है. 30 से 40 साल की उम्र में हुए गर्भधारण में मां के साथसाथ बच्चे के लिए भी जोखिम हो सकता है. 35 साल की उम्र के बाद होने वाले गर्भधारण में आमतौर पर गर्भपात, गुणसूत्र असामान्यता (क्रोमोसोमल ऐब्नौर्मिलिटी), बढ़ा हुआ रक्तचाप और गर्भकालीन मधुमेह जैसे जोखिम होते हैं. ऐसे समय, पहले से मौजूद स्वास्थ्य समस्याएं जोखिम को बढ़ा देती हैं. लेकिन जानकारों की सलाह से आप के और आप के बच्चे के लिए समस्याओं की संभावना दूर हो सकती है.

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आप के डाक्टर आप को फौलिक एसिड लेने और कुछ जांच (स्क्रीनिंग्स) और परीक्षण (टैस्ट्स) कराने की सलाह दे सकते हैं. अगर आप 35 साल की उम्र के बाद गर्भधारण का निर्णय लेती हैं तो सुरक्षित गर्भधारण के लिए आप को अपनी ज्यादा देखभाल करने और अपनी ओर ध्यान देने के अलावा एक स्वस्थ जीवनचर्या बरकरार रखने वाले विकल्पों को चुनना जरूरी है. राष्ट्रीय स्वास्थ्य पोर्टल की ओर से 2019 में सा?ा आंकड़ों के मुताबिक, भारत में लगभग 20 फीसदी से 30 फीसदी गर्भधारण सब से अधिक जोखिम वाली श्रेणी में आते हैं, जो गर्भधारण में 75 फीसदी जटिलताओं और मृत्यु का कारण हैं. जोखिमरहित गर्भधारण के लिए स्त्री का स्वस्थ होना जरूरी है. जिन महिलाओं में पहले से ही उच्च रक्तचाप (हाई ब्लडप्रैशर), स्वप्रतिरक्षित रोग (औटो इम्यून डिजीज), मधुमेह, यौन संचारित रोग (एसटीडी), किडनी से जुड़ी समस्याएं और हृदयरोग मौजूद हों, उन में जटिलताएं विकसित होने और गर्भपात होने की आशंका ज्यादा होती है. 35 साल की उम्र से पहले गर्भपात का जोखिम 15 फीसदी होता है, जो कि 35 साल के बाद 20 फीसदी तक बढ़ जाता है.

35 साल की उम्र के बाद की जटिलताएं 35 साल की उम्र के बाद होने वाले गर्भधारण में संतति में गुणसूत्र असामान्यता (क्रोमोसोमल ऐब्नौर्मिलिटी) उत्पन्न हो सकती है. गर्भाशय में उत्पन्न होने वाले जन्मदोषों की जांच और जन्मजात विकारों के नैदानिक परीक्षण करने की सलाह दी जाती है. महिलाओं के अंडाशय में सीमित मात्रा में अंडाणु होते हैं. जैसेजैसे उम्र बढ़ती जाती है, इन अंडाणुओं की मात्रा कम होती जाती है और उन का गर्भाधान आसानी से नहीं हो पाता. इसी वजह से 30 साल की उम्र के बाद गभधारणा में कठिनाइयां आती हैं. 35 साल की उम्र के बाद महिलाओं में समयपूर्व प्रसव (प्रीमैच्योर लेबर), गर्भकालीन मधुमेह (जेस्टेशनल डायबिटीज) और उच्च रक्तचाप का जोखिम ज्यादा रहता है. ऐसी उम्र में डाउन सिंड्रोम, मृत-जन्म (स्टिल बर्थ) और गर्भपात जैसी समस्याओं की संभावना बहुत ज्यादा होती है. गर्भधारण से जुड़े जोखिमों की जांच कैसे करें?

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भ्रूण में किसी भी असामान्यता या दोष की जांच करने के लिए अल्ट्रासाउंड टैस्ट करा लें. इस से विकलांगता के संकेतों का समय रहते परीक्षण करने में मदद मिल सकती है.  भ्रूण में गुणसूत्र असामान्यताओं (क्रोमोसोमल ऐब्नौर्मिलिटी) की मौजूदगी की जांच करने के लिए प्रसवपूर्व डीएनए जांच (प्रीनेटल डीएनए स्क्रीनिंग) की जाती है.

एक संपूर्ण स्वास्थ्य प्रालेख के लिए भ्रूण की धड़कनों की पड़ताल, जैसे जैवाभौतिक (बायोफिजिकल) परीक्षण किए जाते हैं. यूटीआई या एचआईवी जैसे संक्रमणों की जांच के लिए रक्त और मूत्र परीक्षणों जैसे लैब टैस्ट किए जाते हैं.

स्वस्थ बालक को जन्म देने के लिए… गर्भधारणपूर्व (प्रीकंसैप्शन) परीक्षण करा लें : गर्भधारण से पूर्व किए गए समग्र स्वास्थ्य परीक्षण से आप को पता चलेगा कि गर्भधारण के लिए आप का शरीर कितना स्वस्थ है. आप के और आप के साथी के परिवार में मौजूदा स्वास्थ्य अनियमितताओं के बारे में डाक्टर को बताएं. अगर आप ने कोई वैक्सीन ली है या दवाई ले रहे हों तो उस का जिक्र जरूर करें. इस जानकारी के साथ डाक्टर आप की स्थिति को बेहतर सम?ा पाएंगे. जीवनचर्या में बदलाव के बारे में भी डाक्टर से बातचीत की जा सकती है.

स्वास्थ्य अनियमितताओं का इलाज करा लेना : किसी भी संभावित जोखिम को दूर करने के लिए गर्भधारण से पहले उच्च रक्तचाप, मधुमेह और निराशा (डिप्रैशन) के लिए उचित उपचार करा लें. अगर मौजूदा बीमारी के लिए आप कोई दवा ले रही हों तो इस के बारे में डाक्टर को जरूर खबर करें. गर्भधारणा के समय डाक्टर ऐसी दवाओं को बदल भी सकते हैं.

मल्टीविटामिन का सेवन : रोजाना 400 मिलिग्राम फोलिक एसिड का सेवन आवश्यक है. यह बच्चे की उचित वृद्धि और विकास के लिए आवश्यक है. फोलिक एसिड की वजह से गर्भधारण से पहले और उस के दौरान बच्चे में उत्पन्न होने वाले जन्मदोष कम किए जा सकते हैं. जीवनचर्या में तबदीली : बीएमआई का स्तर सामान्य रहना जरूरी है. जरूरत से कम या ज्यादा वजन वाली महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान ज्यादा समस्याओं का सामना करना पड़ता है. शराब, नशीले पदार्थ और तंबाकू का सेवन बंद करने के साथ सेहतमंद खाना और रोजाना व्यायाम करने से लाभ होगा. अगर जरूरी हो तो जानकार की सलाह लें. गर्भावस्था के दौरान कितना वजन बनाए रखना आवश्यक है, इस के बारे में डाक्टर की सलाह लें.

तनाव कम करें : इस पर पर्याप्त जोर नहीं दिया जा सकता है. तनाव कम करने से पूरी गर्भावस्था कम जोखिम भरी हो जाएगी. तनाव से निबटने में एक्सरसाइज और ध्यान काफी कारगर साबित हो सकते हैं.

अंडाणुओं को संरक्षित (फ्रीज) करें : कई महिलाएं इस दुविधा में रहती हैं कि क्या उन्हें बच्चा चाहिए या नहीं. लेकिन जैविक घड़ी की टिकटिकी बंद नहीं होती और आप के पास निर्णय लेने का समय नहीं होता. इसीलिए, बाद में उत्पन्न होने वाली जटिलताओं से बचने के लिए अपने प्रजनन स्तर के चरम पर रहते अंडाणुओं को संरक्षित (फ्रीज) करना एक बढि़या विकल्प है. अंडाणु की गुणवत्ता पर ही अंत में बच्चे का स्वास्थ्य निर्भर करता है.

नियमित प्रसवपूर्व जांच करवाएं :गर्भावस्था के दौरान नियमित प्रसवपूर्व जांच से चूकना नहीं चाहिए. प्रसवपूर्व जांच से भ्रूण के विकास के बारे में ही नहीं, बल्कि बाद में उत्पन्न हो सकने वाली जटिलताओं के बारे में भी पता चल जाता है. इस से आप को भी समय रहते जरूरी वैक्सीन देने में सहूलियत होती है. आमतौर पर 35 साल की उम्र के बाद महिलाओं को गर्भधारण में मुश्किलें आ सकती हैं, लेकिन चिकित्सा विज्ञान में प्रगति के कारण इस का प्रबंधन किया जा सकता है. जोखिम महिला के शरीर के कारण नहीं हो, बल्कि ऐसी वजहों से होता है जो गर्भावस्था की व्यवहार्यता को निर्धारित करती हैं, जैसे माता और पिता की उम्र.

बढ़ी हुई उम्र में गर्भधारण का प्रयास करने वाले लोगों के लिए आईवीएफ एक वरदान है, जिस के साथ प्रसवपूर्व जांच करने से संभावित जोखिमों का पता चल सकता है. तनावरहित गर्भधारण के लिए विशेषज्ञ की सलाह लेना आप के लिए कारगर साबित हो सकता है.

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