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मेरी नई- नई शादी हुई है, मुझे सेक्स के दौरान बहुत दिक्कत होती है क्या करें?

सवाल 

मैं 28 वर्षीय युवक हूं. एक महीने पहले ही मेरी शादी हुई है. वाइफ मु?ो बहुत प्यार करती है. हर तरह से मेरा ध्यान रखती है. मैं भी उस से बहुत खुश हूं. सैक्स लाइफ एंजौय कर रहे हैं. सैक्स से पहले फोरप्ले हम दोनों को एक्साइटमैंट से भर देता है. बस, इंटरकोर्स करते समय वह दर्द की शिकायत करती है, ऐसा क्यों है? कृपया सलाह दें.

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जवाब

यह समस्या महिलाओं में अकसर देखने को मिलती है. इंटरकोर्स के दौरान दर्द होना उन्हें सैक्स से दूर कर देता है. यह समस्या वैजाइना में सूखेपन, सूजन या किसी इन्फैक्शन आदि के कारण होती है.

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वैसे आप को मालूम होना चाहिए कि आप की पत्नी को कब दर्द हो रहा है और कब वह सैक्स के दौरान सहयोग दे रही है. जिस में वह आनंद उठाए, ऐसी पोजिशन में सैक्स करें तो यह समस्या उत्पन्न ही नहीं होगी. साथ ही, इस के लिए एक अच्छा लुब्रिकैंट भी इस्तेमाल करना चाहिए. अगर इस से भी आराम न हो या इंटरकोर्स के दौरान लगातार दर्द हो तो डाक्टर से सलाह लें.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem

सबको साथ चाहिए- भाग 2: पति की मौत के बाद माधुरी की जिंदगी में क्या हुआ?

Writer- Vinita Rahurikar

लेकिन माधुरी की घबराहट अन्य लड़कियों से अलग थी. नई जमीन पर रोपे जाने का अनुभव वह पहले भी देख चुकी थी. उस जमीन पर अपनी जड़ें जमा कर खूब पल्लवित हो कर नाजुक बेल से एक परिपक्व लताकुंज में परिवर्तित भी हो चुकी थी, लेकिन अचानक ही एक आंधी ने उसे वहां से उखाड़ दिया और उस की जड़ों को क्षतविक्षत कर के उस की जमीन ही उस से छीन ली.

2 वर्ष पहले मात्र 43 वर्ष की आयु में ही माधुरी के पति की हृदयगति रुक जाने से आकस्मिक मृत्यु हो गई. कौन सोच सकता था कि रात में पत्नी और बच्चों के साथ खुल कर हंसीमजाक कर के सोने वाला व्यक्ति फिर कभी उठ ही नहीं पाएगा. इतना खुशमिजाज, जिंदादिल इंसान था प्रशांत कि सब के दिलों को मोह लेता था, लेकिन क्या पता था कि उस का खुद का ही दिल इतनी कम उम्र में उस का साथ छोड़ देगा.

माधुरी तो बुरी तरह टूट गई थी. 18 सालों का साथ था उन का. 2 प्यारे बच्चे हैं, प्रशांत की निशानी, प्रिया और मधुर. मधुर तो तब मात्र 16 साल का हुआ ही था और प्रिया अपने पिता की अत्यंत लाडली बस 12 साल की ही थी. सब से बुरा हाल तो प्रिया का ही हुआ था.

एक खुशहाल परिवार एक ही झटके में तहसनहस हो गया. महीनों लगे थे माधुरी को इस सदमे से बाहर आ कर संभलने में. उम्र ही क्या थी उस की. मात्र 37 साल. वह तो उस के मातापिता ने अपना कलेजा मजबूत कर के उसे सांत्वना दे कर इतने बड़े दुख से उबरने में उस की मदद की. प्रिया और मधुर के कुम्हलाए चेहरे देख कर माधुरी ने सोचा था कि अब ये दोनों ही उस का जीवन हैं. अब इन के लिए उसे मजबूत छत बनानी है.

साल भर में ही वह काफी कुछ स्थिर हो गई थी. जीवन आगे बढ़ रहा था. मधुर मैडिकल प्रवेश परीक्षा की तैयारी कर रहा था. प्रिया भी पढ़ने में तेज थी. स्कूल में अव्वल आती, लेकिन माधुरी की सूनी मांग और माथा देख कर उस की मां के कलेजे में मरोड़ उठती, इतना लंबा जीवन अकेले वह कैसे काट पाएगी?

‘अकेली कहां हूं मां, आप दोनों हो, बच्चे हैं,’ माधुरी जवाब देती.

‘हम कहां सारी उम्र तुम्हारा साथ दे पाएंगे बेटा. बेटी शादी कर के अपने घर चली जाएगी और मधुर पढ़ाई और फिर नौकरी के सिलसिले में न जाने कौन से शहर में रहेगा. फिर उस की भी अपनी दुनिया बस जाएगी. तब तुम्हें किसी के साथ की सब से ज्यादा जरूरत पड़ेगी. यह बात तो मैं अपने अनुभव से कह रही हूं. अपने निजी सुखदुख बांटनेसमझने वाला एक हमउम्र साथी तो सब को चाहिए होता है, बेटी,’ मां उदास आवाज में कहतीं.  माधुरी उस से भी गहरी उदास आवाज में कहती, ‘मेरी जिंदगी में वह साथ लिखा ही नहीं है, मां.’

माधुरी का जवाब सुन कर मां सोच में पड़ जातीं. माधुरी को तो पता ही नहीं था कि उस के मातापिता इस उम्र में उस की शादी फिर से करवाने की सोच रहे हैं. 3 महीने पहले ही उन्हें सुधीर के बारे में पता चला था. सुधीर की उम्र 45 वर्ष थी. 2 वर्ष पूर्व ही ब्रेन ट्यूमर की वजह से उन की पत्नी की मृत्यु हो गई थी. 2 बच्चे 19 वर्ष का बेटा और 15 वर्ष की बेटी है. घर में सुधीर की वृद्ध मां भी है. नौकरचाकरों की मदद से पिछले 2 वर्षों से वह 68 साल की उम्र में जैसेतैसे बेटे की गृहस्थी चला रही थीं.

माधुरी की मां ने सुधीर की मां को माधुरी के बारे में बता कर विवाह का प्रस्ताव रखा. सुधीर की मां ने सहर्ष उसे स्वीकार कर लिया. वयस्क होती बेटी को मां की जरूरत का हवाला दे कर और अपने बुढ़ापे का खयाल करने को उन्होंने सुधीर को विवाह के लिए मना लिया.

2,503 कन्याओं का विवाह ‘कन्या विवाह सहायता योजना’

लखनऊ . उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी आज जनपद कुशीनगर में श्रम विभाग के तत्वावधान में उत्तर प्रदेश भवन एवं अन्य सन्निर्माण कर्मकार कल्याण बोर्ड द्वारा आयोजित सामूहिक विवाह समारोह में 2,503 कन्याओं के विवाह कार्यक्रम में सम्मिलित हुए. गोरखपुर मण्डल से सम्बन्धित जनपदों की इन कन्याओं का विवाह ‘कन्या विवाह सहायता योजना’ के तहत सम्पन्न हुआ. इसमें जनपद कुशीनगर की 654, जनपद गोरखपुर की 817, जनपद महराजगंज की 634 तथा जनपद देवरिया की 398 कन्याएं सम्मिलित हैं. इस समारोह में 138 मुस्लिम तथा 122 बौद्ध जोड़ों का विवाह भी सम्पन्न हुआ. मुख्यमंत्री जी द्वारा 11 नवविवाहित दम्पत्तियों को प्रतीक स्वरूप प्रमाण-पत्र देकर सम्मानित किया गया.

मुख्यमंत्री जी ने सामूहिक विवाह समारोह में परिणय सूत्र में बंधने वाले सभी जोड़ों को सौभाग्यशाली बताते हुए उन्हें हार्दिक बधाई और उनके उज्ज्वल भविष्य के लिए शुभकामनाएं दीं. उन्होंने कहा कि इस आयोजन में मुख्यमंत्री, मंत्रिगण, जनप्रतिनिधिगण एवं अधिकारीगण की उपस्थिति लोकतंत्र की ताकत को दर्शाती है. उन्होंने कार्यक्रम के सफल आयोजन के लिए श्रम एवं सेवायोजन मंत्री श्री स्वामी प्रसाद मौर्य सहित उनके विभाग की पूरी टीम को बधाई देते हुए कहा कि श्रम विभाग ने शासन की योजनाओं का लाभ पात्र व्यक्तियों तक पहुंचाया है.

मुख्यमंत्री जी ने कहा कि भारत की परम्परा में कन्यादान महादान माना गया है. वर्तमान सरकार इस प्रकार के कार्यक्रमों से जुड़ रही है. उन्होंने कहा कि सामूहिक विवाह कार्यक्रम में जाति, मत, मजहब, क्षेत्र तथा भाषा का कोई भेदभाव नहीं किया गया है. सभी पात्र लोगों को इस योजना का लाभ दिया जा रहा है. वर्ष 2017 के पहले भी श्रम विभाग था, लेकिन तब शासन की योजनाओं का लाभ गरीबों, मजदूरों, किसानों, युवाओं तथा महिलाओं को नहीं मिल पाता था. वर्तमान सरकार के गठन के बाद प्रत्येक जरूरतमन्द को शासन की योजनाओं का लाभ दिया जा रहा है. बाबा साहब डॉ0 भीमराव आंबेडकर ने जो संविधान दिया, उसमें सभी के लिए समान अधिकार की व्यवस्था की गयी है. केन्द्र और प्रदेश सरकार इसी समान अधिकार के तहत बिना भेदभाव समाज के अन्तिम व्यक्ति तक योजनाओं का लाभ पहुंचा रही है. शौचालय, प्रधानमंत्री आवास योजना, मुख्यमंत्री आवास योजना, निःशुल्क विद्युत कनेक्शन, 05 लाख रुपये की आयुष्मान भारत योजना तथा मुख्यमंत्री जन आरोग्य योजना का लाभ प्रत्येक पात्र व्यक्ति को बिना भेदभाव के दिया जा रहा है. केन्द्र व राज्य सरकार द्वारा संचालित जनकल्याणकारी योजनाएं व्यवस्थित रूप में आगे बढ़ रही हैं. किसानों को शासन की योजनाओं का पूरा लाभ दिया जा रहा है.

मुख्यमंत्री जी ने कहा कि सरकार के प्रयास से 43 लाख गरीबों को आवास उपलब्ध कराये गये हैं. 02 करोड़ 61 लाख शौचालय, 01 करोड़ 40 लाख गरीबों को निःशुल्क विद्युत कनेक्शन, 01 करोड़ 56 लाख निःशुल्क रसोई गैस, 90 लाख लोगों को निराश्रित महिला पेंशन, वृद्धावस्था पेंशन तथा दिव्यांगजन पेंशन का लाभ दिया जा रहा है. 02 करोड़ 54 लाख किसानों को प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि प्रदान की गयी है. यह सब तब सम्भव हुआ है, जब अपने-पराये का भेदभाव समाप्त हुआ. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री जी के मंत्र ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास’ जब एक साथ मिलते हैं, तो सकारात्मक परिणाम प्राप्त होते हैं. सामूहिक विवाह का कार्यक्रम इसी का प्रतिफल है. सामूहिक विवाह के दो लाभ होते हैं. इससे बाल विवाह और दहेज प्रथा दोनों पर अंकुश लगता है. उन्होंने कहा कि आज गांव की बेटी सबकी बेटी का भाव देखने को मिलता है.

मुख्यमंत्री जी ने कहा कि कोरोना के कारण कई देशों में जन-जीवन अस्त-व्यस्त हो गया, लेकिन प्रधानमंत्री जी के कुशल मार्गदर्शन में उत्तर प्रदेश सहित भारत में कोरोना के सफल प्रबन्धन की मिसाल पूरी दुनिया ने देखी. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री जी ने देश में कोरोना की निःशुल्क जांच तथा उपचार की व्यवस्था के साथ ही सभी को निःशुल्क वैक्सीन भी उपलब्ध करायी है. आज भारत में लगभग 125 करोड़ कोरोना वैक्सीन की डोज दी जा चुकी है. उत्तर प्रदेश में भी अब तक 16 करोड़ से अधिक कोरोना वैक्सीन की डोज दी जा चुकी है. उन्होंने कहा कि कोरोना के कारण जब लॉकडाउन जारी हुआ था, तब उत्तर प्रदेश देश की पहली सरकार थी, जिसने 54 लाख गरीबों, श्रमिकों तथा मजदूरों के लिए भरण-पोषण भत्ते की व्यवस्था की थी. सरकार ने निःशुल्क खाद्यान्न वितरण भी प्रारम्भ किया, जो अनवरत जारी है.

मुख्यमंत्री जी ने कहा कि प्रदेश में प्रत्येक गरीब को प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के माध्यम से निःशुल्क खाद्यान्न प्रदान किया जा रहा है. इसके तहत  अन्त्योदय कार्डधारकों को 35 किलो निःशुल्क खाद्यान्न तथा पात्र गृहस्थी कार्डधारकों को प्रति यूनिट 05 किलो निःशुल्क खाद्यान्न प्रदान किया जा रहा है. साथ ही, राज्य सरकार द्वारा भी अन्त्योदय कार्डधारकों को 35 किलो निःशुल्क खाद्यान्न के साथ 01 किलो दाल, 01 लीटर खाद्य तेल, 01 किलो चीनी, 01 किलो नमक प्रदान किया जा रहा है. इसी प्रकार पात्र गृहस्थी कार्डधारकों को प्रति यूनिट 05 किलो निःशुल्क खाद्यान्न के साथ 01 किलो दाल, 01 लीटर खाद्य तेल, 01 किलो नमक भी प्रदान किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि सरकार ने नेशनल पोर्टेबिलिटी सिस्टम लागू किया है, जिससे श्रमिक कहीं भी अपना राशन प्राप्त कर सकता है.

मुख्यमंत्री जी ने कहा कि श्रमिक राष्ट्र का निर्माता है. इसके श्रम, परिश्रम तथा पुरुषार्थ से राष्ट्र की नींव पड़ती है. श्रमिक जितना मजबूत होगा, देश भी उतना मजबूत होगा. श्रमिक रोजगार के लिए विभिन्न राज्यों अथवा जनपदों में भ्रमण करता है. इसके दृष्टिगत प्रदेश सरकार द्वारा श्रमिकों के बच्चों के लिए आधुनिक सुविधाओं से युक्त अटल आवासीय विद्यालयों की स्थापना करायी जा रही है. इन विद्यालयों के माध्यम से श्रमिकों के बच्चों को बेहतर शिक्षा मिल सकेगी, जिससे इनके बच्चे भी महत्वपूर्ण पदों पर अपनी सेवाएं दे सकेंगे. उन्होंने कहा कि प्रदेश सरकार ने श्रमिकों के हितों में निर्णय लिया है कि कोई भी श्रमिक प्रवासी हो अथवा निवासी हो, उसे 02 लाख रुपये की सामाजिक सुरक्षा की गारण्टी तथा 05 लाख रुपये तक का स्वास्थ्य बीमा कवर प्रदान किया जाएगा.

मुख्यमंत्री जी ने कहा कि प्रधानमंत्री जी ने अभी विगत दिनों जनपद कुशीनगर में अन्तर्राष्ट्रीय एयरपोर्ट का उद्घाटन किया है. इस एयरपोर्ट में वायु सेवाएं प्रारम्भ हो चुकी हैं. इसके अलावा, जनपद में एक मेडिकल कॉलेज भी बनने जा रहा है, जिससे कुशीनगरवासियों को बेहतर चिकित्सीय सुविधाएं उपलब्ध होंगी. यह मेडिकल कॉलेज जनपद कुशीनगर की शान का प्रतीक होगा.

सामूहिक विवाह के इस कार्यक्रम में प्रत्येक वर-वधू द्वारा मास्क के प्रयोग पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए मुख्यमंत्री जी ने कहा कि कोरोना से बचाव के लिए आवश्यक है कि कोविड प्रोटोकॉल का पालन किया जाए. उन्होंने कहा कि कोरोना दुनिया के कई देशों में कहर ढा रहा है. प्रधानमंत्री जी के मार्गदर्शन में देश और प्रदेश ने कोरोना पर सफल नियंत्रण पा लिया, लेकिन दुनिया में संक्रमण के नये दौर को लेकर हमें सतर्कता पर पूरा ध्यान देना होगा. इसलिए ‘दो गज की दूरी मास्क है जरूरी’ मंत्र का अनुसरण करते हुए यह भी आवश्यक है कि सभी लोग समय से कोरोना वैक्सीन की दोनों डोज अवश्य लें. निःशुल्क वैक्सीन के प्रति लोगों को जागरूक करें. जिन लोगों ने अब तक वैक्सीन नहीं लगवायी है, उन्हें वैक्सीन लगवाने के लिए प्रेरित करें, क्योंकि वैक्सीन ही कोरोना से बचाव का एक महत्वपूर्ण साधन है.

श्रम एवं सेवायोजन मंत्री श्री स्वामी प्रसाद मौर्य ने कहा कि प्रधानमंत्री जी के मार्गदर्शन तथा मुख्यमंत्री जी के नेतृत्व में बिना भेदभाव के समाज के अन्तिम पायदान पर खड़े व्यक्ति को शासन की योजनाओं का लाभ दिया जा रहा है. श्रमिक अपने कार्य के लिए विभिन्न स्थानों पर जाते रहते हैं. ऐसे में उनके बच्चों की पढ़ाई बाधित न हो, इसके लिए प्रत्येक मण्डल मुख्यालय पर अटल आवासीय विद्यालय की स्थापना की जा रही है.

राज्य सरकार द्वारा इन विद्यालयों में श्रमिकों के बच्चों को निःशुल्क आवासीय शिक्षा सुविधा प्रदान की जाएगी. उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा संचालित योजनाओं के माध्यम से श्रमिकों के जीवन में व्यापक परिवर्तन आया है. प्रदेश सरकार द्वारा श्रमिकों के हितों के दृष्टिगत 18 जनकल्याणकारी योजनाएं संचालित की जा रही हैं.

Bigg Boss 15 : राखी सावंत ने पति के साथ मिलकर लगाई करण कुंद्रा की क्लास, बताया धोखेबाज

बिग बॉस के हर सीजन में कुछ अलग देखने को मिलता है, इस साल बिग बॉस 15 में कई ए चेहरे की एंट्री हुई है, और ये ए चेहरे अलग-अलग विवाद को बढ़ावा भी दे रहे हैं. एक दूसरे के पर्सनल लाइफ पर कमेंट करके लड़ाइयां कर रहे हैं.

रश्मि देसाई, देबोलीना भट्टाचार्जी, अभिजीत बिचकुले , राखी सावंत और राखी के कथित पति रितेश की भी इस शो में एंट्री हो चुकी है. इस शो की टीआरपी बढ़ाने को लेकर कंटेस्टेंट कई तरह के नए-नए तरीके अपना रहे हैं.

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बीते एपिसोड में राखी सावंत और करण कुंद्रा के बीच जमकर बहस हुई. राखी सावंत ने करण कुंद्रा के पर्सनल लाइफ पर सवाल खड़े किए तो वहीं करण कुंद्रा ने भी राखी सावंत को जमकर खरी खोटी सुनाई है.

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एक्ट्रेस ने करण पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि करण ने अपनी एक्स गर्लफ्रेंड को धोखा दिया था, वह तेज से पहले भी कई लड़कियों के साथ रिलेशनशिप में रह चुका है और सभी के साथ उसने धोखा दिया है.

वीकेंड के वार के दौरान राखी और करण की लड़ाई हुई और यह लड़ाई सभी का ध्यान अपनी तरफ खींच लिया है. इस लड़ाई के बाद से सभी लोग कंटेस्टेंट और फैंस को समझ आ गया है कि कौन सही है और कौन गलत है.

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जिसके बाद से राखी सावंत के पति रितेश ने करण कुंद्रा पर गंभीर आरोप लगाए थें. इन दोनों की लड़ाई काफी ज्यादा लंबे वक्त तक चली  थी. बाकी सभी कंटेस्टेंट भी इनकी लड़ाई से हैरान और परेशान हो गए थें.

आलोचना का अधिकार

सुप्रीम कोर्ट ने एक निर्णय में कहा है कि हर बात की आलोचना की जा सकती है, पर आलोचना सकारात्मक होनी चाहिए. यह वाक्य हर वह इंसान बोलता है जो सच को छिपाना चाहता है या झूठ को थोपना चाहता है. यह घरों में भी होता है, दफ्तरों में भी होता है. और सरकार तो करती ही है. अदालतें तो आमतौर पर सरकार की भागीदार होती हैं. हर सरकार किसी न किसी तरह अदालत से मनवा ही लेती है कि वह जो कर रही है वह जनहित में है. और यही सब सास, ससुर, पिता, पंडित, गुरु, समाज के चौधरी करते रहते हैं.

आलोचना का अधिकार का मतलब ही यह है कि जो अच्छा न लगे, उसे स्पष्ट शब्दों में निडर हो कर कह सकें. आलोचना को कोई सुने, उस पर अमल करे, यह लोगों की मरजी है. आलोचना को न मानना हरेक का अधिकार है पर इस अधिकार में आलोचक का मुंह बंद कराने का अधिकार किसी को नहीं है.मुंहफट कंगना रानौत कई महीनों से अनर्गल बातें करती आ रही है, जैसे उसे हर बात का ज्ञान है. उस से विज्ञान, आणविक शक्ति, सेना, ड्रग्स पतिपत्नी संबंधों, इतिहास किसी पर भी बुलवा सकते हो. बहुत लोग इस बात की खार खाए बैठे हैं कि उसे ट्विटर ने आजादी क्यों दी कि वह दूसरों को अपशब्द तक कह सके. ट्विटर ने तंग आ कर उस का अकाउंट सस्पैंड कर दिया तो वह इंस्टाग्राम पर बकबक करती है. उस पर, हालांकि, अब भावनाओं को ठेस पहुंचाने के मुकदमे होने लगे हैं.

यह सही भी हो सकता है कि कंगना जो कहती है वह बेतुका, झूठा और बेबुनियाद हो, पर जब तक वह अपने अकाउंट में कहती है और पढऩे वालों को छूट होती है कि वे उस के अकाउंट को फौलो न करें, यह आलोचना प्राइवेट ही कही व मानी जाएगी. यह आलोचना उस के अपने फौलोअर्स के बीच में है, सो, यह गलत नहीं है. इस आलोचना का मुंहतोड़ उत्तर लोग अपने मंचों से दे सकते हैं पर इस बकवास को बंद करने का हठ नहीं पाल सकते.

धर्म और राजा हमेशा अपने विरोधियों के हाथ पैर बांधते रहे हैं और मुंह भी. धर्म को हमेशा डर रहता है कि कहीं कोई सच न बोल दे. बाइबिल की कथाओं में एडम और इव से केन व एबल उत्पन्न हुए. तब वे 4 प्राणी इस जगत में थे. फिर केन ने एबल को किसी कारण मार दिया- ईश्वर की मौजूदगी में. तब 3 रह गए. फिर ईश्वर ने कहा कि केन दूसरी जगह जा कर रहे और विवाह कर के प्राणियों की उत्पत्ति करे. उस ने ऐसा ही किया. इस कहानी को सुनने में चाहे रोमांच हो क्योंकि इस में एडम और इव का चमत्कार है, शैतान का अजीब रूप धारण कर सेब लाना है, केन और एबल का भाईचारा है, विवाद है, रोमांच है, रहस्य है. अब इसे तर्क की दृष्टि से देखें तो सब नकारात्मक आलोचना होगी. कोई सुजीता कहेगी, ‘इस पर चुप ही रहो.’ पर क्यों भला?

अगर कोई अपने हाथ से लिख कर इस की किताब छपवाना है और कुछ लोग बाइबिल की इस कहानी की तर्कहीनता को जानना चाहते हैं तो इस पर आपत्ति क्यों हो? यह तो सामाजिक हक है जो हरेक को मिला है, मिला होना चाहिए भी. आलोचना के हक का मतलब ही यह है कि बाहर खड़े हो कर विसंगतियां बताने का हक. यह कहने का हक कि आप जो कर रहे हैं वह समाज व आप के हित के लिए नहीं है. दूसरों को गलत करने से रोकने का कोई हक नहीं है किसी के पास. धर्म के झूठ के प्रचार को जबरन रोकने का हक भी किसी के पास नहीं है. पर धर्म हो या सरकार या कोई रिया चक्रवर्ती, उस के बारे में और तर्क पेश करने कहने का हक है, चाहे वह सकारात्मक लगे या नकारात्मक.

मुक्ति- भाग 4 : श्यामसुंदर को किस बात की पीड़ा थी

श्यामसुंदर जी को अपनी ओर देखता देख बोल पड़ा, “मुझे धर्मशाला वाले शास्त्रीजी ने आप के पास भेजा है आप का हाल पूछने के लिए.”क..क्या नाम है तुम्हारा?” श्यामसुंदर जी ने कांपती आवाज में पूछा.”जी..चंदु, सभी मुझे चंदु  कह कर बुलाते हैं,” दूध के गिलास को बैड से सटे टेबल पर रखते हुए उस ने जवाब दिया.

“वैसे, मेरा नाम चंद्रशेखर है,” लड़के ने शालीनतापूर्वक कहा.”पहले कभी देखा नहीं, नए लगते हो,” श्यामसुंदर जी ने उत्सुकतावश पूछा. “जी, मैं अनाथ हूं. मेरे दूर के एक चाचा  मुझे शास्त्रीजी के पास धर्मशाला में छोड़ गए,” लड़के ने जवाब दिया.

श्यामसुंदर जी को उस अनाथ लड़के से एक जुड़ाव सा होने लगा था. अब तो रोज ही चंदु उन के पास आने लगा था. खूब सारी इधरउधर की बातें करता, उन की सेवा करता. धीरेधीरे श्यामसुंदर जी खुद को पहले से स्वस्थ महसूस करने लगे थे.

परंतु अचानक इधर कुछ दिनों से चंदु का आनाजाना बिल्कुल बंद हो  गया था. परंतु श्यामसुंदर जी को उस अनाथ लड़के चंदु की आदत सी हो गई थी और फिर इस तरह उस का अचानक ही आना बंद हो जाने से उस लड़के के प्रति उन के मन में चिंता उत्पन्न हो रही थी.

परंतु अभी भी उन के स्वास्थ्य में पूरी तरह से सुधार नहीं हुआ था. परंतु उस लड़के के प्रति उन के मन में जो प्रेम था और  जिस जुडाव को वे उस के प्रति महसूस करने लगे थे, उस ने उन के बीमार शरीर को भी बिस्तर से उठने पर मजबूर कर दिया. वे किसी प्रकार खुद को संभालते हुए घर से निकल कर लड़खड़ाते कदमों के साथ उस अनाथ लड़के चंदु का हाल जानने के लिए धर्मशाला पहुंच गए. धर्मशाला पहुंचते ही उन की नजर चंदु पर पड़ती है.

चंदु उस वक्त धर्मशाला में कमरों की सफाई में व्यस्त था और वह श्यामसुंदर जी को देख कर भी अनदेखा कर देता है. उन के आवाज देने पर भी उन के पास नहीं आता और कमरे की सफाई में व्यस्त रहता है. तभी किसी की अंदर से आवाज आती है,  “अरे, ओ सूअर की औलाद, इधर आ. ठंडी चाय रख कर गया है कमीना कहीं का.”

आवाज सुनते ही चंदु भागता हुआ अंदर के उस कमरे में पहुंच गया. चंदु जैसे ही उस व्यक्ति के सामने पहुंचा, उस व्यक्ति ने पूरी की पूरी चाय उस के चेहरे पर फेंक दी और चीखते हुए कहा, “सारे दिन इधर से उधर घूमता रहता है कामचोर कहीं का. तेरे  चाचा ने अपनी मुसीबत मेरे  सिर छोड़ दी है. जितने का अनाज खा जाता है उतना  तो इस धर्मशाला के खर्चे में भी नहीं आता है. सारे वक्त बस पेट में अनाज ठूंसते रहता है. भुखर कहीं का. जा, जा कर गरम चाय ले कर आ,” शास्त्रीजी उस मासूम पर जोरजोर से चिल्लाए जा रहे थे और वह अनाथ, गरम चाय के चेहरे पर पड़ने से  जो फफोले  निकल आए थे उस की पीड़ा से छटपटाता हुआ कराहे जा रहा था.

उस की चीखें सुन कर श्यामसुंदर जी दौड़ते हुए कमरे में पहुंच गए. ये वही शास्त्रीजी थे जो कुछ दिनों पहले कर्मफल का उपदेश सुना कर दान, पुण्य एवं मुक्ति के मार्ग का ज्ञान  श्यामसुंदर जी को पिला कर आए थे. श्यामसुंदर जी ने चिल्लाते हुए कहा, “यह कैसा  अमानवीय व्यवहार है? आप इस मासूम के साथ ऐसा क्रूर व्यवहार कैसे कर सकते हैं?”

शास्त्रीजी ने अपनी नीचता का परिचय देते हुए बड़े ही कठोर स्वर में उत्तर दिया, “मैं ने इस हरामखोर को रहने के लिए छत दी हुई है, खाने के लिए रोटी देता हूं और बदले में इस कामचोर से एक काम भी ढंग से नहीं होता. इस का चाचा  इसे यहां मेरे पास धर्मशाला में छोड़ गया था. कैसी फटी हालत थी तबी इस की. खाने बगैर पेट पीठ में धंसा जाता था. बदन पर एक कपड़ा तक न था. मैं ने इस एहसानफरामोश को इस पर तरस खा कर यहां रहने दिया. खाना दिया, कपड़े दिए. जहां इसे इतना सबकुछ मिल रहा है  वहां बदले में यह थोड़ा सा काम करता भी है तो कौन सा गुनाह हो गया. लेकिन इस से कोई भी काम ढंग से  नहीं होता, सारे दिन मुफ्त की रोटियां तोड़ता रहता है. अरे, भलाई का तो जमाना ही नहीं रहा.”

“कौन से जमाने में जी रहे हैं शास्त्रीजी आप? आप इस मासूम पर अत्याचार कर रहे हैं और उसे भलाई का नाम भी दे रहे हैं. क्या आप को इस पर जरा सी भी दया नहीं आती? मैं तो आप को बड़ा धर्मात्मा समझता था,” श्यामसुंदर जी ने घृणाभरी दृष्टि से शास्त्रीजी की तरफ देखते हुए कहा.

“दया… अरे आप को इतनी ही दया इस पर आ रही है तो आप इसे अपने साथ ले जाइए परंतु हां,  जितने खर्चे  मैं ने इस के पहननेखाने पर किए हैं उस के सारे हिसाब  चुकाने के बाद,” शास्त्रीजी ने नीचता की सारी हदें पार करते हुए कहा.

“अरे, मैं चाहूं तो इस मासूम पर अत्याचार करने के जुर्म में अभी आप को पुलिस के हवाले करवा दूं. आप जैसे नीच और पाखंडी से और अपेक्षा भी क्या की जा सकती है. अच्छा है आज आप का असली चरित्र देखने को मिल गया. इस अनाथ के यहां रहनेखाने पर आप के जो भी खर्चे हुए हैं वह सब चुकता कर दूंगा.  परंतु आज से दान   के नाम पर आप के धर्मशाला को फूटी कौड़ी नहीं मिलेगी. मेरी जो भी जमीनजायदाद है वह सभीकुछ मैं अपने मृत बेटे की बहू के नाम कर दूंगा. भले ही वह मेरे पास आ कर न रहे या वह चाहे तो दूसरी शादी कर ले. परंतु मेरी सारी संपत्ति अब मैं उसी के नाम कर दूंगा. और हां, मैं  चंदु को अपने साथ लिए जा रहा हूं,” इतना कह कर श्यामसुंदर जी चंदु को अपने साथ  ले कर वहां से निकल पड़ते हैं.

घर पहुंचने पर श्यामसुंदर जी अपनी बहू और अपने समधी को घर पर उन की प्रतीक्षा में बैठे हुए  पाते हैं. उन के आने का कारण पूछने पर समधीजी उन के आगे हाथ जोड़ते हुए बोलते हैं, “अपने किए पर बहुत शर्मिंदा हूं.  मैं नहीं चाहते हुए भी अपनी पत्नी की जिद पर अपनी बेटी को यहां से विदा करा कर ले गया. परंतु जैसे ही आप की तबीयत का पता चला, इस ने आप से मिलने की जिद पकड़ ली थी. मैं उस वक्त शहर में था नहीं.  जैसे ही पहुंचा हूं, इसे अपने साथ ले कर यहां आ गया.” समधीजी ने बड़ी ही विनम्रता से यह बात कही.

“अब आप की तबीयत कैसी है, पापा?” बहू नंदा ने रोंआसे स्वर  में पूछा. “मैं अब बिलकुल ठीक हूं.  चंदु के रूप में मुझे जीने का एक नया मकसद जो मिल गया है और फिर श्यामसुंदर जी ने चंदु की  ओर इशारा करते हुए उस के विषय में  सारी बातें बताईं और फिर जैसे उन्हें  कुछ याद आ गया हो, एकदम से उठ कर अपने कमरे में चले जाते हैं और फिर कुछ देर बाद कमरे से बाहर निकल कर आते है तो उन के हाथों में  जमीन जायदाद के कागजात होते हैं, जिन्हें वे अपनी बहू को सौंपना चाहते हैं.

परंतु नंदा उन्हें लेने से मना करते हुए कहती है, “पापा, मुझ में इतनी सामर्थ्य है कि मैं अपने पैरों पर खड़ी हो सकूं. आप इसे अपने पास  रखिए और इसे चंदु की शिक्षादीक्षा में खर्च कीजिए. परंतु हां, मैं आप से मिलने आप का हालचाल पूछने जहां भी रहूंगी वहां से अकसर आती रहूंगी.”चंदु के रूप में मानो जैसे उन्हें उन का बेटा प्रवीण मिल गया था. उन्हें जीने का एक नया बहाना मिल गया था. बेटे को खो कर जिस मानसिक पीड़ा, कष्ट से वे ग्रसित हो चुके थे, जिंदा रहने की जिस इच्छा  को पूरी तरह से खो चुके थे,  इस अनजान रिश्ते के बंधन ने  उन्हें अब उस मानसिक पीड़ा एवं कष्ट से मुक्ति दिला दी थी. चंदु के रूप में उन्हें जीवन को जीने का एक नया उद्देश्य मिल गया था.

4 महीने पहले मैंने एक सपना देखा था कि मुझे एक लड़का बहुत प्यार करता है,उस दिन के बाद मैं उसी लड़के की तलाश में हूं, क्या करूं?

सवाल
मैं कुछ दिनों से बहुत परेशान हूं क्योंकि 4 महीने पहले मैं ने एक सपना देखा था कि मुझे एक लड़का बहुत प्यार करता है और वह मेरे साथ वफादार भी रहेगा. उस दिन के बाद मैं उसी लड़के की तलाश में हूं. जहां जाती हूं, मेरी नजरें उसी को तलाशती हैं. मैं हर वक्त उसी के बारे में सोचती रहती हूं. जब भी कालेज जाती हूं बस, मेरी आंखें उसी को ढूंढ़ती रहती हैं. अब तो हालत यह है कि न खाने का मन करता है और न ही पढ़ाई में मन लगता है. क्या करूं, कृपया मुझे राय दें?

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जवाब
देखिए, आप की बातों से ऐसा लग रहा है जैसे आप सपनों की दुनिया में जीना पसंद करती हैं. तभी तो सपने पर इतना अधिक विश्वास कर बैठी हैं कि अपना सुखचैन ही खो दिया है.

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आप इस कदर उस में खो बैठी हैं कि हरदम उसी के बारे में सोचती रहती हैं. आप ही सोचिए जिसे कभी आप ने देखा ही नहीं है उसे ढूंढ़ने और उस के बारे में हरदम सोचने का क्या औचित्य. सब्र करें जब वक्त आएगा तब आप को चाहने वाला खुद ही मिल जाएगा, फिर जीभर कर उस से बातें करिएगा, उसे प्यार करिएगा.

लेकिन अभी वास्तविकता में जीते हुए अपने कैरियर पर फोकस करिए जिस से आप का ध्यान उस ओर से हटेगा और आप खुद को काफी रिलैक्स फील कर पाएंगी.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem

सपनों का घरौंदा : भाग 5

कुछ ही दिनों में रिटायरमेंट था. अब उन्हें इस बात की तसल्ली थी कि देरसवेरे जब भी होगा कम से कम अपनी आंखों के सामने अपना घर बना पाएंगे पत्नी बोली, “सुनिए, एक दिन अपना प्लाट देख कर आते हैं. महीनों बीत गए हैं उस तरफ गए हुए.”

सुरेश बाबू ने हामी भर दी. एक सुबह दोनों चल दिए. वहां जा कर देखते हैं कि तमाम निर्माण कार्य हो चुके हैं. उन के प्लाट के पीछे की तरफ ही एक बहुत विशालकाय भवन बन चुका था. उन के पीछे की ओर एक साइड की बाउंड्री कहीं नजर नहीं आ रही थी. वहां पर जमी घासमिट्टी को हाथों से इधरउधर कर के देखा, परंतु पीछे की साइड की बाउंड्री बिलकुल ही नजर नहीं आ रही थी.

एक और विपत्ति सुरेश बाबू के धैर्य का इम्तिहान ले रही थी. प्लाट के पीछे की साइड में जो मकान बना था, उस ने अपना मकान सीधा करने के लिए सुरेश बाबू की जमीन का एक बड़ा हिस्सा दबा लिया था. पहले ही कुल डेढ़ सौ गज जमीन… उस के भी एक हिस्से में कब्जा. पता करने पर मालूम हुआ कि किसी पैसे वाले एनआरआई का मकान बन रहा है. आसपड़ोस के लोगों ने तो साफ कह दिया कि कोर्टकचहरी के चक्कर लगाते रहोगे और आप का पैसा भी खर्च होगा, लेकिन पैसे के बल पर एनआरआई केस जीत जाएगा.

सुरेश बाबू तो वहीं सिर पकड़ कर बैठ गए. पत्नी जया को भी लगा कि वह गश खा कर गिर जाएगी. अपने को संयत करते हुए सुरेश बाबू बोले, “कुछ भी हो, मैं अपनी जमीन वापस ले कर रहूंगा.” हालांकि मन ही मन वह भी जान चुके थे कि कितना मुश्किल है यह सब. बस खुद को झूठी तसल्ली देने के लिए ही ऐसा कह रहे थे.

उस मकान में अभी भी कुछ कंस्ट्रक्शन चल रहा था. मजदूरों को बुलवा कर पूछा गया, परंतु वे तो मजदूर थे. सटीक जानकारी नहीं दे पाए. मालिक या ठेकेदार का नंबर भी उन के पास नहीं था. ‘अब क्या फिर से वकील की शरण में जाना होगा?’  यह सोच कर सुरेश बाबू को दिन में ही तारे नजर आने लगे.

अपने पुराने वाले वकील को फोन मिलाया. वह जैसा भी था ढीलाढाला ही सही, परंतु उस की फीस तो अग्रवाल से कुछ कम ही थी ना. उस ने तुरंत फोन उठा भी लिया और मिलने की बात कही. पर समय पर सुरेश बाबू अपने पुराने वकील से मिलने पहुंचे. उस ने बताया कि सैमुअल संपत्ति का बंटवारा स्पष्ट रूप से नहीं कर के गया था, इसलिए यह केस अब काफी पेचीदा हो गया है. क्योंकि दूसरे खरीदार ने वह भूमि राबर्ट से खरीदी है और उस के पास सारे कागज भी मौजूद हैं. उस ने यह भी बताया कि केस सुलझ तो जाएगा, लेकिन लंबा समय लगेगा. कानूनी कार्यवाही में जो पैसा लगता है, वह अलग.

विकलता और निरीहता की प्रतिमूर्ति बन गए थे मास्साब अब. अपनी पाईपाई कर के जोड़ी गई रकम को इस तरह से लुटता देख कर कोई भी इनसान गम के समंदर में डूब जाएगा.सुरेश बाबू के रिटायरमेंट का दिन था. स्कूल में विदाई समारोह का कार्यक्रम रखा था और जलपान का आयोजन था. स्टाफ के कुछ लोगों ने सुरेश बाबू की तारीफ में कसीदे पढ़े. अंत में सुरेश बाबू से भी दो शब्द बोलने की गुजारिश की गई, लेकिन कुछ बोलने के बजाए फूटफूट कर रो पड़े. उन का दर्द वहां पर हर कोई समझ सकता था, क्योंकि रिटायरमेंट उन के लिए खुशी की वजह नहीं था. दोनों बच्चे जो नौकरी में नहीं थे, उम्रभर की कमाई का बड़ा हिस्सा प्लाट लेने में खर्च कर चुके थे और उस के बाद न जाने कितने हजार रुपए वकील की फीस के चक्कर में. हालांकि वे बहुत ही मितभाषी व्यक्ति थे, अपना दुखदर्द या परेशानी कभी भी सामूहिक रूप से लोगों में साझा नहीं करते थे, लेकिन यह स्टाफ ही तो आखिर उन का सबकुछ था. घर से बाहर इस शहर में हर दुखपरेशानी में इन्हीं लोगों ने तो साथ दिया, सहारा दिया. सभी की स्थिति कमोबेश एक सी ही थी, क्योंकि यह तो पूरे मध्यम वर्ग की कहानी है, वो पिसता ही रहता है. कभी टैक्स की मार तो कभी महंगाई की मार. न तो वह अमीर की तरह जी पाता है और न ही गरीब की तरह मर पाता है. यही आम आदमी की व्यथा है.

लौटते समय गुप्ताजी की दुकान से कुछ सामान लेना था. गुप्ताजी ने उन्हें रिटायरमेंट की बधाई दी और हंस कर बोले, “सुरेश बाबू, अब तो समय ही समय है कोर्टकचहरी के मामलों से निबटने के लिए.”गुप्ताजी की बात सुन कर सुरेश बाबू को लगा कि मानो किसी बिच्छू ने उन्हें डंक मार दिया हो.

हाथों में फूल का गुलदस्ता और साथियों के द्वारा दिया गया शाल और जीवनपर्यंत उत्तम अध्यापन के लिए प्रशस्तिपत्र ले कर थकेहारे से घर पहुंचे. हाथ का सामान टेबल पर रखा. देखा कि पत्नी जया आरती की थाली ले कर प्रतीक्षा में खड़ी है.

आज मास्साब झूठमूठ में जया का दिल नहीं रखना चाहते थे. बोले, “जया, अगले महीने तक अपने गांव चलने की तैयारी करना. जैसा भी है, टूटाफूटा है, है तो अपना ही घर. वहीं रह लेंगे, क्योंकि कोर्टकचहरी के चक्कर और वकीलों की फीस ने तो मुझे कंगाल बना दिया है. अभी तुम्हें घर बना कर देने की हिम्मत नहीं है मेरी. तुम ने जीवनभर मेरा साथ दिया है. अब उम्र के इस पड़ाव में भी मेरा साथ दोगी ना…? मैं तुम्हें घर नहीं दे सका, इस बात के लिए मुझे माफ करोगी. मैं तुम से हमेशा यही कहता रहा कि मैं हारा नहीं हूं. सारा मामला सुलझा लूंगा, लेकिन सच यह है कि अंदर से टूट चुका हूं मैं.”

देखते हैं कि टेबल पर पड़ा  प्रशस्तिपत्र उन्हें मुंह चिढ़ा रहा था और गुलदस्ते के फूल भी मुरझा चुके थे. सच ही कहा गया है कि न्याय में देरी होना न्याय से वंचित करना है.

जीवनसंगिनी : भाग 3

समय  अपनी  गति से भाग रहा था. अवनी और मंयक युवावस्था में प्रवेश कर चुके थे. पूरे 7 वर्षों बाद पराग आज घर वापस लौट रहा था. मां और बाबूजी की खुशी का ठिकाना न था. अवनी भी अपने पिता से मिलने के लिए उतावली थी. लेकिन पवित्रा के चेहरे पर उत्साह और खुशी की जगह अनगिनत सवालों की छाप थी.

पिता के इंतजार में बैठी अवनी दरवाजे की घंटी बजते ही झट से उठ कर दरवाजा खोलने के लिए भागने ही वाली थी कि पवित्रा ने उसे रोक लिया और कहा, “तुम अपने कमरे में जाओ और जब तक मैं न बुलाऊं, तुम और मंयक बाहर मत आना.” पवित्रा के इस बरताव से मां और बाबूजी को आने वाले किसी तूफान की आशंका हो रही थी. पवित्रा ने जा कर दरवाजा खोला तो सामने पराग को खड़ा देख उस की आंखों में गुस्से का उबाल आ गया था, पर उस ने खुद को संभाल लिया था.

पराग ने उसे देखते ही अपनी बांहें फैला ली थीं जिसे पवित्रा ने जानबूझ कर अनदेखा कर दिया था. पवित्रा दरवाजा खोल कर अंदर आ गई थी. पराग अपना सामान ले कर अंदर आया तो मां और बाबूजी उठ खड़े हुए. इतने सालों बाद बेटे से मिलने की खुशी आंसू बन कर उन की आंखों से बह रही थी. मांबाबूजी से मिलने के बाद पराग ने पवित्रा से पूछा, “अवनी कहीं नजर नहीं आ रही, तुम ने उसे बताया नहीं कि मैं आज आने वाला हूं. कहां चली गई वह?”

पवित्रा ने कहा, “वह अपने कमरे में है.” पराग अवनी से मिलने के लिए उस के कमरे की ओर बढ़ा ही था कि  पवित्रा ने उस से कहा, “रुक जाइए, पहले मुझे आप से कुछ बात करनी है.” पराग ने कहा, “ऐसी कौन सी जरूरी बात है जिस के लिए तुम मुझे अपनी बेटी से मिलने से रोक रही हो?’

पवित्रा ने कहा, “आप के लिए तो 7 साल पहले भी यह बात जरूरी नहीं थी, इसलिए तो अपनी गलतियों से मुंह छिपा कर भाग गए थे…” मांजी ने पवित्रा को चिल्लाते हुए कहा, “बहू, इतने साल बाद तेरा पति घर लौटा है, यह क्या तरीका है उस से बात करने का?”

पवित्रा ने कहा, “फिर आप ही पूछिए, अपने बेटे से आखिर ऐसी कौन सी  वजह थी कि इन्हें अपने औफिस में सिफारिश कर के, घूस दे कर विदेश जाने का अवसर हासिल करना पड़ा?“कौन सा प्रोजैक्ट 7 वर्षों तक चलता है?“क्यों इन सात वर्षों में ये एक बार भी हम से मिलने नहीं आए?“पूछिए मांजी.

“बाबूजी, आप पूछिए, शायद आप को सच बता दे आप का आदर्श बेटा.” पवित्रा ने आज सारी मर्यादा को किनारे कर दिया था. उस ने मांबाबूजी से कहा, “आप का बेटा अपनी काबीलियत पर विदेश नहीं गया था. अपनी गलती से पीछा छुड़ाने के लिए गया था, और उस गलती का नाम है शालिनी.”

पवित्रा ने मांजी से कहा, “उस दिन जो फोन आया था और मैं आप लोगों को बिना कुछ बताए घर से चली गई थी वह शालिनी का ही फोन था. अस्पताल में कैंसर जैसी गंभीर  बीमारी से जूझ रही थी वह. अपने बेटे की फिक्र ने उसे मजबूर कर दिया था मुझे फोन कर के बुलाने के लिए. मरने के पहले उस ने पराग और अपने  रिश्ते की सारी सचाई मुझे बता कर मुझ से माफी मांगी और उसी ने मुझे बताया कि कैसे पराग ने अपने औफिस के एक सहयोगी को मिलने वाला विदेश जाने का अवसर पैसे खिला कर अपने नाम करवा लिया था. मेरे सामने गिड़गिड़ाते हुए उस ने अपनी आखिरी इच्छा रखी थी कि  मंयक को उस के पिता का नाम और साथ मिल जाए.

मंयक  मेरी किसी सहेली का बेटा नहीं है, वह पराग और शालिनी के रिश्ते की निशानी है. “आपको याद है मांजी, मंयक को पहली बार देख कर आप ने क्या कहा था. मंयक को देख कर आप को पराग का बचपन याद आ गया. आप के वो शब्द हर पल मेरे कानों में गूंजते रहते थे.  पिछले 7 वर्षों से जिस दर्द और पीड़ा से मैं गुजरी हूं, उस की चुभन सिर्फ मैं ने महसूस की है. मैं खुद जलती रही पर आप के और बाबूजी की नजरों में मैं ने पराग को गिरने नहीं दिया. अवनी के लिए उस के पिता का मानसम्मान कम नहीं होने दिया.”

 

मां और बाबूजी यह सब सुन कर पवित्रा के दर्द को महसूस करने की कोशिश कर रहे थे.पराग एक अपराधी की तरह निशब्द हो कर पवित्रा के साम ने बेबस खड़ा था. पवित्रा अवनी और मंयक को उन के पिता से मिलवाने के लिए बुलाने जा रही थी और सोच रही थी कि शादी के बाद विदाई के वक्त  मां ने यह तो समझाया था कि जीवनसंगिनी का सफर बहुत कठिन होता है पर यह बताना भूल गई कि इस सफर में  धोखे भी मिलेंगे और जहर के घूंट भी पीने पड़ेंगे.

चक्कर हारमोंस का

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