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जीवनसंगिनी
पिता के इंतजार में बैठी अवनी दरवाजे की घंटी बजते ही झट से उठ कर दरवाजा खोलने के लिए भागने ही वाली थी कि पवित्रा ने उसे रोक लिया और कहा, “तुम अपने कमरे में जाओ और जब तक मैं न बुलाऊं, तुम और मंयक बाहर मत आना.
भाग - 1
शालिनी की बातों से पराग का गुस्सा और तेज हो गया था. विदेश जाने की बात वह खुद अपने परिवार को देना चाहता था. घर में सब का मुंह मीठा करवा कर वह यह खुशखबरी देगा.
भाग - 2
मांबाबूजी मन ही मन सोच कर खुश हो रहे थे कि आज के जमाने में पवित्रा के जैसी बहू मिलना उन के किसी अच्छे काम का ही फल होगा.
भाग - 3
मंयक मेरी किसी सहेली का बेटा नहीं है, वह पराग और शालिनी के रिश्ते की निशानी है. “आपको याद है मांजी, मंयक को पहली बार देख कर आप ने क्या कहा था.
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