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सिसकी- भाग 3: रानू और उसके बीच कैसा रिश्ता था

Writer- कुशलेंद्र श्रीवास्तव

सच में तुम आ जाओगी मुन्नीबाई?’ रीना को विश्वास नहीं हो रहा था.

‘हां, मैं अभी आ जाती हूं. आप चिंता न करें,’ मुन्नीबाई के स्वर में दृढ़ता थी.

‘पर मुन्नीबाई, मालूम नहीं मुझे कब तक अस्पताल में रहना पड़े.’

‘मैं रह जाऊंगी, आप साहब का इलाज करा लें.’

‘मैं तुम्हारा एहसान कभी नहीं भूलूंगी, मुन्नीबाई,’ रीना की आवाज में कृतज्ञता थी.

‘इस में एहसान की क्या बात, बाईसाहिबा. हम लोग एकदूसरे की मदद नहीं करेंगे तो हम इंसान कहलाने लायक भी नहीं होगे,’ मुन्नीबाई के स्वर में अपनत्व झलक रहा था.

रीना के निकलने के पहले ही मुन्नीबाई आ गई थी. मुन्नीबाई के आ जाने से उस की एक चिंता तो दूर हो गई थी.

सहेंद्र को भरती हुए 2 दिन ही हुए थे कि रीना को भी भरती होना पड़ा था. सहेंद्र को भरती करा लेने के बाद उसे तो आईसीयू में जाने नहीं दिया जा रहा था तो वह अस्पताल के परिसर में बैठी रहती थी. उस दिन उसे वहां तेज बुखार से तड़पता देख कर नर्स ने अस्पताल में भरती करा दिया था. पहले तो उसे जनरल वार्ड में रखा गया, पर जब उस की तबीयत अैर बिगड़ी तो उसे भी आईसीयू में ही ले जाया गया. पतिपत्नी दोनों के पलंग आमनेसामने थे. सहेंद्र ने जैसे ही रीना को आईसीयू वार्ड में देखा तो उस का चेहरा पीला पड़ गया. उस की आंखों से आंसू बह निकले.

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रीना बेहोशी की हालत में थी, इसलिए वह अपने पति को नहीं देख पाई. सहेंद्र बहुत देर तक आंसू बहाते रहे. वे अपनी पत्नी की इस हालत का जिम्मेदार खुद को ही मान रहे थे. रीना की बेहोशी दूसरे दिन दूर हो पाई. उस ने अपने चेहरे पर मास्क लगा पाया जिस से औक्सीजन उस के अंदर जा रही थी. घड़ी की टिकटिक करने जैसी आवाज चारों ओर गूंज रही थी. उस के हाथ में बौटल लगी हुई थी. वह बहुत देर तक हक्काबक्का सी सब देखती रही. उसे समझ में आ गया था कि वह भी आईसीयू वार्ड में भरती है. ऐसा समझ में आते ही उस की निगाहें अपने पति को ढूंढ़ने लगीं. सामने के बैड पर पति को देखते ही वह बिलख पड़ी. सहेंद्र भी पत्नी को यों ही एकटक देख रहे थे. उन का मन हो रहा था कि वे पलंग से उठ खड़े हों और पत्नी के पास जा कर उसे ढाढ़़स बंधाएं पर वे हिल भी नहीं पा रहे थे. पतिपत्नी दोनों आमनेसामने के बैड पर लेटे एकदूसरे को देख रहे थे. दोनों की आंखों से अविरल आंसू बह रहे थे.

रीना की सांसें सब से पहले थमीं थीं. पति को देखते हुए उस ने अंतिम सांस ली. सहेंद्र को तो तब ही पता चला जब उस ने रीना का बैड खाली देखा. उस की झपकी लग गई थी. उस बीच में रीना ने अंतिम सांस ली थी. नर्स ने बताया था कि सामने वाले बैड वाली महिला की मुत्यु अभीअभी हुई है. नर्स को पता नहीं था कि वह उस की पत्नी थी. पत्नी की मुत्यु का समाचार सुन कर सहेंद्र को गहरा धक्का लगा और शाम तक वे भी चल बसे. दोनों की डैडबाडीज शवगृह में रख दी गई थीं.

रीना के फोन से मिले नंबर पर अस्पताल के स्टाफ ने फोन कर दोनों की मृत्यु की सूचना दी थी. रीना के मोबाइल में सब से ऊपर महेंद्र का ही नंबर था, इस कारण महेंद्र को फोन लगाया गया पर उस ने फोन नहीं उठाया. दूसरा नंबर मुन्नीबाई का था जिस पर घंटी गई तो फोन तुरंत रिसीव हो गया.

मुन्नीबाई रीना के मोबाइल नंबर को जानती थी. जब से दोनों अस्पताल गए हैं तब से रीना रोज ही उस से बात करती रहती थी और अपने बच्चों के हालचाल जानती रहती थी. इस बार मुन्नीबाई ने जो कुछ सुना, उस से वह दहल गई. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. बच्चों को और पिताजी को इस की सूचना दे या नहीं.

बच्चे वैसे भी जब से पापामम्मी गए हैं तब से ही उदास बैठे हैं. वे तो अभी मृत्यु का मतलब भी नहीं जानते. उस ने खामोशी से दोनों की मृत्यु का समाचार सुना. उस की आंखों से आंसू बह निकले. चिन्टू जब भी मम्मी का फोन कामवाली काकी के पास आता था तो मम्मी उस से बात करेंगी, यह सोच कर मुन्नीबाई के पास आ जाता था. रीना मुन्नीबाई से सारा हाल जान लेने के बाद चिन्टू से बात करती भी थी और हिदायत देती थी  कि मुन्नीबाई को परेशान न करे. आज भी जब फोन की घंटी बजी तो चिन्टू मुन्नीबाई के पास आ कर बैठ गया था इस उम्मीद में कि उस की मम्मी उस से भी जरूर बात करेंगी. पर आज मुन्नीबाई ने ही बात नहीं की थी केवल फोन सुना था और फिर बंद कर दिया था.

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‘मेरी बात कराओ न, मम्मी से,’ चिन्टू ने जैसे ही मुन्नीबाई को फोन बंद करते देखा तो हड़बड़ा गया, ‘प्लीज काकी, मुझे मम्मी से बात करनी है.’ चिन्टू ने मुन्नीबाई का मोबाइल झपटने का प्रयास किया. पर जैसे ही उस ने मुन्नीबाई की आंखों से आंसू बहते देखे, वह सहम गया.

‘‘सात समुंदर पार’’ के रीक्रिएट वर्जन में टीवी एक्ट्रेस निया शर्मा का स्टाइलिश और बोल्ड अंदाज

इन दिनों बौलीवुड में संगीत जगत में एक नई बयार आयी हुई है. जिसे देखो वही बौलीवुड के क्लासिक व अति लोकप्रिय पुराने गीतों को नई धुन या गीत की पंक्तियों में थोड़ा सा फेरबदल कर उस गाने को नए सिरे से ‘रीक्रिएट’ कर पेश कर रहे है. तभी तो फिल्म ‘विश्वात्मा’ के लोकप्रिय गीत ‘‘सात समुंदर पार ’’ मशहूर अदाकारा निया शर्मा और सुपरमॉडल यावर मिर्जा ने नए अंदाज में पेश करने की कोशिश की है.

‘सारेगामा म्यूजिक’ से रिलीज होते ही इस गाने को देखते ही देखते 1.6 मिलियन व्यूज मिल गए. इस गाने में अपने स्टाइलिश और बोल्ड अंदाज के कारण निया शर्मा सुर्खियों में हैं.

मुम्बई में इस गाने को लांच करते वक्त निया शर्मा व यावर मिर्जा ने केक भी काटा. इस गाने को संगीतकार विवेक कर के निर्देशन में देव नेगी व निकिता गांधी ने अपनी आवाज में स्वरबद्ध किया है. इसके गीतकार अभेंद्र कुमार उपाध्याय हैं.

निया शर्मा कहती हैं- ‘‘हमें यह जानकर खुशी हो रही है कि हमने यावर मिर्जा के साथ पहला म्यूजिक वीडियो किया और इसे दर्शकों पसंद कर रहे हैं. सात समुंदर एक ऑयकॉनिक सांग है. इसके रिक्रिएशन को शूट करते समय मैं काफी एक्साइटेड थी. मुझे मालूम था कि लोग इस गीत की तुलना मौलिक गीत के साथ करेंगे. लेकिन यह इतना अच्छा डांस नम्बर है, कि मैं इसका हिस्सा बनना चाहती थी. भविष्य में मेरे कई म्यूजिक वीडियो आने वाले हैं. मुझे यह स्वीकार करने में कोई हिचकिचाहट नही है कि मेरा घर म्यूजिक वीडियो की वजह से चल रहा है.’’

यावर मिर्जा ने कहा- ‘‘इसका ऑडियो, वीडियो और निर्देशन कमाल का है. दर्शकों का रिस्पॉन्स अच्छा आ रहा है. मिलियंस में व्यूज आ रहे हैं. मैं खुश हूं कि मेरे पहले सांग को इतना बढ़िया रिस्पांस मिल रहा है. निया की पेरफॉर्मस कमाल की है और सोशल मीडिया पर हम दोनों के शॉट्स वायरल हो रहे हैं. यह पूरी टीम की मेहनत का नतीजा है. मुदस्सर खान ने इसे बखूबी कोरियोग्राफ और निर्देशित किया है. तीन मिनट के गाने में दर्जनों लोगों की मेहनत लगी होती है. इस गाने के अंत में टू बी कंटिन्यूड लिखा आ रहा है, तो पब्लिक हमसे उम्मीद कर रही है कि इसका दूसरा भाग भी आएगा. तो देखिए शायद हम इसका सिक्वल भी लेकर आएं.’’

संगीतकार विवेक कर ने कहा- ‘‘मैं गीत ‘सात समंदर’ के मौलिक कम्पोजर विजू शाह का शुक्रिया अदा करता हूँ. आनंद बख्शी जी ने इसे खूबसूरती से लिखा था. यह हम सभी का पसंदीदा गीत रहा है. इसका रीक्रिएशन करते समय मैंने सिर्फ हुक लाइन वही रखी है बाकी सब नया करने की कोशिश की है.’’

गीतकार अभेन्द्र कुमार उपाध्याय ने कहा-‘‘मेरे लिए यह इतिहास और गर्व की बात है कि मैंने आनंद बक्शी साहब के लिखे गीत के रिक्रिएशन में कुछ लाइंस लिखी हैं.’’ टीवाईएफ प्रोडक्शन प्रस्तुत ‘‘सात समुन्दर पार’’ म्यूजिक वीडियो के निर्माता यावर मिर्जा,सहनिर्माता रूचिका महेश्वरी, निर्देशक व नृत्य निर्देशक मुदस्सर खान,कैमरामैन सुरेश बीसवेणी हैं.

कोरा कागज: आखिर कोरे कागज पर किस ने कब्जा किया

कोरा कागज: भाग 2- आखिर कोरे कागज पर किस ने कब्जा किया

Writer- साहिना टंडन

“चलो मम्मी, केक भी तो इंतजार कर रहा होगा. तू चल मैं आया,” राजन रितेश के कंधे पर हाथ रख कर गाता हुआ टेबल के पास पहुंच गया.

जैसे ही मोमबत्तियां बुझाने के लिए वो झुका, वैसे ही

सामने से एक खूबसूरत लड़की ने प्रवेश किया.

राजन की निगाहें जैसे उस पर थम गई हों. रितेश भी एकटक उसे ही देख रहा था. गुलाबी रंग के सूट में वह खिला हुआ गुलाबी प्रतीत हो रही थी. बड़ीबड़ी आंखें, नाजुक होंठ, कंधे पर बिखरे स्याहा काले बाल, सारी कायनात की खूबसूरती जैसे उस में समा गई थी.

“अरे देविका… आओ बेटा,”

देविका के साथ उस की मां आशा भी थी. पूनम ने उन का अभिवादन किया और उसे अपने पास ही बुला लिया.

“चलो बरखुरदार, मोमबत्तियां पिघल कर आधी हो चुकी हैं,” नवीन बोले.

“ओ हां,” राजन जैसे होश में आया हो. उस ने फूंक मार कर मोमबत्तियां बुझाईं, तो हाल तालियों की

गड़गड़ाहट से गूंज उठा.

केक काट कर सब से पहले उस ने पूनम और नवीन को खिलाया और फिर

रितेश को खिलाने लगा.

जवाब में रितेश ने भी केक का एक बड़ा सा टुकड़ा उस के मुंह में डाल दिया.

यह देख कर सभी जोर से हंस पड़े, पर राजन के कानों तक जो हंसी पहुंची, वह देविका की थी. चूड़ियों

की खनखनाहट जैसी हंसी उसे सीधे अपने दिल में उतरती लगी. जितनी देर पार्टी चलती रही, उतनी

देर राजन की निगाहें चोरीछुपे देविका को ही निहारती रहीं.

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घर सामने ही होने की वजह से उस दिन के बाद से देविका कभीकभी राजन के घर आ जाती थी.।वहपाककला में काफी निपुण थी, तो अलगअलग तरह के व्यंजन पूनम को चखाने चली आती थी.

इस बीच राजन से कभी आमनासामना होता था, तो कुछ औपचारिक बातें ही होती थीं. पूनम को तो वह शुरू में ही पसंद थी. उस ने मन ही मन में उसे राजन के लिए पसंद भी कर लिया था, पर बापबेटे से बात करने के लिए वह देविका का मन भी टटोल लेना चाहती थी और उस के लिए वह किसी उपयुक्त मौके की तलाश में थी.

ऐसे ही लगभग 6 माह बीत गए. एक दिन राजन ने घर के बाहर अपनी गाड़ी स्टार्ट की तो देखा कि सामने देविका खड़ी थी. राजन गाड़ी ले कर उस के सामने पहुंचा.

“हेलो देविका, कैसे खड़ी हो, आज कालेज नहीं जाना क्या?”

“जाना तो है, पर आज पापा की कार नहीं है. उन्हें किसी जरूरी काम से कहीं जाना था, तो आज वे जल्दी ही निकल गए. अब टैक्सी का इंतजार है.”

“तो मैं छोड़ देता हूं. रास्ता तो वही है.”

“अरे, अभी मिल जाएगी कोई टैक्सी. तुम क्यों तकलीफ करते हो?”

“तो तुम भी यह तकल्लुफ रहने दो,” कह कर राजन ने गाड़ी का दरवाजा खोल दिया. देविका मुसकरा

के बैठ गई.

गाड़ी सड़क पर दौड़ने लगी थी कि कुछ ही दूरी पर एक रैड लाइट पर देविका की खिड़की के पास गुलाब के फूल बेचने वाला एक बच्चा आ कर खड़ा हो गया और उस से फूल खरीदने की गुहार सी लगाने लगा, तो देविका ने उस से फूल ले लिया.

“इस फूल का तुम क्या करोगी?” अचानक राजन के मुंह से निकल गया.

“क्या मतलब…?” देविका ने सवालिया नजरों से उस की ओर देख कर पूछा.

“मतलब… मतलब तो कुछ भी नहीं. लीजिए, आप फूल.”

“अरे यार, फूल को फूल की क्या जरूरत है?” राजन मुंह ही मुंह में बुदबुदाता हुआ बोला.

“कुछ कहा तुम ने?”

“ना… ना, कुछ भी तो नहीं.”

कुछ ही देर में राजन ने गाड़ी कालेज के गेट के सामने रोक दी.

“थैंक यू सो मच.”

“वेलकम.”

देविका मुसकराती हुई गेट की ओर चली गई. राजन उसे जाता हुआ देख ही रहा था कि अचानक उस की नजरें देविका की सीट के नीचे गिरे हुए एक कागज पर पड़ी. उस ने झट से कागज उठाया और सोचा कि देविका का ही कोई जरूरी कागज होगा. उस ने उसे आवाज लगानी चाहिए, पर तब तक देविका उस की आंखों से ओझल हो चुकी थी.

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‘है क्या यह…’ राजन ने खुद से ही सवाल किया और कागज खोल कर देखा. जैसे ही पहली पंक्ति पर राजन की नजर गई, वह आश्चर्य से भर उठा. वह एक खत था.

राजन ने तूफान की तेजी से वह खत पढ़ डाला. खत समाप्त होते ही वह खुशी के मारे चिल्ला सा उठा. उस ने गाड़ी स्टार्ट की और वापस घर की ओर दौड़ा दी. पूरे रास्ते उस के दिलोदिमाग में वह खत छाया रहा. घर पहुंचते ही उस ने पूनम को पुकारा.

“मम्मी, ओ मम्मी, तू कब सास बनेगी,” राजन पूरे जोशखरोश भरे स्वर में चिल्लाने लगा.

पूनम आई तो उस ने कानों पर हाथ रख लिए.

“पहले चिल्लाना तो बंद कर. और यह क्या कर रहा है, अच्छा है तेरे पापा घर पर नहीं हैं, वरना अभी

तूफान आ जाता.”

“तूफान ही तो आ गया है मम्मी. आप मेरी शादी की बात करती थीं तो अब करवा दीजिए.”

“ऐसे ही करवा दूं, शादी के लिए कोई लड़की भी चाहिए होती है मेरे बच्चे,” पूनम लाड़ भरे स्वर में बोली.

“लड़की तो है, देविका.”

“सच, देविका तुझे पसंद है,” पूनम खुशी से झूम सी उठी.

“बहुत पसंद है और आज ही पता चला कि मैं भी उसे पसंद हूं.”

“क्या कह रहा है, तुझे कैसे पता? क्या उस ने कहा है तुझ से?”

“ऐसा ही कुछ, अच्छा शादी की तैयारियां करो,” राजन कुछ उतावला सा हो रहा था और उस का उतावलापन देख कर पूनम हंसती जा रही थी.

“अरे पागल, ये काम क्या चुटकी बजाते ही हो जाता है, तेरे पापा से बात करनी है और देविका के घर वालों से भी तो…”

“अच्छा. काश, चुटकी बजाते ही हो जाता,” चुटकी बजातेबजाते राजन अपने कमरे में चला गया.

उसे जाता हुआ देख कर पूनम की आंखों में जैसे लाड़ का सागर हिलोरे लेने लगा.

कमरे में पहुंच कर राजन पलंग पर औंधा गिर पड़ा और जेब से खत निकाल कर फिर से पढ़ने लगा.

प्यारे “R”,

आज हमें मिले पूरे 6 महीने हो चुके हैं. वह पार्टी का ही दिन था, जब हम ने एकदूसरे को पहली बार देखा था. उस दिन ऐसा लगा था, जैसे तुम्हारी नजरों ने मेरी रूह तक को छू लिया हो. तब से आज तक हुई चंद मुलाकातें ही मेरे मौन प्रेम की साक्षी रही हैं. आधीअधूरी उन मुलाकातों में जो छोटीछोटी बातें हुईं, जैसे तुम ने मुझे देखा उन्हीं पर मेरा विश्वास टिका है. अब मुझे लगता है कि

इस पवित्र प्रेम को शब्दों की जरूरत नहीं है, बस अब हमारे मातापिता भी इस खूबसूरत रिश्ते को अपनी मंजूरी दे दें. घर पर मेरी शादी की बात चलने लगी है. तुम अपने मातापिता को इस बारे में बता दो, ताकि वह रिश्ते की बात करने घर आ सके.

दिल से सदा ही तुम्हारी,

“D”

न जाने वो खत राजन ने कितनी ही बार पढ़ डाला. पढ़तेपढ़ते ही उस की आंख लग गई. रात हो गई

थी. डाइनिंग टेबल पर नवीन ने राजन के बारे में पूछा, तो पूनम ने बताया कि “आज तो वह बिना

खाए ही सो गया है.”

“क्यों, ऐसा क्या हो गया?”

“वही, जो इस उम्र में हो जाया करता है.”

“पहेलियां ना बुझाओ. पहले पूरी बात बताओ.”

“हमें देविका के मातापिता से बात कर लेनी चाहिए. राजन और देविका एकदूसरे को चाहने लगे हैं.”

“यह कब हुआ…?”

“क्या आप भी… प्यार किया नहीं जाता हो जाता है.”

“जैसी मां वेसा ही बेटा. अरे, पहले कारोबार में मेरा हाथ बटाए, फिर प्यारमुहब्बत में पड़े. शादी तो दूर की बात है.”

“शादी होती है तो जिम्मेदारी का एहसास खुदबखुद जग जाता है और फिर राजन ने कौन सी नौकरी ढूंढ़नी है. अपना कारोबार ही तो संभालना है.”

वार्तालाप यहीं समाप्त हो गया.

इधर देविका बेहद परेशान हो रही थी. अपने कमरे की एकएक चीज… एकएक किताब… वह ढेरों बार छान चुकी थी. पर उस का खत उसे नहीं मिल रहा था. किताब में ही तो रखा था. अंत में थक कर वह पलंग पर बैठ गई. उस के सब्र का बांध टूट गया और वह फूटफूट कर रोने लगी. आखिर कहां गया खत. वह खत रितेश के लिए था.

रितेश और देविका की प्रेम कहानी राजन के जन्मदिन की पार्टी में आरंभ हुई थी. जब वे राजन के।घर पहुंची थी, तो सब से पहले उस की नजरें रितेश से ही मिली थीं. रितेश भी उसे ही देख रहा था.

फिर पूरी पार्टी में वह कभी खाना एकसाथ लेते हुए टकराते, तो कभी अपने परिजनों के साथ आपस

में हुए परिचय के दौरान एकदूजे को देखते रहे.

उस दिन शब्दों की सीमा चाहे “हैलो” में ही खत्म हो गई, पर दिल से दिल की बातें ऐसी थीं कि मानो लगता हो जैसे उन का अंत ही नहीं है.

पूनम के घर जब भी कोई महफिल जमती तो लता के साथ आशा भी शामिल होती थी. इस तरह आशा और लता की भी अच्छी बातचीत हो गई. पूनम सभी के सामने देविका की पाककला की खूब तारीफ करती थी. तो ऐसे में

लता एक दिन बोल उठी, “अरे तो कभी हमें भी खिलाओ ना.”

यह सुन कर आशा बोली, “क्यों नहीं, यह भी कोई कहने की बात है.”

फिर एक दिन देविका लता के घर पहुंची, तो शायद लता वहां नहीं थी. दरवाजा रितेश ने ही खोला था. दोनों एकदूसरे को देख कर मुसकरा दिए.

“आओ देविका.”

“आंटी नहीं हैं घर पर क्या?”

Winters 2021: सर्दियों में फौलो करें ये 5 डायट

मौसम में जैसे ही नमी, ठंड आती है.. रंग बिरंगे स्वेटर, ढेर सारी खाने पीने की चीजें और घूमने के आलावा कुछ चिंता भी लाती है क्योंकि इस समय थोड़ी सी लापरवाही से सर्दी जुकाम की समस्या होने लगती है. यहां हम आपको बताते हैं कुछ सलाह और कुछ खास टिप्स.. जिन पर अमल करके आप सर्दियों के मौसम को  खूबसूरत और यादगार बन सकती हैं.

सर्दियों के मौसम में ऐसा हो आपका खानपान

  1. सर्दियों में भी खूब पानी पिये जिससे त्वचा में नमी बरकरार रहें . ज्यादा सर्दी होने पर पीने के लिए गुनगुने पानी का इस्तेमाल करें .

2. सर्द मौसम में आम समस्या सर्दी जुकाम की होती है.  विटामिन सी युक्त फल और सब्जी लेनी चाहिए और आंवला एक बेहतर उपाय है इसे कच्चा, सब्जी या मुरब्बे में ले सकते हैं. बेहतर होगा कि मार्केट से मुरब्बा खरीदने के बजाय घर में ही बना लिया जाए.. आंवला की जैली भी बना सकते हैं इसके लिए बस आंवले को कद्दूकस करना है और कढ़ाई में स्वादानुसार चीनी डालकर कुछ देर धीमी आंच पर पकाना है.. जब नर्म हो जाए तो ठंडा करके जार में रख ले.. इसे ब्रेड, बिस्किट या खाने के साथ खा सकते हैं.. एक बार बनाकर हफ्ते भर के लिए स्टोर कर सकते हैं. इसके अलावा आंवले की चटनी या फिर छोटा छोटा काटकर लहसून के साथ फ्राई करके खाया जा सकता है.

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3 . तिल, गुड़ और मूंगफली का सेवन भी सर्दी को दूर करता है. मूंगफली तो हमें जगह जगह ठेलों पर मिल जाती है, खुद भी घर में भूनकर पैकेट बनाकर पर्स में रखा जा सकता है और भूख लगने पर इससे बेहतर और कोई विकल्प हो ही नहीं सकता है .

4. हमारे घरों में बड़े बुजुर्ग हमेशा ही सर्दियों में शुद्ध घी और मावे युक्त गोंद के लड्डू खाने की सलाह देते हैं जो कि इस मौसम में सबसे उत्तम होता है खासकर बच्चों के लिए .

5 . सर्दियों में मार्केट में तरह तरह के सब्जी, साग और फल मिलने लगते हैं जो कि कुदरत ने सेहत के तैयार किए होते हैं.. अगर बच्चों के लिए मैगी या माइक्रोनी जैसा भी कुछ बना रहे हैं तो भी उसमें टमाटर, गाजर, शिमला मिर्च, मटर के दाने डाले और बच्चों को हेल्दी फूड खाने के बारें में जरूर जागरूक करें.

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कोरा कागज: भाग 1- आखिर कोरे कागज पर किस ने कब्जा किया

Writer- साहिना टंडन

1996, अब से 25 साल पहले. सुबह के 9 बजने को थे. नाश्ते की मेज पर नवीन और पूनम मौजूद थे. नवीन

अखबार पढ़ रहे थे और पूनम चाय बना रही थी, तभी राजन वहां पहुंचा और तेजी से कुरसी खींच कर उस पर जम गया.

“गुड मौर्निंग मम्मीपापा,” राजन ने कहा.

“गुड मौर्निंग बेटा,” पूनम ने मुसकरा कर जवाब दिया और उस के लिए ब्रैड पर जैम लगाने लगी.

“मम्मी, सामने वाली कोठी में लोग आ गए क्या…? अभी मैं ने देखा कि लौन में एक अंकल कुरसीपर बैठे हैं.”

“हां, कल ही वे लोग यहां आए हैं. तीन ही लोगों का परिवार है. माता, पिता और एक बेटी है, देविका नाम हैउस का. कल जब सामने सामान उतर चुका था, तब मैं वहां जाने ही वाली थी उन से चायपानी पूछने के लिए कि तभी वह बच्ची देविका आ गई. वह पानी लेने आई थी. बड़ी प्यारी है. दिखने में बहुत सुंदर और बहुत मीठा बोलती है. उस ने बताया कि वे लोग इंदौर से यहां शिफ्ट हुए हैं.”

“ओके. अच्छा मम्मी मैं चलता हूं. रितेश मेरा इंतजार कर रहा होगा,” सेब खाता हुआ राजन लगभग वहां से भागा.

“अरे, नाश्ता तो ठीक से करता जा,” पूनम ने पीछे से आवाज दी.

“उस ने कभी सुनी है तुम्हारी कोई बात. उस के कानों तक पहुंचे तो बात ही क्या है,” नवीन चाय का घूंट भरते हुए बोले.

“आप भी हमेशा उस के पीछे पड़े रहते हैं. यही तो उम्र है उस की मौजमस्ती करने की.”

“कालेज खत्म हुए सालभर हो चला है और कितनी मौज करेगा. रितेश को देखो, आनंद के साथ अब उस ने उस का सारा काम संभाल लिया है.”

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“आप का बिजनैस कहीं भागा नहीं जा रहा है, राजन ने ही संभालना है. देख लेना, एक बार जिम्मेदारियों में रम गया, तो फिर साथ बैठ कर बात करने को भी तरस जाएंगे.”

“चलो, देखते हैं, ऐसा कब होता है और आज कहां गए हैं तुम्हारे साहबजादे?”

“संडे है, बताया तो उस ने कि रितेश के साथ गया है,” पूनम बरतन समेटते हुए बोली.

रितेश राजन के घर से चंद ही घर छोड़ कर रहता था. उन के मातापिता आनंद और लता और राजन के मातापिता नवीन और पूनम, सभी का आपस में अच्छा व्यवहार था. सालों पहले आनंद दिल्ली में नवीन के महल्ले में आए थे.

रितेश के अलावा उन की एक बेटी भी थी, जिस का नाम अनु था. बचपन में ही रितेश की बूआ ने उसे गोद ले लिया था. हालांकि इस बात से कोई अनजान नहीं रहा कि असल में अनु

आनंद बाबू की बिटिया है. बेऔलाद और विधवा सीमा ने अनु को सगी मां से ज्यादा चाहा. मध्यमवर्गीय परिवार था आनंद बाबू का, पर चूंकि अब उन के पास केवल रितेश ही था, इसलिए ठीकठाक गुजारा हो जाता था सब का.

तत्पश्चात पार्क में, त्योहारों में एकदूसरे से मिलने पर लता और पूनम की भी अच्छी बनने लगी. रितेश का दाखिला भी राजन के स्कूल में ही हो गया था, फिर तो पहले स्कूल, फिर कालेज, दोनों की दोस्ती परवान चढ़ती ही गई.

हालांकि दोनों काफी विपरीत प्रवृत्ति के थे. जहां रितेश कुछ गंभीर और अंतर्मुखी था, वहीं राजन मस्तमौला किस्म का था. जीवनयात्रा के सफर को हंसतेगाते पार करना चाहता था. सभी से चुहलबाजी करना उस की आदत में

शुमार था. कुल मिला कर अलग स्वभाव होने पर भी दोनों में गहरी छनती थी.

रितेश के घर के बाहर राजन ने जोरजोर से हौर्न बजाना शुरू कर दिया, तो रितेश तेजी से सीढ़ियां उतरते हुए

और लता को बाय करता हुआ बाहर की ओर लपका.

“अरे, अब बंद भी कर. पूरे महल्ले को घर से बाहर निकालना है क्या…?”

“अरे, यह तो मेरे दोस्त के लिए है. तू मेरा मैं तेरा दुनिया से क्या लेना,” राजन गुनगुनाते हुए बोला. रितेश उसे देख कर हंस पड़ा.

“और बता, जन्मदिन की तैयारियां कैसी चल रही हैं.”

“वैसे ही जैसी हर साल होती है. पापा के दोस्त, मम्मी की सहेलियां, रिश्तेदार, पड़ोसी सभी होंगे, पर मेरी तरफ से

बस एक ही बंदा है, जो पार्टी में ना हो तो पूरी पार्टी कैंसिल कर दूं. समझा कि अभी और समझाऊं.”

“समझ गया यार. तेरा जन्मदिन हो और मैं ना आऊं, ऐसा कभी हो सकता है. अच्छा अभी यह तो बता की हम जा कहां रहे हैं?”

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“इतनी देर से जन्मदिन की बात चल रही है तो क्या जन्मदिन का केक मैं नाइट सूट में काटूंगा. हम अपने

लिए कपड़े खरीदने जा रहे हैं.”

पार्टी राजन के घर पर ही थी. घर का हाल रोशनी से नहा चुका था. मेहमानों की चहलपहल जारी थी. राजन और रितेश भी अपने अन्य दोस्तों के साथ मशगूल थे. तभी पूनम राजन के पास आई.

चलो बेटा, केक नहीं काटना क्या, सब इंतजार कर रहे हैं.”

यूपी में युवाओं को मिली डिजी शक्ति

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी और पंडित मदन मोहन मालवीय की जयंती पर प्रदेश के एक करोड़ युवाओं को फ्री स्मार्टफोन और टैबलेट योजना की शुरूआत की.

युवाओं से खचाखच भरे स्टेडियम में हर जिले से आए 60 हजार युवाओं को फ्री स्मार्टफोन और टैबलेट की सौगात दी गई. इस दौरान सीएम योगी ने अब हर कमिश्नरी पर फ्री स्मार्टफोन और टैबलेट देने की घोषणा की.

सीएम योगी ने पूर्व प्रधानमंत्री ‘भारत रत्न’ श्रद्धेय अटल बिहारी वाजपेयी ईकाना स्टेडियम में आयोजित समारोह में डिजी शक्ति पोर्टल और डिजी शक्ति अध्ययन ऐप का भी शुभारंभ किया. ओलंपियन मीरा बाई चानू और उनके कोच विजय शर्मा को भी सम्मानित किया.

सीएम योगी ने दर्जनों युवाओं का उदाहरण देकर युवाओं को प्रेरित किया. उन्होंने कहा कि दुनिया के अंदर जब भी भारत के युवाओं को अवसर मिला है, तो उन्होंने अपनी प्रतिभा का छाप वैश्विक मंच पर पूरी मजबूती के साथ रखा है. सीएम योगी ने एक कविता से अपनी संबोधन को समाप्त किया.

‘नए युग का सृजन युवकों तुम्हारे हाथ में है,

समूचा जग युवा पीढ़ी तुम्हारे साथ में है’.

प्रबल फौलाद सच मानो तुम्हारे गात में है

नए युग का सृजन युवकों तुम्हारे हाथ में है

सफलता तो तुम्हारी बात में है, जज्बात में है

नए युग का सृजन युवकों तुम्हारे हाथ में है

12 बजे सोकर उठने वाले युवा नहीं, इनसे उम्मीद मत करना : सीएम योगी

सीएम योगी ने विपक्षी दलों के नेताओं का बिना नाम लिए उन पर बड़ा प्रहार किया. उन्होंने कहा कि 12 बजे सोकर उठने वाले युवा नहीं हैं. प्रदेश की जनता को कोरोना महामारी में गुमराह करके वैक्सीन का विरोध करने वाले युवा नहीं हैं. यह सब टायर्ड हैं और रिटायर्ड हैं. इनसे उम्मीद मत करना, क्योंकि इन्होंने तो प्रदेश की जनता और प्रदेश के युवाओं के सामने पहचान का संकट खड़ा किया था.

2017 के पहले बेरोजगारी दर करीब 18 फीसदी थी, आज साढ़े चार फीसदी है : सीएम

सीएम योगी ने कहा कि हमारा युवा 2017 के पहले कहीं जाता था, तो कुछ जिले ऐसे थे कि उनके नाम पर होटल में कमरे नहीं मिलते थे और बाकी युवा कहीं जाता था, तो यह मान लिया जाता था कि नकल करके आया होगा या सिफारिशी होगा, इसलिए उसे प्रतियोगी परीक्षाओं से बाहर कर दिया जाता था. 2017 के पहले बेरोजगारी दर करीब 18 फीसदी थी और आज साढ़े चार फीसदी है. यह दिखाता है हमारे प्रयास सही दिशा की ओर आगे बढ़ रहे हैं. हमें नए भारत के नए उत्तर प्रदेश की ओर आगे कैसे बढ़ना है, यह प्रधानमंत्री की ईमानदार सोच को दमदारी के साथ प्रदेश के अंदर लागू करने का कार्य किया गया है.

प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए अभ्युदय कोचिंग अब हर जिले स्तर पर: योगी

सीएम योगी ने कहा कि मुझे याद है जब लॉकडाउन शुरू हुआ था, सबसे पहली चुनौती हमारे सामने आई थी, जो बच्चे कोटा में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे थे, उन बच्चों को कैसे उनके घर में सुरक्षित लाया जाए. राजस्थान सरकार सहयोग के लिए तैयार नहीं थी. मुझे उत्तर प्रदेश से बसें कोटा भेजनी पड़ी थीं. सभी 15 हजार बच्चों को सुरक्षित उनके घरों तक पहुंचाने का कार्य किया गया था. तब हमने तय किया था कि अब हमारे प्रदेश के बच्चों को परीक्षाओं की तैयारी करने के लिए प्रदेश के बाहर न जाना पड़े. इसके लिए हर कमिश्नर हेडक्वार्टर पर व्यवस्था होनी चाहिए. आज हमने अभ्युदय कोचिंग की व्यवस्था हर कमिश्नरी में की है, उसे अब हर जिले स्तर पर ले जा रहे हैं. ऐसे 10 हजार प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले छात्रों को भी फ्री में स्मार्टफोन और टैबलेट से जोड़ा जा रहा है.

युवाओं के जीवन से खिलवाड़ करने वालों की जगह जेल होगी: सीएम

सीएम योगी ने कहा कि सरकार की नीयत साफ होती है, तो काम भी दमदार दिखता है. सोच ईमानदार, तो काम दमदार. यह काम दमदार का ही परिणाम है. 2017 के पहले नियुक्तियों में भाई-भतीजावाद होता था. कुछ जगहों पर तो ऐसा होता था कि कोई नौकरी निकली और एक खानदान के लोग चाचा, भतीजा और मामा भी वसूली में निकल पड़ते थे. महाभारत का कोई रिश्ता नहीं था, जो वसूली में न निकलता हो, लेकिन 2017 के बाद हमने कहा कि युवाओं के जीवन से जो भी खिलवाड़ करेगा, उसकी जगह जेल होगी. प्रदेश में पूरी पारदर्शिता के साथ भर्ती की प्रक्रिया होगी और भर्ती की प्रक्रिया को आगे बढ़ाया गया.

पिछली सरकारों ने 10 वर्षों में दो लाख और साढ़े चार वर्षों में साढ़े चार लाख युवाओं को सरकारी नौकरी दी: सीएम

सीएम योगी ने कहा कि पिछली सरकारों में 10 वर्षों में दो लाख भर्ती नहीं हो पाई थी. हमने अभी पांच वर्ष भी नहीं हुए हैं. साढ़े चार लाख युवाओं को सरकारी नौकरी दी है. प्रदेश में कानून व्यवस्था की बेहतरीन स्थिति दी, तो परिणाम सामने आ गए. एक तरफ जो माफिया पहले गरीबों की संपत्ति को हड़पते थे और व्यापारियों की संपत्ति पर कब्जा करते थे. सत्ता उन्हें संरक्षित करती थी, उन माफिया के अवैध कमाई पर प्रदेश सरकार का जब बुलडोजर चलता हुआ दिखाई दिया, तो माफिया और अपराधियों के संरक्षणदाताओं के भी होश उड़ते हुए दिखाई दिए.

दो करोड़ से ज्यादा युवाओं को स्वत: रोजगार से जोड़ा: सीएम

सीएम योगी ने कहा कि प्रदेश में निवेश बढ़ा है. एक जिला, एक उत्पाद (ओडीओपी) की नीति हमने लागू की और परिणाम था एक करोड़ 59 लाख नौजवानों को उन्हीं के गांव और उन्हीं के जिले में रोजगार भी उपलब्ध होता हुआ दिखाई दिया. यही नहीं, स्वत: रोजगार के साथ विश्वकर्मा श्रम सम्मान योजना से जोड़कर 60 लाख युवाओं को स्वत: रोजगार से जोड़ा है. लोग भौचक हैं.

एक सप्ताह में हर कमिश्नरी में बंटेंगे स्मार्टफोन और टैबलेट

सीएम योगी ने कहा कि यह केवल स्मार्टफोन और टैबलेट नहीं है. इसके साथ आपको फ्री में डिजिटल एक्सेस की सुविधा भी उपलब्ध कराने जा रहे हैं. फ्री में कंटेंट उपलब्ध होंगे. नई शिक्षा नीति के साथ जुड़कर हम भारत को दुनिया में एक महाशक्ति की ओर अग्रसर करने में कामयाब होंगे. अब हर कमिश्नरी में इस तरह के कार्यक्रम हो जाएं. डिजिटल क्रांति को गांव-गांव तक पहुंचाने, आनलाइन एजूकेशन से लेकर आनलाइन एक्जामिनेशन और प्रतियोगी परीक्षाओं को भी युवाओं को इसके साथ जोड़ेंगे.

यूपी को नई पहचान दिलाएगा ‘काशी फिल्म महोत्सव’

उत्तर भारत के धार्मिक और सांस्कृतिक केन्द्र के रूप में पहचानी जानी वाली काशी नगरी में पहली बार होने वाला काशी फिल्म महोत्सव दुनिया में अपनी पहचान बनाने जा रहा है.

भगवान शिव की नगरी में 27 से 29 दिसम्बर तक होने वाले इस 03 दिवसीय आयोजन में हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत और नृत्य के दर्शन तो होंगे ही साथ में यहां रहकर देश में विख्यात हुए दार्शनिक कवि, लेखक, संगीतज्ञों और बनारस घराने की यादें भी ताजा होंगी.

मंदिरों के शहर में हंसी से गुदगुदाने के लिए महशूर हास्य कलाकार राजू श्रीवास्तव भी मौजूद रहेंगे तो शाम को यादगार बनाने के लिए ड्रीम गर्ल हेमा मालिनी की प्रस्तुतियां भी दर्शकों के लिए यादगार बन जाएंगी.

भगवान शिव की नगरी में फिल्म बंधु, उत्तर प्रदेश सरकार, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय भारत सरकार के सहयोग से पहली बार काशी फिल्म महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है. दीपों के शहर के रूप में विख्यात काशी नगरी में 27 दिसम्बर को शाम 04 बजे महोत्सव का शुभारंभ मुख्य अतिथि पर्यटन, संस्कृति, धर्मार्थ कार्य, प्रोटोकॉल राज्य मंत्री डॉ. नीलकंठ तिवारी और विशिष्ट अतिथि के रूप में भारत सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के सचिव अपूर्व चंद्रा करेंगे.

इस दौरान वाराणसी के इंटरनेशनल कोऑपरेशन एंड कन्वेंशन सेंटर में मनोज जोशी की प्रस्तुति आकर्षण का केन्द्र बनेगी. शाम छह बजे से डॉ. सम्पूर्णानन्द स्पोट्स स्टेडियम, सिगरा में हास्य कलाकार राजू श्रीवास्तव और गायक कैलाश खेर के लाइव शो शाम को खुशनुमा बना देंगे.

ज्ञान नगरी के रूप में भी मशहूर वाराणसी में 28 दिसम्बर को होने वाले काशी फिल्म महोत्सव के मुख्य अतिथि भारत सरकार के केन्द्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर रहेंगे. इस दौरान 10:30 बजे से 12 बजे तक “वाराणसी- एक सांस्कृतिक, पौराणिक और एतिहासिक विरासत से एक आधुनिक शहर की यात्रा” विषय पर पैनल चर्चा का आयोजन होगा.

दूसरी पैनल की चर्चा का विषय ‘संगीत और गीत-बनारस की विरासत’ पर होगी जिसका समय दोपहर 12:30 बजे से दोपहर 02 बजे तक रहेगा. शाम 04 बजे समापन समारोह के साथ ही सब्सीडी का वितरण होगा. गुरुवार की शाम मशहूर फिल्म अभिनेत्री और भारतीय जनता पार्टी की सांसद हेमा मालिनी के नाम रहेगी. इस दौरान उनकी ओर से पेश की जाने वाली सांस्कृतिक प्रस्तुति सबका दिल मोह लेगी.

यह कार्यक्रम वाराणसी के इंटरनेशनल कोऑपरेशन एंड कन्वेंशन सेंटर में ही होंगे. 29 दिसम्बर को “फिल्म निर्माण के लिए एक महत्वपूर्ण केन्द्र के रूप में उत्तर प्रदेश और क्षेत्रीय सिनेमा की संभावनाएं” विषय पर पैनल चर्चा आयोजित होगी. और इस दिन की शाम गायक रवि त्रिपाठी, अभिनेता रवि किशन की पेशकश के रूप में पहली बार काशी में हो रहे फिल्म महोत्सव को यादगार बना देगी.

दंगल टीवी का नया शो रंग जाउं तेरे रंग में: क्या भाग्य बदलेगा 3 जिंदगियां

दंगल टीवी पर 27 दिसम्बर से शुरू होगा नया पारिवारिक सीरियल ‘‘रंग जाऊं तेरे रंग में‘‘ जिसकी कहानी अनूठी भले हो, मगर इस तरह की घटनाएं हम अक्सर सुना करते हैं. सीरियल ‘‘रंग जाउं तेरे रंग में’’ एक सामाजिक सीरियल है. जिसकी कहानी के केंद्र में लखनऊ के रहने वाले अमीर काशी पांडे परिवार का लड़का और बनारस़ निवासी गरीब चौबे परिवार की लड़की है.

सीरियल ‘रंग जाऊं तेरे रंग में’ एक ऐसा सीरियल है, जिसमें किस्मत का महत्वपूर्ण किरदार निभाती है, जो दो परिवारों के जीवन को बदल कर रख देता है. सूत्रों के अनुसार सीरियल की कहानी में बड़ी बहन की शादी तय होती है. पंडित जी लड़के व लड़की दोनों की कुंडली ठीक से देखकर इस शादी को सहमति देते हैं. पर शादी उसकी छोटी बहन से हो जाती है.उसके बाद कहानी में कई रोचक मोड़ आते हैं.

कुछ लोग इसे किस्मत का खेल नाम देते है. मगर लड़के का परिवार इसे कुछ और ही कहता है. इस सीरियल में सवाल उठाया गया है कि क्या इंसान का भाग्य उसके जीवन को बदलता है?

पिछले चालिस वर्षों से बौलीवुड में सक्रिय तथा अब सौ से अघिक फिल्मों और ‘सुराग’, ‘अंदाज’,‘अगले जनम मुझे बिटिया ही कीजो’ जैसे कई टेलीविजन सीरियलों में अभिनय कर चुके अभिनेता सुदेश बेरी इस संदर्भ में कहते हैं- ‘‘पांडे परिवार का स्तम्भ काशीनाथ पांडे है.इस सीरियल में कई उतार चढ़ाव और टर्न व ट्विस्ट हैं, जो दर्शकों का मनोरंजन करेंगे. दंगल टीवी के इस सीरियल के माध्यम से हम दर्शकों को मनोरंजन देने के साथ साथ समाज को एक संदेष भी देना चाहते हैं. मगर यहां सब कुछ बताकर हम दर्शकों के मनोरंजन के मजे को किरकिरा नही करना चाहते.’’

काशी पांडे की बड़ी बहू पूजा पांडे का किरदार निभा रही अभिनेत्री दीक्षा धामी ने कहा- ‘‘मैं चुलबुली, सीधी सादी सी बहू का किरदार कर रही हूं.वह ससुराल में सभी से इतना प्यार करती है कि वह 2-3 साल से मायके नही गई है.’’

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उदित शुक्ला ने कहा- ‘‘मैं इस सीरियल में काशी पांडे के बड़े बेटे अभिषेक पांडे का किरदार निभा रहा हूं, जो कि परिवार का जिम्मेदार बेटा है. परिवार के पूरे व्यापार को वह संभाल रहा है.’’ जबकि काशी के छोटे बेटे ध्रुव पांडे का किरदार निभाने वाले अभिनेता करम राजपाल ने बताया-‘‘ ध्रुव बहुत ही शांत स्वभाव का किरदार है. वह सब समझता है.पर ध्रुव अपनी माँ, भाई, भाभी का लाड़ला है.’’

केतकी कदम- ‘‘मैं इसमें सृष्टि चौबे नाम की बेहद सीधी सादी गांव की लड़की का किरदार अदा कर रही हूं,जो कि सभी का बहुत ख्याल रखती है.

मेघा रे ने कहा- ‘‘मैं इसमें धानी चौबे का किरदार निभा रही हॅूं, जो कि अपनी बड़ी बहन सृष्टि के विपरीत स्वभाव वाली पटाखा लड़की है. उसके दिल में जो कुछ होता है, वह उसे बिंदास बोल देती है. कभी कभी लोगों को लगता है कि वह बदतमीज है. मगर उसका इरादा किसी को दुःख पहुंचाना नहीं होता.’’

बनारस के चौबे परिवार के मुखिया और सृष्टि व धामी के पिता सुरेंद्र चौबे का किरदार निभा रहे अभिनेता चैतन्य अदीब कहते हैं- ‘‘मैं गांव का एक किसान हॅूं. हम बनारस के रहने वाले हैं.हमने अपनी दोनों बेटियों को पढ़ा लिखा कर काबिल बनाया है. अब हमें उनके लिए अच्छे वर की तलाश है.

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काशीनाथ पांडे से हमारी मुलाकात होती है और कहानी आगे बढ़ती है. इससे अधिक अभी नही बता सकता. पर यह सीरियल बहुत ही अलग किस्म का है. इसकी स्टोरीलाइन यूनिक है. दर्शकों ने इस तरह का सीरियल टीवी पर अब तक नही देखा है, मगर इसे देखते हुए वह अहयसास करेंगे कि यह सब उनके आस पास होता रहा है. जमीन से जुड़ी हुई कहानी है, आम परिवार में जिस तरह की चीजें होती हैं, वैसा ही दिखाया गया है.इसलिए लोग इस कहानी से खुद को जोड़कर देखेंगें. ’’

काशीनाथ पांडे की बहन और अभिषेक व धुव्र की बुआ का किरदार निभा रही अदाकारा मीना मीर ने कहा- ‘‘मैने काशी की बहन का किरदार निभाया है. मेरे भाई काशी औरतों की इज्जत करते हैं. इसलिए उन्होंने अपेन परिवार में सारी जिम्मेदारी मुझे दे रखी है. यह बुआ अपने भाई, भतीजों से खूब प्यार करती है, भाभी के साथ भी उसका अच्छा रिश्ता है. यह बुआ ऐसी है, जो कि पूरे परिवार के हर सदस्य को एकजुट रखती है.’’

ध्रुव की मां रुपा पांडे का किरदार निभा रही उर्वशी उपाध्याय ने कहा- ‘‘मेरा किरदार ऐसा है, जिसे सजना सवरना काफी पसंद है. वह अपने संजने संवरने पर काफी पैसे खर्च करती है. रसोई तो मेरी ननद यानी कि बच्चों की बुआ संभाल लेगी, मैं जीवन के मजे लेना चाहती हूं.’’

सीरियल ‘‘रंग जाऊं तेरे रंग में ’’ के बारे में बात करते हुए ‘‘दंगल’’ टीवी के एमडी मनीष सिंघल ने कहा, “हम दंगल टीवी के जरिए भारतीय दर्शकों से लंबे अर्से से जुड़े हुए है और हम जानते हैं कि उन्हें किस तरह की कहानी जोड़े रखेगी.सीरियल रंग जाऊं तेरे रंग में’ एक सोशल ड्रामा है,जो इस गहरी समझ को दर्शाता है कि कैसे हमारे देश में शादी का अर्थ दो परिवारों का मिलन है, न कि सिर्फ दो इंसानों का मिलन है.‘‘

सत्ता पाने के लिए धर्म को बनाया हथियार

धर्म के हथियार बना कर सत्ता, पाने का जो सफल एक्सपैरीमैंट किया गया है उस में दोस्तों में भी किस तरह की खाई पैदा हो जाती है. उस का उदाहरण दिसंबर में अंत में हरियाणा के पलवल इलाके में किया. इस घटना में 4 युवा दोस्त जिन में एक मुसलिम था, एक शादी में गए और पीकर अपने गांव लौटते हुए उन का एक मोबाइल को लेकर झगड़ा हो गया. 3 हिंदू युवकों को पता चला कि मोबाइल मुसलिम दोस्त ने छिपाया है तो उसे दोस्ताना मामला न समझ कर उस की पिटाई यह वह कर शुरू कर दी कि वह मुसलिम है.

हिंदूमुसलिम जहर उस तरह भर डाला गया है जो 4 जने साथसाथ एक शादी में गए, वहां साथ खायापिया, साथ लौटे पर रास्ते में उनका झगड़ा हो गया तो धर्म बीच में टपक पड़ा.

धर्म के दुकानदारों ने अपनी दानदक्षिणा, अपने मंदिरों के लिए चंदा उगाहने अपने मंदिरों में औरतों की लाइनें लगवाने और आखिर में वोट पाने की खातिर घरघर में धर्म का जहर कि बोतलें बांट दी है. इनका इस्तेमाल खुलेआम ही रहा है.

अभी तक केवल हिंदू  और केवल मुसलिम स्कूल नहीं खुल रहे हैं और इसलिए स्कूलोंकालेजों में हिंदू मुसलिम युवा खुल कर मिलते है और लडक़पन का मजाक, हंसी दिनलगी, छेडख़ानी करते हैं जहां लड़कियां साथ पढ़ती हो वहां प्रेम प्रसंग और दोस्तियां भी होती है पर जहां जरा सी खटास हो, जो किसी भी दोस्तों या सहयोगी के साथ आम बात है, अचानक धर्म का जहर की दी गई बोतल खुल जाती है. एकदूसरे पर धर्म को लेकर तूतू मैंमैं होने लगती है.

यह अफसोस ही है कि हर बच्चा चाहे या न चाहे उसे बचपन में ही धर्म का लबादा ओड़ा दिया जाता है. अब वह कितनी ही कोशिश कर ले, कितना ही समझदार हो जाए, कितना ही समझ ले कि धर्म उसे बेवकूफ बना रहा है, वह इस से निकल नहीं सकता. इन पलवल के चुनावों के साथ भी साथ यही हुआ, पलवल जिले का गांव खटाला पिछड़ा सा कच्चे अध्यपक्के मकानों का गांव है जहां से चंदा भी नहीं मिलता होगा पर लडऩेमारने के युवा जरूर मिल जाते हैं.

इन बेरोजगार, खाली दिमाग वाले, अनपढ़े या अनपढ़े युवाओं को धर्म का पिट्टू बना लेना कठिन नहीं है. बजाए इस के कि आज की सरकारें इस खाई को दूर करें, हर मुख्यमंत्री, हर केंद्रीय मंत्री और प्रधानमंत्री किसी न किसी तरह हिंदू  का बखान इस तरह करता रहता है कि बोतलों में भरा जहर और ज्यादा जहरीला होता जा रहा है.

यह न भूलें कि यह जहर केवल मुसलिमों पर डाला जाएगा, उसे घरों में भी इस्तेमाल किया जाता है. यही औरतों को कंट्रोल करता है, यही बेटीबहन को जाति के बाहर या घरवालों की इजाजत के बिना प्रेम या शादी करने में इस्तेमाल होता है. यही जहर पिलाकर मंदिरों में भेजा जाता है. इसी जहर के बल पर लड़कियों का हक लूटा जाता है. घर में रखी टौयलेट क्लीनर की बोतल कब किसी के सिर पर उड़ेलने के काम आ जाए, क्या गारंटी है.

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