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खेती किसानी में गंवई महिलाएं पड़ रही हैं पुरुषों पर भारी

आज भी गंवई इलाकों में रहने वाली ज्यादातर महिलाओं की हालत कमोबेश पहले जैसी ही रही है. गांवों में अभी भी महिलाओं की ज्यादातर आबादी चौकाचूल्हा और उपले बनाने में उलझी रहती है, जबकि महिलाओं को कई मामले में समान अधिकार भी प्राप्त हैं.

इन सब के बीच जिन महिलाओं ने आज के समाज में अपनी समान भागीदारी के महत्त्व को समझा?है, वे आज के दौर में न केवल अलग पहचान रखती हैं, बल्कि आज वे परिवार और समाज को मजबूत बनाने में भी भागीदारी निभा रही हैं.

बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के ऐसे तमाम गांव हैं, जहां की महिलाएं आत्मनिर्भरता की मिसाल पेश कर रही हैं. और यह सब संभव हुआ है, आगा खान ग्राम समर्थन कार्यक्रम भारत व जॉन डियर इंडिया के कारण.

मुजफ्फरपुर के तमाम गांवों में आगा खान ग्राम समर्थन कार्यक्रम भारत द्वारा जॉन डियर इंडिया के सहयोग से छोटे और मझोले किसानों की आय में इजाफा करने, गंवई महिलाओं के हालात में सुधार लाने, ग्रामीण ढांचे को मजबूत बनाने सहित कई ऐसे काम किए जा रहे हैं, जो गांवों से पलायन को रोकने में काफी मददगार साबित हुए हैं.

एकेआरएसपीआई द्वारा गंवई महिलाओं को कई तरीके से मजबूत बनाने का काम किया जा रहा?है, जिस में महिलाओं को स्वयं सहायता समूहों से जोड़ कर बचत की आदत डालना, स्किल आधारित ट्रेनिंग, उन्नत खेती के तरीकों में निपुण बनाने जैसे तमाम काम शामिल हैं.

यही वजह है कि ये महिलाएं आज चौकेचूल्हे से ऊपर उठ कर परिवार की आमदनी को बढ़ाने में घर के मर्दों के साथ कंधे से कंधा मिला कर चल रही हैं.

महिलाओं की भागीदारी से खेती में आई क्रांति

बिहार के मुजफ्फरपुर के गांव हरपुर उर्फ अजीतपुर की रहने वाली बबली देवी शिव गंगा सिंचाई समूह के सदस्य के रूप में जुड़ कर घर की माली हालत को सुधारने का काम कर रही हैं. वे घर के कामकाज के साथसाथ उन्नत खेती के तरीके सीख कर खेती से तिगुनी आमदनी ले रही हैं.

बबली का कहना है कि उन के गांव में पहले सिंचाई के साधन न होने से कम पानी में होने वाली हलदी और दलहन जैसी फसलों की खेती होती थी, जिस से घर का खर्च मुश्किल से ही चल पाता था.

ऐसे में एकेआरएसपीआई द्वारा गांव की महिलाओं को संगठित कर एक महिला समूह की स्थापना की गई, जिस के जरीए गांव में सोलर पंप की स्थापना के साथ ही मधुमक्खीपालन और सब्जियों की खेती को बढ़ावा दिया गया.

आज हरपुर उर्फ अजीतपुर गांव की लगभग सभी घरों की महिलाएं सब्जियों की अगेती खेती, मधुमक्खीपालन जैसे तमाम काम कर रही हैं, जिस से बाजार में सब्जियों की आवक पहले होने से उन्हें अच्छा रेट मिलता है.

इसी गांव की शिव गंगा सिंचाई समूह से जुड़ी महिलाएं रेखा देवी, सुनैना देवी, शिव दुलारी देवी, धर्मशीला देवी, सरिता देवी जैसी तमाम महिलाएं अगेती गोभी, सेम, नेनुआ, लौकी, चिनिया केला की खेती कर रही हैं, जिस से इन महिलाओं के परिवार की सभी बुनियादी जरूरतें तो पूरी हो ही रही हैं, साथ ही ये महिलाएं समूह और बैंक के जरीए बचत भी कर रही हैं.

वर्मी कंपोस्ट से तैयार होती हैं सब्जियां

हरपुर गांव में एकेआरएसपीआई द्वारा जॉन डियर इंडिया के सहयोग से संचालित परियोजना के क्रम में गांव की महिलाओं को वर्मी कंपोस्ट तैयार करने की ट्रेनिंग दे कर गांव में ही इसे तैयार कराया जा रहा है, जिस से यहां के लोग अपनी सब्जियों की खेती में वर्मी कंपोस्ट का ही प्रयोग करते हैं. जैविक तरीके से सब्जियों की खेती करने के चलते सब्जियों की मांग और रेट अधिक होता है.

अलगअलग फ्लेवर में शहद को तैयार कर रही हैं महिलाएं

इसी गांव की रहने वाली पूनम देवी को एकेआरएसपीआई रोजगार से जोड़ने के लिए मधुमक्खीपालन की ट्रेनिंग दिलाई गई और उन्हें मधुमक्खीपालन के लिए बक्से मुहैया कराए गए.

पूनम देवी के पास आज मधुमक्खीपालन के लिए 125 बक्से हैं, जिन से वे लीची, जामुन और तोरिया के फ्लेवर में शहद तैयार करती हैं.

विभिन्न फ्लेवर में शहद तैयार करने के सवाल पर पूनम ने बताया कि वे शहद में सुगंध और स्वाद लाने के लिए मधुमक्खीपालन के डब्बों को जामुन, लीची और तोरिया की फसल में रखती हैं, जहां मधुमक्खियां इन फसलों से पराग इकट्ठा कर के शहद तैयार करती हैं.

उन्होंने बताया कि उन के जैसी तमाम महिलाएं हैं, जो भारी मात्रा में फ्लेवर वाले शहद का उत्पादन कर रही हैं.

एफपीओ द्वारा शहद की मार्केटिंग

पूनम देवी ने बताया कि स्थानीय लैवल पर स्वतंत्र फार्मर प्रोड्यूसर कंपनी लिमिटेड द्वारा गांव की महिलाओं द्वारा तैयार शहद की खरीदारी वाजिब दाम पर की जाती है, जिस से प्रोडक्ट को बेचने के लिए कहीं भटकना नहीं पड़ता है.

उन्होंने बताया कि एक बक्से से 19 लिटर से ले कर 24 लिटर तक शहद तैयार होता है. यह शहद 300 रुपए प्रति लिटर में थोक रेट में आसानी से बिक जाता है. इस तरह से वे 125 बक्से में अच्छीखासी आमदनी हासिल कर लेती हैं.

हलदी की प्रोसैसिंग से तैयार किया जाता है हलदी पाउडर

मुजफ्फरपुर के तमाम गांव ऐसे हैं, जहां किसानों द्वारा सब्जियों की खेती के साथ ही हलदी की खेती प्रमुख रूप से की जाती है. किसानों द्वारा कच्ची हलदी का रेट उतना अच्छा नहीं मिल पाता है.

ऐसे में समूह से जुड़ी महिलाओं ने एकेआरएसपीआई और जॉन डियर के सहयोग से हलदी प्रोसैसिंग प्लांट लगाने का निर्णय लिया, जिस से हलदी का पाउडर तैयार कर उसे मार्केट में अच्छे रेट पर बेचा जा सके.

इसी तरह बंदरा प्रखंड के मेघ रतवारा गांव में एक हलदी प्रोसैसिंग प्लांट लगाया गया है, जहां कच्ची हलदी को सुखाने और उस के छिलके छुड़ाने के लिए मशीनें लगाई गई हैं. इस के अलावा हलदी पाउडर तैयार करने के लिए अलग से मशीन लगाई गई है.

इस प्रोसैसिंग प्लांट का संचालन भी सामूहिक रूप से किया जाता है, जहां समूह से जुड़े लोग हलदी पाउडर तैयार करने के बाद उस के पैकेट बना कर स्थानीय मार्केट में सप्लाई देते हैं. इस से उन्हें अतिरिक्त आमदनी हो रही है.

गांव के ढांचागत विकास पर जोर

आगा खान ग्राम समर्थन कार्यक्रम (भारत) के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अपूर्वा ओ  झा ने बताया कि एकेआरएसपीआई ने बिहार के कई जिलों से पलायन को रोकने के कई प्रयास किए हैं. इस के लिए छोटे, म  झोले और कम आय वर्ग को खेती, शिक्षा, रहनसहन आदि में सुधार के लिए तैयार कर उन के जीवनस्तर को ऊंचा उठाया जा रहा है.

एकेआरएसपीआई के बिहार प्रदेश के रीजनल मैनेजर सुनील कुमार पांडेय  ने बताया कि मुजफ्फरपुर के जिन गांवों में एकेआरएसपीआई द्वारा जॉन डियर इंडिया के सहयोग से परियोजना चलाई जा रही है, वहां गांव के पूरे ढांचागत विकास पर जोर दिया जाता है.

उन्होंने बताया कि गांव में स्कूल, आंगनबाड़ी, पंचायत भवन, साफसफाई, ऊर्जा के वैकल्पिक साधन आदि के स्थायीकरण पर जोर दिया जा रहा है. इस के लिए सामूहिक भागीदारी के साथ एकेआरएसपीआई द्वारा संसाधनों की उपलब्धता पर जोर दिया जाता है.

खेती को घाटे से उबारने में कामयाब

एकेआरएसपीआई में बिहार प्रदेश के कृषि प्रबंधक डा. बंसत कुमार ने बताया कि किसानों को खेती में घाटे से उबारने के लिए उन को गांव में ही समयसमय पर उन्नत खेती के लिए जरूरी टिप्स दिए जाते हैं. इस के लिए गांव में ही किसान खेत पाठशाला बनाई गई है, जिस में किसान खेतीबारी के गुर सीखते हैं.

गांव में सोलर पंप, पौलीहाउस, सोलर कोल्ड स्टोर आदि की उपलब्धता कराई जा रही है. इस से किसान खेती में जोखिम और लागत को कम करने में कामयाब रहे हैं और उन्हें अधिक उत्पादन भी मिल रहा है. इस से गांव वालों की आमदनी में काफी बढ़ोतरी हुई है.

प्यार में मिली मौत की सौगात

सौजन्य- सत्यकथा

उत्तर प्रदेश के उन्नाव जनपद के औरास थाना क्षेत्र के टिकरा सामद गांव के रहने वाले परमेश्वर कनौजिया का नाम खुशहाल लोगों में गिना जाता था. इस के साथ ही उन की गांव में अच्छी धाक भी थी. इस का एक कारण यह भी था कि उन की पत्नी उर्मिला देवी टिकरा सामद गांव की पूर्व प्रधान रह चुकी थी.

जब तक परमेश्वर कनौजिया के परिवार में ग्राम प्रधानी रही, तब तक वह गांव वालों के हर सुखदुख में शुमार होते रहे लेकिन अगले चुनाव में हाथ से ग्राम प्रधानी चली जाने के बाद वह अपने 3 बेटों जिस में बड़े रिंकू, मझले जितेंद्र व 18 वर्षीय छोटे बेटे धर्मेंद्र के साथ मुंबई के बांद्रा रेलवे स्टेशन के पास रेलवे कालोनी में लौंड्री का काम करने लगे थे.

यहां रहते हुए उन का छोटा बेटा धर्मेंद्र काम के साथ पढ़ाई भी करता रहा और साल 2020 में उस ने 12वीं की परीक्षा भी दी थी.

लेकिन साल 2020 लगते ही कोरोना के चलते देश के हालात खराब होने लगे तो सरकार ने देश भर में लौकडाउन लगाने का फैसला कर लिया तो लोग शहरों से वापस अपने गांव में पलायन करने लगे.

चूंकि मुंबई में लौकडाउन होने से सारे कामधंधे बंद होने लगे थे, ऐसे में परमेश्वर कनौजिया को भी लौंड्री का बिजनैस अस्थाई रूप से बंद करना पड़ा.

शुरू में परमेश्वर कनौजिया को लगा कि सरकार कुछ दिनों बाद लौकडाउन खोल देगी. लेकिन बाद में जब उन्हें लौकडाउन में ढील के कोई आसार नहीं दिखे तो उन्होंने अप्रैल 2020 में अपने तीनों बेटों के साथ गांव वापस आने का फैसला कर लिया और किसी तरह लौकडाउन के समय में ही मुंबई से गांव लौट आए.

मुंबई से गांव वापस आने के बाद लौकडाउन के चलते कोई कामधंधा करना संभव नहीं था. इसलिए परमेश्वर कनौजिया अपनी पत्नी और बच्चों के साथ पूरा दिन घर पर ही बिता रहे थे. लेकिन उन का छोटा बेटा धर्मेंद्र कनौजिया अकसर ही गांव में टहलने निकल जाता था.

उधर जैसेजैसे देश में कोरोना के केस कम हुए तो सरकार ने भी लौकडाउन में छूट देनी शुरू कर दी थी, जिस से धीरेधीरे कामकाज भी पटरी पर आना शुरू हो चुका था.

साल 2020 का जुलाई आतेआते तमाम लोग जो मुंबई, दिल्ली जैसे शहरों से वापस गांव आ गए थे, वे फिर से कामकाज की तलाश में वापस जाना शुरू कर चुके थे.

लेकिन परमेश्वर कनौजिया अभी भी गांव से वापस मुंबई नहीं गए थे. ऐसे में वह अपने बेटों के साथ घर के कामकाज निबटाते रहे.

रोज की तरह परमेश्वर कनौजिया का छोटा बेटा धर्मेंद्र कनौजिया दोपहर का खाना खा कर 19 अगस्त, 2020 को भी घर से टहलने निकला था, लेकिन हर रोज की तरह वह जब शाम तक वापस न लौटा तो परिजन धर्मेंद्र के मोबाइल पर काल लगाने लगे. लेकिन उस का फोन भी स्विच्ड औफ बताया जा रहा था.

ऐसे में परमेश्वर कनौजिया अपने परिजनों के साथ धर्मेंद्र की तलाश में घर से निकल कर आसपास पता करने लगे, लेकिन धर्मेंद्र के बारे में किसी से कुछ भी पता नहीं चला.

परमेश्वर कनौजिया को धर्मेंद्र के गायब होने का कोई कारण भी समझ नहीं आ रहा था, क्योंकि वह और उन के परिवार के सभी सदस्य धर्मेंद्र से बेहद प्यार करते थे, इसलिए कभी उसे डांटफटकार भी नहीं पड़ती थी.

वह ज्यादा परेशान हो उठे थे. वहीं उन की किसी से दुश्मनी भी नहीं थी जिस से लगे कि किसी ने दुश्मनी निकालने के लिए उन के बेटे को गायब कर दिया हो. रही बात कहीं जाने की तो वह हाल में ही लौकडाउन के चलते मुंबई से आया था.

वह अपने घर के लोगों के साथ धर्मेंद्र के दोस्तों और परिचितों के यहां जब देर रात तक उसे खोजते रहे और उस का कोई पता नहीं चला तो उन्होंने पुलिस को बेटे की गुमशुदगी की सूचना देने का निर्णय लिया और 20 अगस्त की सुबह थाना औरास पहुंचे.

थानाप्रभारी राजबहादुर को घटना की जानकारी दे कर उस की गुमशुदगी दर्ज करने की मांग की. लेकिन थानाप्रभारी ने जांच की बात कह कर उन्हें लौटा दिया.

थाने से पुलिस से अपेक्षित सहयोग न मिलने से निराश हो कर धर्मेंद्र के पिता गांव वापस लौट आए और फिर से आसपास तलाश करने लगे. परमेश्वर कनौजिया अपने दोनों बेटों के साथ धर्मेंद्र की तलाश कर ही रहे थे कि उन्हें अपने घर से करीब 300 मीटर दूर धर्मेंद्र की चप्पलें पड़ी हुई मिल गईं.

धर्मेंद्र के चप्पल मिलने के बाद उस के घर वालों के मन में तमाम तरह की आशंकाएं जन्म लेने लगी थीं. घर वाले किसी अनहोनी के अंदेशे के साथ चप्पल मिलने वाली जगह से आगे बढ़े तो 200 मीटर दूर गिरिजाशंकर द्विवेदी के आम के बाग के पास से निकले सकरैला नाले में धर्मेंद्र का औंधे मुंह शव पड़ा देखा, जहां धर्मेंद्र का पूरा शरीर पानी में और सिर बाहर था. इसे देख कर सभी बदहवास हो रोने लगे.

इस के बाद रोतेबिलखते धर्मेंद्र  के पिता परमेश्वर कनौजिया ने औरास थानाप्रभारी राजबहादुर को घटना की सूचना दी. धर्मेंद्र की हत्या की सूचना पा कर थानाप्रभारी राजबहादुर ने इस की  सूचना अपने उच्चाधिकारियों को दी और वह अपनी टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए.

घटनास्थल पर पहुंचने के बाद थानाप्रभारी ने ग्रामीणों की मदद से धर्मेंद्र कनौजिया के शव को बाहर निकलवाया. उधर घटना की सूचना पा कर बांगरमऊ सीओ गौरव त्रिपाठी भी मौके पर पहुंच चुके थे.

नाले से धर्मेंद्र की लाश बाहर निकालने के बाद पिता परमेश्वर व मां उर्मिला देवी का कहना था कि उन के बेटे की हत्या की गई है और शरीर में मारपीट जैसे चोट के निशान भी हैं क्योंकि धर्मेंद्र के चेहरे पर सूजन, पैंट की जेब में मिले मोबाइल में खून के निशान थे. जिस के आधार पर वे बारबार बेटे की हत्या किए जाने की बात दोहरा रहे थे.

वहीं दूसरी ओर पुलिस का कहना था कि मृतक धर्मेंद्र की लाश पर किसी तरह के चोट का निशान नहीं दिखाई पड़ रहा था. लिहाजा पोस्टमार्टम से पहले कहना मुश्किल था कि उस की हत्या की गई है. मौके की काररवाई निपटाने के बाद पुलिस ने लाश पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दी.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने तक पुलिस ने जांच शुरू कर दी थी और मृतक के पिता परमेश्वर कनौजिया से किसी से दुश्मनी होने की बात पूछी तो उन्होंने बताया कि उन का या उन के परिवार के किसी भी सदस्य का किसी से भी झगड़ा या दुश्मनी नहीं थी.

इधर पुलिस धर्मेंद्र की मौत के कारणों को ले कर छानबीन कर ही रही थी कि अगले दिन पोस्टमार्टम की रिपोर्ट पुलिस को मिल गई. लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट में धर्मेंद्र की मौत का कारण स्पष्ट नहीं था. इस वजह से धर्मेंद्र का विसरा सुरक्षित कर जांच के लिए भेज दिया गया. जिस के कुछ दिनों बाद ही विसरा की जांच रिपोर्ट भी आ गई. विसरा रिपोर्ट में धर्मेंद्र की मौत जहर से होनी बताई गई थी.

विसरा रिपोर्ट मिलने के बाद यह तो साफ हो गया था कि धर्मेंद्र की हत्या की गई है. लेकिन पुलिस को हत्या का कोई कारण नजर नहीं आ रहा था जिस के आधार पर हत्यारों तक पहुंचा जा सके. इसलिए पुलिस के सामने हत्या के कारण और हत्यारों तक पहुंचना चुनौती बना हुआ था.

ऐसे में पुलिस ने सर्विलांस की मदद से धर्मेंद्र के हत्यारों तक पहुचने का प्रयास शुरू कर दिया और मृतक के मोबाइल नंबर की पिछले एक सप्ताह की काल डिटेल्स खंगालनी शुरू कर दी.

धर्मेंद्र की हत्या के लगभग एक महीना बीतने को था, लेकिन पुलिस अभी भी हत्या के कारणों का पता लगाने व हत्यारों तक पहुंचने में नाकाम रही थी. धर्मेंद्र की काल डिटेल्स के आधार पर भी हत्यारों तक पहुंचना पुलिस को कठिन लग रहा था.

इधर पुलिस धर्मेंद्र की हत्या के मामले की जांच कर ही रही थी, इसी दौरान परमेश्वर कनौजिया को पता चला कि धर्मेंद्र के गायब होने वाले दिन आखिरी बार उसे गांव के ही रहने वाले लक्ष्मण, राहुल कनौजिया, संजीत कुमार, उस के भाई रंजीत कनौजिया के साथ देखा गया था.

यह जानकारी मिलते ही परमेश्वर कनौजिया ने 17 सितंबर, 2020 को औरास थाने पहुंच कर संजीत व रंजीत, राहुल और लक्ष्मण के खिलाफ बेटे की हत्या में शामिल होने की नामजद रिपोर्ट दर्ज करा दी.

जब पुलिस आरोपियों के घर पहुंची तो सभी हत्यारोपी घर से फरार मिले. इस के आधार पर आरोपियों पर पुलिस का शक और भी पुख्ता हो गया. पुलिस ने आरोपियों की धरपकड़ के लिए काफी प्रयास किए, लेकिन आरोपी हाथ नहीं आए.

धर्मेंद्र की हत्या के कई माह बीत चुके थे और पुलिस लगातार आरोपियों के घर और संभावित ठिकानों पर दबिश दे रही थी लेकिन इस मामले में पुलिस के हाथ अब भी खाली थे.

इसे ले कर मृतक के घर वाले आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए कई बार एसपी सुरेशराव आनंद कुलकर्णी के साथसाथ उच्चाधिकारियों से गुहार भी लगा चुके थे.

इसी बीच थानाप्रभारी राजबहादुर की जगह औरास थाने की कमान तेजतर्रार हरिप्रसाद अहिरवार को सौंप दी गई थी.

चूंकि इस मामले का परदाफाश न होना पुलिस के लिए सिरदर्द बना हुआ था. ऐसे में एसपी सुरेशराव आनंद कुलकर्णी और एएसपी शशिशेखर ने खुद इस मामले पर नजर रखते हुए थानाप्रभारी हरिप्रसाद अहिरवार को केस का जल्द से जल्द खुलासा करने का निर्देश दिया.

अब नए थानाप्रभारी हरिप्रसाद अहिरवार  ने नए सिरे से आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए जाल बिछाना शुरू किया. इसी बीच उन्हें 20 मई, 2021 को मुखबिरों से खबर मिली कि लक्ष्मण, राहुल, संजीत रंजीत उन्नाव की मड़ैचा तिराहे के पास हैं और कहीं भागने की फिराक में हैं.

इस सूचना के बाद थानाप्रभारी हरिप्रसाद अहिरवार ने हैडकांस्टेबल दिलीप सिंह, कांस्टेबल प्रशांत, हर्षदीप व आशीष के साथ जाल बिछा कर मड़ैचा तिराहे से चारों को गिरफ्तार कर लिया.

पुलिस आरोपियों को पकड़ कर थाने ले आई और धर्मेंद्र कनौजिया की हत्या के बारे में पूछताछ करने लगी. लेकिन चारों ही धर्मेंद्र की हत्या में शामिल होने की बात से नकारते रहे.

जब पुलिस को लगा कि आरोपी आसानी से हत्या की बात कुबूलने वाले नहीं हैं तो कड़ाई से पूछताछ की गई. इस पूछताछ में चारों टूट गए और उन्होंने धर्मेंद्र की हत्या की बात कुबूल ली.

आरोपी लक्ष्मण ने बताया कि उन लोगों ने वारदात वाले दिन राहुल, संजीत व रंजीत की मदद से धर्मेंद्र को गांव के बगीचे में बुला कर मछली के साथ शराब पार्टी रखी थी. जहां पहले से ही धर्मेंद्र की हत्या करने के लिए जहर खरीद कर रख लिया था.

आरोपियों ने धर्मेंद्र को जम कर शराब पिलाई और जब वह नशे में धुत हो गया तो मौका देख राहुल ने उस के शराब के गिलास में जहर मिला दिया. जहर मिली शराब पीने के बाद धर्मेंद्र अचेत हो कर गिर पड़ा. इस के बाद धर्मेंद्र की मौत का इंतजार करते रहे और जब उस की मौत हो गई तो धर्मेंद्र की लाश सकरैला नाले में फेंक दी.

पुलिस ने जब आरोपियों से हत्या का कारण पूछा तो आरोपी लक्ष्मण ने बताया कि धर्मेंद्र कनौजिया उस की बेटी से प्रेम करता था और वह अकसर उस के घर उस की बेटी से मिलने आया करता था.

लक्ष्मण ने बताया कि वह अकसर दोनों को समझाता रहता था. लेकिन धर्मेंद्र के सिर पर प्रेम का मानो भूत सवार था.

धर्मेंद्र लगातार उस की बेटी के साथ नजदीकियां बढ़ाता जा रहा था. इसी बीच लक्ष्मण के घर पर गांव के ही राहुल का आनाजाना शुरू हो गया, उस ने भी जब पहली बार लक्ष्मण की बेटी को देखा तो उस की खूबसूरती और चढ़ती जवानी को देख उस पर लट्टू हो गया.

अब राहुल लक्ष्मण के बेटी को देखने अकसर बहाने से उस के घर आने लगा था. वह जब भी आता तो लक्ष्मण की बेटी को देख अपनी सुधबुध खो बैठता था. उस के मन में लक्ष्मण की बेटी को ले कर कब प्यार की कोपलें पनपने लगीं, उसे पता ही नहीं चला.

लेकिन उस के सामने एक बड़ी समस्या धर्मेंद्र था. क्योंकि वह भी उसी के चक्कर में अकसर लक्ष्मण के घर आया करता था. इधर लगातार राहुल के घर आने से लक्ष्मण की बेटी का प्यार धर्मेंद्र से कम होता गया और वह राहुल की तरफ आकर्षित होने लगी.

अब वह धर्मेंद्र की जगह राहुल से प्यार करने लगी और दोनों में काफी नजदीकियां भी बढ़ चुकी थीं. इस वजह से अब वह धर्मेंद्र से दूरी बनाने लगी थी. लेकिन धर्मेंद्र दूरी नहीं बनाना चाहता था क्योंकि वह उस से हद से ज्यादा प्यार करने लगा था.

लक्ष्मण ने बताया कि उस की बेटी राहुल से प्यार के चलते धर्मेंद्र से पीछा छुड़ाना चाहती थी, लेकिन धर्मेंद्र उस से दूर जाने के बजाय और करीब आने की कोशिश करने लगा था.

कई बार मना करने के बावजूद भी धर्मेंद्र का रोजाना घर आना उसे बरदाश्त नहीं था. इसलिए उस ने धर्मेंद्र को रास्ते से हटाने का खौफनाक निर्णय ले लिया. इस के लिए लक्ष्मण ने बेटी के दूसरे प्रेमी राहुल के साथ ही संजीत कुमार, उस के भाई रंजीत को भी धर्मेंद्र की हत्या की साजिश में शामिल कर लिया.

फिर तय प्लान के अनुसार धर्मेंद्र को विश्वास में ले कर उसे शराब और मछली की पार्टी के लिए गांव से सटे बगीचे में बुलाया, जहां 19 अगस्त, 2020 को पार्टी के दौरान उस के शराब के पैग में जहर मिला कर उस की हत्या कर दी और लाश पास के नाले में फेंक दी.

पुलिस ने धर्मेंद्र की हत्या के नौवें महीने में साजिश का परदाफाश कर दिया और आरोपियों के बयान दर्ज कर धारा 302, 201, 34 भादंवि के तहत न्यायलय में पेश कर जेल भेज दिया है. कथा लिखे जाने तक आरोपी जेल में ही थे.

हमारे विवाह को 11 साल हो चुके हैं लेकिन अब तक मेरी गोद नहीं भरी, कोई समाधान बताएं

सवाल

हमारे विवाह को 11 साल हो चुके हैं. अब तक मेरी गोद नहीं भरी. डाक्टरी जांच पड़ताल करवाने पर पता चला है कि समस्या मेरे पति को है, लेकिन वे अपना इलाज नहीं करवाना चाहते. कृपया कोई समाधान बताएं?

जवाब

न सिर्फ आप के पति, बल्कि ऐसे अनेक पुरुष जिन्हें पिता बनने के लिए इलाज की जरूरत होती है, समस्या को स्वीकारने के बजाय सच को झुठलाते रहते हैं. उन के भीतर संतानोत्पत्ति को ले कर अनेक प्रकार की मानसिक कुंठाएं बैठी रहती हैं, जिन के कारण वे यह रवैया अपनाते हैं.

भारतीय पुरुषप्रधान समाज में न केवल पुरुष, बल्कि अधिकांश स्त्रियां भी यह मानती हैं कि संतानोत्पत्ति का पूरा दायित्व स्त्री पर होता है. अगर किसी के घर बच्चा नहीं होता है, तो बिना डाक्टरी जांचपड़ताल किए ही स्त्री की कमी समझ ली जाती है. जिन मामलों में जांचपड़ताल से यह पता भी चल जाता है कि पुरुष में कमी है या उसे इलाज की जरूरत है, उन में भी सचाई को प्राय: छिपाने की कोशिश की जाती है. बहुत से पुरुष इसे अपनी मर्दानगी से जोड़ लेते हैं, तो कुछ यह कह कर सचाई को झुठलाते हैं कि उन की सैक्सुअल ताकत भलीचंगी है. जबकि सच यह है कि पुरुष की सैक्सुअल पावर और उस के वीर्य में संतानोत्पत्ति के लायक स्वस्थ मात्रा में स्पर्म का होना पुरुष प्रजनन जीवन के 2 अलग अलग पहलू हैं.

जिन पतिपत्नी के बीच संतान का योग नहीं बन पाता, उन की जांचपड़ताल करने पर 40% मामलों में समस्या पुरुष में होती है. पुरुष वीर्य में कई प्रकार के रोग विकारों के कारण स्पर्म नदारद या कम हो सकते हैं. कुछ विकारों का आसानी से इलाज किया जा सकता है और कुछ विकारों में उन्नत प्रजनन तकनीक का लाभ ले कर पुरुष पिता बनने के योग्य हो जाता है. जिन मामलों में कोई इलाज काम नहीं आता, उन में भी पतिपत्नी की सहमति होने पर डोनर स्पर्म काम में लाए जा सकते हैं.

पर यह इलाज तभी कामयाब हो पाता है जब पतिपत्नी पूरे विश्वास और धैर्य के साथ इलाज करवाएं और एकदूसरे की हिम्मत बंधाते रहें. कोई किसी पर छींटाकशी करे, ताने मारे उस से बात नहीं बनती.

कोशिश करें कि पति को प्यार से पूरी बात समझाएं. आप का डाक्टर भी यह काउंसलिंग कर सकता है. पर आप को मामले की नाजुकता का ध्यान रखना होगा. यह विशेष सावधानी बरतनी होगी कि किसी भी समय पति के अहम को ठेस न पहुंचे. तभी आप उपचार के लिए उन का पूरा समर्थन प्राप्त कर सकेंगी.

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मैं एक युवक से प्यार करती हूं लेकिन मेरे पापा कहते हैं कि यदि मैंने उससे बात भी की तो वो सुसाइड कर लेगे, मैं क्या करूं?

सवाल

मैं एक युवक से बहुत प्यार करती हूं. वह भी मुझ से प्यार करता है. हम दोनों इस बारे में अपनी फैमिली को बता चुके हैं. हम आगे की पढ़ाई साथ करना चाहते थे, लेकिन मुझे पटना भेज दिया गया और उसे कोटा. उस की फैमिली मुझे स्वीकार करती है लेकिन मेरी फैमिली कहती है कि वह मांसाहारी है और मुझे उस से बात करने से भी मना करते हैं. मेरे पापा कहते हैं कि यदि मैं ने उस युवक से बात की तो वे अपना गला काट लेंगे. मैं किसी को खोना नहीं चाहती. क्या करूं?

जवाब

‘जब मियांबीवी राजी तो क्या करेगा काजी,’ लेकिन जब बात अपने अजीज की हो तो दुविधा होती ही है. आप की स्थिति भी कुछकुछ ऐसी ही है. यह अच्छी बात है कि आप पेरैंट्स की इज्जत समझती हैं, लेकिन उन का आप पर उस युवक को छोड़ने हेतु आत्महत्या की धमकी देते हुए दबाव बनाना एकदम गलत है. ऐसे में आप को अपने प्रेम की परीक्षा देनी होगी.

अपने प्रेमी से कुछ दिन अगर दूर रहना पड़े तो कोई हर्ज नहीं. इस बीच अपने पिता को कौन्फिडैंस में लीजिए. जब उन्हें लगे कि वाकई युवक अच्छा है तभी बात बढ़ाइए. किसी अन्य के जरिए उन से बात करेंगी तो अच्छा रहेगा.

साथ ही अपने प्रेमी से कहें कि अच्छा कैरियर बनाए और सब को इंप्रैस करे. फिर तो जीत आप की ही होगी, क्योंकि युवती के पिता सिर्फ यही चाहते हैं कि युवक पढ़ालिखा और अच्छी कमाई व ओहदे वाला हो. जब समाज में उस की इज्जत होगी तो पिता भी स्टेटस व मांसाहारी होने पर एतराज नहीं करेंगे और आप का प्यार भी परवान चढ़ेगा.

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कोरा कागज: भाग 3- आखिर कोरे कागज पर किस ने कब्जा किया

Writer- साहिना टंडन

“नहीं, कहीं बाहर गई हैं. पर बस अभी आती ही होंगी.”

“यह मैं ने खीर बनाई थी. सो, मैं उन के लिए लाई हूं.”

“बस, आंटी के लिए, मेरे लिए नहीं.”

“नहीं, ऐसा नहीं है. तुम खा लो,” अचकचा कर बोल उठी वह.

उस की हालत देख और उस की बात सुन कर रितेश की हंसी छूट पड़ी.

“अरे, घबराओ मत. बैठो तो सही, मैं पानी लाता हूं.”

देविका ने कटोरा मेज पर रखा और सोफे पर बैठ गई. उस का दिल सीने में इस कदर धड़क रहा था, जैसे उछल कर बाहर आ जाएगा.

तभी रितेश पानी ले आया. देविका ने एक ही सांस में गिलास खाली कर दिया.

“अच्छा, मैं चलती हूं,” कह कर वे तेजी से वहां से निकलने को हुई.

“अरे देविका, सुनो तो… रुको देविका.”

देविका के कदम वहीं जम गए. मुश्किल से उस ने पीछे घूम कर देखा.

रितेश सधे कदमों से देविका के पास पहुंचा.

देविका की पलकें मानो टनों भरी हो उठीं. वे खामोश पर खूबसूरत पल शायद उन दोनों के लिए उन अनमोल मोतियों के समान हो चुके थे, जिन्हें वे सदा सहेज कर रखना चाहते थे. ऐसा लग रहा था जैसे वक्त वहीं थम गया हो.

तभी रितेश ने खुद को संभाला.

“ओ, हां, ठीक है देविका, मम्मी आएंगी तो मैं उन्हें बता दूंगा कि तुम आई थी.”

यह सुन कर देविका की नजरें ऊपर उठीं, तो फिर वह मुसकरा कर वापस लौट गई.

एक दिन रितेश को रास्ते में देविका के पिता मोहन मिल गए थे. रितेश ने उन्हें घर छोड़ने के लिए अपने स्कूटर पर बिठा लिया.

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तब बातों ही बातों में उन्होंने रितेश से देविका की पढ़ाई में एक कठिन विषय का जिक्र किया, तो रितेश ने कहा कि वह एक दिन घर आ कर कुछ जरूरी नोट्स दे देगा, जिस से देविका की काफी मदद हो जाएगी.

तब 3-4 बार रितेश ने उस के घर जा कर उस की फाइल पूरी बनवा दी थी. इन्हीं कुछ मुलाकातों

में देविका उस के प्रति बहुत ज्यादा आकर्षित हो चुकी थी. एक दिन उस ने शरारत करते हुए रितेश की

चाय में नमक मिला दिया, सोचा था कि गुस्सा करेगा, पर वह बिना शिकायत करे जब पूरी चाय पी गया, तो देविका की आंखें भर आईं. अपने प्रति ग्लानि से और उस के प्रति प्यार से.

आज शाम को भी रितेश घर आने वाला था, इसलिए देविका ने अपने मनोभाव खत में उतार दिए थे और आज वह एक उपयुक्त मौका देख कर वह खत उसे देना चाहती थी.

शाम को रितेश घर आया, तो आशा ने उसे बिठा कर देविका को आवाज लगाई.

देविका का मुरझाया चेहरा देख कर रितेश असमंजस में पड़ गया.

“बेटा, सवेरे से अपनी फाइल ढूंढ़ रही है, मिल नहीं रही. तो देख कैसे रोरो कर अपनी आंखें सुजा ली हैं. तू जरा समझा, मैं चाय ले कर आती हूं,” आशा रसोई में गई तो रितेश ने पूछा, “कहां खो गई फाइल, क्या कालेज में?”

देविका की आंखों से फिर आंसू बहने लगे. तब धीरे से रितेश ने उस के हाथ पर हाथ रख कर बेहद आत्मीय स्वर में कहा, “रोओ मत, किताब ले आओ. कोशिश कर के दोबारा बना लेते हैं.”

अब देविका से रोका ना गया. उस ने धीमे स्वर में कहा, “आई लव यू. मैं तुम से प्यार करती हूं. तुम्हारे

बिना रह नहीं सकती. तुम भी मुझे चाहते हो ना…?”

रितेश उस की ओर हैरानपरेशान निगाहों से देख रहा था.

“तुम कुछ कहते क्यों नहीं. कुछ तो कहो?”

रितेश के मुंह से कोई बोल ना निकला.

देविका को जैसे उस का जवाब मिल गया. अपनी रुलाई रोकने के लिए उस ने दुपट्टा अपने मुंह में दबा लिया और तेज कदमों से वहां से चली गई.

रितेश अवाक खड़ा रह गया और कुछ पलों बाद वहां से चला गया.

अगले दिन उस ने देविका के घर फोन लगाया. ज्यादातर फोन आशा ही उठाती थी, पर उस दिन देविका ने उठाया.

“हैलो,” देविका की आवाज बेहद उदासीन थी.

“हैलो देविका,”  रितेश की आवाज गंभीर थी.

“रितेश तुम…” देविका एक अनजानी सी खुशी से भर उठी.

“देविका, जानता हूं, जो कल तुम पर बीती, जो कल तुम ने महसूस किया, पर देविका, मैं मजबूर हूं या

शायद तुम्हारे निश्चल प्रेम का मैं हकदार नहीं. तुम सुन रही हो देविका?”

“हां, सुन रही हूं,” देविका को अपनी ही आवाज जैसे एक कुएं से आती प्रतीत हुई.

“पापा अब बेहद कमजोर हो चुके हैं. उन्हें उन की जिंदगी की शाम में अब आराम देना है. अनु दी की

जिम्मेदारी से भी मैं मुंह नहीं मोड़ सकता.

“देविका, इस वक्त अपने सुनहरे सपने साकार करने का माद्दा मुझ में नहीं है. मुझे माफ कर देना, शायद मैं ही बदनसीब हूं.कोई बहुत खुशनसीब होगा जिस की जिंदगी में तुम उजाला करोगी…”

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फोन कट चुका था. देविका जड़वत हो कर रह गई. शायद अर्धविक्षिप्त सी हो कर नीचे ही गिर पड़ती, अगर आशा ने उस के

पीछे आ कर उसे संभाला नहीं होता.

“क्या हुआ देविका? तू पथरा सी क्यों गई है?” आशा ने घबराए स्वर में पूछा.

“मम्मी, शायद मैं अब इम्तिहान पास ना कर पाऊं. रितेश के साथ अब दोबारा फाइल तैयार करना मुमकिन नहीं है,” देविका शून्य में देखती हुई बोली.

“अरे बेटे, इस समय इम्तिहान को भूल जा और एक खुशखबरी सुन. पूनम का फोन आया था सवेरे,

उन्होंने तुझे राजन के लिए मांगा है बेटी.”

आशा का स्वर खुशी से सराबोर था.

“फिर आप ने क्या जवाब दिया मम्मी?” यह सुन कर देविका कुछ सुन्न सी पड़ गई थी.

‘यह कोई समय ले कर सोचने की बात है. मैं ने झट से हां कर दी.”

“यह क्या किया आप ने? मैं और राजन हम दोनों बिलकुल अलग हैं. मैं राजन से प्यार नहीं करती. मैं

यह शादी नहीं कर सकती,” देविका ने भर्राए स्वर में कहा.

“अरे, यह प्यारमुहब्बत फिल्मी कहानियों में ही अच्छे लगते हैं, हकीकत में नहीं. और फिर आखिर

क्या कमी है लड़के में, अच्छा परिवार है, राजन उन का इकलौता बेटा है और फिर सब से बड़ी बात,

पहल उन की तरफ से हुई है, और क्या चाहिए.”

देविका जैसे कुछ भी सोचनेसमझने की ताकत खो चुकी थी. सबकुछ जैसे हाथ में सिमटी रेत की

तरह फिसलता जा रहा था.

“देविका, हम तेरे मांबाप हैं. कभी तेरा बुरा नहीं सोच सकते. मुझे पूरा विश्वास है तू वहां बहुत खुश रहेगी. वे लोग तुझे बहुत प्यार देंगे,” आशा उस के सिर पर हाथ फेरती हुई बोली.

उस के बाद कब रस्में निभाई गईं और कब वह दुलहन बन कर राजन के घर आई, यह सब जैसे उस के होशोहवास में नहीं था.

कोरा कागज: भाग 4- आखिर कोरे कागज पर किस ने कब्जा किया

Writer- साहिना टंडन

इस दौरान रितेश वहां उपस्थित नहीं था. वह सीधा राजन के घर पहुंचा था.

विदाई के बाद राजन के घर में हुई रस्मों में जब देविका ने रितेश को राजन के साथ हंसतेबोलते देखा, तो उस के दिल में एक हूंक सी उठी.

“क्या कोई एहसास नहीं है इसे मेरी भावनाओं का, मेरे

जज्बातों का, क्या कभी भी एक दिन के लिए, एक पल के लिए भी इस ने मुझे नहीं चाहा. मैं ने तो अपना सर्वस्व प्रेम इस पर अर्पित कर देना चाहा था, पर यह इस कदर निष्ठुर क्यों है, क्या मैं इस की जिम्मेदारियां निभाने में सहभागी नहीं बन सकती थी. इस ने मुझे इस काबिल भी नहीं समझा.

“उफ्फ, अगर यह मेरे सामने रहा तो मैं पागल हो जाऊंगी,” देविका और बरदाश्त ना कर सकी. संपूर्ण ब्रह्मांड जैसे उसे घूमता सा लग रहा था. अगले ही पल वह बेहोश हो चुकी थी.

आंखें खुलीं, तो एक सजेधजे कमरे में उस ने खुद को पाया. वह उठी तो चूड़ियों और पायलों की

आवाज से राजन भी जाग गया, जो उस के साथ ही अधलेटी अवस्था में था.

“अब कैसी हो? यह

रिश्तेदार भी ना, यह रस्में, वह रिवाज, ऐसा लगता है जैसे शादी इस जन्म में हुई है और साथ रहना अगले जन्म में नसीब होगा. सारी रस्में निभातेनिभाते तुम तो बेहोश हो गई थी.”

देविका बिलकुल मौन थी.

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“आराम से लेट जाओ. अभी सुबह होने में कुछ वक्त है. मैं लाइट बुझा देता हूं,” राजन ने प्यार से

कहा और लाइट बंद कर कमरे से बाहर चला गया.

सुबह तैयार हो कर देविका सीधे पूनम के पास रसोई में पहुंची.

“कैसी हो तुम? रात को थकावट की वजह से

तुम्हारी तबीयत ही बिगड़ गई थी,” पूनम ने लाड़ से कहा.

“जी, अब ठीक हूं,” देविका ने धीमे से जवाब दिया, “आप यह रहने दीजिए. मैं करती हूं.”

“अभी तो नाश्ता टेबल पर लग चुका है, तो अब बस यह चाय की ट्रे ले चलो.”

चाय ले कर देविका टेबल पर पहुंची. नवीन और राजन वहां बैठे थे. देविका ने नवीन के पैर छुए, तो

नवीन ने उस के सिर पर हाथ फेर दिया और मुसकराते हुए पूनम से बोले, ”बस उलझा दिया बहू को पहले ही दिन रसोई में. सास का रोल अच्छे से निभा रही हो.”

“अरे, ऐसा नहीं है. बहू नहीं यह तो बेटी है मेरी,” पूनम ने मुसकराते हुए कहा.

“देविका यह सब कहने की बातें हैं. अच्छा सुनो, अब सब से पहले अपने इम्तिहान की तैयारी करना.

मैं तो चाहता था, शादी परीक्षा होने के बाद ही हो, पर यह मांबेटी की जोड़ी कहां मानने वाली थी

भला,” नवीन सहज भाव से बोले.

“जी, पापा,” देविका हलके से मुसकरा के रह गई.

देविका ने पूरा ध्यान पढ़ाई में लगा दिया था. इम्तिहान भी हो गए और देविका अच्छे नंबरों से पास भी हो गई.

तब नवीन और पूनम ने उन दोनों के बाहर जाने का प्रोग्राम बना दिया. ऊंटी की मनमोहक वादियों में भी जब देविका का चेहरा ना खिला तो शाम को राजन ने उस से पूछ ही लिया, “देविका, क्या बात

है? तुम शादी के बाद इतनी चुपचुप क्यों रहती हो? क्या तुम्हें मुझ से कोई शिकायत है?” राजन ने भोलेपन से पूछा.

यह सुन कर देविका कुछ पल उसे देखती रही. इस सब में राजन का क्या दोष है, उस ने तो सच्चे मन

से मुझ से प्यार किया है. क्यों मैं इस के प्यार का जवाब प्यार से नहीं दे सकती. मैं क्यों इसे वही

एहसास करवाऊं, जो मुझे हुआ है. नहीं, मैं इस का दिल नहीं तोड़ सकती. इसे जरूर एक खुशहाल जिंदगी का हक है.

देविका का दिलोदिमाग अब पूरी तरह से स्पष्ट था. राजन का हाथ उस के हाथ पर ही था. उस ने भी राजन के हाथ की पकड़ को और मजबूत करते हुए कहा, “ऐसी कोई बात नहीं है. मैं बहुत खुश हूं.”

देविका के चेहरे पर आंतरिक चमक थी. राजन को काफी हद तक संतुष्टि महसूस हुई और उस के

चेहरे पर एक निश्चल मुसकराहट आ गई. इस के बाद देविका ने राजन के सीने में अपना चेहरा छुपा

लिया.

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अगली सुबह वह बहुत हलका महसूस कर रही थी. शावर के नीचे जिस्म पर पड़ती पानी की फुहारों ने

जैसे उस का रोमरोम खिला दिया था. उस के नए जीवन की शुरुआत हो चुकी थी.

हनीमून से राजन और देविका काफी खुशहाल वापस लौटे. कुछ दिनों बाद रितेश के साथ एक अनहोनी घटना घट गई. एक रात आनंद बाबू की तबीयत काफी खराब हो गई. अस्पताल पहुंचने से

पहले ही उन्होंने दम तोड़ दिया. लता अब वहां रहना नहीं चाहती थी क्योंकि कुछ दिनों से आनंद अनु को बहुत याद कर रहे थे, इसलिए अब वो अनु से मिलने के लिए बेचैन हो उठी थी. उसे अपने

पास बुलाना चाहती थी. इस पर रितेश की बूआ ने कहा कि अभी अनु के लिए माहौल बदलना सही

नहीं है, क्यों ना वे लोग ही अब मकान बेच कर उन के पास आ जाएं. ऐसे हालात में लता को भी यही सही लगा. जल्दी ही रितेश का परिवार वहां से चला गया.

देविका शांत भाव से यह सब घटित होते देखती रही.

इस के बाद राजन और रितेश की दोस्ती सिर्फ फोन पर हुई बातों पर चलती रही और समय के साथ

साथ एक दिन सिर्फ दिल में ही बस गई. शायद रितेश का फोन नंबर बदल चुका था जो राजन के पास नहीं था.

देविका को लगभग डेढ़ वर्ष बाद पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई. अपूर्व बहुत प्यारा था. राजन की जान बसती थी उस में. अपनी तोतली भाषा में जब वो राजन को ‘पापा’ पुकारता था, तो राजन का दिल बल्लियों उछलने लगता था. इस तरह 5 वर्ष बीत गए.

इस बीच बिजनैस की एक जरूरी मीटिंग के लिए एक बार राजन को एक हफ्ते के लिए शहर से बाहर जाना पड़ा.

उस दिन वह वापस आने ही वाला था कि दरवाजे की डोरबेल बजी. दरवाजा देविका ने ही खोला. सामने रितेश खड़ा था. देविका जैसे बुत समान हो गई.

“रितेश…” देविका के पीछे से उसे देख कर पूनम के मुख से तेज स्वर में उस का नाम गूंजा. देविका झट

से संभली. वह दरवाजे से एक तरफ हट गई.

रितेश भीतर आते ही पूनम के पैरों में झुका. पूनम ने

उसे गले से लगा लिया, दोनों की आंखें भर आईं. ड्राइंगरूम में बैठे दोनों देर तक बातें करते रहे. इस

दौरान देविका रसोई में ही रही. रितेश अपूर्व के साथ खेलने में व्यस्त रहा. नवीन घर आए तो वह भी उसे देख कर बहुत खुश हुए. आनंद बाबू को भी बेहद याद किया नवीन और पूनम ने. तभी दोबारा डोरबेल बजी.

“पापा आ गए, पापा आ गए,” कहता हुआ अपूर्व दरवाजे की ओर भागा. वह गिर ना पड़े, इस के लिए

रितेश उस के पीछे गया. अपूर्व को गोद में ले कर दरवाजा रितेश ने खोला. राजन ही था सामने. एकदूसरे को देखते ही दोनों मौन हो कर रह गए.

कुछ पल यों ही बीत गए. तभी अपूर्व “पापा… पापा…” पुकारने लगा. राजन ने उसे अपनी गोद में ले कर प्यार किया और फिर नीचे उतारा. उस के हाथ में खिलौना था, जिसे देखते ही अपूर्व ने लपक कर वह छीन लिया.

“दादी दादी. देखो, पापा क्या लाए हैं,” अपूर्व पूनम की ओर भाग गया.

राजन और रितेश गले मिल कर जैसे दुनियाजहान को भूल गए. खाने की मेज पर भी उन्हीं की बात चलती रही. देर रात उन दोनों को छोड़ कर सभी सोने चले गए.

“पर यार तू ने अब तक शादी क्यों नहीं की? मैं तो सोचता था कि अब तक तो तू 2-3 बच्चों का बाप बन चुका होगा. कोई पसंद नहीं आई क्या?”

बरतन समेटती देविका के गले में जैसे कुछ अटक सा गया हो.

“अरे, तेरे जैसी किस्मत नहीं है मेरी. हमें तो कोई पसंद ही नहीं करता.”

“क्या कमी है मेरे यार में, वैसे, देविका की कोई छोटी बहन नहीं है, वरना अपनी आधी घरवाली को

तेरी पूरी बनवा देता. क्यों देविका,” यह कह कर राजन खुद ही हंस पड़ा.

देविका बरतन समेट कर रसोई में चली गई.

कोरा कागज: भाग 5- आखिर कोरे कागज पर किस ने कब्जा किया

Writer- साहिना टंडन

बात खत्म करने की नीयत से रितेश उठा और बोला, “चल यार चलता हूं, होटल में कमरा लिया हुआ है. रात वही रुकूंगा. कल 12 बजे की फ्लाइट है वापसी की.”

“शर्म नाम की चीज नहीं है तुझ में, अपना घर होते हुए भी क्या कोई होटल में रुकता है. यहां रुक रहा है तू. अब इस के आगे कोई एक्सक्यूज नहीं देना. तू बैठ, मैं अभी आता हूं,” कह कर राजन अपने कमरे की ओर चला गया.

रातभर रितेश करवटें बदलता रहा. सवेरे सवा 5 बजे के करीब वह बाहर निकला तो देखा देविका लौन में पानी दे रही थी. रितेश उसी ओर चला गया.

“गुड मौर्निंग.”

“तुम यहां कैसे?”

“तुम से कुछ बात करनी है.”

“कुछ बात नहीं बची है करने के लिए. अब वक्त बदल चुका है.”

“नहीं देविका, जो वक्त हम जीना चाहते हैं, वो कभी नहीं बदलता. बदलते तो हम खुद हैं, क्योंकि खुद

को परिस्थितियों के अनुसार ढाल लेते हैं. आओ, मेरे साथ उधर बैठें, आज बहुत कुछ है तुम्हें बताने

के लिए.”

ना जाने किस भावना के वशीभूत हो कर देविका उस के पीछे चल दी.

कोने में रखी कुरसियों पर दोनों बैठ गए. रितेश ने बोलना शुरू किया. जिस दिन तुम्हें पहली बार

देखा था, उसी दिन से दिल से अपना मान लिया था तुम्हें, पर इजहार करने का न तो कोई मौका मिला और ना ही हिम्मत पड़ी. या यों कहूं कि चाह कर भी मना न कर सका.

“क्यों…?” देविका जैसे शून्य में देखती हुई बोली.

“शायद तुम्हें पता नहीं है कि मेरी बड़ी बहन अनु दी, जो सीमा बूआ के पास है, वो चलनेफिरने में असमर्थ है. उन के जन्म के समय मम्मी जैसे मौत के मुंह से बाहर आई थीं. कितने ही हफ्ते वे बिस्तर में ही रहीं, तभी से अनु दी बूआ के पास ही पलीबढ़ी है और मम्मी जब घर आई थीं, तब भी वे बेहद कमजोर थीं. उन्हे स्वयं देखभाल की सख्त जरूरत थी. ऐसे में अनु दी का ध्यान रखने में वे असक्षम थीं.”

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देविका पूरे ध्यान से उस की बात सुन रही थी.

वह अकेली थी और अनु दी से उन का लगाव अब एक मां से ज्यादा हो चला था. ऐसे में हालात को देखते हुए बूआ ने अनु दी को अपने साथ ले जाना चाहा, तो मम्मीपापा मना ना कर सके.

वक्त के साथ भी मां कमजोरी से उबर नहीं पा रही थीं. उन के इलाज का खर्चा और अन्य खर्चों ने जैसे पापा को समय से पहले कमजोर कर दिया हो. धीरेधीरे मम्मी की तबीयत में सुधार हुआ, फिर मेरे जन्म

के कुछ वर्ष बाद मम्मीपापा पुराना शहर छोड़ कर यहां आ गए. यहां की जलवायु मम्मी को रास आ गई थी. सभी कुछ सुचारु रूप से चलने लगा. पापा की दुकान भी यहां जम गई थी कि उन्हीं दिनों पापा को पहला दिल का दौरा पड़ा. जान बच गई थी उन की, पर डाक्टरों के हिसाब से अब उन का दिल बेहद कमजोर हो चुका था. अपने कालेज के फौरन बाद मैं ने उन का सारा काम संभाल लिया था.

तभी तुम से मुलाकात हुई. जो थोड़ाबहुत भी तुम्हें जाना, वही बहुत था मेरे लिए. तुम्हारे लिए प्यार

बढ़ता ही जा रहा था. तब तो और भी भर गया, जब चाय नमकीन मिली,” रितेश उस की ओर देख कर धीमे से हंस पड़ा.

देविका की आंखों से जैसे आंसुओं की झड़ी बह निकली.

एक दिन बूआ का फोन आया कि अनु दी की तबीयत खराब हो गई है, उन्हे वहां अस्पताल में एडमिट करवाया गया था. मम्मी और मैं गए थे बूआ के घर, तब वहां जा कर पता लगा कि अनु दी की तबीयत संभल चुकी है और उन्हें डिस्चार्ज कर रहे हैं. तब बहुत मुश्किल से मैं तुम्हारी शादी वाली रात तक पहुंच सका था, सिर्फ राजन की वजह से.

“पर, पापा को जैसे आते वक्त के कुछ ऐसे एहसास हो चुके थे. एक दिन अनु दी को देखने की इच्छा के साथ ही उन्होंने प्राण त्याग दिए, फिर तो मम्मी का भी यहां रहना बहुत मुश्किल हो चला था.”

रितेश कुरसी से उठ खड़ा हुआ, कुछ कदम चला और फिर दोबारा बैठा. देविका दम साधे उसे ही देख रही

थी. एक गहरी सांस लेने के बाद रितेश ने दोबारा कहना शुरू किया, “फिर तो आगे जो हुआ तुम्हें पता ही है. अब मम्मी भी यहां रहना नहीं चाह रही थी, तो जल्दी हम यहां से चले गए. वहां पहुंचने पर देखा कि अनु दी काफी कमजोर लग रही थी, बहुत इलाज के बाद भी साल बीते ना बीते वह हम

सब को छोड़ कर चली गई.

देविका की जबान जैसे तालू से चिपक गई हो, “रितेश” बमुश्किल उस के मुंह से निकला.

इस अनहोनी घटना के बाद मैं ने एक छोटी सी कंपनी में नौकरी कर ली. अनुभव बढ़ता गया और अब बीते वर्ष से एक बड़ी कंपनी में मैनेजर के पद पर हूं. इस शहर में आने का मौका मिला तो भला तुम लोगों से मिले बिना कैसे रहता.

देविका अब भी नि:शब्द ही थी.

“देविका, अनजाने में ही सही, कभी तुम्हारा दिल दुखाया हो तो माफ कर देना मुझे. पर, सच तो यही

है कि सदा तुम्हें ही चाहा है. यहां अब और ज्यादा नहीं रुक पाऊंगा. फौरन ही निकल रहा हूं. मोबाइल अभी बंद ही रखूंगा. प्लीज, राजन को तुम संभाल लेना. अच्छा, चलता हूं.”

कुछ भी ना कह सकी देविका, बस उसे जाता हुआ देखती रही.

“क्यों होता है ऐसा, क्यों जो हम चाहते हैं वही हमें नहीं मिलता. काश, सब वैसा ही होता जैसा वह चाहती थी.”

प्लेन टेक औफ हो चुका था. कुछ देर बाद रितेश की नजर खिड़की से बाहर गई. जिस तरह सब धुंधला होता जा रहा था, हर शै जैसे छोटी होतेहोते आंखों से ओझल हो रही थी. काश, इनसानी जिंदगी भी वैसा ही होती. काश, अतीत को भूल कर ऊपर उठ जाना इतना ही आसान होता.

राजन उस के जाने की बात सुन कर कुछ व्यक्त ना कर सका. वह जानता था कि रितेश यहां ज्यादा ना रुक पाएगा. देविका से आमनासामना उसे सहेज ना होने देगा.

काश, राजन के जीवन से उस की सुहागरात निकल जाती. जब उस ने अर्धबेहोशी की अवस्था में देविका के मुंह से रितेश का नाम सुना था.

“मेरा खत कहां गया, रितेश तुम क्यों मुझे छोड़ कर चले गए, आई लव यू रितेश,” यह सुन कर राजन के कानों के पास जैसे कोई जोरदार धमाका हुआ हो.

उस के दिमाग में खत का पूरा नजारा घूम गया. खत में सिर्फ “R” लिखा था. ‘ओह’ तो वह खत

रितेश के लिए था और उस ने समझा कि उस के लिए है. काश, वह यह सच ना जान पाता.

यह एक ‘काश’ सदा के लिए उन तीनों की जिंदगियों में घर कर गया था, पर परिस्थितियों के चलते

जिस ने जो किया वही सही साबित हुआ.

यह सच है कि ‘काश’ ही जीवन का वह भाव है, जिस के जरीए सपने बुने भी जाते हैं और टूट भी जाते हैं, पर जीवन का दूसरा सब से बड़ा सच यह है कि हमें

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हकीकत के धरातल पर हंसतेमुसकराते हुए ही चलना होगा. पथरीले रास्तों में आने वाली कठिनाइयों

और चुनौतियों को महज वक्ती अवरोध समझ कर सामना करना होगा. यही जीवन की सचाई है.

जीवन तो एक ऐसे ‘कोरे कागज’ के समान है, जिस की प्रत्येक इबारत हम स्वयं लिखते हैं. स्वयं चुनाव करते हैं कि किस राह पर यह जीवन सफर तय करना है और कौन इस में हमसफर बनेगा.

मंजिल यकीनन हमारे अनुरूप ही आकार लेगी. बस, इसी विश्वास की जड़ें जमानी होंगी.

एयर होस्टेस ने रितेश के पास जा कर चाय के लिए पूछा.

“चीनी नहीं, एक चम्मच नमक,” रितेश ने हंसते हुए कहा.

“जी, क्या…?” सुन कर वह चौंक पड़ी और रितेश खुल कर हंस पड़ा.

इधर देविका अपूर्व की खास फरमाइश पर आलू का परांठा बनाने रसोई में चली गई और राजन तो

बारबार रितेश को फोन मिला रहा था.

“अरे, तुम देर से सो कर उठे हो. वह तो अभी फ्लाइट में होंगे. कुछ देर बाद फोन मिला लेना,” देविका

ने कहा.

“अब फोन क्या मिलाना, अगले हफ्ते हम भी चलते हैं ना. एक सरप्राइज लता आंटी को हम भी दे देते हैं और इस बार पक्का इस की शादी का जश्न मना कर ही लौटेंगे. क्यों ठीक है ना.”

राजन के इस सवाल का जवाब देविका ने एक निश्चल मुसकराहट के साथ ‘हां’ के इशारे में सिर हिला

कर दिया.

सबको साथ चाहिए- भाग 3: पति की मौत के बाद माधुरी की जिंदगी में क्या हुआ?

Writer- Vinita Rahurikar

‘मैं बूढ़ी आखिर कब तक तेरी गृहस्थी की गाड़ी खींच पाऊंगी. और फिर कुछ सालों बाद तेरे बच्चों का ब्याह होगा. कौन करेगा वह सब भागदौड़ और उन के जाने के बाद तेरा ध्यान रखने को और सुखदुख बांटने को भी तो कोई चाहिए न. अपनी मां की इस बात पर सुधीर निरुत्तर हो गए और वही सब बातें दोहरा कर माधुरी की मां ने जैसेतैसे उसे विवाह के लिए तैयार करवा लिया.

‘बेटी अकेलापन बांटने कोई नहीं आता. यह मत सोच कि लोग क्या कहेंगे? लोग तो अच्छेबुरे समय में बस बोलने आते हैं. साथ देने के लिए आगे कोई नहीं आता. अपना बोझ आदमी को खुद ही ढोना पड़ता है. सुधीर अच्छा इंसान है. वह भी अपने जीवन में एक त्रासदी सह चुका है. मुझे पूरा विश्वास है कि वह तेरा दुख समझ कर तुझे संभाल लेगा. तुम दोनों एकदूसरे का सहारा बन सकोगे.’

माधुरी ने भी मां के तर्कों के आगे निरुत्तर हो कर पुनर्विवाह के लिए मौन स्वीकृति दे दी. वैसे भी वह अब अपनी वजह से मांपिताजी को और अधिक दुख नहीं देना चाहती थी.

लेकिन तब से वह मन ही मन ऊहापोह में जी रही थी. सवाल उस के या सुधीर के आपस में सामंजस्य निभाने का नहीं था. सवाल उन 4 वयस्क होते बच्चों के आपस में तालमेल बिठाने का है. वे आपस में एकदूसरे को अपने परिवार का अंश मान कर एक घर में मिलजुल कर रह पाएंगे? सुधीर और माधुरी को अपना मान पाएंगे?

यही सारे सवाल कई दिनों से माधुरी के मन में चौबीसों घंटे उमड़तेघुमड़ते रहते. जैसेजैसे विवाह के लिए नियत दिन पास आता जा रहा था ये सवाल उस के मन में विकराल रूप धारण करते जा रहे थे.

माधुरी अभी इन सवालों में उलझी बैठी थी कि मां ने उस के कमरे में आ कर सुधीर की मां के आने की खबर दी. माधुरी पलंग से उठ कर बाहर जाने के लिए खड़ी ही हुई थी कि सुधीर की मां स्वयं ही उस के कमरे में चली आईं. उन के साथ 14-15 साल की एक प्यारी सी लड़की भी थी. माधुरी को समझते देर नहीं लगी कि यह सुधीर की बेटी स्नेहा है. माधुरी ने उठ कर सुधीर की मां को प्रणाम किया. उन्होंने प्यार से उस के सिर पर हाथ फेरा और कहा, ‘मैं समझती हूं माधुरी बेटा, इस समय तुम्हारी मनोस्थिति कैसी होगी? मन में अनेक सवाल घुमड़ रहे होंगे. स्वाभाविक भी है.

‘मैं बस इतना ही कहना चाहूंगी कि अपने मन से सारे संशय दूर कर के नए विश्वास और पूर्ण सहजता से नए जीवन में प्रवेश करो. हम सब अपनीअपनी जगह परिस्थिति और नियति के हाथों मजबूर हो कर अधूरे रह गए हैं. अब हमें एकदसूरे को पूरा कर के एक संपूर्ण परिवार का गठन करना है. इस के लिए हम सब को ही प्रयत्न करना है. मेरा विश्वास है कि इस में हम सफल जरूर होंगे. आज मैं अपनी ओर से पहली कड़ी जोड़ने आई हूं. एक बेटी को उस की मां से मिलाने लाई हूं. आओ स्नेहा, मिलो अपनी मां से,’ कह कर उन्होंने स्नेहा का हाथ माधुरी के हाथ में दे दिया.

स्नेहा सकुचा कर सहमी हुई सी माधुरी की बगल में बैठ गई तो माधुरी ने खींच कर उसे गले से लगा लिया. मां के स्नेह को तरस रही स्नेहा ने माधुरी के सीने में मुंह छिपा लिया. दोनों के प्रेम की ऊष्मा ने संशय और सवालों को बहुत कुछ धोपोंछ दिया.

‘बस, अब आगे की कडि़यां हम मां- बेटी मिल कर जोड़ लेंगी,’ सुधीर की मां ने कहा तो पहली बार माधुरी को लगा कि उस के मन पर पड़े हुए बोझ को मांजी ने कितनी आसानी से उतार दिया.

जल्द ही एक सादे समारोह में माधुरी और सुधीर का विवाह हो गया. माधुरी के मन का बचाखुचा भय और संशय तब पूरी तरह से दूर हो गया, जब सुधीर से मिलने वाले पितृवत स्नेह की छत्रछाया में उस ने प्रिया को प्रशांत के जाने के बाद पहली बार खुल कर हंसते देखा. अपने बच्चों को ले कर माधुरी थोड़ी असहज रहती, मगर सुधीर ने पहले दिन से ही मधुर और प्रिया के साथ एकदम सहज पितृवत व स्नेहपूर्ण व्यवहार किया. सुधीर बहुत परिपक्व और सुलझे हुए इंसान थे और मांजी भी. घर में उन दोनों ने इतना सहज और अनौपचारिक अपनेपन का वातावरण बनाए रखा कि माधुरी को लगा ही नहीं कि वह बाहर से आई है. सुधीर का बेटा सुकेश और मधुर भी जल्दी ही आपस में घुलमिल गए. कुछ ही महीनों में माधुरी को लगने लगा कि जैसे यह उस का जन्मजन्मांतर का परिवार है.

मेरी उम्र 16 वर्ष है, मैं लड़कियों से बात करने में घबराता हूं मुझे क्या करना चाहिए?

सवाल

मेरी उम्र 16 वर्ष है. मैं लड़कियों से बात करने में घबराता हूं. अभी तक मैं ऐसे स्कूल में पढ़ता था जहां सिर्फ लड़के ही थे, पर यह कोऐजुकेशन है. जब अन्य लड़के लड़कियों से बिंदास बातें करते हैं, तो मुझे खुद पर खीझ होती है. मैं क्या करूं?

जवाब

पहले तो अपने को सहज कीजिए और लड़का लड़की का फर्क दिमाग से निकाल कर सहपाठी जैसी मानसिकता बनाइए. फिर लड़की हो या लड़का आप को उस से बात करने में हिचक नहीं होगी. ठीक उसी तरह लड़कियों से बात करें जिस तरह दोस्तों से करते हैं, परेशानी अपनेआप हल हो जाएगी. लड़कियां कोई हौआ तो हैं नहीं जो आप को डर लगे. साथ ही अपने को अंतर्मुखी के बजाय बहिर्मुखी बनाइए. जब आप सब से बोलने लगेंगे तो वे भी आप से बात करेंगे, फिर धीरेधीरे आप भी बिंदास हो जाएंगे.

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गंदी नजरों से बचना इतना दर्दनाक क्यों ?

मैट्रो स्टेशन में हों या भीड़भरी सड़कों पर, बस में हों या बाइक अथवा रिकशे पर आप ने अकसर देखा होगा कि लड़कियां अकसर दुपट्टे या स्टोल से अपने पूरे चेहरे और बालों को ढक कर रखती हैं. सिर्फ उन की आंखें दिखती हैं. कभीकभी तो उन पर भी गौगल्स चढ़े होते हैं. इन लड़कियों की उम्र होती है 15 से 35 साल के बीच.

अब आप के मन में यह सवाल उठ रहा होगा कि आखिर ये लड़कियां डाकू की तरह अपना चेहरा क्यों छिपाए रखती हैं? आखिर प्रदूषण, धूलमिट्टी से तो पुरुषों और अधिक उम्र की महिलाओं को भी परेशानी होती है. फिर ये लड़कियां किस से बचने के लिए ऐसा करती हैं?

दरअसल, ये लड़कियां बचती हैं गंदी नजरों से. पुरुष जाति यों तो महिलाओं के प्रति बहुत सहयोगी होती है पर कई दफा भीड़ में इन लड़कियों का सामना ऐसी नजरों से भी हो जाता है जो कपड़ों के साथसाथ शरीर का भी पूरा ऐक्सरे लेने लगती हैं. उन नजरों से वासना की लपटें साफ नजर आती हैं. मौका मिलते ही ऐसी नजरों वाले लोग लड़कियों को दबोच कर उन के अरमानों, सपनों के परों को क्षतविक्षत कर फेंक डालते हैं.

नैशनल क्राइम रिकौर्ड्स ब्यूरो की 2014 की रिपोर्ट के अनुसार हमारे देश में हर एक घंटे में 4 रेप यानी हर 14 मिनट में 1 रेप होता है. ऐसे में लड़कियों को खुद ही अपनी हिफाजत करने का प्रयास करना होगा. उन निगाहों से पीछा छुड़ाना होगा जो उन के स्वतंत्र वजूद को नकारती हैं. उन के हौसलों को जड़ से मिटा डालती हैं. यही वजह है कि  अब लड़कियां जूडोकराटे सीख रही हैं. छुईमुई बनने के बजाय दंगल में लड़कों को चित करना पसंद कर रही हैं. पायलट बन कर सपनों को उड़ान देना सीख रही हैं, नेता बन कर पूरे समाज को अपने पीछे चलाने का जज्बा बटोर रही हैं.

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मगर सच यह भी है कि उदाहरण बनने वाली ऐसी महिलाएं अब भी ज्यादा नहीं हैं. अभी भी ऐसी महिलाओं की भरमार है, जिन के साथ भेदभाव और क्रूरता का नंगा खेल खेला जाता है. उन के मनोबल को गिराया जाता है और यह काम सिर्फ पुरुष ही नहीं करते, अकसर महिलाएं भी महिलाओं के साथ ऐसा करती हैं. सुरक्षा के नाम पर उन की जिंदगी से खेलती है.

ऐसी ही एक दिल दहलाने वाली प्रथा है. मर्दों की गंदी नजरों से बचाने के लिए ब्रैस्ट आयरनिंग.

ब्रैस्ट आयरनिंग

ब्रैस्ट आयरनिंग यानी सीने को गरम प्रैस से दबा देना. इस पंरपरा के तहत लड़कियों के सीने को किसी गरम चीज से दबा दिया जाता है ताकि उन के उभारों को रोका जा सके और उन्हें मर्दों की गंदी नजरों से बचाया जा सके.

अफ्रीका महाद्वीप के कैमरून, नाइजीरिया और साउथ अफ्रीका के कुछ समुदायों में माना जाता है कि महिलाओं की ब्रैस्ट को जलाने से उस की वृद्धि नहीं होती. तब पुरुषों का ध्यान लड़कियों पर नहीं जाएगा. इस से रेप जैसी घटनाएं कम होंगी. किशोरियों के पेरैंट्स ही उन के साथ यह घिनौनी हरकत करते हैं. ब्रैस्ट आयरनिंग के

58% मामलों में लड़की की मां ही इसे अंजाम देती है. पत्थर, हथौड़े या चिमटे को आग में तपा कर बच्चियों की ब्रैस्ट पर लगाया जाता है ताकि उन की ब्रैस्ट के सैल्स हमेशा के लिए नष्ट हो जाएं.

यह दर्दभरी प्रक्रिया सिर्फ इसलिए ताकि लड़कियों को जवान दिखने से रोका जा सके. ज्यादा से ज्यादा दिनों तक वे बच्ची ही लगें और उन पुरुषों से बची रहें जो उन्हें अगवा करते हैं, उन का यौनशोषण करते हैं या उन पर भद्दे कमैंट करते हैं. यानी इसे बचाव का तरीका माना जाता है. बचाव यौन शोषण से, बचाव रेप से, बचाव मर्दों की लड़कियों में इंटरैस्ट से.

कैमरून की अधिकतर लड़कियां 9-10 साल की उम्र में ब्रैस्ट आयरनिंग की प्रक्रिया से गुजर चुकी होती हैं. ब्रैस्ट आयरनिंग की यह बीभत्स प्रक्रिया लड़कियों के साथ 2-3 महीनों तक लगातार की जाती है.

अफ्रीका के गिनियन गल्फ में स्थित कैमरून की आबादी करीब 1.5 करोड़ है और यहां करीब 250 जनजातियां रहती हैं. टोगो, बेनिन और इक्काटोरिअल गुनिया से सटे इस देश को ‘मिनिएचर अफ्रीका’ भी कहा जाता है. इस अजीबोगरीब प्रथा के कारण पिछले कुछ समय से कैमरून काफी चर्चा में है.

मूल रूप से पश्चिमी अफ्रीफा में शुरू हुई यह परंपरा अब ब्रिटेन समेत कुछ अन्य यूरोपीय देशों तक पहुंच गई है. एक अनुमान के मुताबिक ब्रिटेन में भी करीब 1 हजार लड़कियों को इस प्रक्रिया से गुजरता पड़ा है.

इस प्रथा का लड़कियों की सेहत पर बहुत बुरा असर पड़ता है, सिर्फ शारीरिक ही नहीं, मानसिक भी. ब्रैस्ट आयरनिंग की वजह से उन्हें इन्फैक्शन, खुजली, ब्रैस्ट कैंसर जैसी बीमारियां हो जाती हैं. आगे चल कर स्तनपान कराने में भी काफी दिक्कत का सामना करना पड़ता है.

गौरतलब है कि अन्य अफ्रीकी देशों की तुलना में कैमरून की साक्षरता दर सब से अधिक है. सैक्सुअल आकर्षण और दिखावे से बचाने के लिए की जाने वाली इस बीभत्स प्रथा के बावजूद यहां लड़कियों के कम उम्र में गर्भवती होने के मामले सामने आते रहते हैं.

जाहिर है, ब्रैस्ट आयरनिंग से इस धारणा को जोर मिलता है कि लड़कियों के शरीर का आकर्षण ही पुरुषों को बेबस करता है कि वे इस तरह की हरकतें करें, यौन हमलों या रेप जैसी घटनाओं में पुरुषों की कोई गलती नहीं होती.

यह प्रथा जैंडर वायलैंस के तहत आती है. एक ऐसा वायलैंस जिसे सुरक्षा के नाम पर घर वाले ही अंजाम देते हैं और अपनी ही बच्ची की जिंदगी तबाह कर डालते हैं.

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दुनियाभर में लड़कियों को ऐसी दर्दनाक प्रथाओं से गुजरना पड़ता है ताकि उन की इज्जत बची रहे. जैसे इज्जत कोईर् चीज है जिसे ऐसी ऊलजलूल प्रथाओं द्वारा चोरी हो जाने से बचाया जा सकता है.

कुप्रथाओं का काला इतिहास

महिलाओं पर अत्याचार की कहानी बहुत पुरानी है और तरीके भी बहुत सारे हैं. तरहतरह से प्रथाओं और परंपराओं के नाम पर उन के साथ ज्यादतियां की जाती हैं, उन्हें सताया जाता है और पीड़ा पहुंचाई जाती है. उन के तन के साथसाथ उन के मन को भी कुचला जाता है. हम बता रहे हैं कुछ ऐसी प्रथाओं के बारे में जिन का मकसद कभी महिलाओं की पवित्रता की जांच करना होता है तो कभी उन की सुरक्षा, कभी उन की खूबसूरती बढ़ाना तो कभी बदसूरत बनाना. यानी वजह कुछ भी हो मगर मूल रूप में मकसद होता है उन्हें प्रताडि़त करना और पुरुषों के अधीन रखना:

  1. औरतों को खतना जैसी कुप्रथा का भी शिकार होना पड़ता है. इस में औरतों का क्लाइटोरिस काट दिया जता है ताकि उन का सैक्स करने का मन न करे. भारत में इस प्रथा का चलन बोहरा मुसलिम समुदाय में है. भारत में बोहरा आबादी आमतौर पर गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल में है. 10 लाख से अधिक आबादी वाला यह समाज काफी समृद्ध है और दाऊदी बोहरा समुदाय भारत के सब से ज्यादा शिक्षित समुदायों में से एक है. पढ़ेलिखे होने के बावजूद वे इस तरह की बेसिरपैर की बातों में यकीन करते हैं.
  2. लड़कियों का खतना किशोरावस्था से पहले यानी 6-7 साल की उम्र में ही करा दिया जाता है. इस के कई तरीके हैं जैसे ब्लेड या चाकू का इस्तेमाल कर क्लाइटोरिस के बाहरी हिस्से में कट लगाना या बाहरी हिस्से की त्वचा निकाल देना. खतना से पहले ऐनेस्थीसिया भी नहीं दिया जाता. बच्चियां पूरे होशोहवास में रहती हैं और दर्द से चीखती रहती हैं.
  3. खतना के बाद हलदी, गरम पानी और छोटेमोटे मरहम लगा कर दर्द कम करने की कोशिश की जाती है. माना जाता है कि क्लाइटोरिस हटा देने से लड़की की यौनेच्छा कम हो जाएगी और वह शादी से पहले यौन संबंध नहीं बनाएगी.
  4. खतना से औरतों को शारीरिक तकलीफ तो उठानी ही पड़ती है, इस के अलावा तरहतरह की मानसिक परेशानियां भी होती हैं. उन की सैक्स लाइफ पर भी असर पड़ता है और वे भविष्य में सैक्स ऐंजौय नहीं कर पातीं.
  5. द्य थाईलैंड की केरन जनजाति में लंबी गरदन महिलाओं की खूबसूरती की निशानी मानी जाती है. उन की गरदन लंबी करने के लिए उन्हें एक दर्दभरी प्रक्रिया से गुजारा जाता है.
  6. 5 साल की उम्र से उन के गले में रिंग पहना दी जाती है. इस से गरदन भले ही लंबी हो जाती हो, लेकिन जिस दर्द और तकलीफ से गुजरना होता है उसे पीडि़ताएं ही समझ सकती हैं. वे अपनी गरदन पूरी तरह घुमा भी नहीं पातीं और यह रिंग उन्हें उम्रभर पहननी पड़ती है.
  7. द्य रोमानिया, इटली, संयुक्त राज्य अमेरिका के अलावा अन्य कई देशों में रोमन जिप्सी समुदाय के लोग रहते है. इस समुदाय में किसी लड़की से शादी की इच्छा हो तो लड़के को उस का अपहरण करना होता है. लड़का यदि 3-4 दिनों तक लड़की को उस के मातापिता से छिपा कर रखने में सफल हो जाता है तो वह लड़की उस की संपत्ति मानी जाती हैऔर फिर उन दोनों की शादी कर दी जाती है.
  8. भारत में लंबे समय तक बहुविवाह प्रथा कायम रही. इस के तहत पुरुष को यह आजादी थी कि वह जब चाहे जितनी चाहे महिलाओं को अपनी स्त्री बना सकता था. इस के कारण औरतें अपने पति के लिए भोग की वस्तु बन कर रह गई थीं.
  9. इसी तरह केरल और हिमाचल में बहुपतित्व की परंपरा कायम है, जिस में एक स्त्री को 1 से अधिक पतियों की पत्नी बनना स्वीकार करना पड़ता है. इस व्यवस्था के तहत पहले ही निश्चित कर लिया जाता है कि स्त्री कितने दिन तक किस पति के साथ रहेगी.
  10. दक्षिण भारत की आदिवासी जनजाति टोडा, उत्तरी भारत के जौनसर भवर में, त्रावणकोर और मालाबार के नायरों में, हिमाचल के किन्नोर और पंजाब के मालवा क्षेत्र में भी यह प्रथा देखने को मिल जाती है. जहां पहले बहुपतित्व जैसी परंपरा स्त्री को भावनात्मक और मानसिक रूप से तोड़ देती थी, वहीं अब बहुपतित्व की यह प्रथा उसे शारीरिक रूप से भी झकझोर देती है.
  11. केन्या, घाना और युगांडा जैसे देशों में एक विधवा औरत को यह साबित करना होता है कि उस के पति की मौत उस की वजह से नहीं हुई है. ऐसे में उस विधवा औरत को क्लिनजर के साथ सोना पड़ता है. कहींकहीं विधवा को अपने मृत पति के शरीर के साथ ही 3 दिनों तक सोना पड़ता है. परंपरा के नाम पर उसे पति के भाइयों के साथ सैक्स करने पर भी मजबूर किया जाता है.
  12. सुमात्रा की मैनताइवान जनजाति में औरतों के दांतों को ब्लेड से नुकीला बनाया जाता है. यहां ऐसी मान्यता है कि नुकीले दांतों वाली औरत ज्यादा खूबसूरत लगती है.
  13. इसी तरह अफ्रीका की मुर्सी और सुरमा जनजाति की महिलाएं जब प्यूबर्टी की उम्र में आ जाती हैं तो उन के नीचे के सामने के 2 दांतों को तोड़ कर निचले होंठ में छेद कर के उसे खींच कर एक प्लेट लगाई जाती है. दर्द सहने के लिए कोई दवा भी नहीं दी जाती. हर साल इस लिप प्लेट का आकार बढ़ाया जाता है. ऐसा माना जाता है कि जितनी बड़ी प्लेट और जितने बड़े होंठ होंगे वह महिला उतनी ही खूबसूरत होगी.
  14. सोमालिया और इजिप्ट के कुछ पिछड़े समुदायों में बहुत ही अजीब कारण से क्लिटोरल को विकृत कर दिया जाता है. किशोरियों की वर्जिनिटी की रक्षा के लिए बिना दवा दिए वैजाइना को सील कर दिया जाता है. यह आज भी लागू हो रही है हालांकि कम हो चुकी है.
  15. इसलामिक गणराज्य मौरिटानिया के कुछ हिस्सों में माना जाता है कि अधिक वजन वाली पत्नी खुशी और समृद्धि लाती है. ऐसे में यहां शादी से पहले युवतियों को जबरदस्ती रोज लगभग 16,000 कैलोरी की डाइट दी जाती है ताकि उन का वजन बढ़ जाए.
  16. अरुणाचल प्रदेश की जीरो वैली की अपातानी ट्राइब की महिलाओं की नाक के छेद में वुडन प्लग्स इन्सर्ट कर दिए जाते थे. ऐसा उन्हें बदसूरत दिखाने के लिए किया जाता था ताकि कोई ट्राइब महिला को किडनैप न करें. हालांकि अब इस पर काफी हक तक रोक लग गई है.

क्या पुरुष दूध के धुले होते हैं

भारतीय इतिहास में चाणक्य और उस के अर्थशास्त्र का काफी नाम है. जरा स्त्रियों के प्रति उस के विचारों पर गौर करें-

स्त्रियां एक के साथ बात करती हुईं दूसरे की ओर देख रही होती हैं और चिंतन किसी और का हो रहा होता है. इन्हें किसी एक से प्यार नहीं होता.

कहने का मतलब यह है कि स्त्री जैसा पतित और व्यभिचारी और कोई नहीं होता. मगर क्या चाणक्य से यह नहीं पूछा जाना चाहिए था कि क्या पुरुष दूध के धुले होते हैं?

कामवासना तो मानव प्रवृति का एक स्वाभाविक हिस्सा है और मर्यादा का उल्लंघन करने की प्रवृत्ति स्त्री और पुरुष दोनों में समान रूप से मिलती है. परंतु धर्मशास्त्रों में सदा से व्यभिचार के लिए स्त्री चरित्र को ही दोष दिया गया है. पुरुष अपने दुष्कर्मों को आसानी से छिपा सकता है. समाज में उस की स्थिति मजबूत होती है, इसलिए वह दोषमुक्त हो जाता है, जबकि स्त्री को हमेशा शोषण सहना पड़ा है.

जरूरी है कि हम सदियों पुरानी अपनी मानसिकता में बदलाव लाएं. जरा आंखें खोल कर देखें कि शारीरिक रूप से भिन्न होने के बावजूद स्त्री और पुरुष प्रकृति की 2 एकसमान रचनाएं हैं. दोनों के मिल कर और एक स्तर पर आगे बढ़ने से ही समाज की प्रगति संभव है. स्त्री हो या पुरुष दोनों को समान अवसर और समान दर्जा दिया जाना वक्त की मांग है.

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