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हम लोग सहवास के दौरान कोई सावधानी नहीं बरत रहे, इसके बावजूद मैं गर्भवती नहीं हो पा रही, क्या करूं?

सवाल

मैं 25 वर्षीय युवती हूं. विवाह को 4 महीने हो चुके हैं. हम लोग सहवास के दौरान कोई सावधानी नहीं बरत रहे, इस के बावजूद मैं गर्भवती नहीं हो पा रही. मेरे पति जल्द बच्चा चाहते हैं. कृपया बताएं कि क्या हमें किसी डाक्टर से परामर्श लेना चाहिए?

जवाब

अभी आप के विवाह को बहुत कम समय हुआ है. मौजमस्ती करें, जिंदगी का भरपूर लुत्फ उठाएं, क्योंकि इस तरह का समय दोबारा (परिवार की जिम्मेदारी पड़ने पर) नहीं मिलेगा. अभी संतानोत्पत्ति के लिए चिंतित नहीं होना चाहिए. कई बार गर्भ ठहरने में थोड़ा वक्त लगता है. यदि कुछ और समय बीतने पर भी आप गर्भधारण नहीं कर पातीं, तब आप दोनों किसी डाक्टर से परामर्श ले सकते हैं.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

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एक साथी की तलाश: भाग 3- क्या श्यामला अपने पति मधुप के पास लौट पाई?

थोड़े दिन तक तो उस के लौट आने का इंतजार किया. फिर फोन करने की कोशिश की, श्यामला ने फोन नहीं उठाया. मिलने की कोशिश की, श्यामला ने मिलने से इनकार कर दिया. धीरेधीरे उन दोनों के बीच की दरार बढ़तेबढ़ते खाई बन गई. दोनों दो किनारों पर खड़े रहे गए. मनाने की उन की आदत थी नहीं, जो मना लाते.

नौकरी की व्यस्तता में एक के बाद एक दिन व्यतीत होता रहा. एक दिन सब ठीक हो जाएगा, श्यामला लौट आएगी, ये उम्मीद धीरेधीरे धुंधली पड़ती गई.

उस समय श्यामला की उम्र 41 साल थी और वे स्वयं 45 साल के थे. तब से एकाकी जीवन, नौकरी और बिरूवा के सहारे काट दिया उन्होंने. बच्चों के भविष्य की चिंता ने श्यामला को किसी तरह बांध रखा था उन से. उन के कैरियर के रास्ता पकड़ने के बाद वह रुक नहीं पाई. इतना मजबूत नहीं था शायद उन का और श्यामला का रिश्ता.

श्यामला को रोकने में उन का अहम आड़े आया था. लेकिन बिरूवा को उन्होंने घर से कभी जाने नहीं दिया. उस का गांव में परिवार था, पर वह मुश्किल से ही गांव जा पाता था. उन के साथ बिरूवा ने भी अपनी जिंदगी तनहा बिता दी थी. बच्चों ने अपनी उम्र के अनुसार मां को बहुतकुछ समझाने की कोशिश भी की, पर श्यामला पर बच्चों के कहने का भी कोई असर नहीं पड़ा. वे इतने बड़े भी नहीं थे कि कुछ ठोस कदम उठा पाते. थकहार कर वे चुप हो गए. कुछ छुट्टियां मां के पास बिताते और कुछ छुट्टियां पिता के पास बिता कर वापस चले जाते.

श्यामला के मातापिता ने भी शुरू में काफी समझाया उस को. लेकिन श्यामला तो जैसे पत्थर सी हो चुकी थी. कुछ भी सुनने को तैयार नहीं थी वह. हार कर उन्होंने घर का एक कमरा और किचन उसे रहने के लिए दे दिया. कुछ पैसा उस के नाम बैंक में जमा कर दिया. बच्चों का खर्चा तो पिता उठा ही रहे थे.

बेटों की इंजीनियरिंग पूरी हुई तो वे नौकरियों पर आ गए. आजकल एक बेटा मुंबई में तो दूसरा बेटा जयपुर में कार्यरत था.

बेटों की नौकरी लगने पर वे जबरदस्ती मां को अपने साथ ले गए. वे कई बार सोचते, श्यामला उन के साथ अकेलापन महसूस करती थी तो क्या अब नहीं करती होगी. ऐसा तो नहीं था कि उन्हें श्यामला या बच्चों से प्यार नहीं था, पर चुप रहना या शौकविहीन होना उन का स्वभाव था. अपना प्यार वे शब्दों से या हावभाव से ज्यादा व्यक्त नहीं कर पाते थे. लेकिन वे संवेदनहीन तो नहीं थे. प्यार तो अपने परिवार से वे भी करते थे. उन के दुख से चोट तो उन को भी लगती थी. श्यामला के अलग चले जाने पर भी उस के सुखदुख की चिंता तो उन्हें तब भी सताती थी.

दोनों बेटों ने प्रेम विवाह किए. दोनों के विवाह एक ही दिन श्यामला के मायके में ही संपन्न हुए.

हालांकि बच्चों ने उन के पास आ कर उन्हें सबकुछ बता कर उन की राय मांग कर उन्हें पूरी इज्जत बख्शी, पर उन के पास हां बोलने के सिवा चारा भी क्या था. बिना मां के वे अपने पास से बच्चों का विवाह करते भी कैसे. उन्होंने सहर्ष हामी भर दी. जो भी उन से मदद बन पड़ी, उन्होंने बच्चों की शादी में की. और दो दिन के लिए जा कर शादी में परायों की तरह शरीक हो गए.

जब से श्यामला बच्चों के साथ रहने लगी थी, वे उस की तरफ से कुछ बेफिक्र हो गए थे. बेटों ने उन्हें भी कई बार अपने पास बुलाया, पर पता नहीं उन के कदम कभी क्यों नहीं बढ़ पाए. उन्हें हमेशा लगा कि यदि उन्होंने बच्चों के पास जाना शुरू कर दिया तो कहीं श्यामला वहां से भी चली न जाए. वे उसे फिर से इस उम्र में घर से बेघर नहीं करना चाहते थे.

बच्चे शुरूशुरू में कभीकभार उन के पास आ जाते थे. फिर धीरेधीरे वे भी अपने परिवार में व्यस्त हो गए. वैसे भी मां ही तो सेतु होती है बच्चों को बांधने के लिए. वह तो उन्हीं के पास थी. मधुर सोचते उन के स्वभाव में यदि निर्जीवता थी तो श्यामला तो जैसे पत्थर हो गई थी. क्या कभी श्यामला को इतने सालों का साथ, उन का संसर्ग, स्पर्श नहीं याद आया होगा. ऐसी ही अनेकों बातें सोचतेसोचते न जाने कब उन्हें नींद ने आ घेरा.

अतीत में भटकते मधुप को बहुत देर से नींद आई थी. सुबह उठे तो सिर बहुत भारी था. नित्य कर्म से निबट कर मधुप बाहर बैठ गए. बिरूवा भी वहीं नाश्ता दे गया.

‘‘साब,’’ बिरूवा झिझकता हुआ बोला, “एक बार मालकिन को मना लाने की कोशिश कीजिए, हम भी कब तक रहेंगे. अपने बालबच्चों, परिवार के पास जाना चाहते हैं हम भी अब, आप कैसे अकेले रहेंगे साब. न हो तो आप ही मालकिन के पास चले जाइए.’’

उन्होंने चौंक कर बिरूवा का चेहरा देखा. इस बार बिरूवा रुकने वाला नहीं है. वह जाने के लिए कटिबद्ध है. देरसवेर बिरूवा अब अवश्य चला जाएगा. कैसे और किस के सहारे काटेंगे वे अब बाकी की जिंदगी. एक विराट प्रश्नचिन्ह उन के सामने जैसे सलीब पर टंगा था. सामने मरुस्थल की सी शून्यता थी, जिस में दूरदूर तक छांव का नामोनिशान नहीं था. आखिर ऐसी मरुस्थल सी जिंदगी में वे प्यासे कब तक और कहां तक भटकेंगे अकेले, दो दिन इसी सोच में डूबे रहे. दिल कहता कि श्यामला को मना लाएं, पर कदम थे कि उठने से पहले ही थम जाते थे. क्या करें और क्या न करें, इसी उहापोह में अगले कई दिन गुजर गए. सोचते रहते कि क्या उन्हें श्यामला को मनाने जाना चाहिए? क्या एक बार फिर प्रयत्न करना चाहिए? अपने अहम को दरकिनार रख कर इतने वर्षों के बाद जाते भी हैं और अगर श्यामला न मानी तो क्या मुंह ले कर वापस आएंगे?

किस से कहें अपने दिल की बात और किस से मांगें सलाह. ‘‘बिरूवा’’ उन के दिल में कौंधा, और किसी से तो उन का अधिक संपर्क रहा नहीं. वैसे भी और किसी से कहेंगे तो वह उन की बात पर हंसेगा कि कब याद आई. आखिर बिरूवा से पूछ ही बैठे एक दिन,

‘‘बिरूवा, क्या तुम्हें वाकई लगता है कि मुझे एक बार उन्हें मना लाने की कोशिश करनी चाहिए?’’

उन के स्वर में काफी बेचारगी थी अपने स्वाभिमान के सिंहासन से नीचे उतरने की. बिरूवा चौंक गया उन का इस कदर लाचार स्वर सुन कर, उन की कुरसी के पास बैठता हुआ बोला, ‘‘दोबारा मत सोचिए साब, कुछ बातों में दिमाग की नहीं दिल की सुननी पड़ती है. मालकिन आ जाएंगी तो ये घर फिर से खुशियों से भर जाएगा. माना कि कोशिश करने में आप ने बहुत देर कर दी, पर आप के दिमाग पर ये बोझ तो नहीं रहेगा कि आप ने कोशिश नहीं की थी. बाकी सब नियति पर छोड़ दीजिए.”

बिरूवा की बातों में दम था. वे सोचने लगे. आखिर एक बार कोशिश करने में क्या हर्ज है, ‘‘जो भी होगा…’’ उन्होंने खुद को समझाया. खुद को तैयार किया. अपना छोटा सा बैग उठाया और जयपुर चल दिए.

आजकल श्यामला जयपुर में थी. बिरूवा बहुत खुश था. एक तो वह उन का भला चाहता था. दूसरा, वह अपने परिवार के पास लौट जाना चाहता था. दिल्ली से जयपुर तक का सफर जैसे सात समंदर पार का सफर महसूस हो रहा था उन्हें.

जयपुर पहुंच कर अपना छोटा सा बैग उठा कर वे सीधे घर पर पहुंच गए. अपने आने की खबर भी उन्होंने इस डर से नहीं दी कि कहीं श्यामला घर से कहीं चली न जाए.

दिल में अजीब सी दुविधा थी, पैरों की शक्ति जैसे निचुड़ रही थी. वर्षों बाद अपने ही बेटे के घर में अपनी पत्नी से साक्षात्कार होते हुए उन्हें ऐसा लग रहा था जैसे वे अपनी जिंदगी की कितनी कठिन घड़ियों से गुजर रहे हों. धड़कते दिल से उन्होंने घंटी बजा दी. उन्हें पता था कि इस समय बेटा औफिस में होगा और बच्चे स्कूल.

थोड़ी देर बाद दरवाजा खुल गया. बहू ने उन को बहुत समय बाद देखा था, इसलिए एकाएक पहचान का चिह्न न उभरा उस के चेहरे पर. फिर पहचान कर चौंक गई, ‘‘पापा, आप…? ऐसे अचानक…’’ वह पैर छूते हुए बोली, ‘‘आइए…’’ उस ने दरवाजा पूरा खोल दिया.

वे अंदर आ कर बैठ गए. बहू ने हैरान होते हुए पूछा, ‘‘अचानक कैसे आ गए पापा… आने की कोई खबर भी नहीं दी आप ने…’’ उन्हें एकाएक कोई जवाब नहीं सूझा, ‘‘जरा पानी पिला दो, और एक कप चाय…’’

‘‘जी पापा, अभी लाती हूं…’’ कह कर बहू चली गई. उन्हें लगा कि अंदर का परदा कुछ हिला. शायद श्यामला रही होगी. पर श्यामला बाहर नहीं आई. वे निरर्थक उम्मीद में उस दिशा में ताकते रहे. तब तक बहू चाय ले कर आ गई.

‘‘श्यामला कहां है…’’ चाय का घूंट भरते हुए वे धीरे से झिझकते हुए बोले.

‘‘अंदर हैं…’’ बहू भी उतने ही धीरे से बोल कर अंदर चली गई.

थोड़ी देर बाद बहू बाहर आई और बोली, “पापा, मैं जरा काम से जा रही हूं. फिर बंटी को स्कूल से लेती हुई आऊंगी.’’ फिर अंदर की तरफ नजर डालती हुई वह बोली, ‘‘आप तब तक आराम कीजिए. लंच पर लक्ष्य भी घर आते हैं,’’ कह कर वह चली गई.

10 TIPS : हैल्थ से करें प्यार, पाएं खुशियां हजार

न्यू ईयर आते ही हम सब से पहले अपने रैजोल्यूशंस लेते हैं कि इस साल हम अच्छे से पढ़ाई करेंगे, अच्छे मार्क्स लाएंगे, किसी का दिल नहीं दुखाएंगे, कोई गलत काम नहीं करेंगे, पेरैंट्स की हर बात मानेंगे वगैरावगैरा. लेकिन कोई भी अपनी हैल्थ को ले कर रैजोल्यूशन नहीं लेता कि हम इस साल से अपनी हैल्थ को इग्नोर नहीं करेंगे जबकि सब से अहम हैल्थ ही है, क्योंकि अगर हमारी सेहत सही नहीं होगी तो न तो हम अच्छे से पढ़ाई पर फोकस कर पाएंगे और न ही किसी और चीज में अपनी पूर्ण भागीदारी दे पाएंगे. इसलिए इस बार हैल्थ रैजोल्यूशन ले कर साल की शुरुआत करें.

आप अपनी हैल्थ का ध्यान इस प्रकार रख सकते हैं :

1 ब्रेकफास्ट छोड़ने की न करें भूल

नेहा पर पतले होने का भूत सवार था, जिस कारण उस ने ब्रेकफास्ट करना छोड़ दिया. इस के बावजूद उस के वजन पर कोई असर नहीं पड़ा बल्कि वह खुद को शारीरिक व मानसिक रूप से बीमार महसूस करने लगी और एक दिन तो अधिक कमजोरी के कारण वह बेहोश हो कर गिर पड़ी.

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ऐसा सिर्फ नेहा के साथ ही नहीं बल्कि नेहा जैसे किसी अन्य किशोरकिशोरी के साथ भी हो सकता है. किशोरों को इस बात को समझना होगा कि बे्रकफास्ट स्किप करने से पतला होना तो दूर बिना ऊर्जा के आप किसी काम में ऐक्टिव भी नहीं रह पाएंगे.

कार्डिल यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने अभी हाल ही में हुए सर्वे द्वारा इसे साबित भी किया है कि जो किशोर बे्रकफास्ट कर के स्कूल जाते हैं उन की कार्यक्षमता व परीक्षाओं में उन का प्रदर्शन बेहतर होता है और वे ज्यादा मन लगा कर सीखने की कोशिश करते हैं इसलिए किशोरों को ब्रेकफास्ट छोड़ने की भूल नहीं करनी चाहिए. हां, नाश्ते में तले हुए स्नैक्स की जगह अंकुरित अनाज जैसे स्प्राउट्स आदि लें ताकि आप को ऐनर्जी भी मिले और आप की रोगप्रतिरोधक क्षमता भी बढ़े.

2 देखादेखी टिफिन ले जाना न छोड़ें

इस उम्र में फ्रैंड्स का प्रभाव ज्यादा होता है. हमें उन की हर बात सही व अपने पेरैंट्स की हर बात गलत लगती है. यहां तक कि हम उन की देखादेखी लंच लाना भी छोड़ देते हैं, भले ही हमारे पेरैंट्स हमारे लिए सुबह जल्दी उठ कर कितना ही अच्छा लंच क्यों न बनाएं, लेकिन हम तो लंच बौक्स ले जाना अपनी शान के खिलाफ समझने लगते हैं.

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हमारी यह सोच बन जाती है कि अगर हम लंच बौक्स ले कर जाएंगे तो सब हमारी हंसी उड़ाएंगे, इसलिए कैंटीन में लंच करना ज्यादा पसंद करते हैं. जबकि वे इस बात से अनजान रहते हैं कि इस से हम पौष्टिक तत्त्वों से वंचित होने के कारण बीमारियों की गिरफ्त में भी आसानी से आ जाते हैं इसलिए हमें स्कूल लंच बौक्स ले जाना नहीं छोड़ना चाहिए और जो फ्रैंड्स ऐसा करते हैं उन्हें भी टिफिन का महत्त्व बताते हुए लंच लाने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए.

3 हैल्दी फूड को बनाएं पहली पसंद

टीन्स सब्जी व दालों को देख कर नाकमुंह सिकोड़ने लगते हैं क्योंकि उन्हें फास्टफूड जो अधिक भाता है. भले ही फास्टफूड उन की पहली पसंद हो व उन का पेट भर दे, लेकिन यह उन के शारीरिक व मानसिक विकास में मददगार नहीं है.

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किशोरावस्था ही ऐसी अवस्था है जिस में उन का समग्र विकास होता है और अगर इस पीरियड में भी फालतू की चीजें खाने पर फोकस रहेगा तो विकास तो प्रभावित होगा ही, इसलिए हैल्दी चीजें खाने पर ज्यादा जोर देना चाहिए.

जब कभी आप को सौफ्टड्रिंक्स की हुड़क लगे तो आप उस की जगह वैजिटेबल सूप को महत्त्व दें, जिस से प्यास मिटने के साथसाथ आप को सभी जरूरी विटामिंस भी मिल जाएंगे. ऐसा भी नहीं कि आप नूडल्स खाना ही छोड़ दें लेकिन जब कभी नूडल्स खाएं तो उस में ज्यादा से ज्यादा सब्जियां ऐड करें. उस में आप उबले अंडे के बारीक टुकड़े कर के भी डाल सकते हैं, जिस से स्वाद के साथसाथ शरीर को पौष्टिक तत्त्व भी मिल जाएंगे.

4 ऐक्सरसाइज को बनाएं रूटीन

नए गैजेट्स आने से टीन्स की लाइफ प्रभावित हुई है. वे पार्क में जा कर टहलने के बजाय हर समय अपने फोन व लैपटौप से चिपके रहते हैं. भले ही किशोर इन्हें मनोरंजन का बैस्ट साधन मानने लगे हों लेकिन इस से वे कम उम्र में ही गंभीर बीमारियों का शिकार बन रहे हैं. बैठे रहने से वे मोटापे की गिरफ्त में भी आसानी से आ जाते हैं इसलिए उन्हें अपनी हैल्थ को ले कर सचेत रहना चाहिए.

भले ही किशोरों पर पढ़ाई का बोझ हो, लेकिन उन्हें रोज 20-25 मिनट ऐक्सरसाइज के लिए अवश्य निकालने चाहिए. पार्क में जा कर वौक करने से फिटनैस बनी रहती है और आप का प्रकृति से लगाव भी बढ़ता है. वहीं सुबह की ताजी हवा में सांस लेने से आप को तनाव से भी मुक्ति मिलेगी. अगर आप की पार्क जाने की इच्छा न हो तो आप जिम भी जौइन कर सकते हैं, वहां लाइट म्यूजिक के साथ आप को ज्यादा ऐक्सरसाइज करने का मन करेगा. वहां आप साइकिलिंग जैसी ऐक्सरसाइज पर ज्यादा जोर दें, क्योंकि इस से ज्यादा कैलोरी बर्न होती हैं.

5 डाइट चार्ट बनाएं

जैसे आप अपनी पढ़ाई व मनोरंजन के लिए शैड्यूल सैट करते हैं ठीक उसी तरह आप को अपना डाइट चार्ट भी बनाना चाहिए, जिस से आप को पता रहेगा कि आप को हफ्ते के सातों दिन, बे्रकफास्ट, लंच और डिनर में क्या लेना है.

ऐसा नहीं है कि आप रोज दाल व सब्जियां ही खाएं बल्कि आप चेंज के लिए कभीकभी औयली चीजें भी खा सकते हैं, लेकिन बैलेंस बरकरार रखें. ऐसा न हो कि एक दिन अगर आप ने बैलेंस्ड डाइट ली है तो अगले दिन दबादबा कर खाएं. इस से आप की सारी मेहनत पर पानी फिर जाएगा.

अगर किसी दिन आप को लगता है कि आप ने जरूरत से ज्यादा कैलोरी ले ली है तो आप उस दिन अपना ऐक्सरसाइज का टाइम थोड़ा बढ़ा दें.

6 सौफ्टड्रिंक्स को न समझें पानी का विकल्प

हमें प्यास लगी नहीं कि हम झट से सौफ्टड्रिंक्स पी लेते हैं जिस से भले ही हमारी प्यास बुझ जाती है लेकिन इस से मोटापा, शुगर जैसी गंभीर बीमारियों के आसार बढ़ जाते हैं, क्योंकि एक सिंगल कैन सोडा में 10 चम्मच चीनी होती है. इसलिए आप सौफ्टड्रिंक्स को पानी का विकल्प समझने की भूल न करें.

भले ही आप को बारबार पानी पीना पसंद न हो लेकिन फिर भी अपना टारगेट फिक्स कर लें कि रोज 3-4 लिटर पानी दवा समझ कर पीना ही है, क्योंकि इस से शरीर के जितने भी विषैले तत्त्व होते हैं वे बाहर निकल जाते हैं और साथ ही स्किन भी ग्लो करती है.

7 दही भी है हैल्दी डाइट

दही सेहत के साथसाथ स्किन को ग्लो प्रदान करने में भी मददगार है. दही में मौजूद गुड बैक्टीरिया से इम्यून सिस्टम स्ट्रौंग बनता है और साथ ही इस से कोलैस्ट्रौल लैवल भी कम होता है. इसलिए दिन में एक बार के भोजन में दही जरूर शामिल करें.

8 विटामिंस के महत्त्व को समझें

किशोर अपने फ्रैंड्स की देखादेखी या फिर आदतन खाना खाने में बहुत आनाकानी करते हैं जिस से शरीर को पोषक तत्त्व नहीं मिल पाते और छोटी उम्र में ही उन्हें चश्मा लग जाता है, बाल सफेद होने लगते हैं व सिरदर्द जैसी बीमारी आ घेरती है. इसलिए किशोरावस्था में खानपान में लापरवाही नहीं बरतनी चाहिए व विटामिंस के महत्त्व को समझते हुए उन्हें अपनी डाइट में शामिल करना चाहिए.

शरीर के लिए जरूरी विटामिंस व अन्य पोषक तत्त्व निम्न हैं :

विटामिन ’ : आंखों व शारीरिक विकास के लिए विटामिन ‘ए’ बहुत जरूरी होता है. इस के लिए आप गाजर, हरी पत्तेदार सब्जियां आदि अपने भोजन में शामिल करें. इस के अलावा पपीते व आम का शेक भी पी सकते हैं.

विटामिन बी’ : ऊर्जा देने के साथसाथ विटामिन ‘बी’ इम्यून सिस्टम को भी सही करता है. इस के लिए आप आलू, केला, बींस, अनाज, दालें, अंडा आदि लें.

विटामिन सी’ : कोशिकाओं को मजबूत बनाने के साथसाथ संक्रमण की रोकथाम और रोग से जल्दी मुक्ति पाने की शक्ति विटामिन ‘सी’ प्रदान करता है. इस के लिए आप आंवला, अमरूद, नीबू की जाति के फल, सब्जियां और अंकुरित दालें आदि ले सकते हैं.

विटामिन डी’ : इस से हड्डियां मजबूत होती हैं. इस के लिए आप रोजाना थोड़ी देर धूप में बैठें. अंडा, मछली, मशरूम विटामिन ‘डी’ के अच्छे स्रोत हैं.

विटामिन ’ : शरीर में सुचारु रूप से रक्त का संचार करता है और फ्री रैडीकल्स से रक्षा हेतु भी जरूरी है. विटामिन ‘ई’ का सब से अच्छा स्रोत बादाम है.

कैल्शियम : यह दांतों और हड्डियों के लिए बहुत जरूरी है. दूध में प्रोटीन के अलावा कैल्शियम भी अधिक मात्रा में होता है. इस के अलावा योगर्ट, पनीर आदि भी लिया जा सकता है.

आयरन : यह मांसपेशियों का निर्माण करता है. इस के लिए आप मुनक्का, किशमिश, अंकुरित दालें व हरी पत्तेदार सब्जियां आदि ले सकते हैं. लड़कियों को पीरियड्स के दौरान आयरन की पूर्ति के लिए हरी पत्तेदार सब्जियां ज्यादा लेनी चाहिए.

जिंक : इम्यून सिस्टम और ग्रोथ के लिए जिंक बहुत जरूरी है. सीफूड इस का अच्छा स्रोत है.

प्रोटीन : शरीर में ऊतकों, मांसपेशियों और रक्त जैसे महत्त्वपूर्ण द्रव्यों का निर्माण करने में प्रोटीन सहायक है. इस के मुख्य स्रोत दूध और दूध से बने खाद्य पदार्थ, सूखे मेवे, अंडा आदि हैं.

9 हारमोन संतुलन जरूरी

शरीर को फायदा न पहुंचाने वाला भोजन खाने से हारमोंस असंतुलित हो जाते हैं जिस से स्वभाव में चिड़चिड़ापन, नींद व भूख में कमी जैसे लक्षण देखने में आते हैं. इस के लिए आप बैलेंस्ड डाइट को प्राथमिकता दें. साथ ही हारमोंस को संतुलित करने के लिए मछली, विटामिन ‘डी’ व ज्यादा से ज्यादा व्यायाम पर जोर दें.

10 नींद पूरी लें

आज के किशोर गैजेट्स से लगाव के कारण अपनी नींद तक से समझौता करने लगे हैं, जिस से उन की कार्यक्षमता प्रभावित होने के साथसाथ सोचने की क्षमता पर भी प्रभाव पड़ रहा है. इसलिए रोजाना 6-7 घंटे की पर्याप्त नींद अवश्य लेनी चाहिए. इस दौरान अपना फोन भी अपने तकिए के नीचे नहीं रखना चाहिए क्योंकि इस से नींद में बाधा उत्पन्न होती है.

इन बातों को भी न करें इग्नोर

–       डेली नहाएं. सर्दियों में भी अपने रोजाना नहाने वाले रूटीन को बरकरार रखें.

–       खाने से पहले व जब भी बाहर से आएं अपने हैंडवौश जरूर करें.

–       फल धो कर खाएं.

–       लेट कर खाना न खाएं, क्योंकि इस से गले में अटकने का खतरा रहता है व खाना सही से पचता भी नहीं.

 

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अपना घर- भाग 4: क्या बेटी के ससुराल में माता-पिता का आना गलत है?

पिछली बार जब डाक्टर से दिखाने यहां आए थे और डाक्टर ने अरुण को आलूचीनी खाने से पहरेज करने को कहा, तब वाणी ने आलू हटा कर अरुण की थाली में सहजन ज्यादा परोस दिया था. तब कैसे मालती ने सब से नजरें बचा कर उन की थाली से सारे सहजन निकाल कर आलू भर दिया था. सब देखा था वाणी ने पर कुछ बोल नहीं पाई थी. ऐसा कितनी बार हुआ है जब मालती ने ऐसा किया था. घरगृहस्थी की छोटीछोटी बातें बता कर वह आलोक को परेशान नहीं करना चाहती थी. मांबेटे के बीच झगड़ा करवा कर वह दोषी नहीं बनना चाहती थी और इसी बात का मालती फायदा उठाती थी. यही लोग जब उस के मायके जाते हैं, तो कैसे रेणु और अरुण उन के स्वागत में जुट जाते हैं. उन के लिए तरहतरह के पकवान तैयार होने लगते हैं कि बेटी की ससुराल वाले आ रहे हैं और  एक ये लोग हैं. यह सब सोच कर वाणी  का मन कुपित हो उठा.

जानती है, आलोक ऐसा बिलकुल नहीं है. वे तो अरुण और रेणु को अपने मांपापा जैसा ही मानसम्मान देते हैं. लेकिन मालती अपने बेटे को जोरू का गुलाम समझती है. लेकिन इस बात से आलोक को कोई फर्क नहीं पड़ता है. आलोक अपनी मां के अक्खड़ व्यवहार से अच्छी तरह से परिचित है. कभीकभी तो इतनी चिढ़ होती है उसे कि मन करता है यह घर छोड़ कर कहीं और रहने चला जाए. वाणी ही है जो आलोक के गुस्से को दबा कर रखती.

दिवाली के त्योहार पर सब के लिए नए कपड़े और उपहार का समाना खरीदते समय वाणी ने अपने मांपापा के लिए नए कपड़े खरीद लिए थे. सेम वैसी ही साड़ी उस ने रेणु के लिए भी खरीदी  जैसी मालती के लिए. लेकिन यह बात मालती की आंखों में चुभ गई. घुमा कर साड़ी फेंकती हुई बोली थी कि उसे यह साड़ी नहीं चाहिए क्योंकि उस का ओहदा रेणु से बड़ा है. गुस्से से आलोक ने आगे बढ़ कर बोलना चाहा लेकिन वाणी ने उस का हाथ पकड़ कर अंखों से इशारा किया कि प्लीज, जाने दो.

कई बार झूठे आंसू बहाती हुई मालती ने वाणी के प्रति आलोक को भड़काना चाहा, मगर आलोक खूब समझता है अपनी मां को कि वह कैसी है. वाणी ही है जो उसे बरदाश्त कर रही है, वरना कोई और लड़की होती न, तो कब का यह घर छोड़ कर चली गई होती. कहते हैं, बहू खराब होती है. अपने सासससुर को सहन नहीं कर सकती. लेकिन यहां उलटा था.

“मम्मीपापा गए?” बाहर से आते ही आलोक ने पूछा. अपने सासससुर को वह मम्मीपापा ही बोलता है, “क्या कहा डाक्टर ने, सब ठीक है?”

“हूं, ठीक है सब” वाणी ने जवाब दिया और आलोक के लिए चाय बनाने चली गई. चाय पीते हुए ही आलोक उसे देखे जा रहा था और सोच रहा था कि जरूर कोई बात हुई है आज. जूठे कप उठा कर वह किचन में जाने ही लगी कि आलोक ने उसे अपनी बांहों में भर कर चूम लिया. वह भी आज अपने पति के सीने से लग कर खूब रो लेना चाहती थी, कहना चाहती थी कि आज मालती ने उस के मांपापा की बहुत इंसल्ट की, वह भी मनोरमा मामी के सामने. लेकिन उस ने अपनी  नम आंखों को धीरे से साफ किया और यह बोल कर किचन में जाने लगी कि सब ठीक है, वह चिंता न करे. क्या कहती वह? वह बेचारा तो खुद 8-10 दिन पर घर आता है, तो क्या टैंशन दे उसे. मार्केटिंग जौब में ज़्यादातर बाहर ही घूमना पड़ता है आलोक को.

रोज की तरह खानापीना निबटाने के बाद, किचन की सफाई कर के करीब रात के 11 बजे वाणी को बिस्तर नसीब हुआ. वह किताब ले कर पढ़ने ही लगी कि उस की आंखें लग गईं और किताब उस के हाथ में ही रह गई. बड़े प्यार से आलोक ने उस के हाथ से किताब ले कर टेबल पर रख दी और बड़े गौर से निहारा. आज वाणी कुछ ज्यादा ही थकीथकी लग रही थी. उस ने धीरे से उसे कंबल ओढ़ाया और उस की बगल में लेट गया. हमेशा की तरह सुबह उठ कर सब से पहले वाणी ने मालती और मनोरमा मामी को चाय बना कर दी, फिर नाश्ताखाना की तैयारी में जुट गई. रोज वह औफिस जाने से पहले दोपहर के खाने के लिए दालसब्जी बना कर जाती थी, फिर कामवाली बाई कमला आ कर रोटी या चावल, जिस को जो चाहिए, गरमागरम बना कर परोस देती थी. इस के लिए वह उसे एक्स्ट्रा पैसे देती थी. कमला भले ही गरीब कामवाली थी पर उस के आचारविचार बहुत उच्च थे. मालती से घर का कोई काम नहीं होता था. उस के हाथपांव नहीं, सिर्फ जबान ही चलती थी ज्यादा. शाम को औफिस से आ कर, कपड़े न बदल कर पहले वाणी किचन में चली जाती थी क्योंकि उस के सासससुर को रात के 8 बजे तक खाना मिल जाना चाहिए. बाकी के लोगों को जैसेजैसे भूख लगती, या तो वे निकाल कर खुद ही खा लेते या वाणी को आवाज लगा देते थे. वाणी का देवर अंकुर एक प्राइवेट कंपनी में जौब करता है और ननद दिव्या कालेज के अंतिम वर्ष में है.  सासससुर को खिलानेपिलाने के बाद वह फ्रैश हो कर आराम से जो मन होता, करती है. वाणी की आदत है रात को वह बिना पढ़े नहीं सोती. चाहे कितनी भी रात हो जाए, एकदो पन्ने पढ़ कर ही सोती है. उस की अलमारी में पत्रिकाओं के अलावा अच्छेअच्छे लेखकों के नौवेल्स भी भरे पड़े हैं. लेकिन आलोक एकदम उस के उलट है. उसे किताब पढ़ना बोरिंग काम लगता है. उसे मोबाइल चलाना बहुत पसंद है. घंटों वह मोबाइल पर गुजार देता है और इसी बात पर कभीकभी वाणी और आलोक के बीच झगड़ा भी हो जाता है.

“पापा, आप को याद है न, 2 दिनों बाद डाक्टर से आप का अपौइंटमैंट है?” वाणी ने  याद दिलाई तो अरुण कहने लगे कि हां, और उन्होंने अपना शुगर चैकअप भी करवा ली है. “गुड, तो पापा, आप और मम्मी आज ही यहां आ जाओ, इसी बहाने हमें एक दिन ज्यादा साथ रहने का मौका मिल जाएगा,” चहकती हुई वाणी बोली तो अरुण कहने लगे कि हां, वे भी यही सोच रहे थे. मगर रेणु ऐसा नहीं चाहती थी, बल्कि वह तो वाणी की ससुराल जाना ही नहीं चाहती थी.  मगर बापबेटी के सामने उस की कहां चलती है भला.

“देखा न पापा, इस बार आप का शुगर लैवल कितना कम आया है, एकदम नियंत्रण में,” वाणी बोली तो अरुण कहने लगे कि इस बार उन्होंने मीठा छुआ तक नहीं. “हां, बस, ऐसे ही आप मीठा खाने पर कंट्रोल रखो पापा, देखना सब ठीक हो जाएगा. अरे मम्मी, आप किस सोच में डूबी हो?” पीछे की सीट पर रेणु को गुमसुम बैठे देख वाणी ने टोका तो हंसते हुए अरुण कहने लगे कि उस की मां बाहर का नजारा देख रही है. लेकिन रेणु कहने लगी कि इस बार वाणी की ससुराल न जा कर क्यों न वे लोग किसी होटल में रुक जाएं? “क्यों, होटल में क्यों मम्मी, जब यहां मेरा घर है तो? ऐसी कोई बात नहीं है जैसा आप सोच रही हो. चिल्ल करो”  बोल कर वह हंसी तो अरुण भी हंस पड़े. मगर रेणु को हंसी न आई. मनोरमा मामी वाला कमरा खाली था तो वाणी ने सोचा उसी में अरुण और रेणु सो जाएंगे, किसी को कोई परेशानी भी नहीं होगी. वैसे, आलोक ने कहा था कि वह जल्दी आने की कोशिश करेगा, सब साथ में डाक्टर के पास चलेंगे.  लेकिन शायद उसे काम से फुरसत नहीं मिली होगी. यह सोचती हुई वाणी ने गाड़ी घर की तरफ मोड़ ली.

प्यार नहीं पागलपन- भाग 5: लावण्य से मुलाकात के बाद अशोक के साथ क्या हुआ?

लावण्य की बातें सुन कर अशोक सोच में पड़ गया. भूतप्रेत में वह विश्वास नहीं करता था. फिर भी पलभर के लिए उसे लगा कि शायद सचमुच मेजर अपनी मृत पत्नी के अपार्थिव शरीर को देखते होंगे.

‘‘अशोक, मु  झे बहुत डर लगता है. मैं सोचती हूं कि शादी कर लूंगी तो डैडी का खयाल कौन रखेगा?’’

‘‘शादी के बाद उन का खयाल हम दोनों रखेंगे और कौन रखेगा?’’ अशोक ने कहा.

‘‘मैं उन्हें छोड़ कर नहीं जा

सकती अशोक.’’

‘‘आई कैन अंडरस्टैंड डियर,’’

अशोक बोला.

मेजर विवेक की स्थिति दिनोंदिन गंभीर होती जा रही थी. कभी भी, किसी भी समय वे ससुराल पहुंच जाते. विद्या की सहेलियों के यहां पहुंच जाते. बस, उन का एक ही सवाल होता, ‘‘यहां विद्या आई है क्या?’’

मेजर विवेक के बारे में लगभग सभी लोग जान गए थे, इसलिए सब बड़े धैर्य से जवाब देते, ‘आई तो थी, लेकिन थोड़ी देर पहले चली गई.’

सभी को मेजर साहब से सहानुभूति थी. लोग उन्हें बैठाते, चायनाश्ता भी कराते. फिर मेजर विवेक उठते हुए कहते, ‘चलूं, विद्या मेरा इंतजार कर रही होगी.’

अपनी नर्सरी में भी मेजर विवेक विद्या को ही ले कर बड़बड़ाते रहते. लावण्य उन के पीछेपीछे भागती रहती. मेजर विवेक की बिगड़ती स्थिति के कारण ही लावण्य और अशोक का विवाह टलता जा रहा था.

अशोक जब भी लावण्य से शादी की बात करता तो वह एक ही बात कहती, ‘‘अशोक, मैं डैडी को इस हालत में कैसे छोड़ सकती हूं. मैं अभी शादी नहीं कर सकती.’’

उधर अशोक की मां बारबार उस से शादी के बारे में पूछती रहती थी. वह मां को सम  झा नहीं पा रहा था कि मामला क्या है. आखिर रणजीत और डा. संजय ने भी लावण्य से कहा, ‘‘लावण्य, तुम कब तक इंतजार करोगी. मेजर साहब की हालत सुधरने वाली नहीं है.’’

‘‘नहीं मामा, डैडी को इस हालत में छोड़ कर मैं अशोक के घर नहीं जा सकती.’’

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‘‘परंतु उस का घर तुम्हारे घर से कहां दूर है. तुम रोज ही उन का हालचाल ले सकती हो,’’ डाक्टर मित्तल ने कहा.

‘‘अशोक कितने सालों से तुम्हारा इंतजार कर रहा है,’’ रणजीत ने कहा.

‘‘मैं ने कब उस से इंतजार करने के लिए कहा है,’’ लावण्य बोली.

‘‘बेटी, वह तुम से प्यार करता है,’’ डाक्टर मित्तल बोले.

‘‘मु  झे मालूम है अंकल,’’ लावण्य बोली, ‘‘पर मु  झ से यह नहीं होगा. मैं इस बारे में अशोक से बात कर लूंगी.’’

अशोक भी लावण्य के बगैर जिंदा रहने की कल्पना नहीं कर सकता था. अशोक और लावण्य लगभग रोज ही मिलते थे पर अब उन के मिलने में पहले जैसा रोमांच नहीं रहा था. वे दोनों एकांत में मिलते, प्यार की बातें करते. लेकिन लावण्य हमेशा चिंतित रहती. उसे घर जाने की जल्दी रहती. अशोक उसे रोकता भी, पर वह रुकती नहीं थी.

अशोक उस पर दबाव भी नहीं डालता था. लावण्य उस की अंतरात्मा, स्वत: सृष्टि बन चुकी थी.

एक रात अचानक जया ने अशोक को फोन किया, ‘‘अशोक, मेजर साहब की तबीयत ठीक नहीं है.’’

‘‘क्या हुआ आंटी उन्हें?’’

‘‘तुम यहां जल्दी आ जाओ.’’

‘‘पर आप बताएं तो कुछ.’’

जया ने कुछ बताए बगैर ही फोन रख दिया. अशोक से जितनी जल्दी हो सका, वह लावण्य के घर पहुंच गया. अशोक बंगले के कंपाउंड में प्रवेश करते ही सम  झ गया कि कुछ गड़बड़ है. बंगले के सामने तमाम गाडि़यां खड़ी थीं. अशोक ने भी अपनी गाड़ी खड़ी की. तमाम लोग वहां खड़े थे. लोग अंदरबाहर आजा रहे थे. पूरे घर की बत्तियां जल रही थीं. बैडरूम के दरवाजे पर भी कुछ लोग खड़े थे.

कमरे में वीरान सन्नाटा था. पलंग पर मेजर विवेक चित लेटे थे. लावण्य उन के पैरों के पास बैठी थी. शहर के प्रसिद्ध कार्डियोलौजिस्ट और मेजर के दोस्त डा. संजय मेजर साहब के सीने की मसाज कर रहे थे.

अशोक सांस रोके कमरे के कोने में खड़ा था. डा. संजय के माथे पर आई पसीने की बूंदें मेजर के ऊपर टपकने लगी थीं. मेजर साहब डा. संजय के परम मित्र थे. फिर भी वे निसहाय थे. उन्हें सबकुछ मालूम था. इस के बावजूद वे मसाज कर रहे थे.

आखिर उन्होंने एक लंबी सांस ली. गले में टंगा स्टेथेस्कोप उतार कर हाथ में लपेटा. कोट की जेब से रूमाल निकाल कर अपना पसीनेभरा चेहरा साफ किया? कमरे में खड़े लोग पलंग पर निश्चेत पड़े मेजर के बदले

डा. संजय को आंखें फाड़ कर ताक रहे थे. डा. संजय कुछ बोले बगैर ही कमरे के दरवाजे की ओर बढ़े और कमरे से बाहर निकल गए.

मृत मेजर के सीने पर कमरे का सन्नाटा टूट पड़ा था. अशोक भी कमरे से बाहर आ गया था. शायद वह लावण्य की उस दशा को नहीं देख सकता था. अशोक की सम  झ में यह नहीं आ रहा था कि एकाएक मेजर को क्या हो गया. जवानी में विधवा हो चुकी जया, मृत्यु के इस दुख में डूबी लौकिक कार्यों में लगी थी.

‘‘एकाएक क्या हुआ साहब को?’’

‘‘भैया, वही रोज वाली पंचायत. कल से ही उन की तबीयत ठीक नहीं थी. पीछे खेतों में पूरा दिन न जाने क्या करते रहे. शाम को जब घर आए तो हांफ रहे थे. आते ही ‘विद्या, विद्या’ पुकारते हुए घर के सभी कमरों में घूम आए. एक पैर से इस तरह दौड़ते हुए वे और परेशान हो गए.

फिर खेतों की ओर भाग गए और वहीं ट्यूबवेल के पास गिर गए. यह तो अच्छा था कि पीछेपीछे लावण्य भी चली गई थी. मैं भला इस उम्र में कहां दौड़ पाती. गिरने के बाद भी वे ‘विद्या, विद्या’ की रट लगाए हुए थे. आदमी के भी मन का क्या पता. बहुत प्रेम भी अच्छा नहीं होता,’’ जया ने रोते हुए कहा, ‘‘बेचारी लावण्य मां के जाने के बाद एक दिन भी शांति से नहीं बैठ पाई. पूरा दिन भागीभागी फिरती थी. इस लड़की की माया न होती तो शायद विद्या के मरने के बाद ही जहर पी लिया होता. कितनी दवा कराई, पंडितजी से पूजापाठ कराया, एक तांत्रिक को बुला कर   झाड़फूंक कराई. सब लाखों रुपए खा गए पर उन्हें जरा भी आराम नहीं हुआ.’’

पूजापाठ और   झाड़फूंक से कोई बीमारी

ठीक हो जाती तो डाक्टरों की क्या जरूरत थी? लोग इतनी मेहनत कर के पढ़ाई ही क्यों करते? ये पूजापाठ और   झाड़फूंक करने वालों का काम ही है भोलेभाले लोगों को उल्लू बनाना. बहरहाल, आप मु  झे पूजापाठ कराने वाले पंडित और उस तांत्रिक का पता दे दीजिए, मैं उन्हें देखता हूं. उन्होंने जो लाखों रुपए आप से ठगे हैं, उसे वापस करेंगे या फिर जेल जाएंगे,’’ अशोक ने कहा.

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जया ने पूजापाठ कराने वाले पंडित और   झाड़फूंक कराने वाले तांत्रिक का पता ही नहीं, बल्कि फोन नंबर भी अशोक को दे दिए.

अशोक ने दोनों का फोन नंबर और पता फोन में ही नोट कर लिया.

सबकुछ शांति से निबट गया था. लावण्य इतना रोई थी कि किसी से देखा नहीं गया था. सबकुछ निबट जाने के बाद अशोक ने पंडित और तांत्रिक को धर दबोचा. आखिर जेल जाने और पोल खुलने के डर से दोनों ने जया से लिया एकएक पैसा वापस कर दिया. वह पैसा ला कर अशोक ने जया के हाथों पर रखा तो जया ने कहा, ‘‘बेटा, कहीं वे दोनों कुछ बुरा न कर दें?’’

पिघलती बर्फ: भाग 2- क्यों स्त्रियां स्वयं को हीन बना लेती हैं?

पापा के जाने के बाद प्राची निशब्द बैठी थी. बारबार उस के मन में आ रहा था कि वह दुखी क्यों है? आखिर उस की ही इच्छा तो उस के पापा ने उस की मां के विरुद्ध जा कर पूरी की है. अब उसे पापा के विश्वास पर खरा उतरना होगा. प्राची ने स्वयं से ही प्रश्न किया तथा स्वयं ही उत्तर भी दिया.

“मैं, अंजली. और तुम?’ अंजली ने कमरे में प्रवेश करते ही कहा.

“मैं, प्राची.”

“बहुत प्यारा नाम है. उदास क्यों हो? क्या घर की याद आ रही है?”

प्राची ने निशब्द उस की ओर देखा.

“मैं तुम्हारा दर्द समझ सकती हूं. जब भी कोई पहली बार घर छोड़ता है तब उस की मनोदशा तुम्हारी तरह ही होती है. पर धीरेधीरे सब ठीक हो जाएगा. सारी बातों को दिल से निकाल कर बस यह सोचो, हम अपना कैरियर बनाने के लिए यहां आए हैं.”

“तुम सच कह रही हो,” प्राची ने चेहरे पर मुसकान लाते हुए कहा.

“अच्छा, अब मैं चलती हूं. थोड़ा फ्रेश हो लूं. अपने कमरे में जा रही थी कि तुम्हारा कमरा खुला देख कर तुम्हारी ओर नजर गई, सोचा मिल तो लूं अपनी नई आई सखी से. मेरा कमरा बगल वाला है. रात्रि 8 बजे खाने का समय है, तैयार रहना. अपना यह बिखरा सामान आज ही समेट लेना, कल से कालेज जाना है,” अंजली ने कहा.

अंजली के जाते ही प्राची अपना सामान अलमारी में लगाने लगी. तभी मोबाइल की घंटी बज उठी. फोन मां का था. “बेटा, तू ठीक है न? सच, अकेले अच्छा नहीं लग रहा है. बहुत याद आ रही है तेरी.”

“मां, मुझे भी…’ कह कर वह रोने लगी.

“तू लौट आ,” मां ने रोते हुए कहा.

“प्राची, क्या हुआ? अगर तू ऐसे कमजोर पड़ेगी तो पढ़ेगी कैसे? नहीं बेटा, रोते नहीं हैं. तेरी मां तो ऐसे ही कह रही है.” पापा ने मां के हाथ से फोन ले कर उसे ढाढस बंधाते हुए कहा.

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“अरे, तुम अभी बात ही कर रही हो, खाना खाने नहीं चलना.”

“बस, अभी…पापा, मैं खाना खाने जा रही हूं, आ कर बात करती हूं.”

मेस में उन की तरह कई लड़कियां थीं. अंजली ने सब को नमस्ते की. उस ने भी अंजली का अनुसरण किया. सभी ने उन का बेहद अपनेपन से स्वागत करते हुए एकदूसरे का परिचय प्राप्त किया. सब से परिचय करने के बाद अंजली ने एक टेबल की कुरसी खिसकाते हुए उसे बैठने का इशारा किया और स्वयं भी बैठ गई. अभी वे बैठी ही थीं कि उन के सामने वाली कुरसी पर 2 लड़कियां आ कर बैठ गईं. अंजली और प्राची ने उन का खड़े हो कर अभिवादन किया. उन दोनों ने उन्हें बैठने का आदेश देते हुए उन का परिचय प्राप्त करते हुए तथा अपना परिचय देते हुए साथसाथ खाना खाया. रेखा और बबीता सीनियर थीं. वे बहुत आत्मीयता से बातें कर रही थीं. खाना भी ठीक लगा. खाना खा कर जब वह अपने कमरे में जाने लगी तो रेखा ने उस के पास आ कर कहा, “प्राची और अंजली, तुम दोनों नईनई आई हो, इसलिए कह रही हूं, हम सब यहां एक परिवार की तरह ही रह रहे हैं, तुम कभी स्वयं को अकेला मत समझना. हंसीमजाक में अगर कोई तुम्हें कुछ कहे तो सहजता से लेना. दरअसल, कुछ सीनियर्स, जूनियर की खिंचाई कर ही लेते हैं.”

“रेखा दी और प्राची, ये खाओ बेसन के लड्डू. मां ने साथ में रख दिए थे,” अंजलि ने एक प्लेट उन के आगे बढ़ाते हुए कहा.

“बहुत अच्छे बने हैं,” एकएक लड्डू उठा कर खाते हुए प्राची और रेखा ने कहा.

रेखा दीदी और अंजली का व्यवहार देख कर एकाएक प्राची को लगा कि जब ये लोग रह सकती हैं तो वह क्यों नहीं. मन में चलता द्वंद्व ठहर गया था. अंजली ने बताया, सुबह 8 बजे नाश्ते का समय है.

अपने कमरे में आ कर प्राची अब काफी व्यवस्थित हो गई थी. तभी मां का फोन आ गया…”मैन, चिंता मत करो, मैं ठीक हूं. यहां सब अच्छे हैं,” प्राची ने सारी घटनाएं उन्हें बताते हुए कहा.

“ठीक है बेटा, पर ध्यान से रहना. आज के जमाने में किसी पर भरोसा करना उचित नहीं है. कल तेरा कालेज का पहला दिन है. हनुमान जी की फोटो किसी उचित स्थान पर रख कर उन के सामने दिया जला कर, उन से आशीर्वाद ले कर जाना.”

“जी मां.”

ढेरों ताकीदें दे कर मां ने फोन रख दिया था. समय बीतता गया. वह कदमदरकदम आगे बढ़ती गई. पढ़ते समय ही उस की दोस्ती अपने साथ पढ़ने वाले जयदीप से हो गई. एमबीबीएस खत्म होने तक वह दोस्ती प्यार में बदल गई. लेकिन अभी उन की मंजिल विवाह नहीं थी. प्राची को गाइनोलौजिस्ट बनना था जबकि जयदीप को जरनल सर्जरी में एमएस करना था.

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उस के एमबीबीएस करते ही मां उस पर विवाह के लिए दबाव बनाने लगी किंतु उस ने अपनी इच्छा बताते हुए विवाह के लिए मना कर दिया. रैजीडैंसी करते हुए उन्होंने पीजी की तैयारी प्रारंभ कर दी. कहते हैं, जब लक्ष्य सामने हो, परिश्रम भरपूर हो तो मंजिल न मिले, ऐसा हो नहीं सकता. पीजी की डिग्री मिलते ही उन्हें दिल्ली के प्रसिद्ध अपोलो अस्पताल में जौब मिल गया.

उस के जौब मिलते ही मां ने विवाह की बात छेड़ी तो प्राची ने जयदीप से विवाह की इच्छा जाहिर की.

पहले तो मां बिगड़ीं, बाद में मान गईं लेकिन फिर भी उन के मन में संदेह था कि वह बंगाली परिवार में एडजस्ट कर पाएगी कि नहीं. उन्होंने उन दोनों को मिलने के लिए बुलाया. जयदीप आखिर उस के मांपापा को पसंद आ ही गया.

प्राची मंगली थी, सो, मां ने पंडितजी को बुलवा कर उन की कुंडली मिलवाई तो पता चला कि जयदीप मंगली नहीं है. पंडितजी की बात सुन कर मां चिंताग्रस्त हो गई थीं.

“पंडितजी, प्राची के मंगल को शांत करने का कोई उपाय है?”

“प्राची का उच्च मंगल लड़के का अनिष्ट कर सकता है. विवाह से पूर्व प्राची का पीपल के पेड़ से विवाह करा दें, तो मंगलीदोष दूर हो जाएगा या फिर वह 29 वर्ष की उम्र के बाद विवाह करे,” पंडितजी ने मां की चिंता का निवारण करते हुए कहा.

मां ने प्राची को पंडितजी की बात बताई तो वह भड़क गई तथा उस ने पीपल के वृक्ष से विवाह के लिए मना कर दिया.

“बेटी, शायद तुझे पता न हो, विश्वसुंदरी तथा मशहूर हीरोइन ऐश्वर्या राय बच्चन ने भी अपने मांगलिक दोष को दूर करने के लिए पीपल के वृक्ष से विवाह किया था,” मां ने प्राची को समझाने की कोशिश करते हुए कहा.

“मां, क्या ऐश्वर्या ने ठीक किया था? माना उस ने ठीक किया था, तो यह कोई आवश्यक नहीं कि मैं भी वही करूं जो ऐश्वर्या ने किया. मेरी अपनी सोच है, समझ है, स्वयं पर दृढ़विश्वास है. दुर्घटनाएं या जीवन में उतारचढ़ाव तो हर इंसान के जीवन में आते हैं. ऐसी परिस्थितियों से स्वयं को उबारना, जूझना तथा जीवन में संतुलन बना कर चलना ही इंसान का मुख्य ध्येय होना चाहिए, न कि टोनेटोटकों में इंसान अपनी आधी जिंदगी या ऊर्जा बरबाद कर स्वयं भी असंतुष्ट रहें तथा दूसरों को भी असंतुष्ट रखें,” प्राची ने शांत स्वर में कहा.

जरूरी हैं दूरियां पास आने के लिए- भाग 3: क्या हुआ था विहान और मिशी के जीवन में

वह आगे बोला, ‘‘मिशी, उस दिन तो जैसे मैं हार गया जब मैं ने तुम से कहा कि मुझे एक लड़की पसंद है. मैं ने बहुत हिम्मत कर अपने प्यार का इजहार करने के लिए यह प्लान बनाया था. मैं ने धड़कते दिल से तुम से कहा, दिखाऊं फोटो, तुम ने झट से मेरा मोबाइल छीना और जैसे ही फोटो देखा, तुम्हारा रिऐक्शन देख, मैं ठगा सा रह गया. मुझे लगा, यहां मेरा कुछ नहीं होने वाला. पगली से प्यार कर बैठा,’’ इतना कह कर उस ने मिशी से पूछा, ‘‘क्या तुम्हें याद है, उस दिन तुम ने क्या किया था?’’

‘‘हां, तुम्हारे मोबाइल में मुझे अपना फोटो दिखा तो मैं ने कहा, ‘वाओ, कब लिया यह फोटो, बहुत प्यारा है, सैंड करो’ और मैं उस पिक में खो गई, सोशल मीडिया पर शेयर करने लगी. तुम्हारी गर्लफ्रैंड वाली बात तो मेरे दिमाग से गायब ही हो गई थी.’’

‘‘जी, मैडमजी, मैं तुम्हारी लाइफ में  इस हद तक जुड़ा रहा कि तुम मुझे कभी अलग से फील कर ही नहीं पाईं. ऐसा कितनी बार हुआ, पर तुम अपनेआप में थीं, अपने सपनों में, किसी और बात के लिए शायद तुम्हारे पास टाइम ही नहीं था, यहां तक कि अपने जज्बातों को समझने के लिए भी नहीं,’’ विहान कहता जा रहा था. मिशी जोर से अपनी मुट्ठियां भींचती हुई अपनी बेवकूफियों का हिसाब लगा रही थी.

इस तरह विहान न जाने कितनी छोटीबड़ी बातें बताता रहा और मिशी सिर झकाए सुनती रही. मिशी का गला रुंध गया, ‘‘विहान, इतना प्यार कोई किसी से कैसे कर सकता है. और तब तो बिलकुल नहीं जब उसे कोई समझने वाला ही न हो. कितना कुछ दबा रखा है तुम ने. मेरे साथ की छोटी से छोटी बात कितनी शिद्दत से सहेज कर रखी है तुम ने.’’

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‘‘अरे, पागल रोते नहीं. और यह किस ने कहा कि तुम मुझे समझती नहीं थीं. मैं तो हमेशा तुम्हारा सब से करीबी रहा. इसलिए प्यार का एहसास कहीं गुम हो गया था. और इस हकीकत को सामने लाने के लिए मैं ने खुद को तुम से दूर करने का फैसला किया. कई बार दूरियां नजदीकियों के लिए बहुत जरूरी हो जाती हैं. मुझे लगा कि मेरा प्यार सच्चा होगा, तो तुम तक मेरी सदा जरूर पहुंचेगी. नहीं तो, मुझे आगे बढ़ना होगा तुम को छोड़ कर.’’

‘‘मैं कितनी मतलबी थी.’’

‘‘न बाबा, तुम बहुत प्यारी तब भी थीं और अब भी हो.’’

मिशी के रोते चेहरे पर हलकी सी मुसकान आ गई. वह धीरे से विहान के कंधों पर अपना सिर टिकाने को बढ़ ही रही थी कि अचानक उसे कुछ याद आया. वह एकदम उठ खड़ी हुई.

‘‘क्या हुआ, मिशी?’’

‘‘यह सब गलत है.’’

‘‘क्यों गलत है?’’

‘‘तुम और पूजा दी…’’

‘‘मैं और पूजा….’’ कह कर विहान हंस पड़ा.

‘‘तुम हंस क्यों रहे हो?’’149722149722

‘‘मिशी, मेरी प्यारी मिशी, मुझे जैसे ही पूजा और मेरी शादी की बात पता चली तो मैं पूजा से मिला और तुम्हारे बारे में बताया. सुन कर पूजा भी खुश हुई. उस का कहना था कि विहान हो या कोई और, उसे ज्यादा फर्क नहीं पड़ता. मांपापा जहां चाहेंगे, वह खुशीखुशी वहां शादी कर लेगी. फिर हम दोनों ने सारी बात घर पर बता दी. किसी को कोई प्रौब्लम नहीं है. अब इंतजार है तो तुम्हारे जवाब का.’’

इतना सुनते ही मिशी को तो जैसे अपने कानों पर यकीन ही नहीं हुआ. उस के चेहरे पर मुसकराहट तैर गई. अब न कोई शिकायत बची थी, न सवाल.

‘‘बोलो मिशी, मैं तुम्हारे जवाब का इंतजार कर रहा हूं,’’ विहान ने बेचैनी से कहा.

‘‘मेरे चेहरे पर बिखरी खुशी देखने के बाद भी तुम को जवाब चाहिए,’’ मिशी ने नजरें झका कर भोलेपन से कहा.

‘‘नहीं मिशी, जवाब तो मुझे उसी दिन मिल गया था जब मैं 10 महीने बाद  तुम्हारे घर आया था. पहले वाली मिशी होती तो बोलबोल कर, सवाल पूछपूछ कर, झगड़ा कर के मुझे भूखा ही भगा देती,’’ कह कर विहान जोर से हंस पड़ा.

‘‘अच्छा जी, मैं इतनी बकबक करती हूं,’’ मिशी ने मुंह बनाते हुए कहा.

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‘‘हांजी, पर न तुम झगड़ीं, न कुछ बोलीं, बस देखती रहीं मुझे. ख्वाब बुनती रहीं. उसी दिन मैं समझ गया था कि जिस मिशी को पाने के लिए मैं ने उसे खोने का गम सहा, यह वही है, मेरी मिशी, सिर्फ मेरी मिशी,’’ विहान ने मिशी का हाथ पकड़ते हुए कहा.

मिशी ने भी विहान का हाथ कस कर थाम लिया हमेशा के लिए. वे हाथों में हाथ लिए चल दिए. जिंदगी के नए सफर पर साथसाथ कभी जुदा न होने के लिए. आसमां, चांदतारे, चांदनी और लहलहाता समुद्र उन के प्रेम के साक्षी बन गए थे.

कहीं दूर से हवा में संगीत की धुन उन के प्रेम की दास्तां बयां कर रही थी,  ‘मेरे हमसफर… मेरे हमसफर… हमें साथ चलना है उम्र भर…’

देश के प्रथम सेना प्रमुख विपिन रावत की रहस्यमय मौत, सवाल दर सवाल

देश की पहले, तीनों सेनाओं के प्रमुख चीफ आफ डिफेंस स्टाफ सीडीएस जनरल बिपिन रावत और उनकी पत्नी मधुलिका रावत सहित तेरह लोगों की हेलीकॉप्टर दुर्घटना में मौत, देश के लिए एक सबक बन कर सामने है. यह एक गंभीर चिंता का विषय है और देश भर में उठ रहे अनेक प्रश्नों का एक ऐसा रहस्यमय मामला बनकर सामने है जिसका जवाब देश की सुरक्षा को लेकर  निहायत ही आवश्यक है.

जनरल विपिन रावत की मृत्यु वह भी सेना के डबल इंजन के हेलीकॉप्टर में, पूरे प्रोटोकाल के बावजूद, पूरी सुरक्षा व्यवस्था के बावजूद??

यह अनेक प्रश्न खड़े कर रहा है. जिनका प्रतिउत्तर सिलसिलेवार सरकार को संसद में सामने आ कर देना चाहिए ताकि देश में एक आस्था, विश्वास का माहौल बने और कभी दोबाला ऐसी घटना दुर्घटना ना हो.

पहला सवाल?

देश के प्रथम सीडीएस जनरल बिपिन रावत की दुर्घटना में मृत्यु से सबसे पहला सवाल जो उपज रहा है जो लोगों के मनों मस्तिष्क में एक बारगी उठ रहा है वह यह है कि क्या तीनों सेनाओं के प्रमुख के लिए एक ऐसा हेलीकॉप्टर उपलब्ध कराया गया था जो देखते ही देखते आग की लपटों में घिरा हुआ लोगों ने देखा?  क्या हेलीकॉप्टर इतना गया गुजरा था की देखते ही देखते घटना घटित हो गई और कोई बचाओ नहीं हो पाया. क्या हेलीकॉप्टर में कोई छेड़-छाड़ हुई थी.

दूसरा सवाल

जनरल बिपिन रावत की हेलीकॉप्टर दुर्घटना में हुई मृत्यु से देशभर में शोक की लहर देखी गई. यह देश की अस्मिता का प्रश्न बन गया. देश की सेना के  प्रमुख नायक जिनके पास देश की रक्षा सुरक्षा का सरंजाम  होता है के  दुखद मृत्यु से यह प्रश्न सहज ही उठ खड़ा हुआ कि क्या जनरल रावत की सुरक्षा में भारी सेंध लग चुकी थी?

अन्यथा भारतीय सेना का एक हेलीकॉप्टर जो अपने एक अति विशिष्ट जनरल को ले जा रहा है क्या यह असामान्य दुर्घटना नहीं थी.

सवाल तीसरा

जनरल बिपिन रावत को लेकर जा रहा हेलीकॉप्टर सेना का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था और पूरी तरीके से सुरक्षित भी माना गया था. मगर इस सब के बावजूद क्या कोई देवीय दुर्घटना हो गई  या सीधे-सीधे एक बहुत बड़ी चूक है जनरल रावत और उनकी धर्मपत्नी के साथ अन्य 13 लोगों की मौत से यह सवाल उठ खड़ा हुआ है कि क्या इतने बड़े वीवीआईपी शख्सियत के प्रस्थान करने से पूर्व “प्रोटोकॉल” का पालन हुआ था या नहीं. अगर हुआ था तो फिर चूक कहां हो गई जो इतनी बड़ी गलती हुई और भयावह दुर्घटना दुनिया ने देखी.

सवाल चौथा

जनरल बिपिन रावत और अन्य  की दुर्घटना में हुई मौत से अनेक प्रकार के सवाल उठ खड़े हुए हैं जिनकी जांच भी होनी है और निसंदेह उन सब का जवाब भी सामने आएगा.

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने लोकसभा में अपने वक्तव्य में जनरल रावत की मृत्यु पर अपनी बात देश के समक्ष रखी है. यहां आज जो सवाल लोगों के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है हम रख रहे हैं.  सवाल है कि जिस तरीके से सिर्फ 20 मिनट के अंदर उड़ान के बाद यह दुर्घटना हुई वह कई सवाल खड़े कर रही है. सेना का एक शक्तिशाली डबल इंजन का हेलीकॉप्टर क्या सिर्फ 20 मिनट चलकर के दुर्घटनाग्रस्त हो सकता है?

11:48 पर यह हेलीकॉप्टर उड़ान भरता है और 12:08 पर दुर्घटनाग्रस्त हो जाता है आग की लपटों में घिर जाता है यह कोई सामान्य बात नहीं है, कोई फिल्मी फुटेज नहीं है. यह एक ऐसा सच है जिस पर सारी दुनिया सोच रही है कि क्या यह सच है या सिर्फ एक फिल्मी सीन.

सवाल पांचवां

जैसी दुर्घटना भारत में विगत दिनों तीनों सेना के प्रमुख  जनरल विपिन रावत के हेलीकॉप्टर की हुई है, ठीक वैसे ही ताइवान के सेना प्रमुख की भी 2 वर्ष पूर्व सन् 2020 में एक दुर्घटना में मृत्यु हुई थी. सवाल यह खड़ा हुआ है कि क्या या एक संयोग मात्र है या इसके पीछे कोई रहस्यमय विदेशी ताकत है? जिसने पहले ताइवान में वहां के सेना प्रमुख के हेलीकॉप्टर के साथ सुरक्षा में छेड़खानी की, दुर्घटना हो गई मौत हो गई. कुछ वैसे ही भारत में भी हो गया और जनरल बिपिन रावत सहित अनेक लोग असामयिक मौत का सबब बन गए.

एक साथी की तलाश: भाग 4- क्या श्यामला अपने पति मधुप के पास लौट पाई?

वे जानते थे. बहू जानबूझ कर इस समय चली गई घर से. लेकिन अब वे क्या करें. श्यामला तो बाहर  भी नहीं आ रही. बात भी करें तो कैसे. इतने वर्षों बाद अकेले घर में उन का दिल श्यामला की उपस्थिति में अजीब से कुतूहल से धड़क रहा था. थोड़ी देर वे वैसे ही बैठे रहे. अपनी घबराहट पर काबू पाने का प्रयत्न करते रहे. फिर उठे और अंदर चले गए. अंदर एक कमरे में श्यामला चुपचाप खिड़की के सामने बैठी बाहर की ओर देख रही थी.

‘‘श्यामला…’’ उसे ऐसे बैठे देख कर उन्होंने धीरे से पुकारा. सुन कर श्यामला ने पलट कर देखा. इतने वर्षों बाद मधुुप को अपने सामने देख श्यामला जैसे जड़ हो गई. समय जैसे पलभर के लिए स्थिर हो गया. आंखों में प्रश्न सलीब की तरह टंगा हुआ था, ‘क्या करने आए हो अब…?’

‘‘आप…’’ वह प्रत्यक्ष बोली.

.‘‘हां श्यामला, मैं…’’ इतने वर्षों बाद उसे देख कर वे एकाएक कातर हो गए थे.

‘‘तुम्हें लेने आया हूं,’’ वे बिना किसी भूमिका के बोले, ‘‘वापस चलो. मुझ से जो गलती हुई है, उस के लिए मुझे क्षमा कर दो. मैं समझ नहीं पाया तुम्हें, तुम्हारी परेशानियों को, तुम्हारे अंतर्द्वंद्व को…’’

श्यामला अपलक उन्हें निहारती रह गई. शब्द मानो चुक गए थे. बहुतकुछ कहना चाहती थी वह, पर समझ नहीं पा रही थी कि कहां से शुरू करे. किसी तरह खुद को संयत किया.

थोड़ी देर बाद वह बोली, ‘‘इतने वर्षों के बाद गलती महसूस हुई आप को. जब खुद को जरूरत हुई पत्नी की, लेकिन जब तक पत्नी को जरूरत थी? आखिर मैं सही थी न, कि आप ने हमेशा खुद से प्यार किया. लेकिन मेरे अंदर अब आप के लिए कुछ नहीं बचा. अब मेरे दिल को किसी साथी की तलाश नहीं है. जिन भावनाओं को, जिन संवेदनाओं को जीने की इतनी जद्दोजहद थी मेरे अंदर, वह सब तो कब की मर चुकी है. फिर अब क्यों आऊं, आप के बाकी के जीवन जीने का साधन बन कर? मुझे अब आप की जरूरत नहीं है. मैं अब नहीं आऊंगी.’’

‘‘नहीं श्यामला,’’ मधुप ने आगे बढ़ कर श्यामला की दोनों हथेलियां अपने हाथों में थाम ली, ‘‘ऐसा मत कहो, साथी की तलाश कभी खत्म नहीं होती. हर उम्र, हर मोड़ पर साथी के लिए तनमन तरसता है, पशुपक्षी भी अपने लिए साथी ढूंढ़ते हैं, यही प्रकृति का नियम है, मुझ से गलती हुई है, इस के लिए मैं तुम से तहेदिल से क्षमा मांग रहा हूं.

“इस बार तुम नहीं, मैं आऊंगा तुम्हारे पास. इस बार तुम मेरे सांचे में नहीं, बल्कि मैं तुम्हारे सांचे में ढलूंगा. संवेदनाएं और भावनाएं कभी मरती नहीं हैं श्यामला, बल्कि हमारी गलतियों व उपेक्षाओं से सुप्तावस्था में चली जाती हैं, उन्हें तो बस जगाने की जरूरत है. अपने हृदय से पूछो, क्या तुम सचमुच मेरा साथ नहीं चाहती, सचमुच चाहती हो कि मैं चला जाऊं.’’

श्यामला चुपचाप डबडबाई आंखों से उन्हें देखती रह गई. कितने बदल गए थे मधुप. समय ने, अकेलेपन ने उन्हें उन की गलतियों का एहसास करा दिया था. पतिपत्नी में से अगर एक अपनी मरजी से जीता है तो दूसरा दूसरे की मरजी से मरता है.

‘‘बोलो श्यामला,’’ मधुप ने श्यामला को कंधों से पकड़ कर धीरे से हिलाया, ‘‘मैं अब तुम्हारे पास आ गया हूं और अब लौट कर नहीं जाऊंगा,’’ मधुरे पूरे विश्वास व अधिकार से बोले. लेकिन श्यामला ने धीरे से उन के हाथ कंधों से अलग कर दिए.

‘‘अब मुझ से न आया जाएगा मधुप. मेरे जीवन की धारा अब एक अलग मोड़ मुड़ चुकी है. कितनी बार जीवन में टूटूं, बिखरूं और फिर जुडूं, मुझ में अब ताकत नहीं बची. मैं ने अपने जीवन को एक अलग ही सांचे में ढाल लिया है, जिस में अब आप के लिए कोई जगह नहीं. मैं अब नहीं आ पाऊंगी, मुझे माफ कर दो,’’ कह कर श्यामला दूसरे कमरे में चली गई.

स्पष्ट संकेत था उन के लिए कि वे अब जा सकते हैं. मधुप भौंचक्के खड़े, पलभर में हुए अपनी उम्मीदों के टुकड़ों को बिखरते महसूस करते रहे. फिर अपना बैग उठा कर वे बाहर निकल गए वापस जाने के लिए. बेटे के आने का भी इंतजार नहीं किया उन्होंने.

जयपुर से वापसी का सफर बेहद बोझिल भरा था, सबकुछ तो उन्होंने पहले ही खो दिया था. अब एक उम्मीद बची थी. आज वे उसे भी खो कर आ गए थे.

घर पहुंचे तो उन्हें अकेले व हताश देख बिरूवा सबकुछ समझ गया. कुछ न पूछा. चुपचाप हाथ से बैग ले कर वह अंदर रख आया और किचन में चाय बनाने चला गया.

उधर श्यामला खिड़की के परदे के पीछे से थके कदमों से जाते मधुप को करुण निगाहों से देखती रही, जब तक वे आंखों से ओझल नहीं हो गए. दिल कर रहा था कि दौड़ कर वह मधुप को रोक ले, लेकिन कदम न बढ़ पा रहे थे. जो गुजर गया वह सबकुछ याद आ रहा था.

मधुप चले गए, लेकिन श्यामला के दिल का नासूर फिर से बहने लगा. रात देर तक बिस्तर पर करवट बदलते हुए वह सोचती रही कि जिंदगी मधुप के साथ अगर बोझिल भरी थी तो उन के बिना भी क्या थी. क्या एक दिन भी ऐसा गुजरा, जब उस ने मधुप को याद न किया हो. उस के मधुप से अलग होने के निर्णय का दर्द बच्चों ने भी भुगता था. बच्चों ने भी तब कितना चाहा था कि वे दोनों साथ रहें. अपने विवाह के बाद ही बच्चे चुप हुए थे. पर पता नहीं कैसी जिद भर गई थी उस के खुद के अंदर, और मधुप ने भी कभी आगे बढ़ कर अपनी गलती मानने की कोशिश नहीं की और वउन दोनों का सारा जीवन यों वीरान सा गुजर गया. जो मधुप आज महसूस कर रहे हैं. काश, यही बात तब समझ पाते, तो उन की जिंदगी की कहानी कुछ और ही होती.

लेकिन, अब जो तार टूट चुके हैं, क्या फिर से वे जुड़ सकते हैं और जुड़ कर क्या उतने मजबूत हो सकते हैं?

एक कोशिश मधुप ने की, एक कदम उन्होंने बढ़ाया, तो क्या एक कोशिश उसे भी करनी चाहिए. एक कदम उसे भी बढ़ाना चाहिए. कहीं आज निर्णय लेने में उस से कोई गलती तो नहीं हो गई. इसी उहापोह में करवटें बदलते सुबह हो गई. पूरी रात वह सोचती रही थी, फिर अनायास ही अपना बैग तैयार करने लगी. उस को तैयारी करते देख बेटेबहू आश्चर्यचकित थे, पर उन्होंने कुछ न पूछना ही उचित समझा. मन ही मन सब समझ रहे थे. खुशी का अनुभव कर रहे थे. श्यामला जब जाने को हुई तो बेटे ने साथ में जाने की पेशकश की, पर श्यामला ने मना कर दिया.

उधर उस दिन दोपहर को सोए हुए मधुप की जब शाम को नींद खुली, तो वह शाम और दूसरी शाम की तरह ही थी. पर, पता नहीं मधुप आज अपने अंदर हलकी सी तरंग क्यों महसूस कर रहे थे. तभी बिरूवा चाय बना कर ले आया. उन्होंने चाय का पहला घूंट भरा ही था कि डोरबेल बज उठी.

‘‘देखना बिरूवा कौन आया है?’’ मधुप ने आवाज दी.

‘‘अखबर वाला होगा. पैसे लेने आया होगा, शाम को वही आता है,’’ कह कर बिरूवा बाहर चला गया. लेकिन पलभर में ही खुशी से उमगता हाथ में बैग उठाए अंदर आ गया. मधुप आश्चर्य से उसे देखने लगे.

‘‘कौन है बिरूवा? कौन आया है और यह बैग किस का है?’’

‘‘बाहर जा कर देखिए साब. समझ लीजिए, पूरे संसार की खुशियां चल कर आ गई हैं आज दरवाजे पर,’’ कह कर बिरूवा घर में कहीं गुम हो गया. वे जल्दी से बाहर गए. देखा, दरवाजे पर श्यामला खड़ी थी. वे आश्चर्यचकित, किंकर्तव्यविमूढ़ से उसे देखते रह गए.

‘‘श्यामला तुम,’’ उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था.

‘‘हां मैं…’’ वह मुसकराते हुए बोली, ‘‘अंदर आने के लिए नहीं कहोगे.’’

‘‘श्यामला…’’ खुशी के अतिरेक में उन्होंने आगे बढ़ कर श्यामला को गले लगा लिया, ‘‘मुझे माफ कर दो.’’

‘‘बस, अब कुछ मत कहो… आप भी मुझे माफ कर दो. जो कुछ हुआ वह सब भूल कर आई हूं.’’

दोनों थोड़ी देर ऐसे ही खड़े रहे. तभी पीछे कुछ आवाज सुन कर दोनों अलग हुए. मुड़ कर देखा तो बिरूवा आरती का थाल लिए खड़ा था. मधुर और श्यामला दोनों हंस पड़े.

‘‘आज तो बहुत ही खुशी का दिन है साब.’’

‘‘हां बिरूवा क्यों नहीं. आज मैं तुम्हें किसी बात के लिए नहीं रोकूंगा,’’ कह कर मधुप श्यामला की बगल में खड़े हो गए और बिरूवा उन दोनों की आरती उतारने लगा.

अनमोल रिश्ता : भाग 3

फिर आगे बोला, ‘‘यदि आप की तबीयत ठीक न हो तो इतना लंबा सफर मत करना, मैं इन्हें सकुशल उदयपुर पहुंचा दूंगा.’’

‘‘शुक्रिया बेटा, लो अपने अंकल से बात करो,’’ मेरा मन हलका हो गया था.

‘‘बेटा, हम परसों तक पहुंचने की कोशिश करेंगे. तुम्हें तकलीफ तो दे रहे हैं, पर सलीम भाई से बात नहीं हुई. वे कहां हैं?’’ इन्होंने संशय के साथ पूछा.

‘‘अंकल, वह कोच्चि में ही हैं. आजकल उन की भी तबीयत ठीक नहीं है. अच्छा मैं फोन रखता हूं.’’

‘‘चलो, मन को तसल्ली हो गई कि परदेस में भी कोई तो अपना मिला. यह कहते हुए मैं लेट गई. जल्दी से जल्दी टैक्सी से पहुंचने में भी हमें समय लग गया. अशरफ ने हमें अस्पताल और रूम नंबर बता दिया था, सो हम सीधे कोच्चि के अस्पताल में पहुंच गए.

वाकई अशरफ वहां के एक बड़े अस्पताल में सब जांच करवा रहा था, आरुषि के 2-3 फ्रैक्चर हो गए थे, उस के प्लास्टर बंध गया था.

राजीव के दिमाग में तो कोई चोट नहीं आई थी. पर बैकबोन में लगने से वह हिलडुल नहीं पा रहा था. चक्कर भी पूरे बंद नहीं हुए थे. एक पांव की एड़ी में भी ज्यादा चोट लग गई थी.

डाक्टर ने 10 दिन कोच्चि में ही रहने की सलाह दी. ऐसी हालत में इतनी दूर का सफर ठीक नहीं है, सीमा ठीक थी और वही सब को संभाल रही थी.

पोते आयुष को हम अपने साथ अस्पताल से बाहर ले आए और अशरफ से होटल में ठहरने की बात की.

‘‘अंकल, आप क्यों शर्मिंदा कर रहे हैं. घर चलिए, अब्बाजान आप का इंतजार कर रहे हैं.’’

हमारी हिचक देख कर वह बोला, ‘‘अंकल, आप चिंता न करें. आप के धर्म को देख कर मैं ने इंतजाम कर दिया है.’’

‘‘अरे, नहीं बेटा, दोस्ती में धर्म नहीं देखा जाता है,’’ ये शर्मिंदगी महसूस कर रहे थे.

अशरफ हमें सलीम भाई के कमरे में ले गया. सलीम भाई ने एक हाथ उठा कर अस्फुट शब्दों में बोल कर हमारा स्वागत किया. उन की आंखें बहुत कुछ कह रही थीं. हमारे मुंह से बोल नहीं निकल रहा था. इन्होंने सलीम भाई का हाथ पकड़ कर हौले से दबा दिया. 10 मिनट तक हम बैठे रहे, सलीम भाई उसी टूटेफूटे शब्दों में हम से बात करने की कोशिश कर रहे थे. अशरफ ही उन की बात समझ रहा था.

खाना खाने के बाद अशरफ ने बताया, ‘‘अब्बाजान जब भी उदयपुर से आते थे आप की बहुत तारीफ करते थे. हमेशा कहते थे, ‘‘मुझे जिंदगी में इस से बढि़या आदमी नहीं मिला और चाचीजान के खाने की इतनी तारीफ करते थे कि पूछो मत.’’

उस के चेहरे पर उदासी आ गई. एक मिनट खामोश रह कर बात आगे बढ़ाई, ‘‘आप के यहां से आने के चौथे दिन बाद ही अम्मीजान की तबीयत ज्यादा खराब हो गई थी. बे्रस्ट में ब्लड आ जाने से एकदम चिंता हो गई थी. कैल्लूर के डाक्टर ने तो सीधा मुंबई जाने की सलाह दी.

‘‘जांच होने पर पता चला कि उन्हें बे्रस्ट कैंसर है और वह भी सेकंडरी स्टेज पर. बस, सारा घर अम्मीजान की सेवा में और पूरा दिन अस्पताल, डाक्टरों के चक्कर लगाने में बीत जाता था.

‘‘इलाज करवातेकरवाते भी कैंसर उन के दिमाग में पहुंच गया. अब्बाजान तो अम्मीजान से बेइंतहा मोहब्बत करते थे. अम्मी 2 साल जिंदा रहीं पर अब्बाजान ने उन्हें कभी अकेला नहीं छोड़ा. मैं उस समय सिर्फ 20 साल का था.

‘‘ऐसी हालत में व्यापार बिलकुल चौपट हो गया. फैक्टरी बेचनी पड़ी. अम्मीजान घर से क्या गईं, लक्ष्मी भी हमारे घर का रास्ता भटक गई.

‘‘अकसर अब्बाजान आप का जिक्र करते थे और कहते थे, ‘एक बार मुझे उदयपुर जाना है और उन का हिसाब करना है, वे क्या सोचते होंगे कि दोस्ती के नाम पर एक मुसलमान धोखा दे गया.’?’’

हमारी आंखें नम हो रही थीं, इन्होंने एकदम से अशरफ को गले लगा लिया और बात बदलते हुए पूछा, ‘‘सलीम भाई की यह हालत कैसे हो गई?’’

अशरफ गुमसुम सा छत की ओर ताकने लगा, मन की वेदना छिपाते हुए आगे बोला, ‘‘अंकल, जब मुसीबत आती है, तो इनसान को चारों ओर से घेर लेती है. अभी 2 साल पहले अब्बाजान ने फिर से व्यापार में अच्छी तरह मन लगाना शुरू किया था. हमारा कैल्लूर छूट गया था. हम कोच्चि में ही रहने लगे. मैं भी अब उन के संग काम करना सीख रहा था.

‘‘पहले वाला मार्बल का काम बिलकुल ठप्प पड़ गया था. कर्जदारों का बोझ बढ़ गया था. व्यापार की हालत खराब हुई तो लेनदार आ कर दरवाजे पर खड़े हो गए. पर देने वालों ने तो पल्ला ही झाड़ लिया. आजकल मोबाइल नंबर होते हैं, बस, नंबर देखते ही लाइन काट देते थे.

‘‘जैसेतैसे थोड़ी हालत ठीक हुई तो अब्बाजान को लकवे ने आ दबोचा. चल- फिर नहीं पाते और जबान भी साफ नहीं हुई, इसलिए एक बार फिर व्यापार का वजन मेरे कंधों पर आ गया.’’

यों कहतेकहते अशरफ फूटफूट कर रो पड़ा. मेरी भी रुलाई फूट रही थी. मुझे आत्मग्लानि भी महसूस हो रही थी. कितनी संकीर्णता से मैं ने एकतरफा फैसला कर के किसी को मुजरिम करार दे दिया था.

राजीव की सारी जांच की रिपोर्टें आने के बाद कोई बीमारी नहीं निकली थी. हम सब ने राहत की सांस ली. मन की दुविधा निकल गई थी. हमें देख कर आज भी सलीम भाई के चेहरे पर वही चिरपरिचित मुसकान आ जाती थी.

10 दिन रह कर हमारे उदयपुर लौटने का समय आ गया था. अशरफ के कई बार मना करने के बावजूद इन्होंने सारा पेमेंट चुकाते हुए कहा, ‘‘बेटा, मैं तुम्हारे पिता के समान हूं. एक बाप अपने बेटे पर कर्तव्यों का बोझ डालता है पर खर्चे का नहीं. अभी तो मैं खर्च कर सकता हूं.’’

अशरफ इन के पांवों में झुक गया. इन्होंने उसे गले लगाते हुए कहा, ‘‘बेटा, तुम ने जिस तरह से अपने पिताजी की शिक्षा ग्रहण की है और कर्तव्य की कसौटी निभाई है वह बेमिसाल है.’’

फिर एक बार सलीम भाई के गले मिले. दोनों की आंखें झिलमिला रही थीं.

चलते समय अशरफ ने झुक कर आदाब किया. इन्होंने आशीर्वाद देते हुए कहा, ‘‘बेटा, आज से अपने इस चाचा को पराया मत समझना. तुम्हारे एक नहीं 2 घर हैं. हमारे बीच एक अनमोल रिश्ता है, जो सब रिश्तों से ऊपर है.’’

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