मैं जब ब्याह कर आई तो उम्र के उस दौर में थी जहां लड़कियां सपनों की एक अनोखी दुनिया में खोई रहती हैं. पढ़ना लिखना, घूमना फिरना, हलके फुलके घरेलू काम कर देना, वह भी मां ज्यादा जोर दे कर कहतीं तो कर देती वरना मस्ती मारना, सहेलियों के साथ गपें मारना यही काम होता था मेरा.

मुझ से छोटी 2 बहनें थीं, इसलिए पापा को मेरी शादी की बहुत जल्दी थी. शादी के वक्त मेरी उम्र 19 और मेरे पति अमर की उम्र 24 के आसपास थी. छोटे से कसबे के 5 कमरों वाले घर में काफी चहलपहल रहती थी. सारा दिन घर की जिम्मेदारियां निभाते बीत जाता. छोटा देवर आशु बहुत ही शैतान था. घर में सब से छोटा होने के कारण सब के लाड़प्यार में एकदम जिद्दी बन गया था.

स्कूल से आते ही सारा सामान पूरे घर में फैला कर रख देता. कपड़े कहीं फेंकता, मोजे कहीं तो स्कूल बैग कहीं. अर्चना और शोभा से पहले वह घर आ जाता. आते ही फरमाइशों का दौर शुरू हो जाता. खाने में उसे कुछ भी पसंद नहीं आता, दाल, सब्जी, रायता, चावल सभी थाली में छोड़ रूठ कर सो जाता. पता नहीं कैसा खाना चाहता था वह.

मांजी भी उस की इन आदतों से काफी परेशान रहती थीं. मैं कहना चाहती थी कि आप ने ही उस की आदतों को बिगाड़ कर रखा है, पर कह नहीं पाती थी. मालूम था, मांजी नाराज हो जाएंगी. एक बार अमर ने कह दिया था तो कई दिनों तक घर का माहौल अशांत बना रहा था. आशु उन का बहुत ही दुलारा था.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...