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उपराष्ट्रपति Jagdeep Dhankhar के प्रति अविश्वास

Jagdeep Dhankhar : राज्यसभा अध्यक्ष व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के विरुद्ध संसद में पहली बार अविश्वास प्रस्ताव का लाना चाहे कोई अंतिम लक्ष्य पूरा न कर पाए, मगर इस ने अध्यक्ष की सरकार की चाटुकारिता करने की पोल अवश्य खोली. पूजापाठी और वर्णव्यवस्था की हिमायती वर्तमान सरकार को अंधसमर्थन देने में संसद के कुछ सदस्य खूब बढ़चढ़ कर बोल रहे हैं, यहां तक कि कुछ को तो अपने संवैधानिक पद की गरिमा का भी खयाल नहीं रहता. ऐसा लगता है कि देश में लोकतंत्र नहीं, पौराणिक तंत्र चल रहा है जिस में राजा ऋषिमुनि के आने पर अपने स्थान से उठ कर उन की आवभगत में लग जाता था.

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ पर आरोप यही है कि वे राज्यसभा के अध्यक्ष होने के नाते राज्यसभा में सरकार का बचाव हर संभव तरीके से करते हैं. यही नहीं, राज्यसभा से बाहर उन्हें जहां मौका मिलता है वे कट्टरवादी सोच के प्रमुख वक्ता बन जाते हैं. उन के प्रशंसात्मक बयानों को एकत्र किया जाए तो अखंड सप्ताह चलने वाले माता के 2 जागरणों जैसा बन जाएगा जिस में बारबार जयजयकारा लगाया जाता है.

पूर्व कांग्रेसी जगदीप धनखड़ आज उपराष्ट्रपति के संवैधानिक पद पर बैठे हैं और उन्हें पद व संविधान की मर्यादा की रक्षा करनी चाहिए पर जिस तरह का व्यवहार वे हर सैशन में करते रहे हैं, उस से विपक्षी दलों का एक न एक दिन उखड़ना स्वाभाविक ही था. यह पक्का था कि अगर इस पर बहस होती तो प्रस्ताव भारी मतों से गिर जाता क्योंकि भारतीय जनता पार्टी और किसी बात में माहिर हो या न, लोगों को मनाने, बहलाने और फुसलाने के साथसाथ डरानेधमकाने के सभी पौराणिक ढंग अच्छी तरह से जानती है.

भागवत महापुराण में सगर चरित्र वर्णन करते हुए शुकदेव कहते हैं कि चक्रवर्ती सम्राट सगर ने और्व ऋषि के कहने पर अश्वमेध यज्ञ किया तो उस का छोड़ा गया घोड़ा जब कहीं नहीं मिला तो सगर के पुत्रों ने सारी पृथ्वी खोद डाली और कपिल मुनि के पास वह मिला. कपिल मुनि का तिरस्कार होने पर उन के शिष्य सगर राजकुमारों को जैसे जला बैठे थे, आज कितने ही संवैधानिक पद पर बैठे लोग उस समय के उसी तरह से विपक्षियों को जलाने के लिए तैयार बैठे हैं.

सगर के एक भतीजे ने कपिल मुनि के पास जा कर कहा, ‘‘भगवन, आप अजन्मे ब्रह्माजी से परे हैं, आप एक रस हैं, ज्ञानधन हैं, आप सनातन आत्मा हैं. ज्ञान का उपदेश देने के लिए आप ने यह शरीर धारण कर रखा है. यह संसार आप की माया की करामात है.’’

आज जब जज, विचारक, टीवी एंकर, पत्रकार, लेखक इस तरह की भाषा का इस्तेमाल करने लगते हैं तो साफ हो जाता है कि उन की पढ़ाई चाहे देशविदेश के बड़े विश्वविद्यालयों में हुई हो लेकिन  वे असल में पौराणिक सोच के गुलाम हैं. उन के खिलाफ आवाज उठाना लोकतंत्र के लिए जरूरी है.

 

 

 

Sambhal : तोड़ो, खोदो और खोदो

Sambhal :  संभल के मामले में भी मसजिद के नीचे मंदिर होने का दावा ठोक कर जो भी हिंदू कट्टरवादी कर रहे हैं, वह उन का धंधा है. दरअसल, जब तक किसी को यह कह कर बहकाया नहीं जाएगा कि सामने वाला तुम्हारा पैसा, जीवन, औरत लेने वाला है या उस के पुरखों ने तुम्हारे पुरखों से लिया था, लोग हथियार उठाने को तैयार नहीं होंगे. हथियार उठाने वाले हाथ पहले अपनी कमाई को उकसाने वाले को देते रहे हैं क्योंकि तभी वे अपना धंधा चला पाते हैं.

2,000 साल से ईसाई यरूशलम में क्राइस्ट की मौत के लिए यहूदियों को दोष देते रहे हैं. हिटलर ने उन्हीं को ढाल बना कर एक हारे हुए देश को फिर से न केवल नए जोश से भर दिया था, कुछ ही महीनों में उस ने, 1940-41 में, पूरे यूरोप पर कब्जा भी कर लिया था. उस का बहाना यहूदियों को सजा देना था.

आज हर मसजिद के नीचे अगर मंदिर दिखाया जा रहा है तो इसलिए कि हिंदू धर्म का धंधा, जो तेजी से फलफूल रहा है, बेहद प्रतियोगी हो गया है. लाखों युवा पैसा बनाने के लिए इस में टूट पड़े हैं. जब बाजार में एकजैसा माल बेचने वाले बहुत होने लगते हैं तो अलगअलग लेबल, अलगअलग दावे, अलगअलग तौरतरीके, झूठ, फरेब आदि गढ़े जाते हैं.

डोनाल्ड ट्रंप इमीग्रेंट्स को ले कर जीत गया क्योंकि अमेरिकी जनता को चर्च ने बहका दिया कि डैमोक्रेटिक पार्टी न केवल इमीग्रेंट्स को पाल रही है, वह धर्म का राज भी खत्म करने पर तुली है. सो, कल को सत्ता लैटिनों या मुसलिमों के हाथ में जा सकती है. चर्चों के धंधों को चलाने के लिए पादरियों ने जम कर ट्रंप के गुणगान किए और उस महान अमेरिका को वापस लाने का वादा किया जिस में श्वेत अलग रहते थे और अश्वेत, कालेपीले, ब्राउन अलग.

संभल जैसे मामले निकलते रहेंगे क्योंकि 2002 में रंजन गोगाई जैसे मुख्य न्यायाधीश के नेतृत्व में सुप्रीम कोर्ट ने एक तरफ यह माना कि बाबरी मसजिद गिराना गैरकानूनी था पर दूसरी ओर जमीन हिंदू पक्ष को दे दी बिना यह पहचान किए कि कौन सा पक्ष 500 साल पुरानी जगह पर दावा करने का हकदार है.

अगर सुप्रीम कोर्ट ने जरा भी यह मान लिया है कि अयोध्या में बाबरी मसजिद को रामजन्म भूमि की जगह बनाया गया है तो फिर सारा अयोध्या, जो इस रामजन्म भूमि के चारों ओर बसा हुआ है, असल में पौराणिक राजमहल, दरबार, दरबारियों के घरों, सेना की छावनियों, अयोध्या के निवासियों के घरों व उस समय के दूसरे तमाम मंदिरों के ऊपर बसा हुआ होगा.

नैतिकता तो कहती है कि चारों ओर के बने हुए मकानों को भी तोड़ा जाए और पूरा राजमहल बनाया जाए, दशरथजी के महल के साथ भरत, दुर्योधन, लक्ष्मण के महलों को ढूंढ़ा जाए, हनुमान जहां रहते थे उस जगह का पता किया जाए, गुरु वशिष्ठ जहां रहते थे वह ढूंढ़ा जाए, जिस जगह राम ने राजगद्दी पर बैठने के बाद यम देवता से बातचीत की, वह कक्ष ढूंढ़ा जाए. दुर्वासा मुनि का जहां लक्ष्मण से विवाद हुआ वह ढूंढ़ा जाए.

आज वहां हिंदुओं के मकान बने हैं या मुसलिमों के, यह भुला कर सारा क्षेत्र खोदा जाए चाहे 10 फुट खोदना हो या 100 फुट. यह काम पुराने इतिहास को जीवित करने के लिए जरूरी है.

जब मोहन जोदड़ो, लोथल, धौलावीरा, नालंदा, पटना के कुम्हरार में सैकड़ों साल पहले बने महलों, मकानों के अवशेष आज मिलते हैं तो पूरे अयोध्या को खोद कर पुण्यनगरी को पुनर्जीवित क्यों न किया जाए? इजिप्ट में 3,000 से ले कर 5,000 साल पुराने भव्य शहर मिल रहे हैं. खुदाई करने की जब अयोध्या में शुरुआत हो चुकी है तो फिर उसे पूरा क्यों न किया जाए, पूरी अयोध्या क्यों न खोदी जाए?

Broadcasting Bill और सोशल मीडिया पर कंट्रोल

Broadcasting Bill :  सोशल मीडिया पर मिसइन्फौर्मेशन और डिसइन्फौर्मेशन को कंट्रोल करने के बहाने दुनिया के कई देश सोशल मीडिया के बहाने ट्रेडिशनल मीडिया पर चैकिंग स्टाफ बैठाने की स्कीमें बना रहे हैं. लोगों को गुमराह न किया जाए, कह कर वे चाहते हैं कि सरकार, नेताओं, प्रैसिडैंटों, प्राइममिनिस्टरों, गवर्नरों, मेयरों, पुलिस अफसरों की पोल सोशल मीडिया या ट्रेडिशनल मीडिया पर न आए ताकि वे गुनाहगार, जो अपने पौवर का गलत इस्तेमाल कर रहे हैं, मौज से जी सकें.

आस्ट्रेलिया में सितंबर में इसी तरह के लाए गए एक बिल को कानून बनने से पहले ही वापस लेने का फैसला किया गया है. भारत में Broadcasting Bill और सोशल मीडिया पर कंट्रोल जून 2024 के चुनावों के बाद वापस ले लिया गया था पर शायद अब हरियाणा और महाराष्ट्र में भाजपा की जीत के बाद फिर लाया जाएगा.

सोशल मीडिया बेहद गैरजिम्मेदार है, इस में शक नहीं है. इस पर लोग हर तरह की गंद डाल सकते हैं, जो कुछ सौ से ले कर लाखों लोगों तक पहुंच सकती है. जिन लोगों को धर्म के तथाकथित चमत्कारों की झूठी कहानियों की आदत पड़ी है वे आमतौर पर इस तरह की अफवाहों/खबरों को मोबाइलों पर ठाठ से पढ़ते हैं और फिर उन्हें दैविक, गोस्पल वर्ड्स मान कर सच मान लेते हैं.

इन पर कंट्रोल करना चाहिए पर सरकार अगर कंट्रोल करेगी तो पक्का है कि उस का इंट्रस्ट अपने बारे में डिसइन्फौर्मेशन ज्यादा परोसना होगा. भारत में देख लें, जितने सरकारी विज्ञापन छपते है उन में आधे तो नकली खबरों से भरे होते हैं.

सोशल मीडिया पर कंट्रेाल करने की मंशा है तो एक ही तरीका है. इसे महंगा किया जाए. अब यह काम कौन करेगा, यह नहीं कहा जा सकता. जिम्मेदार एडवर्टाइजरों का काम है कि वे मुफ्त में मीडिया कंज्यूम करने वालों के यहां एडवर्टाइज न करें तो मिसइन्फौर्मेशन पर कंट्रोल होगा.
सोशल मीडिया यूजर्स अपने छोटेछोटे एसोसिएशन बना सकते हैं और ये चाहे सैकड़ों की तादाद में बनें. हर एसोसिएशन यदि सोशल मीडिया कंटैंट का रिव्यू करेगा तो इस पर कंट्रोल होगा.

सब से बड़ी बात यह है कि सोशल मीडिया यूज करने वाले समझें कि कोई भी कोई रील मुफ्त में बना कर नहीं डालेगा. सिर्फ फौलो, लाइक और सब्सक्राइब करने से रील बनाने वाले का पेट नहीं भरता. हर सोशल मीडिया उस रील को देखे जिस की कुछ कीमत हो. सही व अच्छी जानकारी तो पे (भुगतान) करने के बाद मिलेगी यानी पे फौर गुड इन्फो. आजकल तो एक घूंट पानी भी मुफ्त में नहीं मिलता, वैसे, एंटरटेनमैंट मुफ्त में मिल सकता है.

 

Religion : धर्म की गुलाम सरकार

Religion : चादर का फटना शुरू होने के बाद नजर आने लगा है. न केवल भारत की विदेश नीति की पोल फटी चादर के छेदों से दिखने लगी है, कश्मीर, लद्दाख, बेरोजगारी, प्रदूषण, दिल्ली जैसे शांत शहर में रंगदारों की खुली गोलीबाजी, नई सड़कों के गड्ढे, ड्रग्स, डंकी व्यापार आदि सब भी दिखने लगे हैं.

पिछले 40 सालों से धर्म का जो खुमार चढ़ा था और जिस की वजह से राम मंदिर बन गया लेकिन बाकी समाज तारतार हो गया है, ऐसा साफ दिखने लगा है. धर्म की नाव पर चढ़ कर जो सरकार दिल्ली में बनी थी उसे झंडों की और प्रतीकों की इतनी फिक्र थी कि उस ने नाव की मरम्मत करने की ही नहीं सोची और उस नाव से नदी के तटबंध तोड़ डाले, किनारों को उजाड़ दिया, पानी को गंदा कर डाला.

धर्म कभी भी कहीं भी निर्माण का काम नहीं करता, जरूरी निर्माण का पैसा और श्रम धर्म के नाम पर लगवाता है. गांव और शहर सड़ने लगते हैं, धर्म की दुकान के बुर्ज ऊंचे होने लगते हैं, चमकने लगते हैं. सड़े शहरों में समाज तारतार होने लगता है.

कश्मीर अब धीरेधीरे फिर आतंकवाद की ओर बढ़ रहा है. पंजाब के खालिस्तानी पंजाब में ही नहीं, दुनियाभर में फैले हुए हैं और जम कर सक्रिय हो रहे हैं और भारत सरकार वहां उन का मुंह बंद करा रही है लेकिन समस्याको सुलझा नहीं पा रही. बेरोजगारी के कारण मुट्ठीभर सरकारी नौकरियों को पाने के लिए जाति, धर्म, उपजाति के झगड़े अभी चाहे कागजों पर ही दिख रहे हों, कब वे सड़कों पर उतर आएंगे, कहा नहीं जा सकता.

सरकार ने टैक्नोलौजी को जम कर पूरे समाज पर बुरी तरह थोपा और चाहे सरकारी दफ्तरों की लाइनों से बचा लिया पर टैक्नोलौजी फ्रौडों की एक नई विधा को जन्म दे दिया. अब हर किसी के फोन पर किसी अनजाने की कौल आ जाती है कि आप का फोन बंद होने वाला है या आप के नाम आए पार्सल में ड्रग्स हैं या आप के बैंक में ह्यूमन ट्रैफिकिंग का पैसा है और लोग लाखों खो रहे हैं पर सरकार बेबस है. उसे तो बुलडोजर चलाना आता है, हिंदूमुसलमान करना आता है, मंदिर के नाम पर उकसाना आता है. शासन करना उसे नहीं आता.

नए कानूनों से, कानूनों को नए नाम देने से, नई कानूनी संस्थाएं बनाने से देश सुधरता नहीं है. आज प्रशासन चलाना आसान नहीं है. अब कानून व्यवस्था बनाए रखने में एकदो नहीं, हर पल सैकड़ों फैसले लेने होते हैं. अगर फैसले लेने वालों के मन में एक ही बात भरी हो कि धर्म का झंडा ऊंचा रहे, धर्म की चादर बिछी रहे तो झंडे के और चादर के नीचे उगी झाडि़यों में सैकड़ों कीड़े, बिच्छू जन्म ले लेंगे ही जो कब किसे काटेंगे, पता नहीं.

देश की जनता का काम कैसे सुखद हो, इस के लिए नक्शे भविष्य देख कर बनाने होते हैं, गुजरी सदियों के इतिहास को खंगालने से नहीं मिलते.

सरकार के मन में यही भरा है कि अगर पौराणिक काल में ऋषियोंमुनियों की सेवा करने से जनता प्रसन्न हो जाती है, सुख आ जाता है तो वह न आज का काम ढंग से कर पाएगी न आने वाले कल की तैयारी कर सकेगी. पौराणिक युग में भी हर समय सत्ता के लिए छीनाझपटी ही होती रही, यह नहीं भूलना चाहिए. हस्तिनापुर और अयोध्या में शांति नहीं थी, लंका में भी नहीं, यह नहीं भूलना चाहिए.

 

 

 

Russia-Ukraine : वैश्विक नासमझी

Russia-Ukraine :   रूस और यूक्रेन के बीच हो रहे युद्ध व इजरायल की हमास व हिजबुल्ला से जारी झड़पें शासकों को यह जताने के लिए काफी होनी चाहिए कि आज के युग में जमीन पर कब्जा कर लेने या लोगों को मार डालने से कोई बड़ी जीत हासिल नहीं होती. हालांकि, पिछले 2 विश्वयुद्धों, कोरियाई युद्ध, वियतनाम-अमेरिका लड़ाई, अफगानिस्तान पर रूस व अमेरिकी फौजें यह सबक सीख चुकी हैं कि आज के युग में किसी की जमीन पर कब्जा करना बेकार की कवायद है और अपना  झंडा दूसरे की जमीन पर फहराने से किसी को कोई लाभ नहीं होता. हां, शासकों को अपनी सेना का इस्तेमाल करने की लगी रहती है.

रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन अब यूक्रेन के जंजाल में फंस गए हैं और उन के युवा फ्रंट पर जाने से मना करने लगे हैं. पुतिन को अब बाहर से मजदूरी पर सैनिक बुलाने पड़ रहे हैं. न जाने कितने भारतीय नौकरी के ?ांसे में रूस ले जाए गए हैं जो फ्रंट के नजदीक सेना की मदद कर रहे हैं और देशों के मजदूरों को भी सैनिक वरदी पहना कर युद्ध में  झोंका जा रहा है.

नई खेप 10 हजार उत्तरी कोरियाई सैनिकों की यूक्रेन फ्रंट पर पहुंची है पर रूसी सैनिक इन लोगों को सहजता से साथी समझने से इनकार कर रहे हैं. वे कोरियाई सैनिकों को मरने के लिए आगे कर देंगे पर वे भूल रहे हैं कि किम जोंग उन की सेना को मरने के लिए पहले से ही तैयार कर रखा गया है. ताजा खबरों के हिसाब से उत्तरी कोरिया 1 लाख तक सैनिक भेज सकती है.

उत्तरी कोरियाई सैनिक टैंकों, बंदूकों, खंदकों में लड़ने के आदी होंगे, इस में शक है लेकिन वे मरने को तैयार होंगे क्योंकि वे जानते हैं कि वापस कोरिया में लौट कर जिंदा रहना तो संभव ही नहीं है. लौटने पर किम जोंग उन के सैनिक उन सब को मार डालने में दो मिनट भी हिचकेंगे नहीं. किम डाइनैस्टी ने 1945 के बाद ऐसा माहौल उत्तरी कोरिया में बना डाला है कि वहां अब जिंदगी सरकार की कृपा पर है और कोई भी, किम जोंग उन की प्रेयसी तक, सुरक्षित नहीं है.

उत्तरी कोरिया लाखों सैनिक झांक सकता है पर पुतिन को उस की भारी कीमत चुकानी होगी. एक बार उत्तरी कोरियाई सैनिकों के हाथों में रूसी हथियार आए नहीं कि वे रूस पर पलटवार भी कर सकते हैं. जापान ने कभी छोटा होते हुए भी रूस, कोरिया और चीन पर अकेले कब्जा कर लिया था.

लेकिन इन कब्जों से क्या मिला? एटम बमों को झेलना. आज जापान के लोग ज्यादा सुखी हैं. आज दक्षिण कोरिया के लोग सुखी हैं. आज हिटलर के बिना वाली जरमनी के लोग सुखी हैं. दूसरे देशों पर कब्जा करने की इच्छा न रखने वाले स्वीडन, नौर्वे, सिंगापुर, स्विट्जरलैंड ज्यादा सुखी हैं.

भारत में भी सुख कहां है? हम दूसरे धर्मों और नीची जातियों पर कब्जा करना चाहते हैं, उन की जमीनजायदाद छीन कर उन्हें गुलाम सा बनाए रखने के लिए प्रपंच रचते रहते हैं जो युद्ध से थोड़ा ही कम है, लेकिन हलकी जीत के बाद भी सुख कहां है?

देश के गरीब और अमीर मस्त हैं पर सभी भागने की फिराक में हैं. वे दूसरे देशों में दूसरे दर्जे के नागरिक बनना ज्यादा पसंद करेंगे बजाय अपने देश में स्वतंत्र नागरिक रहने के. हम न पुतिन से कुछ सीख रहे हैं, न हमास, हिजबुल्ला व इजरायल से और न ही अफगानिस्तान के दलदल से.

लेकिन गलती सिर्फ नरेंद्र मोदी की कहां है जब शी जिनपिंग, जो बाइडेन, व्लादिमीर पुतिन, बेंजामिन नेतन्याहू, खामेनाई, डोनाल्ड ट्रंप, तालिबानी कुछ नहीं समझा रहे हैं. वे सोचते हैं कि सुख बंदूक की नली से निकलता है. जबकि, सुख तो मेहनत में है, उत्पादन में है, निर्माण में है. गर्व कुछ बना कर करने में है, कुछ तोड़ने में नहीं.

 

Israel : हिटलर मरा है, सोच नहीं

Israel : इजराइल की खुफिया एजेंसी मोसाद ने गाजा पट्टी के हमास और लेबनान के हिजबुल्ला और न जाने किनकिन के रेडियो वेव्स से चलने वाले टैलिकौम वायरलैस इंस्ट्रूमैंट्स में बैटरी के साथ बारूद डाल दिया है. यह पता करने में उस के विरोधियों को ही नहीं, दोस्तों को भी सिर के बाल नोचने होंगे. हैंडहेल्ड इन इंस्ट्रूमैंट्स को इजराइल मनमाने ढंग से औपरेट कर सकता था, यह तकनीक उस के पास थी. उस की इस तकनीक ने दुनिया के सभी जासूसों, नेताओं, सेनाओं और कंप्यूटर बनाने वालों को पसीने ला दिए हैं.

यह कमाल सिर्फ हैकिंग का नहीं था. बनते समय या लातेलेजाते समय इन इंस्ट्रूमैंट्स को खोलना और उन में ऐसा एक्सप्लोसिव डालना जो दूर से कभी भी चलाया जा सकता है, यह दर्शाता है कि किसी के हाथ में भी कोई मोबाइल, किसी की मेज पर कोई कंप्यूटर, किसी कंपनी में बड़ा कंप्यूटर, डाटा सैंटर, बिजलीघर, परमाणु संयत्र, सैटेलाइटें, कैमरे कुछ भी सुरक्षित नहीं हैं.

इजराइल ने पहले पेगासस सौफ्टवेयर भी बनाया था जिसे आसानी से किसी के मोबाइल में डाला जा सकता है और जो मोबाइल के मालिक की हर बात, हर फोटो, हर मैसेज रिकौर्ड कर सकता है. भारत सरकार ने यह सौफ्टवेयर खरीदा है और आज भी कितने मोबाइलों पर चलाया जा रहा है, पता नहीं.

टैक्नोलौजी इस तरह से हर जने की जिंदगी में घुस जाएगी, इस का अंदाजा कहानियां लिखने वाले वर्षों से कर रहे हैं और 1948 में लिखी जौर्ज औरवेल की किताब ‘1984’ में इस का एक अंदाजा पेश किया गया था. तब यह केवल साइंस फिक्शन लगता था, असलियत नहीं. लेकिन अब 2024 में इजराइल ने तकनीक से ही सैकड़ों को घायल कर डाला.

मतलब साफ है कि आज एप्पल, सैमसंग, वनप्लस, जियो, एयरटेल, रिलायंस, टाटा स्काई के पास आप के कितने रहस्य कहांकहां दबे हैं, आप को नहीं मालूम. आम आदमी बेचारा है, बिना ताकत वाला है, इसलिए उस का नुकसान नहीं हो सकता पर कितने नेता आज ब्लैकमेल हो रहे होंगे क्योंकि ये कंपनियां सरकार को कितना ब्लैकमेल करने लायक सामग्री दे रही हैं, क्या मालूम?

दूसरी पार्टियों के नेताओं के हृदय परिवर्तन क्यों हो रहे हैं कि वे भारतीय जनता पार्टी की शरण में अचानक चले जाते हैं, यह अब अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है.

आज की टैक्नोलौजी ने अगर जिंदगी आसान की है तो यह भी मान लीजिए कि इस ने सबकुछ थोड़े से लोगों को बांध कर रखने में भी सहायता की है.

जैसे हमारे पौराणिक ग्रंथों में अपनी जाति की औरतों तक को हथियार उठाने की इजाजत नहीं थी कि कहीं वे भी टैक्नोलौजी का ज्ञान हासिल न कर लें, वैसे ही आज की टैक्नोलौजी एक उच्च वर्ग पैदा कर रही है जो ताकतवर लोगों को भी पंगु बना रही है. विज्ञान की पहुंच आप के जिगर तक ही नहीं है, आप के दिमाग, हाथपैर तक में भी है. सो, होशियार रहिए कौन जाने इस विज्ञान की नब्ज असल में किस के पास है.

यह नब्ज अच्छे शासक के पास भी हो सकती है जो भला करना चाहता है और किसी कट्टर के पास भी जो आप को गुलाम बना कर मौज करना चाहता है.

हिटलर मरा है, उस की सोच नहीं.

Social Media : इंफ्लुएंसर्स का मुफ्त ज्ञान 

Social Media :  इंफ्लुएंसर्स आजकल नाचगाना, फालतू के स्टंट के रील्स बना व उन्हें सोशल मीडिया पर डालडाल कर आम लोगों को इस तरह हिप्टोनाइज कर चुके हैं कि अब सही और गलत की पहचान के लिए स्क्रीन पर दिखने वाला ही परफैक्ट लगता है. सोशल मीडिया पर इंस्टाग्राम, फेसबुक रील्स, व्हाट्सऐप रील्स, यूट्यूब कार्टून इतने हावी हो गए हैं कि देखने वालों की रैशनल कैपेसिटी ही खत्म हो गई है.

अब फाइनैंशियल ज्ञान

इस का फायदा इंफ्लुएंसर्स उठा ही रहे हैं, लोगों को फालतू की चीजें बेच कर, फालतू की जगहों पर ले जा कर, फालतू का बेकार का खाना खिला कर उन्हें वे लूटे जाने के लिए भी तैयार कर लेते हैं. जैसे धर्मवाले चमत्कारों की, भावनाओं की कहानियां सुनासुना कर उत्तेजित कर लेते हैं कि भक्तों को आज भी भगवान गड़ा हुआ सोना दिलवा सकते हैं, मनचाही लडक़ी कदमों में ला पटक सकते है, वैसे ही अब कुछ इंफ्लुएंसर्स अपने भक्तों/फौलोअरों के साथ कर रहे हैं.
ये इंफ्लुएंसर्स अब फाइनैंशियल ज्ञान भी मुफ्त में बांट रहे हैं. ये शेयर बाजार की बारीकियां भी बता रहे हैं. बैंक की 7-8 फीसदी की एफडी के चक्कर में न पड़ो, स्टौक मार्केट में जाओ, 15 से 20 फीसदी रिटर्न मिलना पक्का है. आईपीओ में इनवैस्ट करो, 30-40 फीसदी लाभ मिल सकता है. डिजिटल कौयन में लगाओ, 10 वर्षों में 20 हजार गुना तक कमा सकते हो.
भरोसा न हो तो व्हाट्सऐप ग्रुप में जुड़ो, लोगों के बैंकों के खातों पर नजर डालो. कैसे पैसे मिलते नहीं, टपकते हैं. स्क्रीन कह रही है, तो सही ही होगा. वेद, पुराण, कुरान, बाइबिल में लिखा है तो सही ही है न, तो हमारी बात भी मान लो. स्क्रीन गलत नहीं होती. और फिर, आप स्क्रीन के अलावा कुछ पढ़तेलिखते तो हो ही नहीं कि आप को कहीं और से ज्ञान मिलेगा.

100 करोड़ से ज्‍यादा की ठगी

एक चीनी नागरिक फैंग चेनजिन तक ने इस गोरखधंधे में हाथ डाला और 100 करोड़ रुपए से ज्यादा ठग लिए. उसे एक शिकायत पर गिरफ्तार किया गया. शिकायत करने वाला इंटैलिजैंट पंडित सुरेश कोलिचियिल अचुथन एक कंपनी में अकाउंटैंट है और वह सोशल मीडिया खंगालता रहता था ताकि कहीं से एक के चार करने का फार्मूला स्क्रीन से बाहर निकल आए.
एक व्हाट्सऐप ग्रुप का इनवाइट आया कि ‘इस में जुड़ें और लाखों कमाएं.’ अकाउंट जानने वाले पर चमत्कारों के इंफ्लूएंसों में गले तक डूबे साहब ने थोड़े से पैसे लगाए. जब वे पैसे एक ऐप में दोगुने, चारगुने होने लगे तो उन्होंने 43.50 लाख रुपए तक जमा कर डाले. ऐप उस समय उस के खाते में 2.20 करोड़ रुपए का बैलेंस दिखा रहा था. वाह, क्या चमत्कार है!
बंद दिमाग वाले पंडित सुरेश कोलिचियिल अचुथन को समझ नहीं आया कि इतना पैसा किस ने, कैसे कमा कर उसे बैठेबिठाए दे दिया होगा. इस में से थोड़ा सा पैसा निकालना चाहा तो ऐप कहने लगा कि कुछ और जमा कराओ तो ही निकाल सकते हो. तब इंफ्लुएंसर्स के विक्टिम्स रोतेधोते पुलिस स्टेशन गए. पुलिस ने फेंग चेनजिन को पकड़ लिया है पर दोषी वही ही है, यह बाद में पता चलेगा, चारपांच साल बाद. तब तक मामला ठंडा पड़ जाएगा. 100 करोड़ रुपए जमा करने वाले ऊपर वाले की स्क्रीन की मरजी के आगे घुटने टेक चुके होंगे.

व्हाट्सऐप यूनिवर्सिटी का सुपरग्रेजुएट

यह नौटंकी हर स्क्रीन पर चल रही है. कई लोग इसे हलके में लेते हैं, कई लोग इस में कही गई बातों को मान लेते हैं. पर जो देख रहा है, लगातार देख रहा है, वह फंस रहा है. वह क्योरियस ही नहीं है, वह स्क्रीनभक्त है. अंधभक्त है. व्हाट्सऐप यूनिवर्सिटी का सुपरग्रेजुएट है. आयुर्वेद, होम्योपैथी, नैचुरोपैथी, हिप्टोनिज्म, डांस, स्लैंग, बुलडोजर सब का दीवाना है. उस में रत्तीभर एनालिटिकल पौवर नहीं है. वह तो कंपलेंट तक नहीं लिख सकता. सोशल मीडिया पर सुन और देख कर वह सिर्फ शिकायत के वीडियो या औडियो बना सकता है. इस चक्कर में जहां भी ब्रिकमोर्टार बिल्डिंग में काम कर रहा है, वहां की कमाई को गंवा रहा है. जय हो इस सोशल मीडिया की.

 

Wedding Shoot : शादी की फोटोग्राफी पर बेवजह मोटा खर्च

Wedding Shoot :  शादियों में वैडिंग फोटोग्राफी एक बड़े खर्च के रूप में बदल चुकी है. शादी के बाद वीडियो और फोटो कपल्स के किस काम के हैं.

वैडिंग फोटोग्राफी टैक्नोलौजी से जुड़ा विषय है. समय के साथ टैक्नोलौजी बदल रही है. 50 साल पहले के फोटोज आज कितने कपल्स के पास सुरक्षित होंगे?
30 साल पहले कलर फोटोग्राफी आई और शादी के कलर फोटो और वीडियो के कैसेट बनने लगे थे. जो वीसीआर यानी वीडियो कैसेट रिकौर्डर के जरिए टीवी पर देखे जाते थे. आज अगर वीडियो कैसेट है तो वीसीआर कितने कपल्स के पास है. फोटो एलबम प्लास्टिक वाले होते थे, जिन में सीलन से उस समय के फोटो खराब हो चुके होंगे. वीडियो कैसेट के बाद शादी के वीडियो सीडी यानी कम्पैट डिस्क में ली जाने लगी. यह सीडी कंप्यूटर, लैपटौप पर चलती थी. आज के दौर में इस की जगह भी खत्म हो गई है.

चुनौती मोबाइल से

अब पीडी यानी पेन ड्राइव का जमाना है. इस को टीवी, कंप्यूटर, लैपटौप और प्रोजैक्टर किसी भी रूप में देखा जा सकता है. अब फोटो और वीडियो को सब से बड़ी चुनौती मोबाइल से मिल रही है. वैडिंग फोटोग्राफर जहां कईकई महीने के बाद फोटो और वीडियो देता है वहीं मोबाइल से चटपट फोटो और वीडियो को क्लिक कर के सोशल मीडिया पर अपलोड कर दिया जाता है. किसी भी फोटो के सोशल मीडिया पर अपलोड होते ही उस की कीमत खत्म हो जाती है. पिछले 30 सालों में टैक्नोलौजी तेजी से बदली है. बदलते दौर में चीजें तेजी से पुरानी होने लगी हैं.

ऐसे में आने वाले 20-30 सालों में आज के वीडियोज और फोटोज किस टैक्नोलौजी में होगे इस का अभी अनुमान नहीं लगाया जा सकता है. इन को उस समय देखना सरल होगा भी या नहीं यह भी नहीं कहा जा सकता. 30 साल पहले सोशल मीडिया नहीं था. उस समय किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि इतनी तेजी से वीडियो और फोटो वायरल हो सकते हैं. फोटो और वीडियो को संरक्षित करना सरल नहीं है. पेपर वाले फोटो एलबम अब लैमिनेशन फोटो एलबम में बदल चुके हैं. जिन में चुनी गई 2-3 सौ फोटो लगी होती हैं. इन को न हटाया जा सकता है न एलबम में नई फोटो रखी जा सकती है.

पैकेज 70-80 हजार से ले कर 4 से 5 लाख तक

इस के बाद भी वैडिंग फोटो और वीडियो पर खर्च बढ़ गया है. 30 साल पहले सामान्य शादी में जितना खर्च होता था आज उतना वीडियो और फोटो पर खर्च होता है. लड़का और लड़की दोनों की तरफ से यह वीडियो और फोटोग्राफर रखे जाते हैं. जिस का अर्थ है कि खर्च डबल होता है. शादी की ज्यादातर रस्में लड़कालड़की की एक साथ होती है. ऐसे में दोहरे खर्च की जरूरत क्यों हैं ?

यह सोचने वाली बात है. वीडियो और फोटोग्राफर की एक टीम के साथ 5-6 लोग होते हैं. इन की पैकेज 70-80 हजार से ले कर 4 से 5 लाख तक होता है. यह कीमत शहर, फोटोग्राफर की खासियत पर निर्भर करती है. फोटोग्राफर और वीडियोग्राफर के साथ ही साथ ट्रौली कैमरा और ड्रोन कैमरा भी जरूरी होता है. ट्रौली कैमरा शादी के इवेंट्स को वहां लगी एलईडी में तत्काल डिस्प्ले करता है. जिस से जो लोग दूसरी जगह पर है वह भी देख सके कि शादी के मुख्य आयोजन में क्या हो रहा है? ड्रोन कैमरा के जरिए वहां से फोटो लिए जाते हैं जहां मैनुअल कैमरा नहीं पहुंच पाता है. इन सब की अपनी कीमत होती है. जो पूरे पैकेज को मंहगा बनाती है.

किस तरह के कैमरा होते हैं इस्तेमाल

शादी की फोटोग्राफी के लिए ज्यादातर फोटोग्राफर डीएसएलआर कैमरे का इस्तेमाल करते हैं. प्रोफैशनल फोटोग्राफर डीएसएलआर या मिररलेस कैमरे का इस्तेमाल करते हैं. कैमरे के रूप में फोटोग्राफर सब से ज्यादा निकोन जेड6 का प्रयोग करते हैं. इस के अलावा पेनटेक्स के. 1000 मौडल का कैमरा भी बेहतर परिणाम देता है. यह एक मैनुअल फिल्म कैमरा है. ज्यादातर फोटोग्राफर इस से भी फोटो खींचना पसंद करते हैं.
इस के बाद कैनन ईएफ85एमएम है. इस का लेंस पोट्रेट शूट करने के लिए अच्छा माना जाता है. पेनटेक्स के70 कैमरा 24एमपी बेहतर मेगापिक्सेल के साथ आता है. फोटोग्राफर मानते हैं कि इस की बौडी बेहतर है. हर मौसम में अच्छा काम करती है. शादी की फोटोग्राफी के लिए फोटोग्राफर प्राइम और जूम लेंस दोनों का इस्तेमाल करते हैं. यह जूम लेंस भी अलगअलग तरह के होते हैं. एक फोटोग्राफर के पास 4 से 5 लाख का इंवेस्टमेंट होता है. कैमरे और लेंस के अलावा भी कई उपकरण का प्रयोग किया जाता है. इस के बाद वीडियोग्राफर का सेटअप अलग होता है. जिस का मतलब यह है कि जो वैडिंग शूट का पैकेज लेता है उस का इंवेस्टमेंट भी 5 से 10 लाख का होता है. जो सहायक कैमरा और वीडियो शूट करते हैं वह भी पैसा लेते हैं. फोटो और वीडियो एडिट करना भी कठिन काम होता है. हजारों वीडियो और फोटो में चुनी हुई 300 फोटो का एलबम प्रिंट कर के मिलता है. वीडियो और बाकी फोटो पेनड्राइव में कर के फोटोग्राफर देता है. सोशल मीडिया के लिए अलग से फोटो और वीडियो का ट्रेंड है. इस के लिए 2 से 3 मिनट की ट्रीजर यानी छोटी फिल्म बनाई जाती हैं.

मंहगी क्यों है फोटोग्राफी ?

वैडिंग फोटोग्राफर सूर्या गुप्ता बताते हैं, “हर साल वीडियो और फोटोग्राफी के उपकरण की टैक्नोलौजी बदल जाती है. ग्राहक यह चाहता है कि उस के यहां शूट में अच्छे वीडियो और कैमरे उपयोग में लाए जाएं. अधिकतर लोग टोकन मनी दे कर काम करा लेते हैं.
जब उन को पूरा पेमेंट देना होता है तो वह तमाम तरह के बहाने बनाते हैं. सब से बड़ा बहाना यह होता है कि फोटो और वीडियो में वह बात नहीं आई है जो आनी चाहिए. कई बार दुलहन शिकायत करती है मैं फोटो में सुदंर नहीं दिख रही हूं. कोई मोटी दिखती है तो कोई काली दिखने लगती है. इस का मकसद केवल फोटोग्राफर के पैसे काटने का होता है. वह कटौती कर के ही पैसा लंबा समय लगाने के बाद देते हैं.”

वैडिंग फोटोग्राफी का काम शादी के पहले से शुरू हो जाता है. प्रीवैडिंग शूट के अलावा हल्दी, रिंगसिरेमनी, लेडिज संगीत और भी कई इवेंट में होता है. ऐसे में केवल एक कैमरामैन और वीडियोग्राफर से काम नहीं चलता है. पूरी टीम काम करती है. सब के पास अलग कैमरा और वीडियो होते हैं. ऐसे में खर्च बढ़ जाता है.
एक अच्छा वैडिंग फोटोग्राफर विवाह के किसी रस्म को छोड़ना नहीं चाहता है. वह ग्राहक को यह मौका नहीं देना चाहता कि ग्राहक यह कह सके कि कोई महत्वपूर्ण व्यक्ति छूट गया है. वैडिंग फोटोग्राफर एक तरह का छोटामोटा फिल्म डायरेक्टर सा हो जाता है. जो शादी की पूरी फिल्म ही बना देता है.

यह बात और है कि इस फिल्म को कोई दोबारा देखता नहीं है. शादी के 20-30 साल के बाद वीडियो और फोटो किस टैक्नोलौजी के रूप में मौजूद होंगे यह आज पता नहीं है. ऐेसे में यह वीडियो और फोटो कितने उपयोगी है यह भी कुछ कहा नहीं जा सकता है.
आज के दौर में जहां शादियों की ही गारंटी वहां यह वीडियो और फोटो सुकून के लिए नहीं कोर्ट में गवाह के रूप में ही पेश किए जाते हैं. ऐसे में इस खर्च को सीमित तरह से ही करना चाहिए. शादी में बहुत सारे खर्च केवल दिखावे के लिए होते हैं. जिस के पास जैसा बजट होता है वह खर्च करता है. बेहतर हो कि खर्च से अधिक ध्यान आपसी प्रेम और सांमजस्य पर दिया जाए. जिस के सहारे जिदंगी की गाड़ी आगे चलती है.

Generation Z : Dark Comedy की नई सनसनी समय रैना

Generation Z : समय रैना इस समय भारत के टौप कौमेडियन में से एक है. अपने वन लाइनर ह्युमारिस्टिक पंच ने उसे यूथ आइकन बना दिया है. हालांकि कभीकभी वह ओवर द टौप हो जाता है जो उस के पोडकास्टर जोए रीगन जैसा होने का आभास कराती है.

‘इंडियाज गोट लैटेन्ट’ यूट्यूब में ऐसा हिट शो बन गया है जिस की चर्चाएं आजकल हर जगह हैं. यह चर्चाएं इसलिए हैं क्योंकि इस का कांसेप्ट डार्क कौमेडी पर बेस्ड है और इस का होस्ट कौमडियन समय रैना है. समय रैना जो अपने वन लाइनर पंचेज, कंट्रोवेर्सीज, चैस गेम स्किल्स, स्टैंडअप के लिए मशहूर है. वह जो बोलता है उस के गहरे मतलब होते हैं, जो उस की बातें नहीं समझ पाता वो अपना माथा धुनता है और जो समझ जाता है वो खिलखिला जाता है और दंग रह जाता है.

कम उम्र में ऊंचा मुकाम

समय रैना 26 साल का है मगर इतनी छोटी उम्र में उस ने वो ऊंचाई हासिल कर ली है जिस के लिए सालों लग जाते हैं. कश्मीरी स्टैंडअप कौमेडियन जो कईयों के लिए सवाल बना हुआ है कि उस का माइंडसेट किस तरह काम करता है और उसे हर चीजें डार्क में कहने की आदत क्यों है? दूसरा यह कि वह सीरियस बातों को ह्यूमर के साथ नौन सीरियस तरीके से कैसे कह सकता है? साथ ही डार्क कौमेडी का ट्रेंड आजकल भारत में क्यों बढ़ रहा है?

एक समय था जब सेंसिटिव टौपिक्स को सेंसिटिवली हैंडल करने की बात कही जाती थी. जब कोई अपनी सीरियस बात बताता था तो मिनिमम अंडरस्टैंडिंग यह होती थी कि कोई उस समय उस का या उस बात का मजाक न बनाए लेकिन डार्क कौमेडी इसी बात पर आधारित है कि सेंसिटिव बातों को भी ह्यूमर के साथ मजाकिया अंदाज में कही जाए. दुखी माहौल में एक वन लाइनर आती है माहौल को खुशनुमा हो जाता है.

Generation Z में डार्क कौमेडी का ट्रेंड

डार्क कौमेडी का चलन भारत में बढ़ रहा है. जेनजी मिलेनियल्स इसे फन की तरह देखते हैं. यह शुरू तो अमेरिका से हुआ जहां स्कूलों में हो रही मास शूटिंग, रेसिज्म, धर्म और अमीरीगरीबी पर जम कर जोक बनते रहे पर अब 2-3 सालों से भारत में भी चलन में है और कास्टिज्म, चाइल्ड लेबर, वीमेन एट्रोसिटी, रेप, डोमेस्टिक वायलेंस, डेथ, मेंटल हेल्थ जैसे सेंसिटिव विषयों पर भी ह्यूमर और कौमेडी होती है.

यह एक तरह का सर्काज्म, सिनिसिज्म और ह्यूमर का मेल है. कईयों को कौमेडी का यह जौनर इंसेंसिटिव लगता है और इसे औफ लिमिट बताते हैं, जिस की कोई हद नहीं. पर कई ऐसे हैं जो इसे पोजिटिव तरीके से लेते हैं. वे मानते हैं कि डार्क ह्यूमर के चलते गंभीर मुद्दे यूथ के डिस्कसन में आते हैं.

समय रैना उस लिस्ट में है जिस ने इस विधा को पोजिटिवली लिया है. वह खुद को सेक्युलर बताता है. उस का जन्म जम्मू के एक कश्मीरी पंडित परिवार में हुआ और उसे पलायन की मार झेलनी पड़ी. उस ने अपनी पढ़ाई हैदराबाद में की और आगे जा कर प्रिंटिंग इंजीयनियरिंग की, जिस चलते उसे बड़ी शोहरत मिली. उस का शुरूआती स्टैंडअप कौमेडी प्रिंटिंग इंजीयनियरिंग के अपने कोर्स पर ही थी जिस ने उसे चर्चाओं में ला दिया. इस के बाद ‘नरक’, ‘रोस्ट बैटल’ और कौमेडी व्लोग से उसे काफी पहचान मिली.

‘इंडियाज गोट लैटेंट’ शो का कमाल

इस समय रैना कौमेडी में डोमिनेट कर रहा है, यहां तक कि व्यूज के मामले में वह कपिल शर्मा को भी पीछे छोड़ चुका है. इस कारण उस डार्क ह्यूमर कौमेडी का होना है. उस के यूट्यूब पर ‘इंडियाज गोट लैटेंट’ शो के 11 एपिसोड आ चुके हैं और हर एपिसोड में लगभग ढाई करोड़ से अधिक व्यूज हैं. हालांकि यह शो भी अमेरिकन यूट्यूब शो ‘किल टोनी’ से कौपी किया गया है पर आज की डेट में समय का शो ‘किल टोनी’ से काफी आगे है.

डार्क ह्यूमर कोई नई विधा नहीं है. यह एक खास तरह की कौमेडी स्टाइल है, जो अब समय रैना के ‘इंडियाज गोट लैटेंट’ शो के चलते मेनस्ट्रीम में आ गई है. यह शो जो पोइंटलैस है, अपने सटायर और ह्यूमर के चलते बताता है कि दुनिया में सब फनी हो सकता है.

ऐसा नहीं कि कौमेडियन ने इसे फेमस किया, इस से पहले भी कई फिल्में आई हैं जो डार्क कौमेडी पर बेस्ड रहीं. भारत में बनीं ‘कलाकांडी’, ‘अंधाधुंध’, ‘देव डी’, ‘सुपर डीलक्स’, ‘भेजा फ्राई’ जैसी हिंदी फिल्में तो हैं ही पर टिपिकल डार्क ह्यूमर movi फिल्म हौलीवुड में बनती रहीं जैसे ‘द डिक्टेटर’, ‘फ़र्गो’, ‘फाइट क्लब’, ‘बोरात’ इत्यादि.

मशहूर डार्क कौमेडियन पीट और एंथनी

मौजूदा समय में अमेरिका में एंथनी जेसलनिक और पीट डेविडसन वे डार्क कौमेडियन हैं जो ऐसा कुछ करते हैं, जैसा भारत में समय रैना करते हैं. इन्हें लोग खूब देखते हैं. लेकिन चीजें सिर्फ डार्क और लाइट नहीं होतीं, कुछ ओरेंज और हरी भी होती हैं. प्रोब्लम तब आती है जब लोग डार्क ह्यूमर का इस्तेमाल गलत चीजों को छिपाने के लिए करते हैं. मानिए किसी अपर कास्ट लड़के को लोअर कास्ट लड़के से दिक्कत है. वह उस पर कास्टिस्ट तंज मारता है इस बहाने से कि यह डार्क ह्यूमर था और सब लोग ठहाके मारते हैं. जैसे यह भी कि किसी लड़के को किसी लड़की के इंडिपेंडेंट होने से दिक्कत है, वह उस पर फेमिनिस्ट जोक मार कर उस के इंडपेंडेंसी का मजाक बनाता है और वहां बैठे सारे लड़के हंसते हैं.

डार्क ह्यूमर में दिक्कत नहीं पर सेंसिटिव टौपिक्स पर ह्यूमरिस्टिक होने के बजाय “कुछ लोग” औफेंसिव और इनसेंसिटिव बातें बोलने का बहाना बना रहे होते हैं. जैसे सोशल मीडिया पर मुसलिमों के लिए डार्क ह्यूमर के नाम पर अपनी बहन से शादी करने का मजाक नौर्मली बनाया जाता है या खास म्यूजिक बजा कर टेररिस्ट लेबलिंग की जाती है.

इसे अमेरिका के कौमेडियन लुईस सीके के मामले से समझ सकते हैं. 2017 में, जब उन्होंने कई महिलाओं का यौन शोषण स्वीकार किया तो उस के बाद उन्होंने स्टैंडअप करना शुरू किया. अपने शो में उन्होंने पार्कलैंड स्कूल शूटिंग के सर्वाइवर्स का मजाक उड़ाया. उन्होंने इसे डार्क ह्यूमर बताया, लेकिन सच यह था कि उन के द्वारा कहे गए कई नफरती शब्द थे जो डार्क कौमेडी का नाम ले कर बोले गए.

वल्‍गर जोक्‍स पर तालियां पीटते  हैं Generation Z

ठीक इसी तरह सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर से एक्ट्रैस बनीं कुशा कपिला इस साल जून महीने में कौमेडियन आशीष सोलंकी के ‘प्रिटी गुड रोस्ट शो’ में नजर आई थी. वह इस शो की गेस्ट थी, जिसे रोस्ट किया जाना था. इस शो का कोई फौर्मेट नहीं था न ही यह स्क्रिप्ट बेस्ड था. हुआ यही कि इस शो में उन की बौडी और तलाक के बारे में काफी एडल्ट और इंसेंसिटिव जोक्स सुनाए गए, और डार्क कौमेडी के नाम पर अपनी हद पार करने वालों में समय रैना मुख्य कौमेडियन थे. ये जोक्स इस हद तक वल्गर थे कि जोक्स को म्यूट करना पड़ा.

हैरानी यह कि वहां आई पढ़ीलिखी जेनजी यूथ इन्हीं जोक्स पर तालियां पीटती रही. इस वाकए के बाद भारत में टीनएजर्स और यूथ ने कुशा को ट्रोल करना शुरू किया और हाल में दिए इंटरव्यू में कुशा ने बताया कि उन्हें कमेंट सैक्शन में लिखा गया कि ‘समय भाई ने इस औरत को उस की जगह दिखा दी.’

प्रौब्‍लम किसमें हैं शोज में या मौकापरस्‍त लोगों में

भारत और अमेरिका में टीनएजर्स में इस तरह की टेंडेंसी देखने को मिल रही है. अमेरिका में मागा वाले टीनएजर्स और यूथ अपने सोशल मीडिया पर ऐसे “जोक्स” शेयर करते हैं, जिन में माइग्रेंट्स, यहूदी या एलजीबीटी समुदाय के खिलाफ औफेंसिव बातें होती हैं. ऐसा ही भारत में डार्क कौमेडी के नाम पर है.

इस का एक उदहारण ऐसी एक रील से समझिए जिस में गुजरात में एलजीबीटीक्यू प्राइड परेड हो रही है और उस के ऊपर कैप्शन में लिखा है कि ‘हिंदू भाई जेसीबी ले कर आओ, मुसलिम जैकेट (टेरेरिस्ट स्लर) ले कर आओ, क्रिश्चियन ताबूत ले कर आओ, सिख तलवार ले कर आओ बाकि दलित कोर्ट केस संभाल लेना.’

हालांकि इस का ये मतलब कतई नहीं है कि डार्क ह्यूमर गलत है या ‘इंडियाज गोट लैटेंट’ या इस तरह के शो बंद हो जाने चाहिए. प्रोब्लम डार्क ह्यूमर नहीं है, बल्कि उन लोगों की है, जो इस की आड़ में नफरत फैलाते हैं.

अगर ये ट्रेंड ऐसे ही चलता रहा, तो सही तरीके से डार्क ह्यूमर करने वाले आर्टिस्ट्स को भी क्रिटिसिज्म झेलना पड़ सकता है. जरुरी यह भी है कि उन लोगों का क्रिटिक होना चाहिए जो डार्क ह्यूमर का गलत इस्तेमाल कर रहे हैं. ऐसे लोग जो इस की आड़ में अपने दिमाग का गंद बाहर निकाल रहे हैं. समय रैना अपने इस जौनरा में मास्टर जरुर है, और चीजों को हैंडल कर रहा है, उस की कही हर लाइन ह्यूमर से भरी जरुर रहती है लेकिन एक पोइंट है जहां वह अपनी लिमिट क्रोस करता है. जो कभीकभी उसे जोए रीगन जैसा शेड भी देती है, जो विवादित है.

Marriage Trend : अजीब है शादी के पहले या शादी पर विवाह तोड़ने का ट्रैंड

Marriage Trend : भारतीय समाज में शादी एक ऐसा ओकेजन या कहें ऐसा खास दिन होता है जिस के साथ ढेरों सपने और उम्मीदें जुड़ी होती हैं और लोग इस के लिए ढेरों तैयारियां करते हैं और आखिर वह दिन आ जाता है जब दो लोग विवाह के खूबसूरत रिश्ते में बंधने वाले होते हैं लेकिन बहुत बार ऐसा नहीं हो पाता और कभीकभार यह सफर शुरू होने से पहले ही खत्म हो जाता है.

कई बार तो शादी की कई रस्में निभाने के बाद भी अचानक कुछ ऐसा हो जाता है कि या तो दुल्हन के परिवारवालों की तरफ से या दूल्हे के परिवारवालों की तरफ से रिश्ता तोड़ दिया जाता है और बारात या तो लौट जाती है या लौटा दी जाती है और आखिरी पल में शादी टूट जाती है. उस समय लिया गया फैसला बाद में एक ऐसा अनुभव होता है जो न केवल दूल्हादुल्हन को पूरी तरह तोड़कर रख देता है बल्कि उन के परिवारों के लिए भी बेहद दर्दनाक होता है.

बचकानी बातों पर शादी तोड़ना

ऐसे नहीं होगी शादी और न आएगा बैंड न बजेगा बाजा, न आएगी बरात. आजकल देखने में आ रहा है कि कुछ परिवार या लड़कालड़की छोटीछोटी या बेतुकी बात पर शादी से पहले ऐन मौके पर शादी तोड़ रहे हैं. हमारे आप के आसपास अनेक ऐसे परिवार मिल जाएंगे जिन्होंने किसी न किसी बचकानी सी बात जैसे कि हाल ही में उत्तर प्रदेश के लखनऊ में सिर्फ इस बात पर शादी कैंसिल हो गई कि डीजे वाले बाबू ने बारातियों की पसंद का गाना नहीं बजाया.
दरअसल हुआ यूं था कि बारातियों ने डीजे वाले से एक गाना बजाने की डिमांड की लेकिन जब डीजे वाले ने वह गाना नहीं बजाया तो बारातियों ने हंगामा शुरू कर दिया और बाराती और घराती आपस में भिड़ गए और इस बात का जब दुल्हन पता लगा तो उस ने शादी ही तोड़ दी और दूल्हे से बारात वापस ले जाने को कहा.
अब आप ही जरा सोचिए इतनी छोटी सी बात पर शादी तोड़ देने से किसी को क्या फर्क पड़ा लेकिन वे दो लोग जो विवाह के बाद एक होने वाले थे अलग हो गए, उन्होंने शादी के बाद के जो सपने देखे थे वे टूट गए, दोनों परिवारों की अपने बच्चों के विवाह को ले कर अब तक की गई सारी मेहनत और इमोशन्स पर पानी फिर गया!
इसलिए छोटीछोटी बेतुकी बातों पर शादी तोड़ देने का यह चलन या सोच कहीं से ठीक नहीं है इस से किसी को कोई फायदा नहीं बल्कि नुकसान ही होता है. उस समय तो तैश में आ कर शादी तोड़ देने का निर्णय ले लिया लेकिन इस बात की क्या गारंटी है कि अगली बार ऐसा या इस से कुछ बड़ा नहीं होगा तो क्या फिर से बारात लौटा दी या ली जाएगी ?

बारात बिना दुल्हन के वापस जाएगी

ऐसे ही एक और किस्से में दूल्हे के नशे में होने पर दुल्हन ने शादी करने से साफ इनकार कर दिया. पहले वधू पक्ष को लगा कि दूल्हे की तबीयत खराब हो गई है, लेकिन कुछ ही देर में दूल्हे की असलियत सामने आ गई. असल में विवाह समारोह के दौरान दूल्हा नशे में टल्ली था. काफी देर तक दोनों पक्षों के बीच में बातचीत होती रही . आखिर में यह तय हुआ कि बारात बिना दुल्हन के वापस जाएगी और सामान और इंतजाम का खर्चा वर पक्ष वहन करेगा.
इसी तरह मेरठ में भी एक शादी समारोह में शादी की खुशियां रंज में बदल गईं. वर और वधू पक्ष ने विवाह की सभी तैयारियां पूरी कर लीं थी और शादी के लिए बारात विवाह स्थल पर भी पहुंची लेकिन बारात के पहुंचते ही पहले तो दुल्हन पक्ष ने वर पक्ष पर सही लहंगा न लाने का आरोप लगाया और इस बात पर दोनों पक्षों में विवाद हो गया फिर वर पक्ष ने दूल्हे के स्वागत के दौरान नेग कम देने का आरोप लगाया.
इस के बाद खाना शुरू हुआ तो वर पक्ष के लोगों ने खाना सही न होने का आरोप लगा दिया और इस तरह दोनों पक्षों के लोग एकदूसरे पर आरोप लगाने लगे और बात इतनी बिगड़ गई कि दूल्हे को बिना दुल्हन ही बारात संग लौटना पड़ा. अब आप ही सोचिए इस शादी को तोड़ने के पीछे की सारी वजहें बेकार की नहीं थी ?

शादी से पहले शादी वाले दिन शादी तोड़ने का सिलसिला या ट्रेंड

जी हां, हैरान मत होइए ऐसा सच में हो रहा है. आजकल शादी से पहले शादी वाले दिन शादी तोड़ने का सिलसिला या ट्रेंड कुछ ज्यादा ही जोर पकड़ रहा है. आइए देखते हैं इस के कुछ उदाहरण –
झारखंड के देवघर में खुले आसमान के नीचे शादी के मंडप में दूल्हादुल्हन ने हंसीखुशी एकदूसरे को वरमाला डाली. पंडित जी ने शादी की रस्में शुरू कर दीं. इसी बीच दूल्हा कंपकंपाते हुए अचानक बेसुध होकर गिर पड़ा. दूल्हे का शरीर ठंडा पड़ गया. डौक्टर को बुलाया गया. दूल्हे को इंजेक्शन लगाए गए. करीब एक से डेढ़ घंटे बाद दूल्हे को होश आया. मंडप में दूल्हा फिर से बैठने को तैयार हुआ, लेकिन दुल्हन ने सात फेरे लेने से मना कर दिया और शादी तोड़ दी.
दुल्हन बोली- दूल्हे को पक्का कोई बीमारी है. मैं इस से शादी नहीं करूंगी. जबकि दूल्हे को ठंड के कारण चक्कर आ गया था और बेसुध होकर गिर पड़ा था. दूल्हा और उस के घर वालों ने दुल्हन को मनाने की बहुत कोशिश की कि शादी मत तोड़ो लेकिन दुल्हन नहीं मानी और उस ने शादी कैंसिल कर दी और शादी का अरमान लिए आये दूल्हे को बिना दुल्हन के घर लौटना पड़ा!

लड़की को दूल्हा पसंद नहीं

इसी तरह हाल ही में बिहार के नवादा में एक लड़की अपनी शादी से पहले घर से इसलिए फरार हो गई क्योंकि लड़की को दूल्हा पसंद नहीं था, उस का रंग सांवला था, परिवार वाले चाहते थे कि लड़की उस से शादी करे लेकिन वह उस से शादी नहीं करना चाह रही थी.
शादी से पहले कुछ बातें ऐसी होती हैं जिन्हें बिल्कुल तवज्जो नहीं दिया जाना चाहिए जैसे शादी से पहले किसी दुर्घटना को अपशकुन मान लेना, एकदूसरे के हिसाब से कुछ रीतिरिवाजों का पालन नहीं होना, सामान एकदूसरे की पसंद का नहीं होना, शादी में लेनदेन की शर्तों का एकदूसरे के हिसाब से पूरा न होना, दोनों पक्षों के बीच बेबात पर लड़ाईझगड़ा होना, शादी समारोह में कोई छोटीमोटी गड़बड़ी जैसे खानापीना हिसाब से नहीं होना ऐसी बातों को तूल देना और इन बातों पर पर शादी तोड़ने का फैसला ले लेना बिल्कुल भी सही नहीं होता.

कब सही या गलत है शादी तोड़ने का निर्णय

यह सही बात है कि शादी एक ऐसा बंधन है, जिस में दूल्हादुल्हन पक्ष दोनों को ही किसी भी तरह की कोई बात नहीं छिपानी चाहिए. कई बार शादी के ऐन मौके पर कुछ ऐसी बात पता चलती है जिस से लड़का या लड़की की पूरी जिंदगी बर्बाद हो सकती है, जहां कोई जरूरी बात छिपाई जा रही हो और उस से लड़के या लड़की के भविष्य पर असर पड़ रहा हो तो शादी तोड़ना या बारात लौटना, या लौटा देना गलत नहीं है. जैसे शादी पक्की होने के बाद, शादी वाले दिन भी कहीं से पता पता चले कि परिवार लालची है, लड़के या लड़की वालों ने छिपाया है कि दोनों में से कोई पहले से मैरिड है, लड़के का कोई क्रिमिनल बैकग्राउंड है, लड़के या लड़के की फाइनेंशियल सिचुएशन के बारे में गलत जानकारी दी गई हो तो शादी तोड़ने का निर्णय सही हो सकता है लेकिन शराबी दोस्तों के हुड़दंग की वजह से एक दूल्हे की बारात बिना दुल्हन के बैरंग लौटा देना, दु्ल्हन को दूल्हे के परिवार द्वारा दिया गया अपना शादी का लहंगा पसंद न आना जैसी बेतुकी और बचकानी वजहे हैं जिन की वजह से बरात लौटने या लौटाने का निर्णय कहीं से कोई समझदारी नहीं है!

जेनुइन रीजन पर ही तोड़ें शादी

इस बात में दो राय नहीं कि शादी एक अहम फैसला है जिसे सोचसमझ कर लेना चाहिए क्योंकि कई बार एक गलत फैसला पूरी जिंदगी बर्बाद कर सकता है ऐसे में शादी तोड़ना ही सही है जैसे निकिता और निमिष की शादी की तैयारियां जोरों पर थीं. दोनों परिवारों में खुशी का माहौल था लेकिन शादी से कुछ दिन पहले निकिता को निमिष के बारे में पता चला कि वह न केवल कई लड़कियों के साथ सेक्शुअल रिलेशनशिप में है बल्कि उस पर कुछ क्रिमिनल केसेज भी चल रहे थे जिस के बारे में उस ने निकिता और उस के परिवार से छिपाया था. इस बात ने उसे झकझोर कर रख दिया. वह मान नहीं पा रही थी कि जिस इंसान पर विश्वास करके उस ने शादी करने का जीवन भर साथ रहने का फैसला किया था वह उस के साथ ऐसा धोखा कर सकता है. आखिरकार उस ने शादी तोड़ने का फैसला कर लिया और इस केस में निकिता का यह फैसला सही था.

बरात लौटा देने या लौटा लेने का बराबर असर

अब वह जमाना लद गया जब शादी से पहले बरात लौटने से सिर्फ लड़की या उस के परिवार वालों की बदनामी होती थी और कहा जाता था कि एकबार शादी टूट गई तो जिंदगी भर कुंवारा रहना पड़ेगा, दोबारा अच्छा रिश्ता नहीं मिलेगा, लड़की में ही कुछ कमी होगी.
आज समय बदल गया है, आज बेतुकी बातों पर बरात लौटा देने या बारात लौटा लेने का यह ट्रेंड न सिर्फ दोनों परिवारों पर भारी पड़ता है बल्कि लड़केलड़की दोनों पर भी इस का असर पड़ता है. आज लड़के और उसके परिवार वाले भी शादी टूटने से उतने ही इफेक्ट होते हैं जितने कि लड़की वाले उन के भी मन पर असर पड़ता है, उन के परिवार वालों की भी बदनामी होती है. शादी से ठीक पहले शादी टूटना यह एक ऐसा अनुभव होता है जो न केवल दूल्हादुल्हन को पूरी तरह तोड़ कर रख देता है बल्कि उन के परिवारों के लिए भी बेहद दर्दनाक होता है. बाद में ठंडे दिमाग से सोचा जाए तो छोटीसी बात पर शादी तोड़ कर दोनों पक्षों को पछतावे के अलावा कुछ नहीं मिलता.

कुछ मामलों में समाज की परवाह न करें

कई बार लड़का या लड़की वाले समाज के डर से एक पक्ष के बारे में कुछ गलत जानकारी मिलने के बाद भी समाज में बदनामी के डर शादी से पहले शादी तोड़ने या बारात लौटने से डरते हैं. जैसा कि विवेक के केस में हुआ शादी से ठीक दो दिन पहले विवेक और उसके परिवार वालों को पता चला कि जिस लड़की से उसकी शादी होने वाली है उस लड़की को फिट्स पड़ते हैं जो लड़के के परिवार वालों ने लड़की के परिवार वालों से छिपाई.
ऐसे में अगर आपने सही कारण से शादी से पहले शादी तोड़ने का फैसला लिया है तो समाज को समझना होगा कि जिस तरह ब्रेकअप होता है उसी तरह शादी टूट गई, उसे तमाशा या इज्जत का सवाल न बनाएं, सामान्य तौर पर देखा गया है कि सेम एज वालों को शादी के टूटने से फर्क नहीं पड़ता लेकिन दकियानूसी सोच वालों को फर्क पड़ता है और वे इसे बड़ा इशू बनाते हैं जिस की परवाह नहीं करनी चाहिए .

क्या गारंटी कि बरात लौटाने के बाद अगला रिश्ता मनचाहा मिलेगा ?

कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता
कहीं जमीन कहीं आसमां नहीं मिलता
जीवन के महत्वपूर्ण ओकेजन शादी की भी यही सच्चाई है. जरूरी नहीं कि आज जिस में कमी निकाल कर बारात लौटा ली या दी, जिस से रिश्ता तोड़ा है अगली बार आप को उस से बेहतर रिश्ता मिलेगा हो सकता है अगली बार आप को आज जो मिल रहा है वह भी नहीं मिले!
इसलिए शादी होने से पहले उसे तोड़ने से पहले 10 बार सोचें. परिवार कैसा है, लड़का, लड़की का स्वभाव, कैरेक्टर कैसा है इस को महत्व दें, रंग, रूप, पैसा, जाति, धर्म, घर को महत्व न दें. रिश्ता में ज्यादा मीनमेख न निकालें, ज्यादा चूंचपड़ न करें. आप को जीवन में सब कुछ मनचाहा नहीं मिल सकता इसे जीवन का दस्तूर समझ कर स्वीकार करें और जब तक कुछ बहुत ज्यादा गलत न हो रिश्ते में बंध जाएं और बरात लौटाने की गलती न करें.
इस बात को इस उदाहरण से समझिए कि आज आपने एक मकान लिया, लेकिन बाद में मकान के पास गलत लोग आ कर बस गये, सीवर प्रौब्लम हो गई तो क्या आप घर बदल लेंगे नहीं न?

शादी के लिए इतनी बड़ी चेक लिस्ट

शादी मकान जिंदगी में एकबार बनता है बारबार नहीं बदला जाता इसलिए हर चीज परफेक्ट मिलेगी यह न सोचें और बेतुकी, बेवजह की बातों को तूल देकर जिस रिश्ते में बंधने वाले हैं उसे सम्मान से स्वीकारें और निभाएं.

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