घर में चहलपहल थी. बच्चे खुशी से चहक रहे थे. घर की साजसज्जा और मेहमानों के स्वागतसत्कार का प्रबंध करने में घर के बड़ेबुजुर्ग व्यस्त थे. किंतु शशि का मन उदास था. उसे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था. दरअसल, आज उस की सगाई थी. घर की महिलाएं बारबार उसे साजश्रृंगार के लिए कह रही थीं लेकिन वह चुपचाप खिड़की से बाहर देख रही थी. उसे कुछ सूझ नहीं रहा था कि क्या करे?

2 महीने पहले जब उस की शादी तय हुई थी तो वह खूब रोई थी. वह किसी और को चाहती थी. लेकिन उस के मातापिता ने उस से पूछे बगैर एक व्यवसायी से उस की शादी पक्की कर दी थी. वह अभी शहर में होस्टल में रह कर बीएड कर रही थी. वहीं अपने साथ पढ़ने वाले राकेश को वह दिल दे बैठी थी. लेकिन उस ने यह बात अपने मातापिता को नहीं बताई थी क्योंकि वह खुद या राकेश अभी अपने पैरों पर खड़े नहीं हो पाए थे. पढ़ाई पूरी होने में भी 2 साल बाकी थे. इसलिए वह चाहती थी कि शादी 2 साल के लिए किसी तरह से रुकवा ले. उस ने सोचा कि जब परिस्थितियां ठीक हो जाएंगी तो मन की बात अपने मातापिता को बता कर राकेश के लिए उन्हें राजी कर लेगी.

इसीलिए, पिछली छुट्टी में वह घर आई तो अपनी शादी की बात पक्की होने की सूचना पा कर खूब रोई थी. शादी के लिए मना कर दिया था, लेकिन किसी ने उस की एक न सुनी. पिताजी तो एकदम भड़क गए और चिल्लाते हुए बोले थे, ‘शादी वहीं होगी जहां मैं चाहूंगा.’ राकेश को उस ने फोन पर ये बातें बताई थीं. वह घबरा गया था. उस ने कहा था, ‘शशि, तुम शादी के लिए मना कर दो.’

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