शिमला में 10 दिन हनीमून मना कर रवि और शिखा शनिवार को दिल्ली लौटे. रविवार की सुबह ही शिखा ने घर के गेट के पास रवि को भावना से बातें करते हुए अपने बैडरूम की खिड़की से देखा.

भावना की आंखों से आंसू बह रहे थे. रवि परेशान और उत्तेजित हो कर उसे कुछ सम?ा रहा था. शिखा उन की बातें तो नहीं सुन पाई लेकिन पूरा दृश्य उसे अटपटा और बेचैन करने वाला लगा.

करीब 10 मिनट बाद भावना को विदा कर के रवि अपने कमरे में लौट आया. वह तनावग्रस्त था, यह बात शिखा की नजरों से छिप नहीं सकी.

अपने मन की बेचैनी के हाथों मजबूर हो कर शिखा ने उस से पूछ ही लिया, ‘‘बाहर भावना से क्या बातें कर रहे थे.’’

‘‘उसे कुछ सम?ा रहा था. तुम ने खिड़की से देखा हमें,’’ रवि ने खिड़की में से बाहर ?ांकते हुए बेचैन स्वर में पूछा.

‘‘हां, वह रो क्यों रही थी?’’ शिखा उस के सामने आ खड़ी हुई.

‘‘अरे, कई समस्याएं हैं उस की जिंदगी में. पिता को गुजरे 5 साल हो गए. मां बीमार रहती हैं. छोटी बहन और छोटे भाई को अपने पैरों पर खड़ा करने की जिम्मेदारी भी उसी के कंधों पर है.’’

‘‘हमारी ही कालोनी में रहते हैं

ये लोग?’’

‘‘हां, हमारी लाइन में कोने का मकान उन्हीं का है. मम्मी की पक्की सहेली हैं भावना की मां.’’

‘‘आप क्या समझ रहे थे उसे?’’

‘‘हौसला बंधा रहा था उस का. शिखा, तुम भी ध्यान रखना कि कभी उस का दिल न दुखे. वह दिल की बहुत अच्छी है,’’ रवि ने शिखा के गाल पर चुंबन अंकित किया और फिर नहाने चला गया.

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