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Women : युद्ध किसी के बीच हो, खामियाजा स्त्री भुगतती है

Women : धरती पर मानव सभ्यताओं के विकास के साथ ही मानव समूहों में जमीन पर वर्चस्व को ले कर युद्ध हो रहे हैं. पहले युद्ध विभिन्न कबीलों के बीच होते थे, जब देश बने तो देशों के बीच युद्ध होने लगे. कहने को मनुष्य ने जंगल और जंगली जानवरों के बीच से निकल कर सभ्यताएं बसाईं, मगर सच्चाई यह है कि वह सभ्य होने की बजाए अधिक से अधिक जानवर बनता गया, सभ्यता का लबादा ओढ़े खूंखार जानवर.

सभ्यता, संस्कार और संस्कृति के नाम पर उस ने धर्म नामक चीज का आविष्कार किया. धर्म चूंकि पुरुष द्वारा ईजाद की गई चीज थी, लिहाजा उस ने खुद को सर्वोच्च रखते हुए अनेक नियमों से युक्त ग्रंथों की रचना की. इन ग्रंथों में स्त्री को दोयम दर्जे पर रख कर पुरुष ने उसे अपनी सेविका बनाए रखने की साजिश रची.

किसी भी धर्म की धार्मिक पुस्तक पढ़ कर देखें, स्त्री सदैव सेविका के समान पुरुष के आश्रय में प्रताड़ित और इस्तेमाल की जाने वाली वस्तु के रूप में ही वर्णित है. कहीं वह उस के चरणों में बैठी उस के पैर दबा रही है तो कहीं वह उस के श्राप से प्रताड़ित आंसू बहाती नजर आती है.

कहीं वह नाजायज बच्चा पैदा कर के समाज के डर से अपनी ममता का गला घोंटने और अपने बच्चे को पानी में प्रवाहित करने के लिए मजबूर है, कहीं वह अपने चरित्र की परीक्षा देती धरती में समाती दिख रही है तो कहीं भरी सभा में उस के जिस्म से कपड़े नोचे जा रहे हैं. धार्मिक किताबों में कहीं भी स्त्री को राजकाज संभालते या निर्देश देते नहीं दिखाया गया है. यानी लीडर के रूप में उस की कल्पना कभी नहीं की गई. यानी पुरुष हमेशा औरत पर हावी रहा और पुरुषों के बीच जबजब युद्ध हुए उन्होंने दूसरे पक्ष की औरतों पर जुल्म करने का कोई अवसर नहीं छोड़ा.

पुरुषों ने जबजब जमीन पर अपने वर्चस्व को ले कर युद्ध लड़े उस में हारे हुए पुरुष के राज्य की स्त्रियां सब से ज्यादा कुचली और सतायी गईं. दरअसल युद्ध केवल राष्ट्रों की सीमाओं को बढ़ाने के लिए सैनिकों के बीच होने वाला संघर्ष नहीं होता, बल्कि यह समाज के हर वर्ग को प्रभावित करता है, विशेष रूप से महिलाओं को.

युद्ध के दौरान और युद्ध के बाद औरतें शारीरिक, मानसिक, सामाजिक और आर्थिक रूप से अनेक प्रकार की पीड़ाओं का सामना करती हैं. युद्ध के दौरान यौन हिंसा एक भयावह यथार्थ है. हारे हुए राज्य की महिलाएं बलात्कार, मानव तस्करी और यौन दासता का शिकार बनती हैं. कई बार उन्हें हथियार के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता है, जिस से दुश्मन समुदाय को तोड़ा जा सके. उदाहरण: रवांडा, बोस्निया और सीरिया जैसे संघर्षों में बड़े पैमाने पर ऐसी घटनाएं सामने आई हैं.

युद्ध पुरुष वर्चस्व की मानसिकता पर आधारित कृत्य है. यह विध्वंस को बढ़ावा देता है. साथ ही सामाजिक और राजनैतिक दृष्टि से पुरुष तंत्र को मजबूत बनाता है. युद्ध का सब से नकारात्मक एवं विचारणीय पक्ष यह है कि यहां स्त्रियों को दोयम दर्जे का नागरिक माना जाता है. युद्ध संबंधी सभी गतिविधियों में उस की हिस्सेदारी प्रत्यक्ष रूप में न के बराबर है.

इन सब के बावजूद युद्ध की त्रासदी की दोहरी मार स्त्रियां ही झेलती हैं. युद्ध के समय व्यापक स्तर पर सामाजिक एवं पारिवारिक क्षति होती है. जिस में स्त्रियों के शरीर ही नहीं नोचे जाते बल्कि उस के बच्चे भी मारे जाते हैं.

महाभारत काल हो, इस्लाम के उदय का काल हो या आज का आधुनिक समय, धरती कभी भी युद्ध से मुक्त नहीं रही. कभी धर्म युद्ध, कभी राष्ट्र युद्ध, कभी विश्व युद्ध तो कभी गृह युद्ध बड़ी संख्या में मासूम और निर्दोष लोगों का जीवन लीलता रहा. वर्तमान समय में भी कई देशों के बीच घमासान युद्ध जारी हैं.

रूसयूक्रेन, ईरान इजरायल अमेरिका और हाल ही में हुआ भारत पाकिस्तान युद्ध. इन तमाम देशों के सत्ता शीर्ष पर बैठे नेताओं के दम्भ, अहंकार, महत्वाकांक्षाओं, मूर्खताओं, दिखावे और लालच ने पूरे राष्ट्र और उसके निर्दोष नागरिकों को युद्ध की आग में झोंक रखा है.

युद्ध का प्रभाव मासूम बच्चों और आम नागरिकों के जीवन पर गहरा और दीर्घकालिक होता है. युद्ध की विभीषिकाएं मानवता, समाज, अर्थव्यवस्था और संस्कृति सभी को झकझोर देती हैं.

धरती (क्षेत्र) राष्ट्र की इज्जत का प्रतीक मानी जाती है. उसी प्रकार स्त्री, देश समुदाय, जाति और धर्म की इज्जत से जोड़ कर देखी जाती है. जिस प्रकार किसी राष्ट्र की सेना द्वारा दूसरे राष्ट्र की धरती पर कब्जा या वर्चस्व स्थापित कर उसे परास्त किया जाता है, ठीक उसी प्रकार किसी देश, समुदाय, जाति, परिवार और धर्म की स्त्री को अपहृत, प्रताड़ित, बलात्कार और अन्य तरह की हिंसा करके उस पूरे समुदाय को परास्त करने का प्रयास किया जाता है. इस प्रकार स्त्री शरीर युद्ध भूमि का वह क्षेत्र बना दिया गया है जहां देश, समुदायों, जातियों, परिवारों और धर्मों के बीच युद्ध लड़ा जाता है.

अतः किसी भी तरह का युद्ध हो उस में सब से ज्यादा पीड़ित और प्रभावित स्त्री ही होती है. स्त्री ही एक ऐसे ‘औब्जेक्ट’ के रूप में सामने आती है जो प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष तौर पर हिंसा का शिकार होती है. एमनेस्टी इंटरनेशनल के 2004 की रिपोर्ट के अनुसार युद्ध में स्त्रियों के साथ बर्बरतापूर्ण यौन उत्पीड़न के सबूत मिलते हैं, जिस में बताया गया है कि स्त्रियों के जननांगों को काटना, उन के गुप्त अंगों के आसपास मारना, आदि युद्ध के दौरान सामान्य बातें हैं.

प्रथम और द्वितीय दो विश्व युद्धों में कई देशों में सैन्य व अर्द्ध सैन्य बलों ने सामूहिक बलात्कार की अंगिनल घटनाओं को अंजाम दिया. लेकिन आमतौर पर घटना के बाद की स्थितियों में इस प्रकार के विश्लेषण और आंकड़े नहीं के बराबर प्रस्तुत किए जाते हैं. बल्कि तथ्यों/मुद्दों को गौण कर देने का भरसक प्रयास किया जाता है.

युद्ध के दौरान बलात्कार सिर्फ एक दुर्घटना नहीं होता वरन क्रमबद्ध युद्ध राजनीति का हिस्सा होता है. जानीमानी लेखिका क्रिस्टीन टी हेगन अपने रिसर्च पेपर में लिखती हैं- द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान लगभग 19 लाख महिलाओं के साथ बलात्कार हुआ.

पाकिस्तानी सैनिकों ने बांग्लादेश की लगभग 2 लाख महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार किया. क्रोएशिया, बोस्निया तथा हर्जेगोविना में युद्ध के दौरान लगभग 60 हजार बलात्कार के मामले सामने आए.

1992 में हुए क्रोएशिया और सर्बिया के युद्ध में औरतों के साथ दिल दहला देने वाली दुर्दशा हुई. औरतें बारीबारी सैनिकों द्वारा ले जाए जातीं और बलात्कार के बाद लुटीपिटी घायल अवस्था में स्पोर्ट्स हौल में बंद कर दी जातीं. सेनाओं ने घरों, दफ्तरों और कई स्कूलों की इमारतों को यातना शिविरों में बदल डाला था.

1994 में हुए रवांडा के युद्ध में लगभग ढाई से पांच लाख महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार किए गए. एक अनुमान के अनुसार युद्ध के दौरान 91 प्रतिशत बलात्कार सामूहिक होते हैं. जो महिलाएं युद्ध में यौन हिंसा या बंदी बनने जैसी पीड़ाओं से गुजरती हैं, उन्हें समाज में अपमान, बहिष्कार और कलंक का सामना करना पड़ता है. वे मानसिक तनाव, अवसाद और आत्महत्या की ओर भी धकेली जाती हैं.

युद्ध प्रभावित क्षेत्रों में लड़कियों की शिक्षा रुक जाती है. स्कूल बंद हो जाते हैं या असुरक्षित हो जाते हैं. स्वास्थ्य सेवाएं ठप हो जाती हैं, जिस से गर्भवती महिलाओं और नवजात बच्चों की मृत्यु दर बढ़ जाती है. अफगानिस्तान में तालिबान अटैक के वक्त से ले कर आजतक स्त्रियों की स्थिति बदतर है.

युद्ध में कोई राष्ट्र जीते या हारे, मगर जो सैनिक मारे जाते हैं उन की विधवाओं की जिंदगी दूभर हो जाती है. युद्ध में पुरुषों के मारे जाने या अपंग होने के कारण महिलाओं को अकेले ही पूरे परिवार की जिम्मेदारी उठानी पड़ती हैं. असुरक्षा और डर उन के रोजमर्रा के जीवन का हिस्सा बन जाते हैं. हिंसा के शारीरिक, मानसिक एवं भावनात्मक प्रभावों के अतिरिक्त युद्ध के दौरान अपने पति के मारे जाने, लापता होने अथवा नजरबंद होने से स्त्रियों पर अपने बच्चों और परिवार के भरणपोषण का दायित्व बढ़ जाता है और उपयुक्त नौकरी और भूमि जैसे संसाधनों पर स्वामित्व न होने के कारण उन की चुनौतियाँ और अधिक बढ़ जाती हैं.

फलतः अपने अस्तित्व की रक्षा तथा जीवन निर्वाह के लिए उन्हें गैर कानूनी कार्यों जैसे वैश्यावृत्ति, नशीले पदार्थों की तस्करी आदि का सहारा लेना पड़ता है. इस के कारण समाज में अपराधों की दर में वृद्धि होती है.

युद्ध की वजह से लाखों महिलाएं अपने घरों से विस्थापित हो जाती हैं. अगर जान बचा कर वे किसी तरह शरणार्थी शिविरों में पहुंच भी जाती हैं तो वहां भी उन्हें पर्याप्त सुरक्षा और सम्मान नहीं मिल पाता. उन्हें भोजन, चिकित्सा और मूलभूत सुविधाओं की कमी का सामना करना पड़ता है. वहां के अधिकारी उन के जिस्मों पर अपनी नजरें गड़ाए रखते हैं और मौका पाते ही उन से बलात्कार करते हैं.

अप्रवास के अंतर्राष्ट्रीय संगठन (International Organization for Migration) के मुताबि यूक्रेन में युद्ध के चलते देश छोड़ने वाले एक करोड़ से ज्यादा लोगों में महिलाओं और बच्चों की तादात आधी से भी ज्यादा है. परिवार की देखभाल की अतिरिक्त जिम्मेदारी अकेले निभाने की चुनौतियों के चलते उन्हें मानसिक सेहत की चुनौतियों का भी सामना करना पड़ रहा है. वे चिंता, तनाव, डिप्रेशन और भय का शिकार हैं.

यूक्रेन के जिन क्षेत्रों पर रूसी सैनिकों ने कब्जे कर लिए हैं, वहां महिलाओं के यौन हिंसा के शिकार होने की आशंका इस कदर बढ़ गई है कि उन्हें अपने घरबार को छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा है. विदेश में जहां उन्होंने पनाह ली, उस नए माहौल में अपनी जान बचाने के लिए सैक्स करने या अपनी नाबालिग बेटियों का बाल विवाह करने की मजबूरी उन के सामने है. जिस से आखिरकार वे शोषण और जुल्म की और भी शिकार होती हैं.

यौन हिंसा के साथ साथ युद्ध के दौरान वैश्यावृत्ति की दर में तेजी देखी जाती है. सैनिक अड्डों के आसपास कई ऐसे सामाजिक ढांचे हैं जहां स्त्रियों को अगवा कर उन्हें वेश्यावृत्ति के लिए बेचा जाता है.

वर्तमान परिपेक्ष्य में अगर देखा जाए तो स्थितियां और भी भयावह होती जा रही हैं. रूस की गोलीबारी और बमबारी के चलते महिलाओं द्वारा अंडरग्राउंड मेट्रो स्टेशनों पर बच्चे पैदा करने की मजबूरियां, रूसी सैनिकों द्वारा यूक्रेन की महिलाओं, यहां तक की दस साल की मासूम बच्चियों तक से बलात्कार की खबरें सोशल मीडिया पर हैं.

इस के बाद भी वास्तविक स्थिति को पूरी तरह छुपाया जा रहा है. युद्ध में महिलाओं के खिलाफ हो रहे जुर्म के आधिकारिक आंकड़े सामने नहीं आ रहे हैं.

वर्तमान में हो रही हिंसा पर यदि नजर डालें तो हम पाते हैं कि पहले के समाजों में स्त्री पर बिना हिंसा किये वर्चस्व बनाए रखने की प्रवृत्ति थी, वहीँ आज स्त्री शरीर पर हिंसा करते हुए उस समाज पर वर्चस्व कायम करने की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है.

यह स्थिति आज इतना विकराल रूप ले चुकी है की स्त्री शरीर को निशाना बनाए बगैर किसी भी तरह की हिंसा को अंजाम नहीं दिया जा रहा है. और न ही समाज पर वर्चस्व प्राप्त किया जा रहा है. इस प्रकार स्त्री शरीर न केवल वर्चस्व प्राप्त करने का एक साधन या जरिया है बल्कि ‘विजय संकेत’ के रूप में स्थापित होती जा रही है.

Hindi Kahani : अमेरिका की गोरी काली बहुएं

Hindi Kahani : करीब 4 दशकों पहले बिहार के दरभंगा से अमेरिका के न्यूजर्सी शहर में आए श्रीकांत के परिवार में सभी कुछ अच्छा ही चल रहा था कि अचानक दक्षिण अफ्रीका के एक मजदूर की बेटी ने उन के बेटे सुनील के जीवन में प्रवेश कर के उन के शांत परिवार में हलचल मचा दी.

श्रीकांत भले ही अमेरिकी संस्कृति में पूरी तरह से रचबस गए थे लेकिन उन की मानसिकता अभी भी भारतीय थी. सदियों से चली आ रही परंपराओं के जाल में उलझे ही रह गए थे. वही अंधविश्वास, वही पाखंड, वही रूढि़वादिता और वही आडंबरों की अमरबेल जो भारत से लाए थे उस से आज तक खुद को मुक्त नहीं कर पाए थे.

दूसरे को जीवनमुक्ति का संदेश देने वाले पंडित श्रीकांत इसे अपने दिल में कहां उतार पाए थे. यह बात और है कि उन्होंने न्यूजर्सी दुर्गा मंदिर में पूजाअर्चना करवा कर करोड़ों की संपत्ति अर्जित कर ली थी. पलक झपकते ही वे ग्रीनकार्ड हासिल कर के सालभर के बाद ही लंबी छलांग लगा कर अमेरिका के सम्मानित नागरिक भी बन गए थे. ज्यादातर लोग उन्हें पंडितजी कह कर ही बुलाते.

सभी धर्मों का यह लचीलापन ही है कि इन अकर्मण्यों का एक बड़ा समूह देशदुनिया के सभी वर्गों को अंगूठा दिखाते हुए घंटी, घंटा, बजा कर राज कर रहा है तो कहीं मीनारों से आवाज लगा कर कहर बरसाया जाता है. अंधविश्वासियों को ग्रहनक्षत्रों की तिलिस्मी दुनिया के चक्रव्यूहों में फंसा कर देखतेदेखते ही, बिना तिनका तोड़े, ये करोड़पति बन जाते हैं.

धर्मरूपी गलियारों को पार कर के कहीं सुदूर मिट्टी से जुड़े श्रीकांत आज अमेरिका के न्यूजर्सी में पैलेस औन व्हील में रह रहे हैं. सूर्योदय से रात के अंतिम पहर तक संस्कृत के कुछ गलतसलत मंत्र पढ़ कर घंटीशंख बजा कर डौलरों बटोर रहे हैं.

यही नहीं, पाश्चात्य कलेवरों में सजी, फर्राटेदार अंगरेजी बोलते युवकयुवतियां जब इन के चरणस्पर्श करते हैं तो श्रीकांतजी की आंखों की चमक देखते ही बनती है. कैमरे की आंखों से छिपा कर भक्तजन जब इन की मुट्ठी गरम करते हैं तो इन की प्रसन्नता मंदिर में चारों ओर प्रतिष्ठित देवीदेवताओं की मूर्तियों की मुसकान में प्रतिबिंबित होने लगती है.

ऊंची आवाज में बात करने की मनाही होने पर भी जोरों का जयकारा लग ही जाता है. मेवे, मिष्ठान, फलों व उपहारों के ढेर से अगर कुछ उठा कर किसी भक्त को दे देते हैं तो वह अपनी सारी काबिलीयत भूल कर इन के चरणों में बिछ जाता है.

सूतकनातक के संस्कारों को विधिवत कराने वाले, लयबद्ध मंत्रों से ब्याह की रस्मों को संपन्न कराने वाले, ग्रह, नक्षत्रों की उलटी गति को मूंगा, मोती, हीरा, पन्ना, गोमेद आदि कीमती रत्नों को पहना कर चुटकियों में सीधा करने का दावा करने वाले, प्रसिद्धि के शीर्ष पर विराजमान पंडितजी की ऐसी नियति हो गई थी कि न मक्खी निगलते बन रही थी न उगलते. काली घटा, सारा, ही बदली बन कर पंडितजी के आंगन में बरसेगी, उन का सुपुत्र सुनील अड़ा हुआ था.

यह तो चर्चा थी पंडितजी की अद्भुत महिमा की जो बिना किसी डिगरी या शैक्षणिक योग्यता के दुनिया के सब से प्रभुत्वशाली देश अमेरिका में अपनी अल्पबुद्धि से विजयश्री का नगाड़ा बजा कर वारेन्यारे कर रहे थे. ऐसे सुख के एक छोटे तिनके के लिए भी बड़ेबड़े बुद्धिजीवी तरस कर रह जाते हैं.

4 साल पहले ही अपने बड़े बेटे सुशील का रिश्ता एक गोरी अमेरिकी किशोरी से कर के यही पंडितजी बिछेबिछे जा रहे थे तो आज जब उन का दूसरा बेटा किसी दक्षिण अफ्रीकी अश्वेत लड़की के प्रति अनुरक्त था तो उस का इतना विरोध क्यों? अब प्रेमप्रीत की कोई जातिपांति तो होती नहीं है, वह तो अचानक ही दिल में होने वाली एक अति सुंदर प्रक्रिया है, जिस में भीगने वालों को किसी तरह का होश नहीं रहता है, अब श्रीकांतजी को कौन समझाए.

रोजाना विभिन्न देवीदेवताओं के अनुरक्त होने की, कमल नयनों के टकराने की रोचक गाथा, रस ले कर सुनाने वाले पंडितजी अपने सुपुत्र की चाहत क्यों नहीं समझ पा रहे हैं.

अति गोरे पंडितजी क्या उस दक्षिण अफ्रीकी के काले रंग पर तो नहीं अटक गए हैं? अब उन्हें कौन समझाए कि वह काली ही उन के बेटे के हृदय की मल्लिका बन बैठी है. अगर वे शादी की अनुमति नहीं भी देंगे तो इस की परवा ही कौन करता है. कानून उन्हें बांध कर एक कर ही देगा. ऐसे दिनरात काले राम, कृष्ण, काली, शनि आदि अति काले देवीदेवताओं का शृंगार कर के, उन के काले रंग पर प्रकाश डाल कर महिमा गान करने वाले पंडितजी की इस दोहरी मानसिकता पर कौन उंगली उठाए?

कथनीकरनी में फर्क करने वाले श्रीकांतजी को काली रंगत वाली सारा गले से नहीं उतर रही थी. सुनील को साम, दाम, दंड, व भेद सारी नीतियों से समझा चुके थे कि उस काली सारा का भूत अपने दिमाग से उतार दे जिस की मां मुसलिम है और बाप का पता तक नहीं है. पर सुनील इन की सुनने क्यों लगा. वह तो सिर से पांव तक उस काली बदली के प्यार की बौछार में भीग गया था. भारत होता तो यही पंडितजी 2-4 खड़ाऊं उसे लगा कर मन में भड़क रहे ज्वालामुखी को शांत कर लेते, पर इस परदेस की रीत ही निराली है. जहां आपा खोया नहीं कि पुलिस पकड़ कर सीधे जेल में डाल देती है.

अंधविश्वास, रूढि़वादिता व संकीर्णता के दलदल में फंसे रहने वालों का न्यारावारा करने वाले पंडितजी के पैर स्वयं ही धरती में धंसे जा रहे थे. उन्होंने तो सुनील को घर से निकल जाने की भी बात कह दी थी लेकिन उन की पत्नी ने ऐसी हायतोबा मचाई कि वे ऐसा नहीं कर सके. उन के दोनों बेटे तो ऐसा कुछ खास कमा नहीं रहे थे कि अलग अपनी गृहस्थी बसा लेते. फिर पंडितजी ठगीगीरी से कमाए गए अकूत धन के वारिस भी तो यही थे.

यह बात और थी कि बला की बुद्धि रखने वाले पंडितजी ने अपनी बड़ी बहू एलिस को कृष्ण की राधा की उपाधि दे कर अपने रहनसहन में ढाल लिया था. हिंदुस्तानी वेशभूषा में जब वह सज कर मंदिर के लंबेचौड़े प्रांगण में डोलती तो उस के अथाह छलकते रूप पर देखने वालों की आंखें हटाए नहीं हटती थीं. अपने टूटेफूटे शब्दों में जब वह गीता का श्लोक बोलती तो अंधविश्वास की भूलभुलैए में घूमते हिंदू चढ़ावे के साथ उस की भी चरण वंदना करने से नहीं चूकते थे. जिसे देख कर पंडितजी अपने द्वारा फेंके गए पाशे पर बलिहार जाया करते थे.

सुनील की जिद से उन की नींद का उड़ना ठीक ही था. अपने गाढ़े रंग से काली घटाओं को भी शर्माती आधी मुसलिम सारा पर पंडितजी कौन सी जादुई छड़ी घुमाते कि वह भी एलिस की तरह सफेद रोशनी सी चमचमाती. पंडितजी का वहां पर भी तो समाज था जो उन से ऊपरी सहानुभूति प्रदर्शित करते हुए मन ही मन मनो लड्डू फोड़ रहा था.

सारा जैसी लड़कियों के माथे पर अब विश्व और ब्रह्मांड सुंदरी के ताज सज रहे हैं, ऐसे उदाहरणों से सुनील ने अपने व्यथित पिता को शीतल करना चाहा, पर असफल रहा. सारा को छोड़ कर किसी को भी जीवनसंगिनी बना ले, कह कर उन्होंने सुनील को समझाना चाहा पर वे उसे उस के निश्चय से डिगा नहीं सके.

निश्चित तिथि को सुनील ने सारा के साथ कोर्टमैरिज कर ली और उसे घर ले आया. पंडिताइन ने उन की आरती उतारी. पंडितजी के लाख मना करने के बावजूद हीरे, पन्ने, मोतियों आदि रत्नों से सजा अपना सतलड़ा हार सारा के गले में डाल दिया. इस असंभावित स्वागत से मुग्ध हो कर सारा ने उन्हें अपने से लिपटा लिया तो उस की विशाल काया में पंडिताइन की दुबलीपतली क्षीण काया लुप्त ही हो गई. अल्पशिक्षित पंडिताइन ने इसे अपना अच्छा समय समझा.

मन मार कर अपने मंदिर परिसर में अनेक मेहमानों को भ्रमित करते हुए पंडितजी ने सारा पर जरसी गाय का गोबर और गंगाजल छिड़क कर अग्नि के समक्ष अनगिनत मंत्रों का पाठ कर के, जो सभी की समझ से बाहर थे, उसे हिंदू बना लिया. सारा के काले, मोटे, भीमकाय रिश्तेदार पंडितजी की एकएक अदा पर झूम कर अपना वृहत मस्तिष्क झुलाते रहे थे.

न्यूजर्सी के सब से बड़े शानदार होटल में नई बहू के आगमन के उपलक्ष्य में पंडितजी ने बहुत बड़ी पार्टी दी. पार्टी में उन के अतिशिक्षित, उच्च पदस्थ भक्तजन कीमती तोहफों और बड़ेबड़े मौल के उपहारकार्डों के साथ सम्मिलित हुए. अमेरिकी भी बड़ी संख्या में उपस्थित थे जो हमेशा की तरह उन की धार्मिक व सामाजिक उदारता को दर्शा रहा था. इस आयोजन में कौन, किस को अनुगृहित कर रहा था, समझ से परे था.

भारतीय दुलहन के लिबास में सारा जंच रही थी. यहां पर ही भारतीय सभ्यता और संस्कृति की बेमिसालता अवर्णनीय हो जाती है जो बदसूरतों को भी कमनीय और खूबसूरत बना जाती है. सारा की रूपछटा पर जहां पंडितजी का सुपुत्र मुग्ध हुआ जा रहा था वहीं पर उस की हंसी काले बादल के बीच बिजली की तरह चमक कर पंडितजी की छाती को बेध, उन्हें भस्म किए जा रही थी.

सामूहिक पारिवारिक फोटो के लिए जब उन की दोनों बहुएं स्टेज पर एकसाथ खड़ी हुईं तो ऐसा प्रतीत हो रहा था कि मानो दिनरात एकदूसरे से गले मिल रहे हों. दिखावे के लिए ही हो, पर पंडित अपनी पंडिताइन के साथ लोगों की बधाइयों के भार से दुहरे हुए जा रहे थे. मौमडैड कह कर सारा का उन दोनों से लिपटना पंडितजी के लिए असहनीय हो रहा था. रिश्तेदारों की कुटिल हंसी और चुभती नजर से आहत हो कर, विश्व बंधुत्व का राग हमेशा अलापने वाले पंडितजी उतनी ठंड में भी पसीने से भीग गए थे. Hindi Kahani

Kahani In Hindi : सौतन बनी सहेली

Kahani In Hindi : ‘‘चंदा, मैं तुम से बहुत प्यार करता हूं और अगर तुम ने मुझ से शादी नहीं की तो मैं जी नहीं सकूंगा,’’ मनोज ने चंदा से कहा. ‘‘पर, मेरे मांबाबूजी तो कभी इस शादी के लिए राजी नहीं होंगे, क्योंकि उन का कहना है कि तू नशा करता है और पूरे गांव में आवारागर्दी करता है,’’ चंदा बोली. ‘‘मैं नशा करता हूं तो तेरी याद में दुखी हो कर करता हूं. अगर आवारागर्दी करता हूं, तो तेरी याद में पागल बन कर… तू मुझे नहीं मिली तो मैं तो दुनिया ही छोड़ जाऊंगा,’’ मनोज ने आंखों में आंसू लाने का नाटक करते हुए कहा. कुछ इसी तरह की मीठीमीठी बातें कर के मनोज ने चंदा को अपनी बातों में फंसा लिया था और उसे इस बात का भरोसा दिलाया दिया कि दोनों भाग कर शादी कर लेंगे और जब मांबाबूजी का गुस्सा शांत हो जाएगा, तो वापस आ कर माफी मांग लेंगे.

चंदा भी मनोज की बातों में आ गई और एक रात उन दोनों ने गांव से भाग जाने का फैसला किया. यह कौन सा शहर था, चंदा को नहीं मालूम था. वह तो बस मनोज पर यकीन कर के ही उस के साथ चली आई थी. चंदा को ले कर मनोज एक बड़े से मकान में पहुंचा. उस कमरे में जरूरत की सारी चीजें पहले से ही मौजूद थीं. मनोज ने चंदा को बताया कि उन दोनों को आज ही मंदिर में शादी करनी होगी और इस के लिए उसे बाजार जा कर जरूरी सामान लाना होगा. मनोज के बाहर जाने के बाद चंदा वहीं पड़े एक बिस्तर पर लेट गई और उस की आंख लग गई. जब थोड़ी देर बाद चंदा की आंख खुली, तो कमरे में मनोज कहीं नहीं दिखाई दिया. कोने में एक आदमी बैठा हुआ था, जो उसे खा जाने वाली नजरों से घूर रहा था.

एक अजनबी को इस तरह से घूरता हुआ देख कर चंदा घबरा उठी. ‘‘कौन हो तुम? मनोज कहां है?’’ कहते हुए चंदा हकला रही थी. ‘‘मेरा नाम राज है… उस ने कुछ बताया नहीं तुझे क्या?’’ चालबाजी से मुसकराते हुए राज ने पूछा. ‘‘मुझे मेरे पति के पास जाना है,’’ चंदा की घबराहट अब बढ़ने लगी थी. ‘‘अब उसे भूल जा… वह तो तुझे मेरे हाथों बेच गया है… और बदले में 2 लाख रुपए ले कर गया है,’’ राज ने कहा. राज की बातें सुन कर चंदा चीखने लगी, ‘‘मेरा मनोज कहां है… मुझे वहीं पहुंचा दो.’’ राज इलाके का एक रसूख वाला आदमी था. चंदा का चीखना और रोना सुन कर उस को गुस्सा आ रहा था.

वह उठा और चंदा को मारने की गरज से उस ने हाथ उठाया ही था कि तभी कमरे में एक बूढ़ी औरत आई, वे राज की मां थीं, ‘‘अरे राज, तू इसे छोड़ दे… मैं समझाती हूं इसे. ‘‘देख लड़की… अब मेरा बेटा राज ही तेरा पति है और जिसे तू अपना पति कह रही है न, वह आदमी ही तुझे यहां आ कर बेच गया है.’’ बूढ़ी की बात सुन कर चंदा को भरोसा नहीं हो रहा था. वह सहम रही थी. ‘‘अब डरने से काम नहीं चलेगा लड़की… जैसा मैं कहती हूं वैसा करती चल, रानी बन कर राज करेगी यहां पर.’’ थोड़ा रुक कर फिर उस बूढ़ी मां ने बोलना शुरू किया, ‘‘देख, सचाई यह है कि मेरी बहू बच्चा पैदा नहीं कर पा रही है. वह दुष्ट हमारे घर को जायदाद का वारिस नहीं दे पाई है… इसलिए हमें एक ऐसी लड़की की जरूरत थी, जो हमारे ठाकुर खानदान को वारिस दे सके… अब तू आसानी से मान गई तो ठीक… नहीं तो हम मजबूर हो जाएंगे… समझी… ‘‘इस इलाके में औरतों की तादाद मर्दों के मुकाबले वैसे भी बहुत कम है, इसलिए यहां तो केवल मेरा बेटा ही तेरे साथ संबंध बनाएगा और वे सारे सुख देगा, जो ये अपनी असली पत्नी को देता है. तू ने अगर भागने की कोशिश की, तो बाहर कितने लोग तेरा बलात्कार करेंगे… तू गिन भी नहीं पाएगी.’’ ‘‘नहीं, ऐसा नहीं हो सकता… तुम लोग झूठ बोल रहे हो. मुझे मनोज के पास जाना है,’’ चंदा चीख रही थी. ‘‘हां… हां… चली जाना अपने मनोज के पास. एक बात कान खोल कर सुन ले… हमें भी तुम्हारी जरूरत नहीं है… हमें एक लड़का दे दे और फिर चली जाना यहां से,

’’ राज गुस्से में बोल रहा था. उस की बातें सुन कर चंदा कमरे में इधरउधर भागने लगी. ‘‘यह ऐसे नहीं मानेगी राज… ऐसा कर इसे रस्सियों में बांध कर डाल दे… कुछ दिनों में ही इस का दिमाग सही हो जाएगा,’’ बूढ़ी ने कहा. राज ने एक रस्सी मंगवा कर चंदा को बिस्तर के पाए से बांध कर दरवाजा बाहर से बंद कर दिया और चंदा को 2 दिन का समय सोचविचार करने के लिए दिया. चंदा कमरे में बंधी हुई सिसकती रही, उसे क्या पता था कि किसी से प्यार करने की इतनी बड़ी सजा मिलेगी, आज उसे पछतावा हो रहा था. पूरे 24 घंटे हो चुके थे. चंदा ने कुछ भी नहीं खाया था. अचानक कमरे का दरवाजा खुला, चंदा किसी के आने की बात सोच कर अंदर तक दहल गई थी… उस ने अपनेआप को और भी समेट लिया था. ‘‘सुनो… कुछ खा लो… ऐसे कब तक पड़ी रहोगी,’’ यह एक औरत की आवाज थी.

आवाज सुन कर चंदा ने आंखें ऊपर की, तो देखा कि एक खूबसूरत औरत सिर पर पल्ला डाले, हाथों में खाने की थाली लिए उस के सामने खड़ी है. चंदा समझ गई कि ये राज की पत्नी है. ‘‘मेरा नाम मंजुला है और तुम्हें मुझ से डरने की जरूरत नहीं है. हालांकि मेरे आदमी को अपने बस में कर के तुम मेरी सौत बन सकती हो, लेकिन फिर भी मैं तुम्हें खाना खिलाने आई हूं.’’ राज की पत्नी ने चंदा के बंधनों को खोला और चंदा के हाथमुंह को साफ किया. ‘‘ये कुछ कपड़े लाई हूं… चाहो तो नहा कर इन्हें पहन सकती हो और फिर खाना खा लो.’’ ‘‘आप मुझे इतना बता दीजिए कि अगर मेरी जगह आप होतीं तो क्या आप खानापीना खा सकती थीं? अगर आप ने किसी से प्यार किया होता और वे आप को धोखा दे दे तो आप को कैसा लगता?’’ ‘‘देखो, मैं यहां बरसों से हूं और मैं यहीं कहूंगी कि जो तुम से कहा जा रहा है उसे मान लो, क्योंकि तुम्हारे रोने का कोई भी असर इन पर नहीं होने जा रहा है,’’ मंजुला ने चंदा को समझाते हुए कहा.

पर फिर भी चंदा को मंजुला की बातें समझ नहीं आ रही थीं. उसे तो लग रहा था कि एक बार अगर वह यहां से भागने में कामयाब हो गई, तो सीधा अपने गांव जा कर मांबाबूजी से माफी मांग लेगी. पर शायद यह सब इतना आसान नहीं होने वाला था, कुछ दिन बीतने के बाद राज की मां फिर से उस कमरे में आईं. उन के साथ में राज भी था. ‘‘सुन लड़की, जा कर नहाधो ले और साजसिंगार भी कर ले. वैसे तू सिंगार नहीं भी करेगी तो भी कोई असर नहीं पड़ने वाला है… और बेटे राज, तू आखिर किस दिन का इंतजार कर रहा है… अब समय आ गया है तुझे अपनी मर्दानगी साबित करनी होगी… दिखा दे दुनिया को, मेरा बेटा राज भी एक बेटा पैदा करने की ताकत रखता है.’’ राज को मानो इसी बात का इंतजार था. चंदा के लाख हाथपैर पटकने के बाद भी राज ने दरवाजा बंद किया और एकएक कर के चंदा के सारे कपड़े उतार फेंके और उस के अनछुए बदन को अपने बदन से रगड़ने लगा और उस का बलात्कार किया. 1-2 बार नहीं, बल्कि पूरे महीने तक, बिना नागा किए हुए राज चंदा के साथ बलात्कार करता रहा. चंदा रोती रही और बलात्कार का शिकार होती रही, पर उस का रोना सुनने वाला वहां कोई नहीं था.

एक दिन राज की मां चंदा के कमरे में आईं. उन के साथ एक डाक्टर भी थी. ‘‘इसे चैक कर के बताओ कि यह पेट से हुई भी है कि नहीं.’’ डाक्टर अपने काम में लग गई और चंदा के कुछ सैंपल ले कर उन की जांच की. कुछ देर बाद डाक्टर ने चंदा के पेट से होने की सूचना दी. राज को यह बात पता चली, तो वह खुशी से फूला न समाया. आज उसे अपनी मर्दानगी पर बड़ा घमंड हो रहा था और उस ने मान लिया था कि औरत बदलने से वह बेटे का बाप बन जाएगा. चंदा पेट से क्या हुई, उस के कमरे में सूखे मेवे, फल का अंबार लगा दिया गया. किसी चीज की कोई कमी नहीं रहने दी गई चंदा के आसपास. राज और उस की मां रोज आते और चंदा के पेट पर नजर डालते और इशारोंइशारों में ही खुश होते. एक दिन सुबह से ही चंदा की खूब आवभगत हो रही थी, क्योंकि राज उसे अपने साथ ले कर पास के अस्पताल में ले जा रहा था. राज वहां जा कर चंदा के पेट में पल रहे भ्रूण के लिंग की जांच कराता और अगर चंदा के पेट में लड़की पल रही होती तो उस का पेट गिरा देता. अपनी कार में चंदा को ले कर बहुत खुशी के साथ वह अस्पताल पहुंचा था, पर उस की खुशी तब काफूर हो गई जब उसे पता चला कि चंदा के पेट में लड़की पल रही है. ‘‘मेरे तो सारे पैसे बरबाद हो गए, मां, इस औरत के पेट में लड़की पल रही है… लगता है,

मेरी किस्मत में ही एक बेटे का सुख नहीं है,’’ रोने लगा था राज. ‘‘अरे, तू चिंता क्यों करता है… इस बार पेट में लड़की आ गई तो क्या… तू फिर से कोशिश कर, थोड़ा और बादाम खिला… और मुझे पोते का मुंह दिखवा दे… अभी भी रास्ता बंद नहीं हुआ है. इसे अस्पताल ले जा और बच्चा गिरवा दे.’’ राज की बीवी मंजुला ने मांबेटे में होने वाली बातें चुपके से सुन ली थीं. उस के कदम चंदा के कमरे की तरफ बढ़ चले. चंदा कमरे में अपने सिर को पैरों में डाल कर बैठी थी. उस की सूनी आंखों में जीवन खत्म होता हुआ सा दिख रहा था. मंजुला चंदा के करीब जा कर उसे पुचकारने लगी. ‘‘मुझे इस दर्द में देख कर तुम्हें तो बहुत ही अच्छा लग रहा होगा न, तुम तो ठहरी ठकुराइन, भला तुम मेरे दर्द को क्या समझोगी, आखिरकार तुम कैसी औरत हो?’’ चंदा का दुख अंदर से उमड़ पड़ा रहा था. ‘‘नहीं, मुझे तुम गलत मत समझो… जब भी मैं पेट से होती हूं, ये लोग मैडिकल जांच करा कर पेट में लड़का या लड़की होने का पता लगा लेते हैं. अगर लड़की होती है, तो मेरा बच्चा गिरवा देते हैं.

मेरी सास और मेरे पति ने मिल कर मेरा 2 बार बच्चा गिरवाया है. बेटा न पैदा कर पाने के लिए मुझ पर कितना जुल्म ढाया है, इन लोगों ने वह मैं जानती हूं… मैं तो खुद ही अभागी हूं,’’ मंजुला की आंखों में भी नमी थी. ‘‘तो फिर तुम ने आवाज क्यों नहीं उठाई… या फिर तुम ने भागने की कोशिश क्यों नहीं की?’’ चंदा ने पूछा. ‘‘यहां से तो भागना मुमकिन नहीं है, क्योंकि आसपास के इलाके में राज के आदमी फैले हुए हैं, जो उस के इशारे पर कुछ भी कर सकते हैं. ‘‘मैं ने आवाज उठाई, तो मुझ पर कई तरह के जुल्म किए गए… और जब ये लोग मुझे शहर के एक अस्पताल में मेरा पेट गिरवाने ले गए, तब मैं बहाने से वहां के टौयलेट में गई… और मैं भागने की जगह तलाशने लगी… वहां खिड़की में लगे शीशे को सावधानी से हटा कर बाहर का रास्ता मिल सकता था और मैं ने वही किया, पर जैसे ही मैं पास ही बने एक पुलिस चौकी में पहुंचने वाली थी कि मेरे पति राज ने मुझे पकड़ लिया और मारते हुए घर ले आए…

तब से ले कर आज तक मैं यहीं कैद हो कर रह गई हूं,’’ सिसकियों में टूट गई थी मंजुला. चंदा ने उसे पानी पीने को दिया. मंजुला कुछ देर चुप रहने के बाद बोली, ‘‘ये लोग तुम्हें भी अस्पताल ले जा कर तुम्हारा बच्चा गिरवाने की कोशिश करेंगे… मुमकिन है कि यह वही अस्पताल हो, जहां मुझे ले जाया गया था. तुम टौयलेट में जा कर खिड़की के शीशे देखना. अगर तुम्हें लगे कि इन्हें हटा कर भागने में मदद मिल सकती है, तो तुम वहां से भाग जाना… पर मेरी तरह टौयलेट जाने का बहाना मत बनाना नहीं, तो इन्हें शक हो सकता है. ‘‘बेहतर होगा कि तुम किसी और बहाने से ऐसी जगह पहुंचो, जहां से बाहर भाग सको. बस तुम्हारी रिहाई का यही रास्ता है,’’ मंजुला ने चंदा को बताया. मंजुला गलत नहीं थी.

कुछ देर बाद ही राज चंदा को ले कर अस्पताल जाने के लिए रवाना हो गया. अस्पताल में चंदा का बच्चा गिरवाया जाना था, पर चंदा सावधान थी. उस ने नर्स से उलटी आने की बात कही. नर्स ने उसे बाथरूम दिखा दिया. यह वही अस्पताल था, जहां मंजुला को पहले लाया गया था. अंदर जा कर चंदा ने देखा कि खिड़की के शीशे को हटा कर भागा जा सकता है, पर ऐसा करने में बेहद सावधानी की जरूरत थी. कांच के टूटने की आवाज सुन कर बाहर बैठे राज को किसी भी तरह का शक हो सकता था, पर अपने ऊपर तरहतरह के जुल्मों की शिकार चंदा कोई भी रिस्क उठाने को तैयार थी. उस ने शीशे हटा कर खिड़की में इतनी जगह बना ली थी, जिस में से वह बाहर निकल सकती थी. आखिरकार उस की कोशिश कामयाब हुई और खिड़की से बाहर आ कर उस को एक नई ताजगी का अहसास हुआ. बाहर निकल कर चंदा सीधे पुलिस चौकी पहुंची और राज और उस की मां के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई. पुलिस राज के घर पहुंची और राज और उस की मां को गिरफ्तार कर लिया. ‘‘पर इंस्पैक्टर साहेब.

.. इस बात का क्या सुबूत है कि मैं ने इस लड़की पर जुल्म किए हैं. इस के पेट में पल रहा मेरा बच्चा ही है,’’ राज तेज आवाज में बोल रहा था. ‘‘मैं देती हूं सुबूत आप को इंस्पैक्टर साहब,’’ मंजुला सामने से आती दिखाई दी. उसे इस रूप में इस तरह से बात करते हुए देख कर राज का मुंह खुला का खुला रह गया. ‘‘हां… मैं हूं गवाह… चंदा पर हुए हर जुल्म और सितम का… और न केवल चंदा पर, बल्कि मुझ पर भी इन लोगों ने एक लड़के की चाहत में अनगिनत जुल्म किए हैं… गिरफ्तार कर लीजिए इन को.’’ पुलिस ने राज और उस की मां को गुनाह साबित होने के बाद जेल भेज दिया. उस के बाद पुलिस ने मनोज की खोज शुरू की और जल्द ही पुलिस ने पाया कि मनोज लड़कियों को अपने प्यार के जाल में फंसा कर भगा कर कहीं और ले जाता और बाद में उन्हें बेचने का काम बड़े पेशेवर ढंग से करता था. पुलिस ने मनोज को पकड़ कर जेल भेज दिया. प्यार में एक बार धोखा खाने के बाद चंदा ने फिर कभी किसी दूसरे मर्द पर भरोसा नहीं किया… हां… मंजुला ने उस की सौतन से उस की सहेली बन कर उस का यकीन जिंदगीभर के लिए हासिल कर लिया था.  Kahani In Hindi

Samajik Kahaniya : दर्प – जब एक झूठ बना कविता की जिंदगी का कड़वा सच

Samajik Kahaniya : आज पूरे दफ्तर में अजीब सी खामोशी पसरी हुई थी. कई हफ्तों से चल रही चटपटी गपशप को अचानक विराम लग गया था. सुबह दफ्तर में आते ही एकदूसरे से मिलने पर हाय, हैलो,  नमस्ते की जगह हर किसी की जबान पर निदेशक, महेश पुरी का ही नाम था. हर एक के हाथ में अखबार था जिस में महेश पुरी की आत्महत्या की खबर छपी थी. महेश पुरी अचानक ऐसा कदम उठा लेंगे, ऐसा न उन के घर वालों ने सोचा था न ही दफ्तर वालों ने.  वैसे तो इस दुनिया से जाने वालोें की कभी कोई बुराई नहीं करता, लेकिन महेश पुरी तो वास्तव में एक सज्जन व्यक्ति थे. उन के साथ काम करने वालों के दिल में उन के लिए इज्जत और सम्मान था. 30 वर्षों के कार्यकाल में उन से कभी किसी को कोई शिकायत नहीं रही. महेश पुरी बहुत ही सुलझे हुए, सभ्य तथा सुसंस्कृत व्यक्ति थे. कम बोलना, अपने मातहत काम करने वालों की मदद करना, सब के सुखदुख में शामिल होना तथा दफ्तर में सौहार्दपूर्ण वातावरण बनाए रखना उन के व्यक्तित्व के विशेष गुण थे.

लगभग 6 महीने पहले उन की ब्रांच में कविता तबादला हो कर आई थी. कविता ज्यादा दिनों तक एक जगह टिक कर काम कर ही नहीं सकती थी. वह अपने आसपास किस्से, कहानियों, दोस्तों और संबंधों का इतना मजबूत जाल बुन लेती कि साथ काम करने वाले कर्मचारी दफ्तर और घर को भूल कर उसी में उलझ जाते. लेकिन जब विभाग के काम और अनुशासन की स्थिति नियंत्रण से बाहर हो जाती तो कविता का वहां से तबादला कर दिया जाता.  कविता जिस भी विभाग में जाती, वहां काम करने वाले पुरुष मानो हवा में उड़ने लगते. हंसहंस कर सब से बातें करना, चायपार्टियां करते रहना, अपनी कुरसी छोड़ कर किसी भी सीट पर जा बैठना कविता के स्वभाव में शामिल था. ऐसे में दिन का पता ही नहीं लगता कब पंख लगा कर उड़ जाता. कविता चीज ही ऐसी थी, खूबसूरत, जवान, पढ़ीलिखी तथा आधुनिक विचारधारा  वाली फैशनेबल लड़की.

नित नए फैशन के कपड़े पहन कर आना, भड़कीला मेकअप, ऊंची हील के सैंडिल, कंधों तक झूलते घने काले केश, गोराचिट्टा रंग, गठा शरीर और 5 फुट 3 इंच का कद, ऐसी मोहक छवि और ऐसा व्यवहार भला किसे आकर्षित नहीं करेगा?  सहकर्मी भी दिनभर उस से रस लेले कर बातें करते. कोई कितना भी कम बोलने वाला हो, कविता उसे कुछ ही दिनों में रास्ते पर ले आती और वह भी दिनभर बतियाने लगता. वह जिस की भी सीट पर जाती, उस सहकर्मी की गरदन तन जाती लेकिन शेष सहकर्मियों की गरदनें भले ही फाइलों पर झुकी हों परंतु उन के कान उन दोनों की बातों पर ही लगे रहते.

इतना ही नहीं, कविता जिस सैक्शन में होती वहां के काम की रिपोर्ट खराब होने लगती क्योंकि उस के रहते दफ्तर में काम करने का माहौल ही नहीं बन पाता. बस पुरुष कर्मचारियों में एक होड़ सी लगी रहती कि कौन कविता को पहले चाय क औफर करता है और कौन लंच का. किस का निमंत्रण वह स्वीकार करती है और किस का ठुकरा देती है.  हालांकि कविता को उस के इस खुले व्यवहार के बारे में समझाने की कोशिश बेकार ही साबित होती फिर भी उस की खास सहेली, रमा उसे अकसर समझाने की कोशिश करती रहती. लेकिन कविता ने कभी उस की एक नहीं सुनी. कविता का मानना था कि यह 21वीं सदी है, औरत और मर्द दोनों के बराबर अधिकार हैं. ऐसे में मर्दों से बात करना, उन के साथ चाय पीने, कहीं आनेजाने में क्या हर्ज है? आदमी कोई खा थोड़े ही जाते हैं? वह उन से बात ही तो करती है, प्यार या शादी के वादे थोड़े करती है जो मुश्किल हो जाएगी.  रमा का कहना था कि यदि ऐसी बात है तो फिर वह आएदिन किसी न किसी की शिकायत कर के अपना तबादला क्यों करवाती रहती है? कविता सफाई देते हुए कहती कि इस में उस का क्या कुसूर, पुरुषों की सोच ही इतनी संकुचित है, कोई सुंदर लड़की हंस कर बात कर ले या उस के साथ चाय पी ले तो उन की कल्पना को पंख लग जाते हैं फिर न उन्हें अपनी उम्र का खयाल रहता है न समाज का.

कविता को अपनी खूबसूरती का, उसे देख कर मर्दों के आहें भरने का, कुछ पल उस के साथ बिताने की चाहत का अंदाजा था तभी तो उस ने जब जो चाहा, वह पाया. आउट औफ टर्न प्रोमोशन, आउट आफ टर्न मकान और स्वच्छंद जीवन.  अगर कभी कोई उपहासपरिहास में मर्यादा की सीमाएं लांघ भी जाए तो भी कविता ने बुरा नहीं माना लेकिन कौन सी बात कविता को बुरी लग जाए और पुरुष सहकर्मी की शिकायत ऊपर तक पहुंच जाए, अनुमान लगाना कठिन था. परिणामस्वरूप कविता का तबादला दूसरी जगह कर दिया जाता. दफ्तर भी कविता की शिकायतें सुनसुन कर और तबादले करकर के परेशान हो गया था.

महेश पुरी के विभाग में कविता का तबादला शायद दफ्तर की सोचीसमझी नीति के तहत हुआ था. इधर पिछले कुछ वर्षों से कविता की शिकायतें बढ़ती जा रही थीं. दफ्तर के उच्च अधिकारियों के लिए वह एक सिरदर्द बनती जा रही थी. उधर, पूरे दफ्तर में महेश पुरी की सज्जनता और शराफत से सभी परिचित थे. कविता को उन के विभाग में भेज कर दफ्तर ने सोचा होगा कि कुछ दिन बिना किसी झंझट के बीत जाएंगे.  कविता भी इस विभाग में पहले से कहीं अधिक खुश थी. कविता की दृष्टि से देखा जाए तो इस के कई कारण थे. पहला, यहां कोई दूसरी महिला कर्मचारी नहीं थी. महिला सहकर्मी कविता को अच्छी नहीं लगती क्योंकि उस का रोकनाटोकना, समझाना या उस के व्यवहार को देख कर हैरान होना या बातें बनाना कविता को बिलकुल पसंद नहीं आता था. दूसरा मुख्य कारण था, इस ब्रांच के अधिकांश पुरुष कर्मचारी कुंआरे थे. उन के साथ उठनेबैठने, घूमनेफिरने, कैंटीन में जाने में उसे कोई परेशानी नहीं होती क्योंकि उन्हें न अपनी बीवियों का डर होता और न ही शाम को घर भागने की जल्दी. अत: दोनों ओर से स्वच्छंदतापूर्ण व्यवहार का आदानप्रदान होता. यही कारण था कि कुछ ही दिनों में कविता जानपहचान की इतनी मंजिलें तय कर गई जो दूसरे विभागों में वह आज तक नहीं कर पाई थी.

एक दोपहर कविता महेश पुरी के कैबिन से बाहर निकली तो उस का चेहरा गुस्से से तमतमाया हुआ था. अपना आंचल ठीक करती, गुस्से से पैर पटकती, अंगरेजी में 2-4 मोटीमोटी गालियां देती वह कमरे से बाहर चली गई. पूरा स्टाफ यह दृश्य देख कर हतप्रभ रह गया. कोई कुछ भी न समझ पाया.  सब ने इतना अनुमान जरूर लगाया कि कविता ने दफ्तर के काम में कोई भारी भूल की है या फिर उस के खिलंदड़े व्यवहार और काम में ध्यान न देने के लिए डांट पड़ी है. दूसरी तरफ सब लोग इस बात पर भी हैरान थे कि साहब ने कविता को बुलाया तो था ही नहीं फिर उसे साहब के पास जाने की जरूरत ही क्या थी. फाइल तो चपरासी के हाथ भी भिजवाई जा सकती थी.

ब्रांच में अभी अटकलें ही लग रही थीं कि तभी कविता विजिलैंस के 3-4 उच्च अधिकारियों को साथ ले कर दनदनाती हुई अंदर आ गई. वे सभी महेश पुरी के कैबिन में दाखिल हो गए. मामला गंभीर हो चला था. कर्मचारियों की समझ में कुछ नहीं आ रहा था. अधिकारियों का समूह अंदर क्या कर रहा था, किसी को कुछ पता नहीं लग रहा था? जैसेजैसे समय बीत रहा था, बाहर बैठे कर्मचारियों की बेचैनी बढ़ने लगी थी. वैसे तो वे सब फाइलों में सिर झुकाए बैठे थे, लेकिन ध्यान और कान दीवार के उस पार लगे थे.  कुछ देर बाद विजिलैंस अधिकारी बाहर, बिना किसी से कुछ बात किए, चले गए थे. उन के पीछेपीछे कविता भी बाहर आ गई. परेशान, गुस्से में लालपीली, बड़बड़ाती हुई अपनी सीट पर आ कर बैठ गई और कुछ लिखने लगी. किसी की भी हिम्मत नहीं हुई कि पूछे, आखिर हुआ क्या? पुरी साहब आखिर किस बात पर नाराज हैं? उन्होंने ऐसा क्या कह दिया?

कविता भी इस चुप्पी को सह नहीं पा रही थी. वह गुस्से से बोली, ‘समझता क्या है अपनेआप को? इस के अपने घर में कोई औरत नहीं है क्या?’

सुनते ही सब अवाक् रह गए. सब की नजरों में एक ही प्रश्न अटका था, ‘क्या महेश पुरी भी…?’ किसी को यकीन ही नहीं हो रहा था. कविता फिर फुफकार उठी, ‘बहुत शरीफ दिखता है न? इस बुड्ढे को भी वही बीमारी है, जरा सुंदर लड़की देखी नहीं कि लार टपकने लगती है.’  इतना सुनते ही पूरी ब्रांच में फुसफुसाहट शुरू हो गई. कोई भी कविता की बात से सहमत नहीं लग रहा था. पुरी साहब किसी लड़की पर बुरी नजर रखें, यकीन नहीं हो रहा था, लेकिन कुछ लोग यह भी कह रहे थे कि कविता अकारण तो गुस्सा न करती.  कोई कारण तो होगा ही. पुरी के मामले में लोगों का यकीन डगमगाने लगा.  थोड़ी देर बाद मुंह नीचा किए महेश पुरी तेज कदमों से बाहर निकल गए और उस के बाद फिर कभी दफ्तर नहीं आए. उस दिन से प्रतिदिन दफ्तर में घंटों उस घटना की चर्चा होती. पुरी साहब और कविता के बारे में बातें होने लगीं. कविता के चाहने वाले भी दबी जबान में उस पर छींटाकशी करने से नहीं चूक रहे थे तो दूसरी तरफ वर्षों से दिल ही दिल में पुरी साहब को सज्जन मानने वाले भी उन पर कटाक्ष करने से नहीं चूक रहे थे. वास्तव में यह आग और घी का, लोहे और चुंबक का रिश्ता है, किसे दोष दें?

पुरी साहब तो उस दिन के बाद से कभी दफ्तर ही नहीं आए, लेकिन कविता शान से रोज दफ्तर आती, यहांवहां बैठती, जगहजगह पुरी साहब के विरुद्ध प्रचार करती रहती. दिन में कईकई बार वह इसी किस्से को सुनाती कि कैसे पुरी ने उस के साथ दुर्व्यवहार करने की कोशिश की. नाराज होते हुए सब से पूछती, ‘खूबसूरत होना क्या कोई गुनाह है?’ ‘क्या हर खूबसूरत लड़की बिकाऊ होती है?’ ‘नौकरी करती हूं तो क्या मेरी कोई इज्जत नहीं है?’ …वगैरह.   कविता की बातें मजमा इकट्ठा कर लेतीं. लोग पूरी हमदर्दी से सुनते फिर कुछ नमकमिर्च अपनी तरफ से लगाते और किस्सा आगे परोस देते. बात आग की तरह इस दफ्तर तक ही नहीं, दूर की ब्रांचों तक फैल गई. कविता के सामने हमदर्दी रखने वाले भी उस की पीठ पीछे छींटाकशी से बाज न आते.

दफ्तर में इस घटना के लिए एक जांच कमेटी नियुक्त कर दी गई थी. जांच कमेटी अपना काम कर रही थी. 1-2 बार पुरी साहब को भी दफ्तर में तलब किया गया. शर्मिंदगी से वे जांच कमेटी के आगे पेश होते और चुपचाप लौट जाते. वर्षों साथ रहे पुरी के पुराने दोस्तों की भी उन से बात करने की हिम्मत नहीं हो रही थी. किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि पुरी साहब से क्या कहें, क्या पूछें?  आज का अखबार पढ़ते ही रमा स्वयं को रोक न सकी और कविता के घर पहुंच गई. वह कुछ साल पहले महेश पुरी के साथ काम कर चुकी थी. कविता का चेहरा कुछ उतरा हुआ था. रमा को देख कर वह कुछ घबरा गई. गुस्साई रमा ने बिना किसी भूमिका के अखबार कविता के सामने पटकते हुए पूछा, ‘‘यह क्या है?’’

‘‘शर्म से मर गया और क्या?’’

‘‘कविता, तू कुछ भी कहती फिर, लेकिन मुझे लगता है उस दिन उस ने तेरी नहीं बल्कि तू ने उस की इज्जत पर हाथ डाला था. उस दिन से वह शर्मिंदा हुआ मुंह छिपाए बैठा था और तू है कि जगहजगह अपनी इज्जत आप उछालती फिर रही है.’’

‘‘मुंह क्यों नहीं छिपाता वह? उस ने काम ही ऐसा किया था?’’

‘‘क्या किया था उस ने?’’ पूछते हुए रमा ने अपनी आंखें कविता की आंखों में गड़ा दीं.

‘‘तुझे क्या लगता है, मैं झूठ बोल रही हूं?’’

‘‘नहींनहीं, इसीलिए तो पूछ रही हूं. आखिर क्या किया था उस ने?’’

‘‘उस ने…उस ने…क्या इतना काफी नहीं कि उस ने मेरी इज्जत पर हाथ डाला था. इस पर भी तू चाहती है कि मुझे चुप रहना चाहिए था? वह इज्जतदार था तो क्या मेरी कोई इज्जत नहीं है?’’

‘‘इसीलिए तो पूछ रही हूं कि आखिर उस ने किया क्या था?’’

‘‘अच्छी जिद है, तू नहीं जानती कि एक औरत की इज्जत क्या होती है?’’

‘‘इतना ही अपनी इज्जत का खयाल है तो उस दिन से जगहजगह…’’

‘‘फिर वही बात, अरे भई 21वीं सदी है. आज मर्द अपनी मनमानी करता रहे और औरत आवाज भी न उठाए?’’

‘‘21वीं सदी में ही क्यों अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाने का हक तो औरतों को हमेशा से है लेकिन कोई…’’

‘‘लेकिन क्या?’’

‘‘लेकिन यह कि आवाज उठाने के लिए कोई बात तो हो? हवा देने के लिए चिंगारी तो हो.’’

‘‘रमा, तुझे तो हमेशा से मैं गलत ही लगती हूं. तू ही बता, एक औरत हो कर क्या मैं इतनी बड़ी बात कर सकती हूं?’’

‘‘यही तो मैं जानना चाहती हूं कि एक औरत हो कर तू कैसे…?’’

‘‘चल छोड़ रमा, अब तो वैसे भी किस्सा खत्म हो गया है.’’

‘‘एक भला आदमी अपने माथे पर कलंक ले कर जान देने पर मजबूर हो गया, उस का परिवार बेसहारा हो गया और तू कह रही है किस्सा खत्म हो गया?’’

‘‘बस कर रमा, मेरी दोस्त हो कर तुझे उस से हमदर्दी है? बस कर, मैं वैसे ही बहुत परेशान हूं.’’

‘‘तू क्यों परेशान होने लगी? उस दिन से आज तक दिन में बीसियों बार तू यही किस्सा तो सुना रही है. लोगों ने सुनसुन कर तिल का ताड़ बना दिया है. आज मैं पूछ रही हूं तो टाल रही है. बता तो सही, आखिर उस ने तेरे साथ क्या किया था?’’

‘‘उस ने वह किया था जो उसे नहीं करना चाहिए था,’’ कविता गुस्से से कांपने लगी.  ‘‘फिर भी क्या…?’’ रमा को जैसे जिद हो गई थी कि वह कविता के मुंह से सुन कर ही मानेगी.

कविता गुस्साई नागिन की भांति फुफकारने लगी.   रमा अभी भी निडर हो उस की आंखों में आंखें गड़ाए बैठी थी.

‘‘तू जानना चाहती है न उस ने मेरे साथ क्या किया था?’’

‘‘हां.’’

‘‘उस ने मेरा ऐसा अपमान किया था जो आज तक किसी मर्द ने नहीं किया. 6 महीने हो गए थे मुझे उस के सैक्शन में काम करते हुए, उस ने कभी आंख उठा कर मेरी तरफ नहीं देखा, इतनी उपेक्षा मेरे रंगरूप की, इतनी बेजारी मेरे बनावसिंगार से? जब से मैं ने होश संभाला है, मैं ने मर्दों को अपने पर मरते, फिदा होते पाया है. मैं जिस रास्ते से भी निकल जाऊं, मर्द मुझे मुड़ कर देखे बिना नहीं रहते. वह किस मिट्टी का बना हुआ था, मैं नहीं समझ पाई. अपना यह अपमान मैं नहीं सह पाई,’’ कविता एक सांस में कह गई.

‘‘क्या…?’’ रमा अवाक् रह गई.

‘‘जानती है उस दिन मैं ने नई डिजाइन की साड़ी पहनी हुई थी. सुबह से हर कोई मेरी तारीफ करता नहीं थक रहा था. मैं ने लंच तक 2 बार उस को बहाने से गुडमार्निंग की और वह बिना मेरी तरफ देखे जवाब में फुसफुसा कर चल दिया. लंच के बाद मैं एक जरूरी फाइल के बहाने से उस के कमरे में गई लेकिन उस ने आंख उठा कर नहीं देखा. अपने काम में व्यस्त बोला, रख दो.’’

‘‘कविता, तू पागल तो नहीं हो गई?’’ रमा लगभग चीख उठी.

‘‘तू नहीं समझेगी. पता है आज तक किसी ने मेरे साथ ऐसा नहीं किया.’’  चेतनाशून्य रमा वहां और खड़ी न रह सकी. काश कोई ऐसा आईना होता जो चेहरे के पीछे छिपी बदसूरती को दिखा पाता. आज कविता को उसी आईने की सख्त जरूरत है. कविता का यह कैसा प्रतिशोध था? रमा का जी चाह रहा था कि दफ्तर में जा कर जोरजोर से चिल्लाए और सब को बताए कि आखिर मरने वाले ने उस दिन कविता के साथ क्या किया था.  लेकिन कविता के झूठे आरोपों को महेश पुरी ने आत्महत्या कर के पुख्ता कर दिया था. कविता के झूठ को पुरी की आत्महत्या ने सच बना दिया था. झूठ इतना काला हो गया था कि अब उस पर सचाई का कोई भी रंग नहीं चढ़ सकता था. कहते हैं न, बारबार बोला गया झूठ भी सच लगने लगता है, कविता ने यह साबित कर दिया था.  देखना तो यह है कि झूठ के जिस बोझ को महेश पुरी नहीं उठा पाए, क्या कविता उसे उठा कर जी पाएगी?  Samajik Kahaniya

Love Story In Hindi : एक हसीं भूल – हर बार कि तरह इस बार भी सभी को किसका इंतजार था

Love Story In Hindi : हर बार की तरह आज भी बड़ी बेसब्री के बाद यह त्योहार वाला दिन आया है. पूरा औफिस ऐसे खाली है, जैसे कोई बड़ा सा गुल्लक, लेकिन उस में एक भी चिल्लर न हो. आज मैं भी बहुत खुश हूं. आखिरकार पूरे 8 महीने बाद घर जा रहा हूं, जहां मां, पत्नी और अपनी ससुराल से अगर दीदी आई होंगी तो मेरा इंतजार कर रही होंगी. सब से खास बात यह कि त्योहार भी होली का ही है. हर तरफ खुशी का माहौल है. दुकानों पर रंगगुलाल बिकने लगे हैं. बच्चों का झुंड भूखे भेड़ के झुंड की तरह रंगों पर टूट पड़ा है. अजीब नजारा है और मन ही मन में मौज की लहरें दिल के सागर में गोता लगा रही हैं. इन सब को देख कर अपना बचपन किसी फिल्म की तरह सामने चलने लगता है.

यह सब देखतेदेखते मैं अपने क्वार्टर पर पहुंचा. भागदौड़ के साथ जल्दबाजी में एक बैग में कपड़े, चार्जर, लैपटौप वगैरह रख स्टेशन के लिए आटोरिकशा पकड़ने भागा. आटोरिकशा वाला मिला. मैं ने कहा, ‘‘चल भाई, झटपट स्टेशन पहुंचा दे.’’ आटोरिकशा वाला अपनी चिरपरिचित रफ्तार में आटोरिकशा ले कर चलने लगा और हमेशा की तरह मुंबई की सब से बड़ी मुसीबत ट्रैफिक जाम सुरसा की तरह रास्ते में मुंह फैलाए खड़ी थी. आज ट्रैफिक जाम बिलकुल वैसे लग रहा है, जैसे किसी प्रेमिका को सावन की ठंडी बूंदें भी तपती ज्वाला की तरह लगती हैं. हौलेहौले बढ़ता आटोरिकशा… मानो लग रहा है कि हर सैकंड में 24 घंटे का समय बिता दें.

ट्रैफिक खुला और आटोरिकशा सरपट भागा. अपनी मंजिल को पा कर ही आटोरिकशा रुका. मैं ने पैसे पहले ही निकाल कर रखे थे रोज के अंदोज से. मैं ने झट से उसे पैसे थमाए और अंदर की तरफ अपने कदम बढ़ा दिए, तभी पीछे से आटोरिकशा वाले की आवाज आई, ‘‘भाई, बाकी पैसे ले लो.’’ मैं ने हाथ उठाते हुए कहा, ‘‘भैया, दीवाली का शगुन समझ कर रख लो.’’ वह मुसकराया और वापस मुड़ गया. मैं स्टेशन के अंदर दाखिल हुआ और गाड़ी का पता किया, जो पूरे एक घंटे की देरी से थी. चूंकि मेरी एयरकंडीशंड कंपार्टमैंट में सीट थी, तो कोई समस्या होने से रही. स्टेशन पर ही बगल की दुकान से मैं ने एक पत्रिका ली और समय बिताने के लिए वेटिंगरूम में आराम से बैठ गया. मैं ने पत्रिका खोली और नएनए मुद्दों पर लिखे लंबेचौड़े लेख पढ़ने लगा. खाली बैठने पर अकसर लोग यही करते हैं. वहां मुश्किल से 8 या 10 लोग होंगे और सब अपने फोन में बिजी दिख रहे थे. आजकल डिजिटलीकरण के दौर में उम्मीद भी यही की जा सकती है. मैं डिजिटल मीडिया का इस्तेमाल कम ही करता हूं.

मैं किताबों का बड़ा शौकीन हूं. बचपन से मुझे पढ़ना बहुत पसंद है और समय मिलते ही मैं किसी न किसी पत्रिका या किताब में खो जाता हूं और उसे समझने की कोशिश करता हूं. मैं काफी देर से ही पत्रिका पढ़ रहा था, तभी मेरी नजर अचानक सामने वाले कौर्नर पर बैठी एक लड़की पर पड़ी. मैं उसे देखता रह गया. वह बेहद खूबसूरत थी, जिस की उम्र तकरीबन 25 साल रही होगी. गोरा बदन, हिरन जैसी आंखें, होंठ सुर्ख गुलाबी मूंगे जैसे चमक रहे थे. वह अपने फोन में बिजी थी. शायद वह कुछ देख रही थी या सुन रही हो, हैडफोन जो लगाया था उस ने. उस लड़की ने गुलाबी टौप और नीली जींस पहनी हुई थी, जो उस के बदन की कसावट में खुद को कसे जा रहे थे. मैं पत्रिका से छिपछिप कर उसे देखता रहा, तभी अचानक रेलवे की सूचना ने मेरी तंद्रा तोड़ी. मेरी ट्रेन प्लेटफार्म पर आ गई थी और मैं अपनी सीट पर जा कर बैठ गया. अभी ट्रेन चलने में 15 मिनट बाकी थे. मैं ने उतर कर पानी की बोतल खरीदी और चढ़ने लगा. बोगी में तभी वह लड़की मेरी तरफ आती दिखी. मैं डब्बे में लगे हैंडल को पकड़े उसे निहारने लगा. वह मेरे एकदम करीब आ कर बोली, ‘‘हैलो, रास्ता देंगे आप?’’ मैं अचानक खयालों की दुनिया से बाहर आया और उसे रास्ता दिया. वह मेरे ही कंपार्टमैंट में चढ़ गई और मेरे ही सीट के ठीक सामने वाली सीट पर बैठ गई. सच बताऊं, मैं तो मन ही मन बहुत खुश हुआ.

अब हमारे साथ सिर्फ रात और एक लंबा सा सफर था. मैं भी अपनी सीट पर आ कर बैठ गया. थोड़ी देर बाद ट्रेन चल दी और मैं ने हिम्मत कर के उस का नाम पूछा. उस ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘प्रिया.’’ प्रिया की मीठी आवाज ने मन को अजब ही सुकून दिया, फिर हमारी औपचारिक बात शुरू हो गई जैसे काम, छुट्टी, मुंबई की वगैरह. बातों ही बातों में पता चला कि वह यहां फैशन मौडलिंग की पढ़ाई और मौडलिंग दोनों करती है. मैं ने उस से बोल दिया, ‘‘आप बेहद खूबसूरत हैं. मन करता है कि आप को देखता रहूं.’’ यह सुन कर वह मुसकरा दी. हमारी बातें आगे बढ़ीं और मुझे ऐसा लग रहा था, वह भी मेरे करीब आ रही है. तभी खाने का और्डर लेने वाला आया और हम ने और्डर दिया. अब मैं फिर उस से बातें करने लगा और धीरेधीरे हम मुंबई को पीछे छोड़ रहे थे, लेकिन एकदूसरे के करीब आ रहे थे. मैं घरपरिवार, अपनी सीमाओं को दिमाग में न याद आने वाले हिस्से में छोड़ कर पुराने समय में जब मैं कुंआरा था, वहां प्रवेश कर चुका था. उस से पता चला कि वह मेरे शहर में उस की दीदी के यहां जा रही है.

वह उन से 5 साल बाद मिल रही है, जो उन की बूआ की बेटी हैं. धीरेधीरे हम दोनों में अच्छी बौंडिंग बन गई. हम ने खुल कर बातें करनी शुरू कर दीं और कई बार मैं ने उसे नौनवैज चुटकुले सुनाए, जिस पर उस ने कंटीली मुसकान दी. मैं ने मौडलों के बारे में सुना था कि वे बड़ी तेज होती हैं और आज देख भी लिया. प्रिया ने यह भी बताया कि उस का एक बौयफ्रैंड था, जिस से उस का अब ब्रेकअप हो गया है, क्योंकि वह किसी और को भी डेट कर रहा था. मैं ने उस से झूठ बोल दिया कि मैं तो सिंगल हूं. उस की खूबसूरती में इतना डूबा था कि अपना वजूद ही भूल गया था कि मेरा तो सबकुछ वह है, जो घर पर मेरा इंतजार कर रही है. तभी अचानक बोगी के बाहर आवाज हुई. खाने वाला आया था. हम दोनों ने खाना खाया. उस के बाद हम ने सोने की तैयारी की और अपनीअपनी सीट पर लेटेलेटे हम दोनों बातों में फिर मशगूल हो गए. बातोंबातों में कभीकभी मैं अपने हाथ उस की पीठ पर छू देता था, लेकिन उस ने कभी बुरा नहीं माना. वह भी मेरे ऐसा ही कर रही थी.

धड़धड़ की आवाज से रेल अपनी तेज रफ्तार में पटरियों को पीछे धकेल रही थी और बाहर कितने गांव, गली, शहर पीछे छूटते जा रहे थे. हम दोनों बाहरी दुनिया से बिलकुल अनजान थे. बस अपनीअपनी दुनिया में बिजी थे. रात के 1 बज गए थे, दिनभर के काम और भागदौड़ के बाद भी आंखों में नींद का अतापता नहीं था. उसे भी नींद नहीं आ रही थी. लेकिन हम दोनों लेकिन करीब जरूर आ रहे थे. तकरीबन एक घंटा और बीता होगा यानी आधी रात कट चुकी थी. रात पूरे शबाब पर थी और रेल की चाल भी. प्रिया अब अपनी सीट से उठ कर मेरी सीट पर थी. हम दोनों एकदूसरे के मन में उतर रहे थे. जैसेजैसे रात बढ़ी, हमारी दूरियों में कमी आई. प्रिया की सांसों की बढ़ती तेजी मेरी सांसों को पूरी तरह से छू रही थी. उस के जिस्म और जवानी का जोश मुझ पर अपनी पूरी ताकत से वार कर रहा था, जैसे समुद्र के किनारे बैठे किसी शख्स को उस की तेज लहरें नहला कर चली जाती हैं.

लेकिन वह भीग कर मजा पाता है, ठीक वैसे ही मैं भी हर पल मस्ती में डूब रहा था. मेरे मन में यही था कि यह वक्त यहीं ठहर जाए. उस के साथ हो रहे प्रेम हवन में दोनों के जिस्म अपनीअपनी आहुति पूरे मन से दे रहे थे. न वक्त की परवाह और न ही जगह, न ही सफर. बस अजीब सी मंजिल की तलाश में दो मुसाफिर चल रहे थे. हम दोनों एकदूसरे में उतर गए थे और अब दोनों के चेहरे पर अलग मुसकान थी. उस ने प्यार से मेरे गालों को चूमा और फिर मेरे सीने पर सिर रख कर किसी बच्चे की तरह सोने लगी. मैं भी उस के सिर पर हाथ फेरने लगा और दोनों नींद की गोद में आ गए. सुबह हुई, हमारा स्टेशन आया और हम दोनों आखिरी बार गले मिले और अपनीअपनी मंजिल को निकल लिए. हम इतने करीब आए, लेकिन मैं ने न उस का फोन नंबर लिया और न ही उस का कोई सोशल मीडिया का पता.

शायद ये मेरी बेवकूफी भी थी. मैं स्टेशन से सीधे बाजार गया और मिठाई व कुछ दूसरा सामान लिया, फिर तकरीबन 2 घंटे की देरी से घर पहुंचा. अमूमन मुझे स्टेशन से घर आने में आधे घंटे का समय लगता है. घर पहुंचने पर मातापिता के पैर छुए और फिर पत्नी भी मिली. मैं अपने कमरे में आया, तभी मेरी पत्नी ने थोड़ी देर रुक कर कहा, ‘‘सुनोजी, मुझे आप को किसी से मिलाना है. मेरी बहन, जो शादी में न आ पाई थी, मैं ने उसे त्योहार पर घर बुलाया है.’’ ‘‘जी…’’ मैं ने भी सहमति दी. तभी उस ने आवाज लगाई. आवाज सुन कर एक लड़की पीले सूट में कमरे में आई. उसे देखते ही मैं चौंक गया, क्योंकि वह कोई और नहीं बल्कि वही थी, जो रातभर मेरी सहयात्री थी. उस ने मुझे देखा, मुसकराई और नमस्ते बोल कर चली गई. उसे देख कर मेरी तो जैसे जबान ही बंद थी. तकरीबन एक घंटे बाद मैं उस से अकेले में मिला, तब मैं ने उस से कहा, ‘‘सौरी, हम से शायद भूल हो गई.’’ प्रिया ने कहा, ‘‘भूल हम दोनों से हुई जीजाजी. अब भूल को भी भूल कर आप त्योहार का मजा लीजिए. एक हसीं सपना समझ कर उसे भूल जाइए और मैं भी. दीदी को कुछ पता न चले, वरना वे बहुत दुखी होंगी.’’ इतना कह कर प्रिया अपनी दीदी के पास चली गई. मैं अकेले बैठ कर उसी हसीं भूल के बारे में सोचता रहा. Love Story In Hindi

लेखक : शुभम पांडेय गगन

Family Story In Hindi : सास का दूसरा रूप

Family Story In Hindi : करण और चैताली ने प्रेम विवाह किया था. दोनों साथसाथ एमबीए कर रहे थे. करण मार्केटिंग में था और चैताली एचआर में, कैंपस में दोस्ती हुई और धीरेधीरे दोनों एकदूसरे को चाहने लगे और पढ़ाई पूरी होने तक उन्होंने एकदूसरे के साथ रहने का फैसला कर लिया. दोनों को अच्छी प्लेसमैंट मिली, पर करण को पुणे और चैताली को मुंबई औफिस मे रिपोर्ट करना था. यह बात दोनों को ही नागवार गुजरी. पर चूंकि पैकेज अच्छा था, इसलिए दोनों ने स्वीकार कर लिया.

करण पंजाबी परिवार से ताल्लुक रखता था और चैताली बंगाल से थी. जब दोनों ने इस का जिक्र अपनेअपने घरों मे किया तो जैसा कि डर था, पहले तो दोनों ही परिवारों ने अपनीअपनी असहमति दिखाई. करण के परिवार वाले शुद्ध शाकाहारी थे और चैताली का परिवार बिलकुल इस के विपरीत था. इस के अलावा भी बहुत सारे मुद्दे थे जिन पर सहमति के आसार दूरदूर तक नजर नहीं आते थे. पर करण और चैताली भी अपनी जिद पर अड़े थे. दोनों ने तय कर लिया था कि शादी तो करनी है, चाहे देर में ही सही, पर दोनों परिवारों की रजामंदी से ही.

लंबे समय तक चले मानमनुहार के बाद आखिर दोनों के परिवार वाले शादी के लिए मान गए और अगले महीने में शादी की तारीख भी तय कर दी गई. दोनों की मनचाही मुराद पूरी हो रही थी, इसलिए दोनों ही बहुत खुश थे. पर करण की मां की एक शर्त चैताली को बहुत परेशान कर रही थी. मां यह चाहती थीं कि शादी के बाद चैताली छुट्टी ले कर कम से कम एक महीने उन के परिवार के साथ रहे, करण बेशक चाहे तो पुणे जौइन कर ले या साथ रहे. चैताली को यह शर्त ही अजीब सी लगी. पर करण ने इस पर ज्यादा तवज्जुह नहीं दी. उस ने चैताली को बड़े ही सहज तरीके से सम झाया था.

‘‘देखो चैताली, अगर मां ऐसा चाहती हैं तो इस में बुराई क्या है. उन का भी तो मन करता होगा कि उन की बहू कुछ दिन उन के साथ रहे. रह लो न. कौन सा तुम वहां हमेशा के लिए रहने वाली हो.’’

चैताली कोई भी दलील देती तो करण उसे मानने से इनकार कर देता था. उसे कई बार महसूस होता था कि कहीं उस ने गलत निर्णय तो नहीं ले लिया. क्या शादी के बाद भी करण पहले जैसा ही रहेगा या बदल जाएगा? जबकि करण उसे हमेशा ही बड़े प्यार से सम झाया करता था और फिर उस का विश्वास लौट आता था.

इसी ऊहापोह में शादी की तारीख कब करीब आ गई, पता ही न चला. शादी दिल्ली में होनी थी जहां करण का घर था, क्योंकि उस के दादाजी लंबे समय से अस्वस्थ चल रहे थे. चैताली के घर से सभी लोग 2 दिन पहले ही दिल्ली आ चुके थे और सभी खुशीखुशी शादी की तैयारियों में व्यस्त थे.

पर, चैताली एक अनजाने डर से परेशान थी. कैसे रहेगी वह इतने दिन बिना करण के? करण की मां और बाकी लोगों का व्यवहार कैसा होगा? उस के घर के तौरतरीके कैसे होंगे? करण की मां बहुत सख्त मिजाज और उसूलों वाली हैं, ऐसा करण ने खुद बताया था. चैताली की मां शायद यह सब सम झ रही थीं, इसीलिए उन्होंने भी उसे सम झाया था. पर फिर भी, उस अज्ञात भय का डर उसे बारबार सता रहा था.

आज वह घड़ी भी आ ही गई जब उस ने करण के संग 7 फेरे ले ही लिए. सभी लोग उसे बधाई दे रहे थे. दोस्त, यार, रिश्तेदार, पूरा माहौल खुशियों से भरा हुआ था. करण भी अपने प्यार को शादी में बदलते देख बेहद खुश नजर आ रहा था.

अब विदाई का वक्त था, चैताली की मां और पापा दोनों के चेहरे गमगीन दिख रहे थे. कुछ औपचारिकताओं के बाद उसे करण के साथ गाड़ी में बैठा दिया गया. उस की आंखें भर आई थीं. करण ने उस के हाथों को अपने हाथ में ले लिया. उस की आंखों से टपके आंसू करण के हाथों को भिगो रहे थे.

करण के घर पहुंचते ही सब ने उस का खूब स्वागत किया. वह एक पल के लिए भी अकेली नहीं रही. घर के सभी लोग उस की खूबसूरती, उस की पढ़ाई और उस की नौकरी की खूब तारीफ कर रहे थे. करण अपने रिश्तेदारों के साथ बातें कर रहा था और बीचबीच में आ कर उस से मिल कर चला जाता था. उस के दोस्तयार उस का मजाक भी उड़ाते थे. उसे यहां पलभर के लिए भी नहीं लगा कि वह किसी नई जगह आ गई है. पर जैसे ही उसे करण की मां की बात याद आती कि वह फिर उसी अज्ञात भय की गिरफ्त में आ जाती. वह कुछ क्षणों के लिए ही अकेली रही होगी कि करण की मां कमरे में आती हुई दिखीं. वह उन्हें देख कर खड़ी हो गई. उन्होंने उसे इशारे से बैठने के लिए कहा और खुद उस की बगल में बैठ गईं.

‘‘यहां अच्छा लग रहा है बेटा?’’ उन की आवाज में स्नेह और दुलार दोनों ही था.

‘‘हां, मम्मी,’’ उस ने धीरे से कहा.

‘‘बेटे, यह तुम्हारा ही घर है. इसे तुम्हें ही संभालना है. तुम करण की पसंद जरूर थीं पर अब तुम हम सब की पसंद हो. अगर तुम यहां खुश रहोगी तो हम सभी खुश रहेंगे. मु झे करण ने बताया था कि तुम एक महीने रहने वाली बात से काफी डरी हुई हो. पगली, इस में डरने जैसा क्या है.

‘‘मैं भी तुम्हारी मां ही हूं. जब साथ रहोगी, तभी तो मु झे, हम सभी को सम झ पाओगी. मु झे भी तो चाहिए जिस से मैं अपना दुखसुख शेयर कर सकूं. उस से अपने मन की बात कह सकूं.

‘‘मेरी कोई बेटी तो है नहीं, बस, यही सोच कर मैं ने कहा था. बेटे, अपनापन अपना सम झने से ही बढ़ सकता है. अब यह तुम पर है, तुम अगर करण के साथ जाना चाहती हो तो मु झे कोई प्रौब्लम नहीं है.’’

चैताली सास का दूसरा रूप ही देख रही थी. उन की बातों से उसे बहुत सुकून मिला. उस ने सास का हाथ अपने हाथों में लेते हुए कहा, ‘‘मम्मी, आप जब कहेंगी तभी जाऊंगी. आप की बातों ने मु झे बहुतकुछ सम झा दिया है. प्लीज, मु झे माफ कर दें.’’ उस की आंखें भर आईं.

‘‘मेरे बच्चे, रोते नहीं,’  यह कहते हुए सास ने उसे गले से लगा लिया. Family Story In Hindi

लेखक : राजेश कुमार सिन्हा

Hindi Stories Love : प्रतियोगिता – रोहित और शैली की दोस्ती से लोगों को दिक्कत क्यों होने लगी थी

Hindi Stories Love : रोहित और शैली की दोस्ती सोसाइटी के लोगों को नागवार गुजर रही थी. फिर दोनों ने एक दिन मिल कर एक फैसला किया और फिर… रोजकी तरह आज भी शैली सुबहसुबह सोसाइटी के पार्क में टहलने पहुंची. 32 साल की शैली खुले बालों में आकर्षक लगती थी. रंग भले ही सांवला था, मगर चेहरे पर आत्मविश्वास और चमक की वजह से उस का व्यक्तित्व काफी आकर्षक नजर आता था. वह एक सिंगल स्मार्ट लड़की थी और एक कंपनी में ऊंचे पद पर काम करती थी. उसे अपने सपनों से प्यार था. शैली करीब 3 महीने पहले ही इस सोसाइटी में आई थी. खुद को फिट और हैल्दी बनाए रखने के लिए शैली हर संभव प्रयास करती. हैल्दी खाना और हैल्दी लाइफस्टाइल अपनाती. रोज सुबह वाक पर निकलती तो शाम में डांस क्लास जाती. आज ठंड ज्यादा थी, इसलिए उस ने वार्मर के ऊपर एक स्वैटर भी पहन रखा था.

टहलतेटहलते उस की नजरें किसी को ढूंढ़ रही थीं. रोज की तरह आज वह लड़का उसे कहीं नजर नहीं आ रहा था जो सामने वाले फ्लैट में रहता था और रोज इसी वक्त टहलने के लिए आता था. टीशर्ट के ऊपर पतली सी जैकेट और स्लीपर्स में भी वह शैली को काफी स्मार्ट नजर आता था. अभी दोनों अजनबी थे, इसलिए बस एकदूसरे को निगाह भर कर देखते और आगे बढ़ जाते. इधर कुछ दिनों से दोनों के बीच हलकी सी मुसकान का आदानप्रदान भी होने लगा था. आज उस लड़के को न देख कर शैली थोड़ी अचंभित थी, क्योंकि मौसम कैसा भी हो यानी कुहासे की चादर फैली हो या फिर बारिश हो चुकी हो, वह लड़का जरूर आता था. अगले 2 दिनों तक शैली को वह नजर नहीं आया तो वह उस के लिए थोड़ी चिंतित हो उठी. कोई रिश्ता न होते हुए भी उस लड़के के लिए वह एक अपनापन सा महसूस करने लगी थी. वह सोचने लगी कि हो सकता है उस के घर में कोई बीमार हो या वह कहीं गया हुआ हो. तीसरे दिन जब वह लड़का दिखा तो शैली एकदम से उस के करीब पहुंच गई और पूछा,

‘आप कई दिनों से दिख नहीं रहे थे… सब ठीक तो है?’’ ‘‘कई दिनों से कहां, केवल 2 दिन ही तो…’’ ‘‘हां वही कह रही थी… सब ठीक है न?’’ ‘‘यस ऐवरीथिंग इज फाइन. थैंक यू… वैसे आज मुझे पता चला कि आप मुझे ऐब्जौर्ब भी करती हैं,’’ चमकीली आंखों से देखते हुए उस ने कहा. ‘‘अरे नहीं वह तो रोज देखती थी न…’’ शैली शरमा गई. ‘‘ऐक्चुअल मेरे नौकर की बेटी बीमार थी. उसी के इलाज के चक्कर में हौस्पिटलबाजी में लगा था,’’ उस ने बताया. ‘‘आप अपने नौकर की बेटी के लिए भी इतनी तकलीफ उठाते हैं?’’ शैली ने आश्चर्य से पूछा. ‘‘क्यों नहीं आखिर वह भी हमारे परिवार की सदस्य जैसी ही तो है.’’ ‘‘नाइस. आप के घर में और कौनकौन हैं?’’ ‘‘बस अपनी मां के साथ रहता हूं. पत्नी से तलाक हुए 3 साल हो चुके हैं. मे आई नो योर गुड नेम प्लीज?’’ कहते हुए उस ने परिचय के लिए हाथ बढ़ाया. शैली ने मुसकराते हुए जवाब दिया, ‘‘मैं यहां अकेली रहती हूं, अब तक शादी नहीं की है. मेरा नाम शैली है और आप का?’’ ‘‘माईसैल्फ रोहित. नाइस टू मीट यू.’’ इस के बाद काफी समय तक दोनों वाक करने के साथ ही बातें भी करते रहे. आधे घंटे की वाक पूरी करतेकरते दोनों के बीच अच्छीखासी दोस्ती हो गई. मोबाइल नंबरों का आदानप्रदान भी हो गया. अब दोनों फोन पर भी एकदूसरे से कनैक्टेड रहने लगे.

धीरेधीरे दोनों की जानपहचान गहरी दोस्ती में बदल गई. दोनों को ही एकदूसरे का साथ बहुत पसंद आने लगा. दोनों फिटनैस फ्रीक होने के साथसाथ स्ट्रौंग मैंटल स्टेटस वाले लोग थे. दूसरों की परवाह न करना, अपने काम से काम रखना, रिश्तों को अहमियत देना और काम के साथसाथ स्टाइल में जीवन जीना. जीवन के प्रति दोनों की ही सोच एकजैसी थी. अब वे काफी समय साथ बिताने लगे थे. वक्त गुजरता जा रहा था. इधर उन दोनों की दोस्ती सोसाइटी में बहुत से लोगों को नागवार गुजर रही थी खासकर रोहित की पड़ोसिन माला बहुत अपसैट थी. उस की कभीकभार शैली से भी बातचीत हो जाती थी. उस दिन भी शैली घर लौट रही थी तो रास्ते में वह मिल गई. फौर्मल बातचीत के बाद माला शुरू हो गई, ‘‘यार मैं ने कितनी कोशिश की कि रोहित मुझ से पट जाए… उस के लिए क्याक्या नहीं किया. कभी उस की पसंद का खाना बना कर उस के घर ले गई तो कभी उस के लिए अपने बालों की स्मूथनिंग कराई. कभी उसे रिझाने के लिए एक से बेहतर एक कपड़े खरीदे तो कभी उस के पीछे अपना पूरा दिन बरबाद किया. ‘‘मगर उस ने कभी मेरी तरफ ढंग से देखा भी नहीं. देख जरा कितनी खूबसूरत हूं मैं. कालेज में सब मुझे मिस ब्यूटी कहते थे… एक बात और उस की तरह मैं भी राजपूत हूं.

उबलता हुआ खून है हम दोनों का, मगर देख न मेरा तो चक्कर ही नहीं चल सका. अब तू बता, तूने ऐसी कौन सी घुट्टी पिला दी उसे जो वह…’’ ‘‘जो वह? क्या मतलब है तुम्हारा?’’ ‘‘मतलब तुम दोनों के बीच इलूइलू की शुरुआत कैसे हुई?’’ ‘‘देखिए इलूविलू मैं नहीं जानती. मैं बस इतना जानती हूं कि वह मेरा दोस्त बन चुका है और हमेशा रहेगा. इस से ज्यादा न मैं जानती हूं न तुम से या किसी और से सुनना या बात करना चाहती हूं,’’ टका सा जवाब दे कर शैली अपने फ्लैट में घुस गई. शैली के जाते ही पड़ोस की रीमा आंटी माला के पास आ गई. माला गुस्से में बोली, ‘‘आंटी, तेवर तो देखो इस के. सोसाइटी में आए दिन ही कितने बीते हैं और इस चालाक लोमड़ी ने रोहित को अपने जाल में फंसा लिया.’’ ‘‘बहुत ऊंचा दांव खेला है इस लड़की ने. सोचा होगा कि इस उम्र में कुंआरे कहां मिलेंगे. चलो तलाकशुदा को ही पकड़ लिया जाए और तलाकशुदा जब रोहित जैसा हो तो कहने ही क्या.

धनदौलत की कमी नहीं. देखने में भी किसी हीरो से कम नहीं लगता. मैं ने तो अपनी नेहा के लिए इस से कितनी बार बात करनी चाही पर यह हमेशा ऐसा नादान बन जाता है जैसे कुछ समझ ही न रहा हो.’’ ‘‘नेहा कौन आंटी, आप की भतीजी?’’ ‘‘हां वही. जब भी मेरे घर आती है तो रोहित की ही बातें करती रहती है. रोहित के घर भी जाती है, उस की मां से भी अच्छी फ्रैंडशिप कर ली है, पर वह उसे भाव ही नहीं देता.’’ ‘‘आंटी नेहा तो अभी बच्ची है. आप उस के लिए कोई और लड़का देख लीजिए. मैं तो अपनी बात कर रही थी. बताओ मुझ में क्या कमी है?’’ माला ने पूछा. ‘‘सही कह रही है माला. मेरे लिए तो जैसे नेहा है वैसी ही तू है. मेरी नेहा न सही वह तुझ से ही शादी कर ले तो भी मैं खुश हो जाऊंगी. फूल सी बच्ची है तू भी पर आजकल तेरी शक्ल के 12 क्यों बजे रहते हैं? कई दिनों से ब्यूटीपार्लर नहीं गई क्या?’’

रीमा आंटी ने माला को गौर से देखते हुए कहा. ‘‘हां आंटी आप सच कह रही हो. कल ही पार्लर जा कर आती हूं. अपना लुक बिलकुल बदल डालूंगी, फिर देखूंगी रोहित कैसे मुझे छोड़ कर किसी और पर नजर भी डालता है?’’ ‘‘सही है. मैं भी अपनी नेहा के लिए लेटैस्ट फैशन के कुछ कपड़े और ज्वैलरी लाने जाने वाली हूं,’’ आंटी ने आंख मारते हुए कहा तो दोनों हंस पड़ीं. शैली और रोहित को साथ देख कर इन की तरह कुछ और लोगों के सीने पर भी सांप लोटने लगा था. शैली के पड़ोस में रहने वाली देवलीना आंटी को अपने बेटे के लिए शैली बहुत पसंद थी. जौब करने वाली, इतनी कौन्फिडैंट और खूबसूरत लड़की को ही वे अपनी बहू बनाना चाहती थीं. शैली दिखने में आकर्षक होने के साथसाथ कमाऊ लड़की भी थी, जबकि उन के इकलौते पीयूष का बिजनैस ठीक नहीं चल रहा था. जाहिर था कि अगर शैली उनके घर में आ जाती तो सबकुछ चमक जाता. इसी चक्कर में पिछले 2 महीनों से उन्होंने अपने बेटे के लुक पर मेहनत करनी शुरू कर दी थी.

उन के बेटे का पेट थोड़ा निकला हुआ था. वह ऐक्सरसाइज वगैरह से दूर भागता था, जबकि शैली को उन्होंने जिम जाते और मौर्निंग वौक करते देखा था. देवलीना आंटी ने बेटे को जिम भेजना शुरू कर दिया था ताकि वह भी आकर्षक नजर आए. इस बीच शैली और रोहित को साथ मौर्निंग वाक करते देख आंटी के मन में कंपीटीशन की भावना बढ़ने लगी. सुबह 7 बजे भी बेटे को सोता देख कर उन्होंने उस की चादर खींची और चिल्लाती हुई बोलीं, ‘‘रोहित जानबूझ कर शैली के साथ वौक करने लगा है ताकि उस के करीब आ सके और एक तू है…तू क्या कर रहा है? चादर तान कर सो रहा है? चल उठ और पता कर कि शैली जिम करने किस समय जाती है. कल से तुझे भी उसी समय जिम जाना होगा.’’ बेटे ने भुनभुनाते हुए चादर फिर से ओढ़ ली और बोला, ‘‘यार मम्मी मुझे नहीं जाना जिमविम.’’ ‘‘समय रहते चेत जा लड़के. ऐसी लड़की घर की बहू बन कर आ गई तो पैसों की कमी नहीं रहेगी. तेरा बिजनैस तो सही चलता नहीं है, कम से कम बहू तो कमाऊ ले आ. चल उठ मैं ने कोई बहाना नहीं सुनना.

खुद तो बात आगे बढ़ा नहीं पाता बस उसे देख कर दांत भर निकाल देता है. कभी यह कोशिश नहीं करता कि कैसे उसे अपने प्यार में पागल किया जाए.’’ ‘‘उफ मम्मी, प्यार जबरदस्ती नहीं किया जाता… जिस से होना होगा हो जाएगा.’’ ‘‘तो क्या बुढ़ापे में प्यार होगा और शादी भी बुढ़ापे में करेगा?’’ ‘‘मम्मी अरेंज्ड मैरिज कर लूंगा. डौंट वरी. मुझे सोने दो,’’ उनींदी आवाज में पीयूष ने कहा और करवट बदल कर सो गया. आंटी को गुस्सा आ गया. इस बार उन्होंने एक गिलास पानी उस के मुंह पर उड़ेल दिया और चिल्लाईं, ‘‘चल उठ और जिम हो कर आ. चल जा…’’ शैली को रोहित के साथ देख कर ऐसी हालत केवल देवलीना आंटी की ही नहीं थी बल्कि कुछ और लोग भी थे जो शैली को अपनी बहू या बीवी बनाने के सपने देख रहे थे. उन के दिल में भी रोहित को ले कर प्रतियोगिता की भावना घर करने लगी थी. सब अपनेअपने तरीके से इस प्रतियोगिता को जीतने की कोशिश में लग गए. निलय तो शैली के घर ही पहुंच गए. शैली का निलयजी से सिर्फ इतना ही परिचय था कि वे इसी सोसाइटी में रहते हैं और किसी कंपनी में मैनेजर हैं. उन्हें अपने घर देख कर शैली चकित थी. चाय वगैरह पूछने के बाद शैली ने आने की वजह पूछी तो निलय बड़े प्यार से शैली से कहने लगे, ‘‘बेटा, तू जिस कंपनी में है उस में मेरा दोस्त भी काम करता है.

उस ने तेरे बारे में एक बार बताया था. इतनी कम उम्र में तूने कंपनी में अपनी खास जगह बना ली है. मेरा बेटा विकास भी इसी फील्ड में है. ‘‘तभी मैं ने सोचा कि तुम दोनों की दोस्ती करा दूं. वैसे तो दोनों औफिस चले जाते हो इसलिए एकदूसरे से मिल नहीं पाते. मगर यह तुझे कभी भी आतेजाते देखता है तो तारीफ करता है. मेरी वाइफ भी तुझे पसंद करती और जानती है हम भी इलाहाबाद के वैश्य परिवार से ताल्लुक रखते हैं. हम भी महाराजा अग्रसेन के वंशज हैं. तेरे घर के बुजुर्ग हमारे परिवार को जरूर जानते होंगे.’’ ‘‘जी अंकल हो सकता है. मुझे आप और विकास से मिल कर अच्छा लगा. कभी जरूरत पड़ी तो मैं विकास को जरूर याद करूंगी.’’ ‘‘अरे बेटा कभी जरूरत पड़ी की क्या बात है? हम एक ही जगह से हैं, तुम दोनों एक ही फील्ड के हो, एक ही जाति के हो… आपस में मिलते रहा करो. समझ रही है न बेटी? मेरा विकास तो बहुत शर्मीला है. तुझे ही बात करनी होगी. स्विमिंग पूल की बगल वाली बिल्डिंग के 5वें फ्लोर पर हम रहते हैं. मैं तो कहता हूं आज रात तू हमारे यहां खाने पर आ जा.’’ ‘‘जी अंकल बिलकुल मैं खयाल रखूंगी, मगर खाने पर नहीं आ पाऊंगी, क्योंकि मुझे आज औफिस में देर हो जाएगी. अच्छा अंकल मुझे अभी औफिस के लिए निकलना होगा.

आप बताइए चायकौफी कुछ बना दूं?’’ शैली ने पीछा छुड़ाने की गरज से कहा. ‘‘अरे नहीं बेटा. बस तुझ से ही मिलने आया था.’’ शैली की बिल्डिंग के सब से ऊपर फ्लोर पर रहने वाले अमितजी भी एक दिन लिफ्ट में मिल गए. वे शैली से पूछने लगे, ‘‘तुम इलाहाबाद की हो न?’’ ‘‘जी,’’ शैली ने जवाब दिया. ‘‘मेरा दोस्त भी उधर का ही है और वह भी बनिया ही है. उस के बेटे के फोटो दिखाता हूं… यह देख कितना स्मार्ट है. तुझे बहुत पसंद करता है,’’ अमितजी ने मौका देखते ही निशाना साधने की कोशिश की थी. ‘‘अरे यह तो सूरज है. मैं जब बास्केटबौल खेलने जाती हूं तो एक कोने में खड़े रह कर मुझे देखता रहता है. जिम जाती हूं तब भी नजर आता है और औफिस जाते समय भी…’’ शैली ने उसे पहचानते हुए कहा. ‘‘तू गौर करती न इस पर, असल में यह बस तुझे नजर भर कर देखने को ही तेरा पीछा करता है. दिल का बहुत अच्छा है बस बोल नहीं पाता.’’ ‘‘पर अंकल मैं तो इसे स्टौकर समझ कर पुलिस में देने वाली थी.’’ ‘‘अरे बेटा यह कैसी बात कर रही है? यह तो बस इस का प्यार है,’’ अमितजी ने समझने के अंदाज में कहा. ‘‘बहुत अजीब प्यार है अंकल. इसे कहिए थोड़ा ग्रूम करे,’’ कह कर हंसी छिपाती शैली वहां से निकल गई. इस तरह शैली और रोहित की दोस्ती ने सोसाइटी के बहुत सारे लोगों के दिलों में दर्द पैदा कर दिया था. शैली और रोहित इन लोगों के बारे में एकदूसरे को बता कर खूब हंसते. उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था कि उन की दोस्ती इतने लोगों के दिलोदिमाग में खलबली मचा देगी.

दोनों एकदूसरे का साथ ऐंजौय करते. अब वे सोसाइटी के बाहर भी एकदूसरे से मिलने लगे थे. धीरेधीरे उन की दोस्ती प्यार में तबदील होने लगी. दोनों काबिल थे. एकदूसरे को पसंद करते थे. रोहित की मां को भी इस रिश्ते से कोई गुरेज नहीं था. 10 दिन बाद शैली का जन्मदिन था. रोहित ने तय किया था कि वह इस बार शैली को बर्थडे पर सरप्राइज देगा. इस के लिए उस ने एक रिजोर्ट बुक कराया. शानदार तरीके से उस का बर्थडे मनाया. रात 12 बजे केक काटा गया. उस रात रोहित ने प्यार से शैली से पूछा, ‘‘आज के दिन तुम मुझ से जो भी मांगोगी मैं उसे पूरा करूंगा. बताओ तुम्हें मुझ से क्या चाहिए?’’ ‘‘रियली?’’ ‘‘यस.’’ ‘‘तो फिर ठीक है. मुझे आज कुछ लोगों की आंखों का सपना छीन कर उसे अपना बनाना है.’’ ‘‘मतलब?’’ ‘‘मतलब जिन की आंखों में तुम्हें या मुझे ले कर सपने सजते रहते हैं उन्हें उन के सपनों से हमेशा के लिए दूर करना है. उन सपनों को अपनी आंखों में सजाया है यानी तुम्हें अपना बनाना है,’’ शैली ने एक अलग ही अंदाज में कहा और फिर मुसकरा उठी. रोहित को जैसे ही बात समझ में आई उस ने शैली को अपनी बांहों में भर लिया और उसी अंदाज में बोला, ‘‘तो ठीक है सपनों को नया अंजाम देते हैं… इस रिश्ते को प्यारा सा नाम देते हैं,’’ और फिर दोनों की आंखों में उमंग भरी एक नई जिंदगी की मस्ती घुल गई और दोनों एकदूसरे में खो गए. 1 महीने के अंदर शादी कर शैली रोहित की बन गई और इस के साथ ही बहुतों के सपने एक झटके में टूट गए.  Hindi Stories Love

Social Story : छोटी जात की लड़कियां होती ही ऐसी हैं

Social Story : उषा ने शालू के प्रति अपनी जो सोच बना डाली थी, वह एक गांठ बन गई थी उस के मन में. बेशक आज शालू का वह नया रूप देख रही थी लेकिन फिर भी कुछ था जो उषा को उसे गले लगाने से रोक रहा था.

‘प जामा पार्टी के नाम पर घर को होस्टल बना कर रख दिया इन लड़कियों ने. रिया भी पता नहीं कब समझदार बनेगी. जब देखो तब ले आती है इन लड़कियों को. जरा भी नहीं सोचती कि मेरा सारा शेड्यूल गड़बड़ा जाता है. अपने कमरे को कूड़ाघर बना दिया. खुद तो सब चली गईं मूवी देखने और मां यहां इन के फैलाए कचरे को साफ करती रहे.’

बेटी रिया के बेतरतीब कमरे को देखते ही उषा की त्योरियां चढ़ आईं. एक बारगी तो मन किया कि कमरे को जैसा है वैसा ही छोड़ दें, रिया से ही साफ करवाएं. तभी उसे एहसास होगा कि सफाई करना कितना मुश्किल काम है. मगर फिर बेटी पर स्वाभाविक ममता उमड़ आई, ‘पता नहीं और कितने दिन की मेहमान है. क्या पता कब ससुराल चली जाए. फिर वहां यह मौजमस्ती करने को मिले न मिले. काम तो जिंदगीभर करने ही हैं.’ यह सोचते हुए उषा ने दुपट्टा उतार कर कमरे के दरवाजे पर टांग दिया और फैले कमरे को व्यवस्थित करने में जुट गई.2 दिन पहले ही रिया के फाइनल एग्जाम खत्म हुए हैं.

कल रात से ही बेला, मान्यता और शालू ने रिया के कमरे में डेरा डाल रखा है. रातभर पता नहीं क्या करती रहीं ये लड़कियां कि सुबह 10 बजे तक बेसुध सो रही थीं. अब उठते ही तैयार हो कर सलमान खान की नई लगी मूवी देखने चल दीं. खानापीना सब बाहर ही होगा. पता नहीं क्या सैलिब्रेट करने में लगी हैं. अरे, एग्जाम ही तो खत्म हुए हैं, कोई लौटरी तो नहीं लगी. उषा बड़बड़ाती हुई एकएक सामान को सही तरीके से सैट कर के रखती जा रही थी कि अचानक शालू के बैग में से एक फोल्ड किया हुआ कागज का टुकड़ा नीचे गिरा. उषा उसे वापस शालू के बैग में रखने ही जा रही थी कि जिज्ञासावश खोल कर देख लिया. कागज के खुलते ही जैसे उसे बिच्छू ने काट लिया. उस फोल्ड किए हुए कागज के टुकड़े में इस्तेमाल किया हुआ कंडोम था. देख कर उषा के तो होश ही उड़ गए. उस में अब वहां खड़े रहने का भी साहस नहीं बचा था.‘क्या हो गया आज की पीढ़ी को. शादी से पहले ही यह सब. इन के लिए संस्कारों का कोई मोल ही नहीं. कहीं मेरी रिया भी इस रास्ते पर तो नहीं चल रही. नहींनहीं, ऐसा नहीं हो सकता.

मुझे अपनी बेटी पर पूरा भरोसा है. वह शालू की तरह चरित्रहीन नहीं हो सकती.’ हक्कीबक्की सी उषा किसी तरह अपनेआप को घसीट कर अपने कमरे तक लाई और धम्म से बिस्तर पर ढेर हो गई. शाम को चारों लड़कियां चहकती हुई घर में घुसीं तो उन की हंसी से घर एक बार फिर गुलजार हो उठा. मगर थोड़ी ही देर में चुप्पी सी छा गई. उषा ने सोचा शायद लड़कियां चली गईं. उस ने अपनेआप पर काबू रखते हुए रिया को आवाज लगाई.‘‘गईं क्या सब?’’ उषा ने पूछा.‘‘बाकी दोनों तो चली गईं, शालू अभी यहीं है.

वह आज रात और यहां रुकेगी,’’ रिया ने मां के पास बैठते हुए कहा.‘‘रिया, तू शालू का साथ छोड़ दे, वह लड़की चरित्रहीन है. मैं नहीं चाहती कि उस के साथ रहने से लोग तेरे बारे में भी गलत धारणा बनाएं,’’ उषा ने रिया को समझते हुए कहा.‘‘यह आप कैसी बातें कर रही हो मां. आप उसे जानती ही कितना हो? और बिना किसी पुख्ता सुबूत के यों किसी पर आरोप लगाना आप को शोभा नहीं देता.’’ मां के मुंह से अचानक यह बातें सुन कर रिया कुछ समझ नहीं. मगर अपनी जिगरी दोस्त पर यह बेहूदा इलजाम सुन कर उसे अच्छा नहीं लगा.‘‘यह रहा सुबूत.

आज तुम्हारे रूम की सफाई करते समय मुझे शालू के बैग से मिला था,’’ कहते हुए उषा ने वह कागज का टुकड़ा रिया के सामने खोल कर रख दिया. एकबारगी तो रिया से कुछ भी बोलते नहीं बना, बस, इतना भर कहा, ‘‘मां, किसी के व्यक्तित्व का सिर्फ एक पहलू उस के चरित्र को नापने का पैमाना नहीं हो सकता. शालू के बैग से इस का मिलना यह कहां साबित करता है कि इस का इस्तेमाल भी शालू ने ही किया है. यह भी तो हो सकता है कि किसी ने उस के साथ जानबूझ कर यह शरारत की हो.’’‘‘शरारत, सिर्फ उसी के साथ क्यों?

तुम्हारे या किसी और के साथ क्यों नहीं? तुम तो अपनी सहेली का पक्ष लोगी ही. मगर सुनो रिया, यह लड़की मेरी नजरों से उतर चुकी है. यह तुम्हारे आसपास रहे, यह मुझे पसंद नहीं,’’ उषा ने अपना दोटूक फैसला रिया को सुना दिया.‘‘मां, शालू एक सुलझ हुई और समझदार लड़की है. वह अच्छी तरह जानती है कि उसे जिंदगी से क्या चाहिए. देखना, आप को एक दिन उस के बारे में अपनी राय बदलनी पड़ेगी.’’‘‘हां, वह तो उस के लक्षणों से पता चल ही रहा है कि वह क्या चाहती है. पूत के पांव पालने में ही नजर आ जाते हैं. अरे, ये छोटी जात की लड़कियां होती ही ऐसी हैं. ऊंचा उठने के लिए किसी भी हद तक नीचे गिर सकती हैं,’’ कहते हुए उषा ने मुंह बिचका दिया. रिया भी उठ कर चल दी.कालेज तो खत्म हो चुके थे.

अब कैरियर बनाने का वक्त था. रिया के पापा चाहते थे कि वह सरकारी नौकरी को चुने. मगर रिया किसी अच्छी मल्टीनैशनल कंपनी में जाना चाहती थी. जब तक कोई ढंग का औफर नहीं मिलता तब तक रिया ने अपने पापा का मन रखने के लिए एक कोचिंग में ऐडमिशन ले लिया ताकि पढ़ाई से जुड़ाव बना रहे.उषा को बहुत बुरा लगा जब उसे पता चला कि शालू भी उसी कोचिंग में जा रही है. रिया को समझने का कोई मतलब नहीं था, वह अपनी सहेली के खिलाफ कुछ भी सुनने को तैयार नहीं थी. उषा की नाराजगी से बेखबर शालू का उस के घर आनाजाना बदस्तूर जारी था. हां, उषा के व्यवहार का रूखापन वह साफसाफ महसूस कर रही थी. वह देख रही थी कि पहले की तरह अब आंटी उस से हंसहंस कर बात नहीं करतीं बल्कि उसे देखते ही अपने कमरे में घुस जाती हैं.

कभी आमनासामना हो भी जाए तो बातबेबात उसे टारगेट कर के ताने सुनाने लगती हैं. उस के लिए तो चायपानी भी रिया खुद ही बनाती है. शालू ने कई बार पूछना भी चाहा मगर रिया ने हमेशा यह कह कर टाल दिया, ‘छोड़ न, मां थक जाती होंगी. वैसे भी हमें अब अपने काम खुद करने की आदत डाल लेनी चाहिए.’ और दोनों मुसकरा कर चाय बनाने में जुट जाती थीं. इधर उषा ने रिया पर कुछ ज्यादा ही कड़ाई से नजर रखनी शुरू कर दी.

वह जबतब रिया का मोबाइल ले कर उस के मैसेज, व्हाट्सऐप, फेसबुक अकांउट, आदि चैक करने लगी. कभीकभी छिप कर उस की बातें भी सुनने की कोशिश करती. यह सब रिया को बहुत बुरा लगता था, मगर वह मां के मन की उथलपुथल को समझ रही थी. ऐसे में उस का कुछ भी बोलना उन्हें आहत कर सकता था. उन्हें डिप्रैशन में ले जा सकता था या फिर हो सकता था कि गुस्से में आ कर मां उस के बाहर आनेजाने पर ही रोक लगा दें. यही सोच कर रिया चुपचाप मां की हर बात सहन कर रही थी. सर्दी के दिन थे. रात के 8 बज रहे थे. रिया अभी तक कोचिंग से नहीं लौटी थी.

रोज तो 7 बजे तक आ जाती है. क्या हुआ होगा. घड़ी की सुइयों के साथसाथ उषा की बेचैनी भी बढ़ती जा रही थी. तभी बदहवास सी रिया ने घर में प्रवेश किया. उस की हालत देखते ही उषा का कलेजा कांप उठा. बिखरे हुए बाल, मिट्टी से सने हाथपांव, कंधे से फटा हुआ कुरता. ‘‘क्या हुआ? ऐक्सिडैंट हो गया था क्या? फोन तो कर देतीं,’’

उषा ने एक ही सांस में कई प्रश्न पूछ डाले.‘‘हां, ऐक्सिडैंट ही कह सकती हो. कोचिंग के बाहर औटो का इंतजार कर रही थी कि अचानक कुछ लड़कों ने मुझे घेर लिया.’’ रिया सुबकते हुए अपने साथ हुए हादसे के बारे में बता ही रही थी कि उषा बीच में ही बोल पड़ी. ‘‘आखिर वही हुआ न जिस का मुझे डर था. अरे शालू जैसी छोटी जात की लड़की के साथ रहोगी तो यह दिन तो आना ही था. कितना समझाया था मैं ने कि उस से दूर रहो, मगर मेरी सुनता कौन है.’’

‘‘बस करो मां. आज शालू के कारण ही मैं सहीसलामत आप के सामने खड़ी हूं. उस ने वक्त पर आ कर मेरी मदद नहीं की होती तो आज मैं कहीं की न रहती. उसी छोटी जात की लड़की ने आज आप की लाडली के चरित्र पर दाग लगने से बचाया है,’’ रिया ने रोते हुए कहा और उषा को विचारों के जाल में उलझ छोड़ कर सुबकती हुई अपने कमरे में चली गई. लगभग 6 महीने की कोचिंग में शालू और रिया ने कई प्रतियोगी परीक्षाएं दीं और आखिरकार छोटी जात के विशेष कोटे में शालू का चयन वन विभाग में सुपरवाइजर के पद पर हो गया. रिया का चयन न होने से उस के पापा काफी निराश हुए.

मगर उषा बहुत खुश थी. वह सोच रही थी, ‘चलो, कैसे भी कर के आखिर उस शालू से पीछा तो छूटा.’कुछ ही महीनों में रिया ने भी अच्छे औफर पर एक मल्टीनैशनल कंपनी जौइन कर ली. हालांकि अब दोनों सहेलियों का प्रत्यक्ष मिलना कम ही होता था मगर फिर भी फोन और सोशल मीडिया पर दोनों का साथ बराबर बना हुआ था. रोज रात को दोनों एकदूसरे से दिनभर की बातें शेयर किया करती थीं. कभीकभार शालू लंचटाइम में आ कर? उस से मिल जाया करती थी.रिया की कंपनी अपनी शाखाओं का विस्तार गांवों और कसबों तक करना चाह रही थी. इसी सिलसिले में कंपनी के सीईओ ने उसे प्रोजैक्ट हेड बना कर एक छोटे कसबे में भेजने के आदेश दे दिए. हमेशा महानगर में रही रिया के लिए यह काम आसान नहीं था. उसे तो अपना कोई काम हाथ से करने की आदत ही नहीं थी.‘‘एक दिन की बात तो है नहीं, प्रोजैक्ट तो लंबा चलेगा. कसबों में रहनेखाने की कहां और कैसे व्यवस्था होगी.

सोचसोच कर रिया परेशान थी. उषा ने तो सुनते ही उसे यह प्रोजैक्ट लेने से मना कर दिया और नौकरी छोड़ने तक की सलाह दे डाली, मगर रिया समझती थी कि उस का यह प्रोजैक्ट करना कितना जरूरी है क्योंकि इनकार करने का मतलब नईनई नौकरी से हाथ धोना तो है ही, साथ ही, यह उस की इमेज का भी सवाल था.यों परेशानियों से घबरा कर अपने पांव पीछे हटाना उस के आगे के कैरियर पर भी सवाल खड़े कर सकता है.

उस ने शालू से अपनी परेशानी का जिक्र किया तो शालू ने उसे हिम्मत से काम लेने को कहा. उसे समझाया कि जिंदगी में आने वाली परेशानियों से ही आगे बढ़ने के रास्ते खुलते हैं. फिर शालू ने उस कसबे में अपने विभागीय रैस्ट हाउस में रिया के रहने की व्यवस्था करवाई और साथ ही, वहां के अटेंडैंट को हिदायत दी कि रिया को किसी भी तरह की कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए.रिया का नया प्रोजैक्ट मुंबई से लगभग 500 किलोमीटर की दूरी पर था. छोटा कसबा होने के कारण यातायात के साधन सीमित थे और इंटरनैट की उपलब्धता न के बराबर ही थी.

हां, फोन की कनैक्टिविटी ठीकठाक होने से उस की परेशानी कुछ कम जरूर हुई थी. अभी रिया को वहां गए महीनाभर भी नहीं हुआ था कि उषा की तबीयत अचानक खराब हो गई. उसे हौस्पिटल में भरती करवाया गया तो जांच में पता चला कि उस के गर्भाशय में बड़ी गांठ है. गांठ को निकालने की कोशिश से उषा की जान को खतरा हो सकता है, इसलिए औपरेशन कर के गर्भाशय ही निकालना पड़ेगा. खबर मिलते ही रिया तुरंत छुट्टी ले कर मुंबई आ गई.

उषा का औपरेशन सफल रहा और 10 दिनों तक औब्जर्वेशन में रखने के बाद उसे हौस्पिटल से डिस्चार्ज कर दिया गया.उषा को एक महीना बैड रैस्ट की सलाह दी गई थी. चूंकि रिया का प्रोजैक्ट और नौकरी दोनों ही नए थे, इसलिए उसे ज्यादा छुट्टी नहीं मिली और अब उस के सामने 2 ही विकल्प थे- या तो वह नौकरी छोड़े या फिर मां को अकेले छोड़ कर जाए. रिया कोई ठोस निर्णय नहीं ले पा रही थी. शालू को जब यह बात पता चली तो उस ने तुरंत एक महीने की छुट्टी ली और अपना सामान ले कर रिया के घर पहुंच गई. पूरा एक महीना वह साए की तरह उषा के साथ बनी रही. उषा के खानेपीने से ले कर वक्त पर दवाएं देने और उस के नहानेधोने तक का शालू ने पूरा खयाल रखा.उषा उस के इस दूसरे रूप को देख कर हैरान थी. एक छोटी जात की लड़की के बड़प्पन का यह दूसरा पहलू सचमुच उसे चौंकाने वाला था.

कभी शालू को चरित्रहीन समझने वाली उषा को आज अपनी सोच पर बहुत पछतावा हो रहा था. मगर न जाने क्या था जो अब भी उसे शालू को गले लगाने और उसे अपनी देखभाल करने के लिए थैंक्यू कहने से रोक रहा था. कल शालू की छुट्टी का आखिरी दिन था. उषा भी अब लगभग स्वस्थ हो चुकी थी. रात को खाना ले कर शालू उषा के कमरे में गई तो उस की आंखों में आंसू देख कर चौंक गई. ‘‘क्या हुआ आंटी? कुछ परेशानी है क्या?’’ शालू ने पूछा. उषा ने कोई जवाब नहीं दिया मगर दो बूंदों ने ढुलक कर उस के दिल का सारा हाल बयान कर दिया. शालू उस के पास गई. धीरे से उस का सिर अपने सीने से सटा लिया. उषा से अब अपनेआप को रोका नहीं गया और वह शालू से लिपट कर रो पड़ी.

‘‘मुझे माफ कर देना शालू, मैं ने तुम्हारे बारे में बहुत ही गलत राय बना रखी थी. अपने बचकाना व्यवहार के लिए मैं तुम से बहुत शर्मिंदा हूं.’’‘‘आप कैसी बातें करती हो आंटी? आप ने मेरे बारे में जैसी भी राय बनाई है, मैं ने तो हमेशा ही आप पर अपना अधिकार समझ है और इसी अधिकार के चलते मैं बेहिचक यहां आतीजाती रही हूं. सच कहूं, मुझे आप के तानों का जरा भी बुरा नहीं लगता था. कहीं न कहीं आप के दिल में मेरे लिए फिक्र ही तो थी जो आप को ऐसा करने के लिए मजबूर करती थी.

इसलिए अब पिछली सारी कड़वी बातों को भूल जाइए. कल रिया आने वाली है न, हमसब मिल कर फिर से पहले की तरह मस्ती करेंगे,’’ शालू ने चहकते हुए कहा और उषा से लिपट गई.उषा आज अपनी भूल पर बहुत पछता रही थी.

वह शिद्दत से महसूस कर रही थी कि किसी व्यक्ति का सिर्फ एक ही पहलू देख कर उस के बारे में अपनी पुख्ता धारणा बना लेना कितना गलत हो सकता है. और यह भी कि यह फोर्थ जेनरेशन कितनी प्रैक्टिकल सोच रखने वाली पीढ़ी है. सचमुच वह कागज का टुकड़ा, जो उसे शालू के बैग से मिला था, उस के चरित्र का प्रमाणपत्र नहीं था. Social Story 

Family Story In Hindi : पुलिसवाले की बेटी

Family Story In Hindi : “पापा, आप को याद है न. कल इस सेशन की लास्ट पीटीएम है. मैम, फाइनल ऐग्जाम के लिए बहुत सारी बातें बतानी वाली हैं. आप को और मम्मी को समय से आना है,” 4वीं में  पढ़ने वाली लहर पापा से लाड़ से बोली.

“हां, बेटा, जरूर. अपनी लविंग डौल की बात भला मैं कैसे भूल सकता हूं?” उस के बालों को प्यार से सहलाते हुए विभव ने जब उसे प्रौमिस किया तो नन्ही लहर की खुशी का ठिकाना न रहा.

”पक्का वाला प्रौमिस न. पिछली बार की तरह भूल तो नहीं जाओगे?” उस के मन में पिछले पीटीएम में विभव के न आने से एक हलकी सी शंका अभी तैर रही थी.

”अरे, पक्का. इस बार कोई मिस्टेक नहीं होगी,” यह लहर के पापा ऐडिशनल डीसीपी विभव मल्होत्रा का अपनी बिटिया से कमिटमैंट है,” विभव ने ऐङियां बजाते हुए लहर को सैल्यूट ठोंका.

”यह हुई न बात,”  हाईफाई के लिए उठे लहर के नन्हे हाथों को पापा के हाथों का साथ मिल गया.

”अरे, बेटा 1 मिनट. मम्मा को तो तुम ने याद दिला दिया है न?”

”हां,  मैं उन्हें आप से पहले ही बता चुकी हूं और उन से पक्का वाला प्रौमिस भी ले चुकी हूं,” अपने होंठों को गोल करते हुए उस ने विभव को शरारत में चिढ़ाया.

पापबिटिया की अभी बातचीत चल ही रही थी कि दरवाजे पर स्कूल वैन की हौर्न सुनाई पड़ी.

”अरे, चलोचलो, स्कूल का टाइम हो गया है,” नव्या किचन से टिफिन बौक्स ले कर निकलती हुई लहर के बैकपैक में रखते हुए बोली, “बाकी बातें घर आ कर कर लेना.”

“ठीक है, ठीक है, लेकिन कल के पीटीएम का टाइम आप दोनों याद रखिएगा. मम्मीपापा को फ्लाइंग किस देते हुए लहर वैन में बैठ कर स्कूल चली गई.

”अरे, आप अभी गेट पर ही खड़े हैं. आप की लाडो तो कब की स्कूल जा चुकी है और हां, आप की चाय भी आप का इंतजार कर रही है,” लहर की भोलीमनुहारी बातों में डूबा विभव होम मिनिस्टर की काल सुन कर वर्तमान में वापस लौट आया,” अरे हां, अभी आया.”

”नव्या, इस बार लहर का पीटीएम किसी भी कीमत पर मिस नहीं करना है.”

”तो इस में परेशान होने की क्या बात है? कमिश्नर साहब को बता कर 1-2 घंटे की परमिशन पहले से ही ले लीजिए.”

”तुम ठीक कह रही हो, सर से रिक्वैस्ट कर लेता हूं.”

”तो यह लीजिये अपना फोन. नेक काम में देरी ठीक नहीं होती,” नव्या ने हंसते हुए विभव को उस का मोबाइल जैसे ही थमाया, उस ने फौरन बौस को व्हाट्सऐप पर रिक्वैस्ट भेज दिया. अभी चाय खत्म भी नहीं हो  पाई थी कि मोबाइल पर उन का रिप्लाई भी फ्लैश हो गया.

”नव्या, देखोदेखो  कमिश्नर साहब ने क्या लिखा है?” बिटिया के इस छोटे और भोले आग्रह को पूरा करने के लिए विभव के साथसाथ नव्या भी बहुत उत्सुक थी.

पुलिस की नौकरी में आएदिन के बवाल को देखते हुए छुट्टी हमेशा एक आकाश कुसुम चीज बनी रहती है.आशंका के इस भंवर के बीच विभव ने मैसेज को पूरा पढ़ने के लिए क्लिक किया, ”श्योर, यू आर परमिटेड ऐंड आल्सो गिव माई ब्लैसिंग्स टू आवर एंजेल,” बौस का मैसेज पढ़ कर विभव की आंखें खुशी से नम हो आईं.

दोपहर लगभग 1 बजे औफिस में विभव जरूरी फाइल निबटा रहा था, तभी मोबाईल पर नव्या के काल की रिंगटोन बजी,”नव्या, क्या बात है?”

उधर से नव्या की घबराई हुई आवाज आई,”पापा का फोन आया था कि मम्मी की तबियत अचानक से बिगड़ गई है. मुझे इलाहाबाद जाना होगा, पर समझ में नहीं आ रहा है कि क्या करूं? कल लहर का पीटीएम है और मैं ने आज तक कभी उसशका पीटीएम मिस नहीं किया है,” बोलतेबोलते उस का गला भर आया.

“ओह, बट डोंट वरी, तुम्हारा वहां जाना ज्यादा जरूरी है. मैं तुम्हारे लिए गाड़ी की व्यवस्था करता हूं. तुम तैयारी करो और हां, मेड को बता दो कि लहर स्कूल से आए तो वह उस का ध्यान रखेंगी. मैं भी आज औफिस से थोड़ा पहले घर आ जाऊंगा.”

”ठीक है, पर प्लीज जरूर याद रखिएगा कि कल उस का पीटीएम है.”

“हां, श्योर. तुम चिंता मत करो. मैं सब संभाल लूंगा.”

शाम को विभव जैसे ही घर आया लहर उस से चिपक गई, “पापा, मम्मी के बिना घर कितना बुरा सा लग रहा है. लेकिन कोई बात नहीं, नानीजी की देखभाल भी तो जरूरी काम है न,” लहर को बड़ोंबड़ों जैसी बातें करते हुए सुन कर विभव सोचने लगा कि बेटियां कम उम्र में ही घर के प्रति कितनी जिम्मेदार हो जाती हैं.

पापा को सोच में डूबा हुआ देख लहर थोड़ी देर खामोश रही, फिर धीरे से बोली,” पापा, कल मेरी पीटीएम है. आप को याद है न.”

प्यार से उस की नाक हिलाते हुए विभव ने उसे आश्वस्त किया,”अरे, यह भी भला कोई भूलने वाली बात है.” चलो, थोड़ी देर कार्टून देखते हैं.”

“वाह, यह हुई न बात,” लहर ने झट से टीवी औन कर दिया.

अभी पितापुत्री कार्टून देखते हुए मस्ती कर रहे थे कि विभव के मोबाइल फोन पर पुलिस कंट्रोलरूम की काल आई. मोबाइल पर काल रिसीव करतेकरते विभव की मुखमुद्रा गंभीर होती चली गई,” ओके, रैड अलर्ट कराइए. मैं पहुंच रहा हूं,” फोन कटते ही उस ने ड्राइवर को गाड़ी लगाने का और्डर दिया और फिर लहर से बोला, ”बेटा, शहर में कुछ जगह पर दंगा हो गया है. मुझे तुरंत जाना होगा. आया आंटी घर में तुम्हारे साथ रहेंगी.”

2 मिनट में तैयार हो कर जब विभव ड्यूटी के लिए निकलने लगा तो एक जोड़ी नन्ही उदास आंखें सोफे पर से उसे जाते हुए देख रही थीं.

”डोंट वरी बेटा, औल विल बी ओके. वेरी सून बीफोर योअर पीटीएम.”

”जी, पापा. आप निश्चिंत हो कर जाइए. आल द बैस्ट. मैं आप का इंतजार करूंगी.”

गाड़ी स्टार्ट होते ही विभव जब तक नव्या को फोन लगाता तब तक उस का फोन खुद आ गया, ”टीवी पर बहुत डरावनी न्यूज आ रही है. यह सब अचानक कैसे? तुम कहां हो?”

”मैं घटनास्थल के लिए रवाना हूं.”

”और लहर?”

”वह घर पर है, आया के साथ. मैं तुम्हें बाद में काल करता हूं.”

शहर में चारों ओर हाहाकार मचा था. ऐडिशनल डीसीपी होने के कारण अपने एरिया की नाकेबंदी करना, सर्च औपरेशन चला कर फोर्स को मोबिलाइज करना, सीनियर्स को अपडेट करना, आदि हजारों काम एकसाथ आन पड़े. एक हाथ में वायरलेस का माउथपीस और दूसरे में मोबाइल, आदेशनिर्देश का सिलसिला खत्म ही नहीं हो रहा था और इधर घायलों को अस्पताल पहुंचाने और पब्लिक को सुरक्षित रखने में रात कब सुबह में तब्दील हो गई, पता ही नहीं चला.

इधर पापा की राह तकती लहर पता नहीं कब सोफे पर ही सो गई. आया ने उसे उठा कर बैडरूम में लिटा दिया. सुबह आंखें खोलते ही उस ने आया आंटी से पूछा, ”पापा कहां हैं?”

आया के सिर हिला कर न कहते ही उस की आंखो में जाग रही आशा की किरण सहसा बुझ गई. थोड़ी देर तक वह बिस्तर पर यों ही गुमसुम बैठी रही फिर, उस ने विभव को काल लगाया,”पापा, आप कैसे हो? आप कल बिना खाना खाए चले गए थे? आप भूखे होंगे न?”

”बेटा, मैं बिलकुल ठीक हूं. सिचुएशन भी पहले से अच्छी है. तुम समय से पीटीएम के लिए तैयार हो जाना. मैं आने की कोशिश कर रहा हूं. फिर साथ चलेंगे.”

चूंकि उस समय तक दंगे की आंच कुछ धीमी हो गई थी, इसलिए उसे लगा कि वह थोड़ी देर के लिए समय निकाल कर पीटीएम में जरूर शामिल हो जाएगा. मगर थोड़ी देर बाद ही कमिश्नर साहब का मैसेज आया,”विपक्षी पार्टियों के नेताओं का 9 बजे दंगाग्रस्त क्षेत्र का दौरा करने की सूचना प्राप्त हुई है. लेकिन उन के आने से कानूनव्यवस्था बिगड़ सकती है अतः उन्हें बौर्डर पर रोकने का निर्देश है. तुम तुरंत बौर्डर पर पहुंच कर उन्हें रोको,” पीटीएम में जाने की अभीअभी खिली आशा की कोंपले इस मैसेज के आते ही पलभर में मुरझा गई.

आज पहली बार ड्यूटी के आगे पिता का कर्तव्य पूरा न कर पाने का दुख उस पर भारी लग रहा था. यदि नव्या यहां होती तो वह इतना हैल्पलेस महसूस न करता. लेकिन अगले ही क्षण मन को मजबूत कर वह अगली ड्यूटी के लिए तैयार हो गया.

घड़ी में देखा तो 8 बज रहे थे, ‘ओह, लहर की वैन आती ही होगी. अब लहर के साथ स्कूल जाना तो संभव नहीं है. उसे दुख तो जरूर होगा लेकिन उसे बता देना भी आवश्यक है,’ यह सोच कर उस ने दिल को कड़ा कर लहर को फोन लगाया, ”बेटा, कुछ जरूरी काम आ गया है. तुम तैयार हो कर वैन से स्कूल पहुंचो, मैं सीधे वहीं आने की कोशिश करता हूं.”

”कोशिश? सब ठीक है, न पापा ?” आशा और हताशा दोनों उस की आवाज में डूबउतरा रहे थे.

”सब ठीक है, बेटा. कुछ जरूरी काम है. तुम स्कूल पहुंचो, मैं सीधे वहीं आता हूं और हां यदि मेरे पहुंचने तक तुम्हारा नंबर आ जाए तो क्लासटीचर नीना मैम से बोल देना कि पापा थोड़ी देर में आ रहे हैं, मेरा टर्न बाद में ले लीजिए.”

”ओके पापा, बाय. मैं आप का इंतजार करूंगी,” उस के पास इस समय कहने के लिए कोई और शब्द नहीं बचा था.

बौर्डर पर पहुंचने के ठीक पहले कमिश्नर साहब की काल फिर से आई, ”विभव, तुम से अच्छा सौफ्ट ऐंड निगोशिएशन स्किल किसी अन्य औफिसर में नहीं है. इसलिए तुम्हें भेजा है. जो कर सकते हो, करो. बौर्डर पर सिंचाई विभाग का डाक बंगला है, उन्हें किसी तरह वहां ले जाओ और वहीं इंगेज रखो.”

”जी सर, श्योर,” अभी बात समाप्त होती कि कमिश्नर साहब की आवाज फिर से गूंजी,”विभव, आई एम सौरी, तुम्हें आज बिटिया के पीटीएम में जाना था, मगर सब गड़बड़ हो गया न. आई एम रियली सौरी,” उन की आवाज में भी दुख साफसाफ झलक रहा था.

”कोई बात नहीं, सर. पुलिस की जौब इसलिए तो एक मिशन कही जाती है. आप को यह बात याद रही, यही मेरे लिए बहुत है.”

”ओके थैंक्स ऐंड बैस्ट औफ लक.”

नेता विपक्ष के आने के पहले बौर्डर की नाकेबंदी कर वह उन का इंतजार करने लगा. पर इस समय उसे रहरह कर लहर की बहुत याद आ रही थी. कभी वैन में अकेले बैठी लहर का उदास चेहरा तो कभी दूसरे बच्चों के मम्मीपापा की भीड़ में अपने पापा को ढूंढ़ती उस की मासूम निगाहें,

कल्पना में उभर रहे ये चित्र दृढ़ पुलिस अफसर के अंदर पिता के मुलायम दिल को रहरह कर विचलित कर रहे थे.

लगभग आधे घंटे विलंब से विपक्षी दलों के नेताओं का प्रतिनिधिमंडल एस कुमार के नेतृत्व में वहां आ पहुंचा. शुरुआत में तो उन्होंने खूब तेवर दिखाए. विभव भी कभी नरम तो कभी सख्त रूख अपनाते हुए दंगाग्रस्त क्षेत्र में न जाने के तर्क दे कर उन्हें समझाने की कोशिश कर रहा था कि तभी उस के फोन पर लहर की नीना मैम की काल आई,”सर, आप आ रहे हैं न पीटीएम में?” अभी वह कुछ बोलता कि वह फिर से बोलीं, ” लीजिए, लहर बात करेगी.”

विपक्ष में होने के कारण यों तो विपक्ष का एस कुमार काफी आक्रमक थे, पर इंसान के तौर पर वे काफी मैच्योर एवं सुलझे हुए थे. विभव जब लहर को फोन पर यह समझा रहा था कि  वह एक बहुत महत्त्वपूर्ण ला ऐंड और्डर ड्यूटी में व्यस्त है तो वे उस की बात बहुत ध्यान से सुन रहे थे. बात समाप्त हो जाने पर उन्होंने विभव से पूछा, ”क्या बात है औफिसर, कोई परेशानी?”

”नहीं सर, वह बिटिया का स्कूल से फोन था.”

“अरे भाई, हम भी फैमिली वाले हैं. बताओ क्या परेशानी है? राजनीति से अलग हट कर पूछ रहा हूं.”

”सर, आज उस का पीटीएम है और उस की नानी की तबियत अचानक खराब हो जाने के कारण उस की मां इलाहाबाद चली गई है इसलिए वह पीटीएम में मेरा इंतजार कर रही है.”

एस कुमारजी ने कुछ देर सोचा फिर भीड़ से थोड़ा अलग अकेले में ले जा कर वे विभव के कान में धीमे से बोले, ”मुझे डिटेन करने के लिए कोई जगह तो जरूर चुनी होगी आप लोगों ने?”

”जी सर, पास में ही सिंचाई विभाग का डाकबंगला है.”

“तो मुझे और मेरे समर्थकों को तुरंत वहां ले चलो,” उन की आंखें कुछ इशारा कर रही थीं. विभव को एक बारगी विश्वास ही नहीं हुआ.

तब एस कुमार ने कहा, ”देर मत करो, पार्टी वालों का कोई ठिकाना नहीं है कि कब मामला बिगड़ जाए.”

विभव उन्हें और उन के समर्थकों को योजनानुसार डाकबंगले में ले आया.

वहां पहुंचते ही वै बोले, ”अब आप निश्चिंत हो कर पीटीएम में जा सकते हो, अब हम कहीं नहीं जा रहे. हम यहीं पर विरोध कर लेंगे.”

”मगर सर…”

”अच्छा 1 मिनट. शायद तुम्हारे सीनियर्स को इतनी सरलता से समस्या सुलझ जाने पर विश्वास न हो. रुको, मैं तुम्हारे कमिश्नर साहब को खुद फोन कर आश्वस्त कर देता हूं,” कमिश्नर साहब के लाइन पर आते ही वे बोले,” कमिश्नर साहब, मैं आप का औफर स्वीकार कर गेस्ट हाउस में आ गया हूं. अब मेरा आगे का कोई प्रोग्राम नहीं है. अब कृपा कर इन्हें बिटिया के पीटीएम में जाने की अनुमति दे दीजिए.”

कमिश्नर साहब, ”व्हाई नौट, सर. विभव को बता दीजिए कि वह पीटीएम में निश्चिंत हो कर जा सकता है.”

एस कुमारजी विभव से बोले, “अब आप तुरंत स्कूल पहुंचो, बिटिया आप का इंतजार कर रही होगी.”

“थैंक्यू सर. मेरे पास आप को शुक्रिया अदा करने के लिए कोई शब्द नहीं हैं.”

“थैंक्यू… लेकिन अभी अपना समय बरबाद मत करो. तुरंत स्कूल पहुंचो.”

पीटीएम समाप्त होने में अब मात्र आधा घंटा ही बचा था और इस जगह से लहर का स्कूल करीब 10 किमी दूर था. विभव ड्राइवर से बोला,” जगदीश, चलो बिटिया के पास जाना है उस के स्कूल. पीटीएम खत्म होने में मात्र आधा घंटा बचा है.”

“जी सर, मुझे भी बिटिया की याद आ रही है.”

पीटीएम खत्म होने के ठीक 5-7 मिनट पहले जब विभव ने लहर के क्लासरूम में प्रवेश किया तो क्लासरूम में वह अकेली स्टूडैंट बची थी. पापा को देखते ही उस की खुशी का ठिकाना न रहा, “मैम, देखिए, मेरे पापा भी आ गए,” उस की आवाज की खनक से पूरा क्लासरूम झूम उठा.

नीना मैम बोली, “अरे आइए, सर. हमलोग आप का ही इंतजार कर रहे थे और लहर की निगाहें तो लगातार घड़ी और दरवाजे पर ही टिकी थीं.”

“मैम, पुलिस जौब में कुछ चीजें इतनी अचानक और महत्त्वपूर्ण हो जाती हैं कि बाकी सबकुछ पीछे रह जाता है.”

नीना मैम बोली,” यू आर राइट सर. जीवन में कुछ क्षण ऐसे होते हैं जहां हमारी सब से ज्यादा जरूरत होती है, पर हम वहां नहीं रह पाते और मुझे पता है कि आप की जौब में तो ऐसे पल अकसर आते रहते हैं.”

“धन्यवाद मैम, और यदि आप की इजाजत हो तो इस की मम्मी से आप की वीडियो काल पर बात करा दूं? वह भी पीटीएम में आने के लिए बहुत उत्सुक थी लेकिन अचानक…”

नीना मैम बोली,” औफकोर्स, प्लीज…”

वीडियो कालिंग के जरीए लहर की पीटीएम में शामिल हो कर नव्या को भी बहुत अच्छा लगा.

पीटीएम से निकलने के बाद लहर विभव के गले में हाथ डाल कर झूला झूलती हुई बोली, “पापा, एक बात बताऊं, जब सब के पेरैंट्स 1-1 कर आजा रहे थे और अंत में जब मैं क्लास में अकेली रह गई तो मुझे अंदर से बहुत रूलाई आ रही थी. लेकिन मुझे लग रहा था कि आप जरूर यहां आएंगे, थैंक्यू पापा.”

“लव यू बेटा…”

लेखक : चिरंजीव सिन्हा

Love Story In Hindi : प्यार का खतरनाक खेल

Love Story In Hindi : शिखा के पास उस समय नीरज भी खड़ा था जब अनिता ने उस से कहा, ‘‘मैं ने तुम्हारी मम्मी को फोन कर के उन से इजाजत ले ली है.’’

‘‘किस बात की?’’ शिखा ने चौंक कर पूछा.

‘‘आज रात तुम मेरे घर पर रुकोगी.

कल रविवार की शाम मैं तुम्हें तुम्हारे घर छोड़ आऊंगी.’’

‘‘कोई खास मौका है क्या?’’

‘‘नहीं. बस, बहुत दिनों से किसी के साथ दिल की बातें शेयर नहीं की हैं. तुम्हारे साथ जी भर कर गपशप कर लूंगी, तो मन हलका हो जाएगा. मैं लंच के बाद चली जाऊंगी. तुम शाम को सीधे मेरे घर आ जाना.’’

नीरज ने वार्त्तालाप में हिस्सा लेते हुए कहा, ‘‘अनिता, मैं शिखा को छोड़ दूंगा.’’

‘‘इस बातूनी के चक्कर में फंस कर ज्यादा लेट मत हो जाना,’’ कह कर अनिता अपनी सीट पर चली गई.

औफिस के बंद होने पर शिखा नीरज के साथ उस की मोटरसाइकिल पर अनिता के घर जाने को निकली.

‘‘कल 11 बजे पक्का आ जाना,’’ नीरज ने शिखा को अनिता के घर के बाहर उतारते हुए कहा.

‘‘ओके,’’ शिखा ने मुसकरा कहा.

अनिता रसोई में व्यस्त थी. शिखा उन किशोर बच्चों राहुल और रिचा के साथ गपशप करने लगी. अनिता के पति दिनेश साहब घर पर उपस्थित नहीं थे. अनिता उसे बाजार ले गई. वहां एक रेडीमेड कपड़ों की दुकान में घुस गई. अनिता और दुकान का मालिक एकदूसरे को नाम ले कर संबोधित कर रहे थे. इस से शिखा ने अंदाजा लगाया कि दोनों पुराने परिचित हैं.

‘‘दीपक, अपनी इस सहेली को मुझे एक बढि़या टीशर्ट गिफ्ट करनी है. टौप क्वालिटी की जल्दी से दिखा दो,’’ अनिता ने मुसकराते हुए दुकान के मालिक को अपनी इच्छा बताई.

शिखा गिफ्ट नहीं लेना चाहती थी, पर अनिता ने उस की एक न सुनी. दीपक खुद अनिता को टीशर्ट पसंद कराने के काम में दिलचस्पी ले रहा था. अंतत: उन्होंने एक लाल रंग की टीशर्ट पसंद कर ली.

शिखा के लिए टीशर्ट के अलावा अनिता ने रिचा और राहुल के लिए भी कपड़े खरीदे फिर पति के लिए नीले रंग की कमीज खरीदी.

दुकान से बाहर आते हुए शिखा ने मुड़ कर देखा तो पाया कि दीपक टकटकी बांधे उन दोनों को उदास भाव से देख रहा है. शिखा ने अनिता को छेड़ा, ‘‘मुझे तो दाल में काला नजर आया है, मैडम. क्या यह दीपक साहब आप के कभी प्रेमी रहे हैं?’’

‘‘प्रेमी नहीं, कभी अच्छे दोस्त थे… मेरे भी और मेरे पति के भी. इस विषय पर कभी बाद में विस्तार से बताऊंगी. पतिदेव घर पहुंच चुके होंगे.’’

‘‘अच्छा, यह तो बता दीजिए कि आज क्या खास दिन है?’’

‘‘घर पहुंच कर बताऊंगी,’’ कह कर अनिता ने रिकशा किया और घर आ गईं.

वे घर पहुंचीं तो दिनेश साहब उन्हें ड्राइंगरूम में बैठे मिले. शिखा को देख कर उन के होंठों पर उभरी मुसकान अनिता के हाथ में लिफाफों को देख फौरन गायब हो गई.

‘‘तुम दीपक की दुकान में क्यों घुसीं?’’ कह कर उन्होंने अनिता को आग्नेय दृष्टि से देखा.

‘‘मैं शिखा को अच्छी टीशर्ट खरीदवाना चाहती थी. दीपक की दुकान पर सब से

अच्छा सामान…’’

‘‘मेरे मना करने के बावजूद तुम्हारी हिम्मत कैसे हो गई उस की दुकान में कदम रखने की?’’ पति गुस्से से दहाड़े.

‘‘मुझ से गलती हो गई,’’ अनिता ने मुसकराते हुए अपने हाथ जोड़ दिए, ‘‘आज के दिन तो आप गुस्सा न करो.’’

‘‘आज का दिन मेरी जिंदगी का सब से मनहूस दिन है,’’ कह कर गुस्से से भरे दिनेशजी अपने कमरे में चले गए.

‘‘मैडम, जब आप को मना किया गया था तो आप क्यों गईं दीपक की दुकान पर?’’

आंखों में आंसू भर कर अनिता ने उदास लहजे में जवाब दिया, ‘‘आज मैं तुम्हें 10 साल पुरानी घटना बताती हूं जिस ने मेरे विवाहित जीवन की सुखशांति को नष्ट कर डाला. मैं कुसूरवार न होते हुए भी सजा भुगत रही हूं, शिखा.

‘‘दीपक का घर पास में ही है. खूब आनाजाना था हमारा एकदूसरे के यहां. दिनेश साहब जब टूर पर होते, तब मैं अकसर उन के यहां चली जाती थी.

‘‘दीपक मेरे साथ हंसीमजाक कर लेता था. इस का न कभी दिनेश साहब ने बुरा माना, न दीपक की पत्नी ने, क्योंकि हमारे मन में खोट नहीं था.

‘‘एक शाम जब मैं दीपक के घर पहुंची, तो वह घर में अकेला था. पत्नी अपने दोनों बच्चों को ले कर पड़ोसी के यहां जन्मदिन समारोह में शामिल होने गई थी.’’

अपने गालों पर ढलक आए आंसुओं को पोंछने के बाद अनिता ने आगे बताया, ‘‘दीपक अकेले में मजाक करते हुए कभीकभी रोमांटिक हो जाता था. मैं सारी बात को खेल की तरह से लेती क्योंकि मेरे मन में रत्ती भर खोट नहीं था.

‘‘दीपक ने भी कभी सभ्यता और शालीनता की सीमाओं को नहीं तोड़ा था.

‘‘दिनेश साहब टूर पर गए हुए थे. उन्हें अगले दिन लौटना था, पर वे 1 दिन पहले

लौट आए.

‘‘मेरी सास ने जानकारी दी कि मैं दीपक के घर गई हूं. वह तो सारा दिन वहीं पड़ी रहती है. ऐसी झूठी बात कह कर उन्होंने दिनेश साहब के मन में हम दोनों के प्रति शक का बीज बो दिया.

‘‘उस शाम दीपक मुझे पियक्कड़ों की बरात की घटनाएं सुना कर खूब हंसा रहा था. फिर अचानक उस ने मेरी प्रशंसा करनी शुरू कर दी. वह पहले भी ऐसा कर देता था, पर उस शाम खिड़की के पास खड़े दिनेश साहब ने सारी बातें सुन लीं.

‘‘उस शाम से उन्होंने मुझे चरित्रहीन मान लिया और दीपक से सारे संबंध तोड़ लिए. और… और… मैं अपने माथे पर लगे उस झूठे कलंक के धब्बे को आज तक धो नहीं पाई हूं, शिखा.’’

‘‘यह तो गलत बात है, मैडम. दिनेश साहब को आप की बात सुन कर अपने मन से गलतफहमी निकाल देनी चाहिए थी,’’ शिखा ने हमदर्दी जताई.

‘‘वे मुझे माफ करने को तैयार नहीं हैं. वे मेरे बड़े हो रहे बच्चों के सामने कभी भी मुझे चरित्रहीन होने का ताना दे कर बुरी तरह शर्मिंदा कर देते हैं.’’

‘‘यह तो उन की बहुत गलत बात है, मैडम.’’

‘‘मैं खुद को कोसती हूं शिखा कि मुझे खेलखेल में भी दीपक को बढ़ावा नहीं देना  चाहिए था. मेरी उस भूल ने मुझे सदा के लिए अपने पति की नजरों से गिरा दिया है.’’

‘‘जब आप को पता था कि दिनेश साहब बहुत गुस्सा होंगे, तब आप दीपक की दुकान पर क्यों गईं?’’

शिखा के इस सवाल के जवाब में अनिता खामोश रह उस की आंखों में अर्थपूर्ण अंदाज में झांकने लगी.

कुछ पल खामोश रहने के बाद शिखा सोचपूर्ण लहजे में बोली, ‘‘मुझे दिनेश साहब का गुस्सा… उन की नफरत दिखाने के लिए आप जानबूझ कर दीपक की दुकान से खरीदारी कर के लाई हैं न? मेरी आंखें खोलने के लिए आप ने यह सब किया है न?’’

‘‘हां, शिखा,’’ अनिता ने झुक कर शिखा का माथा चूम लिया, ‘‘मैं नहीं चाहती कि तुम नीरज के साथ प्रेम का खतरनाक खेल खेलते हुए मेरी तरह अपने पति की नजरों में हमेशा के लिए गिर जाओ.’’

‘‘मेरे मन में उस के प्रति कोई गलत भाव नहीं है, मैडम.’’

‘‘मैं भी दीपक के लिए ऐसा ही सोचती थी. देखो, तुम्हारा पति भी दिनेश साहब की तरह गलतफहमी का शिकार हो सकता है. तब खेलखेल में तुम भी अपने विवाहित जीवन की खुशियां खो बैठोगी.

‘‘तुम अपने पति से नाराज हो कर मायके में रह रही हो. यों दूर रहने के कारण पति के मन में पत्नी के चरित्र के प्रति शक ज्यादा आसानी से जड़ पकड़ लेता है. पति के प्यार का खतरा उठाने से बेहतर है ससुराल वालों की जलीकटी बातें और गलत व्यवहार सहना. तुम फौरन अपने पति के पास लौट जाओ, शिखा,’’ अत्यधिक भावुक हो जाने से अनिता का गला रुंध गया.

‘‘मैं लौट जाऊंगी,’’ शिखा ने दृढ़ स्वर में अपना फैसला सुनाया.

‘‘तुम्हारा कल नीरज से मिलने का कार्यक्रम है…’’

‘‘हां.’’

‘‘उस का क्या करोगी?’’

शिखा ने पर्स में से अपना मोबाइल निकाल कर उसे बंद कर कहा, ‘‘आज से यह खतरनाक खेल बिलकुल बंद. उस की झूठीसच्ची प्रशंसा अब मुझे गुमराह नहीं कर पाएगी.’’

‘‘मुझे बहुत खुशी है कि जो मैं तुम्हें समझाना चाहती थी, वह तुम ने समझ लिया,’’ अपनी उदासी को छिपा कर अनिता मुसकरा उठी.

‘‘मुझे समझाने के चक्कर में आप तो परेशानी में फंस गईं?’’ शिखा अफसोस से भर उठी.

‘‘लेकिन तुम तो बच गईं. चलो, खाना खाएं.’’

‘‘आप को शादी की सालगिरह की शुभकामनाएं और कामना करती हूं कि दिनेश साहब की गलतफहमी जल्दी दूर हो और आप उन का प्यार फिर से पा जाएं.’’

‘‘थैंक यू,’’ शिखा की नजरों से अपनी आंखों में भर आए आंसुओं को छिपाने के लिए अनिता रसोई की तरफ चल दी.

शिखा का मन उन के प्रति गहरे धन्यवाद व सहानुभूति के भाव से भर उठा था. Love Story In Hindi

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