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Best Hindi Story : दिल हथेली पर – अमित और मेनका क्या सोच रहे थे

Best Hindi Story : अमित और मेनका चुपचाप बैठे हुए कुछ सोच रहे थे. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करना चाहिए. तभी कालबेल बजी. मेनका ने दरवाजा खोला. सामने नरेन को देख चेहरे पर मुसकराहट लाते हुए वह बोली, ‘‘अरे जीजाजी आप… आइए.’’

‘‘नमस्कार. मैं इधर से जा रहा था तो सोचा कि आज आप लोगों से मिलता चलूं,’’ नरेन ने कमरे में आते हुए कहा. अमित ने कहा, ‘‘आओ नरेन, कैसे हो? अल्पना कैसी है?’’

नरेन ने उन दोनों के चेहरे पर फैली चिंता की लकीरों को पढ़ते हुए कहा, ‘‘हम दोनों तो ठीक हैं, पर मैं देख रहा हूं कि आप किसी उलझन में हैं.’’ ‘‘ठीक कहते हो तुम…’’ अमित बोला, ‘‘तुम तो जानते ही हो नरेन कि मेनका मां बनने वाली है. दिल्ली से बहन कुसुम को आना था, पर आज ही उस का फोन आया कि उस को पीलिया हो गया है. वह आ नहीं सकेगी. सोच रहे हैं कि किसी नर्स का इंतजाम कर लें.’’

‘‘नर्स क्यों? हमें भूल गए हो क्या? आप जब कहेंगे अल्पना अपनी दीदी की सेवा में आ जाएगी,’’ नरेन ने कहा. ‘‘यह ठीक रहेगा,’’ मेनका बोली.

अमित को अपनी शादी की एक घटना याद हो आई. 4 साल पहले किसी शादी में एक खूबसूरत लड़की उस से हंसहंस कर बहुत मजाक कर रही थी. वह सभी लड़कियों में सब से ज्यादा खूबसूरत थी. अमित की नजर भी बारबार उस लड़की पर चली जाती थी. पता चला कि वह अल्पना है, मेनका की मौसेरी बहन.

अब अमित ने अल्पना के आने के बारे में सुना तो वह बहुत खुश हुआ. मेनका को ठीक समय पर बच्चा हुआ. नर्सिंग होम में उस ने एक बेटे को जन्म दिया.

4 दिन बाद मेनका को नर्सिंग होम से छुट्टी मिल गई. शाम को नरेन घर आया तो परेशान व चिंतित सा था. उसे देखते ही अमित ने पूछा, ‘‘क्या बात है नरेन, कुछ परेशान से लग रहे हो?’’

‘‘हां, मुझे मुंबई जाना पड़ेगा.’’ ‘‘क्यों?’’

‘‘बौस ने हैड औफिस के कई सारे जरूरी काम बता दिए हैं.’’ ‘‘वहां कितने दिन लग जाएंगे?’’

‘‘10 दिन. आज ही सीट रिजर्व करा कर आ रहा हूं. 2 दिन बाद जाना है. अब अल्पना यहीं अपनी दीदी की सेवा में रहेगी,’’ नरेन ने कहा. मेनका बोल उठी, ‘‘अल्पना मेरी पूरी सेवा कर रही है. यह देखने में जितनी खूबसूरत है, इस के काम तो इस से भी ज्यादा खूबसूरत हैं.’’

‘‘बस दीदी, बस. इतनी तारीफ न करो कि खुशी के मारे मेरे हाथपैर ही फूल जाएं और मैं कुछ भी काम न कर सकूं,’’ कह कर अल्पना हंस दी. 2 दिन बाद नरेन मुंबई चला गया.

अगले दिन शाम को अमित दफ्तर से घर लौटा तो अल्पना सोफे पर बैठी कुछ सोच रही थी. मेनका दूसरे कमरे में थी. अमित ने पूछा, ‘‘क्या सोच रही हो अल्पना?’’

‘‘कुछ नहीं,’’ अल्पना ने कहा. ‘‘मैं जानता हूं.’’

‘‘क्या?’’ ‘‘नरेन के मुंबई जाने से तुम्हारा मन नहीं लग रहा?है.’’

‘‘ऐसी बात नहीं है. वे जिस कंपनी में काम करते हैं, वहां बाहर जाना होता रहता है.’’ ‘‘जैसे साली आधी घरवाली होती है वैसे ही जीजा भी आधा घरवाला होता है. मैं हूं न. मुझ से काम नहीं चलेगा क्या?’’ अमित ने अल्पना की आंखों में झांकते हुए कहा.

‘‘अगर जीजाओं से काम चल जाता तो सालियां शादी ही क्यों करतीं?’’ कहते हुए अल्पना हंस दी. 5-6 दिन इसी तरह हंसीमजाक में बीत गए. एक रात अमित बिस्तर पर बैठा हुआ अपने मोबाइल फोन पर टाइमपास कर रहा था. जब आंखें थकने लगीं तो वह बिस्तर पर लेट गया.

तभी अमित ने आंगन में अल्पना को बाथरूम की तरफ जाते देखा. वह मन ही मन बहुत खुश हुआ. जब अल्पना लौटी तो अमित ने धीरे से पुकारा.

अल्पना ने कमरे में आते ही पूछा, ‘‘अभी तक आप सोए नहीं जीजाजी?’’ ‘‘नींद ही नहीं आ रही है. मेनका सो गई है क्या?’’

‘‘और क्या वे भी आप की तरह करवटें बदलेंगी?’’ ‘‘मुझे नींद क्यों नहीं आ रही है?’’

‘‘मन में होगा कुछ.’’ ‘‘बता दूं मन की बात?’’

‘‘बताओ या रहने दो, पर अभी आप को एक महीना और करवटें बदलनी पड़ेंगी.’’ ‘‘बैठो न जरा,’’ कहते हुए अमित ने अल्पना की कलाई पकड़ ली.

‘‘छोडि़ए, दीदी जाग रही हैं.’’ अमित ने घबरा कर एकदम कलाई छोड़ दी.

‘‘डर गए न? डरपोक कहीं के,’’ मुसकराते हुए अल्पना चली गई. सुबह दफ्तर जाने से पहले अमित मेनका के पास बैठा हुआ कुछ बातें कर रहा था. मुन्ना बराबर में सो रहा था.

तभी अल्पना कमरे में आई और अमित की ओर देखते हुए बोली, ‘‘जीजाजी, आप तो बहुत बेशर्म हैं.’’ यह सुनते ही अमित के चेहरे का रंग उड़ गया. दिल की धड़कनें बढ़ गईं. वह दबी आवाज में बोला, ‘‘क्यों?’’

‘‘आप ने अभी तक मुन्ने के आने की खुशी में दावत तो क्या, मुंह भी मीठा नहीं कराया.’’ अमित ने राहत की सांस ली. वह बोला, ‘‘सौरी, आज आप की यह शिकायत भी दूर हो जाएगी.’’

शाम को अमित दफ्तर से लौटा तो उस के हाथ में मिठाई का डब्बा था. वह सीधा रसोई में पहुंचा. अल्पना सब्जी बनाने की तैयारी कर रही थी. अमित ने डब्बा खोल कर अल्पना के सामने करते हुए कहा, ‘‘लो साली साहिबा, मुंह मीठा करो और अपनी शिकायत दूर करो.’’

मिठाई का एक टुकड़ा उठा कर खाते हुए अल्पना ने कहा, ‘‘मिठाई अच्छी है, लेकिन इस मिठाई से यह न समझ लेना कि साली की दावत हो गई है.’’ ‘‘नहीं अल्पना, बिलकुल नहीं. दावत चाहे जैसी और कभी भी ले सकती हो. कहो तो आज ही चलें किसी होटल में. एक कमरा भी बुक करा लूंगा. दावत तो सारी रात चलेगी न.’’

‘‘दावत देना चाहते हो या वसूलना चाहते हो?’’ कह कर अल्पना हंस पड़ी. अमित से कोई जवाब न बन पड़ा. वह चुपचाप देखता रह गया.

एक सुबह अमित देर तक सो रहा था. कमरे में घुसते ही अल्पना ने कहा, ‘‘उठिए साहब, 8 बज गए हैं. आज छुट्टी है क्या?’’ ‘‘रात 2 बजे तक तो मुझे नींद ही नहीं आई.’’

‘‘दीदी को याद करते रहे थे क्या?’’ ‘‘मेनका को नहीं तुम्हें. अल्पना, रातभर मैं तुम्हारे साथ सपने में पता नहीं कहांकहां घूमता रहा.’’

‘‘उठो… ये बातें फिर कभी कर लेना. फिर कहोगे दफ्तर जाने में देर हो रही है.’’ ‘‘अच्छा यह बताओ कि नरेन की वापसी कब तक है?’’

‘‘कह रहे थे कि काम बढ़ गया है. शायद 4-5 दिन और लग जाएं. अभी कुछ पक्का नहीं है. वे कह रहे थे कि हवाईजहाज से दिल्ली तक पहुंच जाऊंगा, उस के बाद टे्रन से यहां तक आ जाऊंगा.’’ ‘‘अल्पना, तुम मुझे बहुत तड़पा रही हो. मेरे गले लग कर किसी रात को यह तड़प दूर कर दो न.’’

‘‘बसबस जीजाजी, रात की बातें रात को कर लेना. अब उठो और दफ्तर जाने की तैयारी करो. मैं नाश्ता तैयार कर रही हूं,’’ अल्पना ने कहा और रसोई की ओर चली गई. एक शाम दफ्तर से लौटते समय अमित ने नींद की गोलियां खरीद लीं. आज की रात वह किसी बहाने से मेनका को 2 गोलियां खिला देगा. अल्पना को भी पता नहीं चलने देगा. जब मेनका गहरी नींद में सो जाएगी तो वह अल्पना को अपनी बना लेगा.

अमित खुश हो कर घर पहुंचा तो देखा कि अल्पना मेनका के पास बैठी हुई थी. ‘‘अभी नरेन का फोन आया है. वह ट्रेन से आ रहा है. ट्रेन एक घंटे बाद स्टेशन पर पहुंच जाएगी. उस का मोबाइल फोन दिल्ली स्टेशन पर कहीं गिर गया. उस ने किसी और के मोबाइल फोन से यह बताया है. तुम उसे लाने स्टेशन चले जाना. वह मेन गेट के बाहर मिलेगा,’’ मेनका ने कहा.

अमित को जरा भी अच्छा नहीं लगा कि नरेन आ रहा है. आज की रात तो वह अल्पना को अपनी बनाने जा रहा था. उसे लगा कि नरेन नहीं बल्कि उस के रास्ते का पत्थर आ रहा है. अमित ने अल्पना की ओर देखते हुए कहा, ‘‘ठीक?है, मैं नरेन को लेने स्टेशन चला जाऊंगा. वैसे, तुम्हारे मन में लड्डू फूट रहे होंगे कि इतने दिनों बाद साजन घर लौट रहे हैं.’’

‘‘यह भी कोई कहने की बात है,’’ अल्पना बोली. ‘‘पर, नरेन को कल फोन तो करना चाहिए था.’’

‘‘कह रहे थे कि अचानक पहुंच कर सरप्राइज देंगे,’’ अल्पना ने कहा. अमित उदास मन से स्टेशन पहुंचा. नरेन को देख वह जबरदस्ती मुसकराया और मोटरसाइकिल पर बिठा कर चल दिया.

रास्ते में नरेन मुंबई की बातें बता रहा था, पर अमित केवल ‘हांहूं’ कर रहा था. उस का मूड खराब हो चुका था. भीड़ भरे बाजार में एक शराबी बीच सड़क पर नाच रहा था. वह अमित की मोटरसाइकिल से टकराताटकराता बचा. अमित ने मोटरसाइकिल रोक दी और शराबी के साथ झगड़ने लगा.

शराबी ने अमित पर हाथ उठाना चाहा तो नरेन ने उसे एक थप्पड़ मार दिया. शराबी ने जेब से चाकू निकाला और नरेन पर वार किया. नरेन बच तो गया, पर चाकू से उस का हाथ थोड़ा जख्मी हो गया. यह देख कर वह शराबी वहां से भाग निकला.

पास ही के एक नर्सिंग होम से मरहमपट्टी करा कर लौटते हुए अमित ने नरेन से कहा, ‘‘मेरी वजह से तुम्हें यह चोट लग गई है.’’ नरेन बोला, ‘‘कोई बात नहीं भाई साहब. मैं आप को अपना बड़ा भाई मानता हूं. मैं तो उन लोगों में से हूं जो किसी को अपना बना कर जान दे देते हैं. उन की पीठ में छुरा नहीं घोंपते.

‘‘शरीर के घाव तो भर जाते हैं भाई साहब, पर दिल के घाव हमेशा रिसते रहते हैं.’’ नरेन की यह बात सुन कर अमित सन्न रह गया. वह तो हवस की गहरी खाई में गिरने के लिए आंखें मूंदे चला जा रहा था. नरेन का हक छीनने जा रहा था. उस से धोखा करने जा रहा था. उस का मन पछतावे से भर उठा.

दोनों घर पहुंचे तो नरेन के हाथ में पट्टी देख कर मेनका व अल्पना दोनों घबरा गईं. अमित ने पूरी घटना बता दी. कुछ देर बाद अमित रसोई में चला गया. अल्पना खाना बना रही थी.

नरेन मेनका के पास बैठा बात कर रहा था. अमित को देखते ही अल्पना ने कहा, ‘‘जीजाजी, आप तो बातोंबातों में फिसल ही गए. क्या सारे मर्द आप की तरह होते हैं?’’

‘‘क्या मतलब…?’’ ‘‘लगता है दिल हथेली पर लिए घूमते हो कि कोई मिले तो उसे दे दिया जाए. आप को तो दफ्तर में कोई भी बेवकूफ बना सकती है. हो सकता है कि कोई बना भी रही हो.

‘‘आप ने तो मेरे हंसीमजाक को कुछ और ही समझ लिया. इस रिश्ते में तो मजाक चलता है, पर इस का मतलब यह तो नहीं कि… अब आप यह बताइए कि मैं आप को जीजाजी कहूं या मजनूं?’’ ‘‘अल्पना, तुम मेनका से कुछ मत कहना,’’ अमित ने कहा.

‘‘मैं किसी से कुछ नहीं कहूंगी पर आप तो बहुत डरपोक हैं,’’ कह कर अल्पना मुसकरा उठी. अमित चुपचाप रसोईघर से बाहर निकल गया.

Family Story : पीयूषा – क्या विधवा मिताली की गृहस्थी दोबारा बस पाई?

Family Story : रविवार का दिन था. छुट्टी होने के कारण मैं इतमीनान से अपने कमरे में अखबार पढ़ रहा था, तो अचानक चाचाजी पर नजर पड़ी. वे सामने उदास व शांत खड़े हुए थे. मैं ने बैठने का आग्रह करते हुए कहा, ‘‘क्या बात है चाचाजी, परेशान से लग रहे हैं? तबीयत तो ठीक है न?’’

‘‘मैं ठीक हूं बेटा, तुम से कुछ कहना चाहता हूं,’’ बैठने के बाद चाचाजी ने धीरे से कहा. मैं ने अखबार एक ओर रखते हुए कहा, ‘‘तो कहिए न चाचाजी.’’ लेकिन चाचाजी शांत ही बैठे रहे. मैं ने आग्रह करते हुए कहा, ‘‘क्या बात है चाचाजी? जो दिल में है बेझिझक कह दीजिए. आप का कथन मेरे लिए आदेश है,’’ चाचाजी की चुप्पी दरअसल मेरी बैचेनी बढ़ा रही थी. ‘‘बेटा पवन, तू ने कभी भी मेरी बात नहीं टाली है. आज भी इसी उम्मीद से तेरे पास आया हूं. तेरी चाची का और मेरा विचार है कि तू मिताली से शादी कर ले. उसे सहारा दे दे. बेचारी कम उम्र में विधवा हो गई है और दुनिया में एकदम अकेली है. मायके में उस का कोई नहीं है. हम बूढ़ाबूढ़ी का क्या भरोसा, तब वह अकेली कहां जाएगी…,’’ चाचाजी ने धीरेधीरे अपनी बात रखी. उन की आंखें सजल हो उठी थीं, गला भर आया था. मैं किंकर्तव्यविमूढ़ सा चाचाजी की बातें सुन रहा था और क्या कहूं समझ नहीं पा रहा था. मेरे समक्ष एक ओर चाचाचाची का निर्णय था, तो दूसरी ओर मेरा प्यार जो पनप चुका था. मुझे लग रहा था कि यह बात सच है कि जीवनपथ का अगला मोड़ क्या और कैसा होगा कोई नहीं जानता. आज जीवनपथ का ऐसा मोड़ मेरे समक्ष आ खड़ा हुआ था, जिस में मुझे अपने परिवार के प्रति अपने कर्तव्य एवं अपने प्यार में से किसी एक का चुनाव करना था.

मेरे जीवनपथ का प्रथम पड़ाव बचपन शुरू में काफी खुशहाल था. मैं अपने मातापिता की इकलौती संतान हूं. पापा बैंक में मैनेजर थे और मां कुशल गृहिणी. चूंकि पापा घर के बड़े बेटे थे और मां अच्छे स्वभाव की महिला थीं, इसलिए मेरी वृद्धा दादी हमारे साथ ही रहती थीं. मुझे मांबाप के साथ दादी का भी भरपूर स्नेहप्यार मिलता रहा. पटना के सब से अच्छे स्कूल में मेरा दाखिला करवाया गया था. पढ़ाई में मेरी विशेष दिलचस्पी थी और शुरू से ही मैं मेधावी रहा, इसलिए अच्छे अंक लाता था. पढ़ाई के साथसाथ खेलकूद, गायन आदि में भी मेरी विशेष रुचि थी. मुझे मांपापा का पूरा प्रोत्साहन मिलता रहा, इसलिए सभी क्षेत्रों में अच्छा कर मैं परिवार एवं स्कूल की आंखों का तारा बना रहा. मेरे जीवनपथ में अचानक ही अत्यंत कठिन और पथरीला मोड़ आ खड़ा हुआ. मैं उस समय कक्षा 8 में पढ़ता था. मांपापा का अचानक रोड ऐक्सीडैंट में देहांत हो गया. मेरे पास इस दुख को सहने की न तो बुद्धि थी न ही हिम्मत. मैं हताश और हारा हुआ सा सिर्फ रोता रहता था. उस कठिन समय में दादी ने मुझे ढाढ़स बंधाया और अपने छोटे बेटे यानी मेरे चाचाजी के घर मुझे ले आईं. मैं चाचा चाची के साथ जमशेदपुर में रहने लगा. उन का इकलौता बेटा पीयूष था. वह मुझ से 2 साल छोटा था. चाचाजी ने उसी के स्कूल में मेरा नाम लिखवा दिया. मैं वहां भी अच्छे अंकों से पास होने लगा.

चाचाचाची मेरी रहने, खानेपीने, पढ़नेलिखने आदि सभी व्यवस्था देखते, लेकिन मेरे और पीयूष के प्रति उन के व्यवहार में थोड़ा फर्क रहता. जैसे चाची मुझ से नजरें बचा कर पीयूष को कुछ स्पैशल खाने को देतीं. लेकिन पीयूष मेरे लाख मना करने पर भी उसे मुझ से शेयर करता. मैं चाचाचाची के सारे भेदभाव नजरअंदाज कर तहे दिल से उन का आभार मानता कि उन्होंने मुझ बेसहारा को सहारा तो दिया ही अच्छे स्कूल में मेरा नाम भी लिखवाया. मेरी दादी जब तक रहीं मुझ पर विशेष ध्यान देती रहीं, किंतु वे मांपापा के आकस्मिक निधन से अंदर तक टूट चुकी थीं. उन के जाने के 2 वर्ष बाद वे भी चल बसीं. चाचाचाची पीयूष की उच्च शिक्षा हेतु अकसर चर्चा करते किंतु मेरे संबंध में ऐसी कोई जिज्ञासा नहीं व्यक्त करते. मैं ने 12वीं की परीक्षा उच्च अंकों से पास की. फिर बी.कौम. करने के बाद बैंक परीक्षा में उत्तीर्ण हो कर मैं सरकारी बैंक में पी.ओ. बन गया. इत्तफाक से मेरी नियुक्ति जमशेदपुर में ही हुई, तो मैं चाचाचाची के साथ ही रहा. वैसे भी मेरी दिली इच्छा यही थी कि मैं चाचाचाची के साथ रह कर उन्हें सहयोग दूं क्योंकि दोनों को ही बढ़ती उम्र के साथसाथ स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं भी होने लगी थीं.

पीयूष ने बैंगलुरु से एम.बी.ए. किया. वहीं उस का एक मल्टीनैशनल कंपनी में सिलैक्शन हो गया. हम सभी उस की खुशी से खुश थे. उसे जल्दी ही अपनी जूनियर मिताली से प्यार हो गया, तो चाचाचाची ने उस की पसंद को सहर्ष स्वीकार करते हुए धूमधाम से उस का विवाह कर दिया. शादी के बाद पीयूष और मिताली बैंगलुरु लौट गए. पीयूष की शादी के बाद मेरा मन कुछ ज्यादा ही खालीपन महसूस करने लगा. उसी दौरान कविता ने कब इस में जगह बना ली मुझे पता ही नहीं चला. कविता मेरी ही बस से आतीजाती थी. सुंदर, सुशील, सभ्य कविता विशाल हृदय मालूम होती, क्योंकि हमेशा ही सब की सहायता हेतु तत्पर दिखाई देती. कभी किसी अंधे को सड़क पार करवाती, तो कभी किसी बच्चे की सहायता करती. बस में वृद्ध या गर्भवती महिला को तुरंत अपनी सीट औफर कर देती. मुझे उस की ये सब बातें बहुत अच्छी लगती थीं, क्योंकि वे मेरे स्वभाव से मेल खाती थीं. हम दोनों में छोटीछोटी बातें होने लगीं. धीरेधीरे हम एकदूसरे के लिए जगह रख, साथ ही जानेआने लगे. दोनों को एकदूसरे का साथ अच्छा लगता. मैं उस के प्रति आकर्षण महसूस करता किंतु चाह कर भी उस के सामने व्यक्त नहीं कर पाता. उस की दशा भी मेरे समान ही महसूस होती, क्योंकि उस की आंखों में चाहत, समर्पण दिखाई देता. किंतु शर्मोहया का बंधन उसे भी जकड़े हुए था.

मैं अपने विवाह हेतु चाची से चर्चा करना चाहता किंतु झिझक महसूस होती. कई बार पीयूष की मदद लेने का विचार आता किंतु वह अपनी नौकरी एवं गृहस्थी में ऐसा व्यस्त और मस्त था कि उस से चर्चा करने का अवसर ही नहीं मिल पाता. इस के अलावा उस का हमारे पास आना भी बहुत कम एवं सीमित समय के लिए हो पाता. उस दौरान मेरा संकोची स्वभाव कुछ व्यक्त नहीं कर पाता. मिताली के गर्भवती होने पर चाची उसे लंबी छुट्टी दिलवा कर अपने साथ ले आईं. 5 माह का गर्भ हो चुका था. चाची बड़ी लगन एवं जिम्मेदारी से उस की देखभाल करतीं, तो नए मेहमान के आगमन की खुशी से घर में हर समय त्योहार जैसा माहौल बना रहता. मैं अपने संकोची स्वभाव के कारण मिताली से थोड़ा दूरदूर ही रहता. हम दोनों में कभीकभी ही कुछ बात होती. जीवन अपनी गति से चल रहा था कि अचानक पीयूष का रोड ऐक्सीडैंट में देहांत हो गया. घर में मानो कुहराम मच गया. चाचाचाची का रोरो कर बुरा हाल था. मिताली तो पत्थर की मूर्ति सी बन गई. एकदम शांत, गमगीन. मैं स्वयं के साथसाथ सभी को संभालने की असफल कोशिश में लगा रहता. मिताली को समझाते हुए कहता कि मिताली कम से कम बच्चे के बारे में तो सोचो उस पर बुरा प्रभाव पड़ेगा, तो वह आंसू पोंछते हुए सुबकने लगती. पीयूष के जाने बाद हम सभी का जीवन रंगहीन, उमंगहीन हो गया था. हम सभी यंत्रवत अपनाअपना काम करते और एकदूसरे से नजरें चुराते हुए मालूम होते.

जीवनयात्रा की टेढ़ीमेढ़ी डगर मेरे मनमस्तिष्क में हलचल मचा रही थी. चाचाजी मिताली से विवाह करने की बात पर मेरा जवाब सुनना चाह रहे थे. वे मेरी सहमति की आस लगाए बैठे थे और मुझे ऐसा महसूस हो रहा था कि मेरा गुजरा कल आज मिताली के साथ में मेरे समक्ष आ खड़ा हुआ है. कल जब मैं अपने मातापिता से बिछुड़ कर चाचाचाची के समक्ष सहारे की उम्मीद लिए आ खड़ा हुआ था, यदि उस समय उन्होंने सहारा नहीं दिया होता तो मेरा जाने क्या होता. सत्य है इतिहास स्वयं को दोहराता है. वैसे चाचाजी यदि मेरी जान भी मांग लेते तो बिना सोचेविचारे मैं सहर्ष दे देता, किंतु चाचाजी ने मिताली से विवाह का प्रस्ताव रख मुझे असमंजस में डाल दिया था. मैं ने धीरे से कहा, ‘‘चाचाजी, मिताली को मैं ने हमेशा अपनी छोटी बहन माना है. ऐसे में भला मैं उस से शादी कैसे कर सकता हूं?’’

‘‘बेटा, तुम निराश करोगे तो हम कहां जाएंगे,’’ कहते हुए चाचाजी रो पड़े. मैं ने उन्हें संभालते हुए कहा, ‘‘चाचाजी, स्वयं को संभालिए. यों निराश होने से समस्या का समाधान कैसे निकलेगा? मैं नहीं जानता था कि आप लोग मिताली के पुनर्विवाह हेतु विचार कर रहे हैं. दरअसल, मेरा मित्र पंकज अपने विधुर भैया प्रसुन्न के लिए मुझ से मिताली का हाथ मांग रहा था, किंतु मैं उस के प्रस्ताव पर उस पर बिफर पड़ा था कि अभी बेचारी पीयूष के गम से उबर भी नहीं पाई है, उस का बच्चा मिताली के गर्भ में है, ऐसे में उस से मैं कहीं और शादी करने के लिए कैसे बोल सकता हूं. ‘‘उस ने मुझे समझाते हुए कहा था कि दोस्त गंभीरता से विचार कर. जो हुआ बहुत बुरा हुआ किंतु वह हो चुका है, तो अब उस से निकलने का उपाय सोचना होगा. मेरी भाभी बेटे के जन्म के साथ चल बसीं. आज बेटा डेढ़ वर्ष का हो गया है. मेरी मां बेटे प्रखर का पालनपोषण करती हैं किंतु वे बूढ़ी और बीमार हैं. भैया दूसरी शादी के लिए इसलिए इनकार कर देते हैं कि अगर उन की दूसरी पत्नी उन के जान से प्यारे प्रखर के साथ बुरा व्यवहार करेगी तो वे बरदाश्त नहीं कर पाएंगे. वही सिचुएशन मिताली के समक्ष भी आ खड़ी हुई है. लेकिन वह बेचारी जिंदगी किस सहारे निकालेगी?

‘‘उस ने मुझे विस्तार से समझाते हुए कहा कि देख दोस्त मेरे भैया और मिताली दोनों संयोगवश अपने जीवनसाथियों से बिछुड़ आधेअधूरे रह गए हैं. हम दोनों को मिला कर उन के जीवन को सरस एवं सफल बनाएं, यही सर्वथा उचित होगा. मैं ने बहुत चिंतनमनन के बाद तेरे समक्ष यह प्रस्ताव रखा है. दोनों एकदूसरे के बच्चे को अपना कर जीवनसाथी बन जाएं, इसी में दोनों का सुख है. जो घटित हुआ उसे तो बदला नहीं जा सकता, किंतु उन का भविष्य तो अवश्य सुधारा जा सकता है. ‘‘गंभीरता से विचार करने पर मुझे भी पंकज का प्रस्ताव उचित लगा, किंतु आप लोगों से इस के बारे में चर्चा करने का साहस मुझ में न था. आज आप ने चर्चा की तो कहने का साहस जुटा पाया.’’ चाचाजी मेरी बातें शांति से सुन रहे थे और समझ भी रहे थे, क्योंकि अब वे संतुष्ट नजर आ रहे थे. चाचीजी जो अब तक परदे की ओट से हमारी बातें सुन रही थीं, लपक कर हमारे सामने आ खड़ी हुईं और अधीरता से बोलीं, ‘‘बेटा, कैसे हैं पंकज के भैया? क्या करते हैं? उम्र क्या है उन की और क्या तू उन से मिला है? वगैरहवगैरह.’’

मैं ने उन को पलंग पर बैठाते हुए कहा, ‘‘चाचीजी, पहले आप इतमीनान से बैठिए. मैं सब बताता हूं. बड़े नेक और संस्कारवान इनसान हैं. सरकारी स्कूल में शिक्षक हैं और मेरी ही उम्र के होंगे, क्योंकि पंकज से 2 साल ही बड़े हैं. पंकज मुझ से लगभग 2 साल ही छोटा है. वैसे आप लोग पहले उन से मिल लीजिए, उस के बाद निर्णय लीजिएगा. मैं तो मिताली को देख कर चिंतित हो जाता हूं. समझ नहीं पाता हूं कि वह इस बात के लिए तैयार होगी या नहीं. अभी बेहद गुमसुम व गमगीन रहती है.’’

‘‘बेटा, तू चिंता न कर. उसे विवाह के लिए हम सभी को प्रोत्साहित करना होगा. विवाह होने से वह स्वयं को सुरक्षित महसूस करेगी जिस का प्रभाव गर्भ पर भी सकारात्मक पड़ेगा. बेटा, वह अभी स्वयं को अकेली एवं असुरक्षित महसूस करती होगी. एक औरत होने के नाते मैं उस की भावनाएं समझ सकती हूं. यदि उसे सहारा मिल जाएगा तब उसे दुनिया और जीवन प्रकाशवान लगने लगेगा. हम सब के सहयोग और प्रोत्साहन से वह सामान्य जीवन के प्रति अग्रसर हो जाएगी,’’ चाची ने समझाते हुए कहा. फिर चाची 2 मिनट बाद बोलीं, ‘‘बेटा पवन मिताली की शादी के बाद हम तेरी शादी भी कर देना चाहते हैं.’’

‘‘ठीक है चाची, लेकिन अभी हमें सिर्फ मिताली के संबंध में ही सोचना चाहिए. कच्ची उम्र में बड़ी विपदा उस पर आ पड़ी है.’’ ‘‘हां बेटा, बहुत दुख लगता है उसे यों मूर्त बना देख कर, लेकिन तेरी जिम्मेदारी भी पूरी कर देना चाहती हूं. कोई नजर में हो तो बता देना,’’ कहते हुए चाची ने स्नेह से मेरा सिर सहला दिया. मैं कविता को याद कर अहिस्ता से मुसकरा दिया. प्रसुन्न भैया के साथ मिताली की शादी कर दी गई. उन के प्यार, संरक्षण एवं हम सभी के स्नेह, सहयोग एवं प्रोत्साहन से मिताली ने स्वयं को संभाल लिया. समय से उस ने प्यारी सी बेटी को जन्म दिया, तो हम सभी को सारा संसार गुलजार महसूस होने लगा. सब से बड़ी बात तो यह हुई कि अब मिताली खुश रहने लगी. बच्ची के नामकरण हेतु घर में चर्चा होने लगी, तो मैं ने कहा, ‘‘प्रसुन्न भैया, आप ने बेटे का नाम प्रखर बहुत प्यारा एवं सारगर्भित रखा है. उसी तरह बेटी का नाम भी आप ही बताएं.’’

प्रसुन्न भैया 2 पल सोच कर मुसकराते हुए बोले, ‘‘मेरी बेटी का नाम होगा पीयूषा, जो है तो पीयूष की निशानी किंतु दुनिया उसे मेरी निशानी के रूप में पहचानेगी.’’ फिर प्यार से उन्होंने मिताली की ओर देखा. मिताली उन्हें आदर और प्यार से देखने लगी मानों कह रही हो कि आप को पा कर मैं धन्य हो गई.

Hindi Story : हादसा – क्या हुआ था नेमा के साथ?

Hindi Story : नेमा का कलेजा उन की हालत देखदेख कर बैठा जा रहा था. सोचने लगी, ‘पता नहीं कुदरत को क्या मंजूर है.’ वे दफ्तर से घर आते तो जैसे उन के बदन में जान ही न होती. पैर लड़खड़ा रहे होते, थकान और ऊब चेहरे पर हमेशा बढ़ी रहने वाली दाढ़ी की तरह छाई रहती. आंखें बुझी हुई, पलकें बोझिल, चेहरा उदास और चिंताग्रस्त. सीधे आ कर खाट पकड़ लेते. उठने और हाथमुंह धोने को कहती तो जैसे उन्हें बहुत कष्ट होता. कठिनाई से ही बिस्तर से उठ पाते.

नेमा चाय ला कर देती तो चुपचाप ले लेते. कांपती उंगलियों में प्याला हिलता रहता. डर लगता, कहीं वह हाथ से न छूट जाए और वे जल न जाएं. लंबी सांसें लेते हुए खाट पर लेटे घंटों छत ताकते रहते. शरीर पूरी तरह शिथिल और टूटा हुआ. कोई बात पूछती तो अंटशंट उत्तर दे देते. कुछ कहना चाहते तो जबान लड़खड़ाने लगती.

हादसे से अब तक उबर तो नेमा भी नहीं पाई थी लेकिन उस ने किसी तरह कलेजे पर पत्थर रख लिया था. कलपते मन को समझा लिया था, खासकर तब, जब उस ने पति को बुरी तरह उखड़ते और टूटते देखा तो वह सहसा डर ही गई. अगर उन्हें कुछ हो गया तो वह कहीं की न रहेगी. सब खेल ही बिगड़ जाएगा. पीछे 2 लड़कियां हैं, उन का क्या होगा?

अगर वह खुद ज्यादा पढ़ीलिखी होती तो शायद कुछ हौसला बना रहता. इन के दोस्तों से मिन्नतें कर के कहीं छोटीमोटी नौकरी पकड़ लेती और घरगृहस्थी किसी तरह खींच ले जाती. पर आजकल हाईस्कूल पास को कौन पढ़ालिखा मानता है. जब तक बड़ीबड़ी डिगरियां न हों, कौन पूछता है.

‘‘क्या बात है?’’ नेमा ने उन के पास जमीन पर बैठते हुए पूछा.

वे अजीब सी, खालीखाली नजरों से नेमा के चेहरे को ताकते रहे, जैसे पहचानने की कोशिश कर रहे हों कि यह कौन है और इस ने क्या पूछा है.

‘‘कुछ नहीं,’’ हमेशा की तरह उन का एक ही जवाब था.

‘‘फिर इस तरह क्यों दफ्तर से आ कर पड़ गए?’’ नेमा उन्हें धीरेधीरे कुरेदती, जिस से कि वे कुछ खुलें, उन का जी कुछ हलका हो. कुछ अपनी कहें, कुछ उस की सुनें.

‘‘नेमा, तुम्हें नहीं लगता कि अब जीना बिलकुल व्यर्थ है? किस लिए जीएं? क्यों जीएं? क्या मतलब रह गया है अब जिंदगी में?’’ ताबड़तोड़ तमाम सवाल पूछ लिए.

‘‘क्यों?’’ भीतर का हाहाकार नेमा ने बड़ी कठिनाई से अपने सीने में दबाया.

‘‘हमारे साथ बहुत बुरा हो चुका है. इस से बुरा और किसी के साथ क्या होगा और फिर इस हादसे के बाद जीने का

क्या अर्थ?’’

‘‘क्या तुम से ज्यादा बुरा दुनिया में कभी किसी के साथ नहीं घटा और न आगे घटेगा? क्या सब तुम्हारी तरह जिंदगी से हार मान लेते हैं? इंदिराजी का जवान बेटा हवाई दुर्घटना में मारा गया, क्या वह उन के जीवन की भीषण दुर्घटना नहीं थी? हत्यारों ने इंदिराजी की हत्या कर दी थी, क्या राजीव गांधी के लिए यह सब से बड़ी दुर्घटना नहीं थी? और खुद राजीव गांधी का इस तरह मारा जाना क्या सोनिया के जीवन की सब से बड़ी दुर्घटना नहीं है? इन दुर्घटनाओं के बाद भी क्या वे लोग जीवित नहीं रहे?’’

‘‘हम ने किसी का क्या बिगाड़ा था नेमा, जो कुदरत ने हमारे साथ यह छल किया?’’

‘‘जब तुम्हें पहली बार पता चला था, लड़का अपने मैडिकल कालेज में साथ पढ़ने वाली किसी धनी घर की सुंदर लड़की के पीछे दीवाना हो गया है तो तुम्हें लड़के को रोकना चाहिए था. अगर तुम डांट कर उसे रोकते तो मजाल थी कि वह उस रास्ते पर आगे कदम बढ़ाता.’’

काफी देर तक वे चुप बैठे रहे, जैसे कुछ सोच रहे हों. फिर कहीं बहुत पीछे छूट गए अतीत से उबरते हुए हंसने का प्रयास करने लगे, ‘‘जानती हो नेमा, मैं ने बेटे को ऐसा करने से क्यों नहीं रोका? हर बाप अपनी अधूरी आकांक्षाएं अपने बेटे के माध्यम से पूरी करना चाहता है. मैं जब विश्वविद्यालय में पढ़ता था तो हमारी कक्षा में भी एक लड़की पढ़ती थी, उमेरा बानू सफी. वह मुसलमान थी. एकदम कश्मीरी सेब जैसी और गोलमटोल. शायद उस से सुंदर लड़की संसार में कोई हो ही नहीं सकती थी, कम से कम मुझे तो यही लगता था उन दिनों.

‘‘वह नजरभर हमारी तरफ एक बार देख ले, इस के लिए भी हम लोग तरहतरह की हरकतें कक्षा में किया करते थे, लेकिन कितनी कठोरहृदया थी वह. जालिम ने कभी अपनी सीप सी निगाहें उठा कर मेरी ओर नहीं देखा.

‘‘आखिर मैं एक दिन उस के रास्ते में ही अड़ गया. वह कतरा कर निकलने को हुई, लेकिन मैं ने तो ठान रखा था, उस से टकरा ही गया. तब उस ने कुपित नजरों से मेरी ओर पहली बार ताका, ‘मैं आप को शरीफ लड़का मानती थी, आज पता चला कि आप भी कक्षा के छिछोरों की तरह ही हैं.’

‘‘मैं धीरे से बोला था, ‘माफ करना, बानू, आज के बाद तुम्हें मुझ से कोई शिकायत नहीं होगी. माफ कर दो इस बार.’

‘‘वह बिना कुछ कहे, हलके से मुसकरा कर आगे चली गई. मैं ठगा सा वहीं खड़ा रह गया. कक्षा में उस दिन से सारी हरकतें करनी बंद कर दीं. शरीफ बना रहा. परीक्षा में अंतिम पेपर के वक्त मैं ने उस से पूछा था, ‘बानू, अब…?’

‘‘‘अब क्या… अलविदा. मैं अब यहां पढ़ने नहीं आऊंगी. मुझे यहां का माहौल अच्छा नहीं लगा.’

‘‘‘मैं भी नहीं?’ मैं ने हकला कर पूछा था.

‘‘‘मेरे मातापिता बहुत कट्टर खयालों के हैं. वे अपनी बेटी को जहर दे कर मार देंगे या कुएं में धकेल देंगे, परंतु दूसरे धर्म, जाति के लड़के को नहीं सौंपेंगे. इसलिए यह सब सोचना बेकार है,’ सिर झुका कर कुछ पल खड़ी रही, ‘मुझे दुख है…मन से मैं भी आप से जुड़ गई थी, परंतु…’

‘‘उस का मन से जुड़ने का स्वीकार करना ही मुझे अरसे तक जिंदा बनाए रहा. मुझे कितना अच्छा लगता रहा, यह सोचसोच कर कि कक्षा की नहीं बल्कि दुनिया की सब से खूबसूरत लड़की ने

भी मुझे मन से पसंद किया. मिल नहीं पाई, परंतु…’’

‘‘इसलिए लड़के को भी नहीं रोका?’’

‘‘कैसे रोकता? खबर मिलने पर जब कालेज गया और उस लड़की को देखा तो मैं अपनी उमेरा बानू सफी की शक्ल को उस लड़की के चेहरे में ताकता रह गया. मुझे रहरह कर लगा कि यह तो वही है, परंतु वह मुसलमान नहीं थी, हिंदू ही थी और उस के मातापिता भी उतने ही कट्टर थे. नतीजा हुआ, उन्होंने लड़के को धमकाया कि लड़की का पीछा छोड़ दो वरना जान से हाथ धो बैठोगे. मांबाप के डाक्टर बनाने के सारे अरमान धरे के धरे रह जाएंगे.

‘‘लड़के ने उन की बात को वैसे ही लिया जैसे हिंदी फिल्म में हीरो लेता है. लड़की राजी हो गई थी इसलिए हौसला बढ़ गया था कि अंत में सफलता मिलेगी. परंतु उन जालिमों ने 20 हजार रुपए दे कर 1 गुंडा पीछे लगा दिया और उस ने एक शाम सिनेमा से लौटते समय उसे चाकू घोंप दिया. मैडिकल कालेज तक नहीं आ पाया मेरा बेटा. रास्ते में ही दम तोड़ दिया उस ने. सबकुछ खत्म हो गया, नेमा. वह मैडिकल की अंतिम कक्षा में था, 6 महीने बाद ही वह डाक्टर बन कर निकल आता, परंतु…’’ उन का स्वर लड़खड़ा गया, आवाज डूब गई और पलकें नम हो उठीं.

नेमा ने अपने चेहरे को पल्लू से ढक लिया और देर तक पास बैठी सिसकती रही.

जाने क्यों, बेटा क्या गया, उन्हें लगता, वे ही खत्म हो गए हैं. बेटे के साथ जुड़ी उन की सारी तमन्नाएं, भविष्य की सारी कल्पनाएं, सारे सपने ही उन से छीन लिए गए हैं. अब सिर्फ अंधकार रह गया है, ठाठें मारता अंधकार का अतल समुद्र, जिस में वे बेकार जीने की उम्मीद में हाथपांव मार रहे हैं. उन्हें नहीं लगता, अब वे उस सागर को पार कर पाएंगे और उन्हें कोई किनारा मिल पाएगा.

जिंदगी जैसे पूरी तरह हाथ से फिसल चुकी है. निराशा के गहन गर्त में वे समा चुके हैं और अब उस से उबर सकना असंभव है. दफ्तर जाते हैं, सिर झुकाए चुपचाप काम करते रहते हैं. न वे किसी से बोलते हैं न कोई उन से बोलता है. सब के मन में उन को ले कर एक सहानुभूति है. यहां तक कि गलतियां कर जाते हैं तो अफसर तक उन पर नहीं बिगड़ते. दूसरे को बुला कर उन की गलतियां सुधारने को कह देते हैं.

जबरदस्त निराशा उन के भीतर घर कर गई है. जीवन का मोह छूट गया है. किसी काम में उन की रुचि नहीं रह गई है. पहले वे बहुत लगन से काम करते थे. अफसर उन के काम के बहुत प्रशंसक थे. वही लिहाज अब तक चला आ रहा था.

रात को सोते हैं तो हर वक्त डरावने सपने आते रहते हैं. नींद बीचबीच में चीख निकलने के कारण खुल जाती है. नेमा और दोनों लड़कियां उन की चीख से डर कर जाग जाती हैं और उन के बिस्तर के पास आ उन्हें झिंझोड़ने लगती हैं, ‘‘क्या हुआ, पिताजी? कोई बुरा सपना देखा क्या?’’

‘‘बुरा…?’’ वे घबरा कर उखड़ी आवाज में कहते हैं, ‘‘क्या इन स्थितियों

में कोई अच्छे सपने भी देख सकता है, बेटी?’’

नींद ठीक से नहीं आती. कभी सुबह बहुत जल्दी आंख खुल जाती है, कभी बहुत देर तक सोते रहते हैं. बेवजह, दफ्तर जाने से इनकार कर देते हैं और चुपचाप सारा दिन खाट पर पड़े छत ताकते रहते हैं. भूख नहीं लगती. बमुश्किल एकदो रोटियां खाते हैं. मिठाई बहुत पसंद थी उन्हें. अब कोई मिठाई रख दो, उस की तरफ देखते तक नहीं.

वजन घटता जा रहा है. सूख कर कांटा होते जा रहे हैं. मृत्यु या आत्महत्या के विचार हर वक्त उन के दिल में उठते रहते हैं. रेल की पटरी पर जा लेटें या पुल से नदी में छलांग लगा लें? किसी ट्रक से टकरा जाएं या दफ्तर की बहुमंजिली इमारत से नीचे छलांग लगा दें.

घर से सुबह दफ्तर को निकलते हैं और दफ्तर नहीं पहुंचते. 11-12 बजे दफ्तर से किसी न किसी साथी का पड़ोस में फोन आता है कि आज दफ्तर नहीं आएंगे क्या?

सुन कर नेमा आशंकाओं से घिर कर घबरा उठती है कि कहीं सचमुच ही…

तब वह अपनी बेटियों के साथ उन्हें खोजने निकल पड़ती है. वह कभी किसी पार्क में बैंच पर सूनीसूनी आंखों से आसमान ताकते बैठे मिलते हैं या किसी पुल पर या रेलवे लाइन के नजदीक. दहशत से मांबेटियां रोने लगती हैं. पर उन पर कोई प्रतिक्रिया नहीं होती.

कभीकभी वे दफ्तर से घर को निकलते हैं और घर नहीं पहुंचते. रास्ते में ही कहीं थक कर बैठ जाते हैं और वहीं घंटों बैठे रहते हैं. अपने आसपास के यातायात से बिलकुल बेखबर और तटस्थ. उन्हें खयाल ही नहीं रहता कि उन्हें घर जाना है. वे अब किसी एक विषय पर अपना ध्यान एकाग्र नहीं कर पाते. घर हो या दफ्तर, कहीं कोई निर्णय नहीं ले पाते. घर में निर्णय के लिए वे नेमा पर सब छोड़ देते हैं और दफ्तर में अपने साथियों पर. जो फैसला वे कर दें, उसे चुपचाप स्वीकार कर लेते हैं.

कोई हंसीमजाक करने की कोशिश करता तो चिढ़ जाते, अकारण दुखी हो जाते और उन की आंखें डबडबा आतीं. लोग फिर उन से कुछ कहने का साहस न करते. हर वक्त वे सिरदर्द की कोई न कोई गोली लेते रहते और सिर के किसी न किसी हिस्से को हर वक्त दबाते रहते, जैसे उस हिस्से में कहीं उन्हें दर्द अनुभव हो रहा हो.

अफसर भी उन्हें परिचित डाक्टर को दिखा चुके हैं. नेमा भी कई डाक्टरों को दिखा चुकी है और उन के साथी भी.

हर डाक्टर की एक ही राय है कि उन्हें कोई शारीरिक रोग नहीं है. जीवन से ऊब गए हैं. जीवन का मोह नहीं रह गया. नैराश्य और विषाद से ग्रस्त हो गए हैं. उबरने का एक ही रास्ता है, किसी तरह जिंदगी में रुचि लेने लगें, अपनी पत्नी और बच्चों में रमने लगें, ठीक हो जाएंगे. जिंदगी से यह बेजारी खत्म होनी जरूरी है.

लेकिन यह सब हो कैसे? यह न नेमा की समझ में आता है न उन के हितैषियों की समझ में.

एक दिन ऐसे ही विषाद से घिरे वे   चुपचाप अपने बिस्तर पर पड़े थे,

जब उन की छोटी बेटी ने चहकते हुए अचानक उन से लिपटते हुए कहा, ‘‘लो पिताजी, मैं अब भैया की जगह डाक्टर बन कर आप को दिखाऊंगी. देखिए, मैडिकल प्रवेश परीक्षा का यह परिणाम. मेरा रोल नंबर छपा है. मुझे मैडिकल में दाखिला मिल गया. बोलिए, पढ़ाएंगे न हमें उसी तरह, जैसे भैया को पढ़ा रहे थे? मानेंगे अपना बेटा मुझे?’’

नेमा दौड़ी हुई रसोई से बाहर आई और भौचक सी उन की ओर ताकती रही. उसे लगा, जैसे उन के चुसे हुए पीले चेहरे पर कहीं जिंदगी की लकीरें उभरने लगी हैं. उन की आंखों के बुझे दीए एकाएक ही जैसे फिर जगमगाने लगे हैं और चेहरा धीरेधीरे सिमटी, सहमी अवस्था से उबर कर खिलने लगा है.

उन्हें जैसे बेटी पर भरोसा नहीं होता. संशय के बावजूद वे बेटी को बांहों में समेट कर चूमने लगते हैं और उन की आंखों से झरझर आंसू बहने लगते हैं.

Love Story : दिव्या आर्यन – जब दो अनजानी राहों में मिले धोखा खा चुके हमराही

Love Story : ‘पता नहीं बस और गाड़ियों में रात में भी एसी क्यों चलाया जाता है, माना कि गरमी से नज़ात पाने के लिए एसी का चलाया जाना ज़रूरी है पर तब क्यों जब ज्यादा गरमी न हो,’ बस की खिड़की से बाहर देखती हुई दिव्या सोच रही थी. मन नहीं माना तो उस ने खिड़की को ज़रा सा खिसका भर दिया, एक हवा का झोंका आया और दिव्या की ज़ुल्फों से अठखेलियाँ करते हुए गुज़र गया.

कोई टोक न दे, इसलिए धीरे से खिड़की को वापस बंद कर दिया दिव्या ने. दिव्या जो आज अपने कसबे लालपुर से शहर को जा रही थी. वहां उसे कुछ दिन रुकना था. उस ने शहर के एक होटल में एक सिंगल रूम की बुकिंग पहले से ही करा रखी थी.

चर्रचर्र की आवाज़ के साथ बस रुकी. दिव्या ने बाहर की ओर देखा तो पाया कि पुलिसचेक है. शायद स्वतंत्रता दिवस करीब है, इसीलिए पुलिस वाले हर बस को रोक कर गहन तलाशी करते हैं. हरेक व्यक्ति की तलाशी और आईडी चेक होती है. पुलिस की चेकिंग के बाद बस आगे बढ़ी.

अब भी आधा सफर बाकी था. ‘अब तो लगता है मुझे पहुंचने में काफी रात हो जाएगी. तब, बसस्टैंड से होटल तक जाने में परेशानी होगी,’ दिव्या सोच रही थी.

ऐसा हुआ भी.

बस को शहर पहुंचने में काफी रात हो गई. दिव्या ने अपना सामान उठाया और किसी रिकशे या कैब वाले को देखने लगी. कई औटो रिकशे वाले खड़े थे पर उन में से कुछ ने होटल तक जाने से मना कर दिया तो कुछ औटो में ही सो रहे थे जबकि कुछ में ड्राइवर थे ही नहीं.

परेशान हो उठी दिव्या, ‘अगर कोई सवारी नहीं मिली तो मैं होटल कैसे जाऊंगी और बाकी की रात यहां कैसे बिताऊंगी!’

तभी उस की नज़र कोने में खड़े एक औटो पर पड़ी. दिव्या उस की तरफ गई तो देखा कि ड्राइवर उस के अंदर बैठबैठे हुआ सो रहा है.

“ए औटो वाले, खाली हो, होटल रीगल तक चलोगे?” दिव्या का स्वर पता नहीं क्यों तेज़ हो गया था. उस की आवाज़ सुन कर वह उठ गया और इधरउधर देखने लगा.

“ज…जी, वह आखिरी बस आ गई क्या? मैं ज़रा सो गया था. हां, बताइए मैडम, कहां जाना है?”

“होटल रीगल जाना है मुझे,” दिव्या बोली थी.

“हां जी, बैठिए,” कह कर उस ने औटो स्टार्ट कर के आगे बढ़ा दिया.

“होटल रीगल यहां से कितनी दूर होगा?” दिव्या ने पूछा

“वह मैडम, कुछ नहीं तो 16 किलोमीटर तो पड़ ही जाएगा. बात ऐसी है न मैडम, कि यह बसस्टैंड शहर के काफी बाहर और सुनसान जगह पर बनवा दिया गया है, इसीलिए यहां से हर चीज़ दूर पड़ती है. पर, आप घबराइए मत, हम अभी पहुंचाए देते हैं,” औटो वाले ने जवाब दिया.

औटो वाले का चेहरा तो नहीं दिख रहा था पर उस के कान में एक चेन में पिरोया हुआ कोई बुंदा पहना हुआ था, जो बारबार बाहर की चमक पड़ने पर रोशनी बिखेर देता था. उस चमक से बारबार दिव्या का ध्यान औटो वाले के कानों पर चला जाता.

अचानक से औटो के अंदर रोशनी सी भर गई. औटो वाले और दिव्या दोनों का ध्यान उस रोशनी पर गया. 4 लड़के थे जो अपनी बाइक की हेडलाइट को जानबूझ कर औटो के अंदर तक पंहुचा रहे थे .

इन को भी कहीं जाना होगा, ऐसा सोच कर दिव्या ने अपना ध्यान वहां से हटा लिया पर औटो वाले की आंखें लगातार पीछे आने वाली बाइकों पर थीं और वह उन लोगों की नीयत भांप चुका था.

अचानक से औटो वाले ने अपनी गति बढ़ा दी जितनी बढ़ा सकता था और औटो को मुख्य सड़क से हटा कर किसी और सड़क पर चलाने लगा.

“क्या हुआ, यह तुम इतनी तेज़ क्यों चला रहे हो और औटो को किस दिशा में ले जा रहे हो? बात क्या है आखिर?” दिव्या ने कई सवाल दाग दिए.

“जी, कुछ नहीं मैडम, आप डरिए नहीं. दरअसल, इस शहर में कुछ भेड़िए इंसानी भेष में रोज़ रात को लड़कियों का मांस नोचने के लिए निकल पड़ते हैं और आज इन लोगों ने आप को अकेले देख लिया है. पर आप घबराइए नहीं, मैं इन के मंसूबे कामयाब नहीं होने दूंगा,” आंखों को रास्ते और साइड मिरर पर जमाए हुए औटो वाला बोल रहा था.

पीछे आती हुई बाइकों ने अपनी गति और बढ़ा दी और वे औटो के बराबर में आने लगे .

औटो वाले ने अचानक औटो को एक दिशा में लहरा दिया और औटो के लहराने से बाइक वाला संभल नहीं पाया और बाइक कंट्रोल से बाहर हो गई. और वह लहराता हुआ गिर गया.

अपने साथी को गिरा देख कर दूसरा गुस्से में भर गया और बाइक चलाते हुए अंदर बैठी दिव्या के बराबर हाथ पहुंचाया. तुरंत ही दिव्या ने अपने साथ में लाए हुए लेडीज़ छाते का एक ज़ोरदार वार उस के हेलमेट पर कर दिया. इस अप्रत्याशित वार से वह भी बाइक समेत गिर गया. अपने 2 साथियों के चोटिल होने के बाद बाकी के दोनों सवारों का हौसला टूट गया उन दोनों ने पीछे आना छोड़ कर अपनी बाइकों को मोड़ लिया.

उन गुंडों से पीछा छुड़ाने के चक्कर में औटो मुख्य सड़क से भटक कर पास में छोटी सड़क पर चलने लगा था और औटोवाला ड्राइवर बगैर इस बात का ध्यान करे औटो भगाता जा रहा था. और अब जब उसे इस बात का भान हुआ तब तक औटो शहर के किसी दूसरे हिस्से में आ गया था. वहां चारों और घुप्प अंधेरा था. बस, जितनी दूर औटो की रोशनी जाती उतना ही रास्ता दिखाई दे रहा था.

औटो चला जा रहा था. तभी अचानक औटो से खटाक की आवाज़ आई और औटो रुक गया. औटो ड्राइवर को जितनी तकनीक मालूम थी वह सबकुछ अपना लिया. पर कुछ न हो सका .

“मैडम, अफ़सोस की बात है, हम शहर के किसी बाहरी हिस्से में आ गए हैं और वापसी का कोई उपाय नहीं है. अब हमें रात यही कहीं काटनी होगी.”

“क्या मतलब, यहां कहां और कैसे?”

“अब क्या करें मैडम, मजबूरी है,” औटोवाला युवक बोला, फिर कहने लगा, “वह सामने आसमान में ऊंचाई पर एक लाल बल्ब चमक रहा है, वहां चलते हैं. ज़रूर वहां हमे सिर छिपाने लायक जगह मिल जाएगी.” अपनी उंगली दिखाते हुए उस ने कहा और एक झटके से दिव्या का बैग उठा लिया और तेज़ी से चल पड़ा.

उस का अंदाज़ा सही था. यह एक निर्माणाधीन बहुमंज़िली इमारत थी, जिस के एक हिस्से में कुछ मज़दूर सो रहे थे और बाकी की इमारत खाली थी. दोनों चलते हुए ऊपर वाले फ्लोर पर पहुंचे और एक कोने में सामान रख दिया.

यह सब दिव्या को बड़ा अजीब लग रहा था और वह यह भी सोच रही थी, एक अजनबी के साथ वह इतनी देर से है, फिर भी उसे कोई असुरक्षा का भाव क्यों नहीं आ रहा है?

“इधर आ जाइए, हवा अच्छी आ रही है,” युवक ने बालकनी में आवाज़ देते हुए कहा.

“वैसे, तुम्हारा नाम क्या है?” अचानक से दिव्या ने पूछा.

“ज जी, मेरा नाम आर्यन है,” युवक ने थोड़ा झिझकते हुए उत्तर दिया.

” भाई वाह, क्या नाम है, वैरी गुड़,” दिव्या ने अपने पर्स में रखे हुए बिस्कुट निकाल कर आर्यन की ओर बढ़ाते हुए कहा.

“जी मैडम, बात ऐसी है कि मेरी मां शाहरुख खान की बहुत बड़ी फैन थी और जब ‘मोहब्बतें’ फिल्म रिलीज़ हुई न, तब मैं उस के पेट में था और तभी उस ने सोच लिया था कि अगर बेटा पैदा हुआ तो उस का नाम आर्यन रखेगी.”

आर्यन की सरल बातें सुन कर बिना मुसकराए न रह सकी दिव्या. पानी पीते हुए घड़ी पर निगाह डाली तो अभी रात का 2 बज रहा था. अभी तो पूरी रात यहीं काटनी है, इस गरज से दिव्या ने बातचीत जारी रखी.

“दिखने में तो खूबसूरत लगते हो और पढ़े लिखे भी. फिर, यह औटो चलाने की जगह कोई नौकरी क्यों नहीं करते?” दिव्या ने पूछा.

“मैडम, मैं ने एमए किया है वह भी इंग्लिश में. पर आजकल इस पढ़ाई से कुछ नहीं होता. या तो बहुत बड़ी डिग्री हो या फिर किसी की सिफारिश. और अपने पास दोनों ही नहीं. मरता क्या न करता, इसलिए औटो लाने लगा.

“ऊं…मोहब्बतें… तो कुछ अपनी मोहब्बत के बारे में भी बताओ. किसी लड़की से प्यारव्यार भी हुआ है या फिर…?” दिव्या ने पूछा.

उस की इस बात पर पहले तो आर्यन कुछ शरमा सा गया, फिर उस की आंखों में गुस्सा उत्तर आया, बोला, “हां मैडम, मुझे भी प्यार हुआ तो था पर अफ़सोस कि लड़की ने धोखा दे दिया…एक दिन मैं औटो ले कर घर वापस जा रहा था. तभी सड़क के किनारे मैं ने देखा कि एक लड़का पड़ा हुआ है. उस के सिर से खून बह रहा है और भीड़ मोबाइल से वीडियो बना रही है. कोई उस लड़के को अस्पताल ले कर नहीं जा रहा. उस लड़के के साथ एक बदहवास सी लड़की भी थी. मुझे उन दोनों पर दया आई और इंसानियत के नाते मैं ने उन दोनों को अस्पताल पहुंचाया. “अस्पताल में उस लड़के को जब खून की ज़रूरत पड़ी तो उस लड़की ने मुझ से मदद मांगी. मुझ से कहा कि वह लड़का उस का भाई है और खून का इंतज़ाम करना है.

“मैं क्या करता, मैं ने अपना खून उस लड़के को दिया और उस की जान बचाई. उस लड़की ने मुझे शुक्रिया कहा और बदले में मेरे को अपने घर का पता व अपना मोबाइल नंबर दिया, साथ ही मेरा नंबर लिया भी. और फिर रोज़ सुबह ही उस लड़की का व्हाट्सऐप्प पर मैसेज आता और चैटिंग भी करती. वह मुझ से पूछती कि वह उसे कैसी लगती है. और इसी तरह की कई दूसरी बातें भी पूछती थी.

“एक दिन मेरे मोबाइल पर उसी लड़की का फोन आया और उस ने मुझे अपने घर पर बुलाया. मैं उस से मिलने के लिए आतुर था, इसलिए तैयार हो कर उस के घर पहुंच गया. पता नहीं क्यों मुझे लगने लगा था कि वह लड़की मुझ से प्यार करने लगी है, इसलिए मैं उस के लिए एक लाल गुलाब भी ले कर गया था. जब मैं वहां पहुंचा तो उस ने मेरा खूब स्वागत भी किया. उस के घर में सिर्फ उस की मां ही रहती थी पर उस दिन वह कहीं गई हुई थी.

“जब मैं ने उस लड़की से पूछा कि उस का वह भाई कहां है तो उस ने बताया कि वह भी मां के साथ ही कहीं गया है. अकेलापन देख कर मैं ने उस लड़की को शादी का प्रस्ताव दे डाला.

“अभी तक उस लड़की ने मेरा नाम नहीं पूछा था. नाम पूछने पर जब मैं ने उसे अपना नाम आर्यन डिसूजा बताया तब उस ने मेरे ईसाई होने पर सवाल खड़ा कर दिया और निराश हो कर कहने लगी, ‘मुझे भूल जाओ. मैं शादी तुम से नहीं कर सकती क्योंकि मेरी मां और पापा कट्टर हिंदू हैं, वे किसी गैरधर्म वाले लड़के से मेरी शादी नहीं करेंगे.’ हालांकि उस के भाई को खून देने को ले कर किसी को कोई एतराज नहीं था पर शादी की बात आते ही जातिधर्म सब आ गया. बस मैडम, मेरी पहली और आखिरी कहानी यही थी,” यह कह कर आर्यन चुप हो गया.

“काफी अजीब कहानी है तुम्हारे प्यार की. पर है बहुत ही इमोशनल और नई सी. इस पर कोई फिल्म वाला एक फिल्म बना सकता है,” दिव्या ने हंसते हुए कहा.

“हां जी, हो सकता है. पर आप ने कुछ अपने बारे में नहीं बताया, मसलन आप के मांबाप?” आर्यन भी दिव्या की प्रेमकथा ही जानना चाहता था, पर वह बात कहने की हिम्मत नहीं कर पाया, इसलिए मांबाप का नाम ले लिया.

“मेरे बाप एक फार्मा कंपनी में काम करते थे. उन का सेल्स का काम था, तो अकसर घर के बाहर रहते. घर में सबकुछ था, ज्यादा नहीं तो कम भी नहीं. जब वे घर आते तो हम सब को खूब समय और तोहफे भी देते…” कहतेकहते चुप हो गई दिव्या.

“जी, और आप की मां?”

“मां, अब उस के बारे में क्या बताऊं. उस का पेट हर तरह से भरा हुआ था- रुपए से, पैसे से. पर कुछ औरतों को अपने जिस्म की भूख मिटाने के लिए रोज़ एक नया मर्द चाहिए होता है न, कुछ ऐसी ही थी मेरी मां. वह कहीं भी जाती तो अपने लिए गुर्गा तलाश ही लेती और उसे अपना फोन नंबर दे देती. और जब वह आदमी घर तक आ जाता तो मुझे किसी बहाने से घर के बाहर भेज देती और उस आदमी के साथ जिस्मानी ताल्लुकात बनाती.

“धीरेधीरे उस की बेशर्मी इतनी बढ़ गई थी कि वह मेरे सामने ही किसी भी गैरमर्द के साथ प्रेम की अठखेलियां करने लगती. उस की ये हरकतें पापा को पता चलीं, तो उन्होंने तुरंत ही उसे तलाक़ दे दिया और मुझे मां के पास ही छोड़ दिया. तलाक़ के बाद मां को सम्भल जाना चाहिए था, पर वह और भी निरंकुश हो गई. “अब तो आदमी आते और घर पर ही पड़े रहते, बल्कि आदमी लोग शिफ्टों में आने लगे थे और मेरी मां जीभर सेक्स का मज़ा लेती थी. मां की हरकतें देख कर मैं ने अपने घर की छत पर जा कर आत्महत्या करने की कोशिश की, पर तभी मेरे पड़ोस में रहने वाले लड़के ने अपनी जान पर खेलते हुए मेरी जान बचाई.

“मुझे किसी का सहारा चाहिए था. मैं उस लड़के के कंधे पर सिर रख कर खूब रोई. मैं सिसकियों में बंध सी गई थी.

उस लड़के ने मुझे ऐसे वक्त में सहारा दिया कि मुझे उस से प्यार हो जाना स्वाभाविक ही था. प्यार तो उस को भी मुझ से हो गया था पर हमारी शादी के बीच मेरी मां का दुष्चरित्र आ गया और उस लड़के ने मुझ से साफ कह दिया कि उस के मांबाप किसी ऐसी लड़की से उस की शादी नहीं कराना चाहते जिस की तलाकशुदा मां कई मर्दों से सम्बन्ध रखती हो,” इतना कह कर चुप हो गई थी दिव्या.

दोनों चुप थे. रात का सन्नाटा भी बखूबी उन का साथ दे रहा था. हवा आआ कर अब भी कभीकभी दिव्या की ज़ुल्फों को उड़ा दे रही थी, जिन्हें वह परेशान हो कर बारबार संभालती थी.

“पर मैडम, मेरी कहानी कुछ नई लग सकती है आप को पर आप की कहानी में तो दर्द के अलावा कुछ नहीं है” पास में बैठे हुए आर्यन ने कहा.

प्रतिउत्तर में कोई जवाब नहीं आया, सिर्फ एक छोटी सी सिसकी ही आई जिसे चाह कर भी दिव्या छिपा न सकी थी.

“क्या तुम रो रही हो?” आर्यन ने पूछा.

बिना कोई उत्तर दिए ही आर्यन के सीने से लिपट गई दिव्या…रोती रही…शायद बचपन से ले कर अब तक कोई कंधा नहीं नसीब हुआ था उसे जिस पर वह सिर रख सके. रोती रही वह जब तक उस का मन हलका नहीं हो गया.

और आर्यन ने भी अपनी मज़बूत बांहों का घेरा दिव्या के गिर्द डाल दिया था. और दिव्या के माथे पर चुम्बन अंकित कर दिया. वह खामोश इमारत अब उन के मिलन की गवाह बन रही थी.

सूरज की पहली किरण फूटी पर वे दोनों अब भी किसी लता की तरह एकदूसरे से लिपटे हुए थे.

तभी दूर से एक दुग्ध वाहन आता हुआ दिखाई दिया. दिव्या ने आर्यन का हाथ पकड़ा और आर्यन ने बैग उठाया और दोनों ने दौड़ कर उस वाहन में लिफ्ट मांगी.

“हम कहां जा रहे हैं …और मेरा औटो तो वहीं रह गया मैडम,” आर्यन ने पूछा.

“अगर तुम्हें कोई और काम मिले तो क्या तुम करोगे ?” दिव्या ने आर्यन की आंखों में झांकते हुए कहा.

“हां मैडम, क्यों नहीं करूंगा.”

“पर हो सकता है तुम्हें उम्रभर मेरा साथ देना पड़े?”

“हां, पर तुम्हें साथ देना होगा तो ही करूंगा मैडम.”

“मैडम नहीं, दिव्या नाम है मेरा,” दिव्या ने कहा.

बदले में आर्यन सिर्फ मुसकरा कर रह गया.

शहर आ गया था. दोनों पूछतेपाछते होटल रीगल पहुंच गए.

रिसेप्शन पर जा कर दिव्या ने मैनेजर से कहा, “जी, मैं ने अपने लिए एक सिंगल बैडरूम बुक कराया था. मुझे आने में देर हो गई. पर, अब मुझे सिंगल नहीं बल्कि डबल बैडरूम चाहिए.”

“जी मैडम, किस नाम से रूम बुक था?” मैनेजर ने पूछा.

“मेरा कमरा दिव्या नाम से बुक था. पर अब आप रजिस्टर में मेरे पति आर्यन डिसूजा और दिव्या डिसूजा का नाम लिख सकते हैं,” दिव्या ने आर्यन की तरफ देखते हुए कहा.

लेखक- नीरज कुमार मिश्रा

Romantic Story : बेइज्जती – रसिया के जिस्म को देख पागल हुआ अजीत

Romantic Story : करिश्मा और रसिया भैरव गांव से शहर के एक कालेज में साथसाथ पढ़ने जाती थीं. साथसाथ रहने से उन दोनों में गहरी दोस्ती हो गई थी. उन का एकदूसरे के घरों में आनाजाना भी शुरू हो गया था.

करिश्मा के छोटे भाई अजीत ने रसिया को पहली बार देखा, तो उस की खूबसूरती को देखता रह गया. रसिया के कसे हुए उभार, सांचे में ढला बदन और रस भरे गुलाबी होंठ मदहोश करने वाले थे.

रसिया ने एक दिन महसूस किया कि कोई लड़का छिपछिप कर उसे देखता है. उस ने करिश्मा से पूछा, ‘‘वह लड़का कौन है, जो मुझे घूरता है?’’

‘‘वह…’’ कह कर करिश्मा हंसी और बोली, ‘‘वह तो मेरा छोटा भाई अजीत है. तुम इतनी खूबसूरत हो कि तुम्हें कोई भी देखता रह जाए…

‘‘ठहरो, मैं उसे बुलाती हूं,’’ इतना कह कर उस ने अजीत को पुकारा, जो दूसरे कमरे में खड़ा सब सुन रहा था.

‘‘आता हूं…’’ कहते हुए अजीत करिश्मा और रसिया के सामने ऐसा भोला बन कर आया, जैसे उस की चोरी पकड़ी गई हो.

करिश्मा ने बनावटी गुस्सा करते हुए पूछा, ‘‘अजीत, तुम मेरी सहेली रसिया को घूरघूर कर देखते हो क्या?’’

‘‘घूरघूर कर तो नहीं, पर मैं जानने की कोशिश जरूर करता हूं कि ये कौन हैं, जो अकसर तुम से मिलने आया करती हैं,’’ अजीत ने कहा.

‘‘यह बात तो तुम मुझ से भी पूछ सकते थे. लो, अभी बता देती हूं. यह मेरी सहेली रसिया है.’’

‘‘रसिया… बड़ा प्यारा नाम है,’’ अजीत ने मुसकराते हुए कहा, तो करिश्मा ने रसिया से अपने भाई का परिचय कराते हुए कहा, ‘‘रसिया, यह मेरा छोटा भाई अजीत है. इसे अच्छी तरह पहचान लो, फिर न कहना कि तुम्हें घूर रहा था.’’

‘‘ओ हो अजीत… मैं हूं रसिया. क्या तुम मुझ से दोस्ती करोगे?’’ रसिया ने पूछा.

‘‘क्यों नहीं, क्यों नहीं…’’ कहते हुए अजीत ने जोश के साथ अपना हाथ उस की ओर बढ़ाया.

रसिया ने उस से हाथ मिलाते हुए कहा, ‘‘अजीत, तुम से मिल कर खुशी हुई. वैसे, तुम करते क्या हो?’’

‘‘मैं कालेज में पढ़ता हूं. जल्दी पढ़ाई खत्म कर के नौकरी करूंगा, ताकि अपनी बहन की शादी कर सकूं.’’

रसिया जोर से हंस पड़ी. उस के हंसने से उस के उभार कांपने लगे. यह देख कर अजीत के दिल की धड़कनें बढ़ गईं.

तभी रसिया ने कहा, ‘‘वाह अजीत, वाह, तुम तो जरूरत से ज्यादा समझदार हो गए हो. सिर्फ बहन की शादी करने का इरादा है या अपनी भी शादी करोगे?’’

‘‘अपनी भी शादी कर लूंगा, अगर तुम्हारी जैसी खूबसूरत लड़की मिली तो…’’ कहते हुए अजीत वहां से चला गया.

रात में जब अजीत अपने बिस्तर पर लेटा, तो रसिया के खयालों में खोने लगा. उसे बारबार रसिया के दोनों उभार कांपते दिखाई दे रहे थे. वह सिहर उठा.

2 दिन बाद अजीत रसिया से फिर अपने घर पर मिला. हंसीहंसी में रसिया ने उस से कह दिया, ‘‘अजीत, तुम मुझे बहुत प्यारे और अच्छे लगते हो.’’

अजीत को ऐसा लगा, मानो रसिया उस की ओर खिंच रही है. अजीत बोला, ‘‘रसिया, तुम भी मुझे बहुत अच्छी लगती हो. तुम मुझ से शादी करोगी?’’

यह सुन कर रसिया को हैरानी हुई. उस ने हड़बड़ा कर कहा, ‘‘तुम ने मेरे कहने का गलत मतलब लगाया है. तुम नहीं जानते कि मैं निचली जाति की हूं? ऐसा खयाल भी अपने मन में मत लाना. तुम्हारा समाज मुझे नफरत की निगाह से देखेगा. वेसे भी तुम मुझ से उम्र में बहुत छोटे हो. करिश्मा के नाते मैं भी तुम्हें अपना भाई समझने लगी थी.’’

अजीत कुछ नहीं बोला और बात आईगई हो गई. समय तेजी से आगे बढ़ता गया. एक दिन करिश्मा ने अपने जन्मदिन पर अपनी सहेलियों को घर पर बुलाया. काफी चहलपहल में देर रात हो गई, तो रसिया घबराने लगी. उसे अपने घर जाना था. उस ने करिश्मा से कहा, ‘‘अजीत से कह दो कि वह मुझे मेरे घर छोड़ दे.’’

करिश्मा ने अजीत को पुकार कर कहा, ‘‘अजीत, जरा इधर आना. तुम रसिया को अपनी मोटरसाइकिल से उस के घर तक छोड़ आओ. आसमान में बादल घिर आए हैं. तेज बारिश हो सकती है.’’

‘‘इन से कह दो कि रात को यहीं रुक जाएं,’’ अजीत ने सुझाया.

‘‘नहींनहीं, ऐसा नहीं हो सकता. मेरे घर वाले परेशान होंगे. अगर तुम नहीं चल सकते, तो मैं अकेले ही चली जाऊंगी,’’ रसिया ने कहा.

‘‘नहीं, मैं आप को छोड़ दूंगा,’’ कह कर अजीत ने अपनी मोटरसाइकिल निकाली, तभी हलकीहलकी बारिश शुरू हो गई. कुछ फासला पार करने पर तूफानी हवा के साथ खूब तेज बारिश और ओले गिरने लगे. ठंड भी बढ़ गई थी.

रसिया ने कहा, ‘‘अजीत, तेज बारिश हो रही है. क्यों न हम लोग कुछ देर के लिए किसी महफूज जगह पर रुक कर बारिश के बंद होने का इंतजार कर लें?’’

‘‘तुम्हारा कहना सही है रसिया. आगे कोई जगह मिल जाएगी, तो जरूर रुकेंगे.’’

बिजली की चमक में अजीत को एक सुनसान झोंपड़ी दिखाई दी. अजीत ने वहां पहुंच कर मोटरसाइकिल रोकी और दोनों झोंपड़ी के अंदर चले गए.

अजीत की नजर रसिया के भीगे कपड़ों पर पड़ी. वह एक पतली साड़ी पहन कर सजधज कर करिश्मा के जन्मदिन की पार्टी में गई थी. उसे क्या मालूम था कि ऐसे हालात का सामना करना पड़ेगा. पानी से भीगी साड़ी में उस का अंगअंग दिखाई दे रहा था.

रसिया का भीगा बदन अजीत को बेसब्र कर रहा था. वह बारबार सोचता कि ऐसे समय में रसिया उस की बांहों में समा जाए, तो उस के जिस्म में गरमी भर जाए,

कांपती हुई रसिया ने अजीत से कुछ कहना चाहा, लेकिन उस की जबान नहीं खुल सकी. लेकिन ठंड इतनी बढ़ गई थी कि उस से रहा नहीं गया. वह बोली, ‘‘भाई अजीत, मुझे बहुत ठंड लग रही है. कुछ देर मुझे अपने बदन से चिपका लो, ताकि थोड़ी गरमी मिल जाए.’’

‘‘क्यों नहीं, भाई का फर्ज है ऐसी हालत में मदद करना,’’ कह कर अजीत ने रसिया को अपनी बांहों में जकड़ लिया. धीरेधीरे वह रसिया की पीठ को सहलाने लगा. रसिया को राहत मिली.

लेकिन अब अजीत के हाथ फिसलतेफिसलते रसिया के उभारों पर पड़ने लगे और उस ने समझा कि रसिया को एतराज नहीं है. तभी उस ने उस के उभारों को दबाना शुरू किया, तो रसिया ने अजीत की नीयत को भांप लिया.

रसिया उस से अलग होते हुए बोली, ‘‘अजीत, ऐसे नाजुक समय में क्या तुम करिश्मा के साथ भी ऐसी ही हरकत करते? तुम्हें शर्म नही आई?’’ कहते हुए रसिया ने अजीत के गाल पर कस कर चांटा मारा.

यह देख कर अजीत तिलमिला उठा. उस ने भी उसी तरह चांटा मारना चाहा, पर कुछ सोच कर रुक गया.

उस ने रसिया की पीठ सहलाते हुए जो सपने देखे थे, वे उस के वहम थे. रसिया उसे बिलकुल नहीं चाहती थी. जल्दबाजी में उस ने सारा खेल ही खत्म कर दिया. अगर रसिया ने उस की शिकायत करिश्मा से कर दी, तो गड़बड़ हो जाएगी.

अजीत झट से शर्मिंदगी दिखाते हुए बोला, ‘‘रसिया, मुझे माफ कर दो. मेरी शिकायत करिश्मा से मत करना.’’

‘‘ठीक है, नहीं करूंगी, लेकिन इस शर्त पर कि तुम यह सब बिलकुल भूल जाओगे,’’ रसिया ने कहा.

‘‘जरूरजरूर. दोबारा मैं ऐसा नहीं करूंगा. मैं ने समझा था कि दूसरी निचली जाति की लड़कियों की तरह शायद तुम भी कहीं दिलफेंक न हो.’’

‘‘तुम्हारे जैसे बड़े लोग ही हम निचली जाति की लड़कियों से गलत फायदा उठाने की कोशिश करते हैं. सभी लड़कियां कमजोर नहीं होतीं. अब यहां रुकना ठीक नहीं है. बारिश भी कम हो गई है. अब हमें चलना चाहिए,’’ रसिया ने कहा.

दोनों मोटरसाइकिल से रसिया के घर पहुंचे. रसिया ने बारिश बंद होने तक अजीत को रोकना चाहा, लेकिन वह नहीं रुका.

उस दिन के बाद से अजीत अपने गाल पर हाथ फेरता, तो गुस्से में उस के रोंगटे खड़े हो जाते.

अजीत रसिया के चांटे को याद करता और तड़प उठता. सोचता कि रसिया ने चांटा मार कर उस की जो बेइज्जती की है, वह उसे जिंदगीभर भूल नहीं सकता. उस चांटे का जवाब वह जरूर देगा.

उस दिन करिश्मा के यहां खूब चहलपहल थी, क्योंकि उस की सगाई होने वाली थी. उस की सहेलियां नाचनेगाने में मस्त थीं. रसिया भी उस जश्न में शामिल थी, क्योंकि वह करिश्मा की खास सहेली जो थी. वह खूब सजधज  कर आई थी.

अजीत भी लड़कियों के साथ नाचने लगा. उस की नजर जब रसिया से टकराई, तो दोनों मुसकरा दिए. अजीत ने उसी समय मौके का फायदा उठाना चाहा.

अजीत ने झूमते हुए आगे बढ़ कर रसिया की कमर में हाथ डाला और अपनी बांहों में कस लिया. फिर उस के गालों को ऐसे चूमा कि उस के दांतों के निशान रसिया के गालों पर पड़ गए.

यह देख रसिया तिलमिला उठी और धक्का दे कर उस की बांहों से अलग हो गई.

रसिया ने उस के गाल पर कई चांटे रसीद कर दिए. जश्न में खलबली मच गई. पहले तो लोग समझ ही नहीं पाए कि माजरा क्या है, लेकिन तुरंत रसिया की कठोर आवाज गूंजी, ‘‘अजीत, तुम ने आज इस भरी महफिल में केवल मेरा ही नहीं, बल्कि अपनी बहन औेर सगेसंबंधियों की बेइज्जती की है. मैं तुम पर थूकती हूं.

‘‘मैं सोचती थी कि शायद तुम उस दिन के चांटे को भूल गए हो, पर मुझे ऐसा लगता है कि तुम यही हरकतें अपनी बहन करिश्मा के साथ भी करते होगे.

‘‘अगर मैं जानती कि तुम्हारे दिल में बहनों की इसी तरह इज्जत होती है, तो यहां कभी न आती. ’’

रसिया ने करिश्मा के पास जा कर उस रात की घटना के बारे में बताया और यह भी बताया कि अजीत ने उस से भविष्य में ऐसा न होने के लिए माफी भी मांगी थी.

करिश्मा का सिर शर्म से झुक गया. उस की आखों से आंसू गिर पड़े.

करिश्मा की दूसरी सहेलियों ने भी अजीत की थूथू की और वहां से बिना कुछ खाए रसिया के साथ वापस चली गईं.

नासमझ अजीत ने रसिया को जलील नहीं किया था, बल्कि अपने परिवार की बेइज्जती की थी.

Physical Relation : 4 साल पहले एक रिश्तेदार ने धोखे से संबंध बनाए

Physical Relation : मैं अब 21 वर्षीया कालेज स्टूडैंट हूं. इस बात के बाद से मैं इतना डर गई कि शायद फिर कभी किसी से संबंध नहीं बना पाऊंगी. शादी हुई तो पति को सबकुछ पता चल जाएगा, इस डर को दूर करने में आप मेरी कुछ मदद कीजिए.

जवाब : आप ने जो बताया, वह एक बहुत गंभीर और भावनात्मक अनुभव है. सब से पहले तो यह समझ लें कि उस घटना में आप की कोई गलती नहीं थी. धोखे से कोई आप के साथ गलत करे तो उस का बोझ आप को नहीं उठाना चाहिए. आप उस डर को अपने अंदर समाए हुए हैं, जो स्वाभाविक है, क्योंकि ऐसा अनुभव किसी को भी परेशान कर सकता है. ऐसे में सैक्स या रिश्तों से डर लगना सामान्य है.

आप को लगता है कि आप भविष्य में अपने पति से शारीरिक संबंध नहीं बना पाएंगी और वह सबकुछ जान जाएगा. यह डर इसलिए भी है क्योंकि आप उस घटना को अपनी गलती या शर्मिंदगी मान रही हैं, जो सच नहीं है. उस अनुभव ने शायद आप के आत्मविश्वास को चोट पहुंचाई है, जिस से आप को लगता है कि आप आगे कभी किसी के साथ सहज नहीं हो पाएंगी. खुद को दोष न दें. जो हुआ, वह आप की मरजी के खिलाफ था.

क्या आप के पास कोई करीबी दोस्त, बहन या कोई ऐसा इंसान है जिस पर आप भरोसा कर सकती हैं? उस घटना को किसी के साथ साझा करने से आप के मन का बोझ हलका होगा. अगर सहज न हों तो एक काउंसलर या थेरैपिस्ट से बात करें. वे गोपनीयता रखते हैं और आप को ट्रौमा से उबरने में मदद कर सकते हैं.

अभी आप 21 साल की हैं और शादी में वक्त है. अपने लिए समय लें. छोटीछोटी चीजों से शुरू करें, जैसे दोस्तों के साथ घूमना, अपनी पसंद की चीजें करना ताकि आप का आत्मविश्वास लौटे. शारीरिक संबंधों को समझें सैक्स कोई मजबूरी नहीं है. यह 2 लोगों के बीच प्यार और सहमति का हिस्सा होता है. अगर भविष्य में आप की शादी होती है तो आप अपने पति से खुल कर बात कर सकती हैं. एक समझदार साथी आप की भावनाओं का सम्मान करेगा. आप को अभी से यह मान लेने की जरूरत नहीं कि आप कभी संबंध नहीं बना पाएंगी.

आप बहुत मजबूत हैं. आप ने उस रिश्तेदार से संबंध तोड़ लिया और अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे रही हैं, यह आप की ताकत दिखाता है. यह डर आप की पूरी जिंदगी को परिभाषित नहीं करेगा. आप अपने भविष्य को खुशहाल बना सकती हैं. बस, खुद पर भरोसा रखें और एकएक कदम आगे बढ़ें.

अपनी समस्‍याओं को इस नंबर पर 8588843415 लिख कर भेजें, हम उसे सुलझाने की कोशिश करेंगे.

Sexual Problem : मैं जल्दी डिस्चार्ज हो जाने की समस्या से परेशान हूं

Sexual Problem : शादी को 2 साल हो गए हैं. उम्र 32 साल हो गई है. सैक्स के दौरान हांफने लगता हूं. मुझे पसीना भी बहुत आता है. इस कारण इंटरकोर्स के बाद बहुत थकान महसूस करता हूं. मेरा वजन थोड़ा ज्यादा है, क्या यह सब वजन के कारण तो नहीं या और कारण भी हो सकता है?

जवाब : आप ने अपनी समस्या को बहुत स्पष्टता से बताया. यह अच्छी बात है कि आप इसे समझने और हल करने की कोशिश कर रहे हैं. आप की परेशानी जल्दी डिस्चार्ज होना (प्रीमैच्योर इजैकुलेशन), सैक्स के दौरान हांफना, पसीना आना और बाद में थकान महसूस करना कई कारणों से हो सकती है.

आप ने कहा कि आप का वजन थोड़ा ज्यादा है. ज्यादा वजन (ओवरवेट होना) शारीरिक सहनशक्ति को कम कर सकता है. इस से सैक्स के दौरान जल्दी थकान, हांफना और पसीना आना स्वाभाविक है. वजन बढ़ने से टेस्टोस्टेरौन हार्मोन का स्तर भी प्रभावित हो सकता है, जो सैक्सुअल परफौर्मेंस पर असर डालता है.

शादी के 2 साल बाद भी अगर आप इस बात को ले कर चिंतित रहते हैं कि आप की परफौर्मेंस अच्छी नहीं है तो यह तनाव इसे और बढ़ा सकता है. कुछ पुरुषों में ग्लान्स (पेनिस का अगला हिस्सा) ज्यादा संवेदनशील होता है, जिस से जल्दी डिस्चार्ज हो जाता है. टेस्टोस्टेरौन या अन्य हार्मोंस में कमी भी इस का कारण हो सकता है.

शारीरिक फिटनैस की कमी, अगर आप नियमित व्यायाम नहीं करते तो शरीर की सहनशक्ति कम हो सकती है. सैक्स एक शारीरिक गतिविधि है, इस के लिए अच्छी सांस लेने की क्षमता और मांसपेशियों की ताकत चाहिए. हांफना और थकान इस की निशानी हो सकती है. खराब खानपान (ज्यादा तलाभुना या जंक फूड), नींद की कमी, या सिगरेट/शराब का सेवन (अगर करते हैं) भी इन समस्याओं को बढ़ा सकता है.

कुछ मैडिकल कंडीशंस जैसे डायबिटीज, हाई ब्लडप्रैशर या थायराइड की समस्या भी सैक्सुअल हैल्थ व स्टैमिना को प्रभावित कर सकती है. आप की उम्र (32 साल) में यह आम नहीं हैं लेकिन इन्हें नजरअंदाज नहीं करना चाहिए.

हरी सब्जियां, फल और प्रोटीन (दाल, अंडा, चिकन) खाएं. वजन कम होने से आप की थकान और हांफने की समस्या में सुधार होगा. प्रीमैच्योर इजैकुलेशन के लिए कीगल ऐक्सरसाइज करें. यह पेल्विक फ्लोर मांसपेशियों को मजबूत करती है. इसे करने के लिए पेशाब रोकने वाली मांसपेशियों को 5-10 सैकंड तक सिकोड़ें और छोड़ें. दिन में 10-15 बार करें. स्टार्ट-स्टौप तकनीक, सैक्स के दौरान जब आप को लगे कि डिस्चार्ज होने वाला है, रुक जाएं, गहरी सांस लें और फिर शुरू करें. इस से कंट्रोल बढ़ेगा. अपनी पत्नी से खुल कर बात करें ताकि आप दोनों मिल कर इसे सुलझ सकें. डाक्टर से सलाह, एक यूरोलौजिस्ट या सैक्सोलौजिस्ट से मिलें. वे आप की जांच कर के बता सकते हैं कि कोई हार्मोनल या मैडिकल समस्या तो नहीं है.

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Family : सौतेला पिता – सहारा या खतरा

Family : कई मामले देखने को मिले हैं जहां किसी बच्ची या लड़की के साथ उस के सौतेले पिता ने या तो दुष्कर्म को अंजाम दिया या करने की कोशिश की. या फिर कहीं सौतेले बेटे को खुन्नस में मारनेपीटने की घटना देखने को मिली. ये घटनाएं सवाल खड़ा करती हैं कि सौतेला पिता सहारा है या खतरा?

सिरसा के बाल कल्याण समिति के कार्यालय में एक 12 वर्षीय बच्ची समिति की अध्यक्षा अनिता वर्मा को रोरो कर जो कुछ बता रही थी, उसे सुन कर अध्यक्षा सहित वहां उपस्थित लोगों के दिलों में उस बच्ची के पिता के लिए नफरत और गुस्सा बढ़ता जा रहा था.

बात 28 मार्च, 2025 की है, जब एक पड़ोसी द्वारा बाल कल्याण समिति का रास्ता दिखाए जाने के बाद यह बच्ची अपने पिता की शिकायत ले कर वहां पहुंची थी. उस का आरोप था कि उस का सौतेला पिता उस का बलात्कार करता है और उस के रोनेचिल्लाने पर बुरी तरह मारतापीटता है.

बच्ची ने बताया कि करीब 4 साल पहले उस की मां ने उस के सगे पिता को मार दिया था. इस के बाद मां ने दूसरी शादी कर ली. 2 साल पहले सौतेले पिता ने उस की मां को यूपी में ले जा कर मार दिया और नाबालिग बच्ची को ले कर सिरसा में एक किराए के मकान में रहने लगा. वह बच्ची से बलात्कार करता और उसे मारतापीटता था.

उस के अत्याचार से तंग आ कर एक दिन बच्ची ने डरतेडरते सारी बातें अपनी एक पड़ोसिन को बता दीं. बात फैल गई. पड़ोसियों ने बच्ची के घर आ कर न सिर्फ उस के सौतेले पिता को लताड़ा बल्कि डायल 112 पर कौल कर पुलिस बुलाने की धमकी दी. पुलिस का नाम सुन कर वह तुरंत रफूचक्कर हो गया. एक पड़ोसी बच्ची को ले कर बाल कल्याण समिति के कार्यालय में पहुंचा जहां बच्ची ने सारी आपबीती बताई. फिलहाल आरोपी फरार है. बच्ची के बयान पर पोक्सो एक्ट के तहत उस के सौतेले बाप के खिलाफ अभियोग दर्ज कर लिया गया है, बच्ची को वन स्टौप सैंटर भेज दिया गया है और कार्रवाई जारी है.

रिश्तों को किया तारतार

गाजियाबाद के भोजपुर थाना क्षेत्र के एक गांव में सौतेले पिता ने 13 वर्षीय बेटी के साथ दुष्कर्म की कोशिश की. उस पर कपड़े उतारने का दबाव बनाया. विरोध करने पर गालीगलौज करते हुए उस से मारपीट की. बच्ची के रोनेचीखने की आवाज सुन कर आसपास के लोग इकट्ठा हो गए. जबरन दरवाजा खुलवाया और दुष्ट को पकड़ लिया. बच्ची की शिकायत पर डायल 112 पर सूचना दी गई. पुलिस मौके पर पहुंची और आरोपी को हिरासत में ले लिया. पीडि़ता की मां की शिकायत पर पुलिस ने उस के पति के खिलाफ केस दर्ज किया. घटना 22 सितंबर, 2024 की है.

31 अगस्त, 2024, बागपत क्षेत्र के एक गांव में एक सौतेले पिता ने रिश्तों को तारतार किया. पत्नी को नींद की गोली खिला कर उस ने उस की 13 वर्षीय नाबालिग बेटी के साथ रात में रेप किया. आरोपी के खिलाफ पोक्सो एक्ट में मामला दर्ज किया गया.

बच्ची की मां कहती है कि ‘इधर एक हफ्ते से मैं रात में बड़ी गहरी नींद सो रही थी. एक दिन बच्ची स्कूल से आ कर मु झ से चिपट कर बुरी तरह रोने लगी. मैं ने उस से कारण पूछा तो वह बता नहीं पा रही थी. प्यार से पूछने पर उस ने बताया कि पापा गंदे हैं. वे मेरे साथ गंदा काम करते हैं. उस ने फिर मु झे पूरा घटनाक्रम बताया. उस ने बताया कि उस का बाप 2 बार गलत काम कर चुका है. उस ने विरोध करने की कोशिश की तो जान से मारने की धमकी दी. वह उस से डर गई थी.’

महिला ने सब से पहले अपने परिवार के लोगों को बुलाया. उन को सारी बात बताई. उस के बाद आरोपी के खिलाफ शिकायत करने के लिए लड़की के साथ थाने पहुंच गई. थाना प्रभारी संजय कुमार ने पोक्सो एक्ट सहित कई धाराओं में मामला दर्ज किया.

इस तरह की खबरों से आएदिन अखबारों के पन्ने रंगे रहते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा है कि लड़कियां अपने घरों में ही सुरक्षित नहीं हैं. बहुत सी महिलाएं जो विधवा हो जाती हैं और जिन के पास बच्चे भी हैं, वे दोबारा शादी की इच्छा होने पर भी शादी नहीं करती हैं. पता नहीं नया बाप बच्चों को अपना पाए या नहीं. पता नहीं उस का व्यवहार बच्चों के साथ कैसा होगा? कहीं वह बच्चों के साथ कोई गलत हरकत न करे. पता नहीं वह बच्चों का खर्च उठाएगा या नहीं? पता नहीं वह अपनी संपत्ति पर बच्चों को हक देगा या नहीं? ऐसा न हो कि वह मु झे और बच्चों को मार कर मेरी सारी संपत्ति पर कब्जा कर ले, आदिआदि. यह डर हर मां के दिल में होता है. इस डर के कारण ही वे शारीरिक और भावनात्मक जरूरतों को दबा कर आजीवन अकेली ही रह जाती हैं.

रेहाना का पति 5 साल पहले एक एक्सीडैंट में चल बसा. उस वक्त रेहाना की गोद में 2 साल का रिजवान था. पति की मौत के बाद रेहाना को उस के जेठजेठानी ने इतना परेशान किया कि सालभर के अंदर ही उसे ससुराल छोड़ कर मायके में आ कर रहना पड़ा. कुछ दिनों तक तो सब ठीक रहा मगर मांबाप भी रेहाना और उस के बच्चे का खर्च कब तक उठाते? वे रेहाना पर दूसरा निकाह कर लेने का दबाव बनाने लगे. रेहाना की भाभी भी यही चाहती थी कि वह जल्दी ही शादी कर के यहां से जाए. आखिर उस के बच्चे की पढ़ाई का बो झ मेरा आदमी क्यों उठाए? आखिर हमारे भी तो 2 बच्चे हैं.

आखिरकार रेहाना को अफजाल नाम के व्यक्ति से दूसरा निकाह करना पड़ा. अफजाल की पत्नी गुजर चुकी थी और उस के पास एक बेटा और एक बेटी हैं, जो शहर के नामी इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढ़ रहे हैं. रेहाना सोचती थी कि अफजाल उस के रिजवान को भी अच्छे स्कूल में पढ़ाएगा और रिजवान को भी भाईबहन मिल जाएंगे, मगर रेहाना के बेटे का एडमिशन अफजाल ने पास के एक थर्ड क्लास सरकारी स्कूल में करवा दिया जहां टीचर बमुश्किल ही नजर आते हैं.

अफजाल अपने बच्चों को अच्छे नए कपड़े पहनाता, मगर रेहाना के बेटे को उन के उतरे हुए कपड़े ही पहनने को मिलते हैं. वह उन की पुरानी किताबों से पढ़ता है. उन के फेंके हुए बस्ते में किताबें रख कर स्कूल जाता है. कुल मिला कर रेहाना के दूसरे पति के घर में रेहाना और उस के बेटे की हालत नौकरों जैसी है. रिजवान तो अफजाल को अब्बू कहने में भी हिचकिचाता है. उसे बारबार अपनी नानी का घर याद आता है.

पति की मौत के बाद अकेली स्त्री का जीवन काफी कठिन होता है. यदि उस के पास बच्चे हैं तो उन के पालनपोषण की पूरी जिम्मेदारी अकेले उस पर ही आ जाती है. अगर वह ज्यादा पढ़ीलिखी नहीं है और घर से बाहर निकल कर काम नहीं करती है तो बच्चों के साथ या तो वह अपने ससुराल वालों पर बो झ बन जाती है या फिर मायके वालों पर.

यदि औरत पढ़ीलिखी है और नौकरी करती है तो भी घर और नौकरी दोनों के साथ बच्चों को अकेले संभालना बहुत कठिन टास्क होता है. दोनों ही तरह की औरतें यह चाहती हैं कि कोई तो हो जो उन का थोड़ा सा सहारा बन जाए, थोड़ी सी जिम्मेदारी बांट ले, थोड़ा सा प्यार और अपनापन दे दे, उसे भी और उस के बच्चों को भी. कोई भी औरत पूरा जीवन अकेले नहीं काटना चाहती, फिर चाहे उस की उम्र 30 साल की हो या 60 की.

लेकिन भारतीय समाज में यह पाया गया है कि अधिकांश मामलों में बच्चों वाली औरत जब दूसरी शादी करती है तो सौतेला पिता बच्चों को पूरे दिल से अपना नहीं पाता. बच्चे उस के घर में उपेक्षित रहते हैं. उन का पालनपोषण ठीक तरीके से नहीं हो पाता. कई बार तो उन की अति आवश्यक जरूरतें भी पूरी नहीं होतीं. सौतेले पिता द्वारा मौका मिलते ही बेटियों के साथ दुर्व्यवहार और बलात्कार के मामले बहुतायत से देखे जाते हैं. इन्हीं घटनाओं के कारण औरतें चाह कर भी दूसरी शादी नहीं कर पाती हैं.

लालच भी वजह

कई बार औरत के पास पहले पति की छोड़ी हुई संपत्ति भी होती है. कई बार संपत्ति के लालच में दूसरा आदमी ऐसी औरत से शादी कर लेता है और फिर उस की पूरी संपत्ति पर अजगर बन कर बैठ जाता है. ऐसी स्थिति में भी बच्चे प्रताडि़त रहते हैं और बच्चों की दशा देख कर औरत भी खुश नहीं रहती.

बहुत कम मर्द ऐसे होते हैं जो सचमुच अपनी पत्नी के बच्चों को सगे पिता जैसा प्यार देते हैं और अपनी चलअचल संपत्ति पर उन को हक दे पाते हैं. यह तभी संभव है जब वह मर्द उस औरत से कुछ हद तक प्रेम करता हो और उस की खुद की कोई औलाद न हो. मगर ऐसे लोग कम ही दिखते हैं.

तो क्या बच्चों की खातिर औरतें अपनी इच्छाओं का गला घोंट लें? वे पूरी उम्र अकेलेपन में बच्चों की जिम्मेदारी उठाते हुए जिएं? अपनी शारीरिक और भावनात्मक जरूरतों को मारती रहें अथवा समाज और परिवार से छिपा कर गलत रास्ते से, जो खतरनाक भी हो सकता है, उन जरूरतों को पूरा करें?

गौरतलब है कि बच्चों को 18-20 साल की उम्र तक मां की जरूरत होती है. पढ़ाई पूरी करने के बाद जब उन की नौकरी लगती है, मां की जरूरत कम होती जाती है. शादी के बाद तो और कम हो जाती है. यदि सास और बहू की आपस में बनी तो ठीक वरना कुछ ही साल बाद वह मां जिस ने अपना पूरा जीवन बच्चे की खातिर अकेलेपन में गुजार दिया, बेटेबहू को कांटे की तरह चुभने लगती है और वे उस से छुटकारा पाने के रास्ते ढूंढ़ने लगते हैं.

विधवा स्त्री की संतान यदि बेटियां हों तब भी उन की शादियां कर के वह अकेली रह जाती है. शादीशुदा बेटी मां की जिम्मेदारी नहीं उठा सकती, हारीबीमारी में उस के पास नहीं रह सकती, उस का अकेलापन दूर नहीं कर सकती क्योंकि उस के पैरों में ससुराल की जिम्मेदारियों की बेडि़यां पड़ जाती हैं.

अकेले रहना कठिन

दिल्ली के सरकारी वृद्धाश्रम में ऐसी कई बुजुर्ग महिलाएं हैं जिन्होंने पति की मौत के बाद बच्चों का मुंह देख कर दूसरी शादी नहीं की, मगर जब बच्चे बड़े हो गए और उन की शादियां हो गईं तो उन्होंने बूढ़ी अकेली मां को वृद्धाश्रम में छोड़ दिया.

ऐसे में बच्चों की खातिर औरत पूरी उम्र तनहा गुजारे, यह कोई सम झदारी तो नहीं होगी. दूसरे की खुशी के लिए अपनी जिंदगी को नर्क बना लेना ठीक नहीं है. किसी भी इंसान के लिए उस का खुद का जीवन प्रमुख है. ऐसे में समाज और परिवार को औरतों के बारे में अपना दृष्टिकोण बदलने की जरूरत है. संविधान ने स्त्री को बहुत सारे हक दिए हैं, मगर वह उन अधिकारों को इस्तेमाल में नहीं ला पाती क्योंकि एक तरफ शिक्षा अधूरी रहती है तो दूसरी तरफ परिवार औरत को इतना दबा कर रखता है कि वह अपनी जरूरतों, इच्छाओं और अधिकारों के बारे में आवाज नहीं उठा पाती.

मध्यम और उच्च वर्ग में देखा गया है कि जो महिलाएं उच्च शिक्षा प्राप्त करती हैं, सम झदार हैं और नौकरीपेशा हैं, जब उन का साथ पति से छूट जाता है, तब वे बहुत ठोंकबजा कर ऐसे मर्द को दूसरे पति के रूप में चुनती हैं जो उन की शर्तों पर साथ रहे या साथ रखे. पढ़ीलिखी और आर्थिक रूप से मजबूत स्त्री के बच्चे भी कान्फिडैंस से भरे होते हैं और यदि सौतेला बाप उन के साथ कोई दुर्व्यवहार करता है तो वे उस को अपनस समय मान कर सहन नहीं करते बल्कि भरपूर विरोध करते हैं.

‘भय बिनु होय न प्रीत गोसाईं’ कहावत भी उसी समाज की देन है जिस समाज में प्रेम को बड़ा पवित्र और नि:स्वार्थ कहा गया है. दरअसल दुनिया में कोई भी संबंध नि:स्वार्थ नहीं होता है. हम सब एकदूसरे से किसी न किसी स्वार्थवश ही जुड़े हैं. यह स्वार्थ शारीरिक जरूरत का है, भावनात्मक जरूरत का है, आर्थिक जरूरत का है और सुरक्षा का है. इन्हीं स्वार्थों के चलते विवाह संस्थान का जन्म हुआ. भारतीय समाज में स्त्री सदैव पुरुष से कमजोर बना कर रखी गई. वह भयवश ही पुरुष से प्रेम और सैक्स करती है, भयवश ही उस के घर की देखरेख करती है और उस के बच्चे पैदा करती व पालती है. इस के एवज में उसे पुरुष से सुरक्षा मिलती है. स्त्री भयवश यह सब न करे तो पुरुष उस को घर से निकाल बाहर करे.

समझदारी सक्षम बनने में

स्त्री अगर दिमागी तौर पर और आर्थिक रूप से मजबूत हो जाए तो कोई भी कार्य उसे भयवश न करना पड़े. सम झदार स्त्री यदि विधवा हो जाए और दूसरे विवाह की बात सोचे तो उस से पहले वह अपने बच्चों की परवरिश व पढ़ाई का पूरा इंतजाम कर के ही अगले व्यक्ति से विवाह करेगी अथवा वह उस पुरुष के सामने कुछ ऐसी शर्तें रख कर विवाह करेगी ताकि उस के बच्चों को स्नेह और उन के अधिकारों से वंचित न होना पड़े.

साक्षी तनेजा एक कालेज में बायोलौजी की प्रोफैसर हैं. उन के पास 14 वर्ष और 17 वर्ष के 2 बेटे हैं. 6 साल पहले पति की मृत्यु हो गई. 6 साल अकेले रहने के उपरांत उन्हें आलोक दीक्षित से विवाह करने की इच्छा हुई. आलोक दीक्षित उन्हीं के कालेज में फिजिक्स के प्रोफैसर हैं और साक्षी के साथ उन की अच्छी बनती है. आलोक का अपनी पत्नी से तलाक हो चुका है. साक्षी और आलोक ने जब विवाह करने का फैसला लिया तो साक्षी ने आलोक के सामने कुछ शर्तें रखीं.

पहली शर्त यह थी कि साक्षी के पहले पति द्वारा छोड़ी गई चलअचल संपत्ति साक्षी के दोनों बेटों के नाम होगी. इस के अलावा साक्षी की सैलरी का आधा हिस्सा वह दोनों बेटों के नाम बैंक में जमा करेगी और आधा घर चलाने में खर्च होगा. आलोक की संपत्ति पर पत्नी होने के नाते साक्षी का हक होगा और घर के खर्च में आलोक भी अपनी सैलरी का आधा हिस्सा देंगे. साक्षी की तमाम शर्तें आलोक ने सुनीं और उन को इस में कुछ भी गलत नहीं लगा, लिहाजा वे सहर्ष राजी हो गए.

साक्षी ने अपने दोनों बेटों से अपनी शादी के विषय में खुल कर बात की. उन्हें आलोक से मिलवाया. कई बार दोनों बेटों को आलोक के साथ रहने के लिए भी छोड़ा. जब उस ने देखा कि बच्चे नए पिता के साथ कम्फर्टेबल हैं तब उस ने निश्चिंत हो कर शादी की डेट फिक्स की. आज साक्षी और उन का परिवार काफी खुश है. न बच्चे तनाव में हैं और न साक्षी को कोई तनाव है.

यदि स्त्री की पढ़ाई और नौकरी पर सरकार सब से ज्यादा ध्यान दे तो समाज की बहुत सारी समस्याएं स्वत: ही समाप्त हो जाएं. अनेक प्रकार के अपराध जो स्त्रियों के साथ घटते हैं वे न घटें. स्त्री का स्वतंत्र होना और आर्थिक रूप से मजबूत होना अनेक समस्याओं का समाधान है.

Hindi Kahani : नसीहत – अरुण से क्यों मिलना चाहती थी वह औरत

Hindi Kahani : कालबेल की आवाज सुन कर दीपू ने दरवाजा खोला. दरवाजे पर एक औरत खड़ी थी. उस औरत ने बताया कि वह अरुण से मिलना चाहती है. औरत को वहीं रोक कर दीपू अरुण को बताने चला गया.

‘‘साहब, दरवाजे पर एक औरत खड़ी है, जो आप से मिलना चाहती है,’’ दीपू ने अरुण से कहा.

‘‘कौन है?’’ अरुण ने पूछा.

‘‘मैं नहीं जानता साहब, लेकिन देखने में भली लगती है,’’ दीपू ने जवाब दिया.

‘‘बुला लो उसे. देखें, किस काम से आई है?’’ अरुण ने कहा.

दीपू उस औरत को अंदर बुला लाया.

अरुण उसे देखते ही हैरत से बोला, ‘‘अरे संगीता, तुम हो. कहो, कैसे आना हुआ? आओ बैठो.’’

संगीता सोफे पर बैठते हुए बोली, ‘‘बहुत मुश्किल से तुम्हें ढूंढ़ पाई हूं. एक तुम हो जो इतने दिनों से इस शहर में हो, पर मेरी याद नहीं आई.

‘‘तुम ने कहा था कि जब कानपुर आओगे, तो मुझ से मिलोगे. मगर तुम तो बड़े साहब हो. इन सब बातों के लिए तुम्हारे पास फुरसत ही कहां है?’’

‘‘संगीता, ऐसी बात नहीं है. दरअसल, मैं हाल ही में कानपुर आया हूं. औफिस के काम से फुरसत ही नहीं मिलती. अभी तक तो मैं ने इस शहर को ठीक से देखा भी नहीं है.

‘‘अब छोड़ो इन बातों को. पहले यह बताओ कि मेरे यहां आने की जानकारी तुम्हें कैसे मिली?’’ अरुण ने संगीता से पूछा.

‘‘मेरे पति संतोष से, जो तुम्हारे औफिस में ही काम करते हैं,’’ संगीता ने चहकते हुए बताया.

‘‘तो संतोषजी हैं तुम्हारे पति. मैं तो उन्हें अच्छी तरह जानता हूं. वे मेरे औफिस के अच्छे वर्कर हैं,’’ अरुण ने कहा.

अरुण के औफिस जाने का समय हो चुका था, इसलिए संगीता जल्दी ही अपने घर आने की कह कर लौट गई.

औफिस के कामों से फुरसत पा कर अरुण आराम से बैठा था. उस के मन में अचानक संगीता की बातें आ गईं.

5 साल पहले की बात है. अरुण अपनी दीदी की बीमारी के दौरान उस के घर गया था. वह इंजीनियरिंग का इम्तिहान दे चुका था.

संगीता उस की दीदी की ननद की लड़की थी. उस की उम्र 18 साल की रही होगी. देखने में वह अच्छी थी. किसी तरह वह 10वीं पास कर चुकी थी. पढ़ाई से ज्यादा वह अपनेआप पर ध्यान देती थी.

संगीता दीदी के घर में ही रहती थी. दीदी की लंबी बीमारी के कारण अरुण को वहां तकरीबन एक महीने तक रुकना पड़ा. जीजाजी दिनभर औफिस में रहते थे. घर में दीदी की बूढ़ी सास थी. बुढ़ापे के कारण उन का शरीर तो कमजोर था, पर नजरें काफी पैनी थीं.

अरुण ऊपर के कमरे में रहता था. अरुण को समय पर नाश्ता व खाना देने के साथसाथ उस के ज्यादातर काम संगीता ही करती थी.

संगीता जब भी खाली रहती, तो ज्यादा समय अरुण के पास ही बिताने की कोशिश करती.

संगीता की बातों में कीमती गहने, साडि़यां, अच्छा घर व आधुनिक सामानों को पाने की ख्वाहिश रहती थी. उस के साथ बैठ कर बातें करना अरुण को अच्छा लगता था.

संगीता भी अरुण के करीब आती जा रही थी. वह मन ही मन अरुण को चाहने लगी थी. लेकिन दीदी की सास दोनों की हालत समझ गईं और एक दिन उन्होंने दीदी के सामने ही कहा, ‘अरुण, अभी तुम्हारी उम्र कैरियर बनाने की है. जज्बातों में बह कर अपनी जिंदगी से खेलना तुम्हारे लिए अच्छा नहीं है.’

दीदी की सास की बातें सुन कर अरुण को अपराधबोध का अहसास हुआ. वह कुछ दिनों बाद ही दीदी के घर से वापस आ गया. तब तक दीदी भी ठीक हो चुकी थीं.

एक साल बाद अरुण गजटेड अफसर बन गया. इस बीच संगीता की शादी तय हो गई थी. जीजाजी शादी का बुलावा देने घर आए थे.

लौटते समय वे शादी के कामों में हाथ बंटाने के लिए अरुण को साथ लेते गए. दीदी के घर में शादी की चहलपहल थी.

एक शाम अरुण घर के पास बाग में यों ही टहल रहा था, तभी अचानक संगीता आई और बोली, ‘अरुण, समय मिल जाए, तो कभी याद कर लेना.’

संगीता की शादी हो गई. वह ससुराल चली गई. अरुण ने भी शादी कर ली.

आज संगीता अरुण के घर आई, तो अरुण ने भी कभी संगीता के घर जाने का इरादा कर लिया. पर औफिस के कामों में बिजी रहने के कारण वह चाह कर भी संगीता के घर नहीं जा सका. मगर संगीता अरुण के घर अब रोज जाने लगी.

कभीकभी संगीता अरुण के साथ उस के लिए शौपिंग करने स्टोर में चली जाती. स्टोर का मालिक अरुण के साथ संगीता को भी खास दर्जा देता था.

एकाध बार तो ऐसा भी होता कि अरुण की गैरहाजिरी में संगीता स्टोर में जा कर अरुण व अपनी जरूरत की चीजें खरीद लाती, जिस का भुगतान अरुण बाद में कर देता.

अरुण संगीता के साथ काफी घुलमिल गया था. संगीता अरुण को खाली समय का अहसास नहीं होने देती थी.

एक दिन संगीता अरुण को साथ ले कर साड़ी की दुकान पर गई. अरुण की पसंद से उस ने 3 साडि़यां पैक कराईं.

काउंटर पर आ कर साड़ी का बिल ले कर अरुण को देती हुई चुपके से बोली, ‘‘अभी तुम भुगतान कर दो, बाद में मैं तुम्हें दे दूंगी.’’

अरुण ने बिल का भुगतान कर दिया और संगीता के साथ आ कर गाड़ी में बैठ गया.

गाड़ी थोड़ी दूर ही चली थी कि संगीता ने कहा, ‘‘जानते हो अरुण, संतोषजी के चाचा की लड़की की शादी है. मेरे पास शादी में पहनने के लिए कोई ढंग की साड़ी नहीं है, इसीलिए मुझे नई साडि़यां लेनी पड़ीं.

‘‘मेरी शादी में मां ने वही पुराने जमाने वाला हार दिया था, जो टूटा पड़ा है. शादी में पहनने के लिए मैं एक अच्छा सा हार लेना चाहती हूं, पर क्या करूं. पैसे की इतनी तंगी है कि चाह कर भी मैं कुछ नहीं कर पाती हूं. मैं चाहती थी कि तुम से पैसा उधार ले कर एक हार ले लूं. बाद में मैं तुम्हें पैसा लौटा दूंगी.’’

अरुण चुपचाप संगीता की बातें सुनता हुआ गाड़ी चलाए जा रहा था.

उसे चुप देख कर संगीता ने पूछा, ‘‘अरुण, तो क्या तुम चल रहे हो ज्वैलरी की दुकान में?’’

‘‘तुम कहती हो, तो चलते हैं,’’ न चाहते हुए भी अरुण ने कहा.

संगीता ने ज्वैलरी की दुकान में 15 हजार का हार पसंद किया.

अरुण ने हार की कीमत का चैक काट कर दुकानदार को दे दिया. फिर दोनों वापस आ गए.

अरुण को संगीता के साथ समय बिताने में एक अनोखा मजा मिलता था.

आज शाम को उस ने रोटरी क्लब जाने का मूड बनाया. वह जाने की तैयारी कर ही रहा था, तभी संगीता आ गई.

संगीता काफी सजीसंवरी थी. उस ने साड़ी से मैच करता हुआ ब्लाउज पहन रखा था. उस ने अपने लंबे बालों को काफी सलीके से सजाया था. उस के होंठों की लिपस्टिक व माथे पर लगी बिंदी ने उस के रूप को काफी निखार दिया था.

देखने से लगता था कि संगीता ने सजने में काफी समय लगाया था. उस के आते ही परफ्यूम की खुशबू ने अरुण को मदहोश कर दिया. वह कुछ पलों तक ठगा सा उसे देखता रहा.

तभी संगीता ने अरुण को फिल्म के 2 टिकट देते हुए कहा, ‘‘अरुण, तुम्हें आज मेरे साथ फिल्म देखने चलना होगा. इस में कोई बहाना नहीं चलेगा.’’

अरुण संगीता की बात को टाल न सका और वह संगीता के साथ फिल्म देखने चला गया.

फिल्म देखते हुए बीचबीच में संगीता अरुण से सट जाती, जिस से उस के उभरे अंग अरुण को छूने लगते.

फिल्म खत्म होने के बाद संगीता ने होटल में चल कर खाना खाने की इच्छा जाहिर की. अरुण मान गया.

खाना खा कर होटल से निकलते समय रात के डेढ़ बज रहे थे. अरुण ने संगीता को उस के घर छोड़ने की बात कही, तो संगीता ने उसे बताया कि चाची की लड़की का तिलक आया है. उस में संतोष भी गए हैं. वह घर में अकेली ही रहेगी. रात काफी हो चुकी है. इतनी रात को गाड़ी से घर जाना ठीक नहीं है. आज रात वह उस के घर पर ही रहेगी.

अरुण संगीता को साथ लिए अपने घर आ गया. वह उस के लिए अपना बैडरूम खाली कर खुद ड्राइंगरूम में सोने चला गया. वह काफी थका हुआ था, इसलिए दीवान पर लुढ़कते ही उसे गहरी नींद आ गई.

रात गहरी हो चुकी थी. अचानक अरुण को अपने ऊपर बोझ का अहसास हुआ. उस की नाक में परफ्यूम की खुशबू भर गई. वह हड़बड़ा कर उठ बैठा. उस ने देखा कि संगीता उस के ऊपर झुकी हुई थी.

उस ने संगीता को हटाया, तो वह उस के बगल में बैठ गई. अरुण ने देखा कि संगीता की आंखों में अजीब सी प्यास थी. मामला समझ कर अरुण दीवान से उठ कर खड़ा हो गया.

बेचैनी की हालत में संगीता अपनी दोनों बांहें फैला कर बोली, ‘‘सालों बाद मैं ने यह मौका पाया है अरुण, मुझे निराश न करो.’’

लेकिन अरुण ने संगीता को लताड़ते हुए कहा, ‘‘लानत है तुम पर संगीता. औरत तो हमेशा पति के प्रति वफादार रहती है और तुम हो, जो संतोष को धोखा देने पर तुली हुई हो.

‘‘तुम ने कैसे समझ लिया कि मेरा चरित्र तिनके का बना है, जो हवा के झोंके से उड़ जाएगा.

‘‘तुम्हें पता होना चाहिए कि मेरा शरीर मेरी बीवी की अमानत है. इस पर केवल उसी का हक बनता है. मैं इसे तुम्हें दे कर उस के साथ धोखा नहीं करूंगा.

‘‘संगीता, होश में आओ. सुनो, औरत जब एक बार गिरती है, तो उस की बरबादी तय हो जाती है,’’ अपनी बात कहते हुए अरुण ने संगीता को अपने कमरे से बाहर कर के दरवाजा बंद कर लिया.

सुबह देर से उठने के बाद अरुण को पता चला कि संगीता तो तड़के ही वहां से चली गई थी.

अरुण ने अपनी समझदारी से खुद को तो गिरने से बचाया ही, संगीता को भी भटकने नहीं दिया.

Family Story : एक रात की उजास – क्या उस रात बदल गई उन की जिंदगी

Family Story : शाम ढलने लगी थी. पार्क में बैठे वयोवृद्घ उठने लगे थे. मालतीजी भी उठीं. थके कदमों से यह सोच कर उन्होंने घर की राह पकड़ी कि और देर हो गई तो आंखों का मोतियाबिंद रास्ता पहचानने में रुकावट बन जाएगा. बहू अंजलि से इसी बात पर बहस हुआ करती थी कि शाम को कहां चली जाती हैं. आंखों से ठीक से दिखता नहीं, कहीं किसी रोज वाहन से टकरा गईं तो न जाने क्या होगा. तब बेटा भी बहू के सुर में अपना सुर मिला देता था.

उस समय तो फिर भी इतना सूनापन नहीं था. बेटा अभीअभी नौकरी से रिटायर हुआ था. तीनों मिल कर ताश की बाजी जमा लेते. कभीकभी बहू ऊनसलाई ले कर दोपहर में उन के साथ बरामदे मेें बैठ जाती और उन से पूछ कर डिजाइन के नमूने उतारती. स्वेटर बुनने में उन्हें महारत हासिल थी. आंखों की रोशनी कम होने के बाद भी वह सीधाउलटा बुन लेती थीं. धीरेधीरे चलते हुए एकाएक वह अतीत में खो गईं.

पोते की बिटिया का जन्म हुआ था. उसी के लिए स्वेटर, टोपे, मोजे बुने जा रहे थे. इंग्लैंड में रह रहे पोते के पास 1 माह बाद बेटेबहू को जाना था. घर में उमंग का वातावरण था. अंजलि बेटे की पसंद की चीजें चुनचुन कर सूटकेस में रख रही थी. उस की अंगरेज पत्नी के लिए भी उस ने कुछ संकोच से एक बनारसी साड़ी रख ली थी. पोते ने अंगरेज लड़की से शादी की थी. अत: मालती उसे अभी तक माफ नहीं कर पाई थीं. इस शादी पर नीहार व अंजलि ने भी नाराजगी जाहिर की थी पर बेटे के आग्रह और पोती होने की खुशी का इजहार करने से वे अपने को रोक नहीं पाए थे और इंग्लैंड जाने का कार्यक्रम बना लिया था.

उस दिन नीहार और अंजलि पोती के लिए कुछ खरीदारी करने कार से जा रहे थे. उन्होंने मांजी को भी साथ चलने का आग्रह किया था लेकिन हरारत होने से उन्होंने जाने से मना कर दिया था. कुछ ही देर बाद लौटी उन दोनों की निष्प्राण देह देख कर उन्हें अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हुआ था. उस से अधिक आश्चर्य उन्हें इस बात पर होता है कि इस भयंकर हादसे के 7 साल बाद भी वह जीवित हैं.

उस हादसे के बाद पोते ने उन्हें अपने साथ इंग्लैंड चलने का आग्रह किया था पर उन्होंने यह सोच कर मना कर दिया कि पता नहीं अंगरेज पतोहू के साथ उन की निभ भी पाएगी कि नहीं. लेकिन आज लगता है वह किसी भी प्राणी के साथ निबाह कर लेंगी. कोई तो होता, उन्हें आदर न सही, उलाहने ही देने वाला. आज इतना घोर एकांत तो नहीं सहना पड़ता उन्हें. पोते के बच्चे भी अब लगभग 6-7 साल के होंगे. अब तो संपर्क भी टूट गया. अचानक जा कर कैसे लाड़प्यार लुटाएंगी वह. उन बच्चों को भी कितना अस्वाभाविक लगेगा यह सब. इतने सालों की दूरियां पाटना क्या कोई आसान काम है. उस समय गलत फैसला लिया सो लिया. मालतीजी पश्चात्ताप की माला फेरने लगीं. उस समय ही क्यों, जब नीहार और अंजलि खरीदारी के लिए जा रहे थे तब वह भी उन के साथ निकल जातीं तो आज यह एकाकी जिंदगी का बोझ अपने झुके हुए, दुर्बल कंधों पर उठाए न घूम रही होतीं.

अतीत की उन घटनाओं को बारबार याद कर के पछताने की आदत ने मालतीजी को घोर निराशावादी बना डाला था. शायद यही वजह थी जो चिड़चिड़ी बुढि़या के नाम से वह महल्ले में मशहूर थीं. अपने ही खोल में आवृत्त रह कर दिन भर वह पुरानी बातें याद किया करतीं. शाम को उन्हें घर के अंदर घुटन महसूस होती तो पार्क में आ कर बैठ जातीं. वहां की हलचल, हंसतेखेलते बच्चे, उन्हें भावविभोर हो कर देखती माताएं और अपने हमउम्र लोगों को देख कर उन के मन में अगले नीरस दिन को काटने की ऊर्जा उत्पन्न होती. यही लालसा उन्हें देर तक पार्क में बैठाए रखती थी.

आज पार्क में बैठेबैठे उन के मन में अजीब सा खयाल आया. मौत आगे बढ़े तो बढ़े, वह क्या उसे खींच कर पास नहीं बुला सकतीं, नींद की गोलियां उदरस्थ कर के.

इतना आसान उपाय उन्हें अब तक भला क्यों नहीं सूझा? उन के पास बहुत सी नींद की गोलियां इकट्ठी हो गई थीं.

नींद की गोलियां एकत्र करने का उन का जुनून किसी जमाने में बरतन जमा करने जैसा था. उन के पति उन्हें टोका भी करते, ‘मालती, पुराने कपड़ों से बरतन खरीदने की बजाय उन्हें गरीबों, जरूरतमंदों को दान करो, पुण्य जोड़ो.’

वह फिर पछताने लगीं. अपनी लंबी आयु का संबंध कपड़े दे कर बरतन खरीदने से जोड़ती रहीं. आज वे सारे बरतन उन्हें मुंह चिढ़ा रहे थे. उन्हीं 4-6 बरतनों में खाना बनता. खुद को कोसना, पछताना और अकेले रह जाने का संबंध अतीत की अच्छीबुरी बातों से जोड़ना, इसी विचारक्रम में सारा दिन बीत जाता. ऐसे ही सोचतेसोचते दिमाग इतना पीछे चला जाता कि वर्तमान से वह बिलकुल कट ही जातीं. लेकिन आज वह अपने इस अस्तित्व को समाप्त कर देना चाहती हैं. ताज्जुब है. यह उपाय उन्हें इतने सालों की पीड़ा झेलने के बाद सूझा.

पार्क से लौटते समय रास्ते में रेल लाइन पड़ती है. ट्रेन की चीख सुन कर इस उम्र मेें भी वह डर जाती हैं. ट्रेन अभी काफी दूर थी फिर भी उन्होंने कुछ देर रुक कर लाइन पार करना ही ठीक समझा. दाईं ओर देखा तो कुछ दूरी पर एक लड़का पटरी पर सिर झुकाए बैठा था. वह धीरेधीरे चल कर उस तक पहुंचीं. लड़का उन के आने से बिलकुल बेखबर था. ट्रेन की आवाज निकट आती जा रही थी पर वह लड़का वहां पत्थर बना बैठा था. उन्होंने उस के खतरनाक इरादे को भांप लिया और फिर पता नहीं उन में इतनी ताकत कहां से आ गई कि एक झटके में ही उस लड़के को पीछे खींच लिया. ट्रेन धड़धड़ाती हुई निकल गई.

‘‘क्यों मरना चाहते हो, बेटा? जानते नहीं, कुदरत कोमल कोंपलों को खिलने के लिए विकसित करती है.’’

‘‘आप से मतलब?’’ तीखे स्वर में वह लड़का बोल पड़ा और अपने दोनों हाथों से मुंह ढक फूटफूट कर रोने लगा.

मालतीजी उस की पीठ को, उस के बालों को सहलाती रहीं, ‘‘तुम अभी बहुत छोटे हो. तुम्हें इस बात का अनुभव नहीं है कि इस से कैसी दर्दनाक मौत होती है.’’ मालतीजी की सर्द आवाज में आसन्न मृत्यु की सिहरन थी.

‘‘बिना खुद मरे किसी को यह अनुभव हो भी नहीं सकता.’’

लड़के का यह अवज्ञापूर्ण स्वर सुन कर मालतीजी समझाने की मुद्रा में बोलीं, ‘‘बेटा, तुम ठीक कहते हो लेकिन हमारा घर रेलवे लाइन के पास होने से मैं ने यहां कई मौतें देखी हैं. उन के शरीर की जो दुर्दशा होती है, देखते नहीं बनती.’’

लड़का कुछ सोचने लगा फिर धीमी आवाज में बोला,‘‘मैं मरने से नहीं डरता.’’

‘‘यह बताने की तुम्हें जरूरत नहीं है…लेकिन मेरे  बच्चे, इस में इस बात की भी कोई गारंटी नहीं है कि पूरी तरह मौत हो ही जाए. हाथपैर भी कट सकते हैं. पूरी जिंदगी अपाहिजों की तरह गुजारनी पड़ सकती है. बोलो, है मंजूर?’’

लड़के ने इनकार में गरदन हिला दी.

‘‘मेरे पास दूसरा तरीका है,’’ मालतीजी बोलीं, ‘‘उस से नींद में ही मौत आ जाएगी. तुम मेरे साथ मेरे घर चलो. आराम से अपनी समस्या बताओ फिर दोनों एकसाथ ही नींद की गोलियां खाएंगे. मेरा भी मरने का इरादा है.’’

लड़का पहले तो उन्हें हैरान नजरों से देखता रहा फिर अचानक बोला, ‘‘ठीक है, चलिए.’’

अंधेरा गहरा गया था. अब उन्हें बिलकुल धुंधला दिखाई दे रहा था. लड़के ने उन का हाथ पकड़ लिया. वह रास्ता बताती चलती रहीं.

उन्हें नीहार के हाथ का स्पर्श याद आया. उस समय वह जवान थीं और छोटा सा नीहार उन की उंगली थामे इधरउधर कूदताफांदता चलता था.

फिर उन का पोता अंकुर अपनी दादी को बड़ी सावधानी से उंगली पकड़ कर बाजार ले जाता था.

आज इस किशोर के साथ जाते समय वह वाकई असहाय हैं. यह न होता तो शायद गिर ही पड़तीं. वह तो उन्हेें बड़ी सावधानी से पत्थरों, गड्ढों और वाहनों से बचाता हुआ ले जा रहा था. उस ने मालतीजी के हाथ से चाबी ले कर ताला खोला और अंदर जा कर बत्ती जलाई तब उन की जान में जान आई.

‘‘खाना तो खाओगे न?’’

‘‘जी, भूख तो बड़ी जोर की लगी है. क्योंकि आज परीक्षाफल निकलते ही घर में बहुत मार पड़ी. खाना भी नहीं दिया मम्मी ने.’’

‘‘आज तो 10वीं बोर्ड का परीक्षाफल निकला है.’’

‘‘जी, मेरे नंबर द्वितीय श्रेणी के हैं. पापा जानते हैं कि मैं पढ़ने में औसत हूं फिर भी मुझ से डाक्टर बनने की उम्मीद करते हैं और जब भी रिजल्ट आता है धुन कर रख देते हैं. फिर मुझ पर हुए खर्च की फेहरिस्त सुनाने लगते हैं. स्कूल का खर्च, ट्यूशन का खर्च, यहां तक कि खाने का खर्च भी गिनवाते हैं. कहते हैं, मेरे जैसा मूर्ख उन के खानदान में आज तक पैदा नहीं हुआ. सो, मैं इस खानदान से अपना नामोनिशान मिटा देना चाहता हूं.’’

किशोर की आंखों से विद्रोह की चिंगारियां फूट रही थीं.

‘‘ठीक है, अब शांत हो जाओ,’’ मालती सांत्वना देते बोलीं, ‘‘कुछ ही देर बाद तुम्हारे सारे दुख दूर हो जाएंगे.’’

‘…और मेरे भी,’ उन्होंने मन ही मन जोड़ा और रसोईघर में चली आईं. परिश्रम से लौकी के कोफ्ते बनाए. थोड़ा दही रखा था उस में बूंदी डाल कर स्वादिष्ठ रायता तैयार किया. फिर गरमगरम परांठे सेंक कर उसे खिलाने लगीं.

‘‘दादीजी, आप के हाथों में गजब का स्वाद है,’’ वह खुश हो कर किलक रहा था. कुछ देर पहले का आक्रोश अब गायब था.

उसे खिला कर खुद खाने बैठीं तो लगा जैसे बरसों बाद अन्नपूर्णा फिर उन के हाथों में अवतरित हो गई थीं. लंबे अरसे बाद इतना स्वादिष्ठ खाना बनाया था. आज रात को कोफ्तेपरांठे उन्होेंने निर्भय हो कर खा लिए. न बदहजमी का डर न ब्लडप्रेशर की चिंता. आत्महत्या के खयाल ने ही उन्हें निश्चिंत कर   दिया था.

खाना खाने के बाद मालती बैठक का दरवाजा बंद करने गईं तो देखा वह किशोर आराम से गहरी नींद में सो रहा था. उन के मन में एक अजीब सा खयाल आया कि सालों से तो वह अकेली जी रही हैं. चलो, मरने के लिए तो किसी का साथ मिला.

मालती उस किशोर को जगाने को हुईं लेकिन नींद में उस का चेहरा इस कदर लुभावना और मासूम लग रहा था कि उसे जगाना उन्हें नींद की गोलियां खिलाने से भी बड़ा क्रूर काम लगा. उस के दोनों पैर फैले हुए थे. बंद आंखें शायद कोई मीठा सा सपना देख रही थीं क्योंकि होंठों के कोनों पर स्मितरेखा उभर आई थी. किशोर पर उन की ममता उमड़ी. उन्होंने उसे चादर ओढ़ा दी.

‘चलो, अकेले ही नींद की गोलियां खा ली जाएं,’ उन्होंने सोचा और फिर अपने स्वार्थी मन को फटकारा कि तू तो मर जाएगी और सजा भुगतेगा यह निरपराध बच्चा. इस से तो अच्छा है वह 1 दिन और रुक जाए और वह आत्महत्या की योजना स्थगित कर लेट गईं.

उस किशोर की तरह वह खुशकिस्मत तो थी नहीं कि लेटते ही नींद आ जाती. दृश्य जागती आंखों में किसी दुखांत फिल्म की तरह जीवन के कई टुकड़ोंटुकड़ों में चल रहे थे कि तभी उन्हें हलका कंपन महसूस हुआ. खिड़की, दरवाजों की आवाज से उन्हें तुरंत समझ में आया कि यह भूकंप का झटका है.

‘‘उठो, उठो…भूकंप आया है,’’ उन्होंने किशोर को झकझोर कर हिलाया. और दोनों हाथ पकड़ कर तेज गति से बाहर भागीं.

उन के जागते रहने के कारण उन्हें झटके का आभास हो गया. झटका लगभग 30 सेकंड का था लेकिन बहुत तेज नहीं था फिर भी लोग चीखते- चिल्लाते बाहर निकल आए थे. कुछ सेकंड बाद  सबकुछ सामान्य था लेकिन दिल की धड़कन अभी भी कनपटियों पर चोट कर रही थी.

जब भूकंप के इस धक्के से वह उबरीं तो अपनी जिजीविषा पर उन्हें अचंभा हुआ. वह तो सोच रही थीं कि उन्हें जीवन से कतई मोह नहीं बचा लेकिन जिस तेजी से वह भागी थीं, वह इस बात को झुठला रही थी. 82 साल की उम्र में निपट अकेली हो कर भी जब वह जीवन का मोह नहीं त्याग सकतीं तो यह किशोर? इस ने अभी देखा ही क्या है, इस की जिंदगी में तो भूकंप का भी यह पहला ही झटका है. उफ, यह क्या करने जा रही थीं वह. किस हक से उस मासूम किशोर को वे मृत्युदान करने जा रही थीं. क्या उम्र और अकेलेपन ने उन की दिमागी हालत को पागलपन की कगार पर ला कर खड़ा कर दिया है?

मालतीजी ने मिचमिची आंखों से किशोर की ओर देखा, वह उन से लिपट गया.

‘‘दादी, मैं अपने घर जाना चाहता हूं, मैं मरना नहीं चाहता…’’ आवाज कांप रही थी.

वह उस के सिर पर प्यार भरी थपकियां दे रही थीं. लोग अब साहस कर के अपनेअपने घरों में जा रहे थे. वह भी उस किशोर को संभाले भीतर आ गईं.

‘‘तुम्हारा नाम क्या है?’’

‘‘उदय जयराज.’’

अभी थोड़ी देर पहले तक उन्हें इस परिचय की जरूरत महसूस नहीं हुई थी. मृत्यु की इच्छा ने अनेक प्रश्नों पर परदा डाल दिया था, पर जिंदगी के सामने तो समस्याएं भी होती हैं और समाधान भी.

ऐसा ही समाधान मालतीजी को भी सूझ गया. उन्होंने उदय को आदेश दिया कि अपने मम्मीपापा को फोन करो और अपने सकुशल होने की सूचना दो.

उदय भय से कांप रहा था, ‘‘नहीं, वे लोग मुझे मारेंगे, सूचना आप दीजिए.’’

उन्होेंने उस से पूछ कर नंबर मिलाया. सुबह के 4 बज रहे थे. आधे घंटे बाद उन के घर के सामने एक कार रुकी. उदय के मम्मीपापा और उस का छोटा भाई बदहवास से भीतर आए. यह जान कर कि वह रेललाइन पर आत्महत्या करने चला था, उन की आंखें फटी की फटी रह गईं. रात तक उन्होेंने उस का इंतजार किया था फिर पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराई थी.

उदय को बचाने के लिए उन्होेंने मालतीजी को शतश: धन्यवाद दिया. मां के आंसू तो रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे.

‘‘आप दोनों से मैं एक बात कहना चाहती हूं,’’ मालतीजी ने भावनाओं का सैलाब कुछ थमने के बाद कहा, ‘‘देखिए, हर बच्चे की अपनी बौद्घिक क्षमता होती है. उस से ज्यादा उम्मीद करना ठीक नहीं होता. उस की बुद्घि की दिशा पहचानिए और उसी दिशा में प्रयत्न कीजिए. ऐसा नहीं कि सिर्फ डाक्टर या इंजीनियर बन कर ही इनसान को मंजिल मिलती है. भविष्य का आसमान हर बढ़ते पौधे के लिए खुला है. जरूरत है सिर्फ अच्छी तरह सींचने की.’’

अश्रुपूर्ण आंखों से उस परिवार ने एकएक कर के उन के पैर छू कर उन से विदा ली.

उस पूरी घटना पर वह पुन: विचार करने लगीं तो उन का दिल धक् से रह गया. जब उदय अपने घर वालों को बताएगा कि वह उसे नींद की गोलियां खिलाने वाली थीं, तो क्या गुजरेगी उन पर.

अब तो वह शरम से गड़ गईं. उस मासूम बचपन के साथ वह कितना बड़ा क्रूर मजाक करने जा रही थीं. ऐन वक्त पर उस की बेखबर नींद ने ही उन्हें इस भयंकर पाप से बचा लिया था.

अंतहीन विचारशृंखला चल पड़ी तो वह फोन की घंटी बजने पर ही टूटी. उस ओर उदय की मम्मी थीं. अब क्या होगा. उन के आरोपों का वह क्या कह कर खंडन करेंगी.

‘‘नमस्ते, मांजी,’’ उस तरफ चहकती हुई आवाज थी, ‘‘उदय के लौट आने की खुशी में हम ने कल शाम को एक पार्टी रखी है. आप की वजह से उदय का दूसरा जन्म हुआ है इसलिए आप की गोद में उसे बिठा कर केक काटा जाएगा. आप के आशीर्वाद से वह अपनी जिंदगी नए सिरे से शुरू करेगा. आप के अनुभवों को बांटने के लिए हमारे इष्टमित्र भी लालायित हैं. उदय के पापा आप को लेने के लिए आएंगे. कल शाम 6 बजे तैयार रहिएगा.’’

‘‘लेकिन मैं…’’ उन का गला रुंध गया.

‘‘प्लीज, इनकार मत कीजिएगा. आप को एक और बात के लिए भी धन्यवाद देना है. उदय ने बताया कि आप उसे नींद की गोलियां खिलाने के बहाने अपने घर ले गईं. इस मनोवैज्ञानिक तरीके से समझाने के कारण ही वह आप के साथ आप के घर गया. समय गुजरने के साथ धीरेधीरे उस का उन्माद भी उतर गया. हमारा सौभाग्य कि वह जिद्दी लड़का आप के हाथ पड़ा. यह सिर्फ आप जैसी अनुभवी महिला के ही बस की बात थी. आप के इस एहसान का प्रतिदान हम किसी तरह नहीं दे सकते. बस, इतना ही कह सकते हैं कि अब से आप हमारे परिवार का अभिन्न अंग हैं.’’

उन्हें लगा कि बस, इस से आगे वह नहीं सुन पाएंगी. आंखों में चुभन होने लगी. फिर उन्होंने अपनेआप को समझाया. चाहे उन के मन में कुविचार ही था पर किसी दुर्भावना से प्रेरित तो नहीं था. आखिरकार परिणाम तो सुखद ही रहा न. अब वे पापपुण्य के चक्कर में पड़ कर इस परिवार में विष नहीं घोलेंगी.

इस नए सकारात्मक विचार पर उन्हें बेहद आश्चर्य हुआ. कहां गए वे पश्चात्ताप के स्वर, हर पल स्वयं को कोसते रहना, बीती बातों के सिर्फ बुरे पहलुओं को याद करना.

उदय का ही नहीं जैसे उन का भी पुनर्जन्म हुआ था. रात को उन्होंने खाना खाया. पीने के पानी के बरतन उत्साह से साफ किए. हां, कल सुबह उन्हेें इन की जरूरत पड़ेगी. टीवी चालू किया. पुरानी फिल्मों के गीत चल रहे थे, जो उन्हें भीतर तक गुदगुदा रहे थे. बिस्तर साफ किया. टेबल पर नींद की गोलियां रखी हुई थीं. उन्होंने अत्यंत घृणा से उन गोलियों को देखा और उठा कर कूड़े की टोकरी में फेंक दिया. अब उन्हें इस की जरूरत नहीं थी. उन्हें विश्वास था कि अब उन्हें दुस्वप्नरहित अच्छी नींद आएगी.

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