Women : धरती पर मानव सभ्यताओं के विकास के साथ ही मानव समूहों में जमीन पर वर्चस्व को ले कर युद्ध हो रहे हैं. पहले युद्ध विभिन्न कबीलों के बीच होते थे, जब देश बने तो देशों के बीच युद्ध होने लगे. कहने को मनुष्य ने जंगल और जंगली जानवरों के बीच से निकल कर सभ्यताएं बसाईं, मगर सच्चाई यह है कि वह सभ्य होने की बजाए अधिक से अधिक जानवर बनता गया, सभ्यता का लबादा ओढ़े खूंखार जानवर.

सभ्यता, संस्कार और संस्कृति के नाम पर उस ने धर्म नामक चीज का आविष्कार किया. धर्म चूंकि पुरुष द्वारा ईजाद की गई चीज थी, लिहाजा उस ने खुद को सर्वोच्च रखते हुए अनेक नियमों से युक्त ग्रंथों की रचना की. इन ग्रंथों में स्त्री को दोयम दर्जे पर रख कर पुरुष ने उसे अपनी सेविका बनाए रखने की साजिश रची.

किसी भी धर्म की धार्मिक पुस्तक पढ़ कर देखें, स्त्री सदैव सेविका के समान पुरुष के आश्रय में प्रताड़ित और इस्तेमाल की जाने वाली वस्तु के रूप में ही वर्णित है. कहीं वह उस के चरणों में बैठी उस के पैर दबा रही है तो कहीं वह उस के श्राप से प्रताड़ित आंसू बहाती नजर आती है.

कहीं वह नाजायज बच्चा पैदा कर के समाज के डर से अपनी ममता का गला घोंटने और अपने बच्चे को पानी में प्रवाहित करने के लिए मजबूर है, कहीं वह अपने चरित्र की परीक्षा देती धरती में समाती दिख रही है तो कहीं भरी सभा में उस के जिस्म से कपड़े नोचे जा रहे हैं. धार्मिक किताबों में कहीं भी स्त्री को राजकाज संभालते या निर्देश देते नहीं दिखाया गया है. यानी लीडर के रूप में उस की कल्पना कभी नहीं की गई. यानी पुरुष हमेशा औरत पर हावी रहा और पुरुषों के बीच जबजब युद्ध हुए उन्होंने दूसरे पक्ष की औरतों पर जुल्म करने का कोई अवसर नहीं छोड़ा.

पुरुषों ने जबजब जमीन पर अपने वर्चस्व को ले कर युद्ध लड़े उस में हारे हुए पुरुष के राज्य की स्त्रियां सब से ज्यादा कुचली और सतायी गईं. दरअसल युद्ध केवल राष्ट्रों की सीमाओं को बढ़ाने के लिए सैनिकों के बीच होने वाला संघर्ष नहीं होता, बल्कि यह समाज के हर वर्ग को प्रभावित करता है, विशेष रूप से महिलाओं को.

युद्ध के दौरान और युद्ध के बाद औरतें शारीरिक, मानसिक, सामाजिक और आर्थिक रूप से अनेक प्रकार की पीड़ाओं का सामना करती हैं. युद्ध के दौरान यौन हिंसा एक भयावह यथार्थ है. हारे हुए राज्य की महिलाएं बलात्कार, मानव तस्करी और यौन दासता का शिकार बनती हैं. कई बार उन्हें हथियार के रूप में भी इस्तेमाल किया जाता है, जिस से दुश्मन समुदाय को तोड़ा जा सके. उदाहरण: रवांडा, बोस्निया और सीरिया जैसे संघर्षों में बड़े पैमाने पर ऐसी घटनाएं सामने आई हैं.

युद्ध पुरुष वर्चस्व की मानसिकता पर आधारित कृत्य है. यह विध्वंस को बढ़ावा देता है. साथ ही सामाजिक और राजनैतिक दृष्टि से पुरुष तंत्र को मजबूत बनाता है. युद्ध का सब से नकारात्मक एवं विचारणीय पक्ष यह है कि यहां स्त्रियों को दोयम दर्जे का नागरिक माना जाता है. युद्ध संबंधी सभी गतिविधियों में उस की हिस्सेदारी प्रत्यक्ष रूप में न के बराबर है.

इन सब के बावजूद युद्ध की त्रासदी की दोहरी मार स्त्रियां ही झेलती हैं. युद्ध के समय व्यापक स्तर पर सामाजिक एवं पारिवारिक क्षति होती है. जिस में स्त्रियों के शरीर ही नहीं नोचे जाते बल्कि उस के बच्चे भी मारे जाते हैं.

महाभारत काल हो, इस्लाम के उदय का काल हो या आज का आधुनिक समय, धरती कभी भी युद्ध से मुक्त नहीं रही. कभी धर्म युद्ध, कभी राष्ट्र युद्ध, कभी विश्व युद्ध तो कभी गृह युद्ध बड़ी संख्या में मासूम और निर्दोष लोगों का जीवन लीलता रहा. वर्तमान समय में भी कई देशों के बीच घमासान युद्ध जारी हैं.

रूसयूक्रेन, ईरान इजरायल अमेरिका और हाल ही में हुआ भारत पाकिस्तान युद्ध. इन तमाम देशों के सत्ता शीर्ष पर बैठे नेताओं के दम्भ, अहंकार, महत्वाकांक्षाओं, मूर्खताओं, दिखावे और लालच ने पूरे राष्ट्र और उसके निर्दोष नागरिकों को युद्ध की आग में झोंक रखा है.

युद्ध का प्रभाव मासूम बच्चों और आम नागरिकों के जीवन पर गहरा और दीर्घकालिक होता है. युद्ध की विभीषिकाएं मानवता, समाज, अर्थव्यवस्था और संस्कृति सभी को झकझोर देती हैं.

धरती (क्षेत्र) राष्ट्र की इज्जत का प्रतीक मानी जाती है. उसी प्रकार स्त्री, देश समुदाय, जाति और धर्म की इज्जत से जोड़ कर देखी जाती है. जिस प्रकार किसी राष्ट्र की सेना द्वारा दूसरे राष्ट्र की धरती पर कब्जा या वर्चस्व स्थापित कर उसे परास्त किया जाता है, ठीक उसी प्रकार किसी देश, समुदाय, जाति, परिवार और धर्म की स्त्री को अपहृत, प्रताड़ित, बलात्कार और अन्य तरह की हिंसा करके उस पूरे समुदाय को परास्त करने का प्रयास किया जाता है. इस प्रकार स्त्री शरीर युद्ध भूमि का वह क्षेत्र बना दिया गया है जहां देश, समुदायों, जातियों, परिवारों और धर्मों के बीच युद्ध लड़ा जाता है.

अतः किसी भी तरह का युद्ध हो उस में सब से ज्यादा पीड़ित और प्रभावित स्त्री ही होती है. स्त्री ही एक ऐसे ‘औब्जेक्ट’ के रूप में सामने आती है जो प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष तौर पर हिंसा का शिकार होती है. एमनेस्टी इंटरनेशनल के 2004 की रिपोर्ट के अनुसार युद्ध में स्त्रियों के साथ बर्बरतापूर्ण यौन उत्पीड़न के सबूत मिलते हैं, जिस में बताया गया है कि स्त्रियों के जननांगों को काटना, उन के गुप्त अंगों के आसपास मारना, आदि युद्ध के दौरान सामान्य बातें हैं.

प्रथम और द्वितीय दो विश्व युद्धों में कई देशों में सैन्य व अर्द्ध सैन्य बलों ने सामूहिक बलात्कार की अंगिनल घटनाओं को अंजाम दिया. लेकिन आमतौर पर घटना के बाद की स्थितियों में इस प्रकार के विश्लेषण और आंकड़े नहीं के बराबर प्रस्तुत किए जाते हैं. बल्कि तथ्यों/मुद्दों को गौण कर देने का भरसक प्रयास किया जाता है.

युद्ध के दौरान बलात्कार सिर्फ एक दुर्घटना नहीं होता वरन क्रमबद्ध युद्ध राजनीति का हिस्सा होता है. जानीमानी लेखिका क्रिस्टीन टी हेगन अपने रिसर्च पेपर में लिखती हैं- द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान लगभग 19 लाख महिलाओं के साथ बलात्कार हुआ.

पाकिस्तानी सैनिकों ने बांग्लादेश की लगभग 2 लाख महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार किया. क्रोएशिया, बोस्निया तथा हर्जेगोविना में युद्ध के दौरान लगभग 60 हजार बलात्कार के मामले सामने आए.

1992 में हुए क्रोएशिया और सर्बिया के युद्ध में औरतों के साथ दिल दहला देने वाली दुर्दशा हुई. औरतें बारीबारी सैनिकों द्वारा ले जाए जातीं और बलात्कार के बाद लुटीपिटी घायल अवस्था में स्पोर्ट्स हौल में बंद कर दी जातीं. सेनाओं ने घरों, दफ्तरों और कई स्कूलों की इमारतों को यातना शिविरों में बदल डाला था.

1994 में हुए रवांडा के युद्ध में लगभग ढाई से पांच लाख महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार किए गए. एक अनुमान के अनुसार युद्ध के दौरान 91 प्रतिशत बलात्कार सामूहिक होते हैं. जो महिलाएं युद्ध में यौन हिंसा या बंदी बनने जैसी पीड़ाओं से गुजरती हैं, उन्हें समाज में अपमान, बहिष्कार और कलंक का सामना करना पड़ता है. वे मानसिक तनाव, अवसाद और आत्महत्या की ओर भी धकेली जाती हैं.

युद्ध प्रभावित क्षेत्रों में लड़कियों की शिक्षा रुक जाती है. स्कूल बंद हो जाते हैं या असुरक्षित हो जाते हैं. स्वास्थ्य सेवाएं ठप हो जाती हैं, जिस से गर्भवती महिलाओं और नवजात बच्चों की मृत्यु दर बढ़ जाती है. अफगानिस्तान में तालिबान अटैक के वक्त से ले कर आजतक स्त्रियों की स्थिति बदतर है.

युद्ध में कोई राष्ट्र जीते या हारे, मगर जो सैनिक मारे जाते हैं उन की विधवाओं की जिंदगी दूभर हो जाती है. युद्ध में पुरुषों के मारे जाने या अपंग होने के कारण महिलाओं को अकेले ही पूरे परिवार की जिम्मेदारी उठानी पड़ती हैं. असुरक्षा और डर उन के रोजमर्रा के जीवन का हिस्सा बन जाते हैं. हिंसा के शारीरिक, मानसिक एवं भावनात्मक प्रभावों के अतिरिक्त युद्ध के दौरान अपने पति के मारे जाने, लापता होने अथवा नजरबंद होने से स्त्रियों पर अपने बच्चों और परिवार के भरणपोषण का दायित्व बढ़ जाता है और उपयुक्त नौकरी और भूमि जैसे संसाधनों पर स्वामित्व न होने के कारण उन की चुनौतियाँ और अधिक बढ़ जाती हैं.

फलतः अपने अस्तित्व की रक्षा तथा जीवन निर्वाह के लिए उन्हें गैर कानूनी कार्यों जैसे वैश्यावृत्ति, नशीले पदार्थों की तस्करी आदि का सहारा लेना पड़ता है. इस के कारण समाज में अपराधों की दर में वृद्धि होती है.

युद्ध की वजह से लाखों महिलाएं अपने घरों से विस्थापित हो जाती हैं. अगर जान बचा कर वे किसी तरह शरणार्थी शिविरों में पहुंच भी जाती हैं तो वहां भी उन्हें पर्याप्त सुरक्षा और सम्मान नहीं मिल पाता. उन्हें भोजन, चिकित्सा और मूलभूत सुविधाओं की कमी का सामना करना पड़ता है. वहां के अधिकारी उन के जिस्मों पर अपनी नजरें गड़ाए रखते हैं और मौका पाते ही उन से बलात्कार करते हैं.

अप्रवास के अंतर्राष्ट्रीय संगठन (International Organization for Migration) के मुताबि यूक्रेन में युद्ध के चलते देश छोड़ने वाले एक करोड़ से ज्यादा लोगों में महिलाओं और बच्चों की तादात आधी से भी ज्यादा है. परिवार की देखभाल की अतिरिक्त जिम्मेदारी अकेले निभाने की चुनौतियों के चलते उन्हें मानसिक सेहत की चुनौतियों का भी सामना करना पड़ रहा है. वे चिंता, तनाव, डिप्रेशन और भय का शिकार हैं.

यूक्रेन के जिन क्षेत्रों पर रूसी सैनिकों ने कब्जे कर लिए हैं, वहां महिलाओं के यौन हिंसा के शिकार होने की आशंका इस कदर बढ़ गई है कि उन्हें अपने घरबार को छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा है. विदेश में जहां उन्होंने पनाह ली, उस नए माहौल में अपनी जान बचाने के लिए सैक्स करने या अपनी नाबालिग बेटियों का बाल विवाह करने की मजबूरी उन के सामने है. जिस से आखिरकार वे शोषण और जुल्म की और भी शिकार होती हैं.

यौन हिंसा के साथ साथ युद्ध के दौरान वैश्यावृत्ति की दर में तेजी देखी जाती है. सैनिक अड्डों के आसपास कई ऐसे सामाजिक ढांचे हैं जहां स्त्रियों को अगवा कर उन्हें वेश्यावृत्ति के लिए बेचा जाता है.

वर्तमान परिपेक्ष्य में अगर देखा जाए तो स्थितियां और भी भयावह होती जा रही हैं. रूस की गोलीबारी और बमबारी के चलते महिलाओं द्वारा अंडरग्राउंड मेट्रो स्टेशनों पर बच्चे पैदा करने की मजबूरियां, रूसी सैनिकों द्वारा यूक्रेन की महिलाओं, यहां तक की दस साल की मासूम बच्चियों तक से बलात्कार की खबरें सोशल मीडिया पर हैं.

इस के बाद भी वास्तविक स्थिति को पूरी तरह छुपाया जा रहा है. युद्ध में महिलाओं के खिलाफ हो रहे जुर्म के आधिकारिक आंकड़े सामने नहीं आ रहे हैं.

वर्तमान में हो रही हिंसा पर यदि नजर डालें तो हम पाते हैं कि पहले के समाजों में स्त्री पर बिना हिंसा किये वर्चस्व बनाए रखने की प्रवृत्ति थी, वहीँ आज स्त्री शरीर पर हिंसा करते हुए उस समाज पर वर्चस्व कायम करने की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है.

यह स्थिति आज इतना विकराल रूप ले चुकी है की स्त्री शरीर को निशाना बनाए बगैर किसी भी तरह की हिंसा को अंजाम नहीं दिया जा रहा है. और न ही समाज पर वर्चस्व प्राप्त किया जा रहा है. इस प्रकार स्त्री शरीर न केवल वर्चस्व प्राप्त करने का एक साधन या जरिया है बल्कि ‘विजय संकेत’ के रूप में स्थापित होती जा रही है.

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