Family Story In Hindi : हाथी के दांत खाने के और होते हैं और दिखाने के और, यह बात पलक को तब समझ आई जब उस के संस्कार की बात करने वाले बहुरूपिए ससुराल वालों की असलियत सामने आई.
मटन का पैकेट किचन प्लेटफौर्म पर रखते हुए घर का नौकर संजू बोला, ‘‘बीबीजी, दादा साहब ने यह 2 किलोग्राम मटन भिजवाया है, उन्होंने कहा है कि आज दोपहर के खाने में मटन बिरयानी और मटन कबाब बनाना है.’’
इतना कह कर संजू वहां से चला गया. राजेश्वरी, जो किचन का ही कुछ काम कर रही थीं, अपने हाथों को रोके बगैर ही किचन में खड़ी अपनी बहू पलक, जो हरी पत्तेदार सब्जियां सुधार रही थी, से बोलीं, ‘‘पलक बेटा, पहले मटन को धो कर गलाने के लिए चढ़ा दो क्योंकि मटन को गलने में टाइम लगेगा. तब तक मैं बाकी तैयारियां कर लेती हूं.’’
राजेश्वरी के ऐसा कहते ही पलक ने कुछ कहने की मंशा से अपनी सासुमां की ओर देखा, लेकिन राजेश्वरी अपनी ही धुन में काम में लगी हुई थीं. असल में पलक अपनी सासुमां से यह कहना चाहती थी कि मम्मीजी, कल ही तो फिश बनाई थी तो आज मटनबिरयानी और कबाब बनाना क्या जरूरी है? लेकिन वह कुछ बोल नहीं पाई और चुपचाप मटन धोने लगी.
जब से पलक इस घर में ब्याह कर आई है तब से वह देख रही है मंगलवार और शनिवार को छोड़ कर हर दिन दोनों टाइम दोपहर और रात के खाने में हरी सब्जियों के अलावा नौनवेज भी बनता ही है. मंगलवार और शनिवार को घर पर नौनवेज नहीं बनने के पीछे भी एक कारण है. इस घर के मुखिया यानी राजेश्वरी के ससुरजी, पलक के दादाससुर इन दोनों दिनों में केवल सात्विक भोजन ही करते हैं और राजेश्वरी को घर पर नौनवेज नहीं बनाने की सख्त हिदायत है.
घर पर नौनवेज अवश्य इन दोनों दिनों में नहीं बनता लेकिन राजेश्वरी के पति और बेटे मतलब पलक के ससुर और पति दोनों ही घर के बाहर नौनवेज खा ही लेते हैं. बाहर खाने में कोई रोकटोक नहीं है, केवल मंगलवार और शनिवार को घर के किचन में सात्विक भोजन ही बनता है.
पलक का ब्याह 4 महीने पहले शहर के जानेमाने राजनीतिक व रसूखदार परिवार में हुआ है. उस के दादा ससुर ठाकुर भानु प्रताप सिंह पूर्व विधायक रह चुके हैं. ससुर ठाकुर अभय प्रताप सिंह वर्तमान में सांसद हैं और पलक के पति ठाकुर अनुराग सिंह राजनीति में अपने पैर जमा रहे हैं या यों कह सकते हैं कि उन्हें विरासत में जमाजमाया राजपाट मिल ही गया है. कुल मिला कर पूरा का पूरा परिवार जनसेवा, राष्ट्रीय सेवा में तल्लीन है. पलक भी कोई छोटेमोटे परिवार से ताल्लुक नहीं रखती है, वह भी शहर के प्रतिष्ठित परिवार से है. उस के पिता शहर के सम्मानित, प्रतिष्ठित व शहर के बहुत बड़े जानेमाने उद्योगपति हैं. शहर में दोनों ही परिवारों का डंका बजता है.
हाथी के दांत खाने के और होते हैं और दिखाने के और, यह कहावत ऐसे ही प्रसिद्ध नहीं है. अकसर यह देखा गया है कि हमारे आसपास और इस दुनिया में ऐसे अनगिनत लोग हैं जिन्हें समझ पाना आसान नहीं है. इस तरह के लोग जैसा दिखते हैं वैसे होते नहीं है. ये लोग कहते कुछ हैं और करते कुछ. उन का वास्तविक रूप कुछ और होता है. वे दुनिया के समक्ष खुद को कुछ और ही रूप में प्रस्तुत करते हैं. हम उन्हें बहुरूपिए की संज्ञा भी दे सकते हैं जो अकसर समय के साथ अपना रूप व स्वभाव बदलते ही रहते हैं या फिर गिरगिट भी कह सकते हैं.
साधु बन कर संस्कार, संस्कृति और संयम का पाठ पढ़ाने वाले ये बहुरूपिए असल जिंदगी में चांडाल होते हैं. यही हाल पलक के ससुराल वालों का भी है. उन का राजनीतिक चेहरा कुछ और ही है और वास्तविकता कुछ और.
ठाकुर परिवार की पूरी राजनीति धर्म, धर्म की रक्षा, नारी सुरक्षा और उस की आजादी पर ही टिकी हुई है. पलक जब इस घर में ब्याह कर आई तो वह इस बात से बेखबर थी कि उस का ससुराल जिन मुद्दों को ले कर आवाज उठाता है, प्रैस कौन्फ्रैंस करता है, असल में उन्हें उन मुद्दों से कोई लेनादेना है ही नहीं. वह तो बस एक राजनीतिक एजेंडा है जिस के जरिए ये सब बस अपना स्वार्थ साधते हैं. अपनी रोटियां सेंकने के लिए ही यह सारा प्रपंच करते हैं और भोलीभाली जनता उन्हें अपना और अपने धर्म का रक्षक समझ कर सिरआंखों पर बिठाए रखती है.
पलक जब ब्याह कर आई तो उस की पलकों में अनगिनत सपने थे जिन्हें वह साकार रूप देना चाहती थी. शादी से पहले पलक एक समाजसेवी संस्था से जुड़ी हुई थी जिस के जरिए वह गरीब, लाचार व घरपरिवार से प्रताडि़त महिलाओं की मदद किया करती थी. उन्हें जीने की नई राह दिखाती थी. पलक को इस बात का अंदेशा ही नहीं था कि शादी के बाद उस के जीवन में इतना बड़ा बदलाव आ जाएगा. दूसरों के इंसाफ व अधिकार के लिए लड़ने वाली को खुद अपने अधिकार व स्वतंत्रता के लिए भी एक दिन लड़ना पड़ेगा.
पलक इस खुशफहमी में थी कि वह ऐसे परिवार में ब्याह कर जा रही है जहां नारी सुरक्षा और नारी स्वतंत्रता जैसे मुद्दों को गंभीरता से लिया जाता है, उस पर आवाज उठाई जाती है और आंदोलन भी किए जाते हैं. लेकिन पलक की यह खुशफहमी कुछ ही दिनों में काफूर हो गई जब उस के पति अनुराग ने उस से कहा, ‘‘पलक, अब तुम्हें किसी संस्था के लिए काम करने की जरूरत नहीं है. हमारे घर की बहुएं काम नहीं करतीं.’’
अनुराग का सख्त लहजे में इस तरह कहना पलक को बिलकुल भी अच्छा नहीं लगा, उस ने पलट कर जवाब देते हुए अनुराग से कहा, ‘‘मैं उस संस्था के लिए काम नहीं करती. अपनी सेवाएं मुफ्त में देती हूं. बदले में संस्था से कोई पैसा नहीं लेती. मैं स्वेच्छा से यह सब करती हूं. मैं उन महिलाओं की सहायता करती हूं जो लाचार, असहाय और अपने परिवार से सताई व ठुकराई गई हैं. यह सब तो आप के पार्टी एजेंडा में भी है. फिर, मैं करती हूं तो इस में परेशानी क्या है?’’
‘‘तुम अपनी छोटी सी संस्था की तुलना हमारी पार्टी से न ही करो तो अच्छा है. एक और बात अच्छी तरह समझ लो, हमारे घर की बहूबेटियां घर से बाहर नहीं निकलती हैं.’’
अनुराग का यह खुद के पुरुष होने का हुंकार था, जो वह पलक के समक्ष दहाड़ रहा था. लेकिन पलक कहां डरने वाली थी, वह अनुराग के संग भिड़ गई और दोनों के मध्य संस्था में जाने और नहीं जाने को ले कर बहस बढ़ गई. जब पलक के तर्कों पर अनुराग खुद को अक्षम पाने लगा तो उस ने पलक पर हाथ उठा दिया और वहां से चला गया.
अनुराग की इस बदसुलूकी की जानकारी पलक ने अपने सास, ससुर और दादा ससुर को दी लेकिन उन सभी ने कुछ इस तरह से व्यवहार किया जैसे कुछ हुआ ही न हो. यह देख पलक को बहुत आश्चर्य हुआ और वह गुस्से से तिलमिला उठी. जो लोग हर बार अपने भाषण में आम जनता को संबोधित करते हुए बस एक ही बात दोहराते हैं कि हम नारी का सम्मान, उस का अधिकार और उस की सुरक्षा चाहते हैं वही लोग अपने ही घर की महिलाओं को अपने जूते की नोंक पर रखना अपने पुरुषत्व की शान समझते हैं.
पलक पढ़ीलिखी और साहसी होने के साथसाथ एक जानेमाने धनाढ्य व दबंग परिवार की बेटी थी. उस ने फौरन अपने मायके अपनी मां को फोन लगाया और बताया कि अनुराग ने उस पर हाथ उठाया और वह नहीं चाहता कि वह संस्था के लिए काम करे.
पलक की सारी बातें सुनने के पश्चात पलक की मां ने उस से जो कहा उसे सुन कर पलक की आंखें नम हो गईं और उस का मनोबल लड़खड़ा गया. पलक की मां ने उस से कहा, ‘‘देखो पलक, अब तुम्हारा ससुराल ही तुम्हारा अपना घर है जहां तुम्हें ताउम्र गुजारनी है. तुम जितनी जल्दी यह समझ जाओ उतना अच्छा होगा तुम्हारे लिए भी और हमारे लिए भी. अपनी ससुराल में तालमेल बिठाना सीखो और वहां के तौरतरीके अपना लो. इस तरह छोटीछोटी सी बात पर यहां फोन मत किया करो. यदि तुम्हारा पति नहीं चाहता कि तुम घर से बाहर जाओ, काम करो, तो मत करो न, क्या जरूरत है समाज सेवा करने की. इज्जतदार और खानदानी लड़कियां अपने ससुराल की इज्जत इस तरह नहीं उछालतीं, यह बात गांठ बांध कर रख लो.’’
इतना कह कर पलक की मां ने फोन रख दिया. उस दिन पलक बहुत रोई. उस के बाद फिर कभी पलक ने अपनी मां से अपनी किसी भी परेशानी का जिक्र नहीं किया क्योंकि वह समझ चुकी थी कि एक लड़की आज भी अपने ही मातापिता के लिए अपने ही घर में पराई है.
यही सब सोचते हुए गैस चूल्हे पर पलक ने बेमन से मटन धो कर गलाने के लिए चढ़ा दिया और किचन का बाकी काम करते हुए राजेश्वरी से बोली, ‘‘मम्मीजी, मैं सोच रही हूं क्यों न हम एक कुक रख लें. किचन में इतना ज्यादा काम हो जाता है कि हम खाना बनाने के अलावा कुछ और दूसरा काम कर ही नहीं पाते हैं.’’
पलक के इतना कहते ही काम कर रही राजेश्वरी के हाथ खुद ही रुक गए और वह पलक के करीब आ उस की हथेलियों को अपनी हथेलियों में ले, थपथपाते हुए बोली, ‘‘बेटा, यह बात दोबारा मत कहना. तुम तो अपने पति, ससुरजी और दादा ससुरजी को बहुत अच्छी तरह से जानती हो, वे कभी नहीं चाहेंगे कि घर पर खाना नौकर बनाएं या कोई दूसरी जाति या धर्म का व्यक्ति किचन के भीतर प्रवेश करे तो इस तरह की बात फिर कभी मत कहना.’’
अपनी सासुमां के ऐसा कहने पर पलक ने कुछ और नहीं कहना ही उचित समझ और चुपचाप किचन के कामों में लगी रही. दोपहर के समय जब तीनों पिता, पुत्र और पोता खाना खाने बैठे, मटन कबाब खाते हुए ठाकुर अभय प्रताप सिंह बोले, ‘‘बाबूजी, 2 दिनों बाद चैत्य नवरात्र शुरू होने वाला है. हमें कुछ ऐसा करना चाहिए जिस से हमारी और हमारी पार्टी की छवि में और अधिक कट्टर सनातनी की छाप बने जिसे देख कर जनता आगामी चुनाव में हमें ही वोट करे.’’
इस बात पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए ठाकुर अनुराग सिंह बोला, ‘‘पापा, क्यों न हम एक प्रैस कौन्फ्रैंस कर मीडिया वालों को बुलाएं और शहर में भव्य पूजा व भंडारा का आयोजन कराएं.’’
‘‘नहीं, इस का जनता पर कोई खास प्रभाव नहीं पड़ेगा. कुछ ऐसा करना होगा जिस से शहर में थोड़ी तनाव की स्थिति उत्पन्न हो, लोग उत्तेजित हों. आस्था और धर्म खतरे में है, ऐसा कुछ माहौल बने,’’ राजनीति के अनुभवी और पुराने खिलाड़ी ठाकुर भानु प्रताप सिंह बोले.
‘‘तो फिर ऐसा क्या करना चाहिए, बाबूजी आप ही बताइए?’’ ठाकुर अभय प्रताप सिंह मटन बिरयानी चटखारे ले कर खाते हुए बोले.
‘‘एक आइडिया है मेरे पास, इस चैत्र नवरात्र में क्यों न हम यह मांग रखें कि पूरे 9 दिनों तक हमारे शहर में मटन और चिकन की सारी दुकानें बंद कर दी जाएं क्योंकि इस समय सभी सनातनी धर्म के श्रद्धालु माता की उपासना व आराधना करते हैं. ऐसे में मटन व चिकन की खुलेआम बिक्री सनातन धर्म की आस्था को ठेस पहुंचाने का काम करती है,’’ चेहरे पर कुटिल भाव लाते हुए ठाकुर भानु प्रताप सिंह बोले.
इस बात पर ठाकुर अभय प्रताप सिंह बोले, ‘‘अरे वाह बाबूजी, आप ने क्या बेहतरीन तरकीब निकाली है. इस खबर को तो हर मीडिया, हर अखबार, हर चैनल हाथोंहाथ लेगा, बड़ी ही प्रमुखता के साथ दिखाएगा. हमारी पार्टी वैसे भी सनातनी धर्म की पक्षधर कहलाती है. इस विरोध के पश्चात तो और अधिक लोकप्रियता बढ़ जाएगी. कल से ही इस नवरात्र पर मटनचिकन की बिक्री पर विरोध का मोरचा खोल देते हैं.’’
अपने पिता के ऐसा कहते ही अनुराग बोला, ‘‘इस का मतलब पूरे 9 दिनों तक हमें मटनचिकन खाने को ही नहीं मिलेगा.’’
अनुराग की इस बात पर ठाकुर भानु प्रताप सिंह और ठाकुर अभय प्रताप सिंह जोर से ठहाका लगा कर हंसने लगे, फिर अनुराग के पिता अभय प्रताप सिंह बोले, ‘‘अरे बुड़बक, कहीं का हमें खाना नहीं छोड़ना है. हमें केवल दुकान बंद कराना है.’’
तीनों पिता, पुत्र और पोते की सारी बातें खाना परोस रही पलक और उस की सासुमां राजेश्वरी सुन रही थीं. राजेश्वरी पर इन तीनों की बातों का कोई असर नहीं हुआ लेकिन पलक का मन विचलित हो गया. वह सोचने लगी कि कुछ वोट पाने और सत्ता में बने रहने के लिए कुछ नेता किस तरह षड्यंत्र रचते हैं और उस में जनता फंस जाती है. 9 दिनों तक यदि कोई दुकानदार अपनी दुकान बंद रखेगा तो उस की रोजीरोटी और घर कैसे चलेगा? पलक इस का विरोध करना चाहती थी लेकिन वह यह भी जानती थी कि इस तरह का विरोध और बहस अंतहीन है. वह शांत रही.
9 दिनों तक नवरात्र पर मटन मार्केट बंद रखा जाए, इस पर खूब मोरचे निकाले गए, विज्ञप्ति सौंपी गई. इस क्रिया की प्रतिक्रिया हुई. नवरात्र के प्रारंभ दिन पर दोपहर के भोजन में पलक ने अपनी सासुमां को जानकारी दिए बगैर ही बिना प्याजलहसुन के सात्विक भोजन बना कर परोस दिया, जिसे देखते ही तीनों पिता, पुत्र और पोता पलक पर भड़क उठे. अनुराग गुस्से में तमतमाते हुए बोला, ‘‘इस तरह का बेस्वाद खाना बनाने को तुम्हें किस ने कहा.’’
पलक शांत भाव से बोली, ‘‘किसी ने नहीं कहा. मैं ने सोचा, जब आप सभी पूरे शहर में मटन मार्केट बंद करने के लिए आह्वान कर रहे हैं तो आप लोग भी सादा सात्विक भोजन करना ही पसंद करेंगे.’’
पलक के इतना कहते ही ठाकुर भानु प्रताप सिंह चिल्लाते हुए बोले, ‘‘अरे पागल औरत, तुझे पता नहीं, हम राजनेताओं की कथनी और करनी में अंतर होता है.’’
पलक मुसकराई और मन ही मन बुदबुदाते हुए बोली, ‘मुझे मालूम है, हाथी के दांत खाने के और, दिखाने के और होते हैं, और वह वहां से चली गई.
अनुराग तीनों के लिए औनलाइन सींककबाब और्डर करने लगा. यह पलक का पहला कदम था जो उस ने अपनी ससुराल वालों के विरोध में उठाया था. यह जंग अभी काफी लंबी चलनी थी लेकिन इस बार पलक ने भी कमर कस ली थी. Family Story In Hindi
लेखिका : डा. प्रेमलता यदु