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Social Story : कूल फूल – अपने को स्मार्ट समझने वाले युवक की गुदगुदाती कहानी

Social Story : राजेश, विक्रम, सरिता, पिंकी और रश्मि कालेज के बाहर खड़े बातचीत में व्यस्त थे कि तभी एक बाइक तेजी से आ कर उन के पास रुक गई. वे सब एक तरफ हट गए. इस से पहले वे बाइक सवार को कुछ कहते उस ने हैलमैट उतारते हुए कहा, ‘‘क्यों कैसी रही ’’

वे फक्क रह गए, ‘‘अरे, राजन तुम,’’ सभी एकसाथ बोले.

‘‘बाइक कब ली यार ’’ विक्रम ने पूछा.

‘‘बस, इस बार जन्मदिन पर डैड की ओर से यह तोहफा मिला है,’’ कहते हुए वह सब को बाइक की खासीयतें बताने लगा.

राजन अमीर घर का बिगड़ा हुआ किशोर था. हमेशा अपनी लग्जरीज का घमंड दिखाता और सब पर रोब झाड़ता, लेकिन वे तब भी साथ खातेपीते और उस से घुलेमिले ही रहते. रश्मि को राजन का इस तरह बाइक ला कर बीच में खड़ी करना और रोब झाड़ना बिलकुल अच्छा नहीं लगा. वे सभी कालेज के फर्स्ट ईयर के विद्यार्थी थे. लेकिन रश्मि 12वीं तक स्कूल में राजन के साथ पढ़ी थी इसलिए वह अच्छी तरह उस के स्वभाव से वाकिफ थी. सरिता व पिंकी तो हमेशा उस से खानेपीने के चक्कर में रहतीं, अत: एकदम बोल पड़ीं, ‘‘कब दे रहे हो पार्टी बाइक की ’’

‘‘हांहां, बस, जल्दी ही दूंगा. ऐग्जाम्स खत्म होते ही खाली होने पर करते हैं पार्टी,’’ राजन लापरवाही से बोला और बाइक स्टार्ट कर घरघराता हुआ चला गया. रश्मि सरिता व पिंकी से बोली, ‘‘मुझे तो बिलकुल अच्छा नहीं लगा इस का यह व्यवहार, हमेशा रोब झाड़ता रहता है अपनी अमीरी का. उस पर तुम लोग उस से पार्टी की उम्मीद करते हो. याद है, पिछली बार उस ने फोन की पार्टी देने के नाम पर क्या किया था.’’

‘‘हां…हां, याद है,’’ पास खड़ी सरिता बोली, ‘‘उस ने पार्टी के नाम पर बेवकूफ बनाया था, यही न. लेकिन तुम्हें पता है न अचानक उस के मामा की तबीयत खराब हो गई थी जिस कारण वह पार्टी नहीं दे सका था.’’

दरअसल, राजन का जन्मदिन 20 मार्च को होता था और पिछले वर्ष उसे जन्मदिन पर स्मार्टफोन मिला था. उस ने सब को दिखाया. फिर पार्टी का वादा भी किया, लेकिन आया नहीं. बाद में सब ने पूछा तो कह दिया कि मामाजी की तबीयत खराब हो गई थी, जबकि रश्मि जानती थी कि ऐसा कुछ नहीं था. बस, वह सब को मूर्ख बना रहा था. अब तो बाइक मिलने पर राजन का घमंड और बढ़ गया था. वह तो पहले ही अपने सामने किसी को कुछ नहीं समझता था. अत: राजन ने सब को कह दिया, ‘‘ऐग्जाम्स के बाद मैं सभी को एसएमएस कर के बता दूंगा कि कहां और कब पार्टी दूंगा.’’

शाम को सरिता घर में बैठी अगले दिन के पेपर की तैयारी कर रही थी कि रश्मि का फोन आया. बोली, ‘‘राजन का मैसेज आया है. 1 तारीख को दोपहर 1 बजे शिखाजा रैस्टोरैंट में पार्टी दे रहा है. जाओगी क्या ’’

‘‘हां, यार, मैसेज तो अभीअभी मुझे भी आया है. जाना भी चाहिए. तुम बताओ ’’ सरिता ने जवाब दिया.

‘‘मुझे तो उस पर रत्तीभर भरोसा नहीं है. सुबह वह कह रहा था ऐग्जाम्स के बाद पार्टी देगा और अब यह मैसेज. फिर मैं तो पिछली बार की बात भी नहीं भूली,’’ रश्मि साफ मना करती हुई बोली, ‘‘मैं तो नहीं जाऊंगी.’’

तभी राजेश का भी फोन आया और उस ने भी रश्मि को बताया कि राजन ने उसे व विक्रम को भी मैसेज किया है. सब चलेंगे दावत खाने. रश्मि बोली, ‘‘भई, पहले कन्फर्म कर लो, कहीं अप्रैल फूल तो नहीं बना रहा सब को  मैं तो जाने वाली नहीं.’’

पहली तारीख को सभी इकट्ठे हो रश्मि के घर पहुंच गए और उसे भी चलने को कहने लगे. रश्मि के लाख मना करने के बावजूद वे उसे साथ ले गए. शिखाजा रैस्टोरैंट पहुंच कर सभी राजन का इंतजार करने लगे, लेकिन राजन का कहीं अतापता न था. वेटर 2-3 बार और्डर हेतु पूछ गया था. जब उन्होंने फोन पर राजन से संपर्क किया तो उस का फोन स्विचऔफ आ रहा था. काफी देर इंतजार के बाद उन्होंने रैस्टोरैंट में अपनेअपने हिसाब से और्डर दिया और थोड़ाबहुत खापी कर वापस आ गए. उन्हें न चाहते हुए भी अपनी जेब ढीली करनीपड़ी. जब वे सभी घर पहुंच गए तो राजन का मैसेज सभी के पास आया, ‘‘कैसी रही पार्टी अप्रैल फूल की ’’ सभी अप्रैल फूल बन कर ठगे से रह गए थे. ‘राजन ने हमें अप्रैल फूल बनाया’ सभी सोच रहे थे, ‘और हम लालच में फंस गए.’

रश्मि बारबार उन्हें कोस रही थी, ‘‘मैं तो मना कर रही थी पर तुम ही मुझे ले गए. खुद तो मूर्ख बने मुझे भी बनाया.’’

घर आ कर रश्मि ने अपनी मां को सारी बात बताई और राजन को कोसने लगी. मां ने उस की पूरी बात सुनी और बोलीं, ‘‘कूल रश्मि कूल.’’

‘‘कूल नहीं मां, फूल कहो फूल, हम तो जानतेसमझते मूर्ख बने,’’ रश्मि गुस्से से बोली.

‘‘रश्मि, अगर अप्रैल फूल बने हो तो गुस्सा कैसा  यह दिन तो है ही एकदूसरे को मूर्ख बनाने का. तुम भी तो कई बार झूठमूठ डराती हो मुझे इस दिन. कभी कहती हो तुम्हारी साड़ी पर छिपकली है तो कभी गैस जली छोड़ देने का झूठ. फिर जब मुझे पता चलता है तो तुम गाना गाती हो और मुझे चिढ़ाती हो, ‘अप्रैल फूल बनाया…’

‘‘अगर फूल बन ही गए हो तो कुढ़ने से कुछ होने वाला नहीं. सोचो, कैसे राजन को भी तुम अप्रैल फूल बना सकते हो,’’ मां ने सुझाया. अब रश्मि शांत हो गई और कुछ सोचने लगी. फिर उस ने सभी दोस्तों को फोन कर अपने घर बुलाया और राजन को फूल बनाने की तरकीब सोचने को कहा. सभी राजन को भी मूर्ख बना कर बदला लेना चाहते थे. फिर उन्होंने भी राजन को मूर्ख बनाने की तरकीब सोचनी शुरू की. थोड़ी देर बाद रश्मि ही बोली, ‘‘मेरे दिमाग में एक आइडिया आया है. हम राजन को कूल फूल बनाएंगे. उस ने हमें फोन पर एसएमएस कर मूर्ख बनाया है, हम भी उसे फोन के जरिए मूर्ख बनाएंगे. सुनो…’’ कहते हुए उस ने अपनी योजना बताई.

शाम को राजन घर के अहाते में फोन पर बातचीत कर रहा था. उस की बाइक आंगन में खड़ी थी. तभी रश्मि उस के घर पहुंची. उसे देखते ही राजन बोला, ‘‘आओआओ रश्मि, कैसे आना हुआ ’’ रश्मि सोफे पर बैठते हुए बोली, ‘‘वाह राजन, आज तो तुम ने सभी को अच्छा मूर्ख बनाया. अच्छा हुआ मैं तो गई ही नहीं थी,’’ उस ने झूठ बोला.

‘‘अरे भई, तुम्हारी पार्टी तो ड्यू है ही. यह तो वैसे ही मैं ने मजाक किया था. बैठो, मैं तुम्हारे लिए कुछ खाने को लाता हूं,’’ कह कर राजन घर के अंदर गया. वह अपना फोन मेज पर ही छोड़ गया था. रश्मि तो थी ही मौके की तलाश में. उस ने झट से राजन का फोन उठाया और भाग कर आंगन में जा कर राजन की बाइक का फोटो खींच कर उसी के फोन से ओएलएक्स डौट कौम पर बेचने के लिए डाल दिया. कीमत भी सिर्फ 10 हजार रुपए रखी. फिर वापस वैसे ही फोन रख दिया. राजन रश्मि के लिए खानेपीने को लाया. रश्मि ने 2 बिस्कुट लिए और बोली, ‘‘चलती हूं, तुम्हें फूल डे की कूल शुभकामनाएं. अच्छा है अभी तक तुम्हें किसी ने फूल नहीं बनाया और तुम ने सब दोस्तों को एकसाथ बना दिया,’’ और मुसकराती हुई चल दी.

अभी रश्मि घर के गेट तक ही पहुंची थी कि राजन के मोबाइल की घंटी बज उठी, ‘‘आप अपनी बाइक बेचना चाहते हैं न, मैं खरीदना चाहता हूं क्या अभी आ जाऊं ’’

‘‘क्या ’’ राजू सकपकाता हुआ बोला, ‘‘कौन हैं आप  किस ने कहा कि मैं ने अपनी बाइक बेचनी है. अरे, अभी चार दिन पहले ही तो खरीदी है मैं ने. मैं क्यों बेचूंगा ’’ कहते हुए उस ने फोन काट दिया. रश्मि अपनी योजना सफल होती देख मुसकराई और तेजी से घर की ओर चल दी. गुस्से में राजन ने फोन काटा ही था कि एक एसएमएस आ गया. ‘मैं आप की बाइक खरीदने में इंट्रस्टेड हूं. आप के घर आ जाऊं ’ राजन इस अनजान बात से बहुत आहत हुआ. आखिर थोड़ी ही देर में ऐसा क्या हुआ कि इतने फोन व एसएमएस आने लगे. उस ने तो कुछ भी ओएलएक्स पर नहीं डाला. उस के पास अब लगातार एसएमएस और फोन आ रहे थे. वह अभी एसएमएस के बारे में सोच ही रहा था कि तभी एक एसएमएस आया. वह मैसेज देखना नहीं चाहता था. लेकिन उस ने स्क्रीन पर देखा तो चौंका, मैसेज रश्मि का था.

‘अरे, रश्मि का मैसेज,’ सोच उस ने जल्दी से इनबौक्स में देखा तो पढ़ कर दंग रह गया. लिखा था, ‘क्यों, कैसा रहा हमारा रिटर्न अप्रैल फूल बनाना. तुम ने हमें रैस्टोरैंट में बुला कर फूल बनाया और हम ने तुम्हें तुम्हारे ही घर आ कर.’ राजन का गुस्सा सातवें आसमान पर था. उस ने आननफानन में बाइक उठाई और रश्मि के घर चल दिया. रश्मि के घर पहुंचा तो उस के घर सभी दोस्तों को इकट्ठा देख कर दंग रह गया. फिर तमतमाता हुआ बोला, ‘‘तुम मुझे मूर्ख समझते हो. मुझे फूल बनाते हो.’’

‘‘कूल बच्चे कूल. हम ने तुम्हें फूल बनाया है इसलिए गुस्सा थूक दो और सोचो तुम ने हमें रैस्टोरैंट में एकत्र कर मूर्ख नहीं बनाया क्या. तब हमें कितना गुस्सा आया होगा ’’

‘‘हां, पर तुम ने तो मेरी प्यारी बाइक ही बिकवाने की प्लानिंग कर दी.’’

तभी सभी दोस्त हाथ जोड़ कर खड़े हो गए और बोले, ‘‘कूल यार कूल… हमारा मकसद तुम्हें गुस्सा दिलाना नहीं था बल्कि तुम्हें एहसास दिलाना था कि तुम ऐसी हरकत न करो. पिछले साल भी तुम ने मूर्ख दिवस पर पार्टी रख हमें मूर्ख बनाया था. तब तो हम तुम्हारा बहाना भी सच मान गए थे पर इस बार फिर तुम ने ऐसा किया… क्या हम हर्ट नहीं होते ’’ ‘‘हां, लेकिन तुम ने यह सब किया कैसे  मैं तो तुम से पूरे दिन मिला भी नहीं,’’ राजन ने दोस्तों से पूछा.

‘‘तुम नहीं मिले तो क्या. रश्मि तो मिली थी तुम्हें तुम्हारे घर पर,’’ सरिता बोली.

फिर रश्मि ने उसे सारी बात बता दी. ‘‘रश्मि तुम…’’ दांत भींचता हुआ राजन अभी बोला ही था कि अंदर से रश्मि की मां पकौडे़ की प्लेट लेती हुई आईं और बोलीं, ‘‘कूल…फूल…कूल. इस तरह झगड़ते नहीं. अगर मजाक करते हो तो मजाक सहना भी सीखो. मुझे रश्मि ने सब बता दिया है. आओ, पकौड़े खाओ. मैं चाय लाती हूं,’’ कहती हुई मां किचन की ओर मुड़ गईं.

‘‘आंटी, आप भी मुझे फूल कह रही हैं,’’ राजन आगे कुछ बोलता इस से पहले ही रश्मि ने उस के मुंह में पकौड़ा ठूंस दिया और बोली, ‘‘कूल यार फूल… कूल.’’ यह देख सब हंसने लगे और ठहाकों के बीच पकौड़े खाते पार्टी का आनंद उठाने लगे. राजन पकौड़े खातेखाते अपने फोन से बाइक का स्टेटस डिलीट करने लगा. Social Story 

Romantic Story In Hindi : मजबूरी – बारिश की उस रात आखिर क्या हुआ था रिहान के साथ ?

Romantic Story In Hindi : आज भी बहुत तेज बारिश हो रही थी. बारिश में भीगने से बचने के लिए रिहान एक घर के नीचे खड़ा हो गया था. बारिश रुकने के बाद रिहान अपने घर की ओर चल दिया. घर पहुंच कर उस ने अपने हाथपैर धो कर कपड़े बदले और खाना खाने लगा. खाना खाने के बाद वह छत पर चला गया और अपनी महबूबा को एक मैसेज किया और उस के जवाब का इंतजार करने लगा.

छत पर चल रही ठंडी हवा ने रिहान को अपने आगोश में ले लिया और वह किसी दूसरी ही दुनिया में पहुंच गया. वह अपने प्यार के भविष्य के बारे में सोचने लगा.

रिहान तबस्सुम से बहुत प्यार करता था और उसी से शादी करना चाहता था. तबस्सुम के अलावा वह किसी और के बारे में सोचता भी नहीं था. जब कभी घर में उस के रिश्ते की बात होती थी तो वह शादी करने से साफ मना कर देता था.

रिहान के घर वाले तबस्सुम के बारे में नहीं जानते थे. वे सोचते थे कि अभी यह पढ़ाई कर रहा है इसलिए शादी से मना कर रहा है. पढ़ाई पूरी होने के बाद वह मान जाएगा.

तभी अचानक रिहान के मोबाइल फोन पर तबस्सुम का मैसेज आया. उस का दिल खुशी से झूम उठा. उस ने मैसेज पढ़ा और उस का जवाब दिया. बातें करतेकरते दोनों एकदूसरे में खो गए.

तबस्सुम भी रिहान को बहुत प्यार करती थी और शादी करना चाहती थी. अभी तक उस ने भी अपने घर पर अपने प्यार के बारे में नहीं बताया था. वह रिहान की पढ़ाई खत्म होने का इंतजार कर रही थी.

ऐसा नहीं था कि दोनों में सिर्फ प्यार भरी बातें ही होती थीं, बल्कि दोनों में लड़ाइयां भी होती थीं. कभीकभी तो कईकई दिनों तक बातें बंद हो जाती थीं. लड़ाई के बाद भी वे दोनों एकदूसरे को बहुत याद करते थे और कभी किसी बात पर चिढ़ाने के लिए मैसेज कर देते थे. मसलन, तुम्हारी फेसबुक की प्रोफाइल पिक्चर बहुत बेकार लग रही है. बंदर लग रहे हो तुम. तुम तो बहुत खूबसूरत हो न बंदरिया. और लड़तेलड़ते फिर से बातें शुरू हो जाती थीं.

पिछले 3 सालों से वे दोनों एकदूसरे को प्यार करते थे और अब जा कर शादी करना चाहते थे. रिहान ने सोच लिया था कि इस साल पढ़ाई पूरी होने के बाद कोई अच्छी सी नौकरी कर वह अपने घर वालों को तबस्सुम के बारे में बता देगा. अगर घर वाले मानते हैं तो ठीक, नहीं तो उन की मरजी के खिलाफ शादी कर लेगा. वह किसी भी हाल में तबस्सुम को खोना नहीं चाहता था.

एक दिन रिहान की अम्मी बोलीं, ‘‘तेरे मौसा का फोन आया था. उन्होंने तुझे बुलाया है.’’

‘‘मुझे क्यों बुलाया है? मुझ से क्या काम पड़ गया उन्हें?’’ रिहान ने पूछा.

‘‘अरे, मुझे क्या पता कि क्यों बुलाया है. वह तो हमें वहीं जा कर पता चलेगा,’’ उस की अम्मी ने कहा.

कुछ देर बाद वे दोनों मोटरसाइकिल से मौसा के घर की तरफ चल दिए. रिहान के मौसा पास के शहर में ही रहते थे. एक घंटे में वे दोनों वहां पहुंच गए. वहां पहुंच कर रिहान ने देखा कि घर में बहुत लोग जमा थे. उन में उस के पापा, उस की शादीशुदा बहन और बहनोई भी थे.

यह सब देख कर रिहान ने अपनी अम्मी से पूछा, ‘‘इतने सारे रिश्तेदार क्यों जमा हैं यहां? और पापा यहां क्या कर रहे हैं? वे तो सुबह दुकान पर गए थे?’’

अम्मी बोलीं, ‘‘तू अंदर तो चल. सब पता चल जाएगा.’’ रिहान और उस की अम्मी अंदर गए. वहां सब को सलाम किया और बैठ कर बातें करने लगे.

तभी रिहान के मौसा चिंतित होते हुए बोले, ‘‘आसिफ की हालत बहुत खराब है. वह मरने से पहले अपनी बेटी की शादी करना चाहता है.’’

आसिफ रिहान के मामा का नाम था. कुछ दिन पहले हुईर् तेज बारिश में उन का घर गिर गया था. घर के नीचे दब कर मामा के 2 बच्चों और मामी की मौत हो गई थी. मामा भी घर के नीचे दब गए थे, लेकिन किसी तरह उन्हें निकाल कर अस्पताल में भरती करा दिया गया था. वहां डाक्टर ने कहा था कि वे सिर्फ कुछ ही दिनों के मेहमान हैं. उन का बचना नामुमकिन है.

‘‘फिर क्या किया जाए?’’ रिहान की अम्मी बोलीं.

‘‘आसिफ मरने से पहले अपनी बेटी की शादी रिहान के साथ करा देना चाहता है. यह आसिफ की आखिरी ख्वाहिश है और हमें इसे पूरा करना चाहिए,’’ मौसा की यह बात सुन कर रिहान एकदम चौंक गया. उस के दिल में इतना तेज दर्द हुआ मानो किसी ने उस के दिल पर हजारों तीर एकसाथ छोड़ दिए हों. उस का दिमाग सुन्न हो गया.

‘‘ठीक है, हम आसिफ के सामने इन दोनों की शादी करवा देते हैं,’’ रिहान की अम्मी ने कहा.

रिहान मना करना चाहता था, लेकिन वह मजबूर था. उसी दिन शादी की तैयारी होने लगी और आसिफ को भी अस्पताल से मौसा के घर ले आया गया. शाम को दोनों का निकाह करवा दिया गया.

शादी के बाद रिहान अपनी बीवी और मांबाप के साथ घर आ गया. पूरे रास्ते वह चुप रहा. उस का दिमाग काम नहीं कर रहा था. वह समझ नहीं पा रहा था कि उस के साथ हुआ क्या है.

घर पहुंच कर रिहान कपड़े बदल कर छत पर चला गया. उस ने तबस्सुम को एक मैसेज किया. थोड़ी देर बाद तबस्सुम का फोन आया. रिहान के फोन उठाते ही तबस्सुम गुस्से में बोली, ‘‘कहां थे आज पूरा दिन? एक मैसेज भी नहीं किया तुम ने.’’

तबस्सुम नाराज थी और वह रिहान को डांटने लगी. रिहान चुपचाप सुनता रहा. जब काफी देर तक वह कुछ नहीं बोला तो तबस्सुम बोली, ‘‘अब कुछ बोलोगे भी या चुप ही बैठे रहोगे?’’

‘‘मेरी शादी हो गई है आज,’’ रिहान धीमी आवाज में बोला.

तबस्सुम बोली, ‘‘मैं सुबह से नाराज हू्र्रं और तुम मुझे चिढ़ा रहे हो.’’

‘‘नहीं यार, सच में आज मेरी शादी हो गई है. उसी में बिजी था इसलिए मैं बात नहीं कर पाया तुम से.’’

‘‘क्या सच में तुम्हारी शादी हो गई है?’’ तबस्सुम ने रोंआसी आवाज में पूछा.

‘‘हां, सच में मेरी शादी हो गई है,’’ रिहान ने दबी जबान में कहा. उस की आवाज में उस के टूटे हुए दिल और उस की बेबसी साफ झलक रही थी. ऐसा लग रहा था जैसे वह जीना ही नहीं चाहता था.

‘‘तुम ने मुझे धोखा दिया है रिहान,’’ तबस्सुम ने रोते हुए कहा.

‘‘मैं कुछ नहीं कर सकता था, मेरी मजबूरी थी,’’ यह कह कर रिहान भी रोने लगा.

‘‘तुम धोखेबाज हो. तुम झूठे हो. आज के बाद मुझे कभी फोन मत करना,’’ कह कर तबस्सुम ने फोन काट दिया. फोन रख कर रिहान रोने लगा. वहां तबस्सुम भी रो रही थी. Romantic Story In Hindi 

Family Story In Hindi : एक घर ऐसा भी

Family Story In Hindi : वृद्धाश्रम के गेट पर कार रुकते ही बहू फूटफूट कर रोने लगी थी,”मांजी, प्लीज आप घर वापस चलो…’’ उस की सिसकियों की आवाज में आगे की बात गुम हो गई थी. मांजी ने अपनी बहू के सिर पर प्यार से हाथ फेरा,”बेटा, तुम उदास मत हो. मैं कोई तुम से रूठ कर थोड़ी न वृद्धाश्रम रहने आई हूं. मुझे यहां अच्छा लगता है.’’

‘‘नहीं मांजी, मैं आप के बगैर वहां कैसे रहूंगी.’’

कुसुम कुछ नहीं बोली. केवल अपनी बहू आरती के सिर को सहलाती रही. कार का दरवाजा विजय ने खोला था. उस ने सहारा दे कर अपने पिताजी को कार से बाहर निकाला फिर पीछे बैठी अपनी मां की ओर देखा. मां उस की पत्नी के सिर पर हाथ फेर रही थीं और आरती बिलखबिलख कर रो रही थी. उस की आंखें नम हो गईं.

‘‘मां, आप यहां कैसे रह पाएंगी. कुछ देर यहां घूम लो फिर हम साथ वापस लौट चलेंगे,’’ विजय ने अपना चेहरा दूसरी ओर घुमा लिया था ताकि उस की मां उस के बहते आंसुओं को न देख सकें. पर पिता की नजरों से उस के आंसू कैसे छिप सकते थे.

‘‘विजय, तुम रो रहे हो? अरे, हम तो यहां रहने आए हैं और कोई दूर भी नहीं है. जब मन करे यहां आ जाया करो. हम साथ में मिल कर यहां रह रहे बजुर्गों की सेवा करेंगे.’’

‘‘पर बाबूजी, आप लोगों के बगैर हमें अपना ही घर काटने को दौड़ेगा. हम आप के बगैर नहीं रह सकते,” विजय अपने पिता के कांधे पर सिर रख कर फूटफूट कर रोने लगा.

कुछ देर शांति छाई रही फिर कुसुम ने अपने पति का हाथ पकड़ा और वृद्धाश्रम के गेट से अंदर हो गई. उन के पीछेपीछे आरती और विजय उन का सामान हाथ में उठाए चल रहे थे.

‘‘आरती, मांबाबूजी का सारा सामान अच्छी तरह से रख दिया था न?’’

‘‘हां, मैं ने मांजी से पूछ कर सामान बैग में जमा दिया था.’’

‘‘और वह मांजी की दवाई?’’

‘‘हां, वह भी कम से कम 2 महीनों के हिसाब से रख दी हैं. फिर जब हम आएंगे तो और लेते आएंगे.’’

मांबाबूजी को वृद्धाश्रम में छोड़ कर लौटने के पहले विजय ने वद्धाश्रम के मैनेजर से बात की थी और उन्हें बाबूजी की देखभाल करते रहने का अनुरोध किया था. वह कुछ पैसे भी उन के पास छोड़ कर आया था, ‘‘कभी जरूरत पड़े तो आप उन्हें दे देना, मेरा नाम बताए बगैर,” मैनेजर विजय को श्रद्धा के भाव से देख रहा था.

‘‘यहां जो भी बुजुर्ग आते हैं वे अपने बेटे और बहू द्वारा सताए हुए होते हैं पर तुम तो बिलकुल अलग ही हो, विजय.’’

‘‘मैं तो चाहता ही नहीं हूं कि मां और पिताजी यहां रहें. उन की ही जिद के कारण उन को यहां लाना पड़ा. मालूम नहीं हम से क्या अपराध हो गया है,” उस की आंखों से आंसू बह निकले.

मैंनेजर बोला, ‘‘तुमलोग जाओ, मैं उन का ध्यान रखूंगा.”

विजय और आरती भारी कदमों से वृद्धाश्रम से बाहर निकले. वे चाहते थे कि लौटते समय उक बार और मांजी से मिल लें पर आरती ने रोक दिया था.

कुसुम और केदार आश्रम की खिड़की के झरोखे से विजय और आरती को लौटते हुए देख रहे थे, ‘‘बहुत उदास हैं दोनों.”

“हां कुसुम, मगर हम ने उन्हें छोड़ कर कोई गलती तो नहीं की?’’ पहली बार केदार के चेहरे पर सिकन दिखाई दी थी. कुसुम ने पलट कर अपने पति की ओर देखा,”नहीं, हम कोई नाराज हो कर थोड़ी न आए हैं. जब हमें लगेगा कि यहां मन नहीं लग रहा है तब हम अपने घर लौट चलेंगे, कुसुम ने साड़ी के पल्लू से आंखें पोंछते हुए कहा.

केदार कुछ नहीं बोले. वृद्धाश्रम आने का निर्णय उन का ही था. वे ही तो गहेबगाहे इस आश्रम में आतेजाते रहते थे. उन का मित्र रंजीत यहां रह रहा था. रंजीत को तो उन का बेटा ही आश्रम में छोड़ गया था, ‘‘देखो पिताजी, आप हमारे साथ शूट नहीं होते इसलिए आप यहां रहें. जितना खर्चा लगेगा मैं देता रहूंगा…’’ रंजीत आवाक उस की ओर देख रहे थे, ‘‘बेटा इस में शूट नहीं होता का क्या मतलब? मांबाप तो अपने बेटों को पालते ही इसलिए हैं कि वे उन के बुढ़ापे का सहारा बनें.’’

‘‘होता होगा पर हमलोग आप के साथ ऐडजस्ट नहीं कर पा रहे हैं,’’ रंजीत कुछ नहीं बोला और चुपचाप वृद्धाश्रम आने की तैयारी करने लगा. उन्होंने अपने मित्र रंजीत को जरूर बताया था, ‘‘यार, अब हम मिल नहीं पाएंगे.’’

केदार को आश्चर्य हुआ, ‘‘क्यों?’’

‘‘मेरा बेटा मुझे वृद्धाश्रम छोड़ रहा है…’’

‘‘वृद्धाश्रम… पर क्यों?’’ रंजीत कुछ नहीं बोला. केदार ने भी उसे नहीं उकेरा.

‘‘देखो रंजीत, हम तो मिलेंगे ही, यहां नहीं तो मैं वृद्धाश्रम आ कर मिलूंगा,’’अरे नहीं केदार, तुम्हारा बेटा तो हीरा है. तुम उस के साथ ऐंजौय करो.’’

रंजीत की आंखें बरस रहीं थीें. बहुत छिपाने के बाद भी उन की सिसकियां केदार तक चहुंच चुकी थीं. केदार ने रंजीत से मिलने वृद्धाश्राम जाना शुरू कर दिया था. वे दिनभर वहां रहते और रंजीत के दुख को हलका करते. वहां रह रहे और वृद्धजनों से भी मिलते. केदार जब भी वृद्धाश्रम जाते अपने साथ खानेपीने का कुछ न कुछ सामान ले कर जाते. सारे लोगों के साथ बैठ कर खाते और मस्ती करते. केदार को वृद्धाश्रम में अच्छा लगने लगा था. कई बारे वे अपनी पत्नी कुसुम को भी ले कर जाते .

‘‘विजय मुझे कुछ पैसे दोगे?’’

‘‘जी बाबूजी, कितन पैसे दूं?’’

‘‘यही कोई ₹5 लाख,” केदार बोल पङे.

‘‘जी बाबूजी, मैं चेक दे दूं कि नगद दूं?” केदार को इस बात पर जरा सा भी आश्चर्य नहीं हुआ था कि विजय ने उन से यह नहीं पूछा कि इतनी सारी रकम की उन्हें क्या जरूरत आ पड़ी है. विजय कभी भी अपने पिताजी से कोई सवाल करता ही नहीं था. वे जो कह देते उसे उन का आदेश मान कर तत्काल उस की पूर्ति कर देता था.

‘‘चेक दे दो.’’

‘‘जी बाबूजी,” विजय ने तुरंत ही चेक काट कर उन के हाथों में थमा दिया.

‘‘नालायक, यह तो पूछ लिया होता कि मुझे ₹5 क्यों चाहिए…’’

‘‘मैं आप से भला कैसे पूछ सकता हूं…आप को पैसे चाहिए तो कोई अच्छे काम के लिए ही चाहिए होंगे.’’

‘‘हां, वह तो ठीक है पर फिर भी मैं बता देता हूं. वहां एक वृद्धाश्रम है न… मैं वहां एक कमरा बनवा रहा हूं.”

‘‘जी, यह तो अच्छी बात है बाबूजी. और पैसे चाहिए हों तो बता देना…’’
विजय इस से अधिक कुछ और जानना भी नहीं चाहता था.

विजय उन का इकलौता बेटा था. उन्होंने उसे खूब पढ़ायालिखाया और उसे किसी चीज की कभी कमी नहीं होने दी. वे सरकारी अधिकारी थे तो शहरशहर उन का ट्रांसफर होता रहता. पर जब वे रिटायर्ड हुए तो अपनी जन्मभूमि में ही आ कर रहने लगे. विजय को पढ़ाया तो बहुत उसे इंजीनियर भी बना दिया पर उसे नौकरी पर नहीं जाने दिया. उन्होंने उस के लिए बड़ा सा व्यापार खुलवा दिया. व्यापार अच्छा चल रहा था. उस की शादी आरती से हुई. आरती बेटी बन कर ही घर आई. वे और कुसुम भी उसे बेटी की तरह ही प्यार करते और आरती भी उन्हें सासससुर न मान कर मांपिताजी ही मानती. विजय अपनी दुकान चला जाता और कुसुम और आरती अपने में ही उलझे रहते तो केदार अपने रंजीत के साथ अपना टाइम काटते. रात में सभी लोग एकसाथ खाने की टेबल पर बैठ कर खाना खाते और दिनभर की गतिविधियों की चर्चा करते. ऐसा कभीकभार ही होता जब रात में खाने की टेबल पर सभी साथ न हों.

“बाबूजी और अम्मां आप के साथ बैठ कर खाना न खाओ तो पेट ही नहीं भरता.’’

‘‘हां रे… बड़ा हो गया पर अभी भी छोटे बच्चे जैसा करता है. ले एक रोटी और ले…’’ कुसुम का लाड़ टपक पड़ता.

‘‘नहीं अम्मां, अच्छा दे ही दो… नहीं तो आप नाराज हो जाओगी…’’
कुसुम प्यार से उस के सिर पर हाथ फेरतीं तो वह उन के आंचल से चिपक जाता.

केदार इस मामले में अपनेआप को बहुत खुशकिस्मत मानता कि भले ही उन के एक ही बेटा है पर वह बेटा श्रवण कुमार बन कर उन की सेवा करता है. केदार वृद्धाश्रम में रंजीत के साथ ही अपना ज्यादातर समय काटते. कई बार कुसुम भी उन के साथ वहां जाती. वृद्धाश्रम में उन का मन लगने लगा. केदार ने विजय से पैसे ले कर 2 कमरे बना लिए. एक कमरा तो उस ने रंजीत को रहने के लिए दे दिया पर दूसरा कमरा खाली ही था. उन्होंने वहां रह रहे वृद्धजनों से भी आग्रह किया पर वे अपने कमरों में खुश थे. वह कमरा बंद ही था. इस बंद कमरे को देख कर ही उन के मन में खयाल आया कि क्यों ने वे और कुसुम यहां रहने लगें और जैसे वे यहां रंजीत से मिलने आते हैं वैसे ही वे वहां विजय से मिलने चले जाया करेंगे. उन्होंने अपने विचारों को कुसुम के साथ भी साझा किया.

‘‘हां, यह तो अच्छी बात है पर विजय इस के लिए तैयार नहीं होगा और वह मेरी बेटी आरती…वह तो सारा घर अपने सिर पर उठा लेगी,” कुसुम जानती थी कि आरती उन से दूर नहीं रह सकती. वह आम बहुओं के जैसी थोड़ी न है जिन के लिए सास सिरदर्द होती हैं. केदार भी इस बात को जानते थे कि ऐसा संभव नहीं है पर प्रयास तो करना ही चाहिए.

केदार और कुसुम ने धीरेधीरे वृद्धाश्रम में अपनी उपस्थिति बढ़ा ली थी. कई बार तो वे रात वहीं रह भी जाते थे. विजय और आरती झुंझला जाते पर वे कुछ बोल नहीं पाते थे. विजय और आरती को अपने मातापिता का व्यवहार कुछ अजीब सा लगने लगा था,”आरती, कोई बात तो नहीं हो गई है? मांबाबूजी आजकल वृद्धाश्रम में कुछ ज्यादा ही समय दे रहे हैं…” उस के स्वर में चिंता साफ झलक रही थी.

‘‘नहीं तो, पर यह तो सच है कि वे अब वहां कुछ ज्यादा ही रुकने लगे हैं,’’
आरती का स्वर भी उदास था.

वे अपने मातापिता से कुछ भी पूछने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे थे. एक दिन उन के पिता ने ही उन से कह दिया था,”विजय, हम लोग सोच रहे हैं कि कुछ दिनों के लिए वृद्धाश्रम रहने चले जाएं,” विजय के साथ ही साथ आरती भी चौंक गई थी.

‘‘अरे बाबूजी, हम से कोई गलती हो गई क्या?’’ उस का चेहरा रुआंसा हो गया था.

‘‘नहीं… तुम तो मेरा बेटा है. तुझ से गलती हो ही नहीं सकती और हो भी जाए तो उस के लिए मेरे हाथ में डंडा है न,” केदारा जानते थे कि वे जब भी इस बात को कहेंगे तब ही विजय की प्रतिक्रया ऐसी ही आएगी.

‘‘फिर बाबूजी, आप वहां क्यों जाना चाहते हैं, अपने बेटे को छोड़ कर?’’

‘‘अपने बेटे को कैसे छोड़ सकते हैं हम. वहां केवल इसलिए जा रहे हैं ताकि हम जैसे लोगों के साथ अपना समय काट सकें. हमें वहां बहुत अच्छा लगता है इस कारण से भी.’’

‘‘यह क्या बात हुई बाबूजी…’’

‘‘तुम नहीं समझोगे, इतना समझ लो कि हम ने तय कर लिया है कि हम वहां जाएंगे.’’

‘‘मां को क्यों ले जा रहे हैं आप?’’

‘‘इस उम्र में मैं अपनी पत्नी से कैसे दूर रह सकता हूं? हम दोनों जाएंगे अब इस पर और कोई बात नहीं होगी,” जानबूझ कर केदार ने जोर से बोला था ताकि वे अपने बेटे के प्रश्नों से बच सकें. उन के पास उन प्रश्नों का कोई उत्तर था भी नहीं.

विजय की आंखों से आंसू बह निकले थे. आरती तो भाग कर अपने कमरे में जा कर सिसक रही थी, उस की सिसकियों की आवाज बाहर तक आ रही थी.

विजय और आरती अपने मातापिता के निर्णय को स्वीकार नहीं कर पा रहे थे. उन्होंने उन्हें बहुत समझाया भी पर वे नहीं माने तो अंततः उन्हें कुछ दिनों के लिए जा रहे हैं कि संभावनाओं के साथ वृद्धाश्रम छोड़ आए थे. केदार और कुसुम जानते थे कि विजय के लिए ऐसा करना कठिन होगा पर उन के पास और कोई विकल्प था भी नहीं. वे अपने बेटे और बहू के साथ रह तो बहुत अच्छी तरह से रहे थे, बेटा और बहु उन की बहुत ध्यान रखते भी थे पर इस के बाद भी वे एकाकी बने हुए थे. विजय से वे सीमित ही बात कर पाते थे और विजय भी उन से ज्यादा कुछ बोलता नहीं था. अमूमन यही स्थिति कुसुम की भी थी. वृद्धाश्रम में उन का एकाकीपन दूर हो जाता था. यहां वे बहस कर लेते लड़ लेते और मस्ती भी कर लेते थे. उन्होंने अपना सारा जीवन जिस शाही अंदाज में व्यतीत किया था वैसे जीवन से वे निराश हो चुके थे.

केदार और कुसुम को वृद्धाश्रम में रहते हुए 1 साल से अधिक का समय हो गया था. विजय और आरती नियमित उन से मिलने आते थे और कई बार वे फैस्टिवल पर उन्हें घर भी ले जाते थे, ‘‘आप के बिना तीजत्योहार अच्छे नहीं लगते. आप को चलना ही पड़ेगा,’’ आरती की जिद के आगे कुसुम समर्पण कर देती और वे 1-2 दिनों के लिए घर चले जाते पर तुरंत ही लौट कर आश्रम आ जाते. उन का मन आश्रम में अच्छी तरह लग चुका था. वे यहां मुक्तभाव से रहते थे. विजय और आरती ने भी धीरेधीरे अपनेआप को ढाल लिया था. आज ही वृद्धाश्रम के मैनेजर ने बताया था कि आरती बाथरूम में फिसल गई है और उस के पैरों में पलास्टर चढ़ा है. यह सुनते ही कुसुम की आंखों से आंसू बह निकले,‘‘अरे, विजय ने बताया ही नही,” उन की नारजगी अपने बेटे के प्रति बढ़ रही थी.

औटो उन के मकान के सामने आ कर रूक गया था. औटो से सब से पहले केदार उतरे फिर कुसुम. दोनों कुछ देर तक अपने मकान को यों ही देखते रहे. बहुत दिनों के बाद वे अपने घर आए थे. उन के हाथ में केवल एक ही थैला था. गेट को पार कर जैसे ही वे अंदर के कमरे की में पहुंचे उन्हें आरती बैड पर लेटी दिखाई दे गई. कुसुम ने बहू को निहारा. आरती कुछ दुबली लग रही थी. उस के पैर में बंधा पलास्टर दिखाई दे रहा था. कुसुम का वात्सल्य उमड़ आया,”बहू…” उस की आवाज में अपनत्व भरी मिठास थी. आरती को झपकी लग गई थी पर उस ने कदमों की आहट को सुन लिया पर जैसे ही उस के कानों में ‘बहू’ शब्द गूंजा वह हडबड़ा गई, ‘‘यह तो मांजी की आवाज है,” उस ने झट आंखें खोल लीं. मांजी को अपने सामने खड़ा देखा तो उस की आंखें बरस गईं. उस ने उठने की कोशिश की.

‘‘रहने दो बहू, सोई रहो…’’ कुसुम उस के सामने आ कर खड़ी हो गई थी.

‘‘कैसी हो बिटिया…’’ अब की बार केदार ने उसे पुकारा था.

‘‘बाबूजी…’’ आरती की सिसकियों भरी आवाज कमरे में गूंज गई.
विजय शायद अंदर था. वहीं उस ने आरती के सिसकने की आवाज सुनी थी. वह दौड़ कर बाहर आया तो सामने अपने पिताजी और मां को देखा.

‘‘अम्मां…बाबूजी…’’ वह उन से लिपट गया. केदार उसे अपने सीने से लगाए उस के सिर पर हाथ फेर रहे थे और कुसुम आरती के सिर को सहला रही थी.

‘‘अबे नालायक, जब बहू के पैर में फ्रैक्चर हो गया इस की सूचना भी तुम ने मुझे देना जरूरी नहीं समझा…’’ केदार की आवाज में कठोरता थी.

‘‘हां बेटा, तुझे हमें बताना चाहिए था. यह तो तेरी गलती है…’’ कुसुम का स्वर भी नाराजगी भरा था.

‘‘क्या करूं बाबूजी, अब मैं आप को तकलीफ नहीं देना चाहता था. आप को दुख होता यह सोच कर आप को नहीं बताया.’’

‘‘यह तो गलत है बेटा. मैं घर से भले ही दूर चला गया हूं पर तुम तो अपने से ही हमें दूर करने में लगे हो…’’ केदार का स्वर भीग गया था. बहुत देर तक दोनों सुखदुख की बातें करते रहे.

‘‘सुनो बेटा, अब कुसुम जब तक बहू के पैर का प्लास्टर नहीं उतर जाता तब तक यहीं रहेगी और मैं कल सुबह ही आश्रम चला जाऊंगा.’’

‘‘आप भी क्यों नहीं रुकते यहां. वैसे भी आपने बोला था कि आप कुछ दिनों के लिए ही आश्रम जा रहे हैं. अब तो बहुत दिन हो गए. नहीं बाबूजी, अब हम आप लोगों को नहीं जाने देंगे,’’ विजय ने जोर से केदार को जकड़ लिया था.

‘‘देखो बेटा, आश्रम तो हम को जाना ही होगा….हम ने वहां का कमरा थोड़ी न छोड़ा है… वैसे भी वहां रह रहे सभी लोग हमारा इंतजार कर रहे होंगे पर कुसुम अभी कुछ दिन यहीं रहेगी, आरती के स्वस्थ होने तक…’’ विजय कुछ नहीं बोला वह जानता था कि बाबूजी उस की बात नहीं मानेंगे.

सुबह जल्दी ही केदार अपना थैला उठा कर आश्रम की ओर चल दिए थे. जातेजाते कुसुम को बोल गए थे, ‘‘देखो बहू के स्वस्थ होते ही तुम आ जाना. वहां तुम्हारे बगैर मेरा मन नहीं लगेगा.’’

कुसुम के गालों में लालिमा दौड़ गई थी. Family Story In Hindi 

Social Story In Hindi : सीलन – दो सहेलियों की दर्द भरी कहानी

Social Story In Hindi : बचपन से ही वह हमेशा नकाब में रहती थी. स्कूल के किसी बच्चे ने कभी उस का चेहरा नहीं देखा था. हां, मछलियों सी उस की आंखें अकसर चमकती रहती थीं. कभी शरारत से भरी हुई, तो कभी एकदम शांत और मासूम. लेकिन कभीकभी उन आंखों में एक डर भी दिखाई देता था. हम दोनों साथसाथ पढ़ते थे. पढ़ाई में वह बेहद अव्वल थी. जोड़घटाव तो जैसे उस की जबां पर रहता था. मुझे अक्षर ज्ञान में मजा आता था. कहानियां, कविताएं पसंद आती थीं, जबकि गणित के समीकरण, विज्ञान, ये सब उस के पसंदीदा सब्जैक्ट थे.

वह थोड़ी संकोची, किसी नदी सी शांत और मैं एकदम बातूनी. दूर से ही मेरी आवाज उसे सुनाई दे जाती थी, बिलकुल किसी समुद्र की तरह. स्कूल में अकसर ही उसे ले कर कानाफूसी होती थी. हालांकि उस कानाफूसी का हिस्सा मैं कभी नहीं बनता था, लेकिन दोस्तों के मजाक का पात्र जरूर बन जाता था. मैं रिया के परिवार के बारे में कुछ नहीं जानता था. वैसे भी बचपन की दोस्ती घरपरिवार सब से परे होती है. बचपन से ही मुझे उस का नकाब बेहद पसंद था, तब तो मैं नकाब का मतलब भी नहीं जानता था. शक्लसूरत उस की अच्छी थी, फिर भी मुझे वह नकाब में ज्यादा अच्छी लगती थी.

बड़ी क्लास में पहुंचते ही हम दोनों के स्कूल अलग हो गए. उस का दाखिला शहर के एक गर्ल्स स्कूल में हो गया, जबकि मेरा दाखिला लड़कों के स्कूल में करवा दिया गया. अब हम धीरेधीरे अपनीअपनी दिलचस्पी के काम के साथ ही पढ़ाई में भी बिजी हो गए थे, लेकिन हमारी दोस्ती बरकरार रही. पढ़ाईलिखाई से वक्त निकाल कर हम अब भी मिलते थे. वह जब तक मेरे साथ रहती, खुश रहती, खिली रहती. लेकिन उस की आंखों में हर वक्त एक डर दिखता था. मुझे कभी उस डर की वजह समझ नहीं आई. अकसर मुझे उस के परिवार के बारे में जानने की इच्छा होती. मैं उस से पूछता भी, लेकिन वह हंस कर टाल जाती.

हालांकि अब मुझे समझ आने लगा था कि नकाब की वजह कोई धर्म नहीं था, फिर ऐसा क्या था, जो उसे अपना चेहरा छिपाने को मजबूर करता था? मैं अकसर ऐसे सवालों में उलझ जाता. कालेज में भी मेरे अलावा उस की सिर्फ एक ही सहेली थी उमा, जो बचपन से उस के साथ थी. मेरे मन में उसे और उस के परिवार को करीब से जानने के कीड़े ने कुलबुलाना शुरू कर दिया था. शायद दिल के किसी कोने में प्यार के बीज ने भी जन्म ले लिया था. मैं हर मुलाकात में उस के परिवार के बारे में पूछना चाहता था, लेकिन उस की खिलखिलाहट में सब भूल जाता था. अकसर मैं अपनी कहानियों और कविताओं की काल्पनिक दुनिया उस के साथ ही बनाता और सजाता गया.

बड़े होने के साथ ही हम दोनों की मुलाकात में भी कमी आने लगी. वहीं मेरी दोस्ती का दायरा भी बढ़ा. कई नए दोस्त जिंदगी में आए. उन्हें मेरी और रिया की दोस्ती की खबर हुई. एक दिन उन्होंने मुझे उस से दूर रहने की नसीहत दे डाली. मैं ने उन्हें बहुत फटकारा. लेकिन उन के लांछन ने मुझे सकते में डाल दिया था. वे चिल्ला रहे थे, ‘जिस के लिए तू हम से लड़ रहा है. देखना, एक दिन वह तुझे ही दुत्कार कर चली जाएगी. गंदी नाली का कीड़ा है वह.’ मैं कसमसाया सा उन्हें अपने तरीके से लताड़ रहा था. पहली बार उस के लिए दोस्तों से लड़ाई की थी. मैं बचपन से ही अकेला रहा था. मातापिता के पास समय नहीं होता था, जो मेरे साथ बिता सकें. उमा और रिया के अलावा किसी से कोई दोस्ती नहीं. पहली बार किसी से दोस्ती हुई और

वह भी टूट गई. मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था. वह एक सर्द दोपहर थी. सूरज की गरमाहट कम पड़ रही थी. कई महीनों बाद हमारी मुलाकात हुई थी. उस दोपहर रिया के घर जाने की जिद मेरे सिर पर सवार थी. कहीं न कहीं दोस्तों की बातें दिल में चुभी हुई थीं.

मैं ने उस से कहा, ‘‘मुझे तुम्हारे मातापिता से मिलना है.’’

‘‘पिता का तो मुझे पता नहीं, लेकिन मेरी बहुत सी मांएं हैं. उन से मिलना है, तो चलो.’’ मैं ने हैरानी से उस के चेहरे की ओर देखा. वह मुसकराते हुए स्कूटी की ओर बढ़ी. मैं भी उस के साथ बढ़ा. उस ने फिर से अपने खूबसूरत चेहरे को बुरके से ढक लिया. शाम ढलने लगी थी. अंधेरा फैल रहा था. मैं स्कूटी पर उस के पीछे बैठ गया. मेन सड़क से होती हुई स्कूटी आगे बढ़ने लगी. उस रोज मेरे दिल की रफ्तार स्कूटी से भी ज्यादा तेज थी. अब स्कूटी बदनाम बस्ती की गलियों में हिचकोले खा रही थी.

मैं ने हड़बड़ा कर पूछा, ‘‘रास्ता भूल गई हो क्या?’’

उस ने कहा, ‘‘मैं बिलकुल सही रास्ते पर हूं.’’ उस ने वहीं एक घर के किनारे स्कूटी खड़ी कर दी. मेरे लिए वह एक बड़ा झटका था. रिया मेरा हाथ पकड़ कर तकरीबन खींचते हुए एक घर के अंदर ले गई. अब मैं सीढि़यां चढ़ रहा था. हर मंजिल पर औरतें भरी पड़ी थीं, वे भी भद्दे से मेकअप और कपड़ों में सजीधजी. अब तक फिल्मों में जैसा देखता आया था, उस से एकदम अलग… बिना किसी चकाचौंध के… हर तरफ अंधेरा, सीलन और बेहद संकरी सीढि़यां. हर मंजिल से अजीब सी बदबू आ रही थी. जाने कितनी मंजिल पार कर हम लोग सब से ऊपर वाली मंजिल पर पहुंचे. वहां भी कमोबेश वही हालत थी. हर तरफ सीलन और बदबू. बाहर से देखने पर एकदम छोटा सा कमरा, जहां लोगों के होने का अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता था. ज्यों ही मैं कमरे के अंदर पहुंचा, वहां ढेर सारी औरतें थीं. ऐसा लग रहा था, मानो वे सब एक ही परिवार की हों.

मुझे रिया के साथ देख कर उन में से कुछ की त्योरियां चढ़ गईं, लेकिन साथ वालियों को शायद रिया ने मेरे बारे में बता रखा था, उन्होंने उन के कान में कुछ कहा और फिर सब सामान्य हो गईं.

एकसाथ हंसनाबोलना, रहना… उन्हें देख कर ऐसा नहीं लग रहा था कि मैं किसी ऐसी जगह पर आ गया हूं, जो अच्छे घर के लोगों के लिए बैन है. वहां छोटेछोटे बच्चे भी थे. वे अपने बच्चों के साथ खेल रही थीं, उन से तोतली बोली में बातें कर रही थीं. घर का माहौल देख कर घबराहट और डर थोड़ा कम हुआ और मैं सहज हो गया. मेरे अंदर का लेखक जागा. उन्हें और जानने की जिज्ञासा से धीरेधीरे मैं ने उन से बातें करना शुरू कीं.

‘‘यहां कैसे आना हुआ?’’

‘‘बस आ गई… मजबूरी थी.’’

‘‘क्या मजबूरी थी?’’

‘‘घर की मजबूरी थी. अपना, अपने बच्चों का, परिवार का पेट पालना था.’’

‘‘क्या घर पर सभी जानते हैं?’’

‘‘नहीं, घर पर तो कोई नहीं जानता. सब यह जानते हैं कि मैं दिल्ली में रहती हूं, नौकरी करती हूं. कहां रहती हूं, क्या करती हूं, ये कोई भी नहीं जानता.’’

मैं ने एक और औरत को बुलाया, जिस की उम्र 45 साल के आसपास रही होगी.

मेरा पहला सवाल वही था, ‘‘कैसे आना हुआ?’’

‘‘मजबूरी.’’

‘‘कैसी?’’

‘‘घर में ससुर नहीं, पति नहीं, सिर्फ बच्चे और सास. तो रोजीरोटी के लिए किसी न किसी को तो घर से बाहर निकलना ही होता.’’

‘‘अब?’’

‘‘अब तो मैं बहुत बीमार रहती हूं. बच्चेदानी खराब हो गई है. सरकारी अस्पताल में इलाज के लिए गई. डाक्टर का कहना है कि खून चाहिए, वह भी परिवार के किसी सदस्य का. अब कहां से लाएं खून?’’

‘‘क्या परिवार में वापस जाने का मन नहीं करता?’’

‘‘परिवार वाले अब मुझे अपनाएंगे नहीं. वैसे भी जब जिंदगीभर यहां कमायाखाया, तो अब क्यों जाएं वापस?’’

यह सुन कर मैं चुप हो गया… अकसर बाहर से चीजें जैसी दिखती हैं, वैसी होती नहीं हैं. उन लोगों से बातें कर के एहसास हो रहा था कि उन का यहां होना उन की कितनी बड़ी मजबूरी है. रिया दूर से ये सब देख रही थी. मेरे चेहरे के हर भावों से वह वाकिफ थी. उस के चेहरे पर मुसकान तैर रही थी. मैं ने एक और औरत को बुलाया, जो उम्र के आखिरी पड़ाव पर थी. मैं ने कहा, ‘‘आप को यहां कोई परेशानी तो नहीं है?’’

उस ने मेरी ओर देखा और फिर कुछ सोचते हुए बोली, ‘‘जब तक जवान थी, यहां भीड़ हुआ करती थी. पैसों की कोई कमी नहीं थी. लेकिन अब कोई पूछने वाला नहीं है. अब तो ऐसा होता है कि नीचे से ही दलाल ग्राहकों को भड़का कर, डराधमका कर दूसरी जगह ले जाते हैं. बस ऐसे ही गुजरबसर चल रही है. ‘‘आएदिन यहां किसी न किसी की हत्या हो जाती है या फिर किसी औरत के चेहरे पर ब्लेड मार दिया जाता है. ‘‘अब लगता है कि काश, हमारा भी घर होता. अपना परिवार होता. कम से कम जिंदगी के आखिरी दिन सुकून से तो गुजर पाते,’’ छलछलाई आंखों से चंद बूंदें उस के गालों पर लुढ़क आईं और वह न जाने किस सोच में खो गई.मुझे अचानक वह ककनू पक्षी सी लगने लगी. ऐसा लगने लगा कि मैं ककनू पक्षियों की दुनिया में आ गया हूं. मुझे घबराहट सी होने लगी. धीरेधीरे उस के हाथों की जगह बड़ेबड़े पंख उग आए. ऐसा लगा, मानो इन पंखों से थोड़ी ही देर में आग की लपटें निकलेंगी और वह उसी में जल कर राख हो जाएंगी. क्या मैं ऐसी जगह से आने वाली लड़की को अपना हमसफर बना सकता हूं? दिमाग ऐसे ही सवालों के जाल में फंस गया था.

अचानक ही मुझे बुरके में से झांकतीचमकती सी रिया की उदास डरी हुई आंखें दिखीं. मुझे अपने मातापिता  की भागदौड़ भरी जिंदगी दिख रही थी, जिन के पास मुझ से बात करने का वक्त नहीं था और साथ ही, वे दोस्त भी दिखे, जो अब भी कह रहे थे, ‘निकल जा इस दलदल से, वह तुम्हारी कभी नहीं होगी.’ मेरा वहां दम घुटने लगा. मैं वहां से बाहर भागा. बाहर आते ही रिया की अलमस्त सुबह सी चमकती हंसी ने हर सोच पर ब्रेक लगा दिया. मैं दूर से ही उसे खिलखिलाते देख रहा था. उफ, इतने दमघोंटू माहौल में भी कोई खुश रह सकता है भला क्या?  Social Story In Hindi

Importance Of Skills : संस्कार नहीं, स्किल जरूरी

Importance Of Skills : हमारा समाज लड़कियों की संपत्ति को ले कर सब से ज्यादा आपत्ति जताता है. हंसने, बोलने और घुमनेफिरने वाली लड़कियां हमेशा आंखों में चुभती हैं. ऐसे में लड़कियों के लिए क्या जरूरी है.

भारतीय समाज में संस्कारों की बातें बहुत होती हैं और इन संस्कारों की शिकार औरतें ही होती हैं. पति के पैर छूना, आरती उतारना, पति के लिए व्रत, तीज, सास ससुर की सेवा करना, लिहाज करना, नजरों को नीची रखना इत्यादि.

यह सारे संस्कार औरतों के लिए ही बने होते हैं हालांकि मर्दों के भी कुछ संस्कार होते हैं जैसे बड़ों की इज्जत करना, कुल की इज्जत की रखवाली करना वगैरहवगैरह. लड़के और लड़कियों को यह सारे संस्कार बचपन से सिखाए जाते हैं. ये स्किल नहीं हैं, कोरी मिलिट्री टाइप ड्रिल हैं जो पति के लिए कम पति के मांबाप के लिए डिजाइन की गई हैं.

संस्कारों के इन ढेरों आडम्बरों के बीच जीने के लिए जो जरुरी बातें हैं उन्हें कोई नहीं सिखाता. वैवाहिक जीवन की जरूरी बातों का सम्बन्ध संस्कारों से नहीं, स्किल से है. क्या है यह जरुरी स्किल. आइए जानते हैं.

स्नेहा और पंकज की शादी तय हो चुकी थी. दोनों अभी तक कहीं मिले नहीं थे. स्नेहा के घरवालों ने पंकज से रिश्ता तय कर दिया. सगाई वाले दिन दोनों ने एकदूसरे को देखा. आपस में नंबर एक्सचेंज हुए और दोनों फोन पर बात करने लगे. कुछ ही दिनों में दोनों की शादी हो गई. स्नेहा विदा हो कर पंकज के घर आ गई.

सुहागरात से पहले पंकज की भाभी ने मुसकराते हुए स्नेहा के कान में कुछ टिप्स बताए और उसे एक कमरे में भेज दिया. स्नेहा समझ ही पा रही थी कि वो अब क्या करे? पलंग पर बैठ कर पंकज का इंतजार करे या पलंग पर लेट जाए?

भाभी ने या मां ने यह नहीं समझाया कि विवाह की पहली रात क्या करना चाहिए क्या नहीं, खासतौर पर तब जब दोनों के बीच पहले सिर्फ औपचारिक सा संबंध रहा हो.

पंकज की भाभी ने दूध का गरम गिलास पंकज को देने के लिए कहा था लेकिन बगल की टेबल पर रखा दूध तो ठंडा हो चुका था. शादी के चककर में स्नेहा कई रातों से जगी हुई थी इसलिए उसे तेज नींद आने लगी तो वह पलंग पर एक तरफ हो कर सो गई. देर रात को पंकज दोस्तों रिश्तेदारों से फुर्सत पा कर आया तो उसे स्नेहा का सो जाना अच्छा नहीं लगा.

यह उसे सिखाया ही नहीं गया था कि नई पत्नी थक भी सकती है. यह साधारण स्किल का मामला है पर कोई सिखाए तो न.

पंकज तो यह सोच कर कमरे में दाखिल हुआ था की स्नेहा हाथ में दूध का गिलास ले कर उस का इंतजार कर रही होगी लेकिन यहां तो वो गहरी नींद में सोई हुई थी. पंकज, स्नेहा के बगल में लेट गया और उस के शरीर पर हाथ फेरने लगा. पंकज के इस बिहेवियर से स्नेहा बुरी तरह चौंक कर उठ गई. पंकज कुछ समझता इस से पहले ही स्नेहा तेज आवाज में रोने लगी. बगल के कमरे में पंकज की भाभी ने जब स्नेहा के चीखने और रोने की आवाज सुनी तो उस के दिल को तसल्ली मिली और मुसकराती हुई अपने सास के कमरे की ओर बढ़ गई.

इधर पंकज अपनी नई नवेली दुल्हन के इस तरह रोने को समझ नहीं पा रहा था. थोड़ी देर उसे चुप कराने की कोशिश के बाद पंकज पलंग के एक तरफ लेट गया. स्नेहा के व्यवहार से उस की सारी उमंगे धाराशाई हो चुकी थी और वो भी काफी थका हुआ था इसलिए लेटते ही उसे गहरी नींद आ गई. पंकज को नींद में खर्राटे लेने आदत थी लेकिन स्नेहा को खर्राटों से नफरत थी. स्नेहा उठ कर रात भर पलंग के एक कोने में बैठी रही. इस तरह दोनों के लिए सुहाग की रात ट्रेजडी की रात बन चुकी थी.

क्या इस मामले में दोनों के बीच संस्कारों की कमी थी? संस्कार सिर्फ यह सिखाते हैं कि वैवाहिक जीवन में औरतों को कैसे अपने पति और पति के परिवार वालों के लिए आज्ञाकारी बहू बन के रहना है लेकिन वैवाहिक जीवन में औरत को अपनी ख़ुशी कैसे तय करनी है यह बातें संस्कारों के दायरे में नहीं आतीं. मर्द के लिए औरतों के साथ व्यवहार और उस की ख़ुशी को समझने की भावनाएं संस्कारों के दायरे से बाहर कि बात है. कैसे दूसरे का ख्याल रखें? बिस्तर पर कैसे सोएं? एकदूसरे की छोटीबड़ी बातों पर कैसे रिएक्ट करें यह सब तौर तरीके संस्कारों से नहीं आते. बैठने, उठने, चलने, और सोने के भी एटिकेट्स होते हैं जो सुखी जीवन के लिए बेहद जरूरी होते हैं. यह संस्कार नहीं, स्किल का मामला होता है जो न तो स्कूलों में सिखाया जाता है और न ही परिवार से यह स्किल मिलती है.

कोई व्यक्ति ओला या उबर में जौब के लिए जौयन करता है तो उसे जौब से पहले यह एटिकेट्स सिखाए जाते हैं कि कस्टमर से कैसे बात करनी है. व्यवहार कैसा होना चाहिए. बैक मिरर में पीछे बैठी सवारी को नहीं देखना है. सवारी पीछे बैठी हो तो स्पीकर पर बात नहीं करनी है. गाना नहीं बजाना है. राइड खत्म होने के बाद सवारी को मुसकरा कर विदा करना है इत्यादि.

बैंक का गार्ड हो या रेस्टोरेंट का वेटर, सेल्समेन हो या मैनेजर सभी को जौब से पहले लोगों से डील करने का स्किल सिखाया जाता है. लेकिन दो लोग जो साथ में जिंदगी गुजारने वाले हैं उन्हें बिना किसी स्किल के एक कमरे में बंद कर दिया जाता है. जहां से वो जैसे तैसे एकदूसरे को झेलने की शुरुआत करते हैं.

पंकज और स्नेहा को सैक्स करना सीखने की जरूरत नहीं थी. लेकिन दोनों को एक कमरे में जिंदगी गुजारनी है इसलिए कमरे के भीतर एकदूसरे की आदतों, पसंद और सोने बैठने के तौर तरीको को समझना और एडजस्ट करना सीखने की जरूरत है. स्नेहा को पलंग पर अकेले सोने की आदत थी लेकिन अब पंकज के साथ बैड शेयर करना पड़ रहा है तो उसे दिक्क़त हो रही है लेकिन वो अपनी इस समस्या को पंकज से बता नहीं सकती. स्नेहा को रात को जल्दी सोने की आदत है लेकिन पंकज की वजह से वह जल्दी नहीं सो पाती. पंकज को डेली रात को स्नेहा के साथ सैक्स करना है लेकिन सैक्स में स्नेहा की रूचि ज्यादा नहीं है. पंकज लाइट औन कर के सैक्स करना चाहता था लेकिन स्नेहा लाइट औफ कर देती है.

सुबह नहाने जाते वक्त पंकज अपने उतारे हुए कपड़े बाथरूम में रखने की बजाय बिस्तर पर ही छोड़ देता है जो स्नेहा को बिलकुल पसंद नहीं. इन बातों को ले कर दोनों के बीच हमेशा मनमुटाव बना रहता है.

अगर सड़क पर चलने के तौरतरीके हैं तो घर के भीतर रहने के भी तौरतरीके होने चाहिए जो संस्कारों, रीति रिवाजों से नहीं मिलते, स्कूल से नहीं मिलते, परिवार नहीं सिखाते.

सुबह टौयलेट में जाने वाले कुछ मर्द फ्लश और फ्लश को ब्रश नहीं करते. यह काम घर की औरतें करती हैं. जबकि इस में स्किल की बात यह है की टौयलेट में जो जाए वह उसे पूरी तरह क्लीन कर के आए. लोग सार्वजनिक शौचालयों में गंदगी फैलाते हैं और उन्हें इस बात में कुछ भी गलत नहीं लगता. कुछ लोग चिप्स वगैरह खा कर घर के किसी कोने में रैपर फेंक देते हैं जबकि घर के हर कमरे में, बरामदे में छोटा बड़ा डस्टबिन जरूर होनी चाहिए. यह स्किल की बात है.

अगर घर में एक बैड है और उस पर पतिपत्नी साथ सोते हैं तो रजाई एक क्यों? जरूरी नहीं कि दोनों के सोने के तौर तरीके एक जैसे हों? इसलिए दोनों की दो अलगअलग रजाईयां क्यों नहीं हो सकती?

सोने, उठने, बैठने, बात करने के एटिकेट्स सीखने और सिखाने की जरूरत है. यह इसे घर में, स्कूल में बच्चोँ के अंदर स्किल की तरह डवलप करना चाहिए. जापान के लोग अपने बच्चोँ को कभी डांटते नहीं बल्कि बड़ी गलती करने पर बच्चे को पिकनिक स्पोट पर ले जा कर समझाते हैं. हमारे यहां पेरैंट्स खुद गलतियां करते हैं बच्चे भी वही सीखते हैं.

घर में रहने के जरूरी एटिकेट्स क्या है?

• घर में मोबाइल पर वीडियो देखते वक़्त स्पीकर औन न करें बल्कि इयरफोन का प्रयोग करें.

• घर को साफ और व्यवस्थित रखें. अपने सामान को सही जगह पर रखें और घर के कामों में सभी का योगदान हो. पत्नी ही न करे, जो कुछ भी इस्तेमाल करें बाद में सही जगह रखें.

• परिवार के प्रत्येक सदस्य की निजता का सम्मान करें. बिना अनुमति के किसी के निजी सामान को न छुएं या उस के कमरे में न जाएं.

• घर में शोर कम करें, खासकर रात में, ताकि सभी को आराम मिले.

• सोने और जागने का एक निश्चित समय बनाए रखें, ताकि शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य अच्छा रहे.

• सोने के स्थान को शांत, साफ और आरामदायक रखें. याद रखें कि अगर घर पति का पहले से है तो उसे समझाना होगा कि कौन सी चीज कौन कैसे रखेगा.

• पतिपत्नी के बीच सोने की व्यवस्था में एकदूसरे की सुविधा और पसंद का ध्यान रखें.

• सोने से पहले साफ कपड़े पहनें और बिस्तर को साफ रखें.

• सम्भव हो तो बेड की चादर को प्रतिदिन साफ करें.

• जहां तक संभव हो, परिवार के साथ मिल कर खाना खाएं. यह आपसी बंधन को मजबूत करता है. यह न हो कि सास बहू किचन में हैं और बाकी सब खा रहे हैं. पूरा खाना बना कर सब को साथ खाना चाहिए चाहे कुछ ठंडा हो. रिश्तों में गरमाहट रहेगी.

• खाना बनाने वाले का सम्मान करें और भोजन के लिए आभार व्यक्त करें.

• पत्नी की प्रशंसा और प्रोत्साहन का उपयोग करें.

• परिवार के सदस्य नई बहू की भावनाओं का ध्यान रखें और संवेदनशील विषयों पर सावधानी से बात करें.

• बहू की निजी बातों को सार्वजनिक रूप से या बिना अनुमति के साझा न करें.

• एकदूसरे की भावनाओं, विचारों और स्वतंत्रता का सम्मान करें. विश्वास रिश्ते की नींव है.

• अपनी भावनाओं, अपेक्षाओं और समस्याओं को खुल कर और शांति से साझा करें.

• घर के कामों और जिम्मेदारियों को बांटें. एकदूसरे की पसंदनापसंद और जरूरतों का ध्यान रखें.

• एकदूसरे के लिए समय निकालें, जैसे साथ में समय बिताना, बात करना, या छोटीछोटी गतिविधियां करना.

• अंतरंग संबंधों में एकदूसरे की सहमति और आराम का ध्यान रखें. भावनात्मक और शारीरिक नजदीकी में संतुलन बनाए रखें.

• रोजमर्रा की बातचीत में पतिपत्नी एकदूसरे के लिए ‘प्लीज’, ‘थैंक यू’, और ‘सॉरी’ जैसे शब्दों का उपयोग करें.

हर इंसान और घर अलग होता है लेकिन यह एटिकेट्स सभी के लिए समान रूप से जरूरी हैं. अगर उपरोक्त छोटीछोटी बातों को घर के बड़े सदस्य फौलो करने लग जाएं तो यह एटिकेट्स स्किल बन कर बच्चों के अंदर समाहित हो जाएगा.  Importance Of Skills

AI Impact : एआई पर भरोसा – पिछलग्गू बनते युवा

AI Impact : युवा अब जानकारियों के लिए एआई का सहारा लेने लगे हैं जहां उन्हें सीधीसीधी जानकारी मिल जाती है. मगर समस्या यह है कि इस से उन में खुद से रिसर्च करने की काबिलियत खोती जा रही है.

आजकल की जनरेशन हर काम के लिए एआई का सहारा लेने लगी है. चाहे किसी सवाल का जवाब चाहिए हो, कोई प्रोजेक्ट बनाना हो, चैटिंग करनी हो या फिर डाइट और हैल्थ से जुड़ी सलाह लेनी हो, सबकुछ एआई से ही करवाने लगी है.

पहले जहां बच्चे छोटीबड़ी बातों के लिए पेरैंट्स, टीचर्स या अपने दोस्तों से गाइडेंस लेते थे, वहीं अब एआई उन की पहली पसंद बन चुका है. बाहर से देखने पर ये सब बहुत आसान और एडवांस लगता है, लेकिन असल में ये धीरेधीरे उन की जिंदगी को टैक्नोलौजी के जाल में फंसा रहा है.

इंसानों से दूरी

यूथ अब अपने पेरैंट्स से पूछने की बजाय डायरेक्ट एआई से पूछता है. हाल ही में एक्ट्रेस काजोल ने बताया, “आज की जेनरेशन बहुत अलग और एडवांस है. पहले जब हम छोटे हुआ करते थे तो हर बात मातापिता से पूछते थे लेकिन आजकल के बच्चे मांबाप से दूर भागते हैं और किसी चीज का जवाब ढूंढ़ने के लिए इंटरनेट का सहारा लेते हैं, ऐसे में बच्चों और पेरैंट्स के बीच की बौंडिंग कम होती जाती है.”

जैसे पहले जब किसी को डाइट प्लान चाहिए होता था, तो वे घर के बड़ेबुजुर्गों से या डाक्टर से सलाह लेते थे. लेकिन अब बच्चे सीधे एआई से पूछते हैं “मेरे लिए कौन सा डाइट अच्छा होगा?

नतीजा ये होता है कि वे पेरैंट्स की बात को इग्नोर करने लगते हैं और घर में बातचीत कम हो जाती है. धीरेधीरे रिश्तों में इमोशनल कनेक्शन खत्म होने लगता है.

हैल्थ और डाइट पर गलत असर

डाइट और हैल्थ बहुत पर्सनल चीज होती है. हर इंसान का शरीर अलग होता है. इस के अलावा आप कुछ भी चैट जीपीटी, ग्रोक या किसी दूसरे प्लेटफौर्म पर सर्च करते हैं तो बैकअप में आप के सारे सर्चेज रिकौर्ड होते रहते हैं, इसलिए जब भी आप कुछ सर्च करते हैं तो उस का जवाब एआई आप के पुराने रिकौर्ड्स को देख कर देता है. ऐसे में आप का डाइट प्लान या बीमारी का इलाज चैट जीपीटी जैसे प्लेटफौर्म कितना बेहतर तरीके से दे सकते हैं इस की कोई गारंटी नहीं है.

अगर किसी को एआई से वेट गेन का डाइट प्लान मिला और उस ने बिना डाक्टर की सलाह लिए फौलो करना शुरू कर दिया, तो हो सकता है उस का पेट और बिगड़ जाए, क्योंकि हो सकता है उसे पहले से कब्ज या गैस्ट्रिक की प्रौब्लम हो. लेकिन एआई ये गहराई से नहीं समझ पाएगा.

एआई से डाइट प्लान के कई मामले हालफिलहाल देखने को मिले हैं. हाल ही में एक शख्स ने एआई चैट जीपीटी की मदद से वेट लौस कर लिया है और इस के लिए उसे जिम जाने की जरूरत भी नहीं पड़ी. यह ट्रांसफोर्मेशन घर पर हो गया, बस 56 साल के शख्स ने चैट जीपीटी के वेट लास टिप्स फौलो किए.

वजन घटाने के लिए डाइट कैसी होनी चाहिए, कौन से फूड खाएं, पतले होने के लिए क्या नहीं खाना चाहिए, कौन सी एक्सरसाइज बेस्ट होती हैं, ऐसे कुछ सवाल पूछ कर कोडी क्रोन ने सारी जानकारी हालिस कर ली. बता दें कि कोडी पेशे से यूट्यूबर हैं. हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक वो वाइफ और 2 बच्चों के साथ पैसिफिक नौर्थ वेस्ट में रहते हैं.

कई स्टडीज में भी यह पाया गया है कि अगर आप चैट जीपीटी पर सही प्रौम्प्ट डालेंगे तो आप को सही जवाब मिल सकता है जो आप के लिए कारगर साबित हो सकता है.

फैसले लेने की क्षमता कमजोर होना

जब हर सवाल का जवाब एआई से मिल जाता है, तो खुद सोचने और सहीगलत का चुनाव करने की आदत कम हो जाती है.

किसी स्टूडैंट को प्रोजेक्ट या असाइनमेंट बनाना हो तो वह खुद मेहनत करने की बजाय पूरा कंटेंट एआई से ले लेता है. इस से उस की क्रिएटिविटी और प्रौब्लम सौल्विंग स्किल्स धीरेधीरे कमजोर हो जाती हैं.

वर्चुअल दुनिया में खो जाना

आजकल कुछ लोग तो एआई चैटबोट्स को पार्टनर बना कर उन से बातें करते रहते हैं.

नवीन जिसे असल जिंदगी में दोस्त बनाने में दिक्कत है, वह दिनरात एआई से चैट करता है. इस से उसे रियल लाइफ रिलेशनशिप बनाने में और डर लगने लगता है. असल में यह उसे और सोशली आइसोलेटेड बना देता है.

टैक्नोलौजी पर खतरनाक डिपेंडेंसी

सब से बड़ा खतरा ये है कि यूथ धीरेधीरे बिना एआई के सोच ही नहीं पाता. यह एडिक्शन इतनी गहरा हो चला है कि लोग अब गूगल पर सर्च करने में भी आलस करने लगे हैं. क्योंकि जब आप गूगल पर किसी बारे में सर्च करते हैं तो उस से संबंधित कई ब्लौग और न्यूज पेज खुल जाते हैं और सही जवाब पाने के लिए कम से कम 3-4 आर्टिकल्स पर नजर डालनी पड़ती है. ऐसे में जब चैट जीपीटी, ग्रोक और पर्प्लैक्सिटी जैसे एआई डायरेक्ट जवाब देते हैं तो लोग रिसर्च करने की भी जहमत नहीं उठाते.
ये एक सरल और जल्दी का रास्ता तो हो सकता है लेकिन यह हमारे सोचनेसमझने और क्रिटिकल थींकिंग को कम करता है.

अगर नेट बंद हो जाए या एआई टूल्स न मिलें, तो बहुत सारे स्टूडैंट्स बेसिक सवालों का जवाब भी खुद से नहीं दे पाते.

एआई एक बेहतरीन टूल है, लेकिन इसे बस सहारे की तरह इस्तेमाल करना चाहिए, जीवन का आधार बना कर नहीं. इंसान की असली ताकत उस के सोचने की क्षमता, और खुद मेहनत करने में है. अगर यूथ हर छोटीबड़ी चीज के लिए सिर्फ एआई पर भरोसा करने लगेगा तो उस की जिंदगी मशीनों की गुलाम बन जाएगी.  AI Impact 

RSS : संघ सफाई देने और बयानबाजी से कब आगे बढ़ेगा

RSS : आरएसएस संगठन को बने 100 साल पुरे हो चुके हैं. वह खुद को दुनिया का सब से बड़ा संगठन बताता है और समाजसेवी भी लेकिन 100 सालों में उन का ऐसा कोई काम नजर नहीं आता जिस से देश या समाज प्रगति की ओर अग्रसर हुआ हो और न ही सामाजिक बुराई को खत्म करने में कोई अहम् भूमिका निभाई हो. बल्कि कई मौकों पर धार्मिक और जातिगत विवाद जरूर पैदा करते दिखा है.

देश को इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि आरएसएस भाजपा के कामों में दखल रखता है या नहीं. देश भाजपा को संघ परिवार का हिस्सा मानता है. सरसंघचालक मोहन भागवत को बारबार इस की सफाई देने की जरूरत नहीं है. देश यह समझने की कोशिश कर रहा है कि आरएसएस के 100 साल पूरे होने के बाद भी हिंदू इतना गरीब क्यों है ? आज में बड़ी संख्या में हिंदू अंगरेजी पढ़ने मिशनरी स्कूलों में जाने को विवश क्यों है ? आज भी हिंदू झुग्गी झोपड़ी में रहने को मजबूर क्यों है ? जिन कामों को कर के हिंदू रोजगार पा रहा था आज भी उन की प्रगति क्यों नहीं हुई है ?

‘हर मंदिर के नीचे मसजिद देखने की सोच बदलनी होगी’ मोहन भागवत के बारबार यह कहने के बाद भी यही हो रहा है. इस को देख कर रहीम दास की यह बात याद आती है कि ‘कह रहीम कैसे निभे केर बेर के संग, वो डोलत रस आपने ताको फाटत अंग’. समाज में जिस तरह से भेदभाव का बीज बो दिया गया है उस के बीच केला और बेर एक साथ कैसे रह सकते हैं ?

सरसंघ चालक कहते हैं कि संघ का हर सरकार के साथ अच्छा संबंध रहा है. चाहे वह प्रदेश की सरकार हो या देश में अलगअलग पार्टियों की सरकार रही हो. ऐसे में यह बात भी सामने है कि आरएसएस की बात सभी सुनते रहे हैं. इस के बाद भी हिंदू समाज में मजबूरी को खत्म करने की दिशा में काम क्यों नहीं हुआ ? संघ खुद को सांस्कृतिक और सामाजिक संगठन कहता है इस के बाद भी देश में असमानता क्यों है ? दहेज जैसी तमाम कुरीतियां खत्म क्यों नहीं हुई ? क्या संघ का काम केवल प्रवचन देने तक ही सीमित नहीं रह गया है? संघ से जुड़े लोग हर क्षेत्र में हैं तो वहां चारित्रिक सुधार क्यों नहीं हुआ ?

आरएसएस और भाजपा का है करीबी रिश्ता

आजादी की लड़ाई के समय हिंदू महासभा कांग्रेस को अपने मुख्य दुश्मन के तौर पर देखती थी. यह अंगरेजों के साथ दोस्ती करने के लिए तैयार थे. इस के बाद भी खुद को राष्ट्रवादी बताने से चूकते नहीं थे. आजादी के 52 सालों तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा तिरंगा झंडा फहराने से इनकार किया जाता रहा. आरएसएस ने झंडा तब फहराया जब 1998 में भाजपा की केंद्र में सरकार बनी. आरएसएस का गठन 1925 में केबी हेडगेवार द्वारा किया गया था. 1925 से 1947 तक इस ने कांग्रेस या किसी अन्य पार्टी या समूह द्वारा चलाए गए किसी अभियान या आंदोलन में भागीदारी नहीं की. न ही अंगरेजों के खिलाफ इस ने खुद से ही कोई आंदोलन चलाया.

राष्ट्रवाद को यह अपना धर्म बताते हैं. इन के राष्ट्रवाद का अर्थ वास्तव में हिंदू राष्ट्रवाद रहता है. मुसलिमों के वर्चस्व के खतरे के खिलाफ यह हिंदू समाज को लामबंद करने का काम करते हैं. आरएसएस के संस्थापक हेडगेवार नागपुर में कांग्रेस के नेता भी थे. असहयोग आंदोलन के दौरान जेल भी गए थे. इस के बाद वह वीडी सावरकर की किताब ‘हिंदुत्व’ से प्रभावित थे. जो प्रकाशित 1923 में हुई थी, लेकिन प्रसार में इस से पहले से थी. जिस में सावरकर ने हिंदुत्व की विचारधारा का मूल विचार दिया था. हेडगेवार मुख्य तौर पर एक सांगठनिक व्यक्ति थे और बौद्धिक और वैचारिक निर्देश वास्तव में सावरकर से ही आता था.

1925 की विजयादशमी के दिन हेडगेवार और हिंदू महासभा के चार नेताओं बीएस मुंजे, गणेश सावरकर, एलवी परांजपे और बीबी ठोलकर के बीच हुई थी. सावरकर के बड़े भाई गणेश सावरकर इस बैठक में मौजूद थे, जिस में आरएसएस की स्थापना हुई थी. इस के बाद उन्होंने अपने संगठन तरुण भारत संघ का विलय आरएसएस में कर दिया था. आरएसएस के गठन के 2 साल बाद देशभर में साइमन कमीशन विरोधी प्रदर्शन हो रहे थे. लेकिन इन में आरएसएस कहीं नहीं था. दिसंबर, 1929 में जवाहर लाल नेहरू ने लाहौर में कांग्रेस के वार्षिक अधिवेशन में पार्टी अध्यक्ष के तौर पर भारत के राष्ट्रीय ध्वज को फहराया और पूर्ण स्वराज को पार्टी का मकसद घोषित किया.

कांग्रेस ने 26 जनवरी, 1930 को स्वतंत्रता दिवस के तौर पर मनाने का भी फैसला लिया. हेडगेवार ने दावा किया कि चूंकि आरएसएस पूर्ण स्वराज में यकीन करता है, इसलिए यह स्वतंत्रता दिवस तो मनाएगा, लेकिन यह तिरंगे की जगह भगवा झंडा फहराएगा. 1930 के दशक में आरएएस और हिंदू महासभा के बीच सावरकर को ले कर टकराव हुआ. इस के बाद भी दोनों संगठनों के बीच संबंध बने रहे. इस के बाद सावरकर हिंदू महासभा के अध्यक्ष भी बने. 6 साल तक इस पद पर बने रहे.

30 जनवरी को गांधीजी की हत्या के तुरंत बाद उपप्रधानमंत्री और गृह मंत्री के रूप में सरदार पटेल के नेतृत्व में भारत सरकार ने आरएसएस को प्रतिबंधित कर दिया और इस के 25,000 सदस्यों को जेल भेज दिया. प्रतिबंध लगाए जाने पर हिंदू महासभा ने खुद को भंग करने का फैसला किया.

इस के प्रमुख नेता श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने 1951 में भारतीय जनसंघ की स्थापना की. इस के बाद से इसे हिंदू सांप्रदायिक विचारों का मुख्य राजनीतिक वाहन, इस की सर्वप्रमुख राजनीतिक पार्टी होना था. 1977 में आपातकाल के बाद इस का जनता पार्टी में विलय हो गया और बाद में 1980 में इस ने भाजपा के रूप में नया अवतार लिया. इस तरह से भाजपा और आरएसएस के बीच गहरा रिश्ता है. सरसंघ चालक के कहने की बात नहीं है देश के लोग इस सच को जानते हैं. संघ को बारबार सफाई देने की जरूरत नहीं है.

मुसलिम विरोध बना एजेंडा

1920 में बालगंगाधर तिलक के निधन के बाद नागपुर में तिलक के समर्थकों की ही तरह से डाक्टर हेडगेवार भी महात्मा गांधी द्वारा अपनाए गए कुछ कार्यक्रमों के विरोधी थे. भारतीय मुसलिम खिलाफत मुद्दे पर गांधी का रुख हेडगेवार के लिए चिंता का विषय था. इस में एक और कारण था ‘गौरक्षा’ का कांग्रेस के एजेंडे में होना. इस कारण हेडगेवार और अन्य तिलक समर्थकों ने गांधी से नाता तोड़ लिया. 1921 में हेडगेवार को कटोल और भरतवाड़ा में दिए गए उन के भाषणों के लिए ‘राजद्रोह’ के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया. उन को एक वर्ष की जेल की सजा सुनाई गई.

जुलाई 1922 में उन्हें रिहा कर दिया गया. 1922 और 1924 के बीच नागपुर में प्रमुख राजनीतिक हस्तियों के साथ बैठकें कीं. 1924 में वे पास के वर्धा में गांधीजी के आश्रम गए और कई मुद्दों पर चर्चा की. इस बैठक के बाद, वे अकसर विरोधी हिंदू समूहों को एक साझा राष्ट्रवादी आंदोलन में एकजुट करने की योजना बनाने के लिए वर्धा से चले गए. यही दौर था जब हिंदू मुसलिम एकदूसरे के खिलाफ दिखने लगे थे. महात्मा गांधी चाहते थे कि हिंदूमुसलिम एकजुट रहें. अगस्त 1921 में मोपला विद्रोह विद्रोह इस की शुरू आत मानी जाती है. 1923 में नागपुर में दंगे हुए जिन्हें हेडगेवार ने ‘मुसलिम दंगे’ कहा था.

अब हेडगेवार का प्रयास हिंदूओं को संगठित करने के साथ ही साथ उन को मजबूत करने का भी था. इस के लिए संगठन में लोगों को मजबूत करने के लिए ट्रेनिंग देने की योजना शुरू की गई. 1927 में हेडगेवार ने प्रमुख कार्यकर्ताओं की एक टुकड़ी बनाने के उद्देश्य से ‘अधिकारी प्रशिक्षण शिविर’ का आयोजन किया. जिस को प्रचारक कहा गया. इस के लिए स्वयंसेवकों से पहले ‘साधु’ बनने, पेशेवर और पारिवारिक जीवन को त्यागने और आरएसएस के लिए अपना जीवन समर्पित करने को कहा गया. इस के बाद शाखाओं का एक नेटवर्क विकसित किया गया. प्रचारक को अधिक से अधिक शाखाएं तैयार करने के लिए कहा गया.

पहले नागपुर में फिर पूरे महाराष्ट्र में और अंततः शेश भारत में इस की शुरूआत की गई. इस में कालेज और विश्वविद्यालयों को भी जोड़ना शुरू किया गया. बनारस इस काम के लिए प्रचारकों को अलगअलग प्रदेशों में भेजा गया. आरएसएस ने अपने हिसाब से संगठन को बनाने के लिए अलगअलग हिस्सों में बांटा. इस को प्रांत का नाम दिया गया. हर प्रांत में प्रांत प्रचारक को जिम्मेदारी दी गई कि वह शाखा और संगठन को मजबूत कर सके. धीरधीरे इस काम को विस्तार दिया जाए. अपने खर्चों को चलाने के लिए आरएसएस से गुरू दक्षिणा लेनी शुरू की. हर साल गुरू पूर्णिमा के अवसर पर इस का आयोजन होता है. फ्रांसीसी राजनीतिक वैज्ञानिक क्रिस्टोफ जैफ्रेलो का कहना है कि आरएसएस का उद्देश्य हिंदुत्व की विचारधारा का प्रचार करना और बहुसंख्यक समुदाय को ‘नई शारीरिक शक्ति’ प्रदान करना था.

1927 में आरएसएस में लगभग 100 स्वयंसेवकों को शामिल करने के बाद गणेश पूजा के लिए मुसलिम क्षेत्र में ले जाया गया. गणेश के लिए हिंदू धार्मिक जुलूस का नेतृत्व इन लोगों ने किया. पहले जुलूस मसजिद के सामने से नहीं गुजरता था. इस को तोड़ते हुए न केवल जुलूस निकाला गया बल्कि ढोल बजाए गए.

4 सितंबर को लक्ष्मी पूजा के दिन, मुसलमानों ने जवाबी कार्रवाई की. जब हिंदू जुलूस नागपुर के महल क्षेत्र में एक मसजिद में पहुंचा, तो मुसलमानों ने इसे रोक दिया. दोपहर में उन्होंने महल क्षेत्र में हिंदू आवासों पर हमला किया. दंगे 3 दिनों तक जारी रहे और हिंसा को शांत करने के लिए सेना को बुलाना पड़ा.

आरएसएस ने हिंदू प्रतिरोध का आयोजन किया और हिंदू परिवारों की रक्षा का दावा किया. इस घटना से आरएसएस की पहचान बनी. क्रिस्टोफ जैफ्रेलो ने आरएसएस की विचारधारा में आर्य समाज और हिंदू महासभा जैसे अन्य हिंदू राष्ट्रवादी आंदोलनों के साथ ‘कलंक और अनुकरण’ के विषय की तरफ इशारा किया है. मुसलमानों, ईसाइयों और अंगरेजों को हिंदू राष्ट्र में ‘विदेशी निकाय’ माना गया. जो हिंदुओं के बीच फूट और वीरता की कमी का फायदा उठा कर उन्हें अपने अधीन करने में सक्षम थे.

आरएसएस और हिंदू महासभा

हिंदू महासभा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के भीतर से अलग हुए गुट ने बनाई. इस के ऊपर आरएसएस पर प्रभाव था. 1923 में मदन मोहन मालवीय जैसे प्रमुख हिंदू नेता इस मंच पर एकत्र हुए और ‘हिंदू समुदाय में विभाजन’ पर अपनी चिंता व्यक्त की. हिंदू महासभा में अपने भाषण में मालवीय ने कहा ‘दोस्ती बराबरी के लोगों के बीच हो सकती है. अगर हिंदू खुद को मजबूत बनाते हैं और मुसलमानों के बीच उपद्रवी वर्ग को यह विश्वास हो जाता है कि वे सुरक्षित रूप से हिंदुओं को लूट और अपमानित नहीं कर सकते हैं, तो एक स्थिर आधार पर एकता स्थापित होगी. वह चाहते थे कि कार्यकर्ता सभी लड़केलड़कियों को शिक्षित करें, अखाड़े स्थापित करें, लोगों को हिंदू महासभा के निर्णयों का पालन करने के लिए राजी करने के लिए एक स्वयंसेवी दल स्थापित करें.

हिंदू महासभा के नेता वीडी सावरकर की ‘हिंदुत्व’ विचारधारा का भी आरएसएस की ‘हिंदू राष्ट्र’ पर गहरा प्रभाव था. 1931 में अकोला में हिंदू महासभा की वार्षिक बैठक के आयोजन में आरएएस ने अलग संस्था के रूप हिस्सा लिया था. गणेश सावरकर ने स्थानीय नेताओं के साथ संपर्क शुरू कर के महाराष्ट्र, पंजाब, दिल्ली और रियासतों में आरएसएस की शाखाओं को फैलाने का काम किया. इसी के साथ सावरकर ने अपने युवा संगठन तरुण हिंदू सभा का आरएसएस में विलय कर इस के विस्तार में मदद की. 1937 में रिहा होने के बाद वीडी सावरकर आरएसएस के प्रसार में उन के साथ शामिल हो गए और इस के समर्थन में भाषण दिए.

100 साल में मुद्दे जस के तस

आरएसएस का जन्म ही मुसलिम विरोध को ले कर हुआ. उस दौर में जितने भी हिंदूवादी विचारों के लोग थे सब ने आरएसएस का साथ दिया. इस के बाद आरएसएस ने अपना प्रभाव बनाना शुरू किया. अलगअलग सरकारों के साथ उस के संबंध रहे हैं. आजादी के बाद संघ ने अपना राजनीतिक संगठन भारतीय जनसंघ बनाया. 1977 में यह जनता पार्टी में विलय हो गया. इस के बाद 1980 में जनता पार्टी से अलग हो कर जनसंघ के लोगों ने भारतीय जनता पार्टी बनाई. इस के बाद 1989 में भाजपा पहली बार सत्ता में शामिल हुई. विश्वनाथ प्रताप सिंह प्रधानमंत्री बने. एक साल में ही भाजपा ने खुद को अलग कर लिया. 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी की अगुवाई में भाजपा ने सरकार बनाई.

2014 में नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने तब से अब तक भाजपा का राज है. परोक्ष रूप से यह माना जाता है कि भाजपा के पीछे आरएसएस की ही ताकत है. आरएसएस इस बात से इंकार करती रहती है. संघ के 100 साल पूरे होने पर सरसंघ चालक मोहन भागवत ने भाजपा और आरएसएस के संबंधों को ले कर कहा ‘आरएसएस, बीजेपी को नियंत्रित नहीं करता है. आरएसएस सुझाव देता है, लेकिन बीजेपी अपने फैसले खुद लेती है. आरएसएस और सरकार के बीच कोई झगड़ा नहीं है. अगर कोई व्यक्ति कुर्सी पर बैठा है और वह हमारे लिए 100 फीसदी है, तो भी उसे पता है कि क्या दिक्कतें हैं. हमें उसे आजादी देनी होगी. हमारी हर सरकार के साथ अच्छी बातचीत होती है, चाहे वह राज्य सरकार हो या केंद्र सरकार. सिर्फ इस सरकार के साथ ही नहीं, बल्कि हर सरकार के साथ आरएसएस के अच्छे रिश्ते रहे हैं. सिस्टम में कुछ कमियां हैं. यह सिस्टम अंगरेजों ने बनाया था ताकि वे राज कर सकें. हमें इस में कुछ बदलाव करने की जरूरत है.’

सवाल उठता है कि आरएसएस ने जो सपने देखे थे वह कितने पूरे हुए? समाज में अभी भी छुआछूत कायम है. हिंदूमुसलिम के बीच तनाव कायम है. दंगे होते हैं. वैसे तो आरएसएस हिंदूमुसलिम संबंधों को ले कर भी एकता की बात करते हैं. इस के बाद भी उसे वोट 80 बनाम 20 का बंटवारा करने पर ही मिलता है. भाजपा सरकार और संगंठन दोनों में ही मुसलिमों का कोई प्रतिनिधित्व नहीं है. चुनाव लड़ने के लिए भाजपा उन को टिकट नहीं देती है. यह बात और है कि आरएसएस के कुछ लोगों ने भारतीय मुसलिम संगठन भी बनाया है. मोहन भागवत मुसलिमों के साथ बातचीत भी करते हैं.

दिल्ली के हरियाणा भवन में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने मुसलिम धर्मगुरुओं के साथ बैठक की. इस में 70 से ज्यादा मुसलिम धर्मगुरुओं, बुद्धिजीवियों, मौलानाओं, स्कौलर के बीच करीब 3 घंटे बातचीत हुई. इस से पहले सितंबर 2022 में मोहन भागवत ने कई मुसलिम धर्मगुरुओं से मुलाकात की थी. बैठक में ज्ञानवापी विवाद, हिजाब विवाद और जनसंख्या नियंत्रण जैसे मुद्दों पर भी चर्चा हुई थी. इस दौरान भागवत दिल्ली के एक मसजिद में भी गए थे. संघ अपनी सहयोगी संस्था मुसलिम राष्ट्रीय मंच के जरिए मुसलिम मौलवियों, धर्मगुरुओं और समुदाय के प्रमुख लोगों के साथ बातचीत करता है. इस के बाद भी देश में मुसलिम विरोध पर ही भाजपा राजनीति कर रही है.

आज भी देश में गैरबराबरी है. हर शहर में गरीबों की बस्तियां हैं. अगर आरएसएस ने सही तरह से काम किया होता तो यह गैर बराबरी का दौर खत्म हो गया होता. सरकारी अस्पतालों में आरएसएस ने सेवा भाव से काम किया होता तो वहां गरीबों को सही इलाज मिल जाता. यही नहीं आज सरकारी स्कूल बदहाल है. वहां पढ़ाई का माहौल नहीं है. ऐसे में आरएसएस को इन क्षेत्रों में काम करना चाहिए था. आरएसएस के लोग जो चाहते हैं वह करते हैं. चाहे मंदिर में पूजा हो, गणेश यात्रा, कांवड यात्रा जैसे धार्मिक आयोजन हो जाते हैं वहां बजट की चिंता नहीं होती है.

आरएसएस बयान देने में आगे रहता है. उस की नजर में दलितों की कोई समस्या नहीं है. उसे लगता है कि हिंदूमुसलिम में कोई अलगाव नहीं है. मूल रूप से जो हालात हैं वह समझ नहीं रहा है. आरएसएस की विचारधारा हिंदूत्व और हिंदू राष्ट्र की है. जिस में दलित और मुसलिम दोनों के लिए कोई जगह नहीं है. ऐसे में बारबार संघ प्रमुख की बातें सवालों के घेरे में रहती है. संघ प्रमुख की बातें हाथी के दांत जैसी है. जो खाने के और दिखाने के और होते हैं. भाजपा आज भी अपने मुद्दे संभल जैसे पुराने विवाद में तलाश रही है. मोहन भागवत कितना भी कहे कि हर मंदिर के नीचे मसजिद तलाशने की जरूरत नहीं है लेकिन काशी, मथुरा और संभल जैसी तमाम जगहों पर वही हो रहा है.  RSS 

Punjabi Music : पंजाबी गानों में ब्रांड्स का बोलबाला

Punjabi Music : पंजाबी गानों में लग्जरी ब्रांड्स को खूब दिखाया जाता है, सिंगर्स अपने गानों की मेन थीम ही इन ब्रांड्स के इर्दगिर्द रखते हैं. इन गानों को सुनने वाले अधिकतर यूथ हैं और उन पर इस का खासा इम्पैक्ट पड़ता है.

पंजाबी म्यूजिक हर जगह छाया हुआ है. शादियों से ले कर कार की सैर तक, पार्टी हो या दोस्तों के साथ हैंगआउट हो, पंजाबी गाने हर मौके पर बजते हैं. लेकिन इन गानों में सिर्फ मस्ती और नाचगाना ही नहीं, बल्कि महंगे ब्रांड्स का जम कर महिमामंडन भी होता है. गुच्ची, पराडा, वर्साचे जैसे ब्रांड्स के नाम गानों में घुसे रहते हैं. आज का यूथ इन गानों से इतना प्रभावित हो रहा है कि वह महंगी चीजें खरीदने के लिए भाग रहा है, चाहे जेब इजाजत दे या न दे.
आए दिन नएनए पंजाबी गाने रिलीज किए जाते हैं और खूब धड़ाके से सुने भी जाते हैं. इन में न सिर्फ कपड़ों की ब्रांड्स का महिमामंडन किया जाता है बल्कि गाड़ियों, शराब और घड़ियों तक के मंहगे ब्रांड्स का भी बोलबाला है. आज हम ऐसे लेटेस्ट पंजाबी गानों का विश्लेषण करेंगे जिन में ब्रांड्स का जिक्र गया है.

गाना 1- Prada – जस मानक

हो, अखां उत्ते तेरे आ प्राडा सज्जणा
अस्सी टाइम चकदे आ डाडा सज्जणा
मतलब – तुम्हारे आंखों के ऊपर प्राडा का चश्मा है और मैं तुम्हारे सड़क से गुजरने का इंतजार करती हूं.

काली रेंज विच रहना वेल्ली ताड़दा
थोनु चेहरा दिसदा नी साडा सज्जणा
अपनी काली रेंज रोवर में तुम दूसरों को ताड़ते रहते हो, लेकिन मैं तुम्हें नहीं दिखती.

तेरे पीछे साक शड्ड आई 40
गोरी जट्टी घुम्मे बेंटले च काली
प्राडा अखां ला के देख लै
मतलब- तेरे लिए मैं ने 40 लड़कियों को मना कर दिया जो गोरी और सुंदर लड़कियां मेरी बैंटली के आसपास घूमती हैं. अपनी आंखों से ये पराडा का चश्मा उतार के मुझे देखो.

जस मानक का गाना ‘पराडा’ 2018 में रिलीज हुआ, लेकिन 2025 तक भी इस का क्रेज बरकरार है. यह गाना जस मानक ने गाया और लिखा है. इस गाने में ‘पराडा’ ब्रांड का नाम बारबार आता है, जहां गायक अपनी लवर को इम्प्रेस करने के लिए पराडा की सैंडल्स का जिक्र करता है. गाने का लहजा ऐसा है कि पराडा, रेंज रोवर और बैंटली स्टेटस सिंबल बन जाता है.

गाना 2- अजूल- गुरू रंधावा

नी बोतल अजूल दिए
नी बोतल अजूल दिए
इस गाने का नाम है अजूल जो एक फेमस शराब का ब्रांड है और अपना बोतल के डिजाइन की वजह से यह काफी फेमस हुई थी. इस गाने में गुरू रंधावा ने अपनी गर्लफ्रैंड को अजूल से कंपेयर किया है.
ब्लेंडेड स्कौच वांगू रंग तेरा ब्राउन
हेंसी दे वांगू नी तू घुम्मे सारे टाउन
तुम ब्लैंडेड स्कोच की तरह ब्राउन हो और हैनेसी शराब की तरह पूरे शहर में घूमती हो.

मार ले टकीला जेहरा टिक के नी बहंदा
हुस्न आ तेरा टेरेमाना वांगू महंगा

मतलब- जो टकीला मार लेता है वह टिक के नहीं बैठता, तेरा हुस्न टैरे माना शराब की तरह महंगा है.

यह गाना गुरू रंधावा ने गाया है और लिखा है. इस गाने में रंधावा महंगीमहंगी शराबों से अपनी गर्लफ्रैंड को कंपेयर करता है.

गाना 3 – प्लेयर्स – बादशाह और करन औजला

रुसी नू गुच्ची कोई गहन सोनेया
एहना ता करना ही पहना सोहनेया
सोहनेय परादा नी पराडा चाहिदे
सोहनेय परादा नी पराडा चाहिदे
फेर मेलुगा जे दिल लैना सोनेया

अगर तुम रूठ गई तो मुझे तुम्हें मनाने के लिए गुच्ची या कोई गहना (महंगा तोहफा) देना पड़ेगा, सोनिया. मुझे खुश करने के लिए मुझे इतना तो करना ही पड़ेगा. मुझे परांदा नहीं चाहिए, मुझे तो पराडा (महंगा ब्रांड) चाहिए. और फिर अगर मेरा दिल जीत लिया, तो मुझे मिल पाओगे.

ये गाना बादशाह और करन औजला ने गाया है और इस के लीरिक्स जसकरन सिंह औजला और आदित्य प्रतीक सिंह ने लिखे हैं. इस गाने में लड़की पराडा और गुच्ची जैसे महंगे ब्रांड्स की ख्वाहिश करती है.

ब्रांड्स का महिमामंडन और यूथ पर असर

पंजाबी गानों में ब्रांड्स का जिक्र कोई नई बात नहीं है, लेकिन पिछले कुछ सालों में ये ट्रैंड इतना बढ़ गया है कि हर दूसरा गाना लग्जरी लाइफ को ग्लोरिफाई करता है. ये गाने यूथ को एक ऐसी दुनिया दिखाते हैं, जहां गुच्ची, पराडा, रोलेक्स और फरारी ही स्टेटस और सक्सेस की निशानी हैं. लेकिन इस का असर यूथ पर क्या हो रहा है?

महंगी चीजों की चाहत

यूथ इन गानों को सुन कर लग्जरी ब्रांड्स की तरफ भागता है. चाहे जेब में पैसे हों या न हों, ब्रांडेड कपड़े, जूते और गैजेट्स खरीदने की होड़ मच जाती है. कई बार लोग लोन ले कर या उधार मांग कर ये चीजें खरीदते हैं, सिर्फ इसलिए कि उन के फेवरेट सिंगर ने गाने में इन का जिक्र किया है.

सोशल मीडिया और शोऔफ

आजकल सोशल मीडिया का जमाना है. पंजाबी गानों में दिखाए गए ब्रांड्स और लग्जरी लाइफ को देख कर यूथ इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर अपनी ब्रांडेड लाइफ दिखाने की कोशिश करता है. इस से एक तरह का प्रेशर बनता है, जहां हर कोई दूसरों से बेहतर दिखना चाहता है. ये शोऔफ का कल्चर यूथ को फिजूलखर्ची की तरफ धकेलता है.

आर्थिक दबाव और मेंटल स्ट्रेस
हर कोई गुची या रोलेक्स अफोर्ड नहीं कर सकता. लेकिन गानों में इन ब्रांड्स को इतना ग्लोरिफाई किया जाता है कि यूथ को लगता है कि बिना इन के वे कूल नहीं हैं. इस से उन में हीनभावना आती है और वे अपनेआप को दूसरों से कम समझने लगते हैं. कई बार तो महंगी चीजें खरीदने के लिए लोग गलत रास्तों, जैसे चोरी या ठगी, की तरफ भी चले जाते हैं.

गालीगलौज और गुंडागर्दी का भी ग्लोरिफिकेशन

ब्रांड्स के साथसाथ पंजाबी गानों में गालीगलौज और गुंडागर्दी को भी बढ़ावा दिया जाता है. गानों में बंदूकें, गाड़ियां और स्वैग को इस तरह दिखाया जाता है, जैसे ये जिंदगी जीने का सही तरीका हो. यूथ इसे कौपी करने की कोशिश करता है, जिस से समाज में हिंसा और गलत व्यवहार बढ़ रहा है.

पंजाबी गाने अपनी धुन और एनर्जी के लिए मशहूर हैं, लेकिन इनमें ब्रांड्स और गलत चीजों का ग्लोरिफिकेशन कम होना चाहिए. सिंगर्स और गीतकारों को चाहिए कि वे ऐसी चीजें दिखाएं, जो यूथ को सकारात्मक दिशा में ले जाएं. म्यूजिक में पंजाब की संस्कृति, प्यार, और मेहनत की बात होनी चाहिए, न कि सिर्फ महंगे ब्रांड्स और गुंडागर्दी की.  Punjabi Music

Romantic Story In Hindi : इजहार- सीमा के लिए किसने भेजा था गुलदस्ता ?

Romantic Story In Hindi : मनीषा ने सुबह उठते ही जोशीले अंदाज में पूछा, ‘‘पापा, आज आप मम्मी को क्या गिफ्ट दे रहे हो?’’

‘‘आज क्या खास दिन है, बेटी?’’ कपिल ने माथे में बल डाल कर बेटी की तरफ देखा.

‘‘आप भी हद करते हो, पापा. पिछले कई सालों की तरह आप इस बार भी भूल गए कि आज वैलेंटाइनडे है. आप जिसे भी प्यार करते हो, उसे आज के दिन कोई न कोई उपहार देने का रिवाज है.’’

‘‘ये सब बातें मुझे मालूम हैं, पर मैं पूछता हूं कि विदेशियों के ढकोसले हमें क्यों अपनाते हैं?’’

‘‘पापा, बात देशीविदेशी की नहीं, बल्कि अपने प्यार का इजहार करने की है.’’

‘‘मुझे नहीं लगता कि सच्चा प्यार किसी तरह के इजहार का मुहताज होता है. तेरी मां और मेरे बीच तो प्यार का मजबूत बंधन जन्मोंजन्मों पुराना है.’’

‘‘तू भी किन को समझाने की कोशिश कर रही है, मनीषा?’’ मेरी जीवनसंगिनी ने उखड़े मूड के साथ हम बापबेटी के वार्तालाप में हस्तक्षेप किया, ‘‘इन से वह बातें करना बिलकुल बेकार है जिन में खर्चा होने वाला हो, ये न ला कर दें मुझे 5-10 रुपए का गिफ्ट भी.’’

‘‘यह कैसी दिल तोड़ने वाली बात कर दी तुम ने, सीमा? मैं तो अपनी पूरी पगार हर महीने तुम्हारे चरणों में रख देता हूं,’’ मैं ने अपनी आवाज में दर्द पैदा करते हुए शिकायत करी.

‘‘और पाईपाई का हिसाब न दूं तो झगड़ते हो. मेरी पगार चली जाती है फ्लैट और कार की किस्तें देने में. मुझे अपनी मरजी से खर्च करने को सौ रुपए भी कभी नहीं मिलते.’’

‘‘यह आरोप तुम लगा रही हो जिस की अलमारी में साडि़यां ठसाठस भरी पड़ी हैं. क्या जमाना आ गया है. पति को बेटी की नजरों में गिराने के लिए पत्नी झूठ बोल रही है.’’

‘‘नाटक करने से पहले यह तो बताओ कि उन में से तुम ने कितनी साडि़यां आज तक खरीदवाई हैं? अगर तीजत्योहारों पर साडि़यां मुझे मेरे मायके से न मिलती रहतीं तो मेरी नाक ही कट जाती सहेलियों के बीच.’’

‘‘पापा, मम्मी को खुश करने के लिए 2-4 दिन कहीं घुमा लाओ न,’’ मनीषा ने हमारी बहस रोकने के इरादे से विषय बदल दिया.

‘‘तू चुप कर, मनीषा. मैं इस घर के चक्करों से छूट कर कहीं बाहर घूमने जाऊं, ऐसा मेरे हिस्से में नहीं है,’’ सीमा ने बड़े नाटकीय अंदाज में अपना माथा ठोंका.

‘‘क्यों इतना बड़ा झूठ बोल रही हो? हर साल तो तुम अपने भाइयों के पास 2-4 हफ्ते रहने जाती हो,’’ मैं ने उसे फौरन याद दिलाया.

‘‘मैं शिमला या मसूरी घुमा लाने की बात कह रही थी, पापा,’’ मनीषा ने अपने सुझाव का और खुलासा किया.

‘‘तू क्यों लगातार मेरा खून जलाने वाली बातें मुंह से निकाले जा रही है? मैं ने जब भी किसी ठंडी पहाड़ी जगह घूम आने की इच्छा जताई, तो मालूम है इन का क्या जवाब होता था? जनाब कहते थे कि अगर नहाने के बाद छत पर गीले कपड़ों में टहलोगी तो इतनी ठंड लगेगी कि हिल स्टेशन पर घूमने का मजा आ जाएगा.’’

‘‘अरे, मजाक में कही गई बात बच्ची को सुना कर उसे मेरे खिलाफ क्यों भड़का रही हो?’’ मैं नाराज हो उठा.

मेरी नाराजगी को पूरी तरह से नजरअंदाज करते हुए सीमा ने अपनी शिकायतें मनीषा को सुनानी जारी रखीं, ‘‘इन की कंजूसी के कारण मेरा बहुत खून फुंका है. मेरा कभी भी बाहर खाने का दिल हुआ तो साहब मेरे हाथ के बनाए खाने की ऐसी बड़ाई करने लगे जैसे कि मुझ से अच्छा खाना कोई बना ही नहीं सकता.’’

‘‘पर मौम, यह तो अच्छा गुण हुआ पापा का,’’ मनीषा ने मेरा पक्ष लिया. बात सिर्फ बाहर खाने में होने वाले खर्च से बचने के लिए होती है.

‘‘उफ,’’ मेरी बेटी ने मेरी तरफ ऐसे अंदाज में देखा मानो उसे आज समझ में आया हो कि मैं बहुत बड़ा खलनायक हूं.

‘‘जन्मदिन हो या मैरिज डे, अथवा कोई और त्योहार, इन्हें मिठाई खिलाने के अलावा कोई अन्य उपहार मुझे देने की सूझती ही नहीं. हर खास मौके पर बस रसमलाई खाओ या गुलाबजामुन. कोई फूल, सैंट या ज्वैलरी देने का ध्यान इन्हें कभी नहीं आया.’’

‘‘तू अपनी मां की बकबक पर ध्यान न दे, मनीषा. इस वैलेंटाइनडे ने इस का दिमाग खराब कर दिया है, जो इस जैसी सीधीसादी औरत का दिमाग खराब कर सकता हो, उस दिन को मनाने की मूर्खता मैं तो कभी नहीं करूंगा,’’ मैं ने अपना फैसला सुनाया तो मांबेटी दोनों ही मुझ से नाराज नजर आने लगीं.

दोनों में से कोई मेरे इस फैसले पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त कर पाती, उस से पहले ही किसी ने बाहर से घंटी बजाई.

मैं ने दरवाजा खोला और हैरानी भरी आवाज में चिल्ला पड़ा, ‘‘देखो, कितना सुंदर गुलदस्ता आया है.’’

‘‘किस ने भेजा है?’’ मेरी बगल में आ खड़ी हुई सीमा ने हैरान हो कर पूछा.

‘‘और किस को भेजा है?’’ मनीषा उस पर लगा कार्ड पढ़ने की कोशिश करने लगी.

‘‘इस कार्ड पर लिखा है ‘हैपी वेलैंटाइनडे, माई स्वीटहार्ट,’ कौन किसे स्वीटहार्ट बता रहा है, यह कुछ साफ नहीं हुआ?’’ मेरी आवाज में उलझन के भाव उभरे.

‘‘मनीषा, किस ने भेजा है तुम्हें इतना प्यारा गुलदस्ता?’’ सीमा ने तुरंत मीठी आवाज में अपनी बेटी से सवाल किया.

मेरे हाथ से गुलदस्ता ले कर मनीषा ने उसे चारों तरफ से देखा और अंत में हैरानपरेशान नजर आते हुए जवाब दिया, ‘‘मौम, मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है.’’

‘‘क्या इसे राजीव ने भेजा?’’

‘‘न…न… इतना महंगा गुलदस्ता उस के बजट से बाहर है.’’

‘‘मोहित ने?’’

‘‘वह तो आजकल रितु के आगेपीछे दुम हिलाता घूमता है.’’

‘‘मोहित ने?’’

‘‘नो मम्मी. वी डौंट लाइक इच अदर वैरी मच.’’

‘‘फिर किस ने भेजे हैं इतने सुंदर फूल?’’

‘‘जरा 1 मिनट रुकोगी तुम मांबेटी… यह अभी तुम किन लड़कों के नाम गिना रही थी, सीमा?’’ मैं ने अचंभित नजर आते हुए उन के वार्त्तालाप में दखल दिया.

‘‘वे सब मनीषा के कालेज के फ्रैंड हैं,’’ सीमा ने लापरवाही से जवाब दिया.

‘‘तुम्हें इन सब के नाम कैसे मालूम हैं?’’

‘‘अरे, मनीषा और मैं रोज कालेज की घटनाओं के बारे में चर्चा करती रहती हैं. आप की तरह मैं हमेशा रुपयों के हिसाबकिताब में नहीं खोई रहती हूं.’’

‘‘मैं हिसाबकिताब न रखूं तो हर महीने किसी के सामने हाथ फैलाने की नौबत आ जाए, पर इस वक्त बात कुछ और चल रही है… जिन लड़कों के तुम ने नाम लिए…’’

‘‘वे सब मनीषा के साथ पढ़ते हैं और इस के अच्छे दोस्त हैं.’’

‘‘मनीषा, तुम कालेज में कुछ पढ़ाई वगैरह भी कर रही हो या सिर्फ अपने सोशल सर्कल को बड़ा करने में ही तुम्हारा सारा वक्त निकल जाता है?’’ मैं ने नकली मुसकान के साथ कटाक्ष किया.

‘‘पापा, इनसान को अपने व्यक्तित्व का संपूर्ण विकास करना चाहिए या नहीं?’’ मनीषा ने तुनक कर पूछा.

‘‘वह बात तो सही है पर यह गुलदस्ता भेजने वाले संभावित युवकों की लिस्ट इतनी लंबी होगी, यह बात मुझे थोड़ा परेशान कर रही है.’’

‘‘पापा, जस्ट रिलैक्स. आजकल फूलों का लेनादेना बस आपसी पसंद को दिखाता है. फूल देतेलेते हुए ‘मुझे तुम से प्यार हो गया है और अब सारी जिंदगी साथ गुजारने की तमन्ना है,’ ऐसे घिसेपिटे डायलौग आजकल नहीं बोले जाते हैं.’’

‘‘आजकल तलाक के मामले क्यों इतने ज्यादा बढ़ते जा रहे हैं, इस विषय पर हम फिर कभी चर्चा करेंगे, पर फिलहाल यह बताओ कि क्या तुम ने यह गुलदस्ता भेजने वाले की सही पहचान कर ली है?’’

‘‘सौरी, पापा. मुझे नहीं लगता कि यह गुलदस्ता मेरे लिए है.’’

उस का जवाब सुन कर मैं सीमा की तरफ घूमा और व्यंग्य भरे लहजे में बोला, ‘‘जो तुम्हें पसंद करते हों, उन चाहने वालों के 10-20 नाम तुम भी गिना दो, रानी पद्मावती. ’’

‘‘यह रानी पद्मावती बीच में कहां से आ गई?’’

‘‘अब कुछ देरे तुम चुप रहोगी, मिस इंडिया,’’ मैं ने मनीषा को नाराजगी से घूरा तो उस ने फौरन अपने होंठों पर उंगली रख ली.

‘‘मुझे फालतू के आशिक पालने का शौक नहीं है,’’ सीमा ने नाकभौं चढ़ा कर जवाब दिया.

‘‘पापा, मैं कुछ कहना चाहती हूं,’’ मनीषा की आंखों में शरारत के भाव मुझे साफ नजर आ रहे थे.

‘‘तुम औरतों को ज्यादा देर खामोश रख पाना हम मर्दों के बूते से बाहर की बात है. कहो, क्या कहना चाहती हो?’’

‘‘पापा, हो सकता है मीना मौसी की बेटी की शादी में मिले आप के कजिन रवि चाचा के दोस्त नीरज ने मौम के लिए यह गुलदस्ता भेजा हो.’’

‘‘तेरे खयाल से उस मुच्छड़ ने तेरी मम्मी पर लाइन मारने की कोशिश की है?’’

‘‘मूंछों को छोड़ दो तो बंदा स्मार्ट है, पापा.’’

‘‘क्या कहना है तुम्हें इस बारे में?’’ मैं ने सीमा को नकली गुस्से के साथ घूरना शुरू कर दिया.

‘‘मैं क्यों कुछ कहूं? आप को जो पूछताछ करनी है, वह उस मुच्छड़ से जा कर करो,’’ सीमा ने बुरा सा मुंह बनाया.

‘‘अरे, इतना तो बता दो कि क्या तुम ने अपनी तरफ से उसे कुछ बढ़ावा दिया था?’’

‘‘जिन्हें पराई औरतों पर लार टपकाने की आदत होती है, उन्हें किसी स्त्री का साधारण हंसनाबोलना भी बढ़ावा देने जैसा लगता है.’’

‘‘मुझे नहीं लगता कि उस मुच्छड़ ने तेरी मां को ज्यादा प्रभावित किया होगा. किसी और कैंडिडेट के बारे में सोच, मनीषा.’’

‘‘मम्मी के सहयोगी आदित्य साहब इन के औफिस की हर पार्टी में मौम के चारों तरफ मंडराते रहते हैं,’’ कुछ पलों की सोच के बाद मेरी बेटी ने अपनी मम्मी में दिलचस्पी रखने वाले एक नए प्रत्याशी का नाम सुझाया.

‘‘वह इस गुलदस्ते को भेजने वाला आशिक नहीं हो सकता,’’ मैं ने अपनी गरदन दाएंबाएं हिलाई, ‘‘उस की पर्सनैलिटी में ज्यादा जान नहीं है. बोलते हुए वह सामने वाले पर थूक भी फेंकता है.’’

‘‘गली के कोने वाले घर में जो महेशजी रहते हैं, उन के बारे में क्या खयाल है.’’

‘‘उन का नाम लिस्ट में क्यों ला रही है?’’

‘‘पापा, उन का तलाक हो चुका है और मम्मी से सुबह घूमने के समय रोज पार्क में मिलते हैं. क्या पता पार्क में साथसाथ घूमते हुए वे गलतफहमी का शिकार भी हो गए हों?’’

‘‘तेरी इस बात में दम हो सकता है.’’

‘‘खाक दम हो सकता है,’’ सीमा एकदम भड़क उठी, ‘‘पार्क में सारे समय तो वे बलगम थूकते चलते हैं. प्लीज, मेरे साथ किसी ऐरेगैरे का नाम जोड़ने की कोई जरूरत नहीं है. अगर यह गुलदस्ता मेरे लिए है, तो मुझे पता है भेजने वाले का नाम.’’

‘‘क…क… कौन है वह?’’ उसे खुश हो कर मुसकराता देख मैं ऐसा परेशान हुआ कि सवाल पूछते हुए हकला गया.

‘‘नहीं बताऊंगी,’’ सीमा की मुसकराहट रहस्यमयी हो उठी तो मेरा दिल डूबने को हो गया.

‘‘मौम, क्या यह गुलदस्ता पापा के लिए नहीं हो सकता है?’’ मेरी परेशानी से अनजान मनीषा ने मेरी खिंचाई के लिए रास्ता खोलने की कोशिश करी.

‘‘नहीं,’’ सीमा ने टका सा जवाब दे कर मेरी तरफ मेरी खिल्ली उड़ाने वाले भाव में देखा.

‘‘मेरे लिए क्यों नहीं हो सकता?’’ मैं फौरन चिढ़ उठा, ‘‘अभी भी मुझ पर औरतें लाइन मारती हैं.. मैं ने कई बार उन की आंखों में अपने लिए चाहत के भाव पढ़े हैं.’’

‘‘पापा की पर्सनैलिटी इतनी बुरी भी नहीं है…’’

‘‘ऐक्सक्यूज मी… पर्सनैलिटी बुरी नहीं है से तुम्हारा मतलब क्या है?’’ मैं ने अपनी बेटी को गुस्से से घूरा तो उस ने हंस कर जले पर नमक बुरकने जैसा काम किया.

‘‘बात पर्सनैलिटी की नहीं, बल्कि इन के कंजूस स्वभाव की है, गुडिया. जब ये किसी औरत पर पैसा खर्च करेंगे नहीं तो फिर वह औरत इन के साथ इश्क करेगी ही क्यों?’’

‘‘आप को किसी लेडी का भी नाम ध्यान नहीं आ रहा है, जिस ने पापा को यह गुलदस्ता भेजा हो?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘पापा, आप की मार्केट वैल्यू तो बहुत खराब है,’’ मेरी बेटी ने फौरन मुझ से सहानुभूति दर्शाई.

‘‘बिटिया, यह घर की मुरगी दाल बराबर समझने की भूल कर रही है,’’ मैं ने शान से कौलर ऊपर कर के छाती फुला ली तो सीमा अपनी हंसी नहीं रोक पाई थी.

‘‘अब तो बिलकुल समझ नहीं आ रहा कि इस गुलदस्ते को भेजा किस ने है और यह है किस के लिए?’’ मनीषा के इन सवालों को सुन कर उस की मां भी जबरदस्त उलझन का शिकार हो गई थी.

उन की खामोशी जब ज्यादा लंबी खिंच कर असहनीय हो गई तो मैं ने शाही मुसकान होंठों पर सजा कर पूछा, ‘‘सीमा, क्या यह प्रेम का इजहार करने वाला उपहार मैं ने तुम्हारे लिए नहीं खरीदा हो सकता है?’’

‘‘इंपौसिबल… आप की इन मामलों में कंजूसी तो विश्वविख्यात है,’’ सीमा ने मेरी भावनाओं को चोट पहुंचाने में 1 पल भी नहीं लगाया.

मेरे चेहरे पर उभरे पीड़ा के भावों को उन दोनों ने अभिनय समझ और अचानक ही दोनों खिलखिला कर हंसने लगीं.

‘‘मेरे हिस्से में ऐसा कहां कि ऐसा खूबसूरत तोहफा मुझे कभी आप से मिले,’’ हंसी का दौरा थम जाने के बाद सीमा ने बड़े नाटकीय अंदाज में उदास गहरी सांस छोड़ी.

‘‘मेरे खयाल से फूल वाला लड़का गलती से यह गुलदस्ता हमारे घर दे गया है और जल्द ही इसे वापस लेने आता होगा,’’ मनीषा ने एक नया तुर्रा छोड़ा.

‘‘इस कागज को देखो. इस पर हमारे घर का पता लिखा है और इस लिखावट को तुम दोनों पहचान सकतीं,’’ मैं ने एक परची जेब से निकाल कर मनीषा को पकड़ा दी.

‘‘यह तो आप ही की लिखावट है,’’ मनीषा हैरान हो उठी.

‘‘आप इस कागज को हमें क्यों दिखा रहे हो?’’ सीमा ने माथे में बल डाल कर पूछा.

‘‘इसी परची को ले कर गुलदस्ता देने वाला लड़का हमारे घर तक पहुंचा था. लगता है कि तुम दोनों इस बात को भूल चुके हो कि मेरे अंदर भी प्यार करने वाला दिल धड़कता है… मैं जो हमेशा रुपएपैसों का हिसाबकिताब रखने में व्यस्त रहता हूं, मुझे पैसा कम कमाई और ज्यादा खर्च की मजबूरी ने बना दिया है,’’ अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के बाद मैं थकाहारा सा उठ कर शयनकक्ष की तरफ चलने लगा तो वे दोनों फौरन उठ कर मुझ से लिपट गईं.

‘‘आई एम सौरी, पापा. आप तो दुनिया के सब से अच्छे पापा हो,’’ कहते हुए मनीषा की आंखें भर आईं.

‘‘मुझे भी माफ कर दो, स्वीटहार्ट,’’ सीमा की आंखों में भी आंसू छलक आए.

मैं ने उन के सिरों पर प्यार से हाथ रख और भावुक हो कर बोला, ‘‘तुम दोनों के लिए माफी मांगना बिलकुल जरूरी नहीं है. आज वैलेंटाइनडे के दिन की यह घटना हम सब के लिए महत्त्वपूर्ण सबक बननी चाहिए. भविष्य में मैं प्यार का इजहार ज्यादा और जल्दीजल्दी किया करूंगा. मैं नहीं बदला तो मुझे डर है कि किसी वैलेंटाइनडे पर किसी और का भेजा गुलदस्ता मेरी रानी के लिए न आ जाए.’’

‘‘धत्, इस दिल में आप के अलावा किसी और की मूर्ति कभी नहीं सज सकती है, सीमा ने मेरी आंखों में प्यार से झांका और फिर शरमा कर मेरे सीने से लग गई.’’

‘‘मुझे भी दिल में 1 ही मूर्ति से संतोष करने की कला सिखाना, मौम,’’ शरारती मनीषा की इस इच्छा पर हम एकदूसरे के बहुत करीब महसूस करते हुए ठहाका मार कर हंस पडे़.  Romantic Story In Hindi 

Family Story In Hindi : वो कमजोर पल – क्या सीमा ने राज से दूसरी शादी की ?

Family Story In Hindi : वही हुआ जिस का सीमा को डर था. उस के पति को पता चल ही गया कि उस का किसी और के साथ अफेयर चल रहा है. अब क्या होगा? वह सोच रही थी, क्या कहेगा पति? क्यों किया तुम ने मेरे साथ इतना बड़ा धोखा? क्या कमी थी मेरे प्यार में? क्या नहीं दिया मैं ने तुम्हें? घरपरिवार, सुखी संसार, पैसा, इज्जत, प्यार किस चीज की कमी रह गई थी जो तुम्हें बदचलन होना पड़ा? क्या कारण था कि तुम्हें चरित्रहीन होना पड़ा? मैं ने तुम से प्यार किया. शादी की. हमारे प्यार की निशानी हमारा एक प्यारा बेटा. अब क्या था बाकी? सिवा तुम्हारी शारीरिक भूख के. तुम पत्नी नहीं वेश्या हो, वेश्या.

हां, मैं ने धोखा दिया है अपने पति को, अपने शादीशुदा जीवन के साथ छल किया है मैं ने. मैं एक गिरी हुई औरत हूं. मुझे कोई अधिकार नहीं किसी के नाम का सिंदूर भर कर किसी और के साथ बिस्तर सजाने का. यह बेईमानी है, धोखा है. लेकिन जिस्म के इस इंद्रजाल में फंस ही गई आखिर.

मैं खुश थी अपनी दुनिया में, अपने पति, अपने घर व अपने बच्चे के साथ. फिर क्यों, कब, कैसे राज मेरे अस्तित्व पर छाता गया और मैं उस के प्रेमजाल में उलझती चली गई. हां, मैं एक साधारण नारी, मुझ पर भी किसी का जादू चल सकता है. मैं भी किसी के मोहपाश में बंध सकती हूं, ठीक वैसे ही जैसे कोई बच्चा नया खिलौना देख कर अपने पास के खिलौने को फेंक कर नए खिलौने की तरफ हाथ बढ़ाने लगता है.

नहीं…मैं कोई बच्ची नहीं. पति कोई खिलौना नहीं. घरपरिवार, शादीशुदा जीवन कोई मजाक नहीं कि कल दूसरा मिला तो पहला छोड़ दिया. यदि अहल्या को अपने भ्रष्ट होने पर पत्थर की शिला बनना पड़ा तो मैं क्या चीज हूं. मैं भी एक औरत हूं, मेरे भी कुछ अरमान हैं. इच्छाएं हैं. यदि कोई अच्छा लगने लगे तो इस में मैं क्या कर सकती हूं. मैं मजबूर थी अपने दिल के चलते. राज चमकते सूरज की तरह आया और मुझ पर छा गया.

उन दिनों मेरे पति अकाउंट की ट्रेनिंग पर 9 माह के लिए राजधानी गए हुए थे. फोन पर अकसर बातें होती रहती थीं. बीच में आना संभव नहीं था. हर रात पति के आलिंगन की आदी मैं अपने को रोकती, संभालती रही. अपने को जीवन के अन्य कामों में व्यस्त रखते हुए समझाती रही कि यह तन, यह मन पति के लिए है. किसी की छाया पड़ना, किसी के बारे में सोचना भी गुनाह है. लेकिन यह गुनाह कर गई मैं.

मैं अपनी सहेली रीता के घर बैठने जाती. पति घर पर थे नहीं. बेटा नानानानी के घर गया हुआ था गरमियों की छुट्टी में. रीता के घर कभी पार्टी होती, कभी शेरोशायरी, कभी गीतसंगीत की महफिल सजती, कभी पत्ते खेलते. ऐसी ही पार्टी में एक दिन राज आया. और्केस्ट्रा में गाता था. रीता का चचेरा भाई था. रात का खाना वह अपनी चचेरी बहन के यहां खाता और दिनभर स्ट्रगल करता. एक दिन रीता के कहने पर उस ने कुछ प्रेमभरे, कुछ दर्दभरे गीत सुनाए. खूबसूरत बांका जवान, गोरा रंग, 6 फुट के लगभग हाइट. उस की आंखें जबजब मुझ से टकरातीं, मेरे दिल में तूफान सा उठने लगता.

राज अकसर मुझ से हंसीमजाक करता. मुझे छेड़ता और यही हंसीमजाक, छेड़छाड़ एक दिन मुझे राज के बहुत करीब ले आई. मैं रीता के घर पहुंची. रीता कहीं गई हुई थी काम से. राज मिला. ढेर सारी बातें हुईं और बातों ही बातों में राज ने कह दिया, ‘मैं तुम से प्यार करता हूं.’

मुझे उसे डांटना चाहिए था, मना करना चाहिए था. लेकिन नहीं, मैं भी जैसे बिछने के लिए तैयार बैठी थी. मैं ने कहा, ‘राज, मैं शादीशुदा हूं.’

राज ने तुरंत कहा, ‘क्या शादीशुदा औरत किसी से प्यार नहीं कर सकती? ऐसा कहीं लिखा है? क्या तुम मुझ से प्यार करती हो?’

मैं ने कहा, ‘हां.’ और उस ने मुझे अपनी बांहों में समेट लिया. फिर मैं भूल गई कि मैं एक बच्चे की मां हूं. मैं किसी की ब्याहता हूं. जिस के साथ जीनेमरने की मैं ने अग्नि के समक्ष सौगंध खाई थी. लेकिन यह दिल का बहकना, राज की बांहों में खो जाना, इस ने मुझे सबकुछ भुला कर रख दिया.

मैं और राज अकसर मिलते. प्यारभरी बातें करते. राज ने एक कमरा किराए पर लिया हुआ था. जब रीता ने पूछताछ करनी शुरू की तो मैं राज के साथ बाहर मिलने लगी. कभी उस के घर पर, कभी किसी होटल में तो कभी कहीं हिल स्टेशन पर. और सच कहूं तो मैं उसे अपने घर पर भी ले कर आई थी. यह गुनाह इतना खूबसूरत लग रहा था कि मैं भूल गई कि जिस बिस्तर पर मेरे पति आनंद का हक था, उसी बिस्तर पर मैं ने बेशर्मी के साथ राज के साथ कई रातें गुजारीं. राज की बांहों की कशिश ही ऐसी थी कि आनंद के साथ बंधे विवाह के पवित्र बंधन मुझे बेडि़यों की तरह लगने लगे.

मैं ने एक दिन राज से कहा भी कि क्या वह मुझ से शादी करेगा? उस ने हंस कर कहा, ‘मतलब यह कि तुम मेरे लिए अपने पति को छोड़ सकती हो. इस का मतलब यह भी हुआ कि कल किसी और के लिए मुझे भी.’

मुझे अपने बेवफा होने का एहसास राज ने हंसीहंसी में करा दिया था. एक रात राज के आगोश में मैं ने शादी का जिक्र फिर छेड़ा. उस ने मुझे चूमते हुए कहा, ‘शादी तो तुम्हारी हो चुकी है. दोबारा शादी क्यों? बिना किसी बंधन में बंधे सिर्फ प्यार नहीं कर सकतीं.’

‘मैं एक स्त्री हूं. प्यार के साथ सुरक्षा भी चाहिए और शादी किसी भी स्त्री के लिए सब से सुरक्षित संस्था है.’

राज ने हंसते हुए कहा, ‘क्या तुम अपने पति का सामना कर सकोगी? उस से तलाक मांग सकोगी? कहीं ऐसा तो नहीं कि उस के वापस आते ही प्यार टूट जाए और शादी जीत जाए?’

मुझ पर तो राज का नशा हावी था. मैं ने कहा, ‘तुम हां तो कहो. मैं सबकुछ छोड़ने को तैयार हूं.’

‘अपना बच्चा भी,’ राज ने मुझे घूरते हुए कहा. उफ यह तो मैं ने सोचा ही नहीं था.

‘राज, क्या ऐसा नहीं हो सकता कि हम बच्चे को अपने साथ रख लें?’

राज ने हंसते हुए कहा, ‘क्या तुम्हारा बेटा, मुझे अपना पिता मानेगा? कभी नहीं. क्या मैं उसे उस के बाप जैसा प्यार दे सकूंगा? कभी नहीं. क्या तलाक लेने के बाद अदालत बच्चा तुम्हें सौंपेगी? कभी नहीं. क्या वह बच्चा मुझे हर घड़ी इस बात का एहसास नहीं दिलाएगा कि तुम पहले किसी और के साथ…किसी और की निशानी…क्या उस बच्चे में तुम्हें अपने पति की यादें…देखो सीमा, मैं तुम से प्यार करता हूं. लेकिन शादी करना तुम्हारे लिए तब तक संभव नहीं जब तक तुम अपना अतीत पूरी तरह नहीं भूल जातीं.

‘अपने मातापिता, भाईबहन, सासससुर, देवरननद अपनी शादी, अपनी सुहागरात, अपने पति के साथ बिताए पलपल. यहां तक कि अपना बच्चा भी क्योंकि यह बच्चा सिर्फ तुम्हारा नहीं है. इतना सब भूलना तुम्हारे लिए संभव नहीं है.

‘कल जब तुम्हें मुझ में कोई कमी दिखेगी तो तुम अपने पति के साथ मेरी तुलना करने लगोगी, इसलिए शादी करना संभव नहीं है. प्यार एक अलग बात है. किसी पल में कमजोर हो कर किसी और में खो जाना, उसे अपना सबकुछ मान लेना और बात है लेकिन शादी बहुत बड़ा फैसला है. तुम्हारे प्यार में मैं भी भूल गया कि तुम किसी की पत्नी हो. किसी की मां हो. किसी के साथ कई रातें पत्नी बन कर गुजारी हैं तुम ने. यह मेरा प्यार था जो मैं ने इन बातों की परवा नहीं की. यह भी मेरा प्यार है कि तुम सब छोड़ने को राजी हो जाओ तो मैं तुम से शादी करने को तैयार हूं. लेकिन क्या तुम सबकुछ छोड़ने को, भूलने को राजी हो? कर पाओगी इतना सबकुछ?’ राज कहता रहा और मैं अवाक खड़ी सुनती रही.

‘यह भी ध्यान रखना कि मुझ से शादी के बाद जब तुम कभी अपने पति के बारे में सोचोगी तो वह मुझ से बेवफाई होगी. क्या तुम तैयार हो?’

‘तुम ने मुझे पहले क्यों नहीं समझाया ये सब?’

‘मैं शादीशुदा नहीं हूं, कुंआरा हूं. तुम्हें देख कर दिल मचला. फिसला और सीधा तुम्हारी बांहों में पनाह मिल गई. मैं अब भी तैयार हूं. तुम शादीशुदा हो, तुम्हें सोचना है. तुम सोचो. मेरा प्यार सच्चा है. मुझे नहीं सोचना क्योंकि मैं अकेला हूं. मैं तुम्हारे साथ सारा जीवन गुजारने को तैयार हूं लेकिन वफा के वादे के साथ.’

मैं रो पड़ी. मैं ने राज से कहा, ‘तुम ने पहले ये सब क्यों नहीं कहा.’

‘तुम ने पूछा नहीं.’

‘लेकिन जो जिस्मानी संबंध बने थे?’

‘वह एक कमजोर पल था. वह वह समय था जब तुम कमजोर पड़ गई थीं. मैं कमजोर पड़ गया था. वह पल अब गुजर चुका है. उस कमजोर पल में हम प्यार कर बैठे. इस में न तुम्हारी खता है न मेरी. दिल पर किस का जोर चला है. लेकिन अब बात शादी की है.’

राज की बातों में सचाई थी. वह मुझ से प्यार करता था या मेरे जिस्म से बंध चुका था. जो भी हो, वह कुंआरा था. तनहा था. उसे हमसफर के रूप में कोई और न मिला, मैं मिल गई. मुझे भी उन कमजोर पलों को भूलना चाहिए था जिन में मैं ने अपने विवाह को अपवित्र कर दिया. मैं परपुरुष के साथ सैक्स करने के सुख में, देह की तृप्ति में ऐसी उलझी कि सबकुछ भूल गई. अब एक और सब से बड़ा कदम या सब से बड़ी बेवकूफी कि मैं अपने पति से तलाक ले कर राज से शादी कर लूं. क्या करूं मैं, मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा था.  मैं ने राज से पूछा, ‘मेरी जगह तुम होते तो क्या करते?’

राज हंस कर बोला, ‘ये तो दिल की बातें हैं. तुम्हारी तुम जानो. यदि तुम्हारी जगह मैं होता तो शायद मैं तुम्हारे प्यार में ही न पड़ता या अपने कमजोर पड़ने वाले क्षणों के लिए अपनेआप से माफी मांगता. पता नहीं, मैं क्या करता?’

राज ये सब कहीं इसलिए तो नहीं कह रहा कि मैं अपनी गलती मान कर वापस चली जाऊं, सब भूल कर. फिर जो इतना समय इतनी रातें राज की बांहों में बिताईं. वह क्या था? प्यार नहीं मात्र वासना थी? दलदल था शरीर की भूख का? कहीं ऐसा तो नहीं कि राज का दिल भर गया हो मुझ से, अपनी हवस की प्यास बुझा ली और अब विवाह की रीतिनीति समझा रहा हो? यदि ऐसी बात थी तो जब मैं ने कहा था कि मैं ब्याहता हूं तो फिर क्यों कहा था कि किस किताब में लिखा है कि शादीशुदा प्यार नहीं कर सकते?

राज ने आगे कहा, ‘किसी स्त्री के आगोश में किसी कुंआरे पुरुष का पहला संपर्क उस के जीवन का सब से बड़ा रोमांच होता है. मैं न होता कोई और होता तब भी यही होता. हां, यदि लड़की कुंआरी होती, अकेली होती तो इतनी बातें ही न होतीं. तुम उन क्षणों में कमजोर पड़ीं या बहकीं, यह तो मैं नहीं जानता लेकिन जब तुम्हारे साथ का साया पड़ा मन पर, तो प्यार हो गया और जिसे प्यार कहते हैं उसे गलत रास्ता नहीं दिखा सकते.’

मैं रोने लगी, ‘मैं ने तो अपने हाथों अपना सबकुछ बरबाद कर लिया. तुम्हें सौंप दिया. अब तुम मुझे दिल की दुनिया से दूर हकीकत पर ला कर छोड़ रहे हो.’

‘तुम चाहो तो अब भी मैं शादी करने को तैयार हूं. क्या तुम मेरे साथ मेरी वफादार बन कर रह सकती हो, सबकुछ छोड़ कर, सबकुछ भूल कर?’ राज ने फिर दोहराया.

इधर, आनंद, मेरे पति वापस आ गए. मैं अजीब से चक्रव्यूह में फंसी हुई थी. मैं क्या करूं? क्या न करूं? आनंद के आते ही घर के काम की जिम्मेदारी. एक पत्नी बन कर रहना. मेरा बेटा भी वापस आ चुका था. मुझे मां और पत्नी दोनों का फर्ज निभाना था. मैं निभा भी रही थी. और ये निभाना किसी पर कोई एहसान नहीं था. ये तो वे काम थे जो सहज ही हो जाते थे. लेकिन आनंद के दफ्तर और बेटे के स्कूल जाते ही राज आ जाता या मैं उस से मिलने चल पड़ती, दिल के हाथों मजबूर हो कर.

मैं ने राज से कहा, ‘‘मैं तुम्हें भूल नहीं पा रही हूं.’’

‘‘तो छोड़ दो सबकुछ.’’

‘‘मैं ऐसा भी नहीं कर सकती.’’

‘‘यह तो दोतरफा बेवफाई होगी और तुम्हारी इस बेवफाई से होगा यह कि मेरा प्रेम किसी अपराधकथा की पत्रिका में अवैध संबंध की कहानी के रूप में छप जाएगा. तुम्हारा पति तुम्हारी या मेरी हत्या कर के जेल चला जाएगा. हमारा प्रेम पुलिस केस बन जाएगा,’’ राज ने गंभीर होते हुए कहा.

मैं भी डर गई और बात सच भी कही थी राज ने. फिर वह मुझ से क्यों मिलता है? यदि मैं पूछूंगी तो हंस कर कहेगा कि तुम आती हो, मैं इनकार कैसे कर दूं. मैं भंवर में फंस चुकी थी. एक तरफ मेरा हंसताखेलता परिवार, मेरी सुखी विवाहित जिंदगी, मेरा पति, मेरा बेटा और दूसरी तरफ उन कमजोर पलों का साथी राज जो आज भी मेरी कमजोरी है.

इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते. पति को भनक लगी. उन्होंने दोटूक कहा, ‘‘रहना है तो तरीके से रहो वरना तलाक लो और जहां मुंह काला करना हो करो. दो में से कोई एक चुन लो, प्रेमी या पति. दो नावों की सवारी तुम्हें डुबो देगी और हमें भी.’’

मैं शर्मिंदा थी. मैं गुनाहगार थी. मैं चुप रही. मैं सुनती रही. रोती रही.

मैं फिर राज के पास पहुंची. वह कलाकार था. गायक था. उसे मैं ने बताया कि मेरे पति ने मुझ से क्याक्या कहा है और अपने शर्मसार होने के विषय में भी. उस ने कहा, ‘‘यदि तुम्हें शर्मिंदगी है तो तुम अब तक गुनाह कर रही थीं. तुम्हारा पति सज्जन है. यदि हिंसक होता तो तुम नहीं आतीं, तुम्हारे मरने की खबर आती. अब मेरा निर्णय सुनो. मैं तुम से शादी नहीं कर सकता. मैं एक ऐसी औरत से शादी करने की सोच भी नहीं सकता जो दोहरा जीवन जीए. तुम मेरे लायक नहीं हो. आज के बाद मुझ से मिलने की कोशिश मत करना. वे कमजोर पल मेरी पूरी जिंदगी को कमजोर बना कर गिरा देंगे. आज के बाद आईं तो बेवफा कहलाओगी दोनों तरफ से. उन कमजोर पलों को भूलने में ही भलाई है.’’

मैं चली आई. उस के बाद कभी नहीं मिली राज से. रीता ने ही एक बार बताया कि वह शहर छोड़ कर चला गया है. हां, अपनी बेवफाई, चरित्रहीनता पर अकसर मैं शर्मिंदगी महसूस करती रहती हूं. खासकर तब जब कोई वफा का किस्सा निकले और मैं उस किस्से पर गर्व करने लगूं तो पति की नजरों में कुछ हिकारत सी दिखने लगती है. मानो कह रहे हों, तुम और वफा. पति सभ्य थे, सुशिक्षित थे और परिवार के प्रति समर्पित.

कभी कुलटा, चरित्रहीन, वेश्या नहीं कहा. लेकिन अब शायद उन की नजरों में मेरे लिए वह सम्मान, प्यार न रहा हो. लेकिन उन्होंने कभी एहसास नहीं दिलाया. न ही कभी अपनी जिम्मेदारियों से मुंह छिपाया.

मैं सचमुच आज भी जब उन कमजोर पलों को सोचती हूं तो अपनेआप को कोसती हूं. काश, उस क्षण, जब मैं कमजोर पड़ गई थी, कमजोर न पड़ती तो आज पूरे गर्व से तन कर जीती. लेकिन क्या करूं, हर गुनाह सजा ले कर आता है. मैं यह सजा आत्मग्लानि के रूप में भोग रही थी. राज जैसे पुरुष बहका देते हैं लेकिन बरबाद होने से बचा भी लेते हैं.

स्त्री के लिए सब से महत्त्वपूर्ण होती है घर की दहलीज, अपनी शादी, अपना पति, अपना परिवार, अपने बच्चे. शादीशुदा औरत की जिंदगी में ऐसे मोड़ आते हैं कभीकभी. उन में फंस कर सबकुछ बरबाद करने से अच्छा है कि कमजोर न पड़े और जो भी सुख तलाशना हो, अपने घरपरिवार, पति, बच्चों में ही तलाशे. यही हकीकत है, यही रिवाज, यही उचित भी है.  Family Story In Hindi

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