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लोकतांत्रिक हक

रूस यूक्रेन युद्ध एक छोटे देश के अस्तित्व की लड़ाई का ही मामला नहीं है, इस का व्यापक असर हर समाज पर पड़ेगा जैसा द्वितीय विश्व युद्ध का पड़ा था. यह लड़ाई एक छोटे देश के एक विशाल देश की फौज के सामने खड़े होने की हिम्मत की है. इसका संदेश है कि हर देश का नागरिक अगर अपनी सही बात को मनवाना चाहता है या अपने हकों की रक्षा करना चाहता है तो उसे तन कर सब कुछ जोखिम में डाल कर अड़ जाना चाहिए.

यूक्रेन यदि 20 मार्च को सरेंडर कर देता और कहना कि यह तो उस का भाग्य है तो रूस अब तक सरकार बदल चुका होता और उस के टैंक पाटकिया, लिथूनिया, कजागिस्तान, किॢगस्तान की ओर बढ़ रहे होते. यूक्रेन की जनता के घर बचे होते, 30-35 लाख लोग देश छोड़ कर पनाह नहीं ले रहे होते पर एक यूक्रेन विशाल जेल में बदल चुका होता जिस के सारे 4 करोड़ निवासी 9 लाख की रूसी सेना के गुलाम होते.

हमारे अपने देश में क्या होता रहा है. हर संघर्ष में हर हक के लिए हमें यही पाठ पढ़ाया गया है कि आप को वही मिलेगा जो आप के भाग्य में है. गीता बारबार यही कहती है कि हर पल आप का पूर्व निर्धारित है. आप जो चाहे कर लें आप का वर्तमान तो आप के पिछले जन्म के कर्मों से क्या है, हमारी आज की सरकार हर मौके पर कांग्रेस को कोसती है कि उस के कर्मों के फल भारतीय जनता पार्टी की सरकार को भोगने पड़ रहे हैं. व्लादिमीर जेलेंस्की ने न इतिहास का नाम लिया न ईश्वर का. उस ने सिर्फ कहा कि हमें अपनी स्वतंत्रता की रक्षा करनी है, जान पर खेल कर. कहीं कम साधन होने पर भी वह रूस से भिड़ गया. पूरा देश उस के पीछे हो गया. दिनों में पूरा यूरोप और अमेरिका उस के समर्थन में खड़ा हो गया.

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यूक्रेन को तुरंत सैनिक शस्त्र मिलने लगे. खाना दवाइयां मिलने लगीं. रूस पर आॢथक प्रतिबंध लग गए. लोकतंत्र की रक्षा यानी हर नागरिक के हकों की रक्षा तभी हो सकती है जब अपने हकों के लिए खड़ा होने का जोखिम लिया जाए और यह पाठ जेलेंस्की ने पढ़ा दिया.

रूस यूक्रेन युद्ध ने यह भी जता दिया है कि रूसी भी पश्चिमी देश जो उत्पादन करते हैं, नारेबाजी नहीं, जो व्यक्ति के हकों का सम्मान करते हैं, तानाशाही का नहीं, जो अपने यहां विविधता अपनाते हुए और्थोडोक्स क्रिश्चियन होते हुए भी एक ज्यू को राष्ट्रपति बनाने की हिम्मत रखते हैं, वे हकों का लाभ जानते हैं, जो समाज अपने चर्च के लिए नहीं अपने लोकतांत्रित हकों के लिए जान जोखिम में डालते हैं, उन्हें किसी से भी डरने की जरूरत नहीं.

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यूक्रेन में चर्चों में घंटे नहीं बजे, पादरियों के प्रवचन नहीं हुए, चर्च को दान देना शुरू नहीं हुआ, सब ने मिल कर विशाल रूस से 2 हाथ करने का फैसला किया और हर सडक़ को रोका गया, हरहाल में बमों की बचने की फैक्ट्री बना डाला गया. हर टैंक की मोलोटोव कोकटेक या शराब की जलती बोतल का सामना करना पड़ा. शहर तहसनहस हो गए है पर दमखम पचासों मंजिल और ऊंचा हो गया है.

यूक्रेन जीने या हारे, रूस को एक सबक मिल गया है. रूसियों को यूक्रेन पर आक्रमण पर उसी तरह बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी जैसे अफगानिस्तान की जनता को कट्टरपंथी इस्लामी तालिबानी शासकों के घर में और सिर पर बैठाने की पड़ रही है. रूसी अपने धाॢमक राजनीतिक तानाशाह के मनमाने फैसले का फल भोगेंगे, अफगान (और उस जैसे और जैसे बहुत दूसरे देश के निवासी) अपने धाॢमक तानाशाहों के फल भोग रहे हैं. फल पिछले जन्म के कर्मों से नहीं इसी जन्म के कर्मों के फल से मिलता है. यूक्रेन का यह पाठ समझ लें.

माफी- भाग 3: क्या सुमन भाभी के मुस्कुराहट के पीछे जहर छिपा था?

राकेश और सुमन का गुरुवार की सुबह सहारनपुर लौटने का कार्यक्रम बना. राकेश के अंदर कोई गंभीर बीमारी नहीं पनप रही है, इस बात की खुशी सुमन भाभी को बहुत थी. इसी कारण उन्होंने सब को बाहर खाना खिलाने की दावत दे डाली. जिस होटल में जाने का कार्यक्रम बना वह बहुत महंगा होटल था.

‘‘भाभी, इतना खर्चा करने की क्या जरूरत है? आसपास के होटलों में भी अच्छा खाना कम खर्चे में उपलब्ध हो जाएगा,’’ अंजलि बोली. वह उस की खुशी में शामिल होने से बचना चाहती थी.

‘‘अंजलि, पैसा खर्च कर के अगर इंसान अपनों के साथ कुछ घडि़यां हंसतेमुसकराते गुजारने में सफल हो जाता है तो यह महंगा सौदा नहीं कहलाता. तुम्हारे परिवार से ज्यादा हमारे करीब और कौन हो सकता है? आज मेरी खुशियों में अगर तुम भी दिल से शामिल हो जाओगी तो मैं तुम्हारी बहुत आभारी रहूंगी,’’ कहते हुए सुमन की आंखों में आंसू छलक आए.

‘‘मैं ने एक बात कही थी, साथ चलने से इनकार नहीं किया है,’’ कह कर अंजलि तैयार होने के लिए अपने शयनकक्ष में चली गई.

सुमन की आंखों में आंसू देख कर अंजलि उलझन का शिकार हो गई थी. उन आंसुओं में बनावटीपन या नाटक की झलक अंजलि को नजर नहीं आई थी.

सुमन भाभी के दिल में ऐसा क्या छिपा है जो उन की आंखों में आंसू ले आया? इस राज को हल कर पाने में अंजलि बहुत सोचविचार करने के बाद भी असफल रही.

सुमन की आंखों में आए आंसू देख कर अंजलि को अपने अंदर कुछ परिवर्तन आया जरूर महसूस हुआ. सुमन की जो खराब छवि आज तक उस के दिलोदिमाग में बसी थी उस में कुछ सुधार लाने में वे आंसू सफल रहे थे. उन आंसुओं के कारण वह अंजलि को ज्यादा मानवीय, कोमल व अपने दिल के करीब प्रतीत हुई थी.

वर्षों बाद उस रात सुमन की उपस्थिति में अंजलि कुछ सहज हो कर उन से हंसबोल पाई. मन के कुछ विश्रामपूर्ण अवस्था में होने के कारण ही वह होटल में जा कर खाना खाने के कार्यक्रम का पूरा लुत्फ उठा पाई थी.

अगले दिन सुबह विदा लेने से पहले सुमन ने शिखा व सोनू को खूब प्यार कर के 100-100 रुपए दिए और बोलीं, ‘‘तुम अब परीक्षाओं के बाद सहारनपुर रहने के लिए आना. वहां खूब मजे करेंगे छुट्टियों में,’’ अंजलि को गले लगा कर सुमन ने यह निमंत्रण 2-3 बार दोहराया.

तिपहिया स्कूटर में बैठ कर बसअड्डे जाने से पहले सुमन भाभी ने अंजलि के कान में भावुक स्वर में कहा, ‘‘इस बार मैं तुम से बहुतकुछ कहने की सोच कर आई थी, लेकिन कुछ भी कहने का साहस नहीं जुटा पाई. अपने दिल की बात एक पत्र में लिख कर तुम्हारी ड्रैसिंग टेबल की दराज में रख आई हूं. उसे पढ़ कर अगर तुम मुझ मूर्ख को माफ कर दोगी तो मुझे बहुत शांति मिलेगी.’’

सुमन की आंखों से बहने वाले आंसू इस बार अंजलि के दिल को बहुत गहराई तक उद्वेलित कर गए. उसे सुमन की बात तो ज्यादा समझ नहीं आई, पर उन के कहे की प्रतिक्रियास्वरूप अंजलि को अपनी भी पलकें गीली होती महसूस हुई थीं.

बाद में अपनी ड्रैसिंग टेबल की दराज में से अंजलि को 5 सौ रुपए के 10 नोट और सुमन का लिखा पत्र मिला. पत्र में लिखा था :

प्रिय अंजलि,

8 वर्ष पहले अपनी ईर्ष्या के हाथों मजबूर हो मैं ने झूठ बोल कर जो गुनाह किया था उस की पीड़ा पिछले कुछ महीनों से मैं बहुत ज्यादा महसूस कर रही हूं.

तुम्हें याद होगा, तुम्हारी शादी के कुछ दिनों बाद ही मोनू बीमार पड़ गया था, तब उसे अस्पताल में भरती कराना पड़ा था. उस समय तुम दोनों ने हमारा बहुत मजबूत सहारा बन कर खूब भागदौड़ की थी.

इस बार जब तुम्हारे जेठजी नर्सिंगहोम में भरती हुए तो पासपड़ोस के लोग मुंहजबानी हालचाल पूछ कर अलग हो गए. ज्यादा उम्र के हो जाने के कारण सास और ससुरजी ज्यादा भागदौड़ करने की स्थिति में नहीं थे. मुझ अकेली पर इतना ज्यादा बोझ पड़ा कि मैं अकसर रोने लगती थी.

इस घटना ने मेरी आंखें खोल दीं. अगर मैं ने तुम से संबंध खराब न किए होते तो तुम्हें व अरुण भैया को बुलाने में मैं जरा भी न हिचकिचाती. मुझे तुम दोनों की अनुपस्थिति बहुत खली थी और मैं ने खुद को अपनी चेन चोरी के आरोप वाली भयंकर भूल के लिए रातदिन कोसा था.

मेरी समझ में आ गया है कि अपनों से दूर हो कर आजकल के स्वार्थी संसार में इंसान दुख, असुरक्षा व अकेलेपन के सिवा कुछ नहीं पा सकता. अपने साथ नए सिरे से मधुर संबंध बनाने का मौका तुम मुझे दोगी तो ही मैं अपने दिल में बसे गहरे अपराधबोध से उबरने में सफल हो पाऊंगी.

तुम्हारे पिता से मिले 5 हजार रुपए मैं लौटा रही हूं, लेकिन इतनाभर कर देने से मेरा प्रायश्चित्त पूरा नहीं होगा. जिस दिन तुम्हारी आंखों में मैं अपने लिए नफरत के बजाय प्रेम व अपनत्व के भाव देखूंगी उसी दिन मैं समझूंगी कि तुम ने मुझे माफ कर दिया है. तुम्हें सामने देख कर पिछले 5 दिनों में कई बार मेरा मन हुआ कि तुम्हारे पैरों पर गिर कर माफी मांग लूं, लेकिन हर बार तुम्हारी गहरी नाराजगी देख कर मेरा साहस जवाब दे जाता.

मैं तुम से रिश्ते में बड़ी जरूर हूं पर समझदारी व मानसिक परिपक्वता में तुम से मीलों पीछे हूं. अगली बार जब तुम मुझे देखो तो मेरे गले से लग जाना, नहीं तो मैं खुद को कभी माफ न कर सदा पश्चात्ताप की अग्नि में जलती रहूंगी.

सुमन.

पत्र पढ़ने के बाद अंजलि एकदम उदास हो गई. पिछले दिनों जो गलती उस से हो गई थी उस के एहसास ने उसे दुखी कर दिया था.एक तरफ सुमन भाभी को अपने किए पर गहरा अफसोस महसूस हो रहा था, जो अंजलि के यहां उस से माफी मांगने के इरादे से आई थीं. उन के हंसनेबोलने व सेवा करने के पीछे आपसी संबंध सुधारने की चाह थी. अपना अहंकार ताक पर रख वे अपनी देवरानी के सामने झुकने को तैयार थीं.

एक तरफ वे अपनी गलती के लिए माफी मांगने का साहसिक फैसला कर के आई थीं तो दूसरी तरफ अंजलि उस में आए सुखद परिवर्तन को नोट करने में असफल रही थी. वह अतीत में इस कदर उलझी रही कि ताजा वर्तमान उस की पकड़ में नहीं आया. सुमन उस के गलत रवैए से हतोत्साहित हो कर अगर अपने कदम खींच लेतीं तो उन से आपसी संबंधों के फिर से फलनेफूलने का मौका शायद सदा के लिए हाथ से निकल जाता.

अंजलि को साफ महसूस हुआ कि उस ने सुमन भाभी के सामने कोई समझदारीभरा व्यवहार नहीं किया था. सचाई तो यह भी कि उस का पत्र पढ़ने के बाद अंजलि खुद को बेहद शर्मिंदा महसूस कर रही थी.

अपने अहंकार की बेहोशी में मैं सुमन भाभी के मनोभावों को अनदेखा कर के कितनी बड़ी भूल करने जा रही थी. इस भूलसुधार के लिए मैं आपसी संबंधों को फिर से मधुर बनाने में भाभी को पूरा योगदान दूंगी. आज ही उन्हें चिट्ठी लिख कर उन से फिर अपने गलत व्यवहार के लिए क्षमाप्रार्थना करूंगी. ऐसा निश्चय करने के बाद ही अंजलि गहरी राहत महसूस करते हुए मुसकरा उठी.

Summer Special: क्या आपकी स्किन भी होती है ड्राई?

बिजी लाइफ स्टाइल और औफिस के कारण हम अपनी स्किन का ख्याल नही रखते. और न ही हम धूप में निकलना बंद कर सकते हैं. इसीलिए हमारी स्किन बेजान और ड्राई पड़ जाती है. साथ ही स्किन कभी-कभी डैमेज हो जाती है. इसीलिए जरूरी है कि बिजी लाइफ स्टाइल के बीच भी आप अपनी स्किन का ख्याल रखें, जिसके लिए आज हम आपको कुछ टिप्स में भी सौफ्ट और डैमेज स्किन की केयर कर पाएंगे.

1. नहाने के टाइम इन बातों का रखें ध्यान

स्किन ड्राई होने से बचाने के लिए ज्यादा गरम पानी का इस्तेमाल करने से बचें. नमीयुक्त साबुन या बौडी वाश का ही इस्तेमाल करें. नहाने का टाइम भी कम रखें और नहाने के बाद बौडी को सौफ्ट बनाए रखने के लिए मौइश्चराइजर का इस्तेमाल करें.

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2. स्किन को रखें मौइश्चराइज

स्किन की सुरक्षा के लिए मौइश्चराइज क्रीम का इस्तेमाल करें. शरीर में लगाने के लिए ऐंटीइची, औयली स्किन, ड्राई स्किन सहित और कई तरह की मौइश्चराइजर क्रीमें मार्केट में मौजूद हैं. उनमें से आप अपनी स्किन के अनुरूप कोई भी क्रीम चुन सकती हैं.

3. गरमी में खानपान का रखें ख्याल

स्किन की ड्राईनेस को दूर करने के लिए पौष्टिक खानपान, मछली और अलसी के तेल, ओमेगा-3 और ओमेगा-6 जैसे फैटी एसिड के सेवन से दूर रहने की कोशिश करें. सोरायसिस और एक्जिमा जैसे स्किन के संक्रामक रोगों से मुकाबले के लिए शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को दुरुस्त रखना जरूरी है. अपने खाने में अंगूर, गाजर, पालक, बादाम, अंडे, मछली आदि शामिल करें, क्योंकि ये सब विटामिन और ओमेगा-3 फैट के अच्छे स्रोत होते हैं.

4. स्किनबूस्टर्स का करें इस्तेमाल

औफिस जाने वाले लोग अपनी स्किन में भरपूर नमी बनाए रखने के लिए स्किनबूस्टर्स आजमा सकते हैं. स्किन की सौफ्टनेस और शाईन को बनाए रखने के लिए रैस्टिलेन वाइटल एक कारगर विकल्प है. नए जमाने का डर्मल फिलर रैस्टिलेन वाइटल चंद मिनटों में शाइनी स्किन मिल जाती है.

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5. सनस्क्रीन का इस्तेमाल है सबसे जरूरी

गरमी में स्किन को नुकसानदेह यूवी किरणों से सुरक्षित रखने के लिए सनस्क्रीन की जरूरत पड़ती है. स्किन को किसी भी तरह के नुकसान से बचाने के लिए बौडी के खुले हिस्सों में 15 या इस से अधिक एसपीएफ वाले सनस्क्रीन का इस्तेमाल करें.

Summer Special: गरमी में करें इन फलों का सेवन

गरमी के मौसम में शरीर को खाने से अधिक पानी की जरूरत होती है. अगर आपके शरीर में पानी की कमी रह रही है तो आपको कई तरह के रोग हो सकते हैं. सीधे पानी पीने के अलावा आप अपनी डाइट में फलों को शामिल कर के पानी की कमी को दूर कर सकते हैं. इनके सेवन से आप कूल महसूस करेंगे. गरमीयों में मिलने वाले फल आम, तरबूज, खरबूज, बेल व मौसमी आपको अंदर से फिट रखते हैं.

आमतौर पर लोग गरमी में खाना अधिक नहीं खा पाते ऐसे में डाइट में फल को शामिल करना काफी लाभकारी होगा.

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लीची

गरमी में लीची मिलने लगती है. इसे खाने से आपके शरीर में विटामिन ए, सी और पानी प्रचूर मात्रा में मिलता है. इसमें पाए जाने वाले एंटीऔक्सिडेंट शरीर की इम्यून के लिए फायदेमंद होते हैं. त्वचा के लिए भी ये काफी असरदार होता है.

आम

गरमी के मौसम में लोगों को जिन फलों का इंतजार रहता है उनमें आम प्रमुख है. आम ना केवल स्वादिष्ट होता है बल्कि सेहत के लिए इसके कई फायदे हैं. दूध में आम मिला कर पीने से शरीर को काफी उर्जा मिलती है. ध्यान रखें कि इसका अधिक सेवन ना करें. शुगर के मरीजों को खासकर के इसका ध्यान रखना चाहिए.

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तरबूज का सेवन

गरमी में तरबूज का सेवन काफी फायदेमंद होता है. पर ध्यान रखें कि इसके सेवन के दौरान पानी ना पिएं. कोशिश करें कि दोपहर के वक्त पर तरबूज खाएं. इस वक्त शरीर को पानी की खासा जरूरत रहती है. तरबूज आपके शरीर में होने वाली पानी की कमी को दूर करता है.

अंगूर

शरीर को हाइड्रेट रखने में अंगूर काफी अहम रोल निभाता है. ये हमारे फेफड़ों के लिए भी काफी लाभकारी होता है. जिन लोगों को लो बीपी या शुगर की शिकायत है उन्हें अंगूर का सेवन करते रहना चाहिए.

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बेल का शरबत

गरमी में बेल का शरबत आसानी से मिलता है. इससे शरीर की गरमी दूर रहती है. पेट की सेहत के लिए भी ये काफी फायदेमंद होता है.

उस एक दिन की बात- भाग 3: क्या हुआ था उस दिन?

है, यार? बहुत दिनों से देखा नहीं उसे,’  रूम में चारों ओर देखते हुए ललक कर पूछा.

‘बेटे को देखा नहीं, बहुत दिनों से? क्या कह रहे हैं? रोज ही तो सामने बैठा होमवर्क करता रहता है, जी,’  उर्मि विस्मय से बोली.

‘आभासी दुनिया की तंद्रा में दृष्टि ससुरी यंत्रीकृत सी हो गई थी. तुम, वो, ये सारा परिवेश

सामने होते हुए भी आंखों से ओझल रहते. आज तंद्रा टूटी तो तुम्हें देखा. आज ही उसे देखूंगा. उस का होमवर्क मैं कराऊंगा, ठीक.’

‘पड़ोस में खेलने गया है, आता होगा. अब किचेन में चलती हूं, बहुत काम है,’  उर्मि उठती हुई बोली तो पीयूषजी मनुहार कर उठे, ‘प्लीज, कुछ देर रुको न, जी नहीं भरा देखने से.

खूबसूरती को भासी दुनिया में लाख विचर ले कोई, लौटना तो आखिरकार यथार्थ पर ही होता है, खाली हाथ. कितना मूर्खतापूर्ण गुजरा वह समय. जेहन में महादेवी वर्मा की पंक्तियां कौंध गईं.. विस्तृत नभ का कोई कोना, मेरा न कभी अपना होना. परिचय इतना, इतिहास यही… महादेवीजी ने ये पंक्तियां उन जैसों के लिए लिखी होंगीं शायद.

अब छोड़िए भी. रात के खाने की तैयारी करनी है,’  उर्मि उन की बांहों से छूटने का प्रयास करती बोली, ‘देर हो जाएगी, बहुत काम है,  मेरी हंसी   देखने के लिए ढेर समय मिलेगा मिस्टर अग्रवाल.’

पर पीयूषजी के भीतर का प्रेमी आज वियोग सहने को तैयार न था. उर्मि के साथ के एकएक पल को जी लेने को मचल रहा था उन का मन. ‘तो ऐसा करते हैं कि मैं भी किचेन में चलता हूं. तुम सब्जी बनाना, मैं आटा गूंथ दूंगा.’

पीयूषजी ने भोलेपन से कहा. उर्मि पति की अदा पर फिदा हो गई. पहले वाले दिन याद हो आए जब पीयूषजी उस के इर्दगिर्द बने रहने और चुहल करने का कोई बहाना नहीं छोड़ते थे.

‘आप का मन नहीं लगेगा इन कामों में,’   उर्मि ने आंखें नचाते हुए व्यंग्य किया.

‘लगेगा और खूब लगेगा. उस पिशाच को कंधे से उतार कर पेड़ पर उलटा लटका दिया है,’ पीयूषजी की आवाज आत्मविश्वास से लबरेज थी.

फिर परात में आटा, आटे में पानी, पानी मे थोड़ी चुहल और थोड़े ठहाके. फेंटते हुए देर तक

मनोयोग से आटा गूंथते रहे. ऐसा मजा जीवन में पहले कभी नहीं आया.

इसी बीच आयुष पड़ोस से खेल कर आ गया. पीयूषजी ने लपक कर उसे गोद में उठा लिया मानो अरसे बाद गोद मे लिया हो. वात्सल्य के विलक्षण फुहार से भीग गया उन का मन. बेटा भी थिरक कर चूजे की तरह चिपक गया उन से. फिर होमवर्क कराते हुए उस की मासूम बातों व हरकतों में खूब आनंद मिला.

डिनर के बाद उर्मि को ले कर छत पे चले आए. काफी दिनों बाद छत पर आए थे. सबकुछ नयानया लग रहा था. आंगन, डोली, पिछवाड़े खड़ा अमरूद का छतनार पेड़. विभिन्न किस्मों के फूलों और शो पत्तों के छोटेबड़े बीसेक गमले. कलैक्शन उन्हीं का तो किया हुआ था, चाव से. देखरेख के अभाव में कुछ अधखिले थे तो कुछ मरणासन्न. जैसे उन्हें उलाहना दे रहे हों कि नन्हें दोस्तों को भूल क्यों गए, सर?  ग्लानि से भर गया मन. कल से तुम्हारी सेवा में हाजिर रहूंगा, दोस्तों. आकाश में इस छोर से उस छोर तक विशाल स्याह चंदोबा तना था. चंदोबे पर एक ओर न्यून कोण में टिका चतुर्दशी का चांद. दोनों की नजरें उस पर टिक गईं.

चौदहवीं का चांद  उर्मि क्लिक कर बोली, ‘कितना प्यारा लग रहा न?’ ‘हां, एक अंतराल के बाद देख रहा हूं. उस चांद को भी और इस चांद को भी. आभासी दुनिया की सनकभरी दौड़ में ऐसे रोमांचकारी अनुभूतियों से रूबरू नहीं हो सका कभी,’   पीयूषजी उर्मि की बांह थाम कर थरथराती आवाज में बोले, ‘बेशक, आज के युग में सोशल मीडिया से दूर रहना संभव नहीं पर मेरे लिए वह  कीप  की तरह होगी. सिर्फ कुछ देर का लाड़, बस. उसे ड्रैकुला की तरह अनुभूतियों व इमोशन्स का खून नहीं चूसने दूंगा. उस दुनिया की सैर के दौरान भी तुम सब को, तुम को, आयुष को, घरपरिवार को और सारे सैंटीमैंट्स को साथ लिए रखूंगा.’

सुबह यथासमय नींद खुल गई. पहले नींद खुलते ही बेताल जेहन में प्रकट हो जाता और हाथ मोबाइल ढूंढने लगते. आज दिल और दिमाग शांत थे. चाय पी कर छत पर चढ़ गए.खुरपी, संडासी, ट्रिमर, वाटर केन आदि निकाला. 2 घंटे की बेसुध सेवा. एकएक पौधे को सहलाया. सहलाते हुए मन रोमांच से सराबोर होता रहा. ऐसे अनिवर्चनीय सुख से क्यों कर विमुख रहे अब तक. गमलों का काम कर के सब्जी बाजार गए. सारा परिवेष नया सा लग रहा था. रामखेलावन, मंगरु साव और पिंटू के पुराने ग्राहक थे. सभी लोग उलाहना देते हुए चहक उठे, ‘भले ही कुच्छो न खरीदो साहेब, पर दुचार दिनन पर आ कर मिल लो, तो दिल जुड़ा जात है.’

इन अनजान लोगों के मूर्त अपनापन के आगे आभासी मित्रों के छद्म, सहानुभति कितनी खोखली है. पीयूषजी उन लोगों के स्नेह से भीतर तक भीग गए.

औफिस में इंटरनैट बंद होने से सभी के चेहरे क्षुब्ध थे मानो कोई नायाब खजाना लुट गया हो. सभी पानी पीपी कर सरकार को कोस रहे थे. यह भी कोई बात हुई कि शहर के किसी ओनेकोने में जरा सा फसाद हुआ नहीं कि इंटरनैट बंद. नैट के बिना जनता की जान हलक में आ जाती है, यह नहीं सोचती वह.

कल के ढेर सारे नायाब अनुभवों से गुजरने के बाद पीयूषजी का मन शांत था. उन की टिप्पणियों को सुन कर मजा आ रहा था. देखतेदेखते 2 दिन बीत गए. 2 दिनों में  सदियों को जी लिया हो जैसे. शाम को औफिस से लौट कर घर में प्रवेश करते ही मिश्रा का फोन आ गया, ‘नैट चालू हो गया, सर. 6 बजे गूगल मीट में जुड़ना है.’

‘कीप…हंह,’ उन की हंसी छूट गई.

चाय पीते हुए पीयूषजी ने पत्नी से हुलस कर कहा, ‘तैयार हो जाओ. घूमने निकलेंगे. पहलेमल्टीप्लैक्स में फ़िल्म, फिर किसी बढ़िया रैस्तरां में शानदार डिनर. तुम सब को वापस हासिल कर लेने का सैलिब्रेशन, ओके.’

अनुज की आंटी की होगी एंट्री! अनुपमा से लेगी दहेज?

टीवी सीरियल अनुपमा (Anupamaa) में इन दिनों लगातार ट्विस्ट देखने को मिल रहा है. शो में अब तक आपने देखा कि अनुपमा और अनुज की शादी की तैयारियां शुरू हो गई है. तो दूसरी तरफ बा इस शादी के खिलाफ है, वह नहीं चाहती कि अनुपमा-अनुज की शादी हो. लेकिन बापूजी अनुपमा की शादी को लेकर बेहद खुश है. शो के आने वाले एपिसोड में बड़ा ट्विस्ट आने वाला है. आइए बताते हैं शो के नए एपिसोड के बारे में.

शो में दिखाया जा रहा है कि अनुपमा की मुसीबतें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं. अनुज से अपनी शादी की बात करने के बाद शाह परिवार में कुछ लोग अनुपमा के खिलाफ खड़े हो गए हैं तो वहीं बा भी लगातार अनुपमा को परेशान करने का कोई मौका नहीं छोड़ रही है.

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खबरों के अनुसार, शो में एक नई एंट्री होने वाली है. यह कोई और नहीं बल्कि अनुज की आंटी हैं जो अनुपमा की विरोधी होगी. वह अनुज-अनुपमा की शादी में विलेन का काम करेगी.

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शो में दिखाया जा रहा है कि अनुज अपनी शादी को लेकर काफी एक्साइटेड है. अनुज एक ग्रैंड वेडिंग करना चाहता है तो वहीं अनुपमा सिंपल तरीके से शादी करना चाहती है. ऐसे में बापूजी अनुज की इच्छा को पूरा करने के लिए घर गिरवी रखने की योजना बनाते हैं.

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बताया जा रहा है कि शो में अनुज की आंटी अनुपमा से शादी के लिए दहेज का डिमांड करेगी. अनुज की आंटी को अनुपमा पसंद नहीं आएगी. क्योंकि वह चाहती थी कि अनुज उनकी पसंद से शादी करे. ऐसे में वो अब उनकी शादी में बाधा बनकर खड़ी रहेगी.

भारती सिंह बनी मां, दिया बेटे को जन्म

कॉमेडियन भारती सिंह (Bharti Singh) मां बन गई है. जी हां, भारती ने एक बेटे को जन्म दिया है. यह जानकारी सोशल मीडिया से मिली है. दरअसल हर्ष लिंबाचिया ने बेहद ही प्यारा पोस्ट शेयर किया है. इस पोस्ट में उन्होंने बताया है कि उनके घर एक बेटे ने जन्म लिया है.

हर्ष लिम्बाचिया ने अपने मैटरनिटी फोटोशूट की एक तस्वीर शेयर कर इस खुशखबरी को फैंस के साथ शेयर किया है. तस्वीर में भारती और हर्ष व्हाइट आउटफिट में दिख रहे हैं. कपल ने हाथ में फूलों की टोकरी थाम रखी है. इस तस्वीर पर लिखा है, It’s a Boy.

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हर्ष लिंबाचिया ने जैसे ही ये गुडन्यूज शेयर की, फैंस उन्हें लगातार बधाइयां और शुभकामनाएं दे रहे हैं. टीवी एक्ट्रेस अनीता हसनंदानी ने लिखा- याय्या बधाई तो वहीं राहुल वैद्य ने कमेंट किया, ‘ओएमजी देखने के लिए इंतजार नहीं कर सकता, बधाई.

 

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भारती सिंह और हर्ष लिंबाचिया पेरेंट्स बनने को लेकर काफी एक्साइटेड थे. भारती आए दिन बेबी बंप फ्लॉन्ट करते हुए अपनी तस्वीरें फैंस को साथ शेयर करती थीं. भारती ने बच्चे के जन्म से पहले ही एक खास कमरा तैयार करवाया है. जिसकी झलक एक्ट्रेस ने सोशल मीडिया पर एक वीडियो शेयर करके दिखाई थी. डिलिवरी के आखिरों दिनों तक भी भारती काम करती रही हैं.

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हाल ही में भारती सिंह ने खुलासा किया था कि वह अप्रैल के पहले सप्ताह में मां बनने वाली हैं. भारती ने अपने यूट्यूब चैनल एलओएल लाइफ ऑफ लिंबाचिया पर वीडियो शेयर करते हुए अपनी प्रेग्नेंसी की खबर शेयर की थी. हम मां बनने वाले हैं नाम के इस वीडियो में हर्ष भी अभिनय करते नजर आए थे.

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आय और स्वरोजगार के लिए अपनाएं बकरी पालन

 – प्रो. एसएन सिंह, अध्यक्ष,

बकरीपालन एक ऐसा व्यवसाय है, जिसे कम लागत व कम स्थान में छोटा, बड़ा व भूमिहीन किसान आसानी से कर सकता है, इसीलिए इसे गरीबों की गाय व एटीएम भी कहा जाता है.

बकरी के दूध की मांग दिनप्रतिदिन बढ़ रही है, क्योंकि इस में डेंगू रोग की प्रतिरोधक क्षमता है. बेरोजगार नौजवान और युवा लड़कियां, मजदूर, किसान और किसान महिलाएं बकरीपालन व्यवसाय को अपना कर अपनी माली हालत को सुधार सकते हैं.

पशुपालन विशेषज्ञ डा. डीके श्रीवास्तव ने जानकारी देते हुए कहा कि बकरीपालन को मुख्यत: मांस, दूध, बाल, खाल व खाद के लिए इस्तेमाल किया जाता है. जिले की जलवायु के अनुरूप बकरी की बरबरी, जमुनापारी, सिरोही व ब्लैक बंगाल उपयुक्त नस्लें हैं, जो दूध के साथ अच्छी क्वालिटी का मांस उपलब्ध कराती हैं और प्रत्येक ब्यांत में 2 बच्चे देती हैं.

बरबरी नस्ल की बकरियों में नर बच्चे ज्यादा पैदा होते हैं, जिन को मांस के लिए पाला जा सकता है. उन्होंने यह भी अवगत कराया कि बकरियों को चरना ज्यादा पसंद है, इसलिए इन्हें चराई के साथ ही साथ प्रतिदिन 250 ग्राम दाना मिश्रण भी खिलाना चाहिए. इस से बकरियों को आवश्यक पोषक तत्त्व जैसे प्रोटीन, वसा, कार्बोहाइड्रेट, खनिज और विटामिन मिलते रहें और वे स्वस्थ रह कर कम अवधि में अधिक शरीर भार ग्रहण कर सकें.

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बकरियों में किसी प्रकार की बीमारी होने पर निकट के पशु चिकित्सक से सलाह लें और उन की दी गई सलाह से ही इलाज कराएं.

पौध रोग विशेषज्ञ डा. प्रेम शंकर ने बताया कि बकरियों की सब से घातक बीमारी पीपीआर है, जो बहुत तेजी से फैलती है. इस बीमारी के कारण बकरियों की मौत भी हो जाती है. इस के बचाव के लिए प्रत्येक बकरी को पीपीआर का टीका समय से अवश्य लगवा देना चाहिए.

बकरियों को सदैव ताजा और साफ पानी ही पिलाना चाहिए, क्योंकि यदि बकरियां तालाब, गड्ढा, पोखरा आदि का गंदा पानी पीती हैं, तो उन के पेट में लिवर फ्लूक, गोलकृमि, फीताकृमि आदि अंत:परजीवी उत्पन्न हो जाएंगे, जो विभिन्न रोगों के वाहक होते हैं, जिस से बकरियों की उत्पादन क्षमता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है. बकरियों को प्रत्येक 6 माह के अंतराल पर पेट के कीड़े मारने की दवा (गाभिन बकरी को छोड़ कर) अवश्य देनी चाहिए.

शस्य वैज्ञानिक डा. आरवी सिंह ने जानकारी दी कि बकरियों को हरा चारा ज्यादा पसंद है, इसलिए मौसम के अनुसार बरसीम, जई, लोबिया, मक्का व चरी की बोआई करें और बहुवर्षीय हरा चारा जैसे हाईब्रिड नैपियर घास के साथ ही साथ पीपल, पाकड़, गूलर, बबूल, बरगद व सहजन आदि के पौधों का रोपण करें, जिस से बकरियों को सालभर पर्याप्त हरा चारा मिलता रहे.

उन्होंने बकरीशाला की निरंतर साफसफाई करने पर जोर दिया. यदि बकरीशाला में गंदगी रहेगी, तो उस में उन के शरीर पर लगने वाले कीड़े जैसे जूं, किलनी, मक्खी आदि हो जाएंगे, जो उन का खून चूसेंगे, जिस से उन की उत्पादन क्षमता प्रभावित होगी. इसलिए जरूरी है कि बकरीशाला के आसपास गंदगी न इकट्ठा होने दें और बकरीशाला की पुताई के साथ ही साथ कीटनाशक का छिड़काव निरंतर करते रहें.

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– भानु प्रकाश राणा 

‘बकरीपालन’ विषय पर प्रशिक्षण का आयोजन

बस्ती : भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली द्वारा वित्त पोषित कृषि तकनीकी अनुप्रयोग अनुसंधान संस्थान, रावतपुर, कानपुर, बस्ती केंद्र के अध्यक्ष प्रो. एसएन सिंह के दिशानिर्देश में आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, कुमारगंज, अयोध्या द्वारा संचालित कृषि विज्ञान केंद्र, बस्ती द्वारा क्षमता योजना के अंतर्गत ‘बकरीपालन’ विषय पर पिछले दिनों प्रशिक्षण का आयोजन किया गया.

इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में बकरीपालक, बेरोजगार नौजवान, किसान व किसान महिलाएं सम्मिलित हुईं. इस अवसर पर कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों के साथसाथ जेपी शुक्ला, निखिल सिंह, प्रहलाद सिंह, बनारसी व सीताराम आदि कार्मिक भी उपस्थित रहे.

मानवीय मूल्यों का पाठ

यूनिवॢसटी ग्रांट कमीशन के चैयरमैन जगदीश कुमार ने कहा है भारतीय जनता पार्टी की भारतीय संस्कृति के पौराणिकवाद की थोपने वाली नई शिक्षा नीति के अंतर्गत अब मानवीय मूल्यों को भी पढ़ाया जाएगा और यह बाकायदा कोर्स होता था. अब तक समाज में मानवीय मूल्यों को सिखाने का काम ङ्क्षचतक करते थे, लेखक करते थे, कवि करते और कभीकभार नेता करते थे. अब इसे कोर्स की तरह पढ़ाया जाएगा.

सवाल बड़ा तो यह है कि मानवीय मूल्यों का पाठ इस पुरानी संस्कृति का राग रातदिन पीटने वाले समाज में जरूरी क्यों है? क्या हमारे लाखों नहीं करोड़ों पंडेपुजारी, साधू, प्रवचक, गुरू उपदेशक रातदिन जो कुछ बोलते रहते हैं वह मानवीय मूल्यों का पाठ नहीं है? हमें रात दिन ङ्क्षहदू संस्कृति का गुणगान कररने को कहा जाता है तो क्या उस में मानवीय भूल नहीं है? अगर नहीं है तो क्यों हम अपने गाल पीटते हैं और क्यों विश्वगुरू बनने का दावा हर सोस में करते हैं? क्यों हर समय कहते है कि विश्व को ज्ञान देने वाली बातें इस भारतभूमि से ही गई थी और दुनिया के हर अविष्कार, हर भवन निर्माण, हर खोज में अपना श्रेय लेते हैं.

जिस दिन प्रोफेसर जगदीश कुमार ने मानवीय मूल्यों की शिक्षा को उच्च शिक्षा के पाठ्यक्रम में शामिल करने का बयान जारी किया उसी दिन अखबार की और सुॢखयां देखें तो पता चल जाएगा कि इस देश में आज मानवीय मूल्यों की क्या स्थिति.

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एक खबर है गुंडगांव के सैक्टर 109 में ङ्क्षचटक पारादीसो की जिस के 18 मंजिले टावर के 6वें फ्लोर से नीचे छत ढह गई और 2 लोगों की मौत हो गई और वजह थी छत की स्लैब में जंग लगा सरिया लगाना. जिस ठेकेदार ने यह काम किया वह क्या नास्तिक था, जो प्रवचन नहीं सुनता था?

दूसरी खबर है दिल्ली के एक होटल के द्वारा जम्मू कश्मीर के युवक को कमरा न देने की. यह मानवीय मूल्य है कि औन लाइन बुक हुआ कमरा भी देना मना कर दिया गया क्योंकि युवक जम्मू कश्मीर का यानी होटल के अनुसार या तो विदेशी है या आतंकवादी है.

एक खबर है एक महिला से फोन छीन कर भागने की. एक मोहित ने एक हिना का फोन उस्मानपुर इलाके में झपट लिया पर महिला राइफल शूङ्क्षटग की कोच थी तो उस ने दौड़ कर भाग रहे बदमाश को पकड़ लिया. यह मानवीय मूल्य है क्या?

ये अवगुण आखिर इस देश में आए कहां से जहां हर समय रामायण व महाभारत की कहानियां सुनाई जाती हैं और ऐसा दर्शाया जाता है कि जो कुछ भी खराब हो रहा है वह किन्हीं विधॢमयों के कारण हो रहा है जिन को वीभत्स बढ़ाचढ़ा कर कश्मीर फाइल्स फिल्म में दिखाया गया है जिसे सरकार जोरशोर से प्रचारित कर रही है और जिस में पंडितों पर हुए जुल्मों की कथाएं.

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कहीं ऐसा तो नहीं जिसे महान संस्कृति के आधार पर मानवीय मूल्य पढ़ाएं जाएंगे वहीं मानवीय मूल्य नहीं हैं. अंग्रेजी में लिखी अनुजा चंदुमौली की पुस्तक ‘अर्जुन’ ऐसे प्रसंगों से भरी है जिन में मानवीय मूल्यों को औंधे मुंह पटक दिया गया है. लाक्षा गृह में दुर्योधन ने अपने चचेरे भाईयों को जला कर मार डालने का प्रयास किया, यह कौन  सा मानवीय मूल्य था. उस के बाद पांडव गांवगांव भटकते रहे और फिर दुपर्द की राज में पहुंचे जहां द्रौपदी का स्वयंवर होना था और ब्राह्मïण जो दानदक्षिणा के लालच में क्षत्रियों के साथ द्रौपदी स्वयंवर स्थल पर पहुंचे, क्या यह मानवीय मूल्य पढ़ाया जाएगा. इसी स्वयंवर में द्रौपदी कक्ष में स्वयंवर की शर्त को पूरा करने के लिए आगे आए कर्ण को प्रतियोगिता में भाग लेने से मना कर देती है क्योंकि कुंती का ही विवाह पूर्व हुआ पुत्र कर्ण एक सूद्र के यहां पला बढ़ा था और वह कहती है ‘मैं सूद्र से विवाह नहीं करूंगी.’

अगर प्रोफेसर इस समाज को जहां खबरों के अनुसार मानवीय मूल्य बह रहे हैं, महाभारत वाले मानवीय मूल्भ्य पढ़ाएंगे तो देश क्या सुधार होगा, यह आसानी से समझा जा सकता है.

लेखक की पत्नी: भाग 1

‘‘मैडम, नमस्कार,’’ प्रतिभा ने अनु के हाथों में मिठाई का पैकेट रखा और कंधे पर शाल ओढ़ा दी, ‘‘मैडम, मुझे एमफिल की डिगरी मिली, विशिष्टता के साथ. यह देखो, मेरा प्रबंध. सर की अचानक मृत्यु हो गई, जीवित होते तो उन्हें कितनी खुशी होती. उन्होंने मुझे समय दे कर मेरा अच्छा मार्गदर्शन किया था.’’

प्रतिभा ने अनु के हाथों में सुनहरे अक्षरों में मढ़ा, मखमली वस्त्र में लिपटा प्रबंध रखा. अनु ने चश्मा लगा कर पढ़ा, ‘राम सहाय की कथाएं और समग्र अभ्यास.’

‘‘अच्छा पिंट है और साजसज्जा भी अच्छी है.’’

‘‘मैडम, आप दोनों ने बहुत मदद की. इसलिए काम शीघ्र ही पूरा हुआ. सर ने शोध सामग्री सहर्ष दी थी जो ठीकठाक और तिथिवार थी.’’

‘‘प्रतिभा, तुम ने भी प्रयास किया, घंटों साथ चर्चा की.’’

‘‘सर मुझ पर खुश थे, पूरा समय दिया. दूसरा मार्गदर्शक कोई भी इतना ज्यादा सहयोगी नहीं सिद्ध होता.’’

‘‘प्रबंध मेरे पास छोड़ दो. आराम से पढ़ूंगी.’’

‘‘यह प्रति आप के लिए ही है. अब पीएचडी के लिए ‘राम सहाय साहित्य का समग्र अध्ययन’ विषय चुना है, सो मुझे सर के उपन्यास, नाटक, ललित लेखन, निबंध, वृत्तपत्रीय लेखन और आत्मकथन सब का सम्यक अनुशीलन करना पड़ेगा. सो, आप को फिर से तकलीफ देनी है. सर के पत्र, पाठक और संपादक के आए हुए खत, साक्षात्कार सब देखना पड़ेगा. आत्मकथन से लेखक की जिंदगी का सही अंदाज लगता है. सर की निजी डायरी पढ़नी पड़ेगी. आप को कोई आपत्ति तो नहीं?’’

‘‘डायरी में दैनंदिन काम की जंत्री होगी,’’ अनु ने असमंजस में पड़ कर कहा.

‘‘मैडम, साक्षात्कार में मुझ से एक प्रश्न पूछा गया था,’’ प्रतिभा ने बताया.

‘‘क्या?’’

‘‘सहाय सर के साहित्य में करुण रस की प्रधानता क्यों?’’

‘‘फिर तुम ने क्या जवाब दिया?’’

‘‘उन का व्यक्तिगत जीवन दुखी था, ऐसा नहीं लगता क्योंकि मैं उन को करीब से जानती थी.’’

‘‘हां, हमारा जीवन सुखी था.’’

‘‘फिर परीक्षक ने पूछा, ‘यही लेखक आप ने प्रबंध के लिए क्यों चुना?’ मैं ने जवाब दिया, ‘करुण रस मुझे भाता है, भावना का उद्वेग दिल को छूता है.’’’

‘‘जवानी में करुण रस आकर्षित करता है?’’ अनु का प्रश्न था.

‘‘करुण रस और अवस्था का परस्पर संबंध है क्या?’’

अनु, प्रतिभा को देखने लगी. सुयोग्य पति और होनहार पुत्र के सान्निध्य के बावजूद खुद अच्छी पढ़ाई कर अब पीएचडी कर रही है. नियमबद्ध जीवन के सर्वोच्च शिखर पर गतिशील होते हुए भी करुण रस की ओर रुझान है.

प्रतिभा कह रही थी, ‘‘पीएचडी के माध्यम से सर के दिल का दर्द समझ सकी तो समीक्षक को एक दृष्टिकोण मिलेगा. आप मुझे सहयोग करेंगी? साहित्य में जीवन का प्रतिबिंब रहता है, क्योंकि लेखक ने वह भोगा है, दर्द सहा है, तो वह प्रतिक्रिया उस के साहित्य में व्यक्त होगी ही. सर की मन की व्यथा आप से ज्यादा कौन जानेगा?’’

कुछ रुक कर वह बोली, ‘‘अच्छा, चलती हूं. प्रबंध पढ़ कर राय दीजिएगा. फिर मिलूंगी तकलीफ देने के लिए.’’

‘‘इस में तकलीफ काहे की. रचनाएं सर्वत्र बिखरी पड़ी हैं, उन्हें संवारना होगा.’’

‘‘यह काम जरूरी है. मैं इस काम में आप की मदद करूंगी. विषयवार रचनाओं की फाइल बनानी होगी. सर के साहित्य का अभी तक यथेष्ठ मूल्यांकन नहीं हुआ है.’’

‘‘मूल्यांकन मौत के बाद होता है क्या? वे थे तब तक आलोचना हुई, कभी उन्हें संतोष नहीं मिला.’’

‘‘उन की किताबें विद्यापीठ में चल रही हैं.’’

‘‘हां, किंतु किताबें कोर्स में चलें, यह उच्च साहित्य का निष्कर्ष नहीं है.’’

‘‘मैडम, मुझे लगता है पाठक, सर को ठीक से समझे नहीं.’’

‘‘हो सकता है.’’

प्रतिभा चली गई. अनु वैसे ही प्रबंध के पन्ने पलटती रही. मन सैकड़ों मील दूर तक भटक रहा था. पति को क्या सुलभ था. जिंदगी में कुछ कमी नहीं थी, कमाऊ लड़का, सुशील बहू, होनहार पोतापोती, सब परदेश में बसे हुए थे.

वहां कुछ समय जा कर परकीय साहित्यकारों से पहचान बनी. उन के साहित्य का, संस्कृति का परामर्श हुआ. उन की रचनाओं के पुस्तकालय संस्करण निकले. विपुल मानधन और प्रतिष्ठा मिलते देख कर दिल बागबाग हुआ. कितने लेखक पीछे लगे थे आंग्लभाषा में अनुवाद करने की सहमति के लिए, पर एक न सुनी. रौयल्टी अच्छी मिलती, साथ में प्रसिद्धि भी, पर नहीं माने. उन का दिल पाश्चात्य संस्कृति में रमा नहीं, बोले, ‘अनु, तुम्हें रहना है बेटे के पास तो रहो, मैं चला.’ उन को अकेलापन भाता था. वे आत्मकेंद्रित थे. उन की दुखती रग मेरी पकड़ में नहीं आई और वे दूर चले गए.

अनु को याद आई उन की एक लंबी विरहकथा. उस कथा की नायिका असंतुष्ट थी. कालेज का प्रेमी बिछड़ गया था. विरहव्यथा हृदयभेदक शब्दों में व्यक्त की थी. यह खुद के दिल की व्यथा थी या यों ही कल्पना विलास? इतने साल साथ बिताए लेकिन मन की टोह लगा नहीं पाई. कहते हैं, आत्मकथन साहित्य का केंद्रबिंदु होता है.

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