मैट्रिमोनियल साइट्स पर कम समय में हजारों प्रोफाइल देखने को मिल जाते हैं. वहां उम्र, जाति, धर्म, हैसियत और भाषा के आधार पर साथी ढूंढ़ने में सहूलियत होती है. लेकिन सतर्क रहना बहुत जरूरी है वरना…

भारतीय मान्यता के अनुसार ब्याह के बिना जीवन अधूरा है. हमारे यहां वैदिक युग में विवाह के लिए स्वयंवर रचे जाते थे. स्वयंवर के जरिए राजवंश की लड़कियां अपने लिए वर खुद ढूंढ़ा करती थीं.

इस के अलावा भारत में सदियों से 8 तरह के विवाह का चलन रहा है. ब्रह्मा विवाह, जिस में ब्रह्मचर्य के बाद लड़कों का विवाह मातापिता तय करते थे. दैव विवाह में मातापिता खास समय तक पुत्री के लिए योग्य वर की प्रतीक्षा किया करते थे. योग्य वर न मिलने पर पंडितपुरोहित से उन का ब्याह करा दिया जाता था.

तीसरे किस्म का ब्याह है अर्थ विवाह, जिस में लड़की का ब्याह किसी ऋषि या साधु से करा दिया जाता था. चौथे किस्म का ब्याह प्रजापत्य विवाह है. इस में दहेज देनेलेने के बाद कन्यादान का चलन है. प्रजापत्य विवाह का चलन आज भी भारतीय समाज में है. 5वें किस्म का ब्याह गंधर्व विवाह, गंधर्व विवाह को लवमैरिज कहा जा सकता है, लेकिन इस पद्धति को मान्यता मिलने में कठिनाइयां पेश आती थीं. दुष्यंत और शकुंतला का किस्सा इस की एक मिसाल है.

6ठे किस्म का ब्याह है असुर विवाह. अयोग्य लड़के द्वारा धन के देनेलेने के बाद जबरन ब्याह किया जाता था.

7वें किस्म का ब्याह राक्षस विवाह. इस तरह के ब्याह में लड़का लड़की के परिवार से युद्ध कर के अपने लिए वधू को जीता करता है. यह भी जबरन ब्याह का एक तरीका है. 8वें किस्म का ब्याह है पैशाचिक ब्याह. यहां भी लड़की या लड़की के परिवार की इच्छा को अहमियत न दे कर जबरन ब्याह किया जाता है.

गंधर्व विवाह को छोड़, सभी किस्म के ब्याह कमोबेश अरेंज माने जाते रहे हैं, पर गंधर्व विवाह, विवाह ही न माना गया क्योंकि उस में रस्में नहीं निभाई गईं. आज भी भारत में लव मैरिज के बजाय अरेंज मैरिज को ही कहीं अधिक पसंद किया जाता है.

समाजशास्त्रियों का मानना है कि चौथी सदी से भारत में पारिवारिक सदस्यों द्वारा तय किए रिश्ते ही विवाह बंधन के तौर पर मान्य रहे हैं, क्योंकि विवाह बंधन के पीछे मान्यता यह रही है कि विवाह केवल वरवधू का मिलन नहीं है, बल्कि विवाह से 2 परिवारों के बीच रिश्ता स्थापित होता है. हालांकि इस की शुरुआत सवर्गों से हुई लेकिन बाद में यह चलन पूरे भारतीय समाज में होने लगा.

अरेंज्ड मैरिज और तलाक दर

भारत में आज भी 90 फीसदी शादियां अरेंज तरीके से होती हैं और इसलिए दावा किया जाता है कि भारत में आधिकारिक तलाक की दर महज

2-8 फीसदी है. जबकि पश्चिमी देशों में लड़केलड़कियां एकदूसरे से मिलते हैं, कुछ समय तक उन के बीच कोर्टशिप चलती है और फिर वे शादी करने या न करने का फैसला करते हैं.

देखा गया है कि लंबी कोर्टशिप के बाद भी 25 से 50 फीसदी शादियां लाइफटाइम टिक नहीं पातीं. अगर अलगअलग देशों की बात की जाए तो अमेरिका के निकोल्स डी क्रिस्टोफ के सर्वेक्षण का जिक्र यहां जरूरी है. क्रिस्टोफर कहते हैं कि जापान में हर सौ शादियों में 24, फ्रांस में 32, इंग्लैंड में 42 और अमेरिका में 55 तलाक होते हैं.

भारत में अरेंज मैरिज की कुछ अच्छाइयां है तो कुछ बुराइयां भी. ऐसे ब्याह का सब से बड़ा फायदा भारत में जो नजर आता है वह यह है कि तलाक की दर बहुत कम है. इस की वजह यह मानी जाती है कि अरेंज मैरिज में रिश्ता

2 व्यक्तियों का ही नहीं, बल्कि 2 परिवारों के बीच भी होता है. इसीलिए ऐसे रिश्ते में स्थायित्व होता है.

वहीं, बुराई यह है कि ज्यादातर मामलों में लड़कियां को अपने शौक, अपनी तमन्ना सबकुछ परिवार और पति के ऊपर वार देना होता है. उस की आजादी पारिवारिक हद में कैद हो जाती है, मसलन दहेज, घरेलू हिंसा, पतियों द्वारा पत्नी का यौन उत्पीड़न आदि. लेकिन इन सारी खराबियों की दर अलगअलग क्षेत्र में अलग है. ये चीजें आमतौर पर वहां अधिक देखी जाती हैं जहां शिक्षा और जागरूकता की कमी है.

मैट्रिमोनियल साइट और सफलता दर

भारत में अरेंज मैरिज का ज्यादा चलन है. ऐसी शादियां आमतौर पर पारिवारिक पंडित रिश्ते जोड़ने का काम किया करते हैं. आज भी यह चलन बरकरार है. इस के अलावा रिश्तेदारों के जरिए भी ब्याह के लिए संबंध आया करते हैं.

आजकल सामाजिक बंधनों में चूंकि थोड़ी ढील मान्य हो गई है, इसीलिए आधुनिक तरीके से भी रिश्ते तय किए जाते हैं. इन आधुनिक तरीकों में रिश्ते जोड़ने का काम व्यावसायिक तौर पर होने लगा है.

भारत में कई संस्थाएं हैं जो रिश्ते तय करने में मददगार होती हैं. शादी डौट कौम, मैट्रिमोनियल डौट कौम, भारत मैट्रिमोनियल, विवाह बंधनी डौट कौम, ब्राइडग्रूम डौट कौम, आशीर्वाद डौट कौम, जीवनसाथी डौट कौम, गणपति मैट्रिमोनियल, हिंदू मैट्रिमोनियल, फाइंडमैच, हमतुम डौट कौम, मैच मेकिंग डौट कौम, मीटिंग पौइंट डौट कौम जैसी बहुत सारी साइटें औनलाइनऔफलाइन रिश्ते जोड़ने का काम व्यावसायिक तौर पर कर रही हैं.

वहीं ऐसी कुछ साइटें हिंदी, पंजाबी, तमिल, तेलुगू, उर्दू, बंगाली, मराठी जैसे जातिसमुदाय के आधार पर रिश्ते तय करती हैं तो कुछ भारत, अमेरिका, कनाडा, यूएई, यूके और पाकिस्तान जैसे मनचाहेव देश तो कुछ दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, बेंगलुरु, हैदराबाद जैसे मनचाहे शहर या देश के आधार पर.

इस के अलावा हिंदू, मुसलिम, क्रिश्चियन, सिख, बौद्ध, यहूदी और पारसी धर्म के आधार पर भी ये साइटें रिश्ते सु?ाती हैं. आजकल भारतीय समाज में धर्म, जाति और समुदाय के बंधन और ज्यादा कड़े होते जा रहे हैं, इसलिए इन मैट्रिमोनियल साइटों के जरिए हर जाति, धर्म और समुदाय के बीच रिश्ते विवाहबंधन तक नहीं पहुंच रहे हैं.

अब जाति, धर्म के साथ कौन से स्कूल में पढ़े हुए हैं, यह भी जरूरी हो गया. इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढ़ीलिखी लड़कियों का हिंदी मीडियम के पढ़े परिवारों से मेल कम बैठता है. लड़के तो हिंदी मीडियम की लिखीपढ़ी लड़कियों पर मान जाते हैं पर लड़कियों को वे दकियानूसी और गरीब नजर आते हैं.

ऐसी साइटों की सफलता के पीछे कुछ खास वजहें होती हैं. मसलन, कम समय में हजारों प्रोफाइल देखने को मिल जाते हैं. साथ ही, व्यवस्थित तरीके से अपनी पसंदीदा उम्र, जाति, धर्म, हैसियत और भाषा के आधार पर भावी साथी को ढूंढ़ने में सहूलियत होती है. साइटों के जरिए अपनी प्राथमिकता के अनुसार संपर्क साधना आसान होता है और सब से बड़ी बात यह है कि इस में किसी तीसरे पक्ष का हस्तक्षेप लगभग नहीं के बराबर होता है.

मैट्रिमोनियल साइट और सावधानियां

जैसा कि हर अच्छे पक्ष के साथ खराबी भी जुड़ी होती है, उसी तरह इन साइटों के लिए भी थोड़ीबहुत सावधानी जरूरी है. इन साइटों में बहुत सारे जंक प्रोफाइल भी हुआ करते हैं जिन का मकसद साइट को जरिया बना कर डेटिंग और मौजमस्ती करने से ज्यादा कुछ नहीं होता.

ये कतई गंभीर नहीं होते हैं. इसीलिए यहां सावधानी बरतने की जरूरत है. बेहतर है कि मूल मैट्रिमोनियल साइट के कस्टमर केयर विभाग में संपर्क करें. चैकिंग और क्रौस चैकिंग के बाद ही आगे कदम बढ़ाएं. अगर सबकुछ संतोषजनक है तो सूचीबद्ध प्रोफाइल से अपनी मैच के प्रोफाइल को चुन कर बात आगे बढ़ाएं. यही कारण भी है कि ज्यादातर अभिभावक पारंपरिक तरीके से पारिवारिक रिश्तेदारों के जरिए शादी का रिश्ता तय करने के पक्ष में होते हैं.

इन मैट्रिमोनियल साइटों का फायदा तब होगा जब जाति धर्म, वर्ग, हिंदी, इंग्लिश मीडियम की पढ़ाई के सवाल नहीं होते. ये भेद होने की वजह से हर जने के विकल्प सीमित हो जाते हैं.

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