हिंदुमुस्लिम झगड़ों में जानें ही नहीं जाती, जो बचे होते हैं उन की जानों पर भी बहुत सी आफतें आ जाती हैं. जिस भी इलाके में दंगे होते हैं, वहां के घरों के रहने वाले, चाहे मुसलिम हों या ङ्क्षहदू, समाज में कट जाते हैं. समाज अब उन्हें बचाने नहीं आता. उन्हें हिराकत की नजर से देखता है.
पिछले महीने जब खरगौन में दंगे हुए तो एक सब्जी बेचने वाले राहुल कुमावत की बहन की शादी 3 मई को होनी थी पर टाल दी गई क्योंकि लडक़े वाले ऐसी जगह शादी नहीं करना चाहते जहां दंगे होते हों, कफ्र्यू लगता हो. इस दंगे में गंभीर घायल हुए संजीव शुक्ला की बहन की शादी टाल दी गई. होटलों, बैक्वेहालों, वेटरर्स ने अपने आर्डर कैंसिल होने की सूचना है कि दंगों के कारण लोग इस इलाके में आने से कतरा रहे हैं.
हर दंगे में पार्टी की वोटें बढ़ती हैं पर लोगों की ङ्क्षजदगी घटती है. लोग डरेसहमे रहते हैं. औरतें घरों से नहीं निकलती. स्कूल बंद हो जाते हैं. अगर गलीमोहल्ला झगड़े का सेंटर हो तो खानापीना तक मुश्किल हो जाता है.
आजकल भडक़ाऊ टीवी की वजह से दंगे का नाम सप्ताहों तक सुॢखयों में रहता है और दूरदूर तक खबर पहुंच जाती है. लोग शादियां करने से भी कतराने लगे हैं अगर कोई घर दंगाग्रस्त इलाके में हो. इन इलाकों के लडक़ेलडक़ी को लंबी सफाई देनी पड़ती है कि उन के परिवार का कोई लेनादेना इन दंगाइयों से नहीं है. जिन घरों के दंगाई धर्म और कपड़े के हिसाब से पकड़े गए और जेलों में ठूस दिए गए वे तो इस बात को खुदा का हुक्म मान कर सहने की आदत डाल चुके हैं पर वे पूजापाठी जो सबक सिखाने वाली सोच रखते हैं पर दंगाई इलाकों में रहते है, फंस जाते हैं. पूरी कालोनी की चाहे एक गली में दंगा हुआ हो बदनाम पूरी कालोनी वाले हो जाते हैं.
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