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विधानसभा चुनाव 2022: नारे और वादे की जीत

भाजपा ने हिंदुत्व के एजेंडे को सामने रख कर चुनाव लड़ा. इस में लोकलुभावन वादे और नारों की भरमार थी. ‘आप’ के अलावा विपक्ष अपना एजेंडा जनता के सामने रख पाने में असफल रहा. वहीं, नारे और वादे के बल पर चुनाव तो जीते जा सकते हैं पर देश नहीं चलाया जा सकता. देश चलाना एक ‘स्टेट क्राफ्ट’ है, जिस में भाजपा फेल हुई या पास, यह सवाल सदा खड़ा रहेगा.

साल 2024 के भावी लोकसभा चुनाव का सैमीफाइनल माने जाने वाले 5 राज्यों के चुनावों में कांग्रेस अपना एक राज्य पंजाब बचा नहीं पाई जबकि भाजपा अपने 4 राज्य उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मणिपुर और गोवा बचाने में सफल रही है. पौराणिक कथाओं पर सरकार चलाने वालों की जीत हुई है. दलित और पिछड़ों का प्रभाव खत्म होता दिख रहा है.

आम आदमी पार्टी यानी ‘आप’ ने पंजाब का विधानसभा चुनाव जीत कर यह साबित कर दिया कि अगर चुनाव जीतने की कला आती हो तो क्षेत्रीय दल भी कम समय में ही एक राज्य से दूसरे राज्य में अपना प्रभाव बना सकता है. ‘आप’ देश की पहली ऐसी क्षेत्रीय पार्टी बन गई है जो दिल्ली से बाहर पंजाब में अपनी सरकार बनाने में सफल हो गई है.

‘आप’ के नेता अरविंद केजरीवाल भी उसी तरह से ‘हनुमान भक्त’ हैं जैसे भाजपा के लोग ‘राम भक्त’ बनते हैं. धर्म की राजनीति के नारे और वादे से चुनाव जीते जा सकते हैं पर इस से देश का विकास नहीं किया जा सकता. धर्म आधारित राजनीति करने वाले दल कभी भी सब को साथ ले कर चलने की कुशल ‘स्टेट क्राफ्ट’ नहीं सीख पाएंगे. इस की वजह से एकसाथ सभी जातियों और धर्म का विकास नहीं हो पाएगा.

नारे और वादे से चुनाव जीते जा सकते हैं, लोगों का दिल जीत कर उन को एकजुट नहीं किया जा सकता. 5 राज्यों के चुनावों में दलित और पिछड़ों की अगुआई को नकारने का काम किया गया है और जिस के बाद देश 22वीं शताब्दी की जगह वापस पौराणिक युग की तरफ जा रहा है जहां ऋषिमुनियों की अगुआई में राजपाट चलता था.

पौराणिक युग में भी जो लड़ाई जीती गई, वहां भी नारों का प्रभाव था. महाभारत की बात करें तो वहां लड़ाई कौरवों और पाडवों के बीच केवल अपने राज्य पर अधिकार के लिए थी. उस को ‘अधर्म पर धर्म की जीत’ बताया गया. 2022 में विधानसभा चुनाव राज्यों में सरकार बनाने के लिए लड़े व जीते गए. पर इस को हिंदुत्व की जीत के रूप में दिखाया जा रहा है. इस जीत में एक वर्ग खुद को अलगथलग महसूस कर रहा है जो आने वाले समय में रूस और यूक्रेन जैसे हालात पैदा कर सकता है. चुनाव का महत्त्व केवल जीतहार से नहीं होता. इस का देश पर भी व्यापक असर होता है. जो पूरे देश को ले कर एकसाथ चल सके, ऐसी सरकार ही विकास के लिए जरूरी होती है.

कौमेडियन से मुख्यमंत्री बने भगवंत मान

कांग्रेस, अकाली दल और भारतीय जनता पार्टी जैसे दलों को पंजाब की जनता ने पूरी तरह से नकार दिया है. राज्य की कुल 117 सीटों में से आम आदमी पार्टी को 92 सीटें मिली हैं. कांग्रेस 18, अकाली 3 और भाजपा 2 सीटें ही जीत सकी हैं. आम आदमी पार्टी यानी ‘आप’ के नेता भगवंत मान मुख्यमंत्री बने.

मात्र  12वीं कक्षा पास भगवंत मान ने अपना कैरियर कौमेडियन के रूप में शुरू किया था. उन्होंने बीकौम के पहले साल की पढ़ाई की पर ग्रेजुएशन पूरा नहीं किया. कपिल शर्मा के साथ ‘द ग्रेट कौमेडियन लाफ्टर चैलेंज’ टीवी शो में हिस्सा लिया. वहां से वे मशहूर हुए. संगरूर जिले के रहने वाले भगवंत ने इंद्रप्रीत कौर से शादी की. एक पुत्र और एक पुत्री हैं. वर्ष 2015 में भगवंत का पत्नी से तलाक हो गया. फिर भगवंत आम आदमी पार्टी के साथ जुड़े और 2014 में सांसद बने.

मणिपुर की जीत का हीरो है फुटबौलर

मणिपुर ऐसा राज्य है जहां करीब आधी आबादी गैरहिंदू है. यहां ईसाई घोषिततौर पर 41.29 तो मुसलिम 8.40 फीसदी हैं. भाजपा को अब तक घाटी के मैतेई हिंदुओं की पार्टी माना जाता था, जिस का प्रभाव राज्य के कुल क्षेत्रफल के 10 प्रतिशत और 29 सीटों वाले घाटी तक माना जा रहा था. 2022 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने कुल 60 सीटों में 31 सीटों पर जीत दर्ज की है. जीत के हीरो मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह रहे हैं.

नोंगथोम्बम बीरेन सिंह राजनीति में आने से पहले फुटबौल के खिलाड़ी रहे हैं. बीएसएफ से इस्तीफा दे कर एन बीरेन सिंह ने पत्रकारिता को अपना कैरियर बनाया. वर्ष 1992 में उन्होंने ‘नाहरोलगी थौडांग’ नाम से एक स्थानीय दैनिक शुरू किया और 2001 तक उस के संपादक के रूप में काम किया. वे 2002 में राजनीति में शामिल हो गए और डैमोक्रेटिक क्रांतिकारी पीपल्स पार्टी के टिकट पर हेनिंग विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र से विधायक बने.

2007 तक अपनी सीट बरकरार रखी. फरवरी 2012 तक कैबिनेट मंत्री के रूप में काम किया. वर्ष 2016 में वे भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए. वर्ष 2017 में उन्होंने फिर हेनिंग विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव जीता. इस के बाद वे मणिपुर के 12वें मुख्यमंत्री बने. भाजपा और सहयोगियों के 33 विधायकों के साथ सरकार चलाई. अब 2022 में भाजपा की तरफ से चुनाव लड़ व जीत कर राज्य में बहुमत की सरकार बनाने में सफल हुए.

गोवा में 3 पतिपत्नी के जोड़े पहुंचे सदन

40 विधानसभाई सीटों वाले गोवा राज्य में स्थिर सरकार बनना दूर की कौड़ी जैसा लगता था क्योंकि एक भी विधायक के इधरउधर होने से सरकार गिर जाती थी. भाजपा ने वहां तीसरी बार सरकार बनाने में सफलता हासिल की है. 40 सीटों में से 20 सीटें भाजपा ने जीत लीं जबकि 11 कांग्रेस, 2-2 सीटें एमजीपी और आम आदमी पार्टी को मिली हैं. मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत तो चुनाव जीत गए पर उन के दोनों डिप्टी सीएम चुनाव हार गए हैं

गोवा के चुनाव की सब से खास बात यह है कि वहां 3 पतिपत्नी चुनाव जीत कर सदन में पहुंचे हैं.

उत्तराखंड में हारे, उत्तर प्रदेश में बच गए सेनापति

70 सीटों वाले उत्तराखंड में 47 सीटें जीत कर भाजपा ने अपनी सरकार बचा ली लेकिन मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी अपनी सीट हार गए. उत्तराखंड में पहली बार किसी पार्टी को दोबारा सरकार चलाने का बहुमत मिला है. हर 5 साल में सरकार बदल जाती थी. उत्तराखंड के बड़े भाई का दर्जा प्राप्त उत्तर प्रदेश में भी 37 साल के बाद किसी सरकार को दोबारा बहुमत मिला है. वहां मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपनी सीट जीतने में सफल रहे लेकिन डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य चुनाव हार गए.

उत्तर प्रदेश में भाजपा 273 सीटें जीतने में सफल रही है. मजबूत विपक्ष के रूप में समाजवादी पार्टी गठबंधन को 125 सीटें मिली हैं. 31 प्रतिशत वोट पाने के बाद भी वह सत्ता से बाहर है. योगी आदित्यनाथ के रूप में हिंदुत्व की वापसी भले हो गई हो पर वहां दलित, पिछड़े हाशिए पर चले गए हैं. इस का असर आने वाले दिनों में दिखाई देगा.

दलितपिछड़ों के हाशिए पर जाने की सब से बड़ी वजह वे खुद हैं. वे हिंदुत्व के प्रभाव में वोट कर रहे हैं, जिस की वजह से 1980 के दशक में डाक्टर राम मनोहर लोहिया, चौधरी चरण सिंह और कांशीराम ने जिस दलित और पिछड़ा समाज को आगे करने के लिए ‘85 बनाम 15’ का नारा दिया था, वह बिखर गया है. इस का असर केवल उत्तर प्रदेश ही नहीं, पूरे देश की राजनीति पर पड़ेगा. भाजपा के मुकाबले दूसरे दल नारे देने और वादे करने में आगे नहीं आ पा रहे हैं. जबकि, चुनाव जीतने के लिए ऐसे भरोसे की जरूरत होती है. पिछले चुनावों को देखें तो यह बात सम?ा जा सकती है.

नारे और वादों से चुनाव जीत सकते हैं, दिल नहीं

चुनाव जीतने के लिए जरूरी है कि नारे और वादे ऐसे हों जिन से जनता को आकर्षित किया जा सके. वादे पूरे हों या न, पर जनता को लगना चाहिए कि वादा किया जा रहा है. कांग्रेस के शुरुआती दौर को देखें तो यह बात सम?ा जा सकती है. इंदिरा गांधी के जमाने में कांग्रेस इसी तरह से नारे और वादे कर बड़ीबड़ी जीत हासिल करती थी. प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नारे और वादे इतिहास में सब से ज्यादा मशहूर रहे हैं. बैंकों का राष्ट्रीयकरण और पाकिस्तान का विभाजन 2 बड़े काम हैं जो उन के द्वारा किए गए. अपनी इसी क्षमता के कारण दुनिया इंदिरा गांधी की ताकत की कायल थी.

इंदिरा गांधी चुनाव जीतने के लिए बड़े वादे और नारे दे कर काम करती थीं. इंदिरा गांधी के लोकप्रिय नारों में ‘गरीबी हटाओ’ का नारा सब से प्रमुख था. 1971 का यह नारा इतना लोकप्रिय हुआ कि 2022 के विधानसभा चुनावों में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक को इस नारे का जिक्र करना पड़ा.

‘राजा नहीं फकीर है, देश की तकदीर है.’

इंदिरा गांधी के ‘गरीबी हटाओं’ नारे का विपक्षी मजाक भी उड़ाते रहे. इस के बाद भी कांग्रेस का यह सब से लोकप्रिय नारा रहा है. तब से आज तक कांग्रेस कोई ऐसा नारा देने और वादा करने में सफल नहीं हुई जिस की वजह से वह चुनाव जीतने में सफल नहीं हो पा रही है. नारे और वादों के बल पर कैसे मजबूत से मजबूत सरकार गिराई जा सकती है, इस का एक दूसरा बड़ा उदाहरण विश्वनाथ प्रताप सिंह हैं. राजीव गांधी सरकार में वे प्रमुख नेताओं में थे. 1983 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद 1984 में हुए आम चुनाव में राजीव गांधी को सब से बड़ा बहुमत मिला था. राजीव गांधी सरकार को ‘मिस्टर क्लीन’ की उपाधि दी गई. लेकिन 5 साल के अंदर ही राजीव गांधी की छवि खराब होने लगी.

विश्वनाथ प्रताप सिंह ने कांग्रेस को छोड़ कर भ्रष्टाचार के खिलाफ नारा दिया. राजीव गांधी के खिलाफ बोफोर्स घोटाले का नारा बुलंद कर दिया. विश्वनाथ प्रताप सिंह ने जनता दल के नाम से पार्टी बनाई. उन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ नारा दिया- ‘राजा नहीं फकीर है देश की तकदीर है.’ यह नारा काम कर गया और कांग्रेस चुनाव हार गई. विश्वनाथ प्रताप सिंह देश के प्रधानमंत्री बन गए. यह बात और है कि वे बाद में अपने नारे को सही साबित नहीं कर पाए जिस की वजह से विश्वनाथ प्रताप सिंह हाशिए पर पहुंच गए, पर अपने जातेजाते वे मंडल की राजनीति को देश में फैला गए, जिस का व्यापक असर उत्तर प्रदेश और बिहार पर पड़ा.

मंडल कमीशन के प्रभाव से देश में जातीय समरसता की राजनीति शुरू हुई. मंडल की राजनीति में ‘15 बनाम 85’ का नारा दिया गया. 1993 में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का नारा ‘मिले मुलायम कांशीराम, हवा में उड़ गए जय श्रीराम’ चल गया. जिस की वजह से भाजपा 2017 के पहले उत्तर प्रदेश में अपनी बहुमत की सरकार नहीं बना पाई. नारे और वादे बसपा के लिए भी काम करते रहे.

कांशीराम के जमाने के नारों में ‘ठाकुर ब्राह्मण बनिया छोड़, बाकी सब हैं डीएसफोर’ और ‘तिलक तराजू और तलवार, गिनके मारो जूते चार’ बहुत मशहूर थे. इन नारों के दम पर बसपा की नेता मायावती 4 बार उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री बनीं. सपा और बसपा अपने वादे और नारे भूलते गए. दूसरी तरफ भाजपा हिंदुत्व की आड़ में ‘सबका साथ सबका विकास’ का नारा लगा कर सत्ता में आ गई.

सपा हाफ, बसपा साफ

2022 के विधानसभा चुनाव को 2024 के लोकसभा चुनाव का सैमीफाइनल माना जा रहा था. जनता भाजपा के खिलाफ थी. कोरोना, महंगाई, बेरोजगारी जैसे मुद्दे जनता में थे. जनता समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव से उम्मीद लगा रही थी कि वे कोई ऐसा वादा करेंगे, कोई ऐसा नारा देंगे जिस से जनता को यह पता चल सके कि चुनाव जीतने के बाद वे राहत देने का काम करेंगे. पूरे चुनाव में अखिलेश यादव एक भी ऐसा नारा या वादा करने में असफल रहे जिस पर जनता यकीन कर सके. वे केवल यह सोचते रहे कि जनता भाजपा से नाराज हो कर उन को वोट देगी और वे बिना किसी वादे या नारे के मुख्यमंत्री बन जाएंगे.

अखिलेश यादव अक्तूबर 2021 में चुनावी मोड में आते हैं. जब चुनाव को केवल 6 माह से भी कम समय बचा होता है. उन को यह लग रहा था कि यादव और मुसलिम उन के साथ खड़े हो जाएंगे तो यह संख्या 30 प्रतिशत तक हो जाएगी. इस में कुछ जातीय नेताओं को जोड़ लेंगे, तो आराम से 34 से 35 प्रतिशत वोट मिल जाएंगे और वे चुनाव जीत जाएंगे.

2012 में जब अखिलेश यादव मुख्यमंत्री बने थे तो समाजवादी पार्टी को 29 प्रतिशत वोट ही मिले थे. यह आकलन करते समय अखिलेश यह भूल गए कि 2012 में मुकाबला त्रिकोणात्मक था. कांग्रेस का भी वजूद था. ऐसे में वोट आपस में बंट गए. भाजपा उस समय सत्ता में नहीं थी. भाजपा का हिंदुत्व का नारा प्रभावी नहीं था. 2022 में भाजपा का हिंदुत्व प्रभावी था. कांग्रेस और बसपा चुनावी मैदान में मजबूत नहीं थीं. सपा और भाजपा की आमनेसामने की लड़ाई थी. सपा 347 सीटों पर लड़ी और 32 प्रतिशत वोट पा कर भी 111 सीट ही जीत सकी. बसपा 12 प्रतिशत वोट पा कर केवल एक सीट जीत सकी. भाजपा 42 प्रतिशत वोट पा कर 273 सीटें पाने में सफल हुई.

जनता समाजवादी पार्टी के साथ थी लेकिन अखिलेश यादव कोई वादा करने और नारा देने में सफल नहीं हुए. अखिलेश यादव ने राष्ट्रीय लोकदल के साथ गठबंधन किया. उस के नेता जयंत चौधरी के साथ ‘दो युवा की जोड़ी’ बनाई. इस को अखिलेश यादव ने ‘दो लड़कों की जोड़ी’ का नाम दिया. पश्चिम उत्तर प्रदेश भाजपा के लिए सब से कमजोर कड़ी थी. किसान आंदोलन के कारण जाट किसान भाजपा से नाराज थे. कम से कम 25 ऐसे मामले थे जहां भाजपा के विधायकों को गांव के लोगों ने चुनावप्रचार नहीं करने दिया.

जाटों के सामने सब से बड़ी दिक्कत यह थी कि वे यादव जाति के पीछे पिछलग्गू बन कर नहीं चलना चाहते थे. अखिलेश यादव जयंत चौधरी के साथ चुनावप्रचार कर तो रहे थे पर वे जयंत चौधरी को खास महत्त्व नहीं दे रहे थे. जयंत चौधरी से अधिक महत्त्व वे स्वामी प्रसाद मौर्य और ओमप्रकाश राजभर जैसे नेताओं को दे रहे थे. यह बात जाट वोटरों को हजम नहीं हो रही थी.

जाट वोटरों के साथ दूसरी सब से बड़ी दिक्कत यह थी कि वे मुसलिम नेताओं के बढ़ते प्रभाव को स्वीकार नहीं करते हैं. वर्ष 2013 में मुजफ्फरनगर में हुए दंगे के बाद मुसलमानों के साथ जाट और जाटव खड़े नहीं होना चाहते. उधर, यादव और जाटों के बीच दूरियों की पुरानी वजहें हैं. इस की वजह यह थी कि मुलायम सिंह यादव ने अजीत सिंह को हमेशा अपने से कमतर रखने की कोशिश की. हालांकि, मुलायम सिंह यादव ने पूरी राजनीति लोकदल से ही सीखी.

देशहित में नहीं है हिंदुत्व

हिंदुत्व का नारा दे कर भले ही भाजपा ने विधानसभा चुनाव में 4 राज्य उत्तर प्रदेश, मणिपुर, गोवा और उत्तराखंड में सरकार बना ली पर इस से देश का भला नहीं होने वाला. हिंदुत्व का नारा जैसेजैसे उभरता जाएगा, इस का प्रभाव बढ़ता जाएगा और देश का विकास रुकता जाएगा. देश में बेरोजगारी, महंगाई तो  बढ़ेगी ही, धर्म और समाज में भेदभाव व दूरियां भी बढ़ेंगी.

हिंदुत्व के नाम पर जिस तरह से मुसलमानों के खिलाफ एक गोलबंदी को अंजाम दिया जा रहा है, वह डराने वाला है. भले ही मुसलमान देश में अभी 25 करोड़ हों पर देश के विकास में उन का योगदान है. अगर सरकार बनाने के कारण इस वर्ग को पूरे समाज से दूर किया गया, अलग किया गया तो भारत की हालत रूस और यूक्रेन जैसी होते देर न लगेगी.

आज जो रूस और यूक्रेन एकदूसरे के जानी दुश्मन बने हैं, वे दोनों कभी एक ही देश सोवियत संघ का हिस्सा होते थे. 1991 में यूक्रेन के अलग होने के बाद से दोनों देशों के बीच विवाद शुरू हो गया. विवाद तब और बढ़ गया जब यूक्रेन से रूसी समर्थक राष्ट्रपति को हटा दिया गया.

रूस नहीं चाहता कि यूक्रेन नाटो में शामिल हो, क्योंकि रूस को लगता है कि अगर ऐसा हुआ तो नाटो के सैनिक और ठिकाने उस की सीमा के पास आ कर खड़े हो जाएंगे. रूस और यूक्रेन के बीच तनाव बढ़ गया और फिर युद्ध शुरू हो गया. यूक्रेन पर हमला करने के बाद पूरी दुनिया में रूस अलगथलग पड़ गया. लोग उस की विस्तारवादी नीतियों की आलोचना करने लगे. यूक्रेन रूस के बीच की जंग विश्वयुद्ध की आहट देने लगी, जिस का प्रभाव यूक्रेन से अधिक रूस पर पड़ रहा है.

‘स्टेट क्राफ्ट’ है सब का साथ

किसी भी देश और समाज के छोटे से हिस्से को जब अलगथलग किया जाता है तो ऐसे हालात पैदा हो जाते हैं जो देश और समाज के हित के नहीं होते हैं. इसी वजह से आजादी के समय भारत में भी बंटवारा हुआ और उस का दर्द अभी तक भुगतना पड़ रहा है. कश्मीर समस्या का जो हल अनुच्छेद 377 हटा कर किया गया है उस का असर क्या होगा, यह भविष्य की गर्त में है. यहां अगर आपसी मेलमिलाप से काम नहीं लिया गया तो अलगाववादी ताकतों को मौका मिलेगा. चुनाव के जरिए ‘स्टेट क्राफ्ट’ का यह काम होता है कि वह हर जाति और धर्म को साथ ले कर चले. सब को उचित प्रतिनिधित्व मिले. संविधान ने इसी मंशा के साथ चुनाव में सुरक्षित सीटों को ससंद और विधानसभा में आरक्षण दिया था.

देश की सरकार चलाने के लिए चुनाव जीतना एक अलग बात है. नारे और वादे के बल पर चुनाव जीते जा सकते हैं पर देश नहीं चलाया जा सकता. देश चलाना एक ‘स्टेट क्राफ्ट’ है. जिस में ‘सब का साथ सब का विकास’ का नारा देने से काम नहीं चलता. इस में सही मानो में सब को साथ ले कर चलना पड़ता है. मुसलमानों को अलगथलग कर के चुनाव जीता जा सकता है पर देश को नहीं चलाया जा सकता. ऐसे में देश में रहने वाले हर जाति व धर्म के लोगों को यह सम?ाना होगा कि देश के विकास में उन का अपना रोल बेहद अहम है. वे खुद को अलगथलग महसूस न करें.

हिंदुत्व के नारे के साथ यह संभव नहीं है. यही वजह है कि 2014 के बाद भारतीय जनता पार्टी एकएक कर के कई चुनाव जीत चुकी है. इस के बाद भी वह 25 करोड़ लोगों का भरोसा नहीं जीत पाई है. भाजपा को यह ‘स्टेट क्राफ्ट’ सीखना होगा जिस के बल पर वह पूरे समाज और हर जाति व धर्म के लोगों को साथ ले कर चल सके. अगर ऐसा नहीं हुआ तो रूस और यूक्रेन जैसे हालात कभी भी सामने खड़े हो सकते हैं. ऐसे में जरूरी है कि पूरे समाज को साथ ले कर चलने वाली योजनाएं बनें.

चाहत: क्यों हो गया रंजीता और मेनका का तलाक

मातापिता की मरजी के खिलाफ मेनका ने रंजीत से विवाह तो कर लिया पर उस का साथ वह अधिक समय तक निभा नहीं पाई और उस से तलाक ले लिया. लेकिन फिर ऐसी कौन सी घटना घटी जिस ने मेनका को वापस रंजीत की चाहत में गिरफ्तार कर दिया?

चाहत: भाग 1

Writer- रमणी मोटाना

नववर्ष के आगमन पर क्लब दुलहन की तरह सजाया गया था. बिजली के रंगीन बल्बों की रोशनी से सारा प्रांगण जगमगा रहा था. क्लब के बार में दोस्तों के साथ बैठे रंजीत की नजर एक युवती पर पड़ी जो अपनी सहेलियों के साथ खिलखिला कर हंसती हुई पास से गुजर गई.

‘‘यार, यह हसीना कौन है?’’ रंजीत ने अपने दोस्तों से पूछा.

‘‘यह मेनका है. अपने मांबाप के साथ पुणे से आई और जनरल मल्होत्रा की मेहमान है,’’ उस के दोस्त पवन ने कहा.

‘‘तभी तो, मैं भी चकराया कि इस हसीन चेहरे पर पहले कभी नजर क्यों नहीं पड़ी.’’

‘‘बाबू, यह तेरी पहुंच से बाहर है. सेठ अमरचंद का नाम सुना है कभी? वही जिन की कपड़ों की कई मिले हैं. यह उन की एकलौती बेटी है. अमरचंद करोड़पति हैं.’’

‘‘अरे, वह करोड़पति है तो हम भी कोई गएगुजरे नहीं हैं,’’ रंजीत ने छाती फुला कर कहा, ‘‘हम फौजी हैं, देश के रखवाले.’’

पवन रंजीत के कंधे पर हाथ रख कर बोला, ‘‘मेरे फौजी भाई, यहां तेरी दाल नहीं गलने वाली.’’

‘‘देखा जाएगा.’’

तभी हौल में डांस का बैंड बजने लगा. जोड़े उठउठ कर डांस करने लगे.

कुछ देर बाद माइक पर घोषणा हुई कि डांस का अगला कार्यक्रम लेडीज चौइस का है, यानी महिलाएं अपना डांस पार्टनर खुद ही चुनेंगी तो आगे आइए और अपने पसंदीदा पार्टनर का चुनाव कीजिए.

मौका ताड़ कर रंजीत मेनका के सामने जा खड़ा हुआ.

‘‘मैडम, क्या आप को इस जमघट में कोई भी नौजवान पसंद नहीं आया?’’ रंजीत ने पूछा.

मेनका हैरानी से उस की ओर देख कर बोली, ‘‘आप की तारीफ?’’

‘‘खाकसार का नाम रंजीत है. अगर इस डांस के लिए आप ने मु?ो चुना तो मैं आप का आभारी रहूंगा.’’

मेनका धीरे से मुसकराई और उठ कर डांसफ्लोर पर आ गई. अब वह और रंजीत आमनेसामने नृत्य करने लगे. कुछ देर बाद रंजीत ने बैंड वालों को कुछ इशारा किया तो वे एक धीमी रोमांटिक धुन बजाने लगे.

रंजीत ने मेनका को बांहों में ले लिया. संगीत की मदभरी धुन और कमरे की कम रोशनी ने तो वहां के वातावरण में एक रूमानी माहौल पैदा कर दिया.

‘‘क्या हम दोबारा मिल सकते हैं?’’ रंजीत ने पूछा.

‘‘यह मुमकिन नहीं, मैं पुणे में रहती हूं.’’

‘‘पुणे मुंबई से कितना ही दूर है. वैसे, पुणे मेरा जानापहचाना शहर है. मैं ने खड़कवासला से सैनिक प्रशिक्षण पूरा किया है.’’

मेनका के मातापिता की नजर अपनी बेटी पर ही टिकी हुई थी.

‘‘यार, मल्होत्रा,’’ अमरचंद बोले, ‘‘यह लड़का कौन है जो मेनका के साथ डांस कर रहा है?’’

‘‘यह कैप्टन रंजीत है. बड़ा ही दिलेर और होनहार जवान है.’’

‘‘यह मेरी बेटी में कुछ ज्यादा ही दिलचस्पी ले रहा है,’’ अमरचंद बोले, ‘‘देखो न, बैंड ने एक के बाद एक कई धुनें बजाईं पर इस ने मेनका के साथ डांस करना बंद नहीं किया.’’

‘‘मेरा खयाल है कि अब हमें चलना चाहिए,’’ अमरचंद की पत्नी अमिता बोली, ‘‘बहुत रात हो गई है.’’

‘‘अरे वाह, बगैर 12 का बजर हुए और बिना नववर्ष का अभिनंदन किए हम आप को कैसे जाने दे सकते हैं?’’ जनरल मल्होत्रा बोले.

तभी एकाएक 12 का घंटा बजना शुरू हुआ. सभी बत्तियां गुल कर दी गईं. हाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा.

रंजीत मेनका के गाल को चूम कर धीरे से बोला, ‘‘आप के जीवन में नववर्ष मंगलमय हो.’’

मेनका ने आंखें तरेर कर उसे देखा और बोली, ‘‘यह क्या बदतमीजी है?’’

‘‘माफ कीजिए, मैं इंग्लिश तरीके से आप को नए साल की शुभकामनाएं दे रहा था.’’

तभी हौल रोशनी से जगमगा गया. रंजीत मेनका को छोड़ कर जनरल मल्होत्रा के पास आ गया. उन्हें एक सैल्यूट मारा और अदब से खड़ा हो गया.

‘‘हैलो, रंजीत, कैसे हो?’’ जनरल मल्होत्रा आत्मीयता से बोले.

‘‘अच्छा हूं.’’

‘‘मल्होत्रा, अब हम चलते हैं,’’ अमरचंद उठ खड़े हुए.

‘‘ठीक है,’’ जनरल मल्होत्रा बोले, ‘‘कल का हमारा गोल्फ खेलने का कार्यक्रम पक्का है न?’’

‘‘हां, कल ठीक 7 बजे हम गोल्फ क्लब पर मिलेंगे और हमारी श्रीमतीजी भाभीजी को ले कर शौपिंग कराने जाएंगी.’’

दूसरे दिन मेनका के घर फोन बज उठा.

‘‘हैलो,’’ मेनका बोली.

‘‘जी, मैं रंजीत बोल रहा हूं.’’

‘‘ओह, आप हैं, कहिए?’’ मेनका ने रुखाई से कहा.

‘‘मैं कल रात की घटना के लिए माफी मांगना चाहता हूं. दरअसल, कल रात मैं नशे में था.’’

‘‘नशे में तो आप नहीं थे, पर खैर, मैं ने आप को माफ किया.’’

‘‘नहीं, ऐसे नहीं. मु?ो एक बार आप मिलने का मौका दीजिए ताकि मैं ढंग से माफी मांग सकूं.’’

‘‘ओह, आप तो पीछे ही पड़ गए. मैं आप को बता दूं कि मेरे मांबाप मु?ो किसी अनजान लड़के से मिलने की इजाजत नहीं देते.’’

‘‘लेकिन अभी तो वे दोनों घर पर नहीं हैं. डैडी गोल्फ खेलने गए हैं और मम्मी शौपिंग करने गई हैं,’’ फिर रंजीत ने जोर दे कर कहा, ‘‘मैं आप के बंगले के बाहर ही खड़ा मोबाइल से बोल रहा हूं. आप आ रही हैं न?’’

मेनका बाहर आई तो रंजीत ने कहा, ‘‘मेरे पास कार तो नहीं है पर एक खटारा मोटरसाइकिल है, चलेगा?’’

‘‘चलेगा.’’

‘‘अब बताइए, कहां चलना है? रैस्तरां में बैठ कर कौफी पीनी है या जुहू की रेत पर टहलना है?’’

‘‘दोनों,’’ मेनका बोली और इसी के साथ मोटरसाइकिल सड़क पर दौड़ने लगी.

जब वे लौटने लगे तो रंजीत ने पूछा, ‘‘अब कब मिलना होगा?’’

‘‘शायद कभी नहीं, कल हम लोग पुणे चले जाएंगे.’’

‘‘देखिए, मु?ा गरीब पर

तरस खाइए, फौजी

हूं. कब सीमा पर भेज दिया जाऊं, कब देश की खातिर लड़तेलड़ते शहीद हो जाऊं, कुछ कह नहीं सकता. एक देशभक्त नागरिक होने के नाते आप का फर्ज बनता है कि आप इस फौजी को कुछ सुनहरी यादें प्रदान करें.’’

कुछ महीने बाद मेनका बोली, ‘‘रंजीत, इस तरह चोरीछिपे हम कब तक मिलते रहेंगे? तुम पापा से शादी की बात क्यों नहीं करते?’’

‘‘ठीक है, इसी सप्ताह मैं पुणे आता हूं, लेकिन क्या तुम्हें लगता है कि पापा मान जाएंगे.’’

‘‘आसानी से तो नहीं मानेंगे बल्कि मु?ो तो डर है कि तुम्हारी बात सुनते ही एक ऐसा विस्फोट होगा कि तुम्हें लगेगा कि तीसरा महायुद्ध शुरू हो गया,’’ मेनका हंसते हुए बोली.

अगले सप्ताह रंजीत पुणे गया और उस की मुलाकात मेनका के पिता अमरचंद से हुई. रंजीत की बातें सुन कर वे गुस्से से फट पड़े.

‘‘नहीं, यह नहीं हो सकता,’’ अमरचंद बोले, ‘‘मैं अपनी एकलौती लड़की का हाथ एक फौजी के हाथ में नहीं दे सकता.’’

‘‘सर, फौजी होने में क्या खराबी है?’’

‘‘खराबी कुछ नहीं है पर हमेशा मौत से जू?ाने वालों के परिवार पर क्या बीतती है, यह तुम अच्छी तरह से जानते हो. हां, अगर तुम आर्मी छोड़ कर मेरे साथ व्यापार में हाथ बंटाओ तो इस बारे में कुछ सोच सकता हूं.’’

‘‘नहीं, सर, मैं फौज की नौकरी नहीं छोड़ना चाहता,’’ इतना कह कर रंजीत वहां से चला गया.

इस घटना के कई दिनों बाद एक दिन सुबह मेनका का फोन रंजीत के पास आया.

‘‘रंजीत, मु?ा पर कड़ा पहरा बैठा दिया गया है. मैं ?घर में नजरबंद हूं. मुंबई तो क्या, मैं घर से बाहर भी नहीं निकल सकती और पापा आजकल मेरे लिए जोरशोर से लड़का ढूंढ़ने में लगे हुए हैं.’’

‘‘मेनका, क्या तुम एक दिन के लिए मुंबई आ सकती हो?’’

‘‘कोशिश करूंगी, पापा को पटाना पड़ेगा. उन की अगले महीने मुंबई में मीटिंग है.’’

मेनका अपने पापा के साथ मुंबई आई. दोनों अपने जुहू वाले बंगले में रुके थे. उस के पापा तैयार हो कर मीटिंग में चले गए तथा वह रंजीत के साथ निकल पड़ी. दोनों ने आर्य समाज मंदिर में जा कर शादी कर ली.

सेठ अमरचंद अपने कमरे में बैठे सिगार का कश भर रहे थे कि मेनका ने कमरे में प्रवेश किया.

‘‘पापा, यह लीजिए मिठाई.’’

‘‘अरे, यह मिठाई किस खुशी में? वे चौंक कर बेटी की ओर देख कर बोले, ‘‘मेनका, तुम ने शादी कर ली क्या?’’

‘‘हां, पापा,’’ मेनका कांपते हृदय से बोली और नजरें ?ाका लीं.

‘‘रंजीत कहां है?’’ अमरचंद ने पूछा.

‘‘बाहर खड़े हैं.’’

‘‘बुलाओ उसे,’’ अमरचंद बोले, ‘‘जब तुम लोगों ने अपने मन की कर ली है तो अब डर किस बात का?’’

समय गुजरता गया. अब रंजीत व मेनका की खुशियों का प्याला छलछला रहा था. उन के घर एक बेटे का जन्म हुआ. पुत्र निखिल को पा कर रंजीत फूला न समाया.

उस रोज मेनका का जन्मदिन था. रंजीत ने बाजार से फूलों का गुलदस्ता और मोतियों का एक हार खरीदा और गुनगुनाता हुआ घर में दाखिल हुआ, लेकिन घर में अंधेरा देख कर वह चौंक पड़ा. बारबार उस के दिमाग में एक ही प्रश्न उठता कि आखिर वह बिना बताए गई कहां.

समय बीतता गया. धीरेधीरे रंजीत का पारा चढ़ने लगा. वह होंठ चबाता, गुस्से में उफनता बैठा रहा. जब बहुत देर हो गई तो गिलास में शराब का पैग बना कर पीने लगा.

Summer Special: हेल्थ के लिए गुणों की खान है खीरा

*    पेट की गैस, एसिडिटी, छाती की जलन में नियमित रूप से खीरा खाना लाभप्रद होता है

*    जो लोग मोटापे से परेशान रहते हैं उन्हें सवेरे इसका सेवन करना चाहिए. इससे वे पूरे दिन अपने आपको फ्रेश महसूस करेंगे. खीरा हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी बढ़ाता है.

*    खीरे को भोजन में सलाद के रूप में अवश्य लेना चाहिए. नमक, काली मिर्च व नींबू डालकर खाने से भोजन आसानी से पचता है व भूख भी बढ़ती है.

*    कील मुंहासों, धब्बों व झाइयों पर खीरे का रस लगाना लाभप्रद होता है.

*    यदि आंखों के नीचे काले घेरे बन गए हैं तो खीरे के गोल-गोल टुकड़े काट कर आंखों पर रखें. इससे आंखों को भी ठंडक मिलेगी व कालापन भी दूर होगा. खीरे के रस में दूध, शहद व नींबू मिलाकर चेहरे व हाथ पैर पर लगाने से त्वचा मुलायम व कांतिवान हो जाती है.

*    खीरे में विटामिन बी और कार्बोहाइड्रेट होता है, जो तुरंत एनर्जी देता है. यह फैट्स कम करता है. साथ ही यह सिरदर्द भगाने और मुंह की दुर्र्गंध दूर करने में भी काम आता है. इसे खाना डायबिटीज, किडनी, लीवर आदि की बीमारियों में भी लाभदायक है.

*    भोजन के साथ ही खीरा अन्य कार्र्यों में भी उपयोगी है. इससे आप स्टील के बर्तनों पर पड़े पुराने दाग मिटा सकते हैं. साथ ही यह कपड़ों से पेन के दाग मिटाने के काम भी आता है.

*    खीरे की तासीर ठंडी होती है.  यह त्वचा के लिए काफी लाभदायक होता है. इसका रस चेहरे पर लगाने से चमक आती है. इसमें फाइटो केमिकल होता है, जिससे झुर्रियां कम होती हैं.

*    खीरे में विटामिन बी, फोलिक एसिड, कैल्शियम, आयरन, मैगनीशियम, फासफोरस, मिनरल और जिंक जैसे कई तत्व होते हैं, जो हमारे शरीर के पोषण के लिए महत्वपूर्ण होते हैं.

*    आयुर्वेद के अनुसार खीरा स्वादिष्ट, शीतल, प्यास, दाहपित्त तथा रक्तपित्त दूर करने वाला रक्त विकार नाशक है.

*    आप यदि उदर विकार से परेशान हैं तो दही में खीरे को कसकर उसमें पुदीना, काला नमक, काली मिर्च, जीरा व हींग डालकर रायता बनाकर खाएं. आराम मिलेगा.

*    घुटनों के दर्द को भी दूर भगाता है खीरे का सेवन. घुटनों के दर्द वाले व्यक्ति को खीरे अधिक खाने चाहिए तथा साथ में एक लहसुन की कली भी खा लेनी चाहिए.

*    पथरी के रोगी को खीरे का रस दिन में दो-तीन बार जरूर पीना चाहिए. इससे पेशाब में होने वाली जलन व रूकावट दूर होती है.

*    खीरे के रस में नींबू मिलाकर चेहरे पर लगाने से चेहरे के रंग में निखार आता है.

 सावधानियां  बरतें :-

खीरे का उपयोग करते समय कुछ सावधानियां भी बरतें…

*    खीरा कभी भी बासी न खाएं.

*    जब भी खीरा खरीदें यह जरूर देख लें कि वह कहीं से गला हुआ न हो.

*    खीरे का सेवन रात में न करें. जहां तक हो सके, दिन में ही इसे खाएं.

*    खीरे के सेवन के तुरंत बाद पानी न पिएं खीरा बहुत गुणकारी है, यह तो सभी जानते हैं. फिर भी खीरे के  कई गुण हैं, जिनसे हम अनजान हैं.

 खीरा एक है गुणकारी अनेक !

गर्मियों के दिनी में खीर का अपना ही महत्त्व है, यह बाजार में सर्वत्र मिलता है. खीरे का सेवन भारत में उत्तर से लेकर दक्षिण भारत तक किया जाता है. खीरा देश के हर भाग में उपलब्ध है. पहाड़ों में इसका आकार बड़ा होता है. खीरा सुपाच्य, शीतल व तरावट से भरपूर होता है. खीरे की तासीर ठंडी होती है.खीरा व ककड़ी एक ही प्रजाति के फल हैं.

खीरे में विटामिन बी व सी, पोटेशियम, फास्फोरस, आयरन आदि विद्यमान होते हैं. खीरा कब्ज से मुक्ति दिलता है. खीरे में जल का अंश बहुत अधिक मात्रा में होता है इसलिए बार-बार प्यास लगने पर इसका सेवन हमें प्यास में राहत पहुंचाता है.

आइये जानते है खीरे के बारे में कुछ अहम बातें…

सेहत के लिए फायदेमंद रसायनों का मिश्रण है खीरा

खीरे में विटामिन बी, बी-2, बी-3, बी-5, बी-6, सी, फोलिक एसिड, कैल्शियम, आयरन, मैगनीशियम, फासफोरस, मिनरल और जिंक जैसे न जाने कितने ऐसे पोषक तत्व होते हैं, जो हमारे शरीर को जरूरी पोषण देते हैं. इसमें कैलोरी भी बहुत कम होती है. ऑफिस में शाम को भूख लगने पर इससे भूख मिटाई जा सकती है.

हर मौसम में उगाया जाता है

यह हर प्रकार की भूमियों में जिनमें जल निकास का उचित प्रबन्ध हो,उगाया जाता है. इसकी खेती हल्की अम्लीय भूमियों जिनका पी.एच. 6-7 के मध्य हो, में की जा सकती है. अच्छी उपज हेतु जीवांश पदार्थयुक्त दोमट भूमि सर्वोत्तम होती है. इसकी फसल जायद तथा वर्षा में ली जाती है. अत: उच्च तापक्रम में अच्छी वृद्धि होती है , यह पाले को नहीं सहन कर पाता, इसलिए इसको पाले से बचाकर रखना चाहिए.

जिंदगी मेरे घर आना

दफ्तर में नए जनरल मैनेजर आने वाले थे. हर जबान पर यही चर्चा थी. पुराने जाने वाले थे. दफ्तर के सभी साहब और बाबू यह पता करने की कोशिश में थे कि कहां से तबादला हो कर आ रहे हैं. स्वभाव कैसा है, कितने बच्चे हैं इत्यादि. परंतु कोई खास जानकारी किसी के हाथ नहीं लग रही थी. अलबत्ता उन के तबादलों का इतिहास बड़ा समृद्ध था, यह सब को समझ आने लगा था.

नियत दिन नए मैनेजर ने दफ्तर जौइन किया तो खूब स्वागत किया गया. पुराने मैनेजर को भी बड़े ही सौहार्दपूर्ण ढंग से बिदा किया.

शशांक साहब यानी जनरल मैनेजर वातानुकूलित चैंबर में भी पसीनापसीना होते रहते. न जाने क्यों हर आनेजाने वाले से शंकित निगाहों से बात करते. लोगों में उन का यह व्यवहार करना कुतूहल का विषय था. पर धीरेधीरे दफ्तर के लोग उन के सहयोगपूर्ण और अहंकार रहित व्यवहार के कायल होते गए.

1 महीने की छुट्टी पर गया नीरज जब दफ्तर में आया तो शशांक साहब को नए जनरल मैनेजर के रूप में देख पुलकित हो उठा, क्योंकि वह उन के साथ काम कर चुका था. वैसे ही शंकित रहने वाले साहब नीरज को देख और ज्यादा शंकित दिखने लगे थे. बड़े ही ठंडे उत्साह से उन्होंने नीरज से हाथ मिलाया और फिर तुरंत अपने काम में व्यस्त हो गए.

मगर ज्यों ही नीरज उन से मिलने के बाद चैंबर से बाहर गया, उन के कान दरवाजे पर ही अटक गए. शशांक को महसूस हुआ कि बाहर अचानक जोर के ठहाकों की गूंज हुई. वे वातानुकूलित चैंबर में भी पसीनापसीना हो गए कि न जाने नीरज क्या बता रहा होगा.

अब उन का ध्यान सामने पड़ी फाइलों में नहीं लग रहा था. घड़ी की तरफ देखा. अभी 12 ही बजे थे. मन हुआ घर चले जाएं, फिर सोचा घर जा कर भी अभी से क्या करना है. कोई अरुणा थोड़े है घर में…

‘शायद नीरज अब तक बता चुका होगा. न जाने क्याक्या बताया होगा उस ने. क्या उसे असली बात मालूम होगी,’ शशांक साहब सोच रहे थे, ‘क्या नीरज भी यही समझता होगा कि मैं ने अरुणा को मारा होगा?’

यह सोचते हुए शशांक की यादों का गंदा पिटारा खुलने को बेचैन होने लगा. अधेड़ हो चले शशांक ने वर्तमान का पेपरवेट रखने की कोशिश की कि अतीत के पन्ने कहीं पलट न जाएं पर जो बीत गई सो बात गई का ताला स्मृतियों के पिटारे पर टिक न पाया. काले, जहरीले अशांत सालों के काले धुएं ने आखिर उसे अपनी गिरफ्त में ले ही लिया…

शादी के तुरंत बाद की ही बात थी.

‘‘अरुणा तुम कितनी सुंदर हो, तुम्हें जब देखता हूं तो अपनी मां को मन ही मन धन्यवाद करता हूं कि उन्होंने तुम्हें मेरे लिए चुना.’’

अरुणा के लाल होते जा रहे गालों और झुकती पलकों ने शशांक की दीवानगी को और हवा दे दी.

क्या दिन थे वे भी. सोने के दिन और चांदी की रातें. शशांक की डायरी के पन्ने उन दिनों कुछ यों भरे जा रहे थे.

‘‘जीत लिखूं या हार लिखूं या दिल का सारा प्यार लिखूं,

मैं अपने सब जज्बात लिखूं या सपनों की सौगात लिखूं,

मैं खिलता सूरज आज लिखूं या चेहरा चांद गुलाब लिखूं,

वो डूबते सूरज को देखूं या उगते फूल की सांस लिखूं.’’

दिल से बेहद नर्म और संवेदनशील शशांक के विपरीत अरुणा में व्यावहारिकता अधिक थी. तभी तो उस ने उस छोटी सी मनीऔर्डर रसीद को ही ज्यादा तवज्जो दी.

‘‘शशांक ये 2 हजार रुपए आप ने किस को भेजे हैं?’’ उस दिन अरुणा ने पहली बार पूछा था.

‘‘यह रसीद तो मेरी डायरी में थी. इस का मतलब तुम ने अपने ऊपर लिखी मेरी सारी कविताओं को पढ़ लिया होगा?’’ शशांक ने उसे निकट खींचते हुए कहा.

‘‘अपनी मां को भेजे हैं, हर महीने भेजता हूं उन के हाथ खर्च हेतु.’’

शशांक ने सहजता से कहा और फिर अपने दफ्तर के किस्से अरुणा को सुनाने लगा.

पर शायद उस ने अचानक बदलने वाली फिजा पर गौर नहीं किया. चंद्रमुखी से सूरजमुखी का दौर शुरू हो चुका था, जिस की आहट कवि हृदय शशांक को सुनाई नहीं दे रही थी. अब आए दिन अरुणा की नईनई फरमाइशें शुरू हो गई थीं.

‘‘अरुणा इस महीने नए परदे नहीं खरीद सकेंगे. अगले महीने ही ले लेना. वैसे भी ये गुलाबी परदे तुम्हारे गालों से मैच करते कितने सुंदर हैं.’’

शशांक चाहता था कि अरुणा एक बजट बना कर चले. मां को पैसे भेजने के बाद बचे सारे पैसे वह उस की हथेली पर रख कर निश्चिंत रहना चाहता था.

‘‘तुम्हारे पिताजी तो कमाते ही हैं. फिर तुम्हारी मां को तुम से भी पैसे लेने की क्या जरूरत है?’’ अरुणा के शब्दबाण छूटने लगे थे.

‘‘अरुणा, पिताजी की आय इतनी नहीं है. फिर बहुत कर्ज भी है. मुझे पढ़ाने, साहब बनाने में मां ने अपनी इच्छाओं का सदा दमन किया है. अब जब मैं साहब बन गया हूं, तो मेरा यह फर्ज है कि मैं उन की अधूरी इच्छाओं को पूरा करूं.’’

शशांक ने सफाई दी थी. परंतु अरुणा मुट्ठी में आए 10 हजार को छोड़ उन 2 हजार के लिए ही अपनी सारी शांति भंग करने लगी. उन दिनों 10-12 हजार तनख्वाह कम नहीं होती थी. पर शायद खुशी और शांति के लिए धन से अधिक समझदारी की जरूरत होती है, विवेक की जरूरत होती है. यहीं से शशांक और अरुणा की सोच में रोज का टकराव होने लगा. गुलाबी डायरी के वे पन्ने जिन में कभी सौंदर्यरस की कविताएं पनाह लेती थीं, मुहब्बत के भीगे गुलाब महकते थे, अब नूनतेललकड़ी के हिसाबकिताब की बदबू से सूखने लगे थे.

शेरोशायरी छोड़ शशांक फुरसत के पलों में बीवी को खुश रखने के नुसखे और अधिक से अधिक कमाई करने के तरीके सोचता. नन्हा कौशल अरुणा और शशांक के मध्य एक मजबूत कड़ी था. परंतु उस की किलकारियां तब असफल हो जातीं जब अरुणा को नाराजगी के दौरे आते. सौम्य, पारदर्शी हृदय का स्वामी शशांक अब गृह व मानसिक शांति हेतु बातों को छिपाने में खासकर अपने मातापिता से संबंधित बातों को छिपाने में माहिर होने लगा.

उस दिन अरुणा सुबह से ही कुछ खास सफाई में लगी हुई थी. पर सफाई कम जासूसी अधिक थी.

‘‘यह तुम्हारे बाबूजी की 2 महीने पहले की चिट्ठी मिली मुझे. इस में इन्होंने तुम से 10 हजार रुपए मांगे हैं. तुम ने भेज तो नहीं दिए?’’

अरुणा के इस प्रश्न पर शशांक का चेहरा उड़ सा गया. पैसे तो उस ने वाकई भेजे थे, पर अरुणा गुस्सा न हो जाए, इसलिए उसे नहीं बताया था. पिछले दिनों उसे तरक्की और एरियर मिला था. इसलिए घर की मरम्मत हेतु बाबूजी को भेज दिए थे.

अरुणा आवेश में आ गई, क्योंकि शशांक का निर्दोष चेहरा झूठ छिपा नहीं पाता था.

‘‘रुको, मैं तुम्हें बताती हूं… ऐसा सबक सिखाऊंगी कि जिंदगी भर याद रखोगे…’’

उस वक्त तक शशांक की सैलरी में अच्छीखासी बढ़ोतरी हो चुकी थी पर अरुणा उन 10 हजार के लिए अपने प्राण देने पर उतारू हो गई थी. आए दिन उस की आत्महत्या की धमकियों से शशांक अब ऊबने लगा था.

सूरजमुखी का अब बस ज्वालामुखी बनना ही शेष था. अरुणा का बड़बड़ाना शुरू हो गया था. शशांक ने नन्हे कौशल का हाथ पकड़ा और उसे स्कूल छोड़ते हुए दफ्तर के लिए निकल गया. अभी दफ्तर पहुंचा ही था कि उस के सहकर्मी ने बताया, ‘‘जल्दी घर जाओ, तुम्हारे पड़ोसी का फोन आया था. भाभीजी बुरी तरह जल गई हैं.’’

बुरी तरह से जली अरुणा अगले 10 दिनों तक बर्न वार्ड में तड़पती रही.

‘‘मैं ने सिर्फ तुम्हें डराने के लिए हलकी सी कोशिश की थी… मुझे बचा लो शशांक,’’ अरुणा बोली.

जाती हुई अरुणा यही बोली थी. अपनी क्रोधाग्नि की ज्वाला में उस ने सिर्फ स्वयं को ही स्वाहा नहीं किया, बल्कि शशांक और कौशल की जिंदगी की समस्त खुशियों और भविष्य को भी खाक कर दिया था. लोकल अखबारों में, समाज में अरुणा की मौत को सब ने अपनी सोच अनुसार रंग दिया. रोने का मानो वक्त ही नहीं मिला. कानूनी पचड़ों के चक्रव्यूह से जब शशांक बाहर निकला तो नन्हे कौशल और अपनी नौकरी की सुधबुध आई. उस के मातापिता अरुणा की मौत के कारणों और वजह के लांछनों से उबर ही नहीं पाए. कुछ महीनों के भीतर ही दोनों की मौत हो गई.

बच गए दोनों बापबेटे, दुख, विछोह, आत्मग्लानि के दरिया में सराबोर. अरुणा नाम की उन की बीवी, मां ने उन के सुखी और शांत जीवन में एक भूचाल सा ला दिया था. खुदगर्ज ने अपना तो फर्ज निभाया नहीं उलटे अपनों के पूरे जीवन को भी कठघरे में बंद कर दिया था. उस कठघरे में कैद बरसोंबरस शशांक हर सामने वाले को कैफियत देता आया था. घृणा हो गई थी उसे अरुणा से, अरुणा की यादों से. भागता फिरने लगा था किसी ऐसे कोने की तलाश में जहां कोई उसे न जानता हो.

अरुणा का यों जाना शशांक के साथसाथ कौशल के भी आत्मविश्वास को गिरा गया था. 14 वर्षीय कौशल आज भी हकलाता था. बरसों उस ने रात के अंधेरे में अपने पिता को एक डायरी सीने से लगाए रोते देखा था. जाने बच्चे ने क्याक्या झेला था.

एक दिन शशांक ने ध्यान दिया कि कौशल बहुत देर से उसे घूर रहा है. अत: उस ने

पूछा, ‘‘क्या हुआ कौशल? कुछ काम है मुझ से?’’

‘‘प…प…पापा क…क… क्या आप ने म…म… मम्मी को मारा था?’’ हकलाते हुए कौशल ने पूछा.

‘‘किस ने कहा तुम से? बकवास है यह. मैं तुम्हारी मां से बहुत प्यार करता था. उस ने खुद ही…’’ बोझिल हो शशांक ने थकेहारे शब्दों में कहा.

‘‘व…व…वह रोहित है न, वह क…क… कह रहा था तुम्हारे प…प..पापामम्मी में बनती नहीं थी सो एक दिन तुम्हारे प…प…पापा ने उन्हें ज…ज… जला दिया,’’ कौशल ने प्रश्नवाचक निगाहों से कहा. उस की आंखें अभी भी शंकित ही थीं.

यही शंकाआशंका शशांक के जीवन में भी उतर गई थी. अपनी तरफ उठती हर निगाह उसे प्रश्न पूछती सी लगती कि क्या तुम ने अपनी बीवी को जला दिया? क्या अरुणा का कोई पूर्व प्रेमी था? क्या अरुणा के पिताजी ने दहेज नहीं दिया था?

जितने लोग उतनी बातें. आशंकाओं और लांछनों का सिलसिला… भागता रहा था शशांक एक जगह से दूसरी जगह बेटे को ले कर. अब थक गया था. वह कहते हैं न कि एक सीमा के बाद दर्द बेअसर होने लगता है.

बड़ी ही तीव्र गति से शशांक का मन बेकाबू रथ सा भूतकाल के पथ पर दौड़ा जा रहा था. चल रहे थे स्मृतियों के अंधड़…

तभी कमरे की दीवार घड़ी ने जोर से घंटा बजाया तो शशांक की तंद्रा भंग हुई. बेलगाम बीते पलों के रथ पर सवार मन पर कस कर लगाम कसी. जो बीत गया सो बात गई…

‘1 बज गया, कौशल भी स्कूल से आता होगा’, चैंबर से बाहर निकला तो देखा पूरा दफ्तर अपने काम में व्यस्त है.

‘‘क्यों आज लंच नहीं करना है आप लोगों को? भई मुझे तो जोर की भूख लगी है?’’ मुसकराने की असफल कोशिश करते हुए शशांक ने कहा.

सभी ने इस का जवाब एकसाथ मुसकराहट में दिया.

घर पहुंच शशांक ने देखा कि खानसामा खाना बना इंतजार कर रहा था.

‘‘खाना लगाऊं साहब, कौशल बाबा कपड़े बदल रहे हैं?’’ उस ने पूछा.

‘‘अरे वाह, आज तो सारी डिशेज मेरी पसंद की हैं,’’ खाने के टेबल पर शशांक ने चहकते हुए कहा.

‘‘पापा आप भूल गए हैं, आज आप का जन्मदिन है. हैप्पी बर्थडे पापा,’’ गले में हाथ डालते हुए कौशल ने कहा.

‘‘तो कैसा रहा आज का दिन. नए स्कूल में मन तो लग रहा है?’’ शशांक ने पूछा. अंदर से उस का दिल धड़क रहा था कि कहीं पिछली जिंदगी का कोई जानकार उसे यहां न मिल गया हो. पर उस ने एक नई चमक कौशल की आंखों में देखी.

‘‘पापा, मैथ्स के टीचर बहुत अच्छे हैं. साइंस और अंगरेजी वाली मैडम भी बहुत अच्छा बताती हैं. बहुत सारे दोस्त बन गए हैं. सब बेहद होशियार हैं. मुझे बहुत मेहनत करनी पड़ेगी ताकि मैं उन सब के बीच टिक पाऊं…’’

शशांक ने गौर किया कि कौशल का हकलाना अब काफी कम हो गया है. शाम को कौशल ने खानसामे और ड्राइवर की मदद से एक छोटी सरप्राइज बर्थडे पार्टी का आयोजन किया था. उस के नए दोस्त तो आए ही थे, साथ ही उस ने शशांक के दफ्तर के कुछ सहकर्मियों को भी बुला लिया था.

नीरज भी आया था. ऐसा लग रहा था कौशल को उस ने भी सहयोग किया था इस आयोजन में. नीरज को उस ने फिर चोर निगाहों से देखा कि क्या इस ने सचमुच किसी को कुछ नहीं बताया होगा? अब जो हो सो हो, कौशल को खुश देखना ही उस के लिए सुकूनदायक था.

कब तक अतीत से भागता रहेगा. अब कुछ वर्ष टिक कर इस जगह रहेगा और तबादले कौशल की पढ़ाई के लिए अब ठीक न होंगे. वर्षों बाद घर में रौनक और चहलपहल हुई थी.

‘‘पापा आप खुश हैं न? हमेशा दूसरों के घर बर्थडे पार्टी में जाता था, सोचा आज अपने घर कुछ किया जाए,’’ कह कौशल ने एक नई डायरी और पैन शशांक के हाथ में देते हुए कहा, ‘‘आप के जन्मदिन का गिफ्ट, आप फिर से लिखना शुरू कीजिए पापा, मेरे लिए.’’

उस रात शशांक देर तक आकाश की तरफ देखता रहा. आसमान में काले बादलों का बसेरा था. मानो सुखरूपी चांद को दुखरूपी बादल बाहर आने ही नहीं देना चाहते हों. थोड़ी देर के बाद चांद बादलों संग आंखमिचौली खेलने लगा, ठीक उस के मन की तरह. बादल तत्परता से चांद को उड़ते हुए ढक लेते थे. मानो अंधेरे के साम्राज्य को बनाए रखना ही उन का मकसद हो.

अचानक चांद बादलों को चीर बाहर आ गया और चांदनी की चमक से घोर अंधेरी रात में उजियारा छा गया. शशांक देर तक चांदनी में नहाता रहा. पड़ोस से आती रातरानी की मदमस्त खुशबू से उस का मन तरंगित होने लगा, उस का कवि हृदय जाग्रत होने लगा. उस ने डायरी खोली और पहले पन्ने पर लिखा:

‘‘जिंदगी, जिंदगी मेरे घर आना… फिर से.’’

शादी के चार महीने बाद अंकिता लोखंडे ने दी गुड न्यूज!

अंकिता लोखंडे (Ankita Lokhande) अपनी शादीशुदा जिंदगी को लेकर सुर्खियों में छायी रहती हैं. वह अक्सर अपने पति के साथ फोटोज और वीडियो शेयर करती रहती हैं. हाल ही में उन्हें ‘लॉक अप’ (Lock Upp)  में देखा गया. इस शो में उन्होंने एक गुड न्यूज दी.जिसे सुनकर सबका मुंह खुला का खुला ही रह गया. आइए बताते है, क्या कहा अंकिता ने?

जैस कि ‘लॉक अप’ में आने वाले हर कंटेस्टेंट को अपना एक सीक्रेट बताना होता है. ऐसे में कंगना ने अंकिता को भी एक सीक्रेट बताने के लिए कहा. कंगना ने कहा, अंकिता हमारे यहां एक परंपरा है कि लोगों को अपने जीवन से एक सीक्रेट बताना होता है.

 

कंगना रनौत के इस सवाल पर पहले अंकिता ने कहा कि उनके पास कोई राज नहीं है लेकिन बाद में जब कंगना ने जोर दिया तो एक्ट्रेस ने बताया कि यह सीक्रेट विक्की को भी नहीं पता. मुझे बधाई दो दोस्तों, मैं प्रेग्नेंट हूं. ये सुनकर कंटेस्टेंट और कंगना हैरान रह गए लेकिन बाद में अंकिता ने कहा, अप्रैल फूल बनाया. इस पर कंगना ने जवाब दिया, फर्स्ट अप्रैल भी नहीं है आज.

 

कंगना रनौत ने ये भी कहा कि मुझे आशा है कि तुम्हारा झूठा सीक्रेट जल्दी सच हो जाए.  इसपर अंकिता ने जवाब दिया, जल्दी होगा. आपको बता दें कि अंकिता 14 दिसंबर 2021 को अपने लॉन्गटाइम बॉयफ्रेंड विक्की जैन के साथ शादी के बंधन में बंधी थीं.

 

अंकिता लोखंडे इन दिनों हैप्पी मैरिड लाइफ एंजॉय कर रही हैं. अंकिता और उनके पति विक्की जैन टीवी शो स्मार्ट जोड़ी में काम कर रहे हैं. हाल ही में अंकिता, कंगना के रियलिटी शो लॉक अप में अपनी वेब सीरीज पवित्र रिश्ता के अपकमिंग सीजन को प्रमोट करने आई थीं. इस दौरान कंगना ने उनसे सीक्रेट पूछा था.

आर्यन का होगा भयंकर एक्सिडेंट! क्या बचा पाएगी इमली?

टीवी सीरियल ‘इमली’ में  इन दिनों हाई वोल्टेज ड्रामा चल रहा है. हाल ही में शो में दिखाया गया कि इमली और आर्यन ने शादी की. अब इमली आर्यन की पत्नी बन चुकी है. लेकिन शादी के बाद भी इमली आर्यन के साथ नहीं रहना चाहती है. शो के आने वाले एपिसोड में बड़ा ट्विस्ट आने वाला है. आइए बताते हैं, शो के नए एपिसोड के बारे में.

सीरियल ‘इमली’ में आपने देखा कि शादी के बाद इमली और आर्यन के लिए रिसेप्शन पार्टी रखा गया. जिसमें शहर के बड़े लोग हिस्सा लेते हैं. तो दूसरी तरफ आर्यन इमली को अपने साथ रिसेप्शन पार्टी में चलने के लिए कहता है. शो में आप ये भी देखेंगे कि आर्यन इमली की मांग में सिंदूर भरेगा. आर्यन कहेगा कि इमली अब उसकी पत्नी है.

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तो वहीं इमली आर्यन को सबक सिखाने के लिए नौकरानी बनेगी. रिसेप्शन पार्टी में इमली को देखकर सब हैरान रह जाएंगे. पार्टी में सभी मेहमान का एक ही सवाल होगा, आर्यन ने एक नौकरानी से शादी क्यों की? इसी बीच आर्यन भी सफाई में इमली की मदद करेगा.

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तो दूसरी तरफ पार्टी में प्रीता इमली की खूब बेइज्जती करेगी. इमली भी उसकी बोलती बंद कर देगी. वहीं बड़ी मां भी खड़ी होकर मजे से तमाशा देखेगी. पार्टी खत्म होने के बाद आर्यन अपने काम पर निकल जाएगा.

 

शो में आप देखेंगे कि रास्ते में आर्यन का भयंकर एक्सीडेंट होगा. उसकी जान खतरे में होगी. ऐसे में शो में ये देखना होगा कि इमली कैसे आर्यन की जान बचाएगी?

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झटका- भाग 3: निशा के दरवाजे पर कौन था?

निशा का सामना करने के लिए संगीता अगली शाम जींस और लाल टीशर्ट पहन कर बड़े आकर्षक ढंग से तैयार हुई. इस तरह के कपड़ों पर पहले उस के सासससुर चूंचूं करते थे पर उस दिन सास ने भी कुछ नहीं कहा.

अंजलि ने स्मार्ट और स्लिम दिखाने के लिए उस की प्रशंसा की, तो वह खुश हो गई. लेकिन अगले ही पल उस की आंखों में गंभीरता और कठोरता के भाव लौट आए.

सारे रास्ते संगीता निशा को कोसती रही. उस के बारे में संगीता का गुस्सा पलपल बढ़ता गया था.

निशा के फ्लैट की बहुमंजिली इमारत में घुसने से पहले अचानक अंजलि ने पूछा, ‘‘भाभी, आप सिर्फ निशा को ही क्यों दोषी मान रही हो? क्या भैया बराबर के दोषी नहीं हैं?’’

‘‘उन से भी मैं आज निबटूंगी,’’ संगीता का गुस्सा और ज्यादा बढ़ गया.

‘‘वैसे, एक बात कहूं, भाभी?’’

‘‘हां, कहो.’’

‘‘अगर आप ने ढीली पड़ कर जिंदगी के प्रति उत्साह न खोया होता, तो शायद समस्या जन्म ही न लेती.’’

‘‘तुम्हारा ऐसा कहना सही नहीं है. मुझे अपने बच्चे को खो देने के आघात ने दुखी और उदास किया था. अब मैं निकल आई हूं न उस सदमे से. तुम्हारे भैया का कोई अधिकार नहीं है कि मुझे संभालने के बजाय वे किसी दूसरी औरत से टांका भिड़ा लें,’ संगीता ने चिढ़ कर जवाब दिया.

‘‘भैया के संभालने से तो आप नहीं संभलीं, पर निशा की उन के जीवन में मौजूदगी ने आप को जरूर फिर से चुस्तदुरुस्त बनवा दिया है. आज उस से तोबा बुलवा देना, भाभी. पर एक बात ध्यान  में जरूर रखना.’’

‘‘कौन सी बात?’’ अंजलि की बात पसंद न आने के कारण संगीता नाराज नजर आ रही थी.

‘‘निशा वाला चक्कर खत्म हो जाए, तो फिर से बेडौल और जिंदगी की खुशियों के प्रति उदासीन मत हो जाना.’’

‘वैसा अब कभी नहीं होगा,’’ संगीता का स्वर दृढ़ता से भरा था.

‘‘गुड, आओ, अब इस निशा की खबर लें. इस के सिर से प्यार का भूत उतारें.’’ संगीता का हाथ पकड़ कर अजीब से अंदाज में मुसकरा रही अंजलि उस बहुमंजिली इमारत में प्रवेश कर गई.

बेचारी संगीता को अपने मन की भड़ास निशा के ऊपर निकालने का मौका ही नहीं मिला.

अपने फ्लैट का दरवाजा निशा ने खोला था. उस के बेहद सुंदर, मुसकराते चेहरे पर दृष्टि डालते ही संगीता के मन को तेज धक्का लगा.

‘भाभी, यही निशा है. अब इसे छोडऩा मत.’’ उन का परिचय करा कर अंजलि अचानक हंसने लगी, तो संगीता तेज उलझन का शिकार बन गई.

‘‘पहली मुलाकात में यह छोडऩेछुड़ाने की बात मत करो, अंजलि. शादी की सालगिरह की ढेर सारी शुभकामनाएं संगीता,’’ निशा ने आगे बढ़ कर संगीता को गले लगा लिया.

‘‘आज मेरी शादी की सालगिरह नहीं है,’’ संगीता ने तीखे लहजे में उसे जानकारी दी और झटके से उस से अलग भी हो गई.

‘‘इतने सारे लोग गलत हो सकते हैं क्या?’’ संगीता का हाथ पकड़ कर निशा उसे ड्राइंगहौल के दरवाजे तक ले आई.

ड्राइंगहौल में अपने सासससुर, विवेक के खास दोस्तों व उन के परिवारों के साथसाथ अपने पति को तालियां बजा कर अपना स्वागत करते देख संगीता हैरान हो उठी.

‘‘बहू, तिथियों के हिसाब से आज ही है तुम्हारे विवाह की वर्षगांठ, मुबारक हो,’’ संगीता की सास ने उसे गले लगा कर आशीर्वाद दिया.

विवेक के पास आ कर उस के हाथ थाम लिए. चारों तरफ से उन पर शुभकामनाओं की बौछार होने लगी.

‘‘इन दोनों ने मिल कर हमें बुद्धू बनाया है, संगीता,’’ बहुत प्रसन्न नजर आ रहे विवेक ने अंजलि और निशा की तरफ उंगली उठाई.

‘‘संगीता, मैं अंजलि की सब से पक्की सहेली रितु की बड़ी बहन निशा हूं. ये मेरे पति अरुण हैं और कुदरत की सौगंध खा कर कहती हूं कि मेरा कोई प्रेमी नहीं है.’’ निशा की इस बात पर सभी ने जोरदार ठहाका लगाया.

‘‘यह अंजलि की बच्ची डायरैक्टर थी सारे नाटक की. मेरी कमीज पर सैंट लगाना, मेरी जेब में पिक्चर की कटी टिकटें रखना जैसे शक पैदा करने वाले काम इसी के थे. शाम तक मुझे भी अंधेरे में रखा था इस ने,’’ विवेक ने अंजलि की चोटी को हंसते हुए जोर से एक बार खींचा.

‘‘उई,’’ अंजलि चिल्लाने के बाद शरारती ढंग से मुसकराई, ‘‘भैया, यह हमारे नाटक का ही फल है कि आज भाभी दुलहन जैसी आकर्षक लग रही हैं. निशा को और मुझे तो आप को बढिया सा ईनाम देना चाहिए.’’

‘‘ईनाम के साथसाथ धन्यवाद भी लो,’’ विवेक ने अंजलि और निशा के गाल पर प्यारभरी चपत लगाने के बाद आंखों से हार्दिक धन्यवाद भी दिया.

‘‘थैंक यू, पर तुम दोनों हो बड़ी शैतान. खूब तंग किया है मुझे तुम्हारे नाटक ने,’’ संगीता ने बारीबारी से दोनों को गले लगाया.

‘‘भाभी, मेरी एक बात का बुरा तो नहीं मानोगी?’’ निशा ने शरारती अंदाज में सवाल किया.

‘‘नहीं, आज तो तुम्हारे सौ खून माफ हैं.’’

‘‘देखिए, ‘मोटी भैंस’ को छरहरे बदन वाली हिरणी बनाने के लिए नाटक तो धांसू करना जरूरी था न,” निशा अपनी यह बात कह कर विवेक के पीछे छिप गई. सब को दिल खोल कर हंसता देख, संगीता का गुस्सा उठने से पहले ही खो गया. वह प्यार से विवेक को निहारती, उस से और सट कर खड़ी हो, प्रसन्न अंदाज में मुसकराने लगी.

मीठी छुरी- भाग 1: कौन थी चंचला?

Writer- Reeta Kumari

चंचला भाभी के स्वभाव में जरूरत से कुछ ज्यादा मिठास थी जो शुरू से ही मेरे गले कभी नहीं उतरी, लेकिन घर का हर सदस्य उन के इस स्वभाव का मुरीद था. वैसे भी हर कोई चाहता है कि उस के घर में गुणी, सुघड़, सब का खयाल रखने वाली और मीठे बोल बोलने वाली बहू आए. हुआ भी ऐसा ही. चंचला भाभी को पा कर मां और बाबूजी दोनों निहाल थे, बल्कि धीरेधीरे चंचला भाभी का जादू ऐसा चला कि मां और बाबूजी नवीन भैया से ज्यादा उन की पत्नी यानी चंचला भाभी को प्यार और मान देने लगे. कभी बुलंदियों को छूने का हौसला रखने वाले, प्रतिभाशाली और आकर्षक व्यक्तित्व वाले नवीन भैया अपनी ही पत्नी के सामने फीके पड़ने लगे.

मेरे  4 भाईबहनों में सब से बड़े थे मयंक भैया, फिर सुनंदा दी, उस के बाद नवीन भैया और सब से छोटी थी मैं. हम  चारों भाईबहनों में शुरू से ही नवीन भैया पढ़ने में सब से होशियार थे. इसलिए घर के लोगों को भी उन से कुछ ज्यादा ही आशाएं थीं. आशा के अनुरूप, नवीन भैया पहली बार में ही भारतीय प्रशासनिक सेवा की मुख्य लिखित परीक्षा में चुन लिए गए और उस दौरान मौखिक परीक्षा की तैयारियों में जुटे हुए थे, जब एक शादी में उन की मुलाकात चंचला भाभी से हुई.

निम्न  मध्यवर्गीय परिवार की साधारण से थोड़ी सुंदर दिखने वाली चंचला भाभी को नवीन भैया में बड़ी संभावनाएं दिखीं या वाकई प्यार हो गया, किसे मालूम, लेकिन नवीन भैया उन के प्यार के जाल में ऐसे फंसे कि उन्होंने अपना पूरा कैरियर ही दांव पर लगा दिया. उन से शादी करने की ऐसी जिद ठान ली कि उस के आगे झुक कर उन की मौखिक परीक्षा के तुरंत बाद उन की शादी चंचला भाभी से कर दी गई.

शादी के बाद भाभी ने घर वालों से बहुत जल्द अच्छा तालमेल बना लिया, लेकिन नवीन भैया को पहला झटका तब लगा जब भारतीय प्रशासनिक सेवा का फाइनल रिजल्ट आया. आईएएस तो दूर की बात उन का तो पूरी लिस्ट में कहीं नाम नहीं था. अब उन्हें अपना सपना टूटता नजर आया, वे चंचला भाभी को मांबाबूजी के सुपुर्द कर नए सिरे से अपनी पढ़ाई शुरू करने दिल्ली चले गए.

नवीन भैया भारतीय प्रशासनिक सेवा की परीक्षा में 3 बार शामिल हुए. हर बार असफल रहे. भैया हतप्रभ थे. बारबार की इस असफलता ने उन के आत्मविश्वास को जड़ से हिला दिया.

जिन नौकरियों को कभी नवीन भैया ने पा कर भी ठोकर मार दी थी, अब उन्हीं को पाने के लिए लालायित रहते, कोशिश करते पर हर बार असफलता हाथ आती. जब किसी काम को  करने से पहले ही आत्मविश्वास डगमगाने लगे तो सफलता प्राप्त करना कुछ ज्यादा ही मुश्किल हो जाता है. उन के साथ यही हो रहा था.

नवीन भैया पटना लौट आए थे. यहां भी वे नौकरी की तलाश में लग गए, कहीं कुछ हो नहीं पा रहा था. बाबूजी उन का आत्मविश्वास बढ़ाने के बदले उन्हें हमेशा निकम्मा, कामचोर और न जाने क्याक्या कहते रहते.

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प्रतिभाशाली लोगों को चाहने वालों की कमी नहीं होती और उन से ईर्ष्या करने वाले भी कम नहीं होते. होता यह है कि जब कोई प्रतिभाशाली व्यक्ति कामयाबी की राह नहीं पकड़ पाता तो उस के चाहने वाले उस से मुंह मोड़ने लगते हैं और ईर्ष्या करने वाले ताने कसने का कोई मौका नहीं छोड़ते.

नवीन भैया से जलने वाले रिश्तेदारों और पड़ोसियों को भी मौका मिल गया उन पर तरहतरह के व्यंग्यबाण चलाते रहने का. उन की असफलता से आहत उन के अपने भी उन्हें जबतब जलीकटी सुनाने लगे. पासपड़ोस के लोग तो अकसर उन्हें कलैक्टर बाबू कह उन के जले पर नमक छिड़कते, जिसे सुन एक बार नवीन भैया तो मरनेमारने पर उतारू हो गए थे. जब बाबूजी को इस घटना के बारे में मालूम हुआ तो वे क्रोध में अंधे हो उन्हें बेशर्म और नालायक जैसे अपशब्दों से नवाजते हुए मारने तक दौड़ पड़े थे.

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