Download App

Shehnaaz Gill ने खेत में की मस्ती, देखें Video

पंजाब की कैटरीना कैफ और ‘बिग बॉस 13’ की फेमस कंटेस्टेंट शहनाज गिल (Shehnaaz Gill)  से जुड़ी हर खबर का फैंस को बसेब्री से इंतजार रहता है. आए दिन शहनाज गिल से रिलेटेड पोस्ट सोशल मीडिया पर वायरल होते रहते है. हाल ही में एक्ट्रेस अपने पिंड पहुंचीं हैं. उन्होंने वहां से एक वीडियो शेयर किया है. जिसमें वह खेतों में मस्ती करते हुए नजर आ रही हैं.

इस वीडियो में आप देख सकते हैं कि शहनाज गिल पिंड में खेतों में घूमते हुए, ट्रैक्टर चलाते हुए और वहां के माहौल का लुत्फ उठाती नजर आ रही है. वीडियो में एक्ट्रेस ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे’ की सिमरन की तरह खेतों में घूमती हुई दिखाई दीं. शहनाज गिल के इस वीडियो को अभी तक छह लाख से भी ज्यादा बार देखा जा चुका है. फैंस भी इसपर जमकर कमेंट कर रहे हैं. शहनाज गिल का क्यूट अंदाज फैंस का दिल जीत रहा है.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Shehnaaz Gill (@shehnaazgill)

 

सिद्धार्थ शुक्ला के निधन के बाद शहनाज गिल बुरी तरह टूट चुकी थी और पब्लिक से दूरी बना ली थी लेकिन अब वह धीरे-धीरे संभलती हुई नजर आ रही है. अब वह काम पर वापसी कर चुकी हैं. हाल ही में शहनाज को एयरपोर्ट पर स्पॉट किया गया. इस दौरान एक फैंस ने उनके फोन के वॉलपेपर को कैप्चर किया. दरअसल शहनाज ने फोन के वॉलपेपर पर अपने और सिद्धार्थ के हाथ की फोटो लगाई है. फोटो में दोनों ने एक-दूसरे का हाथ पकड़ा हुआ है.

 

बता दें कि बिग बॉस में शहनाज ने कई बार खुद को पंजाब की कटरीना कैफ बताया था. जिसके बाद से वह इसी नाम से मशहूर हो गईं. एक्ट्रेस ने  ‘पिंडा दीया कुड़ियां’ और ‘ये बेबी रिमिक्स’ जैसे कई गानों में अपना जलवा बिखेरा है.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Shehnaaz Gill (@shehnaazgill)

 

राजन शाही ने अनुपमा के बर्थडे पर दी शानदार पार्टी, देखें Photos

अनुपमा (Anupamaa) फेम रुपाली गांगुली (Rupali Ganguly) इन दिनों काफी व्यस्त चल रही हैं. जी हां, इस शो की प्रीक्वल की शूटिंग चल रही है. जिसमें रुपाली गांगुली यानी अनुपमा 28 साल की महिला के किरदार में नजर आने वाली है. जिसके दो छोटे-छोटे बच्चे है. ‘अनुपमा नमस्ते अमेरिका’ की शूटिंग की फोटोज सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहा है. इसी बीच सेट पर अनुपमा का बर्थडे सेलिब्रेट किया गया है, इस सेलिब्रेशन की फोटोज सामने आई है.

सोशल मीडिया पर मिली जानकारी के अनुसार, बीती रात ‘अनुपमा’ के प्रोड्यूसर राजन शाही ने रुपाली गांगुली के लिए एक शानदार पार्टी का आयोजन किया था. इस पार्टी में अनुपमा की पूरी टीम हंगामा मचाती दिखी. आइए दिखाते हैं आपको अनुपमा के बर्थडे बैश की तस्वीरें.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Gaurav Khanna (@gauravkhannaofficial)

 

अनुपमा के बर्थडे सेलीब्रेशन के दौरान पूरा शाह परिवार एक साथ दिखाई दिये. तो वही पार्टी के दौरान गौरव खन्ना यानी अनुज अपने हाथों से रुपाली गांगुली को केक खिलाते नजर आए. पार्टी में गौरव खन्ना, रुपाली गांगुली के साथ जमकर मस्ती करते दिखे.

 

अनुपमा के फैंस ने भी उनके लिए एक खूबसूरत केक भेजा था. रुपाली गांगुली ने इस केक की तस्वीर शेयर करते हुए अपने फैंस को धन्यवाद कहा है. आपको बता दें कि अनुज के असली पेरेंट्स भी अनुपमा के बर्थडे सेलिब्रेशन में शामिल हुए थे.

 

सोशल मीडिया पर रुपाली गांगुली के बर्थडे सेलीब्रेशन की तस्वीरें तेजी से वायरल हो रही हैं. फैंस अनुज और अनुपमा को साथ देखकर काफी खुश हैं. हालांकि अनुपमा के बर्थडे पर बा औऱ वनराज ने भी अपनी दुश्मनी भुलाकर पोज देते हुए नजर आ रहे हैं.

 

लोकतंत्र पर ग्रहण

चुनावी चक्कर

उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा व मणिपुर में अच्छेखासे बहुमत से विधानसभा चुनाव जीत कर भारतीय जनता पार्टी ने साबित कर दिया है कि अभी धर्म के नाम पर वोट पाना संभव है और बराबरी, स्वतंत्रताओं, विविधताओं के सवाल व आर्थिक समृद्धि, वैज्ञानिक चेतना की आवाज आदि इस देश में अभी भी खास महत्त्व नहीं रखतीं. यह इस देश में सदियों से चला आ रहा है और अंगरेजों के आने के बाद जो नई सोच व शिक्षा आई, उस को बड़ी आसानी से पुराने मटके में डाल दिया गया.

कांग्रेस 1947 में सत्ता में आईर् और लगभग 60 साल राज करती रही पर उस का एजेंडा कोई खास अलग नहीं रहा है. यही नहीं, आम आदमी पार्टी, बीजू जनता दल, तृणमूल कांग्रेस खास अलग की सोच रहे हों, ऐसा भी नहीं है. जिन वैयक्तिक स्वतंत्रताओं पर आज की वैज्ञानिक व तकनीकी प्रगति टिकी हुई है, वह किसी भी पार्टी की पहली वरीयता नहीं है. सभी पार्टियां अपना लोहे का पंजा लोगों के गले पर रखती हैं और लोग अब इसे पुरातन चलन मान कर सिरमाथे पर रखते हैं.

पंजाब, उत्तराखंड, मणिपुर व गोवा से कांग्रेस को उम्मीदें थीं पर वे सब बह गईं. उत्तर प्रदेश में अखिलेश को उम्मीद थी पर वह असफल हुई. ये दोनों पार्टियां शायद जनता की निगाहों में कुछ नया नहीं देने वाली थीं.

भारतीय जनता पार्टी जहां हिंदू राष्ट्र, भारतीय प्राचीन संस्कृति के गौरव, देशप्रेम, राष्ट्रशक्ति की बातें करती थी चाहे इस के पीछे कोरी धर्म की दुकानदारी और वर्णव्यवस्था का उद्देश्य छिपा हो, वहां दूसरी पार्टियां इन का कोई पर्याय न दे रही थीं, न उन का पुराना इतिहास यह दर्शा रहा था कि उन का शासन कुछ अलग होगा. पूरे चुनावी कैंपेन में इन 2 मुख्य पार्टियों का जन विकास का कोई मुद्दा आगे नहीं रहा. ये सरकार की मुखालफत करती रहीं पर बदले में वे सपने भी नहीं दे रही थीं. जहां भारतीय जनता पार्टी हिंदू के नाम पर जीती, वहीं आम आदमी पार्टी शहरी लोगों से सुविधाजनक जीवन के वादे कर रही थी. कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के पास ऐसा कुछ नहीं था.

लोकतंत्र में कई पार्टियों का होना जरूरी है वरना एक पार्टी दंभी और क्रूर हो ही जाएगी.

नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने साम, दाम, दंड, भेद की नीति अपना कर चुनावी प्रबंध किया और विरोधियों की कमर वर्षों के लिए तोड़ दी. हतोत्साहित कांग्रेस अब जल्दी ही अपने शासन के दो राज्य छत्तीसगढ़ एवं राजस्थान से भी हाथ धो बैठेगी और शिवसेना को फिर से विचार करना पड़ेगा कि वह किस खेमे में रहे.

जनता को कुछ मिलेगा, यह नहीं कहा जा सकता पर जनता आमतौर पर हर देश में भीड़ होती है जो अपने नेता के पीछे चलती है चाहे उस का अपना रंग या भाषा कैसी भी हो या वह किसी भी रंग के कपड़े पहनती हो. हर सत्तारूढ़ नेता को इतनी भीड़ मिल जाती है जो उस की जयजय करकर के फूलमाला भी पहनाती है और उस के जुल्मों को व्यक्तिगत दंड मान कर सह लेती है.

यूक्रेन पर रूसी हमले के मद्देनजर

पूरा यूरोप, जापान, आस्ट्रेलिया और अफ्रीका व दक्षिण अमेरिका के देश तेजी से लोकतंत्र को बचाने में जुट गए हैं. यह एक राहत की बात है. जो ढीलढाल दूसरे विश्व युद्ध के समय की गई थी, अब न की जाए और यूक्रेन चेकोस्लोवाकिया की तरह खूनी हिटलर का पहला निवाला न बए जाए, इस के लिए अब सारे देश जुट गए हैं.

इस में ज्यादा श्रेय व्लोदोमीर जेलेंस्की  को जाता है जिन्होंने देश छोड़ने से इनकार कर दिया. रूस ने साम्राज्य का पहले अंग रहते हुए भी अब हर सड़क, हर खेत, हर फैक्ट्री, हर घर, हर जंगल, हर पहाड़ से लड़ने को अपने देश को तैयार किया है. यूरोप ने जिस तेजी से रूस के हाथपैर बांधने के लिए आर्थिक प्रतिबंध लगाए और जिस तत्परता से यूक्रेन को हथियार भेजने शुरू किए, वह अद्भुत है.

यह एक देश की जनता के अपने अधिकारों की रक्षा की परीक्षा है और फिलहाल यह दिख रहा है कि यूरोप और एशिया तक फैला विशाल रूस छोटे से यूक्रेन के आगे ढीला पड़ रहा है.

इतिहास में यह पहली बार नहीं हो रहा है. छोटेछोटे देशों ने अकसर बड़े देशों को हराया है.

भारत एक क्लासिक उदाहरण है जहां मुट्ठीभर लोग दशकों नहीं, सैकड़ों साल बाहर से आ कर राज करते रहे हैं. कई बार वे इसी मिट्टी में घुलमिल कर वैसे ही बन गए तो परिणाम उन्होंने ?ोला जो कुछ दशकों या सदी पहले यहां के निवासियों ने ?ोला था.

यूक्रेन कोई धर्मराष्ट्र नहीं बन रहा था. वहां की जनता, जो कई दशकों तक रूसी तानाशाही शासन ?ोल चुकी थी, अब फिर से गुलामी का जीवन जीने को तैयार नहीं है. यूक्रेन वाले अब कठपुतली बन कर नहीं रहना चाहते. उन्हें एक कौमेडियन में एक कर्मठ, हिम्मत वाला नेता मिल गया जो आर्मी का भी हिस्सा बन चुका है, जो दिलेर है, जो अपने घर का पता भी दुश्मन को देने से नहीं हिचकता.

यूक्रेन में रूसी समर्थक नहीं हैं, ऐसा नहीं कहा जा सकता पर आज उन के मुंह और हाथ बंद हो गए हैं क्योंकि उन्हें एहसास हो गया है कि जनता के अधिकार एक बड़े देश, धर्म की धौंस से ज्यादा महत्त्व के हैं. यूरोप ने यूक्रेन को पूरा सहयोग दिया है और यूक्रेनियों को न भूखे मरने दिया जा रहा है, न निहत्थे छोड़ा जा रहा है.

जोड़फोड़ व तोड़ नीति

जोड़ लो, फोड़ लो और अगर न माने तो तोड़ दो. भारतीय जनता पार्टी की यह नीति हमारी संस्कृति में नई नहीं है. अमृत मंथन करना था तो पहले दस्युओं को जोड़ लिया, फिर उन में से कुछ को फोड़ा और जब अमृत मिल गया तो भगवान विष्णु स्वयं एक युवती बन कर मोहिनी अवतार के रूप में दस्युओं को तोड़ने पहुंच गए और उन्हें शराब पिला दी.

यह आज भी हो रहा है. भारतीय जनता पार्टी की चुनावी नीति रही है कि पहले तो सभी मंदिरों, मठों को जोड़ लो ताकि जातियों और उपजातियों में बंटे लोगों को एक मकसद के लिए तैयार किया जा सके. राममंदिर को ले कर उन्हें जोड़ा गया. जो इस खेल को सम?ा गए कि यह दिखावा है, वे फोड़ लिए गए. किसी को राज्यसभा मिली, किसी को विधायकी. जो फिर भी नहीं माने, उन पर तोड़ने की ताकत लगा दी गई. पुलिस, एनफोर्समैंट डायरैक्टोरेट, ?ाठे मुकदमों के जरिए उन को डराया व प्रताडि़त किया गया.

संसद के बजट सत्र में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा के दौरान राहुल गांधी ने भारतीय जनता पार्टी की इस जोड़, फोड़ और तोड़ की नीति का बहुत ही प्रभावशाली ढंग से विश्लेषण किया तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तिलमिला गए. दुर्वासा की तरह क्रोधित हो कर उन्होंने उत्तर में 100 मिनट का भाषण दिया जिस में 90 मिनट उस कांग्रेस को कोसने में लगाए.

इस अभिभाषण में नरेंद्र मोदी ने उन भूखे मजदूरों को भी दोषी ठहरा दिया जो पहले लौकडाउन में नौकरी खत्म होने के बाद गांवों को लौटने को मजबूर हो गए थे और उन को टिकट या बसें दिलवाने वालों को राष्ट्रद्रोही घोषित कर दिया. कांग्रेस और दिल्ली सरकार को तो कोसा ही, अपरोक्ष रूप से सोनू सूद जैसे भी लपेटे में आ गए जो अपनी जेब से बसें या खाने का इंतजाम करते रहे थे.

भारतीय जनता पार्टी बारबार उन पौराणिक ऋषिमुनियों की याद दिलाती है जो दम तो भरते थे कि उन के पास समस्त ब्रह्मांड को नष्ट करने की दैविक शक्ति है लेकिन हर छोटे से छोटे संकट पर इंद्र, विष्णु, राजाओं या बंदरों की शरण में जा पहुंचते थे.

जिस महान वक्ता, विचारक, देश परिवर्तक, सामाजिक क्रांति के सूत्रधार नरेंद्र मोदी की आस में देश पलकें बिछाए था, वह कहीं खो गया है. नरेंद्र मोदी की पार्टी विधानसभा चुनावों में बड़ी जीत हासिल कर पाई है पर देश को जो चाहिए वह शायद अभी कहीं नहीं दिख रहा.

शहरी निकायों में क्षेत्रीय दल

पश्चिम बंगाल के शहरी निकायों के चुनावों में भारतीय जनता पार्टी का ‘जयश्रीराम’ का छद्म नारा एक भी शहर में नहीं चला. 107 शहरी निकायों में से 102 पर ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस ने कब्जा कर लिया.

दक्षिण में तमिलनाडु में भी यही हुआ जब नगर पंचायतों के चुनावों में भारतीय जनता पार्टी समर्थक अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कषगम को न के बराबर सीटें मिलीं और कांग्रेस व द्रविड़ मुनेत्र कषगम के

सहयोग वाले गठबंधन ने लगभग सारे

जिले जीत लिए. 21 कौर्पोरेशनों, 138 म्युनिसिपलिटीज और 489 शहरी पंचायतों की 12,500 सीटों में से दोतिहाई से ज्यादा एम के स्टालिन की ?ाली में जा गिरीं.

ओडिशा के स्थानीय चुनावों की 852 सीटों में से 766 सीटों पर नवीन पटनायक की पार्टी बीजू जनता दल को जीत मिली, दूसरे नंबर पर 42 सीटें भारतीय जनता पार्टी को मिलीं. भाजपा ने 5 वर्षों पहले 297 सीटों पर कब्जा किया था. गरीब मेधावी दुनिया में भटके भारत सरकार की विदेश नीति के परखच्चे अगर किसी ने उड़ाए हैं तो वे यूक्रेन में फंसे छात्र रहे. यूक्रेन में करीब 20 हजार छात्र मैडिकल की पढ़ाई कर रहे थे और वे बहुत साधारण घरों से आते हैं जो बड़ी मुश्किल से पैसा जुटा कर डिग्री पाने के लिए ठंडे, बेगाने देश में मांबाप से दूर रह कर पढ़ रहे थे. उम्मीद थी कि जिस भारत सरकार ने यूक्रेन पर रूसी हमले में रूस का साथ दिया है, बदले में रूस इन छात्रों को सुरक्षित रखने की गारंटी देगा.

ऐसा कुछ नहीं हुआ. राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने एक शब्द भी इन छात्रों के लिए नहीं बोला. उधर, यूक्रेन के लोगों ने इन छात्रों के साथ कोई खास दुर्व्यवहार तो, उन के देश के खिलाफ भारत के रूस को नंगे समर्थन के बावजूद, नहीं किया पर जब खुद उन की जान के लाले पड़े हों तो वे दूसरों की सहायता कैसे करते.

यूक्रेन में 19 से 25 साल के अनुभवहीन भारतीय छात्रों, जिन की जेब में पैसे न के बराबर होते हैं, की सहायता बहुत देर बाद की गई जब वे कईकई दिन मौत के दरवाजे पर खड़े रहे.

यूक्रेन में भारतीय एंबैसी ने एक नोट जारी कर दिया कि यूक्रेन में स्थिति खराब हो रही है, छात्र सतर्क रहें और तैयारी कर लें. उस ने न हवाईजहाज भेजे जब एयरपोर्ट चल रहे थे, न पैसे दिए, न भारत सरकार का कोई मंत्री कीव पहुंचा था. बाद में पोलैंड और रोमानिया में मंत्री अवश्य गए.

‘आज जो हो रहा है, वह आप के भाग्य में लिखा हुआ है’ का पाठ पढ़ाने वाले जानते हैं कि भारतीय जनता दोचार रोज रोधो कर फिर पूजापाठ में पड़ कर अपने उन्हीं नीतिनिर्माताओं का गुणगान करने लगेगी जिन की वजह से उसे भयंकर कष्ट हुए.

इन छात्रों के मांबापों के लाखों रुपए तो बरबाद हुए ही. जो लौट आए वे भी मरतेपिटते, ठंड में ठिठुरते, मीलों पैदल चल कर यूक्रेन सीमा से बाहर पहुंचे.

कांग्रेस खत्म?

कांग्रेस का लगातार घटता जनाधार किसी सुबूत का मुहताज नहीं रह गया है. 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव नतीजों ने तो उस के खात्मे की तरफ इशारा कर दिया है. कांग्रेस के दिग्गज बैठकों में कुछ ठोस निर्णय नहीं ले पा रहे हैं. लगता है उन्हें पार्टी के भविष्य की परवा ही नहीं. कांग्रेस और इस का भविष्य क्या होगा, जानिए आप भी.

कभी किसी ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि देश की सब से बड़ी राजनीतिक पार्टी रही कांग्रेस इतनी दुर्गति का शिकार होगी कि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में अप्रत्याशित तरीके से महज 2 सीटें और 2.×× फीसदी वोटों पर सिमट कर रह जाएगी. 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव के 10 मार्च को आए नतीजों ने फौरीतौर पर एहसास करा दिया है कि कांग्रेस कहीं गिनती में ही नहीं थी.

मणिपुर, उत्तराखंड और गोवा में भी उस का प्रदर्शन गयागुजरा रहा. सब से ज्यादा चौंकाया उस के गढ़ पंजाब ने, जहां सत्ता उस की हथेली से बालू की तरह फिसल गई जिसे आम आदमी पार्टी ने बड़ी आसानी से समेट लिया.

इन नतीजों ने साबित यह भी कर दिया है कि कभी देश के चारों कोनों पर एकछत्र राज करने वाली कांग्रेस के पास अब खोने को कुछ बचा नहीं है. वह हर लिहाज से टूटफूट का शिकार हो चली है जिस में गैरों के साथसाथ अपनों का रोल भी अहम है. कांग्रेस खत्म हो गई है या उस के अभी और भी खत्म होने की संभावना है, इस से ज्यादा सोनिया, प्रियंका और राहुल गांधी के सामने यह सवाल मुंहबाए खड़ा है कि वे इस दुर्दशा में खुद को फिट करें या नहीं और कुछ करने के नाम पर अब करें तो क्या करें.

यह सब अचानक नहीं हुआ है बल्कि बहुत धीरेधीरे हुआ है जो दिखा तब जब साल 2014 के लोकसभा चुनाव के पहले भाजपा ने नरेंद्र मोदी को बतौर प्रधानमंत्री पद का चेहरा पेश किया था. तब केवल गोधरा कांड के हीरो व गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर पहचाने जाने वाले नरेंद्र मोदी को सम?ा आ गया था कि बिना आग लगाए लंका जीतना हंसीखेल वाला काम नहीं होता. लिहाजा, उन्होंने कांग्रेसमुक्त भारत की बात करनी शुरू कर दी. इस नारे पर किसी को एतबार नहीं था. हर किसी को यह ख्वाबोंख्यालों सी यानी अकल्पनीय बात लगी थी.

हिंदुत्व बना हथियार

कांग्रेस सत्ता के दलालों की पार्टी है, कामधाम नहीं करती, भ्रष्टाचारियों का गिरोह है आदि जैसी चलताऊ बातों से ज्यादा उन्होंने गांधीनेहरू परिवार को कोसना शुरू किया कि दरअसल ये (कांग्रेस वाले) हिंदू हैं ही नहीं और आजादी के बाद से शासन चलाते हम हिंदुओं के देश को लूटखा रहे हैं. कांग्रेस के परिवारवाद पर उन्होंने ताबड़तोड़ हमले किए.

ठीक उसी वक्त भगवा गैंग सोशल मीडिया पर न जाने किनकिन स्रोतों से लिया गया इतिहास प्रचारितप्रसारित कर रहा था कि जवाहरलाल नेहरू के पिता फलां मुसलमान थे, इंदिरा गांधी के पति फिरोज गांधी आधे पारसी और आधे मुसलमान थे और खुद सोनिया गांधी इटालियन हैं. ऐसे में राहुल गांधी कैसे हिंदू हो गए. यह परिवार तो मुसलिमों का हिमायती है जिस का मकसद हिंदुत्व का खात्मा करना है.

इन चौतरफा हमलों, जो वास्तविकता को तोड़मरोड़ कर किए गए थे, का कांग्रेस के पास कोई जवाब नहीं था क्योंकि सवाल निहायत ही व्यक्तिगत और संवेदनशील थे जिन पर सफाई देना इन कथित घटिया आरोपों व दुष्प्रचार को और शह देने वाली बात होती. लिहाजा, बात बिगड़ती गई. बिगड़ी ऐसे कि आम सवर्ण हिंदू अपने धर्म, जाति और गोत्र तक को ले कर खुद को गांधीनेहरू परिवार से श्रेष्ठ मानने लगा और बड़े पैमाने पर देखते ही देखते हवा चली कि हम हिंदू तो पहले से ही सदियों की गुलामी मुगलों और अंगरेजों की भुगत चुके हैं और अब आजादी और लोकतंत्र की स्थापना के बाद भी वर्णसंकर ही हमें हांक रहे हैं. इन वर्णसंकरों को श्रीमद्भागवतगीता में कृष्ण ने धर्म और देश को बरबाद कर देने वाला बताया है.

यह प्रचार कतई नया नहीं था जिसे कट्टर हिंदूवादी संगठन आजादी के बाद से ही किताबों और परचों के जरिए एक मुहिम की शक्ल में फैला रहे थे.

नेहरू युग में इस के सर्वेसर्वा करपात्री महाराज जैसे कट्टर हिंदूवादी हुआ करते थे जिन्हें मिर्च इस बात पर भी लगी थी कि मनुस्मृति की जगह संविधान क्यों लागू किया जा रहा है और हिंदू कोड बिल हिंदू धर्म और समाज को कमजोर करने वाला है क्योंकि इस से दलितों और औरतों को कई हक व सहूलियतें मिल रही थीं.

कांग्रेस की दुर्गति में इस प्रचार का आम हो जाना और इस से लोगों का बिना सच जाने, सहमत होते जाना प्रमुख बात रही, जिस से घर के भेदिए वे कांग्रेसी भी खुश और सहमत थे जिन के सीने में ब्रह्मा, विष्णु, महेश और दिमाग में गायगोबर बसते हैं. हिंदुत्व को बल देते इस प्रचार पर कांग्रेसियों की खामोशी से भगवा गैंग को और बढ़ावा मिला.

जब सत्ता या कुरसी जानी होती है तो कई वजहें एक वक्त में एकसाथ पैदा भी हो जाती हैं. यही 2014 के आम चुनाव में हुआ. अन्ना हजारे का आंदोलन इन में से एक था जिस के पीछे दिमाग आरएसएस का, पैसा अंबानी और अडाणी जैसे नामी उद्योगपतियों का और योगदान ब्रैंड बनते रामदेव जैसे ताजेतरीन बाबाओं का भी योगदान था जो नतीजों के दिन 10 मार्च को न्यूज चैनल पर ज्ञान बांट रहे थे कि अब जो भी देश में जातपांतत व धर्म की राजनीति करेगा, उसे सम?ादार होती जनता बाहर का रास्ता दिखा देगी.

कहने का मतलब यह कतई नहीं कि नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस खत्म कर ही दी और वह खत्म हो भी गई बल्कि मतलब बहुत साफ यह है कि कांग्रेस के पास जनता को देने को कुछ रहा या बचा ही नहीं. इस से ज्यादा अहम बात जो इन नतीजों से स्थापित हुई वह यह है कि राहुल गांधी अब असफल साबित होने लगे हैं. वे भाजपा के आरोपों के जवाब में जनेऊ दिखाने लगे, माथे पर त्रिपुंड पोत कर पूजापाठ करने लगे, तीर्थयात्राएं करते खुद को ब्राह्मण बताने लगे तो भाजपा की राह और भी आसान हो गई.

राहुल ने हिंदुत्व को इन लोगों के बराबर नहीं पढ़ा होगा कि आजकल इस देश में हिंदू वही होता है जिसे आरएसएस सर्टिफिकेट दे दे. लिहाजा, खुद को दत्तात्रेय गोत्र का ब्राह्मण हिंदू बताने से उन्हें कुछ हासिल नहीं हुआ.

राहुल गांधी की इस गलती, जिस में सवर्ण हिंदू कांग्रेसियों का पूरा प्रोत्साहन और योगदान था, ने कांग्रेस के भीतर की गुटबाजी को अंदरूनी तौर पर और खलबला दिया. इन में नएपुराने सब शामिल थे जिन्हें सम?ा आ रहा था कि सत्ता की मुफ्त की मलाई जो गांधी परिवार की मेहरबानी से बिना कुछ किएधरे मिल जाती थी, अब नसीब नहीं होनी. सो, उन में से कई भगवा खेमे में चले गए. उन में ज्योतिरादित्य सिंधिया और जितिन प्रसाद जैसे दर्जनों नाम शुमार हैं.

एक बहुत बड़े पेड़ यानी कांग्रेस की डालें उन्हीं लोगों ने ज्यादा काटीं जो इस में पनाह लिए पसरे रहते थे. इस से कांग्रेस संगठनात्मक रूप से कमजोर होने लगी और इतनी होने लगी कि रेस में रहने के लिए उस ने क्षेत्रीय दलों से हाथ मिलाना शुरू कर दिया. मिसाल उत्तर प्रदेश की ही लें, सपा से उस की दोस्ती बिना कोई गुल खिलाए गुल हो गई.

इसी तरह बिहार में राजद से उस का गठबंधन कोई करिश्मा नहीं कर पाया. दिलचस्प बात यह है कि सपा और राजद का वोटबैंक उस के ही अकाउंट का हुआ करता है, यानी, दलितपिछड़ों की यह पार्टी अपने ही वोटों के लिए दूसरों की मुहताज हो गई. इस गलती को बजाय सुधारने के या कमजोरियों को दूर करने के, उस ने सहूलियतभरा रास्ता गठबंधन का चुना जिस का खमियाजा वह भुगत भी रही है.

2019 के लोकसभा चुनाव में भी वह होने भर को रही तो लोगों का मोह उस से भंग होने लगा. यह वही कांग्रेस है जिस से टूट कर सैकड़ों कांग्रेस बनीं और मिटीं भी. लेकिन पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस और महाराष्ट्र में शरद पवार की नैशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी बहुत ताकतवर व लोकप्रिय बन कर उभरीं और आज सत्ता में भी हैं. खुद को शाश्वत और अजरअमर मानने व सम?ाने की गलतफहमी भी उस के खात्मे की बड़ी वजह बन रही है. 2014 के बाद तो कांग्रेस के नेताओं ने मेहनत करना ही छोड़ दिया. वे सिर्फ किसी करिश्मे की आस में चुनाव के वक्त ही बाहर निकलते थे, जो जनता को रास नहीं आया.

बेअसर रहे राहुल और प्रियंका

उत्तर प्रदेश चुनाव के दौरान प्रियंका गांधी की रैलियों में खासी भीड़ उमड़ी थी. उन का ‘लड़की हूं लड़ सकती हूं’ वाला नारा चला भी था. लेकिन नतीजों में कहीं इस का असर व ?ालक नहीं दिखी तो साफ लगा कि गांधी परिवार की यह पीढ़ी अपने पूर्वजों जैसी चमत्कारिक और लोकप्रिय नहीं है.

प्रियंका ने आम लोगों से जुड़ने और संवाद स्थापित करने की ईमानदार कोशिश भी की पर अब तक कांग्रेस आम लोगों का भरोसा खो चुकी थी, इसलिए राहुल गांधी के हिंदुत्व की तरह यह कोशिश भी बेकार गई. लोगों ने प्रियंका को सुना और सराहा भी, लेकिन साथ नहीं दिया. जाहिर है, भीड़ वोटों में तबदील नहीं हुई.

बात अकेले एक राज्य की नहीं बल्कि पूरे देश की है, जिस में कांग्रेस का गढ़ पंजाब भी शामिल है. 2017 का विधानसभा चुनाव कांग्रेस ने खासे बहुमत से जीता था जिस की एक बड़ी वजह मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह भी थे, जिन्हें अब चुनाव के ठीक पहले हटाने का फैसला आत्मघाती साबित हुआ. दलित सिख चरणजीत सिंह चन्नी नकार दिए गए. उत्तराखंड में भी कांग्रेस 19 सीटों पर सिमट कर रह गई जबकि वहां उस की वापसी के कयास लगाए जा रहे थे. कमोबेश यही छोटे से राज्य गोवा में हुआ.

इस असफलता ने स्पष्ट कर दिया कि राहुलप्रियंका गांधी दोनों प्रभावहीन हैं.

शशि थरूर जी23 समूह के कपिल सिब्बल और गुलाम नबी आजाद के बाद तीसरा बड़ा चेहरा हैं. इस ग्रुप ने गांधी परिवार के खिलाफ मोरचा खोल रखा है. हालांकि पिछले 5 साल से कांग्रेस के कई और बड़े और वरिष्ठ नेता भी नेतृत्व परिवर्तन की मांग करते रहे हैं लेकिन सोनिया गांधी हालात को लगातार जैसेतैसे मैनेज करती रहीं, अब और ज्यादा कर पाएंगी, ऐसा लग नहीं रहा क्योंकि अब सवाल अस्तित्व का है.

सोनिया की दिक्कत

जी23, दरअसल, वही बात कहता रहा है जो नरेंद्र मोदी पिछले 8 वर्षों से कह रहे हैं कि कांग्रेस एक परिवारवादी पार्टी है. यह कोई नई या चौंकाने वाली बात नहीं है क्योंकि जवाहरलाल नेहरू से इंदिरा गांधी तक और अब सोनिया राहुल के हाथ में कांग्रेस की कमान है जिसे वक्तवक्त पर कांग्रेस के अंदर से ही चुनौती मिलती रही है.

सोनिया गांधी चाहतीं तो 2004 में ही भारत की प्रधानमंत्री बन सकतीं थीं लेकिन जैसे ही उन के नाम की चर्चा हुई थी तो धाकड़ कट्टर हिंदूवादी 2 नेत्रियां सुषमा स्वराज और उमा भारती विलाप करते हुए सार्वजनिक रूप से अपना मुंडन कराने की धमकी देने लगीं थीं जो हिंदू धर्म के लिहाज से स्त्री जीवन के सब से अशुभ मौके पर ही किया जाता है.

सोनिया गांधी के इस त्याग और उदारता से अब किसी को कोई सरोकार नहीं खासतौर से उन कांग्रेसियों को जो बेहद महत्त्वाकांक्षी हैं और कांग्रेस को हाईजैक कर लेना चाहते हैं. उन में से कोई भी राष्ट्रीय और जमीनी नेता नहीं है, फिर चाहे वे कपिल सिब्बल हों, गुलाम नबी आजाद हों, शशि थरूर हों या मनीष तिवारी जैसे जानेमाने नाम हों. फिर मुकुल वासनिक, आनंद शर्मा, रेणुका चौधरी, संदीप दीक्षित का तो जिक्र करना ही उन्हें बेवजह भाव देने वाली बात है. ये नेता तो अपने दम पर पार्षदी का चुनाव जीतने की भी कूवत नहीं रखते और जो जमीनी हैसियत रखते हैं, उन विभीषणों को भाजपा ने हाथोंहाथ लिया है.

10 मार्च के नतीजे देख हर कोई इस बात से सहमत है कि अब कांग्रेस में सिरे से बदलाव होना चाहिए और सोनिया को कांग्रेस की कमान किसी और को सौंप देनी चाहिए क्योंकि कई दिग्गज कांग्रेसी राहुल गांधी की क्षमताओं पर उंगली उठा चुके हैं जिन्होंने आलोचनाओं से घबरा कर अध्यक्ष पद छोड़ दिया था जो हालांकि रहा गांधी परिवार के पास ही. राहुल के पद छोड़ते ही सोनिया गांधी अध्यक्ष बन गई थीं. उन्हें भी सम?ा आने लगा है कि राहुलप्रियंका अपने पिता और दादी के बराबर लोकप्रिय नहीं हैं.

कांग्रेस का मुखिया अगर उन के परिवार से बाहर का कोई नेता बना तो वह पार्टी को पटरी पर ले ही आएगा, इस बात की कोई गारंटी नहीं है. दूसरे अगर वह मनुवादी हुआ तो अब तक की मेहनत मिट्टी में मिला देगा और मुमकिन है, सवर्ण कांग्रेसी भाजपा की गोद में ही बैठ जाएं तो पूरा खमियाजा उन के परिवार को ही भुगतना पड़ेगा जिस की वजह से जैसी भी है, कांग्रेस अभी है.

जरूरी है कांग्रेस

कांग्रेस का रहना क्यों जरूरी है, इस सवाल का जवाब बेहद साफ है कि वह इकलौती पार्टी है जो चारों तरफ है और सब की है. क्षेत्रीय दल अपनेअपने राज्यों में तो भाजपा का मुकाबला कर सकते हैं लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर नहीं. मजबूत लोकतंत्र में विपक्ष मजबूत हो, तभी देश का विकास हो सकता है और सत्तापक्ष पर अंकुश लगा रह सकता है. बिखरा विपक्ष राज्यों में तो एक बार कारगर हो सकता है लेकिन दिल्ली में नहीं. इसी समीकरण को भांपते पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने 10 मार्च के नतीजों के बाद भाजपाविरोधी सभी दलों से भाजपा से 2024 के चुनाव में एकसाथ लड़ने की बात कही है.

ममता ने कांग्रेस को इस कथित संयुक्त विपक्ष में आने को तो न्योता दिया पर यह कहने से हिचकिचा गईं कि सभी दल कांग्रेस की अगुआई में लड़ने के लिए तैयार हैं. यह सवाल बहुत बड़े पैमाने पर फसाद की शक्ल में सामने आने वाला है कि अगर एकसाथ लड़े तो प्रधानमंत्री कौन होगा.

जाहिर है, ममता बनर्जी, अखिलेश यादव या एम के स्टालिन जैसे महत्त्वाकांक्षी नेता आसानी से तो क्या, मुश्किल से भी कांग्रेस और राहुल गांधी के नाम पर तैयार नहीं होंगे. अगर होते, तो अभी तक 2024 के आम चुनावों के मद्देनजर विपक्ष की रणनीति तैयार हो गई होती. अब तो भावी प्रधानमंत्रियों की लिस्ट में अरविंद केजरीवाल का नाम भी शुमार होने लगा है. उलट इस के, इन नेताओं के नाम पर कांग्रेस सहमत होगी, ऐसा कहने और सोचने की भी कोई वजह नहीं.

तो फिर हल क्या? इस का दूरदूर तक अतापता नहीं. अगर जल्द कोई फार्मूला आकार नहीं लेता है या सहमति नहीं बनती है तो तय है फायदा भाजपा को ही होगा क्योंकि उस के विरोधी दल जो खुद को धर्मनिरपेक्ष कहते हैं, एकजुट नहीं हो पा रहे हैं. वक्त रहते कोई हल नहीं निकला तो जाहिर है कांग्रेस सभी राज्यों से अपने बचेखुचे दम पर लड़ेगी. मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और गुजरात की 100 लोकसभा सीटों पर वह किसी सहारे की मुहताज नहीं. लेकिन उस में दम कितना बचा है, यह इन राज्यों के विधानसभा चुनाव के बाद पता चलेगा.

इस में कोई शक नहीं कि आज के हालात के मद्देनजर देखा जाए तो 2024 के लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस के खाते में किसी भी क्षेत्रीय दल से कहीं ज्यादा सीटें होंगी. लिहाजा वह त्याग के नाम पर शहीद होना पसंद नहीं करेगी और अगर किया तो जरूर उस का खात्मा तय है.

गौरतलब और दिलचस्प बात यह है कि 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद मशहूर इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने भविष्यवाणी सी करते हुए कहा था कि कांग्रेस अगले

5-6 साल में खत्म हो जाएगी या फिर बिना गांधी परिवार के चलेगी, पार्टी के अंदर नया नेतृत्व उभरेगा. अब कांग्रेस को गांधी परिवार की नहीं, बल्कि गांधी परिवार को कांग्रेस की जरूरत है. इस परिवार ने भारतीय राजनीति में अपनी भूमिका अदा कर दी है.

आज भाजपा की वही ताकत और हैसियत है जो कभी कांग्रेस की हुआ करती थी. भाजपा में नरेंद्र मोदी का कोई विकल्प नहीं है ठीक वैसे ही जैसे कांग्रेस में गांधी परिवार का कभी कोई विकल्प नहीं रहा, पर अब कांग्रेस दिक्कत में है क्योंकि इस बार वाकई जम कर किरकिरी हुई है.

Summer Special: इस मौसम में होने वाली बीमारियों से ऐसे बचें

गरमी का मौसम अपने साथ बहुत सी बीमारियां ले कर आती है. इस दौरान हमारा इम्यून सिस्टम काफी प्रभावित होता है. इसके अलावा गरमी हमारे पाचन और त्वचा को बुरी तरह प्रभावित होती है. इस दौरान लोगों को मौसमी फ्लू और संक्रमण का खतरा अधिक रहता है. ऐसे में जरूरी है कि आप पहले से इन परेशानियों से लड़ने के लिए तैयार रहें. इसलिए हम आपको कुछ जरूरी टिप्स देने वाले हैं जो आपको इन चुनौतियों के सामने मजबूती से खड़े रखने में मदद करेंगे.

रहें हाइड्रेटेड

drink water in morning

यदी आप दिनभर में पर्याप्त पानी पी रहे हैं तो आपके अंदर बहुत से रोगों से लड़ने की क्षमता विकसित हो जाती है. पानी को शरीर के फाइबर द्वारा हमारे कोलोन में खींच लिया जाता है और यह नरम मल बनाने में शरीर की मदद करता है.

फाइबर इनटेक लें

prevention for asthma patients

अनाज, फल, सब्जियां और फलियां जैसे खाद्य पदार्थ फाइबर के प्रमुख स्रोत होते हैं. इसके साथ ही ये कब्ज की आशंका को भी दूर करता है.

कम कैफीन

गरमी में कैफीन का सेवन कम करें. इससे आपका पाचन तंत्र का फंग्शन प्रभावित होता है. इसके कारण आगे चल कर अल्सर, एसिडिटी और जलन होती है.

वर्कआउट

tips of mental peace

पसीने के निकलने से शरीर के बहुत से विकार दूर होते हैं. पसीने के रास्ते शरीर की सारी गंदगी निकल जाती है. इसके साथ ही आपके शरीर को फिट और स्वस्थ रखने में भी ये काफी सहायक होता है. हम जितना अधिक शारीरिक तौर पर सक्रिय रहेंगे, हमारे लिए जीवन खुशहाल होगा.

धूप से बचें

धूप से दूरी बनाने की कोशिश करें. ध्यान रखें कि तेज धूप में तीन घंटे से अधिक रहने से स्वास्थ संबंधित बहुत सी परेशानियां होती हैं.

ध्यान दें कि गरमी में जौंडिस, टाइफाइड और फूड प्वाइजनिंग जैसी समस्याओं के होने का खतरा काफी अधिक रहता है. इनसे बचने के लिए जरूरी है कि आप अपने खानपान की आदतों में बदलाव लाएं और धूप में कम समय बिताएं. बाहर के खाने से परहेज, मील्स नहीं छोड़ना और बाहरी ड्रिंक एवं अल्कोहल की बजाय स्वास्थ्यकर विकल्पों जैसे छोटे बदलाव बड़ा अंतर ला सकते हैं. ये छोटे लेकिन अनहेल्दी आदतें आपके शरीर को नुकसान पहुंचा सकती हैं.

Summer Special: ऐसे पाएं डैंड्रफ से छुटकारा

गरमी हो या सरदी डैंड्रफ हर किसी की प्रौब्लम होती है, जिसके लिए हम मार्केट से महंगे-महंगे शैम्पू खरीद लेते हैं. शैम्पू हमारे सिर से डैंड्रफ निकाले या न निकाले ये बालों को डैमेज कर देती है. डैंड्रफ से छुटकारा पाने के लिए होममेड तरीका सबसे बेस्ट होता है जिससे न हमारे बाल डैमेज होते हैं और न ही हमारी स्किन को नुकसान पहुंचता है. ये आपकी बालों से बिना किसी साइड इफेक्ट के डैंड्रफ दूर कर देते हैं. आइए आपको बताते हैं डैंड्रफ दूर करने के कुछ होममेड टिप्स…

1. नींबू का रस से दूर करें डैंड्रफ प्रौब्लम

डैंड्रफ की प्रौब्लम को दूर करने के लिए नींबू के रस का इस्तेमाल करना बहुत फायदेमंद है, सरसों के तेल में या फिर कोकोनट औयल में एक नींबू को अच्छी तरह निचोड़ लें. इस तेल से स्कैल्प में हल्की मसाज करें और कुछ देर के लिए इसे यूं ही छोड़ दें. इसके बाद बालों को अच्छी तरह धो लें. हफ्ते में दो बार दोहराएं.

2. टी ट्री औयल से पाएं डैंड्रफ की प्रौब्लम से छुटकारा

टी-ट्री औयल में एंटीबैक्टीरियल और एंटीवायरल गुण होते हैं. अपने शैंपू में इसकी कुछ बूंदें मिलाकर सिर धो लें. चार से पांच बार के इस्तेमाल से ही डैंड्रफ की प्रौब्लम दूर हो जाएगी.

3. दही का करें इस्तेमाल

रूसी की समस्या में दही का इस्तेमाल करना बहुत फायदेमंद होता है. एक कप दही में एक चम्मच बेकिंग सोडा मिला लें. इस पैक को स्कैल्प में लगाएं. कुछ ही दिनों में आपको फर्क नजर आने लगेगा.

4. नीम और तुलसी का पानी करें ट्राय

नीम और तुलसी की कुछ पत्तियों को पानी में डालकर अच्छी तरह उबाल लें. जब बर्तन का पानी आधा रह जाए तो इसे छान लें और ठंडा होने के लिए रख दें. इस पानी से बालों को धोएं. कुछ बार के इस्तेमाल से ही डैंड्रफ की प्रौब्लम दूर हो जाएगी.

5. मुल्तानी मिट्टी है डैंड्रफ दूर करने के लिए बेस्ट

मुल्तानी मिट्टी पाउडर ले लें. इसमें सेब का सिरका मिलाएं. बाद में इसे शैंपू की तरह इस्तेमाल करके हफ्ते में दो बार आजमाएं.

साकिब सलीम ने ‘क्रैकडाउन सीजन 2’ की शूटिंग की पूरी

साकिब सलीम ने जम्मू-कश्मीर में अपूर्व लाखिया की जासूसी थ्रिलर सीरीज ‘क्रैकडाउन सीज़न 2’ की शूटिंग पूरी कर ली है. एक सस्पेंस पूर्ण कहानी पर आधारित और पावर-पैक प्रदर्शन से भरपूर यह सीरीज  2022 में डिजिटल स्क्रीन पर दर्शकों का मनोरंजन करेंगी . इस सीरीज में साकिब सलीम, श्रिया पिलगांवकर, मोहम्मद इकबाल खान, अंकुर भाटिया, राजेश तैलंग, वलूचा डी सूसा और एकावली खन्ना मुख्य भूमिका निभा रहे है . यह सीरीज २ भारत में सबसे बहुप्रतीक्षित थ्रिलर में से एक है.

क्रैकडाउन सीज़न 2 के समापन पर साकिब कहते है कि “मैं बहुत आभारी हूं कि मुझे रियाज़ पठान के किरदार को डिजिटल स्क्रीन पर जीने का मौका मिला. सीरीज़ की टीम ने शानदार तालमेल बिठाया और हम समय पर शूटिंग को सफलतापूर्वक पूरा करने में सक्षम रहे . अपने किरदार रियाज़ पठान की ट्रेनिंग से लेकर कैमरे के सामने आने तक की गई सभी तैयारी दमदार हुई . मैं इसकी रिलीज़ की प्रतीक्षा कर रहा हूं. मुझे उम्मीद है कि दर्शकों को यह सीरीज इतना पसंद आएगी की वो फिर से एक बार इस सीरीज को देखना पसंद करेंगे .”

साकिब सलीम, सोनाक्षी सिन्हा और रितेश देशमुख के साथ हॉरर कॉमेडी काकुड़ा में भी दिखाई देंगे और सोनाक्षी सिन्हा. हुमा कुरैशी अभिनीत अपनी पहली प्रोडक्शन डबल एक्सएल की रिलीज का इंतजार कर रहे हैं.

गुरमीत-देबीना की बेटी की पहली झलक आई सामने, देखें Photo

गुरमीत चौधरी (Gurmeet Choudhary) और देबीना बनर्जी (Debina Bonnerjee) के घर तीन दिन पहले ही नन्ही परी का आगमन हुआ है. गुरमीत चौधरी ने सोशल मीडिया पर एक वीडियो फैंस के साथ शेयर कर बताया था कि वो पेरेंट्स बन गए हैं.

उन्होंने इस वीडियो को शेयर करते हुए कैप्शन में लिखा था कि ‘ग्रैटिट्यूड के साथ हम अपनी बेबी गर्ल का इस दुनिया में स्वागत कर रहे हैं… 3-4-2022, आप सभी के प्यार और Blessings के लिए सभी को शुक्रिया, पेरेंट्स बने हैं.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Gurmeet Choudhary (@guruchoudhary)

 

देबीना हाल ही में अस्पताल से डिस्चार्ज हुईं. इस दौरान गुरमीत और देबीना अपनी नन्ही परी के साथ दिखे. हालांकि इनकी बेटी का चेहरा कैमरे में कैद नहीं हुआ. लेकिन अगर आप देबीना और गुरमीत की बेटी की पहली झलक देखना चाहते हैं तो अब आपका ये इंतजार खत्म हुआ. इन दोनों की बेटी की पहली तस्वीर सामने आ गई है.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Jeevita Oberoi (@jeevitaoberoi)

 

जी हां, इस तस्वीर को सोशल मीडिया पर जीविता (Jeevita Oberoi) नाम के इंस्टाग्राम अकाउंट से शेयर किया गया है. इस तस्वीर में जीविता ना केवल बच्ची को गोद में लिए हुए दिखाई दीं, बल्कि बच्ची का चेहरा भी दिखा. इस तस्वीर को शेयर करते हुए गुरमीत-देबीना को भी टैग किया है.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Gurmeet Choudhary (@guruchoudhary)

 

जीविता ने इंस्टाग्राम पर ये तस्वीर शेयर करते हुए कैप्शन में लिखा, ‘मेरी फिश और मेरा स्टार बॉय अब पेरेंट्स बन गए हैं. ये सब हुआ एक प्यारी सी नन्ही परी के आने के बाद. मैं अभी भी यकीन नहीं कर पा रही हूं कि तुम दोनों इस प्यारी सी बच्ची के पेरेंट्स बन गए हो. तुम दोनों को ढेर सारी खुशियां, प्यार, किस और सकारात्मक ऊर्जा इस प्यारे से सफर के लिए. एक बार फिर से शुक्रिया हमारे दिल को खुशियों से भरने के लिए. जीवी मासी हमेशा बेबी की फेवरेट मौसी रहेगी. लव यू.’ इस पोस्ट की तीसरी स्लाइड में बेबी गर्ल का चेहरा आप देख सकते हैं.

Anupamaa Prequel: शूटिंग छोड़कर पार्टी करती दिखी अनुपमा, देखें Video

टीवी सीरियल ‘अनुपमा’ का प्रीक्वल की शूटिंग इन दिनों चर्चे में है. 17 साल पहले अनुपमा और शाह परिवार के जीवन में क्या हुआ था, ये बड़ा ट्विस्ट एंड टर्न अनुपमा- नमस्ते अमेरिका में देखने को मिलेगा. अनुपमा इस शो में 28 साल की महिला के किरदार में नजर आएगी. इसी बीच एक अनुपमा का एक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें वह शूटिंग छोड़कर पार्टी करती दिखाई दे रही हैं.

दरअसल अनुपमा स्टार रुपाली गांगुली ने बीते दिन ही अपना 45वां जन्मदिन सेलीब्रेट किया है.  बर्थडे के दिन भी रुपाली गांगुली सीरियल अनुपमा के प्रीक्वल (Anupamaa Namaste America) की शूटिंग करती नजर आईं.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by ?????? ?️ (@_starsxempire_)

 

इसी बीच सीरियल अनुपमा के सेट की एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है. इस वीडियो में अनुपमा अपने टीवी शो की टीम के साथ केक कट करती नजर आईं. उसी समय अनुज यानी गौरव खन्ना ने भी अनुपमा को सरप्राइज दिया है.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by ?????? ?️ (@_starsxempire_)

 

अनुज ने अनुपमा की ये पार्टी वीडियो कॉल के जरिए अटैंड की. आप देख सकते हैं कि वीडियो में अनुपमा वीडियो कॉल पर अपने अनुज से बात करती नजर आ रही है. वीडियो में अनुपमा के प्रीक्वल का लुक आप देख सकते हैं.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by ?????? ?️ (@_starsxempire_)

 

हाल ही में ‘अनुपमा – नमस्ते अमेरिका’ का प्रोमो रिलीज किया गया है. इस शो में अनुपमा के कई कलाकार नजर आएंगे तो वहीं शो में टीवी एक्ट्रेस पूजा बनर्जी (Puja Banerjee) का भी नाम जुड़ गया है. खबर ये भी है कि शो में पूजा बनर्जी वनराज की गर्लफ्रेंड की भूमिका में नजर आएंगी.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by ?????? ?️ (@_starsxempire_)

 

हाल ही में पूजा बनर्जी ने वनराज संग फोटो शेयर की थी. इसी के साथ एक्ट्रेस ने अपनी भूमिका का भी जिक्र अपने पोस्ट में किया है. एक्ट्रेस पूजा बनर्जी ने पोस्ट में लिखा, यहां मैं प्रेजेंट कर रही हूं ऋतिका. मैं और सुधांशु को ‘अनुपमा-नमस्ते अमेरिका’ में एक नए अवतार में दिखाई देंगे.’

पावर वीडर: निराई-गुड़ाई का काम करें

यह यंत्र सब्जियों, फूलों व फलों के पौधों सहित कपास में अनावश्यक कतारों के बीच में उग आई खरपतवार को निकालने के लिए काम आता है. इस के अलावा यह गन्ने की फसल में निराईगुड़ाई करने के साथसाथ मिट्टी चढ़ाने में भी काम आता है.

यह पावर वीडर यंत्र खासकर उन छोटे और सीमांत किसानों के लिए बेहद ही फायदेमंद रहता है, जो ट्रैक्टर या उस से संबंधित यंत्रों पर भारीभरकम रकम खर्च करने में सक्षम नहीं हैं.

क्या है पावर वीडर

यह आमतौर पर छोटी मशीन होती है, जिस को इस्तेमाल करना बहुत ही आसान है. इस यंत्र में 1 या 2 इंजन लगे होते हैं. इंजन से ब्लेड, मेकैनिकल क्लच और गियरबौक्स को जोड़ने के लिए एक शाफ्ट लगी होती है. इस की गति को नियंत्रित करने के लिए चेन या बैल्ट ड्राइव अथवा वर्म गियर का उपयोग किया जाता है.

वैस, 2 या 4 गियर वाले पावर वीडर यंत्र भी आते हैं. छोटे वीडर 1.5 से 5 हौर्सपावर क्षमता वाले होते हैं. वैसे तो 2 स्ट्रोक इंजनों की क्षमता तकरीबन  25 से 50 सीसी है, पर इन की ईंधन खपत 60 से 90 मिनट प्रति लिटर होती है.

अपने आकार और फीचर्स के मुताबिक पावर वीडर की कीमतें अलगअलग हो सकती हैं. मिनी पावर वीडर यंत्र की कीमत तकरीबन 10,000 रुपए से शुरू हो कर 50,000 रुपए तक हो सकती है, जबकि मध्यम या दीर्घ पावर वीडर की कीमत तकरीबन 50,000 से डेढ़ लाख रुपए तक की कीमतों में आते हैं. उन्नत और एडवांस तकनीक वाले पावर वीडर की कीमतें एक से ढाई लाख रुपए तक हो सकती हैं.

4 पहियों वाला पूसा वीडर

यह बहुत ही साधारण यंत्र है. इस यंत्र में निराईगुड़ाई करने के लिए 30 सैंटीमीटर चौड़ा फाल लगा होता है. इस यंत्र से 40 सैंटीमीटर या उस से ज्यादा कतार से कतार की दूरी वाली फसलों की गुड़ाई कर सकते हैं. इस यंत्र का वजन तकरीबन 12 किलोग्राम है.

एक आदमी द्वारा खड़े हो कर इसे चलाया जाता है. हाथ से चला कर गुड़ाई करने वाले ये दोनों यंत्र भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, पूसा, नई दिल्ली द्वारा बनाए गए हैं.

आप इस संस्थान के कृषि अभियांत्रिकी विभाग से संपर्क कर इन यंत्रों की पूरी जानकारी ले सकते हैं. इस के अलावा इस यंत्र को किसी भी कृषि यंत्र निर्माता से खरीद सकते हैं, क्योंकि यह बहुत ही साधारण यंत्र है.

ट्रैकऔन कल्टीवेटर

कम वीडर

यह यंत्र गन्ना, कपास, मैंथा, फूल, पपीता और केले वगैरह की फसलों के साथसाथ दूसरी कतार वाली फसलों की निराईगुड़ाई करने और खाद मिलाने के भी काम आता है.

यह यंत्र पहाड़ी इलाकों में कृषि व बागानों के काम के लिए भी बेहद कारगर है. इस यंत्र से निराईगुड़ाई का खर्च तकरीबन 30 से 40 रुपए प्रति बीघा आता है.

यह कल्टीवेटर कम वीडर 2 मौडलों में स्थानीय बाजार में मौजूद है. पहला मौडल टीके 160पी पैट्रोल से चलने वाला है और दूसरा मौडल टीके 200 के केरोसिन से चलने वाला यंत्र है. दोनों में 4 स्ट्रोक इंजन लगा होता है. इस में 4.8 हौर्सपावर का इंजन होता है. इस में लगे रोटर की चौड़ाई तकरीबन 12 से 18 इंच तक है. इस यंत्र का वजन भी तकरीबन 80-90 किलोग्राम के आसपास है.

इस यंत्र को अमर हैड एंड गियर मैन्यूफैक्चरिंग कंपनी द्वारा बनाया गया है. यह यंत्र अपनेआप आगे की ओर खेत को तैयार करता हुआ चलता?है. इस मशीन को धकेलना नहीं पड़ता है. जरूरत के मुताबिक रोटर की चौड़ाई और गहराई को घटाया या बढ़ाया जा सकता है.

इतना ही नहीं, किसानों के फायदे के लिए भी समयसमय पर सरकार की अनेक योजनाएं आती रहती हैं, चाहे वे कृषि यंत्रों से जुड़ी हों, पशुपालन से जुड़ी हों या कृषि के अन्य क्षेत्र से जुड़ी हों, इन सभी योजनाओं का फायदा किसान ले सकते हैं. सरकार द्वारा इन सभी योजनाओं पर अच्छीखासी सब्सिडी यानी छूट किसानों को दी जाती है.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें