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‘द कश्मीर फाइल्स’: सिसकियों पर सियासत

आज कश्मीर का नाम सुनते ही हर किसी के जेहन में वहां की खूबसूरत वादियों की नहीं, बल्कि आतंकवाद की तसवीरें घूमने लगती हैं. ‘द कश्मीर फाइल्स’ फिल्म को ले कर देश में जिस तरह की बहस छिड़ी है, उस से कश्मीरी पंडितों की हालत में तो शायद कोई सुधार होगा नहीं, बल्कि पीडि़तों की सिसकियों पर सियासत जरूर शुरू हो गई है.

बौक्स औफिस पर रिकौर्ड तोड़ कमाई करने का उदाहरण बनी फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ दर्द, आक्रोश और तबाही की एक तल्ख सच्चाई को समेटे हुए है. लेकिन 3 दशक से भी ज्यादा

समय पहले कश्मीरी पंडितों पर हुए जुल्म और विस्थापितों को ले कर अब एक नई बहस छिड़ गई है.

फिल्म को विवाद का जरिया बना दिया गया. देश के 2 धड़ों भाजपा और कांग्रेस समर्थकों के बीच मीडिया से ले कर संसद तक में इस की गूंज सुनी गई. सिनेमाप्रेमियों को फिल्म से कहीं अधिक उन के बहस से मनोरंजन मिला. दु:खद यह रहा कि उन से कोई समाधन भी निकलता नजर नहीं आया.

विवेक रंजन अग्निहोत्री की कश्मीर से ले कर कन्याकुमारी तक चर्चित हो चुकी फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ 11 मार्च को देश के मात्र 600 सिनेमाघरों में प्रदर्शित हुई थी. इस फिल्म में न कोई हीरो है और न ही कोई हीरोइन. और तो और इस में न ही रूमानियत भरी वैसी कोई कहानी ही है, जिस के लिए कश्मीर की वादियों की भी बात की जाए.

फिल्म में एक बुजुर्ग चर्चित अभिनेता अनुपम खेर हैं, जो सार्वजनिक मंचों से कश्मीरी पंडितों की पीड़ा का झंडा उठाते रहे हैं. अभिनेत्री के नाम पर 90 के दशक की पल्लवी जोशी हैं. वह विवेक की पत्नी हैं. कुछ भूमिकाओं में मिथुन चक्रवर्ती हैं.

किंतु, इस में विलेन की एक जबरदस्त पृष्ठभूमि बनाई गई है. अधिकतर पात्रों को हिंदू देवीदेवताओं के नाम दिए गए हैं. मुख्य पात्र को नीला रंग और तिलक लगाए हिमालय के शैव प्रतीकात्मक रूप में ढाला गया है. छात्र संगठनों और एक्टिविस्टों के झंडे लहराए गए हैं. वामपंथी विचारधारा का गढ़ माने जाने वाले जेएनयू (बदला हुआ नाम दे कर) को भुनाया गया है.

प्रचार तंत्र का सहारा

मुसलमान पात्रों के जरिए आतंकवादी हिंसा और जन्मभूमि की भावनाओं का तानाबना बुन कर एक हद तक क्लाइमेक्स तक पहुंचने की कोशिश की गई है, ताकि कोई भी देख कर अपनी नम आंखें बंद कर ले या फिर फूटफूट कर रो पड़े. यही इस फिल्म की खूबी है, जिस में फिल्म के लेखक और निर्देशक सफल हो गए हैं.

फिल्म से संबंधित दूसरा पक्ष फिल्मकार द्वारा दबे हुए सच को सामने लाने की बात को प्रचारित करना रहा. इस के लिए 5 राज्यों में हुए चुनाव के ठीक बाद प्रदर्शित करने की योजना बनाई गई.

शुरुआत एक हास्य व्यंग्य के लिए मशहूर कपिल शर्मा टीवी शो के घसीटने से हुई. उस के द्वारा फिल्म प्रमोशन के लिए शो में जगह नहीं मिलने पर फिल्मकार द्वारा उसे मुद्दा बनाया गया.

जबकि वह यह भूल गए कि कुछ माह पहले ही एक सच्ची घटना से सबंधित अदालती फैसले पर फिल्म ‘जय भीम’ आई थी, जिसे प्रमोट करने के लिए कपिल शर्मा शो की जरूरत ही नहीं महसूस की गई. इस फिल्म ने न केवल सफलता के झंडे गाड़े, बल्कि सकारात्मक प्रभाव छोड़ने में भी कामयाब हुई.

फिल्म के स्पैशल शो रखे गए. लालकृष्ण आडवाणी समेत कई लोगों को स्पैशल शो में फिल्म दिखाई गई. उन की आंखों से बहते आंसुओं को प्रतिक्रिया के तौर पर भावनात्मक प्रचार का माध्यम बनाया गया.

इस सिलसिले में फिल्म के लिए गहन शोध की मेहनत और इस पर आई लागत का हवाला दिया गया. साथ ही फिल्म की शूटिंग के दरम्यान फतवे जारी करने जैसे विरोध के किस्से भी बयां किए गए.

इन तथ्यों के जरिए फेसबुक और इंस्टाग्राम से ले कर सभी तरह के सोशल मंचों पर डिजिटल मार्केटिंग का गहन अभियान चला दिया गया.

इस फिल्म में क्रूरता के फिल्माए गए हिंसक दृश्य दर्शकों की रूह कंपा देने वाले हैं. आतंकियों द्वारा बी.के. गंजू की निर्मम हत्या चावल के कंटेनर के अंदर कर दी गई थी. आतंकी हिंसा यहीं नहीं थमी थी. इस के बाद उन्होंने गंजू की पत्नी को उन के खून से सने चावल खाने को भी मजबूर कर दिया.

वह उस समय की कई घटनाओं में से एक थी, जिन से दर्शक फिल्म के अंत तक उन के पिता की भूमिका निभाने वाले अनुपम खेर के माध्यम से जुड़े रहते हैं. फिल्म का हरेक हिंसक फ्रेम कश्मीरी पंडितों के दर्द की दास्तां कहता है.

बी.के. गंजू की हत्या कश्मीरी पंडितों के नरसंहार की सैकड़ों दर्दभरी कहानियों में से एक थी. वह श्रीनगर के छोटा बाजार नाम के इलाके में रहते थे. केंद्र सरकार के दूरसंचार विभाग में इंजीनियर थे.

मर्म को झकझोरने की कोशिश

बात 22 मार्च, 1990 की है. उस दिन कर्फ्यू में ढील दी गई थी. बी.के. गंजू घर वापस लौटते समय आतंकियों की नजरों में आ गए थे. आतंकी उन का पीछा करते हुए घर तक आ पहुंचे थे.

बी.के. गंजू को भी इस बात का एहसास हो गया था. किसी तरह से आतंकियों से नजर बचा कर वह घर में घुसते ही ताला लगा देते हैं.  कुछ ही देर में आतंकियों की घर में दस्तक होती है. वे ताला तोड़ कर घर में घुस जाते हैं. इस बीच बी.के. गंजू घर की तीसरी मंजिल पर चावल के एक ड्रम के अंदर छिप जाते हैं.

आतंकी गंजू को घर के अंदर खूब ढूंढते हैं. उन के नहीं मिलने पर आतंकी लौटने लगते हैं. तभी बी.के. गंजू का पड़ोसी आतंकी को उन के चावल के ड्रम में छिपे होने की जानकारी दे देता है.

फिर आतंकी ड्रम के अंदर ही गंजू की हत्या कर देते हैं. उन्हें कंटेनर के अंदर ही गोली मार दी जाती है. उस वक्त गंजू केवल 30 साल के थे.

इस घटना को फिल्म का हिस्सा बनाने की खास वजह थी. वह यह कि 2019 में जानीमानी स्तंभकार सुनंदा वशिष्ठ ने जब जम्मूकश्मीर पर अमेरिकी संसद में जम कर स्पीच दी थी, तब उन्होंने बी.के. गंजू की इस घटना का उल्लेख किया था.

तब उन्होंने कहा था कि बी.के. गंजू जैसे लोगों को पड़ोसियों पर भरोसा करने के बदले में सिर्फ धोखा मिला.

इस के अलावा फिल्म में कई और नरसंहार की घटनाएं फिल्माई गई हैं, जो दर्शकों पर अमिट छाप छोड़ती है. एक रूह कंपा देने वाला सीन पुष्करनाथ पंडित (अनुपम खेर) की बहू शारदा पंडित का किरदार निभाने वाली अभिनेत्री भाषा सुबली पर फिल्माया गया है.

कश्मीरी पंडितों को जब उन के घर से पलायन करने को मजबूर कर दिया जाता है और वो कैंप में दर्दभरी जिंदगी बिता रहे होते हैं. तभी दरिंदे आतंकी आर्मी की वरदी में वहां जबरन घुस आते हैं. सुबुली को निर्वस्त्र कर देते हैं.

इसी में उन पर फिल्माया गया आरी से काटने का सीन भी है. एक सीन में 29 लोगों को एक लाइन में खड़ा कर आतंकी अपनी गोली से एकएक कर मार डालते हैं.

राष्ट्रपति शासन को मुख्यमंत्री काल बताया

इस तरह के क्रिएट किए गए सीन के जरिए लोगों के जेहन में तब के कश्मीर में एक खास समुदाय के प्रति वैमनस्य की भावना को बिठाने की कोशिश की गई. यह भी आरोप मढ़ दिया गया कि पिछली सरकारों ने हिंदुओं की अनदेखी की.

समाधान के लिए मौजूदा सरकार पर नजर टिका दी गई. यह फिल्म क्यों देखी जानी चाहिए? इस के तर्क भी दिए गए, लेकिन फिल्म में समस्या का कोई समाधान नहीं निकाला गया, केवल हिंसा की एक पक्षीय बातें हुईं.

यह टिप्पणी फिल्म समीक्षकों के अलावा कई सम्मानित शख्सियतों ने की. उदहारण के तौर पर छत्तीगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने फिल्म को सिरे ने नकारते हुए कहा कि यह फिल्म सिर्फ हिंसा दिखाती है, इस में कोई समाधान नहीं है.

फिल्म में कुछ गलत तथ्य भी डालने के भी आरोप लगे. जैसे उस दौरान कश्मीर में राष्ट्रपति शासन था और राज्यपाल जगमोहन थे. जबकि फिल्म में मुख्यमंत्री की चर्चा की गई.

फिल्म से उपजे विवादों की वजह से इस की गूंज संसद तक में सुनाई दी. बसपा के एक सांसद ने फिल्म पर प्रतिबंध लगाने की मांग की तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक ने इस पर टिप्पणी करते हुए फिल्म निर्माण की सराहना की.

फिल्म को टैक्स फ्री करने की मांगों का भी असर हुआ और फिर फिल्म 9 राज्यों में टैक्स फ्री कर दी गई. यानी फिल्मकार का उद्देश्य पूरा हो गया.

2 धड़ों में बंट गए लोग

यह फिल्म रिलीज होने के बाद बहस का मुद्दा बन गई. लोग 2 धड़ों में बंट गए. एक ने कांग्रेस का पक्ष रखते हुए कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास की बातें कीं.

साथ ही भाजपा की अटल बिहारी वाजपेयी के दौर की सरकारों को भी आड़ेहाथों लिया. दूसरे पक्ष ने इस फिल्म को भाजपा के दौर में एक कड़वे सच को उजागर करने वाला बताया.

यह कहा जा सकता है कि ‘द कश्मीर फाइल्स’ एक ऐसी फिल्म बन गई, जिस की बहुत तारीफ हो रही है. एक बड़ा तबका इस फिल्म के सपोर्ट में है तो वहीं कई लोग ऐसे भी हैं, जो फिल्म को प्रोपेगेंडा और भाजपा सरकार का वोट बैंक बता रहे हैं.

अब तक देश के भाजपा शासित 9 राज्यों ने इस फिल्म को टैक्स फ्री कर दिया है. ‘द कश्मीर फाइल्स’ फिल्म की सराहना प्रधानमंत्री समेत केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी भी कर चुके हैं.

इन्हीं दिनों दक्षिण के सुपर स्टार ‘बाहुबली’ फेम प्रभास की एक फिल्म ‘राधे श्याम’ (हिंदी वर्जन) भी प्रदर्शित हुई. ‘द कश्मीर फाइल्स’ के आगे उस ने बौक्स औफिस पर पानी भी नहीं मांगा. उस के बुरी तरह फ्लौप से प्रभास के एक प्रशंसक ने खुदकुशी तक करने की कोशिश की.

इधर टिकट खिड़की पर ‘द कश्मीर फाइल्स’ के धुआंधार रफ्तार से आगे बढ़ने का असर यह हुआ कि 16 मार्च तक इसे 2700 परदों पर प्रदर्शित कर दिया गया.

इस के कुछ दिन पहले की बहुचर्चित आलिया भट्ट अभिनीत ‘गंगूबाई’ भी बेअसर हो गई तो अक्षय कुमार की धुआधार ट्रेलर से प्रशंसित हो चुकी ‘बच्चन पांडे’ की सफलता पर भी सवालिया निशान लग गया. एक सप्ताह आतेआते मात्र 12 करोड़ की लागत से बनी  यह फिल्म 80 करोड़ से अधिक की कमाई कर चुकी थी.

एक वर्ग इसे ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाने की कोशिश में जुट गया. दिल्ली में जनकपुरी के एक सिनेमाहाल में यह फिल्म लोगों को फ्री दिखाई गई. इस का पूरा खर्च एक यूट्यूबर गौरव तनेजा ने उठाया था. इस की जानकारी उन्होंने अपने ट्विटर हैंडल के जरिए दी थी.

उन्होंने लिखा था, ‘दिल्ली के जो लोग इस फिल्म को देखना चाहते हैं, लेकिन टिकट खरीदने की क्षमता नहीं है, वे 17 मार्च को दोपहर एक बजे दिल्ली के जनकपुरी में सिनेमाहाल में इस फिल्म को देख सकते हैं.’

इस फिल्म ने ऐसी सच्चाई दिखाई कि विस्थापित कश्मीरी पंडितों के जख्म हरे हो गए. उन की आंखों में आंसुओं के सैलाब भर गए. इस के विपरीत फिल्म पर एकपक्षीय होने का भी आरोप लग गया और राजनीति की गंध फैल गई. राजनेताओं के बयानों से भी कोई समाधान निकलता नजर नहीं आया.

विवाद कई, तर्क अपनेअपने

जम्मूकश्मीर में नैशनल कौन्फ्रैंस के उपाध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने नाराजगी दिखाते हुए कहा कि फिल्म के जरिए दुनिया भर में एक समुदाय को बदनाम करने की कोशिश की जा रही है.

32 साल पहले जो हुआ, उस से एक आम कश्मीरी खुश नहीं है. आज एक धारणा बनाई जा रही है कि सभी कश्मीरी सांप्रदायिक हैं, सभी कश्मीरी दूसरे धर्मों के लोगों को सहन नहीं करते हैं. उन का कहना है कि फिल्म निर्माताओं ने मुसलिमों और सिखों के बलिदान को नजरअंदाज किया है, जो आतंकवाद से पीडि़त थे.

अब्दुल्ला का तर्क है कि ‘द कश्मीर फाइल्स’ एक कमर्शल फिल्म थी तो किसी को कोई समस्या नहीं है, लेकिन अगर फिल्म के निर्माता दावा करते हैं कि यह वास्तविकता पर आधारित है, तब तो तथ्य गलत हैं.

जिन दिनों कश्मीरी पंडितों के पलायन की दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएं हुईं, उन दिनों फारुक अब्दुल्ला मुख्यमंत्री नहीं थे. जगमोहन राज्यपाल थे. केंद्र में वी.पी. सिंह की सरकार थी, जिन्हें बाहर से भाजपा का समर्थन था. इस तथ्य को फिल्म से दूर रखा गया.

बिहार में यह फिल्म टैक्स फ्री कर दी गई है, लेकिन इस पर राजनीतिक विवाद नहीं थम रहा है. बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) के अध्यक्ष जीतनराम मांझी ने भी फिल्म पर बड़े आरोप लगाते हुए उसे आतंकियों की गहरी साजिश कहा है.

इस फिल्म को ले कर जीतन राम मांझी ने अपने ट्वीट में लिखा है कि ‘द कश्मीर फाइल्स आतंकियों की एक गहरी साजिश का परिणाम हो सकता है. इसे दिखा कर आतंकी संगठन कश्मीरी ब्राह्मणों में डर का माहौल बना रहे हैं.’

इस का मकसद यह है कि कश्मीरी ब्राह्मण डर से फिर कश्मीर में वापस नहीं जाएं. मांझी इशारों में फिल्म यूनिट सदस्यों के आतंकी कनेक्शन की बात भी कहते हैं.

वह लिखते हैं कि फिल्म यूनिट सदस्यों के आतंकी कनेक्शन की जांच होनी चाहिए. साथ ही अपने ट्वीट को फिल्म के अभिनेता अनुपम खेर को टैग भी कर दिया है.

इस के पहले बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी ने  टैक्स फ्री का विरोध किया था. उन्होंने कहा था कि एक फिल्म गोधरा दंगे पर भी बननी चाहिए.

उस वक्त मांझी की पार्टी ने राबड़ी देवी पर तंज कसते हुए चारा घोटाले पर भी फिल्म बनाने की मांग रखी थी. कहा था कि इस से देश को पता लगेगा कि कैसे स्कूटर पर गायभैंस ढोए गए और महज 12 साल की उम्र में तेजस्वी यादव अरबपति बन गए.

उल्लेखनीय है कि इस फिल्म की भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र की एनडीए सरकार ने तारीफ की है. खुद प्रधानमंत्री मोदी इस की प्रशंसा कर चुके हैं. दूसरी तरफ एनडीए के नेता जीतन राम मांझी इस फिल्म में आतंकी कनेक्शन व साजिश ढूंढ़ रहे हैं.

इस बीच  निर्देशक विवेक अग्निहोत्री को फिल्म को ले कर मिल रही धमकियों को देखते हुए सरकार ने उन्हें ‘वाई’ श्रेणी की सुरक्षा दी है.

इस से कश्मीर का अलगाववादी नेता यासीन मलिक भी चर्चा में आ गया, जो इन दिनों तिहाड़ जेल में बंद है. उन की पाकिस्तान में रह रही बीवी मुशाल हुसैन मलिक ने फिल्म आने के बाद भारत के बारे में फेक न्यूज फैला कर अलग ही सनसनी पैदा कर दी.

यासीन मलिक की बीवी का रुख

मलिक जम्मूकश्मीर लिबरेशन फ्रंट का अध्यक्ष था और उस ने मूलरूप से कश्मीर घाटी में सशस्त्र उग्रवाद का नेतृत्व किया था. मलिक पर 1990 में एक हमले के दौरान भारतीय वायु सेना के 4 कर्मियों की हत्या का साल 2020 में आरोप लगाया गया था. उस पर रुबैया सईद के अपहरण का भी मुकदमा चल रहा है.

यासीन मलिक की पत्नी मुशाल हुसैन मलिक अपने सोशल मीडिया अकाउंट्स में जहर उगलने लगी. उस के ट्विटर अकाउंट पर 80,000 से ज्यादा फालोवर्स हैं. उस का अकाउंट वैरीफाइड भी है. उस के फालोवर्स में अधिकांश पाकिस्तानी हैं.

मुशाल ने अपने ट्विटर अकाउंट पर लिखा है कि उसे यासीन मलिक की पत्नी होने पर गर्व है और वह खुद को कश्मीरी अलगाववादियों का नेता बताती है.

मुशाल यासीन के बारे में कहा जा रहा है कि अपने सोशल मीडिया अकाउंट के जरिए लगातार कश्मीरी लड़कियों के फोटो इस तरह पोस्ट करती है, जिस से यह लगता है कि भारत में मुसलमानों के ऊपर अत्याचार हो रहे है. मुसलिम महिलाओं पर अत्याचार किए जा रहे हैं.

उस के पोस्ट देखने पर ऐसा लगता है कि भारत में मुसलमानों को प्रताडि़त किया जा रहा है, उन का नरसंहार हो रहा है. मुसलिम महिलाओं के साथ रेप हो रहे हैं.

मुशाल अपने पति को निर्दोष बताते हुए रिहाई की मांग कर रही है. साल 2019 में मुशाल मलिक पाकिस्तान के स्वतंत्रता दिवस पर आयोजित एक प्रोग्राम में शामिल हुई थी. तब उस ने एक कविता के जरिए कश्मीर के मुसलमानों पर अत्याचार होने का आरोप लगाया था.

यासीन से उम्र में 20 साल छोटी मुशाल को पाकिस्तान में राष्ट्रीय महिला अधिकार पुरस्कार (2018) मिल चुका है. उस के पाकिस्तान में नेताओं और अधिकारियों के साथ संबंध हैं. वैसे मुशाल सेमी न्यूड पेंटिंग बनाने के लिए प्रसिद्ध है. वह पीस ऐंड कल्चर आर्गनाइजेशन, पाकिस्तान की अध्यक्ष है.

फिल्म को अतुलनीय और अविश्वनीय बताने वालों की एक अलग जमात है, जबकि फिल्म के प्रोड्यूसर अभिषेक अग्रवाल ने पीएम नरेंद्र मोदी के साथ अपनी एक तसवीर सोशल मीडिया पर पोस्ट कर दी.

यानी कि फिल्म को ले एक कामेडियन की खिंचाई से ले कर कमाई तक के बाद जो नई सच्चाई समाने आई उस में राजनीतिक बवाल लोगों पर हावी हो गया.

सोशल मीडिया पर साफतौर पर इस फिल्म को भाजपा के कई दिग्गज नेताओं का समर्थन मिला, लेकिन उसी पर सवाल भी खड़े किए जा रहे हैं कि उस की सरकार ने कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास के लिए क्या किया?

सरकारों ने की उपेक्षा

जिन दिनों कश्मीर से हिंसा के शिकार परिवारों का पलायन हो रहा था, उस का एक कारण और भी था. वहां आतंकी गतिविधियों के चरम पर पहुंचने से स्थानीय कारोबार ठप पड़ गया था. टूरिज्म बंद हो चुका था. उस से जुड़े लोगों को दोजून की रोटी कमाना दूभर था.

फिल्मों की शूटिंग पूरी तरह से बंद थी. बड़े कारोबार में अड़चनें आ रही थीं. पूरे इलाके में आबादी की तुलना में सेना के जवानों की चहलकदमी और अधिकतर इलाके में रात के कर्फ्यू ने जनजीवन को बुरी तरह से प्रभावित कर दिया था.

विकास ठप था. लोग पड़ोसी राज्यों और महानगरों से कट से गए थे. बुनियादी सुविधाओं में घोर कमी थी. शिक्षा, खेतीखलिहानी से ले कर हेल्थ सेक्टर तक चरमरा गया था. ऐसे में पलायन होना स्वाभाविक था.

उन दिनों केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में भी बदलाव की राजनीति अंगड़ाई ले रही थी. उन के द्वारा ‘इंडिया शाइनिंग’ तक नारा दे दिया गया था.

इन सब के बावजूद विस्थापित कश्मीरियों को राहत की एक बूंद नहीं हासिल हो रही थी. उल्टे वे अलगाववादी नेताओं के रहमोकरम पर आश्रित थे. तुष्टिकरण की राजनीति का चलन चल पड़ा था. फिल्म में इस पहलू को छूने की भी जरूरत नहीं समझी गई.

इस तरह की तीखी बहस के बीच 2011 में विस्थापित कश्मीरी पंडितों के लिए बनी जगती टाउनशिप के करीब 4,000 विस्थापित परिवार सकते में आ गए हैं. उन के मन में अब नए सिरे से भय समा गया है.

फिल्म ने जख्म कुरेद कर मुसलिम समुदाय के खिलाफ भावना को भड़काने का ही काम किया है.

वे नहीं मानते कि फिल्म से उन की घर वापसी का कोई रास्ता निकलेगा. उन का कहना है कि इस से और अधिक अड़चनें पैदा होंगी.

एक कड़वा सच तो यह भी है कि 3 दशक बीत जाने के बाद भी केंद्र और राज्य सरकारें कश्मीरी हिंदुओं की घर वापसी तक सुनिश्चित नहीं करा पाईं.

हालांकि जगती टाउनशिप में रहने वाले कुछ विस्थापित फिल्म की प्रशंसा करते तो हैं, लेकिन वे यह भी कहते हैं कि 1990 से ले कर आज तक उन के नाम पर फिल्में तो बहुत बनीं, लेकिन उन के जीवन में स्थिरता नहीं आई है, घर वापसी के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया. उन के जीवन में कुछ भी नहीं बदला है.

बहरहाल, कहने का मतलब यह है कि राजनैतिक दल इस फिल्म के जरिए पीडि़तों की सिसकियों पर सियासत करने पर नहीं चूक रहे.

वह राह जिस की कोई मंजिल नहीं

रंजना नंदू को अपने साथ अश्वित की देखभाल के लिए इलाहाबाद से दिल्ली ले आई थी. नंदू ने सबकुछ यहां अच्छे से संभाल लिया था. नंदू ने इस घर को ही अपना समझ लिया था. इसलिए उस ने शादी नहीं की. अश्वित ने नंदू के दिए पैसों से इंजीनियरिंग कर ली.

वह राह जिस की कोई मंजिल नहीं: भाग 1

बस में झटका लगा, तो नंदू की आंखें खुल गईं. उस ने हाथ उठा कर कलाई में बंधी घड़ी देखी, “अरे, अभी तो 2 ही बजे हैं. बस तो दिल्ली सुबह साढ़े 7 बजे तक पहुंचेगी. अगर बस पंख लगा कर उड़ जाती, तो यह 5 घंटे का सफर 5 मिनट में कट जाता. तब कितना अच्छा होता.”

घर छोड़े आज पूरे 22 दिन हो गए हैं. पिछले एक सप्ताह से तो अश्वित से बात भी नहीं हुई है. पता नहीं क्या करता रहता है. न तो घर का ही फोन लग रहा है, न ही उस का मोबाइल.

निकलते समय बात हुई थी कि दिन में एक बार जरूर बात करेगा, पर यह लड़का… नंदू को थोड़ी चिंता हुई, अश्वित कहीं बीमार तो नहीं पड़ गया? पर बीमार होता तो फोन तो लगना चाहिए था. एकदम बेवकूफ लड़का है. नंदू को सहज ही गुस्सा आ गया. उस ने बस में नजर फेरी, हलकी रोशनी में बस की सवारियां गहरी नींद में सो रही थीं. उस ने खिड़की से बाहर की ओर देखा, दुनिया जैसे गहरे अंधकार में डूबी थी. वैसा ही अंधकार उस के जीवन में भी तो समाया हुआ था.

मां की मौत के बाद ही रंजनाजी से उस की मुलाकात हुई थी. रंजना उस समय अश्वित के जन्म के लिए इलाहाबाद अपने मायके आई हुई थीं. रंजना के मायके में नंदू की मामी काम करने आती थी.

मां की मौत के बाद नंदू के मामा उसे अपने घर ले आए थे. उस समय नंदू की उम्र 14-15 साल रही होगी.

रंजनाजी उसे बहुत अच्छी लगती थीं. जब कभी वह रंजना के पास बैठती, रो पड़ती. उस की मां को मरे हुए अभी 6-7 महीने ही हुए थे. मामी के साथ रहना उसे अच्छा नहीं लगता था. दूसरा कोई सगा रिश्तेदार था नहीं. सारे रास्ते बंद हो गए थे. ऐसे में रंजनाजी उस का सहारा बनीं.

बच्चा पैदा होने के बाद जब वह दिल्ली आने लगीं, तो अश्वित के साथ नंदू को भी ले आई थीं.

नंदू दिल्ली का नजारा देख कर दंग रह गई. चौड़ीचौड़ी सड़कें, ऊंचेऊंचे मकान, कतारों में बड़ीबड़ी दुकानें, तमाम मोटरगाड़ियां और रंजना का शहर में उतना बड़ा घर. 5 कमरे नीचे और 4 कमरे ऊपर. उस ने पूछा, ‘‘दीदी, आप यहां अकेली रहती हैं?’’

‘मैं अकेली नहीं, हम दोनों रहते हैं. मैं और तुम्हारे साहब.’’

‘‘सिर्फ 2 लोग. और इतना बड़ा घर…?’’

‘‘पर, अब तो हम 4 लोग हो गए हैं ना.’’

‘‘तो भी तो यह बहुत बड़ा घर है…’’

यह सुन कर रंजनाजी हंस पड़ीं. नंदू को यह घर और दिल्ली, दोनों बहुत अच्छे लगे. धीरेधीरे रंजना ने उसे घर के कामकाज और खाना बनाना सिखा दिया. फिर तो जल्दी ही नंदू ने घर का सारा कामकाज संभाल लिया.

प्रबोधजी उसे प्रेम से रखते थे. फुरसत पाते तो उसे थोड़ाबहुत पढ़ातेलिखाते भी. अश्वित तो पूरी तरह नंदू के सहारे हो गया था. नंदू को भी वह बहुत प्यार करता था. वह जरा भी रोता, नंदू सारे काम छोड़ कर उस के पास आ जाती.

नंदू ने एक बार फिर कलाई पर बंधी घड़ी देखी, ‘यह सूई आगे क्यों नहीं बढ़ रही है?’ उस ने पैर फैलाए. पैर अकड़ गए थे. पीछे सीट पर कोई बच्चा रोया, पर थोड़ी ही देर में शांत हो गया. शायद उस की मां ने थपकी दे कर उसे सुला दिया था.

अश्वित की भी तो ऐसी ही आदत थी. कोई थपकी देता, तभी वह सोता था. और थपकी देने के लिए अकसर नंदू ही आती थी. नींद आती तो वह उस का हाथ पकड़ कर बिस्तर पर ले जाता, ‘‘नंदू थपकी दो न.’’

पूरा दिन नंदू के पीछेपीछे घूमता रहता, ‘‘नंदू नहलाओ, खाना खिलाओ, कपड़े पहनाओ. नंदू मैथ की नोटबुक नहीं मिल रही है. नंदू यहां तो मेरा एक ही मोजा है, दूसरा कहां गया?’’

यही नहीं, कभीकभी नंदू खाना बना रही होती, तो वह आ कर कहता, ‘‘नंदू खेलने चलो न.’’

‘‘कैसे खेलने चलूं? मैं खाना बना रही हूं न.’’

‘‘मम्मी हैं न, वह खाना बनाएंगी. तुम चलो.’’

‘‘जाओ, मम्मी के साथ खेलो, मुझे खाना बनाने दो.’’

‘‘नहीं, उन्हें बौल फेंकना नहीं आता, तुम चलो,’’ एक हाथ में बौल और कंधे पर बैट रखे, जींस और चेक  की शर्ट पहने, पैर पटकते हुए अश्वित की तसवीर नंदू अभी भी जस का तस बना सकती थी.

रंजनाजी हमेशा खीझतीं, ‘‘नंदू, तुम इस की हर जिद मत पूरी किया करो. देखो न, यह जिद्दी होता जा रहा है.’’

नंदू हंस देती. अश्वित रोआंसा हो कर कहता, ‘‘मम्मी, मैं आप से कहां जिद करता हूं. मैं तो नंदू से जिद करता हूं.’’

‘‘मैं देखती नहीें कि हर बात में जिद करता है. जो चाहता है, वही करवाता है.’’

‘‘हां, नंदू से मैं जो चाहूंगा, वही करवाऊंगा.’’

रंजना नंदू को डांटतीं, ‘‘तुम ने इसे बिगाड़ कर रख दिया है. याद रखना, एक दिन पछताओगी.’’

रंजनाजी की बात आखिर इतने दिनों बाद सच निकली. धीरेधीरे वह जिद्दी होता चला गया. आज इतना बड़ा हो गया, फिर भी मन में जो आ गया, वही करवाता है. नंदू के लिए चारधाम की इस यात्रा का पैसा उस ने जिद कर के ही जमा किया था. नंदू ने कितनी बार मना किया, पर वह कहां माना. उस ने कहा,

‘‘नहीं, तुम चारधाम की यात्रा कर आओ. शायद फिर नहीं जा पाओगी.’’

‘‘पर, मैं इस घर और तुम्हें किस के भरोसे छोड़ कर जाऊं? तुम्हारी शादी के बाद…”

“फालतू बात मत करो, अब मैं छोटा नहीं हूं. तुम जाओ. 20-22 दिन तो ऐसे ही बीत जाएंगे.’’

साउथ इंडियन: माधवन किसे देखकर ठहर गया?

लेखिका-अर्विना

तरंगिणी एक बिल्डर के आफिस में रिसेप्शन पर काम करती  थी . आज रविवार का दिन होने की वजह से फ्लेट देखने और बुक करने वालों की भीड़ थी .

एक्सक्यूजमी …..

…क्या  आप बता सकती हैं मि. चड्डा कहां मिलेंगे ?

तरंगिणी ने ऊपर देखा तो देखती ही रह गई सांवला रंग तीखे नाक नक्श छः फिट लगभग हाईट हेंडसम लग रहा था . बिना पलकें झपकाए उसकी और देखने अलपक निहारने लगी .

मेडम ! सुनिये चड्डा जी कहां मिलेंगे में यहां बतोर एकाउंट आफीसर की पोस्ट पर ज्वाइन करने आया हूं .

तरंगिणी झेप गई  .. जी  वो .. आप दाहिने हाथ की तरफ बने रुम नंबर तीन  में चले जाईये वहीं चड्डा जी अपने केबिन में बैठे हैं.

धन्यवाद मेडम .

आप मुझे तरंगिणी कह सकते हैं .

माधवन मुस्कुराते हुए आगे की ओर बढ़ गया .

आई कम इन सर . आओ माधवन ! और कोई परेशानी तो नहीं हुई पहुंचने में , ओह ! नो ..नो सर , बैठो माधवन .

माधवन तुमहारे रहने के लिए  वन बीएचके का फ्लेट मिलेगा उसकी चाबी तरंगिणी से ले लेना अभी तुम सफर से आए हो जाकर आराम करो  , किसी भी तरह की जानकारी चाहिए तो तरंगिणी तुम्हें हेल्प कर देगी .

ओके ….सर धन्यवाद .

माधवन केबिन से बाहर निकल कर रिसेप्शन की

बढ़ा गया देखा तरंगिणी अभी बैठी हुई थी .

तरंगिणी मेडम !  मेडम ..वेडम नहीं आप… मुझे  तरंगिणी कह सकते हैं .

ओके !   आज से बल्की  अभी से  तरंगिणी … अच्छा ये बताओ की फलेट नंबर तीन किधर है और इस नाचीज़ को भूख भी बहुत जोर से लगी है .आस पास कोई रेस्टोरेंट है क्या?

माधवन जी यहाँ केंटीन है वहां आप जो भी खाना  चाहे  मिल जायेगा यहां की काफी बहुत अच्छी बनती है जरुर पीजिए .

तरंगिणी जी बताने‌ के लिए शुक्रिया .

माधवन बाहर आया तो वहां कोई दिखाई नहीं दिया कुछ देर इंतजार के ‌बाद वाचमेन आता दिखाई दिया .

वाचमेन ये फ्लेट नंबर तीन किधर है ?

सर  साईड में अनारा अपार्टमेंट है इसी में चले जाईये नीचे गोरखा बैठा होगा वो आप को बता देगा .

माधवन अनारा अपार्टमेंट के सामने पहुंचा वहां बैठे गोरखे ने माधवन को सलाम ठोका

सालाम शाब

साहब आपको कहां जाना है ?

फ्लेट नंबर तीन में

शाबजी सामने से बायी ओर लिफ्ट है उसी के बगल से सीढ़ियां भी गई है उपर की ओर आप जैसे चाहे वैसे जा  सकते हैं फस्ट फ्लोर पर  आगे जाकर फ्लेट नंबर तीन है .

धन्यवाद गोरखा भाई .

माधवन सामान लेकर लिफ्ट से बाहर आया तो दाहिने हाथ पर बना फ्लेट नंबर तीन दिखाई दिया उसने ताला खोल कर स्विच ऑन कर लाईट जला दी . कमरे का निरिक्षण किया तो देखा जरुरत का सारा सामान मोजूद था .

माधवन ने‌ फ्रिज खोलकर पानी की बोतल निकाली और सोफे पर धस गया माधवन को बहुत थकान महसूस हो रही थी‌ , लेकिन भूख भी जोर से लगी थी इसलिए कपड़े निकाल कर वाशरुम की तरफ बढ़ गया .

 

शावर बाथ  लेकर निकला तो कुछ तरोताजा महसूस किया .

तैयार होने के बाद आईने में माधवन ने एक बार खुद को निहारा तो अचानक से जहन में तरंगिणी हुई छोटी सी मुलाकात उसके चेहरे पर मुस्कान ले‌आई लगा अंजान शहर में कोई अपना मिल गया हो .

फ्लेट से उतर कर सीधे रिसेप्शन पर पहुंचा तो देखा कोई ओर रिसेप्शन पर बैठी थी‌.माधवन ने पूछा तरंगिणी घर चली गई क्या ?

सर वो … तरंगिणी अभी अभी केंटीन की तरफ चली गई हैं  .

ओके .. धन्यवाद

माधवन केंटीन की तरफ चला गया वहां पहुंच कर देखा सामने की टेबल पर दो आदमी बैठे ड्रींक कर रहे थे

माधवन ने बगल से निकलते हुए बेरे‌ को बुलाया और खाने का आर्डर दिया .

माधवन ने केंटीन का नजरों ही नज़रों में मुआयना किया साफ सुथरा अच्छा बना हुआ था तभी कोर्नर टेबिल पर तरंगिणी को लेपटाप में व्यस्त बैठे देखा , माधवन उठा और तरंगिणी की टेबल के नजदीक पहुंच गया तंरंगिणी जी आप हमें छोड़कर यहां अकेले अकेले काफी पीने चली आई.

अरे ….रे.. नहीं,  अचानक बांस ने मीटिंग में बुला   लिया अभी मीटिंग खत्म हुई है .

चलो मेरी टेबल पर मेने खाना आर्डर किया वहीं बैठ कर खाते हैं और बाद में काफी पीयेगे

माधवन जी आप खाना खाईये  मुझे घर जाने के लिए देर होगी .

आज यहीं खाना खा लीजिए फिर चली जाइयेगा .

प्लीज फिर कभी …अभी मुझे मीटिंग रिपोर्ट देकर घर जाना है इसलिए में लैपटॉप पर अपना काम कर रही थी .

माधवन अपनी टेबल पर लोट आया कुछ ही देर में डोसा परोस दिया गया वह खाने लगा बीच बीच में तरंगिणी की तरफ देख लेता था उसकी उंगलियां की बोर्ड पर थिरक रही थी तभी अचानक से दो आदमियों में से एक उठा और तरंगिणी की तरफ बढ़ा माधवन कुछ समझ पाता तब तक उस आदमी ने तरंगिणि के कंधे पर हाथ रखा और और एक घटिया जुमला उछाला तरंगिणी उसे धकियाते हुए उठ खड़ी हुई .

नशे में चूर आदमी तरंगिणी को धमकाने लगा बतादे छमिया किस का टेंडर खुल रहा है . तुझे मालामाल कर देंगे  कह कर जैसे ही आदमी ने हाथ तरंगिणी की तरफ बढ़ाया माधवन ने पीछे पे कालर पकड़ कर तमाचा रसीद कर दिया . तरंगिणी तुम चलो और तरंगिणी का हाथ पकड़ कर बाहर की और निकल आया .

बाहर आकर सीकियोरिटी वाले को तरंगिणी ने फोन किया .

थोड़ी ही देर में उन आदमियों को सीकियोरिटी वाले बाहर ले गए.

तरंगिणी ये कौन लोग हैं?   और क्या  जानकारी चाहते थे ?

माधवन कल एक टेंडर खुलने वाला हैं उसमें इन्होंने भी कोटेशन डाले है. उसी के लिए धमका रहे हैं.

 

ओह ..माधवन मेरी वजह से तुम भूखे ही  रह गए .

कोई बात नहीं तुम ठीक हो ना , , तरंगिणी चलो मैं तुम्हें घर छोड़ देता हूँ .

माधवन ! मैं चली जाऊंगी

तुम परेशान मत हो इनका कोई भरोसा नहीं ये तुम्हारा पीछा भी कर सकते हैं.

तरंगिणी ने बास से फोन पर सारी घटना बताई

तरंगिणी तुम आफिस की गाड़ी में घर चली जाओ बहुत देर हो गई है घर पहुंच कर मीटिंग फाईल मेल में सम्मीट कर देना.

माधवन और तरंगिणी साथ साथ चलते हुए पार्किंग एरिया में आ गए गाड़ी के ड्राइवर ने हार्न  दिया. तरंगिणी गाड़ी में बैठ गई

.माधवन से रहा नहीं गया तरंगिणी मैं भी चलता हूँ .

अरे! नहीं ड्राईवर परिचित हैं मैं चली जाऊंगी .

टेक केयर  तरंगिणी ओके गुडनाईट माधवन .

तरंगिणी चली गई माधवन वापस अपने फ्लेट में आगया कपड़े बदल कर   बेड पर निढाल हो कर लेट गया कुछ देर तक तरंगिणी का चेहरा उसकी आंखों में नाचता  रहा तरंगिणी की खुबसूरती  तीखे नैन-नक्श का आकर्षण माधवन को  रोमांचित कर रहा  था   .

माधवन थकावट महसूस करने लगा तो‌आंखें बंद कर ली ना जाने कब नींद के आगोश में चला गया.

सुबह दरवाजे की घंटी की आवाज़ से नींद  खुली दरवाजा खोला तो गोरखा वाचमेन खड़ा था साहब जी !   ये दूध वाला है आप दूध लेंगे क्या ?

वाह बढ़िया मैं तो सोच ही रहा था कि उठने के बाद दूध लेने के लिए जाना पड़ेगा .  अभी आया कह कर माधवन  किचिन से भगोना लिए वापस बाहर आया वाचमेन‌   को धन्यवाद कर  दूध लेकर अंदर आ गया . इंडक्शन पर दूध चढ़ाकर बालकनी में आकर खड़ा हुआ तो बाहर का नजारा बड़ा ही सुन्दर था सूरज‌ की किरणों से दूब घास पर पड़ी ओस की बूंदें हीरे सी चमक रही थी .कल तरंगिणी से हुई मुलाकात माधवन के जहन में तैर गई . माधवन को एक खिंचाव सा महसूस हुआ दिल में उठे इस ख्याल को झटक कर किचिन में जा कर देखा दूध उबल चुका था . माधवन ने काफ़ी मेकर में काफी बनाई तब तक अखबार आ गया एक हाथ में अखबार  लेकर बालकनी में पड़ी चेयर पर बैठ कर काफी पीने लगा .  घड़ी पर नजर डाली तो आफिस का समय हो रहा माधवन उठा और बाथरूम में नहाने चला गया.

तरंगिणी देर रात तक आफिस का काम करती रही सुबह देर से आंख खुली .. उठी तो सीधे बाथरूम में नहाने के लिए चली गई. नहा धो कर तैयार हुई .

मां ने नाश्ता लगाते हुए तरंगिणी को आवाज लगाई.

तरंगिणी ! बेटा नाश्ता लगा दिया है.

तरंगिणी कंधे पर दुपट्टा ठीक करती हुई चप्पल में पैर डाल कर कंधे पर बैठ टांगा और बाहर को भागी मां मुझे पहले ही देर हो गई है मैं केंटीन में नाश्ता कर लूंगी जा रही हूँ आज मीटिंग है .

तरंगिणी बाहर निकल कर चौराहे कि ओर बढ़ गई सामने से आती हुई सिटी बस में सवार होकर चल दी अगले स्टाप पर उतर कर जल्दी जल्दी कदम बढ़ाती हुई आफिस पहुंच कर मीटिंग रुम में जा कर  वहां की व्यवस्था देखने लगी तभी मीटिंग रुम में चढ्ढा जी और माधवन‌ ने एक साथ प्रवेश किया  सभी लोग आचुके थे कुछ ही देर में टेंडर जारी कर दिया गया था इस बार कान्ट्रैक्ट किसी रधुराज की जगह मेघराज  को दे दिया गया था . जैसे ही बाहर लगे मानिटर  पर डिस्प्ले किया गया बाहर एक शोर उठा तरंगिणी से रघुराज ने अभद्रता करने की कोशिश की थी वह  ठेका ना मिलने की वजह से नारेबाजी कर विरोध प्रर्दशन करने लगा उसके साथियों ने सभी का घेराव कर लिया माधवन ने  आफिस के गेट पर खड़े  पुलिस वालों को फोन कर अंदर फंसे होने की जानकारी दी  उन्हें वहां से हटाया गया तब जाकर मीटिंग हाल से सभी लोग बाहर आये .

तरंगिणी और माधवन‌ साथ -साथ चलते हुए  बाहर आये .

तरंगिणी  काफी पीने का मन कर रहा है तुम भी चलो न मेरे साथ  काफी पीने के लिए.

माधवन इस रघुराज कोई भरोसा नहीं है कब क्या कर बैठे ?

तरंगिणी फिलहाल तो पुलिस ले गई

तुम चिंता मत करो सोचते हैं  क्या करना है?

चलो माधवन ! आप पिलाओगे तो हम जरुर काफी पीने चलेंगे

श्योर तरंगिणी चलो .

केंटीन में काफी पीते  हुए तरंगिणी को थोड़ा रिलेक्स महसूस हुआ वर्ना कुछ देर पहले का नजारा थोड़ा भयावह था . काफी खत्म करने पर तरंगिणी उठ खड़ी हुई .

माधवन मुझे घर तक छोड़ दो

चलों तरंगिणी बाइक की चाबी उठाते हुए माधवन बोला . दौनो बाइक पर सवार होकर घर तक पहुंच गए. तरंगिणी ने  मम्मी को सामने से आते हुए देख लिया था .पास में पहुंची तब तक अंदर पापा भी निकल कर बाहर आ गए  थे .  तरंगिणी ने माधवन का परिचय  दिया  मम्मी पापा ये माधवन है  हमारे यहां एकाउंट आफीसर के पद पर ज्वाइन किया है .

सभी लोग ड्राइंग रूम में आकर बैठ गए  .

माधवन बेटा चाय काफी क्या लोगे ? अरे मां इनको खाना खिलाओ आज मेरी वजह से भूखे ही रह गए .

मम्मी-पापा एकसाथ बोल पड़े वो कैसे ?

तरंगिणी ने विस्तार से उसके साथ घटी घटना और माधवन ने किस तरह एक ढाल बन कर उसकी रक्षा की ..सभी  को जब बताया तो पापा के चेहरे पर चिंता की लकीरें उभर आई .

ओह !  अगर माधवन‌ वहां  ना होता तो आज पता नहीं क्या होता .

अंकल आप निश्चित रहे तरंगिणी को मेने  सकुशल घर पहुंचा दिया.

आंटी  लेकिन मेरे तो  पेट में चूहे कूद रहे सभी लोग ठहाका लगा कर हंस दिए .

दादीजी के चेहरे पर चिंता के भाव आ जा रहे थे , वे इस बीच चुपचाप बैठी थी उनकी खामोशी किसी तुफान के आने की सुगबुगाहट दे रही थी‌.

मम्मी ने खाना लगा दिया सभी लोग खाने के टेबल पर बैठ गए .

खाना खाते हुए माधवन‌ ने खामोशी तोड़ी आंटी‌ आप खाना बहुत बढ़िया बनाती हैं .

अरे वा ! इडली डोसा छोड़कर सब्जी रोटी पसंद आई .

माधवन ने झेंपते हुए कहां आंटी नोर्थ में पढ़ाई की है तो इधर का खाना भी अब अच्छा लगता है .

खाना खत्म कर माधवन ने तरंगिणी के मम्मी पापा से जाने  इजाजत मांगी .

तरंगिणी ने माधवन  को कार तक छोड़ कर जब अंदर आई दादी जो अब तक चुप बैठी थी बम की तरह फट पड़ी और पापा से कहने लगी  . पवन मैं कई बार कह चुकी हूं तरंगिणी का ब्याह करदो पर तुम हो की सुनते ही नहीं मेरी  बात एक कान से सुनकर दूसरे से निकाल देते हो .

माँ तुम परेशान मत हुआ करो तरंगिणी बहुत समझदार है.

पवन तुम्हें तो अहिन्दी भाषी पसंद ही नहीं हैं‌.इस लड़के को भी ज्यादा घर में आने की  लिफ्ट मत  देना.

माँ रात बहुत हो चुकी है आप आराम करें और भाषा को लेकर  परेशान ना हों   बात चीत से  तो लड़का मुझे सुलझा हुआ लगा .

पवन उस मद्रासी  लड़के ने जरा हिंदी में बात क्या  करली तुम तो मोम की तरह पिघलने लगे .

ओह ! मां ऐसा‌ कुछ नहीं है . आप तो खामखां मेरे पीछे पड़ गई हैं .

इस घटना को तीन महीने बीत चुके थे एक दिन तरंगिणी को स्कूटी पर बैठा कर बजार जा रहे थे . लौटते हुए अंधेरा घिर गया था एक मोड़ पर आते ही सामने से आ रही एक कार में से एक हाथ पिस्टल लिए हवा में लहराया‌और फायर कर दिया गोली सीने जाकर पवन जी की जांघ में धंस गई स्कूटी डगमगाई तो तरंगिणी  स्कूटी से गिर पड़े . तरंगिणी ने  पापाकी जांघ से खून बहते हुए देखा तो घबरा गई . स्तकूटी रोककर रनगिणी ने माधवन को फोन मिलाया …. हलो…. माधवन पापा को किसी ने गोली मारी  है एंबूलेंस लेकर जल्दी आ जाओ .

एंबुलेंस लाने के लिए कहां इस बीच मां को भी फोन पर बस इतना कहा कि पापा स्कूटी से गिर गए में अस्पताल लेकर जा रही हूँ .

माधवन कुछ ही देर में एबूलेंस लेकर पहुंच गया

इस बीच तरंगिणी ने अपना दुपट्टा पापा के पैर में बांध दिया था ताकी खूनका बहाव कम हो .

तरंगिणी और माधवन पापा को एबूलेंस से  सीधा पास के अस्पताल में पहुंच कर  दाखिल कराया लेकिन इस बीच ब्लड लास अधिक होगया था  उन्हें आपरेशन के समय रक्त चढ़ाना पड़ेगा डाॅ .ने कहा तरंगिणी और माधवन दौनों ब्लड देने केलिए तैयार हो गए लेकिन  माधवन से रक्त ग्रुप मेंच  कर गया माधवन का ब्लड  पवन जी को  चढ़ा दिया गया तरंगिणी की मम्मी और दादी जब तक आई तो पवन जी को आपररेशन थियेटर में लेजाया जा चुका था .

तरंगिणी बेटा पापा को क्या  हुआ ? मां बाजार में मोड़ पर एक चल्ती गाड़ी में बैठे आदमी ने गोली मारी थी जो  पापा‌के पैर में धंस गई .ना जाने कौन लोग थे और उनकी क्या   मंशा थी .

तरंगिणी ने रोते हुए सारी बात मां को बताई .

माधवन ब्लड देकर लौटा तो  तरंगिणी की माँ को दिलासा दी आंटी भगवान पर भरोसा रखें सब ठीक हो जायेगा .दादी की आंखें आंसू से भीगी हुई थी और वे लगातार   ईश्वर  से प्रार्थना कर रही थी‌. तरंगिणी दादी के साथ बैठकर कर बार बार आपरेशन थियेटर के दरवाजे को देख रही थी .चार घंटे बीत गए थे माधवन भी बैचेनी से इधर उधर घूम रहा था .

सभी को डाॅक्टर के बाहर आने का इंतजार था .

माधवन रह रह कर घड़ी देख रहा था तभी डाॅक्टर बाहर निकले माधवन ने लपककर पास पहुंच गया . मिस्टर माधवन पेशेंट का आपरेशन हो गया गोली निकाल दी गई है आपका धन्यवाद जो समय पर आपने रक्त देकर मरीज की जान बचाई  .

Summer Special: गर्मी में रहना है कूल तो करें ये काम

गर्मी की शुरुआत हो चुकी है. ऐसे में जरूरी है कि आप अपने खानपान को लेकर अधिक सजग रहें. गर्मी में दिन में बाहर निकलने से शरीर डिहाइड्रेड होता है. इसलिए आपको अपनी डाइट में कुछ खास चीजों को शामिल करना चाहिए, जो आपके शरीर में पानी और न्यूट्रिएंट्स की कमी को दीर करेंगे. इस मौसम में ज्यादा से ज्यादा ठंडी चीजों का सेवन करना चाहिए. आइए आपको बताते हैं गर्मी के मौसम में किन चीजों का सेवन कर के आप खुद को ठंडा रख सकते हैं.

छाछ

गर्मी में शरीर को ठंडा रखने के लिए छाछ का सेवन करना बेहद जरूरी है. इसमें लैक्टिक एसिड पाया जाता है, जो शरीर के लिए काफी लाभकारी होता है. ये शरीर में चुस्ती लाता है. इसे खाने के बाद लिया जाता है, क्योंकि ये पाचन में बहुत मददगार है. इसमें अधिक मात्रा में कैल्शियम, पोटैशियम और जिंक होता है.

खीरा

खीरे में पानी की अधिकता होती है साथ में बहुत से मिनरल्स होते हैं जो शरीर को ठंडा रखते हैं. खीरे को सलाद के रूप में भी खा सकते हैं या फिर जूस के रूप में भी इसका सेवन कर सकते हैं. इससे शरीर डिटौक्सिफाई होता है और लंबे समय तक हाइड्रेट भी रहता है.

जूस वाले फल

गर्मी के मौसम में नींबू, अंगूर और संतरा खाने के कई फायदे हैं. इसमें कई जरूरी न्यूट्रिएंट्स होते हैं. सुबह शाम रोजाना इन फलों का सेवन करने से धूप के कारण होने वाली कई सेहत संबंधी समस्याओं से सुरक्षित रहा जा सकता है.

तरबूज

स्वादिष्ट होने के साथ साथ तरबूज विटामिन ए और सी का प्रमुख स्रोत है. ये गर्मी का प्रमुख फल  है. ये शरीर में पानी की कमी को दूर करता है. सुबह में तरबूज खा कर आप दिन की शुरुआत कर सकते हैं.

पुदीना

गर्मी में पुदीने का इस्तेमाल अधिक हो जाता है. ज्यादातर घरों में रायता, चटनी, सब्जी जैसी चीजों में इसका इस्तेमाल किया जाता है. . ये खाने की चीजों में फ्लेवर डालने के साथ सेहत के लिए भी बहुत फायदेमंद होता है. गर्मियों में अपनी डाइट में पुदीना जरूर शामिल करें.

प्याज

गर्मी में लू से बचाने में प्याज काफी लाभकारी होता है. इसका इस्तेमाल आप सलाद, चटनी, सब्जियों में आराम से कर सकते हैं.

महंगे खिलौनों से खेल खेल में पढ़ना सीखेंगे उत्तर प्रदेश में आंगनबाड़ी केंद्रों पर बच्चे

यूपी के आंगनबाड़ी केन्द्र बहुत जल्द प्ले स्कूलों के रूप में नजर आएंगे. यहां 03 से 06 वर्ष के बच्चों को खेल-खेल में पढ़ना-लिखना सिखाया जाएगा. खेलने के लिए खिलौने दिये जाएंगे जिससे केंद्र की तरफ बच्चों का आकर्षण बढेगा और उनकी संख्या में भी बढ़ोत्तरी होगी. संस्कार डालने के साथ उनके संर्वांगीण विकास के कार्यक्रम भी चालू किये जाएंगे. इसके लिए प्रदेश सरकार 16 करोड़ रुपये की लागत से ग्राम पंचायतों और शहरों में स्थित लाखों आंगनबाड़ी केन्द्रों में नन्हे-मुन्हों को प्री-स्कूल किट बांटेगी. इस प्री-स्कूल किट में खिलौने ओर शिक्षा प्रदान करने वाली लर्निंग ऐड होगी.

सरकार की योजना से आंगनबाड़ी केन्द्रों पर आने वाले 03-06 वर्ष के बच्चों को प्री-स्कूल किट के माध्यम से गतिविधि और खेल आधारित पूर्व शिक्षा प्रदान करने में मदद मिलेगी. आंगनबाड़ी कार्यकर्ता बच्चों के बौद्धिक विकास के लिए उन्हें चार्टर, टेबल और वॉल पेंटिंग पर बनाई हिंदी और अंग्रेजी की वर्णमाला, गिनती आदि सिखाएंगी. इसके साथ ही प्रदेश के 31 जनपदों के 6 करोड़ की लागत से आंगनबाड़ी केन्द्रों में बच्चों को ईसीसीई सामग्रियां (एक्टीविटी बुक, पहल, गतिविधि कैलेण्डर) भी वितरित की जाएंगी. बाल विकास पुष्टाहार विभाग को इन कार्यक्रमों को तेजी से आंगनबाड़ी केन्द्रों पर लागू कराने की जिम्मेदारी गई है.

आंगनबाड़ी केन्द्रों के निर्माण से लाभार्थियों को एक अच्छे वातावरण में सुविधाएं उपलब्ध कराने के प्रयास भी सरकार कर रही है. इसके लिए वो आने वाले समय में 175 करोड़ रुपये से 199 आंगनबाड़ी केन्द्र भवनों का शिलान्यास करेगी. जिसकी तैयारी के लिए विभाग तेजी से जुटा है. बता दें कि सरकार ने आंगनबाड़ी केन्द्रों को सुंदर बनाने के प्रयास किये हैं. आंगनबाड़ी केन्द्रों पर फर्नीचर, पुस्तकें, खिलौने और दीवार पर पेंटिंग के कार्य कराए हैं. सरकार की योजना को सफल बनाने में सामाजिक संस्थाएं भी सहयोग में जुटी हैं. खासकर ग्रामीण क्षेत्र के बच्चों को बुनियादी शिक्षा प्राप्त करनें में काफी लाभ मिला है.

एक्स हसबैंड से मिलेगी काव्या, रंगे हाथों पकड़ेगा वनराज

टीवी सीरियल अनुपमा में हाईवोल्टेज ड्रामा चल रहा है. शो के बिते एपिसोड में आपने देखा कि नौकरी जाने के बाद से वनराज को पारितोष ने खूब सुनाया. तो वहीं राखी दवे इस मौके का फायदा उठाती नजर आई. इस बीच काव्या भी वनराज को ताने दिये. शो के आने वाले एपिसोड में काव्या कुछ ऐसा करने वाली है, जिससे वनराज के होश उड़ जाएंगे. आइए बताते हैं शो के लेटेस्ट एपिसोड के बारे में.

शो में आपने देखा कि अनुपमा के डांस एकेडमी को देश-विदेश में कॉन्ट्रैक्ट मिल गया है. इससे अनुपमा-अनुज बेहद खुश है. तो वहीं दूसरी ओर काव्या ये सुनकर जल-भून गई है. शो के आने वाले एपिसोड में दिखाया जाएगा कि राखी दवे इंतजार करेगी कि काव्या उसकी प्लानिंग में साथ दे लेकिन इधर काव्या के मन में कुछ और ही चल रहा है.

 

शो में आप देखेंगे कि काव्या अपने एक्स हसबैंड को फोन करेगी और उससे मिलने के लिए कहेगी. तो वहीं वनराज सब कुछ सुन लेगा, उसे झटका लगेगा. जैसे ही काव्या को पता चलेगा कि वनराज ने सुन लिया है, वह हैरान रह जाएगी.

 

शो के बिते एपिसोड में दिखाया गया कि अनुपमा ने पूरे परिवार के सामने कहा कि वह अपनी शादी का खर्चा वो खुद उठाएगी. अनुपमा ने ये भी कहा कि वो अनुज के सारे सपने पूरे करेंगे जो उसने अपनी शादी को लेकर देखे हैं. अनुपमा की बात सुनकर बापूजी और अनुज भी इमोशनल होते नजर आए.

 

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तो दूसरी तरफ बा को अनुपमा की खुशियां बर्दाश्त नहीं हुई. शो में आप देखेंगे कि बा दावा करेगी कि अनुज और अनुपमा शादी के बाद कभी भी खुश नहीं रह पाएंगे.

शादी से पहले आलिया के आगे रणबीर ने टेके घुटने, देखें Video

बॉलीवुड एक्ट्रस आलिया भट्ट और रणबीर कपूर का 5 सालों का इंतजार खत्म हुआ और दोनों सात जन्मों के लिए एक हो चुके हैं. 14 अप्रैल यानी कल (गुरुवार) को आलिया भट्ट और रणबीर कपूर एक दूजे के हो गए. दोनों की शादी की तस्वीरें सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रही है. फैंस खूब प्यार लूटा रहे हैं. इसी बीच आलिया-रणबीर का एक वीडियो फैंस का ध्यान अपनी तरफ खींच रहा है. आइए बताते हैं क्या है इस वीडियो में.

इस वीडियो में आप देख सकते हैं कि वरामाला के दौरान रणबीर कपूर, आलिया भट्ट के आगे घुटनों के बल बैठे नजर आ रहे हैं. दरअसल रणबीर कपूर वरमाला डलवाने के लिए घुटनों के बल बैठ गए. वरमाला गले में पड़ते ही रणबीर कपूर ने आलिया भट्ट का हाथ चूम लिया.

आलिया भट्ट और रणबीर कपूर का ये रोमांटिक पल फैंस को काफी पसंद आ रहा है, तो वहीं कुछ फैंस रणबीर कपूर को जोरू का गुलाम बताने लगे हैं. बता दें कि शादी की रस्मों के बाद रणबीर-आलिया वेन्यू के बाहर मौजूद मीडिया से मिलने के लिए आये. ऐसे में फर्स्ट पब्लिक अपीयरेंस में न्यूली वेड कपल के बीच जबरदस्त कैमिस्ट्री देखने को मिली.

 

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सोशल मीडिया पर रणबीर-आलिया की शादी की इनसाइड तस्वीर और वीडिय सामने आई है. ऐसे में एक नन्हे बाराती नजर आ रहे हैं. छोटी बारात से. आपको बता दें कि ये कोई और नहीं करीना कपूर खान के छोटे नवाबजादे जहांगीर अली खान हैं.

 

करीना ने ये तस्वीर सोशल मीडिया पर शेयर की है. ये पहली बार है जब जहांगीर किसी शादी में शामिल हुए हैं.  इन तस्वीरों में जेह खूब मस्ती के मूड में दिखाई दे रहे हैं और लेट-लेटकर खेलते नजर आ रहे हैं.

 

एफपीओ बनाकर आमदनी में इजाफा कर सकते हैं किसान

आम किसानों की आय बढ़ाने, कृषि उपज की ब्रांडिंग और मार्केटिंग से ले कर खेतीबारी, बागबानी, पशुपालन, मछलीपालन, फूड प्रोसैसिंग जैसे तमाम कामों में फार्मर प्रोड्यूसर आर्गेनाइजेशन यानी एफपीओ की भूमिका बढ़ती जा रही है. किसान एक कंपनी के रूप में एफपीओ का गठन कर अधिक आय अर्जित कर सकते हैं.

एफपीओ किसानों को न केवल कृषि उपज का मूल्य खुद ही तय करने का अवसर देता है, बल्कि छोटी जोत वाले किसानों को दलालों, बिचौलियों और मंडियों के भंवरजाल से छुटकारा दिलाने में भी काफी मददगार साबित हो रहा है.

किसान एफपीओ के रूप में खुद की कंपनी कैसे बनाएं, इस के लिए जरूरी प्रक्रिया क्या है, इस का सफल संचालन कैसे करें और इस से किसान अपनी आय कैसे बढ़ाएं, इस मुद्दे पर एफपीओ के जानकार चार्टर्ड अकाउंटैंट अजीत चौधरी से लंबी बातचीत हुई. पेश हैं, उसी बातचीत के खास अंश :

कृषक उत्पादन संगठन यानी एफपीओ क्या है?

कृषक उत्पादक कंपनी, जिसे हम आमतौर पर एफपीओ यानी किसानी उत्पादक संगठन कहते हैं. यह किसानों का एक पंजीकृत समूह होता है, जो खेतीबारी के उत्पादन काम में लगे हुए होते हैं. यही किसान कृषक उत्पादक कंपनी बना कर खेती और उस से जुड़ी व्यावसायिक गतिविधियां करता है.

एफपीओ के पंजीकरण के लिए जरूरी प्रक्रिया क्या है?

कोई भी किसान, जो खेतीबारी से जुड़ा हुआ है, संगठित हो कर एफपीओ का पंजीकरण कंपनी अधिनियम के तहत करा सकते हैं. इस के लिए कम से कम 10 किसान सदस्यों का होना जरूरी है.

पंजीकरण के पूर्व इन किसानों को अपना पैनकार्ड, आधारकार्ड, पासबुक, 2-2 फोटो, खेत की खतौनी, मोबाइल नंबर व ईमेल, कंपनी के 2 प्रस्तावित नाम, निदेशक और शेयरधारकों की संख्या जरूरी है.

एफपीओ के पंजीकृत कार्यालय के लिए नवीनतम बैंक स्टेटमैंट/टैलीफोन या मोबाइल बिल/बिजली या गैस बिल की स्कैन की हुई प्रतिलिपि व संपत्ति के मालिक से अनापत्ति प्रमाणपत्र की स्कैन की गई कौपी भी जरूरी होती है. किसान कागजातों के साथ किसी भी सीए यानी चार्टर्ड अकाउंटैंट से संपर्क कर पंजीकरण की प्रक्रिया को पूरा करा सकता है.

पंजीकरण के पूर्व एफपीओ में निदेशक यानी डायरैक्टर की भूमिका का निर्वहन करने वाले किसानों को डिजिटल सिग्नेचर बनाया जाता है. इस दौरान चार्टर्ड अकाउंटैंट किसानों द्वारा सु  झाए एफपीओ के नाम की उपलब्धता की जांच व अप्रूवल के लिए कंपनी के रजिस्ट्रार को औनलाइन आवेदन करता है. जब तक एफपीओ के नाम का अप्रूवल आता है, तब तक चार्टर्ड अकाउंटैंट द्वारा निदेशक के डिन नंबर यानी डायरैक्टर आइडैंटिफिकेशन नंबर का आवेदन किया जाता है, जो केंद्र सरकार द्वारा जारी किया जाता है. यह एक 8 अंकों की अद्वितीय पहचान संख्या होती है, जिसे आजीवन वैधता प्राप्त होती है.

इस दौरान किसानों द्वारा कंपनी के उद्देश्यों और नियमों व निर्देशों के रूप में आर्टिकल औफ एसोसिएशन व मैमोरेंडम औफ एसोसिएशन बनाया जाता है. कंपनी संचालन के कायदों की पूरी जानकारी मैमोरेंडम औफ एसोसिएशन व आर्टिकल औफ एसोसिएशन लिखे होते हैं.

यह सभी प्रक्रिया पूरी करने के बाद कंपनी को पंजीकृत करने के लिए कंपनी रजिस्ट्रार को औनलाइन आवेदन किया जाता है. अगर औनलाइन आवेदन में कोई कमी नहीं होती है, तो कंपनी रजिस्ट्रार द्वारा पंजीकरण प्रमाणपत्र जारी कर दिया जाता है. साथ ही, कंपनी का पैन नंबर व डिन नंबर जारी किया जाता है. अगर आवेदन में कोई कमी है, तो उसे सुधारने का मौका मिलता है.

कंपनी पंजीकरण की प्रक्रिया में आमतौर पर 35 से 40 हजार रुपए का खर्च आता है. कंपनी के पंजीकरण के पश्चात कंपनी के नाम से किसी भी बैंक में एक खाता खोला जाना जरूरी है. साथ ही, पंजीकरण के पंजीकृत होने के 90 दिनों के अंदर एनुअल जनरल मीटिंग करना जरूरी होता है. इस के अंदर सभी महत्त्वपूर्ण प्रस्ताव पास किए जाते हैं. इस के बाद एफपीओ में शेयरधारकों के रूप में किसानों को जोड़ कर कारोबारी गतिविधियों को बढ़ाया जा सकता है.

एफपीओ में किस तरह के पद होते हैं?

जब किसान संगठित हो कर एफपीओ को एक कंपनी के रूप में पंजीकृत कराते हैं, तो इन्हीं किसानों में से अधिकतम 15 किसान  डायरैक्टर्स और प्रमोटर्स के रूप में चुने जाते हैं, जो कंपनी के मालिकाना हकदार होते हैं.

इस के बाद जब एफपीओ एक कंपनी के रूप में पंजीकृत हो जाती है, तब कंपनी के निदेशक मंडल द्वारा एक सीईओ की नियुक्ति की जाती है. इस के अलावा रजिस्ट्रार औफ कंपनीज के साथ सूचनाओं के आदानप्रदान के लिए एक कंपनी सैक्रेटरी की नियुक्ति भी बोर्ड औफ डायरैक्टर द्वारा की जाती है और कंपनी के सभी कानूनी कागजातों, वार्षिक विवरणी आदि को जमा करने के लिए चार्टर्ड अकाउंटैंट की नियुक्ति भी बोर्ड औफ डायरैक्टर द्वारा की जाती है.

किसान एफपीओ के जरीए अपनी आय में कैसे इजाफा कर सकते हैं?

देश में कम जोत वाले किसानों की संख्या सब से अधिक है. ऐसे किसानों को उन की पैदावार का उचित मूल्य भी नहीं मिल पाता है. इस की प्रमुख वजह यह भी है कि कम जोत होने के चलते उन के पास कम मात्रा में कृषि उपज होती है. ऐसे में कम मात्रा होने से उन की कृषि उपज की बिक्री सही कीमत पर नहीं हो पाती है.

इस दशा में अगर यही छोटी जोत वाले किसान एफपीओ बना कर अपने थोड़ेथोड़े कृषि उत्पादों को इकट्ठा कर उस की बिक्री करते हैं, तो उन्हें उस की न केवल वाजिब कीमत मिलती है, बल्कि अपने उत्पादों की प्रोसैसिंग कर अगर बिक्री करें, तो अधिक आय की संभावाना बढ़ जाती है.

इसे एक उदाहरण से सम  झ सकते हैं. किसान मंडी में गेहूं की कीमत प्रति किलोग्राम 18 से 20 रुपए की दर से बेचता है, पर वही जब आटे के रूप में प्रोसैस कर के बेचा जाता है, तो वह 28 से 30 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से बिकता है. इस के अलावा एफपीओ खेतीबारी से जुड़े खाद, बीज, दवाओं और कृषि उपकरण आदि का निर्माण, खरीदबिक्री का काम भी कर सकता है.

एफपीओ पंजीकरण के बाद किसानों को किन कागजी कार्यवाही की नियमित रूप से जरूरत पड़ती है?

किसी भी एफपीओ के पंजीकरण के बाद वार्षिक रूप से कंपनी की एनुअल रिटर्न्स रजिस्ट्रार औफ कंपनीज के कार्यालय में औनलाइन माध्यम से चार्टर्ड अकाउंटैंट के जरीए 30 सितंबर तक जमा कराना अनिवार्य होता है. इस के लिए एफपीओ के खातों में हुए लेनदेन का औडिट करवाना पड़ता है. इस की वार्षिक विवरणी भरने के लिए सभी निदेशकों का केवाईसी होना भी अनिवार्य है.

विवरणी भरते समय शेयर होल्डर्स की लिस्ट, शेयर्स में हुए लेनदेन की लिस्ट, औडिटेड बैलेंसशीट जरूरी होती है. अगर ये जानकारी समय से न भरी जाए, तो कंपनी के रजिस्ट्रार द्वारा एफपीओ पर जुर्माना भी लगाया जा सकता है.

सरकार और सरकारी एजेंसियों से एफपीओ और उस से जुड़े किसानों को किस तरह की मदद मिलने का प्रावधान है?

खेतीबारी से जुड़े बिजनैस के अलावा एफपीओ को आगे बढ़ाने के लिए केंद्र व राज्य सरकारों की तरफ से कई तरह से माली इमदाद मिलती है. इस में केंद्र सरकार के द्वारा शुरुआती संचालन के लिए 15 लाख रुपए तक की सहायता देती है. इस के अलावा भारत सरकार के लघु कृषक व्यापार संघ यानी एसएफएसी, नाबार्ड सहित कई एजेंसियों द्वारा लोन व अनुदान मुहैया कराया जाता है.

एफपीओ के जरीए खेतीबारी में काम आने वाले कृषि यंत्रों, ट्रैक्टर आदि पर फार्म मशीनरी बैंक के लिए 12 लाख रुपए तक की सहायता मिलती है. इस के बीज विधायन केंद्रों की स्थापना के लिए 60 लाख रुपए तक के अनुदान का प्रावधान है. एफपीओ के लिए सरकारें तमाम अनुदान योजनाएं संचालित कर रही हैं, जिस में आवेदन कर एफपीओ अनुदान का लाभ उठा सकते हैं. इस से एफपीओ से जुड़े किसान वाजिब रेट पर इन सुविधाओं का लाभ ले सकते हैं.

एफपीओ को सरकार से किस तरह के लाइसैंस लेने जरूरी हैं?

सरकार द्वारा एफपीओ को खाद, बीज, कीटनाशक, सरकारी रेट पर अनाज की खरीदारी के लिए लाइसैंस भी मुहैया कराया जाता है. किसान इस का लाभ ले कर अपनी आमदनी में इजाफा कर सकते हैं. फूड प्रोसैसिंग से जुड़े एफपीओ को एफएसएसएआई खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम के तहत लाइसैंस लेना जरूरी होता है.

किसान अगर एफपीओ पंजीकरण से जुड़ी अधिक जानकारी लेना चाहते हैं, तो उन के मोबाइल फोन नंबर 9990463067 पर ले सकते हैं.

माहवारी पर जागरूक हो रही हैं महिलाएं

बिहार के समस्तीपुर जिले के पूसा प्रखंड की रहने वाली जब इंदु ब्याह कर अपने ससुराल में आईं, तो वहां भी उन्हें माहवारी में गंदे कपड़े ही इस्तेमाल करने को मिलता. इसी दौरान उन्होंने टीवी पर एक इश्तिहार देखा, जिस में यह बताया जा रहा था कि माहवारी में गंदे कपड़ों के इस्तेमाल से इंफैक्शन और गर्भाशय के कैंसर जैसी कई गंभीर बीमारियों तक से जू  झना पड़ सकता है.

उस इश्तिहार में यह भी बताया गया कि यह संक्रमण अंदरूनी अंगों में किसी प्रकार के घाव होने, बदबूदार पानी निकलने, दर्द, दाने या खुजली के रूप में हो सकता है, जिस की वजह से असामान्य रूप से स्राव होने लगता है, जो कमर व पेड़ू के दर्द का कारण बनता है. इस से कभीकभार अंदरूनी अंगों में अधिक संक्रमण की वजह से बदबूदार सफेद पानी भी आने लगता है और सेहत पर बुरा असर पड़ता है.

इसी दौरान साल 2018 में उन के गांव में आगा खान ग्राम समर्थन कार्यक्रम (भारत) और एक्सिस बैंक फाउंडेशन के जरीए पिछड़े तबके की महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने और बचत की आदतों को बढ़ावा देने के लिए स्वयंसहायता समूह बनाया जा रहा था. इंदु को जब इस बात की जानकारी हुई, तो उस ने भी समूह की बैठक में जाने का फैसला किया. चूंकि इंदु सम  झदार और जागरूक हैं, इसलिए बाकी महिलाओं ने उन्हें समूह का अध्यक्ष बना दिया.

इंदु ने महिलाओं को बताया कि महीने के उन मुश्किल दिनों में खराब कपड़ों के इस्तेमाल से कई जानलेवा बीमारियां होती हैं, इसलिए सैनेटरी पैड का इस्तेमाल करना चाहिए. इस के बाद पता चला कि कई महिलाओं को सैनेटरी पैड के बारे में जानकारी ही नहीं थी.

चूंकि गांव में सैनेटरी पैड की उपलब्धता नहीं थी, इसलिए गांव में ज्यादातर महिलाएं घर में पड़े फटेपुराने कपड़े, कपड़ों के टुकड़े, सूखी घास, रेत या राख जैसी चीजों का इस्तेमाल करती थीं. इसी दौरान इंदु ने साफसफाई पर एक फिल्म भी देखी, जिस का नाम था ‘पैडमैन’. इस फिल्म में सैनेटरी पैड बनाने की बेहद सस्ती मशीन का जिक्र किया गया था.

फिर तो इंदु ने यह फैसला कर लिया कि वह अब खुद ही गांव में महिलाओं के साथ मिल कर सैनेटरी पैड बनाने की मशीन लगाएंगी, जिस से लोकल लैवल पर आसानी से सस्ते दर पर सैनेटरी पैड की उपलब्धता हो सके.

आगा खान ग्राम समर्थन से बन गई बात

इसी दौरान  एकेआरएसपीआई (भारत) के लोगों के साथ इंदु ने अपनी समस्या सा  झा की, तो संस्था ने माहवारी के मसले पर इंदु जैसी महिलाओं की इस समस्या को गंभीरता से लिया और इंदु के स्वयंसहायता समूह को आगा खान ग्राम समर्थन कार्यक्रम (भारत) और एक्सिस बैंक फाउंडेशन के सहयोग से मशीन उपलब्ध कराने का निर्णय लिया.

एकेआरएसपीआई (भारत) की पहल से गांव की महिलाओं द्वारा शुरू किए गए सैनेटरी पैड उत्पादन यूनिट में आज के दिन में दर्जनों गांवों व स्कूलों की महिलाओं व लड़कियों के लिए जरूरतभर का सैनेटरी पैड उत्पादन किया जा रहा है.

महिलाओं की राह की आसान

पूसा प्रखंड के चंदौली गांव में इंदु देवी, समूह की बाकी महिलाएं रिंकी देवी, रिंकू देवी, रिंकू कुमार, सीता देवी, रूबी देवी आदि के साथ मिल कर सखी सहेली सैनेटरी पैड प्रोडक्शन यूनिट चला रही हैं, जिस से महिलाओं को बाजार दर से काफी सस्ते में महज 25 रुपए में अच्छी क्वालिटी का सैनेटरी पैड मिल पा रहा है.

उत्पादन यूनिट से जुड़ी महिलाएं सैनेटरी पैड निर्माण के साथ ही उसे आसपास के गांवों में घरघर महिलाओं तक पहुंचाती हैं. इस के अलावा ये महिलाएं स्कूली लड़कियों को स्कूलों के जरीए पैड मुहैया करा रही हैं. साथ ही, आशा वर्कर, आंगनबाड़ी के जरीए भी महिलाओं में पैड के इस्तेमाल को बढ़ावा दे रही हैं.

महिलाओं की बढ़ी आमदनी

सरिता देवी का कहना है कि जब से गांव में सैनेटरी पैड का उत्पादन शुरू हुआ है, तब से समूह की महिलाओं को पैड बेच कर अच्छी आमदनी हो जाती है. रीना देवी का कहना है कि पहले अकसर गांव और आसपास की महिलाओं व लड़कियों को माहवारी में साफसफाई न बरतने से कई बीमारियों का सामना करना पड़ता था, लेकिन सैनेटरी पैड के इस्तेमाल को बढ़ावा मिलने से बीमारियों पर होने वाले खर्च पर कमी आने से पैसे की बचत हो रही है.

इस समूह की रिंकू देवी का कहना है कि सालभर में मुश्किल से सैनेटरी पैड पर 300 रुपए खर्च कर हम महिलाओं में होने वाले इंफेक्शन और कैंसर जैसी बीमारियों की रोकथाम कर इस के इलाज पर होने वाले खर्च को बचा सकते हैं.

माहवारी से जुड़े अंधविश्वास में आई कमी

एकेआरएसपीआई (भारत) के बिहार प्रदेश के रीजनल मैनेजर सुनील कुमार पांडेय ने बताया कि बिहार में माहवारी को ले कर कई तरह की भ्रांतियां और अंधविश्वास हैं.

माहवारी के दौरान महिलाओं को रसोईघर में जाने पर भी पाबंदी होती है. वे घर के पुरुषों को नहीं छू सकतीं और अचार के छूने पर भी रोक है. ऐसे में अगर स्कूल में पढ़ने वाले युवाओं को इस मुद्दे पर बात कर सही जानकारी दी जाए, तो माहवारी स्वच्छता को आसानी से प्राप्त किया जा सकता है.     –

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