आज कश्मीर का नाम सुनते ही हर किसी के जेहन में वहां की खूबसूरत वादियों की नहीं, बल्कि आतंकवाद की तसवीरें घूमने लगती हैं. ‘द कश्मीर फाइल्स’ फिल्म को ले कर देश में जिस तरह की बहस छिड़ी है, उस से कश्मीरी पंडितों की हालत में तो शायद कोई सुधार होगा नहीं, बल्कि पीडि़तों की सिसकियों पर सियासत जरूर शुरू हो गई है.

बौक्स औफिस पर रिकौर्ड तोड़ कमाई करने का उदाहरण बनी फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ दर्द, आक्रोश और तबाही की एक तल्ख सच्चाई को समेटे हुए है. लेकिन 3 दशक से भी ज्यादा

समय पहले कश्मीरी पंडितों पर हुए जुल्म और विस्थापितों को ले कर अब एक नई बहस छिड़ गई है.

फिल्म को विवाद का जरिया बना दिया गया. देश के 2 धड़ों भाजपा और कांग्रेस समर्थकों के बीच मीडिया से ले कर संसद तक में इस की गूंज सुनी गई. सिनेमाप्रेमियों को फिल्म से कहीं अधिक उन के बहस से मनोरंजन मिला. दु:खद यह रहा कि उन से कोई समाधन भी निकलता नजर नहीं आया.

विवेक रंजन अग्निहोत्री की कश्मीर से ले कर कन्याकुमारी तक चर्चित हो चुकी फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ 11 मार्च को देश के मात्र 600 सिनेमाघरों में प्रदर्शित हुई थी. इस फिल्म में न कोई हीरो है और न ही कोई हीरोइन. और तो और इस में न ही रूमानियत भरी वैसी कोई कहानी ही है, जिस के लिए कश्मीर की वादियों की भी बात की जाए.

फिल्म में एक बुजुर्ग चर्चित अभिनेता अनुपम खेर हैं, जो सार्वजनिक मंचों से कश्मीरी पंडितों की पीड़ा का झंडा उठाते रहे हैं. अभिनेत्री के नाम पर 90 के दशक की पल्लवी जोशी हैं. वह विवेक की पत्नी हैं. कुछ भूमिकाओं में मिथुन चक्रवर्ती हैं.

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