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Anupamaa: अनुपमा को बददुआ देगा वनराज तो बापूजी का फूटेगा गुस्सा

टीवी सीरियल ‘अनुपमा’ में लगातार ट्विस्ट देखने को मिल रहा है. जिससे दर्शकों का फुल एंटरटेनमेंट हो रहा है. शो के बिते एपिसोड में आपने देखा कि अनुज अनुपमा के लिए हिरे अंगुठी खरीदता है. अनुपमा काफी इमोशनल हो जाती है. वह घर आकर सबको बताता है, और अंगुठी की फोटो भी दिखाती है. बापूजी, किंजल, पाखी, समर और तोषु बहुत खुश होते हैं. तो दूसरी तरफ वनराज को जलन होती है. शो के अपकमिंग एपिसोड में बड़ा ट्विस्ट आने वाला है. आइए बताते हैं, शो के नए एपिसोड के बारे में.

शो में आप देखेंगे कि सगाई से पहले अनुपमा मंदिर जाएगी. तो दूसरी तरफ वनराज भी उसका पीछा करते हुए मंदिर पहुंच जाएगा और उससे कहेगा कि कुछ जरूरी बात करनी है. अनुपमा बिना मन के वनराज के साथ बात करने के लिए राजी हो जाएगी. तो दूसरी तरफ शाह परिवार को पता चलेगा कि वनराज अनुपमा से बात करने गया है तो अलग ही हंगामा शुरू हो जाएगा.

 

शो में आप ये भी देखेंगे कि सिर्फ बा को यह बात पता होगी कि वनराज अनुपमा से बात करने के लिए मंदिर गया है. जैसे ही बापूजी को यह बात पता चलेगी तो उनका गुस्सा फूटेगा. बापूजी बा से कहेंगे कि आखिर सब कुछ जानते हुए भी लीला ने वनराज को कैसे जाने दिया?

 

दूसरी तरफ देविका और मालविका को ये बात पता चलेगी कि वनराज अनुपमा बात करने के लिए एक साथ गये हैं. ऐसे में मालविका अनुज को फोन करेगी और कहेगी कि वनराज ने आखिरकार सगाई वाले दिन अनुपमा के साथ बाहर जाने का फैसला क्यों लिया? अनुज भी परेशान हो जाएगा लेकिन उसे अनुपमा पर पूरा विश्वास होगा.

 

अनुज कहेगा कि वनराज के मन में जरूर कुछ ना कुछ चल रहा है. अगर इस बार उसने अनुपमा को परेशान किया तो मैं उसे नहीं छोड़ूंगा. तो दूसरी तरफ वनराज अनुपमा के सामने बार-बार पुरानी बातों का जिक्र करेगा. अनुपमा कहेगी कि इन बातों का कोई मतलब नहीं है क्योंकि जब चीजों की अहमियत समझनी चाहिए थी तब वनराज ने सिर्फ और सिर्फ अपने बारे में सोचा.

वनराज ये भी कहेगा कि अनुज-अनुपमा को एक साथ देखकर उसे जलन होती है. वह कहेगा कि वह नहीं चाहता है कि अनुपमा-अनुज की शादी हो. वनराज अनुपमा से ये भी कहेगा कि शादी के बाद सारे मर्द बदल जाते हैं, अनुज भी बदल जाएगा. दूसरी शादी के बाद अनुपमा खुश नहीं रहेगी. शो में अब ये देखना होगा कि क्या वनराज इस शादी को रोकने के लिए नई चाल चलेगा?

हिंदु-मुस्लिम झगड़ों का क्या है कारण

हिंदुमुस्लिम झगड़ों में जानें ही नहीं जाती, जो बचे होते हैं उन की जानों पर भी बहुत सी आफतें आ जाती हैं. जिस भी इलाके में दंगे होते हैं, वहां के घरों के रहने वाले, चाहे मुसलिम हों या ङ्क्षहदू, समाज में कट जाते हैं. समाज अब उन्हें बचाने नहीं आता. उन्हें हिराकत की नजर से देखता है.

पिछले महीने जब खरगौन में दंगे हुए तो एक सब्जी बेचने वाले राहुल कुमावत की बहन की शादी 3 मई को होनी थी पर टाल दी गई क्योंकि लडक़े वाले ऐसी जगह शादी नहीं करना चाहते जहां दंगे होते हों, कफ्र्यू लगता हो. इस दंगे में गंभीर घायल हुए संजीव शुक्ला की बहन की शादी टाल दी गई. होटलों, बैक्वेहालों, वेटरर्स ने अपने आर्डर कैंसिल होने की सूचना है कि दंगों के कारण लोग इस इलाके में आने से कतरा रहे हैं.

हर दंगे में पार्टी की वोटें बढ़ती हैं पर लोगों की ङ्क्षजदगी घटती है. लोग डरेसहमे रहते हैं. औरतें घरों से नहीं निकलती. स्कूल बंद हो जाते हैं. अगर गलीमोहल्ला झगड़े का सेंटर हो तो खानापीना तक मुश्किल हो जाता है.

आजकल भडक़ाऊ टीवी की वजह से दंगे का नाम सप्ताहों तक सुॢखयों में रहता है और दूरदूर तक खबर पहुंच जाती है. लोग शादियां करने से भी कतराने लगे हैं अगर कोई घर दंगाग्रस्त इलाके में हो. इन इलाकों के लडक़ेलडक़ी को लंबी सफाई देनी पड़ती है कि उन के परिवार का कोई लेनादेना इन दंगाइयों से नहीं है. जिन घरों के दंगाई धर्म और कपड़े के हिसाब से पकड़े गए और जेलों में ठूस दिए गए वे तो इस बात को खुदा का हुक्म मान कर सहने की आदत डाल चुके हैं पर वे पूजापाठी जो सबक सिखाने वाली सोच रखते हैं पर दंगाई इलाकों में रहते है, फंस जाते हैं. पूरी कालोनी की चाहे एक गली में दंगा हुआ हो बदनाम पूरी कालोनी वाले हो जाते हैं.

वे लोग जो धर्म के उकसाने पर जोश में आ जाते हैं और आगे बढ़चढ़ कर नारेबाजी करने लगे हैं, उन से उन के घरवाले भी डरने लगते हैं क्योंकि ये लोग अपनी दंगाई आदत घर में घुसते समय चप्पल की तरह बाहर उतार कर नहीं आते, यह दंगाई आदत उन की दिमाग और खाल दोनों में घुस जाती है. धर्म को बचाने के लिए जो लोग झंडे और तलवारे लहरा रहे हैं, वे ङ्क्षजदगी भर एक तरह की बिमारी पाले रखते हैं. उन्हें न शादी में सुख मिलता है, न काम में. धर्म के सैनिक बने रहना ही अकेला काम रह जाता है.

जिन्हें दंगाग्रस्त इलाकों में रहना पड़ता है उन्हें नौकरियों भी नहीं मिलतीं क्योंकि नौकरी देने वाला डरता है कि यह दंगा करने वालों से मिला तो नहीं हुआ, जो उस इलाके में रहते है उन का काम में मन नहीं लगता. वे नागाएं भी बहुत करते हैं चाहे ङ्क्षहदू ही क्यों न हों. कोई देवीदेवता उन्हें नौकरी देने नहीं आता.

हर दंगे पर उन लोगों का पैसा भी खर्च होता है. जिन्होंने न दंगे में हिस्सा लिया, न दंगे के शिकार हुए. पूरे इलाके के बंद हो जाने पर काम कम हो जाता है. पढ़ाई कम हो जाती है, बातचीत दंगों के बारे में ज्यादा होती है, ‘देख लेंगे’, ‘मार देंगे’ जैसे बोल जवान पर चढ़ जाते हैं, नारे सुनसुन कर कुछ को डर लगता है तो कुछ कानून को भूल कर निकम्मे हो जाते हैं.

दिल्ली में जहांगीरपुरी में हनुमान यात्रा के दौरान दंगों में पुलिस एक ङ्क्षहदू परिवार के 6 लोगों को पकड़ कर ले गई. विश्व ङ्क्षहदू परिषद ने उन्हें खाना तो पहुंचाया पर कितने दिन पहुंचाएंगे. हर धर्म भक्तों से वसूलता है, कोई भी धर्म सप्ताहों और महिनों तक किसी परेशान को नहीं संभालता, अपने धर्म के शहीद को कोई पेंशन नहीं देता, उस के पास तो एक ही जवाब होता है, सब कुछ ईश्वर अल्ला के हाथ में हैं.

धर्म के दुकानदार अब राज करने वाले भी बन गए हैं और वे जानते है कि भक्त तो मूर्ख होते हैं. पाकिस्तान में बुरा हाल धर्म की वजह से है. श्रीलंका में बौध ङ्क्षसहलियों की वजह से आज बुरी हालत है. रूस के व्लादिमीर पुतिन ने भी यूक्रेन पर हमला अपने धर्म गुरू के कहने पर किया और यूक्रेनी भी मर रहे हैं और रूसी भी मर जी रहे हैं और पैसेपैसे को मोहताज हो रहे हैं.

शिवानी- भाग 2: फार्महाउस पर शिवानी के साथ क्या हुआ

बहुत कुछ सोच कर वह चुप रही. सब फ्रैश हो गए तो संजय ने माधव को नाश्ता बनाने के लिए कहा. संजय बिलकुल सामान्य ढंग से कह रहा था, ‘‘चलो, नाश्ता कर के निकलते हैं… शिवानी की तबीयत ठीक नहीं लग रही है… यह घर जा कर डाक्टर को दिखा लेगी.’’

शिवानी ने संजय के चेहरे को भी ध्यान से देखा पर वह हमेशा की तरह हंसतामुसकराता ही लगा. शिवानी को सुस्त देख कर सब को उस की चिंता हो रही थी. मन ही मन कलपती शिवानी वापस घर आ गई. शिवानी को छोड़ने सब से पहले सब उसी के घर आए.

सुधा से लिपट कर वह रो दी तो रमेश घबरा गए. पूछा, ‘‘क्या हुआ?’’ तबीयत तो ठीक है?

रमन ने कहा, ‘‘अंकल, कल रात ही इस की तबीयत खराब हो गई थी.’’

‘‘अरे, क्या हुआ? फोन क्यों नहीं किया?’’

‘‘पापा, मैं जल्दी सो गई थी, सिर भारी था.’’

सुधा परेशान हो गईं, ‘‘चल, डाक्टर को दिखा लेते हैं.’’

‘‘नहीं मम्मी, अब थोड़ा ठीक हूं. बस आराम कर लूंगी.’’

सब चले गए. अजय भी शिवानी का हाल सुन कर परेशान हो गया. लता और उमा भी उस से मिलने आ गईं. शिवानी का दिल भर आया. उस की मनोदशा का तो किसी को अंदाजा ही नहीं था.

उमा कह रही थीं, ‘‘आराम ही करना, जब मन हो, आ जाना. वैसे तुम्हारे बिना हमारा मन नहीं लग रहा है. घर खालीखाली लगता है.’’

थोड़ी देर बैठ कर सब बातें करती रहीं. उन के जाने के बाद शिवानी का मन हुआ मां को सब सचसच बता दे पर उस की हिम्मत नहीं हुई, क्योंकि सुधा उस के जाने के पक्ष में ही नहीं थीं. किस मुंह से कहे, उन का डर सच साबित हुआ है.

वह फिर रोने लगी तो सुधा ने कहा, ‘‘चल बेटा, डाक्टर को दिखा लेते हैं.’’

‘‘नहीं मम्मी, अब तो ठीक हूं.’’

फिर वह स्वयं को सामान्य दिखाते हुए थोड़ी बहुत बातें करती रही. 1-2 दिन और बीत गए. सब उस से फोन पर संपर्क में थे ही.

शिवानी बेचैन थी. उस का मन हर समय घबराया, उलझा सा रहता था. वह सुधा से कहने लगी, ‘‘मम्मी, अब ससुराल चली जाती हूं. अजय नहीं हैं तो मैं भी यहां आ गई. अच्छा नहीं लगता.’’

‘‘हां, ठीक है बेटा. जैसी तेरी मरजी.’’

रमेश ही उसे छोड़ने गए. उसे देखते ही सब के चेहरे खिल उठे.

उमा चहक उठीं, ‘‘अच्छा हुआ, आ गई बेटा. घर में बिलकुल रौनक नहीं थी.’’

रमेश भी हंसे, ‘‘संभालो अपनी बहू को आप लोग, अब इस का मायके में मन नहीं लगता.’’

शिवानी भी सब के साथ मुसकरा दी. रमेश चले गए.

डिनर करते हुए सब शिवानी के आने पर खुश थे. यह सब ने साफसाफ महसूस किया, पर उमा ने उसे टोक भी दिया, ‘‘बेटा, जब से आई ओ तब से मुंह उतरा हुआ है. अभी तक तबीयत ठीक नहीं लग रही है क्या?’’

‘‘नहीं मां, ठीक है.’’

विनय ने गौतम से कहा, ‘‘भैया, अजय का टूअर अब कम ही रखना, नहीं तो बहू ऐसे ही उदास रहेगी या इसे भी आगे से साथ ही भेजना.’’

‘‘हां, यह ठीक रहेगा.’’

अगला पूरा हफ्ता शिवानी अपने साथ घटी घटना को भूलने की नाकाम कोशिश करती रही. अपने को काम में उलझाए रखती पर उस रात को भूलना बहुत मुश्किल था और सब से बड़ी बात थी, इस अपराधबोध के साथ जीना कि उस ने यह बात सब से छिपा ली. वह किसी से यह बात शेयर करना चाह रही थी पर किस से करे, यह समझ नहीं आ रहा था. अपनी मम्मी को बताना चाहती थी पर उस ने उन की बात नहीं सुनी थी, इसलिए हिम्मत नहीं हो रही थी.

अजय आ गया तो सब के चेहरे खिल उठे. लता ने कहा, ‘‘देखो, मेरी बहू कितनी उदास रही. अब जल्दी कहीं मत जाना.’’

अजय ने शिवानी को देखा. उस की आंखों में आंसू झिलमिला रहे थे, उस ने तो इन आंसुओं को इतने दिन की दूरी ही समझा. रात को एकांत में अजय के सीने पर सिर रख कर शिवानी बुरी तरह फफक पड़ी.

अजय परेशान हो गया, ‘‘मेरे पीछे तुम्हें कोई परेशानी हुई है क्या?’’

‘‘नहींनहीं, ऐसा तो कुछ नहीं है, एक बारगी तो शिवानी का मन हुआ इतने प्यार करने वाले पति से कुछ न छिपाए पर अंजाम सोच कर सिहर गई. अजय ने उस के रोने को फिर अपना जाना ही समझा.’’

कुछ दिन और बीते. शिवानी मन ही मन घुटती रही. वह चाह कर भी किसी से हंसबोल नहीं पा रही थी. एक अपराधबोध हर समय उस के मन पर हावी रहता था. उस ने सब से सच छिपा लिया था पर वह मन ही मन बहुत बेचैन रहने लगी थी.

इस बार जब तय समय पर उसे पीरियड्स नहीं हुए, तो उस का माथा ठनका. उस ने कुछ दिन और इंतजार किया. फिर एक दिन अजय के औफिस जाने के बाद उसे उमा से कहा, ‘‘मां, आज थोड़ी देर मम्मी से मिलने चली जाऊं?’’

‘‘हां, जरूर जाओ.’’

शिवानी ने रास्ते में ही प्रैगनैंसी चैक करने वाली किट खरीदी और मम्मी के यहां पहुंच गई. रमेश कालेज में ही थे. शिवानी से फोन पर बात होने के बाद सुधा अपने कालेज से जल्दी आ गईं. शिवानी का उतरा चेहरा देख परेशान हुईं, क्या बात है बेटा, तबीयत फिर खराब है क्या?

‘‘नहीं मम्मी, ठीक हूं.’’

दोनों थोड़ी देर बातें करती रहीं, फिर सुधा शिवानी के लिए कुछ चायनाश्ता बनाने किचन में चली गईं तो शिवानी ने बाथरूम में खुद ही टैस्ट किया. वह गर्भवती थी. उस के होश उड़ गए. माथे पर पसीने की बूंदे चमक उठीं. उस ने बारबार अपने पिछले पीरियड, अपने साथ हुए रेप और अजय के साथ बने संबंधों का हिसाब लगाया और वह इस परिणाम पर पहुंची कि यह बच्चा अजय का नहीं उसी का है, जिस ने उसे नशे में बेसुध कर उस के साथ जबरदस्ती संबंध बनाया था. वह रो पड़ी.

सुधा मन ही मन चिंतित थीं कि उन की बेटी को हुआ क्या है, उस का हंसनामुसकराना, चहकना सब कहां चला गया है.

हाथमुंह धो कर शिवानी बाहर आई तो सुधा को उस की सूजी आंखें देख कर झटका लगा, ‘‘क्या हुआ शिवानी, तुम कुछ बताती क्यों नहीं?’’

‘‘मैं चाय लाती हूं, तुम थोड़ा लेट लो.’’

शिवानी चुपचाप लेट कर मन ही मन इस फैसले पर पहुंची कि वह अबौर्शन करवा लेगी. वह इस अनहोनी का अंश अपने अंदर नहीं पनपने देगी. सुधा चाय लाई तो वह चुपचाप चाय पीने लगी.

सुधा ने कहा, ‘‘शिवानी, तुम्हें बहुत अच्छी ससुराल मिली है न?’’

‘‘हां, मां.’’

‘‘पर तुम कुछ परेशान सी दिखती हो आजकल?’’

‘‘कुछ नहीं है मां, यह सिरदर्द ही आज परेशान कर रहा है,’’ मां कुछ और न सोचे, यह सोच कर वह झूठ ही हंसनेबोलने लगी.

वापस जाते हुए रास्ते में शिवानी की मनोदशा बहुत अजीब थी. किसी को भी बिना बताए वह अबौर्शन का पक्का इरादा कर चुकी थी. घर पहुंच कर सब से सामान्य बातें करने में भी उसे बहुत मेहनत करनी पड़ रही थी. मन ही मन घुटती जा रही थी.

अगले दिन सुबह से ही उमा को तेज बुखार हो गया. उन की तबीयत काफी बिगड़ने लगी तो उन्हें हौस्पिटल में दाखिल करवाना पड़ा. सब उन की सेवा में जुट गए. शिवानी सब कुछ भूल कर उन की सेवा में लग गई. 3 दिन बाद उन की हालत कुछ संभली. अगले दिन ही उन्हें डिस्चार्ज किया जाना था.

पहला विद्रोही: भाग 3- अनुपम ने आश्रम से दूर क्या देखा?

पृषघ्र हतप्रभ रह गया. मस्तिष्क शून्य हो गया और आंखों के आगे अंधेरा छाने लगा. बड़ी कठिनाई से वह अपने स्थान पर लौटा और कटे शव की भांति गिर गया. प्रात:काल उस ने देखा, गाय की गरदन के साथ सिंह का कान भी कट कर गिर गया था.

दिन चढ़े तक जब वह बाहर न आया तो सहपाठियों ने गोशाला के द्वार से उसे पुकारा. कोई उत्तर न पा कर, भीतर आ कर जो हाल देखा तो सभी आश्चर्य- चकित रह गए.

‘‘गुरुदेव, पृषघ्र ने गोहत्या कर दी है,’’ एक शिष्य ने दौड़ कर ऋषि वसिष्ठ को सूचना दी.

‘‘यह तुम क्या कह रहे हो, वत्स? ऐसा कैसे हो सकता है?’’ वे अपने आसन से उठ खड़े हुए.

‘‘स्वयं चल कर देख लीजिए, गुरुदेव,’’ कई स्वर एकसाथ उभरे.

ऋषि वसिष्ठ तेज कदमों से गोशाला में पहुंचे. पृषघ्र द्वार पर सिर झुकाए बैठा था. सामने ही मृत गाय कटी पड़ी थी. ऋषि ने क्रोध से हुंकार भरी, ‘‘यह जघन्य अपराध किसलिए किया तुम ने…क्या केवल इसलिए कि बाहर न जा सकने के कारण तुम उस शूद्री से भेंट न कर सके? एक शूद्र कन्या के लिए इतना जघन्य अपराध?’’ ऊंचे स्वर और क्रोधावेग से वसिष्ठ का बूढ़ा शरीर कांपने लगा था.

‘‘नहीं, गुरुदेव, दरअसल, पिछली रात्रि गोशाला में सिंह घुस आया था. उसी को मारने के लिए तलवार का प्रयोग किया था, परंतु वह बच गया और…उस का कटा हुआ कान वहीं पड़ा है, देख लीजिए.’’

‘‘चुप रहो, वीरवर पृषघ्र का वार गलत पड़े, मैं नहीं मान सकता. तुम ने जानबूझ कर गोहत्या की है, ताकि तुम्हें गोशाला के कार्य से मुक्ति मिले और तुम बाहर जा कर उस शूद्री से प्रेमालाप कर सको, तुम रक्षक से भक्षक बन गए हो,’’ वसिष्ठ चीखे.

‘‘नहीं गुरुदेव, यह गलत है, मैं…’’

‘‘मुझे गलत कहता है, तू ने गोहत्या का महापाप किया है…वह भी एक शूद्री के लिए. मैं तुझे श्राप देता हूं, तू इस नीच कर्म के कारण अब क्षत्रिय नहीं रहेगा. जा, शूद्र हो जा,’’ इतना कह कर वे तेज कदमों से लौट गए.

शूद्रता का दंड मिलने से पृषघ्र का उसी क्षण आश्रम से निष्कासन हो गया. वह बहुत रोया, गिड़गिड़ाया और सत्य के प्रमाण में सिंह का कान दिखाया, पर वसिष्ठ ने न कुछ देखा, न सुना.

शाप क्या है?

उस काल में शिक्षा को ब्राह्मणों ने केवल अपने पास केंद्रित कर रखा था. शिक्षा का प्रसार सीमित वर्ग तक था और आदिवासी तथा निम्नवर्ग को ज्ञान के प्रकाश से कतई वंचित रखा गया था. शिक्षित वर्ग होने से ब्राह्मणों का वर्चस्व राजकाज में अधिक रहा और अर्द्धशिक्षित होने से शासक वर्ग ब्राह्मणों पर आश्रित था. अर्थात वसिष्ठ के शाप ने पृषघ्र को उस समय के सभ्य समाज से, सामाजिक और राजनीतिक अधिकारों से वंचित कर दिया था. ब्राह्मणों की इस एकाधिकारिक व्यवस्था को सामाजिक और राजनीतिक स्वीकृति प्राप्त थी.

समाज से बहिष्कृत हो कर पृषघ्र की समझ में न आया कि वह क्या करे. उस के अपने लोगों ने मुंह मोड़ कर उसे निकाल दिया था. जिस निम्नवर्ग में उसे शामिल होने का दंड मिला था, वह भी ब्राह्मणों के बनाए दंडविधान, सामाजिक असुरक्षा और राजभय के चलते उसे स्वीकार करने में असमर्थ था. पृषघ्र जानता था कि शूद्र वर्ग भी उसे अपने में सम्मिलित नहीं करेगा और साहस किया भी तो उस का दंड कईकई लोगों को भुगतना होगा.

वह वनों में भटकता रहा. कईकई दिनों तक मानव दर्शन भी न होता था. अंतत: उस ने नैष्ठिक ब्रह्मचर्य का व्रत धारण किया. सारी आसक्तियां छोड़ दीं, गुणमाला मस्तिष्क से विलोप हो गई. इंद्रियों को वश में कर वह जड़, अंधे, बहरे के समान हो कर तथाकथित ईश्वर को खोजता रहा, पर वह न मिला.

अंतत: वह पुन: गुणमाला के पास लौटा, ‘‘गुर्णवी, मैं लौट आया हूं,’’ अधीर स्वर में उस ने कुटिया के द्वार पर खड़े हो कर आवाज दी.

पर कोई उत्तर न मिला. पृषघ्र ने भीतर जा कर देखा, कोई नहीं था. कुटिया की हालत बता रही थी कि वहां काफी समय से कोई नहीं रहा. कुछ सोच कर उस ने कुटिया को आग लगा दी और स्वयं भी उसी में समा गया.

मेरी पत्नी किसी और से प्यार करती है, क्या करूं?

सवाल

मैं 42 साल का एक शादीशुदा मर्द हूं. मेरे 2 बच्चे हैं. मेरी पत्नी का किसी और मर्द के साथ चक्कर चल रहा है और मैं उसे रंगे हाथ पकड़ भी चुका हूं.

मैं ने उसे कई बार समझाया कि बच्चों के भविष्य के लिए ऐसा करना छोड़ दे, पर वह मानती ही नहीं है. बोलती है कि अब वह इस शादी से उकता गई है और उस की जिंदगी में कोई रोमांच नहीं बचा है, इसलिए उस से कोई उम्मीद मत रखो. उस की इस बेवजह की ख्वाहिश से मैं परेशान रहता हूं. मैं क्या करूं?

जवाब

अब आप के पास 3 ही रास्ते बचे हैं. पहला यह कि पत्नी को उस की सनसनी और मौजमस्ती वाली आजाद जिंदगी जीने दें और खुद कलपते रहें. दूसरा यह कि अगर आंखोंदेखी मक्खी न निगल पाएं, तो तलाक दे दें, जो कि आसान काम नहीं है. हां, अगर पत्नी तैयार हो, तो रजामंदी से तलाक जल्द हो जाएगा.

एक तीसरा रास्ता ज्यादा कारगर है कि अपनी जिंदगी में वह रोमांच पैदा करें, जैसा पत्नी चाहती है और जो उसे पराए मर्द से मिल रहा है.

मुमकिन है कि आप उसे सैक्स के मामले में संतुष्ट न कर पा रहे हों, लेकिन कोई भी फैसला लेने से पहले उस से यह जानने की कोशिश करें कि आखिर वह चाहती क्या है.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem 

आम बाग का वैज्ञानिक ढंग से प्रबंधन

राघवेंद्र विक्रम सिंह

कृषि विज्ञान केंद्र, बस्ती

आम की उत्पादकता को बढ़ाने के लिए आवश्यक है कि मंजर में टिकोरा (फल) लगने के बाद बाग का वैज्ञानिक ढंग से प्रबंधन कैसे किया जाए.

मटर के दाने के बराबर

आम के फल होने की

अवस्था में किए जाने वाले

कृषि के काम

* फूल के अच्छी प्रकार से खिल जाने के बाद से ले कर फल के मटर के दाने के बराबर होने की अवस्था के मध्य किसी भी प्रकार का कोई भी कृषि रसायन का प्रयोग नहीं करना चाहिए, अन्यथा फूल के कोमल हिस्से घावग्रस्त हो जाते हैं, जिस से फल बनने की प्रक्रिया बुरी तरह प्रभावित होती है.

* मटर के दाने के बराबर फल हो जाने के बाद इमिडाक्लोप्रिड (17.8 एसएल)

1 मिलीलिटर दवा प्रति 2 लिटर पानी में और हैक्साकोनाजोल 1 मिलीलिटर प्रति लिटर पानी में या डाइनोकैप (46 ईसी) 1 मिलीलिटर दवा प्रति 1 लिटर पानी में घोल कर छिड़कने से मधुवा और चूर्णिल आसिता की उग्रता में कमी आती है.

* प्लेनोफिक्स नाम की दवा को

1 मिलीलिटर प्रति 3 लिटर पानी में घोल कर छिड़काव करने से फल के गिरने में काफी कमी आती है. इस अवस्था में हलकी सिंचाई शुरू कर देनी चाहिए, जिस से बाग की मिट्टी में उचित नमी बनी रहे, लेकिन इस बात का खास ध्यान देना चाहिए कि पेड़ के आसपास पानी इकट्ठा न हो.

* यदि आप का पेड़ 10 वर्ष या उस से ज्यादा का है, तो उस में 500-550 ग्राम डाईअमोनियम फास्फेट, 850 ग्राम यूरिया और 750 ग्राम म्यूरेट औफ पोटाश और 25 किलोग्राम गोबर की अच्छी तरह से सड़ी हुई खाद पौधे के चारों तरफ मुख्य तने से तकरीबन 2 मीटर दूर रिंग बना कर खाद और उर्वरकों का इस्तेमाल करना चाहिए.

मार्बल अवस्था (गुठली

बनने की अवस्था) में किए

जाने वाले कृषि के काम

आईआईएचआर, बैंगलुरु द्वारा विकसित मैंगो स्पैशल या सूक्ष्म पोषक तत्त्व, जिस में घुलनशील बोरोन की मात्रा ज्यादा हो, तो 2 ग्राम प्रति लिटर पानी में घोल बना कर छिड़काव करने से फल के झड़ने में कमी आती है और फल गुणवत्तायुक्त होते हैं.

* बाग में हलकीहलकी सिंचाई कर के मिट्टी को हमेशा नम बनाए रखना चाहिए. इस से फल की बढ़वार काफी अच्छी होती है.

* बाग को साफसुथरा रखना चाहिए. थियाक्लोप्रिडयुक्त कीटनाशकों का स्प्रे करने से आम फलों के बोरर्स को प्रभावी ढंग से नियंत्रित किया जा सकता है.

* गुठली बनने की अवस्था में या मार्बल स्टेज में फलों पर छिड़काव किए गए कीटनाशकों से संतोषजनक परिणाम मिलते हैं. क्लोरोपायरीफास 2.5 मिलीलिटर प्रति लिटर पानी का स्प्रे करने से भी आम के फल छेदक कीट को प्रभावी ढंग से नष्ट किया जा सकता है.

* फल मक्खी के प्रभावी नियंत्रण के लिए फैरोमौन ट्रैप 15 प्रति हेक्टेयर की दर से लगाएं.

मैट्रिमोनियल साइट्स: जाति व धर्म के बाद हिंदी-इंग्लिश भेद

मैट्रिमोनियल साइट्स पर कम समय में हजारों प्रोफाइल देखने को मिल जाते हैं. वहां उम्र, जाति, धर्म, हैसियत और भाषा के आधार पर साथी ढूंढ़ने में सहूलियत होती है. लेकिन सतर्क रहना बहुत जरूरी है वरना…

भारतीय मान्यता के अनुसार ब्याह के बिना जीवन अधूरा है. हमारे यहां वैदिक युग में विवाह के लिए स्वयंवर रचे जाते थे. स्वयंवर के जरिए राजवंश की लड़कियां अपने लिए वर खुद ढूंढ़ा करती थीं.

इस के अलावा भारत में सदियों से 8 तरह के विवाह का चलन रहा है. ब्रह्मा विवाह, जिस में ब्रह्मचर्य के बाद लड़कों का विवाह मातापिता तय करते थे. दैव विवाह में मातापिता खास समय तक पुत्री के लिए योग्य वर की प्रतीक्षा किया करते थे. योग्य वर न मिलने पर पंडितपुरोहित से उन का ब्याह करा दिया जाता था.

तीसरे किस्म का ब्याह है अर्थ विवाह, जिस में लड़की का ब्याह किसी ऋषि या साधु से करा दिया जाता था. चौथे किस्म का ब्याह प्रजापत्य विवाह है. इस में दहेज देनेलेने के बाद कन्यादान का चलन है. प्रजापत्य विवाह का चलन आज भी भारतीय समाज में है. 5वें किस्म का ब्याह गंधर्व विवाह, गंधर्व विवाह को लवमैरिज कहा जा सकता है, लेकिन इस पद्धति को मान्यता मिलने में कठिनाइयां पेश आती थीं. दुष्यंत और शकुंतला का किस्सा इस की एक मिसाल है.

6ठे किस्म का ब्याह है असुर विवाह. अयोग्य लड़के द्वारा धन के देनेलेने के बाद जबरन ब्याह किया जाता था.

7वें किस्म का ब्याह राक्षस विवाह. इस तरह के ब्याह में लड़का लड़की के परिवार से युद्ध कर के अपने लिए वधू को जीता करता है. यह भी जबरन ब्याह का एक तरीका है. 8वें किस्म का ब्याह है पैशाचिक ब्याह. यहां भी लड़की या लड़की के परिवार की इच्छा को अहमियत न दे कर जबरन ब्याह किया जाता है.

गंधर्व विवाह को छोड़, सभी किस्म के ब्याह कमोबेश अरेंज माने जाते रहे हैं, पर गंधर्व विवाह, विवाह ही न माना गया क्योंकि उस में रस्में नहीं निभाई गईं. आज भी भारत में लव मैरिज के बजाय अरेंज मैरिज को ही कहीं अधिक पसंद किया जाता है.

समाजशास्त्रियों का मानना है कि चौथी सदी से भारत में पारिवारिक सदस्यों द्वारा तय किए रिश्ते ही विवाह बंधन के तौर पर मान्य रहे हैं, क्योंकि विवाह बंधन के पीछे मान्यता यह रही है कि विवाह केवल वरवधू का मिलन नहीं है, बल्कि विवाह से 2 परिवारों के बीच रिश्ता स्थापित होता है. हालांकि इस की शुरुआत सवर्गों से हुई लेकिन बाद में यह चलन पूरे भारतीय समाज में होने लगा.

अरेंज्ड मैरिज और तलाक दर

भारत में आज भी 90 फीसदी शादियां अरेंज तरीके से होती हैं और इसलिए दावा किया जाता है कि भारत में आधिकारिक तलाक की दर महज

2-8 फीसदी है. जबकि पश्चिमी देशों में लड़केलड़कियां एकदूसरे से मिलते हैं, कुछ समय तक उन के बीच कोर्टशिप चलती है और फिर वे शादी करने या न करने का फैसला करते हैं.

देखा गया है कि लंबी कोर्टशिप के बाद भी 25 से 50 फीसदी शादियां लाइफटाइम टिक नहीं पातीं. अगर अलगअलग देशों की बात की जाए तो अमेरिका के निकोल्स डी क्रिस्टोफ के सर्वेक्षण का जिक्र यहां जरूरी है. क्रिस्टोफर कहते हैं कि जापान में हर सौ शादियों में 24, फ्रांस में 32, इंग्लैंड में 42 और अमेरिका में 55 तलाक होते हैं.

भारत में अरेंज मैरिज की कुछ अच्छाइयां है तो कुछ बुराइयां भी. ऐसे ब्याह का सब से बड़ा फायदा भारत में जो नजर आता है वह यह है कि तलाक की दर बहुत कम है. इस की वजह यह मानी जाती है कि अरेंज मैरिज में रिश्ता

2 व्यक्तियों का ही नहीं, बल्कि 2 परिवारों के बीच भी होता है. इसीलिए ऐसे रिश्ते में स्थायित्व होता है.

वहीं, बुराई यह है कि ज्यादातर मामलों में लड़कियां को अपने शौक, अपनी तमन्ना सबकुछ परिवार और पति के ऊपर वार देना होता है. उस की आजादी पारिवारिक हद में कैद हो जाती है, मसलन दहेज, घरेलू हिंसा, पतियों द्वारा पत्नी का यौन उत्पीड़न आदि. लेकिन इन सारी खराबियों की दर अलगअलग क्षेत्र में अलग है. ये चीजें आमतौर पर वहां अधिक देखी जाती हैं जहां शिक्षा और जागरूकता की कमी है.

मैट्रिमोनियल साइट और सफलता दर

भारत में अरेंज मैरिज का ज्यादा चलन है. ऐसी शादियां आमतौर पर पारिवारिक पंडित रिश्ते जोड़ने का काम किया करते हैं. आज भी यह चलन बरकरार है. इस के अलावा रिश्तेदारों के जरिए भी ब्याह के लिए संबंध आया करते हैं.

आजकल सामाजिक बंधनों में चूंकि थोड़ी ढील मान्य हो गई है, इसीलिए आधुनिक तरीके से भी रिश्ते तय किए जाते हैं. इन आधुनिक तरीकों में रिश्ते जोड़ने का काम व्यावसायिक तौर पर होने लगा है.

भारत में कई संस्थाएं हैं जो रिश्ते तय करने में मददगार होती हैं. शादी डौट कौम, मैट्रिमोनियल डौट कौम, भारत मैट्रिमोनियल, विवाह बंधनी डौट कौम, ब्राइडग्रूम डौट कौम, आशीर्वाद डौट कौम, जीवनसाथी डौट कौम, गणपति मैट्रिमोनियल, हिंदू मैट्रिमोनियल, फाइंडमैच, हमतुम डौट कौम, मैच मेकिंग डौट कौम, मीटिंग पौइंट डौट कौम जैसी बहुत सारी साइटें औनलाइनऔफलाइन रिश्ते जोड़ने का काम व्यावसायिक तौर पर कर रही हैं.

वहीं ऐसी कुछ साइटें हिंदी, पंजाबी, तमिल, तेलुगू, उर्दू, बंगाली, मराठी जैसे जातिसमुदाय के आधार पर रिश्ते तय करती हैं तो कुछ भारत, अमेरिका, कनाडा, यूएई, यूके और पाकिस्तान जैसे मनचाहेव देश तो कुछ दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, बेंगलुरु, हैदराबाद जैसे मनचाहे शहर या देश के आधार पर.

इस के अलावा हिंदू, मुसलिम, क्रिश्चियन, सिख, बौद्ध, यहूदी और पारसी धर्म के आधार पर भी ये साइटें रिश्ते सु?ाती हैं. आजकल भारतीय समाज में धर्म, जाति और समुदाय के बंधन और ज्यादा कड़े होते जा रहे हैं, इसलिए इन मैट्रिमोनियल साइटों के जरिए हर जाति, धर्म और समुदाय के बीच रिश्ते विवाहबंधन तक नहीं पहुंच रहे हैं.

अब जाति, धर्म के साथ कौन से स्कूल में पढ़े हुए हैं, यह भी जरूरी हो गया. इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढ़ीलिखी लड़कियों का हिंदी मीडियम के पढ़े परिवारों से मेल कम बैठता है. लड़के तो हिंदी मीडियम की लिखीपढ़ी लड़कियों पर मान जाते हैं पर लड़कियों को वे दकियानूसी और गरीब नजर आते हैं.

ऐसी साइटों की सफलता के पीछे कुछ खास वजहें होती हैं. मसलन, कम समय में हजारों प्रोफाइल देखने को मिल जाते हैं. साथ ही, व्यवस्थित तरीके से अपनी पसंदीदा उम्र, जाति, धर्म, हैसियत और भाषा के आधार पर भावी साथी को ढूंढ़ने में सहूलियत होती है. साइटों के जरिए अपनी प्राथमिकता के अनुसार संपर्क साधना आसान होता है और सब से बड़ी बात यह है कि इस में किसी तीसरे पक्ष का हस्तक्षेप लगभग नहीं के बराबर होता है.

मैट्रिमोनियल साइट और सावधानियां

जैसा कि हर अच्छे पक्ष के साथ खराबी भी जुड़ी होती है, उसी तरह इन साइटों के लिए भी थोड़ीबहुत सावधानी जरूरी है. इन साइटों में बहुत सारे जंक प्रोफाइल भी हुआ करते हैं जिन का मकसद साइट को जरिया बना कर डेटिंग और मौजमस्ती करने से ज्यादा कुछ नहीं होता.

ये कतई गंभीर नहीं होते हैं. इसीलिए यहां सावधानी बरतने की जरूरत है. बेहतर है कि मूल मैट्रिमोनियल साइट के कस्टमर केयर विभाग में संपर्क करें. चैकिंग और क्रौस चैकिंग के बाद ही आगे कदम बढ़ाएं. अगर सबकुछ संतोषजनक है तो सूचीबद्ध प्रोफाइल से अपनी मैच के प्रोफाइल को चुन कर बात आगे बढ़ाएं. यही कारण भी है कि ज्यादातर अभिभावक पारंपरिक तरीके से पारिवारिक रिश्तेदारों के जरिए शादी का रिश्ता तय करने के पक्ष में होते हैं.

इन मैट्रिमोनियल साइटों का फायदा तब होगा जब जाति धर्म, वर्ग, हिंदी, इंग्लिश मीडियम की पढ़ाई के सवाल नहीं होते. ये भेद होने की वजह से हर जने के विकल्प सीमित हो जाते हैं.

माफी- भाग 2: क्या सुमन भाभी के मुस्कुराहट के पीछे जहर छिपा था?

सोने से पहले अरुण ने अंजलि के सामने अपने मन की हैरानी प्रकट की, ‘‘सुमन भाभी तो बहुत बदल गई हैं. इतने सहज ढंग से उन्हें हंसतेबोलते व काम करते तो मैं ने कभी नहीं देखा. कैसे आ गया है उन में इतना बदलाव?’’ इस पर अंजलि ने बुरा सा मुंह बनाते हुए जवाब दिया, ‘‘उन का इस कदर हंसनाबोलना सिर्फ नाटक है. उन का असली जहरीला स्वभाव तो सहारनपुर में नजर आता है जब सीधेमुंह बात तक नहीं करतीं. अपने काम से आई हैं, सो पैसा भी खर्च कर रही हैं. अपने घर में तो सादा पानी का गिलास देने तक में इन्हें जोर पड़ता है. मुझे धोखा नहीं दे सकतीं आप की भाभी. मैं इन की रगरग से वाकिफ हूं.’’

अंजलि की आंखों में नफरत के भाव जागे. वह आगे बोली, ‘‘जानबूझ कर झूठ बोल कर उन्होंने मुझे सरेआम बेइज्जत किया था. उन्हें माफ करने का सवाल ही नहीं उठता, क्योंकि उन का दिया जख्म मेरे सीने में सदा हरा रहेगा.’’

कुछ देर बाद अरुण तो सो गया लेकिन अंजलि 8 वर्ष पुरानी घटना की यादों में उलझ कर जागती रही.

तब उस की शादी हुए करीब 3 महीने बीते थे. जिस घर में वह मंझले बेटे की दुलहन बन कर आई थी उस घर में उसे भरपूर खुशियां मिली थीं. सासससुर, देवर, ननद व जेठ उस की बहुत प्रशंसा करते. सिर्फ जेठानी ही थीं जिन के हावभाव देख कर उसे अकसर ऐसा महसूस होता जैसे वे अंजलि को पसंद नहीं करती थीं.

अंजलि ने उन के मनोभावों का विश्लेषण करने की कोशिश की तो इस नापसंदगी के कुछ कारण उस की समझ में आए.

अंजलि के मायके वाले सुमन के मायके वालों से बेहतर स्थिति में थे. अंजलि ज्यादा पढ़ीलिखी व खूबसूरत भी थी. अच्छी शिक्षा ने उस के व्यक्तित्व को ज्यादा प्रभावशाली व आकर्षक बना दिया था. उस के द्वारा लाया दहेज देख कर तो पूरे महल्ले वालों की आंखें फटी की फटी रह गई थीं. इन्हीं सब कारणों से सुमन भाभी उस से ईर्ष्या करती होंगी, अंजलि इस निष्कर्ष पर पहुंची थी.

अंजलि आपसी संबंधों में तनाव नहीं चाहती थी, इसलिए वह सुमन के साथ खास ध्यान रखते हुए बहुत अच्छी तरह पेश आती, लेकिन उस के अच्छे व्यवहार का सुमन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा.

सुमन की नाराजगी, शिकायतों व

व्यंग्यों का अंजलि को खूब

निशाना बनना पड़ा. इस का नतीजा यह भी निकला कि घरवालों, रिश्तेदारों व पड़ोसियों की नजरों में सुमन खलनायिका बन कर रह गई.

इन्हीं परिस्थितियों से प्रभावित हो सुमन ने अंजलि की साख गिराने के लिए उस के छोटे भाई विकास पर अपने गले की चेन चोरी करने का झूठा आरोप लगाया था.

21 वर्षीय विकास उस रविवार वाले दिन सिर्फ आधे घंटे के लिए अंजलि से मिलने आया था. अधिकतर समय वह बैठक में या अंजलि के कमरे में ही रहा था. सुमन के 4 वर्षीय बेटे मोनू के साथ खेलते हुए वह 2-4 मिनट के लिए ही सुमन के कमरे में गया था. इत्तफाकन उस वक्त कमरे में कोई अन्य व्यक्ति मौजूद नहीं था.

विकास के जाने के 5 मिनट बाद ही सुमन ने पूरे घर में हल्ला मचा दिया था, ‘मेरी सोने की चेन ड्रैसिंग टेबल की दराज में रखी थी, अब वह वहां नहीं है. अंजलि के भाई के अलावा किसी ने मेरे कमरे में कदम नहीं रखा है. चेन उसी ने चुराई हैं.’

इस तरह अपने भाई पर सरेआम आरोप लगाया जाता देख अंजलि खुद को बेहद अपमानित महसूस करती हुई रोने लगी थी.

‘मेरा भाई चोर नहीं हो सकता, भाभी. मेरे मातापिता के घर में उसे किसी भी चीज की कमी नहीं है, फिर वह चोरी क्यों करेगा?’ अंजलि ने आंखों में आंसू भर भाभी को समझाना चाहा था.

‘घर में वही बाहर का आदमी आया था. चोरी उस ने नहीं तो क्या मेरे सासससुर, देवरों, ननद या तुम ने की है?’ सुमन ने कहा था पर अंजलि से उन के सवालों का कोई जवाब देते नहीं बना था.

सुमन ने अंजलि के मातापिता को भी बुलवा लिया था. विकास भी मौजूद था. उस ने रोरो कर खुद को निर्दोष होने की दुहाई दी थी, लेकिन सुमन अप्रभावित बनी रही.

बात बढ़ती देख अंजलि के पिता ने चेन की कीमत के बराबर 5 हजार रुपए सुमन को देने स्वीकारे थे. वे संयुक्त परिवार में रह रही अपनी लाड़ली बेटी की परेशानियां बढ़ी देखना नहीं चाहते थे.

बाद में सुमन सब से कहती रही थीं, ‘बेटे ने चोरी न की होती और उस की खराब आदत से मातापिता परिचित न होते तो क्या वे इतनी आसानी से 5 हजार रुपए हमें देते? वैसे तो अंजलि खुद को बड़े घर की बेटी कहती है और भाई चोरी करता घूमता है.’

दिल्ली आने से पहले अंजलि सहारनपुर में लगभग 3 साल संयुक्त परिवार में रही थी. इस दौरान विकास ने घर की दहलीज कभी नहीं लांघी. मन में बसी गहरी नफरत के कारण अंजलि सुमन के साथ कभी सहज व्यवहार नहीं कर पाई.

सासससुर ने दोनों बहुओं के बीच जन्मा मनमुटाव देख कर उन का चौकाचूल्हा अलगअलग कर दिया था. अगर ऐसा न किया होता तो अंजलि जरूर ही अरुण को घर से अलग रहने को मजबूर कर देती.

उस घटना के दिन से आज तक अंजलि सुमन से नफरत करती आई थी. आज सुमन का बदला व्यवहार उसे बिलकुल प्रभावित न कर सका था. वह जितनी जल्दी उस की आंखों से दूर हो कर सहारनपुर लौट जाए, उतना अच्छा होगा, अतीत की ऐसी यादों में डूब कर अपना खून जलाती अंजलि देररात को ही सो सकी थी.

सुमन भाभी ने अगले दिन सब को

वे उपहार दिए जो सहारनपुर से

लाई थीं. शिखा को अपनी गुलाबी फ्रौक बहुत पसंद आई. सोनू रिमोट कंट्रोल से चलने वाला हवाईजहाज पा कर फूला नहीं समाया था. अंजलि के लिए साड़ी व चूडि़यां लाई थी. अरुण के लिए आसमानी रंग की कमीज थी. यह उस का पसंदीदा रंग था.

सभी उपहार महंगे व अच्छी किस्म के थे. बाकी सब तो उपहार पा कर खुश हुए, बस, अंजलि को ही उन का उपहार लाने वाला कृत्य नागवार गुजरा. वह सुमन का कैसा भी एहसान अपने ऊपर नहीं चाहती थी. वह तो किसी भी तरह का संबंध उन से रख कर खुश नहीं थी.

उस दिन तक अंजलि की तबीयत में अच्छाखासा सुधार हो गया. शिखा व सोनू की फरमाइश पर सब बाजार घूमने गए. वहां खानेपीने पर अच्छाखासा खर्चा राकेश ने किया. मन ही मन खिन्नता महसूस कर रही अंजलि ने ही कुछ भी खाने से इनकार कर दिया.

अंजलि की बेरुखी से अप्रभावित रहते हुए सुमन का मैत्रीपूर्ण व्यवहार अपनी जगह कायम रहा. अगले दिन राकेश को अपने चैकअप के लिए सर गंगाराम अस्पताल जाना था. सुमन ने घर से निकलने से पहले सब को नाश्ता बना कर खिला दिया. दोपहर के भोजन के लिए सब्जी तैयार कर दी और घर संभाल दिया था.

‘‘अंजलि, तुम अभी पूरी तरह ठीक नहीं हो, मेरे पीछे आराम करना. मैं अस्पताल से लौट कर बचा हुआ काम निबटा दूंगी,’’ सुमन ने कहा. उन की यह पेशकश सुन कर अंजलि ऊपर से तो सहज नजर आती रही, पर मन ही मन जलभुन गई थी.

अंजलि घर में अकेली रह गई थी. वह देर तक सुमन के व्यवहार में आए बदलाव के पीछे छिपे उन का कोई स्वार्थ ढूंढ़ने को सोचती रही. बहुत माथापच्ची करने के बाद भी जब वह किसी नतीजे पर न पहुंच सकी तो उस की बेचैनी और बढ़ गई क्योंकि वह सुमन के व्यक्तित्व का कोईर् भी गुण स्वीकार नहीं करना चाहती थी.

राकेश का चैकअप पूरा होने में 3 दिन लगे. उच्च रक्तचाप के अलावा डाक्टर उस के शरीर के किसी अन्य अंग में कोई रोग नहीं पकड़ पाए. उन्होंने दवाएं लिख दीं व महीनेभर बाद फिर चैकअप कराने आने को कहा.

पहला विद्रोही: अनुपम ने आश्रम से दूर क्या देखा?

कुमार उसी दिशा में तेजी से अग्रसर हुआ. कुछ ही दूरी पर एक नारी छाया धरती पर बैठी दिखाई दी. पीड़ा की छटपटाहट और रुदन स्पष्ट सुनाई दे रहा था.

Summer Special: रक्तदान के जरिये इंसान भी दे सकता है जीवनदान

डाॅक्टर जब किसी मरणासन्न व्यक्ति की जान बचाता है तो वह उसे एक नया जीवन ही देता है. लेकिन धरती में अकेले डाॅक्टर ही नहीं है जो किसी को जीवनदान दे सकता है. एक साधारण इंसान भी चाहे तो जीवन में एक दो नहीं बल्कि सैकड़ों लोगों को जीवनदान दे सकता है. जी, हां! ये जीवनदान रक्तदान करके दिया जा सकता है. एक स्वस्थ व्यक्ति अपने 70 साल के जीवन में कम से कम 200 से 250 यूनिट रक्तदान कर सकता है. यूं तो कोई भी व्यक्ति एक महीने बाद ही फिर से रक्तदान कर सकता है, लेकिन अगर उसे इतनी जल्दी रक्तदान करने में किसी किस्म का मानसिक डर सताता हो तो वह रक्तदान करने के तीन महीने बाद आंख मूंदकर रक्तदान कर सकता है. इस तरह से कोई भी इंसान एक साल में 4-5 बार रक्तदान कर सकता है. अगर 4-5 बार रक्तदान करना जीवनशैली के चलते संभव न हो तो कोई भी साधारण आदमी एक साल में कम से कम 2 बार एक यूनिट खून तो आंख मूंदकर दान कर सकता है.

यह इसलिए जरूरी है क्योंकि दुनिया में हर दिन करीब 3700 लोग सड़क दुर्घटनाओं में मारे जाते हैं. इनमें से करीब 2000 लोग बचाये जा सकते हैं, लेकिन वे इसलिए नहीं बच पाते; क्योंकि दुर्घटना के बाद तुरंत होने वाले इलाज के समय उनमें खून चढ़ाने की जरूरत होती है और खून समय पर मिल नहीं पाता. हर साल दुनिया में जो 13 लाख 50 हजार लोग रोड दुर्घटनाओं के चलते मारे जाते हैं, उनमें से कई लाख बच सकते हैं अगर समय पर खून मिल जाए. सिर्फ सड़क दुर्घटनाओं में ही नहीं तमाम दूसरी बीमारियों में भी रक्त अनुपलब्धता के कारण होने वाली मौतों को देखें तो यह आंकड़ा हैरान करने वाला है. दुनिया में हर दिन करीब 1 लाख 50 हजार लोगों की मौत होती है, जिसमें 40,000 से ज्यादा लोगों की मौत का कारण खून की अनुपलब्धता से जुड़ी होती है.

भारत में भी हर दिन करीब 2000 या इससे भी ज्यादा लोग तमाम तरह की बीमारियों से लेकर सड़क दुर्घटनाओं तक में इसीलिए असमय मौत का शिकार हो जाते हैं; क्योंकि उनके इलाज में जरूरत के समय रक्त नहीं मिल पाता. हिंदुस्तान में हर साल 1.50 लाख से ज्यादा लोग सड़क दुर्घटनाओं में मारे जाते हैं या जीवनभर के लिए अपाहिज हो जाते हैं. इन हर तरह की मौतों में रक्तदान बड़े पैमाने पर कमी ला सकता है, लेकिन तमाम कोशिशों के बाद भी देश में उतना रक्तदान नहीं हो पाता, जितने रक्त की हर समय जरूरत होती है. दुनिया में करीब 10 करोड़ लोग हर साल रक्तदान करते हैं. जबकि भारत में बमुश्किल 50 से 55 लाख लोग ही हर साल रक्तदान करते हैं. देश को हर साल तमाम तरह की बीमारियों और दुर्घटना में घायल लोगों को बचाने के लिए 1 करोड़ 20 लाख से ज्यादा ब्लड यूनिट की जरूरत पड़ती है, लेकिन हर साल करीब 90 लाख यूनिट ही हमारे यहां रक्त एकत्र हो पाता है, जिसका साफ सा मतलब है कि हर साल करीब 30 लाख लोगों को खून की जरूरत के समय नहीं मिल पाता, इसमें से बड़ी संख्या में लोग मर जाते हैं.

सवाल है लोग रक्तदान क्यों नहीं करते? इसकी सबसे बड़ी वजह रक्तदान को लेकर फैली तमाम तरह की भूतियां हैं, मसलन इससे हम कमजोर हो जाते हैं, इससे हमारे शरीर में खून का बनन बंद हो जाता है, इससे हमें कई तरह की बीमारियां लग जाती हैं. ऐसे न जाने कितने भ्रम हैं जो रक्तदान के साथ जुड़े हुए हैं. जबकि हकीकत इसके बिल्कुल अलग है. रक्तदान से न केवल किसी किस्म का नुकसान नहीं होता बल्कि उल्टे इससे कई किस्म के फायदे होते हैं. मसलन जो स्वस्थ लोग साल में एक या दो बार रक्तदान करते हैं, उनको हार्टअटैक की आशंकाएं कम से कम होती हैं. यही नहीं रक्तदान करने से वजन भी कम होता है. रक्तदान करने से शरीर में एनर्जी आती है तथा लिवर से जुड़ी समस्याओं में राहत मिलती है. इससे आयरन की मात्रा को बैलेंस कर सकते हैं और कैंसर का खतरा भी कम हो जाता है.

इस सबके बावजूद भी सिर्फ भारत में ही नहीं दुनिया के ज्यादातर देशों में लोग रक्तदान से उदासीन रहते हैं. मसलन भारत जहां महज 75 फीसदी ही खून की जरूरत को पूरी कर पाता है, वहीं श्रीलंका को भारत से भी कम अपनी जरूरत का महज 60 फीसदी रक्त ही रक्तदान से हासिल हो पाता है. नेपाल और थाइलैंड में भारत से ज्यादा रक्तदान होता है; क्योंकि नेपाल अपनी जरूरत का 90 फीसदी तथा थाइलैंड करीब 95 फीसदी अपनी जरूरत का रक्त, रक्तदान के जरिये हासिल कर लेता है. कहने का मतलब यह है कि दुनिया के बहुत कम ऐसे देश हैं, जहां जरूरत से ज्यादा रक्त एकत्र होता है. सवाल है इसकी सबसे बड़ी वजह क्या है? इसकी सबसे बड़ी वजह तमाम किस्म की भ्रंातियां तो हैं ही, एक बड़ी वजह आधी दुनिया को रक्तदान से दूर रखना भी समस्या है. गौरतलब है कि भारत में सिर्फ 10 फीसदी महिलाएं ही रक्तदान कर पाती हैं.

भारत में महिलाओं का बहुत कम रक्तदान कर पाना इसलिए भी चिंता का विषय है; क्योंकि भारत की ज्यादातर महिलाएं मेडिकली फिट नहीं हैं. ज्यादातर महिलाओं में हीमोग्लोबिन का स्तर 12 से कम होता है. अगर हीमोग्लोबिन ठीक भी होता है तो उनका वजन खतरनाक स्तर से कम होता है. इसलिए महिलाएं हिंदुस्तान में काफी कम योगदान रक्तदान में करती हैं. देश में रक्तदान को लेकर धारणा यह भी बनी हुई है कि गर्मियों में रक्तदान करने से शारीरिक समस्याएं बढ़ जाती हैं जबकि ऐसा कुछ नहीं है. लेकिन दुर्भाग्य यह है कि हिंदुस्तान जैसे देश में सबसे ज्यादा रक्त की जरूरत होती है. देश में कई वजहों से रक्तदान की बहुत जरूरत है. देश में हर साल 8,000 से ज्यादा बच्चे थैलीसिमिया जैसी बीमारी के साथ पैदा होते हैं. इनमें से कई बच्चों की असमय मौत हो जाती है क्योंकि इस बीमारी में लगातार खून बदलने की जरूरत होती है. यही नहीं भारत में करीब डेढ़ से दो लाख थैलीसिमिया के मरीज हैं, जिनमें बार बार रक्त बदलने की जरूरत पड़ती है. भारत में रक्तदान की दर बहुत ही कम है. 1000 में सिर्फ 8 लोग ही हैं जो स्वेच्छा से रक्तदान करते हैं. भारत उन 70 से ज्यादा देशों में से है, जहां खून की जरूरत के समय लोग अपने करीबी रिश्तेदारों या खून बेचने वालों पर निर्भर रहते हैं. देश में कोई भी ऐसा हाॅस्पिटल नहीं है जहां बड़े पैमाने पर हर रोगी की जरूरत के लिए पहले से रक्त उपलब्ध हो.
ऐसे में जरूरी है कि हिंदुस्तान में रक्तदान को जितना ज्यादा हो सके प्रमोट करना चाहिए. तभी हम बड़े पैमाने पर होने वाली असमय की मौतों से बच सकते हैं.

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