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पांच साल बाद- भाग 3: क्या स्निग्धा एकतरफा प्यार की चोट से उबर पाई?

स्निग्धा का इंटरव्यू लगभग साढे़ 10 बजे खत्म हो गया था. उस के बाद वे दोनों खाली थे. उन के कदम साउथ इंडियन कौफी हाउस में जा कर रुके. वहां एकांत होने के साथसाथ नीम अंधेरा रहता था. वे दोनों खुल कर अपने मन की गांठें खोल सकते थे और एकदूसरे की आंखों के रास्ते मन की बातें जान सकते थे. कोल्ड कौफी का और्डर देने के बाद निशांत ने उस के सूखे उदास चेहरे की तरफ देखा. वह तो जैसे लगातार उसे ही देखे जा रही थी. वे दोनों एकदूसरे को देख तो रहे थे परंतु उन के मन में संकोच था. बातचीत का सिलसिला कहां से आरंभ हो, कौन पहल करे, यही बात उन दोनों के मन में घुमड़ रही थी.

तब तक कोल्ड कौफी के लंबेलंबे 2 गिलास उन के सामने रखे जा चुके थे.

स्निग्धा वैसे चंचल रही थी परंतु आज चुप थी. निशांत स्वभाव से ही अंतर्मुखी था. अंतर्मुखी नहीं होता तो स्निग्धा आज उस की होती. तब वह अपने मन की बात उस से नहीं कह पाया था. क्या आज कह पाएगा? आज स्निग्धा के पास समय भी था और वह उस के सामने बैठी थी, उस की बात सुनने के लिए परंतु एक रुकावट थी जो बारबार निशांत को परेशान किए जा रही थी. स्निग्धा पहले से ही राघवेंद्र की है. उस को छोड़ कर क्या वह उस की हो सकती थी? ऐसा संभव तो नहीं था. स्निग्धा के विद्रोही स्वभाव से वह परिचित था. वह जो ठान लेती थी उसे कर के ही मानती थी. भले ही बाद में उसे नुकसान उठाना पड़े.

कई पल खामोशी से गुजर गए. यह खामोशी उबाऊ लगने लगी तो स्निग्धा ने ही कहा, ‘क्या हम यहां ऐसे ही बैठने के लिए आए हैं? कुछ मन की नहीं कहेंगे?’

‘आप ही कुछ बताओ,’ उस ने ऐसे कहा जैसे उसे कुछ बोलना नहीं था. वह केवल उस की बातें सुनने के लिए ही उस के साथ आया था. वैसे वह उस के विगत जीवन के बारे में जानने का इच्छुक नहीं था, परंतु जाने बिना उसे कैसे पता चल सकता था कि इलाहाबाद और राघवेंद्र को छोड़ कर वह दिल्ली में क्या कर रही थी? आजकल किस के साथ रह रही थी? ऐसी लड़कियां क्या एक पल के लिए अकेली रह सकती हैं? एक मर्द छोड़ती हैं तो दूसरा पकड़ लेती हैं. इस तरह के संबंधों में कोई प्रतिबद्धता नहीं होती, न एकदूसरे के प्रति कोई जिम्मेदारी और लगाव यही तो आधुनिकता है.

‘मुझे विश्वास नहीं होता हम यहां एकसाथ,’ कह कर स्निग्धा ने बात आरंभ की.

निशांत ने यह नहीं पूछा कि उसे किस बात पर विश्वास नहीं हो रहा था, फिर उस के मुंह से निकला, ‘और मुझे भी.’

वह मुखर हो उठी. एक बार बात शुरू हो जाए तो स्निग्धा की जबान को पर लग जाते थे. उस ने कहा, ऐसी ही घटनाओं से लगता है कि दुनिया वाकई बहुत छोटी है. जीवन के एक मोड़ पर हम अलग होते हैं तो अगले मोड़ पर फिर मिल जाते हैं.’

स्निग्धा बातें करते हुए अब काफी प्रफुल्लित लग रही थी. कुछ देर पहले की उदासी उस के चेहरे से गायब हो गई थी. ऐसा लग रहा था, जैसे उसे अपनी खोई हुई बहुत कीमती चीज मिल गई थी. उस के बदन में थिरकन आ गई थी और आंखों की पुतलियां नाचने लगी थीं.

निशांत उसे एकटक देखता जा रहा था. उस ने सोचा, वह इसी तरह खुश रहेगी तो शायद उस का खोया हुआ यौवन और सौंदर्य एक दिन वापस आ जाएगा.

वह दिल की धड़कन को संभाले बैठा रहा. फिर भी विचार उमड़घुमड़ रहे थे. स्निग्धा जैसी लड़की उस के साथ, बिलकुल उस के सामने बैठी हो और वह निरपेक्ष व निस्पृह रहे, क्या ऐसा संभव था?

वह स्निग्धा के चेहरे के चढ़तेउतरते और बदलते भावों को पढ़ने का प्रयास कर रहा था कि अचानक स्निग्धा ने पूछ लिया, ‘क्या तुम ने शादी कर ली?’ वह अवाक् रह गया. स्निग्धा पहली बार अनौपचारिक हुई थी. उस ने निशांत को ‘तुम’ कहा था.

निशांत ने अपना चेहरा नीचे झुका लिया, ‘अभी शादी के बारे में सोचा नहीं है. नौकरी मिलने के बाद अपने पांव जमाने का प्रयास कर रहा हूं. जिस दिन लगेगा कि अब जीवन में हर प्रकार का स्थायित्व आ गया है, आर्थिक और सामाजिक, तो शादी के बारे में सोचूंगा.’

‘तब सोचोगे?’ स्निग्धा ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा, ‘नौकरी मिलने के बाद भी क्या शादी के लिए सोचना पड़ता है? नौकरी ही तो हर प्रकार का स्थायित्व देती है. अब क्या सोचना. यहां तो लोग बिना किसी आय के शादी के बारे में सोचते हैं. मांबाप भी, चाहे बेटा बेरोजगार क्यों न हो, उस के जवान होते ही उस की शादी करने के लिए उतावले हो जाते हैं. फिर तुम तो हर प्रकार से सक्षम हो. बात कुछ मेरी समझ में नहीं आ रही है.’

इस संबंध में उस ने स्निग्धा को कोई स्पष्टीकरण देना उचित नहीं समझा. कोई आवश्यकता भी नहीं थी. वह चुप रहा तो स्निग्धा ने ही शरारती मुसकराहट के साथ कहा, ‘तुम अभी तक मुझे भूले नहीं हो, क्यों? है न यही बात?’

निशांत के आश्चर्य का ठिकाना न रहा. उस की आंखें स्निग्धा की आंखों से जा टकराईं, जैसे पूछ रही थीं, ‘तो तुम जानती थीं?’

स्निग्धा उस के भावों को समझते हुए बोली, ‘हां, मुझे पता था. मेरा जिस तरह का स्वभाव था और जिस प्रकार मैं यूनियन के कार्यों व खेलकूद में भाग लेती थी, हर प्रकार के व्यक्ति से मेरा वास्ता पड़ता था, किसी के व्यक्तित्व के बारे में जानना मेरे लिए मुश्किल नहीं था. उन दिनों लड़के जिस प्रकार मेरे लिए पागल थे, मैं महसूस करती थी. जो खुल कर मेरे सामने आते थे, उन को भी और जो चुपचाप अपने मन की बात मन की पर्तों में छिपा कर रखते थे, उन के बारे में भी जानती थी.

किसी लड़की के लिए लड़कों की निगाहों के भाव पढ़ना मुश्किल नहीं होता और फिर जिस प्रकार कक्षा में पीछे बैठ कर तुम मुझे देखा करते थे. डिपार्टमैंट के अंदर आतेजाते, सीढि़यां चढ़तेउतरते मुझे देख कर जिस प्रकार तुम्हारी आंखों में चमक आ जाया करती थी, वह मुझ से कभी छिपी नहीं रही थी. परंतु ये वे दिन थे जब सैकड़ों लड़के मेरे सौंदर्य के कायल थे और मेरा तनमन जीतने के युद्ध में सम्मिलित थे वैसी स्थिति में तुम्हारे जैसे सच्चे प्रेमी को नकार देना किसी भी लड़की के लिए बहुत आसान था. उस समय समझदार से समझदार लड़की भी यश और धन की चमक में खो कर सच्चा प्रेम नहीं पहचान पाती है. वह मगरूर हो जाती है और प्रेमियों की भीड़ में सच्चा प्यार खो देती है.’

कहतेकहते उस ने निसंकोच निशांत का दाहिना हाथ पकड़ लिया और प्यार से उसे सहलाते हुए बोली, ‘मुझे खेद है कि मैं ने तुम्हारे जैसा हीरा खो दिया, परंतु अफसोस तो मुझे इस बात का अधिक है कि आजादी और समाज से विद्रोह के नाम पर परंपराओं को तोड़ने का जो नासमझी भरा कदम मैं ने इलाहाबाद जैसे पारंपरिक, सांस्कृतिक और साहित्यिक शहर में किया था, वह मेरे जीवन की सब से बड़ी भूल थी. उस भूल का परिणाम तुम देख ही रहे हो कि आज मैं कैसी हूं और कितनी तन्हा. इतनी तन्हा, जितना किसी गुफा का सन्नाटा हो सकता है.’

स्निग्धा की आंखों में आंसू छलक आए. निशांत ने उस की आंखों को देखा, परंतु उस ने उस के आंसू पोंछने का कोई प्रयास नहीं किया. बस, अपने हाथों को धीरे से उस के हाथों से अलग कर के कहा, ‘हर आदमी जीवन में कोई न कोई भूल करता है, परंतु उस के लिए अफसोस करने से दुख कम नहीं होता, बल्कि बढ़ता ही है,’ उस के स्वर में दृढ़ता थी.

असली चेहरा- भाग 3: क्यों अवंतिका अपने पति की बुराई करती थी?

‘‘जब मुझे पहले से पता होता है कि मुझे जाना है तो मैं खुद ही तो पैक करता हूं अपना सूटकेस, पर जब औफिस में जाने के बाद पता चलता है कि मुझे जाना है तो मेरी मजबूरी हो जाती है कि मैं तुम से कहूं कि मेरा सूटकेस पैक कर के रखना. मैं तुम्हें कार्यक्रम तय होते ही सूचित कर देता हूं ताकि तुम्हें हड़बड़ी में सामान न डालना पड़े. इस बार भी मैं ने 3 घंटे पहले फोन कर दिया था तुम्हें.’’

‘‘जब तुम्हारा फोन आया था उसी समय मैं ने चेहरे पर फेस पैक लगाया था. उसे सूखने में तो समय लगता है न? जब तक वह सूखा तब तक तुम्हारा औफिस बौय आ गया सूटकेस लेने, बस जल्दी में चीजें छूट गईं. इस में मेरी इतनी गलती नहीं है जितना तुम चिल्ला रहे हो.’’

‘‘गलती छोटी है या बड़ी यह तो नतीजे पर निर्भर करता है. 3 दिन मैं ने बिना बनियान के शर्ट पहनी और अपने सहयोगी से क्रीम मांग कर शेविंग की. इस में तुम्हें न शर्म का एहसास है और न अफसोस का.’’ ‘‘तुम्हें तो बस बात को तूल देने की आदत पड़ गई है. कोई दूसरा पति होता तो बीवीबच्चों से मिलने की खुशी में इन बातों का जिक्र ही नहीं करता… और तुम हो कि उसी बात को तूल दिए जा रहे हो.’’ ‘‘बात एक बार की होती तो मैं भी न तूल देता, पर यह गलती तो तुम हर बार करती हो… कितनी बार चुप रहूं?’’

‘‘नहीं चुप रह सकते हो तो ले आओ कोई दूसरी जो ठीक से तुम्हारा खयाल रख सके. मुझ में तो तुम्हें बस कमियां ही कमियां नजर आती हैं.’’ टूअर पर गए पति के पास पहनने को बनियान नहीं थी, दाढ़ी करने के लिए क्रीम नहीं थी अवंतिका की गलती की वजह से. फिर भी वह शर्मिंदा होने के बजाय उलटा बहस कर रही है. कैसी पत्नी है यह? अवंतिका का असली रूप उजागर हो रहा था मेरे सामने. अंदर के माहौल को सोच कर मैं ने उलटे पांव लौट जाने में ही भलाई समझी. पर ज्यों ही मैं ने लौटने के लिए कदम बढ़ाया. अंदर से गुस्से में बड़बड़ाते उस के पति दरवाजा खोल कर बाहर निकल आए.

दरवाजे पर मुझे खड़ा देख उन के कदम ठिठक गए. बोले, ‘‘अरे, मैम आप? आप बाहर क्यों खड़ी हैं? अंदर आइए न,’’ कह कर दरवाजे के एक किनारे खड़े हो कर उन्होंने मुझे अंदर आने का इशारा किया साथ ही अवंतिका को आवाज दी, ‘‘अवंतिका देखो नेहा मैम आई हैं.’’ मुझे देखते ही अवंतिका खुश हो गई. उस के चेहरे पर कहीं भी शर्मिंदगी का एहसास न था कि कहीं मैं ने उन की बहस सुन तो नहीं ली है. किंतु उस के पति के चेहरे पर शर्मिंदगी का भाव साफ नजर आ रहा था.

अवंतिका के घर के अंदर पहुंचने से पहले ही पतिपत्नी के झगड़े को सुन खिन्न हो चुका मेरा मन अंदर पहुंच कर अवंतिका के बेतरतीब और गंदे घर को देख कर और खिन्न हो गया. अवंतिका के हर पल सजेसंवरे व्यक्तित्व के ठीक विपरीत उस का घर अकल्पनीय रूप से अस्तव्यस्त था. कीमती सोफे पर गंदे कपड़े और डाइनिंगटेबल पर जूठे बरतनों के साथसाथ कंघी और तेल जैसी वस्तुएं भी पड़ी हुई थीं. योगिता का स्कूल बैग और जूते ड्राइंगरूम में ही इधरउधर पड़े थे. आज तो स्कूल बंद था. इस का मतलब यह सारा सामान कल से ही इसी तरह पड़ा है. बैडरूम का परदा खिसका पड़ा था. अत: न चाहते हुए वहां भी नजर चली ही गई. बिस्तर पर भी कपड़ों का अंबार साफ नजर आ रहा था. ऐसा लग रहा था कि धुले कपड़ों को कई दिनों से तह कर के नहीं रखा गया. उस के घर की हालत पर अचंभित मैं सोफे पर कपड़े सरका कर खुद ही जगह बना कर बैठ गई. ‘‘आप आज हमारे घर आएंगी यह सुन कर योगिता बहुत खुश थी. बेसब्री से आप का इंतजार कर रही थी पर अभीअभी सहेलियों के साथ खेलने निकल गई है,’’ कहते हुए अवंतिका मेरे लिए पानी लेने किचन में गई तो पीछेपीछे उस के पति भी चले गए.

मुझे साफ सुनाई दिया वे कह रहे थे, ‘‘जब तुम्हें पता था कि मैम आने वाली हैं तब तो घर को थोड़ा साफ कर लिया होता…क्या सोच रही होंगी वे घर की हालत देख कर?’’

‘‘मैम कोई मेहमान थोड़े ही हैं… कुछ भी नहीं सोचेंगी… तुम उन की चिंता न करो और जरा जल्दी से चायपत्ती और कुछ खाने को लाओ,’’ कह उस ने पति को दुकान पर भेज दिया. उस के घर पहुंच कर मुझे झटके पर झटका लगता जा रहा था. मैं अवंतिका की गृहस्थी चलाने का ढंग देख कर हैरान हो रही थी. 2 दिन पहले ही अवंतिका मेरे घर से चायपत्ती यह कह कर लाई थी कि खत्म हो गई है और तब से आज तक खरीद कर नहीं लाई? बारबार कहने और बुलाने के बाद आज पूर्व सूचना दे कर मैं आई हूं फिर भी घर में चाय के साथ देने के लिए बिस्कुट तक नहीं?

उस के पति के जाने के बाद मैं ने सोचा कि अकेले बैठने से अच्छा है अवंतिका के साथ किचन में ही खड़ी हो जाऊं. पर किचन में पहुंचते ही वहां जूठे बरतनों का अंबार देख और अजीब सी दुर्गंध से घबरा कर वापस ड्राइंगरूम में आ कर बैठने में ही भलाई समझी. मेरा मन बुरी तरह उचट चुका था. मैं समझ गई थी कि अवंतिका उन औरतों में से है, जिन के लिए बस अपना साजशृंगार ही महत्त्वपूर्ण होता है. घर के काम और व्यवस्था से उन्हें कुछ लेनादेना नहीं होता और उन पर कोई उंगली न उठा पाए, इस के लिए वे सब के सामने अपने को बेबस और लाचार सिद्ध करती रहती हैं और सारा दोष अपने पति के मत्थे मढ़ देती हैं. उस के घर आने के अपने निर्णय पर मुझे अफसोस होने लगा था. हर समय सजीसंवरी दिखने वाली अवंतिका के घर की गंदगी में घुटन होने लगी थी. चाय के कप पर जमी गंदगी को अनदेखा कर जल्दीजल्दी चाय का घूंट भर कर मैं वहां से निकल ली. वहां से वापस आ कर मेरी सोच पलट गई. उस के घर की तसवीर मेरे सामने स्पष्ट हो गई थी. अवंतिका उन औरतों में से थी, जो अपनी कमियों को छिपाने के लिए अपने पति को दूसरों के सामने बदनाम करती हैं. अवंतिका के पति एक सौम्य, सुशिक्षित और सलीकेदार व्यक्ति थे. निश्चित ही वे घर को सुव्यवस्थित और आकर्षक ढंग से सजाने के शौकीन होंगे तभी तो अपनी मेहनत की कमाई का एक बड़ा हिस्सा उन्होंने घर में कीमती फर्नीचर, परदों और शो पीस पर खर्च किया था. पर उन के रखरखाव और देखभाल की जिम्मेदारी तो अवंतिका की ही होगी. पर अवंतिका के स्वभाव में घर की सफाई और सुव्यवस्था शामिल नहीं थी. इसी वजह से उस के पति नाखुश और असंतुष्ट हो कर उस पर अपनी खीज उतारते होंगे.

सुबहसवेरे घर छोड़ कर काम पर गए पतियों के लिए घर एक आरामगाह होता है. वहां के लिए शाम को औफिस से छूटते ही पति ठीक उसी तरह भागते हैं जैसे स्कूल से छूटते ही छोटे बच्चे भागते हैं. बाहर की आपाधापी, भागदौड़ से थका पति घर पहुंच कर अगर साफसुथरा घर और शांत माहौल पाता है, तो उस की सारी थकान और तनाव खत्म हो जाता है. पर अवंतिका के अस्तव्यस्त घर में पहुंच कर तो किसी को भी सुकून का एहसास नहीं हो सकता है. जिस घर के कोनेकोने में नकारात्मकता विद्यमान हो वहां रहने वालों को सुकून और शांति कैसे मिल सकती है? सुबह से शाम तक औफिस में खटता पति अपनी पत्नी के ही हाथों दूसरों के बीच बदनाम होता रहता है. अवंतिका के घर से निकलते वक्त मेरी धारणा पलट चुकी थी. अब मेरे अंदर उस के पति के लिए सम्मान और सहानुभूति थी और अवंतिका के लिए नफरत.

वसंत आ गया- भाग 3: सौरभ ने पति का फर्ज कैसे निभाया

भैया ने लंबी सांस छोड़ते हुए कहना शुरू किया, ‘‘रंजू, तुम्हारी शादी के बाद कुछ भी ऐसा खास नहीं हुआ जो बताया जा सके. जो कुछ भी हुआ था तुम्हारी शादी से पहले हुआ था, परंतु आज तक मैं तुम्हें यह नहीं बता पाया कि पुरी से भुवनेश्वर तबादला मैं ने सिर्फ संगीता के लिए नहीं करवाया था, बल्कि इस की और भी वजह थी.’’

मैं आश्चर्य से उन का मुंह देखने लगी कि अब और किस रहस्य से परदा उठने वाला है. मैं ने पूछा, ‘‘और क्या वजह थी?’’

‘‘मां के बाद कमली किसी तरह सब संभाले हुए थी, परंतु उस के गुजरने के बाद तो मेरे लिए जैसे मुसीबतों के कई द्वार एकसाथ खुल गए. एक दिन संगीता ने मुझे बताया कि सौभिक ने आज जबरन मेरा चुंबन लिया. जब संगीता ने उस से कहा कि वह मुझ से कह देंगी तो माफी मांगते हुए सौभिक ने कहा कि यह बात भैया को नहीं बताना. फिर कभी वह ऐसा नहीं करेगा.

‘‘यह सुन कर मैं सन्न रह गया. मैं तो कभी सोच भी नहीं सकता था कि मेरा अपना भाई भी कभी ऐसी हरकत कर सकता है. बाबा को मैं इस बात की भनक भी नहीं लगने देना चाहता था, इसलिए 2-4 दिन की छुट्टियां ले कर दौड़धूप कर मैं ने हास्टल में सौभिक के रहने का इंतजाम कर दिया. बाबा के पूछने पर मैं ने कह दिया कि हमारे घर का माहौल सौभिक की पढ़ाई के लिए उपयुक्त नहीं है.

‘‘वह कुछ पूछे बिना ही हास्टल चला गया क्योंकि उस के मन में चोर था. रंजू, आगे क्या बताऊं, बात यहीं तक रहती तो गनीमत थी, पर वक्त भी शायद कभीकभी ऐसे मोड़ पर ला खड़ा करता है कि अपना साया भी साथ छोड़ देता नजर आता है.

‘‘मेरी तो कहते हुए जुबान लड़खड़ा रही है पर लोगों को ऐसे काम करते लाज नहीं आती. कामांध मनुष्य रिश्तों की गरिमा तक को ताक पर रख देता है. उस के सामने जायजनाजायज में कोई फर्क नहीं होता.

‘‘एक दिन आफिस से लौटा तो अपने कमरे में घुसते ही क्या देखता हूं कि संगीता घोर निद्रा में पलंग पर सोई पड़ी है क्योंकि तब उस की दवाओं में नींद की गोलियां भी हुआ करती थीं. उस के कपड़े अस्तव्यस्त थे. सलवार के एक पैर का पायंचा घुटने तक सिमट आया था और उस के अनावृत पैर को काका की उंगलियां जिस बेशरमी से सहला रही थीं वह नजारा देखना मेरे लिए असह्य था. मेरे कानों में सीटियां सी बजने लगीं और दिल बेकाबू होने लगा.

‘‘किसी तरह दिल को संयत कर मैं यह सोच कर वापस दरवाजे की ओर मुड़ गया और बाबा को आवाज देता हुआ अंदर आया जिस से हम दोनों ही शर्मिंदा होने से बच जाएं. जब मैं दोबारा अंदर गया तो बाबा संगीता को चादर ओढ़ा रहे थे, मेरी ओर देखते हुए बोले, ‘अभीअभी सोई है.’ फिर वह कमरे से बाहर निकल गए. इन हालात में तुम ही कहो, मैं कैसे वहां रह सकता था? इसीलिए भुवनेश्वर तबादला करा लिया.’’

‘‘यकीन नहीं होता कि काका ने ऐसा किया. काकी के न रहने से शायद परिस्थितियों ने उन का विवेक ही हर लिया था जो पुत्रवधू को उन्होंने गलत नजरों से देखा,’’ कह कर शायद मैं खुद को ही झूठी दिलासा देने लगी.

भाई आगे बोले, ‘‘रिश्तों का पतन मैं अपनी आंखों से देख चुका था. जब रक्षक ही भक्षक बनने पर उतारू हो जाए तो वहां रहने का सवाल ही पैदा नहीं होता. इत्तिफाकन जल्दी ही मुझे सिंगापुर में एक अच्छी नौकरी मिल गई तो मैं संगीता को ले कर हमेशा के लिए उस घर और घर के लोगों को अलविदा कह आया ताकि दुनिया के सामने रिश्तों का झूठा परदा पड़ा रहे.

‘‘जब मुझे यकीन हो गया कि दवा लेते हुए संगीता स्वस्थ और सामान्य जीवन जी सकती है तो डाक्टर की सलाह ले कर हम ने अपना परिवार आगे बढ़ाने का विचार किया. जब मुझे स्वदेश की याद सताने लगी तो इंटरनेट के जरिए मैं ने नौकरी की तलाश जारी कर दी. इत्तिफाक से मुझे मनचाही नौकरी दिल्ली में मिल गई तो मैं चला आया और सब से पहले तुम से मिला. अब और किसी से मिलने की चाह भी नहीं है,’’ कह कर सौरभ भाई चुप हो गए.

वह 2 दिन रह कर लाजपतनगर स्थित अपने नए मकान में चले गए. मैं बहुत खुश थी कि अब फिर से सौरभ भाई से मिलना होता रहेगा. मेरे दिल से मानो एक बोझ उतर गया था क्योंकि हो न हो मेरी ही वजह से पतझड़ में तब्दील हो गए मेरे प्रिय और आदरणीय भाई के जीवन में भी आखिर वसंत आ ही गया.

जातेजाते भाभी ने मेरे हाथ में छोटा सा एक पैकेट थमा दिया. बाद में उसे मैं ने खोला तो उस में उन की शादी के वक्त मुझे दी गई चेन और कानों की बालियों के साथ एक जोड़ी जड़ाऊ कंगन थे, जिन्हें प्यार से मैं ने चूम लिया.

CUET परीक्षा षड्यंत्र: ऊंची शिक्षा ऊंचों के लिए

राइटर- रोहित

केंद्रीय विश्वविद्यालयों में अब दाखिले के लिए 12वीं के अंकों की जगह एंट्रैंस एग्जाम को लागू किया गया है. सतही तौर पर देखने में यह फैसला क्रांतिकारी लग रहा है, पर भीतर से यह विनाशकारी और कुछ को कमाई के अपार अवसर देने की साजिश वाला लग रहा है. इस से विश्वविद्यालयों में दाखिले तो उन्हीं के होंगे, जिन के पास पैसा है अब इस ने शिक्षा को ले कर नए प्रश्न खड़े कर दिए हैं.

उस दौर में एक एकलव्य था,

आज है एकलव्यों की कतार.

उस दौर में एक द्रोण था,

आज है पूरी द्रोणरूपी सरकार.

(ये पंक्तियां 4 वर्षों पहले एक ओपन संस्था के छात्र द्वारा प्रस्तुत नुक्कड़ नाटक की हैं)

शिक्षा पर पौराणिक समय से ले कर आज तक यह बहस होती रही है कि आखिर शिक्षा पर किस का कितना हक है. एक समय था जब भारत में शिक्षा सिर्फ ऊंची जातियों के अधिकार की चीज मानी जाती थी. शिक्षा पर उन का पूरी तरह कब्जा भी था. ऐसे में छोटी जातियों के लोगों को पढ़नेपढ़ाने जैसी क्रियाओं से दूर रखा जाता था ताकि वे अपना पुश्तैनी मैला काम पीढ़ीदरपीढ़ी करते रहें और ऊंची जातियों की सेवा करने को ही मजबूर होते रहें.

तमाम धार्मिक ग्रंथों में लिखे कई श्लोक, कथा, कहानियां इस बात की तस्दीक भी करते हैं कि कैसे निचली जातियों को शिक्षा से दूर रखे जाने के लिए तमाम तरह के यत्न किए जाते थे. मनुस्मृति, जिसे भगवाधारी हमेशा से संविधान से सर्वोपरि मानते आए हैं, जैसे ग्रंथ में तो शूद्रों को वेद पढ़नेसुनने भर पर सजा के तौर पर उन के कान और मुंह में गरम पिघला सीसा डाल देने तक के नियम निर्धारित थे.

महाभारत की कथा में ही इस का सटीक उदाहरण देखा जा सकता है जहां कौरव और पांडव राजकुमारों को अस्त्रशस्त्र की शिक्षा देने वाले द्रोणाचार्य ने एकलव्य को उस की जनजातीय पहचान के कारण शिक्षा देने से मना कर दिया था. उन्होंने सिर्फ शिक्षा देने से ही मना नहीं किया बल्कि अपने प्रिय क्षत्रिय शिष्य अर्जुन से एकलव्य आगे न बढ़ जाए, उस से तेज धनुर्धारी न बन जाए, इस के चलते गुरुदक्षिणा के नाम पर उस का अंगूठा भी मांग लिया.

ऐसा ही ‘शूद्र’ कर्ण के साथ भी हुआ था. उसे शिक्षा सिर्फ इस आधार पर देने से मना कर दिया कि वह शूद्र परिवार से था. हालांकि अपनी जाति छिपाते जैसेतैसे उस ने अर्जुन से अधिक कौशलता हासिल कर ली, पर उस के गुरु परशुराम द्वारा उस की जाति का बोध होते ही उसे यह श्राप दे दिया गया कि वह अपनी विकट परिस्थिति में तमाम सीखी शिक्षा को भूल जाएगा. यही कारण भी था कि महाभारत के युद्ध में कर्ण अर्जुन के हाथों परास्त हुआ.

शिक्षा की अवधारणा जिस तरह पहले वर्ण आधारित थी, जाहिर है उसे ले कर कई बदलाव हुए, देश में संविधान लागू हुआ तो शिक्षा नीतियां बनीं. शिक्षा उस तेजी से भले नीचे तक पहुंचने में सफल न रही हो पर धीरेधीरे एक लंबा रास्ता तय करती रही. शिक्षा दलितपिछड़ों और महिलाओं तक पहुंचने में कामयाब रही. इस से देश की साक्षरता दर में सुधार भी हुआ, पर सालों के इन प्रयासों के बाद भी यह मूल सवाल चर्चा के केंद्र से कभी हट न पाया कि शिक्षा पर किस की कितनी पहुंच है. पिछले कुछ सालों से शिक्षा को ले कर जिस तरह के बदलाव देखने को मिल रहे हैं उस ने इस सवाल को और गाढ़ा करने का काम किया है.

विश्वविद्यालयों में कौमन एंट्रैंस टैस्ट

हमारे नीतिनिर्माताओं में समस्याओं का समाधान खोजने की ऐसी अद्भुत क्षमता विकसित हो गई है जो समस्याओं को कम करने की जगह बढ़ाने पर लगी हुई है. मौजूदा सरकारी फरमान के मुताबिक, उच्च शिक्षा की देखरेख से जुड़ी संस्था यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन (यूजीसी) ने आगामी सत्र से सैंट्रल यूनिवर्सिटीज में ग्रेजुएशन और पोस्टग्रेजुएशन कोर्सेज में दाखिले के लिए एक नई परीक्षा यानी कौमन यूनिवर्सिटी एंट्रैंस टैस्ट (सीयूईटी) को लागू करने का फैसला लिया है.

यूजीसी की वैबसाइट पर सीयूईटी (क्यूट) के संबंध में एकमात्र औफिशियल जानकारी पब्लिक नोटिस में डाली गई है. उस के अनुसार, यूजीसी द्वारा फंडेड सभी केंद्रीय विश्वविद्यालयों में छात्रों का चयन अब 12वीं के अंकों से नहीं, बल्कि एंट्रैंस टैस्ट से निर्धारित होगा.

अभी तक 12वीं क्लास के बाद ग्रेजुएशन की पढ़ाई के लिए पहले देश के कई केंद्रीय विश्वविद्यालय 12वीं की परीक्षा में हासिल अंकों के आधार पर एडमिशन देते थे तो कुछ ऐसे भी थे जो एंट्रैंस के आधार पर एडमिशन दे रहे थे. जैसे, दिल्ली यूनिवर्सिटी 12वीं क्लास में मिले अंकों के आधार पर एडमिशन देता था तो बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी प्रवेश परीक्षा यानी एंट्रैंस एग्जामिनेशन के आधार पर.

अब नियम बदल दिया गया है. भारत के सभी 45 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में दाखिला पाने के लिए टैस्ट से गुजरना होगा. जहां तक स्टेट, प्राइवेट और डीम्ड यूनिवर्सिटी की बात है तो उन्हें स्वतंत्रत्ता है वे चाहें तो इसे अपनाएं या न अपनाएं.

इस टैस्ट की परीक्षा नैशनल टैस्ंिटग एजेंसी (एनटीए) के जरिए कराई जाएगी. एनटीए यह परीक्षा कंप्यूटर के जरिए लगाए ठीक उसी प्रकार से जैसे मैडिकल और इंजीनियरिंग में दाखिले के वक्त लिए जाते हैं. सवाल मल्टीपल चौइस क्वेश्चन यानी वैकल्पिक होंगे. छात्रों के पास इंग्लिश, हिंदी, असमी, बंगाली, गुजराती, कन्नड़, मलयालम, मराठी, ओडिया, पंजाबी, तमिल, तेलुगू और उर्दू भाषा में परीक्षा देने का विकल्प रहेगा.

इस के अलावा एग्जाम 3 सैक्शन में लिया जाएगा. पहले सैक्शनों में 27 डोमेन स्पेसिफिक सब्जैक्ट (जिस कि पढ़ाई की हो) होंगे, जिस में से कोई 6 चुनने होंगे. तीसरे हिस्से में जनरल टैस्ट होगा जिस के अंदर सामान्य ज्ञान, करंट अफेयर, मैंटल एबिलिटी, न्यूमेरिकल एबिलिटी, क्वांटिटेटिव रीजनिंग इत्यादि से जुड़े सवाल होंगे.

नैशनल टैस्ंिटग एजेंसी परीक्षा ले कर एक मैरिट लिस्ट बनाएगी. उस लिस्ट के आधार पर कालेज या यूनिवर्सिटी एडमिशन देगा. साथ ही एक पेंच यह है कि यूनिवर्सिटी को यह स्वंतत्रता होगी कि वह चाहे तो 12वीं क्लास के अंकों की एक सीमा तय करे और फिर टैस्ट में आई रैंक के आधार पर एडमिशन दे.

जाहिर है यूजीसी ने इस पर कोई स्पष्ट आदेश नहीं दिया है. सबकुछ थोपने के बाद छात्रों की और पैनी छंटाई के लिए इसे यूनिवर्सिटी और उस से संबंध कालेजों के मर्म पर छोड़ दिया है, जिस से अभी तक ठीक से स्पष्टता नहीं आ पाई है कि कोई सैंट्रल यूनिवर्सिटी 12वीं में मिले कितने प्रतिशत अंकों को अपनी तय सीमा बनाएगी या बनाएगी भी कि नहीं?

संभव है कि बड़ीबड़ी सैंट्रल यूनिवर्सिटीज दाखिले के लिए रैंक के अलावा 12वीं में मिले अंकों पर

60 प्रतिशत से ले कर 90 प्रतिशत तक की न्यूनतम सीमा तय कर दें. फिलहाल इस तरह की तमाम टैक्निकल आशंकाओं पर स्पष्टता तभी आएगी जब एकदो बार इस तरह की परीक्षाएं आयोजित होंगी.

टैस्ट और सरकारी ‘कु’तर्क

भारत में इस समय कुल 1,027 विश्वविद्यालय हैं जिन में 54 केंद्रीय विश्वविद्यालय, 444 राज्य विश्वविद्यालय, 126 डीम्ड विश्वविद्यालय और 403 निजी विश्वविद्यालय शामिल हैं. यूजीसी के पूर्व सदस्य एम एम अंसारी ने एक रिपोर्ट में कहा कि सभी 1,027 विश्वविद्यालयों में स्नातक, स्नातकोत्तर, पीएचडी और अनुसंधान धाराओं में लगभग 4 करोड़ प्रवेश हो रहे हैं. केंद्रीय विश्वविद्यालय उन में से केवल 5 प्रतिशत को ही पूरा करते हैं. अगर हम केवल ग्रेजुएशन में दाखिले के बारे में बात करते हैं तो कुल यूजी प्रवेश का 1 से 2 प्रतिशत केंद्रीय विश्वविद्यालयों में होता है.

हालांकि इस के बाद बहुत हद तक आशंका जताई जा रही है कि इस तरह के एग्जाम कंडक्ट कराए जाने के बाद इस का असर राज्य स्तरीय विश्वविद्यालयों पर भी देखने को मिलेगा. चाहे दबाव में या इच्छा से, वे भी इस तरह के प्रोसीजर को फौलो करेंगे.

सरकार की तरफ से तर्क दिए जा रहे हैं कि यूनिवर्सिटी में दाखले के लिए बनाए गए नए नियम से अब अधिक से अधिक अंक हासिल करने वाली दौड़ पर लगाम लगेगी, छात्रों को अतिविशिष्ट मेहनत से थोड़ा छुटकारा मिलेगा, 13 भाषाओं में परीक्षा होने के चलते भाषा से जुड़ी बाध्यता से छुटकारा भी मिलेगा और दाखिला लेने के लिए केवल एक एंट्रैंस एग्जाम होने के चलते छात्रों को विश्वविद्यालयों में एडमिशन लेने के लिए कई विश्वविद्यालयों के फौर्म भरने व कई प्रवेश परीक्षाएं देने से छुटकारा मिलेगा.

वहीं, जिसे सब से अधिक जोर दे कर सरकार कह रही है कि कालेज में दाखिला लेने के लिए यह टैस्ट सब के लिए एकसमान अवसर पैदा करेगा, जिस का आधार वह इस तौर पर मान रही है कि स्टेट बोर्ड छात्रों को कम नंबर देता है, जबकि सीबीएसई और आईसीएसई बोर्ड से छात्रों को ज्यादा नंबर मिलते हैं, इसलिए एंट्रैंस एग्जाम का पैमाना एक होने के चलते स्टेट बोर्ड का छात्र भी दिल्ली यूनिवर्सिटी में दाखिले की तमन्ना पूरी कर सकता है.

दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के प्रोफैसर अपूर्वानंद इसे अलग नजरिए से देखते हैं. वे कहते हैं, ‘‘यह भारत में संघीय व्यवस्था पर चोट पहुंचाने जैसा है. अब यूजीसी दबाव डाल रही है कि राज्यों के भी जो विश्वविद्यालय हैं वे भी इस में शामिल हो जाएं तो यह पूरी तरह से संघीय व्यवस्था का उल्लंघन हो रहा है, क्योंकि राज्य समवर्ती सूची में है और राज्य स्वतंत्र निर्णय कर सकता है.’’

अब सरकार के तर्कों को मान भी लें तो भी इस टैस्ट से जो गंभीर समस्याएं वर्तमान और भविष्य में उत्पन्न होने जा रही हैं वे पूरी शिक्षा प्रणाली के लिए कैसे खतरनाक बदलाव ले कर आएंगी, इसे पूरी तरह छिपाया जा रहा है, जिसे सम?ाना भी बेहद जरूरी है.

हाशिए पर रह रहे छात्रों की अनदेखी

सब से पहली बात सरकार ने सिर्फ एडमिशन प्रणाली में बदलाव किया है, जिस का ढिंढोरा वह इस तौर पर पीट रही है कि इस से वंचित तबकों और राज्य बोर्ड वाले छात्रों को एक कौमन प्लेटफौर्म पर कम्पीट करने का मौका मिलेगा. जबकि हकीकत यह है कि सरकारी स्कूलों और राज्यों के भीतर वाले अधिकतर छात्रों को इस टैस्ट के बारे में बेसिक जानकारी तक उपलब्ध नहीं है. यूजीसी ने इस टैस्ट को ले कर जिस तरह की जल्दबाजी दिखाई, उस से उस ने गरीब, कमजोर तबकों के छात्रों को बाहर धकेलने का ही काम किया है.

इस का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि अच्छे स्कूलों की ताली पीटने वाली केजरीवाल सरकार के सरकारी स्कूलों के छात्रों तक को इस टैस्ट के बारे ठीक से जानकारी नहीं. इस संबंध में सरिता पत्रिका ने कई हिंदी मीडियम के छात्रों से बात की. ऐसे ही एक दिल्ली के बलजीत नगर इलाके में रहने वाले 17 वर्षीय अंकित तिवारी से बात हुई. अंकित के पिताजी आनंद पर्वत की एक लोहा फैक्ट्री में काम करते हैं. अंकित प्रेमनगर के राजकीय उच्चतर माध्यमिक बाल विद्यालय में पढ़ाई कर रहा है, जिस की शिफ्ट दोपहर बाद की है.

अंकित बताता है कि उस की दिलचस्पी हिंदी भाषा और राजनीतिक विज्ञान में है और वह कालेज में जा कर हिंदी औनर्स करना चाहता है, पर जैसे ही उस से दाखिले के बारे में पूछा गया तो उस ने बताया कि उस के स्कूल के व्हाट्सऐप ग्रुप में एक टीचर ने फौरीतौर पर एंट्रैंस एग्जाम का मैसेज तो भेज दिया था, पर इस संबंध में किसी प्रकार की जानकारी सा?ा नहीं की. इस कारण उसे एडमिशन के प्रोसैस और सिलेबस के बारे में जानकारी नहीं.

ठीक यही हाल सचिन का है. सचिन पटेलनगर के सर्वोदय बाल विद्यालय में पढ़ाई करता है. उस के पिता सेल्समैन हैं. सचिन को कोई खास जानकारी नहीं है कि सीयूईटी है क्या. बस, इतना पता है कि अब 12वीं के बाद कालेज में दाखिले के लिए एग्जाम लिया जा रहा है. सचिन के साथ पढ़ने वाला दीपक, जोकि

17 साल का है, उस ने बताया कि उस के स्कूल में पढ़ाई के नाम पर औनलाइन क्लास चली तो जरूर, पर वह क्लास रोजरोज नहीं चल पाती थी. ऐसे में जनरल टैस्ट की तैयारी पर वह परेशानी में घिरा हुआ है. वह बताता है इस एग्जाम की तैयारी करना हमारे लिए संभव नहीं.

दीपक के पिताजी दिहाड़ी मजदूर हैं. रोज कमानेखाने वाले तबके से हैं. वे यहां दिल्ली में किराए के कमरे में रहते हैं. उन के लिए 800-1,000 रुपए सीयूईटी के एग्जाम के लिए खर्च कर पाना मुश्किल है. ऐसे में इस एग्जाम के लिए, जिस के एडमिशन प्रक्रिया के बारे में उसे भी खास जानकारी नहीं, उस ने पहले ही अपने पांव पीछे खींच लिए हैं.

ठीक इस के विपरीत गाजियाबाद के टौप रैंकिंग स्कूल ‘सेठ आनंद राम जयपुरिया’ में पढ़ने वाले छात्र अभिनंदन अधिकारी सीयूईटी की प्रवेश परीक्षा को ले कर आश्वस्त हैं. अभिनंदन के पिता एनटीपीसी में असिस्टेंट जनरल मैनेजर के पद पर कार्यरत हैं. अभिनंदन मानते हैं कि सरकार का यह फैसला बगैर छात्रों की तैयारी को देखते हुए लिया गया है पर टैस्ट के लिए जितनी तैयारी संभव है, उसे वे कर रहे हैं.

अभिनंदन ने इस टैस्ट पर चिंता जाहिर की. उस ने कहा, ‘‘देखिए, बचपन से हमारे स्कूल के अलगअलग ओलंपियाड होते रहे हैं, साइंस या मैथ के क्विज होते रहते हैं तो मेरा मानना है दिल्ली और मुंबई जैसे बड़े शहरों के छात्रों को इस एग्जाम में कम्पीट करने में दिक्कत नहीं आएगी, पर उन छात्रों को समस्या होगी जिन के पास संसाधनों की कमी है.’’

वे आगे कहते हैं, ‘‘हमारे पास कंप्यूटर, लैपटौप और इंटरनैट की बेहतर सुविधा रही है तो हम इस का एक्सेस अच्छे से जानते हैं, पर वे छात्र पीछे रह जाएंगे जो राज्यों के अंदरूनी क्षेत्र से आते हैं. उन छात्रों को कंप्यूटर की जानकारी का न होना उन्हें दिक्कत देगा.’’

एडमिशन में आए इस बदलाव ने वंचित गरीब दलित और पिछड़े छात्रों को और हाशिए पर धकेलने का काम किया है. सरकारी स्कूलों में करंट अफेयर, सामान्य ज्ञान, मैंटल एबिलिटी, न्यूमेरिकल एबिलिटी, क्वांटिटेटिव रीजनिंग इत्यादि से जुड़ी चीजें कितनी कराई जाती हैं, यह बताने की जरूरत नहीं है. इस के ऊपर पिछले 2 सालों में कोविड ने जिस तरह गांवदेहात के छात्रों को शिक्षा से दूर किया है उस लिहाज से इस टैस्ट की पहुंच गांवदेहात के छात्रों तक होना दूर की बात है.

इस पर प्रो. अरुण कुमार, जो औल इंडिया फैडरेशन औफ यूनिवर्सिटी एंड कालेज टीचर एसोसिएशन (एआईएफयूसीटीओ) के जनरल सैक्रेटरी हैं, कहते हैं, ‘‘कौमन ग्राउंड की बात ढकोसला है. आप ओडिशा, ?ारखंड, बिहार, मध्य प्रदेश इत्यादि के गांवदेहात में रहने वाले दलितआदिवासी और पिछड़े बच्चों को दिल्ली मुंबई शहरों में रहने वाले बच्चों के साथ एक एग्जाम में तोलना चाहते हैं, इस से आप बराबरी लाना चाहते हैं या गैरबराबरी को बढ़ावा देना चाहते हैं? यह बड़ा सवाल है.’’

प्रो. अरुण कुमार आगे कहते हैं, ‘‘जाहिर सी बात है जब किसी एग्जाम का केंद्रीयकरण हो जाता है तो गरीब तबके के लिए कठिन और अमीर वर्ग के लिए यह और आसान हो जाता है. ऐसा इसलिए है कि वे महंगी कोचिंग, अच्छे शिक्षकों का खर्च उठा सकते हैं जबकि एक गरीब छात्र इन सभी चीजों को वहन नहीं कर सकता. इस से एक अमीर छात्र अच्छे अंक प्राप्त कर सकता है. एक गरीब उम्मीदवार प्रतिस्पर्धा नहीं कर पाता. यह एक इक्वल प्लेग्राउंड नहीं है.’’

दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में कार्यरत प्रोफैसर अपूर्वानंद ने सरिता पत्रिका से सरकार के ‘कौमन ग्राउंड’ वाली दलील को ले कर बात की. वे कहते हैं, ‘‘सीयूईटी भारत के लिए अनुपयुक्त व्यवस्था है. हमें ध्यान देना होगा वास्तविक समस्या क्या है? वास्तविक समस्या है अच्छे शिक्षण संस्थानों की कमी जिन में छात्र जाना चाहते हैं, जिस कारण दिल्ली विश्वविद्यालय जैसी कुछ यूनिवर्सिटीज में भीड़ लग जाती है. जरूरी यह है कि राज्यों के विश्वविद्यालय और कालेज, जैसे इलाहाबाद विश्वविद्यालय, पटना विश्वविद्यालय, लोयला कालेज आदि सब जितने महत्त्वपूर्ण पहले हुआ करते थे, में शिक्षकों को बहाल करने की, सुविधाएं पहुंचाने की, अच्छी व्यवस्था लाने की कोशिश हो, बजट बढ़ाए जाने की बात हो.’’

सरकार अलगअलग राज्यों के बोर्ड व केंद्रीय बोर्ड में अंकों के मूल्यांकन की समस्या को इस टैस्ट के माध्यम से हल करने की बात भी कह रही है. लेकिन देखा जाए तो यूजीसी ने साफ निर्देश दिए हैं कि टैस्ट एनसीईआरटी के 12वीं के सिलेबस के आधार पर होगा. यानी अलगअलग बोर्ड में छात्रों ने जिन किताबों से पढ़ाई की है उस का कोई मतलब नहीं रह जाता. यह साफतौर पर सरकार का दोहरापन दिखाता है.

प्राइवेट कोचिंग माफिया का कारोबार

प्रो. अपूर्वानंद कहते हैं, ‘‘आप जब सैंट्रलाइज्ड टैस्ट बनाते हैं, जैसा बाकी मैडिकल और इंजीनियरिंग के लिए सैंट्रलाइज्ड टैस्ट में हुए हैं तो एक पूरी कोचिंग इंडस्ट्री खड़ी होती है और डमी स्कूल खड़े हो जाते हैं. देखा जा सकता है कि नैशनल टैस्ंिटग एजेंसी ने सीयूईटी का नोटिस डालने में टाइम नहीं लगाया कि कोचिंग इंस्टिट्यूट खुलने शुरू हो गए. जाहिर है कि जो छात्र साधनहीन हैं, वे कोचिंग लेने में पीछे रहेंगे, जैसा आईआईटी, जेईई, नीट में होता है. तमिलनाडु की आपत्ति देख लीजिए.’’

प्रो. अपूर्वानंद की बात में सचाई है. पिछले साल सितंबर माह में आई ‘तमिलनाडु में मैडिकल प्रवेश पर एनईईटी (नीट) का प्रभाव’ रिपोर्ट से पता चलता है कि तमिलनाडु में 400 से अधिक सक्रिय कोचिंग सैंटर इस समय मौजूद हैं, जिन का कुल कारोबार लगभग 5,750 करोड़ रुपए का है, जो विशेष रूप से नीट के लिए हैं.

रिपोर्ट के अनुसार, एक रिटेल कोचिंग फ्रैंचाइजी है, जो फीस के विभिन्न स्लैब के साथ 5 साल के पैकेज, 2 साल के पैकेज, 1 साल के पैकेज, 3 महीने और 2 महीने के क्रैश कोर्स जैसी कई तरह की कोचिंग सेवाएं प्रदान करती है. यह कोचिंग बाजार को अरबों का उद्योग बना देती है. नीट कोचिंग क्लासेस का हिसाब सम?ों तो रिपोर्ट के अनुसार, राजस्थान के एक चर्चित कोचिंग सैंटर में एक छात्र की फीस सैकंड्री और प्रवेश कोचिंग कक्षा के लिए कम से कम 5 लाख रुपए है.

मौजूदा समय में यूजीसी के सीयूईटी टैस्ट अनाउंस करने के बाद सीयूईटी की प्रतियोगी एग्जाम को कै्रक करवाने के लिए कई कोचिंग संस्थान तुरंत खुल गए हैं या जो कोचिंग संस्थान पहले से चले आ रहे थे उन में सीयूईटी की कोचिंग औफलाइन और औनलाइन दोनों तरह से शुरू हो गई है.

सीयूईटी टैस्ट के नोटिस आने बाद अखबार में ऐसे कोचिंग संस्थानों के आधेआधे पेज के विज्ञापन भी दिखाई देने लगे हैं. इस संबंध में पत्रिका ने एकाध नामीगिरामी ‘आकाश’ और ‘संकल्प’ कोचिंग सैंटर में फोन पर बात की. इन दोनों में सीयूईटी की कोचिंग औफलाइन और औनलाइन शुरू कर दी गई है, जिस की एक महीने की शुरुआती फीस 15 से 20 हजार रुपए तक है. जाहिर है यह तो अभी शुरुआत है. वहीं, बायजूस, अनअकैडमी में भी बाकायदा इस की कोचिंग शुरू हो गई है.

दिल्ली विश्वविद्यालय के रामजस कालेज से इस साल अपनी एमए की पढ़ाई पूरी कर चुके छात्र रणविजय बताते हैं, ‘‘सीयूईटी की अभी तो यह शुरुआत है. धीरेधीरे पूरे देश के हर शहरों में कोटा बनने लगेगा. जहां छात्र डमी स्कूलों में पढ़ेगा. ?वहां से कोचिंग की तैयारी करेगा. इन में से बड़ेबड़े स्तर के कोचिंग माफिया तो पहले ही पैदा हो गए हैं. ये बस, छात्रों के तनाव और दबाव को इस्तेमाल कर अपना व्यापार चलाएंगे.’’

इस संबंध में एमए पौलिटिकल साइंस में पढ़ रही नेहा का कहना है, ‘‘मैं ने पता किया है बायजूस, अनअकैडमी में तो कोचिंग शुरू हो गई है. ‘वन नेशन, वन टैस्ट’ कागज पर अच्छा लगता है, लेकिन देशभर के प्रत्येक छात्र की वास्तविकता इस के मुताबिक नहीं है. इस तरह के एग्जाम के लिए छात्रों को कोचिंग का सहारा लेना पड़ेगा और इन कोचिंग सैंटरों में पढ़ाई करने के लिए संसाधन कुछ ही लोगों के पास हैं.’’

हम पहले से ही बड़े कोचिंग सैंटर उद्योग को पनपते देख चुके हैं जिसे और विस्तार देने के लिए एक बड़े अवसर के तौर पर सीयूईटी को परोस कर उन के आगे दे दिया गया है. जेईई और नीट की तुलना में यहां इच्छुक उम्मीदवारों की संख्या करोड़ों में होगी. इन के लिए करोड़ों छात्र तैयार होंगे जो मुंहमांगी कीमत पर दाखिला लेने का सपना संजोएंगे.

नेहा कहती हैं, ‘‘यह सिर्फ यहीं नहीं रुकने वाला, अब सीधे स्कूलों से कोचिंग माफियाओं के कोलेबोरेशन होंगे. दोनों एक यूनिट की तरह काम करेंगे. यह स्थिति छात्रों के बीच तनाव और अवसाद पैदा करने वाली होगी, जो भविष्य के लिए बेहद ही चिंताजनक है.’’

राष्ट्रीय अपराध रिकौर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) द्वारा संकलित आंकड़ों के अनुसार, सालदरसाल छात्रों के कैरियर और एग्जाम के अवसाद में घिर जाने से आत्महत्या की संख्या में बढ़ोतरी हुई है. 2020 में छात्रों की आत्महत्या 12,526 तक पहुंच गई, जिस में विगत साल के मुकाबले 8.2 फीसदी मौतों की बढ़ोतरी दर्ज हुई. मौतों में सब से बड़ी वृद्धि ओडिशा में दर्ज की गई, जहां छात्र आत्महत्याओं की संख्या 1,469 तक पहुंच गई.

स्कूली व्यवस्था पर हमला

इस एग्जाम से 12वीं बोर्ड के अंकों का महत्त्व खत्म कर दिया गया है. इस से छात्रों के बीच एक निराशा पैदा होगी, जो मेहनत कर 90.95 प्रतिशत लाते हैं उन की मेहनत का कोई मतलब नहीं होगा. साथ ही, बच्चों में दबाव बनेगा कि एक परीक्षा से निकल कर उसे तुरंत दूसरी परीक्षा के लिए मैंटली तैयार होना होगा. उसे भी प्रतियोगी परीक्षा की दौड़ में भागना होगा और असफलता पर निराशहताश होना पड़ेगा.

प्रो. अपूर्वानंद इस पर कहते हैं, ‘‘इस व्यवस्था से स्कूल अप्रासंगिक हो जाएंगे. जैसे, मैडिकल टैस्ट और इंजिनियरिंग टैस्ट के चलते पहले ही स्कूलों की प्राथमिकता बहुत कम हो गई थी, इस टैस्ट के बाद स्कूली शिक्षा के माने नहीं रहने वाले. स्कूल में क्या पढ़ रहे हैं, क्या नहीं, इस का कोई महत्त्व ही नहीं रह जाएगा.

‘‘इस में कोई शक भी नहीं कि शिक्षा का मकसद ज्ञान अर्जित करना होता है, लेकिन उस ज्ञान से कैरियर हासिल करना उस की प्राथमिकता भी होती है. पहली से ले कर 12वीं तक की पढ़ाई उच्च शिक्षा के लिए बुनियाद होती है, लेकिन कैरियर हासिल करने में यदि ज्ञान की जगह कुछ तरह की ‘जानकारियां’ ही महत्त्वपूर्ण रह जाएं तो शिक्षा का स्वरूप पूरा बदल जाता है.’’

सीयूईटी की तैयारी के लिए शिक्षण संस्थान बेशक अब ज्ञान की जगह सूचनाओं पर ही ध्यान केंद्रित करेंगे. उदाहरण के लिए अब, नेहरू ने पंचवर्षीय योजना किन सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परिस्थितियों में लागू की से ज्यादा पंचवर्षीय योजना कब, कहां लागू की, यह माने रह जाएगा. यह एक प्रकार से गहन शिक्षा पर ग्रहण लगने जैसा हो जाएगा. स्कूलों में भी बहुविकल्पीय प्रश्नप्रारूप पर जोर दिया जाएगा.

प्रो. अरुण कुमार इस विषय में कहते हैं, ‘‘मौजूदा सरकार सूचनाओं को ही शिक्षा मान कर चल रही है. वह सम?ाती है कि सूचना देना ही शिक्षा है. जबकि, शिक्षा तो वह है जो आदमी के व्यवहार, संस्कार, संविधान और समाज को सम?ाने का ज्ञान देती है. सरकार नई शिक्षा नीति और सीयूईटी के माध्यम से यही लागू करने की कोशिश कर रही है, अगर कुछ सूचनाएं ही शिक्षा हैं तो उस शिक्षा का कोई महत्त्व नहीं है.’’

वे आगे कहते हैं, ‘‘जैसे ही इस तरह की शिक्षा हावी होती है तो सामाजिक न्याय का कौन्सैप्ट खत्म हो जाता है. जानिए कि एससी/एसटी, गरीब, अल्पसंख्यक, महिलाओं, पिछड़े हुए लोगों पर विचारविमर्श खत्म होगा. साथ ही, ऐसी जमात खड़ी होगी जिस के पास सिर्फ सूचना होगी, ज्ञान नहीं, ठीक वैसे ही जैसे व्हाट्सऐप पर होती है. यह इस देश के लिए खतरनाक स्थिति को जन्म देगा.’’

फुजूल एग्जाम क्यों

यह टैस्ट और कुछ नहीं, बस, अपनी गलतियों पर परदा डालने का एक जरिया मात्र है. सरकार शिक्षा के मूल विषयों को ठीक से एड्रैस नहीं कर पा रही. यूनिवर्सिटीज में शिक्षक की बहाली का मसला हो या एडहोक और गैस्ट टीचरों को परमानैंट करने का हो, सीट और विश्वविद्यालय बढ़ाने का मसला हो या गरीब, वंचित छात्रों को प्रवेश दिलाने का, समस्या जस की तस बनी हुई है. इसे सुधारने की जगह फुजूल एग्जाम लेने से छात्रों का समय और खर्चा ही बढ़ाया जा रहा है.

नेहा कहती हैं, ‘‘मौजूदा व्यवस्था में भी जो छात्र बाहर होने वाले हैं वे वही होने वाले हैं जो पहले हुआ करते थे. अच्छी रेटिंग वाले उच्च शिक्षण संस्थानों में पहले भी 95-99 प्रतिशत कटऔफ को प्राइवेट स्कूलों के छात्रों का बड़ा हिस्सा ही पार कर पाता था और वे ही दिल्ली विश्वविद्यालय जैसे प्रिस्टीजियस संस्थानों में पढ़ पाता था. इस एग्जाम के बाद भी उसी तबके के छात्र दाखिला ले पाएंगे, फिर इस एग्जाम का फायदा क्या?’’

अखिल भारतीय उच्च शिक्षण सर्वेक्षण की 2019-20 रिपोर्ट कहती है कि हायर एजुकेशन में छात्रों का कुल एनरोलमैंट 2019-20 में 3.85 करोड़ रहा, जिस का ग्रौस एनरोलमैंट रेश्यो (जीईआर) 27.1 प्रतिशत है. इसे नकारा नहीं जा सकता कि विगत सालों के अनुपात में वृद्धि जरूर दर्ज हुई है पर इस वृद्धि का बड़ा कारण रैगुलर मोड की जगह ओपन संस्थानों और निजी संस्थानों का खुलना व उन में छात्रों का बड़ी संख्या में एनरोल होना है.

उदाहरण के लिए, पिछले वर्ष जहां दिल्ली विश्वविद्यालय के रैगुलर मोड में 70 हजार छात्रों का दाखिला हुआ तो वहीं दिल्ली विश्वविद्यालय के ही स्कूल औफ ओपन लर्निंग में लगभग 1 लाख

30 हजार छात्रों ने दाखिला करवाया. जाहिर है, ओपन में दाखिला कराने वाले कई छात्र आर्थिक तंगी और यूनिवर्सिटी के रैगुलर मोड में नामांकन न होने के चलते ओपन मोड में शिफ्ट हुए.

नेहा आगे कहती हैं, ‘‘जो मौजूदा व्यवस्था थी उसे ठीक करना चाहिए था. लेकिन अब उस से भी खराब व्यवस्था छात्रों पर थोप दी गई है. यह इतना डिजास्ट्रस है जितना मैरिट सिस्टम नहीं है.’’

इस टैस्ट के आने के बाद छात्रों पर अतिरिक्त दबाव बनेगा, इस के साथ उन के खर्चों में बढ़ोतरी होगी. अभी तो यह टैस्ट अपने इनीशियल स्टेज पर है, जैसेजैसे समय बीतेगा, स्कूल-कोचिंग में छात्रों की भागदौड़ की एंग्जाइटी देखने को मिलेगी. बहुत संभव है कि बाकी कौम्पिटीटिव एग्जाम्स की तरह ही इस में भी पेपर लीक के मामले देखने को मिलें. इसलिए बहुत से जानकार इस एग्जाम की ट्रांसपेरैंसी पर भी सवाल उठा रहे हैं.

जानकारों का कहना है, इस तरह के एग्जाम्स में पारदर्शिता का बड़ा प्रश्न खड़ा होता है. इस के उदाहरण तमाम प्रतियोगी एग्जाम्स, जैसे एसएससी, रेलवे इत्यादि में भरे पड़े हैं जहां पेपर लीक माफिया हमेशा ऐसे मौकों के लिए तैयार रहता है और भ्रष्टाचार व धांधलियां चरम पर रहती हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश को विश्वगुरु बनाने का सपना दिया, पर इस क्षेत्र में विश्वगुरु बनने की राह कठिन नजर आती है. प्रो. अपूर्वानंद कहते हैं, ‘‘अगर आप श्रेष्ठ विश्वविद्यालय बनना चाहते हैं, जैसा कि दुनियाभर में श्रेष्ठ विश्वविद्यालय हैं तो उन के पास क्याक्या अधिकार होते हैं, यह जानना भी जरूरी है. उन के पास अपनेअपने अध्यापक चुनने का अधिकार होता है, उन्हें सलैक्ट कैसे करेंगे इस की प्रक्रिया वे तय करते हैं, अपने पाठ्यक्रम बनाने का अधिकार उन के पास होता है और छात्रों का चयन करने का अधिकार भी उन के पास होता है. भारत में तीनों अधिकार विश्वविद्यालय अनुदान आयोग अपने पास रखना चाहता है. यानी एकसमान पाठ्यक्रम बनाना चाहता है जो डाइवर्सिटी को खत्म करता है. वह अपनी एडमिशन पौलिसी बनाना चाहता है और किसी प्रकार की स्वायत्तता विश्वविद्यालयों के पास नहीं देना चाहता. हर चीज केंद्रीय स्तर पर संचालित और नियंत्रित की जाएगी, जोकि किसी भी लिहाज से

सही नहीं है. यानी आप एक श्रेष्ठ विश्वविद्यालय बनने की महत्त्वाकांक्षा नहीं रखते हैं.’’

यह बात सही भी है, इस का हालिया उदाहरण अमेरिका के न्यू मैक्सिको राज्य से लिया जा सकता है. वहां कालेज की ऊंची फीस से जू?ा रहे छात्रों और उन के परिवारों को राहत देने के लिए वहां के गवर्नर मिशेल लुजन ग्रीषम ने उच्च शिक्षा में लगने वाली ट्यूशन फीस को छात्रों के लिए मुफ्त कर दिया है, ताकि बड़ी संख्या में मार्जिनलाइज्ड छात्र कालेज और विश्वविद्यालयों में एनरोल हो सकें. इस का दूसरा हिस्सा वहां राज्यों की स्वायत्तता को ले कर देखा जा सकता है. वे अपने विश्वविद्यालयों के लिए फैसले लेने की स्वतंत्रता रखते हैं, जिस के चलते वहां बाकी राज्यों के सभी कालेज और विश्वविद्यालयों में इसी तरह के कदम उठाए जाने की मांग उठने लगी है.

दुखद यह है कि भारत में इस तरह की मांगों पर अमल होना अभी दूर की कौड़ी लग रहा है, बल्कि उलटे बचेखुचे सस्ती फीस वाले कालेजों और विश्वविद्यालयों का ‘स्वायत्तता’ के नाम पर कौर्पोरेटीकरण किया जा रहा है और छात्रों से मोटी फीस वसूली जा रही है. दरअसल, यह परीक्षा नई शिक्षा नीति के अनुरूप है. यह नीति है: गरीब को पढ़ने न दो. वह केवल सेवा करे. मेवा तो कोई और उड़ा ले.

जानकारों के अनुसार नई शिक्षा नीति के तहत ही विश्वविद्यालयों में दाखिले के लिए एंट्रैंस टैस्ट की आवश्यकता की परिकल्पना की गई है. परीक्षा का मकसद केंद्रीय विश्वविद्यालयों में दाखिले के लिए मूल्यांकन का एक स्टैंडर्ड तय करना है. वर्तमान में विभिन्न शिक्षा बोर्ड अपने तरीके से छात्रों का मूल्यांकन करते हैं. इसलिए विश्वविद्यालयों के अध्यापक इसे नई शिक्षा नीति के साथ जोड़ कर देख रहे हैं.

अब जाहिर है, इस टैस्ट से शिक्षा व्यवस्था में सुधार कम ही होगा, हां, पहले से चली आ रही गैरबराबरी जरूर ही बढ़ेगी. आधुनिक समय के एकलव्य इस टैस्ट में छंटेंगे. हां, बस, इस बार उन के पास तसल्ली करने के लिए सरकाररूपी गुरु द्रोण का फेंका हुआ ‘कौमन ग्राउंड’ वाला शिगूफा होगा. वे अब पहले की तुलना में कालेज व विश्वविद्यालयों की कमी को कम कोसेंगे बल्कि कौम्पिटीशन में अपने फेल होने को आराम से स्वीकार लेंगे. इस में सरकार पर न तो अधिक कालेज बनाने का और न सीट्स बढ़ाने का दबाव होगा. सो, सरकार उच्च शिक्षा की जवाबदेहियों से बच जाएगी.

मुद्दा: धर्म और बेवकूफी का शिकार श्रीलंका

श्रीलंका में इन दिनों भारी उथलपुथल मची हुई है, लोग महंगाई से त्रस्त हैं और आम जनजीवन ठप है. सड़कों पर लोगों के भारी प्रदर्शन बता रहे हैं कि श्रीलंका में कुछ भी ठीक नहीं. इस स्थिति का जिम्मेदार चीन को ठहराया जा रहा है, पर जितना जिम्मेदार चीन है उस से कहीं ज्यादा राजपक्षे ब्रदर्स की नीतियां हैं.

सतयुग में हनुमान ने सोने की लंका जला कर राख कर दी थी और कलियुग में राजपक्षे ब्रदर्स के कारण श्रीलंका में आग लगी हुई है. सत्ता में बने रहने के लिए जनता से लोकलुभावने वादे, खोखली योजनाएं और चीन के कर्ज के जाल में फंस कर सोने की लंका दिवालिया होने की कगार पर है. भारत का यह पड़ोसी देश अपने इतिहास के सब से बुरे आर्थिक संकट का सामना कर रहा है.

पिछले कई सप्ताह से देश की जनता को राशन, ईंधन, रसोई गैस, पैट्रोलडीजल जैसी रोजमर्रा की चीजों के लिए लंबी कतारों में खड़े देखा जा रहा है. आसमान छूती महंगाई के साथ जनता को आवश्यक वस्तुओं की कमी का सामना करना पड़ रहा है. इन समस्याओं को ले कर जनता में राजपक्षे सरकार के खिलाफ गहरा रोष पैदा हो गया है और वह ‘घर जाओ गोटबाया’ के पोस्टर हाथ में ले कर सड़कों पर है. आएदिन किसी न किसी कोने से जनता और पुलिस के बीच टकराव की खबरें आ रही हैं.

जनता के विद्रोह को दबाने के लिए राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने एक विशेष गजट अधिसूचना जारी कर के श्रीलंका में एक अप्रैल से तत्काल प्रभाव से आपातकाल लगा दिया था, लेकिन 2 दिनों बाद ही श्रीलंका सरकार की पूरी कैबिनेट ने तत्काल प्रभाव से इस्तीफा दे दिया. हालांकि, प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे और उन के भाई व राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने इस्तीफा नहीं दिया है और विपक्ष के कुछ नेताओं को नए मंत्रिमंडल में शामिल होने का न्योता दिया है ताकि देश की आर्थिक समस्या से निकलने में साथ मिल कर रास्ता ढूंढ़ा जा सके.

श्रीलंका भारत का पड़ोसी देश है. एक कहावत है कि अगर पड़ोसी आप के साथ व्यवहार में अच्छा है, सुखसुविधा से संपन्न है तो अपने भी ठाट बढ़ जाते हैं. रोजमर्रा की कई छोटीमोटी बातों की फिक्र भी खत्म हो जाती है. वक्तजरूरत पर अच्छा पड़ोसी बहुत काम आता है. लेकिन पड़ोसी अगर परेशान

है, उस के वहां उठापटक मची है, लड़ाई?ागड़े में उस का परिवार तबाह है तो आप भी सुखपूर्वक नहीं रह सकते हैं. उन का नकारात्मक प्रभाव आप के परिवार का सुख भी छीन लेता है.

ये बातें 2 पड़ोसी घरों पर ही नहीं, पड़ोसी देशों पर भी लागू होती हैं. अगर पड़ोसी देश परेशान है, वहां उथलपुथल मची हुई है, लोग भूख और बीमारी से ग्रस्त हैं, बच्चे भूख से तड़प रहे हैं, महंगाई चरम पर है और शासक कान में तेल डाल कर बैठा है तो इस का असर निसंदेह उस के पड़ोसी देश पर भी बुरा ही पड़ेगा.

श्रीलंका के एक कालेज में हिंदी की प्रोफैसर सुभाषिनी फोन पर वहां के हालात के लिए सरकार को जिम्मेदार ठहराते हुए कहती हैं, ‘‘श्रीलंका की हालत बहुत भयंकर है. नेताओं ने इस खूबसूरत देश को बरबाद कर डाला है. लोग हर तरफ से पिस रहे हैं. दिन में 10-10 घंटों के लिए बिजली चली जाती है. जरूरत की हर चीज बहुत ज्यादा महंगी हो गई है. हम ने सुबह की चाय में दूध डालना बंद कर दिया है. हालात इतने बदतर हो चुके हैं कि चीनी की कीमत 290 रुपए किलो तो मोटे चावल की कीमत 500 रुपए किलो हो चुकी है.’’

वे आगे कहती हैं, ‘‘एक कप चाय के लिए लोगों को 100 रुपए देने पड़ रहे हैं. इतना ही नहीं, ब्रैड, दूध, अंडे जैसी रोजाना जरूरत की चीजें मार्केट से गायब हैं, जहां थोड़ीबहुत बिक रही हैं उन के दाम देना हर किसी के वश के बाहर है. श्रीलंका में ब्रैड के एक पैकेट की कीमत 150 रुपए है. दूध का पाउडर 1,975 रुपए किलो मिल रहा है. एलपीजी सिलैंडर का दाम 4,119 रुपए है. पैट्रोल 254 रुपए लिटर और डीजल 176 रुपए लिटर बिक रहा है. देश में अखबार छपने बंद हो चुके हैं क्योंकि हमारे पास कागज ही नहीं है. स्कूलकालेजों में परीक्षाएं स्थगित कर दी गई हैं क्योंकि प्रश्नपत्र छापने तक के लिए कागज नहीं है और महंगा कागज खरीदने के लिए पैसे नहीं हैं. यहां सोशल मीडिया प्लेटफौर्म पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया है. फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सऐप और इंस्टाग्राम सब आउट औफ सर्विस हो गए हैं. सोचती हूं परिवार को ले कर भारत आ जाऊं.’’

श्रीलंका की मदद

पड़ोस में अगर आग लगी हो तो हम यह कह कर अपना दरवाजा बंद नहीं कर सकते हैं कि यह उन की प्रौब्लम है. अगर हम ने आग बु?ाने में उन की मदद न की तो वह आग हमारे घर को भी अपनी चपेट में ले सकती है. प्रधानमंत्री मोदी इस बात को बखूबी सम?ा रहे हैं और यही वजह है कि भारत सरकार की तरफ से 2.5 बिलियन डौलर की आर्थिक मदद के साथ 1.5 टन जेट एविएशन फ्यूल, डीजल और पैट्रोल व सैकड़ों टन अनाज वहां भेजा जा चुका है.

3 फरवरी को दोनों देशों के बीच 500 मिलियन डौलर का लाइन औफ क्रैडिट भी साइन हुआ है. चावल की खेप के साथ दवाओं की बड़ी खेप लगातार वहां पहुंचाई जा रही है. बावजूद इस के, श्रीलंका में जो आग लगी है उस का असर अब भारत पर पड़ने लगा है. पड़ोसी की यह मदद हम कितने दिन कर पाएंगे, यह भी बड़ा सवाल है. उस के साथ ही जो दूसरी गंभीर समस्या उभर रही है वह है शरणार्थियों की. अभी तक हम बंगलादेशी शरणार्थियों की परेशानियों से जू?ा रहे थे, अब श्रीलंका के लोग भारत में पनाह लेने की बात कर रहे हैं.

सुभाषिनी पहले भी कई बार भारत घूमनेफिरने आती रही हैं, मगर अब वे

यहां बसने की इच्छुक हैं. अपना देश छोड़ना बहुत तकलीफदेह होता है मगर श्रीलंका की हालत ऐसी हो गई है कि सुभाषिनी जैसे हजारों लोग हैं जो श्रीलंका से पलायन कर जाना चाहते हैं. इस से भारत में बड़ा शरणार्थी संकट पैदा होने वाला है.

श्रीलंका का आर्थिक संकट अब वहां के लोगों के लिए इतना असहनीय हो गया है कि लोग देश छोड़ कर समुद्र के रास्ते भारत आ रहे हैं. श्रीलंकाई तमिल नावों में तमिलनाडु के रामेश्वरम पहुंच रहे हैं. तमिलनाडु में खुफिया अधिकारियों की मानें तो आने वाले दिनों में 5 से 10 हजार शरणार्थी भारत पहुंच जाएंगे. रामेश्वरम में भारत सरकार को शरणार्थी कैंप बनवाने पड़ रहे हैं क्योंकि आने वाले लोगों में बड़ी संख्या महिलाओं और बच्चों की है जो नावों के जरिए रामेश्वरम के तट पर पहुंच रहे हैं.

श्रीलंका की खस्ताहाली की 2 बड़ी वजहें हैं. पहली वहां की राजपक्षे सरकार द्वारा पूरे देश में और्गेनिक खेती का फैसला और दूसरी, चीनी कर्ज. श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने अपने देश को पहला पूर्ण जैविक देश बनाने की उम्मीद में रासायनिक कृषि इनपुट के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया था. इस का परिणाम यह हुआ कि फसलें बरबाद हो गईं. और्गेनिक खेती से जो उत्पाद बाजार में आया वह उपभोक्ता की जरूरत को पूरी नहीं कर पाया. नतीजा, खाद्य कीमतों में बेतहाशा वृद्धि, खाद्य पदार्थों की गंभीर कमी और चाय व रबर जैसी निर्यात फसलों के उत्पादन में भारी गिरावट आई.

राष्ट्रपति राजपक्षे ने अपनी गलती न मान कर इस का ठीकरा जमाखोरों के सिर फोड़ दिया और भूख से बिलबिलाती जनता व व्यापारियों पर नकेल कसने के लिए सेना को सड़कों पर उतार दिया.

गौरतलब है कि श्रीलंका के टी एक्सपर्ट हरमन गुनारत्ने ने देश में संभावित डिजास्टर को ले कर पहले ही चेतावनी दी थी. उन्होंने कहा था कि अगर हम पारंपरिक खेती छोड़ कर सरकार के दबाव में पूरी तरह जैविक खेती पर निर्भर हो गए तो हम 50 फीसदी चाय की फसल खो देंगे, लेकिन 50 फीसदी ज्यादा दाम नहीं मिलेंगे. उन्होंने अनुमान जताया था कि लागत कम करने के बाद भी और्गेनिक चाय के उत्पादन की लागत 10 गुना ज्यादा पड़ती है.

हरमन गुनारत्ने का सोचना सही साबित हुआ. किसानों पर जैविक खेती का दबाव बनाना देश के लिए भारी संकट का सबब बन गया. हो सकता है कि टैक्नोलौजी एक दिन जैविक खेती की ऐसी नई तकनीक उपलब्ध कराए जो यील्ड को नुकसान न पहुंचाए या कीमतें न बढ़ाए. लेकिन जैविक खेती को अपना कर अभी श्रीलंका की जो हालत है उस ने बता दिया है कि कृषि को जैविक बनाने के लिए किसी भी जबरन उपाय का अनुसरण करना कितनी बड़ी मुसीबत पैदा कर सकता है.

पड़ोसी की हालत देख कर भारत सरकार को भी अब सचेत हो जाना चाहिए जो लगातार जैविक खेती को प्रोत्साहन दे रही है और किसानों पर इस को अपनाने का दबाव बना रही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिना किसी खरीदे हुए रासायनिक इनपुट के ‘शून्य बजट खेती’ की प्रशंसा करते नहीं अघाते. सिक्किम 100 फीसदी जैविक खेती वाला एकमात्र राज्य होने का दावा करता है. आंध्र प्रदेश, ओडिशा और अन्य गैरभाजपा शासित राज्य भी जैविक खेती को उत्साहपूर्वक प्रोत्साहित कर रहे हैं. जबकि भारत इस वक्त बिहार व अन्य राज्यों के किसानों द्वारा उर्वरक की कमी को ले कर आंदोलन का सामना कर रहा है.

किसान जानता है कि उस के खेतों को किन चीजों की जरूरत है, किन उर्वरकों द्वारा वह अच्छी फसल प्राप्त कर सकता है, मगर प्रधानमंत्री मोदी किसान की सम?ा और अनुभवों पर विश्वास करने को तैयार नहीं हैं. वे श्रीलंका के कृषि संकट से भी सीख लेने को तैयार नहीं हैं. ऐसे में अगर भाजपा जैविक फसलों को बढ़ावा देने के लिए कोई कठोर कदम उठाती है तो यह उस की सब से बड़ी मूर्खता होगी.

श्रीलंका की तबाही का दूसरा कारण

है चीन. चीन के चक्कर में श्रीलंका दिवालिया घोषित होने की कगार पर आ पहुंचा है. चीन की पुरानी नीति है कि जिस से भी वह व्यापारिक दृष्टिकोण से नजदीकियां बढ़ाता है उसे चूना जरूर लगाता है. चाहे वह पाकिस्तान को बिना गारंटी वाले घटिया किस्म के ड्रोन देने की बात हो या फिर बंगलादेश द्वारा चीन से खरीदे गए युद्धपोतों व विमान में आई खराबी, ऐसा कोई सगा नहीं है जिसे ड्रैगन ने ठगा नहीं है. इस की सब से बड़ी मिसाल बन कर इन दिनों श्रीलंका की बदहाली और कंगाली की दास्तान सामने आई है.

श्रीलंका की बदहाली के पीछे चीन का बड़ा हाथ है. चीन ने श्रीलंका में काफी निवेश किया है. यही निवेश श्रीलंका के लिए गले की फांस बन गया है. एक खुशहाल देश सालभर के अंदर ही बदहाली के कगार पर इस कदर पहुंच गया कि उस के लोग देश छोड़ कर भारत के कई हिस्सों में पलायन करने लगे हैं. सालभर पहले श्रीलंका का विदेशी मुद्रा भंडार 5 अरब डौलर से ज्यादा था और आज वह 1 अरब

डौलर पर आ चुका है. डौलर का भाव 200 श्रीलंकाई रुपए से भी ज्यादा हो गया है.

भस्मासुर बना चीन

चीन ऐसा देश है जो किसी पर अपना हाथ रख दे तो उसे कंगाल कर के छोड़ता है. चीन का कर्ज और उस देश की कंगाली दिनदूनी रात चौगुनी रफ्तार से बढ़ती है. पाकिस्तान की हालत देख लीजिए और अब वह श्रीलंका को निचोड़ने में जुटा है. श्रीलंका में खानेपीने के सामान की कीमतें आसमान छू रही हैं और रिकौर्ड स्तर पर महंगाई है. विश्व बैंक का अनुमान है कि श्रीलंका में कोरोना महामारी की शुरुआत के बाद से 5 लाख लोग गरीबीरेखा से नीचे आ गए हैं.

श्रीलंका पर चीन का 5 बिलियन डौलर का कर्ज है. इस के अलावा चीन से श्रीलंका ने 1 बिलियन डौलर का कर्ज और लिया है, जिस को वह किस्तों में चुकाने की कोशिश कर रहा है. जानकारों के मुताबिक, अगले 12 महीने में

श्रीलंका को विदेशी सरकारों और राष्ट्रीय बैंकों के 7.3 बिलियन डौलर का कर्ज चुकाना होगा.

इस के साथसाथ 500 मिलियन डौलर के सौवरेन बौंड भी श्रीलंका पर बकाया हैं. लेकिन श्रीलंका के पास इस वक्त अपने बैंक में महज 1.6 बिलियन डौलर ही बचे हैं. देश के हालात इतने खराब हैं कि श्रीलंका को कर्ज चुकाने के लिए दूसरे देशों से खानेपीने की चीजों को निर्यात करना पड़ रहा है. ईरान का कर्ज चुकाने के लिए श्रीलंका हर महीने

5 मिलियन डौलर की चाय निर्यात कर रहा है. श्रीलंका का विदेशी मुद्रा भंडार समाप्त होने की कगार पर है और करैंसी की वैल्यू रिकौर्ड निचले स्तर पर है. अगर श्रीलंका कर्ज चुकाने में नाकाम रहा तो उसे देश की संपत्ति गिरवी रखनी पड़ सकती है.

चीन की नजर

श्रीलंका की भौगोलिक स्थिति उसे हिंद महासागर में एक रणनीतिक महत्त्व देती है और यही वजह है कि चीन उस को अपने मकड़जाल में पूरी तरह फांस लेना चाहता है. चीन ने पहले श्रीलंका को कर्ज के जाल में फंसाया और अब धीरेधीरे वहां की संपत्तियों को निगलने की फिराक में है. चीन ने श्रीलंका में हंबनटोटा पोर्ट को 99 साल के लिए लीज पर लिया है वह भी महज 1.2 बिलियन डौलर के तहत. हंबनटोटा पोर्ट के साथ ही कोलंबो पोर्ट सिटी, जो चीन के निवेश से तैयार हुए हैं, श्रीलंका के लिए गले की फांस बन गए हैं. यहां से उसे कोई आमदनी नहीं हो रही है क्योंकि चीन ने इन परियोजनाओं को तैयार तो कर दिया मगर यहां कोई निवेश नहीं किया और अब श्रीलंका से कर्ज चुकाने की मांग कर रहा है.

विदेशी मामलों के जानकारों का कहना है कि श्रीलंका की अर्थव्यवस्था 2017 के बाद से ही डांवांडोल होने लगी थी. दरअसल, श्रीलंका की बिगड़ती अर्थव्यवस्था में सब से बड़ी भूमिका देश के दक्षिणी इलाके में बनाए गए हंबनटोटा बंदरगाह की ही थी.

राजपक्षे परिवार है

बरबादी का जिम्मेदार

श्रीलंका की जनता घोर आर्थिक संकट के लिए मौजूदा राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे को जिम्मेदार मानती है. श्रीलंका में राजपक्षे परिवार को बेहद शक्तिशाली माना जाता है. गोटबाया राजपक्षे के बड़े भाई महिंद्रा राजपक्षे देश के प्रधानमंत्री हैं. वहीं, उन के छोटे भाई बासिल देश के वित्त मंत्री थे और सब से बड़े भाई चमल कृषि मंत्री थे. उन के भतीजे नमल देश के खेल मंत्री थे. यानी पूरा परिवार सत्ता पर काबिज था. राजनीति में अगर निरंकुशता आ जाए और पूरा देश एक परिवार के हाथ में आ जाए तो देश की दुर्दशा क्या हो सकती है, इस का अंदाजा श्रीलंका को देख कर आसानी से लगाया जा सकता है.

श्रीलंका के राजपक्षे परिवार को कट्टर सिंहल बौद्ध राष्ट्रवादी ताकतों का कट्टर समर्थन प्राप्त है. लिहाजा, राजपक्षे परिवार श्रीलंका की राजनीति में खुद को अजेय मानता है. सिंहल बौद्ध राष्ट्रवादी शक्तियों का अपना संगठन है. और यह अपनेआप को बदलाव का एजेंट कहता है. यह विचारधारा उस वक्त और भी ज्यादा शक्तिशाली हो गई जब श्रीलंका की यूनाइटेड नैशनल पार्टी और श्रीलंका फ्रीडम पार्टी की गठबंधन सरकार ने 3 सालों तक सरकार चलाई और देश को विनाशकारी हालात में धकेल दिया.

लिहाजा, अब श्रीलंका के भविष्य को लिखने का ‘ठेका’ सिंहल बौद्ध राष्ट्रवादी ताकतों के ही हाथों में है जिन्होंने ‘नई नीति दृष्टि, समृद्धि और वैभव का विस्तार’ का नारा दिया और श्रीलंका का गौरव फिर से लाने का प्रचार किया. इस विचारधारा ने देश के संविधान को भी बदल दिया और घरेलू अर्थव्यवस्था को पतन की तरफ धकेल दिया.

राजपक्षे परिवार ने अज्ञात शर्तों पर चीन से भारी कर्ज लेना जारी रखा और उस वक्त भी श्रीलंका लोन लेता रहा जब देश की अर्थव्यवस्था ढलान पर आ चुकी थी. दिसंबर 2019 में श्रीलंका के पास 7.6 अरब डौलर का विदेशी मुद्रा भंडार था, जो अक्तूबर 2021 में गिर कर

2.3 अरब डौलर रह गया.

इस के बाद भी श्रीलंका की राजपक्षे सरकार, जो अत्यधिक कट्टर राष्ट्रवादी है, ने आईएमएफ से मदद नहीं मांगी. राजपक्षे सरकार ने आईएमएफ के सुधारवादी उपायों को न सिर्फ ठुकरा दिया, बल्कि आईएमएफ से मदद मांगने को राजपक्षे सरकार ने देश की संप्रभुता से सम?ाता बताया. जबकि दूसरी तरह राजपक्षे सरकार चीन से अरबों का कर्ज ले कर देश की जमीन और समुद्री क्षेत्र को चीन के पास गिरवी रख रही थी. श्रीलंका की राजपक्षे सरकार ने चीन के साथ करैंसी स्वैप करना शुरू कर दिया, लेकिन इस से श्रीलंका की आर्थिक स्थिति में कोई सुधार नहीं आया और देश बरबादी के मुहाने पर आ गया.    द्य

शक: भाग 1- क्या शादीशुदा रेखा किसी और से प्रेम करती थी?

रेखा पर राकेश का शक धीरेधीरे बढ़ता जा रहा था. अपने प्रेम और मेहनत से बनाए आशियाने को वह बिखरता हुआ महसूस करने लगा था, पर क्या वाकई रेखा अपने 3 बरस के वैवाहिक जीवन को ताक पर रख कर मर्यादा की रेखा लांघ रही थी?

सड़क पार कर के मारुति कार की तरफ बढ़ते हुए युवकयुवती की तरफ देख कर राकेश के पांव तुरंत स्कूटर के ब्रेक पर पड़े. स्कूटर रुक गया तो उस ने युवती की तरफ ध्यान से देखा. उस का संदेह क्षणभर में ही दूर हो गया, क्योंकि उस की आंखें अपनी पत्नी रेखा को पहचानने में भूल नहीं कर सकती थीं.

इस युवक के साथ आज दूसरी बार वह रेखा को देख रहा था. राकेश ने मुड़ कर सड़क के उस तरफ देखा, जहां से वे दोनों अभीअभी निकले थे. वह होटल वृंदावन था जो शहर में अभी नयानया खुला था और आम लोगों की पहुंच से दूर होने के कारण दिन में लगभग खाली रहता था.

वे दोनों युवकयुवती जब मारुति कार में बैठ कर चल दिए तो राकेश का खून खौल उठा था, पर वह अपने को संयत रखते हुए कार का पीछा करने लगा. कुछ ही देर में कार इलाहाबाद बैंक के सामने जा कर पार्किंग में खड़ी हो गई और वे दोनों कार से उतर कर बैंक में चले गए.

आज से पहले भी राकेश ने रेखा को इसी युवक के साथ बैंक के बाहर घूमते हुए देखा था. रेखा ने तो जैसे वैवाहिक जीवन के 3 बरसों को एक तरफ हाशिए पर रख दिया था और मर्यादा भूल कर वह पराए पुरुष के साथ स्वच्छंदता से शहर में घूम रही थी.

राकेश की सम?ा में नहीं आ रहा था कि आखिर उस से ऐसी कहां चूक हो गई जो रेखा उस से दूर होती जा रही है.

राकेश अपने दफ्तर लौट आया, पर शाम तक उस का किसी काम में मन नहीं लगा. उसे बारबार रेखा पर गुस्सा आ रहा था और महसूस हो रहा था कि प्रेम और मेहनत से बनाया उस का आशियाना अब कभी भी टूट कर बिखर सकता है.

शाम को जब राकेश घर पहुंचा तो यह देख कर हैरान रह गया कि रेखा नहाधो कर गुनगुनाती हुई रसोई में शाम का खाना बनाने में व्यस्त थी. राकेश ने रसोई के दरवाजे के पास खड़े हो कर कहा, ‘‘आज तुम भूतनाथ बाजार गई थीं?’’

‘‘हां,’’ रेखा ने चावल बीनते हुए उत्तर दिया.

‘‘तुम्हारे साथ वह युवक कौन था?’’  राकेश का स्वर तेज हो गया.

‘‘राजीव,’’ रेखा ने संक्षिप्त उत्तर दिया और अपने काम में व्यस्त हो गई.

‘‘तुम राजीव के साथ वृंदावन होटल गई थीं?’’ राकेश ने पहले की तरह तेज स्वर में पूछा.

‘‘ओह, तुम परेशान मत होओ,’’ कह कर रेखा फिल्टर में पानी भरने लगी.

तभी मोनू रेखा के पास आ कर ठुनकने लगा, ‘‘मम्मी, भूख लगी है.’’

‘‘ओह, राजा बेटे को दूध चाहिए, चलो, अभी बोतल साफ करते हैं, मोनू के लिए दूध बनाते हैं, मोनू दूध पिएगा… मोनू राजा बेटा बनेगा…’’ रेखा तरहतरह के वाक्य उछालती हुई मोनू के लिए दूध बनाने लगी.

मोनू अपनी मम्मी को दूध बनाते हुए देखने लगा, फिर मम्मी के हाथ से दूध की बोतल ले कर पलंग पर जा लेटा और दूध पीने लगा.

राकेश ने हिकारत से रेखा की तरफ देखा और फिर अपने कमरे में चला गया. उस के मन में रेखा के चरित्र को ले कर तरहतरह के विचार बनबिगड़ रहे थे. वह सोचने लगा कि यह औरत 2 नावों में पैर कर रख जीवन की नदी को पार करना चाहती है.

राकेश ने बाथरूम में नहाते हुए ठंडे दिमाग से इस मुसीबत की जड़ तक पहुंचने की ठानी. वह उस युवक के बारे में सोचने लगा जो रेखा के साथ घूमता था. राकेश अपने परिवार को टूटने से भी बचाना चाहता था और जगहंसाई का पात्र भी नहीं बनना चाहता था.

Summer Special: पानी प्यास ही नहीं बुझाता, इलाज भी करता है

सर्दी के दिनों में हम पानी का इनटेक कम कर देते हैं. ठंड की वजह से हमें प्यास ज्यादा नहीं लगती. लेकिन क्या आप जानते हैं कि सर्दी के दिनों में उचित मात्रा में तरल पदार्थ हमारे शरीर में न पहुंचने से हमारा खून गाढ़ा हो जाता है. इस कारण रक्तसंचार में व्यवधान और धमनियों में प्रेशर बढ़ जाता है. रक्तसंचार ठीक रखने के लिए हमारे दिल को ज्यादा काम करना पड़ता है. इस वजह से हार्ट अटैक का खतरा बढ़ जाता है. इसलिए गर्मी हो या सर्दी, दिन भर में दो से तीन लीटर पानी पीना आवश्यक है. पानी सिर्फ प्यास ही नहीं बुझाता है, बल्कि यह शरीर के कई रोगों का निवारण भी करता है. पानी हमारे शरीर के लिए औषधि है.

हमारे शरीर में पानी की मात्रा लगभग 70 प्रतिशत है. पानी अनेक तरीके से हमारे शरीर को सुचारू ढंग से चलाने में मदद करता है. यह शरीर को ठंडक प्रदान करता है, शरीर को उत्तेजना पहुंचाता है, अंगों को सक्रिय रखता है, शरीर में जमे टौक्सिन्स को बाहर निकालता है, दर्द को दूर करता है, कफ को बाहर निकालने में मदद करता है, तनाव से मुक्ति देता है, जलन खत्म करता है और त्वचा में कसाव व चमक लाता है. जल चिकित्सा में पानी के इन्हीं गुणों का प्रयोग शरीर को स्वस्थ रखने, रोगों से बचाव तथा उनके निवारण में किया जाता है.

जल चिकित्सा बहुत पुरानी चिकित्सा विधि है, जिसमें गर्म-ठंडा सेंक, कटिस्नान, वाष्प स्नान, रीढ़ स्नान, पूर्ण टब स्नान आदि के जरिए अनेक रोगों का इलाज किया जाता है. पानी के तापक्रम के जरिए पेटदर्द, कब्ज, सर्दी-जुकाम, महिला सम्बन्धी रोगों का इलाज होता है.

जल से चिकित्सा वास्तव में एक पुरातन घरेलू चिकित्सा है. हम हमेशा से ही अनेक बीमारियों में जल का प्रयोग करते रहे हैं. घरों में ठंडे-गर्म पानी का सेंक अनेक परेशानियों से छुटकारा दिलाने के लिए किया जाता है. दर्द का इलाज हम गर्म पानी के सेंक से करते हैं, तो बुखार आने पर ठंडे पानी की पट्टियां सिर पर रखते हैं.

गर्म-ठंडे पानी की सिंकाई कब्ज तथा प्रदाह आदि में लाभकारी है. यदि सिर दर्द या सर्दी-जुकाम की समस्या है, तो रात को सोते समय गुनगुने पानी के टब में दोनों पैर डालकर 10 मिनट के लिए रखा जा सकता है या गर्म पानी की भांप लेने से राहत मिलती है. इससे बंद नाक खुल जाती है, सिरदर्द खत्म हो जाता है और सांस लेना आसान हो जाता है. गर्म पानी की भांप श्वांस नली और फेफड़ों में जमे हुए कफ को ढीला करके बलगम के जरिए शरीर से बाहर निकाल देती है.

मोटापा, चर्म रोग, जोड़ों का दर्द, सर्दी-जुकाम तथा दमा आदि में वाष्प स्नान की सलाह दी जाती है जो स्वेद ग्रंथियों की सक्रियता को बढ़ाकर त्वचा से विजातीय द्र्रव्य शीघ्रता से निकालने में मदद करता है. इसी तरह पेट के रोगों में कटि-स्नान, जोड़ों के दर्द में पूर्ण टब स्नान, मानसिक रोगों तथा तनाव आदि में रीढ़ स्नान आदि जल चिकित्सा के महत्त्वपूर्ण उपचार हैं.

बहुत से लोग अच्छी तरह से स्नान नहीं करते हैं. उन्हें लगता है कि फालतू पानी क्या बहाना. लेकिन यह जानना जरूरी है कि साफ पानी से अच्छी तरह से स्नान करने से हमारी त्वचा के रोम छिद्र खुल जाते हैं, डेड स्किन निकल जाती है और त्वचा जीवन्त हो जाती है तथा शरीर में रक्त संचार भी बढ़ जाता है जो अन्ततोगत्वा शरीर को स्वस्थ रखने तथा रोगों से बचाव में हमारी सहायता करता है.

कब्ज से लोग इसलिए परेशान होते हैं, क्योंकि उन्हें पानी पीने की आदत नहीं होती. पानी की कमी से आंतों को खाना पचाने के लिए उपयुक्त नमी नहीं मिलती और वह सूख जाती हैं. इसके कारण अल्सर की समस्या भी हो जाती है. कब्ज की शिकायत हो तो खूब पानी पियें और पेट पर गर्म-ठंडे पानी की सिंकाई करें. दिन में कम से कम 12 गिलास गुनगुना पानी पीने से कब्ज से राहत मिलती है. गर्म पानी पीने से आंतों में जमा मल आसानी से निकल जाता और पेट साफ होने से गैस की समस्या भी खत्म हो जाती है.

पानी पीने से हमारी किडनी भी बेहतर तरीके से काम करती है. अगर हम पर्याप्त मात्रा में पानी पीते हैं तो इससे यूरिन साफ होता है और पूरा सिस्टम क्लीन हो जाता है. यह सफाई बाहरी रूप में भी दिखायी देती है. इससे त्वचा पर भी ग्लो आता है. पानी के इस्तेमाल से आपके अंदरूनी सिस्टम को क्लीन करने के लिए गुनगुने पानी के एक ग्लास में कुछ बूंदें शहद और नींबू के रस की मिलाकर सुबह-सुबह पीना लाभदायक है.

पानी की कमी से त्वचा ड्राई और डीहाईड्रेटिड हो जाती है और उस पर समय से पहले झुर्रियां दिखने लग जाती हैं. जबकि अगर आपकी त्वचा में नमी होगी तो आपकी कोशिकाएं फिर से नयी हो जाएंगी, जो झुर्रियों को रोकेंगी. इसलिए सर्दी हो या गर्मी पर्याप्त मात्रा में पानी पियें. इसके अलावा अपने चेहरे पर पानी के छींटें मारें और त्वचा पर आइस क्यूब्स लगाएं. इससे त्वचा के पोर जो ज्यादा खुल जाते हैं वह बंद हो जाएंगे.

जिन लोगों की त्वता बहुत अधिक गोरी या फिर संवेदनशील होती है उनके साधारण स्क्रब करने या फिर चेहरे पर थोड़ा दबाव डालने से ही त्वचा लाल हो जाती है. इसे दूर करने के लिए पानी का इस्तेमाल किया जा सकता है. बर्फ के पानी में रूई भिगोएं और अपने चेहरे पर लगाएं. एक दो मिनट ऐसा करने से ही चेहरे की लालिमा और जलन कम होने लगती है. संवेदनशील त्वचा के लिए साफ ठंडे पानी में कुछ बूंदें गुलाबजल की मिलाकर लगाने से भी राहत मिलती है.

Summer Special: ‘लू’ से बचाता है यह शरबत

गर्मी के मौसम में कच्चे आम का शरबत पीना सबसे ज्यादा लाभदायक होता है. यह हमारे समाज का पसंदीदा पेय जल है. यह स्वाद में जितना अच्छा होता है, सेहत के लिए भी उतना ही अच्छा होता है. जब गर्मी चरम पर है. तो इसका शरबत अच्छा होता है. इसे बनाना भी उतना ही आसान होता है.

सम्रागी

300 ग्राम कच्चे आम, 2 चम्मच जीरा, स्वादनुसार काला नमक, एक चम्मच काली नमक, पुदीना कि पत्तियां, नमक स्वादनुसार

विधि

पुराना समय में जब खाना बनता था, कि चूल्हे पर खाना बनने के बाद आम को चूल्हे में डाल दिया जाता था. लेकिन आज के समय में आम को उबाल पर बनाया जाता हैं.

आम की गुठली को निकाल दिया जाता है, अब उसको गर्म पानी  में मिला दिया जाता है. अब उसमें भूना हुआ जीरा डालकर मिलाए. काला नमक और पुदीना को मिला दें, अब उसमें हरा धनिया मिला दें, अब इसे छलनी से छान लें, और ग्लास में निकालकर छान दें.

शक: क्या शादीशुदा रेखा किसी और से प्रेम करती थी?

‘बालिका वधू’ की आनंदी इस हॉरर फिल्म से करेंगी बॉलीवुड डेब्यू

कलर्स टीवी (Colors Tv) का मशहूर सीरियल ‘बालिका वधू’ (Balika Vadhu) फेम अविका गोर (Avika Gor) अपने किरदार के घर-घर में मशहूर हैं. आज भी लोग उन्हें आनंदी के नाम से बुलाते हैं. इस सीरियल में अविका गोर की एक्टिंग ने दर्शकों के दिल जीत लिया. अब आनंदी के फैंस के लिए एक बड़ी खुशखबरी है. तो आइए बताते है, क्या है पूरा मामला.

अविका गोर जल्द ही विक्रम भट्ट (Vikram Bhatt) की अपकमिंग हॉरर फिल्म ‘1920: हॉरर्स ऑफ द हार्ट’ (1920: Horrors of The Heart) में अहम किरदार में नजर आएंगी. अविका काफी लंबे समय से बड़े प्रोजेक्ट के तलाश में थी. आखिकार अब वो बॉलीवुड में इस हॉरर फिल्म से डेब्यू करेंगी.

 

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विक्रम भट्ट ने अपने इंस्टाग्राम हैंडल पर एक फोटो शेयर करते हुए लिखा, 1920 ने मेरे जीवन में एक नया चैप्टर शुरू किया और अब 1920 में सेट की गई एक और कहानी हिंदी फिल्मों में बेहद टैलेंटेड अविका गोर के करियर की शुरुआत करेगी. कृष्णा भट्ट ‘1920: हॉरर्स ऑफ द हार्ट’ का निर्देशन करेंगी, जो मेरे गुरु महेश भट्ट द्वारा लिखी गई है. इस बार मैं निर्माता की भूमिका निभा रहा हूं.

 

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अविका गोर के फैंस उन्हें काफी लंबे से समय से किसी बॉलीवुड फिल्म में देखने के लिए बेताब थे. फैंस का ये इंतजार जल्द ही खत्म होने वाला है. बता दें कि बॉलीवुड से पहले अविका गोर साउथ फिल्म में काम कर चुकी हैं. एक्ट्रेस ने साउथ में अपनी शुरुआत तेलुगु फिल्म से की थी.

 

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