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ज्योति- भाग 3: क्या सही था उसका भरोसा

लगभग 45 वर्ष का सुरेश नेकदिल इंसान था. सुमित ने उसे सदा हंसतेमुसकराते ही देखा था. मगर वह अपनी जिंदगी में एकदम अकेला है, इस बात का इल्म उसे आज ही हुआ.

इधर कुछ दिनों से रोहन बहुत परेशान था. औफिस में उस के साथ हो रहे भेदभाव ने उस की नींद उड़ा रखी थी. रोहन के वरिष्ठ मैनेजर ने रोहन के पद पर अपने किसी रिश्तेदार को रख लिया था और रोहन को दूसरा काम दे दिया गया जिस का न तो उसे खास अनुभव था न ही उस का मन उस काम में लग रहा था. अपने साथ हुई इस नाइंसाफी की शिकायत उस ने बड़े अधिकारियों से की, लेकिन उस की बातों को अनसुना कर दिया गया. नक्कारखाने में तूती की आवाज की तरह उस की शिकायतें दब कर रह गई थीं. आखिरकार, तंग आ कर उस ने नौकरी छोड़ दी.

दूसरी नौकरी की तलाश में सुबह का निकला रोहन देरशाम ही घर लौट पाता था. उस का दिनभर दफ्तरों के चक्कर लगाने में गुजर जाता. मगर नई नौकरी मिलना आसान नहीं था. कहीं मनमुताबिक तनख्वाह नहीं मिल रही थी तो कहीं काम उस की योग्यता के मुताबिक नहीं था. जिंदगी की कड़वी हकीकत जेब में पड़ी डिगरियों को मुंह चिढ़ा रही थी.

सुमित और मनीष ने रोहन की मदद करने के लिए अपने स्तर पर कोशिश की, मगर बात कहीं बन नहीं पा रही थी.

एक के बाद एक इंटरव्यू देदे कर रोहन का सब्र जवाब देने लगा था. अपने भविष्य की चिंता में उस का शरीर सूख कर कांटा हो चला था. पास में जो कुछ जमा पूंजी थी वह भी कब तक टिकती, 2 महीने से तो वह अपने हिस्से का किराया भी नहीं दे पा रहा था.

सुमित और मनीष उस की स्थिति समझ कर उसे कुछ कहते नहीं थे. मगर यों भी कब तक चलता.

सुबह का भूखाप्यासा रोहन एक दिन शाम को जब घर आया तो सारा बदन तप रहा था. उस के होंठ सूख रहे थे. उसे महसूस हुआ मानो शरीर में जान ही नहीं बची. ज्योति उसे कई दिनों से इस हालत में देख रही थी. इस वक्त वह शाम के खाने की तैयारी में जुटी थी. रोहन सुधबुध भुला कर मय जूते के बिस्तर पर निढाल पड़ गया.

ज्योति ने पास जा कर उस का माथा छुआ. रोहन को बहुत तेज बुखार था. वह पानी ले कर आई. उस ने रोहन को जरा सहारा दे कर उठाया और पानी का गिलास उस के मुंह से लगाया. ‘‘क्या हाल बना लिया है भैया आप ने अपना?’’

‘‘ज्योति, फ्रिज में दवाइयां रखी हैं, जरा मुझे ला कर दे दो,’’ अस्फुट स्वर में रोहन ने कहा.

दवाई खा कर रोहन फिर से लेट गया. सुबह से पेट में कुछ गया नहीं था, उसे उबकाई सी महसूस हुई. ‘‘रोहन भैया, पहले कुछ खा लो, फिर सो जाना,’’ हाथ में एक तश्तरी लिए ज्योति उस के पास आई.

रोहन को तकिए के सहारे बिठा कर ज्योति ने उसे चम्मच से खिचड़ी खिलाई बिलकुल किसी मां की तरह जैसे अपने बच्चों को खिलाती है.

रोहन को अपनी मां की याद आ गई. आज कई दिनों बाद उसी प्यार से किसी ने उसे खिलाया था. दूसरे दिन जब वह सो कर उठा तो उस की तबीयत में सुधार था. बुखार अब उतर चुका था, लेकिन कमजोरी की वजह से उसे चलनेफिरने में दिक्कत हो रही थी. सुमित और मनीष ने उसे कुछ दिन आराम करने की सलाह दी. साथ ही, हौसला भी बंधाया कि वह अकेला नहीं है.

ज्योति उस के लिए कभी दलिया तो कभी खिचड़ी पकाती और बड़े मनुहार से खिलाती. रोहन उसे अब दीदी बुलाने लगा था.

‘‘दीदी, आप को देने के लिए मेरे पास पैसे नहीं हैं फिलहाल, मगर वादा करता हूं नौकरी लगते ही आप का सारा पैसा चुका दूंगा,’’ रोहन ने ज्योति से कहा.

‘‘कैसी बातें कर रहे हो रोहन भैया. आप बस, जल्दी से ठीक हो जाओ. मैं आप से पैसे नहीं लूंगी.’’

‘‘लेकिन, मुझे इस तरह मुफ्त का खाने में शर्म आती है,’’ रोहन उदास था.

‘‘भैया, मेरी एक बेटी है 10 साल की, स्कूल जाती है. मेरा सपना है कि मेरी बेटी पढ़लिख कर कुछ बने. पर मेरे पास इतना वक्त नहीं कि उसे घर पर पढ़ा सकूं और उसे ट्यूशन भेजने की मेरी हैसियत नहीं है. घर का किराया, मुन्नी के स्कूल की फीस और राशनपानी के बाद बचता ही क्या है. अगर आप मेरी बेटी को ट्यूशन पढ़ा देंगे तो बड़ी मेहरबानी होगी. आप से मैं खाना बनाने के पैसे नहीं लूंगी, समझ लूंगी वही मेरी पगार है.’’

बात तो ठीक थी. रोहन को भला क्या परेशानी होती. रोज शाम मुन्नी अब अपनी मां के साथ आने लगी. रोहन उसे दिल लगा कर पढ़ाता.

ज्योति कई घरों में काम करती थी. उस ने अपनी जानपहचान के एक बड़े साहब को रोहन का बायोडाटा दिया. रोहन को इंटरव्यू के लिए बुलाया गया. मेहनती और योग्य तो वह था ही, इस बार समय ने भी उस का साथ दिया और उस की नौकरी पक्की हो गई.

सुमित और मनीष भी खुश थे. रोहन सब से ज्यादा एहसानमंद ज्योति का था. जिस निस्वार्थ भाव से ज्योति ने उस की मदद की थी, रोहन के दिल में ज्योति का स्थान अब किसी सगी बहन से कम नहीं था. ज्योति भी रोहन की कामयाबी से खुश थी, साथ ही, उस की बेटी की पढ़ाई को ले कर चिंता भी हट चुकी थी. घर में जिस तरह बड़ी बहन का सम्मान होता है, कुछ ऐसा ही अब ज्योति का सुमित और उस के दोस्तों के घर में था.

ज्योति की उपस्थिति में ही बहुत बार नेहा मनीष से मिलने घर आती थी. शुरूशुरू में मनीष को कुछ झिझक हुई, मगर ज्योति अपने काम से मतलब रखती. वह दूसरी कामवाली बाइयों की तरह इन बातों को चुगली का साधन नहीं बनाती थी.

मनीष और नेहा की एक दिन किसी बात पर तूतूमैंमैं हो गई. ज्योति उस वक्त रसोई में अपना काम कर रही थी. दोनों की बातें उसे साफसाफ सुनाई दे रही थीं.

मनीष के व्यवहार से आहत, रोती हुई नेहा वहां से चली गई. उस के जाने के बाद मनीष भी गुमसुम बैठ गया.

ज्योति आमतौर पर ऐसे मामले में नहीं पड़ती थी. वह अपने काम से काम रखती थी, मगर नेहा और मनीष को इस तरह लड़ते देख कर उस से रहा नहीं गया. उस ने मनीष से पूछा तो मनीष ने बताया कि कुछ महीनों से शादी की बात को ले कर नेहा के साथ उस की खटपट चल रही है.

‘‘लेकिन भैया, इस में गलत क्या है? कभी न कभी तो आप नेहा दीदी से शादी करेंगे ही.’’

‘‘यह शादी होनी बहुत मुश्किल है ज्योति. तुम नहीं समझोगी, मेरे घर वाले जातपांत पर बहुत यकीन करते हैं और नेहा हमारी जाति की नहीं है.’’

‘‘वैसे तो मुझे आप के मामले में बोलने का कोई हक नहीं है मनीष भैया, मगर एक बात कहना चाहती हूं.’’

मनीष ने प्रश्नात्मक ढंग से उस की तरफ देखा.

‘‘मेरी बात का बुरा मत मानिए मनीष भैया. नेहा दीदी को तो आप बहुत पहले से जानते हैं, मगर जातपांत का खयाल आप को अब आ रहा है. मैं भी एक औरत हूं. मैं समझ सकती हूं कि नेहा दीदी को कैसा लग रहा होगा जब आप ने उन्हें शादी के लिए मना किया होगा. इतना आसान नहीं होता किसी भी लड़की के लिए इतने लंबे अरसे बाद अचानक संबंध तोड़ लेना. यह समाज सिर्फ लड़की पर ही उंगली उठाता है. आप दोनों के रिश्ते की बात जान कर क्या भविष्य में उन की शादी में अड़चन नहीं आएगी? क्या नेहा दीदी और आप एकदूसरे को भूल पाएंगे? जरा इन बातों को सोच कर देखिए.

जानकारी: मौड्यूलर किचन कब जरूरी

कई सालों से मौड्यूलर किचन का प्रचलन बढ़ा है. इस की मांग धीरेधीरे बढ़ती ही जा रही है. आज की महिलाएं इसे मौडर्न और स्टाइलिश सम?ाती हैं, इसलिए गृहणियां इसे अधिक चुनती हैं. इस की खासीयत यह है कि इस में कम जगह पर अधिक सामान सही तरीके से रखा जा सकता है. इस से कई सुविधाएं होती हैं जिन्हें बजट के अनुसार निर्धारित किया जा सकता है.

मुंबई जैसे शहर में जहां बहुत कम जगह में एक नहीं, दो परिवार साथ रहते हैं, किचन बहुत छोटा होता है. किचन के सामान को रखने में समस्या आती है. ऐसे में मौड्यूलर किचन बनाना जरूरी होता है. इस से सामान एक निश्चित स्थान पर रखे जा सकते हैं और फिर स्मार्ट कुकिंग की जा सकती है.

तकनीक का विकास जितनी तेजी से हो रहा है, उस का असर केवल बाहर ही नहीं, घर पर भी मौड्यूलर किचन के रूप में दिखाई पड़ रहा है. यह कौन्सैप्ट विदेशी है, लेकिन इस का प्रयोग भारत में भी खूब होने लगा है.

क्या है मौड्यूलर किचन

असल में मौड्यूलर किचन को कस्टोमाइज्ड किचन कहा जाता है. इस में व्यक्ति अपनी सुविधा के अनुसार वस्तुओं को सैट कर सकता है. इस से कम समय में सामान रखा जा सकता है और काम जल्दी हो जाता है, लेकिन समयसमय पर इस की देखभाल न करने पर इस का असर विपरीत भी हो सकता है.

इस के अलावा मौड्यूलर किचन में नमी और गंध को सोखने की क्षमता होती है, जो चिमनी के सहारे होता है. इस में कैबिनेट और ड्रायर हलके होने की वजह से आसानी से संचालित किए जा सकते हैं.

चुनाव सही औप्शन का

  1. सिंथैटिक प्लास्टिक पौलीमर के रूप में होने की वजह से यह बहुत ज्यादा मजबूत होता है. मौड्यूलर किचन कैबिनेट बनाने के लिए यह बैस्ट मैटीरियल माना जाता है. इस के अलावा इन में कई आकर्षक रंग मिलते हैं जिसे इच्छानुसार चुना जा सकता है. मौड्यूलर किचन कई प्रकार के होते हैं.
  2. नैचुरल वुड, जो देखने में सुंदर पर समय के साथ नमी सोखती है और खराब हो जाती है, साथ ही महंगी होती है.
  3. कैबिनेट में लकड़ी के ऊपर प्लास्टिक शीट लगी होती है. यह लंबे समय तक चलती है. यह नमी नहीं सोख सकती और सस्ती होती है.
  4. नैचुरल लकड़ी के पतलेपतले टुकड़ों को जोड़ कर बनाई गई शीट विनियर्स कहलाता है. इस में सौलिड वुड के टुकड़े होने की वजह से यह रियल वुड की तरह दिखता और टिकाऊ होता है. धूप से रंग फीका हो जाता है, लकड़ी से सस्ता होता है.
  5. पीवीसी यानी पौलिविनाइल क्लोराइड टिकाऊ और कई रंगों में मिलता है. यह बहुत ज्यादा मजबूत होता है, इसलिए मौड्यूलर किचन कैबिनेट बनाने के लिए इस का प्रयोग अधिक किया जाता है.
  6. स्टेनलैस स्टील के प्रयोग मौड्यूलर किचन में करने से जंग और दाग नहीं लगता. इसे आसानी से साफ किया जा सकता है.
  7. एक्रेलिक का प्रयोग आजकल अधिक हो रहा है. यह नौन-टौक्सिक होती है, इस की चमक अधिक होने से किचन बड़ा दिखता है.

प्रभाव जलवायु का

आशापुरा इंटीरियर्स के आर्किटैक्ट विजय पिथाडिया कहते हैं, ‘‘मौड्यूलर किचन का यह कौन्सैप्ट विदेशों से आया है जो इंडिया की जलवायु में कई बार ठीक नहीं होता और जल्दी खराब हो जाता है. मौड्यूलर किचन देखने में सुंदर और स्टाइलिश लग सकता है पर इस की सही देखभाल करना बहुत जरूरी होता है. खासकर, रसोई में खाना बनाने वाला कोई दूसरा व्यक्ति हो तो समस्या बढ़ती है, क्योंकि विदेशी मैटीरियल से बने मौड्यूलर किचन में पानी लगने या सही देखभाल न करने से वह जल्दी खराब हो जाता है.’’

मौड्यूलर किचन का होना जरूरी

  1. अगर किचन छोटा हो तो चारों तरफ सामान फैला रहता है. ऐसे में मौड्यूलर किचन से सभी सामान को सही जगह रखा जा सकता है, जिस से खाना बनाने के लिए पर्याप्त जगह मिल जाती है.
  2. बाजार में आजकल कई प्रकार के मौड्यूलर किचन मिलते हैं, जिसे व्यक्ति अपने बजट के अनुसार चुन सकते हैं और समयसमय पर इसे बदल कर नया लुक दिया जा सकता है.
  3. मौड्यूलर किचन को इंस्टौल करने में समय कम लगता है, बारबार शिफ्ट करने वालों के लिए यह आसान औप्शन है, क्योंकि इसे कहीं भी ले जाना आसान होता है और इसे फिर से एसेम्बल करना भी मुश्किल नहीं होता.
  4.  इस तरह के किचन में बजट कम होता है और भिन्नभिन्न प्रकार के औप्शन होने की वजह से व्यक्ति अपने बजट के अनुसार किचन को सजा सकता है. कम बजट में मौड्यूलर किचन के लिए व्यक्ति खुद इंस्ट्रक्शन को फौलो कर सामान को उचित स्थान पर इंस्टौल भी कर सकता है.
  5. इस का रखरखाव बहुत आसान होता है, लेकिन समयसमय पर इस की साफसफाई अच्छी तरह करने की आवश्यकता होती है.
  6. मौड्यूलर किचन को सही तरह से बनाने पर एलिगेंट, स्टाइलिस्ट और मौडर्न लुक आता है, जो व्यक्ति को सुकून देता है. इस में समयसमय पर फेरबदल भी किया जा सकता है.
  7. इसे रिपेयर करना आसान होता है. साथ ही, कम पैसे में इसे फिर से ठीक किया जा सकता है.

विजय कहते हैं, ‘‘जो लोग एक स्थान से दूसरे स्थान पर शिफ्ट होते रहते हैं उन के लिए मौड्यूलर किचन सही रहता है, क्योंकि कम लागत में केवल कुछ दिनों में ही इसे फिट कर लिया जा सकता है. एक स्थान पर रहने वाले व्यक्ति इसे लो डैंसिटी वाला मानते हैं. इंडियन प्रोडक्ट अधिकतर पीतल के होते हैं जबकि विदेशी प्रोडक्ट स्प्रिंग और गैल्वनाइज शीट के होते हैं. इंडियन प्रोडक्ट्स ?को प्रयोग कर बनाया गया मौड्यूलर किचन महंगा होने के बावजूद सब से अधिक टिकाऊ होता है.’’

वेटिंग रूम- भाग 3: सिद्धार्थ और जानकी की जिंदगी में क्या नया मोड़ आया

जानकी ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘मेरे चेहरे पर तो सब लिखा नहीं था, और आप तो मुझ से आज पहली बार मिले हैं, सब कैसे जानते भला? फिर भी एक बात अच्छी हुई है, इस बहाने कम से कम आप मेरा नाम तो जान गए.’’ सिद्धार्थ ने थोड़ा ?मुसकराते हुए अचरजभरे अंदाज में बोला, ‘‘या दैट्स राइट.’’ ‘‘तब से मैममैम कर रहे थे आप और हां, ये ‘डैड’ क्या होता है, अच्छेखासे जिंदा आदमी को डैड क्यों कहते हैं,’’ कहते हुए पहली बार जानकी खिलखिलाई. सिद्धार्थ अब थोड़ा सहज हो गया था. उसे जानकी से और विस्तार से पूछने में हिचक हो रही थी, लेकिन जिज्ञासा बढ़ रही थी, इसलिए उस ने पूछ ही लिया, ‘‘आप को देख कर लगता नहीं है कि आप अनाथालय में पलीबढ़ी हैं, आय मीन आप की एजुकेशन वगैरा?’’ ‘‘सब मानसी चाची ने ही करवाई. जब मैं छोटी थी तब लगभग 19-20 लड़कियां थीं ‘वात्सल्य’ में, सब अलगअलग उम्र की. सामान्यतया अनाथालय के बच्चों को वोकेशनल ट्रेनिंग दी जाती है ताकि वे अपने पैरों पर खड़े हो सकें. हमारे यहां भी सभी लड़कियों को स्कूल तो भेजा गया. कोई 5वीं, कोई 8वीं तक पढ़ी, पर कोई भी 10वीं से ज्यादा पढ़ नहीं सकी. फिर उन्हें सिलाई, कढ़ाई, बुनाई, अचारपापड़ बनाना जैसे छोटेछोटे काम सिखाए गए ताकि वे आत्मनिर्भर हो सकें. सिर्फ मैं ही थी जिस ने 12वीं तक पढ़ाई की. मेरी रुचि पढ़ाई में थी और मेरे मार्क्स व लगन देख कर मानसी चाची ने मुझे आगे पढ़ने दिया. अनाथालय में जो कुटीर उद्योग चलते थे उस से अनाथालय की थोड़ीबहुत कमाई भी होती थी. अनाथालय की सारी लड़कियां मेरी पढ़ाई के पक्ष में थीं और इस कमाई में से कुछ हिस्सा मेरी पढ़ाई के लिए मिलने लगा. मेरी भी जिम्मेदारी बढ़ गई. सब को मुझ से बहुत उम्मीदें हैं. मुझे उन लोगों के सपने पूरे करने हैं जिन्होंने न तो मुझे जन्म दिया है और न ही उन से कोई रिश्ता है. अपनों के लिए तो सभी करते हैं, जो परायों के लिए करे वही महान होता है. चूंकि साइंस की पढ़ाई काफी खर्चीली थी, सो मैं ने आर्ट्स का चुनाव किया, बीए किया, फिर इतिहास में एमए किया. फिर एक दिन अचानक इस लैक्चरर की पोस्ट के लिए इंटरव्यू कौल आई. वही इंटरव्यू देने पुणे गई थी.’’

‘‘फिर सैलेक्शन हो गया आप का?’’ अधीरता से सिद्धार्थ ने पूछा. जानकी ने बताया, ‘‘हां, 15 दिन में जौइन करना है.’’  इसी तरह से राजनीति, फिल्मों, बाजार आदि पर बातचीत करते समय कैसे गुजर गया, पता ही नहीं चला. लगभग 2:30 बजे जानकी की गाड़ी की घोषणा हुई. इन 5-6 घंटों की मुलाकात में दोनों ने एकदूसरे को इतना जान लिया था जैसे बरसों की पहचान हो. जानकी के जाने का समय हो चुका था लेकिन सिद्धार्थ उस का फोन नंबर लेने की हिम्मत नहीं जुटा पाया. बस, इतना ही बोल पाया, ‘‘जानकीजी, पता नहीं लाइफ में फिर कभी हम मिलें न मिलें, लेकिन आप से मिल कर बहुत अच्छा लगा. आप के साथ बिताए ये 5-6 घंटे मेरे लिए प्रेरणा के स्रोत रहेंगे. मैं ने आज आप से बहुत कुछ सीखा है.’’

‘‘अरे भई, मैं इतनी भी महान नहीं हूं कि किसी की प्रेरणास्रोत बन सकूं. हो सकता है कि दुनिया में ऐसे भी लोग होंगे जो मुझ से भी खराब स्थिति में हों. मैं तो खुद अच्छा महसूस करती हूं कि जिन से मेरा कोई खून का रिश्ता नहीं है, उन्होंने मेरे जीवन को संवारा है. आप सर्वसाधन संपन्न हो कर भी अपनेआप को इतना बेचारा समझते हैं. मैं आप से यही कहना चाहूंगी कि जो हम से बेहतर हालात में रहते हैं, उन से प्रेरणा लो और जो हम से बेहतर हालात में रहते हैं, उन तक पहुंचने की कोशिश करो. यह मान कर चलना चाहिए कि जो हो रहा है, सब किसी एक की मरजी से हो रहा है और वह कभी किसी का गलत नहीं कर सकता. बस, हम ही ये बात समझ नहीं पाते. एनी वे, मैं चलती हूं, गुड बाय,’’ कह कर जानकी ने अपना बैग उठाया और जाने लगी. सिद्धार्थ ने सोचा ट्रेन तक ही सही कुछ समय और मिल जाएगा जानकी के साथ. और वह उस के पीछेपीछे दौड़ा. बोला, ‘‘जानकीजी, मैं आप को ट्रेन तक छोड़ देता हूं.’’

जानकी ने थोड़ी नानुकुर की लेकिन सिद्धार्थ की जिद पर उस ने अपना बैग उस के हाथ में दे दिया. जल्द ही ट्रेन प्लेटफौर्म पर आ गई और जानकी चली गई. सिद्धार्थ के लिए वक्त जैसे थम सा गया. जानकी से कोई जानपहचान नहीं, कोई दोस्ती नहीं, लेकिन एक अजीब सा रिश्ता बन गया था. पिछले 5-6 घंटों में उस ने अपने ?अंदर जितनी ऊर्जा महसूस की थी, अब उतना ही कमजोर महसूस कर रहाथा. भारी मन से वह वापस प्रतीक्षालय लौट आया. अब उस के लिए समय काटना बहुत मुश्किल हो गया था. जानकी का खयाल उस के दिमाग से एक मिनट के लिए भी जा नहीं रहा था. रहरह कर उसे जानकी की बातें याद आ रही थीं. अब उसे एहसास हो रहा था कि वह आज तक कितना गलत था. इतना साधन संपन्न होने के बाद भी वह कितना गरीब था. आज अचानक ही वह खुद को काफी शांत और सुलझा हुआ महसूस कर रहा था. उस के मातापिता ने आज तक जो कुछ उस के लिए किया था उस का महत्त्व उसे अब समझ में आ रहा था. उसे लगा, सच ही तो है कि पिता के व्यवसाय को बेटा आगे नहीं बढ़ाएगा तो उस के पिता की सारी मेहनत बरबाद हो जाएगी. लोग पहली सीढ़ी से शुरू करते हैं, उसे तो सीधे मंजिल ही मिल गई है. कितनी मुश्किलें हैं दुनिया में और वह खुद को बेचारा समझता था. वह आत्मग्लानि के सागर में गोते लगा रहा था. बारबार मन स्वयं को धिक्कार रहा था कि आज तक मैं ने क्याक्या खो दिया. मन विचारमग्न था तभी अगली गाड़ी की घोषणा हुई, जिस से सिद्धार्थ को पुणे जाना था.

अगले दिन सिद्धार्थ पुणे पहुंच गया. रात जाग कर काटी थी. अब काफी थकान महसूस हो रही थी और नींद न होने से भारीपन भी. जब घर पहुंचा तो पिताजी औफिस जा चुके थे. मां ने ही थोड़े हालचाल पूछे. नहाधो कर सिद्धार्थ ने खाना खाया और सो गया. जब जागा तो डैड, जो अब उस के लिए पापा हो गए थे, वापस आ चुके थे. नींद खुलते ही सिद्धार्थ के दिमाग में वही प्रतीक्षालय और जानकी घूमने लगे. रात को तीनों साथ बैठे. सिद्धार्थ के हावभाव बदले हुए थे. मातापिता को लगा सफर की थकान है. जो सैंपल सिद्धार्थ लाया था उस ने वह पापा को दिखाए और काफी लगन से उन की गुणवत्ता पर चर्चा करने लगा. वह क्या बोल रहा था, इस पर पापा का ध्यान ही नहीं था, वे तो विश्वास ही नहीं कर पा रहे थे कि ये सब बातें सिद्धार्थ बोल रहा है जिसे उन के व्यवसाय में रत्ती भर भी रुचि नहीं है.

सिद्धार्थ बातों में इतना तल्लीन था कि समझ नहीं पाया कि पापा उसे निहार रहे हैं. रात का खाना खा कर वह फिर सोने चला गया. मातापिता दोनों ने इतने कम समय में सिद्धार्थ में बदलाव महसूस किया लेकिन कारण समझ नहीं सके. सिद्धार्थ के स्वभाव को जानते हुए उन के लिए इसे बदलाव समझना असंभव था.     

एलोपेसिया ग्रसित महिला का मजाक पड़ा महंगा

हौलीवुड के सुपरस्टार विल स्मिथ की इन दिनों सोशल मीडिया पर काफी चर्चा हो रही है. इस की वजह खुद विल स्मिथ हैं जिन्होंने इस साल औस्कर फंक्शन के दौरान कौमेडियन और होस्ट क्रिस रौक को जोरदार थप्पड़ जड़ दिया क्योंकि उन्होंने विल स्मिथ की पत्नी जाडा पिंकेट स्मिथ, जो एलोपेसिया एरिएटा की शिकार है, को ले कर कुछ अभद्र मजाक किया. जिसे सुनते ही विल स्मिथ को गुस्सा आया और उन्होंने स्टेज पर क्रिस रौक को थप्पड़ जड़ दिया.

अपनी पत्नी के लिए इस तरह की ऐक्सेप्टेंस शायद विश्व में उन पुरुषों के लिए सीख है जो एलोपेसिया के शिकार अपनी पत्नी या गर्लफ्रैंड को नहीं अपनाते, उन्हें तलाक दे देते हैं या फिर उन से कोई संबंध नहीं रखते. हमारे देश में एलोपेसिया की शिकार महिलाओं या लड़कियों के लिए चुड़ैल, डायन, अपशगुनी आदि न जाने कितने शब्दों का प्रयोग किया जाता है जिन से व्यक्ति मानसिक रूप से पीडि़त हो कर आत्महत्या तक कर लेते हैं.

महसूस करती हूं गर्व

इस बारे में एलोपेसिया की शिकार केतकी जानी कहती हैं, ‘‘मैं विल स्मिथ की पत्नी के प्रति उन के पति की इस ऐक्सेप्टेंस को देख कर बहुत खुश हूं और औस्कर अवार्ड में एलोपेसिया या गंजेपन को ले कर मजाक करने की जो गलती क्रिस रौक्स ने की है उस का उन्हें सही जवाब मिल गया है और इस की गूंज पूरे विश्व में रहनी चाहिए ताकि कोई भी व्यक्ति एलोपेसिया के शिकार को पब्लिक प्लेटफौर्म पर भलाबुरा कहने की जुर्रत न करे.’’

वे आगे कहती हैं, ‘‘मु?ो जब से एलोपेसिया हुआ है, मेरे पति मु?ा से दूर रहने लगे हैं. मैं ने कई बार आत्महत्या की कोशिश की थी पर अपने बच्चों की वजह से मैं ने ऐसा नहीं किया. गर्व के साथ आगे आई और कई ब्यूटी अवार्ड जीती. मेरी दशा ऐसी हुई थी कि लोग मु?ो किसी शादीब्याह में जाने नहीं देते थे. मेरा चेहरा अगर सुबह उठ कर कोई देख ले तो उस का पूरा दिन खराब हो जाएगा, ऐसा वे कहते थे. इसलिए मु?ो औफिस टाइम में घर पर रहना या फिर सुबह जल्दी उठ कर औफिस जाना पड़ता था.’’

वे कहती हैं, ‘‘कुछ लोगों ने मु?ो इतना तक कहा है कि तुम कितनी बदनसीब हो, पति के होते हुए भी बाल चले गए. अभी मैं अपने बच्चों के साथ रहती हूं. पति ने पहले मु?ो विग पहनने की सलाह दी थी, पर मु?ो वह ठीक नहीं लगा, क्योंकि उस से गरमी अधिक लगती है और मैं बिना हेयर के अपनी जिंदगी से खुश हूं. शुरुआत में खुद को आईने में देखना बहुत मुश्किल था क्योंकि मेरे बाल पहले लंबे थे, लेकिन अब पूरी तरह से ?ाड़ चुके हैं.’’

तिरस्कृत हुई परिवार, समाज और धर्म द्वारा

केतकी जानी कहती हैं, ‘‘हमारे देश में किसी महिला के सिर पर केश न होने से पूरे घरपरिवार के लिए शर्म की बात होती है. सब उस का मजाक और तिरस्कार करते हैं. हमारे समाज में लोग सोचते हैं कि इस रोग से पीडि़त को शर्म से डूब मरना चाहिए या फिर घर के किसी कोने में चुपचाप विग, स्कार्फ और कैप लगा कर जिंदा रहना चाहिए, जो बहुत गलत है.’’

‘‘मैं पूरे एलोपेसिया ग्रुप के रोगियों को सपोर्ट देती हूं क्योंकि ऐसे बहुत बच्चे और महिलाएं हैं जिन्हें हमेशा तिरस्कृत होना पड़ता है. मेरे गु्रप में करोब सौ एलोपेसिया के मरीज हैं. स्कूल में पढ़ने वाले 13 साल के एक बच्चे को टीचर अलग बैठाती हैं. वह बच्चा हमेशा सहमासहमा रहता है. उस से कोई बात नहीं करता और खेलता तक नहीं है. कई बार वह घर पर आ कर रोता है. मैं उसे काउंसलिंग करती हूं.’’

क्या है एलोपेसिया

मुंबई की डर्मेटोलौजिस्ट डा. अप्रतिम गोयल कहती हैं, ‘‘एलोपेसिया के मरीज के साथ हमेशा ऐसा होता आया है, समाज और परिवार उन्हें ऐक्सैप्ट नहीं करना चाहते. असल में यह एक औटोइम्यून डिजीज है, जो कभी भी किसी को हो सकती है. इस में शरीर का इम्यून सिस्टम और सफेद रक्त कोशिकाएं, जिन का काम बीमारियों से लड़ना है, हेयर फौलिक्स पर ही हमला करने लगती हैं. इस की वजह से बाल तेजी से गिरने लगते हैं. कई मरीजों में सिर के कुछ हिस्सों से भी धब्बों की तरह बाल गायब होने लगते हैं. मेरे हिसाब से विल स्मिथ की पत्नी को ओफियासिस एलोपेसिया हुआ है, जिस का इलाज संभव नहीं होता.

‘‘इस के होने की वजह का कुछ खास पता नहीं चला है, लेकिन यह छूने से नहीं फैलती. यह बीमारी महिलाओं से अधिक पुरुषों को होती है. एलोपेसिया को सम?ाना आसान नहीं होता क्योंकि इस के कुछ खास लक्षण नहीं होते. अधिकतर लोगों को स्ट्रैस या किसी बीमारी की वजह से बाल ?ाड़ते हैं और वे इसे नौर्मल सम?ाते हैं. इस वजह से इसे रोकना नामुमकिन सा होता है क्योंकि यह बहुत जल्दी सक्रिय होती है और यह जेनेटिक भी हो सकती है.

‘‘यह बीमारी अधिकतर थायराइड, अस्थमा, मायस्थीनिया ग्रेविस आदि के मरीज में होने की संभावना अधिक होती है. एक हफ्ते में ही इस के पैच आने लगते हैं. यह मनोवैज्ञानिक तौर पर भी ग्रसित व्यक्ति को प्रभावित करती है. इस का इलाज आसान नहीं, लेकिन 30 प्रतिशत केसेज में बाल फिर से बिना इलाज के आ जाते हैं. लेकिन यह अनप्रेडिक्टिबल है.’’

एलोपेसिया कई प्रकार के होते हैं जो निम्न हैं

  • एलोपेसिया एरीएटा में सिर के सारे बाल गुच्छों में पैचेस बनाते हुए ?ाड़ते हैं, एक पैच भी हो सकता है या फिर छोटेछोटे पैचेस मिल कर पूरा गंजा भी कर सकते हैं.
  • एलोपेसिया एरिएटा से कई बार एलोपेसिया टोटालिस भी हो सकता है.
  • एलोपेसिया यूनिवर्सलिस में सिर के ही नहीं, बल्कि पूरे शरीर से बाल ?ाड़ जाते हैं.

इलाज

इस का कोई सही इलाज न होने की वजह से स्टेरौयड या कैंसर की दवाई देनी पड़ती है, जिस के साइड इफैक्ट बहुत अधिक और इफैक्ट कम होते हैं.

छुटकारा- भाग 3: पैंतरा पत्नी का

उस रात 10 बजे के करीब मयंक ने ममता को फोन किया. डर और घबराहट के कारण उस की आवाज कांप रही थी.

‘‘रितु ने खुद को बैडरूम में बंद कर लिया है. वो सिर्फ रोए जा रही है. अब तुम ही आ कर उसे समझाओ…’’ मयंक ने घबराए स्वर में उस से गुजारिश की.

‘‘क्यों रो रही है वो?’’

‘‘गुस्से में आ कर मैं ने उस पर हाथ उठा दिया था.’’

‘‘मेरे बारबार समझाने के बावजूद भी तुम ने ऐसी बेवकूफी क्यों की?’’

‘‘ये सब बातें बाद में भी हो सकती हैं. तुम जल्दी से यहां आ कर उसे…’’

‘‘मैं नहीं आ रही हूंमयंक. उस पागल ने अगर अपनी जान लेने की कोशिश कीतो मैं भी बेकार के झंझट में फंस जाऊंगी. जब तक उसे समझा ना लोतुम भी मुझ से दूर ही रहना,’’ बेहद चिंता से भरी ममता ने झटके से अपना फोन काटने के बाद उसे स्विच औफ भी कर दिया था.

उस रात रितु ने शयनकक्ष का दरवाजा तो घंटेभर बाद खोल दियापर उस की नाराजगी के चलते मयंक को ड्राइंगरूम में सोना पड़ा. रातभर ममता और मयंक दोनों ही ढंग से सो नहीं सकेपर रितु के खर्राटों की आवाज मयंक ने रात मेें कई बार सुनी थी.

अगले दिन शाम को ममता औफिस से घर लौटीतो उस ने कुछ दूरी से रितु को अपने घर की सीढ़ियों पर बैठे देख लिया. उस का सामना करने की हिम्मत वो अपने अंदर नहीं जुटा सकी और वापस घूम कर अपनी एक सहेली के घर चली गई.

जीएम से कह कर अगले दिन ही ममता ने मयंक के दूसरे विभाग में ट्रांसफर के और्डर निकलवा दिए. उस ने मयंक से मिलनाजुलना भी बंद कर दिया.

मयंक ने जब शाम को अपने ट्रांसफर की खबर रितु को सुनाईतो उस ने गहरी सांस खींचते हुए कहा, ‘‘अब मेरा मन शांत रह पाएगा.’’

‘‘अब तो उस औरत का फोन आने से तुम परेशान नहीं होगी?’’ मयंक ने उसे छाती से लगा कर सवाल पूछा.

रितु ने उस की आंखों में गहराई से झांका और एक रहस्यमयी सी मुसकान होंठों पर सजा कर बोली, ‘‘मैं अतीत को महत्व नहीं देती हूंजनाब. हमें तो बस एक ही बात का ध्यान रखना होगा.’’

‘‘किस बात का…?’’

‘‘अपने ड्राइंगरूम में हमें धीरे बोलना चाहिए. इस खिड़की के पास बाहर खड़ा हुआ इनसान अंदर की सारी बात सुन सकता है.’’

‘‘मैं कुछ समझा नहीं…’’

‘‘देरसवेर समझ जाओगेजी. अभी तो मैं आप को आप का मनपसंद सूजी का हलवा बना कर खिलाती हूं,’’ रितु ने उस के गाल पर एक छोटा सा चुंबन अंकित किया और प्रसन्न अंदाज में रसोई की तरफ बढ़ गई.

कुछ दिन पहले ड्राइंगरूम की खिड़की के बाहर खड़े हो कर उस ने मयंक और समीर के बीच हुई बातचीत को सुन लिया था.

‘‘रितु के पास सोने का दिल हैसमीर. मैं उस के साथ बेवफाई नहीं कर सकता हूं. मेरी नौकरी जाए तो जाएपर मैं ममता के साथ अब कभी नहीं सोऊंगा,’’ मयंक की इस बात को सुनरितु ने अपनी सारी नाराजगी को भुला कर उस की सहायता करने का फैसला किया था.

मयंक के कैरियर को नुकसान पहुंचाए बिना उस ने ममता के चंगुल से उसे छुटकारा दिला दिया था. योजना बना कर उस ने ममता की सुखशांति को नष्ट कर दिया था. उस ने ऐसी परिस्थितियां पैदा कर दी कि उस से दूर रहने के लिए ममता ने मयंक को अपने से दूर करने का फैसला खुद ही कर लिया था.

आस्था का व्यापार

रमेश बाबू ने दफ्तर में घुसते ही सब को ताजा खबर यों सुनाई, ‘‘नरेंद्र को उस के बीवी-बच्चों ने घर से निकाल दिया.’’

‘‘3 दिन से दफ्तर भी नहीं आया,’’ राजेश ने बात आगे बढ़ाई.‘‘यह तो होना ही  था. गलत काम का परिणाम भी गलत ही होता है,’’ सुनील ने अपना ज्ञान प्रदर्शित किया.

‘‘आजकल नरेंद्र कहां रह रहा है?’’ सब ने एक स्वर में जिज्ञासा प्रकट की.‘‘रहेगा कहां? सुनने में आया है कि वह आजकल एक ब्राह्मणी के चक्कर में था. उसी के यहां रह रहा है.  त्रिपाठी का पड़ोसी बता रहा था कि उसी विधवा ब्राह्मणी के कारण घर में झगड़ा हुआ.’’‘‘यार, नरेंद्र ने तो हद ही कर दी, घर में जवान बेटेबहू होते हुए यह सब क्या अच्छा लगता है?’’ जितने मुंह उतनी बातें.

मैं अपनी फाइलों में सिर गड़ाए सब की बातें सुन रहा था. मुझे उन की बातों से जरा भी आश्चर्य नहीं हुआ. मैं तो बहुत पहले से उस की करतूतों से परिचित था. शर्मा, ये लोग तो दफ्तर में बहुत बाद में आए. मैं ने और नरेंद्र ने बहुत लंबा समय साथसाथ बिताया है.

उन सब की बातें सुन कर मैं अतीत में खो गया.तब मैं दफ्तर में नयानया आया था. कम उम्र, अनुभव शून्य. मैं बड़ा घबराया सा रहता था. काम में गलतियां होना आम बात थी. उस समय दफ्तर में 4-5 लोग ही थे. 3 बाबू, 1 बड़े बाबू तथा 1 चपरासी. तब नरेंद्र ने मुझे काम करना सिखाया. मुझ में आत्मविश्वास जगाया. तभी से मैं उन का सम्मान करने लगा.

कई बार वे मुझे अपने घर भी ले गए. बहुत ही साधारण रहनसहन था उन का. बिलकुल एक दफ्तर के बाबू की तरह. पूरे महीने काम करने पर जो तनख्वाह मिलती थी, वह सैकड़े में ही होती थी. आजकल की तरह उस समय वेतन हजारों में कहां मिलता था? खींचतान कर महीना पूरा होता था. उस समय दफ्तरों के बाबुओं की स्थिति बड़ी दयनीय थी. नरेंद्रजी का बड़ा परिवार था. सब बच्चों को उच्च शिक्षा दिलाना तो दूर रोजमर्रा की जरूरतें पूरी करना भी कठिन था. उन के 2 लड़के 10वीं पास कर के दुकानों में नौकरी करने लगे थे. जवान लड़की दहेज के अभाव के कारण घर में कुंआरी बैठी थी. उन्हीं दिनों नरेंद्रजी के रहनसहन में एक बदलाव दिखा. वे पैंटशर्ट के स्थान पर धोतीकुरता पहन कर दफ्तर आने लगे. माथे पर बड़ा सा चंदन का टीका लगाए रखते. पूछने पर कहने लगे, ‘हमारे घर के पास ही एक पुजारीजी का?घर है. वे वृद्ध हैं, अत: सुबह उठ कर उन की मदद कर देता हूं तो वे मुझे प्रेम से यह टीका लगा देते हैं. इस में मेरा भी लाभ है, उन का भी लाभ है.’ इतना बता कर वे मुसकराने लगे.

इस के बाद से ही धीरेधीरे उन के विषय में कई समाचार छनछन कर दफ्तर में आने लगे. वे अधिकतर अवकाश पर रहने लगे. कोई आ कर बताता कि नरेंद्रजी पुजारी के घर के मालिक बन गए हैं. कभी सुनने में आता कि बूढ़ा पुजारी लापता हो गया है. जितने मुंह उतनी बातें.

कई दिन बाद नरेंद्रजी दफ्तर आए. बड़े थकेथके से लग रहे थे. पूछने पर कहने लगे, ‘पुजारीजी बीमार हो गए. उन्हीं की सेवाटहल में लगा हुआ था. पिछले सप्ताह उन की मृत्यु हो गई. मृत्यु से पूर्व उन्होंने मंदिर की सारी जिम्मेदारी मेरे कंधों पर डाल दी.

‘अब तो जैसे भी होगा मुझे ही यह कार्य संभालना है. इसी कारण दफ्तर नहीं आ पाया. कुछ भी समझ में नहीं आ पा रहा है कि दफ्तर एवं मंदिर दोनों का काम कैसे संभाल पाऊंगा.’

‘सब संभल जाएगा आप परेशान न हो,’ मैं ने उन्हें सांत्वना दी. ऐसे ही कई माह बीत गए. एक दिन सुनील ने आ कर बताया, ‘यार, यह नरेंद्र बड़ा चमत्कारी निकला. मंदिर में तो रौनक लगी ही रहती है. मंदिर के आसपास ‘मंगल बाजार’ लगने लगा है. बाजार का सारा नियंत्रण नरेंद्र के हाथ में है. वे दुकानदारों से कमीशन वसूलते हैं. पैसा बरस रहा है.’

कोई समाचार लाता, ‘अरे, पुजारी अपनी मौत थोड़े ही मरा है. उसे तो नरेंद्र ने कागजों पर अंगूठा लगवा कर मार डाला.’

क्या सच है, क्या झूठ, कुछ समझ में नहीं आ रहा था. जितने मुंह उतनी बातें.

एक दिन रास्ते से पकड़ कर नरेंद्रजी मुझे मंदिर ले गए और पूरा मंदिर दिखाया. मंदिर परिसर में पुजारी का आवास देख कर मैं चकित रह गया. पांचसितारा होटलों वाली सभी सुविधाएं वहां मौजूद थीं. वहां का वैभव देख कर मुझे जरा भी संशय नहीं रहा कि दफ्तर के लोग झूठी अफवाएं फैला रहे हैं. ‘करोड़ों की संपत्ति क्या कभी सही रास्ते से प्राप्त होती है?’ मैं भी सोचने लगा.

सोने की मोटी चेन, सिल्क का कुरतापाजामा, पशमीना शाल और माथे पर लाल चंदन का तिलक. इसी वेशभूषा में अब नरेंद्रजी नजर आते थे. पत्नी भी सोने के भारीभारी गहने पहन कर सुबहशाम 108 दीपकों की आरती करती. साथ में प्रसाद का थाल लिए बच्चे, भक्तों की भीड़ को संभाल रहे होते. हनुमान की असीम कृपा चढ़ावे के रूप में नरेंद्रजी के आंगन में बरस रही थी.

उन के दोनों बेटों की पत्नियां संपन्न परिवारों से आई थीं. 8वीं पास पुत्री का विवाह बनारस के संपन्न कर्मकांडी ब्राह्मण के इंजीनियर लड़के से हो गया था. बड़ा सुखमय जीवन व्यतीत कर रहा था उन का परिवार.

एक दिन दफ्तर आ कर नरेंद्रजी कहने लगे, अंगरेजी में एक विज्ञापन का मसौदा बना दो. जैसा प्राय: दक्षिण भारत के मंदिरों का इधर के अखबारों में छपता है : भगवान के चरणों में दक्षिणा भेजिए, दुखों से मुक्ति पाइए. बदले में मनीआर्डर प्राप्त होने पर कष्टों से मुक्ति के लिए भगवान के श्रीचरणों का प्रसाद एवं भभूति पार्सल द्वारा भेजी जाएगी. इस प्रकार का विज्ञापन लिखने को उन्होंने मुझ से कहा. मैं ने उन के निर्देशानुसार विज्ञापन का प्रारूप तैयार कर के उन्हें दे दिया.

जल्द ही उन का विज्ञापन दक्षिण भारत के अखबारों में छपने लगा. परिणामस्वरूप 100, 200 एवं 500 रुपए के मनीआर्डर प्राप्त होने लगे. आशीर्वाद स्वरूप नरेंद्रजी बजरंगबली का लाल चोला, सिंदूर, भक्तों को प्रसाद भिजवाने लगे. पूरी रात बैठ कर परिवार के लोग प्रसाद के पैकेट बनाते. हजारों की संख्या में मनीआर्डर आ रहे थे, उसी अनुपात में प्रसाद भेजा जा रहा था. जैसी दक्षिणा वैसा प्रसाद.

वे प्राय: मुझ से कहते कि इनसान को धोखा देना कितना सरल है. दुनिया में दुखी इनसान भरे पड़े हैं. हर दुखी व्यक्ति बस, एक बार मेरे झांसे में आ जाए, इस से ज्यादा की आवश्यकता नहीं है मुझे.

कई वर्ष तक उन का यह धंधा निर्बाध चलता रहा. आखिर में उन्होंने जब मनीआर्डर के बदले प्रसाद भेजना बंद कर दिया तब यह सिलसिला स्वत: ही बंद हो गया. उस समय तक वे अंधभक्तों को काफी लूट चुके थे.

नरेंद्रजी की बातें कभीकभी मुझे वितृष्णा से भर देतीं. मैं सोचता, ‘धर्म की आड़ में यह कैसा खेल खेला जा रहा है? आस्था के नाम पर लूटखसोट का व्यापार सदियों से चला आ रहा है. पाखंडी पंडेपुजारी बड़ी सफाई से इस खेल को खेल रहे हैं. दुखों में डूबा इनसान शांति पाने के लिए अपना सब कुछ लुटाने को तैयार रहता है. इसी का फायदा नरेंद्रजी जैसे अवसरवादी ब्राह्मण उठा रहे हैं.

नरेंद्रजी का रिटायरमैंट करीब आ रहा था. वे आजकल बहुत कम दफ्तर आते. उन्होंने अपने और भी काम फैला लिए थे. जैसे उन्होंने ब्राह्मणों की एक टीम बना ली थी जो घरघर जा कर पाठहवन आदि करवाते थे. तेरहवीं एवं बरसी पर जो दक्षिणा मिलती थी उस का बड़ा हिस्सा कमीशन के रूप में त्रिपाठीजी को मिलता था.

एक दिन दफ्तर में आ कर उन्होंने बताया कि उन्होंने जन्मपत्री बनाने का काम भी शुरू कर दिया है. कोई बनवाना चाहे तो बताना.

‘आप न तो संस्कृत जानते हैं न ज्योतिषशास्त्र, तब आप जन्मपत्री कैसे बना लेते हैं?’ मैं ने उत्सुकता से पूछा.

‘मैं एक ज्योतिषी से कमीशन पर जन्मपत्रियां बनवाता हूं. एक जन्मपत्री का 100 रुपए मुझे मिलता है. 25 रुपए पंडित को दे देता हूं. 4-5 जन्मपत्रियां हर रोज बनने के लिए आ जाती हैं. पूजापाठ के अन्य काम भी मंदिर के द्वारा ही आते हैं जो मैं अन्य ब्राह्मणों में बांट देता हूं. मेरा भी फायदा, उन का भी फायदा. है न फायदा ही फायदा,’ वे मुसकराने लगे.

उन की बातों से मैं स्तब्ध रह गया. इधर दफ्तर के लोग उन के निर्वासन को ले कर चर्चा करने में व्यस्त थे. मैं वर्तमान में लौट आया.

‘‘जिस विधवा ब्राह्मणी के कारण नरेंद्रजी घर से निकाले गए उस किस्से का ज्ञान मुझे बहुत पहले से था. वह विधवा और कोई नहीं, उन के परम मित्र की पत्नी है. यह बात भी नरेंद्रजी ने बहुत पहले मुझे बताई थी.

रघुवर दयाल मिश्र नाम था उन का. वे बहुत ही संपन्न परिवार से थे. संतानहीनता का दुख उन्हें चैन से न बैठने देता था. संतान के लिए क्या कुछ नहीं किया उन्होंने. पूजापाठ, तीर्थ, दानव्रत सभी कुछ कर चुके थे. संतान नहीं होनी थी, सो नहीं हुई. इसी दुख के कारण उन्होंने चारपाई पकड़ ली. बीमारी शारीरिक से अधिक मानसिक थी. कोई भी दवा कारगर नहीं हुई. रोग असाध्य हो गया जो उन की जान ले कर गया. उस समय नरेंद्रजी को मित्र की विधवा से बहुत सहानुभूति हुई. उन्हें सांत्वना देने वे प्राय: उन के घर जाते. सांत्वना कब आकर्षण में बदल गई, यह दोनों को ही बहुत बाद में पता चला.

दोस्त की पत्नी उन पर इतना विश्वास करने लगी कि उस ने अपना आलीशान मकान एवं जमाजमाया व्यवसाय नरेंद्रजी के नाम कर दिया. लोगों का क्या है वे तो यह भी कहने से नहीं चूके कि प्यार की आड़ में नरेंद्र ने विधवा को लूट लिया.

लोगों की बात गलत भी नहीं थी क्योंकि आजकल वे ज्यादातर उसी के घर पर रहते थे. पत्नी एवं बच्चों को उन का आचरण नागवार लगता था. आएदिन घर में कलह होती थी. उसी कलह का परिणाम था कि नरेंद्रजी को घर से निकाला गया. दरअसल, कोई भी स्त्री पति के सौ अपराध माफ कर सकती है पर अपने प्रति की गई उस की बेवफाई नहीं सह सकती.

‘अब क्या होगा नरेंद्र का?’ यह प्रश्न दफ्तर में सभी की जबान पर था. मैं चूंकि उन के काफी करीब था इसलिए इस का आभास मुझे पहले से ही था. परिणति तो अब जा कर हुई है.

हर स्किन पर सूट करे सेंसीबायो जैल फेसवाश

बात अगर चेहरे की आए तो कोई भी महिला इससे कोम्प्रोमाईज़ नहीं करना चाहती . क्योंकि चेहरे की खूबसूरती हमारी ओवरआल सुंदरता को बढ़ाने का काम जो करती है. फिर चाहे हम कैसा भी आउटफिट पहन लें, वे हमारे चेहरे पर फब ही जाता है. लेकिन अगर चेहरा बेजान व डल है, वे हाइड्रेट नहीं है, तो चाहे आप कितना भी अच्छा मेकअप कर लें या फिर आउटफिट्स पहन लें, वे आप पर सूट ही नहीं करेगा . ऐसे में बस आप मन ही मन यही सोच कर परेशान रहती हैं कि फेस पर कौन सा ब्यूटी ट्रीटमेंट किया जाए या कौन सा ब्यूटी प्रोडक्ट लगाया जाए , जिससे चेहरा साफ भी हो जाए , साथ ही स्किन पर मोइस्चर भी बना रहे. ऐसे में बायोडर्मा का सेंसीबायो जैल moussant आपकी स्किन के लिए मैजिक का काम करेगा. तो आइए जानते हैं इस बारे में.

– जेंटल क्लीन योर स्किन

स्किन पर जितने हार्श प्रोडक्ट लगाए जाते हैं , उतना ही स्किन का मोइस्चर खत्म होने लगता है. लेकिन आज मार्केट में हमारे सामने इतने ज्यादा ब्यूटी प्रोडक्ट्स मौजूद हैं कि हमारी स्किन प्रोब्लम हमारे सामने होते हुए भी हम ब्यूटी प्रोडक्ट्स का चुनाव ठीक से नहीं कर पाते हैं. जिसका नतीजा स्किन डल होने के साथ अपनी नेचुरल ब्यूटी को भी खोने लगती है. ऐसे में बायोडर्मा का सेंसीबायो जैल moussant आपकी स्किन को जेंटली क्लीन करके स्किन को लंबे समय तक हाइड्रेट रखने का भी काम करता है. साथ ही सेंसिटिव स्किन के लिए भी काफी सूटेबल है. यानि इसे लगाने के बाद न तो स्किन पर किसी तरह की कोई जलन होती है और न ही आंखों में.

क्यों है खास

इसमें ऐसे खास इंग्रीडिएंट्स का इस्तेमाल किया गया है, जो स्किन प्रोब्लम्स को ठीक करके स्किन के लिए किसी न्यूट्रिशन से कम नहीं होते हैं , जिससे स्किन इसके कुछ ही अप्लाई के बाद महक उठती है. आपको बता दें कि इसमें विटामिन इ , विटामिन सी की मौजूदगी, जो स्किन के कोलेजन निर्माण में मदद करने के साथ स्किन को यंग दिखाने का काम करती है. साथ ही स्किन के हैल्थी बैक्टीरिया , जो एनवायरर्मेंटल डैमेज से स्किन को बचाने का काम करते हैं , ऐसे में इसमें प्रीबायोटिक स्किन को न्यूट्रिशन प्रदान करके स्किन को हैल्दी रखने में मदद करते हैं. साथ ही इसमें एंटीओक्सीडैंट्स आपकी स्किन को फ्री रेडिकल्स व यूवी किरणों से बचाने का काम करते हैं . ये पावरफुल एंटीएजिंग का भी काम करते हैं. ऐसे में इसमें वो सभी इंग्रीडिएंट्स मौजूद हैं , जो स्किन को बिना कोई नुकसान पहुंचाए स्किन की हैल्थ के लिए काफी अहम हैं. ये स्किन की एपरडर्मिस यानि आउटर लेयर को क्लीन करके दागधब्बो को भी कम करते हैं , साथ ही सीबम सेक्रेशन को सीमित करते हैं . इसका सोप फ्री फार्मूला स्किन के पीएच लेवल को बैलेंस में रखता है.

सेंसिटिव स्किन को क्यों है खास केयर की जरूरत

2019 में फ्रंटियर ओफ मेडिसिन में प्रकाशित एक रिसर्च के अनुसार, 60 – 70 पर्सेंट महिलाओं की स्किन सेंसिटिव होती है. जिसकी वजह से स्किन में रेडनेस, डॉयनेस, इचिंग की समस्या सबसे ज्यादा देखने को मिलती है. क्योंकि सेंसिटिव स्किन नाज़ुक होने के कारण पोलुशन , स्ट्रेस व मेकअप से खुद को बचाने में ज्यादा सक्षम नहीं होती है. और अगर ऐसी स्किन पर हार्श व केमिकल वाले प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल ज्यादा किया जाता है तो स्किन ड्राई होकर स्किन की हालत और खराब हो सकती है. ऐसी स्किन की माइल्ड ब्यूटी प्रोडक्ट्स से केयर करने की जरूरत होती है. ऐसे में ये माइल्ड जैल फेसवाश, जिसका सोप फ्री फार्मूला स्किन पर बिना कोई साइड इफ़ेक्ट दिए स्किन को स्मूद बनाने का काम करता है. इसकी खास बात यह है ये है कि ये स्किन से सिर्फ गंदगी को रिमूव करता है न कि स्किन के नेचुरल आयल को.

बता दें कि ये जैल moussant नोन कोमेडिक और फ्रैग्रैंस फ्री है. यानि ये पोर्स को क्लोग नहीं करता, साथ ही इससे स्किन पर किसी भी तरह की कोई एलर्जी , जलन नहीं होती है. इसे आप सुबह व शाम इस्तेमाल करके कुछ ही हफ्तों में अपने चेहरे पर बेहतरीन रिजल्ट देख सकते हैं. .

बौक्स मैटर डीएएफ काम्प्लेक्स

इसका डीएएफ काम्प्लेक्स , ऐसे एक्टिव इंग्रेडिएंट्स से मिलकर बना है, जो सेंसिटिव स्किन की टोलरैंस क्षमता को बढ़ाने का काम करते हैं. इसमें है कोको ग्लूकोसीडजैसा एक्टिव इंग्रीडिएंट , जो फोमिंग एजेंट का काम करने के साथ नेचुरल होता है. जो स्किन को किसी भी तरह का कोई नुकसान नहीं पहुंचाता है. यानि हर स्किन के लिए पूरी तरह से सेफ है.

इन बातों का भी रखें ख्याल

– हमेशा ऐसे ब्यूटी प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल करें जो जेंटल हो.

– स्किन की क्लींजिंग व मॉइस्चराइजिंग जरूर करें.

– स्किन की बाहर से केयर करने के साथसाथ स्किन को अंदर से भी हैल्दी बनाने के लिए विटामिन्स, मिनरल्स से भरपूर डाइट लें.

– सेंसिटिव स्किन वालों को स्किन को टॉवल से क्लीन करने के बजाह फेसिअल क्लीनिंग वाइप्स से स्किन को क्लीन करने की कोशिश करनी चाहिए.

ज्योति- भाग 2: क्या सही था उसका भरोसा

कुछ झिझकते हुए वह औरत अंदर आई. गेहुंए रंग की गठीले बदन वाली वह औरत नजरें चारों तरफ घुमा कर उस अस्तव्यस्त कमरे का बारीकी से मुआयना करने लगी. बेतरतीब पड़ी बिस्तर की चादर, कुरसी की पीठ पर लटका गीला तौलिया, फर्श पर उलटीसीधी पड़ी चप्पलें.

‘‘हमें सुबह का नाश्ता और रात का खाना चाहिए. दिन में हम लोग औफिस में होते हैं, तो बाहर ही खा लेते हैं,’’ सुमित ने उस का ध्यान खींचा.

मनीष भी सुमित के पास आ कर खड़ा हो गया.

‘‘कितने लोगों का खाना बनेगा?’’ औरत ने सुमित से पूछा.

‘‘कुल मिला कर 3 लोगों का, हमारा एक और दोस्त है, वह अभी घर पर नहीं है.’’

औरत ने सुमित को महीने की पगार बताई और साथ ही, यह भी कि वह एक पैसा भी कम नहीं लेगी.

दोनों दोस्तों ने सवालिया निगाहों से एकदूसरे की तरफ देखा. पगार थोड़ी ज्यादा थी, मगर और चारा भी क्या था. ‘‘हमें मंजूर है,’’ सुमित ने कहा. आखिरकार खाने की परेशानी तो हल हो जाएगी.

‘‘ठीक है, मैं कल से आ जाऊंगी,’’ कहते हुए वह जाने के लिए उठी.

‘‘आप ने नाम नहीं बताया?’’ सुमित ने उसे पीछे से आवाज दी.

‘‘मेरा नाम ज्योति है,’’ कुछ सकुचा कर उस औरत ने अपना नाम बताया और चली गई.

दूसरे दिन सुबह जल्दी ही ज्योति आ गई थी. रसोई में जो कुछ भी पड़ा था, उस से उस ने नाश्ता तैयार कर दिया.

आज कई दिनों बाद सुमित और मनीष ने गरम नाश्ता खाया तो उन्हें मजा आ गया. रोहन अभी तक सो रहा था, तो उस का नाश्ता ज्योति ने ढक कर रख दिया था.

‘‘भैयाजी, राशन की कुछ चीजें लानी पड़ेंगी. शाम का खाना कैसे बनेगा? रसोई में कुछ भी नहीं है,’’ ज्योति दुपट्टे से हाथ पोंछते हुए सुमित से बोली.

सुमित ने एक कागज पर वे सारी चीजें लिख लीं जो ज्योति ने बताई थीं. शाम को औफिस से लौटता हुआ वह ले आएगा.

रोहन को अब तक इस सब के बारे में कुछ नहीं पता था. उसे जब पता चला तो उस ने अपने हिस्से के पैसे देने से साफ इनकार कर दिया. ‘‘बहुत ज्यादा पगार मांग रही है वह, इस से कम पैसों में तो हम आराम से बाहर खाना खा सकते हैं.’’

‘‘रोहन, तुम को पता है कि बाहर का खाना खाने से मेरी तबीयत खराब हो जाती है. कुछ पैसे ज्यादा देने भी पड़ रहे तो क्या हुआ, सुविधा भी तो हमें ही होगी.’’

‘‘हां, सुमित ठीक कह रहा है. घर के बने खाने की बात ही कुछ और है,’’ सुबह के नाश्ते का स्वाद अभी तक मनीष की जबान पर था.

लेकिन रोहन पर इन दलीलों का कोई असर नहीं पड़ा. वह जिद पर अड़ा रहा कि वह अपने हिस्से के पैसे नहीं देगा और अपने खाने का इंतजाम खुद कर कर लेगा.

‘‘ठीक है, जैसी तुम्हारी मरजी’’, सुमित बोला, उसे पता था रोहन अपने मन की करता है.

थोड़े ही दिनों में ज्योति ने रसोई की बागडोर संभाल ली थी. ज्योति के हाथों के बने खाने में सुमित को मां के हाथों का स्वाद महसूस होता था.

ज्योति भी उन की पसंदनापसंद का पूरा ध्यान रखती. अपने परिवार से दूर रह रहे इन लड़कों पर उसे एक तरह से ममता हो आती. अन्नपूर्णा की तरह अपने हाथों के जादू से उस ने रसोई की काया ही पलट दी थी.

कई बार औफिस की भागदौड़ से सुमित को फुरसत नहीं मिल पाती तो वह अकसर ज्योति को ही सब्जी वगैरह लाने के पैसे दे देता.

जिन घरों में वह काम करती थी, उन में से अधिकांश घरों की मालकिनें अव्वल दर्जे की कंजूस और शक्की थीं. नापतौल कर हरेक चीज का हिसाब रख कर उसे खाना पकाना होता था. सुमित या मनीष ज्योति से कभी, किसी चीज का हिसाब नहीं पूछते थे. इस बात से उस के दिल में इन लड़कों के लिए एक स्नेह का भाव आ गया था.

अपनी हलकी बीमारी में भी वह उन के लिए खाना पकाने चली आती.

एक शाम औफिस से लौटते वक्त रास्ते में सुमित की बाइक खराब हो गई. किसी तरह घसीटते हुए उस ने बाइक को मोटर गैराज तक पहुंचाया.

‘‘क्या हुआ? फिर से खराब हो गई?,’’ गैराज में काम करने वाला नौजवान शकील ग्रीस से सने हाथ अपनी शर्ट से पोंछता हुआ सुमित के पास आया.

‘‘यार, सुरेश कहां है? यह तो उस के हाथ से ही ठीक होती है, सुरेश को बुलाओ.’’

जब भी उस की बाइक धोखा दे जाती, वह गैराज के सीनियर मेकैनिक सुरेश के ही पास आता और उस के अनुभवी हाथ लगते ही बाइक दुरुस्त चलने लगती.

शकील सुरेश को बुलाने के लिए गैराज के अंदर बने छोटे से केबिन में चला गया. थोड़ी ही देर में मध्यम कदकाठी के हंसमुख चेहरे वाला सुरेश बाहर आया. ‘‘माफ कीजिए सुमित बाबू, हम जरा अपने लिए दोपहर का खाना बना रहे थे.’’

‘‘आप अपना खाना यहां गैराज में बनाते हैं? परिवार से दूर रहते हैं क्या?’’ सुमित ने हैरानी से पूछा. इस गैराज में वह कई सालों से काम कर रहा था. अपने बरसों के अनुभव और कुशलता से आज वह इस गैराज का सीनियर मेकैनिक था. ऐसी कोई गाड़ी नहीं थी जिस का मर्ज उसे न पता हो, इसलिए हर ग्राहक उसे जानता था.

‘‘अब क्या बताएं, 2 साल पहले घरवाली कैंसर की बीमारी से चल बसी. तब से यह गैराज ही हमारा घर है. कोई बालबच्चा हुआ नहीं, तो परिवार के नाम पर हम अकेले हैं. बस, कट रही है किसी तरह. लाइए, देखूं क्या माजरा है?’’

‘‘सुरेश, पिछली बार आप नहीं थे तो राजू ने कुछ पार्ट्स बदल कर बाइक ठीक कर दी थी. अब तो तुम्हें ही अपने हाथों का कमाल दिखाना पड़ेगा,’’ सुमित बोला.

सुरेश ने दाएंबाएं सब चैक किया, इंजन, कार्बोरेटर सब खंगाल डाला. चाबी घुमा कर बाइक स्टार्ट की तो घरर्रर्र की आवाज के साथ बाइक चालू हो गई.

‘‘देखो भाई, ऐसा है सुमित बाबू, अब इस को तो बेच ही डालो. कई बरस चल चुकी है. अब कितना खींचोगे? अभी कुछ पार्ट्स भी बदलने पड़ेंगे. उस में जितना पैसा खर्च करोगे उस से तो अच्छा है नई गाड़ी ले लो.’’

‘‘तुम ही कोई अच्छी सी सैकंडहैंड दिला दो,’’ सुमित बोला.

‘‘अरे यार, पुरानी से अच्छा है नईर् ले लो,’’ सुरेश हंसते हुए बोला.

‘‘बात तो तुम्हारी सही है, मगर थोड़ा बजट का चक्कर है.’’

‘‘हूं,’’ सुरेश कुछ सोचने की मुद्रा में बोला, ‘‘कोई बात नहीं, बजट की चिंता मत करो. मेरा चचेरा भाई एक डीलर के पास काम करता है. उस को बोल कर कुछ डिस्काउंट दिलवा सकता हूं, अगर आप कहो तो.’’

सुमित खिल गया, कब से सोच रहा था नई बाइक लेने के लिए. कुछ डिस्काउंट के साथ नई बाइक मिल जाए, इस से बढि़या क्या हो सकता था. उस ने सुरेश का धन्यवाद किया और नई बाइक लेने का मन बना लिया.

‘‘ठीक है सुरेश, मैं अगले ही महीने ले लूंगा नई गाड़ी. बस, आप जरा डिस्काउंट अच्छा दिलवा देना.’’

‘‘उस की फिक्र मत करो सुमित बाबू, निश्ंिचत रहो.’’

तीर्थयात्रा एडवेंचर टूरिज्म नहीं है

आज नेहा बहुत खुश थी. काफी समय से वह अपने पूरे परिवार के साथ अमरनाथ की यात्रा पर जाने की इच्छुक थी. आज जब पति ने इन छुट्टियों में वहां जाने का प्लान फाइनल किया तो उस का दिल खिल उठा. पर एक सवाल उस के मन में कौंध रहा था. उस के सासससुर की उम्र अधिक हो चुकी थी. ऐसे में क्या वे अमरनाथ की गुफा तक का कठिन सफर तय कर पाएंगे? इस का समाधान भी पति ने तुरंत कर दिया.

दरअसल अब यात्रियों के लिए वहां हेलीकौप्टर की सुविधा उपलब्ध है. उन लोगों ने तय किया कि आगे का सफर हेलीकौप्टर से ही तय करेंगे .नेहा के प्रति राकेश ने एजेंट के जरिए 3 नाइट्स और 4 डेज का पैकेज बुक करा लिया.

श्रीनगर पहुंच कर वे सोनमार्ग की ओर निकले. हालांकि इन दोनों के बीच की दूरी मात्र 120 किलोमीटर थी मगर भारी भीड़ और ट्रैफिक जाम की वजह से 4 से 5 घंटे लग गए. वहां पहुंच कर उन्होंने एक होटल में रात बिताई और सुबहसुबह मुख्य यात्रा के लिए निकल पड़े.हेलीकॉप्टर बालटाल से मिलना था. उन्हें सुबह 9 बजे बालटाल पहुँचने को  कहा गया था. वे यह सोच कर 6 बजे पहुंच गए कि फर्स्ट कम फर्स्ट सर्व के नियम के मुताबिक शायद उन्हें पहले मौका मिल जाए. मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ और उन्हें 9 बजे तक इंतजार करना पड़ा.

हेलीपैड पर हद से ज्यादा भीड़ और शोरशराबा मचा हुआ था. एजेंट्स ने पैसेंजर्स को मूर्ख बनाया था. इतनी ज्यादा ओवरबुकिंग थी की टिकट पर लिखे समय के मुताबिक टेकऑफ होना नामुमकिन था. करीब 3 घंटे की जद्दोजहद के बाद फाइनली उन्हें बोर्डिंग पास मिल गया . करीब 1 बजे तक उन का नंबर आया और अंततः वे पंचतरणी पहुंच गए. वहां से गुफा की दूरी 7 किलोमीटर थी मगर इतनी ज्यादा भीड़ और धक्कामुक्की हो रही थी कि गुफा तक पहुंचतेपहुंचते 5 घंटे और बीत गए. शरीर बेदम हो रहा था और सोने पर सुहागा यह हुआ कि इस भीड़ में नेहा का मोबाइल भी किसी ने मार लिया. इसी दौरान बारिश शुरु हो गई. तापमान प्लस 15 से गिर कर जीरो डिग्री पर पहुंच गया. राकेश ने जल्दी से पैरंट्स के लिए एक टेंट बुक किया. किसी तरह चाय का इंतजाम किया और फिर थोड़ी देर में दर्शन के लिए निकल पड़े. वहां पालकी की सुविधा मौजूद थी मगर इस के लिए भी काफी जेब ढीली करनी पड़ी.

शाम 7 बजे तक वे दर्शन कर के फ्री हुए. अंधेरा भी गहरा हो चुका था. इसलिए उन लोगों को रात टैंट में बिताने का फैसला लेना पड़ा. टैंट के लिए भी प्रति व्यक्ति 3 से 4 सौ देने पड़े. सब भूखप्यास से व्याकुल हो रहे थे. चोटी पर भंडारे चल रहे थे मगर नेहा के परिवार के लोग इतने थक चुके थे कि किसी के भी शरीर में इतनी ताकत नहीं बची कि वह जा कर भंडारे से खाने का सामान ले कर आ सकें. उन लोगों ने भूखे पेट ही सोने का फैसला लिया पर यों सोना भी सहज नहीं था. ठंड इतनी ज्यादा थी कि कंबल के बावजूद वे पूरी रात कांपते रहे.

जहां तक बात वाशरूम फैसिलिटी की थी तो वहां की हालत तो बहुत ही दयनीय थी. गंदगी इतनी जैसे बीमारियों का घर. वह रात नेहा को इतनी भयानक लगी कि वह एकएक पल गिनती रही कि कब सुबह हो और कब वे वापस लौटे.

6 बजे वे पंचतरणी ( 7किलोमीटर ) के लिए निकले. लौटते समय केवल दोढाई घंटे लगे पर हेलीपैड पर एक बार फिर चार-पांच घंटे इंतजार करना पड़ा. 1 बजे के करीब जब वे वापस लौटे तब तक शारीरिक मानसिक रूप से इतने थक चुके थे , इतने त्रस्त हो चुके थे कि कुछ भी करने की स्थिति में नहीं थे.

वास्तव में तीर्थयात्राएं ऐसे लोगों के लिए हैं जिन्हे लगता है कि वे सफर में जितनी ज्यादा तकलीफ और चुनौतियां सहेंगे उन पर उतनी ही ज्यादा दैव कृपा बरसेगी. पूरे सफर में आनद या रोमांच कहीं नहीं होता.

भारत के कई तीर्थस्‍थल आज भी बेहद दुर्गम मार्गों पर स्थित हैं. इन तीर्थस्‍थलों का रास्‍ता ऊंची चढ़ाई, प्राकृतिक आपदाओं से घिरे हजारों मीटर ऊंचे पर्वतों के  बीच से गुजरता हुआ किसी ऊंचे शिखर पर पहुंचता है. विषम जलवायु, जानलेवा  मौसम और कठिन से कठिन  परिस्थ‍ित‍यों के बावजूद हर साल लाखों लोग तीर्थों पर जाते हैं ताकि भगवान को पा सकें. भगवान का तो पता नहीं पर कई बार ऐसे प्रयासों में वे भगवान को प्यारे जरूर हो जाते हैं. कई लोग गंभीर बीमार का शिकार हो कर दम तोड़ देते हैं , कई  दुर्घटनाओं का शिकार होते हैं  तो  कई कुदरत के अचानक बदले तेवरों से असामयिक  मौत की भेंट चढ़ जाते हैं. आइए आप को बताते हैं,  भारत के कुछ ऐसे तीर्थस्‍थलों के बारे में जहां जाना एक तरह से मौत को हाथ में ले कर चलने के बराबर है.

  1. कैलाश मानसरोवर

यह भारत के सब से दुर्गम तीर्थस्‍थानों में से एक है. पूरा कैलाश पर्वत 48 किलोमीटर में फैला हुआ है और इस की ऊंचाई समुद्र तल से लगभग 4556  मीटर है. इस यात्रा का सब से  अधिक कठिन मार्ग भारत के पड़ोसी देश चीन से हो कर जाता है. यह यात्रा करीब 28 दिन की होती है.

2. अमरनाथ

अमरनाथ भी बेहद दुर्गम  तीर्थस्‍थलों में से एक है. श्रीनगर शहर के उत्तरपूर्व में 135 किलोमीटर दूर यह तीर्थस्‍थल समुद्रतल से 13600 फुट की ऊंचाई पर स्थित है.  यहां तापमान अक्‍सर शून्य से नीचे चला जाता है. यहां बारिश, भूस्‍खलन आदि कभी भी हो सकते हैं. सुरक्षा की दृष्टि से बेहद  संवेदनशील और  संदिग्ध   मानी जाने वाली इस यात्रा के लिए पहले से रजिस्‍ट्रशेन कराना होता है. बीमार और कमजोर यात्री अक्‍सर लौटा दिए जाते हैं.

3. वैष्‍णोदेवी

वैष्‍णो देवी जम्मूकश्‍मीर के कटरा जिले में स्थित तीर्थस्‍थल है. यह मंदिर 5,200  फ़ीट की ऊंचाई और कटरा से लगभग 12 किलोमीटर (7.45 मील) की  दूरी पर मौजूद है. मंदिर में जाने की यात्रा बेहद दुर्गम है. कटरा से 14 किमी की खड़ी चढ़ाई पर वैष्‍णोदवी की गुफा है.

4.  हेमकुंड साहेब

हेमकुंड साहेब सिखों का तीर्थस्थल है. यहां पहुंचने की राह  बहुत ही दुर्गम है. यह तकरीबन 19 किलोमीटर की पहाड़ी यात्रा है. पैदल या खच्‍चरों पर पूरी होने वाली यात्रा  में जान का जोखिम भी होता है.

5. बद्रीनाथ

उत्‍तराखंड में अलकनंदा नदी के बाएं तट पर नर और नारायण नाम की 2 पर्वत श्रेणियों के बीच स्थित बद्रीनाथ भी एक तीर्थस्‍थल है जहां पहुंचने की  यात्रा भी बेहद दुर्गम है. हर साल यहां लाखों लोग पहुंचते हैं.

6. गंगोत्री और यमनोत्री

गंगोत्री और यमुनोत्री दोनों ही उत्तरकाशी जिले में हैं. दुर्गम चढ़ाई होने के कारण लोग  इस उद्गम स्थल को देखने की हिम्‍मत नहीं जुटा पाते. यहां 5 किलोमीटर की सीधी खड़ी चढ़ाई है. इसी तरह गंगोत्री गंगा नदी का उद्गम स्थान है. गंगा का मंदिर, समुद्र तल से 3042 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. यह  स्थान उत्तरकाशी से 100 किमी की दूरी पर स्थित है.

जरा इस समाचारों पर गौर करें ;

त्रिकुटा की पहाड़ियों पर लगी आग, फंसे वैष्णो देवी गए 25 हजार श्रद्धालु

मई 23, 2018

कटरा जिले में वैष्णो देवी गए 25 हजार लोगों को मुश्किलों का सामना करना पड़  रहा है. यहां त्रिकुटा की पहाड़ियों के जंगलों में आग लग गई. जिस के बाद कई सारी सेवाओं को बंद करना पड़ा.

यमुनोत्री व केदारनाथ में हार्ट अटैक से चार यात्रियों की मौत

23 मई , 2018, यमुनोत्री मार्ग पर चारधाम यात्रा के दौरान दम फूलने और हार्टअटैक से 4 यात्रियों की मौत हो गई. इस के साथ ही यमुनोत्री व केदारनाथ में हार्ट अटैक से मरने वाले यात्रियों की संख्या 39 हो गई है जब कि चारों धाम में यह आकंड़ा 42 पहुंच गया है. गौरतलब है कि केदारनाथ की यात्रा के लिए लगभग 18 किलोमीटर की यात्रा पैदल चल कर करनी पड़ती है.

गंगासागर में भगदड़

15 जनवरी 2017, पश्चिम बंगाल के प्रसिद्ध गंगासागर मेले में मकर संक्रांति के मौके पर भगदड़ मचने से 6 श्रद्धालुओं की मौत हो गई जब कि 15 से ज्यादा लोग जख्मी हुए .सरकार ने मारे गए लोगों के परिवार वालों को 5-5 लाख रुपये मुआवजा देने का ऐलान किया. कोलकाता से 100 किलोमीटर दूर दक्षिण चौबीस परगना जिले में स्थित सागर द्वीप पर हर साल मकर संक्रांति के मौके पर गंगासागर मेले का आयोजन होता है. यह हादसा गंगासागर के कुचुबेरिया इलाके में हुआ है.

फरवरी, 07 2019

वृंदावन के एक आश्रम के कमरे में एक युवक का बिस्तर पर खून से लथपथ शव पड़ा मिला. पुलिस तफ्तीश के मुताबिक गौधूलिपुरम कॉलोनी स्थित सियावर कुंज आश्रम में दो विद्यार्थी विशाल और संदीप रह रहे थे . इन के पास पिछले 15-20 दिनों से हरियाणा का रहने वाला सुनील नाम का शख्स भी आताजाता था जो वृंदावन में ईरिक्शा चलाता है और मंगलवार की शाम को वह अपने साथ  उस  युवक को आश्रम लाया था. सुबह विशाल ने कमरे में सुनील के साथ आए युवक का रक्तरंजित शव बिस्तर पर पड़ा हुआ देखा. पुलिस के अनुसार सिर पर किसी भारी चीज से प्रहार कर हत्या की गई.

तीर्थयात्रा के दौरान या तीर्थस्थलों में जान गंवाने से जुड़ी इस तरह की घटनाएं अक्सर सामने आती रहती हैं जब एक तीर्थयात्रा व्यक्ति की अंतिम यात्रा बन जाती है.

लोगों को लगता है कि तीर्थयात्रा भी एक तरह का एडवेंचर्स ट्रिप ही है जहाँ पूजापाठ के साथसाथ रिलैक्स होने और फॅमिली संग एडवेंचर का मजा भी लिया जा सकता है पर ध्यान रखें जहाँ पूजापाठ और चढ़ावों की बातें ,मन्नतों का दौर,  कुछ खोने का डर और पाने की आस हो वहां जोखिम से खेलने और नया देखने का आनंद नहीं मिल सकता.

आधुनिक युग बुद्धिवाद का युग कहा जाता है. हर बात तर्क और बुद्धि की तराजू पर तौली जाती है.  मगर अफ़सोस तीर्थयात्राओं के  मसले पर जनता बड़ी आसानी से मूर्ख बन जाती है. वे हर तरह के तर्क और विवेक को ताक पर रख कर केवल दैवी कृपा का नाम जपते हुए इन यात्राओं पर निकल पड़ते हैं.

इस के विपरीत एडवेंचर टूरिज्म पर्यटन का वह नया रूप है जहां आप कथित जोखिम के साथ कुछ नया खोजने का प्रयास करते हैं. इस तरह के टूरिज्म में भी काफी रिस्क रहता है  मगर ये यात्राएं जीवन की बेहतरीन यात्राएं साबित होती हैं. बस यह जरूरी है कि आप शारीरिक रूप से स्वस्थ हों. रिवर राफ्टिंग ,बंजी जंपिंग, हैलीस्कीइंग ,स्नोर्कलिंग, साइकिल ट्रैकिंग ,स्काई डाइविंग ,स्कूबा डाइविंग जैसी एक्टिविटीज  एडवेंचर टूरिज्म का हिस्सा हैं जिन में जोखिम भी होता है और भरपूर रोमांच भी.

कुछ हट कर और रोचक करने की चाह रखने वाले साहसी प्रवृति के लोग एडवेंचर टूरिज्म का रुख करते हैं जब कि अनायास बिना श्रम दैवी कृपा से सब कुछ पाने की चाह रखने भीरु प्रवृति वाले तीर्थ यात्रा को निकलते है.

ऐसी मान्यता है कि तीर्थयात्रा यानी चारों धाम और ज्योतिर्लिंगों के दर्शन, भजनपूजन, अर्चन करने से धर्मलाभ होता है और इंसान के सारे संकट दूर होते हैं. मनचाही मुराद पूरी होती है. इन तीर्थों में लाखोंकरोड़ों की संख्या में जनता धार्मिक भावनाओं से ओतप्रोत हो कर जाती है. करोड़ों रुपयों के चढ़ावे चढ़ते है जो तथाकथित पण्डेपुजारियों के पॉकेट में जाते हैं. जिसे जहाँ जगह मिलती है वहीँ सो जाते है. जो खाने को मिलता है खा लेते है. मंदिरों में भीड़ की वजह से एकदूसरे पर चढ़े जाते है. हर साल भगदड़ और भीड़ की वजह से सैकड़ों लोगों की मौतें होती हैं.

जरुरत है इस तरह की धार्मिक यात्राओं के बारे में फिर से विचारविमर्श करने की.

तीर्थयात्रा- ऐसी यात्राओं में हमें क्या हासिल होता है?

चोरी , बेईमानी और पाखण्ड का बोलबाला

दुनिया में फैली अनैतिकता और अराजकता से तीर्थ अछूते नहीं है. तरहतरह की बुराइयां तीर्थों में घुसी पड़ी है. चोर, ठग, धूर्त,बेईमान, उठाईगीरे, व्यभिचारी, पाखंडी ,लोभी, नीच व्यक्ति धर्म की खाल ओढ़ कर और साधुओं का चोला पहन कर लोगों को बेवकूफ बनाते हैं. हत्यारे, डाकू, चोर, अपराधी जैसे नीच लोग भी अपनी सुरक्षा तथा जीविका की तलाश में साधुसंत बन जाते हैं. सच्चे महात्माओं की कमी और झूठे और धूर्तों की बढ़ोतरी ने तीर्थों का माहौल खराब कर रखा है. तीर्थ स्थान अब धूर्त्तता ,बदमाशी, ढोंग और लूट के केंद्र बिंदु बन गए हैं.

लकीर का फकीर बनने वाली स्थिति-  तीर्थयात्रा में हम कुछ नया नहीं कर सकते. सैकड़ों साल पुरानी मान्यताओं को ढ़ोने का सिलसिला कायम रहता है जिन का विवेक से कोई वास्ता नहीं होता. जैसा घरवाले या पंडित कहते जाते हैं हम वैसा ही करते जाते हैं. लाखोंकरोड़ो की दम घोटती भीड़ में पसीने से नहाये किसी तरह मूर्ति दर्शन करना , लोगों की भीड़ में खुद को और बच्चों को कुचले जाने से बचाते हुए अस्तव्यस्त कपड़ों में बाहर निकलना और निकलते ही पंडितों और पुजारियों के चंगुल में फंस कर पैसे लुटाना. लूटखसोट चोरीचकारी से खुद को बचाने के प्रयास में मानसिक रूप से बिलकुल त्रस्त हाल में कठिन यात्रा कर वापस लौटना.

पागलपन –लोग पागलों की तरह सैकड़ों किलोमीटर की यात्रा भूखेप्यासे , परेशान होते हुए करते हैं. अपने मन में कोई मुराद ले कर या कोई इच्छा पूरी होने पर अपनी मानता पूरी करने की खातिर तीर्थयात्रा पर निकल पड़ते हैं. लोगों के मन में यह बात गहरी बिठा दी जाती है कि ऐसा न किया गया तो कोई अनहोनी घटित हो सकती है. सोचने वाली बात यह है कि यदि कीर्तन, प्रवचन ,सत्संग ,सम्मेलन और पण्डेपुजारियों के सहारे ही यदि इंसान को सब कुछ हासिल हो जाता तो फिर तो कर्म की कोई आवश्यकता ही नहीं होती.

डर पैदा होता है-–अक्सर ऐसा देखा जाता है कि तीर्थ स्थलों पर साधुओं ,बाबाओ और पंडितों द्वारा लोगों को कभी भगवान के नाम पर तो कभी अनिष्ट की आशंका पैदा कर डरायाधमकाया जाता है. ताकि व्यक्ति उन के चंगुल में फँस जाए.

इस सन्दर्भ में दिल्ली की अनुजा बताती हैं, ” एक बार हम परिवार समेत वैष्णो देवी की यात्रा पर गए. जब हम पूजा कर लौट रहे थे तभी रास्ते में एक बूढ़ा बाबा मिला. मुझ को अपने जाल में फंसाता हुआ बोला कि बेटा मैं एक ऐसा मंत्र जानता हूँ जो तुम्हे हर तकलीफ से दूर करेगा. मैं ने सास की बीमारियों का जिक्र किया तो वह बाबा उन के नाम पर पूजापाठ कराने के बहाने 20 हज़ार रूपए मांगने लगा. पहले तो मैं तैयार हो गई मगर पति के इंकार करने पर बिना पूजा कराये जाने लगी तो बाबा जोर डालने लगा और डराने लगा कि इस भूमि पर आ कर यदि कोई इस पूजा से मना करता है तो उस के साथ बहुत बुरा होता है. मेरे पति इन बातों को नहीं मानते थे . सो वे मुझ से जल्द वापस लौटने को कहने लगे . इस पर बाबा गुस्से में आ कर मुझे और मेरे परिवार को श्राप देने लगा कि घर पहुँचतेपहुँचते  हमारा बड़ा नुकसान होगा. हमें सजा जरूर मिलेगी. मेरे पति ने तो इन बातों को सीरियसली नहीं लिया मगर मैं रास्ते भर इन्ही बातों को सोचती रही. मेरे कानों में बाबा की आवाज गूंजती रही और लौटते समय हमारा पूरा सफर बिना किसी एन्जॉयमेन्ट के निकल गया. मैं किसी अनहोनी की आशंका से ग्रस्त रही.”

गंदगी और भीड़ — तीर्थयात्रा करना आसान नहीं. रास्ते लम्बे होने के साथ गंदे भी होते हैं. भीड़ की वजह से हर जगह अफरातफरी मची होती है. कहीं भी ढंग का मैनेजमेंट नहीं हो

एडवेंचर टूरिज्म 

इस के विपरीत एडवेंचर टूरिज्म से हमारा आत्मविश्वास बढ़ाता है. जब हम अपने साथियों के साथ प्रकृति के दुरूह राज खोलते हैं, कठिन से कठिन रास्तों पर भी पूरे हौसले और कोतुहल के साथ आगे बढ़ते हैं , रोमांच भरे साहसी गतिविधियों का आनंद लेते हैं तो हमारे अंदर एक सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है. हमारा आत्मविश्वास बढ़ता है. हमारे मन में यह बात ढृण हो जाती है कि हम कुछ भी कर सकते हैं.

आनंद देता है – इस तरह की यात्राओं में हमें बहुत कुछ सीखने और करने को मिलता है. हम अपने मनपसंद स्पोर्ट्स का आनंद लेते हैं जिस से मन की थकान दूर होती है और हम रिफ्रेश हो जाते हैं.

हम दोस्तों या अपनी जैसी सोच वालों के साथ मिल कर सफर करने का मजा लेते है. एक जैसी प्रवृत्ति वालों के साथ हम ग्रुप निर्माण करते है जो लम्बे समय तक हमारा साथ देते हैं. हमारी तलाश पूरी होती है.

रास्ते भर हम तरहतरह के खाने पीने का आनंद लेते है.  जोखिम भरे सफर के साथ तरहतरह का भोजन पार्टी का मजा देता है.

हमारे मन में नया उत्साह पैदा होता है. हमें जीवन में कुछ नया करने का हौसला मिलता है.

इस लिए जब जिंदगी में रिलैक्स होना हो , कुछ नया करना हो या रोमांच का अनुभव करना हो तो एडवेंचर टूरिज्म के लिए निकलें तीर्थयात्रा के लिए नहीं.

मुझे अपनी मां की उच्छृंखलता देख कर उन से नफरत होने लगी है, क्या करूं?

सवाल

मैं 15 वर्षीय छात्र हूं. आजकल बहुत तनाव में जी रहा हूं. दरअसल, मुझे अपनी मां की उच्छृंखलता देख कर उन से नफरत होने लगी है. हमारे एक अंकल जो मेरे पापा के अच्छे दोस्त हैं, उन से मेरी मां की नजदीकियां दिनोंदिन बढ़ रही हैं. वे अंकल अकसर मेरे पापा की गैरमौजूदगी में घर आते हैं और घंटों मां के साथ गप्पबाजी करते हैं. भद्देभद्दे मजाक सुन कर मेरा खून खौलने लगता है, जबकि मां खूब मजा लेती हैं. कई बार दोनों ऐसे चिपक कर बैठे होते हैं जैसे पति पत्नी हों. उन्हें लगता है कि मैं उन की हरकतों से अनजान हूं. बताएं, क्या करूं?

जवाब

आप अच्छे बुरे की समझ रखने वाले विवेकशील युवक हैं. आप को लगता है कि आप की मां और आप के तथाकथित अंकल का व्यवहार अमर्यादित है, तो आप अपनी मां से एतराज जता सकते हैं.

आप उन से साफ शब्दों में कहें कि आप को पिता की गैरमौजूदगी में उस तथाकथित अंकल का रोज आना और घंटों गप्पें लगाना नागवार गुजरता है. इतने से ही वे दोनों सतर्क हो जाएंगे. अगर न हों तो आप कह सकते हैं कि आप पिता से उन की शिकायत करेंगे. इस के बाद आप की समस्या स्वत: हल हो जाएगी.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem

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