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वो क्या जाने पीर पराई- भाग 2: हेमंत की मृत्यु के बाद विभा के साथ क्या हुआ?

सवेरे की शताब्दी एक्सप्रैस से विमल ने मु?ो रवाना कर दिया. क्या मालूम था कि कानपुर इस तरह अकेले जाना पड़ेगा. नियति तो कोई बदल नहीं सकता पर सहज विश्वास नहीं होता. अतीत वर्तमान से इतना दूर तो नहीं था.

कानपुर के वीएसएसडी कालेज के

2 वर्षों के ममता के साथ ने हमें अत्यधिक निकटता प्रदान की. हम दोनों ही साइंस की छात्राएं थीं, इसलिए उठनाबैठना, कैंटीन तथा लाइब्रेरी में इस तरह साथसाथ जाना, इस कोएजुकेशन क्लास में हमारी मजबूरी भी थी और जरूरत भी. निकटता हमारे घरों और दिलों में प्रवेश कर गई.

मेरा घर कालेज के पास होने के नाते अकसर वह घर ही चली आती. पिताजी का दिल्ली ट्रांसफर होने के बाद भी हमारी मित्रता में कोई कमी नहीं आई. कालेज के एक प्रोफैसर से उस के संबंधों की एकमात्र मैं ही राजदार थी. कई बार ममता मेरे घर का बहाना बना कर मोती?ाल और जेके टैंपल लौन में बैठी रहती.

इन के मिलन से मेरे मन में ईर्ष्यामिश्रित गुदगुदी होती रहती. दिल्ली जाने के कुछ ही दिनों बाद पता चला कि उन का प्रणय निवेदन अस्त होते सूरज की भांति गहराता गया. प्रोफैसर की जल्दी विवाह की जिद और ममता के अविवाहित बड़े भाईबहन की मजबूरी ने इस प्रेम को परवान न चढ़ने दिया. वह करती भी क्या, फूटफूट कर फोन पर रोई. दिल की सारी भड़ास कागज पर उतार कर मु?ो भेजी.

औरत भला और कर भी क्या सकती है? हमारी संस्कृति की नियति भी यही है और गरिमा भी. बड़ों से पहले छोटों के विवाह को सवालिया नजरों से जो देखा जाता है.

जैसेतैसे मन मार कर पिता ने जहां बात पक्की की, ममता ने हामी भर दी. हंसमुख स्वभाव का हेमंत आईआईटी से कैमिकल इंजीनियरिंग कर एक प्राइवेट कंपनी में एक्जीक्यूटिव था. 3-4 बच्चों को घर पर ही ट्यूशन पढ़ाता. उसे भी ममता पसंद आ गई और शादी के लिए वह मान गया.

ममता के लिए तो स्वीकृतिअस्वीकृति का प्रश्न ही नहीं, सूनी आंखों से मांग में सिंदूर भरा. विदाई की घड़ी में पाषाण सी बनी चुपचाप चली गई. मु?ा से गले लिपट कर रो लेती तो अच्छा था. भरी बरात में मेरे सिवा उस का दुख कौन जान सकता था. उस के लिए पिता के घर से जाने का विछोह और उस से भी कहीं ज्यादा प्रोफैसर की सारी यादें समेट कर मन के किसी कोने में दफन कर देना एक त्रासदी से कम न था. मैं शादी पर नहीं गई होती तो शायद वह घुट कर मर ही जाती.

भैया का ट्रांसफर कानपुर हो जाने से ममता के साथ दिल जुड़ा रहा. कुछ भी अनकहाअनछुआ नहीं था हम दोनों के बीच. मात्र संयोग ही था जो हम दोनों के बीच अवसाद के दरिया को सूखने से बचाता रहा.

विमल से कहीं ज्यादा मु?ो ममता जानती थी. भीतर की घुटन और त्रासदी को हम दोनों मिल कर हलका करते रहे. हेमंत की मधुर स्मृति आंखों के सामने तैरती रही. कैसे बिताएगी बेचारी इतना लंबा वैधव्य जीवन? 10 वर्ष भी परस्पर दोनों का साथ नहीं रह सका.

कानपुर पहुंची तो मैं ड्राइंगरूम में सफेद साड़ी में लिपटी ममता को पहचान न पाई. सभी अपरिचित चेहरे, करुण जैसा खामोश सन्नाटा और एकदम अलगथलग ममता. मेरे वहां पहुंचते ही वह फूटफूट कर रो पड़ी. मु?ा से सचमुच दिल दहला देने वाला खामोश वातावरण देख कर रहा नहीं गया. उस ने मु?ो अंक में भींच लिया. कब तक एकदूसरे के साथ सटी रहीं, पता नहीं.

‘‘कब से तेरा बेसब्री से इंतजार कर रही थी बेचारी. कहां थी तू?’’ उस की मां ने पीठ पर कोमल हाथ फेर कर मु?ा से कहा, ‘‘जा, दूसरे कमरे में ले जा इसे, थोड़ा चैन मिलेगा तेरे आने से.’’

‘‘मैं एकदम अकेली पड़ गई, विभा…’’ कहते हुए उस की रुलाई रुक नहीं पा रही थी. सहारा दे कर मैं उसे दूसरे कमरे में ले गई. दोनों बच्चों की आंखों में दहला देने वाली खामोशी थी. मु?ो उन की आंखों से डर लगने लगा. उन में अजीब सा भय व्याप्त था. उस खामोशी को तोड़ना अनिवार्य हो गया था.

‘‘ममता, थोड़ा धीरज तो रख,’’ मैं ने उस की अश्रुधारा अपनी साड़ी के पल्लू से पोंछते हुए कहा, ‘‘थोड़ा पानी पी ले, मैं बच्चों को हाथमुंह धुलवा कर खाना खिलाती हूं, फिर तेरे पास बैठूंगी.’’

‘‘तू कहीं न जा मु?ो छोड़ कर,’’ वह बहुत ही कातर स्वर में मेरी बांह पकड़ कर बोली, ‘‘मां बच्चों को खाना खिला देंगी. मैं अकेली रह गई विभा. कैसे होगा सबकुछ, मु?ो तो कुछ मालूम भी नहीं है. कभी सोचा भी न था कि…’’ कह कर वह सुबकसुबक कर रो पड़ी. आगे के शब्द उस की जबान से ही न निकले.

मैं उसे रो लेने देना चाहती थी क्योंकि जितना मन हलका हो सके, अच्छा है.

‘‘यों दिल छोटा न करें. कोई न कोई रास्ता निकल ही आएगा,’’ मैं ने सांत्वना देते हुए कहा.

‘‘रास्ता ही निकलना होता तो हेमंत ही क्यों मु?ो छोड़ कर जाते? इतनी असाध्य बीमारी तो थी भी नहीं. अस्थमा की कभीकभी शिकायत करते थे. जिस ने जैसा कहा वैसा ही करते रहे और ऐसी कोई हालत भी खराब नहीं थी. बस, उस रात तेज खांसी उठी और सबकुछ खत्म हो गया. कोई दवा काम न आई,’’ कहते हुए वह गंभीर हो उठी.

मेरे पास न कोई तर्क था न कोई शब्द. थोथे व्याख्यान सुनतेसुनते तो वह भी अपना आपा खो बैठी थी. 35 साल की उम्र और पहाड़ सा जीवन, कैसे व्यतीत करेगी भला वह? कहां रह गया नियति का न्याय?  परंतु कोई सामने हो तो गिला भी करे, मगर वह कहां गुस्सा उतारे?

हेमंत को गुजरे अभी 10 दिन भी पूरे नहीं हुए थे. सभी लोग एकएक कर चलते गए. घर फिर वीरान सा लगने लगा. सभी दोस्त, संगीसाथी सांत्वना के दो शब्द कहने के लिए आतेजाते रहे परंतु ममता निर्जीव सी पड़ी रही.

हेमंत के पिता उसे अपने साथ ले जाना चाहते थे परंतु ममता ने स्वयं ही खुद को संभालने का निर्णय लिया. इन 10 दिनों में उस ने सारे कोण नाप लिए, रास्ता दिखाने वाले आतेजाते रहे और तरस का पात्र सम?ा कर दिल और दुखा जाते. वह करती भी क्या?

एक दिन हिम्मत कर के मैं ने ममता को सम?ाया कि अब अपने बारे में भी कुछ सोचे, ऐसा भला कब तक चलेगा? वह कोई तरस की पात्र तो नहीं है. अपनी मंजिल तो उसे स्वयं ही तय करनी होगी.

सवेरे बच्चों को तैयार कर मैं भारी मन से उन्हें स्कूल छोड़ने के लिए जाने लगी तो ममता से बोली, ‘‘चल, तु?ो भी साथ ले चलूं. थोड़ा मन बहल जाएगा.’’

बहुत कहने पर साधारण सी सफेद साड़ी बदन पर लपेट कर चलने लगी तो मैं ने सम?ाया, ‘‘ऐसे चलेगी क्या? जो होना था सो हो चुका. अपनी गृहस्थी तो अब तु?ो ही संभालनी है. क्या सभी रीतियों को भी पूरा करना होगा? लाचार सी बन कर घर से निकलेगी तो लाचारी का ही सामना करना पड़ेगा. लोग तु?ो लाचार सम?ा कर ही व्यवहार करेंगे. ऐसा चाहती है क्या तू?’’

सुलझती जिंदगियां : रागिनी के साथ ऐसा क्या हुआ, जिसे वह भुला नहीं पाई

विवाह स्थलअपनी चकाचौंध से सभी को आकर्षित कर रहा था. बरात आने में अभी समय था. कुछ बच्चे डीजे की धुनों पर थिरक रहे थे तो कुछ इधर से उधर दौड़ लगा रहे थे. मेजबान परिवार पूरी तरह व्यवस्था देखने में मुस्तैद दिखा.

इसी विवाह समारोह में मौजूद एक महिला कुछ दूर बैठी दूसरी महिला को लगता घूर रही थी. बहुत देर तक लगातार घूरने पर भी जब सामने बैठी युवती ने कोई प्रतिक्रिया जाहिर नहीं की तो सीमा उठ कर खुद ही उस के पास चली गई. बोली, ‘‘तुम रागिनी हो न? रागिनी मैं सीमा. पहचाना नहीं तुम ने? मैं कितनी देर से तुम्हें ही देख रही थी, मगर तुम ने नहीं देखा, तो मैं खुद उठ कर तुम्हारे पास चली आई. कितने वर्ष गुजर गए हमें बिछुड़े हुए,’’ और फिर सीमा ने उत्साहित हो कर रागिनी को लगभग झकझोर दिया

रागिनी मानो नींद से जागी. हैरानी से सीमा को देर तक घूरती रही. फिर खुश हो कर बोली, ‘‘तू कहां चली गई थी सीमा? मैं कितनी अकेली हो गई थी तेरे बिना,’’ कह कर उस ने उसे अपनी बांहों में भर लिया. दोनों की आंखें छलक उठीं.

‘‘तू यहां कैसे?’’ सीमा ने पूछा.

‘‘मेरे पति रमन ओएनजीसी में इंजीनियर हैं और यह उन के बौस की बिटिया की शादी है, तो आना ही था अटैंड करने. पर तू यहां कैसे?’’ रागिनी ने पूछा.

‘‘सुकन्या यानी दुलहन मेरी चचेरी बहन है. अरे, तुझे याद नहीं अकसर गरमी की छुट्टियों में आती तो थी हमारे घर लखनऊ में. कितनी लड़ाका थी… याद है कभी भी अपनी गलती नहीं मानती थी. हमेशा लड़ कर कोने में बैठ जाती थी. कितनी बार डांट खाई थी मैं ने उस की वजह से,’’ सीमा ने हंस कर कहा.

‘‘ओ हां. अब कुछ ध्यान आ रहा है,’’ रागिनी जैसे अपने दिमाग पर जोर डालते हुए बोली.

फिर तो बरात आने तक शौपिंग, गहने, मेकअप, प्रेमप्रसंग और भी न जाने कहांकहां के किस्से निकले और कितने गड़े मुरदे उखड़ गए. रागिनी न जाने कितने दिनों बाद खुल कर अपना मन रख पाई किसी के सामने.

सच बचपन की दोस्ती में कोई बनावट, स्वार्थ और ढोंग नहीं होता. हम अपने मित्र के मूल स्वरूप से मित्रता रखते हैं. उस की पारिवारिक हैसियत को ध्यान नहीं रखते.

तभी शोर मच गया. किसी की 4 साल की बेटी, जिस का नाम निधि था, गुम हो गई थी. अफरातफरी सी मच गई. सभी ढूंढ़ने में जुट गए, तुरंत एकदूसरे को व्हाट्सऐप से लड़की की फोटो सैंड करने लगे. जल्दी ही सभी के पास पिक थी. शादी फार्महाउस में थी, जिस के ओरछोर का ठिकाना न था. जितने इंतजाम उतने ही ज्यादा कर्मचारी भी.

आधे घंटे की गहमागहमी के बाद वहां लगे गांव के सैट पर सिलबट्टा ले कर चटनी पीसने वाली महिला कर्मचारी के पास खेलती मिली. रागिनी तो मानो तूफान बन गई. उस ने तेज निगाह से हर तरफ  ढूंढ़ना शुरू कर दिया था. बच्ची को वही ढूंढ़ कर लाई. सब की सांस में सांस आई. निधि की मां को चारों तरफ  से सूचना भेजी जाने लगी, क्योंकि सब को पता चल गया था कि मां तो डीजे में नाचने में व्यस्त थी. बेटी कब खिसक कर भीड़ में खो गई उसे खबर ही न हई. जब निधि की दादी को उसे दूध पिलाने की याद आई, तो उस की मां को ध्यान आया कि निधि कहां है?

बस फिर क्या था. सास को मौका मिल गया. बहू को लताड़ने का और फिर शोर मचा कर सास ने सब को इकट्ठा कर लिया.

भीड़ फिर खानेपीने में व्यस्त हो गई. सीमा ने भी रागिनी से अपनी छूटी बातचीत का सिरा संभालते हुए कहा, ‘‘तेरी नजरें बड़ी तेज हैं… निधि को तुरंत ढूंढ़ लिया तूने.’’

‘‘न ढूंढ़ पाती तो शायद और पगला जाती… आधी पागल तो हो ही गई हूं,’’ रागिनी उदास स्वर में बोली.

‘‘मुझे तो तू पागल कहीं से भी नहीं लगती. यह हीरे का सैट, ब्रैंडेड साड़ी, यह स्टाइलिश जूड़ा, यह खूबसूरत चेहरा, ऐसी पगली तो पहले नहीं देखी,’’ सीमा खिलखिलाई.

‘‘जाके पैर न फटे बिवाई वो क्या जाने पीर पराई. तू मेरा दुख नहीं समझ पाएगी,’’ रागिनी मुरझाए स्वर में बोली.

‘‘ऐसा कौन सा दुख है तुझे, जिस के बोझ तले तू पगला गई है? उच्च पदस्थ इंजीनियर पति, प्रतिष्ठित परिवार और क्या चाहिए जिंदगी से तुझे?’’ सीमा बोली.

‘‘चल छोड़, तू नहीं समझ पाएगी,’’ रागिनी ने ताना दिया.

‘‘मैं, मैं नहीं समझूंगी?’’ अचानक ही उत्तेजित हो उठी सीमा, ‘‘तू कितना समझ पाई है मुझे, क्या जानती है मेरे बारे में… आज 10 वर्ष के बाद हम मिले हैं. इन 10 सालों का मेरा लेखाजोखा है क्या तेरे पास? जो इतने आराम से कह रही है? क्या मुझे कोई गम नहीं, कोई घाव नहीं मिला इस जिंदगी में? फिर भी मैं तेरे सामने मजबूती से खड़ी हूं, वर्तमान में जीती हूं, भविष्य के सपने भी बुनती हूं और अतीत से सबक भी सीख चुकी हूं, मगर अतीत में उलझी नहीं रहती. अतीत के कुछ अवांछित पलों को दुस्वप्न समझ कर भूल चुकी हूं. तेरी तरह गांठ बांध कर नहीं बैठी हूं,’’ सीमा तमतमा उठी.

‘‘क्या तू भी किसी की वासना का शिकार बन चुकी है?’’ रागिनी बोल पड़ी.

‘‘तू भी क्या मतलब? क्या तेरे साथ भी यह दुर्घटना हुई है?’’ सीमा चौंक पड़ी.

‘‘हां, वही पल मेरा पीछा नहीं छोड़ते. फिल्म, सीरियल, अखबार में छपी खबर, सब मुझे उन पलों में पहुंचा देते हैं. मुझे रोना आने लगता है, दिल बैठने लगता है. न भूख लगती है न प्यास, मन करता है या तो उस का कत्ल कर दूं या खुद मर जाऊं. बस दवा का ही तो सहारा है, दवा ले कर सोई रहती हूं. कोई आए, कोई जाए मेरी बला से. मेरे साथ मेरी सास रहती हैं. वही मेड के साथ मिल कर घर संभाले रहती हैं और मुझे कोसती रहती हैं कि मेरे हीरे से बेटे को धोखे से ब्याह लिया. एक से एक रिश्ते आए, मगर हम तो तेरी शक्ल से धोखा खा गए. बीमारू लड़की पल्ले पड़ गई. मैं क्या करूं,’’ आंखें छलछला उठीं रागिनी की.

‘‘तू अकेली नहीं है इस दुख से गुजरने वाली. इस विवाहस्थल में तेरीमेरी जैसी न जाने कितनी और भी होंगी, पर वे दवा के सहारे जिंदा नहीं हैं, बल्कि उसे एक दुर्घटना मान कर आगे बढ़ गई हैं. अच्छा चल, तू ही बता तू रोड पर राइट साइड चल रही है और कोई रौंग साइड से आ कर तुम्हें ठोकर मार कर चला जाता है, तो गलत तो वही हुआ न? ऐसे ही, जिन्होंने दुष्कर्म कर हमारे विश्वास की धज्जियां उड़ाईं, दोषी वे हैं. हम तो निर्दोष हैं, मासूम हैं और पवित्र हैं. अपराधी वे हैं, फिर हम घुटघुट कर क्यों जीएं, यह एहसास तो हमें उन्हें हर पल कराना चाहिए, ताकि वे बाकी की जिंदगी घुटघुट कर जीएं.’’ सीमा ने आत्मविश्वास से कहा.

‘‘क्या तू ने दिलाया यह एहसास उसे?’’ रागिनी ने पूछा.

‘‘मेरा तो बौयफ्रैंड ही धोखेबाज निकला. आज से 10 साल पहले जब हम पापा के दिल्ली ट्रांसफर के कारण लखनऊ छोड़ कर चले गए थे, तब वहां नया कालेज, नया माहौल पा कर मैं कितना खुश थी. हां तेरी जैसी बचपन की सहेली से बिछुड़ने का दुख तो बहुत था, मगर मैं दिल्ली की चकाचौंध में कहीं खो गई थी. जल्दी ही मैं ने क्लास में अपनी धाक जमा ली…

‘‘धु्रव मेरा सहपाठी, जो हमेशा प्रथम आता था, दूसरे नंबर पर चला गया. 10वीं कक्षा में मैं ने ही टौप किया तो धु्रव जलभुन कर राख हो गया, मगर बाहरी तौर पर उस ने मुझ से आगे बढ़ कर मित्रता का हाथ मिलाया और मैं ने खुशीखुशी स्वीकार भी कर लिया. 12वीं कक्षा की प्रीबोर्ड परीक्षा में भी मैं ने ही टौप किया तो वह और परेशान हो उठा. मगर उस ने इसे जाहिर नहीं होने दिया.

‘‘इसी खुशी में ट्रीट का प्रस्ताव जब धु्रव ने रखा तो मैं मना न कर सकी. मना भी क्यों करती? 2 सालों से लगातार हम साथ कालेज, कोचिंग और न जाने कितने फ्रैंड्स की बर्थडे पार्टीज अटैंड करते आए थे. फर्क यह था कि हर बार कोई न कोई कौमन फ्रैंड साथ रहता था. मगर इस बार हम दोनों ही थे और धु्रव पर अविश्वास करने का कोई प्रश्न ही नहीं था.

‘‘पहले हम एक रेस्तरां में लंच के लिए गए. फिर वह अपने घर ले गया. घर में किसी को भी न देख जब मैं ने पूछा कि तुम ने तो कहा था मम्मी मुझ से मिलना चाहती हैं. मगर यहां तो कोई भी नहीं है? तो उस ने जवाब दिया कि शायद पड़ोस में गई होंगी. तुम बैठो मैं बुला लाता हूं और फिर मुझे फ्रिज में रखी कोल्डड्रिंक पकड़ा कर बाहर निकल गया.

‘‘मैं सोफे पर बैठ कर ड्रिंक पीतेपीते उस का इंतजार करती रही, मुझे नींद आने लगी तो मैं वहीं सोफे पर लुढ़क गई. जब नींद खुली तो अपने को अस्तव्यस्त पाया. धु्रव नशे में धुत पड़ा बड़बड़ा रहा था कि मुझे हराना चाहती थी. मैं ने आज तुझे हरा दिया. अब मुझे समझ आया कि धु्रव ने मेरे नारीत्व को ललकारा है. मैं ने भी आव देखा न ताव, पास पड़ी हाकी उठा कर उस के कोमल अंग पर दे मारी. वह बिलबिला कर जमीन पर लोटने लगा, मैं ने चीख कर कहा कि अब दिखाना मर्दानगी अपनी और फिर घर लौट आई. बोर्ड की परीक्षा सिर पर थी. ऐसे में अपनी पूरी ताकत तैयारी में झोंक दी. फलतया बोर्ड परीक्षा में भी मैं टौपर बनी.

‘‘धु्रव का परिवार शहर छोड़ कर जा चुका था. उन्हें अपने बेटे की करतूत पता चल गई थी,’’ कह कर सीमा पल भर को रुकी और फिर पास से गुजरते बैरे को बुला कर पानी का गिलास ले कर एक सांस में ही खाली कर गई.

फिर आगे बोली, ‘‘मां को तो बहुत बाद में मैं ने उस दुर्घटना के विषय में बताया था.

वे भी यही बोली थीं कि भूल जा ये सब. इन का कोई मतलब नहीं. कौमार्य, शारीरिक पवित्रता, वर्जिन इन भारी भरकम शब्दों को अपने ऊपर हावी न होने देना… तू अब भी वैसी ही मासूम और निश्चल है जैसी जन्म के समय थी… मां के ये शब्द मेरे लिए अमृत के समान थे. उस के बाद मैं ने पीछे मुड़ कर देखना छोड़ दिया,’’ सीमा ने अपनी बात समाप्त की.

‘‘मैं तो अपने अतीत से भाग भी नहीं सकती. वह शख्स तो मेरे मायके का पड़ोसी और पिताजी का मित्र है, इसीलिए मेरा तो मायके जाने का ही मन नहीं करता. यहीं दिल्ली में पड़ी रहती हूं,’’ रागिनी उदास स्वर में बोली.

‘‘कौन वे टौफी अंकल? वे ऐसा कैसे कर सकते हैं? मुझे अच्छी तरह याद है वे सफेद कुरतापाजामा पहने हमेशा बैडमिंटन गेम के बीच में कूद कर गेम्स के रूल्स सिखाने लगते थे और फि र खुश होने पर अपनी जेब से टौफी, चौकलेट निकाल कर ईनाम भी देते थे. हम लोगों ने तो उन का नाम टौफी अंकल रखा था,’’ सीमा ने आश्चर्य प्रकट करते हुए कहा.

‘‘वह एक मुखौटा था उन का अपनी घिनौनी हरकतें छिपाने का. तुझे याद है वे हमारे गालों पर चिकोटी भी काट लेते थे गलती करने पर और कभीकभी अपने हाथों में हमारे हाथ को दबा कर रैकेट चलाने का अभ्यास भी कराने लगते थे. उन सब हरकतों को कोई दूर से देखता भी होगा तो यही सोचता होगा कि वे बच्चों से कितना प्यार करते हैं. मगर हकीकत तो यह थी कि वे जाल बिछा रहे थे, जिस में से तू तो उड़ कर उन की पहुंच से दूर हो गई पर रह गई मैं.

‘‘अपने हाथ से एक पंछी निकलता देख वे बौखला उठे और तुम्हारे जाने के महीने भर बाद ही मुझे अपनी हवस का शिकार बना लिया. उस दिन मां ने मुझे पड़ोस में आंटी को राजमा दे कर आने को कहा. हमेशा की तरह कभी यह दे आ, कभी वह दे आ. मां पर तो अपने बनाए खाने की तारीफ  सुनने का भूत जो सवार रहता था. हर वक्तरसोई में तरहतरह के पकवान बनाना और लोगों को खिला कर तारीफें बटोरना यही टाइम पास था मां का.

‘‘उस दिन आंटी नहीं थीं घर पर… अंकल ने मुझ से दरवाजे पर कहा कि अांटी किचन में हैं, वहीं दे आओ, मैं भीतर चली गई. पर वहां कोई नहीं था. अंकल ने मुझे पास बैठा कर मेरे गालों को मसल कर कहा कि वे शायद बाथरूम में हैं. तुम थोड़ी देर रुक जाओ. मुझे बड़ा अटपटा लग रहा था. मैं उठ कर जाने लगी तो हाथ पकड़ कर बैठा कर बोले कि कितने फालतू के गेम खेलती हो तुम… असली गेम मैं सिखाता हूं और फिर अपने असली रूप में प्रकट हो गए. कितनी देर तक मुझे तोड़तेमरोड़ते रहे. जब जी भर गया तो अपनी अलमारी से एक रिवौल्वर निकाल कर दिखाते हुए बोले कि किसी से भी कुछ कहा तो तेरे मांबाप की खैर नहीं.

‘‘मन और तन से घायल मैं उलटे पांव लौट आई और अपने कमरे को बंद कर देर तक रोती रही. मां की सहेलियों का जमघट लगा था और वे अपनी पाककला का नमूना पेश कर इतरा रही थीं और मैं अपने शरीर पर पड़े निशानों को साबुन से घिसघिस कर मिटाने की कोशिश कर रही थी.

‘‘धीरेधीरे मैं पढ़ाई में पिछड़ती चली गई और मैं 10वीं कक्षा में फेल हो गई. मां ने मुझे खूब खरीखोटी सुनाई, मगर कभी मेरी पीड़ा न सुनी. मैं गुमसुम रहने लगी. सोती तो सोती ही रहती उठने का मन ही न करता. मां खाना परोस कर मेरे हाथों में थमा देती तो खा भी लेती अन्यथा शून्य में ही निहारती रहती. सब को लगा फेल होने का सदमा लग गया है, किसी ने सलाह दी कि मनोचिकित्सक के पास जाओ.

3-4 सीटिंग के बाद जब मैं ने महिला मनोचिकित्सक को अपनी आपबीती बताई तो उन्होंने मां को बुला कर ये सब बताया. मगर वे मानने को ही तैयार न हुईं. कहने लगीं कि साल भर तो पढ़ा नहीं, अब उलटीसीधी बातें बना रही है. इस की वजह से हमारी पहले ही कम बदनामी हुई है, जो अब पड़ोसी को ले कर भी एक नया तमाशा बनवा लें अपना… जब मेरी कोई सुनवाई ही नहीं तो मैं भी चुप्पी लगा गई. मुझे ही आरोपी बना कर कठघरे में खड़ा कर दिया गया था. फिर इंसाफ  किस से मांगती?

‘‘तब से अपना मुंह बंद कर जीना सीख लिया. मगर इस दिल और दिमाग का क्या करूं. जो अब भी चीखचीख कर इंसाफ  मांगता है जब दर्द बरदाश्त से बाहर हो जाता है तो नशा ही मेरा सहारा है, उन गोलियों को खा बेहोशी में डूब जाती हूं. तू ही बता कोई इलाज है क्या इस का तेरे पास?’’ रागिनी ने सीमा के हाथों को अपने हाथों में ले कर पूछा.

‘‘हां है… हर मुसीबत का कोई न कोई हल जरूर होता है. बस उसे ढूंढ़ने की कोशिश जारी रहनी चाहिए. इस बार तेरे मायके मैं भी साथ चलूंगी और उस शख्स के भी घर चल कर, बलात्कारियों की सजा पर चर्चा करेंगे. बलात्कारियों को खूब कोसेंगे, गाली देंगे और बातों ही बातों में उस शख्स के चेहरे पर लगे मुखौटे को उस की पत्नी के समक्ष नोंच कर फेंक देंगे.

‘‘उन्हें भी तो पता चले उन के पतिपरमेश्वर की काली करतूत…देखो बलात्कारी की पत्नी उस की कितनी सेवा करती हैं… उन का बुढ़ापा नर्क बना कर छोड़ेंगे… रोज मरने की दुआ मांगता न फिरे वह तो मेरा नाम बदल देना,’’ सीमा ने रागिनी के हाथों को मजबूती से थाम कर बोला.

रागिनी के चेहरे पर मुसकराहट तैर गई. तभी रमन ने आ कर रागिनी के कंधे पर हाथ रख कर कहा, ‘‘बचपन की सहेली क्या मिल गई, तुम तो एकदम बदल ही गई. यह मुसकराहट कभी हमारे नाम भी कर दिया करो.’’

सीमा ने रागिनी के हाथों को रमन के हाथों में सौंपते हुए कहा, ‘‘अब से यह इसी तरह मुसकराएगी, आप बिलकुल फिक्र न करें… इस के कंधे से कंधा मिलाने के लिए मैं जो वापस आ गई हूं इस की जिंदगी में.’’

सहारा: क्या मोहित अपने माता-पिता का सहारा बना?

‘इनसान को अपने किए की सजा जरूर मिलती है. दूसरे की राह में कांटे बोने वाले के अपने पैर कभी न कभी जरूर लहूलुहान होते हैं.

टूट गई मर्यादाओं की डोर: प्यार के नाम पर दोनों ने ये क्या किया

उत्तर प्रदेश के जिला बिजनौर के थाना रेहड़ के अंतर्गत एक गांव है लालबाग. गुरदास इसी गांव में अपने परिवार के साथ रहते थे. पतिपत्नी और 2 बच्चे, यही उन का छोटा सा घरसंसार था. खेतीबाड़ी काफी थी, जिस से उन के परिवार की गाड़ी बड़े आराम से चल रही थी.

उन के यहां ऐशोआराम की हर चीज मौजूद थी. परिवार को खुश रखने के लिए वह कड़ी मेहनत करते थे. गुरदास के दोनों बच्चों में अमिता सब से बड़ी थी. वह पिता की आंखों का तारा थी तो बेटा बुढ़ापे की लाठी. अपने बच्चों पर वह बहुत गर्व करते थे.

बेटी के प्रति अटूट ममता को देख कर कभीकभी पत्नी सुखविंदर कौर पति से दिल्लगी कर बैठती थी कि बेटी तो पराई अमानत होती है. बेटी जब अपनी ससुराल चली जाएगी, तब उस के बिना कैसे रहोगे?

इस पर गुरदास पत्नी को टका सा जवाब दे देते, ‘‘तब की तब देखी जाएगी. नहीं होगा तो दामाद को घरजंवाई बना कर अपने पास रख लेंगे. तब तो मेरी बेटी मेरी आंखों के सामने रहेगी. आखिरकार दामाद भी तो बेटे जैसा होता है. जैसे मेरा एक बेटा वैसे दामाद दूसरा बेटा.’’

पति का टका सा जवाब सुन कर सुखविंदर कौर खामोश हो जाती.

21 दिसंबर, 2017 की बात है. गुरदास किसी काम से सुबहसुबह ही निकल गए थे. सुबह के 9-10 बजे के करीब अमिता मां से कुछ देर में वापस लौट कर आने की बात कह कर कहीं चली गई. घर से निकलते वक्त उस ने मां को ये नहीं बताया कि वह कहां और किस काम से जा रही है. बस इतना ही कहा कि थोड़ी देर में वापस लौट आऊंगी.

थोड़ी देर में लौट आने की बात कह कर घर से निकली अमिता को करीब 3 घंटे बीत गए थे. इतनी देर बाद भी वह घर नहीं लौटी थी. मां सुखविंदर कौर को चिंता सताने लगी कि थोड़ी देर में लौट कर आने को कह कर गई अमिता 3 घंटे बाद भी लौटी क्यों नहीं.

सुखविंदर ने अमिता का मोबाइल नंबर मिलाया पर वह स्विच्ड औफ मिला. सुखविंदर ने कई बार फोन लगाने की कोशिश की लेकिन फोन हर बार बंद ही मिला. उस का फोन बारबार स्विच्ड औफ बता रहा था.

इस से सुखविंदर अमिता को ले कर जहां चिंतित हो रही थी, वहीं दूसरी ओर उसे उस पर गुस्सा भी आ रहा था कि कम से कम घर पर फोन तो कर सकती थी. उस दिन अमिता स्कूल भी नहीं गई थी. स्कूल का बैग उस के कमरे की मेज पर वैसे ही पड़ा था, जैसे उसे रख कर गई थी.

अमिता का कुछ पता नहीं चला तो परेशान हो कर सुखविंदर ने पति को फोन कर के बेटी के वापस न लौटने की सूचना दे दी. अमिता 17 साल की थी. उस के गायब होने से घर वालों की चिंता बढ़नी स्वाभाविक थी. पत्नी के मुंह से बेटी के गायब होने की खबर सुन कर गुरदास के हाथपांव फूल गए. वह बुरी तरह घबरा गए और कुछ ही देर में घर लौट आए.

इधर सुखविंदर ने अपने बड़े बेटे गुलजार के बेटे यानी पोते कमलजीत को अमिता का पता लगाने के लिए गांव में भेजा. करीब एक घंटे में वह सारा गांव छान कर लौट आया लेकिन अमिता का कहीं पता नहीं लगा.

धीरेधीरे दिन ढल रहा था. शाम हो गई लेकिन अमिता अब तक घर नहीं लौटी थी. बेटी के रहस्यमय तरीके से गायब होने से घर ही नहीं, गांव में भी कोहराम मच गया था. गुरदास और सुखविंदर का रोरो कर बुरा हाल था. वे समझ नहीं पा रहे थे कि क्या करें.

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काफी सोचविचार करने के बाद गुरदास बेटी की गुमशुदगी दर्ज कराने के लिए अपने पोते कमलजीत और गांव वालों के साथ रात 8 बजे थाना रेहड़ पहुंच गए. थानाप्रभारी सुभाष सिंह थाने में मौजूद थे.

गुरदास ने थानाप्रभारी को अपनी 17 वर्षीय बेटी अमिता के गायब होने की बात बताई. उन्होंने अमिता की गुमशुदगी दर्ज करने के बाद उन्हें घर भेज दिया.

अगले दिन यानी 22 दिसंबर, 2017 की सुबह थानाप्रभारी को मुखबिर ने सूचना दी कि जिम कार्बेट नैशनल पार्क बौर्डर के पास एक युवती की लाश पड़ी है. लाश पाए जाने की सूचना मिलते ही थानाप्रभारी पुलिस टीम के साथ जिम कार्बेट नैशनल पार्क की तरफ रवाना हो गए.

वहां पहुंच कर उन्होंने लाश का मुआयना किया तो ऐसा लगा जैसे युवती ने कोई जहरीला पदार्थ खा कर अपनी जान दी हो क्योंकि उस का पूरा शरीर नीला पड़ा हुआ था. ऐसा तभी होता है जब कोई जहरीले पदार्थ का सेवन करता है.

इस के अलावा सरसरी तौर पर उस के शरीर पर चोट का भी कोई निशान नजर नहीं आ रहा था. देखने से युवती किसी भले घर की लग रही थी. तभी थानाप्रभारी को याद आया कि बीती रात लालबाग के रहने वाले गुरदास अपनी बेटी की गुमशुदगी लिखाने आए थे. उन्होंने अपनी बेटी का जो हुलिया बताया था, वह मृतका से काफी मेल खा रहा था.

लाश की शिनाख्त के लिए उन्होंने एक सिपाही को भेज कर गुरदास को साथ लाने को कहा. सिपाही के साथ गुरदास घर और गांव के कुछ लोगों के साथ मौके पर पहुंच गए. युवती की लाश देखते ही वे फफकफफक कर रोने लगे. उन्हें रोता देख पुलिस को यह समझते देर नहीं लगी कि मृतका उन की ही बेटी है.

थोड़ी देर बाद जब गुरदास शांत हुए तो पुलिस ने उन से अमिता द्वारा खुदकुशी किए जाने के बारे में सवाल पूछे कि आखिर अमिता के साथ ऐसा क्या हुआ था कि उस ने इतना बड़ा कदम उठाया.

यह सुन कर गुरदास सकते में आ गए. वह खुद ही नहीं समझ पा रहे थे कि अमिता ने आत्महत्या क्यों की? इसलिए वह थानाप्रभारी के सवाल पर सुबकने लगे.

पुलिस ने उस समय गुरदास से ज्यादा पूछताछ कर के मौके की काररवाई निपटाई और लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. अब पुलिस की निगाह पोस्टमार्टम रिपोर्ट पर आ कर टिक गई थी कि रिपोर्ट आने के बाद ही स्थिति स्पष्ट हो सकेगी कि अमिता की मृत्यु कैसे हुई?

2 दिनों बाद अमिता की पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी आ गई. रिपोर्ट पढ़ कर थानाप्रभारी सुभाष सिंह चौंक गए. क्योंकि पोस्टमार्टम में बताया गया था कि अमिता 4 माह की गर्भवती थी और जहर खाने के साथसाथ किसी चौड़े दुपट्टे या शौल से उस का गला घोंटा गया था.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट ने पूरी कहानी ही उलटपलट कर रख दी थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के बाद घटना शीशे की तरह साफ हो गई थी. पूरा मामला प्रेमप्रसंग का नजर आने लगा.

अब पुलिस को इस में 2 ही वजह दिखाई देने लगीं. पहली तो यह कि या तो उस के प्रेमी ने छुटकारा पाने के लिए उस की हत्या कर दी थी या फिर उस के घर वालों ने सामाजिक लोकलाज के चलते हत्या कर के लाश ठिकाने लगा दी थी.

यह मामला काफी पेचीदा हो गया था. पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिलने के बाद थानाप्रभारी ने गुरदास को थाने बुलवाया और उन से अमिता के प्रैगनेंट होने की बात बताई तो यह बात सुनते ही उन के पैरों तले से जमीन ही खिसक गई.

गुरदास को अपने कानों पर यकीन नहीं हो रहा था कि थानाप्रभारी ने जो उन से कहा है, वह सच है? वह तो यह सोचसोच कर हैरानपरेशान हो रहे थे कि जब लोग सुनेंगे तो क्या कहेंगे. फिर समाज में वह अपना मुंह कैसे दिखाएंगे? पुलिस ने उन से यह बात भी पूछी कि क्या अमिता का किसी से चक्कर चल रहा था? पर वह कुछ भी बताने में असमर्थ रहे.

अमिता हत्याकांड की गुत्थी उलझ कर रह गई थी. धीरेधीरे 4 दिन बीत गए. कोई ऐसी कड़ी पुलिस के हाथ नहीं लग रही थी जिस से वह हत्यारों तक पहुंच पाती. पुलिस ने अमिता के फोन की काल डिटेल्स निकलवाई तो उस में भी कोई ऐसा संदिग्ध नंबर नहीं मिला, जिसे संदेह के घेरे में लिया जा सके.

गुत्थी सुलझाने के लिए पुलिस ने मुखबिर लगा दिए. इधर घर वाले भी इस बात से काफी परेशान रहने लगे कि आखिर अमिता के पेट में किस का बच्चा पल रहा था. उस का प्रेमी कौन था? पुलिस विवेचना कर रही थी तो उधर घर वाले भी अमिता के प्रेमी की जानकारी के लिए जुट गए. पता नहीं क्यों गुरदास का पोता कमलजीत कुछ परेशान सा रहने लगा था. उस के बातव्यवहार में भी अचानक से परिवर्तत आ गया था.

बेटे की परेशानी देख उस के पिता गुलजार ने कमलजीत से बात की और पूछा कि आखिर वह इतना परेशान क्यों है? इस से पहले तो उसे इतना परेशान कभी नहीं देखा था. आखिर क्या बात हो सकती है, जो वह इतना परेशान है.

उधर मुखबिर ने पुलिस को कमलजीत के संदिग्ध चरित्र के बारे में बता दिया था. मुखबिर ने पुलिस को यह भी बताया था कि घटना वाले दिन सुबह के समय कमलजीत को अमिता के साथ जिम कार्बेट नैशनल पार्क की तरफ जाते देखा गया था.

मुखबिर की दी गई खबर पक्की थी. पुलिस ने इस की पड़ताल की तो बात सच निकली. सचमुच कमलजीत अमिता के साथ जिम कार्बेट नैशनल पार्क की तरफ जाते देखा गया था. इस के बाद पुलिस बिना समय गंवाए लालबाग पहुंच गई. कमलजीत घर पर ही मिल गया. वह घर छोड़ कर कहीं भागने की फिराक में था. पुलिस को देखते ही उस के मंसूबे पर पानी फिर गया.

पुलिस ने कमलजीत को हिरासत में ले लिया और थाने लौट आई. थाने में जब उस से सख्ती से पूछताछ की तो उस ने सारी बातें बता दीं. उस ने कहा, ‘‘हां सर, मैं ने ही अपनी बुआ को मारा है. मैं करता भी क्या? मेरे पास अपने बचाव का कोई दूसरा रास्ता भी नहीं बचा था. वह मुझ पर शादी करने के लिए दबाव बना रही थी. उस से छुटकारा पाने के लिए मजबूरन मुझे ये कदम उठाना पड़ा.’’

कमलजीत से पूछताछ के बाद अमिता की हत्या की जो कहानी सामने आई, वह रिश्तों को तारतार करने वाली निकली.

अमिता और कमलजीत एकदूसरे से रिश्तों के जिन पवित्र धागों से बंधे थे, वहां कोई सपने में भी नहीं सोच सकता था कि बुआ और भतीजा यानी मांबेटे जैसे पवित्र रिश्ते की आड़ में समाज की मानमर्यादा को ताख पर रख कर इश्क के दरिया में डूबा जा सकता है.

22 वर्षीय कमलजीत गुरदास का एकलौता पौत्र था. गुरदास उसे बहुत प्यार करते थे. एक तरह से कमलजीत उन के दिल का टुकड़ा था. उन का संयुक्त परिवार था. एक ही छत के नीचे सारा परिवार हंसीखुशी से रहता था. उन की एकता की मिशाल की सारे गांव में चर्चा थी.

कमलजीत था तो दुबलापतला, लेकिन था बेहद फुरतीला और स्मार्ट. यही नहीं वह मजाकिया किस्म का भी था. बच्चों से ले कर बड़ेबूढ़ों के बीच बैठ अकसर वह गप्पें लड़ाया करता था. उस की गप्पें सुन कर सभी हंसतेहंसते लोटपोट हो जाया करते थे.

अमिता, कमलजीत की सगी बुआ थी. उन के बीच 4-5 साल का अंतर था. अमिता 17 साल की थी तो वहीं कमलजीत 22 साल का था. अमिता बेहद खूबसूरत थी. कमलजीत मन ही मन अमिता को चाहने लगा. एक दिन की बात है. अमिता, आंगन में बैठी अधखुले तन से नहा रही थी.

उस ने बरामदे के दरवाजे को ऐसे ही भिड़ा दिया था. अकसर वो ऐसे ही बेपरवाह हो कर नहाया करती थी. यह सोच कर उस पर सिटकनी नहीं चढ़ाई थी कि झट से नहा कर उठ जाएगी. वैसे भी उस वक्त घर के सारे पुरुष बाहर दरवाजे पर बैठे थे.

उसी समय कमलजीत अचानक किसी काम से आया और बरामदे का दरवाजा खोल कर धड़धड़ाता हुआ आंगन में दाखिल हो गया. अमिता उसे देख कर हड़बड़ा गई और गीले कपड़ों से जल्दीजल्दी अपने तन को ढकने की कोशिश करने लगी.

तब तक कमलजीत की नजरें अमिता के बदन से टकरा चुकी थीं. उसे उस हालत में देख कर कमलजीत का मन बेचैन और बेकाबू हो गया. उस समय उस ने खुद पर जैसेतैसे काबू पाया, लेकिन इस के बाद से वह अमिता बुआ के जिस्म को पाने के लिए मचल उठा.

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अमिता को पाने के लिए उस ने धीरेधीरे उस के चारों तरफ इश्क का जाल बिछा कर प्यार का दाना डालना शुरू कर दिया. कमलजीत का प्यार तो एक छलावा था. उस का एकमात्र उद्देश्य जिस्म की भूख थी. इस के लिए वह किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार था. अमिता अपने भतीजे कमलजीत के नापाक और घिनौने इरादों से एकदम अंजान थीं.

योजना के मुताबिक, अमिता के दिल में जगह बनाने के लिए कमलजीत उस के पास ज्यादा से ज्यादा समय बिताने लगा. उस की छोटी से छोटी बातों का खयाल रखने लगा.

ये देख कर अमित कमलजीत से काफी प्रभावित रहने लगी. कमलजीत जिस आशिकाना नजरों से उसे देखता था, अमिता को समझते देर नहीं लगी कि वह दीवानों वाला प्यार करने लगा है.

अमिता उम्र के जिस दौर से गुजर रही थी, उस उम्र में अकसर लड़केलड़कियों के पांव फिसल जाया करते हैं. अमिता के भी पांव भतीजे के इश्क में फिसल गए. वह भी उसे उसी आशिकाना अंदाज से देखने लगी थी, जैसा कमलजीत उसे अपलक निहारता रहता था. धीरेधीरे दोनों में प्यार हो गया और मौका देख कर उन्होंने अपने प्यार का इजहार भी कर दिया.

चूंकि, अमिता और कमलजीत एक ही छत के नीचे रहते थे इसलिए घर के किसी भी सदस्य को उन के नापाक रिश्तों की भनक नहीं लगी और न ही उन पर किसी ने कोई शक किया. उन्हें जो भी बातें करनी होती थीं घर वालों से नजरें बचा कर कर लेते थे.

कमलजीत अमिता का पहलापहला प्यार था. वह उसे समुद्र की गहराइयों से भी ज्यादा चाहने लगी थी. प्यार में बंधे दोनों यह तक भूल गए कि उन के बीच रिश्ता क्या है? जब उन के प्यार का राजफाश होगा तो समाज के लोग उन के बारे में क्या सोचेंगे? उन की कितनी जगहंसाई होगी. इस का दोनों को तनिक भी खयाल नहीं हुआ. यह बात सन 2016 की है.

कमलजीत के प्यार का जादू अमिता के सिर चढ़ कर बोल रहा था. उसे कमलजीत के सिवाय कुछ नजर नहीं आ रहा था. कमलजीत भी इसी दिन के इंतजार में कब से बेताब बैठा था. अमिता भतीजे के बिछाए इश्क के जाल में अच्छी तरह से फंस चुकी थी.

बेहद भोलीभाली और सीधीसादी अमिता लोमड़ी से भी अधिक चालाक और शातिर भतीजे कमलजीत के रचे चक्रव्यूह को समझ नहीं पाई और अपनी आबरू लुटा बैठी.

प्यार के अंधे कुआं में डूबी अमिता कमलजीत के बांहों में आ गिरी. उन के बीच के सारे फासले, सारे रिश्ते पल भर में सिमट कर रह गए. दोनों एक जिस्मानी रिश्ते में समा गए. एक बार जो मिलन का खेल शुरू हुआ तो सिलसिला बन गया.

जिस का परिणाम यह हुआ कि अमिता के पांव भारी हो गए. जब उस के गर्भ में कमलजीत का 4 माह का पाप पांव पसारने लगा तो अमिता को अहसास हुआ कि वह कितनी बड़ी गलती कर बैठी थी. जब मांबाप इस हालात के लिए उस से पूछेंगे तो वह क्या जवाब देगी. ये सोचसोच कर उस की रातों की नींद और दिन का चैन लुट चुका था. हर घड़ी वह परेशानी की मौत मरती रही.

उस की समझ में यह नहीं आ रहा था कि क्या करे? किसे अपने मन का हाल सुना कर जी हलका करे. जब कुछ समझ में नहीं आया तो उस ने कमलजीत से बात की कि वह उस के बच्चे की मां बनने वाली है. जल्द से जल्द कोई उपाय करे नहीं तो समाज में जीना मुश्किल हो जाएगा.

अमिता के मुंह से ये सुनते ही कमलजीत के होश उड़ गए. घबराहट के मारे पसीना छूटने लगा. उसे ऐसा लगा जैसे उस के पैरों तले से जमीन खिसक गई हो. उस के सिर से अमिता के इश्क का सारा भूत उतर गया. उस ने अमिता को समझाया कि उसे सोचने के लिए थोड़ा मौका दे. जल्द से जल्द कोई न कोई उपाय निकाल लेगा.

उधर अमिता उस पर शादी के लिए दबाव बनाने लगी. शादी का नाम सुन कर कमलजीत बुरी तरह घबरा गया. वह सोचने लगा कि लोग उस के बारे में क्या सोचेंगे की बुआभतीजे के रिश्ते को तारतार कर दिया. वह कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं रहेगा.

कमलजीत ने शादी के लिए इनकार करते हुए कहा कि ऐसा नहीं हो सकता क्योंकि रिश्ते में हम बुआभतीजे लगते हैं. दुनिया क्या कहेगी? समाज हम पर थूकेगा.

इस पर अमिता ने कहा, ‘‘तुम ने उस समय यह बात क्यों नहीं सोची थी. अब मामला बिगड़ गया तो दुनियादारी याद आ रही है. मैं कुछ नहीं जानती. तुम्हें मुझ से शादी करनी ही होगी.’’

काफी सोचनेविचारने के बाद कमलजीत ने कहा, ‘‘मेरे दिमाग में एक आइडिया आया है. इस मुसीबत से छुटकारा पाने के लिए हम दोनों खुदकुशी कर लेते हैं. तब तो हम पर कोई अंगुली नहीं उठाएगा.’’

कमलजीत का यह आइडिया अमिता को पसंद आ गया. इस के बाद दोनों ने सुसाइड करने का प्लान बना लिया. प्लान के मुताबिक कमलजीत 20 दिसंबर, 2017 को बाजार से एक घातक कीटनाशक दवा खरीद लाया.

अगले दिन वह बहलाफुसला कर अमिता को घर से बाहर जिम कार्बेट नैशनल पार्क ले गया. दोनों को पार्क की ओर जाते हुए मोहल्ले के कई लोगों ने देखा था. पार्क पहुंच कर सामने मौत देख कर कमलजीत की रूह कांप उठी. उस ने मरने का अपना फैसला बदल दिया. बडे़ शातिराना अंदाज में उस ने अमिता से कहा, ‘‘तुम पहले जहर खा लो, फिर मैं खा लूंगा.’’

भतीजे की बातों पर यकीन कर के अमिता ने पहले जहर खा लिया. उस के बाद उस ने अपने प्रेमी कमलजीत से भी जहर खाने को कहा तो उस ने फिल्मी खलनायकों के अंदाज में हंसते हुए अमिता की तरफ घूर कर देखा और कहा, ‘‘मेरी प्यारी बुआ, तुम अभी भी मेरी फितरत को नहीं समझ पाई. तुम्हें पता नहीं कि तुम से पीछा छुड़ाने के लिए मैं ने यह कदम उठाया था. तुम तो मर जाओगी, लेकिन मैं… मैं अभी मरना नहीं चाहता.’’

जहर ने अमिता पर अपना असर दिखाना शुरू कर दिया. अमिता का शरीर ढीला पड़ने लगा. तभी कमलजीत ने उस के गले में लिपटे दुपट्टे से उस का गला घोंट दिया. अमिता कटे वृक्ष की तरह जमीन पर धड़ाम से जा गिरी. कमलजीत ने उसे हिलाडुला कर देखा. वह मर चुकी थी. उस के बाद कमलजीत लाश को वहीं ठिकाने लगा कर इत्मीनान से घर लौट आया.

जिस चालाकी और सफाई से कमलजीत ने अपना काम किया था. उसे ऐसा लगा था कि पुलिस उस तक नहीं पहुंच पाएगी. लेकिन अपराध कभी छिपता नहीं है. आखिरकार अपराधी को उन्हें जेल की सलाखों के पीछे पहुंचना ही होता है. कमलजीत के साथ भी यही हुआ. उस से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उसे न्यायालय में पेश कर जेल भेज दिया.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Monsoon Special: ऐसे करें हेल्दी डाइट प्लान

किचन क्वीन कही जाने वाली महिलाएं भले ही अपने परिवार के 1-1 सदस्य के स्वास्थ्य और स्वाद को ध्यान में रख कर भोजन पकाती हों, मगर जब बात खुद की सेहत और पसंद की आती है, तो वे समझौता कर लेती हैं. इस बाबत एशियन इंस्टिट्यूट औफ मैडिकल साइंस की सीनियर डाइटीशियन डाक्टर शिल्पा ठाकुर कहती हैं कि महिलाओं को खुद के लिए कुछ करना हो तो हमेशा आलस कर जाती हैं. खासतौर पर जब बात खानेपीने से जुड़ी हो, तो खुद के प्रति और भी लापरवाह हो जाती हैं. घर में कुछ भी बचा मिल जाए या फिर बाहर से पैक्ड फूड से ही उन का काम चल जाता है. मगर इस तरह उन के शरीर में सही तरह से पोषक तत्त्व नहीं पहुंच पाते और वे किसी न किसी बीमारी का शिकार हो जाती हैं. ऐसे में बिना सख्त डाइट प्लान के सिर्फ कुछ बातों का ध्यान रख कर भी महिलाएं पोषक आहार ले सकती हैं:

पैक्ड फूड का सेवन कम करें 

अच्छा और स्वास्थ्यवर्धक आहार लेने की कड़ी में महिलाओं को सबसे पहले इस बात का ध्यान रखना है कि घर में पके भोजन को ज्यादा अहमियत देनी है. बिस्कुट, केक, नमकीन और पैक्ड फूड का सेवन कम से कम करना है. डा. शिल्पा कहती हैं कि महिलाएं अकसर सही आहार लेने की जगह पैक्ड नमकीन, केक, बिस्कुट और चिप्स खा कर पेट भर लेती हैं. इन सभी फूड आइटम्स में कार्बोहाइड्रेट की मात्रा बहुत अधिक होती है जबकि रोजाना महिलाओं को अपने आहार में केवल 130 ग्राम कार्बोहाइड्रेट ही लेना चाहिए. कार्बोहाइड्रेट की इस मात्र में चीनी, फाइबर और स्टार्च तीनों ही शामिल होते हैं. आहार में इस से अधिक कार्बोहाइड्रेट लेने पर महिलाएं मोटापे का शिकार भी हो सकती हैं.

सुबह का नाश्ता जरूर करें

अधिकतर महिलाएं सुबह का नाश्ता नहीं करतीं और यदि करती भी हैं तो समय से नहीं करतीं. डा. शिल्पा कहती हैं कि सुबह का नाश्ता करना बेहद जरूरी है, क्योंकि रात के खाने के बाद सुबह तक लगभग 12 घंटे पेट में कुछ नहीं जाता. यदि ऐसे में नाश्ता न किया जाए तो ऐसिडिटी बनने लगती है. इसलिए सुबह का नाश्ता 8 से 9 बजे के बीच कर लेना चाहिए. नाश्ते में ताजे फल, स्प्राउट्स और लो फैट दूध लेना सब से अच्छा रहता है. महिलाओं के लिए एनर्जी लैवल को बनाए रखना बेहद जरूरी है, क्योंकि उन्हें सुबह से ही शारीरिक और मानसिक गतिविधियों से जूझना पड़ता है. फल शरीर में ग्लूकोस की मात्रा बढ़ाते हैं, जिस से ऐनर्जी बढ़ती है. साथ ही इन में मौजूद प्रोटीन और फाइबर्स आहार को संतुलित बनाते हैं.

संतुलित आहार लें

महिलाओं के शरीर को कई जैविक बदलावों से गुजरना पड़ता है. ये बदलाव पीरियड्स शुरू होने से ले कर गर्भधारण करने और मेनोपौज होने तक निरंतर चलते रहते हैं. इस में कई हारमोनल बदलाव भी होते हैं, जिन से महिलाओं को ऐनीमिया, हड्डियों के कमजोर होने और औस्टियोपोरोसिस जैसी बीमारियों का सामना करना पड़ता है. इन बीमारियों से उबरने के लिए महिलाओं के शरीर को आयरन, मैग्नीशियम, कैल्सियम, विटामिन डी, विटामिन बी9 जैसे विभिन्न पोषक तत्त्वों की जरूरत पड़ती है. सिर्फ दालरोटी और सब्जी खाने से ये पोषक तत्त्व प्राप्त नहीं किए जा सकते हैं. इस के लिए महिलाओं को सुबहशाम, दिनरात के आहार में बदलाव की जरूरत है. साथ ही उन्हें अलगअलग वक्त पर अलगअलग पोषक तत्त्वों से भरपूर भोजन करने की आवश्यकता है. उदाहरण के तौर पर गेहूं की रोटी की जगह कभीकभी रागी, बाजरा, मक्का या सिंघाड़े के आटे की रोटी खानी चाहिए. इसी तरह दलिया, सूजी और बेसन से बने व्यंजन भी आहार में शामिल करने चाहिए. यदि फलों का सेवन कर रही हैं, तो रोज अलग फल खाएं. किसी एक फल को रोज न खाएं.

भरपूर पानी पीएं

अधिकतर महिलाओं को वाटर रिटैंशन की समस्या होती है. इस तरह की परेशानी में सुबह उठने के बाद चेहरे और शरीर के कुछ हिस्सों में सूजन आ जाती है.  यह सोडियम और प्रिजर्वेटिव फूड आइटम्स का सेवन करने से होता है. इस से बचने के लिए महिलाओं को खूब पानी पीना चाहिए. पानी से इलैक्ट्रोलाइट लैवल अच्छा बना रहता है, जिस से बीपी में उतारचढ़ाव की समस्या नहीं होती. साथ ही मैटाबोलिज्म का स्तर भी बढ़ जाता है, जिस से शरीर की चरबी नहीं बढ़ती.

कैफीन कम लें

दफ्तर में बैठेबैठे काम करने वाली महिलाओं को चाय और कौफी की लत लग जाती है. डा. शिल्पा कहती हैं कि यह मिथ है कि चाय और कौफी लेने से नींद नहीं आती, बल्कि इस में मौजूद कैफीन के असर के खत्म होते ही और भी अधिक आलस्य घेर लेता है और कमजोरी महसूस होने लगती है. दरअसल, कैफीन कैल्सियम, मैग्नीशियम, पोटैशियम और विटामिन डी जैसे मिनरल्स को शरीर में अवशोषित होने से रोकती है, जिस से चिड़चिड़ापन, सिरदर्द, अवसाद, थकावट, बेचैनी आदि परेशानियां उन्हें घेर लेती हैं. इसलिए चायकौफी की जगह कोई हैल्थ ड्रिंक लें या जूस लें. इन में मौजूद प्रोटीन और फाइबर से सेहत को लाभ मिलेगा.

ऐसी हो डाइट

कैल्सियम: 19-50 वर्ष की महिलाओं को रोजाना आहार में 1000 मिलीग्राम कैल्सियम लेना चाहिए. इस के लिए दूध, हरी सब्जियां, टोफू और अनाज को भोजन में शामिल करना चाहिए.

मैग्नीशियम: मैग्नीशियम का काम कैल्सियम को रक्त से हड्डियों में अवशोषित करना है.  दिन भर में 400 मिलीग्राम मैग्नीशियम का सेवन महिलाओं के लिए जरूरी है. इस के लिए बीज वाली सब्जियां, खीरा और ब्रोकली खानी चाहिए.

आयरन: महिलाओं को रोजाना अपनी खुराक में 14 मिलीग्राम आयरन जरूर लेना चाहिए. हरी सब्जियां आयरन का सब से अच्छा स्रोत हैं. आयरन के अवशोषण के लिए खुराक में विटामिन सी युक्त पदार्थों को भी शामिल करें.

प्रोटीन: महिलाओं को अपने वजन के हिसाब से प्रति किलोग्राम वजन पर 0.8 ग्राम प्रोटीन हर दिन के आहार में शामिल करना चाहिए.

जिंक: 19 वर्ष की उम्र के बाद महिलाओं को अपने आहार में 8 मिलीग्राम जिंक की मात्र को भी शामिल करना चाहिए. यह त्वचा, बालों, अवसाद और मांसपेशियों से संबंधित समस्याओं को दूर करता है.  चीज, दूध और राजमा जिंक के सब से अच्छे स्रोत हैं.

विटामिन डी: शरीर में कैल्सियम के अवशोषण के लिए विटामिन डी भी बहुत महत्त्वपूर्ण है. सोया मिल्क व मशरूम विटामिन डी के सब से अच्छे स्रोत हैं.

महाराष्ट्र का राजनैतिक संकट

महाराष्ट्र राज्य में शिवसेना के नेता एकनाथ शिंदे की खुली बगावत के बाद राज्य की शिवसेना कांग्रेस व  एनसीपी की मिली जुली माहाविकास अघाडी सरकार पर संकट के बादल छा गए हैं. शिवसेना विधायक एकनाथ शिंदे अपने साथ कुछ शिवसेना व निर्दलीय विधायकों के साथ मंगलवार को सूरत पहुंचे गए थे. जहां उन्हे मनाने की शिवसेना अध्यक्ष व महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने अपने दूत भेजकर असफल कोशिश की.

मगर समस्या सुलझने की बजाय उलझती गयी और बुधवार की सुबह एकनाथ शिंदे अपने समर्थक विधायकों के साथ सूरत से गौहाटी, आसाम पहुंच गए. महाराष्ट्र के  इस राजनीतिक उठापटक के घटनाक्रम को हल करने के लिए एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार के अलावा कांग्रेस की तरफ से कमल नाथ भी मुंबई में सक्रिय हो चुके हैं. मगर बुधवार को देर रात जिस तरह के हालात निर्मित हुए हैं. उनसे एक बात साफ हो गयी कि अब एकनाथ शिंदे को मनाना उद्धव ठाकरे के वस की बात नहीं है. वैसे वह अपनी मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ने को तैयार हैं. पर उनकी असली चिंता अपनी शिवसेना पार्टी को जीवंत रखने की है. जिसके लिए ही वह साम दाम दंड भेद हर तरह की चाल दो दिन से चलते आ रहे हैं. दो दिन के उनके व शिवसेना नेता संजय राउत के सारे प्रयास विफल होने पर बुधवार शाम साढ़े पांच बजे फेसबुक लाइव में आकर उद्धव ठाकरे ने सभी शिवसैनिकों से भावनात्मक संवाद भी किया, मगर परिणाम वही ढाक के तीन पात ही रहा.  महाराष्ट् राज्य में पैदा हुए इस राजनैतिक संकट के लिए शिवसेना या कांग्रेस या एनसीपी भले ही आज भाजपा को कोस रही हो मगर इसके लिए यह सभी कहीं न कहीं दोषी हैं. राजनैतिक गलियारे में सवाल पूछे जा रहे हैं कि जब राजसभा चुनाव में भाजपा के पक्ष में इनके विधायकों ने वोट दिएएतब यह चुप क्यो रहे. इतना ही नहीं विधान परिषद के चुनाव में भी शिवसेनाए एनसीपी कांग्रेस तीनों दलों के विधायकों ने क्रास वोटिंग की. तब इस तरफ गहराई से मंथन करते हुए तुरंत कोई कदम क्यों नहीं उठाए गए. इतना ही नहीं इस राजनैतिक संकट के लिए राजनैतिक पंडित पहली कमजोर कड़ी के तौर पर उद्धव ठाकरे के पुत्र मोह के साथ ही दूसरी कमजोर कड़ी संजय राउत को मान रहे हैं.

लोग मान रहे हैं कि पार्टी के अंदर संजय राउत के बढ़ते कद के चलते शिवसेना के अंदर विरोध के स्वर उठे जिन्हें दबाने अथवा उन्हे समझाने में उद्धव ठाकरे नाकामयाब रहे. जिसके चलते यह ज्वालामुखी फूटा है.

बुधवार की दोपहर तक एकनाथ शिंदे ने महाराष्ट् के राज्यपाल तक 34 शिवसेना विधायकों के हस्ताक्षर वाला पात्र भिजवाकर खुद को शिवसेना विधायक दल का नेता होने का दावा कर दिया. इधर लगभग दो दिन के सारे कदम असफल होने के बाद महाराष्ट् के मुख्यमंत्री और शिवसेना पार्टी के अध्यक्ष उद्धव ठाकरे को शायद यह अहसास हुआ कि अब शिवसेना पार्टी पर से उनका दबदबा खत्म हो जाएगा. इसलिए उन्होंने प्रेस कांफ्रेंस करने की बजाय फेसबुक लाइव आकर शिवसैनिकों से भावनात्मक बातचीत करते हुए विद्रोही गुट के नेता एकनाथ शिंदे के लगभग हर सवाल का जवाब भी दिया. उद्धव ने कहा कि वह  कोविड के शिकार है. ऐसे में भी वह लड़ाई लड़ रहे हैं. उन्होंने कहा,  मेरे  पास कहने को बहुत कुछ है. मैंने कोविड के दौरान बहुत बड़ी लड़ाई लड़ी. मैंने इतना काम किया कि देश के पांच बेहतरीन मुख्यमंत्रियों में मेरा नाम लिया गया. मुझ पर आरोप लग रहा है कि मैं विधायकों से नहीं मिल रहा था. यह सच है क्योंकि मेरा ऑपरेशन हुआ था. उस दौरान किसी से मिलना संभव नही था. शिवसेना हिंदुत्व से दूर नहीं जा सकती. इसीलिए कुछ समय पहले आदित्य ठाकरे व एकनाथ शिंदे अयोध्या गए थे.

शिव सैनिक कहेंगे या विधायक आकर मेरे सामने मुझसे कहें कि वह मुझे मुख्यमंत्री के रूप में नहीं देखना चाहते है तो मैं त्यागपत्र देने को तैयार हूं.  फिर फेसबुक  लाइव में ही मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने एक कहानी सुनाते हुए कहा कि कहानी में जो कुल्हाड़ी पेड़ को काट रही थी. उसे लेकर पेड़ ने कहा था कि मुझे दुः ख इस बात का है कि मुझे काटने वाली कुल्हाड़ी भी मेरी ही शाखा से बनी हैण्ऐसा ही आज मेरे साथ हो रहा है.

एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री पद का आफर फेसबुक लाइव में एक तरह से मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने एकनाथ षिंदे को मुख्यमंत्री का पद आफर कर दिया. जी हां, शिवसेना पार्टी पर अपना हक बरकरार रखने के लिए ही उद्धव ठाकरे ने फेसबुक लाइव का सहारा लिया और तमाम भावनात्मक बातों के साथ उन्होंने साफ साफ कह दिया कि कोई भी शिवसैनिक मुख्यमंत्री बने तो उन्हें खुशी होगी. सामने बैठकर बातें करो. मैंने अपना त्यागपत्र तैयार कर लिया है. यह मेरी मजबूरी नहीं हम पुनः लड़ेंगे.,

जब तक शिवसैनिक हमारे साथ हैं हमें किसी बात का डर नहीं मगर फेसबुक लाइव पर कही गयी मुख्यमंत्री ठाकरे की बातों का असर गलत ही हुआ. उसके बाद एबीपी न्यूज ने दावा किया कि जलगांव जिले से षिवसेना विधायक व दिग्गज नेता गुलाबराव पाटिल भी गौहाटी, आसाम पहुंचकर एकनाथ शिंदे के साथ हो गए हैं. तथा कुछ अन्य विधायकों के आसाम पहुंचे की भी अटकलें गर्म हैं.

इस तरह अब एकनाथ शिंदे के साथ 35 षिवसेना विधायकों ेके साथ छह निर्दलीय विधायक हैं. इनमें से एक निर्दलीय विधायक गीता जैन तो भाजपायी ही हैं. जी हां! चुनाव के वक्त गीता जैन को भाजपा ने टिकट नहीं दिया था तो गीता जैन ने निर्दलीय चुनाव लड़कर भाजपा उम्मीदवार को पराजित कर विधायक चुनी गयी थीं.

एकनाथ शिंदे का आरोपः यह शिवसेना बाला साहेब ठाकरे वाली शिवसेना नही महाराष्ट् व शिवसेना को नजदीक से समझने वाले राजनैतिक पंडितों की माने तो एकनाथ शिंदे ने उपरोक्त आरोप लगाकर षिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे की कमजोर नस को दबा दिया है. जिससे अब उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री की कुर्सी के साथ पार्टी के भी हाथ से फिसल जाने का डर सताने लगा है.

वैसे एकनाथ शिंदे ने कुछ भी गलत नहीं कहाण्बाला साहेब ठाकरे की शिवसेना पार्टी बहुत अलग तरह की थी. उस वक्त बाला साहेब ठाकरे ष्मातोश्रीष् के अंदर बैठकर अपने शिवसेना शाखा प्रमुखों के बल पर ही पार्टी चला रहे थे. इसी वजह से बाला साहेब ने अपने परिवार को चुनाव या शासन में शामिल करने से दूर रखा. एक तरह से बाला साहेब ठाकरे ने अपनी पार्टी के अलग अलग जिलो में अलग अलग छत्रप बसा रखे थेण्यह छत्रप अपने अपने इलाके के बादशाह थे. मसलन एक इलाके मे नारायण राणेएतो एक इलाके में छगन भुजबल थे तो वहीं ठाणे में आनंद दिघे का बोलबाला था आनंद दिघे की मौत के बाद वह स्थान एकनाथ शिंदे ने हासिल कर लिया. ठाणे से ही एकनाथ शिंदे मार्गदर्शन में प्रताप सरनाइक भी काम कर रहे थे. जो कि अब उन्ही के साथ आसाम में हैं. जब जब इन छत्र ने सिवसेना का साथ छोड़ा तब शिवसेना उस उस इलाके में कमजोर होती रही है. अमूमन देखा जाता है कि जब किसी राजनैतिक दल का कोई नेता उस राजनैतिक दल को छोड़़ता है. तो वह नेता कमजोर हो जाता है मगर शिवसेना से अलग होने वाले नेता कभी कमजोर नहीं हुए क्योंकि वह अपने अपने इलाके में जमीन से व लोगों के साथ जुड़े रहे हैंण्फिर चाहे वह छगन भुजबल रहे हों

अथवा नारायण राणे शिवसेना में इन छत्रों का ही हमेशा महत्व रहा है. बाला साहेब ठाकरे के साथ शिवसेना में रहते हुए राज ठाकरे का अपना एक वर्चस्व रहा. मगर जैसे ही उन्होंने शिवसेना से अलग होकर ष्मनसेष् गठित की. वैसे ही वह भी कमजोर हो गए. बकि राज ठाकरे ने षिवसेना की षैली में ही काम करने का प्रयास किया उधर जब तक बाला साहेब ठाकरे रहे. एतब तक उद्धव ठाकरे महज उनके बेटे के रूप में ही नजर आते रहे  वह एक राजनेता के रूप में जमीन से कभी नहीं जुड़ेण्लोग मानते हैं कि उद्धव ठाकरे कभी भी चुनाव लड़कर जीत हासिल नही कर सकते.

इतना ही नही यदि चुनावी राजनीति की संजीवनी षिवसेना को भाजपा से ही मिली थी. इसमें कोई दो राय नही इस पर फिर कभी विस्तार से बात की जाएगी कुछ राजनैतिक पंडित मानते हैं कि पुत्र मोह यानी कि आदित्य ठाकरे को मुख्यमंत्री पर आसीन करने की ख्वाहिश के चलते 55 विधायक होने के बावजूद शिवसेना ने भाजपा का साथ छोड़ा. शिवसेना से नजदीकी रखने वालों की माने तो इसे संजय राउत ने ही हवा दी थी और अपने बड़बोले बयानों के साथ भाजपा विरोधष् का फायदा उठाकर उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री व आदित्य ठाकरे को पर्यावरण मंत्री बनवाने में असफल हो गएण्उसके बाद उद्धव जी भूल गए कि उनकी अपनी शिवसेना पार्टी में छात्रों को साथ कर रखना आवश्यक है. वह तो सब कुछ भुलाकर सीधे संजय राउत का कद बढ़ाते चले गए. एजिसके चलते षिवसेना के अंदर विद्रोह की आग जलने लगीण्ठाणे से विधायक प्रताप सरनायक ने कई बार मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को पत्र लिखकर भाजपा सेे हाथ मिलाने की गुहार लगायीएपर संजय राउत उस पर मिट्टी डलवाते रहे. वही आग अब ज्वालामुखी बन कर सामने आ गयी है.

मुख्यमंत्री आवास को अलविदा कहा

फेसबुक लाइव पर भावनात्मक बातें करने के बाद मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री आवास में शरद पवार सहित कुछ नेताओ के साथ आमंत्रणा की. फिर उन्होंने देर रात बंगले को अलविदा कह अपने पुष्तैनी मकान मातोश्री को रवना हुए.

मुख्यमंत्री पर मुकदमा कायम

मुख्यमंत्री निवास कोे छोड़कर अपने पुश्तैनी मकान ष्मातोश्रीष् जाने पर उनके खिलाफ भाजपा नेता तेजींदर पाल सिंह बग्गा ने  मुंबई के मलाबार पुलिस स्टेशन में मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे पर कोविड नियमो के उल्लंघन करने का केस दायर किया है क्योंकि फेसबुक लाइव में मुख्यमंत्री ने खुद को कोविड से पीड़ित बताया था.

यहां पर हमें एकनाथ शिंदे के इस बयान पर गहराई से विचार करना चाहिए. एकनाथ शिंदे ने कहा है. हम  शिवसैनिक थे. हम  शिवसैनिक हैं और हम शिवसैनिक रहेंगें जिस तरह के हालात नजर आ रहे हैं उसे देखते हुए यह कहना गलत नही होगा कि एक दिन एकनाथ शिंदे खुद को असली शिवसेना पार्टी का अध्यक्ष ना बता दें तब लोगों को बिहार के चिराग पासवान याद आएंगे.

वनराज को अकेला छोड़ इस शख्स के साथ घूमने निकली काव्या, देखें Video

अनुपमा फेम काव्या यानी मदालशा शर्मा सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव रहती हैं. वह आए दिन फैंस के साथ फोटोज और वीडियोज शेयर करती रहती हैं. अब उन्होंने एक वीडियो शेयर किया है, जिसमें वह वनराज को अकेला छोड़ घूमने निकल गई है.

‘अनुपमा’ की काव्या यानी मदालसा शर्मा (Madalsa Sharma) ने हाल ही में एक वीडियो शेयर किया है. इस वीडियो में वो घूमने निकल गई हैं. इस वीडियो में वो एक शख्स के साथ एयरपोर्ट पर नजर आ रही हैं. उनके हाथ में बोर्डिंग पास है, जिसे वो फ्लॉन्ट कर रही हैं. मदालसा फ्लाइट में बैठी हुई भी नजर आ रही हैं. इस वीडियो में वह अपने रियल लाइफ हसबैंड मिमोह चक्रवर्ती के साथ हैं.

 

बता दें कि मदालसा शर्मा ने कई फिल्मों में काम किया है. वो इस टीवी शो मे निगेटिव रोल निभा रही हैं और उन्हें अब टीवी की वैम्प का खिताब भी मिल चुका है. अनुपमा में एंट्री करने के बाद से मदालसा का फैन फॉलोइंग में और भी ज्यादा बढ़ोतरी हुई है.

 

शो में आपने देखा था कि किंजल पेट के बल गिर गई थी, जिस वजह से शाह परिवार और कपाड़िया हाउस में खलबली मच गई थी. वनराज ने अनुपमा को खूब खरी-खोटी भी सुनाई तो दूसरी तरफ अनुज ने भी अनुपमा को शाह परिवार से दूर रहने की बात कह दी.

 

अनुपमा का जीना मुश्किल करेगी राखी दवे, सामने आया Video

टीवी सीरियल ‘अनुपमा’ इन दिनों टीआरपी लिस्ट में कब्जा जमाए हुए है. शो में इन दिनों हाईवोल्टेज ड्रामा चल रहा है. जिससे दर्शकों को एंटरटेनमेंट का डबल डोज मिल रहा है. शो के बिते एपिसोड में आपने देखा कि बरखा अनुज-अनुपमा के बीच जहर घोलने का काम कर रही है. वह अनुज को शाह परिवार के खिलाफ भड़का रही है. शो के अपकमिंग एपिसोड में खूब धमाल होने वाला है. आइए बताते है, शो के नए एपिसोड के बारे में…

शो के अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि शो में राखी दवे की धमाकेदार एंट्री होगी. वह ‘अनुपमा’  की जिंदगी में फिर से तांडव मचाने वाली है. शो से जुड़ा वीडियो सोशल मीडिया पर सामने आया है.

 

वीडियो में आप देख सकते हैं कि राखी दवे यानी तसनीम नेरुकर की वापसी हो चुकी है, जिसने आते ही शाह फैमिली की वाट लगाना शुरू कर दिया है. राखी दवे आते ही बा से लड़ती नजर आ रही है तो वहीं अनुपमा दोनों के बीच में सुलह कराने की कोशिश कर रही है.

 

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शो में दिखाया जा रहा है कि कपाड़िया हाउस में बरखा अनुपमा को जमकर परेशान कर रही है तो वहीं अब राखी दवे भी अनुपमा का जीना हराम करेगी. शो में आपने देखा कि  अनुज और अनुपमा के घर में किंजल गिर जाती है. किंजल के गिरते ही अनुपमा घबरा जाती है. अनुज और अनुपमा किंजल को अस्पताल लेकर जाते हैं. वनराज भी अनुज के घर पर पहुंच जाता है. वनराज की वजह से अनुपमा-अनुज के रिश्ते में दरार आने वाला है.

 

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शो में ये भी दिखाया गया कि वनराज इस घटना का जिम्मेदार अनुपमा को ठहराया. वनराज ने कहा कि अब उसके बच्चे अनुपमा के घर पर नहीं आएंगे. ये बात सुनकर अनुपमा घबरा जाती है. तो दूसरी तरफ बापूजी वनराज का गुस्सा शांत करवाने की कोशिश करते हैं.

क्या है बीजेपी का ऑपरेशन लोटस?

बीजेपी जीते बगैर सत्ता हथियाने में माहिर, इससे पहले भी कई राज्यों में चल चुका ऑपरेशन लोटस

‘ऑपरेशन लोटस’ BJP की उस स्ट्रैटजी के लिए गढ़ा गया शब्द है, जिसमें सीटें पूरी न होने के बावजूद पार्टी सरकार बनाने की कोशिश करती है. ऑपरेशन लोटस के तहत बीजेपी उन राज्यों को अपना टारगेट बनाती है जहां बीजेपी सत्ता में नहीं होती या कम सीटें होनी की वजह से वो सत्ता में आ नहीं पाती. महाराष्ट्र से पहले भी बीजेपी कई राज्यों में अपना ऑपरेशन लोटस चला चुकी है. जिसमें से कई राज्यों में बीजेपी को सफलता मिली तो कई राज्यों में बीजेपी को असफलता का स्वाद चखना पड़ा. इस ऑपरेशन के तहत बीजेपी अलग-अलग तरीकें से सत्ता को गिराकर अपनी सरकार बनाने की कोशिश करती है.

  1. मध्य प्रदेश में तख्तापलट मुहिम पास

योजना

कांग्रेस के असंतुष्ट नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थक विधायकों को बीजेपी के पाले में करना और कमलनाथ की सरकार गिराकर अपनी सरकार बना लेना.  इस योजना की कमान बीजेपी नेता नरोत्तम मिश्रा को सौंपी गई.

क्या-क्या हुआ

2018 के विधानसभा चुनाव में किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिला. कांग्रेस ने बीएसपी और निर्दलियों की बैसाखी पर सरकार बनाई. एक तरफ सरकार के पास मजबूत संख्याबल नहीं था, दूसरी तरफ कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया पार्टी से नाराज चल रहे थे.

‘ऑपरेशन लोटस’ के लिए ये बेहद सहीं और बेहतर समय था. बीजेपी के बड़े नेताओं ने सिंधिया से संपर्क साधा और 9 मार्च 2020 को सिंधिया ने अपने समर्थक विधायकों के साथ बगावत कर दी. इन विधायकों को चार्टर प्लेन से बेंगलुरु पहुंचा दिया गया.

तमाम कोशिशों के बाद भी सिंधिया नहीं माने और कमलनाथ सरकार अल्पमत में आ गई. 20 मार्च 2020 को महज 15 महीने मुख्यमंत्री रहने के बाद कमलनाथ ने इस्तीफा दे दिया और कांग्रेस सरकार गिर गई. जिसके बाद शिवराज सिंह चौहान प्रदेश के नए मुख्यमंत्री बने.

2.राजस्थान में गहलोत सरकार को गिराने की साजिश

योजना

राजस्थान का मुख्यमंत्री नहीं बन पाने के कारण नाराज सचिन पायलट के जरिए कांग्रेस विधायकों को बीजेपी के पाले में कर अशोक गहलोत की सरकार को गिराना. इसके लिए राजस्थान बीजेपी की स्टेट यूनिट को अहम जिम्मेदारी सौंपी गई.

क्या-क्या हुआ

राजस्थान में 2018 के चुनाव में कांग्रेस ने 100 सीटें जीतकर मुश्किल से बहुमत आंकड़ा छुआ था. बसपा और निर्दलियों को कांग्रेस के पाले में कर सीएम अशोक गहलोत ने अपनी कुर्सी मजबूत करने की कोशिश की. वहीं विधानसभा में कांग्रेस का चेहरा रहे सचिन पायलट मुख्यमंत्री बनने के लिए अपनी कोशिशें जारी रखीं.

ऐसे में बीजेपी के ‘ऑपरेशन लोटस’ के लिए सचिन पायलट सबसे बेहद पसंदीदा चेहरा थे. राजस्थान बीजेपी के नेताओं ने उनकी नाराजगी को भांप उनसे संपर्क किया. 11 जुलाई 2020 सचिन पायलट ने गहलोत के खिलाफ मोर्चा खोल दिया और कांग्रेस के 18 विधायकों के साथ गुरुग्राम के एक होटल में पहुंच गए. गहलोत भी अपनी कुर्सी बचाने के लिए एक्टिव हो गए. जिसके लिए उन्होंने अपने पाले वाले सभी विधायकों को एक होटल में रखा. इसके बाद प्रियंका गांधी वाड्रा ने सचिन पायलट से 10 अगस्त 2020 को बातचीत कर उन्हें मना लिया. यहां बीजेपी पर कांग्रेस भारी पड़ गई और बीजेपी ॉ की कांग्रेस विधायकों को तोड़ने की स्ट्रैटजी विफल हो गई.

3. कर्नाटक में कुमारस्वामी की सत्ता पलटी

योजना

कांग्रेस और JDS के विधायकों को अपने पाले में करके विधानसभा में बहुमत का आंकड़ा कम करना और बीजेपी की सरकार बनाना. बीजेपी ने बीएस येदियुरप्पा को इस पूरी योजना की कमान सौंपी.

क्या-क्या हुआ

2017 के कर्नाटक विधानसभा चुनाव में बीजेपी 104 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. बीजेपी नेता बीएस येदियुरप्पा ने सीएम पद की शपथ भी ले ली, लेकिन फ्लोर टेस्ट पास नहीं कर पाए. जिसके बाद सरकार गिर गई.

इसके बाद कांग्रेस के 80 और JDS के 37 विधायकों ने मिलकर सरकार बना ली. 2 साल भी पूरे नहीं हुए थे कि कर्नाटक में पॉलिटिकल क्राइसिस शुरू हो गया. जुलाई 2019 में कांग्रेस के 12 और JDS के 3 विधायक बागी हो गए. कांग्रेस-JDS सरकार के पास 101 सीटें बचीं. वहीं बीजेपी की 105 सीटें बरकरार रहीं.

मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और कोर्ट ने फ्लोर टेस्ट का आदेश दिया गया. सरकार फ्लोर टेस्ट में फेल हो गई और CM कुमारस्वामी ने इस्तीफा दे दिया.

4. महाराष्ट्र में अजीत पवार को तोड़ने का पैंतरा

योजना

शिवसेना के कांग्रेस और NCP के साथ जाने के प्लान को अजित पवार के साथ मिलकर बर्बाद करना.

क्या-क्या हुआ

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजे 24 अक्टूबर 2019 को घोषित हुए थे. बीजेपी-शिवसेना गठबंधन को स्पष्ट बहुमत मिला था. बीजेपी को 105 और शिवसेना को 56 सीटें मिलीं. वहीं NCP को 54 और कांग्रेस को 44 सीटों पर जीत मिली. मुख्यमंत्री पद को लेकर बात ना बन पाने पर बीजेपी और शिवसेना अलग हो गईं.

इसके बाद शिवसेना ने NCP और कांग्रेस से हाथ मिलकर सरकार बनाने की घोषणा की, लेकिन इसके एक दिन बाद 23 नवंबर 2019 को ही CM के रूप में देवेंद्र फडणवीस ने शपथ ले ली. उनके साथ ही अजित पवार ने भी डिप्टी CM पद की शपथ ली.

जिसके बाद NCP प्रमुख शरद पवार ने पार्टी के विधायकों को अजित के साथ जाने से रोक लिया. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने फ्लोर टेस्ट का आदेश दिया. जब फडणवीस को लगा कि वह बहुमत नहीं हासिल कर पाएंगे तो उन्होंने 72 घंटे में ही CM पद से इस्तीफा दे दिया.

5. गोवा में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी, फिर भी BJP सरकार

योजना

कम सीटें होने के बावजूद सरकार बनाने का दावा पहले पेश करना.

क्या-क्या हुआ

फरवरी 2017 के गोवा विधानसभा चुनाव में किसी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला, लेकिन कांग्रेस 17 सीटों के साथ सबसे बड़ा पार्टी बनकर उभरी. सत्ता की चाबी छोटे दलों और निर्दलियों के हाथ में थी.

इसके बाद मनोहर पर्रिकर ने बहुमत ना होने के बावजूद भी 21 विधायकों के समर्थन की बात कहते हुए सरकार बनाने का दावा पेश किया. राज्यपाल मृदुला सिन्हा ने उन्हें सरकार गठन का न्यौता दे दिया. जिसपर राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि गोवा में कांग्रेस के बहुमत का बीजेपी ने हरण किया. कांग्रेस का तर्क था कि सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते सरकार गठन के लिए उन्हें पहले बुलाया जाना चाहिए था.

6. अरुणाचल प्रदेश में कांग्रेस पार्टी हुई बागी

योजना

कांग्रेस के दो तिहाई से ज्यादा विधायकों को तोड़कर नई सरकार बनाना.

क्या क्या हुआ

2014 चुनाव के बाद अरुणाचल प्रदेश में कांग्रेस ने पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई. लेकिन कांग्रेस विधायकों के बीच चल रही रंजिश को लेकर लगातार चर्चा चलती रही.

2 साल बाद 16 सितंबर 2016 को कांग्रेस पार्टी के मुख्यमंत्री पेमा खांडू और 42 विधायक पार्टी छोड़कर पीपुल्स पार्टी ऑफ अरुणाचल प्रदेश में शामिल हो गए.  PPA ने बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाई.

7. उत्तराखंड में बहुगुणा की नाराजगी भुनाकर सत्ता को अपने कब्जे में करना

योजना

CM पद से हटाए गए कांग्रेस नेता विजय बहुगुणा की नाराजगी को भुनाकर कांग्रेस को तोड़ना और विधानसभा में बहुमत हासिल करना था.

क्या-क्या हुआ

उत्तराखंड में 2012 के विधानसभा चुनाव में त्रिशंकु विधानसभा रही. कांग्रेस 32 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनी, जबकि बीजेपी को 31 सीटें मिलीं.  ऐसे में बीजेपी इस हार को पचा नहीं पा रही थी, लेकिन जैसे ही कांग्रेस ने केदारनाथ आपदा के बाद विजय बहुगुणा को हटाकर 2014 में हरीश रावत को CM बनाया, बीजेपी को यहां उम्मीदें दिखने लगीं.

बीजेपी बहुगुणा की नाराजगी का फायदा उठाया. 18 मार्च 2016 को बहुगुणा समेत कांग्रेस के 9 विधायक बागी हो गए. हालांकि, उत्तराखंड के स्पीकर ने जब कांग्रेस के 9 बागियों को अयोग्य घोषित कर दिया तो केंद्र सरकार ने उसी दिन राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया.

इसके बाद सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर बागी विधायकों को दूर रखते हुए शक्ति परीक्षण कराया गया. 11 मई 2016 को बहुमत परीक्षण में रावत की जीत हुई. सुप्रीम कोर्ट के चलते यहां भी विधायकों को तोड़ने का BJP का पैंतरा काम नहीं आया.

ठंडे इलाकों की फसल: सेब की खेती राजस्थान जैसे गरम प्रदेश में भी मुमकिन

राजस्थान का मौसम सेब की खेती के अनुकूल नहीं है. यह सभी को मालूम है कि यहां धूल भरी आंधियां, गरमी में 45 डिगरी के पार पारा और सर्दियों में हाड़ कंपा देने वाली ठंड होती है. इन चुनौतियों के बाद भी यहां सेब उगाने की कोशिश किसी चमत्कार से कम नहीं है, क्योंकि कृषि नवाचार एवं अनुसंधान सबकुछ ठीक रहा तो जल्द ही सभी को राजस्थान के मरुस्थल क्षेत्र के सेब खाने को मिलेंगे.

हिमाचल प्रदेश में तैयार हुई सेब की खास किस्म विशेष तौर पर ऊंचे तापमान के लिए है, जिस का नाम है, हरमन-99. यह किस्म ऐसे स्थान के लिए ही तैयार की गई है, जो गरम है और जहां तापमान ज्यादा हो, इसलिए सेब की इस नई किस्म हरमन-99 को राजस्थान में भी उगाया जा रहा है और खेती सफल हो रही है.

इस किस्म को हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले के एक प्रगतिशील किसान हरिमन शर्मा ने विकसित किया है, जिसे मैदानी, उष्णकटिबंधीय और उपोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में उगाया जा सकता है. सेब की इस किस्म को फूल आने और फल लगने के लिए ठंड की जरूरत नहीं होती है.

हरमन-99 किस्म का सेब किसी भी तरह की मिट्टी में उगाया जा सकता है, चाहे वह पथरीली मिट्टी हो या दोमट या लाल. इस फसल के लिए सब से जरूरी बात जलवायु है, जिसे देखते हुए हरमन-99 किस्म को तैयार किया गया है.

हरमन 99 सेब का पौधा 40 से 48 डिगरी तापमान पर भी आसानी से पनप सकता है. इस में स्वपरागण के जरीए प्रजनन होता है. इसे कोई भी अपने बगीचे में लगा सकता है.

हरमन-99 किस्म का पौधा देशी सेब के पेड़ पर ग्राफ्टिंग कर के तैयार किया जाता है. कैसे लगाए जाते हैं इस के पौधे. इस किस्म को अपने खेत में ऐसी जगह लगाया जाता है, जहां ज्यादा पानी खड़ा न होता हो. सभी तरह की मिट्टी में इसे उगाया जा सकता है.

उत्तम समय : अक्तूबर से दिसंबर महीने तक पौध लगाने का उचित समय है. फूल आने का समय फरवरी माह व फल आने का समय जूनजुलाई माह है. पौध रोपण के डेढ़ वर्ष बाद फल आने शुरू हो जाते हैं.

सिंचाई : सामान्य पानी में पनपने वाले इस पौधों को सर्दी में हफ्ते में एक बार और गरमी में 2 बार सिंचाई की जाती है.

उत्पादन : पहले साल 7 से 8 किलोग्राम फल आते हैं. पौधे बड़े होने पर 40 से 50 किलोग्राम पैदावार देता है. दावा है कि 25 साल तक खड़ा रहने वाला यह पौधा राजस्थान क्षेत्र की जलवायु के अनुकूल है.

सेब की इस किस्म की न्यूट्रीशन वैल्यू कश्मीर और हिमाचल प्रदेश के सेबों से भी ज्यादा बताई जाती है.

कृषि विश्वविद्यालय, जोधपुर के खास नवाचार व प्रगतिशील किसानों के प्रयासों से पश्चिमी राजस्थान में ‘समर एपल’ नाम से मशहूर सेब की किस्म हरमन-99 राजस्थान के 10 जिलों पैदा हो रही है.

इस किस्म का पौधा पश्चिमी राजस्थान में नवाचार के रूप में तकरीबन 10 हेक्टेयर क्षेत्र में 4 3 3 मीटर की दूरी से 6,000 पौधों लगाए गए हैं. इस की खेती कृषि विश्वविद्यालय, जोधपुर के अधीन क्षेत्र जोधपुर, नागौर, बाड़मेर, पाली, जालौर, सिरोही और कृषि विज्ञान केंद्र एवं अनुसंधान केंद्रों के साथ कृषि विज्ञान केंद्र, गुड़ामालानी में भी पौधे लगाए गए हैं, जिन का अनुसंधान का काम चल रहा है.

बेरी सीकर की प्रगतिशील किसान संतोष खेदड़ जैविक तरीके से सेब की खेती कर रही हैं. साथ ही, नर्सरी में हरमन-99 की पौध भी तैयार कर रही हैं. वहीं, झुंझुनूं व चित्तौड़गढ़ के प्रगतिशील किसानों द्वारा भी इस की खेती की जा रही है. प्रति पौध 100 से 125 रुपए व अधिक रखरखाव की जरूरत न होने पर किसानों के लिए इस का बगीचा लगाना महंगा नहीं है.                                          ठ्ठ

‘‘समर एपल (हरमन-99) सेब की नई किस्म है, जो उच्च तापमान के लिए विकसित की गई है. इस का रोपण कलम ग्राफ्टिंग विधि से किया जाता है. इस की पौध हमारे केंद्र पर भी लगाई गई है, जिस का अध्ययन चल रहा है. इस किस्म की पौध लगाने के लिए किसान शीघ्र ही इस की नर्सरी लगाएंगे, जिस से किसानों को कम कीमत पर आसानी से पौधे उपलब्ध हो सकें.’’

– डा. प्रदीप पगारिया (वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक, कृषि विज्ञान केंद्र, गुड़ामालानी, राजस्थान)

‘‘सेब की हरमन-99 किस्म की खास विशेषता यह है कि इस का फल गुलाबी और लाल रंग के अंदर आता है. इस में बीमारियां भी बहुत ही कम लगती हैं. वहीं कम पानी में भी यह किस्म आसानी से हो जाती है. जितने भी गरम इलाके हैं, वहां पर आसानी से इस किस्म को उगाया जा सकता है. इस की जो बढ़वार है, वह गरमियों में बहुत अधिक तेजी से वृद्धि करती है. इस के फल को पक्षियों से बचाने के लिए बर्ड नैट का उपयोग किया जाता है. यह किस्म मेरे गांव बेरी, सीकर के अंदर सफलतापूर्वक उगाई जा रही है और इस का जो परिणाम है, वह बहुत ही शानदार रहा है और किसान इस से अधिक मुनाफा कमा सकता है.’’

– संतोष खेदड़ (प्रगतिशील किसान वैज्ञानिक, उपराष्ट्रपति से सम्मानित, गांव बेरी, सीकर)

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