शिष्टाचार निभाना अच्छी बात है लेकिन इस की भी सीमाएं होती हैं. केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने मुंबई में हदें पार करते हुए नैशनल सिक्योरिटीज डिपौजिटरी लिमिटेड के सिल्वर जुबली आयोजन में भाषण दे रहीं मैनेजिंग डायरैक्टर पद्मजा चुंदुरु को मांगने पर पीने का पानी दिया तो उन की सादगी की मिसाल दी जाने लगी. भाषण देतेदेते पद्मजा का गला सूखने लगा तो उन्होंने पानी के लिए इशारा किया, इस पर निर्मला बोतल ले कर स्टेज तक पहुंच गईं.
यह टोटका असल में हीनतायुक्त था कि कैसे तो पब्लिसिटी मिले क्योंकि मीडिया प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अलावा किसी और मंत्री को स्पेस नहीं देता. नाम और प्रचार के लिए तरस रहे मंत्री सस्ते हथकंडे आजमाने लगे हैं. इस चक्कर में उन्हें प्रोटोकौल भी तोड़ना पड़ रहा है. रही बात वित्त मंत्री की तो वे आम बजट में ही खासा पानी आम लोगों को पिला चुकी हैं.
बहके क्यों पी के
चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर यानी पी के अब कांग्रेस में नहीं जाएंगे बल्कि अपनी खुद की पार्टी बनाएंगे. इस बाबत उन्होंने बिहार से तैयारियां भी शुरू कर दी हैं. पी के की कोई जमीनी पकड़ नहीं है. उन्हें तो मीडिया ने हौआ बना दिया है. जो रणनीति वे बनाते हैं वह अकसर चौपालों, चौराहों और चाय के अड्डों पर पहले ही बन चुकी होती है.
पी के, दरअसल, सांख्यिकी विज्ञान के संभावना वाले सिद्धांत को हथियार की तरह इस्तेमाल करते हैं यानी वे अभिजात्य तोता छाप भविष्यवक्ता हैं जो यह भी बताता है कि रेस में कौन सा घोड़ा जीतेगा और न जीते तो यह भी बता देते हैं कि वह क्यों नहीं जीता.
कांग्रेस बहुत घिसे लोगों की पार्टी है जिन के सामने ऐसे कई पी के पानी भरते हैं, इसलिए उन्हें पार्टी में शामिल नहीं किया गया. इस पर तिलमिलाए पी के क्या सोच कर अपनी पार्टी बनाने जा रहे हैं, यह तो शायद वे भी नहीं जानते होंगे. हां, वक्त काटने और अब तक कमाया पैसा ठिकाने लगाने को उन का यह आइडिया बुरा नहीं.
इन्हें कोई मिल गया था
मशहूर रामकथा वाचक मोरारी बापू अब अकसर सनातनियों के निशाने पर रहने लगे हैं क्योंकि उन के अरबों के कारोबार में राम के साथ अल्लाह की तसवीर भी टंगी रहती है और वे शंकराचार्यों व महामंडलेश्वरों की तरह सनातनी संविधान का पालन भी नहीं करते. पिछले साल मुंबई के बदनाम इलाके कमाठीपुरा की कौल गर्ल्स को अयोध्या ले जा कर उन का उद्धार करने की नाकाम कोशिश उन्होंने की थी.
मोरारी बापू का वायरल होता एक वीडियो भक्त और अभक्त दोनों दिलचस्पी से देख रहे हैं जिस में ‘पाकीजा’ फिल्म के गाने चलतेचलते इन्हें ‘कोई मिल गया था….’ पर कुछ संभ्रांत महिलाएं नृत्य या मुजरा, जो भी कहलें, कर रही हैं और मौजूद लोग इस का लुत्फ उठा रहे हैं.
वीडियो वायरल करने से कट्टरपंथियों का मोरारी बापू को बदनाम करने का मकसद हल नहीं हुआ क्योंकि धार्मिक आयोजनों में महिलाओं के नाच रोजमर्रा की बात है, इस के बिना ये आयोजन फीके रहते हैं. बापू अपने तरह से आयोजनों को आकर्षक और कमाऊ बनाते हैं, इस पर एतराज के कोई माने नहीं.
ताकि वे मोची ही रहें
वर्णव्यवस्था को कायम रखने का कोई मौका भगवा गैंग के मैंबर नहीं चूकते. यही नहीं, इस बाबत नएनए मौके पैदा करने में उन्हें महारत भी हासिल है. मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मोचियों का अपने निवास पर ही सम्मेलन आयोजित कर उन्हें सहूलियतें देने का वादा करते कुछ को मोची किट भी थमा दी.
अब लोग पहले से सस्ते और घटिया फुटवियर नहीं पहनते और जूतेचप्पल टूट भी जाएं तो उन्हें सुधरवाने मोची के पास नहीं जाते. ऐसे में भी मोचियों और चर्मकारों को इस धंधे से नजात क्यों नहीं मिल रही? यह सोचना किसी नेता का काम नहीं, बल्कि खुद बचेखुचे मोचियों का है कि उन्हें समाज में सम्मानजनक स्थान चाहिए, फुटपाथ पर बैठे रहने के लिए टूलकिट नहीं.