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आशिकी: तनु की गैरमौजूदगी में फ्लर्ट कर रहा था नमन

औफिस से आते समय गाना सुनते हुए कार चलाते नमन का मूड बहुत रोमांटिक हो गया. पत्नी तनु का खयाल आया, साथ ही अपनी फ्लोर पर एक फ्लैट शेयर कर के रहने वाली अंजलि, निया, रोली और काजल का भी खयाल आया तो घर जाने का उत्साह और भी बढ़ गया.

5 साल पहले नमन का विवाह तनु से हुआ था. दोनों ही लखनऊ में थे. यहां मुंबई में नमन जौब करता था. चारों लड़कियों से आतेजाते तनु की अच्छी जानपहचान हो गई थी. सब कामकाजी थीं पर छुट्टी के दिन जब भी कोई फ्री होती तो तनु के पास आनाजाना लगा रहता था. तनु कुछ स्पैशल बनाती तो इन के लिए भी रख लेती थी.

नमन और तनु की एक 3 वर्षीय बेटी भी थी सिया. तनु की गोद में प्यारी सी गुडि़या जैसी सिया से बोलते, हंसतेखेलते चारों लड़कियां तनु के भी करीब आती गई थीं. दिलफेंक, आशिकमिजाज नमन इन चारों लड़कियों में बड़ी रुचि लेने लगा था.

रोली एक दिन औफिस नहीं गई थी. नमन शाम को औफिस से आया तो वह तनु के साथ बैठ कर चाय पी रही थी. नमन उसे देखते ही खुश हो गया और उन दोनों के साथ ही बैठ कर चहकचहक कर बातें करने लगा.

रोली ने हंस कर कहा भी, ‘‘लग ही नहीं रहा है आप औफिस से आए हैं. इतने फ्रैश?’’

नमन ने मन ही मन सोचा कि फ्रैश तो तुम्हें देख कर हुआ हूं. नमन यही चाहता था कि इन चारों में से किसी न किसी से मिलनाजुलना होता रहे. चारों सुंदर, स्मार्ट थीं. तनु अकसर सिया के साथ व्यस्त होती. इन चारों में से कोई भी लड़की किसी काम से आ जाती और नमन घर पर होता तो वह आगे बढ़ कर खुद ही उन की आवभगत में लग जाता था. तनु सोचती कि वह सिया के साथ व्यस्त है तो नमन मेहमान की आवभगत कर उस की जिम्मेदारी में हाथ बंटाता है.

नमन का झुकाव इन लड़कियों की तरफ बढ़ता ही जा रहा था. घर में ही नहीं, औफिस में भी नमन का यही हाल था. साथ में काम करने वाली लड़कियों के साथ खूब फ्लर्ट करता था. कभी किसी लड़की को कौफी औफर करता, कभी किसी का घर रास्ते में न पड़ने पर भी उसे घर तक छोड़ देता. तनु अपने पति के इस स्वभाव को गंभीरता से न लेती. वह सोचती, नमन काफी सोशल है, क्या बुरा है इस में. हमारे कौन से रिश्तेदार हैं यहां. ये कुछ दोस्त ही तो हैं.

एक दिन सिया को ले कर तनु किसी बर्थडे पार्टी में गई हुई थी. नमन औफिस से आया. ताला लगा था. उस के पास चाबी तो रहती थी पर जब उस ने इन लड़कियों का फ्लैट खुला देखा तो मन में कुछ और ही सोच लिया. उन की डोरबैल बजा दी तो दरवाजा काजल ने खोला.

नमन ने भोली सूरत बना कर पूछा, ‘‘सिया और तनु यहां तो नहीं हैं?’’

‘‘नहीं तो?’’

‘‘ओह.’’

‘‘घर पर नहीं हैं क्या?’’

‘‘नहीं, मेरे पास चाबी रहती तो है पर आज घर पर ही छोड़ गया था, वह मोबाइल भी नहीं उठा रही है. खैर, आ जाएगी.’’

‘‘आप अंदर आ जाइए, वेट कर लीजिए.’’

नमन यही तो चाहता था. अंदर जा कर चारों तरफ नजर डाली. यहां पहली बार आया था.

काजल से पूछा, ‘‘आज आप औफिस नहीं गईं?’’

‘‘हाफ डे ले कर आ गई थी. तबीयत ठीक नहीं लग रही थी.’’

‘‘अरे, क्या हुआ? चलो, डाक्टर को दिखाते हैं पास ही है.’’

‘‘नहींनहीं, थैंक्स. दवा ले ली है. अभी ठीक हूं. आप के लिए कुछ बना दूं. चाय या कौफी?’’

नमन मन ही मन काजल के साथ समय बिताता हुआ बहुत खुश था. प्रत्यक्षत: गंभीरतापूर्वक बोला, ‘‘नहीं, रहने दें. आप आराम कीजिए.’’

उस के मना करने पर भी काजल कौफी बना ही लाई.

नमन खुश था, एक युवा, सुंदर लड़की की कंपनी में. उस के चेहरे की चमक बढ़ गई थी. कौफी की तारीफ कर काजल से उस के काम, परिवार के बारे में पूछता रहा. काजल सहजता से बात करती रही. नमन के हौसले और बुलंद हो गए. इतने में निया, अंजलि भी आ गईं. दोनों नमन से खुशमिजाजी से मिलीं. नमन इन लड़कियों की संगति में स्वयं को एक हीरो जैसा अनुभव कर रहा था.

फ्लोर पर सिया की आवाज सुन नमन ने कहा, ‘‘तनु आ गई. चलता हूं. आज आप लोगों के साथ टाइम का पता ही नहीं चला. थैंक्स,’’ कहता हुआ नमन उन के फ्लैट से निकल गया. उसे देखते ही तनु चौंकी, ‘‘अरे, तुम कब आए?’’

‘‘तुम कहां थीं?’’

‘‘ऊपर की फ्लोर पर ही एक बच्चे की बर्थडे पार्टी थी. सोचा था तुम्हारे आने तक आ जाऊंगी, पर तुम्हारे पास तो घर की एक चाबी है न?’’

नमन ने अंदर आते हुए कहा, ‘‘पता नहीं, मैं ने अपनी चाबी कहां रख दी. ऐसे ही बाहर खड़ा था तो ये लड़कियां जबरदस्ती अंदर ले गईं.’’

‘‘ठीक है, कोई बात नहीं, तुम्हारे लिए चाय बना दूं?’’

‘‘नहीं, रहने दो. उन लड़कियों ने ही पिला दी,’’ कहता हुआ नमन अपनी अलमारी में झूठमूठ ही सामान इधरउधर करता हुआ बोला, ‘‘उफ, यहां रख दी थी मैं ने चाबी. बेकार ही उन के घर जाना पड़ा.’’

सुबह ही तनु के भाई का लखनऊ से फोन आ गया. उस की मम्मी की तबीयत खराब थी. तनु घबरा गई.

नमन ने कहा, ‘‘परेशान मत हो, जा कर देख आओ. फ्लाइट की टिकट बुक कर देता हूं,’’ कह नमन ने मन ही मन पता नहीं कितने प्लान बना डाले तनु के जाने के बाद लड़कियों के साथ जी भर कर टाइमपास करेगा. बहुत उत्साहपूर्वक वह सिया और तनु को एअरपोर्ट छोड़ आया.

फ्लोर पर 4 फ्लैट थे. एक फ्लैट में एक साउथइंडियन बुजुर्ग दंपती रहते थे जो किसी से मतलब नहीं रखते थे. चौथा फ्लैट बंद पड़ा था. नमन ने रात को 8 बजे लड़कियों के फ्लैट की डोरबैल बजाई.

दरवाजा निया ने खोला, ‘‘अरे, नमनजी, आप?’’

‘‘सौरी,पर थोड़ी कौफी है क्या?’’

‘‘क्या हुआ? तनु नहीं हैं?’’

‘‘उस की मम्मी बीमार हैं. उसे आज अचानक लखनऊ जाना पड़ा. मेरे सिर में बहुत दर्द है. सोचा कौफी बना लूं. देखा तो कौफी खत्म थी.’’

‘‘ओके,’’ कह निया अंदर जा 2 पाउच ले कर आई. फिर देते हुए बोली, ‘‘ये लीजिए.’’

जब निया ने अंदर आने के लिए नहीं कहा तो नमन झुंझलाता हुआ घर लौट आया. सोच रहा था, ‘यह तो पहला आइडिया ही फेल हो गया. बेवकूफ लड़की. अंदर ही नहीं बुलाया. कौफी ही औफर कर देती. पैकेट पकड़ा दिए, हुंह.’

अगली सुबह नमन बै्रड बटर खा कर औफिस के लिए निकला तो लिफ्ट में वह और रोली साथ ही घुसे. रोली ने तनु की मम्मी की तबीयत के बारे में पूछा. फिर ऐसे ही मुसकराते हुए पूछा, ‘‘और सब कैसा चल रहा है… अकेले मैनेज करते हैं?’’

नमन के दिल में आशा की एक किरण जगी. फौरन मुंह लटका लिया, ‘‘मुझे तो कुछ बनाना आता भी नहीं है. अभी औफिस की कैंटीन में जा कर नाश्ता करूंगा…’’

लिफ्ट से बाहर निकल कर ‘गुड’ कह मुसकराते हुए रोली यह जा, वह जा. नमन को बड़ा धक्का लगा कि कैसी हैं ये लड़कियां. इतने मैनर्स भी नहीं हैं.

दिन भर फिर मन ही मन सोच रहा था कि किसकिस बहाने से लड़कियों के करीब रहा जा सकता है. तनु पहली बार ही अकेली गई थी. अब तक वह भी साथ ही आताजाता था. अकेले रहने के इस मौके को वह ऐंजौय करना चाहता था.

औफिस में अनमैरिड कुलीग आयुषि से नमन ने लंचटाइम में कहा, ‘‘तनु बाहर गई है, आज टिफिन नहीं लाया हूं. चलो, आज बाहर लंच करते हैं.’’

आयुषि के आसपास वह जानबूझ कर रहा करता था.

हाजिरजवाब आयुषि ने हंस कर कहा, ‘‘नहीं भाई, मैरिड आदमी के साथ क्या लंच पर जाना.’’

नमन को उस पर बहुत गुस्सा आया पर कुछ कह नहीं पाया. मगर नमन ने हार नहीं मानी. वह जानता था कि आयुषि अकेली रहती है. उसे मूवी का भी शौक है. एक दिन फिर कहा, ‘‘आयुषि, मूवी देखने चलें?’’

‘‘तनु अभी नहीं आई?’’

‘‘नहीं, बोर हो रहा हूं, चलो न.’’

‘‘सौरी नमन. मूड नहीं है.’’

नमन ने काफी आग्रह किया पर आयुषि नहीं मानी.

तनु को गए 4 दिन हुए थे. कितनी ही बार उस ने घर पर बहानेबहाने से रोली और बाकी लड़कियों से बातें करने, आगे संपर्क बढ़ाने के बहाने ढूंढ़ें पर बुरी तरह असफल रहा. सब उसे देख कर कन्नी काट जातीं. किसी ने भी उसे प्रोत्साहन नहीं दिया.

अब वह हैरान था. अकेली रहती हैं, तनु से अच्छे संबंध हैं, सिया से आतेजाते खेलती हैं, उस से क्या परेशानी है इन्हें. जरा सा भी टाइम उस से बात करने के लिए जैसे होता ही नहीं. अब तो समझ आने लगा है कि उसे नजरअंदाज करती हैं. ‘कोई फालतू बात नहीं’ का संदेश देते हुए आगे बढ़ जाती हैं. कितनी चालाक हैं ये आजकल की लड़कियां… जैसे मेरे मन के भाव पढ़ लिए सब ने.

नमन अकेला बैठा बहुत बोर हो रहा था. आसपास की लड़कियों के साथ फ्लर्ट करने का सपना चकनाचूर हो गया था. सारी आशिकी हवा हो चुकी थी. अचानक तनु को फोन मिला दिया था, ‘‘अगर मम्मी ठीक हैं, तो जल्दी लौट आओ. तुम्हारे बिना मन नहीं लग रहा है.’’

Anupamaa: शो में अब होगा अनुपमा का मेकओवर? देखें Photos

रूपाली गांगुली और सुधांशु पांडे (Sudhanshu Pandey) स्टारर सीरियल अनुपमा (Anupama) की कहानी में लगातार नया ट्विस्ट देखने को मिल रहा है. शो में अब तक आपने देखा कि अनुज-अनुपमा हनीमून एंजॉय कर रहे हैं तो दूसरी तरफ समर और वनराज के बीच दूरियां कम हो रही है. समर वनराज को समझने की कोशिश कर रहा है. इसी बीच अनुपाम ने सोशल मीडिया पर ऐसी तस्वीरें शेयर की है. जिसे देखकर अंदाजा लगाया जा रहा है कि अब अनुपमा का मेकओवर होने वाला है.

दरअसल रूपाली गांगुली ने इंस्टाग्राम पर तस्वीरें शेयर की है. सोशल मीडिया पर ये तस्वीरें जमकर वायरल हो रही है. इन तस्वीरों में वह लाल रंग की साड़ी में नजर आ रही हैं. साड़ी के साथ रूपाली ने गोल्डन कलर की ज्वेलरी भी कैरी की हुई है.

 

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अनुपमा ने अपनी दो तस्वीरों को शेयर करते हुए कैप्शन में लिखा है, ‘आज जाने की जिद ना करो.’ रूपाली गांगुली की इन तस्वीरों पर अब तक 74 हजार से भी ज्यादा लाइक्स आ चुके हैं.  बता दें कि अनुज और अनुपमा की शादी के बाद शो में नए किरदारों की एंट्री हो रही है, जिससे दर्शकों को एंटरटेनमेंट का डबल डोज मिलने वाला है.

 

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शो के लेटेस्ट एपिसोड में दिखाया गया कि अनुज अनुपमा अनाथायल में अनु को देखकर इमोशनल हो गये. वो दोनों अनु को लेकर बीच पर गये. अनु समंदर का किनारा देखकर बहुत खुश हो हुई.

 

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तो दूसरी तरफ पारितोष और किंजल अपने होने वाले बच्चे के लिए काफी एक्साइटेड हैं. शो में ये भी दिखाया गया कि किंजल का पैर फिसल गया और वह गिर पड़ी. पारितोष ने किंजल को संभाल लिया और आगे से उसे केयरफुल रहने के लिए कहा.

 

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शो के अपकमिंग एपिसोड में दिखाया जाएगा कि जैसे ही इस बात की भनक राखी दवे को लगेगी तो वह दौड़े-दौड़े शाह हाउस चली आएगी। इसके बाद वह वनराज शाह को खूब ताना मारेगी. अब देखना ये दिलचस्प है कि वनराज राखी दवे को कैसे शांत कराएगा?

‘बड़े अच्छे लगते हैं 2’ के लीड एक्टर हुए अस्पताल में भर्ती, पढ़ें खबर

टीवी सीरियल ‘बड़े अच्छे लगते हैं 2’ को लेकर एक बड़ी खबर आ रही है, बताया जा रहा है कि शो में राम कपूर का किरदार निभाने वाले एक्टर नकुल मेहता (Nakuul Mehta) की तबियत ठीक नहीं चल रही है. उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया है.

इस खबर के आने के बाद फैंस एक्टर के लिए दुआ कर रहे हैं. रिपोर्ट्स के मुताबिक ‘बड़े अच्छे लगते हैं 2’ फेम एक्टर नकुल मेहता बीमार पड़ गए हैं. बीते कुछ समय से नकुल मेहता की तबियत ठीक नहीं चल रही थी.

 

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खबरों के अनुसार, नकुल मेहता की सर्जरी हुई है.फिलहाल एक्टर रेस्ट पर है. फैंस एक्टर के ठीक होने के लिए दुआ कर रहे हैं. फैंस लगातार नकुल मेहता की सेहत जानने की कोशिश कर रहे हैं. गौरतलब है कि नकुल मेहता इन दिनों राम कपूर बनकर लोगों का मनोरंजन कर रहे हैं.

 

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शो में नकुल मेहता यानी राम कपूर और दिशा परमार यानी प्रिया की जोड़ी फैंस को काफी पसंद आ रही है. हाल ही में नकुल मेहता ने पिता बनने के एहसास के बारे में बात की थी. उन्होंने बताया था कि पिता बनने के बाद किस तरह से उनकी जिंदगी बदल गई है.

 

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बता दें कि नकुल मेहता ने 2012 में  सीरियल ‘प्यार का दर्द है, मीठा-मीठा प्यारा-प्यारा’ से टेलीविजन डेब्यू किया था. वो टीवी में एक्टिंग के साथ-साथ मॉडलिंग और कई म्यूजिक वीडियो में भी नजर आ चुके हैं.

 

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मेरा बॉयफ्रेंड सेक्स करने के लिए फोर्स करता है, क्या करूं?

सवाल

मैं 24 वर्षीया युवती हूं. मेरा एक बौयफ्रैंड है. हम दोनों का रिलेशनशिप औफिस से शुरू हुआ. पिछले महीने जून में हमें 2 साल हो गए हैं. वह मुझे फिजिकल रिलेशन बनाने के लिए फोर्स कर रहा है. मैं अभी इस में कम्फर्ट नहीं हूं. उसे मना करती हूं तो वह गुस्सा हो जाता है. मुझसे बात नहीं करता. कहता है कि जब करीब नहीं आना था तो रिश्ता बनाया क्यों.

मु?ो उस से प्यार है पर सोचती हूं कहीं इस वजह से रिश्ते खराब न हो जाएं, कभीकभी तो लगता है कहीं वह मु?ो यूज न कर रहा हो. आप ही बताइए मैं क्या करूं?

जवाब

रिश्ता कभी जोरजबरदस्ती से नहीं बनाया जा सकता. आप बता रही हैं कि आप बौयफ्रैंड के साथ सैक्स के लिए तैयार नहीं हैं, फिर भी वह फोर्स कर रहा है और तो और जब आप मना करती हैं तो गुस्सा अलग होता है तो यह बेहद गलत बात है.

सैक्सुअल रिलेशन 2 लोगों के बीच मर्जी से ही बनना चाहिए. जब तक दोनों तैयार नहीं तब तक इस तरह के रिश्ते में जाना ठीक नहीं. जहां जोरजबरदस्ती है वहां प्यार की गुंजाइश नहीं. अगर वह आप से सच में प्यार करता है तो उसे यह जानते हुए फोर्स तो बिलकुल नहीं करना चाहिए.

आप उस से क्लीयर बात करें कि सैक्सुअल इंटीमेसी का मतलब उस के लिए क्या है और वह आप दोनों के रिलेशनशिप के बारे में क्या सोचता है. यह जानें कि वह जब भी आप से बात करता है तो उस की बातों में सैक्स का जिक्र या इसी से जुड़ी बातें कितनी रहती हैं. बात करने के तरीके को नोट करें. वह आप से मिलने के लिए अधिकतर किन जगहों का चुनाव करता है. इन सब का ध्यान रखें.

अगर वह अधिकतर समय आप से सैक्स को ले कर ही बात करता है तो आप का संदेह कहीं न कहीं ठीक बैठता है कि वह आप को यूज करना चाहता है. ऐसे रिश्ते से निकलना बेहतर है क्योंकि ऐसे लोग कमिटेड नहीं रहते.

इन सब बातों को नोट करेंगी तो आप अपने संदेहों को दूर कर पाएंगी.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem

धर्म का धंधा

धर्म का धंधा अपनेआप में धोखेबाजी का है जिस में कल्पित भगवान, देवी, देवता, अवतार बना दिए है और कहां गया है कि इन को पूजोगे तो ही सुखी रहोगे, पैसा आएगा और इस के लिए उन के दर्शन भी करने जाना होगा और वहां दान भी देना होगा. इस महाप्रचार का लाभ अब ही नहीं सदियों से चोरउचक्के भी उठाने लगे हैं. चारधाम यात्रा का बड़ा गुणगान किया गया है और उत्तराखंड की कमजोर पहाडिय़ों पर चौड़ी सडक़ें, होटल, धर्म यात्राएं, ढांबे, पाॄकगे, एम्यूजमैंट सैंटर, रोय वे बनने लगे हैं. अब यहां ले जाने के लिए फर्जी ट्रैवल एजेंसियों भी इंटरनेट पर छा गई हैं.

बहुत सी ट्रैवल एजेंसियां बहुत सस्ते पैकेज देने लगी हैं और एक बार पैसा अकाउंट में आया नहीं कि वे गायब. चारधाम की भव्य तस्वीरों, देवीदेवताओं की मूॢतयां, संस्कृत क्लोकों व मंत्रों से भरपूर ये वैवसाइटें शातिर लोग बनाते है और आमतौर पर खुद को किसी संतमहंत का शिष्य बनाते हैं. जिन्हें वैसे ही मूर्ख बनाना आसान है, वे सस्ते पैकेज के चक्कर में और आसानी से मूख बन रहे हैं.

अब यह काम इतने बड़े पैमाने पर हो रहा है कि पुलिस भी सिर्फ चेतावनी देने के अलावा कुछ नहीं कर सकती. इंटरनेट पर जाओ, गूगल खर्र्च करो तो इन के एड वाले रिजल्ड सब से पहले आ जाते हैं, गूगल को पैसे लेने से मतलब और वह कमी भी विज्ञापनदाता की बैकग्राउंड चैक नहीं करता. यह काम यूजर का है. यूजर की जाति गुम है नई को वह चारधाम यात्रा कर के पुण्य कमा कर अपना वर्तमान और भविष्य बिना काम किए  गारंटिड करना चाहता है, वह जल्दी ही झांसे में आ जाता है और जब स्टेशन या बस स्टैंड पर सामान व परिवार के साथ पहुंचता है तो पता चलता है कि फंस गया.

इन फंसने वालों से लंबीचौड़ी सहानुभूति नहीं हो सकती क्योंकि जो हमेशा फंसने को तैयार रहते है, उन्हें कोई समझा भी कैसे सकता है. तो लाखों में छपी तस्वीर से पैसा मिलने की आशा करते हैं वे भला कब और कैसे उम्मीद करेंगे कि इंटरनेट की स्क्रीन पर जहां देवीदेवताओं की तस्वीरें हैं, भव्य मंदिर दिख रहे हैं, निर्मल जल बह रहा है, वहां नकली होटलों के फोटो हैं, नकली रिव्यू हैं, झूठे वादे हैं. ये बेवकूफ तो शिकार होने का निमंत्रण खुलेआम देते हैं. अब घर्म के दुकानदार उन्हें लूटें या दुकानदारों की आड़ में शातिर, क्या फर्क पड़ता है.

कंबल ओढ़ो, महसूस करो ठंड है

अयोध्या जा कर ‘जय श्रीराम’ का नारा लगाने का समय आ गया है. बेहतर जीवन जीने लायक कामधाम रहा नहीं. नौकरियों की इच्छा वैसे ही देश के युवा पहले ही छोड़ चुके हैं, सो अब उन्होंने काम के लिए बाहर निकलना भी बंद कर दिया है. सोशल मीडिया पर धर्म के मैसेज, ‘मातारानी पाप लगाएगी अगर आगे 10 लोगों को फौरवोर्ड नहीं किया तो..’ के डर से युवाओं में पहले ही पूरे दिन व्यस्तता बनी रहती है, इसलिए धार्मिक मैसेज ठेलनेठिलाने का काम जोरों पर है. सुहागा यह कि मंदिरमसजिद के धार्मिक विवादों ने हर दंगाई हाथ को सशक्त करने का काम किया है और वे रोजगार संपन्न सा महसूस कर रहे हैं.

भई, टीवी पर धर्म की बहस से दालरोटी न सही, नफरत तो भरपूर मिल ही रही है. इस आध्यात्मिक मन को और चाहिए भी क्या? भूखप्यास तो भौतिक सुख हैं, इस से तो ध्यान भटकता है, असल जरूरत तो धर्म है, जो जातिवाद सिखाएगा, नफरत सिखाएगा, भेदभाव सिखाएगा, हिंसा सिखाएगा. अब बताओ अपनी संस्कृति न सीखें? इसलिए बहुत से युवा दंगाई बने फिर रहे हैं और बहुत उसी राह पर हैं. मानो तो 45 डिग्री की इस गरमी में मोटा कंबल ओढ़ो और सोचो कि ठंड पड़ रही है, क्योंकि भारत के युवाओं को इस बेरोजगारी युग में दंगाई वाले रोजगार का अभ्यास और आभास हर दिन हो रहा है.

आप पूछेंगे कि धर्म को ले कर इतनी मीठी बातें क्यों कही जा रही है? भई, हम कुछ नहीं कह रहे, रोजरोज के ऊलजलूल विवाद आप के सामने हैं. हम तो मुद्दे पर बात करेंगे. मुद्दा यह है कि भारतीय रेलवे ने बीते 6 सालों में 72 हजार से अधिक पदों को ख़त्म कर दिया है. उपलब्ध दस्तावेजों के हिसाब से ख़त्म किए गए पद ग्रुप सी और डी के हैं. रेलवे का कहना है कि इन पदों को समाप्त किया गया क्योंकि अब आधुनिक तकनीक आ गई है, इसलिए अब इन पदों पर लोगों की जरूरत नहीं है.

अब समस्या यह है कि इन पदों में एक अच्छीखासी संख्या दलितपिछड़ों की रहती है. इन पदों पर ही सब से ज्यादा भरतियां निकलती भी हैं, दलितपिछड़े सब से ज्यादा रेलवे की इस श्रेणी के लिए कम्पीट करते हैं. यही नौकरियां हैं जिन में पहुंच कर वे समाज में बराबरी का दम भरा करते हैं. तकनीक तो आएगी ही, तकनीक और विज्ञान का काम इंसान को राहत देना है, उसे बेरोजगार करना तो पूंजीवादी और अब सरकारी काम हो चला है. अब समस्या यह आ गई है कि दलितपिछड़े क्या करें, जो अपनी पुरानी सी जिंदगी जी रहे हैं. खैर, यह सोचना अब सरकार का काम नहीं है. वह अलग बात है कि दलितपिछड़ों के लिए भी इस समस्या का बंदोबस्त सरकार ने अच्छे से किया है. ज्ञानवापी मसजिद विवाद पौपकौर्न के साथ रोज टीवी पर चल ही रहा है, कुछ दिन बाद तेजोमहल और विष्णु स्तंभ भी टाइमपास के लिए आ ही जाएंगे.

परिवार: मां की जिम्मेदारी अनमोल

मां की जगह कोई नहीं ले सकता. मां ऐसी दौलत है जो अनमोल है. जिस के पास यह दौलत है वह सब से धनी है. जन्म से ही बच्चा मां को पहचानने लगता है क्योंकि उस के दिल की धड़कन मां की धड़कन से मिलती है. यही वजह है कि बच्चे की किसी मुश्किल घड़ी में मां को सब से पहले उस का एहसास हो जाता है. चाहे सैलिब्रिटी मां हो या साधारण मां, हर मां में वही प्यार, दुलार, अपनापन समाया रहता है जिस का वर्णन करना आसान नहीं.

मांबेटी का रिश्ता बहुत ही प्यारा रिश्ता है

बेटाबेटा करती हैं और कितनी ही औरतें गर्भ में बेटी को जान से मार डालती हैं. एक बेटी मां के जितना करीब होती है शायद कोई और नहीं. बातें शेयर करना, एकजैसे कपड़ेगहने पहनना सबकुछ एकजैसा होता है.

कुछ मांएं अपनी सब बातें बेटी से शेयर करती हैं तो कोई कुछ बातें अपनी सहेलियों के साथ शेयर करना पसंद करती हैं, पर जब बेटी शादीशुदा हो जाती हैं उसे मां की सारी बातें सम?ाने में आसानी होती है. फिर जहां जेनरेशन गैप होता है वहां बच्चे मां की बातों को गंभीरता से नहीं ले पाते. उन्हें अजीब लगता है. आज की बेटियां जल्दी गुस्सा भी हो जाती हैं और वह गुस्सा बाप पर उतरेगा या मां पर, कहा नहीं जा सकता.

मदर्स डे तो एक तरह से दीवाली और करवाचौथ से भी ज्यादा महत्त्वपूर्ण है. इस दिन की एक विशेष खासीयत है जो एक मां को दासी या देवी से अलग बनाती है.

मां के साथ रह कर बातचीत करना, एकदूसरे की भावना को सम?ाना प्रमुख है. मां की आर्थिक स्थिति सम?ाना तो बहुत जरूरी है. कई बार जब मां बेटों को ज्यादा भाव दे तो बेटियों को कठिनाई होती है कि मां को कैसे दुलारें. अगर संपत्ति मां के नाम हो तो कई भाई मां को बेटी से मिलने नहीं देते कि कहीं वह संपत्ति अपने नाम न करा ले.

एक मेधावी बेटी की मां का सीना ज्यादा चौड़ा होता है, इसलिए मांबेटी के रिश्ते में बेटी की पढ़ाई पर कहीं कोई आंच नहीं आनी चाहिए. मां पार्टी में जाए तो वहां बेटी की प्रशंसा सुनना मां के लिए सब से ज्यादा सुखदायी होता है. बेटी को सही राह का ज्ञान हो, इसलिए उसे पढ़ते रहने की सलाह दी जानी चाहिए. वह मोबाइल में ही न घुसी रहे.

आज की मां को हमेशा बेटी को आजादी देनी चाहिए. उस से कहें कि तुम हर बात खुद सीखो और हमेशा खुश रहो, कैरियर को खुद चुनो, बौयफ्रैंड खुद चुनो. हां, जीवन में कभी तनाव हो तो मां संभाले और अगर बेटी गलत रास्ते पर जा रही हो तो उसे सही तरफ आगे ले जाना भी मां का काम है. भाई, बहन या बहनें आपस में कभी ना न कहें. यह शिक्षा देना मां का काम है. अगर किसी बेटी के साथ दूसरे की अनबन रहे तो दोनोंतीनों के बीच सम?ाते टैक्टफुली कराने चाहिए.

कुछ बेटियां चाहती हैं कि अपनी चीज न दें जबकि दूसरे की ले लें. वे हमेशा एकदूसरे से आगे रहना चाहती हैं और यह बात आपस में तकरार को जन्म देती है जिस पर मांएं अकसर मनाने के लिए आगे आती हैं.

वे साल मांओं के लिए बड़े चुनौतीपूर्ण होते हैं जब बेटियों का अपना कैरियर चढ़ाव पर होता है. पिता ज्यादा ध्यान नहीं दे पाते और बेटी के लिए समस्याएं खड़ी हो जाती हैं. हर बच्चे को अपना दोस्त चुनने की आजादी हो पर मांएं बच्चे से उस के दोस्त के बारे में चर्चा कर अपनी राय अवश्य दें. बेटी के दोस्त, चाहे लड़कियां हों या लड़के, मां से मिल अवश्य लें.

आजकल के मातापिता बच्चों से कुछ अधिक उम्मीद रखते हैं?

पहले महिलाओं को घर से बाहर जाने की अनुमति नहीं थी, आज है, इसलिए उम्मीदें भी बढ़ी हैं. बेटी के साथ मातापिता का हमेशा दोस्ताना अंदाज होना चाहिए ताकि बेटी भी अपनी किसी बात को मां से बांट सके. जरूरत से अधिक रोकटोक बगावत को जन्म देती है. जरूरत से ज्यादा हैलिकौप्टर मौम बनना भी गलत है.

अपना घर- भाग 2: आखिर विजय के घर में अंधेरा क्यों था?

जब कभी सुरेखा विजय की बांहों में होती तो अचानक ही एक विचार से कांप उठती थी कि अगर किसी दिन विजय को विकास के बारे में पता चल गया तो क्या होगा? क्या विजय उसे माफ कर देगा. नहीं, विजय कभी उसे माफ नहीं करेगा क्योंकि सभी मर्द इस मामले में एकजैसे होते हैं. तब क्या उसे बता देना चाहिए? नहीं, वह खुद अपने पैरों पर कुल्हाड़ी क्यों मारे?

आज विजय को पता चल गया और जिस बात का उसे डर था, वही हुआ. पर वह शक, नफरत और अनदेखी के बीच कैसे रह सकती थी?

सुबह सुरेखा मम्मीपापा के पास जा पहुंची थी.

सुरेखा के कमरे से निकल जाने

के बाद भी विजय का गुस्सा बढ़ता

ही जा रहा था. वह सोफे पर पसर गया. धोखेबाज… न जाने खुद को क्या समझती है वह? अच्छा हुआ आज पता चल गया, नहीं तो पता नहीं कब तक उसे धोखे में ही रखा जाता?

2-3 दिन में ही पासपड़ोस में सभी को पता चल गया. काम वाली बाई कमला ने साफसाफ कह दिया, ‘‘देखो बाबूजी, अब मैं काम नहीं करूंगी. जिस घर में औरत नहीं होती, वहां मैं काम नहीं करती. आप मेरा हिसाब कर दो.’’

विजय ने कमला को समझाते हुए कहा, ‘‘देखो, काम न छोड़ो, 100-200 रुपए और बढ़ा लेना.’’

‘‘नहीं बाबूजी, मेरी भी मजबूरी है. मैं यहां काम नहीं करूंगी.’’

‘‘जब तक दूसरी काम वाली न मिले, तब तक तो काम कर लेना कमला.’’

‘‘नहीं बाबूजी, मैं एक दिन भी काम नहीं करूंगी,’’ कह कर कमला चली गई.

4-5 दिन तक कोई भी काम वाली बाई न मिली तो विजय के सामने बहुत बड़ी परेशानी खड़ी हो गई. सुबह घर व बरतनों की सफाई, शाम को औफिस से थका सा वापस लौटता तो पलंग पर लेट जाता. उसे खाना बनाना नहीं आता था. कभी बाजार में खा लेता. दिन तो जैसेतैसे कट जाता, पर बिस्तर पर लेट कर जब सोने की कोशिश करता तो नींद आंखों से बहुत दूर हो जाती. सुरेखा की याद आते ही गुस्सा व नफरत बढ़ जाती.

रात को देर तक नींद न आने के चलते विजय ने शराब के नशे में डूब

कर सुरेखा को भुलाना चाहा. वह जितना सुरेखा को भुलाना चाहता, वह उतनी ज्यादा याद आती.

एक रात विजय ने शराब के नशे में मदहोश हो कर सुरेखा का मोबाइल नंबर मिला कर कहा, ‘‘तुम ने मुझे जो धोखा दिया है, उस की सजा जल्दी ही मिलेगी. मुझे तुम से और तुम्हारे परिवार से नफरत है. मैं तुम्हें तलाक दे दूंगा. मुझे नहीं चाहिए एक चरित्रहीन और धोखेबाज पत्नी. अब तुम सारी उम्र विकास के गम में रोती रहना.’’

उधर से कोई जवाब नहीं मिला.

‘‘सुन रही हो या बहरी हो गई हो?’’ विजय ने नशे में बहकते हुए कहा.

‘यह क्या आप ने शराब पी रखी है?’ वहां से आवाज आई.

‘‘हां, पी रखी है. मैं रोज पीता हूं. मेरी मरजी है. तू कौन होती है मुझ से पूछने वाली? धोखेबाज कहीं की.’’

उधर से फोन बंद हो गया.

विजय ने फोन एक तरफ फेंक दिया और देर तक बड़बड़ाता रहा.

औफिस और पासपड़ोस के कुछ साथियों ने विजय को समझाया कि शराब के नशे में डूब कर अपनी जिंदगी बरबाद मत करो. इस परेशानी का हल शराब नहीं है, पर विजय पर कोई असर नहीं पड़ा. वह शराब के नशे में डूबता चला गया.

एक शाम विजय घर पर ही शराब पीने की तैयारी कर रहा था कि तभी दरवाजे पर दस्तक हुई. विजय ने बुरा सा मुंह बना कर कहा, ‘‘इस समय कौन आ गया मेरा मूड खराब करने को?’’

विजय ने उठ कर दरवाजा खोला तो चौंक उठा. सामने उस का पुराना दोस्त अनिल अपनी पत्नी सीमा के साथ था.

‘‘आओ अनिल, अरे यार, आज इधर का रास्ता कैसे भूल गए? सीधे दिल्ली से आ रहे हो क्या?’’ विजय ने पूछा.

‘‘हां, आज ही आने का प्रोग्राम बना था. तुम्हें 2-3 बार फोन भी मिलाया, पर बात नहीं हो सकी.’’

‘‘आओ, अंदर आओ,’’ विजय ने मुसकराते हुए कहा.

विजय ने मेज पर रखी शराब की बोतल, गिलास व खाने का सामान वगैरह उठा कर एक तरफ रख दिया.

अनिल और सीमा सोफे पर बैठ गए. अनिल और विजय अच्छे दोस्त थे, पर वह अनिल की शादी में नहीं जा पाया था. आज पहली बार दोनों उस के पास आए थे.

विजय ने सीमा की ओर देखा तो चौंक गया. 3 साल पहले वह सीमा से मिला था अगरा में, जब अनिल और विजय लालकिला में घूम रहे थे. एक बूढ़ा आदमी उन के पास आ कर बोला था, ‘‘बाबूजी, आगरा घूमने आए हो?’’

‘‘हां,’’ अनिल ने कहा था.

‘‘कुछ शौक रखते हो?’’ बूढ़े ने कहा.

वे दोनों चुपचाप एकदूसरे की तरफ देख रहे थे.

‘‘बाबूजी, आप मेरे साथ चलो. बहुत खूबसूरत है. उम्र भी ज्यादा नहीं है. बस, कभीकभी आप जैसे बाहर के लोगों को खुश कर देती है,’’ बूढ़े ने कहा था.

वे दोनों उस बूढ़े के साथ एक पुराने से मकान पर पहुंच गए. वहां तीखे नैननक्श वाली सांवली सी एक खूबसूरत लड़की बैठी थी.

अनिल उस लड़की के साथ कमरे में गया था, पर वह नहीं.

वह लड़की सीमा थी, अब अनिल की पत्नी. क्या अनिल ने देह बेचने वाली उस लड़की से शादी कर ली? पर क्यों? ऐसी क्या मजबूरी हो गई थी जो अनिल को ऐसी लड़की से शादी करनी पड़ी?

‘‘भाभीजी दिखाई नहीं दे रही हैं?’’ अनिल ने विजय से पूछा.

‘‘वह मायके गई है,’’ विजय के चेहरे पर नफरत और गुस्से की रेखाएं फैलने लगीं.

‘‘तभी तो जाम की महफिल सजाए बैठे हो, यार. तुम तो शराब से दूर भागते थे, फिर ऐसी क्या बात हो गई कि…?’’

‘‘ऐसी कोई खास बात नहीं. बस, वैसे ही पीने का मन कर रहा था. सोचा कि 2 पैग ले लूं…’’ विजय उठता हुआ बोला, ‘‘मैं तुम्हारे लिए खाने का इंतजाम करता हूं.’’

‘‘अरे भाई, खाने की तुम चिंता न करो. खाना सीमा बना लेगी और खाने से पहले चाय भी बना लेगी. रसोई के काम में बहुत कुशल है यह,’’ अनिल ने कहा.

विजय चुप रहा, पर उस के दिमाग में यह सवाल घूम रहा था कि आखिर अनिल ने सीमा से शादी क्यों की?

सीमा उठ कर रसोईघर में चली गई. विजय ने अनिल को सबकुछ सच बता दिया कि उस ने सुरेखा को घर से क्यों निकाला है.

अनिल ने कहा, ‘‘पहचानते हो अपनी भाभी सीमा को?’’

‘‘हां, पहचान तो रहा हूं, पर क्या यह वही है… जब आगरा में हम दोनों घूमने गए थे?’’

‘‘हां विजय, यह वही सीमा है. उस दिन आगरा के उस मकान में वह बूढ़ा ले गया था. मैं ने सीमा में पता नहीं कौन सा खिंचाव व भोलापन पाया कि मेरा मन उस से बातें करने को बेचैन हो उठा था. मैं ने कमरे में पलंग पर बैठते हुए पूछा था, ‘‘तुम्हारा नाम?’’

‘‘यह सुन कर वह बोली थी, ‘क्या करोगे जान कर? आप जिस काम से आए हो, वह करो और जाओ.’

‘‘तब मैं ने कहा था, ‘नहीं, मुझे उस काम में इतनी दिलचस्पी नहीं है. मैं तुम्हारे बारे में जानना चाहता हूं.’

‘‘वह बोली थी, ‘मेरे बारे में जानना चाहते हो? मुझ से शादी करोगे क्या?’

‘‘उस ने मेरी ओर देख कर कहा तो मैं एकदम सकपका गया था. मैं ने उस से पूछा था, ‘पहले तुम अपने बारे में बताओ न.’

‘‘उस ने बताया था, ‘मेरा नाम सीमा है. वह मेरा चाचा है जो आप को यहां ले कर आया है. आगरा में एक कसबा फतेहाबाद है, हम वहीं के रहने वाले हैं. मेरे मातापिता की एक बस हादसे में मौत हो गई थी. उस के बाद मैं चाचाचाची के घर रहने लगी. मैं 12वीं में पढ़ रही थी तो एक दिन चाचा ने आगरा ला कर मुझे इस काम में धकेल दिया.

यह तो पागल है: इस औरत से क्या कोई बचा सकता है

अपनी पत्नी सरला को अस्पताल के इमरजैंसी विभाग में भरती करवा कर मैं उसी के पास कुरसी पर बैठ गया. डाक्टर ने देखते ही कह दिया था कि इसे जहर दिया गया है और यह पुलिस केस है. मैं ने उन से प्रार्थना की कि आप इन का इलाज करें, पुलिस को मैं खुद बुलवाता हूं. मैं सेना का पूर्व कर्नल हूं. मैं ने उन को अपना आईकार्ड दिखाया, ‘‘प्लीज, मेरी पत्नी को बचा लीजिए.’’

डाक्टर ने एक बार मेरी ओर देखा, फिर तुरंत इलाज शुरू कर दिया. मैं ने अपने क्लब के मित्र डीसीपी मोहित को सारी बात बता कर तुरंत पुलिस भेजने का आग्रह किया. उस ने डाक्टर से भी बात की. वे अपने कार्य में व्यस्त हो गए. मैं बाहर रखी कुरसी पर बैठ गया. थोड़ी देर बाद पुलिस इंस्पैक्टर और 2 कौंस्टेबल को आते देखा. उन में एक महिला कौंस्टेबल थी.

मैं भाग कर उन के पास गया, ‘‘इंस्पैक्टर, मैं कर्नल चोपड़ा, मैं ने ही डीसीपी मोहित साहब से आप को भेजने के लिए कहा था.’’

पुलिस इंस्पैक्टर थोड़ी देर मेरे पास रुके, फिर कहा, ‘‘कर्नल साहब, आप थोड़ी देर यहीं रुकिए, मैं डाक्टरों से बात कर के हाजिर होता हूं.’’

मैं वहीं रुक गया. मैं ने दूर से देखा, डाक्टर कमरे से बाहर आ रहे थे. शायद उन्होंने अपना इलाज पूरा कर लिया था. इंस्पैक्टर ने डाक्टर से बात की और धीरेधीरे चल कर मेरे पास आ गए.

मैं ने इंस्पैक्टर से पूछा, ‘‘डाक्टर ने क्या कहा? कैसी है मेरी पत्नी? क्या वह खतरे से बाहर है, क्या मैं उस से मिल सकता हूं?’’ एकसाथ मैं ने कई प्रश्न दाग दिए.

‘‘अभी कुछ नहीं कहा जा सकता. डाक्टर अपना इलाज पूरा कर चुके हैं. उन की सांसें चल रही हैं. लेकिन बेहोश हैं. 72 घंटे औब्जर्वेशन में रहेंगी. होश में आने पर उन के बयान लिए जाएंगे. तब तक आप उन से नहीं मिल सकते. हमें यह भी पता चल जाएगा कि उन को कौन सा जहर दिया गया है,’’ इंस्पैक्टर ने कहा और मुझे गहरी नजरों से देखते हुए पूछा, ‘‘बताएं कि वास्तव में हुआ क्या था?’’

‘‘दोपहर 3 बजे हम लंच करते हैं. लंच करने से पहले मैं वाशरूम गया और हाथ धोए. सरला, मेरी पत्नी, लंच शुरू कर चुकी थी. मैं ने कुरसी खींची और लंच करने के लिए बैठ गया. अभी पहला कौर मेरे हाथ में ही था कि वह कुरसी से नीचे गिर गई. मुंह से झाग निकलने लगा. मैं समझ गया, उस के खाने में जहर है. मैं तुरंत उस को कार में बैठा कर अस्पताल ले आया.’’

‘‘दोपहर का खाना कौन बनाता है?’’

‘‘मेड खाना बनाती है घर की बड़ी बहू के निर्देशन में.’’

‘‘बड़ी बहू इस समय घर में मिलेगी?’’

‘‘नहीं, खाना बनवाने के बाद वह यह कह कर अपने मायके चली गई कि उस की मां बीमार है, उस को देखने जा रही है.’’

‘‘इस का मतलब है, वह खाना अभी भी टेबल पर पड़ा होगा?’’

‘‘जी, हां.’’

‘‘और कौनकौन है, घर में?’’

‘‘इस समय तो घर में कोई नहीं होगा. मेरे दोनों बेटों का औफिस ग्रेटर नोएडा में है. वे दोनों 11 बजे तक औफिस के लिए निकल जाते हैं. छोटी बहू गुड़गांव में काम करती है. वह सुबह ही घर से निकल जाती है और शाम को घर आती है. दोनों पोते सुबह ही स्कूल के लिए चले जाते हैं. अब तक आ गए होंगे. मैं गार्ड को कह आया था कि उन से कहना, दादू, दादी को ले कर अस्पताल गए हैं, वे पार्क में खेलते रहें.’’

इंस्पैक्टर ने साथ खड़े कौंस्टेबल से कहा, ‘‘आप कर्नल साहब के साथ इन के फ्लैट में जाएं और टेबल पर पड़ा सारा खाना उठा कर ले आएं. किचन में पड़े खाने के सैंपल भी ले लें. पीने के पानी का सैंपल भी लेना न भूलना. ठहरो, मैं ने फोरैंसिक टीम को बुलाया है. वह अभी आती होगी. उन को साथ ले कर जाना. वे अपने हिसाब से सारे सैंपल ले लेंगे.’’

‘‘घर में सीसीटीवी कैमरे लगे हैं?’’ इंस्पैक्टर ने मुझ से पूछा.

‘‘जी, नहीं.’’

‘‘सेना के बड़े अधिकारी हो कर भी कैमरे न लगवा कर आप ने कितनी बड़ी भूल की है. यह तो आज की अहम जरूरत है. यह पता भी चल गया कि जहर दिया गया है तो इसे प्रूफ करना मुश्किल होगा. कैमरे होने से आसानी होती. खैर, जो होगा, देखा जाएगा.’’

इतनी देर में फोरैंसिक टीम भी आ गई. उन को निर्देश दे कर इंस्पैक्टर ने मुझ से उन के साथ जाने के लिए कहा.

‘‘आप ने अपने बेटों को बताया?’’

‘‘नहीं, मैं आप के साथ व्यस्त था.’’

‘‘आप मुझे अपना मोबाइल दे दें और नाम बता दें. मैं उन को सूचना दे दूंगा.’’ इंस्पैक्टर ने मुझ से मोबाइल ले लिया.

फोरैंसिक टीम को सारी कार्यवाही के लिए एक घंटा लगा. टीम के सदस्यों ने जहर की शीशी ढूंढ़ ली. चूहे मारने का जहर था. मैं जब पोतों को ले कर दोबारा अस्पताल पहुंचा तो मेरे दोनों बेटे आ चुके थे. एक महिला कौंस्टेबल, जो सरला के पास खड़ी थी, को छोड़ कर बाकी पुलिस टीम जा चुकी थी. मुझे देखते ही, दोनों बेटे मेरे पास आ गए.

‘‘पापा, क्या हुआ?’’

‘‘मैं ने सारी घटना के बारे में बताया.’’

‘‘राजी कहां है?’’ बड़े बेटे ने पूछा.

‘‘कह कर गई थी कि उस की मां बीमार है, उस को देखने जा रही है. तुम्हें तो बताया होगा?’’

‘‘नहीं, मुझे कहां बता कर जाती है.’’

‘‘वह तुम्हारे हाथ से निकल चुकी है. मैं तुम्हें समझाता रहा कि जमाना बदल गया है. एक ही छत के नीचे रहना मुश्किल है. संयुक्त परिवार का सपना, एक सपना ही रह गया है. पर तुम ने मेरी एक बात न सुनी. तब भी जब तुम ने रोहित के साथ पार्टनरशिप की थी. तुम्हें 50-60 लाख रुपए का चूना लगा कर चला गया.

‘‘तुम्हें अपनी पत्नी के बारे में सबकुछ पता था. मौल में चोरी करते रंगेहाथों पकड़ी गई थी. चोरी की हद यह थी कि हम कैंटीन से 2-3 महीने के लिए सामान लाते थे और यह पैक की पैक चायपत्ती, साबुन, टूथपेस्ट और जाने क्याक्या चोरी कर के अपने मायके दे आती थी और वे मांबाप कैसे भूखेनंगे होंगे जो बेटी के घर के सामान से घर चलाते थे. जब हम ने अपने कमरे में सामान रखना शुरू किया तो बात स्पष्ट होने में देर नहीं लगी.

‘‘चोरी की हद यहां तक थी कि तुम्हारी जेबों से पैसे निकलने लगे. घर में आए कैश की गड्डियों से नोट गुम होने लगे. तुम ने कैश हमारे पास रखना शुरू किया. तब कहीं जा कर चोरी रुकी. यही नहीं, बच्चों के सारे नएनए कपड़े मायके दे आती. बच्चे जब कपड़ों के बारे में पूछते तो उस के पास कोई जवाब नहीं होता. तुम्हारे पास उस पर हाथ उठाने के अलावा कोई चारा नहीं होता.

‘‘अब तो वह इतनी बेशर्म हो गई है कि मार का भी कोई असर नहीं होता. वह पागल हो गई है घर में सबकुछ होते हुए भी. मानता हूं, औरत को मारना बुरी बात है, गुनाह है पर तुम्हारी मजबूरी भी है. ऐसी स्थिति में किया भी क्या जा सकता है.

‘‘तुम्हें तब भी समझ नहीं आई. दूसरी सोसाइटी की दीवारें फांदती हुई पकड़ी गई. उन के गार्डो ने तुम्हें बताया. 5 बार घर में पुलिस आई कि तुम्हारी मम्मी तुम्हें सिखाती है और तुम उसे मारते हो. जबकि सारे उलटे काम वह करती है. हमें बच्चों के जूठे दूध की चाय पिलाती थी. बच्चों का बचा जूठा पानी पिलाती थी. झूठा पानी न हो तो गंदे टैंक का पानी पिला देती थी. हमारे पेट इतने खराब हो जाते थे कि हमें अस्पताल में दाखिल होना पड़ता था. पिछली बार तो तुम्हारी मम्मी मरतेमरते बची थी.

‘‘जब से हम अपना पानी खुद भरने लगे, तब से ठीक हैं.’’ मैं थोड़ी देर के लिए सांस लेने के लिए रुका, ‘‘तुम मारते हो और सभी दहेज मांगते हैं, इस के लिए वह मंत्रीजी के पास चली गई. पुलिस आयुक्त के पास चली गई. कहीं बात नहीं बनी तो वुमेन सैल में केस कर दिया. उस के लिए हम सब 3 महीने परेशान रहे, तुम अच्छी तरह जानते हो. तुम्हारी ससुराल के 10-10 लोग तुम्हें दबाने और मारने के लिए घर तक पहुंच गए. तुम हर जगह अपने रसूख से बच गए, वह बात अलग है. वरना उस ने तुम्हें और हमें जेल भिजवाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी. इतना सब होने पर भी तुम उसे घर ले आए जबकि वह घर में रहने लायक लड़की नहीं थी.

‘‘हम सब लिखित माफीनामे के बिना उसे घर लाना नहीं चाहते थे. उस के लिए मैं ने ही नहीं, बल्कि रिश्तेदारों ने भी ड्राफ्ट बना कर दिए पर तुम बिना किसी लिखतपढ़त के उसे घर ले आए. परिणाम क्या हुआ, तुम जानते हो. वुमेन सैल में तुम्हारे और उस के बीच क्या समझौता हुआ, हमें नहीं पता. तुम भी उस के साथ मिले हुए हो. तुम केवल अपने स्वार्थ के लिए हमें अपने पास रखे हो. तुम महास्वार्थी हो.

‘‘शायद बच्चों के कारण तुम्हारा उसे घर लाना तुम्हारी मजबूरी रही होगी या तुम मुकदमेबाजी नहीं चाहते होगे. पर, जिन बच्चों के लिए तुम उसे घर ले कर आए, उन का क्या हुआ? पढ़ने के लिए तुम्हें अपनी बेटी को होस्टल भेजना पड़ा और बेटे को भेजने के लिए तैयार हो. उस ने तुम्हें हर जगह धोखा दिया. तुम्हें किन परिस्थितियों में उस का 5वें महीने में गर्भपात करवाना पड़ा, तुम्हें पता है. उस ने तुम्हें बताया ही नहीं कि वह गर्भवती है. पूछा तो क्या बताया कि उसे पता ही नहीं चला. यह मानने वाली बात नहीं है कि कोई लड़की गर्भवती हो और उसे पता न हो.’’

‘‘जब हम ने तुम्हें दूसरे घर जाने के लिए डैडलाइन दे दी तो तुम ने खाना बनाने वाली रख दी. ऐसा करना भी तुम्हारी मजबूरी रही होगी. हमारा खाना बनाने के लिए मना कर दिया होगा. वह दोपहर का खाना कैसा गंदा और खराब बनाती थी, तुम जानते थे. मिनरल वाटर होते हुए भी, टैंक के पानी से खाना बनाती थी.

‘‘मैं ने तुम्हारी मम्मी से आशंका व्यक्त की थी कि यह पागल हो गई है. यह कुछ भी कर सकती है. हमें जहर भी दे सकती है. किचन में कैमरे लगवाओ, नौकरानी और राजी पर नजर रखी जा सकेगी. तुम ने हामी भी भरी, परंतु ऐसा किया नहीं. और नतीजा तुम्हारे सामने है. वह तो शुक्र करो कि खाना तुम्हारी मम्मी ने पहले खाया और मैं उसे अस्पताल ले आया. अगर मैं भी खा लेता तो हम दोनों ही मर जाते. अस्पताल तक कोई नहीं पहुंच पाता.’’

इतने में पुलिस इंस्पैक्टर आए और कहने लगे, ‘‘आप सब को थाने चल कर बयान देने हैं. डीसीपी साहब इस के लिए वहीं बैठे हैं.’’ थाने पहुंचे तो मेरे मित्र डीसीपी मोहित साहब बयान लेने के लिए बैठे थे. उन्होंने कहा, ‘‘मुझे सब से पहले आप की छोटी बहू के बयान लेने हैं. पता करें, वह स्कूल से आ गई हो, तो तुरंत बुला लें.’’

छोटी बहू आई तो उसे सीधे डीसीपी साहब के सामने पेश किया गया. उसे हम में से किसी से मिलने नहीं दिया गया. डीसीपी साहब ने उसे अपने सामने कुरसी पर बैठा, बयान लेने शुरू किए. 2 इंस्पैक्टर बातचीत रिकौर्ड करने के लिए तैयार खड़े थे. एक लिपिबद्ध करने के लिए और एक वीडियोग्राफी के लिए.

डीसीपी साहब ने पूछना शुरू किया-

‘‘आप का नाम?’’

‘‘जी, निवेदिका.’’

‘‘आप की शादी कब हुई? कितने वर्षों से आप कर्नल चोपड़ा साहब की बहू हैं?’’

‘‘जी, मेरी शादी 2011 में हुई थी. 6 वर्ष हो गए.’’

‘‘आप के कोई बच्चा?’’

‘‘जी, एक बेटा है जो मौडर्न स्कूल में दूसरी क्लास में पढ़ता है.’’

‘‘आप को अपनी सास और ससुर से कोई समस्या? मेरे कहने का मतलब वे अच्छे या आम सासससुर की तरह तंग करते हैं?’’

‘‘सर, मेरे सासससुर जैसा कोई नहीं हो सकता. वे इतने जैंटल हैं कि उन का दुश्मन भी उन को बुरा नहीं कह सकता. मेरे पापा नहीं हैं. कर्नल साहब ने इतना प्यार दिया कि मैं पापा को भूल गई. वे दोनों अपने किसी भी बच्चे पर भार नहीं हैं. पैंशन उन की इतनी आती है कि अच्छेअच्छों की सैलरी नहीं है. दवा का खर्चा भी सरकार देती है. कैंटीन की सुविधा अलग से है.’’

‘‘फिर समस्या कहां है?’’

‘‘सर, समस्या राजी के दिमाग में है, ‘‘सर, सत्य यह भी है कि राजी महाचोर है. मेरे मायके से 5 किलो दान में आई मूंग की दाल भी चोरी कर के ले गई. मेरे घर से आया शगुन का लिफाफा भी चोरी कर लिया, उस की बेटी ने ऐसा करते खुद देखा. थोड़ा सा गुस्सा आने पर जो अपनी बेटी का बस्ता और किताबें कमरे के बाहर फेंक सकती है, वह पागल नहीं तो और क्या है. उस की बेटी चाहे होस्टल चली गई परंतु यह बात वह कभी नहीं भूल पाई.’’

‘‘ठीक है, मुझे आप के ही बयान लेने थे. सास के बाद आप ही राजी की सब से बड़ी राइवल हैं.’’

उसी समय एक कौंस्टेबल अंदर आया और कहा, ‘‘सर, राजी अपने मायके में पकड़ी गई है और उस ने अपना गुनाह कुबूल कर लिया है. उस की मां भी साथ है.’’

‘‘उन को अंदर बुलाओ. कर्नल साहब, उन के बेटों को भी बुलाओ.’’

थोड़ी देर बाद हम सब डीसीपी साहब के सामने थे. राजी और उस की मां भी थीं. राजी की मां ने कहा, ‘‘सर, यह तो पागल है. उसी पागलपन के दौरे में इस ने अपनी सास को जहर दिया. ये रहे उस के पागलपन के कागज. हम शादी के बाद भी इस का इलाज करवाते रहे हैं.’’

‘‘क्या? यह बीमारी शादी से पहले की है?’’

‘‘जी हां, सर.’’

‘‘क्या आप ने राजी की ससुराल वालों को इस के बारे में बताया था?’’ डीसीपी साहब ने पूछा.

‘‘सर, बता देते तो इस की शादी नहीं होती. वह कुंआरी रह जाती.’’

‘‘अच्छा था, कुंआरी रह जाती. एक अच्छाभला परिवार बरबाद तो न होता. आप ने अपनी पागल लड़की को थोप कर गुनाह किया है. इस की सख्त से सख्त सजा मिलेगी. आप भी बराबर की गुनाहगार हैं. दोनों को इस की सजा मिलेगी.’’

‘‘डीसीपी साहब किसी पागल लड़की को इस प्रकार थोपने की क्रिया ही गुनाह है. कानून इन को सजा भी देगा. पर हमारे बेटे की जो जिंदगी बरबाद हुई उस का क्या? हो सकता है, इस के पागलपन का प्रभाव हमारी अगली पीढ़ी पर भी पड़े. उस का कौन जिम्मेदार होगा? हमारा खानदान बरबाद हो गया. सबकुछ खत्म हो गया.’’

‘‘मानता हूं, कर्नल साहब, इस की पीड़ा आप को और आप के बेटे को जीवनभर सहनी पड़ेगी, लेकिन कोई कानून इस मामले में आप की मदद नहीं कर पाएगा.’’

थाने से हम घर आ गए. सरला की तबीयत ठीक हो गई थी. वह अस्पताल से घर आ गई थी. महीनों वह इस हादसे को भूल नहीं पाई थी. कानून ने राजी और उस की मां को 7-7 साल कैद की सजा सुनाई थी. जज ने अपने फैसले में लिखा था कि औरतों के प्रति गुनाह होते तो सुना था लेकिन जो इन्होंने किया उस के लिए 7 साल की सजा बहुत कम है. अगर उम्रकैद का प्रावधान होता तो वे उसे उम्रकैद की सजा देते.

और आंखें भर आईं- भाग 3: क्यों पछता रही थी पार्वती?

‘‘चुप, साली झूठ बालती है. मि. ईश्वर चंद्र, यह पढ़ो अपनी पत्नी और पार्वती के बीच मोवाइल पर हुई कंवरसेशन. आप की पत्नी पार्वती को अपनी सास का टेंटुआ दबाने की बात कह रही है. इस का मतलब आप समझते हैं? किसी को खून करने के लिए उकसाना. उकसाना भी खून करने के बराबर होता है. पढ़ा दो अपनी पत्नी को भी. इस डौक्यूमैंट को कोर्ट भी मानेगा. लो पढ़ो और पढ़ाओ,’’ सिद्धार्थ ने फाइल में से एक पेपर निकाल कर ईश्वर चंद्र की ओर बढ़ा दिया.

पढ़ कर ईश्वर चंद्र का चेहरा फक पड़ गया. उस ने वह पेपर अपनी पत्नी की ओर बढ़ा दिया. पार्वती ने उसे पढ़ा और कुछ कहने को उद्दत हुई. मैं ने स्पष्ट देखा, ईश्वर चंद्र ने अपनी पत्नी का हाथ दबा कर चुप रहने का संकेत किया.

‘‘मुझे समझ नहीं आया इंस्पैक्टर अमिता कि इंस्पैक्टर रजनी की इंक्वायरी रिपोर्ट पर ऐक्शन क्यों नहीं लिया गया?” सिद्धार्थ ने कहना शुरू किया, ‘‘उस समय पार्वती के पागलपन को चैक क्यों नहीं करवाया गया? यह चैक क्यों नहीं करवाया गया कि इस की पढ़ाई की डिग्रियां नकली हैं या असली? इंस्पैक्टर रजनी ने इस ओर बड़ा साफ़ संकेत किया है कि पार्वती के मांबाप ने एक पागल, अनपढ़, बदजबान व असभ्य लड़की को एक अत्यंत सुशिक्षित, सभ्य और हर तरह से समृद्ध परिवार को चेप कर बरबाद कर दिया है.’’

“सर, उस समय मुझे याद है. राजस्थान के एक डीसीपी साहब, जो इन के रिश्तेदार हैं, की व्यक्तिगत प्रार्थना पर केस रफादफा कर दिया गया था,” इंस्पैक्टर अमिता ने कहा.

‘‘तभी तो ऐसा हुआ. उस समय यदि ऐक्शन ले लिया होता तो यह नौबत न आती. फिर भी ऐसा करो, पार्वती और उस की मां के विरुद्ध एफआईआर लौज करो और…?”

“क्या मैं भीतर आ सकती हूं, सर?”

‘‘यस इंस्पैक्टर रोजी, कम इन.’’

“सर, यह है मैडम की मैडिकल रिपोर्ट और उन की स्टेटमैंट,” इंस्पैक्टर रोजी ने एक फाइल सिद्धार्थ की ओर बढ़ा दी.

सिद्धार्थ ने मैडिकल रिपोर्ट और स्टेटमैंट पढ़ी. एक बार मेरी ओर देखा. फिर फाइल में आंखें गड़ा दीं. आंखें उठाईं तो उन में क्रोध झलक रहा था. ‘‘मैडिकल रिपोर्ट साफ कहती है कि मैडम के सिर पर किसी सख्त चीज से प्रहार किया गया है. परंतु ऐसे लोग भी संसार में हैं जिन पर पूरा विश्व खड़ा है. मैडम ने स्टेटमैंट दी है, ‘पार्वती मेरे परिवार की अभिन्न अंग है. वह मेरे प्रति कोई गलती कर ही नहीं सकती. करती भी है तो वह माफी के योग्य है. मैं ने उसे माफ कर दिया है. मेरे सिर पर वाशरूम में गिरने से चोट लगी.’”

सिद्धार्थ कुछ देर चुप रहा, फिर कठोर स्वर में बोला, ‘‘मेरे पहले वाले आदेश का पालन हो.’’

“सर, सर, प्लीज. सर, प्लीज ऐसा न करें,” प्रायः सभी एकसाथ बोले.

‘‘सिद्धार्थ, इन को एक मौका दिया जाना चाहिए.’’

“सर, मेरा मन नहीं मानता. एक बार जेल जाएंगे तो सब के होश ठिकाने आ जाएंगे.”

“मैं जानता हूं. लेकिन चाहता हूं, एक बार इन को मौका दे दो.”

“ठीक है, सर. जैसा आप चाहें.” सिद्धार्थ इंस्पैक्टर अमिता को कुछ देर समझाता रहा, फिर बोला, “जब तक पेपर तैयार नहीं हो जाते, इन को लौकअप में बंद कर दो.”

थोड़ी देर बाद पेपर तैयार हो गए. सब ने हस्ताक्षर किए. सचमुच ऐसा प्रबंध कर दिया गया था कि दोबारा ऐसा न हो. उन सब को छोड़ दिया गया था. पार्वती मेरे समीप आ कर बैठ गई थी. सिद्धार्थ धीरेधीरे चल कर मेरे पास आया, “सबकुछ आप के अनुसार कर दिया है. सर, मैं जानता हूं, आप क्या सोच रहे हैं? इस देश का कानून लड़के वालों के विरुद्ध है. किंतु वे हमेशा गलत नहीं होते. यह भी सत्य है. यदि हम आप को जानते न होते तो केस का रूप कुछ और होता. ऐसा संभव था. यदि हम सब अपने विवेक से काम लेंगे तो हजारों परिवार टूटने से बच सकेंगे.”

“हां सिद्धार्थ, ऐसा ही हो पर मेरे मन के भीतर एक सवाल घुमर रहा है कि हम बहुओं के रूप में बेटियां ब्याह कर लाते हैं? वे न बहुएं बन पाती हैं, न बेटियां. क्यों?’’

“जानता हूं सर कि इस सवाल का उत्तर देना बहुत मुश्किल है. आगे चल कर समाज को इस का उत्तर देना पड़ेगा. फिलहाल इस का कोई उत्तर नहीं है. चलिए सर, मैं आप को गाड़ी में घर तक छुड़वा देता हूं. आओ पार्वती, तुम समय की बलवान हो जो तुम्हें ऐसा घरपरिवार मिला.”

मैं ने देखा, पार्वती की आंखें भर आईं हैं. पर वह कुछ बोल नहीं पाई थी.

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