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Father’s Day 2022: पापा मिल गए- क्या उन दोनों को विदेश में कोई अपना मिला?

शब्बीर की मौत के बाद दोबारा शादी का जोड़ा पहन कर इकबाल को अपना पति मानने के लिए बानो को दिल पर पत्थर रख कर फैसला करना पड़ा, क्योंकि हालात से समझौता करने के सिवा कोई दूसरा रास्ता भी तो उस के पास नहीं था. अपनी विधवा मां पर फिर से बोझ बन जाने का एहसास बानो को बारबार कचोटता और बच्ची सोफिया के भविष्य का सवाल न होता, तो वह दोबारा शादी की बात सोचती तक नहीं.

‘‘शादी मुबारक हो,’’ कमरे में घुसते ही इकबाल ने कहा.

‘‘आप को भी,’’ सुन कर बानो को शब्बीर की याद आ गई. इकबाल को भी नुसरत की याद आ गई, जो शादी के 6-7 महीने बाद ही चल बसी थी. वह बानो को प्यार से देखते हुए बोला, ‘‘क्या मैं ने अपनी नस्सू को फिर से पा लिया है?’’

तभी किसी ने दरवाजा खटखटाया.

‘‘क्या बात है?’’ कहते हुए इकबाल ने दरवाजा खोला तो देखा कि सामने उस की साली सलमा रोतीबिलखती सोफिया को लादे खड़ी है.

‘‘आपा के लिए यह कब से परेशान है? चुप होने का नाम ही नहीं लेती. थोड़ी देर के लिए आपा इसे सीने से लगा लेतीं, तो यह सो जाती,’’ सलमा ने डरतेडरते कहा.

‘‘हां… हां… क्यों नहीं,’’ सलमा को अंदर आ जाने का इशारा करते हुए इकबाल ने गुस्से में कहा. रोती हुई सोफिया को बानो की गोद में डाल कर सलमा तेजी से कमरे से बाहर निकल गई. इधर बानो की अजीब दशा हो रही थी. वह कभी सोफिया को चुप कराने की कोशिश करती, तो कभी इकबाल के चेहरे को पढ़ने की कोशिश करती. सोफिया के लिए इकबाल के चेहरे पर गुस्सा साफ झलक रहा था. इस पर बानो मन ही मन सोचने लगी कि सोफिया की भलाई के चक्कर में कहीं वह गलत फैसला तो नहीं कर बैठी?

सुबह विदाई के समय सोफिया ने अपनी अम्मी को एक अजनबी के साथ घर से निकलते देखा, तो झट से इकबाल का हाथ पकड़ लिया और कहने लगी, ‘‘आप कौन हैं? अम्मी को कहां ले जा रहे हैं?’’ सोफिया के बगैर ससुराल में बानो का मन बिलकुल नहीं लग रहा था. अगर हंसतीबोलती थी, तो केवल इकबाल की खातिर. शादी के बाद बानो केवल 2-4 दिन के लिए मायके आई थी. उन दिनों सोफिया इकबाल से बारबार पूछती, ‘‘मेरी अम्मी को आप कहां ले गए थे? कौन हैं आप?’’

‘‘गंदी बात बेटी, ऐसा नहीं बोलते. यह तुम्हारे खोए हुए पापा हैं, जो तुम्हें मिल गए हैं,’’ बानो सोफिया को भरोसा दिलाने की कोशिश करती.

‘‘नहीं, ये पापा नहीं हो सकते. रोजी के पापा उसे बहुत प्यार करते हैं. लेकिन ये तो मुझे पास भी नहीं बुलाते,’’ सोफिया मासूमियत से कहती. सोफिया की इस मासूम नाराजगी पर एक दिन जाने कैसे इकबाल का दिल पसीज उठा. उसे गोद में उठा कर इकबाल ने कहा, ‘‘हां बेटी, मैं ही तुम्हारा पापा हूं.’’ यह सुन कर बानो को लगने लगा कि सोफिया अब बेसहारा नहीं रही. मगर सच तो यह था कि उस का यह भरोसा शक के सिवा कुछ न था.

इस बात का एहसास बानो को उस समय हुआ, जब इकबाल ने सोफिया को अपने साथ न रखने का फैसला सुनाया.

‘‘मैं मानता हूं कि सोफिया तुम्हारी बेटी है. इस से जुड़ी तुम्हारी जो भावनाएं हैं, उन की मैं भी कद्र करता हूं, मगर तुम को मेरी भी तो फिक्र करनी चाहिए. आखिर कैसी बीवी हो तुम?’’ इकबाल ने कहा.

‘‘बस… बस… समझ गई आप को,’’ बानो ने करीब खड़ी सोफिया को जोर से सीने में भींच लिया. इस बार बानो ससुराल गई, तो पूरे 8 महीने बाद मायके लौट कर वापस आई. आने के दोढाई हफ्ते बाद ही उस ने एक फूल जैसे बच्चे को जन्म दिया. इकबाल फूला नहीं समा रहा था. उस के खिलेखिले चेहरे और बच्चे के प्रति प्यार से साफ जाहिर था कि असल में तो वह अब बाप बना है. आसिफ के जन्म के बाद इकबाल सोफिया से और ज्यादा दूर रहने लगा था. इस बात को केवल बानो ही नहीं, बल्कि उस के घर वाले भी महसूस करने लगे थे. इकबाल के रूखे बरताव से परेशान सोफिया एक दिन अम्मी से पूछ बैठी, ‘‘पापा, मुझ से नाराज क्यों रहते हैं? टौफी खरीदने के लिए पैसे भी नहीं देते. रोजी के पापा तो रोज उसे एक सिक्का देते हैं.’’

‘‘ऐसी बात नहीं है बेटी. पापा तुम से भला नाराज क्यों रहेंगे. वे तुम्हें टौफी के लिए पैसा इसलिए नहीं देते, क्योंकि तुम अभी बहुत छोटी हो. पैसा ले कर बाहर निकलोगी, तो कोई छीन लेगा.

‘‘पापा तुम्हारा पैसा बैंक में जमा कर रहे हैं. बड़ी हो जाओगी, तो सारे पैसे निकाल कर तुम्हें दे देंगे.’’ ‘‘मगर, पापा मुझे प्यार क्यों नहीं करते? केवल आसिफ को ही दुलार करते हैं,’’ सोफिया ने फिर सवाल किया.

‘‘दरअसल, आसिफ अभी बहुत छोटा है. अगर पापा उस का खयाल नहीं रखेंगे, तो वह नाराज हो जाएगा,’’ बानो ने समझाने की कोशिश की. इसी बीच आसिफ रोने लगा, तभी इकबाल आ गया, ‘‘यह सब क्या हो रहा है बानो? बच्चा रो रहा है और तुम इस कमबख्त की आंखों में आंखें डाल कर अपने खो चुके प्यार को ढूंढ़ रही हो.’’ इकबाल के शब्दों ने बानो के दिल को गहरी चोट पहुंचाई.

‘यह क्या हो रहा है?’ घबरा कर उस ने दिल ही दिल में खुद से सवाल किया, ‘मैं ने तो सोफिया के भले के लिए जिंदगी से समझौता किया था, मगर…’ वह सिसक पड़ी. इकबाल ने घर लौटने का फैसला सुनाया, तो बानो डरतेडरते बोली, ‘‘4-5 रोज से आसिफ थोड़ा बुझाबुझा सा लग रहा है. शायद इस की तबीयत ठीक नहीं है. डाक्टर को दिखाने के बाद चलते तो बेहतर होता.’’

इकबाल ने कोई जवाब नहीं दिया. आसिफ को उसी दिन डाक्टर के पास ले जाया गया.

‘‘इस बच्चे को जौंडिस है. तुरंत इमर्जैंसी वार्ड में भरती करना पड़ेगा,’’ डाक्टर ने बच्चे का चैकअप करने के बाद फैसला सुनाया, तो इकबाल माथा पकड़ कर बैठ गया.

‘‘अब क्या होगा?’’ माली तंगी और बच्चे की बीमारी से घबरा कर इकबाल रोने लगा.

‘‘पापा, आप तो कभी नहीं रोते थे. आज क्यों रो रहे हैं?’’ पास खड़ी सोफिया इकबाल की आंखों में आंसू देख कर मचल उठी. डरतेडरते सोफिया बिलकुल पास आ गई और इकबाल की भीगी आंखों को अपनी नाजुक हथेली से पोंछते हुए फिर बोली, ‘‘बोलिए न पापा, आप किसलिए रो रहे हैं? आसिफ को क्या हो गया है? वह दूध क्यों नहीं पी रहा?’’ सोफिया की प्यारी बातों से अचानक पिघल कर इकबाल ने कहा, ‘‘बेटी, आसिफ की तबीयत खराब हो गई है. इलाज के लिए डाक्टर बहुत पैसे मांग रहे हैं.’’ ‘‘कोई बात नहीं पापा. आप ने मेरी टौफी के लिए जो पैसे बैंक में जमा कर रखे हैं, उन्हें निकाल कर जल्दी से डाक्टर अंकल को दे दीजिए. वह आसिफ को ठीक कर देंगे,’’ सोफिया ने मासूमियत से कहा.

इकबाल सोफिया की बात समझ नहीं सका. पूछने के लिए उस ने बानो को बुलाना चाहा, मगर वह कहीं दिखाई नहीं दी. दरअसल, बानो इकबाल को बिना बताए आसिफ को अपनी मां की गोद में डाल कर बैंक से वह पैसा निकालने गई हुई थी, जो शब्बीर ने सोफिया के लिए जमा किए थे.

‘‘इकबाल बाबू, बानो किसी जरूरी काम से बाहर गई है, आती ही होगी. आप आसिफ को तुरंत भरती कर दें. पैसे का इंतजाम हो जाएगा,’’ आसिफ को गोद में चिपकाए बानो की मां ने पास आ कर कहा, तो इकबाल आसिफ को ले कर बोझिल मन से इमर्जैंसी वार्ड की तरफ बढ़ गया. सेहत में काफी सुधार आने के बाद आसिफ को घर ले आया गया.

‘‘यह तुम ने क्या किया बानो? शब्बीर भाई ने सोफिया के लिए कितनी मुश्किल से पैसा जमा किया होगा, मगर…’’ असलियत जानने के बाद इकबाल बानो से बोला.

‘‘सोफिया की बाद में आसिफ की जिंदगी पहले थी,’’ बानो ने कहा.

‘‘तुम कितनी अच्छी हो. वाकई तुम्हें पा कर मैं ने नस्सू को पा लिया है.’’ ‘‘वाकई बेटी, बैंक में अगर तुम्हारी टौफी के पैसे जमा न होते, तो आसिफ को बचाना मुश्किल हो जाता,’’ बानो की तरफ से नजरें घुमा कर सोफिया को प्यार से देखते हुए इकबाल ने कहा. ‘‘मैं कहती थी न कि यही तुम्हारे पापा हैं?’’ बानो ने सोफिया से कहा.

इकबाल ने भी कहा, ‘‘हां बेटी, मैं ही तुम्हारा पापा हूं.’’ सोफिया ने बानो की गोद में खेल रहे आसिफ के सिर को सीने से सटा लिया और इकबाल का हाथ पकड़ कर बोली, ‘‘मेरे पापा… मेरे अच्छे पापा.’’

पहले से ही शादी-शुदा हैं नई ‘गोरी मेम’, जानें कौन है दूल्हा

मशहूर शो ‘भाभीजी घर पर है’  फेम विदिशा श्रीवास्तव (Vidisha Srivastava) यानी गोरी मेम अक्सर अपने किरदार के कारण सुर्खियों में छायी रहती हैं. विदिशा श्रीवास्तव को नई अनीता भाभी (Anita Bhabhi) के तौर पर खूब पसंद किया जा रहा है. फैंस गोरी मेम के अंदाज के दीवाने हैं. अब एक्ट्रेस अपनी निजी जिंदगी को लेकर चर्चे में है. आइए बताते है, पूरी खबर.

दरअसल,  गोरी मेम पहले से ही शादीशुदा है. उन्होंने अपने निजी जीवन को मीडिया से दूर रखा था. विदिश श्रीवास्तव साल 2018 में सयक पॉल के साथ शादी के बंधन में बंधी थीं. शादी के चार साल बाद गोरी मेम ने अपनी शादी पर खुलकर बात की. उन्होंने बताया कि उनकी लव मैरिज थी.

 

एक इंटरव्यू के अनुसार, एक्ट्रेस ने बताया कि उन्होंने कभी भी शादी को छुपाया नहीं है, लेकिन उनके पति को ही लाइम लाइट में आना पसंद नहीं है. एक्ट्रेस ने ये भी कहा कि मैंने बस कभी इस बारे में मीडिया में बात नहीं की, क्योंकि सयक इंडस्ट्री से नाता नहीं रखते. वह बहुत ही सिंपल इंसान हैं और उन्हें लाइमलाइट में आना पसंद नहीं है.

 

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रिपोर्ट के अनुसार, विदिशा श्रीवास्तव ने अपनी और सयक की लव स्टोरी को लेकर बाताया कि सयक और मेरी मुलाकात मुंबई में हुई थी. वह मेरे क्रश थे, लेकिन उन्होंने कभी भी मुझसे कुछ नहीं कहा. लेकिन नौकरी के आखिरी छह महीने में उन्होंने मुझे सीधा शादी के लिए प्रपोज कर दिया.

 

कपाड़िया एंपायर पर कब्जा करेगी बरखा, बच्चों को देख इमोशनल होगी अनु

‘अनुपमा’  में  लगातार बड़ा ट्विस्ट देखने को मिल रहा है. शो के बिते एपिसोड में आपने देखा कि  बरखा अपने पति को अनुज से प्रॉपर्टी में हिस्सा लेने के लिए कहती है. तभी अनुज-अनुपमा वहां पहुंच जाते हैं. लेकिन वो बरखा की बात नहीं सुन पाते हैं. दूसरी तरफ अनुपमा-अनुज रोमांटिक पल बिताते हैं, तभी बरखा वहां पहुंच जाती है और उन्हें डिस्टर्ब करती है. शो के अपकमिंग एपिसोड में खूब धमाल होने वाला है. आइए बताते हैं, शो के नए एपिसोड के बारे में.

शो में आप देखेंगे कि अनुज और अनुपमा का रोमांस देखकर बरखा उन्हें डिस्टर्ब करेगी. वो पूछेगी कि नाश्ते में क्या बन रहा है, अनुपमा कहेगी थेपला. बरखा सुनकर मुंह बिचकाने लगेगी. लेकिन अनुपमा कहेगी कि उसने बरखा के लिए पैन केक्स बनाए हैं.

 

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कपाड़िया हाउस में सारा और अधिक की एंट्री होगी. वो दोनों अनुपमा से मिलकर काफी खुश होंगे. बात ही बातों में सारा तो यह तक कह देगी कि अनुज के पीछे तो कई लड़कियां पड़ी हुई थी. इस पर बरखा कहेगी कि अनुज के पास इतनी अच्छी लड़कियों के प्रपोजल थे और अनुपमा खुद को लकी महसूस करे कि तलाक और तीन बच्चों के बावजूद उसे इतना हैंडसम पति मिला.

 

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अनुज अपनी फैमिली से बताएगा कि बिजनेस और घर की मालकिन अब अनुपमा है और यह जानकर बरखा हैरान रह जाएगी. लेकिन अनुपमा कहेगी कि उसे अनुज का बिजनेस नहीं चाहिए. वह कहती है किसी और के भरोसे रहकर वो खुद को आगे नहीं बढ़ाएगी. अनुपमा कहेगी उसे सिर्फ मिसेज कपाड़िया नहीं बनना है, उसे अपनी पहचान नहीं खोनी है.

 

तो दूसरी तरफ वनराज शाह हाउस की नेम प्लेट में बा का नाम लगाएगा, जिसे देखकर बा इमोशनल हो जाएगी.

Manohar Kahaniya: खूनी हुई जज की बेटी की मोहब्बत- भाग 2

इस बीच 16 दिसंबर, 2015 को तत्कालीन एएसपी गुरइकबाल सिंह सिद्धू के नेतृत्व में पुलिस ने एसआईटी का गठन किया. इस से पहले 14 अक्तूबर, 2015 को सिप्पी के घर वालों ने चंडीगढ़ उच्चन्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को रिप्रजेंटेशन दी थी. इस के करीब डेढ़ महीने बाद 29 नवंबर 2015 को मृतक के घर वालों और दोस्तों ने सेक्टर-4 में पूर्व आईजीपी के आवास के बाहर प्रदर्शन किया. इस के एक दिन बाद फिर हत्या की जांच सीबीआई से कराने की मांग की.

बावजूद इस के कोई काररवाई न होते देख 24 दिसंबर, 2015 को घर वालों ने नई दिल्ली जा कर प्रधानमंत्री आवास के बाहर प्रदर्शन किया.

जिप्पी और उस के मामा नपिंदर न्याय के लिए ठोकरें खाते रहे, तब जा कर इतनी लड़ाई लड़ने के बाद केस सीबीआई को ट्रांसफर हुआ. यह बात 16 जनवरी, 2016 की है.

सीबीआई के एसपी नवदीप सिंह बराड़ के नेतृत्व में नए सिरे से काररवाई शुरू की गई, जिस की जिम्मेदारी उन्होंने डीएसपी आर.एल. यादव को सौंपी थी.

बेहद कड़क स्वभाव और कर्तव्यपरायण पुलिस अधिकारी यादव ने सिप्पी हत्याकांड में नए सिरे से कल्याणी सिंह और अन्य लोगों के खिलाफ हत्या, सबूत मिटाने, आपराधिक साजिश रचने और आर्म्स एक्ट के तहत आईपीसी की विविध धाराओं में मुकदमा दर्ज कर 13 मार्च, 2016 को जांच शुरू कर दी थी.

सीबीआई ने शुरू की जांच

26 अप्रैल, 2016 को सीबीआई ने घटना की जांच अधिकारी पूनम दिलावरी को चंडीगढ़ सीबीआई औफिस में तलब किया था. उन से पूछताछ करने और हत्याकांड की जांच की केस डायरी, मौके से बरामद सामान और पोस्टमार्टम रिपोर्ट की कापी अपने कब्जे में ले ली.

जांच अधिकारी डीएसपी आर.एल. यादव ने विवेचना के दौरान कल्याणी की भूमिका संदिग्ध पाई. लेकिन उस के खिलाफ हत्या का कोई सबूत नहीं मिला. यादव ने उस से पूछताछ भी की थी. हर बार वह खुद को निर्दोष बताती हुई गोलमोल जवाब दे कर बच निकलती थी.

चूंकि वह हाईकोर्ट की जज की बेटी थी, इसलिए सीबीआई फूंकफूंक कर कदम रख रही थी. वह जानती थी कि उस से हुई एक गलती उस के गले की हड्डी बन सकती है, बदनामी होगी सो अलग. सबूतों के अभाव में सीबीआई कल्याणी सिंह को गिरफ्तार करने से कतरा रही थी.

5 सितंबर, 2016 को सीबीआई ने सिप्पी के हत्यारों को पकड़वाने के लिए 5 लाख रुपए का ईनाम घोषित किया और यह विज्ञापन स्थानीय प्रमुख अखबारों और इलैक्ट्रौनिक मीडिया में दिया ताकि ईनाम के लालच में सिप्पी के हत्यारों का पता मिल सके.

सीबीआई का यह पैंतरा नाकाम रहा. 4 साल तक चली जांच में सीबीआई हाथ पर हाथ धरे बैठी रही. सिप्पी हत्याकांड में कल्याणी के अलावा और कौन शामिल था, हत्या की असल वजह क्या रही, सीबीआई यह पता लगाने में असफल रही. और अंतत: 7 दिसंबर, 2020 को सीबीआई ने अदालत में अनट्रेस रिपोर्ट दायर कर के अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर दी.

पीडि़त परिवार ने जस्टिस सबीना सिंह का कराया ट्रांसफर

सीबीआई के इस कदम से पीडि़त सिद्धू परिवार हैरान रह गया. उन्हें पता था कि यह सब कल्याणी की मां सबीना सिंह के प्रभाव से हो रहा था. उन्होंने केंद्रीय मंत्रालय में एप्लीकेशन दे कर उन का तबादला राजस्थान हाईकोर्ट में करवा दिया. खुद अदालत ने सीबीआई को फटकार लगाते हुए फिर से जांच कर रिपोर्ट कोर्ट में जमा करने को कहा.

सीबीआई इस बार कोई गलती नहीं करना चाहती थी और न ही अब उस पर दबाव बनाने वाला ही कोई था. एक बार फिर से सीबीआई ने सेक्टर-27 के नेबरहुड पार्क से जांच शुरू की. जांच के दौरान पता चला कि गोली चलने की आवाज सुन कर पास के एक मकान की महिला बालकनी में आई, जहां से गोली की आवाज आई थी.

वह महिला कौन थी, इस का पता नहीं चला. फायरिंग की आवाज सुन कर लोगों ने पुलिस को सूचना दी. सूचना पा कर सेक्टर-26 थाने की पुलिस मौके पर पहुंची थी और घायल सिप्पी सिद्धू को अस्पताल पहुंचाया, जहां उस की मौत हो गई थी.

आखिरकार सीबीआई ने उस महिला को ढूंढ निकाला. महिला ने सीबीआई को बताया कि जब वह पहली मंजिल पर मौजूद थी, तब उस ने गोलियों के साथ एक लड़की की चीख सुनी थी. इसलिए वह बालकनी की तरफ गई.

वहां से देखा तो घर के नजदीक एक सफेद रंग की कार खड़ी थी. फिर उसी कार की तरफ तेजी से आ रही लड़की को भी देखा था, पर वह उसे पूरी तरह से पहचान नहीं पाई थी.

महिला ने मौकाएवारदात पर जिस लड़की को देखा था, वह सिप्पी की प्रेमिका कल्याणी ही थी. कोर्ट में पड़ी फटकार के बाद शक के आधार पर सीबीआई ने कल्याणी से पूछताछ की. पौलीग्राफ टेस्ट भी कराया, लेकिन कोई जानकारी नहीं मिल पाई. सीबीआई यहां भी मात खा गई.

अश्लील फोटो से बिगड़ी बात

धर्म: हे भगवान!

कुछ अच्छा हुआ तो भगवान, कुछ बुरा हुआ तो भगवान. कुछ हुआ तो भगवान, कुछ नहीं हुआ तो भगवान. आखिर भगवान हर मसले के बीच में कैसे घुस गया? हर सवाल का जवाब भगवान कैसे बन गया? भगवान सच है या मुफ्तखोरों की बनाई कोरी कल्पना है? क्या भगवान पर हमारा विश्वास करना सही है? यह सब जानने व सम?ाने के लिए पढ़ें यह लेख.

हे भगवान, जरा बताओ तो कि भगवान है या नहीं? यह सवाल सदियों से पूछा जा रहा है और आज ज्यादा महत्त्वपूर्ण है क्योंकि कितने ही देशों की सरकारें सच में इस काल्पनिक भगवान के भरोसे हैं. भगवान को बेचने वाले धर्म के दुकानदारों ने सैकड़ों सालों से एक विशाल स्ट्रकचर खड़ा किया है और लोगों को उस काल्पनिक भगवान के पास लाने के लिए मंदिर, मसजिद, चर्च, मोनैस्ट्री, गुरुद्वारों से ले कर पिरामिड और मकबरे तक बनवाए हैं.

आज विश्व में फैले तनाव के पीछे भगवान का अस्तित्व ज्यादा है, दूसरों की जमीन या फर्म हड़पने की हरकतें कम. धर्मों के दुकानदार भगवान को विश्व रचयिता घोषित कर के सारी जनता को अपने कहे अनुसार चलने को मजबूर कर रहे हैं.

ज्ञान और श्रद्धा एक समस्या के दो उत्तर हैं. जब हम अपने प्रश्नों के समाधान में कोई तार्किक व तथ्यों पर आधारित उत्तर प्राप्त करते हैं तो उसे ज्ञान कहते हैं. इस के विपरीत अगर कोई बिना प्रश्न पूछे किसी काम को अपने सवालों का उत्तर मान ले तो उसे श्रद्धा कहते हैं.

जहां विश्वास यानी फेथ या बिलीव आ जाता है, वहां विचार नहीं होता. ज्ञान होता है खुद का देखा, परखा, सत्य का प्रकाश. श्रद्धा होती है एक अंधे द्वारा रोशनी का विवरण. जो समाज ऐसे अंधों द्वारा दी गई प्रकाश की परिभाषा पर चल रहा हो उसे यह एहसास दिलाना आवश्यक है कि वह खुद ही अपनी आंखें खोल कर ज्ञान का प्रकाश प्राप्त कर सकता है.

आज हम भारतीय जहां राममंदिर, शंकराचार्य, हिंदुत्व, मांस, लव जिहाद एवं धर्म परिवर्तन जैसे गलत कारणों से चर्चा में हैं. वहां इस मूलभूत प्रश्न का पूछा जाना आवश्यक है कि क्या वास्तव में वह भगवान है जिस के नाम पर श्रद्धा का व्यापार चलाया जा रहा है? इस सवाल के उत्तर में ज्ञान के प्रकाश की किरण को सम?ाने के लिए हमें श्रद्धा और मान्यता की कई बड़ी चट्टानों को तोड़ना होगा, जो हमें दबाए रखती हैं. हम ने बिना जाने, पता नहीं क्याक्या मान रखा है और उस के आधार पर खुद तो चलते हैं, दूसरों को चलने को मजबूर भी करते हैं. यह वैसा ही है जैसे रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने मान लिया कि यूक्रेन पर कब्जे के बिना रूस अधूरा है. सो, लाखों की जान आज खतरे में है.

संसार के प्रत्येक धर्म ने किसी न किसी प्राचीन ग्रंथ, वेद, बाइबिल, कुरान इत्यादि को अपना आधार बना रखा है. मगर जिस हजारोंलाखों वर्ष प्राचीनकाल की ये ग्रंथ दुहाई देते हैं, उस काल में मानव सभ्यता अपने विकास के शुरुआती दौर में थी. सो, यह कैसे संभव है कि उस काल का मानसिक रूप से अर्धविकसित बच्चा आज के मानसिक रूप से विकसित एवं परिपक्व वयस्क से अधिक जानता था? इन सभी पुरातन शास्त्रों से प्राप्त अधिकतर धारणाएं समय की कसौटी पर असत्य सिद्ध हो चुकी हैं और यह थोड़े समय की ही बात है जब भगवान की अवधारणा भी ध्वस्त हो जाएगी.

भगवान की मान्यता जबरदस्त प्रचार पर टिकी है क्योंकि इस से धर्म के लिए आय होती है. यह कैसे संभव है कि तीनों लोकों में विचरने वाले हमारे देवता समान पूर्वजों को पृथ्वी शेषनाग के फन पर स्थित मिली? या फिर कैसे उन्हें पृथ्वी का आकार एक तश्तरी के समान नजर आया? यह कैसे संभव हुआ कि जिन ऋषिमुनियों को संपूर्ण ब्रह्मांड नजर आता था उन्हें हमारे शरीर के विभिन्न भीतरी अवयवों की उपस्थिति एवं कार्यप्रणाली के बारे में नगण्य जानकारी थी?

हमारे शास्त्रों में जहां ब्रह्मांड के स्वरूप एवं विस्तार का सीमित ज्ञान उपलब्ध है, वहां हैरानी की बात यह है कि आत्मा-परमात्मा का सर्वज्ञान इन में निहित है. जहां ब्रह्मा, विष्णु, महेश का सारा समय ‘एक पृथ्वी’ के निवासियों के प्रबंधन में कट जाता है. वे इस असीम ब्रह्मांड के अन्य ग्रहों व उस के प्राणियों के लिए कैसे समय निकाल पाते हैं?

हमारे पुरातन शास्त्रों में न तो डायनासौर का कहीं जिक्र है, न ही व्हेल मछली का. नारद मुनि, जो तीनों लोकों में भ्रमण करते थे, को अगर ये प्राणी नहीं मिल पाए तो निश्चित ही यह प्रश्न उठता है कि उन्हें सिर्फ बंदर, हाथी और गरुड़ ही क्यों मिले? समुद्र मंथन में दुर्लभ अमृत मिल गया, मगर व्हेल, जो करोड़ों वर्षों से समुद्र में तैर रही है, नहीं मिली? उन्होंने हमें ब्रह्मांड की सीमाएं नहीं बताईं और न ही यह बताया कि हमारी आकाशगंगा में कितने और सूर्य हैं या कुल कितनी आकाश गंगाएं तीनों लोकों में व्याप्त हैं?

इन सवालों का सीधा अर्थ यह है कि हमें शास्त्रों में सत्य ढूंढ़ने के बजाय प्रकृति के विशाल पट्ट पर अंकित एवं लिखित जीवाष्मों एवं ऊर्जा तरंगों का अध्ययन करना चाहिए. हम शास्त्रों को अंतिम सत्य मान कर विश्व को भगवान का मायाजाल मान संतुष्ट हो रहे हैं जबकि वैज्ञानिकों ने भूगर्भ से, महासागरों की गहराइयों से एवं अंतरिक्ष के अनंत विस्तार से ज्ञान का भंडार खोजा है.

हमारी पुरातन मान्यताएं एक बहुत सुंदर प्रारंभ हो सकती हैं, अंत नहीं. निष्कर्ष यह निकलता है कि हमें मंत्रोच्चार एवं प्रार्थनाओं में अपना समय व्यय करने के बजाय मंदिरों को ऐसी प्रयोगशालाओं में बदल देना चाहिए जहां प्रकृति के इतिहास के हर पृष्ठ को पढ़ने की भाषा सिखाई जाए. हर मसजिद में जीवन विज्ञान के रहस्यों की खोज की जाए और हर गिरिजाघर में लोग अपना समय प्रार्थना करने के बजाय जीव विज्ञान, रसायन विज्ञान अथवा यांत्रिक विज्ञान के विकास में लगाएं.

अमेरिका में आज भी ‘सृष्टि का निर्माण केवल, बाइबिल के अनुसार,

7 दिनों में हुआ’ का पाठ बच्चों को पढ़ाने की वकालत भी जम कर की जा रही है. वहीं, हमारे यहां योग को सारे रोगों का उपाय बताया जा रहा है.

दूसरी मान्यता – भगवान की परिकल्पना सार्वभौमिक एवं सर्वव्याप्त है

आज से कुछ सौ वर्षों पूर्व तक संपूर्ण पृथ्वी की भिन्नभिन्न सभ्यताएं यह मानती थीं कि पृथ्वी स्थिर है एवं सूर्य उस की परिक्रमा कर रहा है. इस विश्वास को सारी दुनिया मानती थी. अब इस बारे में कोई धर्म कुछ नहीं बोलता. इस की असत्यता सिद्ध हो चुकी है.

कुछ दशकों पूर्व भी एक बहुत बड़ा बहुमत लगभग सभी बीमारियों (चेचक उन में से एक) को दैविक प्रकोप मानता था. आज कोविड को किसी ने भी दैविक प्रकोप नहीं कहा जबकि सारी दुनिया इस से प्रभावित रही. आज कोविड को विज्ञान ने नेस्तनाबूद कर दिया है.

आज भी भारतीय समाज में लड़की के पैदा होने का दोष महिला को दिया जाता है. जबकि सत्य इस के विपरीत है. दरअसल इस का जिम्मेदार तो पुरुष के शुक्राणों में मौजूद क्रोमोजोम है. यह बात सिद्ध है कि किसी भी मान्यता को सब मान रहे हैं तो यह उस के सत्य होने की गारंटी नहीं है. एक हिंदू कहने लगे

कि सब मुसलमान आतंकी हैं, सब मुसलमान 5 से 25 होते हैं, सब मुसलमानों की 4 पत्नियां होती हैं तो यह सच नहीं हो जाएगा.

थोड़ा सोचेंगे तो पाएंगे कि प्रत्येक मनुष्य के लिए भगवान का स्वरूप भिन्न है. हर प्राणी, जिसे भगवान में विश्वास रखने का पाठ पैदा होते ही पढ़ाया गया है, के मस्तिष्क में भगवान की जो छवि है वह किसी दूसरे के मन में बनी छवि से भिन्न है. भगवान

की शक्ति, स्वरूप, कार्यपद्धति, गुण एवं छवि विवरण हम जितने लोगों से पूछेंगे उतने ही अलगअलग उत्तर हमें प्राप्त होंगे. यानी जितने मस्तिष्क उतनी धारणाएं. ऐसा गेहूं के दाने के साथ नहीं होता, गुलाब के साथ नहीं होता, समुद्र के साथ नहीं होता, हाथी जैसे जानवर के साथ नहीं होता.

भारत में भगवान ने धनसमृद्धि का दायित्व लक्ष्मी को सौंप रखा है. करोड़ों भारतीय वर्षों से उस की पूजा भी कर रहे हैं. मगर विडंबना यह है कि लक्ष्मी तो यूरोप एवं अमेरिका में विराजमान हैं जहां उन की पूजा कोई नहीं करता. हमें यह पता लगाना होगा कि विकसित देशों के लोग कौन सी देवी की पूजाअर्चना करते हैं ताकि हम भी लक्ष्मी का दामन छोड़ उस की शरण में जाएं और समृद्धि पा सकें.

ऐसा सर्वज्ञानी एवं सर्वशक्तिमान भगवान, जो करोड़ों वर्षों में भी अपने रूपस्वरूप को स्पष्टतया प्रकट नहीं कर सका, उस के अस्तित्व पर प्रश्नचिह्न लगना आवश्यक है. हमारे सारे लक्ष्मीपति तो उस यूरोप, अमेरिका में रहने की योजना बना रहे हैं जहां लक्ष्मी की पूजा की ही नहीं जाती.

आज भी किसी धर्म, भगवान की उपस्थिति का कोई सीधा प्रमाण हमारे पास नहीं है. है तो सिर्फ कुछ सुनीसुनाई बातें, सरकारी पार्टी द्वारा बनाए गए मठों के महंतों के आश्रम, मंदिर, मसजिद, चर्च आदि. फिर भी एक बड़े बहुमत द्वारा उस में विश्वास होने की जड़ में एक भय का वातावरण है. हर छोटे बच्चे के मन में यह बीज रोप दिया जाता है कि अगर वह भगवान के अस्तित्व को नकारेगा तो दुख मिलेंगे, वह नरक जाएगा आदिआदि. डराने के साथसाथ उसे लालच भी दिया जाता है कि अगर ईश्वर की कृपादृष्टि हो गई तो संसार के सारे सुख उस के कदमों में होंगे. कोई आफत आ जाए तो ईश्वर को याद करो, शायद ठीक हो जाए. डर और लालच की बुनियाद पर भगवान के अस्तित्व की इमारत का खड़े होना, क्या आप को नहीं चौंकाता? अगर नहीं चौंकाता तो इसलिए कि ईश्वर के दुकानदार लगातार प्रचार करते रहते हैं कि यह ईश्वर की कृपा से हुआ, वह ईश्वर की कृपा से हुआ आदिआदि.

कुछ लोग सिर्फ इसलिए भी विश्वास करते हैं कि अगर भगवान नहीं है तो फिर यह संसार किस ने रचा? मगर वे इस से आगे दूसरा सवाल नहीं पूछते कि अगर ‘रचना’ के लिए ‘रचयिता’ चाहिए तो रचयिता को किस ने रचा? बस, भगवान है, यह मान लेने से ज्यादा श्रेयस्कर एवं तर्कसंगत तो यह मान लेना है कि बस, एक नैसर्गिक, स्वस्फूर्त प्रकृति है. यह ‘डिजाइन इंटैलिजैंस’ नहीं बल्कि ‘डिफौल्ट इंटैलिजैंस’ है.

अधिकांश लोग इसलिए भी भगवान में विश्वास रखते हैं क्योंकि उन की दृढ़ मान्यता है कि हमारे पूर्वज ऋषिमुनि हैं जो भगवान के पुत्र माने जाते हैं, जिन्हें भगवान ने स्वयं ज्ञान पकड़ाया. हर धर्म के मुख्य प्रस्ताव के साथ चमत्कारों की कहानियां जोड़ दी गई हैं. जबकि ये विश्वास और चमत्कार से मीलों दूर हैं. हकीकत में आदिम मानव को रोशनी, बरसात, बिजली, हवा, आंधी आदि सभी किसी ऊपरी शक्ति से संचालित होता प्रतीत होता था.

कुछ लोगों ने उस पर कहानियां गढ़ कर उसे प्राकृतिक घटनाओं का विवरण देना शुरू किया. आंधी किसी भगवान के छींकने के कारण आती है. बादल किसी भगवान के नहाने से होते हैं. इन तथाकथित कहानीकारों ने अपनी रोजीरोटी इन कहानियों के जरिए जुटानी शुरू कर दी. हर समस्या को किसी भगवान से जोड़ कर कहानी बना देना और नएनए सुननेसम?ाने वाले साधारण लोग इन कहानीकारों को ईश्वर को मानने लगे तो कहानियां और विस्तृत हो गईं और दुनिया के एक कबीले से दूसरे, एक समाज से दूसरे समाज में फैलने लगीं.

इन कहानियों की तार्किक समीक्षा को पिछले 200 सालों में पाए ज्ञान के तराजू पर तोलो तो साफ पता चलता है कि ये कोरी ?ाठी हैं, तर्कविहीन हैं और इन का उद्देश्य सिर्फ सुनने वाले भक्तों को भरमा कर मुफ्त का माल हड़पना है. हर भगवान से जुड़ी कहानी में भगवान के नाम पर कुछ देने का संदेश होता है, चाहे वह अपनी उगाई फसल हो, अपने मरे पशु हों, अपनी बेटीपत्नी हो, अपनी जान हो या दूसरे की जान लेना हो.

तीसरी मान्यता – भगवान ब्रह्मांड का रचयिता है

ईश्वर की हमारी अवधारणा का सब से महत्त्वपूर्ण कारण है- विश्व की उत्पत्ति. हम ने भगवान को सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञानी एवं सार्वभौगिक मानते हुए ब्रह्मांड एवं जीवों की उत्पत्ति का संपूर्ण श्रेय उसे दे दिया है. लेकिन विभिन्न धर्मों की कहानियां न केवल एकदूसरे से भिन्न हैं, अंतर्निहित विरोधाभासों से भरपूर भी हैं.

जैसे, ईसाई धर्म का कहना है कि पहले 6 दिन विश्व की रचना हुई और 7वें दिन भगवान ने अवकाश लिया. यह कैसा विरोधाभास है कि एक ही परमपिता ने तारों, ग्रहों और निहारिकाओं को बनाया जो भौतिकी के नियमबद्ध तरीके से अपनीअपनी कक्षाओं में बंध कर चलते हैं, दूसरी ओर आदम-हव्वा को वह अनुशासन में नहीं रख सका एवं पाप करने की छूट दे दी. दूसरा विरोधाभास देखिए, अगर 7वें दिन अवकाशप्राप्त कर लिया तो अब भी जीवों, उल्काओं, ब्लैकहोल एवं नए तारों आदि का सृजन कौन कर रहा है? अब भी जीवों का विकासक्रम क्यों जारी है और नई संकर प्रजातियों का निर्माण कौन कर रहा है?

एक और सवाल पूछा जा सकता है कि इन 6 दिनों से पहले परमपिता कर क्या रहा था और फिर 8वें दिन से क्या कर रहा है? यह भी पूछा जा सकता है कि जब कोई मानव मौजूद ही न था तो इन

6 दिनों की बात पता कैसे चली?

हिंदू धर्म में भी इसी तरह भगवान को सर्वगुण संपन्न माना है लेकिन परस्पर विरोध की कमी नहीं. एक ओर जहां उसे निराकार माना है, वहीं दूसरी ओर उस के विभिन्न अंगों द्वारा वर्गों के पैदा होने की बात कही गई है. यह बात कह कर सताए गए वर्गों को शांत कर दिया गया. भगवान को अनंत गुणों से संपन्न माना है, वहीं उस के द्वारा सृजित प्रत्येक मौडल, चाहे वह मानव हो या अन्य कोई जीव, त्रुटियों से परिपूर्ण एवं विफल है. एक सर्वशक्तिमान एवं सर्वज्ञानी द्वारा ऐसे मौडल्स बनाने का क्या औचित्य है जिस में सभी दुखी हों, बीमार होते हों, मृत्यु को प्राप्त होते हों? तारोंसितारों को देखिए, भभकती आग का गोला हैं. अगर उन में कोई संवेदना है तो उन की अनंत पीड़ा का सहज अनुमान लगाया जा सकता है.

बात यहीं खत्म नहीं होती. जहां हम उसे प्रेम का सागर एवं दुखों का हर्ता बताते हैं, वहां उस ने प्रकृति के हर क्षण को मृत्यु के तांडव में परिवर्तित कर दिया है. ईसाई धर्म में भी भगवान को प्रेम की प्रतिमूर्ति बताया है. उसी प्रेम से पूर्ण ईश्वर द्वारा बनाए गए संसार में हर क्षण मृत्यु का वीभत्स खेल चल रहा है. हवा का हर ?ांका अनगिनत सूक्ष्म जीवों को मार देता है, हर क्षण बड़ी मछली छोटी मछली को खा रही है और हर क्षण एक शेर किसी हिरण को दर्दनाक मृत्यु के घाट उतार रहा है.

इस पृथ्वी पर कोई पल ऐसा नहीं गुजरता जब एक प्राणी, अपने अस्तित्व की रक्षा में दूसरे के प्राणों से न खेल रहा हो. यूक्रेन में रूसी निहत्थों को मार रहे हैं और यूक्रेनी निवासी रूसी सैनिकों को. ईश्वर में दोनों विश्वास रखते हैं. और्थोडौक्स क्रिश्चियन धर्म को मानने वाले इन दोनों के मरने वालों के परिजन आज इन की मौतों से दुखी हैं. ऐसा मायाजाल फैलाने वाला उत्पीड़क तो हो सकता है, प्रेम का सागर या दयालु नहीं.

एक और बात अत्यंत महत्त्वपूर्ण एवं विचारयोग्य है, अगर हम सभी और हमारा पूरा ब्रह्मांड एक सर्वशक्तिमान की रचना है तो सभी रचनाओं में एक क्रमबद्ध विकास क्यों दृष्टिगोचर होता है? क्यों एक छोटी उल्का से एक विशाल तारे की शृंखला बनती है? क्यों एक छिपकली से मगरमच्छ तक का विकास दिखता है? क्यों बंदर से मानव की यात्रा में विकास के पड़ाव आते हैं? सर्वशक्तिमान को तो एक ही बार में परिपूर्ण ढांचा बनाना चाहिए. एक ओर कड़े अनुशासन में बंधे विशालकाय ब्रह्मांडीय ग्रह, दूसरी ओर मानव के अगले ही क्षण का पता नहीं. ये दोनों कार्य एक ही सर्वज्ञानी तो नहीं कर सकता.

थोड़ी और गहराई में जाएं तो आप स्वयं आश्चर्यचकित रह जाएंगे कि किन धार्मिक शास्त्रों को हम ने ज्ञान का आधार मान रखा है? इन शास्त्रों के अनुसार ब्रह्मांड में सिर्फ कुछ ग्रह, सूर्य, चंद्रमा, पृथ्वी आदि के अलावा कुछ भी नहीं है, जबकि हम जानते हैं कि ब्रह्मांड का विस्तार अनंत है. उस की सीमाएं जानना अभी बाकी है. हमारे अपने बनाए गए उपग्रह लाखों मील तक सौरमंडल के अंत तक जा चुके हैं. जन्मपुनर्जन्म की अनेक किवंदतियां विभिन्न धर्मों में मिल जाएंगी. मगर आज वैज्ञानिकों ने साबित कर दिया है कि पुनर्जन्म कुछ नहीं, सिर्फ आप के गुण-धर्मों का डीएनए के जरिए अगली पीढ़ी तक पहुंचना है. धर्म तथ्य, नर्क, विज्ञान की जानकारी के बाद भी अपनी ऊलजलूल कहानियों को दोहराते रहते हैं.

चौथी मान्यता – भगवान संसार को चलाने वाला है

हम भगवान को रचयिता के साथसाथ, पालनकर्ता एवं संहारक भी मानते हैं. हिंदू धर्म का प्रबल एवं अटूट विश्वास है कि ‘रामजी की इच्छा के बिना पत्ता भी नहीं हिल सकता.’ इस से पहले कि आप भी इसे सच मानें, एक सवाल की ओर अपना ध्यान केंद्रित कीजिए- क्या आप को मालूम है कि अगर योजनाबद्ध तरीके से एक पत्ता हिलाना हो तो उस में भौतिकी, रसायन एवं तकनीकी की कितनी गणनाएं आवश्यक होंगी? सहज कल्पना कर के देखिए-

सब से पहले : पत्ता – उस में समाहित रसायन, उस का आकारप्रकार, भार, डाली से उस का तनाव सारी गणनाएं होनी चाहिए.

दूसरी : हवा – उस के अणुपरमाणु, विभिन्न गैसें, धूलकणों एवं आर्द्रता की मात्रा, यात्रा की गति एवं दिशा ये गणनाएं भी चाहिए.

तीसरी : पत्ता हिलाने की प्रक्रिया – हवा को कितने बल से चलायमान करना, उस का पत्ते से किस कोण से टकराना, टकराने के पश्चात हवा और पत्ता किन दिशाओं एवं कोणों पर मुड़ेंगे, कितना समय लगेगा? इस की पूरी योजना चाहिए.

चौथा : इस प्रक्रिया का हर क्षण, 24×7×365, आयोजन-प्रयोजन-महज एक पत्ते के लिए ही असंभव है तो फिर अकेले पृथ्वी पर ही अनंत पत्तों को हिलाने की प्रक्रिया में रामजी के संलग्न होने का कोई स्पष्ट दृष्टिकोण नजर नहीं आता.

सहज विचार करिए कि जब एक पत्ते को भी योजनाबद्ध तरीके से हिलाने में इतनी इंजीनियरिंग चाहिए तो समस्त संसार को हर क्षण अपने अधिकार और नियंत्रण में रखना भगवान के वश में नहीं. नैसर्गिक, प्राकृतिक एवं शनैशनै ये यांत्रिक घटनाएं विकसित हो सकती हैं मगर कोई कितना ही शक्तिशाली क्यों न हो, इसे डिजाइन कर के चला नहीं सकता.

एक क्षण के लिए मान भी लिया जाए कि यह भगवान की रचना है और उसी द्वारा संचालित है तो अपने चारों ओर अवलोकन करिए और निष्कर्ष निकालिए कि यह रचना और संचालन क्या किसी सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञानी एवं प्रेम की मूर्ति का हो सकता है? तारेसितारे भभकती आग का गोला हैं, मानव एवं जीव, बीमार, दुखी एवं क्षणभंगुर. एक जीव दूसरे के प्राणों का प्यासा. अकेली पृथ्वी पर लगातार भभकते ज्वालमुखी, बाढ़ का कहर, बढ़ता प्रदूषण, सीमित संसाधन. ऐसा लगता है कि असीमित ब्रह्मांड

और सीमित दुनिया का सीईओ इन हजारोंकरोड़ों वर्षों में अपनी कंपनियों के प्रबंधन में बुरी तरह असफल हो गया है. ऐसे में, हमारे पास उसे (भगवान को) अनिवार्य सेवामुक्ति दे देने के अलावा कोई और विकल्प शेष नहीं रह गया है.

5वीं मान्यता – भगवान ही संहारक है

हमारे शास्त्रों ने प्रकृति का यह सब से वीभत्स कार्य भी भगवान को सौंप दिया है. मगर ऐसा करने से पहले उन्होंने इस बात को नजरअंदाज कर दिया कि बौद्धिक विकास कई कठिन प्रश्न उपस्थित करेगा.

उदाहरण के तौर पर, कुछ ही वर्षों पूर्व तक हमारी औसत आयु 40-45 वर्ष थी. आधुनिक विज्ञान में प्रगति के चलते यह औसत आयु अब बढ़ कर 60-65 वर्ष हो गई है. क्या अचानक, करोड़ों वर्ष पश्चात भगवान को मानव जाति पर दया आ गई?

एक और प्रश्न उठता है. आदिम मानव जहां दूसरे मांसाहारियों का भोग बनता था, बीमारी और संक्रमण से मरता था, वही आज कोई ट्रक के टायर से मरता है, कोई आतंकवादी की गोली से मरता है तो कोई कल्पना चावला की तरह अंतरिक्ष में अविश्सनीय मृत्यु को प्राप्त करता है, कोई रूसी मिसाइल से मरता है. क्या यमराज इस प्रतीक्षा में होते हैं कि कब एके-47 बने, कब मिसाइल छोड़े जाएं और कब वे उस से किसी के प्राण लें? अगर भगवान इसी इंतजार में है कि कब मानव कोई नई तकनीक आविष्कृत करे और कब वे उसे उपयोग में लाएं

तो निस्संदेह उसे सर्वशक्तिमान मानना असंभव होगा. अपने चारों ओर अवलोकन करें तो हमें जन्म एवं मृत्यु की अनगिनत प्रणालियां दिखाई देती हैं.

अगर भगवान ने ऐसा किया है तो उस ने स्वयं अपनी प्रबंधन प्रणाली को अत्यंत जटिल बनाया है. भगवान के लिए तो यह ही आसान होता कि जन्म की एक परिष्कृत पद्धति एवं मृत्यु की एक निश्चित प्रक्रिया. इस तरह यमराज एवं उस के दूतों का कार्य भी आसान हो जाता.

फिर सोचिए, मृत्यु के पश्चात शरीर की क्या दुर्दशा होती है. कभीकभी तो कुछ मृत जानवरों के शरीर एक के बाद एक ट्रकों और गाडि़यों के टायरों से रौंदे जाते हैं. क्या यह एक सर्वज्ञानी का डिजाइन हो सकता है.

निष्कर्ष

हम भगवान की संतानें नहीं हैं क्योंकि आदम-हव्वा से पाप तो शैतान ने करवाया. न ही परमपिता हमारी रक्षा करने में समर्थ हैं क्योंकि वह अपने 2 बच्चों आदम और हव्वा को भी शैतान के कहर से न बचा सका. जब शैतान के उकसाने पर वर्जित फल खाया गया तो क्या हम शैतान की संतानें हैं? सवाल अनेक हैं और अभी एक अंतिम सवाल भी उत्तरित करना शेष है – भगवान नहीं है तो क्या है?

इस अंतिम प्रश्न के वर्तमान में कई संभावित उत्तर हो सकते हैं, जिन की गवेषणा में जाना अभी बाकी है. मगर एक बात निश्चित है कि ईश्वर का जो रूपस्वरूप विभिन्न धर्मों द्वारा अलगअलग गढ़ा गया है एवं जो भी दिया गया है वह ?ाठा है. इस बात में कोई संशय नहीं कि समस्त विश्व एक ही ऊर्जा, एक ही शक्ति या एक ही स्त्रोत का परिणाम है. मगर हम हजारों वर्ष पूर्व के मानव के सीमित ज्ञान से आत्मापरमात्मा की परिभाषा प्राप्त नहीं कर सकते.

प्रकृति संपूर्णतया ऊर्जा एवं गति से भरी हुई है. प्रत्येक कण, प्रत्येक जीवन का जन्म लेना और मृत्यु को प्राप्त होना, ये सभी चक्र स्वस्फूर्त एवं स्वनिर्भर हैं. ऊर्जा अनंत विश्व में विसर्जित है, किसी भी धर्म के भगवान के हाथों में केंद्रित नहीं है और इन सभी चक्रीय प्रणालियों में अंतर्निहित इंटैलिजैंस है. जैसे, सूर्य में लगातार एनर्जी का निर्माण एवं पदार्थ का श्रेय होता है. इसी प्रकार प्रत्येक कण में, प्रत्येक जीव में भी स्वनिरंतरता बनाए रखने का ज्ञान है. विभिन्न चक्रों के इंटैलिजैंस में इतनी विविधता है कि यह किसी सुपर इंटैलीजैंस द्वारा प्रदत्त अथवा डिजाइंड नहीं है, बल्कि नैसर्गिक एवं प्राकृतिक है.

अंत में यह भी सम?ाना होगा कि औरतों और आदमियों के बीच चौड़ी खाई के लिए यह भगवान की कल्पना ही जिम्मेदार है. भारत में हिंदूमुसलिम विवाद और ऊंची जाति, पिछड़ी जाति, अछूत जाति, जनजाति व दूसरे धर्मों से विवाह के पीछे भी भगवान ही की मान्यता है. रंगभेद, वर्गभेद, वर्णभेद, भाषाभेद को भगवान की कल्पना ही बल देती है. हे भगवान, जरा बताओ तो हम सब में फूट डालने वाले तुम हो तो किस आधार पर हो.

विश्वास के धरातल को छोड़ जब हम विचार की वास्तविकता पर आते हैं तो यह पक्का हो जाता है कि इस प्रकृति को भगवान ने नहीं बनाया, बल्कि जिस गति से विकासक्रम जारी है, तकनीकी विज्ञान एवं आयुर्विज्ञान उन्नति पर है, उस से यही लगता कि आने वाले भविष्य में प्रकृति एक सर्वदा सुखी, स्वस्थ, प्रसन्न एवं अमर प्रजाति का विकास अवश्य कर लेगी जिसे आप सही अर्थों में भगवान कह सकेंगे.

आज आवश्यकता है विकास की इस गति को तेज करने की. आवश्यकता है प्रकृति द्वारा विकसित प्रणालियों में निहित नियमों को सम?ाने की. आवश्यकता है मंदिर, मसजिद, गिरिजों को प्रयोगशालाओं में परिवर्तित करने की. आवश्यकता है पूजाअर्चना, प्रार्थना और नमाज में व्यस्त मानव को अपने श्रम एवं समय को वैज्ञानिक खोजों में व्यय करने की और आवश्यकता है भगवान को अनिवार्य सेवानिवृत्त कर अपने समय एवं भविष्य का निर्धारण स्वयं अपने हाथों में लेने की.

ऐसी जुगुनी- भाग 1: जुगुनी ने अपने ससुरालवालों के साथ क्या किया?

‘‘अगर तुम आजीवन सुखी रहना चाहती हो तो अपनी ससुराल वालों, खासकर अपनी ननदों और देवरों से भरसक दूरी बनाए रखो. मैं उन्हें पहली नजर में ही पहचान गया था कि वे एक नंबर के कंजूस व मक्खीचूस किस्म के लोग हैं. यदि तुम ने मेरा कहना नहीं माना तो वे हरामखोरनिठल्ले एक दिन तुम्हारे सीने पर मूंग दलेंगे. इतना ही नहीं, वे दरिद्रजन तुम्हारा सारा हक भी मार लेंगे. तुम्हारे दकियानूस पति की बेवकूफी का वे पूरा फायदा उठाएंगे,’’ शांताराम ने अपनी नवब्याहता बहन को समझाने और ससुराल वालों के खिलाफ उस के मन में जहर की पहली डोज डालने की कोशिश की.

उस ने फिर कहा, ‘‘तुम्हें गलती से हम ने ऐसे परिवार में ब्याह दिया है जहां एक भाई कमाता है, बाकी तोंद पर हाथ फेरते हुए, बस, डेढ़ सेर खाते हैं. तेजेंद्र के सिवा तो वहां कोई कुछ करता ही नहीं. मां पहले ही कालकवलित हो चुकी है और बाप रिटायर्ड हो चुका है जिस का घर से कुछ भी लेनादेना नहीं है जबकि बड़ा भाई अपने परिवार में बीवीबच्चों के साथ मस्त है. किसी को किसी से कोई मतलब नहीं है. सब आपस में लड़मर रहे हैं. एक बात मैं कहूं, यह परिवार कई प्रकार से कमजोर है और तुम इस कमजोरी का खूब फायदा उठा सकती हो. आखिर, पढ़ीलिखी लड़की हो. कम से कम अपनी अक्ल का थोड़ा तो इस्तेमाल करो और इस परिवार का बेड़ा गर्क करो.’’

नाम तो उस का ज्योतिंद्रा था पर सब उसे जुगुनी ही कहते थे. जुगुनी भौंहें चढ़ाती हुई मुसकरा उठी, ‘‘भैया, मैं अब कोई दूधपीती बच्ची नहीं हूं. इन 7 दिनों में ही सबकुछ देख चुकी हूं, सब समझ चुकी हूं. अब मुझे क्या करना है, यह भी तय कर चुकी हूं. देखना, मैं ससुराल में इतनी साजिश रचूंगी और इतनी तिकड़म आजमाऊंगी कि तेजेंद्र खुदबखुद उन से दूरी बना कर रहने लगेगा. तेजेंद्र तो मेरी तरेरती निगाहों के आगे कठपुतली की तरह नाचता फिरेगा. और हां, ससुरालियों के मन में भी एकदूसरे के प्रति इतना जहर भरूंगी कि वे एकदूसरे के जानीदुश्मन बन जाएंगे.’’

शांताराम बहन के इस अंदाज में शेखी बघारने पर फख्र करते हुए आश्चर्य से भर उठा, ‘‘ससुराल में कदम रखते ही तुम्हारी छठी इंद्रिय काम करने लगी है. पहले तो तुम गधी थी. तो भी मैं तुम्हें बता देना चाहता हूं कि तुम्हारा पति कमअक्ल और लकीर का फकीर है. थोड़ाबहुत साहित्य क्या लिख लेता है, वह खुद को तुलसीदास और शेक्सपियर समझने लगा है. पर, वह है पूरा डपोरशंख. खुद को भौतिकवाद से दूर रखने का पाखंड खूब कर लेता है. दरअसल, तुम्हारे सारे ससुराल वाले कंजूस और लीचड़ हैं. तुम्हारा तेजेंद्र भी दांत से पैसा दबाए रखता है. ऐसे लोग कूपमंडूक होते हैं और उन्हें विरासत, परंपरा, तहजीब जैसी गैरजरूरी बातों से ज्यादा लगाव होता है. उसे समझाना होगा कि अब उस का अपना परिवार है और इसी के लिए जीना व मरना है. मांबाप और भाईबहन के लिए जिंदगी तबाह करने की जरूरत नहीं है. वे कमीने तो उस की शादी के बाद से ही पराए हो गए हैं. अब उस के अपने हैं तो केवल हम ससुराल वाले,’’ जुगुनी उस की हर बात पर ध्यान देती हुई संजीदा होती जा रही थी.

बेशक, ससुराल में कदम रखते ही नई बहू के तेवर तीखे हो गए. अभी हफ्ताभर ही तो हुआ है जुगुनी और तेजेंद्र की शादी हुए. तेजेंद्र के भाईबहनों ने उस की शादी में बड़े उत्साह से सभी कामों को अंजाम दिया था और नए रिश्तेदारों के साथ वे बड़ी गंभीरता व शालीनता से पेश भी आ रहे थे.

बहनों में बड़ी, नंदिनी तो इतनी खुश थी कि वह पंख उग आए गौरैये के चूजे की भांति घर से बाहर तक फुदकती फिर रही थी, और जो भी मिलता उस से कहती जा रही थी- ‘अब घर में मां के बाद उन की कमी को मेरी दूसरी भाभी पूरी करेंगी. हम सब उन्हें भाभी नहीं भाभीमां कह कर पुकारेंगे. इतने मिलजुल कर और प्यार से रहेंगे कि अपने मतलबी रिश्तेदारों और जिगरी दोस्तों के मन में भी हमारे लिए बेहद ईर्ष्या पैदा हो जाएगी.’

उस ने तेजेंद्र से कहा, ‘‘भैया, अभी भाभी को मुंबई मत ले जाना. जब महीनेभर बाद अगली बार आना, तो ले जाना. अभी तो हमें इन से दिल से दिल मिला कर मेलजोल बढ़ाना है.’’

पर, जुगुनी को नंदिनी का प्रस्ताव बिलकुल अटपटा सा लगा. उस ने तुरंत तेजेंद्र को बैडरूम में ले जा कर समझाया, ‘‘अभी मैं यहां बिलकुल नहीं रहूंगी. क्या हम हनीमून पर नहीं चलेंगे? अगर हनीमून पर नहीं जाना है तो मुझे मुंबई अपने साथ ले चलो, वरना, मुझे कुछ समय के लिए मायके में ही छोड़ दो. जब दोबारा मुंबई से आना तो मुझे अपने साथ ले जाना. लेकिन, मेरा निर्णय कान खोल कर सुन लो, मैं यहां हरगिज नहीं रहने वाली.’’

तेजेंद्र चिंता में पड़ गया. उसे जुगुनी का स्वभाव एकदम अटपटा सा लग रहा था. बहरहाल, उस ने सोचा कि अभी जुगुनी को ऐसे नाखुश करना उचित नहीं होगा. सो, उस ने नंदिनी को समझाया कि वह अभी जुगुनी को यहां रुकने के लिए न कहे और वह मान भी गई. पर, जुगुनी तो मन ही मन खुश हो रही थी कि तेजेंद्र तो बड़ी सहजता से उस की बात मान लेता है. बेवकूफ है तो क्या हुआ, अपने परिवार वालों के बीच मुझे अहमियत तो देता है, गोबरगणेश कहीं का…

उस के बाद वह मुंबई के लिए अपनी अटैचियां व जरूरी सामान पैक करने लगी.

विवाह के समय मायके से जो उपहार मिले थे, जब तेजेंद्र उन्हें घर पर ही छोड़ कर जुगुनी के साथ मुंबई जाने को तैयार होने लगा तो वह एकदम से बौखला उठी, ‘‘तेजेंद्र, यह तो तुम अच्छा नहीं कर रहे हो. क्या मेरे घर वालों ने इतने ढेर सारा दानदहेज, गिफ्ट वगैरा तुम्हारे निठल्ले भाईबहनों को ऐश करने के लिए दिए हैं? कम से कम टीवी, फ्रिज और बैड तो अपने साथ ले चलो.’’

तेजेंद्र ने जुगुनी से अचानक ऐसे शब्दों की अपेक्षा नहीं की थी. लिहाजा, उस ने ठंडे दिमाग से उसे समझाया, ‘‘जुगुनी, मुझे तुम मिल गई, यह मेरे लिए बहुतकुछ है. सामान को तो गोली मारो. बहरहाल, इतना ढेर सारा सामान लाद कर हम मुंबई जाएंगे तो कैसे जाएंगे? इन्हें यहीं छोड़ दो. वहां हम अपने बलबूते पर सैटल होंगे और ये सारे सामान खुद खरीदेंगे. तुम्हें तो पता ही है, मेरी अच्छी तनख्वाह है. इन से कहीं बेहतर क्वालिटी के सामान वहां किस्तों में खरीद लेंगे.’’

जुगुनी इतराने लगी, ‘‘अच्छा, क्या मेरे मायके से आए सामान एवन क्वालिटी के नहीं हैं?’’

तेजेंद्र समझ गया कि जुगुनी और उस के परिवार वाले दुनियादारी व सामान के पीछे जान भी दे सकते हैं. छोटे शहरों के लोगों में विलासिता के साजोसामान खरीदने की ललक तीव्र होती है. उसे एहसास हो गया कि जुगुनी के मन में क्या चल रहा है. वह समझ गया कि जुगुनी के लिए मानवीय रिश्तों की कोई खास अहमियत नहीं है.

लिहाजा, उस पल तेजेंद्र के चेहरे पर आए हावभाव को पढ़ कर जुगुनी को लगा कि अभी उसे ऐसा अडि़यल रुख नहीं अपनाना चाहिए. वह कोई तरकीब सोचने लगी ताकि उस पर कोई दोष भी न आए और उस के मन की मुराद भी पूरी हो जाए. यानी उस के मायके का सारा सामान और उपहार उस के कब्जे में आ जाए. उस ने एकांत में जा कर झट मायके अपनी अम्मा को फोन लगाया तथा उन्हें सारी बात से अवगत कराया और मुंबई रवाना होने से पहले उन्हें और बाबूजी को मिलनेजुलने के बहाने फोन पर ही ठीक एक दिन पहले बुला लिया.

अम्मा ने आते ही कमर कस ली. ‘‘जुगुनी, तुम बिलकुल फिक्र मत करना. देखो, मैं किस तरह से सारा दानदहेज तुम्हारे साथ मुंबई भिजवाती हूं. एक तो इन लीचड़ ससुरालियों ने दहेज की सारी रकम ऐंठ ली, दूसरे, अब वे सारा दानदहेज और गिफ्ट भी हजम कर लेना चाहते हैं.’’

अम्मा ने बाबूजी को बरगलाना शुरू कर दिया, ‘‘अजी सुनते हो, अब कान में रुई डाल कर सोना बंद करो. देखो, तुम्हारी गाढ़े पसीने की कमाई पर गैरों की गिद्धदृष्टि लगी हुई है.’’

बाबूजी के कान खड़े हो गए, ‘‘वह कैसे?’’

‘‘वह ऐसे कि जुगुनी की शादी में जो सामान तुम ने इतने जतन कर के दिए हैं, तेजेंद्र उन्हें अपने भाईबहनों को सौंप कर खाली हाथ ही मुंबई जा रहा है. अब भला, मेरी बिटिया टीवी, फ्रिज के बगैर एक पल को भी कैसे रह पाएगी? तेजेंद्र तो रोज ड्यूटी बजाने औफिस को चला जाया करेगा जबकि मेरी गुडि़या घर में अकेली दीवारों पर रेंगती छिपकलियां देख कर ही सारा समय काटेगी. तेजेंद्र के भाईबहन दहेज के सामान पर जोंक की तरह चिपके हुए हैं. उस ने तो दहेज में मिला स्कूटर पहले ही अपने भाई प्रेमेंद्र के हवाले कर दिया है.’’

बाबूजी अपनी पत्नी के बहकावे में आने से पहले थोड़ीबहुत जो समझदारी दिखा सकते हैं वह उस से बातें करने के बाद पलभर में उड़नछू हो जाती है. उन्होंने अम्मा को समझाने की कोशिश की, ‘‘अभी कुछ ऐसा बखेड़ा खड़ा मत करो क्योंकि अभी शादी को हफ्ताभर ही तो हुआ है. अगर मैं तेजेंद्र के पापा से इस बारे में कुछ कहूंगा तो यह अच्छा लगेगा क्या? आखिर, यह तुम्हारा घर नहीं, बिटिया का ससुराल है.’’

अम्मा तुनक उठी, ‘‘अजी, ऐसा अच्छाभला सोचने लगोगे तो ससुराल में तुम्हारी बिटिया का जीना दूभर हो जाएगा. कल को ये लोग उस का गला भी घोंट सकते हैं. तेजेंद्र के घर वाले कितने कमीने हैं, इस बात का सुबूत देने की जरूरत नहीं है. उन के हौसले को बढ़ने से पहले ही तोड़ना होगा. सांप के फन उठाने से पहले ही उसे कुचल देना होगा. वरना, एक दिन तुम्हारी बेटी को चिथड़ा पहना कर वापस मायके भेज दिया जाएगा. तलाक तक की नौबत आ जाएगी. हो सकता है कि वे उसे जिंदा फूंकने का दुस्साहस भी करें, हां.’’

मेरे पति अपने करीब नहीं आने देते, मैं क्या करूं ?

सवाल

मैं 22 साल की एक शादीशुदा औरत हूं. मेरी शादी को एक साल होने वाला है लेकिन मेरे पति मुझे अब तक अपने पास नहीं आने देते हैं. मेरा उन के साथ जिस्मानी संबंध बनाने का मन करता है. कोई उपाय बताएं?

जवाब

आप की समस्या गंभीर है. आमतौर पर इस उम्र में शादी के बाद पति सैक्स के लिए उतावला रहता है. अगर पति को?भरोसे में ले कर जानने की कोशिश करें कि उस में सैक्स की इच्छा क्यों नहीं?है. अपनी सैक्सी अदाओं से उसे लुभाने की कोशिश करें. बात न बने तो घर की बड़ी औरतों को बताएं या फिर पति को किसी माहिर डाक्टर के पास ले जाएं.

मुमकिन है कि आप के पति में सैक्स को ले कर कमजोरी का डर बैठ गया हो या फिर और कोई ऐसी बात हो जो वह आप को नहीं बता पा रहा है.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

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Crime Story: ममता, मजहब और माशूक

मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की सीमाओं को जोड़ने वाली धार्मिक नगरी चित्रकूट में यों तो साल भर श्रद्धालुओं की आवाजाही बनी रहती है, लेकिन तीजत्यौहार के दिनों में भक्तों का जो रेला यहां उमड़ता है, उसे संभालने में पुलिस प्रशासन के पसीने छूट जाते हैं. ऐसे में यदि व्यवस्था में जरा सी चूक हो जाए तो पुलिस प्रशासन के लिए समस्या खड़ी कर सकती है. लिहाजा पुलिस व प्रशासन भीड़भाड़ वाले दिनों में अपनी तरफ से पूरी कोशिश करते हैं कि व्यवस्था और सुविधाओं में कोई कमी न रह जाए.

इस साल भी जनवरी के दूसरे सप्ताह से ही चित्रकूट में श्रद्धालुओं के आने का सिलसिला शुरू हो गया था, जिन का इंतजार पंडेपुजारियों के अलावा स्थानीय व्यापारी भी करते हैं. कहा जाता है कि मकर संक्रांति की डुबकी श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक लाभ पहुंचाती है और यदि डुबकी सूर्य के मकर राशि में प्रवेश के समय लगाई जाए तो हजार गुना ज्यादा पुण्य मिलता है.

14 जनवरी, 2018 को मकर संक्रांति की डुबकी लगाने के लिए लाखों लोग चित्रकूट पहुंच चुके थे. श्रद्धालु अपनी हैसियत के मुताबिक लौज, धर्मशाला व मंदिर प्रांगणों में ठहरे हुए थे. वजह कुछ भी हो पर यह बात दिलचस्प है कि चित्रकूट आने वालों में बहुत बड़ी तादाद मामूली खातेपीते लोगों यानी गरीबों की रहती है. उन्हें जहां जगह मिल जाती है, ठहर जाते हैं और डुबकी लगा कर अपने घरों को वापस लौट जाते हैं.

चित्रकूट में दरजनों प्रसिद्ध मंदिर और घाट हैं, जिन का अपना अलगअलग महत्त्व है. हर एक मंदिर और घाट की कथा सीधे राम से जुड़ी है. कहा यह भी जाता है कि चित्रकूट में राम और तुलसीदास की मुलाकात हुई थी. इन्हीं सब बातों की वजह से यहां लगने वाले मेले में देश के दूरदराज के हिस्सों से श्रद्धालु आते हैं.

मेले में आए लोग श्री कामदगिरि पर्वत की परिक्रमा भी जरूर करते हैं. लगभग 7 किलोमीटर की यह पदयात्रा करीब 4 घंटे में पूरी हो जाती है. 14 जनवरी को भी श्रद्धालु श्री कामदगिरि की परिक्रमा कर रहे थे, तभी कुछ ने यूं ही जिज्ञासावश पहाड़ी के नीचे झांका तो उन की आंखें फटी की फटी रह गईं.

इस की वजह यह थी कि पहाड़ी के नीचे की तरफ लगे बिजली के एक खंभे पर एक लड़की की लाश लटकी थी. शोर हुआ तो देखते ही देखते परिक्रमा करने वाले लोग वहां रुक कर लाश देखने लगे.

पुलिस को बुलाने या सूचना देने के लिए किसी को कहीं दूर नहीं जाना पड़ा. क्योंकि भीड़ जमा होने पर परिक्रमा पथ पर तैनात पुलिस वाले खुद ही वहां पहुंच गए. पुलिस वालों ने जब खंभे पर लटकी लड़की की लाश देखी तो उन्होंने तुरंत इस की खबर आला अफसरों को दी. कुछ ही देर में थाना नयापुरा के थानाप्रभारी पुलिस टीम के साथ वहां पहुंच गए. पुलिस लाश उतरवाने में लग गई.

पुलिस काररवाई के चलते भीड़ यह निष्कर्ष निकाल चुकी थी कि लड़की अपने घर वालों के साथ आई होगी और खाईं में गिर गई होगी. लेकिन पुलिस ने जब खंभे से लाश उतारी तो न केवल पुलिस वाले बल्कि मौजूद भीड़ भी हैरान रह गई. क्योंकि तकरीबन 11-12 साल की लग रही उस लड़की के मुंह में कपड़ा ठूंसा हुआ था.

मुंह में कपड़ा ठूंसा होने पर मामला सीधेसीधे हत्या का लगने लगा. पुलिस भी यह मानने लगी कि हत्या कहीं और कर के लाश यहां ला कर फेंकी होगी. क्योंकि अभी तक आसपास के किसी थाने से किसी लड़की की गुमशुदगी की खबर नहीं आई थी.

चित्रकूट में लड़की की लाश मिलने की खबर आग की तरह फैली तो लोग तरहतरह की बातें करने लगे. पुलिस ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. अगले दिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ गई, जिस में बताया गया कि उस लड़की की हत्या गला घोंट कर की गई थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के आधार पर पुलिस ने अज्ञात के खिलाफ भादंवि की धाराओं 302 और 201 के तहत मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी.

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उस वक्त चित्रकूट में बाहरी लोगों की भरमार थी. इसी वजह से लाश की शिनाख्त नहीं हो पाई थी. फिर भी पुलिस कोशिश में लग गई कि शायद कोई सुराग मिल जाए. अब तक की जांच से यह स्पष्ट हो गया था कि मृतका चित्रकूट की न हो कर कहीं बाहर की रही होगी.

इस तरह के ब्लाइंड मर्डर पुलिस के लिए न केवल चुनौती बल्कि सरदर्द भी बन जाते हैं. इस मामले में भी यही हो रहा था. हत्यारों तक पहुंचने के लिए लाश की शिनाख्त जरूरी थी.

पुलिस वालों ने सब से पहले सीसीटीवी फुटेज देखने का फैसला लिया, लेकिन यह भी आसान काम नहीं था, क्योंकि मकर संक्रांति के वक्त चित्रकूट में सैकड़ों कैमरे लगे हुए थे. यह जरूरी नहीं था कि सभी फुटेज देखने के बाद भी इतनी भीड़भाड़ में वह लड़की दिख जाए. पर सीसीटीवी फुटेज देखने के अलावा पुलिस के पास कोई और रास्ता भी नहीं था.

चित्रकूट में इस हत्या की चर्चा तेज होने लगी तो सतना के एसपी राजेश हिंगणकर ने मामला अपने हाथ में ले लिया. उन्होंने जांच में जुटी पुलिस के साथ बैठक की और कुछ दिशानिर्देश दिए. पुलिस टीम के लिए यह काम भूसे के ढेर से सुई ढूंढने जैसा था. पुलिस टीम सीसीटीवी कैमरों की फुटेज देखने में जुट गई. पुलिस की मेहनत रंग लाई.

12 जनवरी, 2018 की एक फुटेज में एक युवक और युवती के साथ वह लड़की दिखी तो पुलिस वालों की आंखें चमक उठीं.

उत्साहित हो कर पुलिस ने और फुटेज खंगालीं तो इस बात की पुष्टि हो गई कि जिस लड़की की लाश पुलिस ने बरामद की थी, वह वही थी जो फुटेज में युवकयुवती के साथ थी. यह फुटेज जानकीकुंड अस्पताल की थी, जहां युवक व युवती मरीजों वाली लाइन में लगे थे.

उस दिन स्नान के लिए वहां लाखों लोग आए थे. इसलिए यह पता लगाना आसान नहीं था कि वह युवक और युवती कहां के रहने वाले थे, इसलिए पुलिस ने ये फुटेज सोशल मीडिया पर भी वायरल कर दिए, जिस से उन तक जल्द से जल्द पहुंचा जा सके.

फुटेज सोशल मीडिया पर डालने के बाद भी पुलिस को उन के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली. इस पर हत्यारे का सुराग देने पर 10 हजार रुपए का इनाम भी घोषित कर दिया गया. इसी दौरान पुलिस वालों ने जानकीकुंड अस्पताल के रजिस्टर की जांच भी शुरू कर दी थी.

अस्पताल में आए मरीज का नामपता जरूर लिखा जाता है लेकिन हजारों की भीड़ में यह पता लगा पाना मुश्किल काम था कि जो चेहरे कैमरे में दिख रहे थे, उन के नाम क्या थे. इस के बाद भी पुलिस वाले नामपते छांटछांट कर अंदाजा लगाने में लगे रहे कि वे कौन हो सकते हैं. इस प्रक्रिया में 25 दिन निकल चुके थे और लाख कोशिशों के बाद भी पुलिस के हाथ कामयाबी नहीं लग रही थी.

चित्रकूट के लोगों की दिलचस्पी भी अब मामले में बढ़ने लगी थी. उन्हें सस्पेंस इस बात को ले कर था कि देखें पुलिस कैसे हत्यारों तक पहुंचती है और पहुंच भी पाती है या नहीं.

अस्पताल के रजिस्टर में दर्ज जिन नामों पर पुलिस ने शक किया और जांच की, उन में एक नाम उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले के विजय और उस की पत्नी आरती का भी था. एसपी के निर्देश पर एक पुलिस टीम विजय के गांव ऐंझी पहुंच गई.

विजय से सीधे पूछताछ करने के बजाय पुलिस ने पहले उस के बारे में जानकारी हासिल की तो एक जानकारी यह मिली कि उस की 10-11 साल की एक बेटी नेहा भी थी, जो लगभग एक महीने से नहीं दिख रही है.

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पुलिस ने चित्रकूट से लड़की की जो लाश बरामद की थी, उस की उम्र भी 10-12 साल थी. यह समानता मिलने पर पुलिस की जिज्ञासा बढ़ गई. इस के बाद पुलिस विजय के घर पहुंच गई. उस समय उस की पत्नी आरती भी घर पर मौजूद थी. पुलिस ने जब उन दोनों से उन की बेटी नेहा के बारे में पूछा तो वह बोले कि उन की कोई बेटी नहीं थी, केवल एक बेटा ही है.

उन की बातों से लग रहा था कि वह झूठ बोल रहे हैं क्योंकि उनके पड़ोसियों ने बता दिया था कि इन की 10-11 साल की एक बेटी नेहा थी, जो पता नहीं कहां चली गई है. इसी शक के आधार पर पुलिस विजय और उस की पत्नी आरती को चित्रकूट ले आई.

थाने में उन दोनों से जब पूछताछ शुरू हुई तो दोनों साफ मुकर गए कि उन की कोई बेटी भी है. तब पुलिस ने उन्हें सीसीटीवी फुटेज दिखाई, जिस में उन के साथ 10-11 साल की बच्ची थी. फुटेज देखते ही दोनों बगले झांकने लगे. उसी समय दोनों ने आंखों ही आंखों में कुछ बात की और चंद मिनटों में ही बेटी की हत्या का राज उगल दिया.

पुलिस वाले यह जान कर आश्चर्यचकित रह गए कि आरती का असली नाम सबीना शेख है और वह मुसलमान है. सबीना की शादी सन 2006 में उत्तर प्रदेश के जिला फतेहपुर के ही निवासी जाहिद अली से हुई थी. जाहिद से उसे 2 बच्चे हुए, पहली बेटी सिमरन और दूसरा बेटा साजिद जो 5 साल का है.

सबीना जाहिद के साथ रह जरूर रही थी, लेकिन उस के साथ उस की कभी पटरी नहीं बैठी, क्योंकि सबीना किसी और को चाहती थी.

दरअसल सबीना और विजय एकदूसरे को बचपन से चाहते थे, लेकिन सबीना की शादी घर वालों ने उस की मरजी के खिलाफ जाहिद से कर दी थी, इसलिए सबीना जाहिद के साथ रह जरूर रही थी, लेकिन उसे वह दिल से नहीं चाहती थी.

उस ने तो अपने दिल में विजय को बसा रखा था. जब दिल नहीं मिले तो उन के बीच बातबेबात झगड़ा रहने लगा. अपनी कलह भरी जिंदगी सुकून से गुजारने की गरज से सबीना ने शादी के 9 साल बाद विजय को टटोला. उसे यह जान कर खुशी हुई कि विजय उसे आज भी पहले की तरह चाहता है और उसे बच्चों सहित अपनाने को तैयार है.

बस फिर क्या था बगैर कुछ सोचेसमझे एक दिन वह पति को बिना बताए विजय के साथ भाग गई. यह सन 2015 की बात है.  योजनाबद्ध तरीके से दोनों भाग कर ऐंझी गांव आ कर रहने लगे. सबीना अपने बच्चों को भी साथ ले आई थी, जिस पर विजय को कोई ऐतराज नहीं था.

अपने पुराने और पहले आशिक के साथ रह कर सबीना खुश थी. उधर जाहिद ने भी बीवी के गायब होने पर कोई भागदौड़ नहीं की, क्योंकि वह तो खुद सबीना से छुटकारा पाना चाहता था. सबीना अब हिंदू के साथ रह रही थी, इसलिए उस ने खुद का नाम आरती सिंह, बेटी सिमरन का नाम नेहा सिंह और बेटे साजिद का नाम बदल कर आशीष सिंह रख लिया था.

नए पति के साथ खुशीखुशी रह रही सबीना को थोड़ाबहुत डर अपने मायके वालों से लगता था कि अगर उन्हें पता चला तो वे जरूर फसाद खड़ा कर सकते हैं. साजिद उर्फ आशीष ने तो विजय को पापा कहना शुरू कर दिया था, लेकिन सिमरन विजय को पिता मानने को तैयार नहीं थी. सिमरन उर्फ नेहा चूंकि 10-11 साल की हो चुकी थी, इसलिए वह दुनियाजहान को समझने लगी थी. उस का दिल और दिमाग दोनों विजय को पिता मानने को तैयार नहीं थे.

आरती की बड़ी इच्छा थी कि नेहा विजय को पापा कहे. इस बाबत शुरू में तो आरती और विजय ने उसे बहुत बहलायाफुसलाया, लेकिन इस्लामिक माहौल में पली सिमरन हमेशा विजय को मामू ही कहती थी. जब इस संबोधन पर सबीना ने सख्ती से पेश आना शुरू किया तो वह सिमरन के इस मासूमियत भरे सवाल का कोई जवाब वह नहीं दे पाई कि आप ही तो कहती थीं कि ये मामू हैं, अब इन्हें पापा कैसे कह दूं. मेरे अब्बू तो दूसरे गांव में रहते हैं.

इस से विजय और सबीना की परेशानी बढ़ने लगी थी. वजह मामू और अब्बा के मुद्दे पर सिमरन बराबरी से विवाद और तर्क करने लगी थी. दोनों को डर था कि यह उजड्ड और बातूनी लड़की कभी भी उन का राज खोल सकती है क्योंकि गांव में कोई इन की असलियत नहीं जानता था. अगर गांव वाले सच जान जाएंगे तो धर्म के ठेकेदार इन का रहना और जीना मुहाल कर देते.

जब लाख समझाने और धमकाने से भी बात नहीं बनी यानी सिमरन विजय को पिता मानने को तैयार नहीं हुई तो खुद सबीना ने विजय को इशारा किया कि इस से तो अच्छा है कि सिमरन का मुंह हमेशा के लिए बंद कर दिया जाए. विजय भी इस के लिए तैयार हो गया.

दोनों ने मकर संक्रांति पर चित्रकूट जाने की योजना बनाई और सिमरन से कहा कि वहां तुम्हारी आंखों की जांच भी करा देंगे. सिमरन जिद्दी जरूर थी, पर इतनी समझदार अभी नहीं हुई थी कि सगी मां के मन में पनप रही खतरनाक साजिश को भांप पाती.

12 जनवरी, 2018 को चित्रकूट आ कर दोनों ने जानकीकुंड अस्पताल में सिमरन उर्फ नेहा की आंखों की फ्री जांच करवाई और उस दिन उन्होंने विभिन्न मंदिरों में दर्शन किए. 13 जनवरी, 2018 को इस अंतरधर्मीय परिवार ने चित्रकूट में परिक्रमा की और रात में नरसिंह मंदिर के प्रांगण में आ कर सो गए.

2 दिन घूमनेफिरने के बाद थकेहारे दोनों बच्चे तो जल्द सो गए, लेकिन दुनिया के सामने दोहरी जिंदगी जीते विजय और आरती उर्फ सबीना की आंखों में नींद नहीं थी. रात 12 बजे के लगभग दोनों ने गहरी नींद में सोई नेहा उर्फ सिमरन का गला मफलर से घोंट डाला.

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उस के मर जाने की तसल्ली होने के बाद दोनों यह सोच कर लाश को झाडि़यों में फेंक आए कि सिमरन की लाश को जल्द ही चीलकौए और जानवर नोचनोच कर खा जाएंगे और उन के जुर्म की भनक किसी को भी नहीं लगेगी. लाश खाईं में गिराने के बाद वे दोनों बेटे को ले कर गाजियाबाद भाग गए और कुछ दिन इधरउधर भटकने के बाद ऐंझी पहुंच गए.

पहाड़ी से लाश गिराते समय इत्तफाक से नेहा की लाश का बायां पांव खंभे में उलझ गया और लाश लटकी रह गई.

9 फरवरी, 2018 को जब सारे राज खुले तो हर किसी ने इसे वासना के लिए ममता का गला घोंटने वाली शर्मनाक वारदात कहा. बात सच भी थी, जिस का दूसरा पहलू सबीना और विजय की यह बेवकूफी थी कि वे नाम बदल कर चोरीछिपे रह रहे थे.

सबीना जाहिद से तलाक ले कर सीना ठोंक कर विजय से शादी करती तो शायद सिमरन भी विजय को पिता के रूप में स्वीकार कर लेती, पर इसे इन दोनों की बुजदिली ही कहा जाएगा कि धर्म और समाज के दबाव से लड़ने के बजाय उन्होंने एक मासूम की हत्या कर के अपनी जिंदगी खुशहाल बनने का ख्वाब देख डाला. कथा संकलन तक दोनों जेल में थे.

जहीर इकबाल ने सोनाक्षी सिन्हा से किया प्यार का ऐलान, लिखा- ‘आई लव यू’

बॉलीवुड एक्ट्रेस सोनाक्षी सिन्हा और एक्टर जहीर इकबाल का लवलाइफ सुर्खियों में छाये रहता है. काफी दिनों से चर्चा चल रही थी कि ये कपल एक दूसरे को डेट कर रहा है. लेकिन सोनाक्षी सिन्हा और जहीर इकबाल ने इसे अफवाह बताया था. अब खुद जहीर इकबाल ने सोशल मीडिया पर प्यार का इजहार किया है.

जहीर इकबाल ने सोनाक्षी सिन्हा के लिए अपना प्यार कबूल कर लिया है. दरअसल जहीर ने सोशल मीडिया पर अपनी लेडी लव को बिलेटेड बर्थडे विश करते हुए एक पोस्ट लिखा है.

 

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इसके साथ ही एक्टर ने सोनाक्षी सिन्हा का एक वीडियो भी पोस्ट किया है. जिसमें एक्ट्रेस बर्गर खाते हुए नजर आ रही है. इस वीडियो को पोस्ट करते हुए जहीर इकबाल ने प्यार का इजहार किया है.

 

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जहीर ने इन वीडियोज को शेयर करते हुए एक्टर ने लिखा, ‘हैप्पी बर्थडे सोनाज… शुक्रिया मुझे न मारने के लिए… आई लव यू… आपको ढेर सारा खाना, फ्लाइट्स, लव और खुशियां मिले… फोटो क्रेडिट- ये वीडियो बताता है कि हम एक दूसरे को कितने वक्त से जानते हैं.’

 

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जहीर इकबाल की इस पोस्ट से पता चलता है कि ये दोनों रिलेशनश्प में हैं. बता दें कि फिल्म निर्माता दिनेश विजान की बहन की रिसेप्शन पार्टी में सोनाक्षी सिन्हा और जहीर इकबाल एक साथ पहुंचे थे.

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