Download App

बंगले वाली- भाग 1: नेहा को क्यों शर्मिंदगी झेलनी पड़ी?

नेहा का मन आज सुबह से ही घर के कामों में नहीं लग रहा था. उत्सुकतावश वह बारबार अपने चौथे मंजिल के फ्लैट की छोटी सी बालकनी से झांक कर देख रही थी कि सामने वाले बंगले में कौन रहने आने वाला है ? कल बंगले का सामान तो आ गया था, बस इंतजार था तो उस में रहने वाले लोगों का. इस से पहले जो लोग इस बंगले में रहते थे, वे इतने नकचढ़े थे कि फ्लैट में रहने वालों को तुच्छ सी नजरों से देखते थे. उन्हें अपने पैसों का इतना घमंड था कि आंखें हमेशा आसमान की तरफ ही रहती थीं. नेहा ने कितनी बार बात करने की कोशिश की, पर उस बंगले वाली महिला ने घास नहीं डाली.

किसी ने सच कहा है कि इनसान कितना भी बड़ा क्यों न हो जाए, उसे अपने पैर जमीन पर रखने चाहिए, हमेशा आसमान में देखने वाले कभीकभी औंधे मुंह गिरते हैं. इन बंगले वालों का भी यही हुआ, छापा पड़ा, इज्जत बचाने के लिए रातोंरात बंगला बेच कर पता नहीं कहां चले गए?

“अरे, ये जलने की बू कहां से आ रही है, सो गई क्या?” पति की आवाज सुन कर नेहा हड़बड़ा कर किचन की तरफ भागी, “अरे, ये तो सारी सब्जी जल गई…”

“आखिर तुम्हारा सारा ध्यान रहता कहां है? कल से देख रहा हूं, कोई काम ठीक से नहीं हो रहा है. बंगले वालों का इंतजार तो ऐसे कर रही हो जैसे वो बंगला तुम्हें उपहार में देने वाले हों, अब बिना टिफिन के ही दफ्तर जाऊं क्या? या कुछ बनाने का कष्ट करोगी.”

पति की जलीकटी बातें सुन कर नेहा की आंखों में आंसू आ गए. वह जल्दीजल्दी दूसरी सब्जी बनाने की तैयारी करने लगी.

‘सही तो कह रहे हैं ये, सत्यानाश हो इन बंगले वालों का,’ सुबहसुबह दिमाग खराब हो गया.

पर, नेहा भी करे तो क्या करे…, बड़ा सा घर होगा, नौकरचाकर होंगे, गाड़ी होगी, पलकों पर बैठाने वाला पति होगा, पर सारे सपने चकनाचूर हो गए. छोटा सा फ्लैट, पुराना सा स्कूटर, सीमित आय और वो घर की नौकरानी. सारा दिन किचन में खटती रहती है वह, उस पर पति के ताने कि ढंग से पढ़ीलिखी होती तो इस मंहगाई के दौर में नौकरी कर के घर चलाने में मदद तो करती, कुछ नहीं तो कम से कम बच्चों को तो घर में पढ़ा लेती, इतनी मंहगी ट्यूशनों की फीस बचती.

मन जारजार रोने को हो आया, पर मुझे घरगृहस्थी के काम चैन से करने भी नहीं देते. जैसेतैसे टिफिन तैयार कर के पति को थमाया, गुस्से के मारे पतिदेव ने टिफिन लिया और बिना उस की तरफ देखे चलते बने.

जबतब पति की ये बेरुखी नेहा के दिल को अंदर तक कचोट जाती है. कितना गुमान था उसे अपनी खूबसूरती पर, परंतु पति के मुंह से तो कभी तारीफ के दो बोल भी नहीं निकलते, सुनने को कान तरस गए उस के…

तभी कार की आवाज सुन कर उस की तंद्रा टूट गई. थोड़ी देर पहले का सारा वाकिआ भूल कर वह दौड़ कर बालकनी में पहुंच गई, लगता है, बंगले वाले लोग आ गए. कार से उतरती महिला को देख कर नेहा अंदाजा लगाने लगी, उम्र में मेरे जितनी ही लग रही है. अरे, ये तो… कांची जैसे दिख रही है??? नहींनहीं, वह इतने बड़े बंगले की मालकिन कैसे हो सकती है… पर, नहीं… ये तो वो ही है. उस ने झट से अंदर आ कर बालकनी का दरवाजा बंद कर दिया.

उफ, ये यहां कैसे आ गई? इतनी बड़ी दुनिया में इसे रहने के लिऐ मेरे घर के सामने ही जगह मिली थी क्या?

आज तो दिन नहीं खराब है, सुबहसुबह पता नहीं किस का मुंह देख लिया. हो सकता है, मेरी आंखों का धोखा हो, वो कांची न हो, कोइ ओर हो…, पर पर वो तो वही थी.

हाय री, मेरी फूटी किस्मत, वैसे ही इस घर में कौन से जन्नत के सुख थे, ऊपर से ये नई बला आ गई.

अस्तव्यस्त फैला हुआ घर, किचन में बिखरा फैलारा, ढेर सारे झूठे बरतन, सब बेसब्री से नेहा की बाट जोह रहे थे, पर आज तो उस का मन एकदम खिन्न हो गया था. सारा काम छोड़ कर वह बेमन सी बिस्तर पर लेट गई.

कितने वक्त बाद आज कांची को देख कर फिर अतीत के गलियारों में भटकने लगी.

पुराने भोपाल के एक छोटे से महल्ले में घर था उस का. प्यारा सा, अपनों से भरापूरा घर और घर के साथ ही सब के दुख में रोने के लिए कंधा देने वाला, खुशियों में दिल से खुश होने वाला, अपनत्व से भरपूर, प्यारा सा अपना सा महल्ला. हर एक के रिश्ते को पूरा महल्ला जीता था. सामने वाले घर में जो रिंकी रहती थी, उस की चाची उन के साथ रहती थी, वो पूरे महल्ले की चाची थी. आज वो पोतेपोतियों वाली हो गई हैं, फिर भी अभी तक छोटेबड़े सब उन को चाचीजी कहते हैं. हंसी तो तब आती थी, जब पिताजी उम्र में बडे़ होने के बाद भी उन्हें चाचीजी कहते थे. कोई बंटी की मम्मी को छः नंबर वाली भाभी, कोई दो नबंर वाली आंटी, सब ऐसे उपनामों से पुकारी जाती थी. वे संबोधन कितने अपने से लगते थे, आजकल मिसेस शर्मा, मिसेज गुप्ता, ये… वो… सब दिखावटी से लगते हैं.

गरमियों में शाम को और सर्दियों में दोपहर को सब औरतों की दालान में महफिल जमती थी, जिस में शामिल होता था सब्जी तोड़ना, पापड़, बड़ियां बनाना, सुखाना, ढेरों व्यंजनों की विधियों का आदानप्रदान, स्वेटरों की नईनई डिजाइनें बनाना, एकदूसरे को सिखाना, अपनेअपने सुखदुख साझा करना… क्या जमाना था वो भी… हम बच्चे स्कूल से आ कर बस्ते रखते और जी भर कर धमाचौकड़ी करते,  कभी लंगड़ी, कभी छुपाछुपी, कभी पाली जैसे ढेरों खेल खेला करते थे.

उस जमाने में टेलीविजन तो था नहीं, सो समय की भी कोई कमी न थी, कितनी बेफ्रिकी, सुकून भरे दिन थे वे… घर के आसपास सब जगह कितना भराभरा लगता था, उस दौर में अकेलेपन जैसे शब्द का नामोनिशान नहीं था और आज का वक्त देखो, इन बड़ेबड़ें शहरों में सब अपने छोटेछोटे दड़बों में कैद हैं.

घर से निकलते ही दिखावटीपन का मुखौटा हर किसी के चेहरे पर चढ़ जाता है, आत्मीयता का नामोनिशान नहीं दिखता, दिखते हैं तो बस दौड़तेभागते भावविहीन चेहरे, जिन्हें किसी के सुखदुख से कोई लेनादेना नहीं होता है. अपना घर और महल्ला याद आते ही नेहा की आंखें डबडबा गईं.

Crime Story: जीजा साली का जुनूनी इश्क

उत्तर प्रदेश के कानपुर महानगर के नौबस्ता थाने के अंतर्गत एक कालोनी है खाड़ेपुर. यह कालोनी कानपुर विकास प्राधिकरण ने मध्यमवर्गीय आवास योजना के तहत विकसित की थी. इसी कालोनी के बी-ब्लौक में जगराम सिंह अपने परिवार के साथ रहता था.

उस के परिवार में पत्नी मीना सिंह के अलावा 2 बेटियां ममता, पूजा के अलावा एक बेटा राजकुमार था. जगराम सिंह पनकी स्थित एक फैक्ट्री में काम करता था. फैक्ट्री से मिलने वाली तनख्वाह से उस के घर का खर्च आसानी से चल जाता था.

बड़ी बेटी ममता की इंटरमीडिएट की पढ़ाई पूरी हो जाने के बाद जगराम सिंह ने उस की शादी कानपुर के कठारा निवासी मनोज से कर दी. मनोज 3 बहनों का एकलौता भाई था. पिता अपनी पुश्तैनी जमीन पर सब्जियां उगाते थे. मनोज उन सब्जियों को टैंपो से नौबस्ता मंडी में थोक में बेच आता था. इस से अच्छाखासा मुनाफा हो जाता था.

मनोज गांव से टैंपो पर सब्जी लाद कर नौबस्ता मंडी लाता था. नौबस्ता से खाडे़पुर कालोनी ज्यादा दूर नहीं थी. इसलिए वह हर तीसरेचौथे दिन ससुराल पहुंच जाता था.

नईनई शादी हुई हो तो दामाद के लिए ससुराल से बेहतरीन कोई दूसरा घर नहीं होता. इस का एक कारण भारतीय परंपरा भी है. दामाद घर आए तो सभी लोग उस के आगमन से विदाई तक पलकपावड़े बिछाए रहते हैं. खूब स्वागतसत्कार होता है. विदाई के समय उपहार भी दिया जाता है. यह उपहार सामान की शक्ल में भी होता है और नकदी के रूप में भी.

मनोज की ससुराल में दिल लगाने, हंसीमजाक और चुहल करने के लिए एक जवान और हसीन साली भी थी पूजा. हालांकि एक साला राजकुमार भी था, मगर मनोज उसे ज्यादा मुंह नहीं लगाता था. उस की कोशिश पूजा के आसपास बने रहने और उस के साथ चुहलबाजी, छेड़छाड़ करते रहने की होती थी. पूजा भी उस से खुल कर हंसीमजाक करती थी. दोनों में खूब पटती थी.

पूजा के घर वाले पूजा और मनोज की चुहलबाजी को जीजासाली की स्वाभाविक छेड़छाड़ मानते थे और उन दोनों की नोकझोंक पर खुद भी हंसते रहते थे. ससुराल वाले मनोज को दामाद कम बेटा अधिक मानते थे. दरअसल मनोज ने अपने कुशल व्यवहार से अपनी सास व ससुर का दिल जीत लिया था. वह उन के घरेलू काम में भी मदद कर देता था. इसी के चलते वह मनोज पर जरूरत से ज्यादा भरोसा करने लगे थे.

मनोज जब ससुराल में ज्यादा आनेजाने लगा तो उस का धंधा भी प्रभावित होने लगा. पिता ने डांटा तो उस के दिमाग से ससुराल का नशा उतरने लगा. जिंदगी की ठोस हकीकत सामने आनी शुरू हुई तो मनोज का ससुराल में जल्दीजल्दी आनाजाना बंद हो गया. हां, फुरसत मिलने पर वह ससुराल में हो आता था.

पत्नी चाहे जितनी खूबसूरत हो, उस का नशा हमेशा नहीं रहता. वह जितनी तेजी से चढ़ता है उतनी ही तेजी से उतरने भी लगता है. शादी के 2 साल बाद ही मनोज को ममता बासी और उबाऊ लगने लगी. पत्नी से मन उचटा तो कुंवारी और हसीन साली पूजा में रमने लगा.

मन नहीं माना तो मनोज ने फिर से ससुराल के फेरे बढ़ा दिए. पर इस बार मनोज का ससुराल आना बेमकसद नहीं था. उस का मकसद थी पूजा. लेकिन ममता को पति के असली इरादे की भनक नहीं थी. वह तो यही समझती थी कि मनोज उस के परिवार का कितना खयाल रखता है, जो वह उस के मातापिता की मदद करने के लिए उस के मायके चला जाता है. पत्नी के इसी विश्वास की आड़ में मनोज अपना मकसद पूरा करने में लगा था.

ससुराल पहुंचने पर मनोज की आंखें साली को ही खोजती रहती थीं, वह पूजा से मौखिक छेड़छाड़ तो पहले से करता था, अब उस ने मौका मिलने पर शारीरिक छेड़छाड़ भी शुरू कर दी थी. पूजा को यह सब अजीब तो लगता था मगर वह जीजा का विरोध नहीं करती थी. वह सोचती थी कि कहीं जीजा बुरा न मान जाएं.

एक दिन मनोज मर्यादा की हद लांघ गया. उस दिन पूजा के मातापिता कहीं गए थे और भाई राजकुमार अपने दोस्तों के साथ घूमने के लिए निकल गया.

घर में केवल पूजा और मनोज ही थे. अच्छा मौका पा कर मनोज ने पूजा को आलिंगबद्ध कर लिया. पूजा उस के चंगुल से छूटने को कसमसाई तो वह उस के गालों पर होंठ रगड़ने लगा. इस के बाद उस ने पूजा की गरदन को गर्म सांसों से सहला दिया.

यह पहला मौका था, जब किसी पुरुष ने पूजा को मर्दाना स्पर्श की अनुभूति कराई थी. मनोज के स्पर्श से वह रोमांच से भर गई. इस के बावजूद किसी तरह उस ने मनोज को अपने से दूर कर दिया. पूजा ने नाराजगी से मनोज को देखते हुए कहा, ‘‘जीजा, पिछले कुछ दिनों से मैं ने नोट किया है कि तुम कुछ ज्यादा ही शरारत करने लगे हो.’’

‘‘तुम ने सुना ही होगा कि साली आधी घर वाली होती है.’’ मनोज ने भी बेहयाई से हंसते हुए कहा, ‘‘तो मैं तुम पर अपना अधिकार क्यों न जताऊं.’’

‘‘नहीं जीजा, यह सब मुझे पसंद नहीं है.’’ वह बोली.

‘‘सच कहता हूं पूजा, तुम ममता से ज्यादा खूबसूरत और नशीली हो.’’ कहते हुए मनोज ने उस का हाथ पकड़ कर अपने सीने पर रख दिया, ‘‘मेरी बात का यकीन न हो तो इस दिल से पूछ लो, जो तुम्हें प्यार करने लगा है. काश, मेरी शादी ममता के बजाए तुम से हुई होती.’’

‘‘जीजा, तुम हद से आगे बढ़ रहे हो,’’ कह कर पूजा ने हाथ छुड़ाया और वहां से चली गई. मनोज ने उसे रोकने या पकड़ने का प्रयास नहीं किया. वह अपनी जगह पर खड़ा मुसकराता रहा.

पूजा पत्थर हो, ऐसा नहीं था. जीजा की रसीली बातों और छेड़छाड़ से उस के मन में भी गुदगुदी होने लगी थी.

बहरहाल, उस दिन के बाद से मनोज पूजा से जुबानी छेड़छाड़ कम और जिस्मानी छेड़छाड़ ज्यादा करने लगा. अब वह उस का विरोध भी नहीं करती थी. पूजा का अपने जीजा से लगाव बढ़ गया. वह स्वयं सोचने लगी कि शादी जब होगी, तब होगी. क्यों न शादी होने तक जीजा से मस्ती कर ली जाए. परिणाम वही हुआ, जो ऐसे मामलों में होता है.

शादी के पहले ही पूजा ने खुद को जीजा के हवाले कर दिया. इस के बाद तो वह जीजा की दीवानी हो गई. मनोज भी आए दिन ससुराल में पड़ा रहने लगा. रात को अपने बिस्तर से उठ कर वह चुपके से पूजा के कमरे में चला जाता और सुबह 4 बजे अपने बिस्तर पर आ जाता था.

एक रात अचानक पूजा के पिता जगराम सिंह की नींद खुल गई. उन्हें बेटी के कमरे से खुसरफुसर की आवाजें आईं. जिज्ञासावश उन्होंने बेटी के कमरे में खिड़की से झांका तो छोटी बेटी पूजा को दामाद के साथ देख कर उन का खून खौल गया.

किसी तरह उन्होंने गुस्से पर काबू कर के दरवाजा खटखटाया. दरवाजा खोलना मजबूरी थी, पूजा ने डरतेसहमते दरवाजा खोल दिया, सामने पिता को देख कर वह घबरा गई. मनोज माफी मांगते हुए ससुर के पैरों में गिर गया.

बहरहाल, उस समय जगराम ने उन से कुछ नहीं कहा. सुबह होने पर जगराम ने रात वाली बात अपनी पत्नी मीना को बताई. बदनामी के भय से जगराम सिंह व मीना ने शोरशराबा नहीं किया. उन दोनों ने पूजा और मनोज को धमकाया. दोनों सिर झुकाए अपनी फजीहत कराते रहे. कुछ देर बाद मनोज वहां से अपने घर लौट गया.

जगराम सिंह और मीना ने बड़ी बेटी ममता के दांपत्य को कड़वाहट से बचाने के लिए उस के पति की करतूत छिपाए रखी. ससुराल की बात ससुराल में ही दबी रही और वह पूजा के लिए लड़का देखने लगे ताकि जल्द उस के हाथ पीले कर सकें. लेकिन दामाद की करतूत छिपाना जगराम को महंगा पड़ा हुआ.

मनोज के मन में जो डर था वह धीरेधीरे दूर हो गया. एक दिन पूजा ने मनोज को फोन कर के बता दिया कि उस के पिता उस के लिए लड़का ढूंढ रहे हैं. यह जानकारी मिलते ही मनोज एक दिन ससुराल पहुंच गया. उस ने सासससुर से अपनी गलती की माफी मांग ली. साथ ही यह भी कहा कि आइंदा वह पूजा को साली नहीं बल्कि छोटी बहन मानेगा.

वह उस के साथ वैसा ही व्यवहार करेगा, जैसा एक भाई, अपनी बहन से करता है. जगराम सिंह और मीना के लिए यही बहुत था कि दामाद को अपनी गलती का अहसास हो गया था और उस ने पूजा को बहन मान लिया था. अत: दोनों ने सच्चे दिल से मनोज को माफ कर दिया.

मौका मिलने पर मनोज ने पूजा को बताया, ‘‘तुम्हारी शादी भले ही कहीं हो जाए, मेरे संबंध तुम्हारे साथ पहले की तरह ही रहेंगे.’’ इस पर पूजा ने भी कह दिया, ‘‘मैं भी तुम्हें प्यार करती रहूंगी. तुम्हें कभी नहीं भुला सकूंगी.’’

इस के बाद मनोज अपने ससुर के साथ मिल कर पूजा के लिए लड़का खोजने लगा. इसी बीच जगराम सिंह की मुलाकात तेज बहादुर से हुई. तेजबहादुर कानपुर शहर के हंसपुरम (नौबस्ता) में रहता था. वह जगराम के बड़े भाई सुखराम का दामाद था. उस के साथ सुखराम की बेटी अनीता ब्याही थी. इस नाते वह उस का भी दामाद था.

जगराम ने उस से अपनी बेटी पूजा के लिए कोई लड़का बताने को कहा तो उस ने बताया कि उस का छोटा भाई ओमप्रकाश ब्याह लायक है.

ओमप्रकाश कार चालक है और अच्छा कमाता है. तेज बहादुर ने यह भी बताया कि ओमप्रकाश के अलावा उस के 2 अन्य भाई छोटू व प्रमोद हैं. सभी लोग साथ रहते हैं.

चूंकि पुरानी रिश्तेदारी थी. अत: जगराम सिंह ने ओमप्रकाश को देखा तो वह उन्हें पसंद आ गया. पूजा के इस रिश्ते को मनोज ने भी सहमति दे दी. क्योंकि पूजा कहीं दूर नहीं जा रही थी. आपसी सहमति के बाद जगराम सिंह ने 16 फरवरी, 2016 को पूजा का विवाह ओमप्रकाश के साथ कर दिया.

शादी के बाद पूजा अपनी ससुराल हंसपुरम पहुंच गई. पूजा खूबसूरत थी, इसलिए ससुराल में सभी ने उस की सुंदरता की तारीफ की. ओमप्रकाश भी खूबसूरत बीवी पा कर खुश था. चूंकि पूजा और अनीता चचेरी बहनें थीं और एक ही घर में दोनों सगे भाइयों को ब्याही थीं. इसलिए दोनों में खूब पटती थी. पूजा ने अपने व्यवहार से पूरे परिवार का दिल जीत लिया था. वह पति के अलावा जेठ तेजबहादुर तथा देवर प्रमोद व छोटू का भी पूरा खयाल रखती थी.

पूजा ससुराल चली गई तो मनोज उस से मिलने के लिए छटपटाने लगा. आखिर जब उस से नहीं रहा गया तो उस ने पूजा से बात की फिर वह उस की ससुराल जा पहुंचा, चूंकि मनोज, ओमप्रकाश का साढ़ू था, सो सभी ने उस की आवभगत की.

इस आवभगत से मनोज गदगद हो उठा. इस के बाद वह अकसर पूजा की ससुराल जाने लगा. आतेजाते मनोज ने पूजा के जेठ तेजबहादुर से अच्छी दोस्ती कर ली. दोनों की साथसाथ भी महफिल जमने लगी.

मनोज जब भी पूजा की ससुराल पहुंचता तो वह उस के आसपास ही घूमता रहता था. वह उस से खूब हंसीमजाक करता और ठहाके लगा कर हंसता. उस की द्विअर्थी बातों से कभीकभी पूजा तिलमिला भी उठती और उसे सीमा में रहने की नसीहत दे देती.

ओमप्रकाश को साढ़ू का रिश्ता पंसद नहीं था. न ही उसे मनोज का घर आना और पूजा से हंसीमजाक करना अच्छा लगता था. वह मन ही मन कुढ़ता था. लेकिन विरोध नहीं जता पाता था.

एक रोज ओमप्रकाश ने मनोज के आनेजाने को ले कर अपनी पत्नी पूजा से बात की और कहा कि उसे आए दिन मनोज का यहां आनाजाना पसंद नहीं है. न मैं उस के घर जाऊंगा और न ही वह हमारे घर आया करे. मुझे उस की बेहूदा बातें और भद्दा हंसीमजाक बिलकुल पसंद नहीं है. तुम उसे यहां आने से साफ मना कर दो.

लेकिन पूजा ने मनोज को मना नहीं किया. वह पहले की तरह ही वहां आता रहा. बल्कि अब वह कभीकभी रात को वहां रुकने भी लगा था. मनोज की गतिविधियां देख कर ओमप्रकाश का माथा ठनका. उस के दिमाग में शक का कीड़ा कुलबुलाने लगा. उस ने गुप्त रूप से पता लगाया तो जानकारी मिली कि शादी के पहले से ही पूजा और मनोज के बीच नाजायज संबंध थे.

मनोज ने इस बारे में पूजा से बात की तो कड़वी सच्चाई सुन कर पूजा उखड़ गई. उस ने साफ कहा कि उस के और जीजा के बीच कोई नाजायज संबंध नहीं थे और न हैं. कोई उन दोनों को बदनाम करने के लिए इस तरह की बातें कर रहा है. पूजा ने भले ही कितनी सफाई देने की कोशिश की लेकिन उस के पति के दिमाग में तो शक का बीज अंकुरित हो चुका था.

नतीजा यह हुआ कि इन बातों को ले कर उन के घर में कलह होने लगी. कभीकभी कहासुनी इतनी बढ़ जाती कि नौबत मारपीट तक जा जाती थी. इस कलह की जानकारी मनोज को हुई तो उस ने पूजा की ससुराल जाना बंद कर दिया. लेकिन पूजा के जेठ तेजबहादुर से उस ने नाता नहीं तोड़ा और दोनों घर के बाहर महफिल जमाते रहे.

मनोज का घर आनाजाना बंद हुआ तो पूजा खिन्न रहने लगी. वह अपने पति से बातबेबात झगड़ने लगती. दोनों के बीच दूरियां भी बढ़ने लगीं. इस का परिणाम यह हुआ कि ओमप्रकाश ने शराब पीनी शुरू कर दी. वह देर रात नशे में चूर हो कर घर लौटता तो आते ही पत्नी को गालियां बकनी शुरू कर देता था. उस पर चरित्रहीनता का लांछन लगाता.

पूजा कुछ बोलती तो वह उस की पिटाई कर देता था. पूजा की चीखपुकार सुन कर उस का जेठ तेजबहादुर बीचबचाव करने आता तो ओमप्रकाश बडे़ भाई से भी भिड़ जाता था. इतना ही नहीं वह उस के साथ भी मारपीट करने लगता.

घर की कलह और रोजरोज की मारपीट से आजिज आ कर शादी के एक साल बाद पूजा मायके आ कर रहने लगी. कुछ दिन बाद पति ओमप्रकाश उसे मनाने आया लेकिन पूजा ने ससुराल जाने से साफ मना कर दिया.

अधिकांश मांबाप को बेटी का गुस्से में ससुराल छोड़ कर आना अच्छा नहीं लगता. जगराम सिंह और मीना को भी यह अच्छा नहीं लगा, उन्होंने पूजा को समझाया परंतु पूजा ने साफ कह दिया कि वह जहर खा कर मर जाएगी पर ससुराल नहीं जाएगी. इसके बाद मांबाप भी बेबस हो गए.

जब मनोज को पता चला कि पूजा गुस्से में ससुराल से मायके आ गई है तो उस की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. उस ने ससुराल आ कर पूजा से मुलाकात की. उस ने पूजा द्वारा उठाए गए कदम को सही ठहराया और उस की हर संभव मदद करने का भरोसा दिया. पूजा की मदद के बहाने मनोज अब फिर ससुराल आने लगा. उस ने फिर से पूजा से नाजायज संबंध बना लिए.

ओमप्रकाश ने पूजा को जितना प्रताडि़त किया था, वह उस के बदले उसे सबक सिखाना चाहती थी. इस के लिए उस ने जीजा मनोज के सहयोग से नौबस्ता थाने में पति ओमप्रकाश के खिलाफ दहेज उत्पीड़न की रिपोर्ट दर्ज करा दी. पुलिस ने ओमप्रकाश को दहेज उत्पीड़न के आरोप में गिरफ्तार कर जेल भेज दिया. ओमप्रकाश कुछ दिनों बाद किसी तरह जमानत करा कर जेल से बाहर आ गया.

जमानत मिलने के बाद ओमप्रकाश ने बड़े भाई तेजबहादुर पर मामले को रफादफा करने का दबाव डाला, लेकिन तेजबहादुर ने साफ मना कर दिया. तब ओमप्रकाश ने बडे़ भाई से जम कर झगड़ा और मारपीट की. तेजबहादुर उस की ससुराल वालों के पक्ष में था.

पूजा को ले कर दोनों भाइयों के बीच रंजिश बढ़ गई. हां, इतना जरूर था कि ओमप्रकाश की बहन ऊषा तथा भाई छोटू व प्रमोद उस के पक्ष में थे और उस की हर संभव मदद करते थे.

ओमप्रकाश दहेज उत्पीड़न का मुकदमा वापस लेने के लिए पत्नी पर भी दबाव डाल रहा था. वह उसे हर तरह से ठीक प्रकार रखने का आश्वासन भी दे रहा था. लेकिन पूजा उस की बात नहीं मान रही थी. पूजा के पति से साफ कह दिया कि उसे उस पर भरोसा नहीं रहा. इसलिए मुकदमा वापस नहीं लेगी. ओमप्रकाश को शक था पूजा को उस का जीजा मनोज ही भड़का रहा है जिस से वह उस की बात नहीं मान रही.

पूजा ने पति की बात नहीं मानी तो ओमप्रकाश ने दूसरा रास्ता निकाला. अब वह जब भी ससुराल जाता तो नशे में धुत होता. वह घर में देखता कि कहीं मनोज तो पूजा के साथ रंगरलियां मनाने नहीं आया. पूजा रोकतीटोकती तो वह उसे गाली बकता. उस का साला राजकुमार कुछ कहता तो वह उस की पिटाई कर देता था. इस से राजकुमार को भी ओमप्रकाश से नफरत हो गई.

ऐसे ही एक रोज ओमप्रकाश ससुराल पहुंचा तो घर के अंदर मनोज था. ओमप्रकाश को शक हुआ कि सूने घर में मनोज पूजा के साथ रंगरलियां मना रहा होगा. उस ने खा जाने वाली नजरों से मनोज को देखा, फिर पूजा को बुरी तरह मारापीटा.

इस के बाद उस ने मनोज को घर से चले जाने को कह दिया, ‘‘हमारा तुम्हारा रिश्ता साढू का है. तुम पूजा की बहन के सुहाग हो. इसलिए बख्श रहा हूं. कोई दूसरा होता तो इस कमरे से उस की लाश बाहर जाती. कान खोल कर सुन लो. आइंदा पूजा से मिलने की जुर्रत मत करना वरना…’’

मनोज को गुस्सा तो बहुत आया. लेकिन वह अपराधबोध से सिर झुकाए चला गया.

उसी शाम मनोज के मोबाइल पर पूजा का फोन आया, ‘‘मैं तुम्हें बड़ा तीसमार खां समझती थी, पर तुम तो नामर्द निकले. ओमप्रकाश मुझे पीटता रहा और तुम खड़ेखड़े तमाशा देखते रहे. तुम्हें तो उसे वहीं पटक कर जान से मार देना चाहिए था.’’

पूजा की ललकार से मनोज की मर्दानगी जाग गई. खुद का अपमान भी उसे याद आने लगा. गुस्से से तिलमिला कर वह बोला, ‘‘मैं ने ओमप्रकाश को इसलिए छोड़ दिया, क्योंकि वह तुम्हारा पति है. तुम ने मेरी मर्दानगी को ललकारा है इसलिए अब मैं उसे जान से मार कर ही तुम्हें मुंह दिखाऊंगा.’’

‘‘हां, मार दो.’’ पूजा ने गुस्से की आग में घी डाला, ‘‘जब तक ओमप्रकाश नहीं मरेगा मेरा कलेजा ठंडा नहीं होगा.’’

इस के बाद मनोज ने ओमप्रकाश की हत्या की योजना बनाई. इस योजना में उस ने अपने साले राजकुमार तथा ओमप्रकाश के बड़े भाई तेजबहादुर को भी शामिल कर लिया.

चूंकि ओमप्रकाश कई बार तेजबहादुर को पीट चुका था और उसे बेइज्जत भी किया. इसलिए वह भाई की हत्या में मनोज का साथ देने को राजी हो गया. राजकुमार को अपनी बहन की प्रताड़ना व बेइज्जती बरदाश्त नहीं थी इसलिए वह भी उस का साथ देने को राजी हो गया.

6 नंवबर, 2018 को तेजबहादुर ने रात आठ बजे मनोज को मोबाइल फोन पर बताया कि ओमप्रकाश विधनू में पप्पू रिपेयरिंग सेंटर पर अपनी मोटरसाइकिल ठीक करा रहा है. वहां से वह बहन ऊषा के घर पतारा जाएगा. तुम पहुंचो, पीछे से मैं भी आ रहा हूं. आज उचित मौका है.

मनोज ने साले राजकुमार को साथ लिया और विधनू पहुंच गया जहां ओमप्रकाश अपनी मोटरसाइकिल ठीक करा रहा था. योजना के अनुसार मनोज अपनी मोटरसाइकिल से विधनू के रिपेयरिंग सेंटर पर पहुंच गया. वहां मनोज ने ओमप्रकाश से दुआसलाम की फिर अपने किए की माफी मांगी. मनोज झुका तो ओमप्रकाश भी नरम पड़ गया.

वैसे भी मनोज कोई गैर नहीं, साढ़ू था. इसलिए ओमप्रकाश ने उसे माफ करते हुए कहा, ‘‘ठीक है भाई साहब, मैं ने तुम्हें माफ किया. मगर गलती दोहराने की कोशिश मत करना.’’

‘‘ठीक है, आइंदा गलती नहीं होगी, लेकिन मैं चाहता हूं कि इस खुशी में आज तुम मेरे साथ पार्टी करो. तब मैं समझूंगा कि तुम ने दिल से मुझे माफ कर दिया है.’’

‘‘जब तुम यह बात कह रहे हो तो मुझे मंजूर है.’’ इस के बाद मनोज और ओमप्रकाश ने ठेके पर जा कर शराब पी. मनोज ने जानबूझ कर ओमप्रकाश को कुछ ज्यादा पिला दी. घर वापसी में मनोज ने शंभुआ हाइवे पुल पर मोटरसाइकिल रोक दी. ओमप्रकाश भी रुक गया. इस के बाद मनोज ने तेज बहादुर को भी बुला लिया.

योजना के मुताबिक राजकुमार ने ओमप्रकाश की मोटरसाइकिल हाईवे किनारे पलट दी. फिर मनोज व तेज बहादुर ने ओमप्रकाश को दबोच लिया और दोनों ने मिल कर चाकू से ओमप्रकाश की गरदन रेत दी.

दुर्घटना दर्शाने के लिए उन लोगों ने उस के शव को सड़क किनारे फेंक दिया. इस के बाद मनोज, राजकुमार के साथ ससुराल पहुंचा और पूजा को उस के पति की हत्या कर देने की जानकारी दी. तेज बहादुर भी अपने घर हंसपुरम आ गया.

7 नवंबर की सुबह शंभुआ हाईवे पुल पर दुर्घटना की सूचना विधनू थानाप्रभारी संजीव चौहान को मिली तो वह पुलिस टीम के साथ वहां पहुंच गए. उस समय वहां भीड़ जुटी थी. इसी भीड़ में से एक शख्स सामने आया और उस ने बताया कि उस का नाम तेजबहादुर है और वह नौबस्ता थाने के हसंपुरम का रहने वाला है. मृतक उस का छोटा भाई ओमप्रकाश है. वह उसे खोजता हुआ यहां पहुंचा था. बीती शाम ओमप्रकाश बहन ऊषा के घर गया था. शायद वहीं से घर लौटते समय उस का एक्सीडेंट हो गया.

चूंकि शव की शिनाख्त हो गई थी इसलिए थानाप्रभारी संजीव चौहान ने शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. दूसरे रोज जब पोस्टमार्टम रिपोर्ट उन्होंने पढ़ी तो वह चौंक गए. क्योंकि ओमप्रकाश की मौत सड़क दुर्घटना में नहीं हुई थी बल्कि गला काट कर हत्या करने के बाद उसे सड़क पर डाला गया था ताकि मामला दुर्घटना का लगे.

इस के बाद थानाप्रभारी संजीव चौहान ने मृतक के भाई तेजबहादुर, प्रमोद व छोटू तथा बहन ऊषा से पूछताछ की. तेजबहादुर तो पुलिस को बरगलाता रहा. लेकिन प्रमोद, छोटू व उषा ने शक जाहिर कर दिया. उन्होंने बताया कि ओमप्रकाश की शादी पूजा से हुई थी.

पूजा के अपने बहनोई मनोज से नाजायज संबंध थे. ओमप्रकाश इस का विरोध करता था. पूजा नाराज हो कर मायके चली गई थी. इतना ही नहीं उस ने भाई के खिलाफ दहेज उत्पीड़न का मामला दर्ज करा दिया था. उन्होंने कहा कि मनोज व पूजा ने ही भाई की हत्या की है.

मनोज शक के घेरे में आया तो थानाप्रभारी संजीव चौहान ने उसे थाने बुलवा लिया. जब उस से सख्ती से पूछताछ की गई तो वह टूट गया. मनोज ने ओमप्रकाश की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया.

मनोज ने बताया कि उस ने अपने साले राजकुमार व मृतक के बड़े भाई तेज बहादुर के साथ मिल कर ओमप्रकाश की हत्या की थी. मनोज ने यह भी स्वीकार किया कि मृतक की पत्नी के साथ उस के नाजायज संबंध हैं. उसी के उकसाने पर ओमप्रकाश की हत्या की गई थी.

हत्या का राज खुला तो पुलिस ने मृतक की पत्नी पूजा तथा भाई तेजबहादुर को भी हिरासत में ले लिया. किंतु राजकुमार फरार हो गया. मनोज की निशानदेही पर पुलिस ने हत्या में प्रयुक्त चाकू भी बरामद कर लिया, जिसे उस ने घर में छिपा दिया था.

थानाप्रभारी संजीव चौहान ने मृतक के छोटे भाई प्रमोद की तरफ से मनोज, पूजा, तेजबहादुर व राजकुमार के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के तहत केस दर्ज कर के उन्हें विधिवत गिरफ्तार कर लिया.

14 नवंबर, 2018 को पुलिस ने हत्यारोपी मनोज, पूजा व तेज बहादुर को कानपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया, जहां से उन्हें जिला कारागार भेज दिया गया. कथा संकलन तक उन की जमानत नहीं हुई थी. जबकि राजकुमार फरार था.

-कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

उदयपुर कन्हैयालाल मर्डर केस: सांप्रदायिक नफरत का घिनौना अंजाम

राजस्थान का चर्चित पर्यटक स्थल उदयपुर मंगलवार, 28 जून को गलत कारणों से चर्चा में आ गया. रियाज़ अटारी और गौस मोहम्मद नाम के दो लोगों ने कन्हैयालाल नामके शख्स की दुकान में घुसकर निर्ममता से हत्या कर दी. पेशे से दर्जी मृतक कन्हैयालाल ने कुछ दिनों पहले भाजपा की पूर्व प्रवक्ता नूपुर शर्मा की पैग़ंबर मोहम्मद पर विवादित टिप्पणी के समर्थन में सोशल मीडिया पर एक पोस्ट की थी, जिस पर शिकायत दर्ज होने के बाद उदयपुर पुलिस ने कन्हैयालाल को गिरफ़्तार कर लिया था.

हालांकि, बाद में उन्हें जमानत मिल गई थी. लेकिन उन्हें अलगअलग नंबरों से फोन और मैसेज के जरिए जान से मारने की धमकी दी जाने लगी. इस के चलते 15 जून को कन्हैयालाल ने पुलिस में शिकायत दर्ज कर अपने लिए सुरक्षा की मांग की थी. लेकिन पुलिस ने इस धमकी को गंभीरता से शायद नहीं लिया और कुछ लोगों को थाने में बुलाकर समझाबुझा कर शांति मेलमिलाप से रहने का उपदेश दे कर घर भेज दिया.

उदयपुर पुलिस शायद आज के माहौल और धर्म के नाम पर बढ़ रही हिंसक प्रवृत्ति और कट्टरता के आकलन में चूक गई, नतीजा ये हुआ कि कन्हैयालाल को मिल रही धमकियां हकीकत बना दी गईं. उन की दुकान में घुस कर पायजामा सिलाने की बात कह कर धारदार हथियार से उन की हत्या करने वाले दोनों आरोपियों ने इस घटना के बाद एक वीडियो भी पोस्ट किया, जिस में इस हत्या को नूपुर शर्मा की टिप्पणी का बदला बताया गया. इस में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए भी धमकी दी गई है.

ग़ौरतलब है कि महीनेभर पहले नूपुर शर्मा ने पैगंबर मौहम्मद पर आपत्तिजनक बयान दिए थे और उस पर अफसोस भी तब जताया था जब कड़ी आपत्ति दर्ज की गई थी. हालांकि भाजपा ने तब कार्रवाई के नाम पर उन्हें प्रवक्ता के पद से हटा कर निलंबित कर दिया था, लेकिन उन्हें अब तक गिरफ़्तार नहीं किया जा सका है, क्योंकि समाज में आग लगाने वाली बात कह कर वे खुद कहीं फरार हो चुकी हैं. अपनी शरणस्थली से नूपुर शर्मा देख रही होंगी कि धार्मिक कट्टरता की आग जब फैलती है तो किस तरह समाज को हिंसक बना देती है. उन्होंने जो कहा, उस से मुस्लिम समुदाय ही नहीं, दूसरे धर्मों के उदारवादी सोच रखने वाले लोग भी आहत हुए थे.

राजस्थान के उदयपुर में नूपुर शर्मा के समर्थन में सोशल मीडिया पर पोस्ट डालने वाले व्यक्ति की नृशंस तरीके से हत्या कर दी गई.  दो हमलावर मंगलवार, 28 जून को दिनदहाड़े उस की दुकान में घुसे. तलवार से कई वार किए और उस का गला काट दिया.

आरोपियों ने हत्या का पूरा वीडियो भी बनाया है और वारदात के बाद सोशल मीडिया पर पोस्ट डाल कर हत्या की जिम्मेदारी भी ली है. वीडियो में उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक को धमकी दे डाली. इस के उपरांत उदयपुर के 7 थाना क्षेत्रों में तत्काल कर्फ्यू लगाया गया. साथ ही, पूरे राजस्थान में एक महीने के लिए धारा 144 लागू कर दी गई. वहीं, दोनों आरोपी रियाज अंसारी और मोहम्मद गोस को राजसमंद के भीम इलाके से हिरासत में ले लिया गया. दोनों उदयपुर के सूरजपोल इलाके के निवासी हैं.

गौरतलब है कि आरोपी रियाज अंसारी और मोहम्मद गोस कपड़े का नाप देने का बहाना बनाकर दुकान में घुसे. कन्हैयालाल कुछ समझ पाते, तब तक बदमाशों ने हमला बोल दिया और हत्या कर दी.

मुख्य सचिव उषा शर्मा ने तत्काल उच्च स्तरीय बैठक की. सभी संभागीय आयुक्तों, पुलिस महानिरीक्षकों एवं जिला कलेक्टरों को प्रदेशभर में विशेष सतर्कता और चौकसी बरतने के निर्देश दिए. समूचे राजस्थान में 48 घंटे के लिए इंटरनेट सेवाएं बंद करने के साथ ही सभी जिलों में आगामी एक माह तक धारा 144 लागू कर 4 लोगों से अधिक के एकत्रित होने पर कार्रवाई का आदेश जारी किया. वहीं, प्रशासन के सभी अफसरों के अवकाश निरस्त कर दिया गए. दूसरी ओर, धारा 144 के बावजूद बीजेपी ने बुधवार, 29 जून को उदयपुर बंद का आह्वान किया.

पूरे वाकये की जानकारी के मुताबिक, पेशे से दरजी मृतक कन्हैयालाल ने कुछ दिनों पहले भाजपा की पूर्व प्रवक्ता नूपुर शर्मा की पैग़ंबर मोहम्मद पर विवादित टिप्पणी के समर्थन में सोशल मीडिया पर एक पोस्ट की थी, जिस पर शिकायत दर्ज होने के बाद उदयपुर पुलिस ने कन्हैयालाल को गिरफ़्तार कर लिया था.

हालांकि, बाद में उन्हें जमानत मिल गई थी. लेकिन उन्हें अलगअलग नंबरों से फोन और मैसेज के जरिए जान से मारने की धमकी दी जाने लगी. इस के चलते 15 जून को कन्हैयालाल ने पुलिस में शिकायत दर्ज कर अपने लिए सुरक्षा की मांग की थी. लेकिन पुलिस ने इस धमकी को गंभीरता से नहीं लिया और कुछ लोगों को थाने में बुलाकर समझाबुझा कर शांति व मेलमिलाप से रहने का उपदेश दे कर घर भेज दिया.

उदयपुर पुलिस शायद आज के माहौल और धर्म के नाम पर बढ़ रही हिंसक प्रवृत्ति और कट्टरता के आकलन में चूक गई. नतीजा ये हुआ कि कन्हैयालाल को मिल रही धमकियां हकीकत बना दी गईं. उन की दुकान में घुस कर पायजामा सिलाने की बात कह कर धारदार हथियार से उन की हत्या करने वाले दोनों आरोपियों ने इस घटना के बाद एक वीडियो भी पोस्ट किया, जिस में इस हत्या को नूपुर शर्मा की टिप्पणी का बदला बताया गया. इस में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए भी धमकी दी गई है.

ग़ौरतलब है कि महीनेभर पहले नूपुर शर्मा ने पैगंबर मौहम्मद पर आपत्तिजनक बयान दिए थे और उस पर अफसोस भी तब जताया था, जब अंतरराष्ट्रीय लेवल पर कड़ी आपत्ति दर्ज की गई थी. हालांकि भाजपा ने तब कार्रवाई के नाम पर उन्हें प्रवक्ता के पद से हटा कर निलंबित कर दिया था, लेकिन उन्हें अब तक गिरफ़्तार नहीं किया जा सका है, क्योंकि समाज में आग लगाने वाली बात कह कर वह खुद कहीं फरार हो चुकी हैं.

अपनी शरणस्थली से नूपुर शर्मा देख रही होंगी कि धार्मिक कट्टरता की आग जब फैलती है तो किस तरह समाज को हिंसक बना देती है. उन्होंने जो कहा, उस से मुस्लिम समुदाय ही नहीं, दूसरे धर्मों के उदारवादी सोच रखने वाले लोग भी आहत हुए थे.

उत्तरप्रदेश के कमलेश तिवारी और राजस्थान के कन्हैयालाल के कत्ल की घटना में काफी कुछ समानता है. लेकिन फर्क भी है कि ‌कन्हैयालाल की कोई सांप्रदायिक पृष्ठभूमि नहीं रही. अगर इतनी सी बात के लिए इतना भयानक बदला लिया जा सकता है, तब तो सोशल मीडिया में नूपुर शर्मा के हजारोंहजार समर्थक उस का गुणगान कर रहे हैं. कितनों ने तो डीपी पर नूपुर की तस्वीर लगा रखी है. फिर राजस्थान में एक अदने से व्यक्ति के साथ इतना क्रूर व्यवहार किस बात का संकेत देता है ? ये कातिल बताना क्या चाहते हैं ?

यह कि ये दोनों ही अपनी कौम‌ के‌ असल‌ हीरो हैं या यह कि नूपुर शर्मा जैसों की सोच ही अब देश के लिए प्रासंगिक रह गई है. वह सोच जिसे देश का बहुसंख्यक समुदाय बारबार नकार रहा है. यही नहीं अधिकृत तौर पर भारतीय जनता पार्टी भी इसे नकार चुकी है.

घटना का वीडियो बना कर इन दोनों ने केवल अपनी सीनाजोरी नहीं दिखाई है बल्कि क्रूरता, आतंक और प्रतिशोध के उस इतिहास के लिए गवाही दी है, जिसे गागा कर समाज के मौलिक चरित्र को ही बदल दिया गया है.

इस घटना के बाद हम यह भी कहने लायक नहीं बचे हैं कि यह उस क्रिया की प्रतिक्रिया है, जिस के किरदार नूपुर और नरसिंहा यति जैसे लोग हैं. हमें समझ नहीं आ रहा कि‌ इन लोगों ने अपने मजहब के चेहरे पर कालिख पोती है या उस का असली चेहरा उजागर किया है.

एक बेहद मामूली आदमी की हत्या के संदर्भ में प्रधानमंत्री मोदीजी का नाम लेना बहुत बड़े रहस्य का विषय है. क्योंकि मोदीजी और कन्हैयालाल दर्जी के बीच‌ लेने के लिए हजारों और भी नाम थे. इतनी समझ तो एक मतिमंद व्यक्ति में भी है कि केवल नाम ले लेने से मोदीजी मजबूत हुए हैं और वह धारणा भी मजबूत हुई है जो मोदीजी को हमेशा मजबूती देती रही है.

दरिंदों ने एक मामूली आदमी की गर्दन पर वार करने के साथ ही साथ फिलहाल सदभावनापसंद अमनपरस्त करोड़ों लोगों की विचारधारा की गर्दन कलम कर दी है.

बर्बर हत्या के इस मामले ने भारतीय मुसलमानों के एक हिस्से में पिछड़ेपन और दक़ियानूसियत के प्रचुरता में विद्यमान होने की समस्या को फिर से सामने ला खड़ा किया है. यह सिर्फ़ क़ानूनव्यवस्था की समस्या नहीं है और इस का इलाज कड़ी सजा की मांग करने की प्रतियोगिता से भी संभव नहीं है. इस का इलाज खुद मुस्लिम समाज के दानिश्वरों/लीडरों के द्वारा देश के संवैधानिक व सामाजिक ढांचे के अनुरूप सोच पैदा कर के ही संभव है.

इस तरह की हरकतें भारत के धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक व आधुनिक समाज की राह में सब से बड़ा रोड़ा हैं. ऐसी एक घटना ही लाखों लोगों की सामाजिक मेलजोल की भावना को महज एक पल में मिट्टी में मिला देती हैं.

धर्म अब मानवता से हट कर सियासत में बदल चुके है, इसलिए ऐसी घटनाएं चुनावी फायदे के लिए भी अंजाम दी जा रही है. पूरे राजस्थान में धारा 144 लागू कर दी गई है, उस के बावजूद उदयपुर, जयपुर, राजसमंद सहित कई शहरोंकस्बों में बंद बुलाया गया. बंद रख कर आक्रोश जताना जायज है, लेकिन जो रैलीजुलूस निकाले जा रहे है, वो माहौल खराब करने की साज़िशें है.

साल 2017 में मामूली मामूली बिहारी मजदूर अफराजूल की हत्या करने वाला शंभुलाल रैगर जैसा हत्यारा अपने धर्म का हो तो उस के समर्थन में रैली निकाली जा सकती है, न्यायालय के ऊपर चढ़ कर अपने धर्म का झंडा लहराया जा सकता है, लेकिन कोई भी आप को कठघरे में खड़ा नहीं कर सकता है. सरकार कांग्रेस की हो या बीजेपी की, कोई फर्क नहीं पड़ता.

अगर हत्यारे ने किसी मुस्लिम को मारा है तो पूरे हिंदू धार्मिक विधान से उस की झांकी रामनवमी पर निकाली जाएगी, जिस को 5 साल पहले शंभूनाथ रेगर लाइवमर्डर मामले में पूरे देश ने देखा है. अगर हत्यारा कोई मुस्लिम हो तो धर्म विशेष खतरे में जाने लगता है. पूरे मुस्लिम समुदाय को आतंकी समाज के रूप में भारत का मीडिया पेश करने लगता है.

एक समाज व देश के रूप में हम हारे हुए लोग है.हम नागरिक की परिभाषा से कोसों दूर भटकते भेड़ियों से जुदा नहीं है. हम जाति व धर्म के एंगल से लड़ने वाले गौरों के पालतू डॉगी से अलग कुछ नहीं है.हमारा नागरिक के रूप में सर्टीफाई होना इस भू-भाग पर एक बोझ ही है.

आजादी के 75 साल के बाद भी हम नहीं समझ पाए कि हमारे बुनियादी मुद्दे क्या है. खूशहाली हासिल करने के रास्ते क्या है. हम जातीय व धार्मिक बाड़ेबंदी से निकलकर इस समाज के कार्यकर्ता व इस देश के नागरिक नहीं बन पाएं, इस से बड़ी जलालत हमारे लिए क्या होगी?

आज भी सरनेम व धर्म तय करता है कि तुम जीने के हकदार हो या नहीं, तुम बुनियादी जरूरतें जुटाने के काबिल हो या नहीं. हमारी जात व धर्म तय करते है कि तुम इंसाफ पाने के हकदार कितने हो. हमारी जात व धर्म देख कर टुकड़ों में इंसाफ फेंका जाता है.

मंदिरा बेदी ने बयां किया दर्द, पति की डेथ एनिवर्सरी पर शेयर किया ये पोस्ट

बॉलीवुड  एक्ट्रेस मंदिरा बेदी (Mandira Bedi)  के पति राज कौशल को गुजरे हुए एक साल हो गये है. पति के निधन के बाद मंदिरा अकेले अपने दोनों बच्चों को संभाल रही हैं. आज यानी 30 जून को राज कौशल का डेथ एनिवर्सरी (Raj kaushal death anniversary) है. एक्ट्रेस ने एक पोस्ट शेयर किया है. जिसमें उन्होंने अपना दर्द बयां किया है.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Mandira Bedi (@mandirabedi)

 

पति को याद करते हुए मंदिरा बेदी इमोशनल हो गई हैं. राज कौशल की डेथ एनिवर्सरी (Raj kaushal death anniversary) पर मंदिरा बेदी ने एक पोस्ट शेयर किया है. उन्होंने पोस्ट में लिखा है, ‘365 दिन तुम्हारे बिना’. इसी के साथ उन्होंने टूटे हुए दिल की इमोजी भी बनाई है और कैप्शन में लिखा है, ‘मैं तुम्हें याद कर रही हूं राजी’.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Mandira Bedi (@mandirabedi)

 

उनके इस पोस्ट को देख फैंस और सेलेब्स इमोशनल हो रहे हैं. नेहा धूपिया और रिया चक्रवर्ती ने कमेंट करते हुए उनका ढांढस बंधाया है.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Mandira Bedi (@mandirabedi)

एक इंटरव्यू के अनुसार, मंदिरा बेदी ने बताया था कि, वह जो करती हैं बच्चों के लिए ही करती हैं. एक्ट्रेस के मुताबिक, उनके बच्चे ही उनकी शक्ति हैं और उन्हें उनके लिए अच्छा पैरेंट बनने की जरूरत है.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Mandira Bedi (@mandirabedi)

 

Anupamaa: वनराज की जगह लेगा अनुज, बा का फूटेगा गुस्सा

टीवी सीरियल ‘अनुपमा’ में इन दिनों  हाई-वोल्टेज ड्रामा चल रहा है. जिससे दर्शकों को एंटरटेनमेंट का डबल डोज मिल रहा है. शो के बिते एपिसोड में आपने देखा कि किंजल की गोदभराई के लिए कपाड़िया परिवार शाह हाउस में आ चुके हैं. तो वहीं राखी दवे की भी एंट्री हो चुकी है. शो के अपकमिंग एपिसोड में खूब धमाल होने वाला है. आइए बताते हैं, शो के नए एपिसोड के बारे में..

शो में आप देखेंगे कि अनुज और अनुपमा साथ मिलकर टेंशन कम करने की कोशिश करेंगे ताकि बा और बरखा के बीच अनबन न हो. तो वहीं दूसरी तरफ पाखी, अधिक को बैच लगाने में मदद करती है.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Indian Serials❥ (@tvserielss18)

 

समर को इस बात का अंदाजा लग जाता है.  उन दोनों के बीच कुछ चल रहा है. ऐसे में समर पाखी से पूछता है लेकिन वह इसके बारे में झूठ बोलती है. शो में ये भी दिखाया जाएगा कि अनुपमा किंजल को गोदभराई के लिए तैयार करेगी. किंजल सबका प्यार देखकर इमोशनल हो जाती है. तो वहीं समर अपने पिता वनराज को बेबी शॉवर तसवीरें शेयर करता है.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by anuj love anupama??? (@mylove_maan)

 

शो में आप देखेंगे कि किंजल की साड़ी उसकी पायल में फंस जाती है और वो गिरने वाली होती है. तभी अनुज आकर उसे बचा लेता है.  अनुज उसे सावधान रहने के लिए कहता है. बा वनराज को वीडियो कॉल पर किंजल की गोदभराई की रस्म दिखाती है. वनराज देखकर काफी खुश होता है. तो वहीं अनुज वनराज की जगह पर सारी रस्में पूरा करता है.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by ANUPAMAA (@starplus_lovers2)

 

बा को ये देखकर धक्का लगता है. वह अनुपमा को सुनाती है कि वनराज की जगह अनुज को रस्म करता देख उन्हें अच्छा नहीं लगा.  जब वनराज भी वीडियो कॉल पर अनुज को रस्म करते हुए देखता है तो उसे अनुज की कही बात याद आती है.  वह अनुपमा का पति बन गया है और अब वो बच्चों का पिता भी बनकर दिखाएगा.

कठघरे में एनसीईआरटी स्कूली किताबों को नकली तौर

एनसीईआरटी पर छापने व बेचने पर रेवाड़ी, हरियाणा में मुख्यमंत्री दस्ते ने कुछ छापे मारे और एनसीईआरटी की नकली पायरेटेड किताबें पकड़ीं. अगर मामला सही है तो यह सीधे कौपीराइट कानून का उल्लंघन है, पर नकली किताबों के इस उद्योग से यह भी साफ होता है कि एनसीईआरटी, जो केंद्र सरकार की एक कंपनी है, ज्यादा दामों पर किताबें बेच रही है. नकली किताबों द्वारा पैसा बना लेने का मतलब है कि एनसीईआरटी लागत से ज्यादा दाम पर किताबें बेच रही है.

एनसीईआरटी का गठन व्यवसाय करने के लिए नहीं, पढ़ने के सिलेबस में एकरूपता लाने के लिए हुआ था. अब यह मोनोपोली का फायदा उठा कर किताबें छापता है, बेचता है और मोटा पैसा बनाता है. यह जो पैसा बनाता है वह असल में उन गरीब मांबापों की जेबों से जाता है जो बच्चों को शिक्षा दिलाने के नाम पर मजबूरी में एनसीईआरटी के खजाने भरते हैं.

वर्ष 2021 में एनसीईआरटी ने खुद

402 करोड़ रुपए की किताबें बेचीं जबकि इन किताबों को छापने पर 234 करोड़ रुपए ही खर्च हुए. यह अंतर क्यों है? इतना मुनाफा कमाने का क्या हक है एनसीईआरटी को जिस का गठन छात्रों की सेवा और शिक्षा के प्रचारप्रसार के लिए किया गया है? मजेदार बात यह है कि इन 234 करोड़ रुपयों के अलावा 381 करोड़ रुपए एक साल में एनसीईआरटी वेतनों में हड़प कर जाता है. यानी पैसा जो आम छात्रों की भलाई के लिए खर्च होना चाहिए वह या तो प्रिंटरों और कागज वालों को चला जाता है या फिर इस संस्थान के भारीभरकम कर्मचारी हड़प कर जाते हैं.

यह संस्थान, जो निपट सरकारी है, चल रहा है तो सरकार से मिलने वाली ग्रांट पर ही. मगर अगर सरकार ग्रांट देती है तो किताबें विद्यार्थियों को मुफ्त क्यों न दी जाएं और उन को इतना महंगा क्यों किया जाए कि उन की पायरेसी संभव हो?

कोई भी किताब तब ही पायरेटेड हो सकती है जब उस के बिक्री मूल्य से छपाई और कागज के साथ बेचने

वालों का कमीशन भी निकल आए. एनसीईआरटी की किताबों का दाम इतना ज्यादा है कि धोखेबाज मुद्रक उसे बाजार से कागज खरीद कर, प्रिंटर से छपवा कर, एनसीईआरटी से सस्ते दामों पर वितरक को दे कर पैसा बना रहे हैं?

हरियाणा के मुख्यमंत्री ने आखिर ऐसे दस्ते क्यों बना रखे हैं जो छात्रों की पढ़ाई के बीच चल रहे हैं? अगर यह दस्ता है तो क्यों नहीं एनसीईआरटी के दफ्तरों और गोदामों पर छापा डालता कि वे महंगी किताबों कों क्यों छाप रहे हैं और किस बात के 381 करोड़ रुपए का भुगतान अपने कर्मचारियों को दे रहे हैं?

एनसीईआरटी के जरिए बच्चों को तोड़मरोड़ कर इतिहास, भूगोल और साहित्य तो पढ़ाया जा ही रहा है, साथ में उन से जेबें भी ढीली करने को कहा जा रहा है. यह कौन सी नीति है? क्या यह द्रोणाचार्य वाली नीति है कि गरीब को शिक्षा न मिले और मिले तो गुरुदक्षिणा के नाम पर उस का पेट काट कर दी जाए?

अक्तूबर 2021 में भी दिल्ली में पुलिस ने 500 किताबें एक प्रिंटर के यहां पकड़ी थीं, वह कक्षा 6 से 8 की किताबें छाप रहा था. वर्ष 2019 में एनसीईआरटी की शिकायत पर एक प्रिंटर राजन कुमार को गिरफ्तार किया गया था, वह 10वीं व

12वीं कक्षाओं की किताबें छाप कर बेच रहा था. वर्ष 2020 में मेरठ में एनसीईआरटी की किताबों का विशाल भंडार पकड़ा गया था. मेरठ में तो इस धंधे में भाजपा के वरिष्ठ कार्यकर्ता का भतीजा अभियोगी था जबकि इन किताबों के जरिए भारतीय जनता पार्टी छात्रों का ‘चरित्र’ बनाना चाहती है.

कठघरे में छापने वालों को नहीं, एनसीईआरटी और केंद्र सरकार को खड़ा किया जाना चाहिए.

हिंसा और सरकारी सुरक्षा

नेताओं को सरकारी सुरक्षा देने की परंपरा नई नहीं है. नेताओं को जहां सिरफिरे अपराधियों से डर रहता है तो वहीं उन से प्रेम करती उन्मुक्त भीड़ से भी. उन्हें सुरक्षा का घेरा मिलता रहे तो उन का थोड़ा धैर्य बना रहता है. जिन प्रसिद्ध लोगों को सरकारी सुरक्षा नहीं मिल पाती, वे प्राइवेट बाउंसर रखने लगे हैं.

भाजपा सरकार पहले से मिली सरकारी सुरक्षा हटा कर विपक्षी नेताओं को उन की औकात बताने का काम करती रही है और पूर्व प्रधानमंत्रियों के परिवारों को मिलने वाली सुरक्षा को कम कर के उस ने अपनी पीठ भी थपथपाई थी, पर यही सरकार अब अपने विधायकों व वरिष्ठ नेताओं को या तो सुरक्षा दे रही है या बढ़ा रही है क्योंकि चुनावों के दिनों में कितने ही गांवों में गांव वालों ने इस तरह का व्यवहार भाजपा प्रत्याशियों के साथ किया कि एक नया शब्द ‘खदेड़ा’ बन गया है.

इस शब्द का अर्थ है भगा देना. विधायक जब अपने चुनाव क्षेत्र में जा रहे हैं तो गांवों के लोग राममंदिर और हिंदूमुसलिम पर तालियां पीटने के स्थान पर बेरोजगारी, महंगाई, आवारा पशुओं, खराब सड़कों, अस्पतालों की कमी, भ्रष्टाचार, स्कूलों में लापरवाही को ले कर नारेबाजी करने लगते हैं और कई जगह भीड़ हिंसक भी हो चुकी है. विपक्षी नेताओं से सुरक्षा कवच छीनने वाले अमित शाह अब अपने विधायकों को सुरक्षा दे रहे हैं.

नेताओं को थोड़ीबहुत सुरक्षा मिलनी चाहिए पर यहां तो सरकारी गनमैन का साथ होना प्रतिष्ठा का एक सवाल भी बन गया है. जिस देश में अपने घरों में लड़कियां सुरक्षित न हों, आएदिन राह चलते लड़कियों को उठा लिया जाता हो, दलितों व पिछड़ों को एकदूसरे के खिलाफ भड़का कर पिटवा दिया जाता हो वहां उन्हें सुरक्षा न दे कर, नेताओं के इर्दगिर्द बड़ा काफिला चलाना एक दिखावा भी है और जनता के साथ छलावा भी. सुरक्षा मुफ्त नहीं होती. सरकार को बहुत मोटा पैसा खर्च करना पड़ता है.

अपने जीवन का पलपल पहले से लिखा हुआ मानने वाले भाजपाई नेता आखिर हिंसा से इतना डरते क्यों हैं जबकि उन के आदर्श विनायक दामोदर सावरकर और माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर ने अपने विचारों में संघर्ष के दौरान जम कर हिंसा की वकालत की थी.

जो दूसरों के प्रति हिंसा को सही ठहराएगा, वह हिंसा का शिकार होगा ही, यह तय है. भाजपा विधायक व उम्मीदवार अब इस का स्वाद चख रहे हैं.

धोखेबाजी का धंधा

धर्म का धंधा अपनेआप में धोखेबाजी का है जिस में कल्पित भगवान, देवी, देवता, अवतार बना दिए गए हैं और कहा गया है कि इन को पूजोगे तो ही सुखी रहोगे, पैसा आएगा और इस के लिए उन के दर्शन करने जाना होगा व वहां दान भी देना होगा. इस महाप्रचार का लाभ, अब ही नहीं, सदियों से चोरउचक्के भी उठा रहे हैं. चारधाम यात्रा का बड़ा गुणगान किया गया व किया जा रहा है और उत्तराखंड की कमजोर पहाडि़यों पर चौड़ी सड़कें, होटल, धर्मशालाएं, ढाबे, पार्किंग, एम्यूजमैंट सैंटर, रोपवे बनाए जा रहे हैं. वहां ले जाने के लिए फर्जी ट्रैवल एजेंसियां भी इंटरनैट पर छा गई हैं.

बहुत सी ट्रैवल एजेंसियां बहुत सस्ते पैकेज देने लगी हैं और एक बार पैसा उन के अकाउंट में आया नहीं कि वे गायब. चारधाम की भव्य तसवीरों, देवीदेवताओं की मूर्तियों, संस्कृत श्लोकों व मंत्रों से भरपूर ये वैबसाइटें शातिर लोग बनाते हैं और आमतौर पर खुद को किसी संतमहंत का शिष्य बताते हैं. जिन्हें वैसे ही मूर्ख बनाना आसान है, वे सस्ते पैकेज के चक्कर में आसानी से मूर्ख बन रहे हैं.

अब यह काम इतने बड़े पैमाने पर हो रहा है कि पुलिस भी सिर्फ चेतावनी देने के अलावा कुछ नहीं कर सकती. इंटरनैट पर जाओ, गूगल सर्च करो तो उन के एड वाले रिजल्ट सब से पहले आ जाते हैं. गूगल को तो पैसे लेने से मतलब है, वह कभी भी विज्ञापनदाता का बैकग्राउंड चैक नहीं करता. यह काम यूजर का है. यूजर की मति गुम है. वह तो चारधाम यात्रा कर के पुण्य कमा कर अपना वर्तमान व भविष्य, बिना काम किए, गारंटिड करना चाहता है. सो, वह जल्दी ही ?ांसे में आ जाता है और जब स्टेशन या बसस्टैंड पर सामान व परिवार के साथ पहुंचता है तो पता चलता है कि फंस गया.

इन फंसने वालों से लंबीचौड़ी सहानुभूति नहीं हो सकती क्योंकि जो हमेशा फंसने को तैयार रहते हैं उन्हें भला कोई सम?ा भी कैसे सकता है. जो लाखों में छपी तसवीर से पैसा मिलने की आशा करते हैं वे भला कब और कैसे यकीन करेंगे कि इंटरनैट की स्क्रीन पर जो देवीदेवताओं की तसवीरें हैं, भव्य मंदिर दिख रहे हैं, निर्मल जल बह रहा है, वे सब नकली हैं. वहां नकली होटलों के फोटो हैं, नकली रिव्यू हैं, ?ाठे वादे हैं. दरअसल, ये बेवकूफ तो खुद के शिकार होने का निमंत्रण खुलेआम देते हैं. अब घर्म के दुकानदार उन्हें लूटें या दुकानदारों की आड़ में शातिर, उन्हें क्या फर्क पड़ता है, उन्हें तो लुटना है.

भारत भूमि युगे युगे: बिना शह के मात

भले ही अंगूठा छाप हो लेकिन राज्यपाल खामखां राज्य के तमाम विश्वविद्यालयों का चांसलर हुआ करता है. करने के नाम पर उसे सरकारी आदेश वाले कागजों पर दस्तखत भर करने होते हैं. कभीकभी वह वाइस चांसलरों को चायनाश्ते पर बुला लेता है. जनता के पैसे से ड्राईफ्रूट और स्वीट्स का भक्षण राजभवनों में होता है और इस संक्षिप्त समारोह का समापन तथाकथित बौद्धिक हंसीठट्ठे से हो जाता है.

इस रिवाज पर लगाम कसने में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री कामयाब होती दिख रही हैं जो यह कानून पास करवाने जा रही हैं कि राज्य सरकार की ओर से संचालित विश्वविद्यालयों की चांसलर मुख्यमंत्री यानी वे खुद होंगी. अब राज्यपाल जगदीप धनखड़ न तो मनमानी कर पाएंगे और न ही सरकारी फाइलें अटका पाएंगे. भगवा मंसूबों पर लगातार पानी फेर रहीं ममता के इस कदम से भाजपा सकते में है कि ये तो पातपात साबित हो रही हैं जिन्होंने राज्य को भाजपामुक्त सा कर दिया है.

‘नकवी’ टू

संसद में भाजपा मुसलिममुक्त हो गई है. उस ने हालिया राज्यसभा चुनाव में अपने तीनों मुसलिम सदस्यों- मुख्तार अब्बास नकबी, मी टू वाले एम जे अकबर और जफर इसलाम को खुदाहाफिज कह दिया है. भाजपा अभी तक सिकंदर बख्त, आरिफ बेग और नजमा हेपतुल्ला से ले कर इन तीनों को शो पीस की तरह लटकाए हुए थी. अब उस ने यह जता दिया है कि आगे उसे मुसलिमों की जरूरत नहीं.

इस त्रिमूर्ति में सब से ज्यादा दुखी मुख्तार अब्बास नकवी हैं जिन्हें दोबारा लिए जाने की उम्मीद थी क्योंकि वे अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री भी हुआ करते थे. अब अंदाजा लगाया जा रहा है कि इस यूज एंड थ्रो के पीछे भगवा गैंग की मंशा कांग्रेस निर्मित इस मंत्रालय को खत्म करने की है जिस से न रहेगा बांस और न बजेगी बांसुरी. देश में मुसलिमों की दुर्दशा किसी सुबूत की मुहताज नहीं रह गई है. नकवी की विदाई इस बात का नया सुबूत है.

मोहंती का कटु अनुभव

इस बार बात किसी आम आदमी की नहीं, बल्कि बीजू जनता दल के सांसद और अभिनेता अनुभव मोहंती की है जिन की उम्र महज 40 साल है. उन की बेइंतहा खुबसूरत पत्नी वर्षा प्रियदर्शिनी उडि़या फिल्मों की जानीमानी ऐक्ट्रैस हैं. इन दोनों का विवाद कटक की एक अदालत में पहुंचा जहां अनुभव ने कई गंभीर आरोप वर्षा पर लगाए जिन में सब से दिलचस्प यह कि उन की कई कोशिशों के बाद भी उस ने उन्हें शादी के बाद से ही शारीरिक संबंध बनाने की इजाजत नहीं दी.

ऐसी स्थिति में पति कितना बेचारा हो जाता है, यह तो अनुभव सरीखा कोई भुक्तभोगी ही बता सकता है जो कुएं के पास प्यासा बैठा रह जाता है. पतिपत्नी में से किसी का भी पार्टनर को यौन सुख से वंचित रखना व्यक्तिगत अत्याचार और कानूनी व सामाजिक ज्यादती है जिसे ले कर लोगों की राय अलगअलग हो सकती है. अनुभव की हिम्मत की दाद देनी पड़ेगी जो वे इस समस्या को सार्वजनिक करने से हिचकिचाए नहीं.

योगीजी मुक्ति दो या नियुक्ति

योगी आदित्यनाथ बेचारे बुलडोजर कल्चर और पूजापाठ में इतने व्यस्त रहते हैं कि उन के पास इतनी फुरसत ही नहीं रहती कि मुद्दत से मुक्ति या नियुक्ति की मांग कर रहे 6,800 दलित युवाओं को उन के पद पर नियुक्ति दिला पाएं. इन युवाओं का नाम चयनित शिक्षकों की लिस्ट में आ चुका है लेकिन ज्ञानवापी वगैरह में उलझे योगीजी के पास इन एकलव्यों की पीड़ा सुनने का वक्त नहीं कि उन्हें पोस्ंिटग क्यों नहीं दी जा रही.

सड़कों पर आ गए इन आक्रोशित दलित युवाओं का सरकार पर खुला आरोप है कि दलित होने के कारण उन के साथ भेदभाव किया जा रहा है. ये लोग नादान हैं जिन्हें यह समझ नहीं आ रहा कि उन के सीएम देश को हिंदू राष्ट्र बनाने की मुहिम में जुटे हुए हैं, जब बन जाएगा तब देखा जाएगा कि किस को कहां ‘नियुक्त’ करना है.   -भारत भूषण श्रीवास्तव द्य

मुद्दा: मृत देह का अभाव

मैडिकल संस्थानों में मृत देह का अभाव होना विज्ञान व स्वास्थ्य उपचारों में नई खोजों पर अडं़गा पड़ने जैसा है. मृत देह की कमी होने का मुख्य कारण लोगों का विज्ञान के लिए देह दान न करना है जो समाज में फैले धार्मिक अंधविश्वास से पैदा हो रहा है.

ग्वालियर के गजरा राजा मैडिकल कालेज में कोविड के बाद देह दान न होने से मृत शरीर पर पढ़ाई करने का मौका न मिलने का असर अब मैडिकल कालेजों पर पड़ रहा है. मैडिकल काउंसिल की सलाह है कि एक मृत शव पर 10 छात्र तक काम करें पर आजकल 30-35 छात्रों को एक शव प्राप्त होता है. काठमांडू के मणिपाल मैडिकल कालेज में पढ़ रही एक युवती का कहना है कि नेपाल में तो शवों की इतनी कमी है कि सारी पढ़ाई प्लास्टिक की डमी पर करनी होती है.

आजकल शव बेचने का धंधा पनपने लगा है. तिरुअंनतपुरम मैडिकल कालेज अनक्लेम्ड बौडीज के लिए 6-7 लाख रुपए तक दे रहा है. इस कालेज को 2017 से 2021 तक 4 वर्षों में एकचौथाई शव खरीदने पड़े थे ताकि मैडिकल छात्र सही पढ़ाई कर सकें. मृत शव को मैडिकल भाषा में ‘केडेबर’ कहते हैं. औरतों के शरीर तो और कम मिलते हैं क्योंकि लावारिस शवों में औरतें बहुत कम होती हैं.

जैसे ही चिकित्सा जगत से जुड़े शासकीय अथवा प्राइवेट कालेजों को पता चला कि कोई लावारिस व्यक्ति मरा है या किसी ने अपना मृत देह दान किया है तो उसे हासिल करने के लिए छीना?ापटी मच जाती है.

भारतभर का चिकित्सा जगत आज मृत मानव देह के अभाव से जू?ा रहा है. देह न मिलने की वजह से मैडिकल कालेजों में बिना देह के ही पढ़ाई करनी पड़ती है.

एक हड्डी रोग विशेषज्ञ के अनुसार, ‘‘एनोटौमी डिपार्टमैंट में 6 छात्रों की पढ़ाई एक मृत देह से अच्छी तरह से होती है. आजकल मृत देह की कमी होने की वजह से कुछ कालेजों में तो 120 छात्रों की पढ़ाई एक देह से होती है.’’

एक और जनरल प्रैक्टिशनर बताते हैं, ‘‘मैडिकल कालेज में डैथ बौडी के लिए मारामारी हमेशा थी, पहले भी 50-50 स्टूडैंट्स के बीच एक बौडी होती थी.’’

छत्तीसगढ़ के रायपुर में एक समाजसेवी संस्था, जो देहदान के प्रोजैक्ट पर कार्य करती है, के प्रवक्ता का कहना है, ‘‘हमारे पास शासकीय या प्राइवेट मैडिकल कालेज, आयुर्वेदिक कालेज, होम्योपैथिक, डैंटल कालेजों के

आवेदनों की भरमार रहती है. ये हम से गुजारिश करते हैं कि हमें डैथ बौडी उपलब्ध कराएं.’’

चिकित्सा छात्रों को क्यों जरूरी है मृत देह

एमबीबीएस, वीओएस और बीपीटी जैसे कोर्स के प्रथम वर्ष के छात्रों को शरीर रचना विज्ञान विभाग (एनोटौमी डिपार्टमैंट) की पढ़ाई कराई जाती है. उस में मृत मानव देह की आवश्यकता होती है. प्रैक्टिकल नौलेज के लिए बौडी खोल कर देखी जाती है कि फेफड़े, किडनी, हार्ट, नसें, हड्डियां शरीर में कहां हैं और किस तरह से कार्य करते हैं.

चिकित्सक बनने के लिए प्रैक्टिकल नौलेज की जरूरत ज्यादा होती है. अगर किताबी ज्ञान हो, प्रैक्टिकल नौलेज न हो तो भ्रम की स्थिति बनी रहती है, जिस का सीधा असर चिकित्सक की काबीलियत पर पड़ता है. 6 छात्रों की पढ़ाई के लिए एक मानव देह की जरूरत शिद्दत से होती है. इस स्थिति में पढ़ना और पढ़ाना उच्चकोटि का होता है.

कहां से मिलती है डैथ बौडी चिकित्सा जगत को डैथ बौडी 2 तरीके से मिलती हैं.

लावारिस लाशें : लावारिस लाशें पुलिस के माध्यम से प्राप्त होती हैं. ज्यादातर लावारिस लाशों का पोस्टमार्टम हो जाता है. लिहाजा, ये मैडिकल विभाग के काम नहीं आतीं. जिन लावारिस लाशों की मौत का कारण पता होता है उन का पोस्टमार्टम नहीं होता. इस के बावजूद प्रशासन ऐसी लाशों को मैडिकल विभाग को न सौंपने की लाचारी बताता है कि लावारिस लाशों, जिन का पोस्टमार्टम नहीं होता, को भी दफनाना होता है.

कारण, उन के परिजन हुए तो कभे भी उन्हें ढूंढ़ते हुए आ सकते हैं. ऐसे में दफनाई हुई लाश निकाल कर उन्हें सौंप देते हैं. यदि लाश मैडिकल कालेज को देते हैं तो कई परेशानियां खड़ी हो सकती हैं. यदि मैडिकल कालेज आवेदन करते हैं तो वे लाशें जिन के परिजन नहीं मिलते, उन्हें सौंप देते हैं.

देहदान से : कोई व्यक्ति अपनी जीवित अवस्था में अपनी इच्छा से मृत्यु के बाद अपने शरीर दान की घोषणा करता है. परिजन उन की अंतिम इच्छा पूरी करते हुए समाज हित में चिकित्सा की पढ़ाई हेतु शरीर दान करते हैं. लोग पुरानी दकियानूसी परंपराओं से जकड़े हुए हैं, लिहाजा, शरीर दान के प्रति उन में जागरूकता की बहुत कमी देखी जाती है.

दकियानूसी सोच का परिणाम

अंधपूजक परंपराओं का ही परिणाम है कि लोग समाजहित, जनहित में शरीरदान का संकल्प नहीं ले पाते. सदियों से पुरोहित वर्ग ने हमारे दिमाग में कूटकूट कर भर दिया है कि जब तक मृत मानव देह का अंतिम संस्कार कर उसे पंचतत्त्व में विलीन नहीं किया जाएगा तब तक उसे स्वर्ग, मोक्ष की प्राप्ति नहीं होती. उस की आत्मा भटकती रहेगी.

यही कारण है कि लोग सदियों पुरानी इस सोच से अपने को निकाल नहीं पाते. कोविड के दिनों में भी पंडितों ने अपना धंधा चालू रखा और औनलाइन संस्कार करा के, हवन मंत्र पढ़ कर उन जजमानों से पैसे वसूल लिए जिन के शव सीधे शमशानों में ले जाए गए थे.

शरीरदान भी, परंपराओं का निर्वाह भी

रायपुर निवासी ने हिम्मत के साथ अपनी पत्नी का शरीर दान तो किया लेकिन अंधपूजा भावना इतनी ज्यादा थी कि साथ ही पत्नी का पुतला बना कर बाकायदा पंडितजी से पूजापाठ करवा कर सम्मान के साथ उस का अंतिम संस्कार किया और उस की राख को गंगा में प्रवाहित करने इलाहाबाद भी गए.

यह घटना सदियों पुरानी रूढि़यों की दास्तां की ओर इशारा करती है जिस से व्यक्ति मुक्त नहीं हो पा रहा.

दुर्गति

शरीर दान न करने के पीछे अंधविश्वास के साथ एक दूसरा बड़ा कारण है कि लोगों में डर रहता है कि दान में दिए गए शरीर की काटपीट होती है जिस से उस की दुर्गति होती है. दुर्गति का सोच कर ही लोग शरीर दान करने से पीछे हटते हैं.

शिक्षित लोग भी अंधविश्वासी

कुछ लोग कहते हैं शिक्षा की कमी है इसलिए लोग अंधविश्वासी हैं. जबकि सच यह है कि शिक्षित लोग भी रूढि़वादी होते हैं. छत्तीसगढ़ शासकीय मैडिकल कालेज की एचओडी से जब पूछा गया कि क्या आप अपना शरीर दान करेंगी तो इस सवाल के जवाब में उन्होंने तुरंत ‘न’ कहा.

वजह पूछने पर उन का कहना था, ‘‘मेरे बच्चे पुराने खयालात के हैं. वे ऐसा नहीं करेंगे. जब से धर्म का धंधा एक बार फिर बढ़ने लगा है, यह भावना और तेज हो गई है. अब तो गरीब घरों में भी देह को यों ही जलाया नहीं जाता, कर्मकांड कराया जाता है.’’

एमबीबीएस इशांत तिवारी शरीर दान के सवाल पर तुरंत ही कोई जवाब नहीं देते हैं. अपनी राय न दे कर वे परिजनों के ऊपर डाल देते हैं कि वे कर दें तो ठीक. कहने का मतलब है शिक्षित वर्ग को भी रूढि़यों की जकड़न से बाहर निकालने के लिए जागरूक करने की जरूरत है.

छत्तीसगढ़ के दुर्ग में एक स्वयंसेवी संस्था ‘प्रनाम’ जागरूक कर रही है. मानव सेवा के उद्देश्यों को ले कर बनी ‘प्रनाम’ संस्था सरकार से कोई मदद नहीं लेती.

अपने मृत शरीर की वसीयत कैसे करें

जीवित अवस्था में अपने शरीर के दान की वसीयत करने के लिए मैडिकल कालेज से मृत्यु उपरांत शरीर दान घोषणा पत्र (वसीयतनामा) लें. यह घोषणापत्र

3 पृष्ठों का एक सैट होता है जिसे अपने शरीर का दान करने वाला भरता है. उस घोषणापत्र में उस के उत्तराधिकारियों के हस्ताक्षर होते हैं जिस में वे अपनी अनापत्ति देते हैं. तीनों फौर्म भरने के बाद एक प्रति दान करने वाला अपने पास रखता है, दूसरी प्रति अपने उत्तराधिकारी को सौंपता है और तीसरी प्रति मैडिकल विभाग को सौंपता है.

वर्ष 1700 के बाद मैडिकल की पढ़ाई काफी नियमित होने लगी, पश्चिमी देशों में मृतकों के शवों की जरूरत पड़ने लगी. लेकिन लोग अपने संबंधी के शव देने को तैयार न थे. उन का मानना था कि जब ईश्वर जजमैंट डे के दिन सारी कब्रों से शव निकालेगा और उन्हें स्वर्ग में भेजेगा तो उन का संबंधी बिना अंगों के होगा. वर्ष 1784 में एक शहर में दंगे इसलिए हो गए क्योंकि एक शख्स कहीं से शव लाया पर अफवाह यह फैल गई कि वह किसी ताजा कब्र को खोद कर शव लाया था.

नाजियों ने तो जिंदा यहूदियों को शव मान कर उन पर पढ़ाई करने तक की छूट दे दी थी. आज जो शवों की कमी हो रही है उसे वर्चुअल कोडिंग और प्लास्टिक डमीज से पूरा तो किया जा रहा है पर यह पढ़ाई आधीअधूरी रह जाती है और तथाकथित डिग्री प्राप्त डाक्टर पूरी बीमारी सम?ा न पाने के कारण कुछ रोगियों, जो ठीक हो सकते थे, को खो देते हैं.

फालसा की खेती

डा. बालाजी विक्रम, डा. पूर्णिमा सिंह सिकरवार

फालसा उत्तराखंड के हिमालय की पहाडि़यों पर झाड़ीनुमा रूप में पाया जाता है और पंजाब, राजस्थान, मध्य प्रदेश, मुंबई, बिहार, पश्चिम बंगाल में एक बहुत ही सीमित पैमाने पर इस की खेती की जाती है. उत्तर प्रदेश में इस की खेती तकरीबन 300 हेक्टेयर जमीन में की जाती है.

फालसा उपोष्ण कटिबंधीय फल है. इस का पौधा झाड़ीनुमा होता है. इन पर कीड़े और बीमारियां कम लगती?हैं. फल छोटेछोटे अम्लीय स्वाद के होते हैं. इस के फल गोल होते?हैं. इस के फलों का रंग कच्ची अवस्था में हरा होता?है और पक जाने पर इस का रंग हलका भूरा या हलका बैगनी हो जाता है.

पकने के बाद फलों को ज्यादा दिनों तक नहीं रखा जा सकता है. वे 1 या 2 दिन बाद ही खराब होने लगते हैं.

कैसे करें खेती

जलवायु और मिट्टी : फालसा केवल उत्तरी भारत के ऊंचे पहाड़ी इलाकों को?छोड़ कर देश में सभी जगहों पर पैदा किया जा सकता है. यह गरम और अधिक शुष्क मैदानी भागों में और अधिक वर्षा वाली नम जगहों पर दोनों ही प्रकार की जलवायु में पैदा किया जाता है. सर्दियों में पत्तियां गिर जाती हैं. फालसा पाले को भी सहन कर लेता है.

खेत में जो मिट्टी दूसरे फलों के लिए सही नहीं होती, फालसा की खेती उस में की जा सकती है यानी इस की खेती सभी तरह की मिट्टियों में संभव है, पर फिर भी अच्छी बढ़वार और उपज के लिए जीवांशयुक्त दोमट मिट्टी होनी चाहिए.

प्रजातियां : फालसा की कोई विशेष प्रजाति नहीं है. विभिन्न क्षेत्रों में इस की किस्म को लोकल या शरबती के नाम से पुकारते हैं. शरबती फालसे के पेड़ की ऊंचाई 3 फुट तक होती है. पेड़ पर लगने वाले कच्चे फल का?स्वाद खट्टा होता है और पके हुए फल का स्वाद खाने में कुछ खट्टा और कुछ मीठा होता है.

हिसार, हरियाणा में इस के पौधे 2 तरह से पहचाने जाते हैं, नाटे फल और लंबे फल. उत्पादकता के लिहाज से नाटे पौधे के पेड़ की ऊंचाई 25 फुट तक होती है. इस पेड़ पर लगने वाला कच्चा फल मीठा और खट्टा होता है. जब यह फल अच्छी तरह से पक जाता?है, तो बहुत ही मीठा हो जाता है.

फैलाव : फालसा का फैलाव ज्यादातर बीज की मदद से किया जाता है. मई महीने में सेहतमंद और पके फलों से बीजों को निकाल लिया जाता?है. बीजों को ज्यादा दिनों तक रखने से उगाने की कूवत खत्म हो जाती है, इसलिए इस को निकालने के 15-20 दिनों के अंदर बो देना चाहिए.

बीजों को पहले क्यारियों या गमलों में बोते हैं. उस के बाद उन्हें गमलों में से निकाल कर खेतों में लगा दिया जाता?है. फालसा का फैलाव कर्तनों द्वारा?भी मुमकिन है. लेकिन कर्तनें देर से और कठिनाई से जड़ें फोड़ती हैं. बीज को उगाने के लिए 15-20 दिन और रोपित करने के लिए 3-4 महीने की जरूरत होती है.

फिलीपींस में कलिकायन तरीके से फालसा बीज रोप कर भी कामयाबी पाई है, लेकिन भारत में अभी तक ऐसा कोई भी प्रयोग नहीं किया गया है.

रोपने का तरीका : फालसा को लगाने के लिए जनवरी या गरमियों में गड्ढे तकरीबन 30 सैंटीमीटर लंबे, ऊंचे और चौड़े आकार के तैयार किए जाते हैं. गड्ढों में 2 टोकरी गोबर की सड़ी हुई खाद और उसे मिट्टी के मिश्रण से भर दिया जाता है.

पौधों को रोपते समय कतार से कतार की दूरी और पौधे से पौधे की दूरी 1.5 से 2.0 मीटर की होनी चाहिए. जब पौधों की ऊंचाई 20-22 सैंटीमीटर हो जाती है, तो बारिश में उन को सही जगह पर रोप दिया जाता है.

नर्सरी में लगे हुए पौधे, जिन में सुषुप्तावस्था में आने से पहले काफी बढ़वार हो चुकी हो, फरवरी में खेत में रोप देना चाहिए.

खाद और उर्वरक : फालसा में खाद देने से उपज को और ज्यादा बढ़ाया जा सकता?है. तकरीबन 10-15 किलोग्राम अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद हर साल देनी चाहिए. फालसा का ज्यादा उत्पादन लेने के लिए 100 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40 किलोग्राम फास्फोरस और 25 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर देनी चाहिए.

यह जरूरी है कि नाइट्रोजन वाली खाद 2 भागों में देनी चाहिए. पहला भाग फूल आते समय और दूसरा फल होने के बाद. साथ ही, एक किलोग्राम अमोनियम सल्फेट प्रति पौधा देना चाहिए.

यह फल आकार में बढ़ता है, जिस में जिंक सल्फेट 0.4 फीसदी फल पकने के पहले दिया जाना चाहिए, जिस से फल में जूस की मात्रा बढ़ती है यानी काटने के तुरंत बाद या सर्दी के अंत में खाद को पौधों के चारों तरफ एक मीटर के व्यास में फैला कर मिला देना चाहिए. खाद देने के तुरंत बाद सिंचाई करना जरूरी है.

हैदराबाद में भेड़ की मैगनी, तालाब की सिल्ट, पत्तियों की राख वगैरह देने से फायदा देखा गया है. सिंचाई और निराईगुड़ाई इस के पौधे सहनशील प्रकृति के होते?हैं, इसलिए पूरी तरह से विकसित पौधों को सिंचाई की जरूरत कम होती है. फालसा में पहली सिंचाई खाद डालने के बाद या फरवरी के दूसरेतीसरे हफ्ते में दें, उस के बाद मार्चअप्रैल में सिंचाई 20-25 दिन के अंतराल पर करनी चाहिए और मई के महीने में इस अंतर को घटा कर 15-20 दिन कर देना चाहिए.

पौधों से अच्छी उपज लेने के मकसद से जनवरी से मई तक 15 दिनों के अंतराल से सिंचाइयां देते रहते हैं. प्रत्येक सिंचाई के बाद थालों की मिट्टी को उथले रूप में गाड़ देना चाहिए, जिस से मिट्टी में नमी रहने के साथसाथ खरपतवार खत्म किए जा सकते हैं.

कीट और बीमारियां

फालसा का पौधा ज्यादा सहनशील होने की वजह से इस पर कीड़े और बीमारियां कम लगती हैं. कभीकभी छिलका खाने वाला कीड़ा देखा जाता है. इन से फालसा में विशेष नुकसान पहुंचाने की संभावना नहीं होती है, क्योंकि फालसे के पौधों में हर साल गहन कृंतन किया जाता है. पत्तियों के धब्बों के लिए डाइथेन जैड-78 के 0.3 फीसदी घोल का 15 दिन के फासले पर छिड़काव करते हैं.

फालसा के सफल उत्पादन के लिए प्रयुक्त तकनीक के जरीए 1,05,000 की लागत आती है. फालसा का अच्छा उत्पादन लेने के लिए 3-5 किलोग्राम प्रति पौधा है और जिस का बाजार मूल्य 170 रुपए प्रति किलोग्राम मिल जाता है. इस से एक किसान कुल 89,000 रुपए प्रति हेक्टेयर आमदनी ले सकता है.

अंत:फसल चक्र : कुछ सालों तक कम दूरी तक जड़ें फैलने वाली सब्जियां या 2 दाल वाली फसलें पैदा की जा सकती हैं. फालसा एक पत्ते वाली झाड़ी है और अगर काटाछांटा न जाए, तो यह बढ़ कर पेड़ की तरह हो सकता है.

हर साल पौधों को दिसंबरजनवरी माह में जब पौधा सुषुप्तावस्था में होता है, सिरे को काटना जरूरी होता है. अगर फालसा को ज्यादा दूरी पर (3 मीटर) लगाया जाता है, तो कृंतन जमीन से 90 सैंटीमीटर की ऊंचाई से करना चाहिए और अगर इन के लगाने का अंतर कम (2 मीटर) रखा गया है, तो पौधों को 30 सैंटीमीटर से 45 सैंटीमीटर ऊंचाई दे कर सिरे से काटते हैं.

दक्षिण भारत में फालसा को बिना काटे हुए पेड़ के रूप में बढ़ने दिया जाता है और कहींकहीं पर इन को जमीन के बहुत पास से काट देते हैं. बहुत से फल उत्पादन करने वाले फालसा के पौधों को बिलकुल ही जला देते हैं, जिस से उस के ऊपर कोई भी अंश दिखाई न दे. पंजाब कृषि विभाग, लायलपुर ने अनुसंधान का काम कर के ऐसी जानकारी हासिल की थी कि फालसा के पौधों को जमीन से 120 से 150 सैंटीमीटर की ऊंचाई से काटना चाहिए. ऐसा करने से उन में नई बढ़वार ज्यादा होती है और फल भी ज्यादा होते हैं.

फूल आना और फलना

फालसा में फूल जल्दी पैदा होते?हैं. पौधा लगाने के 3 साल बाद यह अच्छी उपज देने लगते हैं. दक्षिणी भारत में इस के फल मार्च महीने में पकने लगते?हैं और मई महीने के अंत या जून महीने के शुरू तक खत्म हो जाते हैं.

पंजाब और उत्तर प्रदेश में फल मई महीने के अंत तक चलते?हैं और कभीकभी जुलाई महीने तक भी चलते रहते हैं. प्रति पौधे से 3-10 किलोग्राम फल मिलते हैं. इस के फल एकएक कर के तोड़े जाते हैं. जब फलों का रंग लाल हो जाता है, तो फलों को हाथ से सावधानीपूर्वक तोड़ लिया जाता है.

फलों की तुड़ाई सुबह के समय करनी चाहिए. फल तोड़ने के एक दिन बाद ही यह खराब होने लगते?हैं, इसलिए इन को तोड़ कर पास वाले बाजार में बेच दिया जाता है. इस के उद्यान ज्यादातर ठेकेदारों को बेच दिए जाते हैं और फलों को तोड़ कर बाजार में फुटकर रूप में बेचते रहते हैं.

सहयोग- भाग 1: क्या सीमा और राकेश का तलाक हुआ?

सीमा को मायके गए2 महीने बीत चुके थे. अकेलेपन की बेचैनी और परेशानी महसूस करने के साथसाथ राकेश को अपने 5साल केबेटे मोहित की याद भी बहुत सता रही थी.

कुछ रिश्तेदारों ने सीमा को वापिस बुलाया भी, पर वो लौटने को तैयार नहीं थी. राकेश और सीमा की कोविड के दिनों में कई बार जमकर झड़प हुई थी और जैसे ही छूट मिली सीमा मायके जा बैठी.

राकेश ने अब तक सीमा से सीधे बात नहीं की थी. दबाव बनाने के लिए अब उस ने टकराव का रास्ता अपनाने का फैसला कर लिया.

एक रविवार की सुबहसुबह वो सीमा की अनिता बुआ से मिल उन के घर पहुंच गया. राकेश बुआ की बुद्धिमता का कायल था. वो राकेश को काफी पसंद करती थी. सब से महत्वपूर्ण बात ये थी कि उन की अपने भाई के घर में खूब चलती थी. वह विधवा थी शायद इसलिए लोग लिहाज करते थे. उन की बात को नकारने का साहस किसी में न था.

राकेश ने सीमा से झगड़े का जो ब्यौरा दिया, उसे अनिता बुआ ने बड़े ध्यान से खामोश रह कर सुना. हुआ यह था कि एक रविवार की सुबह राकेश मां के घुटनों के दर्द का इलाज कराने उन्हें डाक्टर को दिखाने ले गया था.

रिपोर्ट और एक्सरे घर में छूट जाने के कारण उसे घंटे भर बाद ही अकेले घर लौटना पड़ा.

ड्राइंग रूम की खिड़की खुली हुई थी. इस के पास खड़े हो कर राकेश ने वो बातें सुन ली जिन्हें सीमा ने उस से छिपा रखा था.

ड्राइंगरूम में सीमा के साथ उस का सहयोगी अध्यापक अजय मौजूद था. अजय पहले भी उन के घर कई बार आया था, पर हमेशा राकेश की मौजूदगी में. उस की पत्नी का करीब 4 साल पूर्व अपने पहले बच्चे को जन्म देते हुए देहांत हो गया था. बाद में वो शिशु भी बचाया नहीं जा सका.

‘‘अरे, यहां बैठों, सीमा. चायनाश्ते के चक्कर में न पड़ के कुछ प्यारमोहब्बत की बात करो और अपने हाथों को काबू में रखो.’’ सीमा ने अजय को डांटा था, पर उस की आवाज में गुस्से व नाराजगी के भाव नाटकीय लगे राकेश को.

‘‘अरे, जब दिल काबू में नहीं रहा, तो हाथ कैसे काबू में रखूं?’’

‘‘बेकार की बात न करो और सीधी तरह अपनी जगह बैठे रहो. मैं चाय बना कर लाती हूं.’’

‘‘भाई डियर, चाय की जगह अपने प्यारे हाथों से मीठी सी काफी मिला दो, तो मजा आ जाए.’’

‘‘रसोई में आने की जरूरत मत करना, नहीं तो बेलन पड़ेगा.’’

‘‘क्यों इतना दूर भागती हो? और कब तक भागोगी?’’

सीमा ने अजय के इन सवालों का कोई जवाब नहीं दिया था. अंदर से अखबार के पन्ने पलटने की आवाजें आने लगी, तो राकेश खिड़की के पास से हट कर बाहर सड़क पर आ गया.

उस का तनमन ईर्ष्या, गुस्से व नफरत की आग में सुलग रहा था. उस ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि सीमा ने अपने सहयोगी के साथ अवैध प्रेम संबंध बना रखे थे.

राकेश ने गुस्से भरे लहजे में आगे बुआ को कहा, ‘‘बुआजी, अपनी काली करतूत नहीं देख रही है आप की भतीजी और मैं ने जरा हाथ उठा दिया, तो भाग कर मायके जा बैठी है. अब मेरे सब्र का बांध टूटने को तैयार है. अगर वो फौरन नहीं लौटी, तो बैठी रहेगी मायके में जिंदगी भर.’’

‘‘राकेश बेटा, औरतों पर हाथ उठाना ठीक बात नहीं है,’’ बुआ सोचपूर्ण लहजे में बोली, ‘‘फिर सीमा का कहना है कि वो चरित्रहीन नहीं है. तुम मारपीट करने के लिए पछतावा जाहिर कर देते, तो सारा मामला कब का सुलझ गया होता.’’

‘‘बुआजी, मैं कभी नहीं झुकूंगा इस मामले में.’’

‘‘और सीमा भी झुकने को तैयार नहीं है. फिर बात कैसे बनेगी?’’

‘‘मैं ने कोर्ट का रास्ता पकड़ लिया, तो सारी अक्ल ठिकाने आ जाएगी उस की.’’

राकेश की इस धमकी को ले कर बुआ ने फौरन कोई प्रतिक्रिया प्रकट नहीं करी. वो सोच में डूबी खामोश रही.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें