एनसीईआरटी पर छापने व बेचने पर रेवाड़ी, हरियाणा में मुख्यमंत्री दस्ते ने कुछ छापे मारे और एनसीईआरटी की नकली पायरेटेड किताबें पकड़ीं. अगर मामला सही है तो यह सीधे कौपीराइट कानून का उल्लंघन है, पर नकली किताबों के इस उद्योग से यह भी साफ होता है कि एनसीईआरटी, जो केंद्र सरकार की एक कंपनी है, ज्यादा दामों पर किताबें बेच रही है. नकली किताबों द्वारा पैसा बना लेने का मतलब है कि एनसीईआरटी लागत से ज्यादा दाम पर किताबें बेच रही है.

एनसीईआरटी का गठन व्यवसाय करने के लिए नहीं, पढ़ने के सिलेबस में एकरूपता लाने के लिए हुआ था. अब यह मोनोपोली का फायदा उठा कर किताबें छापता है, बेचता है और मोटा पैसा बनाता है. यह जो पैसा बनाता है वह असल में उन गरीब मांबापों की जेबों से जाता है जो बच्चों को शिक्षा दिलाने के नाम पर मजबूरी में एनसीईआरटी के खजाने भरते हैं.

वर्ष 2021 में एनसीईआरटी ने खुद

402 करोड़ रुपए की किताबें बेचीं जबकि इन किताबों को छापने पर 234 करोड़ रुपए ही खर्च हुए. यह अंतर क्यों है? इतना मुनाफा कमाने का क्या हक है एनसीईआरटी को जिस का गठन छात्रों की सेवा और शिक्षा के प्रचारप्रसार के लिए किया गया है? मजेदार बात यह है कि इन 234 करोड़ रुपयों के अलावा 381 करोड़ रुपए एक साल में एनसीईआरटी वेतनों में हड़प कर जाता है. यानी पैसा जो आम छात्रों की भलाई के लिए खर्च होना चाहिए वह या तो प्रिंटरों और कागज वालों को चला जाता है या फिर इस संस्थान के भारीभरकम कर्मचारी हड़प कर जाते हैं.

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