मैडिकल संस्थानों में मृत देह का अभाव होना विज्ञान व स्वास्थ्य उपचारों में नई खोजों पर अडं़गा पड़ने जैसा है. मृत देह की कमी होने का मुख्य कारण लोगों का विज्ञान के लिए देह दान न करना है जो समाज में फैले धार्मिक अंधविश्वास से पैदा हो रहा है.

ग्वालियर के गजरा राजा मैडिकल कालेज में कोविड के बाद देह दान न होने से मृत शरीर पर पढ़ाई करने का मौका न मिलने का असर अब मैडिकल कालेजों पर पड़ रहा है. मैडिकल काउंसिल की सलाह है कि एक मृत शव पर 10 छात्र तक काम करें पर आजकल 30-35 छात्रों को एक शव प्राप्त होता है. काठमांडू के मणिपाल मैडिकल कालेज में पढ़ रही एक युवती का कहना है कि नेपाल में तो शवों की इतनी कमी है कि सारी पढ़ाई प्लास्टिक की डमी पर करनी होती है.

आजकल शव बेचने का धंधा पनपने लगा है. तिरुअंनतपुरम मैडिकल कालेज अनक्लेम्ड बौडीज के लिए 6-7 लाख रुपए तक दे रहा है. इस कालेज को 2017 से 2021 तक 4 वर्षों में एकचौथाई शव खरीदने पड़े थे ताकि मैडिकल छात्र सही पढ़ाई कर सकें. मृत शव को मैडिकल भाषा में ‘केडेबर’ कहते हैं. औरतों के शरीर तो और कम मिलते हैं क्योंकि लावारिस शवों में औरतें बहुत कम होती हैं.

जैसे ही चिकित्सा जगत से जुड़े शासकीय अथवा प्राइवेट कालेजों को पता चला कि कोई लावारिस व्यक्ति मरा है या किसी ने अपना मृत देह दान किया है तो उसे हासिल करने के लिए छीना?ापटी मच जाती है.

भारतभर का चिकित्सा जगत आज मृत मानव देह के अभाव से जू?ा रहा है. देह न मिलने की वजह से मैडिकल कालेजों में बिना देह के ही पढ़ाई करनी पड़ती है.

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