डा. बालाजी विक्रम, डा. पूर्णिमा सिंह सिकरवार

फालसा उत्तराखंड के हिमालय की पहाडि़यों पर झाड़ीनुमा रूप में पाया जाता है और पंजाब, राजस्थान, मध्य प्रदेश, मुंबई, बिहार, पश्चिम बंगाल में एक बहुत ही सीमित पैमाने पर इस की खेती की जाती है. उत्तर प्रदेश में इस की खेती तकरीबन 300 हेक्टेयर जमीन में की जाती है.

फालसा उपोष्ण कटिबंधीय फल है. इस का पौधा झाड़ीनुमा होता है. इन पर कीड़े और बीमारियां कम लगती?हैं. फल छोटेछोटे अम्लीय स्वाद के होते हैं. इस के फल गोल होते?हैं. इस के फलों का रंग कच्ची अवस्था में हरा होता?है और पक जाने पर इस का रंग हलका भूरा या हलका बैगनी हो जाता है.

पकने के बाद फलों को ज्यादा दिनों तक नहीं रखा जा सकता है. वे 1 या 2 दिन बाद ही खराब होने लगते हैं.

कैसे करें खेती

जलवायु और मिट्टी : फालसा केवल उत्तरी भारत के ऊंचे पहाड़ी इलाकों को?छोड़ कर देश में सभी जगहों पर पैदा किया जा सकता है. यह गरम और अधिक शुष्क मैदानी भागों में और अधिक वर्षा वाली नम जगहों पर दोनों ही प्रकार की जलवायु में पैदा किया जाता है. सर्दियों में पत्तियां गिर जाती हैं. फालसा पाले को भी सहन कर लेता है.

खेत में जो मिट्टी दूसरे फलों के लिए सही नहीं होती, फालसा की खेती उस में की जा सकती है यानी इस की खेती सभी तरह की मिट्टियों में संभव है, पर फिर भी अच्छी बढ़वार और उपज के लिए जीवांशयुक्त दोमट मिट्टी होनी चाहिए.

प्रजातियां : फालसा की कोई विशेष प्रजाति नहीं है. विभिन्न क्षेत्रों में इस की किस्म को लोकल या शरबती के नाम से पुकारते हैं. शरबती फालसे के पेड़ की ऊंचाई 3 फुट तक होती है. पेड़ पर लगने वाले कच्चे फल का?स्वाद खट्टा होता है और पके हुए फल का स्वाद खाने में कुछ खट्टा और कुछ मीठा होता है.

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