राजस्थान का चर्चित पर्यटक स्थल उदयपुर मंगलवार, 28 जून को गलत कारणों से चर्चा में आ गया. रियाज़ अटारी और गौस मोहम्मद नाम के दो लोगों ने कन्हैयालाल नामके शख्स की दुकान में घुसकर निर्ममता से हत्या कर दी. पेशे से दर्जी मृतक कन्हैयालाल ने कुछ दिनों पहले भाजपा की पूर्व प्रवक्ता नूपुर शर्मा की पैग़ंबर मोहम्मद पर विवादित टिप्पणी के समर्थन में सोशल मीडिया पर एक पोस्ट की थी, जिस पर शिकायत दर्ज होने के बाद उदयपुर पुलिस ने कन्हैयालाल को गिरफ़्तार कर लिया था.
हालांकि, बाद में उन्हें जमानत मिल गई थी. लेकिन उन्हें अलगअलग नंबरों से फोन और मैसेज के जरिए जान से मारने की धमकी दी जाने लगी. इस के चलते 15 जून को कन्हैयालाल ने पुलिस में शिकायत दर्ज कर अपने लिए सुरक्षा की मांग की थी. लेकिन पुलिस ने इस धमकी को गंभीरता से शायद नहीं लिया और कुछ लोगों को थाने में बुलाकर समझाबुझा कर शांति मेलमिलाप से रहने का उपदेश दे कर घर भेज दिया.
उदयपुर पुलिस शायद आज के माहौल और धर्म के नाम पर बढ़ रही हिंसक प्रवृत्ति और कट्टरता के आकलन में चूक गई, नतीजा ये हुआ कि कन्हैयालाल को मिल रही धमकियां हकीकत बना दी गईं. उन की दुकान में घुस कर पायजामा सिलाने की बात कह कर धारदार हथियार से उन की हत्या करने वाले दोनों आरोपियों ने इस घटना के बाद एक वीडियो भी पोस्ट किया, जिस में इस हत्या को नूपुर शर्मा की टिप्पणी का बदला बताया गया. इस में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए भी धमकी दी गई है.
ग़ौरतलब है कि महीनेभर पहले नूपुर शर्मा ने पैगंबर मौहम्मद पर आपत्तिजनक बयान दिए थे और उस पर अफसोस भी तब जताया था जब कड़ी आपत्ति दर्ज की गई थी. हालांकि भाजपा ने तब कार्रवाई के नाम पर उन्हें प्रवक्ता के पद से हटा कर निलंबित कर दिया था, लेकिन उन्हें अब तक गिरफ़्तार नहीं किया जा सका है, क्योंकि समाज में आग लगाने वाली बात कह कर वे खुद कहीं फरार हो चुकी हैं. अपनी शरणस्थली से नूपुर शर्मा देख रही होंगी कि धार्मिक कट्टरता की आग जब फैलती है तो किस तरह समाज को हिंसक बना देती है. उन्होंने जो कहा, उस से मुस्लिम समुदाय ही नहीं, दूसरे धर्मों के उदारवादी सोच रखने वाले लोग भी आहत हुए थे.
राजस्थान के उदयपुर में नूपुर शर्मा के समर्थन में सोशल मीडिया पर पोस्ट डालने वाले व्यक्ति की नृशंस तरीके से हत्या कर दी गई. दो हमलावर मंगलवार, 28 जून को दिनदहाड़े उस की दुकान में घुसे. तलवार से कई वार किए और उस का गला काट दिया.
आरोपियों ने हत्या का पूरा वीडियो भी बनाया है और वारदात के बाद सोशल मीडिया पर पोस्ट डाल कर हत्या की जिम्मेदारी भी ली है. वीडियो में उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक को धमकी दे डाली. इस के उपरांत उदयपुर के 7 थाना क्षेत्रों में तत्काल कर्फ्यू लगाया गया. साथ ही, पूरे राजस्थान में एक महीने के लिए धारा 144 लागू कर दी गई. वहीं, दोनों आरोपी रियाज अंसारी और मोहम्मद गोस को राजसमंद के भीम इलाके से हिरासत में ले लिया गया. दोनों उदयपुर के सूरजपोल इलाके के निवासी हैं.
गौरतलब है कि आरोपी रियाज अंसारी और मोहम्मद गोस कपड़े का नाप देने का बहाना बनाकर दुकान में घुसे. कन्हैयालाल कुछ समझ पाते, तब तक बदमाशों ने हमला बोल दिया और हत्या कर दी.
मुख्य सचिव उषा शर्मा ने तत्काल उच्च स्तरीय बैठक की. सभी संभागीय आयुक्तों, पुलिस महानिरीक्षकों एवं जिला कलेक्टरों को प्रदेशभर में विशेष सतर्कता और चौकसी बरतने के निर्देश दिए. समूचे राजस्थान में 48 घंटे के लिए इंटरनेट सेवाएं बंद करने के साथ ही सभी जिलों में आगामी एक माह तक धारा 144 लागू कर 4 लोगों से अधिक के एकत्रित होने पर कार्रवाई का आदेश जारी किया. वहीं, प्रशासन के सभी अफसरों के अवकाश निरस्त कर दिया गए. दूसरी ओर, धारा 144 के बावजूद बीजेपी ने बुधवार, 29 जून को उदयपुर बंद का आह्वान किया.
पूरे वाकये की जानकारी के मुताबिक, पेशे से दरजी मृतक कन्हैयालाल ने कुछ दिनों पहले भाजपा की पूर्व प्रवक्ता नूपुर शर्मा की पैग़ंबर मोहम्मद पर विवादित टिप्पणी के समर्थन में सोशल मीडिया पर एक पोस्ट की थी, जिस पर शिकायत दर्ज होने के बाद उदयपुर पुलिस ने कन्हैयालाल को गिरफ़्तार कर लिया था.
हालांकि, बाद में उन्हें जमानत मिल गई थी. लेकिन उन्हें अलगअलग नंबरों से फोन और मैसेज के जरिए जान से मारने की धमकी दी जाने लगी. इस के चलते 15 जून को कन्हैयालाल ने पुलिस में शिकायत दर्ज कर अपने लिए सुरक्षा की मांग की थी. लेकिन पुलिस ने इस धमकी को गंभीरता से नहीं लिया और कुछ लोगों को थाने में बुलाकर समझाबुझा कर शांति व मेलमिलाप से रहने का उपदेश दे कर घर भेज दिया.
उदयपुर पुलिस शायद आज के माहौल और धर्म के नाम पर बढ़ रही हिंसक प्रवृत्ति और कट्टरता के आकलन में चूक गई. नतीजा ये हुआ कि कन्हैयालाल को मिल रही धमकियां हकीकत बना दी गईं. उन की दुकान में घुस कर पायजामा सिलाने की बात कह कर धारदार हथियार से उन की हत्या करने वाले दोनों आरोपियों ने इस घटना के बाद एक वीडियो भी पोस्ट किया, जिस में इस हत्या को नूपुर शर्मा की टिप्पणी का बदला बताया गया. इस में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए भी धमकी दी गई है.
ग़ौरतलब है कि महीनेभर पहले नूपुर शर्मा ने पैगंबर मौहम्मद पर आपत्तिजनक बयान दिए थे और उस पर अफसोस भी तब जताया था, जब अंतरराष्ट्रीय लेवल पर कड़ी आपत्ति दर्ज की गई थी. हालांकि भाजपा ने तब कार्रवाई के नाम पर उन्हें प्रवक्ता के पद से हटा कर निलंबित कर दिया था, लेकिन उन्हें अब तक गिरफ़्तार नहीं किया जा सका है, क्योंकि समाज में आग लगाने वाली बात कह कर वह खुद कहीं फरार हो चुकी हैं.
अपनी शरणस्थली से नूपुर शर्मा देख रही होंगी कि धार्मिक कट्टरता की आग जब फैलती है तो किस तरह समाज को हिंसक बना देती है. उन्होंने जो कहा, उस से मुस्लिम समुदाय ही नहीं, दूसरे धर्मों के उदारवादी सोच रखने वाले लोग भी आहत हुए थे.
उत्तरप्रदेश के कमलेश तिवारी और राजस्थान के कन्हैयालाल के कत्ल की घटना में काफी कुछ समानता है. लेकिन फर्क भी है कि कन्हैयालाल की कोई सांप्रदायिक पृष्ठभूमि नहीं रही. अगर इतनी सी बात के लिए इतना भयानक बदला लिया जा सकता है, तब तो सोशल मीडिया में नूपुर शर्मा के हजारोंहजार समर्थक उस का गुणगान कर रहे हैं. कितनों ने तो डीपी पर नूपुर की तस्वीर लगा रखी है. फिर राजस्थान में एक अदने से व्यक्ति के साथ इतना क्रूर व्यवहार किस बात का संकेत देता है ? ये कातिल बताना क्या चाहते हैं ?
यह कि ये दोनों ही अपनी कौम के असल हीरो हैं या यह कि नूपुर शर्मा जैसों की सोच ही अब देश के लिए प्रासंगिक रह गई है. वह सोच जिसे देश का बहुसंख्यक समुदाय बारबार नकार रहा है. यही नहीं अधिकृत तौर पर भारतीय जनता पार्टी भी इसे नकार चुकी है.
घटना का वीडियो बना कर इन दोनों ने केवल अपनी सीनाजोरी नहीं दिखाई है बल्कि क्रूरता, आतंक और प्रतिशोध के उस इतिहास के लिए गवाही दी है, जिसे गागा कर समाज के मौलिक चरित्र को ही बदल दिया गया है.
इस घटना के बाद हम यह भी कहने लायक नहीं बचे हैं कि यह उस क्रिया की प्रतिक्रिया है, जिस के किरदार नूपुर और नरसिंहा यति जैसे लोग हैं. हमें समझ नहीं आ रहा कि इन लोगों ने अपने मजहब के चेहरे पर कालिख पोती है या उस का असली चेहरा उजागर किया है.
एक बेहद मामूली आदमी की हत्या के संदर्भ में प्रधानमंत्री मोदीजी का नाम लेना बहुत बड़े रहस्य का विषय है. क्योंकि मोदीजी और कन्हैयालाल दर्जी के बीच लेने के लिए हजारों और भी नाम थे. इतनी समझ तो एक मतिमंद व्यक्ति में भी है कि केवल नाम ले लेने से मोदीजी मजबूत हुए हैं और वह धारणा भी मजबूत हुई है जो मोदीजी को हमेशा मजबूती देती रही है.
दरिंदों ने एक मामूली आदमी की गर्दन पर वार करने के साथ ही साथ फिलहाल सदभावनापसंद अमनपरस्त करोड़ों लोगों की विचारधारा की गर्दन कलम कर दी है.
बर्बर हत्या के इस मामले ने भारतीय मुसलमानों के एक हिस्से में पिछड़ेपन और दक़ियानूसियत के प्रचुरता में विद्यमान होने की समस्या को फिर से सामने ला खड़ा किया है. यह सिर्फ़ क़ानूनव्यवस्था की समस्या नहीं है और इस का इलाज कड़ी सजा की मांग करने की प्रतियोगिता से भी संभव नहीं है. इस का इलाज खुद मुस्लिम समाज के दानिश्वरों/लीडरों के द्वारा देश के संवैधानिक व सामाजिक ढांचे के अनुरूप सोच पैदा कर के ही संभव है.
इस तरह की हरकतें भारत के धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक व आधुनिक समाज की राह में सब से बड़ा रोड़ा हैं. ऐसी एक घटना ही लाखों लोगों की सामाजिक मेलजोल की भावना को महज एक पल में मिट्टी में मिला देती हैं.
धर्म अब मानवता से हट कर सियासत में बदल चुके है, इसलिए ऐसी घटनाएं चुनावी फायदे के लिए भी अंजाम दी जा रही है. पूरे राजस्थान में धारा 144 लागू कर दी गई है, उस के बावजूद उदयपुर, जयपुर, राजसमंद सहित कई शहरोंकस्बों में बंद बुलाया गया. बंद रख कर आक्रोश जताना जायज है, लेकिन जो रैलीजुलूस निकाले जा रहे है, वो माहौल खराब करने की साज़िशें है.
साल 2017 में मामूली मामूली बिहारी मजदूर अफराजूल की हत्या करने वाला शंभुलाल रैगर जैसा हत्यारा अपने धर्म का हो तो उस के समर्थन में रैली निकाली जा सकती है, न्यायालय के ऊपर चढ़ कर अपने धर्म का झंडा लहराया जा सकता है, लेकिन कोई भी आप को कठघरे में खड़ा नहीं कर सकता है. सरकार कांग्रेस की हो या बीजेपी की, कोई फर्क नहीं पड़ता.
अगर हत्यारे ने किसी मुस्लिम को मारा है तो पूरे हिंदू धार्मिक विधान से उस की झांकी रामनवमी पर निकाली जाएगी, जिस को 5 साल पहले शंभूनाथ रेगर लाइवमर्डर मामले में पूरे देश ने देखा है. अगर हत्यारा कोई मुस्लिम हो तो धर्म विशेष खतरे में जाने लगता है. पूरे मुस्लिम समुदाय को आतंकी समाज के रूप में भारत का मीडिया पेश करने लगता है.
एक समाज व देश के रूप में हम हारे हुए लोग है.हम नागरिक की परिभाषा से कोसों दूर भटकते भेड़ियों से जुदा नहीं है. हम जाति व धर्म के एंगल से लड़ने वाले गौरों के पालतू डॉगी से अलग कुछ नहीं है.हमारा नागरिक के रूप में सर्टीफाई होना इस भू-भाग पर एक बोझ ही है.
आजादी के 75 साल के बाद भी हम नहीं समझ पाए कि हमारे बुनियादी मुद्दे क्या है. खूशहाली हासिल करने के रास्ते क्या है. हम जातीय व धार्मिक बाड़ेबंदी से निकलकर इस समाज के कार्यकर्ता व इस देश के नागरिक नहीं बन पाएं, इस से बड़ी जलालत हमारे लिए क्या होगी?
आज भी सरनेम व धर्म तय करता है कि तुम जीने के हकदार हो या नहीं, तुम बुनियादी जरूरतें जुटाने के काबिल हो या नहीं. हमारी जात व धर्म तय करते है कि तुम इंसाफ पाने के हकदार कितने हो. हमारी जात व धर्म देख कर टुकड़ों में इंसाफ फेंका जाता है.