Download App

मेरी बेटी किसी को ‘तू’ कहती है, मैं क्या करूं?

सवाल

हम ने नई सोसाइटी में आ कर 12 साल की बेटी का कोचिंग क्लासेस में ऐडमिशन कराया था. हमें लगा था कि नए कोचिंग सैंटर में उसे अच्छे बच्चे मिलेंगे जिन के साथ उस का शैक्षिक स्तर भी बढ़ेगा. परंतु हुआ बिलकुल उलटा. जब से वह इस नए कोचिंग सैंटर में जाने लगी है उस की भाषा में काफी बदलाव आ गया है. वह किसी को ‘तू’ कहती है तो कभी ‘ऐ ऐ’ कर के बुलाती है.

यह सोसाइटी के लफंगे बच्चों का ही असर होगा. मैं ने इस के चलते उसे कोचिंग सैंटर से निकलवाना चाहा लेकिन हम पहले ही 2 महीने की फीस एडवांस में दे चुके हैं. ऐसे में उसे कोचिंग से निकलवा भी नहीं सकते और उस के आचारविचार खराब होते भी नहीं देख सकते. समझ नहीं आता कि क्या करें?

जवाब

आप की समस्या का हल यह है कि आप अपनी बेटी से बात करें. वह अभी छोटी है, नासमझ है. जब तक आप उसे शांति से बैठ कर कुछ नहीं समझाएंगी, वह नहीं समझेगी. उसे बताएं कि हमारी भाषा किस तरह हमारे व्यक्तित्व को बनाती व बिगाड़ती है. उस की यह भाषा उस के कोचिंग सैंटर के बच्चों को शायद अच्छी लगती हो, लेकिन उस के स्कूल के दोस्तों और भविष्य में मिलने वाले लोगों को अच्छी नहीं लगेगी. वे उसे गंवार समझेंगे और उस से दोस्ती करना नहीं चाहेंगे. यह सब उस से कहने से  हो सकता है कि वह ऐसी भाषा और ऐसी भाषा बोलने वाले बच्चों से दूर रहने लगे. यदि किसी में आत्मविश्वास हो तो वह अपने चालचलन और अपनी भाषा पर नियंत्रण गंदे माहौल में भी रख सकता है. यह आत्मविश्वास पैदा करना आप का काम है.

आप जा कर उस कोचिंग सैंटर के टीचर्स से भी बात करें. उन्हें बताएं कि इस तरह की भाषा न बोलने के लिए उन्हें बच्चों को समझाना चाहिए, उन्हें अच्छी सीख देनी चाहिए. और हो सके तो उन से यह भी कहें कि वे आप की बेटी को ऐसे बच्चों से दूर रखें जो इस तरह की भाषा का इस्तेमाल करते हों.

जब तक आप की बेटी इस कोचिंग सैंटर में है तब तक उस की बोलचाल पर बारीकी से नजर रखें. उसे कुछ भी उलटासीधा कहने पर टोकें. आप एक कोचिंग सैंटर बदल देंगी तब भी इस की कोई गारंटी नहीं कि नए कोचिंग सैंटर में उसे इस तरह तूतू वाली भाषा बोलने वाले बच्चे नहीं मिलेंगे. अच्छे संस्कार आप को खुद ही अपनी बच्ची में डालने होंगे.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem

गंगासागर: सपना और विकास में किस बात को लेकर बहस चल रही थी?

‘सब तीर्थ बारबार, गंगासागर एकबार,’ इस वाक्य को रटते हुए गांव से हर साल कुछ परिचित टपक ही पड़ते. जैसेजैसे गंगासागर स्नान की तारीख नजदीक आती जाती, वैसेवैसे सपना को बुखार चढ़ने लगता.

विकास का छोटा सा घर गंगासागर स्नान के दिनों में गुलजार हो जाता. बबुआ, भैया व बचवा  कह कर बाबूजी या दादाजी का कोई न कोई परिचित कलकत्ता धमक ही पड़ता. गंगासागर का मेला तो 14 जनवरी को लगता, पर लोग 10-11 तारीख को ही आ जाते. हफ्तेभर पहले से घर की काया बदल देनी पड़ती, ताकि जितने लोग हों, उसी हिसाब से बिस्तरों का इंतजाम किया जा सके.

इस दौरान बच्चों की पढ़ाई का नुकसान होता. वैसे उन की तो मौज हो जाती, इतने लोगों के बीच जोर से डांटना भी संभव न होता.

फिर सब के जाने के बाद एक दिन की खटनी होती, नए सिरे से घर को व्यवस्थित करना पड़ता था. यह सारा तामझाम सपना को ही निबटाना पड़ता, सो उस की भृकुटि तनी रहती. पर इस से बचने का कोई उपाय भी न था. पिछले लगातार 5 वर्षों से जब से उन का तबादला पटना से कलकत्ता हुआ, गंगासागर के तीर्थयात्री उन के घर जुटते रहते.

विकास के लिए आनाकानी करने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता था. साल में जब भी वे एक बार छुट्टियों में गांव जाते, सभी लोग आत्मीयता से मिलते थे. जितने दिन भी वे गांव में रहते, कहीं से दूध आ जाता तो कहीं से दही, कोई मुरगा भिजवाता तो कोई तालाब से ताजा मछली लिए पहुंच जाता.

‘अब जहां से इतना मानसम्मान, स्नेह मिलता है, वहां से कोई गंगासागर के नाम पर उस के घर पहुंचता हो तो कैसे इनकार किया जा सकता है?’ विकास सपना को समझाने की बहुत कोशिश करते थे.

पर सपना को हर साल नए सिरे से समझाना पड़ता. वह भुनभुनाती रहती, ‘थोड़ा सा दूधदही खिला दिया और बापदादा का नाम ले कर कलकत्ता आ गए. आखिर जब हम कलकत्ता में नहीं थे, तब कैसे गंगासागर का पुण्य कमाया जाता था? इतनी दूर से लोग गठरियां उठाए हमारे भरोसे आ पहुंचते हैं. हमारी परेशानियों का तो किसी को ध्यान ही नहीं. क्या कलकत्ता में होटल और धर्मशाला नहीं, वे वहां नहीं ठहर सकते? न जाने तुम्हें क्या सुख मिलता है उन बूढ़ेबूढि़यों से बातचीत कर के. अगले साल से देखना, मैं इन्हीं दिनों मायके चली जाऊंगी, अकेले संभालना पड़ेगा, तब नानी याद आएगी.’

एक दिन पत्नी की भाषणबाजी पर विराम लगाते हुए विकास कह उठे, ‘‘क्या बच्चों जैसी बातें करती हो. हमें अपना समझते हैं तभी तो अधिकार सहित पहुंचते हैं. उन के पास पैसों की कमी नहीं है, चाहें तो होटल या धर्मशाला में ठहर सकते हैं. पर जब हम यहां मौजूद हैं तो उन्हें ऐसा करने की क्या जरूरत है. फिर वे कभी खाली हाथ नहीं आते, गांव का शुद्ध घी, सत्तू, बेसन, दाल, मसाले वगैरा ले कर आते हैं. अब तुम्हीं बताओ, ऐसी शुद्ध चीजें यहां कलकत्ता में मिल सकती हैं?

‘‘तुम तो सब भूल जाती हो. लौटते वक्त वे बच्चों को रुपए भी पकड़ा जाते हैं. आखिर वे हमारे बुजुर्ग हैं, 2-4 दिनों की सेवा से हम छोटे तो नहीं हो जाएंगे. गांव लौट कर वे हमारी कितनी तारीफ करते हैं तब माई व बाबूजी को कितनी खुशी होती होगी.’’

सपना मुंह बिचकाती हुई कह उठी, ‘‘ठीक है भई, हर साल यह झमेला मुझे ही सहना है तो सहूंगी. तुम से कहने का कोई फायदा नहीं. अब गंगासागर स्नान का समय फिर नजदीक आ गया है. देखें, इस बार कितने लोग आते हैं.’’

विकास ने जेब में हाथ डाला और एक पत्र निकालते हुए कह उठे, ‘‘अरे हां, मैं भूल गया था. आज ही सरस्वती बूआ की चिट्ठी आई है. वे भी गंगासागर के लिए आ रही हैं. तुम जरा उन का विशेष खयाल रखना. बेचारी ने सारा जीवन दुख ही सहा है. वे मुझे बहुत चाहती हैं. शायद मेरे ही कारण उन की गंगासागर स्नान की इच्छा पूर्ण होने जा रही है.’’

सपना, जो थोड़ी देर पहले समझौते वाले मूड में आ गई थी, फिर बिफर पड़ी, ‘‘वे तो न जाने कहां से तुम्हारी बूआ बन बैठीं. हर कोई चाची, बूआ बन कर पहुंचता रहता है और तुम उन्हें अपना करीबी कहते रहते हो. इन बूढ़ी विधवाओं के खानेपीने में और झंझट है. जरा कहीं भी लहसुन व प्याज की गंध मिली नहीं कि खाना नहीं खाएंगी. मैं ने तो तुम्हारी इस बूआ को कभी देखा नहीं. बिना पूछे कैसे लोग मुंह उठाए चले आते हैं, जैसे हम ने पुण्य कमाने का ठेका ले रखा हो.’’

विकास शांत स्वर में बोले, ‘‘उस बेचारी के लिए कुछ न कहो. उस दुखियारी ने घरगृहस्थी का सुख देखा ही नहीं. बचपन में शादी हो गई थी. गौना हुआ भी नहीं था कि पति की मृत्यु हो गई. शादी का अर्थ भी नहीं समझा और विधवा का खिताब मिल गया. अपने ही गांव की बेटी थी. ससुराल में स्थान नहीं मिला. सब उन्हें अभागी और मनहूस समझने लगे. मायके में भी इज्जत कम हो गई.

‘‘जब भाइयों ने दुत्कारना शुरू कर दिया तो एक दिन रोतीकलपती हमारे दरवाजे आ पहुंचीं. बाबूजी से उन का दुख न देखा गया. उसी क्षण उन्होंने फैसला किया कि सरस्वती मुंहबोली बहन बन कर इस घर में अपना जीवन गुजार सकती है. उन के इस फैसले से थोड़ी देर के लिए घर में हंगामा मच गया कि एक जवान लड़की को सारा जीवन ढोना पड़ेगा, पर बाबूजी के दृढ़ व्यक्तित्व के सामने फिर किसी की जबान न हिली.

‘‘दादादादी ने भी सहर्ष सरस्वती को अपनी बेटी मान लिया और इस तरह एक दुखी, लाचार लड़की अपना परिवार रहते दूसरे के घर में रहने को बाध्य हुई. हमारी शादी में उन्होंने बहुत काम किया था. तुम ने देखा होगा, पर शायद अभी याद नहीं आ रहा. करीब 10 साल वे हमारे घर में रहीं. फिर एक दिन उन के भाईभतीजों ने आ कर क्षमा मांगी. पंचायत बैठी और सब के सामने आदरसहित सरस्वती बूआ को वे लोग अपने घर ले गए.

‘‘सरस्वती बूआ इज्जत के साथ अपने मायके में रहने लगीं. पर खास मौकों पर वे जरूर हमारे घर आतीं. इस तरह भाईबहन का अटूट बंधन अभी तक निभता चला आ रहा है. सो, सरस्वती बूआ को यहां किसी बात की तकलीफ नहीं होनी चाहिए.’’

सपना का गुस्सा फिर भी कम न हुआ था. वह भुनभुनाती हुई रसोई की तरफ चली गई.

12 जनवरी को सुबह वाली गाड़ी से सरस्वती बूआ के साथ 2 अन्य बुजुर्ग भी आ पहुंचे. नहानाधोना, खानापीना हुआ और विकास बैठ गए गांव का हालचाल पूछने. सरस्वती बूआ सपना के साथ रसोई में चली गईं तथा खाना बनाने में कुछ मदद करने का इरादा जाहिर किया.

सपना रूखे स्वर में कह उठी, ‘‘आप आराम कीजिए, थकीहारी आई हैं. मेरे साथ महरी है. हम दोनों मिल कर सब काम कर लेंगी. आप से काम करवाऊंगी तो ये नाराज हो जाएंगे. वैसे भी यह तो हर साल का नियम है. आखिर सब अकेले ही करती हूं. आप आज मदद कर देंगी, अगले साल कौन करेगा?’’

सरस्वती बूआ को सपना का लहजा कड़वा लगा. वे बड़े शौक से आई थीं, पर मुंह लटका कर वापस बैठक में चली गईं. एक कोने में उन की खाट लगी थी. खाट की बगल में छोटा स्टूल रखा था, जिस पर उन की गठरी रखी थी. वे चुपचाप गईं और अपने बिस्तर पर लेट गईं. विकास की घरगृहस्थी देखने की उन की बड़ी साध थी. बचपन में विकास ज्यादातर उन के पास ही सोता था. बूआ की भतीजे से खूब पटती थी.

बूआ की इच्छा थी, गंगासागर घूमने के बाद कुछ दिन यहां और रहेंगी. जीवन में गांव से कभी बाहर कदम नहीं रखा था. कलकत्ता का नाम बचपन से सुनती आई थीं, पूरा शहर घूमने का मन था. परंतु बहू की बातों से उन का मन बुझ गया था.

पर विकास ताड़ गए कि सपना ने जरूर कुछ गलत कहा होगा. बात को तूल न देते हुए वे खुद बूआ की खातिरदारी में लगे रहे. शाम को उन्होंने टैक्सी ली तथा बूआ को घुमाने ले गए. दूसरे दोनों बुजुर्गों को भी कहा, पर उन्होंने अनिच्छा दिखाई.

विकास बूआ को घुमाफिरा कर रात 10 बजे तक लौटे. बूआ का मन अत्यधिक प्रसन्न था. बिना कहे विकास ने उन के मन की साध पूरी कर दी थी. महानगर कलकत्ता की भव्यता देख कर वे चकित थीं.

इधर सपना कुढ़ रही थी. बूआ को इतनी तरजीह देना और घुमानाफिराना उसे रत्तीभर नहीं सुहा रहा था. वह क्रोधित थी, पर चुप्पी लगाए थी. मौका मिलते ही पति को आड़ेहाथों लिया, ‘‘अब तुम ने सब के सैरसपाटे का ठेका भी ले लिया? टैक्सी के पैसे किस ने दिए थे? जरूर तुम ने ही खर्च किए होंगे.’’

विकास खामोश ही रहे. इतनी रात को बहस करने का उन का मूड नहीं था. वे समझ रहे थे कि बूआ को घुमाफिरा कर उन्होंने कोई गलती नहीं की है, आखिर पत्नी उस त्यागमयी औरत को कितना जानती है. मैं जितना बूआ के करीब हूं, पत्नी उतनी ही दूर है. बस, 2-4 दिनों की बात है, बूआ वापस चली जाएंगी. न जाने फिर कभी उन का दोबारा कलकत्ता आना हो या नहीं.

खैर, 3-4 दिन गुजर गए. गांव से आए सभी लोगों का गंगासागर तीर्थ पूरा हुआ. शाम की गाड़ी से सब को लौटना था. रास्ते के लिए पूड़ी, सब्जी के पैकेट बनाए गए.

बूआ का मन बड़ा उदास हो रहा था. बारबार उन की आंखों से आंसू छलक पड़ते. विकास और उस के बच्चों से उन का मन खूब हिलमिल गया था. बहू अंदर ही अंदर नाखुश है, इस का एहसास उन्हें पलपल हो रहा था, पर उसे भी वह यह सोच कर आसानी से पचा गई कि नई उम्र है, घरगृहस्थी के बोझ के अलावा मेहमानों का अलग से इंतजाम करना,  इसी सब से चिड़चिड़ी हो गई है. वैसे, सपना दिल की बुरी नहीं है.

बूआ के कारण सपना को भी स्टेशन जाना पड़ा. निश्चित समय पर प्लेटफौर्म पर गाड़ी आ कर लग गई. चूंकि गाड़ी को हावड़ा से ही बन कर चलना था, इसलिए हड़बड़ी नहीं थी. विकास ने आराम से आरक्षण वाले डब्बे में सब को पहुंचा दिया. सामान वगैरा भी सब खुद ही संभाल कर रखवा दिया ताकि उन बुजुर्गों को सफर में कोईर् तकलीफ न हो.

गाड़ी चलने में थोड़ा वक्त रह गया था. विकास और उन की पत्नी डब्बे से नीचे उतरने लगे. बूआ को अंतिम बार प्रणाम करने के लिए सपना आगे बढ़ी और उन के पैरों पर झुक गई. जब उठी तो बूआ ने एक रूमाल उस के हाथों में थमा दिया. कहा, ‘‘बहू, इसे तू घर जा कर खोलना, गरीब बूआ की तरफ से एक छोटी सी भेंट है.’’

सिगनल हो गया था. दोनों पतिपत्नी नीचे उतर पड़े. गाड़ी चल पड़ी और धीरेधीरे उस ने गति पकड़ ली.

सपना को बेचैनी हो रही थी कि आखिर बूआ ने अंतिम समय में क्या पकड़ाया है? वे टैक्सी से घर लौट रहे थे. रास्ते में सपना ने रूमाल खोला तो उस की आंखें फटी की फटी रह गईं. अंदर सोने का सीताहार अपनी पूरी आभा के साथ चमचमा रहा था.

सपना उस हार को देख कर सुखद आश्चर्य से भर उठी, ‘बूआ ने यह क्या किया? इतना कीमती हार इतनी आसानी से पकड़ा कर चली गईं. क्या अपनी सगी बूआ भी ऐसा उपहार दे सकती हैं? धिक्कार है मुझ पर, सिर्फ एक बार ही सही, बूआ को कहा होता… ‘कुछ दिन यहां और ठहर जाइए,’ यह सोचते हुए सपना की आंखों से आंसू बहने लगे.

डायबिटीज से बचने के लिए क्या करना चाहिए?

सवाल

मैं 40 साल की हो गई हूं. मेरे परिवार में डायबिटीज की हिस्ट्री है. मतलब कि मेरे मायके और ससुराल दोनों तरफ. मेरे पति को 36 साल में डायबिटीज हो गई थी. मुझे डर लगा रहता है कि कहीं मुझे भी यह प्रौब्लम न हो जाए. खानेपीने के प्रति सतर्क रहती हूं लेकिन फिर भी डर लगा रहता है. कैसे मैं यह डर अपने मन से निकालूं?

जवाब

आप ज्यादा स्ट्रैस मत लीजिए. बस, समयसमय पर प्रीडायबिटीज चैकअप करवाती रहिए. प्रीडायबिटीज वह स्टेज होती है जहां खून में शुगर लैवल खतरे के निशान से ठीक करीब होता है. इस का मतलब कि अगर आप को प्रीडायबिटीज स्टेज के बारे में पता चल गया है तो यह डायबिटीज से बचने का आखिरी मौका होता है.

प्रीडायबिटीज को बौर्डरलाइन डायबिटीज भी कहा जाता है. प्रीडायबिटीज के स्पष्ट लक्षण नहीं होते हैं. यह कारण है कि अधिकांश लोगों को इस का पता भी नहीं चलता है. इस का पता लगाने के लिए डाक्टर ब्लड शुगर और ब्लडप्रैशर की जांच करता है. वैसे इस के सामान्य लक्षणों में शामिल है-बारबार पेशाब आना और प्यास बढ़ना.

अगर आप इस स्टेज पर डाक्टर की सलाह, डाइट और ऐक्सरसाइज का प्लान रखती हैं तो डायबिटीज की समस्या से बच सकती हैं.

अगर आप मोटापे की ओर अग्रसर हैं, वजन ज्यादा है या बीएमआई स्तर 25 से ज्यादा है तो आप को प्रीडायबिटीज टैस्ट जरूर करवा लेना चाहिए.

यदि आप प्रीडायबिटीज स्टेज में आ जाती हैं तो घबराने के बजाय सतर्क हो जाइए और जहां तक हो सके,

लो-ग्लैसीमिक फूड्स का सेवन करना शुरू कर दें. डाइट का खास खयाल रखते हुए लो शुगर डाइट लें. पर्याप्त मात्रा में रोजाना पानी का सेवन करें और फल व सब्जियों से अपनी प्लेट का 60 प्रतिशत हिस्सा कवर करें. रोजाना ऐक्सरसाइज को अपने रूटीन का हिस्सा बनाएं. समयसमय पर जांच करवाती रहिए.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem 

वर्ण व्यवस्था को पुख्ता करने की साजिश है ‘अग्निपथ’

सेना में किस जाति और धर्म के लोग किस अनुपात में जाते हैं इसका सटीक आंकड़ा किसी के पास उपलब्ध नहीं है लेकिन अंदाजा सभी का समान है कि सेना में पिछड़े वर्ग के युवा ज्यादा जाते हैं . कुछ साल पहले एक अंग्रेजी पत्रिका ने सर्वे कर खुलासा किया था कि भारतीय सेना मुसलमानों की तादाद महज 3 फ़ीसदी है लेकिन हिन्दू जातियों के कितने लोग जाते हैं इसका जबाब किसी के पास नहीं क्योंकि सेना में जातिगत आरक्षण नहीं है और न ही कभी जाति के आधार पर सैनिकों की गिनती हुई .

इससे यह अंदाजा लगाना आसान हो जाता है कि चूँकि सेना में दलित और सवर्ण न के बराबर जाते हैं इसलिए सबसे बड़ी तादाद पिछड़ों की है क्योंकि वे पढ़ लिख गए हैं , जागरूक भी हुए हैं और उनमें जज्बे और जूनून के साथ साथ दमखम भी है . अग्निपथ के विरोध में भी पिछड़े युवकों की तादाद ज्यादा नजर आ रही है क्योंकि वे कई सालों से भर्ती की तयारी कर रहे थे . ये पिछड़े गौरतलब है कि राजनीति में बहुत ऊँचे तक पहुँच चुके है , प्रशासन में भी इनकी भागीदारी बढ़ी है और जो इनमें भी नहीं हैं वे जाति के मुताबिक अपना छोटा बड़ा कारोबार चला रहे हैं . सवर्णों के बाद सबसे ज्यादा खेती की जमीनें भी इन्हीं के पास हैं .

यह ठीक है कि न्यायिक सेवा की तरह सेना के ऊँचे ओहदे अभी भी इनसे दूर हैं लेकिन जिस तेजी से पिछड़े युवा पढ़ाई लिखाई कर प्रशासन में ऊँचे पदों पर पहुँच रहे हैं उसे देख भगवा गेंग चिंता में थी कि कैसे इन्हें उपरी माले पर आने से रोका जाये क्योंकि आख़िरकार वर्ण व्यवस्था के लिहाज से ये हैं तो शूद्र  ही इसलिए इन्हें सेना में जाने से रोका जाना जरुरी है .

निश्चित रूप से सेना में जाने का सपना वही युवा देखते हैं जिनमें जूनून होता है और जिन्हें जल्द नौकरी चाहिए होती है तय यह भी है कि ये युवा अधिकतर गरीब से ही होते हैं जिन्हें सेना की इज्जतदार नौकरी तगड़ी पगार और दीगर सहूलियतें जो रिटायर्मेंट के बाद भी मिलती हैं और सेना में भर्ती के लिए उकसाती भी रही हैं .पिछड़ों का यह वह तबका है जो खुद को सवर्ण तो समझता है लेकिन जानता है कि वह ऊँची जाति बालों की निगाह में तिरस्कृत है यानी शुद्र के समकक्ष है . हिन्दू धर्म ग्रंथों में इन्हें सछूत कहा गया है यानी इन्हें छू जाने से पाप नहीं लगता . लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि इनसे ऊँची जाति बालों ने रोटी बेटी के सम्बन्ध स्थापित कर लिए थे या अब करने लगे हैं .

साल 1925 में ब्रिटिश सैन्य अधिकारीयों ने भारत की समस्त जातियों को 2 वर्गों योद्धा और गैर योद्धा में बांटा था . दूसरे वर्ग में उन जातियों को रखा गया था जो आराम पसंद होकर सुविधाजनक जीवन जीती है . इस वर्ग में मुख्यत ब्राह्मण और वैश्य आदि रखे गए थे . राजपूत या क्षत्रिय चूँकि लड़ाकू होते थे देश की रक्षा की जिम्मेदारी संभालते थे और उनमें नेतृत्व क्षमता भी होती थी इसलिए उन्हें ऊँचे पद दिए गए इससे उनकी जातिगत ठसक बरकरार रही .इसके बाद अंग्रेजों ने अपनी भर्ती नीति में उन लोगों को जगह दी जिनकी शिक्षा तक पहुँच नहीं थी और जो नेतृत्व भी नहीं कर सकते थे . इसलिए इन्हें नियंत्रित करना आसान काम था .

इस वक्त एक सैन्य इतिहासकार जेफरी ग्रीनहंट ने कहा था , जो भारतीय बुद्धिमान और शिक्षित थे उन्हें कायर करार दिया गया जबकि अशिक्षितों और पिछड़ों को बहादुर कहा गया . सेना भर्ती के लिए अंग्रेजों ने भारतीय जातियों के इतिहास को खंगाला और पाया कि ऊँची जाति बाले उनके काम के नहीं , काम के उन जातियों के लोग हैं जो वफ़ादारी के नाम पर अपनी जान तक दे सकते हैं . इन जातियों में अहीर , कोली , मीणा , अवान , भूमिहार , त्यागी ,बलोच , गुर्जर , कुर्मी , जाट , सिक्ख , खोखर , मुस्लिम पठान , मनिहार , राजपूत , सैनी , नाइ , नन्दवंशी , गोरखा , रेड्डी , तमोली आदि प्रमुख थीं

सौ सालों में थोड़े बहुत ही बदलाब हुए हैं सेना में आज भी ये बहादुर ही ज्यादा जाते हैं जो अब पिछड़े कहलाने लगे हैं . पीढ़ी दर पीढ़ी मिलिट्री में जाने बालों के अनेकों उदाहरण मिल जाते हैं . यह अघोषित आरक्षण व्यवस्था थोड़े बद्लाबों और फेरबदल के साथ अभी तक जारी है .अग्निपथ स्कीम को लेकर यही पिछड़े युवा सबसे ज्यादा तिलमिलाए हुए हैं जिनके जेहन में पूरी पगार , आजीवन पेंशन , रिटायर्मेंट के बाद भी रोजगार और बहुत सी सहूलियतें जो एक बेफिक्र जिन्दगी की गारंटी होती हैं उमड़ घुमड़ रहीं थीं लेकिन नए फरमान ने उनके सपने तोड़ दिए हैं तो वे सड़कों पर आकर विरोध और तोड़ फोड़ कर रहे हैं .

इसमें कोई शक नहीं रह जाता कि मोदी सरकार की मंशा इन पिछड़े युवाओं की जिन्दगी ख़राब करने और तरक्की न करने देने की है सरकार की चाल यही है कि चार साल बाद ये कहीं के न रह जाएँ वर्ना तो नियमित भर्ती के बाद जब ये रिटायर होते हैं तो इनके खीसे में खासा पैसा होता है जिससे वे अपने बच्चों को पढ़ा लिखाकर बड़ा आदमी और साहब बनाने का सपना पूरा करने लगते हैं . इनके बच्चे अब प्रतियोगी परीक्षाओं में अगड़ों को पटखनी देने लगे हैं . हाई स्कूल और हायर सेकेंडरी में मेरिट में आने लगे हैं जो सवर्णों को अखरता है .

सार्वजानिक उपक्रम बेचकर आरक्षण खत्म किया जा रहा है , संविदा पर वे नौकरियां दी जा रही हैं जिनमे आरक्षण लागू नहीं होता , सरकार वेकेंसी ही नहीं निकाल रही इससे खुश सवर्ण वर्ग है क्योंकि उनके बच्चों को स्पेस मिलने लगा है . अब नया शिगूफा अग्निसाक्षी का छेड़ा गया है जिससे दलित पिछड़े आदिवासी और पहाड़ी युवक 12 बी के बाद सीधे अग्निवीर बन कर अपने लिए आगे के रास्ते  बंद कर लें .चार साल की अमावसी चांदनी के बाद अग्निवीर आगे पढ़ पाएंगे इसमें शक है क्योंकि इस मियाद में वे शिक्षा से पूरी तरह कट जायेंगे .यानी थोक में एकलव्य पैदा होने की साजिश रची जा रही है यह और बात है कि कलयुग का एकलव्य अपना अंगूठा कटवाने राजी नहीं हो रहा

विरोध कब कहाँ जाकर रुकेगा कहा नहीं जा सकता लेकिन यह जरुरु साफ़ दिख रहा है कि अग्निपथ गरीब छोटी जाति बालों के लिए ही रचा गया चक्रव्यह है जो हर लिहाज से ऊँची जाति बाले युवाओं के लिए वरदान साबित होगा . जैसे ही अग्निवीरों की वेकेंसी निकलेंगी छोटी जाति बाले गरीब युवा अपना नुकसान भूलभाल कर इस नौकरी की तरफ दौड़ेंगे क्योंकि उन्हें हर महीने मिलने बाली 21 से 25 हजार की पगार दिखेगी . हालातों से अपने नुकसान की शर्त पर समझौते की बेबसी इस वर्ग की हमेशा से ही नियति रही है और इस बात को यह चक्रव्यूह रचने बाले आचार्य द्रोणाचार्य बेहतर जानते समझते हैं .

50 हजार युवा सीधे सीधे प्रतियोगी परीक्षाओं की रेस से बाहर हो जायेंगे और रिटायर्मेंट के बाद न तो ग्रेजुएट हो पाएंगे और न ही एम्बीए सहित कम्प्यूटर के टेक्निकल कोर्स कर पाएंगे . प्रतिस्पर्धी कम होने का फायदा फिसड्डी  सवर्ण युवाओं को मिलेगा और उनके अभिभावकों को कम दाम के मजदूर मिलते रहेंगे यानी वर्ण शोषण की भगवा साजिश हर सूरत में कामयाब होती दिख रही है .  . .

Anupamaa: GK काका सुनेंगे बरखा का प्लान तो अनुपमा लगाएगी लताड़

टीवी सीरियल अनुपमा (Anupamaa) में इन दिनों बड़ा टविस्ट देखने को मिल रहा है. जिससे फैंस को हाईलवोल्टेज ड्रामा देखने को मिल रहा है. शो के बिते एपिसोड में आपने देखा कि पाखी अनुपमा के घर जाने की जिद करती है, वनराज उसे मना करता है फिर पाखी बदतमीजी करती है. समर और तोषु भी समझाते हैं लेकिन पाखी नहीं मानती है. शो के अपकमिंग एपिसोड में खूब धमाल होने वाला है. आइए बताते हैं शो के नए एपिसोड में.

शो में आप देखेंगे कि बरखा अनुपमा से कहती है कि उसे अनुज की पत्नी होकर डांस अकेडमी चलाना शोभा नहीं देता. अनुपमा उसे  करारा जवाब देती है और कहती है कि यहां तक आने के लिए उसने काफी लड़ाई लड़ी है. उसने मेहनत से अपनी पहचान बनाई है.

 

शो में ये भी दिखाया जाएगा कि बरखा की बेटी सारा अनुपमा का डांस अकेडमी ज्वाइन करती है. अनुपमा उसे इसकी फीस के बारे में बताते हुए कहती है कि इसके लिए उसे हर दिन एक कप चाय बनानी होगी तो बरखा कहती है कि सारा को चाय बनाने नहीं आती.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by RUPALI_GANGULY (@starplus__anupamaa)

 

तो दूसरी तरफ वनराज समर से कहता है कि अनुपमा अनुज की पत्नी बन गई है और उसे लगता है कि वो डांस अकेडमी अब नहीं आएगी. वो दोनों अनुपमा को वहां देखकर चौंक जाते हैं.

 

शो में ये भी दिखाया जाएगा कि बरखा, आदिक से कहती है कि अगर बिजनेस करने में अंकुश फेल होता है तो उसे बिजनेस संभालना चाहिए. जीके काका उन दोनों की बातें सुन लेते है और शॉक्ड हो जाते हैं. शो के नये एपिसोड में आप देखेंगे कि पाखी, किंजल, समर, अनुपमा से मिलने कपाड़िया हाउस आते है.

समर ने अपनी भाभी संग करवाया फोटोशूट, देखें Viral Photos

अनुपमा  फेम किंजल यानि निधि शाह (Nidhi Shah) सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव रहती है. वह अक्सर फैंस के साथ हॉट फोटोज और वीडियोज शेयर करती रहती हैं. अब उन्होंने अपने ऑनस्क्रीन देवर यानी पारस कलनावत (Paras Kalnawat)  संग फोटोशूटस करवाया है. दोनों का फोटोज सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहा है.

हाल ही में खबर आई थी कि निधि शाह जल्द ही अनुपमा को अलविदा कहने वाली हैं दरअसल वह किसी और प्रोजक्ट पर काम करने वाली है.  इस बीच निधि शाह ने सोशल मीडिया पर अपने नए फोटोशूट से सनसनी मचा दी है.

 

इन तस्वीरों में आप देख सकते हैं निधि शाह अपने ऑनस्क्रीन देवर समर यानी कि पारस कलनावत संग नजर आ रही हैं. तस्वीरों में दोनों का नया अंदाज देखने को मिल रहा है.

 

समर और किंजल की फोटोज पर फैंस लगातार कमेंट कर रहे हैं. फैंस जमकर दोनों की तारीफ कर रहे हैं. निधि शाह के किरदार को अनुपमा में खत्म करने के लिए मेकर्स कहानी में नया मोड़ लेकर आने वाले हैं. खबरों के मुताबिक अनुपमा में जल्द ही किंजल का एक्सीडेंट होगा और उसकी मौत हो जाएगी. इसके बाद अनुपमा ही किंजल के बच्चे को संभालेगी. शो में अनुपमा और अनुज कपाड़िया के रिश्ते में दरार भी देखने को मिलेगा.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by PARAS BHUSHAN KALNAWAT (@paras_kalnawat) 

ऑनलाइन पेमेंट कितना सही

एक बार एक व्यक्ति ने फोन पर एक क्यूआर कोड भेज कर कहा कि आप की इंश्योरैंस कंपनी ने आप को एक रिवार्ड दिया है. आप इस क्यूआर कोड को स्कैन करें तो आप को मिले रिवार्ड के पैसे आप के अकाउंट में चले जाएंगे. जिस के फोन पर कौल आया, वह पहले तो सोच में पड़ गया कि मेरी कौन सी ऐसी पौलिसी है जो मु झे रिवार्ड दे रही है, फिर उस ने क्यूआर कोड को जूम किया तो उस पर बहुत बारीकी से लिखा था कि आप को 2 हजार रुपए मिलेंगे और अकाउंट से 6 हजार रुपए कट जाएंगे.

असल में फोन करने वाले से गलती यह हुई थी कि उस ने जिस से क्यूआर कोड स्कैन करने को कहा, वह व्यक्ति बैंक में काम करता है, इसलिए उस ने इसे अच्छी तरह से देखा. जबकि साधारणतया व्यक्ति इन बातों पर अधिक ध्यान नहीं देते और बहुत सारा पैसा बैंक अकाउंट से निकल जाता है. बाद में इस फ्रौड व्यक्ति को पकड़ना मुश्किल हो जाता है. ऐसे में औनलाइन पेमेंट को अच्छी तरह जानना क्या जरूरी नहीं?

इस बारे में पंजाब नैशनल बैंक के चीफ मैनेजर अमिताभ भौमिक कहते हैं, ‘‘डिमोनेटाइजेशन के बाद से देश कैशलैस सिस्टम की तरफ तेजी से बढ़ रहा है लेकिन अभी इस देश में इतनी संख्या में ग्राहक नहीं हैं जितना सरकार सोच रही थी क्योंकि छोटे गांव और शहरों में वयस्क और महिलाएं पूरी तरह से कैशलैस ट्रांजैक्शन करने के तरीके को जानती नहीं हैं. वे औनलाइन पेमेंट से डरते हैं लेकिन कोरोना वायरस की वजह से औनलाइन का ट्रैंड काफी बढ़ गया है. आजकल लोग बैंक जाने से बच रहे हैं.’’

वे आगे कहते हैं, ‘‘अधिकतर पेमेंट और मनी ट्रांसफर औनलाइन ही हो रहे हैं. किसी जानने वाले को या फैमिली मैंबर को पैसे भेजने या कुछ घरेलू सामान मंगवाने हों तो व्यक्ति औनलाइन मनी ट्रांसफर कर देता है. डिजिटल पेमेंट को सही मानने की एक वजह यह भी है कि ये अपने ग्राहकों को निर्बाध रूप से पेमेंट के औप्शन और कई प्रकार के डिस्काउंट देते हैं. इस से कस्टमर की कैश पर निर्भरता में कमी, फास्ट मनी ट्रांसफर और आसानी से किसी ट्रांजैक्शन को किया जा सकता है. इस तरह के ट्रांजैक्शन को अधिक से अधिक प्रयोग करने के पीछे कैशलैस और पेपरलैस लेनदेन को बढ़ाना है और इंडिया की इकोनौमी को कैशलैस सोसाइटी बनाने से है.’’

औनलाइन पेमेंट के कई औप्शन हैं और व्यक्ति अपनी सहूलियत के अनुसार ट्रांजैक्शन कर सकता है-

बैंकिंग कार्ड्स ग्राहकों को अधिक सुरक्षा, आसानी और मनी कंट्रोल करने की सुविधा व बाकी सभी पेमेंट फैसिलिटीज देते हैं. इस में कई प्रकार के कार्ड होते हैं, मसलन क्रैडिट कार्ड या डैबिट कार्ड, प्रीपेड कार्ड पेमेंट आदि में कई फ्लैक्सिबिलिटीज होती हैं. साथ ही, इस में पेमेंट की गारंटी ‘पिन’ या ‘ओटीपी’ से की जाती है. इस के द्वारा व्यक्ति कहीं भी, किसी भी माध्यम से शौपिंग कर सकता है.

यूएसएसडी नए तरह की पेमेंट सर्विस है. इसे मोबाइल बैंकिंग ट्रांजैक्शन, मोबाइल फोन द्वारा किया जाता है. इस में मोबाइल इंटरनैट डेटा की कोई जरूरत नहीं होती. बैंक में खाताधारक इस का प्रयोग आसानी से कर सकता है. इस में फंड ट्रांसफर, बैलेंस इन्क्वायरी, मिनी स्टेटमैंट आदि सभी की सुविधा होती है. ऐसी सर्विस की सुविधा देश के 51 बड़े बैंकों में 12 भाषाओं में उपलब्ध कराई गई है.

एईपीएस बैंक द्वारा बनाया गया एक औप्शन है. यह औनलाइन अंतर-संचालित फाइनैंशियल ट्रांजैक्शन होता है, जिस में पौइंट औफ सैल या माइक्रो एटीएम द्वारा बिजनैस कोरेस्पौडैंट के साथ जुड़ जाता है, जिस की प्रामाणिकता आधार कार्ड द्वारा की जाती है.

यूपीआई सिस्टम में कई बैंकों के अकाउंट को एक मोबाइल ऐप्लीकेशन के तहत जोड़ा जाता है. इस से पेमेंट करना और बैलेंस को चैक करना आसान होता है. हर बैंक का यूपीआई ऐप अलगअलग होता है जिसे बैंक देता है.

मोबाइल वौलेट्स एक भुगतान सेवा है जिस के माध्यम से व्यवसाय और व्यक्ति मोबाइल उपकरणों से लेनदेन कर सकते हैं. ये ईकौमर्स का एक मौडल है जिसे सुविधा और आसान पहुंच की वजह से प्रयोग किया जा सकता है. मोबाइल वौलेट को मोबाइल मनी, मोबाइल ट्रांसफर मनी भी कहा जाता है. इस में फोनपे, गूगलपे, पेटीएम आदि कई हैं जिन का आजकल खूब प्रयोग होता है.

प्रीपेड क्रैडिट कार्ड बैंकों और वित्तीय संस्थानों द्वारा जारी किए जाते हैं और क्रैडिट कार्ड के सामान ही लेनदेन के लिए उपयोग किए जा सकते हैं. खरीदारी करने, बिलों का भुगतान करने या एटीएम से नकद प्राप्त करने में इन का प्रयोग किया जाता है.

प्रीपेड कार्ड दिखने में डैबिट और क्रैडिट कार्ड जैसे ही प्लास्टिक कार्ड मैगनेटिक स्ट्रिप के साथ होते हैं. अंतर केवल इतना है कि प्रयोग से पहले इस में कुछ फंड जोड़ना पड़ता है, ताकि इस से खर्च कर सकें. प्रीपेड कार्ड कस्टमर को उतनी सुरक्षा नहीं देते जितनी डैबिट और क्रैडिट कार्ड में मिलती है. अगर कोई प्रीपेड के साथ फ्रौड करने की कोशिश करता है तो भी उतनी सुरक्षा नहीं मिलेगी जितनी डैबिट और क्रैडिट कार्ड में मिलती है. इस के अलावा प्रीपेड कार्ड प्रदाता बहुत अधिक फीस चार्ज करते हैं.

पौइंट औफ सैल (पीओएस) में एक मशीन द्वारा पेमेंट की जाती है. इस में दुकान या खुदरा स्टोर से जब ग्राहक सामान खरीदता है तो डैबिट या क्रैडिट कार्ड को मशीन में सरका कर भुगतान करता है. राशन की दुकान, पैट्रोल पंप, मौल्स आदि जगहों पर इस से पेमेंट किया जाता है.

इसे स्वाइपिंग मशीन भी कहते हैं. इस का काम 2 प्रकार से होता है, मसलन कार्ड को स्वाइप करना या फिर कार्ड को लगा कर छोड़ देना, जिस में कार्ड व्यक्ति के अकाउंट से सीधा जुड़ जाता है. पेमेंट हो जाने के बाद मशीन से 2 पर्चियां निकलती हैं जिन में से एक अपने पास तो दूसरी ग्राहक को दे दी जाती है. हर दिन व्यवसाय खत्म होने के बाद दुकानदार उस मशीन को बैच प्रोसैसिंग के लिए भेजता है जिस में से दुकानदार के पैसे उस के खाते में जमा हो जाते हैं. यह मशीन बैंकों द्वारा दी जाती है, इसलिए बैंक का उस में कुछ कमीशन होता है, जिसे दुकानदार ग्राहक से ही वसूलता है. इसे पौइंट औफ परचेज भी कहा जा सकता है.

इंटरनैट बैंकिंग को औनलाइन बैंकिंग, ईबैंकिंग या वर्चुअल बैंकिंग कहा जाता है. यह एक इलैक्ट्रौनिक पेमेंट सिस्टम है जो ग्राहक को उस के नैट बैंकिंग अकाउंट से वित्तीय और गैरवित्तीय ट्रांजैक्शन करने की सुविधा प्रदान करता है. इंटरनैट बैंकिंग की सुविधा बैंकों के माध्यम से प्रदान की जाती है और ग्राहक को उस के लिए उपलब्ध सुविधा प्राप्त करने के लिए किसी भी बैंक में खाताधारक होना चाहिए. बैंक खाताधारक इंटरनैट पर जा कर नैट बैंकिंग अकाउंट में औनलाइन ट्रांजैक्शन, नैशनल इलैक्ट्रौनिक फंड ट्रांसफर या रियल टाइम ग्रौस सैटलमैंट कर सकते हैं. यह काम मोबाइल, लैपटौप या कंप्यूटर द्वारा किया जा सकता है.

इस की विशेषताएं निम्न हैं-

ग्राहक अकाउंट स्टेटमैंट देख सकता है.

ग्राहक संबंधित बैंक द्वारा किसी निश्चित अवधि में हुए ट्रांजैक्शन की जानकारी जान सकता है.

बैंक, स्टेटमैंट, विभिन्न प्रकार के फौर्म, एप्लिकेशन डाउनलोड किए जा सकते हैं.

ग्राहक फंड ट्रांसफर कर सकता है, किसी भी तरह के बिल का भुगतान कर सकता है.

मोबाइल डीटीएच कनैक्शन इत्यादि का रिचार्ज कर सकता है.

ग्राहक ईकौमर्स प्लेटफौर्म पर खरीद और बेच सकता है.

ग्राहक व्यापार का निवेश और संचालन कर सकता है.

ग्राहक परिवहन, यात्रा पैकेज और मैडिकल पैकेज बुक कर सकता है. इस के अलावा ग्राहक तुरंत और सुरक्षित ट्रांजैक्शन भी कर सकता है.

मोबाइल बैंकिंग एक सेवा है, जो बैंक या किसी फाइनैंशियल इंस्टिट्यूशन द्वारा खाताधारक को दी जाती है. यह मोबाइल डिवाइस (सैलफोन, टेबलेट आदि) पर वित्तीय लेनदेन करने का कार्य करती है. इस में प्रयोग किए जाने वाले सौफ्टवेयर ऐप बैंक देता है जिस से व्यक्ति अपना लेनदेन का काम आसानी से कर सके.

माइक्रो एटीएम एक छोटी मशीन है जो कार्ड स्वाइपिंग मशीन की तरह दिखती है और मूलभूत बैंकिंग सुविधा प्रदान करने में सक्षम होती है. इस तरह के एटीएम बहुत फायदेमंद हैं क्योंकि जहां सामान्य एटीएम स्थापित नहीं किए जा सकते, वहां इसे लगाया जाता है. ग्राहक की पहचान करने के लिए इस में एक फिंगरप्रिंट स्कैनर भी लगा होता है.

माइक्रो एटीएम में आधार नंबर दर्ज करने और अंगूठे या उंगली से पहचान सत्यापित होने के बाद यह आप के बैंक अकाउंट के डिटेल ले लेता है. इस के बाद उस अकाउंट से पैसों का भुगतान कारोबारी के अकाउंट में हो जाता है और वह ग्राहक को उस रकम का भुगतान कर देता है. यह अधिकतर लोकल किराना में प्रयोग होता है.

ये सभी औनलाइन लेनदेन व्यक्ति अपनी सुविधा के अनुसार कर सकता है. इस में दिए गए निर्देशों का पालन करने पर व्यक्ति की लेनदेन की प्रक्रिया पूरी तरह से सुरक्षित रहती है. थोड़ी सी लापरवाही ग्राहक को भारी पड़ती है, इसलिए सोचसम झ कर औनलाइन पेमेंट करें.

मीडिया प्रोपगंडा की ठग

ऐक्टिंग के क्षेत्र में देशविदेश में मशहूर अभिनेता शाहरुख़ खान के पुत्र आर्यन खान को मुंबई क्रूज ड्रग्ज केस में नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) की एसआईटी ने क्लीन चिट दे दी है, यानी, वे ड्रग्स केस मामले में पूरी तरह बेकुसूर पाए गए हैं. एनसीबी को आर्यन खान के खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं मिला. ऐसे में उन सारे दावों की हवा निकल गई जो इस मामले के शुरू होने के बाद किए जा रहे थे. 22 दिन जेल और 238 दिनों लंबे चले ट्रायल के बाद आर्यन खान बेदाग निकले हैं. आर्यन के बेदाग निकलने के बाद एनसीबी और मीडिया की भूमिका पर सवाल खड़े हो गए हैं.

इस में कोई शक नहीं है कि आर्यन खान को जबरदस्ती बलि का बकरा बनाया गया था ठीक वैसे ही जैसे कुछ समय पहले रिया चक्रवर्ती को बनाया गया. आर्यन खान मामले की जांच करने वाले एनसीबी के डीडीपी संजय सिंह ने जांच में यह पाया कि आर्यन के पास ड्रग्स नहीं था. आर्यन द्वारा ड्रग्स के सेवन करने का प्रमाण भी उन्हें नहीं मिला. जो व्हाट्सऐप चैट्स निकली गईं वो इस मामले से लिंक नहीं करतीं. वहीं, एनसीबी के डीजी एस एन प्रधान ने कहा कि जिस तरह के सुबूत सामने आए हैं उन से यह साफ है कि यह कोई अंतर्राष्ट्रीय साजिश का मामला नहीं था. पर सवाल ये कि जो दाग मीडिया और नारकोटिक्स ने इन दिनों आर्यन खान पर लगाए क्या वे आसानी से धुल पाएंगे? 24 वर्षीय एक युवा को जिस तरह के तनावों से गुजरना पड़ा क्या उस की भरपाई हो पाएगी?

आर्यन खान का मामला 2 अक्टूबर, 2021 को उछला था जब एनसीबी ने मुंबई से गोवा जा रहे क्रूज पर रैड डाली थी. उस रैड में 13 ग्राम कोकीन, 21 ग्राम चरस और एमडीएमए की 22 गोलियां मिलने की बात सामने आई थी. इस मामले ने सनसनी तब फैला दी थी जब फिल्मस्टार शाहरुख़ खान के बेटे आर्यन खान को उन के दोस्तों के साथ क्रूज से एनसीबी ने हिरासत में ले लिया. उस के बाद उन्हें अदालत में पेश किया गया. आर्यन को हिरासत में लेने के बाद से मानो मीडियारूपी गिद्धों को परोसा हुआ शिकार मिल गया. वे इस मामले पर टूट पड़े, क्योंकि इस मामले में उन्हें एकसाथ ग्लैमर, सिनेमा, स्कैंडल, ड्रग्स, क्राइम का ही नहीं बल्कि धर्म का भी छौंका मिल रहा था.

मसलन, कोर्ट कार्यवाही एक तरफ चल रही थी दूसरी तरफ मीडिया ट्रायल का खेल शुरू हो चुका था. जब आर्यन खान पर आरोप लगाए गए तब मीडिया ने उन्हें नशेड़ी, तस्कर, पैडलर और न जाने क्याक्या कहा. हर रोज सुबहशाम टीवी चैनलों पर आर्यन खान की लाइव लिंचिंग की गई. चैनलों द्वारा ऐसे सनसनीखेज दावे किए गए जो ‘गुप्त सूत्रों’ के हवाले से हुआ करते थे. ये कौन से गुप्त सूत्र थे और कहां से थे, ये तो वो ही जानें पर उन गुप्त सूत्रों की आड़ में हदों की सीमाएं लांघी गईं.

 यह कैसा मीडिया ट्रायल

इस पूरे मसले में आर्यन खान की विच हंटिंग की गई. गिरफ्तारी के दिन उन्होंने कौन से रंग की टीशर्ट, जैकेट, मास्क, जींस पहनी थी, इसे बारीकी से बताया जाने लगा. जमानत के दिन वे किस कार में, कौन सी सीट में, कैसे, कहां से जाएंगे, घर जाएंगे या होटल आदि फुजूल बातें रिपोर्टिंग का हिस्सा थीं. सिर्फ हवाई बातों और झूठेबेबुनियाद या आधेअधूरे तथ्यों से ही चैनलों द्वारा कई प्रकार के दावे किए गए. इस ड्रग्स मामले में आर्यन खान के खिलाफ कोई सुबूत न मिलने पर एनसीबी और मीडिया ने इसे अंतर्राष्ट्रीय तारों से जुड़ा हुआ बताया. इस के लिए चैट्स का हवाला दिया, ताकि दर्शकों को लगे कि देश के खिलाफ यह बहुत बड़े षड्यंत्र का हिस्सा है.

उन दिनों मीडिया की कवरेज एकतरफा, हवाहवाई और धूर्त किस्म की थी. बड़ी चालाकी से न्यूज चैनल शीर्षकों का चयन करते, उदाहरण के लिए, जी न्यूज ने अपने प्राइमटाइम शो ‘ताल ठोक’ कार्यक्रम में ‘बौलीवुड के नशेबाज बच्चे’ शीर्षक से शो चलाया, जिस पर आर्यन खान की बड़ी फोटो चस्पां की गई. अंत में दर्शकों के कन्फ्यूजन के लिए क्वेश्चन मार्क डाला. साथ में, हैशटैग दिया गया ‘बौलीवुड ड्रग्स पार्टी’. शीर्षक में शब्दों का चयन ही आरोपी को अपराधी घोषित कर देने वाला था. इस में तथ्य न के बराबर थे. चैनलों में, बस, एंकरएंकरनियों व बेतुके पेनलिस्टों की चीखमचिल्ली और तेज दनदनाते साउंड इफैक्ट्स थे.

ऐसे ही अपने एक और शो में ‘आर्यन ड्रग्स और डील’ नाम से शो चलाया. इस में भी अधिकतर जानकारियां सूत्रों के हवाले थीं. व्हाट्सऐप चैट के सामने आने के बाद चरित्र हनन के लिए चैनलों ने ‘आर्यन खान के फोन में आपत्तिजनक तसवीरें’ वाले शीर्षक चलाए. रिपोर्टर खबरें देने की जगह सड़कों पर कारों का पीछा कर रहे थे. मीडिया ट्रायल के नाम पर बगैर तथ्यों या आधेअधूरे तथ्यों से वे वह सब कहने के लिए आजाद थे जो भड़ासी हो, सनसनीखेज हो और आर्यन खान को कैसे अपराधी साबित किया सके, इसी के इर्दगिर्द था.

जी हिंदुस्तान चैनल के एक शो में कहा गया, ‘आर्यन खान से एमडीएमए की 22 गोलियां बरामद हुईं.’ चैनल को यह खबर भी सूत्रों से मिली. चैनल के अनुसार, अगर 22 गोलियां मिलीं तो आर्यन बरी कैसे हो गया. सिर्फ आर्यन नहीं, आर्यन के जरिए बौलीवुड को बदनाम किया जाने लगा. ‘आज तक’ में ऐसे कई शो चलाए गए. ‘आज तक’ के प्राइम टाइम ‘दंगल’ शो में ‘उड़ता बौलीवुड’ शीर्षक दिया गया, जिस में फ्रंट पर शाहरुख़ खान की बड़ी तसवीर लगाई गई. शाहरुख़ खान की छवि को खराब करने वाले शो भी चलाए गए, जैसे, शो ‘राष्ट्रवाद’ में शीर्षक दिया ‘खुल गया ‘मन्नत’ में ‘जन्नत का गेम’. यह शीर्षक सी ग्रेड भोजपुरी फिल्मों के टाइटल जैसा सुनाई पड़ता है.

इसी प्रकार रिपब्लिक चैनल ने अपने एक शो में शीर्षक दिया, ‘शिकंजे में बादशाह का बेटा’. हिरासत और शिकंजा क्या होता है, शायद चैनल वाले जानते नहीं थे, या आर्यन को अपराधी मान कर बैठे थे. ‘शिकंजे’ शब्द को बारीकी से पढ़ने की जरूरत है, गड़बड़ यहीं समझ आ जाएगी. ‘शिकंजा’ शब्द कब और किन परिस्थितियों में उपयोग होता है? क्या आर्यन खान को किसी बहुत बड़ी क्रिमिनल एक्टिविटी में पकड़ा गया? क्या वे पुलिस से बच कर भाग निकलना चाह रहे थे? क्या उन्होंने पुलिस या एनसीबी से बचने के लिए पलटवार किया? नहीं, यकीनन नहीं. तो फिर शिकंजा किस बात का? शिकंजा शब्द तो घोषित अपराधियों के लिए उपयोग किया जाता है जो भागने की कोशिश कर रहे हों, या हत्थे न चढ़े हों. आर्यन तो महज आरोपी थे, जिन्हें ‘हिरासत’ में लिया गया.

आर्यन खान पर शुरू हुए मीडिया ट्रायल में किसी न किसी तरह से हर रोज घंटों उन के ड्रग्स कनैक्शन को साबित करने की कोशिश की जा रही थी. बौलीवुड का ‘काला सच’, ‘ड्रग्स कनैक्शन’, ‘नशेबाज बेटा’, ‘बिगडैल बेटा’ जैसे शब्दों से न्यूज चलाई जा रही थीं. तथाकथित व्हाट्सऐप चैट्स का इस्तेमाल कर उन की इमेज को खराब किया गया. साथ ही, मीडिया उन्हें फंसाने में लगे लोगों को बचाने और उन्हें हीरो के रूप में पेश करने में लगा रहा.

एक तरफ जहां मीडिया आर्यन खान का गुनाह साबित होने से पहले उन्हें गुनाहगार मान कर बैठा था, वहीं उन की रिपोर्टिंग में ख़बरों के नाम पर चौबीसों घंटे लोगों को कूड़ा परोसा जा रहा था. जितने दिन आर्यन जेल में रहे, मीडिया ‘गुप्त स्रोतों’ से भीतरखाने की खबरें लाता रहा. खबरें चलाई गईं कि ‘शाहरुख़ खान के बेटे आर्यन जेल में पारले जी बिस्कुट को पानी में डुबो कर खा रहे हैं, और इस के बाद उन्हें कब्ज की शिकायत भी हो गई है.’ ‘आर्यन खान के चलते गौरी खान और शाहरुख़ खान के झगड़े चल रहे हैं.’ ‘आर्यन खान 4 साल से ड्रग्स लेते रहे हैं, जिस की खबर उन के पेरैंट्स को थी.’

इस तरह की खबरें जानबूझ कर दर्शकों को परोसी गईं और दर्शक भी चटकारे ले कर इन ख़बरों का भोग करते रहे. मीडिया ट्रायल के नाम पर चलाई जा रही खबरों ने न सिर्फ एक युवा के जीवन और उस के कैरियर को तबाह करने की कोशिश की बल्कि आम लोगों को भी भ्रमित करने का काम किया. आर्यन ख़ान के पक्ष में एनसीपी के नेता नवाब मलिक, जो पहले दिन से ही आवाज उठा रहे थे, के औफिस ने भी ट्वीट किया, उन्होंने लिखा, “’अब जबकि आर्यन खान और 5 अन्य लोगों को क्लीन चिट मिल गई है तो क्या एनसीबी समीर वानखेड़े की टीम और उन की निजी सेना के खिलाफ कार्रवाई करेगी? या फिर अपराधियों को बचाने का काम होगा?”

गलती होना और जानबूझ कर गलती करना 2 अलगअलग चीजें हैं. सवाल यह है कि अब जब आर्यन खान निर्दोष साबित हुए हैं तो सिर्फ समीर वानखेड़े ही क्यों, मीडिया पर भी आपराधिक मुकदमा क्यों न चलाया जाए जो जानबूझ कर केस को भ्रमित करता रहा? आखिर मीडिया ट्रायल के नाम पर कब तक मीडिया अपनी बेशर्मी व अपराधों पर परदा डालता रहेगा?

एसएसआर और रिया चक्रवर्ती प्रकरण

यह सिर्फ आर्यन खान का मसला नहीं. पिछले कुछ समय से मीडिया का रवैया ‘मीडिया ट्रायल’ के नाम पर एकतरफ़ा और सांप्रदायिक हो चला है. इस में कोई संदेह नहीं कि शाहरुख़ खान के बेटे को भी इसी चलते रडार पर लिया गया, क्योंकि शाहरुख़ खान उन अभिनेताओं में से रहे हैं जो भाजपा-आरएसएस की पसंद नहीं रहे हैं.

इस के साथ भाजपा के बड़े नेता पहले भी शाहरुख खान को ले कर आपत्ति जता चुके हैं. ऐसे में यह पूरा मामला बौलीवुड को डराने और ‘खानों’ के मान को हानि पहुंचाने का दिखाई देता है. इस के इतर, बौलीवुड में ‘खानों’ के दबदबे को ख़त्म करने और एंटरटेनमैंट को किसी ख़ास सोच में तबदील किए जाने का मसला भी है, जिस के आगे बौलीवुड फिलहाल रोड़ा है.

यही कारण है कि मीडिया के साथ ही, एनसीबी को ले कर केंद्र सरकार की भूमिका पर भी सवाल उठते हैं. इस से पहले सुशांत सिंह राजपूत केस में भी मीडिया ट्रायल और एनसीबी का एजेंडा विवादों में था. रिया चक्रवर्ती का मामला भी महाराष्ट्र का था. पर जानबूझ कर एक केस बिहार में दर्ज करवा कर जांच अपने हाथों में ली गई. मनमाने ढंग से गिरफ़्तारियां की गईं. फिर मीडिया ट्रायल के नाम पर वही खेल शुरू हुआ जो आर्यन खान के मामले में देखने को मिला.

गौर करने वाली बात यह है कि उस दौरान बिहार में चुनाव होने थे और भाजपा व उस का सहयोगी दल जेडीयू कठोर जांच और बिहार प्राइड के नाम पर इस मामले को भुनाने में लगे थे. एसएसआर और रिया चक्रवर्ती प्रकरण को तब तक भुनाया गया जब तक बिहार चुनाव नहीं हो गए. रिया चक्रवर्ती ने सुप्रीम कोर्ट में उस दौरान इस बात का जिक्र भी किया कि उन्हें बिहार चुनाव के मद्देनजर राजनीतिक एजेंडे के तौर पर बलि का बकरा बनाया जा रहा है. वे अपने पर हो रहे मीडिया ट्रायल को ले कर नाखुश थीं.

नाखुश हों भी क्यों न, उन दिनों चैनल हर रोज एक महिला का चीरहरण जो किया करता था. उस के कुछ उदाहरण आप भी देखिए, जैसे एबीपी न्यूज ने अपने खबर में शीर्षक दिया, “रिया का अंडरवर्ल्ड कनैक्शन सामने आया”, “हत्या से पहले मिटाए सुबूत… रिपब्लिक भारत चैनल का शीर्षक- “सुपारी गैंग की साथी है रिया?”, “बेनकाब हो गए रिया के रक्षक”. न्यूज़ 18 का शीर्षक- “रिया का तंत्रमंत्र और तिजोरी”, न्यूज़ 24 का शीर्षक- “इश्क का काला जादू.”

इस मीडिया ट्रायल के नाम पर टीवी चैनल रोज रात को यही सब चीखमचिल्ली करते रहे, फुजूल की गपबाजी में लोगों को मुर्ख बनाते रहे. बाबा, साधुओं और ज्योतिषियों को बैठा कर आरोपप्रत्यारोप करते रहे. रिया चक्रवर्ती की कार का पीछा करना, उन के ड्राइवर, नौकर, गार्ड को रोकरोक कर पूछापाछी करना आदि सामान्य होने लगा. रिया को ‘काला जादू’ करने वाली कहा गया. रिया का दोष साबित होने से पहले उसे दोषी बना दिया गया. यह बात फैलाई गई कि उस ने पैसों के लालच में सुशांत की हत्या की या करवाई और उसे ड्रग्स दिए, अपने यौवन के जाल में फंसा कर सुशांत को फुसलाया, फिर ब्लैकमेल किया.

उस दौरान भी तमाम केंद्रीय एजेंसियां सीबीआई, ईडी, नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) ऐसे सक्रिय हो गई थीं मानो मामले के जर्रेजर्रे का सच सामने ला देंगी. महीनों यह सब चलता रहा. लेकिन हाथ खाली रहे. सवाल यह कि इतने दिन यह सब चलता रहा, लोगों को इन ख़बरों में दिनरात जबरन बांधे रखा गया, आखिर इस से हुआ क्या? क्या सच सामने आया? एसएसआर का क्या हुआ?

किसान आंदोलन और तबलीगी जमात के समय

यह बात किसी से छिपी नहीं रह गई है कि मीडिया के एक बड़े धड़े की भूमिका खुल कर भाजपा समर्थक और सांप्रदायिकता को बढ़ावा देने की बन गई है. इस के लिए वह दिनरात गैरजरूरी मुद्दों को हवा देता है और जन मुद्दों को दबाता है. पिछले साल किसान आंदोलन के शुरू होने पर यह बात किसान समझ चुके थे, तभी उन्होंने मीडिया के कुछ ख़ास समूहों, जिन्हें गोदी मीडिया कहा जाता है, को धरना स्थलों में घुसने पर पाबंदी लगा दी थी. वे जानते थे कि इन्हें घुसने भी दिया जाए तब भी ये उन का पक्ष दिखाएंगे नहीं, उलटा उन्हें ही बदनाम करेंगे, जैसा हुआ भी.

किसान आंदोलन के दौरान किसानों को क्याक्या नहीं कहा गया. सब से पहले उन्हें किसान मानने से ही इनकार किया गया. उन के आंदोलन को कुछ लोगों का ही आंदोलन कहा गया. जैसेजैसे किसानों की संख्या बढ़ती गई वैसेवैसे उन्हें देशद्रोही, खालिस्तानी औए न जाने क्याक्या कहा गया. जब वे बड़ी संख्या में बौर्डरों पर जमा होने लगे तो उन्हें ‘भटके हुए किसान’ कहा गया. सरकार का अड़ियल और जिद्दी रवैया होने के उलट किसानों को जिद्दी और अड़ियल कहा गया. पूरे 1 साल 6 दिन किसानों ने दिल्ली के बौर्डर पर सर्दीगरमीबरसात झेली. जिन के आगे आखिरकार सरकार को झुकना पड़ा. पर जैसे ही सरकार ने नए कृषि कानून वापस लिए वैसे ही किसानों की जीत न कह कर सरकार का उदार और ऐतिहासिक फैसला बताया गया. फिर कृषि कानूनों में वही मीडिया नुक्स निकालता दिखा जो कल तक उन के फायदे गिना रहा था.

मीडिया, खासकर टीवीचैनल, आज जन मुद्दों को सिर्फ दबा ही नहीं रहा, इस का हालिया अतीत दिखाता है कि यह खुल कर सांप्रदायिक भी हो चला है. बढ़चढ़ कर लोगों में उन्माद भरने का काम टीवी चैनलों का हो गया है. कोरोनाकाल में तबलीगी जमात प्रकरण कौन भूल सकता है. सरकारी लापरवाही और प्रवासी मजदूरों के प्रति सरकार की बदइंतजामी को ढंकने के लिए तबलीगी जमात के मुद्दे को उठाया गया. मामले की गंभीरता को समझने की जगह चैनलों ने हिंदूमुसलमान की बहस चलाई. मुसलमानों को कोरोनावाहक कहा गया. हर किसी के मन में एकदूसरे के धर्म को ले कर शंका और डर का वातावरण फैलाया गया. ‘कोरोना जिहाद’, ‘थूक जिहाद’ जैसे कार्यक्रम परोसे गए. देश के माहौल को सांप्रदायिक बनाया गया. इस का असर यह हुआ कि गरीब, ठेलेपटरी वाले पीटे जाने लगे, सरकार की सारी जवाबदेहियां ख़त्म हो गईं, सारा दोष मुसलिमों पर मढ़ा गया.

भावुक दर्शकों को लपेटे में लेते चैनल

‘आर्यन खान ने ड्रग्स ली या नहीं?’ इस सवाल का जवाब आज 7 महीने बाद आ गया है. अब जाहिर है इस जवाब के बाद एनसीबी की साख पहले जैसे नहीं रही, लोगों का भरोसा इस संस्था से जरूर टूटा है. अब सवाल यह कि तकरीबन 7 महीने बाद मिले इस जवाब से आम आदमी को क्या सीखने को मिला? मीडिया ने जिस तरह दर्शकों को महीनों इसी गपबाजी में फंसाए रखा उस से उन्हें क्या हासिल हुआ? सवाल यह भी कि आर्यन खान, रिया चक्रवर्ती, एसएसआर के अनसुलझे या सुलझे जवाब से आम आदमी को क्या हासिल हुआ? कौन सा रोजगार बढ़ा? कितनी महंगाई कम हुई? कितने भूखों को खाना मिला?

हालिया प्रैस फ्रीडम रिपोर्ट बताती है कि भारत का रैंक पिछले साल के मुकाबले 8 अंक और नीचे गिर कर 150 पर पहुंच गया है. यह इसीलिए क्योंकि अधिकतर मीडिया प्लेटफौर्म सरकार की चाटुकारिता कर रहे हैं और जो सचाई बयान कर रहे हैं उन्हें तरहतरह से परेशान किया जा रहा है. क्या यह आंकड़ा नहीं बताता कि हमारी मीडिया किस हद तक कपटी बन चुका है.

आज अधिकतर टीवी चैनल पिछले कई वर्षों से शाम 5 बजे शाम से ले कर रात 10 बजे तक भूल कर भी ऐसा कोई कार्यक्रम नहीं करते जिस में ‘ब्रैंड मोदी’ को जरा सा भी नुकसान पहुंचे. दिनभर का थका, नौकरीपेशा इंसान जब शाम को घर पहुंच कर टीवी खोलता है तो उसे ‘ब्रैंड मोदी’ के गुणगान से ओतप्रोत भक्त प्रजाति के न्यूज चैनल ही देखने को मिलते हैं. उसे अपने काम की खबरें नहीं मिलतीं.

आज आम आदमी अपनी परेशानियों से थका और महंगाई से पिटा अपने काम की ख़बरों के बजाए लगातार एकजैसे कंटैंट को सुनता रहता है. जिस से उस में भक्ति जगे, फिर चाहे वह मोदी के प्रति हो या भगवानों के प्रति. उस के दुख और हताशों को ये चैनल सही मार्गदर्शन देने की जगह दूसरे धर्म के प्रति नफरत और हिंसा के उकसावे से भर रहे हैं. जो लोग गरीबी, बेरोजगारी और महंगाई की मार झेल रहे हैं उन्हें बताया जा रहा है कि धर्म का पालन करो, सच्चे हिंदू यानी कट्टर हिंदू बनो. इस कारण, वह अपनी तकलीफों के कारणों को खुद में सरकारी नीतियों में न ढूंढ कर गैरधर्मियों के वजूद में खोज रहा है.

बीते सभी मामले बताते हैं कि टीवी चैनल बड़ी चालाकी से लोगों के दिमाग पर कब्जा कर लेते हैं, या इसे ऐसा कहना ज्यादा उचित होगा कि सबकुछ जानते हुए हम खुद उन्हें हमारे दिमाग पर कब्जा करने का न्योता देते हैं. वे जनता कि भावुकता का इस्तेमाल करते हैं. हर बार चैनल भ्रम फैलाने वाले मुद्दे उछालते हैं और जनता उसे लपक लेती है. तथ्य यही है कि इतना सब घटित होने के बाद भी हम सोचनेसमझने को तैयार नहीं हैं. वरना, आर्यन खान के बेबुनियाद मामले की जगह गौर तो इस पर भी किया जा सकता था कि जिस दौरान मीडिया पर आर्यन खान मामला तूल पकड़ रहा था, उसी दौरान भाजपा नेता केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्र टेनी की कार से 4 किसानों को लखीमपुर में बेरहमी से कुचला गया, आरोप है कि जिसे उन के बेटे अजय मिश्र टेनी चला रहे थे.

अरबों की ठगी: पिरामिड स्कीमें

भारतीय समाज की बिडंबना ही है कि वह आएदिन ठगों, धोखाखड़ी करने वालों के जाल में फंसता रहता है. शौर्टकट तरीके से करोड़पति बनने का ख़्वाब किस कदर हमें कंगाली की राह पर धकेल देता है, यह जगजाहिर है. ठगी, धोखाधड़ी की घटनाएं आएदिन सामने आती रहती हैं. जनता को जागरूक करने के लिए तमाम प्रयास किए जा रहे हैं लेकिन लालच ऐसी बला है जो आएदिन लोगों को अपने जाल में फंसा लेती है.

हर आम से ले कर खास तक इस बात को अच्छी तरह समझता है कि डेढ़ साल में कोई भी रकम दोगुनी नहीं हो सकती. इस के बाद भी अति महत्त्वाकांक्षा हिलोरे मारने लगती है और जब निवेश के बाद हकीकत का पता चलता है तो निवेशक न घर के रहे पाते हैं, न घाट के.

एक मामले में कुछ लोगों ने एक कंपनी का रजिस्ट्रेशन करवाया. इस कंपनी ने स्कीमों के जरिए लोगों को फंसाना शुरू किया. पहली स्कीम में 6 हजार रुपए के निवेश पर 1,63,800 रुपए, दूसरी स्कीम में 22,920 रुपए के निवेश पर 6 लाख रुपए, तीसरी स्कीम में 1.20 लाख के निवेश पर एक करोड़ 78 लाख रुपए और चौथी स्कीम में 6 लाख के निवेश पर करीब 10 करोड़ रुपए देने का झांसा दिया गया.

सभी स्कीमों में डेढ़ साल के दौरान रकम लौटाने का वादा किया गया था. कंपनी की ओर से निवेशकों को बताया गया कि वे निवेश के पैसे को गोल्ड में लगा रहे हैं और समयसमय पर गोल्ड की कीमतों में तेजी से आ रहे उछाल के कारण वे अपने निवेशकों को इतना पैसा आसानी से दे सकेंगे. इस कंपनी ने अपने कार्यालय विभिन्न शहरों में धड़ाधड़ खोले. कंपनी ने अपना नैटवर्क बैंकौक, दुबई और थाईलैंड में भी बना लिया.

ज्यादा से ज्यादा निवेशकों को अपने जाल में फंसाने के लिए चैन सिस्टम बनाया गया. चैन विकसित करने वाले निवेशकों को अतिरिक्त लाभ देने का भी झांसा दिया गया. कुछ को यह लाभ मिला भी. अपने सहयोगियों व नैटवर्क मार्केटिंग के बड़े लीडरों को अपने साथ जोड़ा. इन लोगों को कंपनी ने उपहार के तौर पर कारें, मकान व अन्य सुविधाएं दीं. कुछ ऐसी कंपनियों के मैनेजर भी इन के साथ जुड़े जो अपने कर्मचारियों को इस कंपनी से जोड़ सकें. इस से लोगों का विश्वास जमता गया.

इतना ही नहीं, कंपनी के एजेंट के रूप में आईपीएस अधिकारी और आरएएस अधिकारी की पत्नी को भी जोड़ लिया. इसी तरह कुछ अन्य अधिकारियों के परिजनों को भी एजेंट के रूप में कंपनी से जोड़ लिया है. करीब 2 साल तक चैन सिस्टम से निवेशकों से निवेश कराए गए. फिर चैन सिस्टम विकसित करने वालों के चेक भी रोक दिए गए.

इस पर कुछ निवेशकों ने कार्यालय पहुंच कर जानकारी चाही तो उन्हें भरोसा दिया गया कि उन का पैसा डूबने नहीं पाएगा. लेकिन एकाएक कंपनी में ताला लग गया. जब यह बात आम निवेशकों तक पहुंची तो वे कंपनी कार्यालयों में पहुंचे. कार्यालयों में कार्यरत कर्मचारी गायब थे और गेटों पर ताले लगे थे. ठगी का शिकार लोगों का कहना है कि वे जब भी रुपए मांगने जाते तो निदेशक जल्दी से क्लोजिंग होने का झांसा दे कर टरका देते.

मामला पुलिस तक पहुंचा तो सही, पर पैसा तो पहले ही गायब हो चुका था. कुछ को गिरफ्तार किया गया. बैंक खाते फ्रीज किए गए. जब पुलिस ने शहरों में स्थित कंपनी के कई मंजिला शोरूमों के ताले खोले तो वहां न ही सोना मिला और न रुपया. न पूरा रिकौर्ड पता चला कि इस कंपनी में निवेश करने वालों में मामूली लोग ही नहीं, बल्कि कुछ बड़े वरिष्ठ पुलिस व प्रशासनिक अधिकारी भी शामिल हैं. यह बात सामने आई कि कंपनी के डायरैक्टर बैंकौक भाग गए.

कंपनी संचालकों ने जमीनों में भी पैसा निवेश किया था. उन्होंने कई स्थानों पर बेनामी फौर्महाउस व कोठियां खरीदीं. यह भी जानकारी सामने आई कि करीब 225 लोगों के बीच 54.96 करोड़ रुपए कमीशन के रूप में बांटे गए. कंपनी की ओर से 5 लाख से अधिक रुपए तक का कमीशन दिया गया. मोटा कमीशन मिलने के एवज में लोगों ने ज्यादा से ज्यादा निवेश करने के लिए आम लोगों को उकसाया. 8 एजेंटों को निवेश कराने के एवज में एक करोड़ रुपए कमीशन के रूप में दिया गया. जाहिर सी बात है कि जब लोगों को यह समझाया गया कि जितना अधिक निवेश होगा, उतना ही अधिक कमीशन मिलेगा तो लोग ज्यादा निवेश कराते रहे.

एक और कंपनी ने इसी तरह की ठगी की. कंपनी ने 11 माह में 1780 लोगों को कंपनी का सदस्य बनाकर करीब ढ़ाई करोड़ रुपए की ठगी कर ली.इसी तरह चैन सिस्टम के तहत राजधानी में एक कंपनी के ठिकानों पर भी पुलिस ने छापेमारी की. लोगों की शिकायत पर मुकदमा दर्ज किया और जांच की गई पर निकला कुछ नहीं. इन सभी कंपनियों में एजेंटों के संचालक मोटे कमीशन के लालच में वे निवेशकों को झांसा देते रहे और कंपनी में निवेश करवाते रहे.

 दुनियाभर में हैं इन के नैटवर्क

मल्टीलैवल मार्केटिंग (एमएलएम) बिजनैस दुनिया में तकरीबन 100 से ज्यादा देशों में चल रहा है. अमेरिका में भी इस पर कोई रोक नहीं है लेकिन वहां फैडरल ट्रेड कमीशन ने स्पष्ट कर रखा है. सभी मल्टीलैवल मार्केटिंग कंपनियां वैध नहीं होतीं. कुछ पिरामिड स्कीम होती हैं. जब आप की आय प्रमुख तौर पर आप द्वारा जोड़े गए सदस्यों और उन्हें बेचे गए प्रोडक्ट पर निर्भर करती है तो यह ठीक नहीं है.

अगर स्कीम के बाहर भी आप प्रोडक्ट बेच कर कमाने के लिए स्वतंत्र हैं तो ही वह कंपनी सैद्धांतिक तौर पर सही एमएलएम कहलाएगी. इसी तरह बंगलादेश में भी कई एमएलएम कंपनियां लाखों लोगों के हजारों करोड़ रुपए ठग कर रफूचक्कर हो चुकी हैं. फिलहाल वहां सरकार जांच में जुटी है.

दिखावे सपने

गोल्ड सुख कंपनी ने निवेशकों को लुभाने के लिए कई हसीन सपने दिखाए. इस कंपनी से जुड़े लोग निवेशकों को लुभाने के लिए काफी आकर्षक ब्रोशर व पंपलेट पेश करते थे. कंपनी के रंगारंग ब्रोशरों में अलीशान कोठियों के फोटो छापे गए थे जिस में कहा गया कि यदि निवेशक खुद के साथ ही दूसरे लोगों को भी निवेश करवाता है तो उसे इन कोठियों में रहने का मौका मिलेगा.

इसी तरह कंपनी के सदस्य बनते ही केरल, गोवा, स्विटजरलैंड  के उन रिजौर्ट्स में रहने का मौका मिलेगा जिन के फोटो इन ब्रोशर्स में छपे हैं. ब्रोशर में कई ऐसे प्रमाणपत्र भी छापे गए थे जिन के जरिए कंपनी के रजिस्टर्ड होने एवं विभिन्न विदेशी संस्थाओं से जुड़े होने की जानकारी मिलती थी. निवेशकों को लुभाने के लिए कंपनी संचालकों ने कई स्थानों पर गोल्ड शोरूम भी खोले. कंपनी का प्रचारप्रसार बहुत ही व्यापक स्तर पर किया गया. विभिन्न स्थानों पर होर्डिंग लगाने के साथ ही एक अखबार भी निकाला गया.

इस के अलावा, अखबार को वैबसाइट के जरिए भी लौंच किया गया. इतना ही नहीं, इस कंपनी ने यह भी बताया कि उस के विदेशों में भी रिजौर्ट व शोरूम हैं. यही वजह थी कि निवेशक आसानी से इस कंपनी से जुड़े लोगों की बात पर विश्वास कर लेते.

एक के बाद एक खुले मामले

भारत में ऐमवे कंपनी ने खूब नाम कमाया, खूब लोगों को भरमाया, पिरामिड स्कीम में लोगों को शहरों की सैर कराई, एजेंटों को पैसा दिया. आज इस के 57 करोड़ रुपयों के घपले की जांच हो रही है पर कुछ निकलेगा नहीं. 2011 से कंपनी की हरकतें जांच एजेंसियों की नजरों में थीं पर अभी भी कोई अंतिम फैसला नहीं हुआ है. लाखों लोग अपनी मेहनत की कमाई खो चुके हैं.

मार्च 2022 में आंध्र प्रदेश की एक कंपनी अक्षय गोल्ड फर्म्स विलाज इंडिया लिमिटेड ने कम से कम 857 करोड़ रुपए इस तरह के धोखे से जमा कर लिए थे और जब भंडा फोड़ हुआ तो मुश्किल से 260 करोड़ की संपत्तियां मिलीं जिन्हें बेचने में और मिलने वाले पैसे को बांटने में न जाने कितने और धोखे होंगे. 20 लाख लोग पूजापाठ के तरीके तो जानते थे पर वे इन ठगों को नहीं जान पाए.

निवेश से पहले निवेशक बरतें सावधानी

इस तरह के मामले सामने आने के बाद हर निवेशक के मन में एक शंका पैदा हो जाती है. फिर भी निवेशक जरा से लालच में निवेश करने लगते हैं. औरतें इस का ज्यादा शिकार होती हैं क्योंकि वे पति से छिपा कर रखे पैसे को लगाती हैं.

  • यदि आप के पास कोई भी व्यक्ति आकर्षक स्कीम ले कर आता है और वह अपनी कंपनी का सदस्य बनाना चाहता है तो प्रलोभन के बजाय स्कीम की व्यावहारिकता का ध्यान रखें. सौ से डेढ़ सौ गुना तक लाभ अल्प समय में मिलना संभव नहीं है. इस की विश्वसनीयता की बारीकी से जानकारी हासिल करें.
  • इस बात का ध्यान रखें कि संबंधित कंपनी रिजर्व बैंक के एनबीएफसी डिवीजन में पंजीकृत है या नहीं. बिना पंजीयन वाली कंपनी में कभी भी निवेश न करें. वैसे, यह जानकारी अच्छेअच्छे लोग नहीं जुटा सकते.
  • कंपनी यदि भारतीय मानक ब्यूरो या ऐसी कोई अन्य संस्था से प्रमाणपत्र प्राप्त करने का दावा करती है तो इस के बारे में विस्तृत जानकारी हासिल कर लें. पंजीयन नंबर का ब्यूरो से मिलान करने के बाद ही निवेश करें. इस के लिए लो पृष्ठभूमि की जानकारी होनी चाहिए. वह उन में बिलकुल नहीं होती जो बचपन से चमत्कारों में विश्वास करते हैं. चमत्कारों की कहानियां धर्मग्रंथों में भरी हैं.

लाउडस्पीकर पर रार

उत्तर प्रदेश की सरकार ने लाउडस्पीकरों के नियमों को न मानने की वजह से 10,900 लाउडस्पीकर हटवा दिए हैं जो आबादी को नाहक परेशान करते थे.

वैसे तो इस का मकसद मसजिदों से लाउडस्पीकर हटाना था जहां से अजान कही जाती थी पर देश में अभी इतना लोकतंत्र बचा हुआ है कि वहां मंदिरों से भी लाउडस्पीकरों को हटाया गया है. जैसे रूस-यूक्रेन युद्ध में रूस की आर्थिक नाकाबंदी करने के लिए उस के विदेशी लेनदेन बंद कर देने से यूरोप को गैस का संकट ?ोलना पड़ रहा है वैसे ही मसजिदों के लाउडस्पीकर उतरवाने के चक्कर में मंदिरों और गुरुद्वारों के लाउडस्पीकर भी ‘फिलहाल’ उतरवा दिए गए हैं.

‘फिलहाल’ शब्द बहुत जरूरी है क्योंकि धर्म के दुकानदार अपना प्रचार किसी भी हालत में कम नहीं होने देंगे और उन के लिए इस नियम को तोड़मरोड़ कर फिर लागू कर दिया जाएगा. पुलिस की इजाजत के नाम से मंदिरों और गुरुद्वारों को, विशेष अवसरों की आड़ में, 100-200 दिन की इजाजत मिल ही जाएगी लेकिन मसजिदों को किसी भी हालत में ऐसी इजाजत नहीं दी जाएगी.

लाउडस्पीकर धर्म के धंधे का पहला हथियार है. हर प्रवाचक आजकल बढि़या साउंड सिस्टम लगवाता है ताकि उस की कर्कश आवाज भी मधुर हो कर देश के कोनेकोने में पहुंच जाए. कनफोड़ू लाउडस्पीकरों की जरूरत इसलिए

होती है क्योंकि पूजापाठ के ?ाठे फायदों को घरघर पहुंचाया जाए और भक्तों की गिनती बढ़ाई भी जाए व उन से उन की जेबें भी खाली कराई जा सकें.

हनुमान चालीसा के पाठ का जो नया शिगूफा भारतीय जनता पार्टी ने शुरू किया है वह लाउडस्पीकरों पर ही तो आधारित

है. लाउडस्पीकर न हो तो चाहे जितनी रामायण, महाभारत, हनुमान चालीसा, आरतियां गाइए, जनता को फर्क नहीं पड़ेगा. जिस युग में लाउडस्पीकर नहीं थे, उस में धर्म के दुकानदार आमतौर पर फटेहाल ही होते थे क्योंकि खुले मैदान में अपनी कपोलकल्पित कहानी 10-20 लोगों को ही सुनाई जा सकती थी. लाखों की भीड़ के लिए तो लाउडस्पीकर चाहिए ही.

धर्म का धंधा एकतरफा बात के आधार पर चलता है जिस में आप कहें लेकिन सुनने वाला न सवाल पूछे, न अपनी बात कहे और न ही आप की बात को काट सके. लाउडस्पीकर के युग में तर्क और तथ्य की बात बंद करना बहुत ही आसान है.

उत्तर प्रदेश सरकार को अभी तो मुसलिम समाज को संदेश देना था, जो उस ने दे दिया. भविष्य में वह मंदिरों और गुरुद्वारों से कैसे निबटती है, देखना होगा. यह मुसीबत सारे देश की है और सारे देशवासियों की है जो धर्मप्रचारकों के लाउडस्पीकरों के सामने चुप रहने को मजबूर रहते हैं.

धार्मिक पोलपट्टी यानी देशद्रोह

जब से भारतीय जनता पार्टी की सरकार देश में आई है, देशद्रोह गंभीर हो गया है. जहां 2014 में 30 मामलों में 73 लोगों को देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किया गया और सींखचों के पीछे डाल दिया गया वहां 2019 तक यह संख्या बढ़ कर

93 मामले और 98 गिरफ्तारियां हो गई. वर्ष 2020 व 2021 में कोविड महामारी के कारण सरकार उस में विशेष व्यस्त रही पर गिरफ्तार, आमतौर पर, बिना जमानत के जेलों में रहे.

देशद्रोह का मतलब होता है देश के प्रति कुछ ऐसा करना जिस से देश के अस्तित्व को आंच आए और उस के टुकड़े होने की आशंका हो, पर असल में आज देशद्रोही, नई परिभाषा के अनुसार, हर वह हो गया है जो पौराणिक हिंदू मान्यताओं के आगे सिर न ?ाकाए और भेदियों के साथ राजाओं के आगे सिर ?ाका कर न चले.

देश की जनता को यह पाठ पढ़ा दिया गया है कि देश के शासक, उस का ज्ञान, उस का इतिहास, उस की गरिमा इतनी महान है कि उस के बारे में किसी तरह का तर्क, तथ्य या प्रश्न करना सीधा धर्म और देश के विरुद्ध विद्रोह है और प्रश्न करने वालों को जेल में डाल देना सही है चाहे उन की संख्या कितनी भी हो. देश की जनता के एक हिस्से का विश्वास है कि देश की 80 फीसदी जनता देशद्रोही है, जी हां, दोतिहाई से ज्यादा. और, वे ही देशभक्त हैं जो ‘यह जय वह जय…’ के नारे सुबह, दोपहर, शाम, रात को लगाते हों. सरकार ने तो यह नीति बनाई और जनता के प्रभावशाली वर्ग को यह इतनी भाई कि उस ने तुरंत इसे लपक लिया और वह पैसा मिलने या न मिलने पर भी इस दुष्प्रचार को फैलाने में लग गया.

देशभर में समाचारपत्र, टीवी चैनल, ट्विटर, फेसबुक, व्हाट्सऐप ग्रुप देशद्रोहियों के प्रचार से भर गए हैं. इस का परिणाम यह हुआ कि देश में सामाजिक सुधार बंद ही नहीं हुए, उलटे, पुरातन विचार फिर से कैक्टसों की तरह पनपने लगे हैं. देश जातियों में बंटने लगा है. हर जाति अपना ?ांडा ले कर खड़ी हो गई है. हरेक ने अपने देवीदेवता ढूंढ़ लिए हैं. विवाह, प्रेम अपनी ही जाति में होंगे क्योंकि हर जाति अपने त्योहार अपने प्राचीन तरीकों से मनाएगी.

देशद्रोह यह सब था और है. जिन्होंने अलग जातियों, संप्रदायों, देवीदेवताओं, जातियों, उपजातियों, नामों के आगे जाति लगाई वे देशद्रोही हैं. जो एक की मूर्तिपूजा कर दूसरे को अपना विरोधी मानते हैं, वे देशद्रोही हैं, पर देशद्रोह का आरोप उन पर लगाया जा रहा है जो यह बता रहे हैं कि कैसे सत्ता व प्रभाव में बने रहने के लिए लगातार देशद्रोह के कानून, भारतीय दंडसंहिता की धारा 124 ए के साथ दूसरी धाराओं व दूसरे कानूनों की धाराओं को मिला कर सुधारकों का मुंह बंद किया जा रहा है.

अभी यह मामला सुप्रीम कोर्ट में है. लेकिन जब जनता का दोतिहाई हिस्सा गद्दार माना जाए, तो आप क्या कहेंगे, क्या करेंगे आप.

यूके्रन, यूक्रेनी और जेलेंस्की

रूस-यूक्रेन युद्ध एक छोटे देश के अस्तित्व की लड़ाई का ही मामला नहीं है, इस का व्यापक असर हर समाज पर पड़ेगा जैसे द्वितीय विश्व युद्ध का पड़ा था. यह लड़ाई एक छोटे देश के एक विशाल देश की फौज के सामने खड़े होने की हिम्मत की है. इस का संदेश यह है कि हर देश का नागरिक अगर अपनी सही बात को मनवाना चाहता है या अपने हकों की रक्षा करना चाहता है तो उसे तन कर, सबकुछ जोखिम में डाल कर अड़ जाना चाहिए.

यूक्रेन यदि 20 मार्च को सरैंडर कर देता और कहता कि यह तो उस का भाग्य है तो रूस अब तक वहां की सरकार बदल चुका होता और उस के टैंक लिथुआनिया, कजाखिस्तान, किर्गिस्तान की ओर बढ़ रहे होते. यूक्रेन की जनता के घर बचे होते, 50-60 लाख लोग देश छोड़ कर पनाह न ले रहे होते. लेकिन एक यूक्रेन विशाल जेल में बदल चुका होता जिस के साढ़े 4 करोड़ निवासी 9 लाख की रूसी सेना के गुलाम होते.

हमारे अपने देश में क्या होता रहा है. हर संघर्ष में हर हक के लिए हमें यही पाठ पढ़ाया गया है कि आप को वही मिलेगा जो आप के भाग्य में है. गीता बारबार यही कहती है कि हर पल आप का पूर्व निर्धारित है. आप जो चाहे कर लें, आप का वर्तमान तो आप के पिछले जन्म के कर्मों से बनता है.

हमारी आज की सरकार हर मौके पर कांग्रेस को कोसती है कि उस के कर्मों के फल भारतीय जनता पार्टी की सरकार को भोगने पड़ रहे हैं. व्लोदीमीर जेलेंस्की ने न इतिहास का नाम लिया, न ईश्वर का. उन्होंने सिर्फ कहा कि हमें अपनी स्वतंत्रता की रक्षा करनी है जान पर खेल कर. काफी कम साधन होने पर भी वे रूस से भिड़ गए. पूरा देश उन के पीछे हो गया. कुछ ही दिनों में पूरा यूरोप और अमेरिका उन के समर्थन में खड़े हो गए.

यूक्रेन को तुरंत सैनिक, शस्त्र मिलने लगे, खाना, दवाइयां मिलने लगीं. रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लग गए. लोकतंत्र की रक्षा यानी हर नागरिक के हकों की रक्षा तभी हो सकती है जब अपने हकों के लिए खड़ा होने का जोखिम लिया जाए और यह पाठ जेलेंस्की ने विश्व को पढ़ा दिया.

रूस-यूक्रेन युद्ध ने यह भी जता दिया है कि यूके्रनियों ने भी पश्चिमी देश, जो उत्पादन करते हैं, नारेबाजी नहीं, जो व्यक्ति के हकों का सम्मान करते हैं, तानाशाही का नहीं, जो अपने यहां विविधता अपनाते हुए और्थोडौक्स क्रिश्चियन होते हुए भी एक ज्यू को राष्ट्रपति बनाने की हिम्मत रखते हैं, वे अकेले के हकों का लाभ जानते हैं, जो समाज अपने चर्च के लिए नहीं बल्कि अपने लोकतांत्रिक हकों के लिए जान जोखिम में डालते हैं, उन्हें किसी से भी डरने की जरूरत नहीं.

यूक्रेन में चर्चों में घंटे नहीं बजे, पादरियों के प्रवचन नहीं हुए, चर्च को दान देना शुरू नहीं हुआ. वहां सब ने मिल कर विशाल रूस से दोदो हाथ करने का फैसला किया और हर सड़क को रोका गया, हर घर में बमों को बनाने की फैक्ट्री बना डाला गया. हर टैंक को मोलोटोव कौकटेल  या शराब की जलती बोतल का सामना करना पड़ा. शहर तहसनहस हो गए हैं पर यूक्रेनियों का दमखम पचासों मंजिल और ऊंचा हो गया है.

यूक्रेन जीते या हारे, रूस को एक सबक मिल गया है. रूसियों को यूक्रेन पर आक्रमण की उसी तरह बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी जैसे अफगानिस्तान की जनता को कट्टरपंथी इसलामी तालिबानी शासकों को घर में और सिर पर बैठाने की पड़ रही है.

रूसी अपने धार्मिक, राजनीतिक तानाशाह के मनमाने फैसले का दुष्फल भोगेंगे जैसे अफगान (और उस जैसे दूसरे कई देशों के निवासी) अपने धार्मिक तानाशाहों के कुकर्म के फल भोग रहे हैं. फल पिछले जन्म के कर्मों से नहीं, इसी जन्म के कर्मों से मिलता है. यूक्रेन का यह पाठ सम?ा लें.

प्रेमी जोड़ों की शादी

पुलिस वालों से शादी तुड़वाने का काम तो बहुत आसान व आम दिखता है पर अब पुलिस युवाओं की बढ़ती आत्महत्याओं के मामलों से चिंतित हो कर अपनी तरह जांचपड़ताल कर उन की शादी करा रही है. आमतौर पर प्रेमी जोड़ों को शादी करने की इजाजत जाति, उपजाति, धर्म, पैसे, रसूख, औकात के कारणों में से एक या ज्यादा रहे कारणों से नहीं दी जाती.

पुलिस वाले अगर वयस्क जोड़े को सुरक्षा दे दें तो वे अपनेआप शादी कर लें. होता क्या है कि जैसे ही लड़की शादी के लिए भागी नहीं कि मातापिता लड़के पर अपहरण जैसा गंभीर आरोप लगा देते हैं. पुलिस वाले लड़के के मांबाप, दोस्तों को गिरफ्तार कर लेते हैं कि वे अपहरण के अपराध में सा?ादार हैं.

जेल में बंद न होने के डर से बहुत से जोड़े मातापिता की ओर से इनकार किए जाने पर भागते नहीं, आत्महत्या करने का फैसला कर लेते हैं. वे जानते हैं कि न पुलिस उन्हें सुरक्षा देगी और न समाज अपनाएगा.

आजकल प्रेमी जोड़ों को व्यावहारिकता की भी सम?ा आ गई है. प्रेम कर लेना तो आसान है पर जब तक लड़के या लड़की के पिता के घर में रहने को जगह न मिले, नए जोड़े के पास इतने पैसे भी नहीं होंगे कि वे किराए पर अपना घर बसा सकें. वैसे भी, मकान मालिक अब पुलिस के चक्करों में फंसने के डर से भागे हुए,

चाहे शादीशुदा ही क्यों न हों, जोड़ों को घर देने से हिचकिचाते हैं. इसलिए पुलिस ने अगर शादियां करवानी शुरू कीं तो यह अच्छा होगा. हां, पंडित जरूर बेचैन हो उठेंगे कि उन की रोजीरोटी का क्या होगा.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें