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Manohar Kahaniya: खूनी हुई जज की बेटी की मोहब्बत- भाग 1

15जून, 2022 को चंडीगढ़ सेक्टर-30 स्थित सीबीआई के औफिस में असिस्टेंट प्रोफेसर कल्याणी सिंह को तलब किया गया था. 7 साल पहले 20 सितंबर, 2015 को नैशनल शूटर और पेशेवर वकील सुखमनप्रीत सिंह उर्फ सिप्पी सिद्धू की हत्या में उन से कुछ सवाल किए जाने थे.

घटना की जांच कर रहे सीबीआई के डीएसपी आर.एल. यादव की सूचना पाते ही कल्याणी सिंह दोपहर के वक्त सीबीआई औफिस पहुंची. वह अकेले ही वहां गई थी. डीएसपी यादव अपने औफिस में अकेले बैठे थे और बेसब्री से कल्याणी के आने का इंतजार कर रहे थे.

कल्याणी सिंह को जैसे ही अपने औफिस में प्रवेश करते देखा, उन के चेहरे पर एक अजीब सी मुसकान थिरक उठी थी जैसे उन्होंने किसी यक्षप्रश्न का जवाब दे कर विजय प्राप्त कर ली हो. डीएसपी यादव ने सामने खाली पड़ी कुरसी पर कल्याणी को बैठने का इशारा किया.

‘‘हां, तो मिस कल्याणीजी, आप ठंडा या गरम दोनों में से क्या लेना पसंद करेंगी?’’ डीएसपी आर.एल. यादव ने औपचारिकतावश पूछा.

‘‘नो थैंक्स सर, न मुझे ठंडा चाहिए और न ही गरम. मुझे बताया जाए, मुझे यहां क्यों बुलाया गया है?’’ कल्याणी थोड़ी तल्ख लहजे में बोली.

‘‘चलिए कोई बात नहीं, ठंडा या गरम कुछ भी नहीं लेंगी आप की मरजी. मुझे घुमाफिरा कर बात करने की आदत नहीं है सो सीधे मुद्दे की बात करते हैं.’’

‘‘जी बताएं, मुद्दा क्या है?’’ कल्याणी ने पूछा.

‘‘मुद्दा ये है कि आप को सुखमनप्रीत सिंह की हत्या के जुर्म में गिरफ्तार किया जाता है. 7 सालों से आप ने…’’ डीएसपी यादव के सुर अचानक से तल्ख हो गए, ‘‘आप ने पुलिस और कानून को बहुत छकाया है. सारे सबूत आप के खिलाफ हैं, इसलिए आप को सरकारी मेहमान बनाए जाने से अब कोई नहीं रोक सकता. इस वक्त आप सीबीआई की हिरासत में हो.’’

डीएसपी यादव का इतना कहना था कि कल्याणी सिंह के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं. पलभर के लिए उस की आंखों के सामने अंधेरा छा गया था. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे.

कल्याणी के गिरफ्तार होते ही यह खबर मीडिया तक पहुंच गई. कल्याणी सिंह कोई मामूली शख्सियत नहीं थी. वह हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट की एक जज की बेटी थी और खुद भी एक कालेज में असिस्टेंट प्रोफेसर थी.

मीडिया में खबर फैलते ही मीडियाकर्मी सीबीआई औफिस के बाहर जमा होने लगे. यह खबर भी मीडिया में फैल गई कि नैशनल  लेवल के शूटर रहे सिप्पी सिद्धू की हत्या के आरोप में कल्याणी सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया है.

उसी दिन कल्याणी को कस्टडी में ले कर सीबीआई कोर्ट में पेश किया गया और पूछताछ के लिए 2 दिन की रिमांड पर ले लिया.

सीबीआई जब तक अपनी कानूनी काररवाई करने में जुटी हुई है,तब तक हम अपने पाठकों को सिप्पी और कल्याणी के जीवन के अतीत में ले चलते हैं, जहां दोनों का बचपन साथसाथ बीता. साथसाथ जवान हुए. बचपन की दोस्ती प्यार में बदल गई. दोनों एकदूसरे को चाहने लगे. शादी भी करना चाहते थे.

फिर दोनों के बीच ऐसा क्या हुआ कि प्रेमिका ही प्रेमी की कातिल करार दी गई? जिसे सुलझाने में सीबीआई को 7 साल लग गए और कातिलों को पकड़ने के लिए सीबीआई को 10 लाख रुपए का ईनाम भी घोषित करना पड़ा. तो आइए, पढ़ते हैं इस दिलचस्प मर्डर मिस्ट्री को, जो फिजाओं में तैरती हुई ऐसे सामने आई—

पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के पूर्व जस्टिस एस.एस. सिद्धू के पोते और एडिशनल एडवोकेट जनरल इंद्रपाल सिंह के बेटे के रूप में जन्म लिया सिप्पी सिद्धू ने, जिन का कागजों में नाम सुखमनप्रीत सिंह था. बाद में इंद्रपाल सिंह के घर में एक और बेटे ने जन्म लिया जिस का नाम जिप्पी उर्फ जसमनप्रीत सिंह रखा गया.

एक कहावत है पूत के पांव पालने में दिख जाते हैं, कुछ ऐसा ही सिप्पी के साथ भी हुआ. विलक्षण प्रतिभा के धनी सिप्पी को पढ़ाई के साथसाथ निशानेबाजी का भी शौक था. जैसेजैसे वह बड़ा होता गया, उस का निशानेबाजी का शौक सिर चढ़ कर बोलने लगा.

बेटे की निशानेबाजी के प्रति गहरी दिलचस्पी देख मां दीपइंद्र कौर और पिता इंद्रपाल सिंह ने उसे एक कुशल शूटर बनने में पूरी मदद की.

हाईप्रोफाइल परिवार से हैं दोनों

मोहाली के फेज-3बी/2 की जिस कोठी में इंद्रपाल सिंह अपने परिवार के साथ रहते थे, उसी फेज में सबीना भी रहती थीं. वह हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट में जज थीं. वह उन की पड़ोसन थीं.

सबीना सिंह के घर में कल्याणी सिंह एकलौती संतान थी. वही उन की आंखों का नूर और बुढ़ापे की लाठी थी. बड़े लाड़प्यार से पालपोस कर उन्होंने उसे बड़ा किया था.

देखा जाए तो दोनों ही परिवार हाई सोसायटी और उच्चशिक्षित थे. दोनों घरों में संस्कार की गंगा बहती थी. दोनों परिवारों के बच्चे यानी सिप्पी और कल्याणी ने अच्छी शिक्षा हासिल की.

कल्याणी और सिप्पी का गहराता गया प्यार

कल्याणी और सिप्पी का बचपन एक साथ बीता. एक ही स्कूल में दोनों पढ़े. साथसाथ खेलेकूदे और बड़े भी हुए. बचपन से ही दोनों एकदूसरे के दोस्त थे. जैसेजैसे वे बड़े होते गए, वैसेवैसे उन की यह दोस्ती प्यार में बदलती गई. सिप्पी और कल्याणी एकदूसरे को पसंद करने लगे थे और शादी भी करना चाहते थे.

चूंकि 30 सालों से दोनों परिवार एकदूसरे को अच्छी तरह जानते थे, दोनों ही समाज में हैसियत वाले थे तो उन्हें बच्चों की खुशियों से कोई शिकायत नहीं थी, बल्कि इंद्रपाल सिंह तो कल्याणी को अपने घर की बहू बनाने को रजामंद हो गए थे.

उस दिन से सिप्पी और कल्याणी का प्यार और भी गहराता गया. सामाजिक दायरे में रहते हुए दोनों जहां घूमनेफिरने का मन होता था, मांबाप से इजाजत ले कर चले जाते थे. उन्हें परिवार का कोई सदस्य रोकताटोकता नहीं था क्योंकि सभी जानते थे कि दोनों की जल्द ही शादी होने वाली है.

सिप्पी और कल्याणी एकदूसरे को जीवनसाथी के रूप में चुन कर बड़े खुश थे और जन्मजन्मांतर तक ऐसे ही एकदूसरे का साथ पाने की कसमें खाते थे.

लेकिन नियति को कौन टाल सकता है. सिप्पी और कल्याणी के साथ भी कुछ ऐसा हुआ, जिस की कल्पना उन्होंने सपने में भी नहीं की थी.

बात 7 साल पहले 20 सितंबर, 2015 की है. शाम हो रही थी. घर में मां दीपइंद्र कौर, सिप्पी और उस का छोटा भाई जिप्पी थे. पिता की किसी अज्ञात बीमारी से मौत हो चुकी थी.

उस समय सिप्पी छोटे बच्चे की तरह गोद में सिर छिपाए कनाडा की बातें कर रहा था, जहां से 2 दिन पहले ही शूटिंग कर के लौटा था. जिप्पी भी वहीं पास बैठा भाई की दिलचस्प बातें सुन रहा था. उसी समय सिप्पी के मोबाइल फोन पर एक काल आई.

मोबाइल स्क्रीन पर उभरे नंबर को सिप्पी ने बड़े ध्यान से देखा. वह एक अज्ञात नंबर था. उस ने काल रिसीव की और वहां से उठ कर घर से बाहर निकलते हुए मां से कहा, ‘‘एक जरूरी काल आई है. बाहर कोई मेरा इंतजार कर रहा है. उस से मिल कर आता हूं.’’

सिप्पी को घर से निकले घंटों बीत गए थे लेकिन न तो वह खुद लौटा और न ही काल कर के घर वालों को कुछ बताया. जब रात काफी गहरा गई तो मां और छोटे भाई जिप्पी को उस की चिंता हुई.

हैरत तो इस बात की थी कि उस का फोन भी नहीं लग रहा था. काल करने पर बारबार स्विच्ड औफ आ रहा था.

जिप्पी भाई के परिचितों और दोस्तों को फोन करने लगा तो पता चला कि वह उन में से किसी के वहां नहीं गया था.

बात चिंता की थी. आखिर सिप्पी अचानक कहां गायब हो गया. बेटे को ले कर बूढ़ी मां की घबराहट बढ़ती जा रही थी. उस रात ही उन्होंने गुरुद्वारे जा कर मत्था टेका और वाहेगुरु से बेटे की सलामती की दुआ मांगी.

उसी रात करीब 2 बजे सेक्टर-26 थाने, जो राजधानी चंडीगढ़ में पड़ता है, की इंसपेक्टर पूनम दिलावरी ने सिप्पी के घर वालों को फोन कर के सूचना दी कि आप के बेटे का एक्सीडेंट हुआ है. वह चंडीगढ़ के जिला अस्पताल में भरती है. आ कर तुरंत मिल लें.

पुलिस के फोन ने बढ़ा दी बेचैनी

पुलिस को यह नंबर सिप्पी की जेब में पडे़ एक परिचयपत्र के जरिए मिला था. इसी कार्ड से उस का नाम और पता भी ज्ञात हुआ था.

इतनी रात गए पुलिस का फोन आने से मांबेटे घबरा गए. वे उसी रात जिला अस्पताल पहुंचे, जहां इंसपेक्टर ने उन्हें पहुंचने के लिए कहा था. रास्ते भर दीपइंद्र कौर प्रार्थना करती रहीं कि उन का बेटा कुशल से हो.

जिप्पी तेज स्पीड से कार चला रहा था. लगभग आधा घंटे बाद वे जिला अस्पताल पहुंच गए. अस्पताल के बाहर बड़ी संख्या में पुलिस वालों को देख कर वे घबरा गए. वे समझ नहीं पाए कि यहां इतनी पुलिस क्यों है. कोई बात तो नहीं हुई.

खैर, अस्पताल के गेट पर ही इंसपेक्टर पूनम दिलावरी से दोनों की मुलाकात हो गई. वह उन्हीं के इंतजार में थीं. पूनम दिलावरी ने दीपइंद्र कौर को बताया, ‘‘मुझे दुख है कि आप का बेटा अब इस दुनिया में नहीं रहा. किसी ने रात में गोली मार कर उस की हत्या कर दी थी. उस की खून से सनी लाश चंडीगढ़ सेक्टर-27 के नेबरहुड पार्क के पास मिली थी. बात ऐसी थी, इसलिए मुझे आप से झूठ बोलना पड़ा.’’

राष्ट्रीय स्तर का शूटर था सिप्पी सिद्धू

बेटे की हत्या की बात सुनते ही दीपइंद्र कौर पछाड़ खा कर गिर गईं. उन्हें बेटे जिप्पी और अन्य पुलिसकर्मियों ने संभाला. पुलिस से ही पता चला कि उसे 4 गोलियां मारी गई थीं. घटनास्थल से पुलिस ने आईफोन बरामद किया, जिसे अपने में ले लिया था.

पुलिस ने आवश्यक काररवाई कर सिद्धू की लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी थी. इस के बाद मृतक के छोटे भाई जिप्पी सिद्धू से एक लिखित तहरीर ले कर अज्ञात हत्यारों के खिलाफ हत्या और आर्म्स एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कर जांच शुरू कर दी. यह सारी काररवाई 20/21 सितंबर, 2015 की सुबह होतेहोते पूरी कर ली गई थी.

35 वर्षीय सिप्पी सिद्धू कोई मामूली शख्सियत नहीं था. वह राष्ट्रीय स्तर का शूटर और एक जानामाना वकील था. अपनी अचूक निशानेबाजी से उस ने कई मैडल जीत कर खानदान का नाम रौशन किया था. यही नहीं उस के दादा एस.एस. सिद्धू एक जस्टिस थे तो पिता इंद्रपाल सिंह पंजाब के एडिशनल एडवोकेट जनरल रह चुके थे.

अगली सुबह जैसे ही सिप्पी की हत्या की खबर फैली, पंजाब और हरियाणा में शोक की लहर दौड़ पड़ी थी. सिप्पी के प्रशंसकों ने मोहाली और चंडीगढ़ में तोड़फोड़ शुरू कर दी थी. इसी बात से चंडीगढ़ पुलिस डर रही थी. सिप्पी के हत्यारों की जल्द से जल्द गिरफ्तारी को ले कर कई दिनों तक चले उग्र आंदोलन में तब विराम लगा, जब जिले के वरिष्ठ अधिकारियों ने आंदोलनकारियों को सिप्पी के हत्यारों को जल्द से जल्द गिरफ्तार कर लेने का आश्वासन दिया.

नैशनल शूटर सिप्पी सिद्धू के घर वालों के बयानों के आधार पर हत्याकांड की जांच कर रही पुलिस के निशाने पर हाईकोर्ट की जज सबीना सिंह की बेटी कल्याणी सिंह आई. सिप्पी के घर वालों का आरोप था कि सिप्पी और कल्याणी एकदूसरे से प्यार करते थे और शादी भी करना चाहते थे लेकिन सिप्पी के शादी से इंकार करने की वजह से कल्याणी ने उस की हत्या करवा दी.

सिप्पी की मां दीपइंद्र कौर ने जांच अधिकारी पूनम दिलावरी को बयान दिया था कि जिस वक्त सिप्पी को फोन आया था, वह आराम से मेरे आंचल में सिर डाले बातें कर रहा था. अभी 2 दिन पहले ही वह कनाडा से लौटा था. वहीं की बातें हम से शेयर कर रहा था तभी उस के फोन की घंटी बजी थी.

काल रिसीव कर उस ने बताया था कि कल्याणी का फोन है. उस ने मुझे मिलने के लिए बुलाया है. उस से मिल कर थोड़ी देर में आ रहा हूं. मेरा बेटा लौट कर तो नहीं आया लेकिन उस की मौत की खबर आ गई. कल्याणी ने जिस नंबर से काल की थी, वह उस का नंबर नहीं था. कल्याणी से कड़ाई से पूछताछ की जाए ते दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा.

पुलिस की जांच रही बेनतीजा

जिस कल्याणी सिंह पर मृतक के घर वालों ने हत्या का आरोप लगाया था, पुलिस ने उसे थाने बुला कर मामूली पूछताछ की और छोड़ दिया. धीरेधीरे 8 महीने बीत गए थे. चंडीगढ़ पुलिस जांच करती रही लेकिन नतीजा शून्य रहा. शायद किसी ताकतवर शख्सियत के प्रभाव में आ कर पुलिस चुपचाप बैठचुकी थी.

सिप्पी के छोटे भाई जिप्पी और उस के मामा नपिंदर सिंह पुलिस के नकारात्मक रवैए से काफी दुखी थे क्योंकि पुलिस जांच के नाम पर कुछ कर ही नहीं रही थी.

Monsoon Special: बारिश में खाइए सेहत बनाने वाले ये 4 स्नैक्स

अलग अलग क्षेत्रों के लोगों को अलगअलग स्वाद पसंद हो सकते हैं, लेकिन पूरे भारत में स्नैक्स सभी पसंद करते हैं. स्नैक्स तैयार करते समय स्वाद और सेहत का खास ध्यान रखा जाता है. फिर भी लोगों का मानना है कि तलेभुने स्नैक्स ही मजेदार होंगे या फिर उन का मसालेदार होना जरूरी है. आज कई ऐसी चीजें हैं, जिन्हें आप फटाफट रसोई में तैयार कर सकते हैं और वे अन्य किसी भी स्नैक से स्वाद में कम नहीं होंगी. बस इन स्नैक्स में सेहत भरी चीजें डालनी हैं. बटर, मैयोनीज और रिफाइंड औयल की जगह आप औलिव औयल, संपूर्ण गेहूं से तैयार नूडल्स और पास्ता जैसी तरहतरह की चीजें इस्तेमाल कर सकती हैं. चीनी की जगह ब्राउन शुगर और ऊपर से किशमिश डाल सकती हैं. सलाद की हैवी ड्रैसिंग की जगह ऐक्स्ट्रा वर्जिन औलिव औयल, मेवे और विनाइग्रेट फायदेमंद हैं.

आप चाहें तो पास्ता और चुनिंदा मेवे से कुछ सेहत भरे स्वादिष्ठ स्नैक्स भी तैयार कर सकती हैं. सही तरह पकाएं तो मजेदार स्वाद एवं खुशबू के साथसाथ सेहत संबंधी लाभ भी मिलेंगे. आइए, जानें कुछ ऐसे ही हैल्दी जायकों के बारे में:

1 पौपकौर्न:

कौर्न के कर्नेल में फाइबर के साथसाथ पर्याप्त मात्रा में ऐंटीऔक्सिडैंट भी होते हैं. ये भले ही बहुत आम दिखते हों पर सेहत के लिए इन के खास फायदे हैं. आजकल पौपकौर्न बटर और कालीमिर्च के संग तैयार करने का चलन है. मगर इन में जो भी ऐक्स्ट्रा बटर है वह सेहत संबंधी इस का फायदा खत्म कर देता है. इसलिए आप बटर की जगह औलिव औयल के संग पौपकौर्न तैयार करें और ऊपर से सी साल्ट बुरक दें. हां, खास माइक्रोवेव में बने अधिकांश पौपकौर्न में पहले से फैट डला होता है, जिस से चरबी के साथसाथ कैलोरी बढ़ने का भी खतरा रहता है.

पौपकौर्न के मुख्य पोषक तत्त्व इस के छिलके में होते हैं. यदि आप का मन मसालेदार पौपकौर्न के लिए मचल रहा हो तो ब्राउन शुगर के साथ इन का सौस बनाएं और चिली फ्लैक्स डाल कर इन का फ्लेवर बढ़ाएं. ये पौपकौर्न एकसाथ मीठा और नमकीन का मजा देंगे. सेहत के लिहाज से सफेद चीनी से बेहतर ब्राउन शुगर आप के लिए फायदेमंद रहेगी.

1 कप पौपकौर्न में लगभग 30-35 कैलोरी ऊर्जा होती है. आप चाहें तो थोड़ा औलिव औयल डाल कर और ऊपर से छिड़क कर मैडिटेरेनियन जायके का मजा पैदा कर सकते हैं. तो अब जब भी रसोई में कदम रखें और आप के सामने शैल्फ पर ये चीजें हों तो फटाफट कुछ हैल्दी स्नैक्स बनाएं और सेहत का खयाल रखते हुए स्वाद से समझौता किए बिना जी भर के इन का मजा लें.

2 पास्ता:

यह मैडिटेरेनियन जायके का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है और भारत में भी बहुत पसंद किया जाता है. पास्ते में सेहत का तड़का लगाया जा सकता है. आमतौर पर पास्ते में हम ढेर सारा औयल और मसाले के साथ ऊपर से चीज भी डालते हैं. हालांकि आम कुकिंग औयल के बदले ऐक्स्ट्रा लाइट औलिव औयल डाल कर पास्ते को भारत के लोगों की पसंद के हिसाब से तैयार कर सकते हैं. औलिव औयल में भुनने के बाद ऊपर से औलिव और ड्राईफ्रूट्स डालें तो न केवल असली स्पेनिश फ्लेवर आएगा, बल्कि यह सेहत के लिए भी सही रहेगा. अब संपूर्ण गेहूं से तैयार पास्ता हो तो इस में सेहत के अधिक फायदे होंगे ही. इस पास्ते में फाइबर और पोषक तत्त्वों की अधिकता होगी. आप को गेहूं के सब से पोषक हिस्सों चोकर और अंकुर का अच्छा लाभ मिल सकता है.

यदि चीज के बिना पास्ता बेमजा लगता हो तो 1 कटोरा पास्ते में इस का बस एक क्यूब डालें और ऊपर से सब्जियां भी रखें. पास्ता चबाने का अलग मजा होगा और इस का साल्टी टैक्स्चर किसी का भी जी ललचा सकता है. अगर पास्ते में नया ट्विस्ट डालना हो तो ग्रिल की गई सब्जियां डाल कर देखें. दही फेंट कर भी पास्ते में उलटपलट सकते हैं. ऊपर से नीबू और कालीमिर्च पाउडर बुरक दें तो मजा आ जाएगा. पास्ता बनाने की अलगअलग विधियां हैं जैसे पास्ता सलाद फल और मेवों के संग. पास्ता सब्जियों के साथ उबाल कर भी बना सकते हैं.

3 मसाला पास्ता

सब्जियों और भारतीय मसालों से बनाएं स्वादिष्ठ और सेहतमंद पास्ता.

सामग्री:

11/2 कप पास्ता, 1 बड़ा प्याज बारीक कटा हुआ,

1/2 हरी शिमलामिर्च कटी हुई, 2 टमाटर बारीक कटे हुए,

2-3 हरीमिर्चें कटीं, 1 छोटा टुकड़ा अदरक कुटा,

11/2 छोटे चम्मच गरममसाला पाउडर,

1/2 छोटा चम्मच हलदी पाउडर, 1 छोटा चम्मच साबूत सरसों,

1 छोटा चम्मच साबूत धनिया, 10-12 करीपत्ते, थोड़ा सा जीरा,

गरम करने के लिए पर्याप्त औलिव औयल, नमक स्वादानुसार.

विधि:

एक गहरे बरतन में 4 कप पानी डालें. इस में नमक और 1 छोटा चम्मच तेल डालें. फिर पास्ता डालें और जब तक यह नरम न हो जाए तब तक पकाएं. फिर पानी निकाल दें और ठंडे पानी से धो कर एक तरफ रख दें. अब कड़ाही में 2-3 बड़े चम्मच औयल गरम कर सरसों, जीरा, हरीमिर्च, अदरक और करीपत्ते डाल दें. अब प्याज डालें और रंग हलका होने तक पकाएं. टमाटर डालें और गाढ़ा होने तक भूनें. फिर शिमलामिर्च, नमक, गरममसाला, हलदी पाउडर डालें और 6-7 मिनट तक भूनें फिर पास्ता डालें और धीरेधीरे उलटेंपलटें. धीमी आंच पर 2-3 मिनट भून कर आंच से उतार कर गरमगरम मसाला पास्ता परोसें.

4 ड्राई फ्रूट्स/मेवे:

ड्राईफ्रूट्स हर रसोई में रहते हैं. इन में पोषण के बड़े फायदे हैं. बादाम, पिस्ता और अखरोट से बनी न केवल मिठाई ललचाती हैं, बल्कि ये अपनेआप में भी मुकम्मल स्नैक्स हैं. यदि सलाद या अन्न के नाश्ते से आप का जी भर गया है तो इन में मुट्ठी पर ड्राईफ्रूट्स डाल कर देखें. आप का हर स्नैक अधिक मजेदार, क्रंची और सेहत भरा हो जाएगा. भुने या नमकीन ड्राईफ्रूट्स में भरपूर पोषण होता है. बादाम, किसमिस या पिस्ते से कोलैस्ट्रौल का भी सही स्तर बना रहता है. ड्राईफ्रूट्स में उचित मात्रा में विटामिन और मिनरल्स भी होते हैं. ड्राईफ्रूट्स का सेवन वजन सही रखने का कुदरती उपाय है. ड्राईफ्रूट्स के फ्लेवर का पूरा आनंद और फायदा तो तब है जब आप इन्हें कच्चा खाएं. हालांकि रोस्ट करने से भी इन का फ्लेवर अधिक मजेदार हो जाता है.

बादाम: पोषक तत्त्वों से भरपूर बादाम न केवल शरीर को चरबी से छुटकारा दिला सकते हैं, बल्कि आप के दिल की सेहत के रखवाले भी हैं.

पिस्ता: पिस्ता एक लंबे अरसे से अनमोल मेवा रहा है. इस में कई मिनरल्स जैसेकि कौपर, मैग्नीज, पोटैशियम, कैल्सियम, आयरन, मैग्नीशियम, जिंक आदि अच्छी मात्रा में पाए जाते हैं.

अखरोट: अखरोट से हमारे शरीर का बैड कोलैस्ट्रौल कम होने के साथसाथ हमारे मैटाबोलिज्म में भी सुधार होता है और डायबिटीज पर भी नियंत्रण रहता है.

ध्यान रहे

– शिमलामिर्च के साथ जितना चाहें सब्जियां डाल सकते हैं. इस से स्वाद के साथ पोषण भी बढ़ता है.

– आप इस में पावभाजी, गरममसाला आदि किसी भी खास मसाले का तड़का लगा सकते हैं.

– पास्ता कुक करते हुए औयल डालने से पास्ता न तो चिपकेगा और न ही टूटेगा.

बिना सर्जरी के भी ठीक हो सकते हैं घुटने

बढ़ती उम्र के साथ ही यदि जोड़ों का दर्द इतना असहनीय हो गया है कि चलना फिरना भी दूभर हो गया है तो आपके लिए एक अच्छी खबर है. बिना कोई सर्जरी या मेटल का घुटना लगाए अब आर्थराइटिस में दर्द से आराम मिल सकता है. चिकित्सा जगत में अन्य बीमारियों के साथ ही घुटने पर भी स्टेम सेल्स का सफल प्रयोग किया है. बता रहे हैं जाने माने स्टेम सेल्स प्रत्यारोपण सर्जन और आर्थोपेडिसियन डा. बीएस राजपूत:

आर्थराइटिस के मामले लगातार बढ़ रहे हैं. एक अनुमान के मुताबिक देश हर चौथा व्यक्ति किसी न किसी प्रकार की आर्थराइटिस से पीड़ित है. जोड़ो के क्षतिग्रस्त होने की इस बीमारी का अब सटीक इलाज संभव नहीं हो पाया था. दर्द निवारक दवाओं के साथ घुटना या कूल्हा बदलना ही एक मात्र विकल्प होता था. लेकिन बीते कुछ सालों से स्टेम सेल्स थेरेपी एक नये उपचार के रूप में सामने आई है, जिसमें मरीज को घुटना बदलने के समय आने वाली जटिलताओं से बचाया जा सकता है. आइए बीमारी के बारे में विस्तार से जानते हैं-

क्या है आर्थराइटिस

जोड़ों में किसी भी तरह से आई सूजन जब जोड़ों के विभिन्न हिस्सों जैसे कार्टिलेज और सायनोवियम को क्षतिग्रस्त करना शुरू कर देती है तो जोड़ कमजोर होने लगते हैं. इस स्थिति को ही आर्थराइटिस कहते हैं. अगर समय रहते इलाज किया जाएं जोड़ो को क्षतिग्रस्त होने से बचाया जा सकता है, और घुटना बदलने की स्थिति को टाला जा सकता है. चलने फिरने में असहनीय दर्द होने पर चिकित्सक दर्द निवारक दवाओं की जगह घुटना बदलने की ही सलाह देते हैं. यह दवाएं भी अधिक दिन तक नहीं ली जा सकती क्योंकि इससे पेट में अल्सर, किडनी और लिवर को नुकसान पहुंचती हैं.

आर्थराइटिस के मुख्य लक्षण

– एक या ज्यादा जोड़ो में दर्द का बने रहना

– लंबे समय तक बैठने या उठते वक्त दर्द होना

– सामान्य दिनचर्या के काम करने में भी बाधा उत्पन्न होना

– जोड़ों में लालिमा या सूजन का लंबे समय तक बने रहना

– चलने के लिए सहारे या फिर वॉकिंग स्टिक की जरूरत महसूस होना

कितने तरह की आर्थराइटिस

– इम्यूनिटी या रोग प्रतिरोधक क्षमता में गड़बड़ी की वजह से हुई रिह्यूमेटौयड आर्थराइटिस

– कम उम्र में होने वाली एंक्कौयलेजिंग आर्थराइटिस

– यूरिक एसिड बढ़ने की वजह से होने वाली गाउटी आर्थराइटिस

– चोट लगने के बाद जोड़ में होने वाली विकृति से उत्पन्न आर्थराइटिस

– इसके अलावा टीवी, सोरायसिस, सेप्सिस और त्वचा के अन्य संक्रमण के साथ भी आर्थराइटिस हो सकती है.

नये इलाज में स्टेम सेल्स की भूमिका

स्टेम सेल्स क्योंकि अपने तरह की कई नई सेल्स का निर्माण कर सकती हैं, इसलिए जोड़ों में इंजेक्शन के जरिए पहुंचाई गई सेल्स क्षतिग्रस्त सेल्स की जगह नई सेल्स का निर्माण शुरू कर देती हैं. यह सेल्स हड्डियों को अधिक मजबूत बनाने में भी सहायक होती हैं. इसमें मरीज को पूरी तरह ठीक होने में चार से पांच महीने का समय लगता है. स्टेम सेल्स की मदद से रिह्यूमेटौयड आर्थराइटिस (रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होने की वजह से होने वाली आर्थराइटिस) में प्रयोग होने वाली हानिकारक डीएमएआरडी दवाओं से भी छुटकारा मिल सकता है. स्टेम सेल्स के प्रयोग से निर्धारित समय के बाद इन दवाओं  की मात्रा कम हो जाती है. आर्थराइटिस के पारंपरिक इलाज में घुटना प्रत्यारोपण या फिर दवाओं के साथ फिजियोथेरेपी की सलाह दी जाती है.

कैसे होता है स्टेम सेल्स का प्रयोग

– घुटने की आर्थराइटिस की ऐसी जगह जहां तिरछापन दस डिग्री से कम हो

– बीमारी में यदि घुटने का तिरछापन दस डिग्री से अधिक होता है तो पार्शियल या आधे घुटना प्रत्यारोपण (पीएफओ या मिनी सर्जरी) के साथ स्टेम सेल्स का प्रयोग किया जाता है.

– किसी वजह से कार्टिलेज क्षति होने या स्पोटर्स इंजरी में भी स्टेम सेल का प्रयोग किया जा सकता है.

– रिह्युमेटौयड आर्थराइटिस में इसकी मदद से विकलांगता को कम किया जा सकता है.

कैसे बचें आर्थराइटिस से

– सिगरेट और शराब का सेवन न करें, इससे हड्डियां कमजोर होती है

–  कैल्शियम युक्त आहार जैसे दूध, दही पनीर आदि का इस्तेमाल करें

– नियमित रूप से व्यायाम करें

– तीस साल की उम्र के बाद बोन डेंसिटी या हड्डियों के घनत्व की जांच जरूर कराएं

नोट- डा. बीसएस राजपूत क्रिटी केयर अस्पताल, जुहू मुंबई में सलाहकार हैं.

मेरे पति हिंसक व्यवहार करते हैं, क्या करूं ?

सवाल

मैं 28 वर्षीय विवाहित महिला हूं. शादी हुए 2 साल हो गए हैं. ससुराल में किसी चीज की कमी नहीं है. पति सरकारी सेवा में हैं और ओहदेदार हैं. वे स्कूल में टौपर स्टूडैंट थे तो कालेज में यूनिवर्सिटी टौपर. अपने कार्यालय में भी उन के कामकाज पर कभी किसी ने उंगली नहीं उठाई. मगर समस्या मेरी व्यक्तिगत जिंदगी को ले कर है और ऐसी है जिस का अब तक सिर्फ मेरी मां को और मेरी सासूमां को पता है. दरअसल, पति सैक्स संबंध बनाने के दौरान हिंसक व्यवहार करते हैं. वे मुझे पोर्न मूवी साथ देखने को कहते हैं और फिर सैक्स संबंध बनाते हैं. इस दौरान वे मेरे कोमल अंगों को जोरजोर से मसलते हैं और उन पर दांत भी गड़ा देते. कभीकभी तो मेरी ब्रैस्ट से खून तक निकलने लगता है. इस असहनीय पीड़ा के बाद मेरा बिस्तर पर से उठना मुश्किल हो जाता है. पति मेरी इस हालत को देख कर अफसोस करते हैं और बारबार सौरी भी बोलते हैं. कभीकभी तो मन करता है आत्महत्या कर लूं. हालांकि पति मेरी जरूरत की हर चीज का खयाल रखते हैं और मेरा उन से दूर होना उन्हें इतना अखरता है कि वे मेरे बिना एक पल भी नहीं रह पाते.

अगर पति सिर्फ मानसिक पीड़ा पहुंचाते और प्यार नहीं करते तो कब का उन्हें तलाक दे देती पर लगता है शायद वे किसी मानसिक रोग से ग्रस्त हैं और यही सोच कर मैं भी पति का साथ नहीं छोड़ पाती. मैं ने अपनी सासूमां, जो मुझे अपनी बेटी से बढ़ कर प्यार करती हैं, से यह बात बताई तो वे खामोश रहीं. सिर्फ इतना ही कहा कि धीरेधीरे सब नौर्मल हो जाएगा. उधर मां से बताया तो वे आगबबूला हो गईं और सब के साथ बैठ कर इस विषय पर बात करना चाहती हैं. अभी इस की जानकारी मेरे पिता को नहीं है, क्योंकि मैं जानती हूं कि वे इस मुद्दे पर चुप नहीं बैठेंगे. पति, ससुराल और मायके का रिश्ता पलभर में खत्म हो सकता है. कुछ समझ नहीं आ रहा कि क्या करूं? कृपया सलाह दें?

जवाब

आप की समस्या को देखते हुए ऐसा लगता है कि आप के पति को सैक्सुअल सैडिज्म का मनोविकार है. ऐसे मनोरोगी सामान्य जिंदगी में तो नौर्मल रहते हैं, इन के आचरण पर किसी को शक नहीं होता पर सैक्स क्रिया के दौरान ये हिंसक हो जाते हैं और इन्हें परपीड़ा मसलन, दांत गड़ाना, नोचना, संवेदनशील अंगों पर प्रहार करना, तेज सैक्स करने में आनंद आता है. कभीकभी तो ऐसे मनोरोगी सैक्स पार्टनर को इतनी अधिक पीड़ा पहुंचाते हैं कि संबंधों पर विराम लग जाता है. हालांकि अपने किए पर इन्हें बाद में पछतावा भी होता है और फिर से ऐसी गलती न करने का वादा भी करते हैं, मगर सैक्स के दौरान सब भूल जाते हैं.

आप के साथ भी ऐसा है और आप ने यह अच्छा किया कि अपनी मां और सासूमां को इन सब बातों की जानकारी दे दी.

ऐसे मनोरोगी को भावनात्मक सहारे की जरूरत होती है. सामान्य व्यवहार के समय आप पति से इस बारे में बात करें. पति के साथ अधिक से अधिक वक्त बिताएं. साथ घूमने जाएं, शौपिंग करें, अच्छा साहित्य पढ़ने को प्रेरित करें.

बेहतर होगा कि किसी अच्छे सैक्सुअल सैडिज्म के विशेषज्ञ से पति का उपचार कराएं. फिर भी उम्मीद की कोई किरण नजर नहीं आती दिखे तो पति से तलाक ले कर दूसरी शादी कर लें.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem

अनुपमा को गले लगाएगा अधिक तो गुस्से से लाल होगी बरखा

टीवी सीरियल अनुपमा (Anupama) में इन दिनों बड़ा ट्विस्ट देखने को मिल रहा है. शो के बिते एपिसोड में आपने देखा कि पाखी और अधिक को वनराज एक साथ देखकर बौखला जाता है. तो वहीं अनुपमा-अनुज उसे संभालने की कोशिश करते हैं. शो के अपकमिंग एपिसोड में खूब धमाल होने वाला है. आइए बताते हैं शो के नए एपिसोड के बारे में.

शो के अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि अनुज अनुपमा से कहेगा कि पाखी के लिए वह उसके और वनराज के बीच नहीं आ सकता है. यह लड़ाई अनुपमा को अकेले ही लड़नी होगी. लेकिन वह हर मोड़ पर अनुपमा का साथ देगा.

 

तो दूसरी तरफ कपाड़िया हाउस पहुंचकर अनुपमा अनुपमा अधिक से बात करेगी और उससे पूछेगी कि आखिर पाखी के लिए उसके मन में क्या है? तभी बरखा, अनुज, सारा और अंकुश भी वहां आ जाएंगे. बरखा दोनों को बात करने से मना करेगी.

 

तो वहीं अनुपमा अधिक को सही रास्ता दिखाने की कोशिश करेगी. अधिक भावुक होकर अनुपमा को गले लगा लेगा. शो के अपकमिंग एपिसोड में ये भी दिखाया जाएगा कि पाखी कॉलेज जाना शुरू कर देगी और वनराज फैसला लेगा कि अबसे उसे कॉलेज ले जाने और वापस लाने की जिम्मेदारी उसकी होगी.

 

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पाखी वनराज से  छिपकर अधिक से मिलने जाएगी. पाखी और अधिक एक कैफे में जाएंगे तभी अनुपमा उन दोनों को देख लेगी. वह अधिक को खूब सुनाएगी.

Saath Nibhana Saathiya 2: जल्द ही बंद होने जा रहा है शो, इस दिन आएगा आखिरी एपिसोड

स्टार प्लस का मशहूर सीरियल साथ निभाना साथिया का दूसरा सीजन दो साल पहले यानी साल 2020 में ऑन एयर हुआ था. शो की कहानी शुरू-शुरू में दर्शकों के लिए एंटरटेनिंग रहा पर बाद में टीआरपी की लिस्ट में पीछे जाता रहा.

खबरों के मुताबिक सीरियल की स्टारकास्ट अगले हफ्ते सीरियल के आखिरी एपिसोड की शूटिंग खत्म कर देगी. बता दें कि शो में स्नेहा जैन, गौतम विज और हर्ष नागर लीड रोल में हैं.

 

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बताया जा रहा है कि मेकर्स ने शो में कई ट्विस्ट और टर्न लाने की कोशिश की लेकिन, दर्शकों ने शो को रिजेक्ट कर दिया. ऐसे में मेकर्स ने तय किया है कि 16 जुलाई से ये शो ऑफ एयर हो जाएगा.

 

बता दें कि साथ निभाना साथिया का पहला सीजन साल 2010 में ऑन एयर हुआ था. इस शो में जिया मानेक, देवोलीना भट्टाचार्जी ने गोपी बहू का किरदार निभाया था. रुपल पटेल ने कोकिला देसाई मोदी के किरदार में नजर आई थी.

 

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शो के लेटेस्ट ट्रैक में वेडिंग ड्रामा चल रहा है. कहानी में शकुनी और सुहानी मां प्लान बना रहे हैं कि सूर्या की शादी शकुनी की बड़ी बहन से हो जाए. दोनों ही गहना को सूर्या से दूर करने की कोशिश करेंगे ताकि सूर्या और शकुनी की बहन की शादी हो जाए.

धर्म का अधर्म

हिंदूमुसलिम, हिंदूमुसलिम करतेकरते पौराणिकवादी हिंदू यह भूल गए कि देश में सिख, बौद्ध व जैन भी हैं जो पुराणों को तो नहीं मानते पर जिन का हिंदुओं से कोई बैरभाव नहीं है. अब ये लोग भयभीत होने लगे हैं कि न जाने कब हिंदुत्व की तलवार उन पर भी आ पड़े. पंजाब में खालिस्तान के स्लोगन दीवारों पर दिखने लगे हैं और दलित संगठन बौद्ध धर्म को और जोर से प्रचारित कर रहे हैं.

ऐसे समय जब देश आर्थिक समस्याओं व बेरोजगारी से जूझ रहा है और अफसरशाही ज्यादा मुखर हो रही है क्योंकि देश में या तो पंडितों की चल रही है या अफसरों की, समाज में नई लाइनें खींचना बेहद चिंताजनक है. अब तक ये लोग अलग होते हुए भी हिंदुओं के साथ सहजता से रहते थे जैसे पहले हिंदूमुसलिम रहा करते थे पर अब पौराणिकवादी हल्ले से मुसलमान अपने दायरों में दुबक गए हैं और इन धर्मों को मानने वालों की चिंताएं बढ़ गई हैं.

जब भी एक धर्म कुछ ज्यादा हल्ला मचाता है तो दूसरे धर्मों के लोगों को डर लगने लगता है और उन के पूजास्थलों के रखवाले खतरे में है, खतरे में है के नारे लगाने लगते हैं. जो शक्ति देश के निर्माण में लगनी चाहिए, जो पैसा कारखानों, बाजारों, दुकानों, घरों, स्कूलों, अस्पतालों में लगना चाहिए वह धर्म की सुरक्षा पर लगना शुरू हो जाता है. औरतें इस चक्कर में ज्यादा पिसती हैं क्योंकि धर्म की सुरक्षा के नाम उन के घर असुरक्षित हो जाते हैं और उन को घर चलाने को मिलने वाले पैसे का हिस्सा धर्मस्थल व उन को चलाने वालों के पास जाने लगता है. यानी, झुग्गीझोंपड़ी बस्तियों में धर्मस्थलों के पक्के निर्माण किसी को कहीं भी दिख जाएंगे.

बौद्ध व सिख अब कुछ ज्यादा मुखर होने लगे हैं और सोशल मीडिया पर भरपूर मैसेज घूम रहे हैं जिन में अपनेअपने धर्मों की खासीयतें बतार्ई जा रही हैं. अब तक हिंदू धर्म के हिस्से माने जाने वाले ये लोग पौराणिकवाद के बाद से भयभीत हो कर अपनी सुरक्षा में लग रहे हैं तो दोष उन का है जो धर्म के नाम पर सत्ता में बैठे रहने की कोशिश कर रहे हैं.

धर्म एक दोधारी तलवार रहा है. रामायण और महाभारत की कथाओं में अगर धर्म का ढोल पीटा गया है तो उसी धर्म के अनुसार घरों को तोड़ा भी गया है. पारिवारिक राजनीति की आग में धर्म ने घी डाला है और हर पात्र, उन कथाओं के अनुसार, पूरे जीवनभर तड़पता, तरसता रहा है. उन्हीं के नाम पर जिस समाज के निर्माण की बात कर रहे हैं, उस में विघटन तो होगा ही क्योंकि ये कहानियां तो परिवारों तक को विघटन से नहीं बचता दिखातीं.

महाराष्ट्र: कौन होगा शिवसेना का असल हकदार

महाराष्ट्र में सत्ता के उथल-पुथल के साथ आज एक ही प्रश्न फिजा में अपनी गूंज अनुगूंज के साथ तैर रहा है कि आखिरकार बालासाहेब ठाकरे की बनाई गई शिवसेना का असली हकदार कौन है. देश का कानून, राजनीतिक पार्टियों का संविधान और निर्वाचन आयोग का ऊंट किस करवट बैठेगा. जैसा कि हम आप देख रहे हैं शिवसेना पर उद्धव ठाकरे का वर्चस्व है और मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने से पहले ही एकनाथ शिंदे शिवसेना बागी गुट यह ताल ठोक रहा है कि शिवसेना असल तो हम हैं.

आइए! आज हम इस महत्वपूर्ण विषय पर चर्चा करते हैं और समझने का प्रयास करते हैं कि अखिर शिवसेना का भविष्य क्या होगा.

हिंदुत्ववादी और महाराष्ट्र की अस्मिता को लेकर के बाला साहब ठाकरे जो कि एक पत्रकार थे ने मुंबई में सातवें दशक में शिवसेना का गठन किया था और धीरे-धीरे शिवसेना ने अपना वजूद बनाया, सैकड़ों समर्थक बन गए.

परिणाम स्वरुप शिवसेना कल तक महाराष्ट्र में कम से कम भारतीय जनता पार्टी के लिए बड़ी भाई की भूमिका में हुआ करती थी.

मगर विगत दिनों दोनों पार्टियों के बीच जो तलवारें खिंची है उससे भाजपा और शिवसेना आमने-सामने हैं. कभी शिवसेना 21 हो जाती है तो कभी भारतीय जनता पार्टी.

उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री पद से अपदस्थ करके उन्हीं के बाएं हाथ एकनाथ शिंदे को शतरंज के चौपड़ पर आगे बढ़ाने वाली भारतीय जनता पार्टी ने एक तरह से बगावत करवा, शिवसेना के विधायकों को अपने प्रभाव में ले कर उद्धव ठाकरे और शिवसेना दोनों को ही खत्म करने का मानो एक प्लान बनाया है. अगर हम उसी तरीके से संपूर्ण घटनाक्रम पर दृष्टिपात करें तो यह स्पष्ट हो जाता है कि जिस शिवसेना के कंधे पर चढ़कर भारतीय जनता पार्टी महाराष्ट्र में राजनीति की क, ख, ग किया करती  थी आज केंद्रीय सत्ता में बैठकर शिवसेना विशेष तौर पर उद्धव ठाकरे परिवार को राजनीति के हाशिए पर डालना चाहती है. जैसा कि बिहार में रामविलास पासवान के पुत्र चिराग पासवान के साथ किया गया , जैसा कि उड़ीसा में नवीन पटनायक के साथ भाजपा ने करने का प्रयास किया मगर वे सतर्क हो गए भाजपा से अपनी दूरी बना ली है.

क्या होगा उद्धव ठाकरे का!

महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव में सफलता प्राप्त करने के बाद भारतीय जनता पार्टी नेतृत्व करना चाहती थी मुख्यमंत्री चाहती थी, उद्धव ठाकरे इस नकार कर शरद पवार और कांग्रेस के सहयोग से मुख्यमंत्री  बन गए और  पूरे ढाई वर्षो तक सरकार चलाते रहे क्योंकि उनके साथ देश की राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले शरद पवार थे और कांग्रेस का साथ था. मगर जैसा कि संभावित था उद्धव ठाकरे की खामियों को मुद्दा बनाकर के भारतीय जनता पार्टी ने अपने अदृश्य हाथों से उन्हीं की गर्दन नापनी शुरू कर दी. वही नेता जो बाला साहब ठाकरे और उद्धव ठाकरे के सामने मुंह नहीं खोलते थे को ऐसा पाठ पढ़ाया कि वे बगावत करने पर उतारू हो गए.

आज हालात यह है कि उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री पद को छोड़कर अपने पुराने आवास वर्षा में चले गए हैं और महाराष्ट्र में भाजपा जो खेल करना चाहती थी वह हो चुका है. यानी शिवसेना के विधायकों को अपने पाले में कर के उन्हें आगे करके पीछे से गोली चला दी गई है.

किसका होगा शिवसेना पर कब्जा

राजनीतिक पार्टियों के संविधान के मुताबिक अगर हम इतिहास के घटनाक्रम को देखते हुए चर्चा करें तो यह कहा जा सकता है कि एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री की शपथ लेने की पहले ही शिवसेना पर अपना दावा चाहे बड़ी पुरजोर तरीके से कर रहे हों मगर हकीकत यह है कि किसी भी राजनीतिक दल के आलाकमान अर्थात राष्ट्रीय अध्यक्ष और उसकी कार्यकारिणी ही सर्वोच्च शक्ति अपने पास रखती है.

इसका सीधा सा अर्थ यह है कि विधायकों के बूते सत्ता का परिवर्तन तो किया जा सकता है मगर किसी भी पार्टी पर अपना अधिकार पार्टी से बाहर रह करके नहीं किया जा सकता. एकनाथ शिंदे और बागी विधायकों को शिव सेना ने पहले ही बाहर का दरवाजा दिखा दिया है ऐसे में शिवसेना राजनीतिक पार्टी पर कानूनी रूप से उद्धव ठाकरे का ही वर्चस्व रहेगा.
यहां हम पाठकों को बताते चलें कि भाजपा और एकनाथ शिंदे के सामने अब एक ही विकल्प बचता है वो कोई नई राजनीतिक पार्टी बना ले आखिरकार उन्हें यही करना होगा.

सौतेली: शेफाली के मन में क्यों भर गई थी नफरत

सौतेली- भाग 1: शेफाली के मन में क्यों भर गई थी नफरत

अब शेफाली को महसूस हो रहा था कि उस को 6 माह पहले एक योजना के तहत ही घर से बाहर भेजा गया था. दूसरे शब्दों में, उस के अपनों ने ही उसे धोखे में रखा था. धोखा भी ऐसा कि रिश्तों पर से भरोसा ही डगमगा जाए.

जब से जानकी बूआ ने शेफाली को यह बतलाया कि उस की गैरमौजूदगी में उस के पापा ने दूसरी शादी की है तब से उस का मन यह सोच कर बेचैन हो रहा था कि जब वह घर वापस जाएगी तो वहां एक ऐसी अजनबी औरत को देखेगी जो उस की मां की जगह ले चुकी होगी और जिसे उस को ‘मम्मी’ कह कर बुलाना होगा.

पापा की शादी की बात सुन शेफाली के अंदर विचारों के झंझावात से उठ रहे थे.

मम्मी की मौत के बाद शेफाली ने पापा को जितना गमगीन और उदास देखा था उस से ऐसा नहीं लगता था कि वह कभी दूसरी शादी की सोचेंगे. वैसे भी मम्मी जब जिंदा थीं तो शेफाली ने उन को कभी पापा से झगड़ते नहीं देखा था. दोनों में बेहद प्यार था.

मम्मी को कैंसर होने का पता जब पापा को चला तो उन्हें छिपछिप कर रोते हुए शेफाली ने देखा था.

यह जानते हुए भी कि मम्मी बस, कुछ ही दिनों की मेहमान हैं पापा ने दिनरात उन की सेवा की थी.

इन सब बातों को देख कर कौन कह सकता था कि वह मम्मी की बरसी का भी इंतजार नहीं करेंगे और दूसरी शादी कर लेंगे.

अब जब पापा की दूसरी शादी एक कठोर हकीकत बन चुकी थी तो शेफाली को अपने दोनों छोटे भाईबहन की चिंता होने लगी थी. बहन मानसी से कहीं अधिक चिंता शेफाली को अपने छोटे भाई अंकुर की थी जो 5वीं कक्षा में पढ़ रहा था.

मम्मी को कैंसर होने का जब पता चला था तो शेफाली बी.ए. फाइनल में थी और बी.ए. करने के बाद बी.एड. करने का सपना उस ने देखा था. लेकिन मम्मी की असमय मृत्यु से शेफाली का वह सपना एक तरह से बिखर गया था.

शेफाली बड़ी थी. इसलिए मम्मी की मौत के बाद उस को लगा था कि छोटे भाईबहन के साथसाथ पापा की देखभाल की जिम्मेदारी भी उस के कंधों पर आ गई थी और उस ने भी अपने दिलोदिमाग से इस जिम्मेदारी को निभाने के लिए खुद को तैयार कर लिया था.

मगर शेफाली को हैरानी उस समय हुई जब मम्मी की मौत के 3-4 महीने बाद ही पापा ने उस को खुद ही बी.एड. करने के लिए कह दिया.

शेफाली ने तब यह कहा था कि अगर वह भी पढ़ाई में लग गई तो घर को कौन देखेगा तो पापा ने कहा, ‘घर की चिंता तुम मत करो, यह देखना मेरा काम है. तुम अपने भविष्य की सोचो और अपनी आगे की पढ़ाई शुरू कर दो.’

‘मगर यहां बी.एड. के लिए सीट का मिलना मुश्किल है, पापा.’

‘तो क्या हुआ, तुम्हारी जानकी बूआ जम्मू में हैं. सुनने में आता है कि वहां आसानी से सीट मिल जाती है. मैं जानकी से फोन पर इस बारे में बात करूंगा. वह इस के लिए सारा प्रबंध कर देगी,’ पापा ने शेफाली से कहा था.

शेफाली तब असमंजस से पापा का मुख ताकती रह गई थी, क्योंकि ऐसा करना न तो घर के हालात को देखते हुए सही था और न ही दुनियादारी के लिहाज से. लेकिन पापा तो उस को जानकी बूआ के पास भेजने का मन बना ही चुके थे.

शेफाली की दलीलों और नानुकुर से पापा का इरादा बदला नहीं था और हमेशा दूसरों के घर की हर बात पर टीकाटिप्पणी करने वाली जानकी बूआ को भी पापा के फैसले पर कोई एतराज नहीं हुआ था. होता भी क्यों? शायद पापा जो भी कर रहे थे जानकी बूआ के इशारे पर ही तो कर रहे थे.

उसे लगा सबकुछ पहले से ही तय था. बी.एड. की पढ़ाई तो जैसे उस को घर से निकालने का बहाना भर था.

अब सारी तसवीर शेफाली के सामने बिलकुल साफ हो चुकी थी. शायद मम्मी की मौत के तुरंत बाद ही गुपचुप तरीके से पापा की दूसरी शादी की कोशिशों का सिलसिला शुरू हो गया था. शेफाली को पक्का यकीन था कि इस में जानकी बूआ ने अहम भूमिका निभाई होगी.

मम्मी की मौत पर जानकी बूआ की आंखें सूखी ही रही थीं. फिर भी छाती पीटपीट कर विलाप करने का दिखावा करने के मामले में बूआ सब से आगे थीं.

एक तो वैसे भी जानकी बूआ का रिश्ता दिखावे का था. दूसरे, मम्मी से बूआ की कभी बनी न थी. उन के रिश्ते में खटास रही थी. इस खटास की वजह अतीत की कोई घटना हो सकती थी. इस के बारे में शेफाली को कोई जानकारी न थी.

लगता तो ऐसा है कि मम्मी के कैंसर होने की बात जानते ही जानकी बूआ ने दोबारा भाई का घर बसाने की बात सोचनी शुरू कर दी थी. तभी तो जबतब इशारों ही इशारों में बूआ अपने अंदर की इच्छा यह कह कर जाहिर कर देती कि औरत के बगैर घर कोई घर नहीं होता. पापा ने भी शायद दोबारा शादी के लिए जानकी बूआ को मौन स्वीकृति दी होगी. तभी तो योजनाबद्ध तरीके से सारी बात महीनों में ही सिरे चढ़ गई थी.

चूंकि मैं बड़ी व समझदार हो गई थी. मुझ से बगावत का खतरा था इसलिए मुझे बी.एड. की पढ़ाई के बहाने बड़ी खूबसूरती से घर से बाहर निकाल दिया गया था.

पापा की दूसरी शादी करवा कर वापस आने के बाद जानकी बूआ शेफाली के साथ ठीक से आंख नहीं मिला पा रही थीं और तरहतरह से सफाई देने की कोशिश कर रही थीं.

किंतु अब शेफाली को बूआ की हर बात में केवल झूठ और मक्कारी नजर आने लगी थी इसलिए उस के मन में बूआ के प्रति नफरत की एक भावना बन गई थी.

फूफा शायद शेफाली के दिल के हाल को बूआ से ज्यादा बेहतर समझते थे इसलिए उन्होंने नपेतुले शब्दों में उस को समझाने की कोशिश की थी, ‘‘मैं तुम्हारे दिल की हालत को समझता हूं बेटी, मगर जो भी हकीकत है अब तुम्हें उस को स्वीकार करना ही होगा. नए रिश्तों से जुड़ना बड़ा मुश्किल होता है लेकिन उस से भी मुश्किल होता है पहले वाले रिश्तों को तोड़ना. इस सच को भी तुम्हें समझना होगा.’’

घर जाने के बारे में शेफाली जब भी सोचती नर्वस हो जाती. उस के हाथपांव शिथिल पड़ने लगते. कैसा अजीब लगेगा जब वह मम्मी की जगह पर एक अजनबी और अनजान औरत को देखेगी? वह औरत कैसी और किस उम्र की थी, शेफाली नहीं जानती मगर वह उस की सौतेली मां बन चुकी थी, यह एक हकीकत थी.

‘सौतेली मां’ का अर्थ शेफाली अच्छी तरह से जानती थी और ऐसी मांओं के बारे में बहुत सी बातें उस ने सुन भी रखी थीं. अपने से ज्यादा उसे छोटे भाईबहन की चिंता थी. वह नहीं जानती थी कि सौतेली मां उन के साथ कैसा व्यवहार कर रही होंगी.

जानकी बूआ शेफाली से कह रही थीं कि वह एक बार घर हो आए और अपनी नई मम्मी को देख ले लेकिन शेफाली ने बूआ की बात पर अधिक ध्यान नहीं दिया, क्योंकि अब उन की अच्छी बात भी उसे जहर लगती थी. इस बीच पापा का 2-3 बार फोन आया था पर शेफाली ने उन से बात करने से मना कर दिया था.

जानकी बूआ ने शेफाली पर घर जाने और पापा से फोन पर बात करने का दबाव बनाने की कोशिश की तो उस ने बूआ को सीधी धमकी दे डाली, ‘‘बूआ, अगर आप किसी बात के लिए मुझे ज्यादा परेशान करोगी तो सच कहती हूं, मैं इस घर को भी छोड़ कर कहीं चली जाऊंगी और फिर कभी किसी को नजर नहीं आऊंगी.’’

शेफाली की इस धमकी से बूआ थोड़ा डर गई थीं. इस के बाद उन्होंने शेफाली पर किसी बात के लिए जोर देना ही बंद कर दिया था.

शेफाली को यह भी पता था कि वह हमेशा के लिए बूआ के घर में नहीं रह सकती थी. 5-6 महीने के बाद जब उस की बी.एड. की पढ़ाई खत्म हो जाएगी तो उस के पास बूआ के यहां रहने का कोई बहाना नहीं रहेगा.

तब क्या होगा?

आने वाले कल के बारे में जितना सोचती उतना ही अनिश्चितता के धुंधलके में घिर जाती. बगावत पर आमादा शेफाली का मन उस के काबू में नहीं रहा था.

फूफा से शेफाली कम ही बात करती थी. बूआ से तो उस का छत्तीस का आंकड़ा था लेकिन उस घर में शेफाली जिस से अपने दुखसुख की बात करती थी वह थी रंजना, जानकी बूआ की बेटी.

रंजना लगभग उसी की हमउम्र थी और एम.ए. कर रही थी.

रंजना उस के दिल के हाल को समझती थी और मानती थी कि उस के पापा ने उस की गैरमौजूदगी में शादी कर के गलत किया था. इस के साथ वह शेफाली को हालात के साथ समझौता करने की सलाह भी देती थी.

सौतेली मां के लिए शेफाली की नफरत को भी रंजना ठीक नहीं समझती थी.

वह कहती थी, ‘‘बहन, तुम ने अभी उस को देखा नहीं, जाना नहीं. फिर उस से इतनी नफरत क्यों? अगर किसी औरत ने तुम्हारी मां की जगह ले ली है तो इस में उस का क्या कुसूर है. कुसूर तो उस को उस जगह पर बिठाने वाले का है,’’ ऐसा कह कर रंजना एक तरह से सीधे शेफाली के पापा को कुसूरवार ठहराती थी.

कुसूर किसी का भी हो पर शेफाली किसी भी तरह न तो किसी अनजान औरत को मां के रूप में स्वीकार करने को तैयार थी और न ही पापा को माफ करने के लिए. वह तो यहां तक सोचने लगी थी कि पढ़ाई पूरी होने पर उस को जानकी बूआ का घर भले ही छोड़ना पडे़ लेकिन वह अपने घर नहीं जाएगी. नौकरी कर के अपने पैरों पर खड़ी होगी और अकेली किसी दूसरी जगह रह लेगी.

2 बार मना करने के बाद पापा ने फिर शेफाली से फोन पर बात करने की कोशिश नहीं की थी. हालांकि जानकी बूआ से पापा की बात होती रहती थी.

मानसी और अंकुर से शेफाली ने फोन पर जरूर 2-3 बार बात की थी, लेकिन जब भी मानसी ने उस से नई मम्मी के बारे में चर्चा करने की कोशिश की तो शेफाली ने उस को टोक दिया था, ‘‘मुझ से इस बारे में बात मत करो. बस, तुम अपना और अंकुर का खयाल रखना,’’ इतना कहतेकहते शेफाली की आवाज भीग जाती थी. अपना घर, अपने लोग एक दिन ऐसे बेगाने बन जाएंगे शेफाली ने कभी सोचा नहीं था.

पहले तो शेफाली सोचती थी कि शायद पापा खुद उस को मनाने जानकी बूआ के यहां आएंगे पर एकएक कर कई दिन बीत जाने के बाद शेफाली के अंदर की यह आशा धूमिल पड़ गई.

इस से शेफाली ने यह अनुमान लगाया कि उस की मम्मी की जगह लेने वाली औरत (सौतेली मां) ने पापा को पूरी तरह से अपने वश में कर लिया है. इस सोच में उस के अंदर की नफरत को और गहरा कर दिया.

अचानक एक दिन बूआ ने नौकरानी से कह कर ड्राइंगरूम के पिछले वाले हिस्से में खाली पड़े कमरे की सफाई करवा कर उस पर कीमती और नई चादर बिछवा दी थी तो शेफाली को लगा कि बूआ के घर कोई मेहमान आने वाला है.

शेफाली ने इस बारे में रंजना से पूछा तो वह बोली, ‘‘मम्मी की एक पुरानी सहेली की लड़की कुछ दिनों के लिए इस शहर में घूमने आ रही है. वह हमारे घर में ही ठहरेगी.’’

‘‘क्या तुम ने उस को पहले देखा है?’’ शेफाली ने पूछा.

‘‘नहीं,’’ रंजना का जवाब था.

शेफाली को घर में आने वाले मेहमान में कोई दिलचस्पी नहीं थी और न ही उस से कुछ लेनादेना ही था. फिर भी वह जिन हालात में बूआ के यहां रह रही थी उस के मद्देनजर किसी अजनबी के आने के खयाल से उस को बेचैनी महसूस हो रही थी.

वह न तो किसी सवाल का सामना करना चाहती थी और न ही सवालिया नजरों का.

जानकी बूआ की मेहमान जब आई तो शेफाली उसे देख कर ठगी सी रह गई.

चेहरा दमदमाता हुआ सौम्य, शांत और ऐसा मोहक कि नजर हटाने को दिल न करे. होंठों पर ऐसी मुसकान जो बरबस अपनी तरफ सामने वाले को खींचे. आंखें झील की मानिंद गहरी और खामोश. उम्र का ठीक से अनुमान लगाना मुश्किल था फिर भी 30 और 35 के बीच की रही होगी. देखने से शादीशुदा लगती थी मगर अकेली आई थी.

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