सेना में किस जाति और धर्म के लोग किस अनुपात में जाते हैं इसका सटीक आंकड़ा किसी के पास उपलब्ध नहीं है लेकिन अंदाजा सभी का समान है कि सेना में पिछड़े वर्ग के युवा ज्यादा जाते हैं . कुछ साल पहले एक अंग्रेजी पत्रिका ने सर्वे कर खुलासा किया था कि भारतीय सेना मुसलमानों की तादाद महज 3 फ़ीसदी है लेकिन हिन्दू जातियों के कितने लोग जाते हैं इसका जबाब किसी के पास नहीं क्योंकि सेना में जातिगत आरक्षण नहीं है और न ही कभी जाति के आधार पर सैनिकों की गिनती हुई .

इससे यह अंदाजा लगाना आसान हो जाता है कि चूँकि सेना में दलित और सवर्ण न के बराबर जाते हैं इसलिए सबसे बड़ी तादाद पिछड़ों की है क्योंकि वे पढ़ लिख गए हैं , जागरूक भी हुए हैं और उनमें जज्बे और जूनून के साथ साथ दमखम भी है . अग्निपथ के विरोध में भी पिछड़े युवकों की तादाद ज्यादा नजर आ रही है क्योंकि वे कई सालों से भर्ती की तयारी कर रहे थे . ये पिछड़े गौरतलब है कि राजनीति में बहुत ऊँचे तक पहुँच चुके है , प्रशासन में भी इनकी भागीदारी बढ़ी है और जो इनमें भी नहीं हैं वे जाति के मुताबिक अपना छोटा बड़ा कारोबार चला रहे हैं . सवर्णों के बाद सबसे ज्यादा खेती की जमीनें भी इन्हीं के पास हैं .

यह ठीक है कि न्यायिक सेवा की तरह सेना के ऊँचे ओहदे अभी भी इनसे दूर हैं लेकिन जिस तेजी से पिछड़े युवा पढ़ाई लिखाई कर प्रशासन में ऊँचे पदों पर पहुँच रहे हैं उसे देख भगवा गेंग चिंता में थी कि कैसे इन्हें उपरी माले पर आने से रोका जाये क्योंकि आख़िरकार वर्ण व्यवस्था के लिहाज से ये हैं तो शूद्र  ही इसलिए इन्हें सेना में जाने से रोका जाना जरुरी है .

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