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मुद्दा: मृत देह का अभाव

मैडिकल संस्थानों में मृत देह का अभाव होना विज्ञान व स्वास्थ्य उपचारों में नई खोजों पर अडं़गा पड़ने जैसा है. मृत देह की कमी होने का मुख्य कारण लोगों का विज्ञान के लिए देह दान न करना है जो समाज में फैले धार्मिक अंधविश्वास से पैदा हो रहा है.

ग्वालियर के गजरा राजा मैडिकल कालेज में कोविड के बाद देह दान न होने से मृत शरीर पर पढ़ाई करने का मौका न मिलने का असर अब मैडिकल कालेजों पर पड़ रहा है. मैडिकल काउंसिल की सलाह है कि एक मृत शव पर 10 छात्र तक काम करें पर आजकल 30-35 छात्रों को एक शव प्राप्त होता है. काठमांडू के मणिपाल मैडिकल कालेज में पढ़ रही एक युवती का कहना है कि नेपाल में तो शवों की इतनी कमी है कि सारी पढ़ाई प्लास्टिक की डमी पर करनी होती है.

आजकल शव बेचने का धंधा पनपने लगा है. तिरुअंनतपुरम मैडिकल कालेज अनक्लेम्ड बौडीज के लिए 6-7 लाख रुपए तक दे रहा है. इस कालेज को 2017 से 2021 तक 4 वर्षों में एकचौथाई शव खरीदने पड़े थे ताकि मैडिकल छात्र सही पढ़ाई कर सकें. मृत शव को मैडिकल भाषा में ‘केडेबर’ कहते हैं. औरतों के शरीर तो और कम मिलते हैं क्योंकि लावारिस शवों में औरतें बहुत कम होती हैं.

जैसे ही चिकित्सा जगत से जुड़े शासकीय अथवा प्राइवेट कालेजों को पता चला कि कोई लावारिस व्यक्ति मरा है या किसी ने अपना मृत देह दान किया है तो उसे हासिल करने के लिए छीना?ापटी मच जाती है.

भारतभर का चिकित्सा जगत आज मृत मानव देह के अभाव से जू?ा रहा है. देह न मिलने की वजह से मैडिकल कालेजों में बिना देह के ही पढ़ाई करनी पड़ती है.

एक हड्डी रोग विशेषज्ञ के अनुसार, ‘‘एनोटौमी डिपार्टमैंट में 6 छात्रों की पढ़ाई एक मृत देह से अच्छी तरह से होती है. आजकल मृत देह की कमी होने की वजह से कुछ कालेजों में तो 120 छात्रों की पढ़ाई एक देह से होती है.’’

एक और जनरल प्रैक्टिशनर बताते हैं, ‘‘मैडिकल कालेज में डैथ बौडी के लिए मारामारी हमेशा थी, पहले भी 50-50 स्टूडैंट्स के बीच एक बौडी होती थी.’’

छत्तीसगढ़ के रायपुर में एक समाजसेवी संस्था, जो देहदान के प्रोजैक्ट पर कार्य करती है, के प्रवक्ता का कहना है, ‘‘हमारे पास शासकीय या प्राइवेट मैडिकल कालेज, आयुर्वेदिक कालेज, होम्योपैथिक, डैंटल कालेजों के

आवेदनों की भरमार रहती है. ये हम से गुजारिश करते हैं कि हमें डैथ बौडी उपलब्ध कराएं.’’

चिकित्सा छात्रों को क्यों जरूरी है मृत देह

एमबीबीएस, वीओएस और बीपीटी जैसे कोर्स के प्रथम वर्ष के छात्रों को शरीर रचना विज्ञान विभाग (एनोटौमी डिपार्टमैंट) की पढ़ाई कराई जाती है. उस में मृत मानव देह की आवश्यकता होती है. प्रैक्टिकल नौलेज के लिए बौडी खोल कर देखी जाती है कि फेफड़े, किडनी, हार्ट, नसें, हड्डियां शरीर में कहां हैं और किस तरह से कार्य करते हैं.

चिकित्सक बनने के लिए प्रैक्टिकल नौलेज की जरूरत ज्यादा होती है. अगर किताबी ज्ञान हो, प्रैक्टिकल नौलेज न हो तो भ्रम की स्थिति बनी रहती है, जिस का सीधा असर चिकित्सक की काबीलियत पर पड़ता है. 6 छात्रों की पढ़ाई के लिए एक मानव देह की जरूरत शिद्दत से होती है. इस स्थिति में पढ़ना और पढ़ाना उच्चकोटि का होता है.

कहां से मिलती है डैथ बौडी चिकित्सा जगत को डैथ बौडी 2 तरीके से मिलती हैं.

लावारिस लाशें : लावारिस लाशें पुलिस के माध्यम से प्राप्त होती हैं. ज्यादातर लावारिस लाशों का पोस्टमार्टम हो जाता है. लिहाजा, ये मैडिकल विभाग के काम नहीं आतीं. जिन लावारिस लाशों की मौत का कारण पता होता है उन का पोस्टमार्टम नहीं होता. इस के बावजूद प्रशासन ऐसी लाशों को मैडिकल विभाग को न सौंपने की लाचारी बताता है कि लावारिस लाशों, जिन का पोस्टमार्टम नहीं होता, को भी दफनाना होता है.

कारण, उन के परिजन हुए तो कभे भी उन्हें ढूंढ़ते हुए आ सकते हैं. ऐसे में दफनाई हुई लाश निकाल कर उन्हें सौंप देते हैं. यदि लाश मैडिकल कालेज को देते हैं तो कई परेशानियां खड़ी हो सकती हैं. यदि मैडिकल कालेज आवेदन करते हैं तो वे लाशें जिन के परिजन नहीं मिलते, उन्हें सौंप देते हैं.

देहदान से : कोई व्यक्ति अपनी जीवित अवस्था में अपनी इच्छा से मृत्यु के बाद अपने शरीर दान की घोषणा करता है. परिजन उन की अंतिम इच्छा पूरी करते हुए समाज हित में चिकित्सा की पढ़ाई हेतु शरीर दान करते हैं. लोग पुरानी दकियानूसी परंपराओं से जकड़े हुए हैं, लिहाजा, शरीर दान के प्रति उन में जागरूकता की बहुत कमी देखी जाती है.

दकियानूसी सोच का परिणाम

अंधपूजक परंपराओं का ही परिणाम है कि लोग समाजहित, जनहित में शरीरदान का संकल्प नहीं ले पाते. सदियों से पुरोहित वर्ग ने हमारे दिमाग में कूटकूट कर भर दिया है कि जब तक मृत मानव देह का अंतिम संस्कार कर उसे पंचतत्त्व में विलीन नहीं किया जाएगा तब तक उसे स्वर्ग, मोक्ष की प्राप्ति नहीं होती. उस की आत्मा भटकती रहेगी.

यही कारण है कि लोग सदियों पुरानी इस सोच से अपने को निकाल नहीं पाते. कोविड के दिनों में भी पंडितों ने अपना धंधा चालू रखा और औनलाइन संस्कार करा के, हवन मंत्र पढ़ कर उन जजमानों से पैसे वसूल लिए जिन के शव सीधे शमशानों में ले जाए गए थे.

शरीरदान भी, परंपराओं का निर्वाह भी

रायपुर निवासी ने हिम्मत के साथ अपनी पत्नी का शरीर दान तो किया लेकिन अंधपूजा भावना इतनी ज्यादा थी कि साथ ही पत्नी का पुतला बना कर बाकायदा पंडितजी से पूजापाठ करवा कर सम्मान के साथ उस का अंतिम संस्कार किया और उस की राख को गंगा में प्रवाहित करने इलाहाबाद भी गए.

यह घटना सदियों पुरानी रूढि़यों की दास्तां की ओर इशारा करती है जिस से व्यक्ति मुक्त नहीं हो पा रहा.

दुर्गति

शरीर दान न करने के पीछे अंधविश्वास के साथ एक दूसरा बड़ा कारण है कि लोगों में डर रहता है कि दान में दिए गए शरीर की काटपीट होती है जिस से उस की दुर्गति होती है. दुर्गति का सोच कर ही लोग शरीर दान करने से पीछे हटते हैं.

शिक्षित लोग भी अंधविश्वासी

कुछ लोग कहते हैं शिक्षा की कमी है इसलिए लोग अंधविश्वासी हैं. जबकि सच यह है कि शिक्षित लोग भी रूढि़वादी होते हैं. छत्तीसगढ़ शासकीय मैडिकल कालेज की एचओडी से जब पूछा गया कि क्या आप अपना शरीर दान करेंगी तो इस सवाल के जवाब में उन्होंने तुरंत ‘न’ कहा.

वजह पूछने पर उन का कहना था, ‘‘मेरे बच्चे पुराने खयालात के हैं. वे ऐसा नहीं करेंगे. जब से धर्म का धंधा एक बार फिर बढ़ने लगा है, यह भावना और तेज हो गई है. अब तो गरीब घरों में भी देह को यों ही जलाया नहीं जाता, कर्मकांड कराया जाता है.’’

एमबीबीएस इशांत तिवारी शरीर दान के सवाल पर तुरंत ही कोई जवाब नहीं देते हैं. अपनी राय न दे कर वे परिजनों के ऊपर डाल देते हैं कि वे कर दें तो ठीक. कहने का मतलब है शिक्षित वर्ग को भी रूढि़यों की जकड़न से बाहर निकालने के लिए जागरूक करने की जरूरत है.

छत्तीसगढ़ के दुर्ग में एक स्वयंसेवी संस्था ‘प्रनाम’ जागरूक कर रही है. मानव सेवा के उद्देश्यों को ले कर बनी ‘प्रनाम’ संस्था सरकार से कोई मदद नहीं लेती.

अपने मृत शरीर की वसीयत कैसे करें

जीवित अवस्था में अपने शरीर के दान की वसीयत करने के लिए मैडिकल कालेज से मृत्यु उपरांत शरीर दान घोषणा पत्र (वसीयतनामा) लें. यह घोषणापत्र

3 पृष्ठों का एक सैट होता है जिसे अपने शरीर का दान करने वाला भरता है. उस घोषणापत्र में उस के उत्तराधिकारियों के हस्ताक्षर होते हैं जिस में वे अपनी अनापत्ति देते हैं. तीनों फौर्म भरने के बाद एक प्रति दान करने वाला अपने पास रखता है, दूसरी प्रति अपने उत्तराधिकारी को सौंपता है और तीसरी प्रति मैडिकल विभाग को सौंपता है.

वर्ष 1700 के बाद मैडिकल की पढ़ाई काफी नियमित होने लगी, पश्चिमी देशों में मृतकों के शवों की जरूरत पड़ने लगी. लेकिन लोग अपने संबंधी के शव देने को तैयार न थे. उन का मानना था कि जब ईश्वर जजमैंट डे के दिन सारी कब्रों से शव निकालेगा और उन्हें स्वर्ग में भेजेगा तो उन का संबंधी बिना अंगों के होगा. वर्ष 1784 में एक शहर में दंगे इसलिए हो गए क्योंकि एक शख्स कहीं से शव लाया पर अफवाह यह फैल गई कि वह किसी ताजा कब्र को खोद कर शव लाया था.

नाजियों ने तो जिंदा यहूदियों को शव मान कर उन पर पढ़ाई करने तक की छूट दे दी थी. आज जो शवों की कमी हो रही है उसे वर्चुअल कोडिंग और प्लास्टिक डमीज से पूरा तो किया जा रहा है पर यह पढ़ाई आधीअधूरी रह जाती है और तथाकथित डिग्री प्राप्त डाक्टर पूरी बीमारी सम?ा न पाने के कारण कुछ रोगियों, जो ठीक हो सकते थे, को खो देते हैं.

फालसा की खेती

डा. बालाजी विक्रम, डा. पूर्णिमा सिंह सिकरवार

फालसा उत्तराखंड के हिमालय की पहाडि़यों पर झाड़ीनुमा रूप में पाया जाता है और पंजाब, राजस्थान, मध्य प्रदेश, मुंबई, बिहार, पश्चिम बंगाल में एक बहुत ही सीमित पैमाने पर इस की खेती की जाती है. उत्तर प्रदेश में इस की खेती तकरीबन 300 हेक्टेयर जमीन में की जाती है.

फालसा उपोष्ण कटिबंधीय फल है. इस का पौधा झाड़ीनुमा होता है. इन पर कीड़े और बीमारियां कम लगती?हैं. फल छोटेछोटे अम्लीय स्वाद के होते हैं. इस के फल गोल होते?हैं. इस के फलों का रंग कच्ची अवस्था में हरा होता?है और पक जाने पर इस का रंग हलका भूरा या हलका बैगनी हो जाता है.

पकने के बाद फलों को ज्यादा दिनों तक नहीं रखा जा सकता है. वे 1 या 2 दिन बाद ही खराब होने लगते हैं.

कैसे करें खेती

जलवायु और मिट्टी : फालसा केवल उत्तरी भारत के ऊंचे पहाड़ी इलाकों को?छोड़ कर देश में सभी जगहों पर पैदा किया जा सकता है. यह गरम और अधिक शुष्क मैदानी भागों में और अधिक वर्षा वाली नम जगहों पर दोनों ही प्रकार की जलवायु में पैदा किया जाता है. सर्दियों में पत्तियां गिर जाती हैं. फालसा पाले को भी सहन कर लेता है.

खेत में जो मिट्टी दूसरे फलों के लिए सही नहीं होती, फालसा की खेती उस में की जा सकती है यानी इस की खेती सभी तरह की मिट्टियों में संभव है, पर फिर भी अच्छी बढ़वार और उपज के लिए जीवांशयुक्त दोमट मिट्टी होनी चाहिए.

प्रजातियां : फालसा की कोई विशेष प्रजाति नहीं है. विभिन्न क्षेत्रों में इस की किस्म को लोकल या शरबती के नाम से पुकारते हैं. शरबती फालसे के पेड़ की ऊंचाई 3 फुट तक होती है. पेड़ पर लगने वाले कच्चे फल का?स्वाद खट्टा होता है और पके हुए फल का स्वाद खाने में कुछ खट्टा और कुछ मीठा होता है.

हिसार, हरियाणा में इस के पौधे 2 तरह से पहचाने जाते हैं, नाटे फल और लंबे फल. उत्पादकता के लिहाज से नाटे पौधे के पेड़ की ऊंचाई 25 फुट तक होती है. इस पेड़ पर लगने वाला कच्चा फल मीठा और खट्टा होता है. जब यह फल अच्छी तरह से पक जाता?है, तो बहुत ही मीठा हो जाता है.

फैलाव : फालसा का फैलाव ज्यादातर बीज की मदद से किया जाता है. मई महीने में सेहतमंद और पके फलों से बीजों को निकाल लिया जाता?है. बीजों को ज्यादा दिनों तक रखने से उगाने की कूवत खत्म हो जाती है, इसलिए इस को निकालने के 15-20 दिनों के अंदर बो देना चाहिए.

बीजों को पहले क्यारियों या गमलों में बोते हैं. उस के बाद उन्हें गमलों में से निकाल कर खेतों में लगा दिया जाता?है. फालसा का फैलाव कर्तनों द्वारा?भी मुमकिन है. लेकिन कर्तनें देर से और कठिनाई से जड़ें फोड़ती हैं. बीज को उगाने के लिए 15-20 दिन और रोपित करने के लिए 3-4 महीने की जरूरत होती है.

फिलीपींस में कलिकायन तरीके से फालसा बीज रोप कर भी कामयाबी पाई है, लेकिन भारत में अभी तक ऐसा कोई भी प्रयोग नहीं किया गया है.

रोपने का तरीका : फालसा को लगाने के लिए जनवरी या गरमियों में गड्ढे तकरीबन 30 सैंटीमीटर लंबे, ऊंचे और चौड़े आकार के तैयार किए जाते हैं. गड्ढों में 2 टोकरी गोबर की सड़ी हुई खाद और उसे मिट्टी के मिश्रण से भर दिया जाता है.

पौधों को रोपते समय कतार से कतार की दूरी और पौधे से पौधे की दूरी 1.5 से 2.0 मीटर की होनी चाहिए. जब पौधों की ऊंचाई 20-22 सैंटीमीटर हो जाती है, तो बारिश में उन को सही जगह पर रोप दिया जाता है.

नर्सरी में लगे हुए पौधे, जिन में सुषुप्तावस्था में आने से पहले काफी बढ़वार हो चुकी हो, फरवरी में खेत में रोप देना चाहिए.

खाद और उर्वरक : फालसा में खाद देने से उपज को और ज्यादा बढ़ाया जा सकता?है. तकरीबन 10-15 किलोग्राम अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद हर साल देनी चाहिए. फालसा का ज्यादा उत्पादन लेने के लिए 100 किलोग्राम नाइट्रोजन, 40 किलोग्राम फास्फोरस और 25 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर देनी चाहिए.

यह जरूरी है कि नाइट्रोजन वाली खाद 2 भागों में देनी चाहिए. पहला भाग फूल आते समय और दूसरा फल होने के बाद. साथ ही, एक किलोग्राम अमोनियम सल्फेट प्रति पौधा देना चाहिए.

यह फल आकार में बढ़ता है, जिस में जिंक सल्फेट 0.4 फीसदी फल पकने के पहले दिया जाना चाहिए, जिस से फल में जूस की मात्रा बढ़ती है यानी काटने के तुरंत बाद या सर्दी के अंत में खाद को पौधों के चारों तरफ एक मीटर के व्यास में फैला कर मिला देना चाहिए. खाद देने के तुरंत बाद सिंचाई करना जरूरी है.

हैदराबाद में भेड़ की मैगनी, तालाब की सिल्ट, पत्तियों की राख वगैरह देने से फायदा देखा गया है. सिंचाई और निराईगुड़ाई इस के पौधे सहनशील प्रकृति के होते?हैं, इसलिए पूरी तरह से विकसित पौधों को सिंचाई की जरूरत कम होती है. फालसा में पहली सिंचाई खाद डालने के बाद या फरवरी के दूसरेतीसरे हफ्ते में दें, उस के बाद मार्चअप्रैल में सिंचाई 20-25 दिन के अंतराल पर करनी चाहिए और मई के महीने में इस अंतर को घटा कर 15-20 दिन कर देना चाहिए.

पौधों से अच्छी उपज लेने के मकसद से जनवरी से मई तक 15 दिनों के अंतराल से सिंचाइयां देते रहते हैं. प्रत्येक सिंचाई के बाद थालों की मिट्टी को उथले रूप में गाड़ देना चाहिए, जिस से मिट्टी में नमी रहने के साथसाथ खरपतवार खत्म किए जा सकते हैं.

कीट और बीमारियां

फालसा का पौधा ज्यादा सहनशील होने की वजह से इस पर कीड़े और बीमारियां कम लगती हैं. कभीकभी छिलका खाने वाला कीड़ा देखा जाता है. इन से फालसा में विशेष नुकसान पहुंचाने की संभावना नहीं होती है, क्योंकि फालसे के पौधों में हर साल गहन कृंतन किया जाता है. पत्तियों के धब्बों के लिए डाइथेन जैड-78 के 0.3 फीसदी घोल का 15 दिन के फासले पर छिड़काव करते हैं.

फालसा के सफल उत्पादन के लिए प्रयुक्त तकनीक के जरीए 1,05,000 की लागत आती है. फालसा का अच्छा उत्पादन लेने के लिए 3-5 किलोग्राम प्रति पौधा है और जिस का बाजार मूल्य 170 रुपए प्रति किलोग्राम मिल जाता है. इस से एक किसान कुल 89,000 रुपए प्रति हेक्टेयर आमदनी ले सकता है.

अंत:फसल चक्र : कुछ सालों तक कम दूरी तक जड़ें फैलने वाली सब्जियां या 2 दाल वाली फसलें पैदा की जा सकती हैं. फालसा एक पत्ते वाली झाड़ी है और अगर काटाछांटा न जाए, तो यह बढ़ कर पेड़ की तरह हो सकता है.

हर साल पौधों को दिसंबरजनवरी माह में जब पौधा सुषुप्तावस्था में होता है, सिरे को काटना जरूरी होता है. अगर फालसा को ज्यादा दूरी पर (3 मीटर) लगाया जाता है, तो कृंतन जमीन से 90 सैंटीमीटर की ऊंचाई से करना चाहिए और अगर इन के लगाने का अंतर कम (2 मीटर) रखा गया है, तो पौधों को 30 सैंटीमीटर से 45 सैंटीमीटर ऊंचाई दे कर सिरे से काटते हैं.

दक्षिण भारत में फालसा को बिना काटे हुए पेड़ के रूप में बढ़ने दिया जाता है और कहींकहीं पर इन को जमीन के बहुत पास से काट देते हैं. बहुत से फल उत्पादन करने वाले फालसा के पौधों को बिलकुल ही जला देते हैं, जिस से उस के ऊपर कोई भी अंश दिखाई न दे. पंजाब कृषि विभाग, लायलपुर ने अनुसंधान का काम कर के ऐसी जानकारी हासिल की थी कि फालसा के पौधों को जमीन से 120 से 150 सैंटीमीटर की ऊंचाई से काटना चाहिए. ऐसा करने से उन में नई बढ़वार ज्यादा होती है और फल भी ज्यादा होते हैं.

फूल आना और फलना

फालसा में फूल जल्दी पैदा होते?हैं. पौधा लगाने के 3 साल बाद यह अच्छी उपज देने लगते हैं. दक्षिणी भारत में इस के फल मार्च महीने में पकने लगते?हैं और मई महीने के अंत या जून महीने के शुरू तक खत्म हो जाते हैं.

पंजाब और उत्तर प्रदेश में फल मई महीने के अंत तक चलते?हैं और कभीकभी जुलाई महीने तक भी चलते रहते हैं. प्रति पौधे से 3-10 किलोग्राम फल मिलते हैं. इस के फल एकएक कर के तोड़े जाते हैं. जब फलों का रंग लाल हो जाता है, तो फलों को हाथ से सावधानीपूर्वक तोड़ लिया जाता है.

फलों की तुड़ाई सुबह के समय करनी चाहिए. फल तोड़ने के एक दिन बाद ही यह खराब होने लगते?हैं, इसलिए इन को तोड़ कर पास वाले बाजार में बेच दिया जाता है. इस के उद्यान ज्यादातर ठेकेदारों को बेच दिए जाते हैं और फलों को तोड़ कर बाजार में फुटकर रूप में बेचते रहते हैं.

सहयोग- भाग 1: क्या सीमा और राकेश का तलाक हुआ?

सीमा को मायके गए2 महीने बीत चुके थे. अकेलेपन की बेचैनी और परेशानी महसूस करने के साथसाथ राकेश को अपने 5साल केबेटे मोहित की याद भी बहुत सता रही थी.

कुछ रिश्तेदारों ने सीमा को वापिस बुलाया भी, पर वो लौटने को तैयार नहीं थी. राकेश और सीमा की कोविड के दिनों में कई बार जमकर झड़प हुई थी और जैसे ही छूट मिली सीमा मायके जा बैठी.

राकेश ने अब तक सीमा से सीधे बात नहीं की थी. दबाव बनाने के लिए अब उस ने टकराव का रास्ता अपनाने का फैसला कर लिया.

एक रविवार की सुबहसुबह वो सीमा की अनिता बुआ से मिल उन के घर पहुंच गया. राकेश बुआ की बुद्धिमता का कायल था. वो राकेश को काफी पसंद करती थी. सब से महत्वपूर्ण बात ये थी कि उन की अपने भाई के घर में खूब चलती थी. वह विधवा थी शायद इसलिए लोग लिहाज करते थे. उन की बात को नकारने का साहस किसी में न था.

राकेश ने सीमा से झगड़े का जो ब्यौरा दिया, उसे अनिता बुआ ने बड़े ध्यान से खामोश रह कर सुना. हुआ यह था कि एक रविवार की सुबह राकेश मां के घुटनों के दर्द का इलाज कराने उन्हें डाक्टर को दिखाने ले गया था.

रिपोर्ट और एक्सरे घर में छूट जाने के कारण उसे घंटे भर बाद ही अकेले घर लौटना पड़ा.

ड्राइंग रूम की खिड़की खुली हुई थी. इस के पास खड़े हो कर राकेश ने वो बातें सुन ली जिन्हें सीमा ने उस से छिपा रखा था.

ड्राइंगरूम में सीमा के साथ उस का सहयोगी अध्यापक अजय मौजूद था. अजय पहले भी उन के घर कई बार आया था, पर हमेशा राकेश की मौजूदगी में. उस की पत्नी का करीब 4 साल पूर्व अपने पहले बच्चे को जन्म देते हुए देहांत हो गया था. बाद में वो शिशु भी बचाया नहीं जा सका.

‘‘अरे, यहां बैठों, सीमा. चायनाश्ते के चक्कर में न पड़ के कुछ प्यारमोहब्बत की बात करो और अपने हाथों को काबू में रखो.’’ सीमा ने अजय को डांटा था, पर उस की आवाज में गुस्से व नाराजगी के भाव नाटकीय लगे राकेश को.

‘‘अरे, जब दिल काबू में नहीं रहा, तो हाथ कैसे काबू में रखूं?’’

‘‘बेकार की बात न करो और सीधी तरह अपनी जगह बैठे रहो. मैं चाय बना कर लाती हूं.’’

‘‘भाई डियर, चाय की जगह अपने प्यारे हाथों से मीठी सी काफी मिला दो, तो मजा आ जाए.’’

‘‘रसोई में आने की जरूरत मत करना, नहीं तो बेलन पड़ेगा.’’

‘‘क्यों इतना दूर भागती हो? और कब तक भागोगी?’’

सीमा ने अजय के इन सवालों का कोई जवाब नहीं दिया था. अंदर से अखबार के पन्ने पलटने की आवाजें आने लगी, तो राकेश खिड़की के पास से हट कर बाहर सड़क पर आ गया.

उस का तनमन ईर्ष्या, गुस्से व नफरत की आग में सुलग रहा था. उस ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि सीमा ने अपने सहयोगी के साथ अवैध प्रेम संबंध बना रखे थे.

राकेश ने गुस्से भरे लहजे में आगे बुआ को कहा, ‘‘बुआजी, अपनी काली करतूत नहीं देख रही है आप की भतीजी और मैं ने जरा हाथ उठा दिया, तो भाग कर मायके जा बैठी है. अब मेरे सब्र का बांध टूटने को तैयार है. अगर वो फौरन नहीं लौटी, तो बैठी रहेगी मायके में जिंदगी भर.’’

‘‘राकेश बेटा, औरतों पर हाथ उठाना ठीक बात नहीं है,’’ बुआ सोचपूर्ण लहजे में बोली, ‘‘फिर सीमा का कहना है कि वो चरित्रहीन नहीं है. तुम मारपीट करने के लिए पछतावा जाहिर कर देते, तो सारा मामला कब का सुलझ गया होता.’’

‘‘बुआजी, मैं कभी नहीं झुकूंगा इस मामले में.’’

‘‘और सीमा भी झुकने को तैयार नहीं है. फिर बात कैसे बनेगी?’’

‘‘मैं ने कोर्ट का रास्ता पकड़ लिया, तो सारी अक्ल ठिकाने आ जाएगी उस की.’’

राकेश की इस धमकी को ले कर बुआ ने फौरन कोई प्रतिक्रिया प्रकट नहीं करी. वो सोच में डूबी खामोश रही.

सौतेली- भाग 4: शेफाली के मन में क्यों भर गई थी नफरत

‘‘मैं इस के लिए तुम पर जोर भी नहीं डालूंगा, मगर तुम उस से एक बार मिल लो…शिष्टाचार के नाते. वह ऊपर कमरे में है,’’ पापा ने कहा.

‘‘मैं सफर की वजह से बहुत थकी हुई हूं, पापा. इस वक्त आराम करना चाहती हूं. इस बारे में बाद में बात करेंगे,’’ शेफाली ने अपने कमरे की तरफ बढ़ते हुए रूखी आवाज में कहा.

शेफाली कमरे में आई तो सबकुछ वैसे का वैसा ही था. किसी भी चीज को उस की जगह से हटाया नहीं गया था.

मानसी और अंकुर वहां उस के इंतजार में थे.

कोशिश करने पर भी शेफाली उन के चेहरों या आंखों में कोई मायूसी नहीं ढूंढ़ सकी. इस का अर्थ था कि उन्होंने मम्मी की जगह लेने वाली औरत को स्वीकार कर लिया था.

‘‘तुम दोनों की पढ़ाई कैसी चल रही है?’’ शेफाली ने पूछा.

‘‘एकदम फर्स्ट क्लास, दीदी,’’ मानसी ने जवाब दिया.

‘‘और तुम्हारी नई मम्मी कैसी हैं?’’ शेफाली ने टटोलने वाली नजरों से दोनों की ओर देख कर पूछा.

‘‘बहुत अच्छी. दीदी, तुम ने मां को नहीं देखा?’’ मानसी ने पूछा.

‘‘नहीं, क्योंकि मैं देखना ही नहीं चाहती,’’ शेफाली ने कहा.

‘‘ऐसी भी क्या बेरुखी, दीदी. नई मम्मी तो रोज ही तुम्हारी बातें करती हैं. उन का कहना है कि तुम बेहद मासूम और अच्छी हो.’’

‘‘जब मैं ने कभी उन को देखा नहीं, कभी उन से मिली नहीं, तब उन्होंने मेरे अच्छे और मासूम होने की बात कैसे कह दी? ऐसी मीठी और चिकनीचुपड़ी बातों से कोई पापा को और तुम को खुश कर सकता है, मुझे नहीं,’’ शेफाली ने कहा.

शेफाली की बातें सुन कर मानसी और अंकुर एकदूसरे का चेहरा देखने लगे.

उन के चेहरे के भावों को देख कर शेफाली को ऐसा लगा था कि उन को उस की बातें ज्यादा अच्छी नहीं लगी थीं.

मानसी  से चाय और साथ में कुछ खाने के लिए लाने को कह कर शेफाली हाथमुंह धोने और कपडे़ बदलने के लिए बाथरूम में चली गई.

सौतेली मां को ले कर शेफाली के अंदर कशमकश जारी थी. आखिर तो उस का सामना सौतेली मां से होना ही था. एक ही घर में रहते हुए ऐसा संभव नहीं था कि उस का सामना न हो.

मानसी चाय के साथ नमकीन और डबलरोटी के पीस पर मक्खन लगा कर ले आई थी.

भूख के साथ सफर की थकान थी सो थोड़ा खाने और चाय पीने के बाद शेफाली थकान मिटाने के लिए बिस्तर पर लेट गई.

मस्तिष्क में विचारों के चक्रवात के चलते शेफाली कब सो गई उस को इस का पता भी नहीं चला.

शेफाली ने सपने में देखा कि मम्मी अपना हाथ उस के माथे पर फेर रही हैं. नींद टूट गई पर बंद आंखों में इस बात का एहसास होते हुए भी कि? मम्मी अब इस दुनिया में नहीं हैं, शेफाली ने उस स्पर्श का सुख लिया.

फिर अचानक ही शेफाली को लगा कि हाथ का वह कोमल स्पर्श सपना नहीं यथार्थ है. कोई वास्तव में ही उस के माथे पर धीरेधीरे अपना कोमल हाथ फेर रहा था.

चौंकते हुए शेफाली ने अपनी बंद आंखें खोल दीं.

आंखें खोलते ही उस को जो चेहरा नजर आया वह विश्वास करने वाला नहीं था. वह अपनी आंखों को बारबार मलने को विवश हो गई.

थोड़ी देर में शेफाली को जब लगा कि उस की आंखें जो देख रही हैं वह सच है तो वह बोली, ‘‘आप?’’

दरअसल, शेफाली की आंखों के सामने वंदना का सौम्य और शांत चेहरा था. गंभीर, गहरी नजरें और अधरों पर मुसकराहट.

‘‘हां, मैं. बहुत हैरानी हो रही है न मुझ को देख कर. होनी भी चाहिए. किस रिश्ते से तुम्हारे सामने हूं यह जानने के बाद शायद इस हैरानी की जगह नफरत ले ले, वंदना ने कहा.

‘‘मैं आप से कैसे नफरत कर सकती हूं?’’ शेफाली ने कहा.

‘‘मुझ से नहीं, लेकिन अपनी मां की जगह लेने वाली एक बुरी औरत से तो नफरत कर सकती हो. वह बुरी औरत मैं ही हूं. मैं ही हूं तुम्हारी सौतेली मां जिस की शक्ल देखना भी तुम को गवारा नहीं. बिना देखे और जाने ही जिस से तुम नफरत करती रही हो. मैं आज वह नफरत तुम्हारी इन आंखों में देखना चाहती हूं.

‘‘हम जब पहले मिले थे उस समय तुम को मेरे साथ अपने रिश्ते की जानकारी नहीं थी. पर मैं सब जानती थी. तुम ने सौतेली मां के कारण घर आने से इनकार कर दिया था. किंतु सौतेली मां होने के बाद भी मैं अपनी इस रूठी हुई बेटी को देखे बिना नहीं रह सकती थी. इसलिए अपनी असली पहचान को छिपा कर मैं तुम को देखने चल पड़ी थी. तुम्हारे पापा, तुम्हारी बूआ ने भी मेरा पूरा साथ दिया. भाभी को सहेली के बेटी बता कर अपने घर में रखा. मैं अपनी बेटी के साथ रही, उस को यह बतलाए बगैर कि मैं ही उस की सौतेली मां हूं. वह मां जिस से वह नफरत करती है.

‘‘याद है तुम ने मुझ से कहा था कि मैं बहुत अच्छी हूं. तब तुम्हारी नजर में हमारा कोई रिश्ता नहीं था. रिश्ते तो प्यार के होते हैं. वह सगे और सौतेले कैसे हो सकते हैं? फिर भी इस हकीकत को झुठलाया नहीं जा सकता कि मैं मां जरूर हूं, लेकिन सौतेली हूं. तुम को मुझ से नफरत करने का हक है. सौतेली मांएं होती ही हैं नफरत और बदनामी झेलने के लिए,’’ वंदना की आवाज में उस के दिल का दर्द था.

‘‘नहीं, सौतेली आप नहीं. सौतेली तो मैं हूं जिस ने आप को जाने बिना ही आप को बुरा समझा, आप से नफरत की. मुझ को अपनेआप पर शर्म आ रही है. क्या आप अपनी इस नादान बेटी को माफ नहीं करेंगी?’’ आंखों में आंसू लिए वंदना की तरफ देखती हुई शेफाली ने कहा.

‘‘धत, पगली कहीं की,’’ वंदना ने झिड़कने वाले अंदाज से कहा और शेफाली का सिर अपनी छाती से लगा लिया.

प्रेम के स्पर्श में सौतेलापन नहीं होता. यह शेफाली को अब महसूस हो रहा था. कोई भी रिश्ता हमेशा बुरा नहीं होता. बुरी होती है किसी रिश्ते को ले कर बनी परंपरागत भ्रांतियां.

Monsoon Special: बारिश के मौसम में ऐसे बनाएं कच्चे पपीते की चटनी

लेखक-डा. रश्मि यादव

पपीता सभी जगह मिलने वाला सदाबहार फल है, पर पेड़ से टूटने के बाद ज्यादा दिनों तक इसे ताजा नहीं रखा जा सकता. ताजा पपीता ही सेहत के लिए अच्छा होता है. इस समय मौसम में हो रहे बदलाव के कारण आंधीपानी के चलते कच्चे पपीते टूट कर गिर जाते हैं. ग्रामीण क्षेत्रों में कच्चे पपीते के उपयोग की जानकारी न होने की कमी में लोग पपीते को फेंक देते हैं. ऐसा न करें, क्योंकि कच्चा पपीता भी हमारी सेहत के लिए लाभकारी होता है,

इसलिए इस का मूल्यसंवर्धन कर संरक्षित करें. पपीता में पकने की अवधि जैसजैसे बढ़ती है, वैसेवैसे इस में विटामिन सी की मात्रा बढ़ती जाती है. वैज्ञानिक शोध के मुताबिक, कच्चे पपीते में विटामिन सी 40 से 90 मिलीग्राम, अधपके पपीते में विटामिन सी 50 से 90 मिलीग्राम और पके पपीते में 60 से 140 मिलीग्राम तक विटामिन सी बढ़ जाता है. इस में शर्करा और विटामिन सी मई से अक्तूबर तक अधिक होता है. पपीते से विभिन्न खाद्य पदार्थ बनाए जाते हैं,

जैसे पके पपीते से जैम और जैली बनाए जाते हैं, वहीं कच्चे पपीते से चटनी, सब्जी आदि बनाई जाती हैं. यहां पर हम आप को कच्चे पपीते की चटनी बनाने के बारे में जानकारी दे रहे हैं :

बनाने की विधि

* पपीते को धो कर छील लें और उसे कद्दूकस कर लें. कद्दूकस किए पपीते को नमक के पानी में मुलायम होने तक पकाएं.

* पके पपीते में चीनी और पिसा प्याज, लहसुन व कटी अदरक मिला कर गाढ़ा होने तक पकाएं.

* अब आंच से उतार कर बनी चटनी में सभी मसाले, छुआरा व किशमिश मिला दें.

* इस के बाद 5 ग्राम सोडियम बैंजोएट मिलाएं.

* तैयार चटनी में 20 से 25 ग्राम एसिटिक एसिड मिला दें.

* अब इस में भुना हुआ जीरा मिला कर अच्छी तरह से मिक्स कर दें.

* गरम अवस्था में ही चटनी को साफ जार में भर कर संरक्षित कर लें. अगर आप चाहें तो इस का अच्छा व्यवसाय भी किया जा सकता है, जो आमदनी का एक अच्छा स्रोत साबित हो सकता है.

Monsoon Special: 4 सप्ताह में आप भी करें 4 किलो वजन कम

नेहा 4 हफ्ते बाद होने वाली अपनी बैस्ट फ्रैंड की बैचलर पार्टी में हौट दिखना चाहती है, लेकिन अपने बढ़ते वजन से परेशान है कि पार्टी में शौर्ट ड्रैस कैसे पहने? इन 4 हफ्तों में अपना वजन कैसे घटाए? नेहा की इस समस्या का समाधान करते हुए पचौली स्पा की ओनर न्यूट्रीशियन प्रीति सेठ कहती हैं, ‘‘आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में वजन घटाना सचमुच एक चैलेंज है. मोटापा मौडर्न युग का रोग है, जो हर तरह की बीमारी को न्योता देता है. अगर आप कम समय में स्लिमट्रिम बनना चाहती हैं तो आप को ऐसे फिटनैस प्लान की जरूरत है जो 4 हफ्तों में आप के फिटनैस से जुड़े सपने को पूरा कर दे.’’

फिटनैस के 4 वीक

एक बार मोटी हो जाएं तो फिर नौर्मल शरीर पाना बहुत कठिन हो जाता है. लेकिन कुछ उपाय ऐसे हैं, जिन्हें तवज्जो दे कर आप सिर्फ 4 वीक में 4 किलोग्राम वजन कम करने में कामयाब हो सकती हैं.

बीएमआर को बढ़ाएं

अगर आप वजन कम करना चाहती हैं, तो सब से पहले अपने बीएमआर यानी बेसल मैटाबोलिक रेट को बढ़ाना जरूरी है. इसे बढ़ाने के लिए आप को अपनी दिनचर्या और खानपान में बदलाव लाने की जरूरत है.

4 बातों को कहें न

– ओवरईटिंग न करें.

– तरल पदार्थों का सेवन बिना सोचेसमझे न करें.

– कृत्रिम शुगर लेने से बचें.

– ब्रेकफास्ट मिस न करें.

4 बातों का ध्यान रखें

– रोज सुबह 1 गिलास कुनकुने पानी में नीबू का रस और शहद मिला कर पीएं.

– संतुलित आहार का सेवन करें.

– स्नैक्स में पौष्टिक चीजों का सेवन करें. जैसे सलाद, गाजर, खीरा, ककड़ी, भुने चने, मुरमुरा आदि.

– तेजी से वेट लौस के लिए जरूरी है आप डाइट के साथसाथ ऐक्सरसाइज भी शुरू कर दें. शुरू में चाहे कम ऐक्सरसाइज करें लेकिन बाद में धीरेधीरे समय बढ़ाती जाएं. ऐक्सरसाइज से पहले जंप करना, टहलना, बौडी स्ट्रैच आदि से खुद को वार्मअप करना न भूलें. इस से बौडी में गरमाहट आएगी.

4 चीजें करें

फिजिकल ऐक्टिविटीज :

वजन कम करने के लिए जितना जरूरी खानपान पर नियंत्रण रखना है, उतना ही जरूरी है शरीर को ऐक्टिव रखना भी. अत: रोज कम से कम 30 मिनट व्यायाम जरूर करें. शरीर के हर हिस्से के लिए ऐक्सरसाइज करें. एरोबिक्स कर सकती हैं, ट्रेडमिल की मदद भी ले सकती हैं.

भोजन में अंतराल :

ज्यादातर महिलाएं हड़बड़ी में सुबह का नाश्ता छोड़ देती हैं और दोपहर में भी ठीक तरह से नहीं खाती हैं तो कई बार जरूरत से ज्यादा खा लेती हैं, क्योंकि सुबह का नाश्ता न करने के कारण तेज भूख लगती है. या फिर रात को डिनर में पूरे दिन की कमी पूरी करती हैं. यह भोजन करने का सही तरीका नहीं है. नियमित अंतराल पर थोड़ाथोड़ा खाते रहना चाहिए ताकि शरीर को नियमित ऊर्जा मिलती रहे और वह निरंतर सही तरीके से चलता रहे.

बौडी को हाईड्रेट करें :

अपनी बौडी को हाईड्रेट करने के लिए रोज कम से कम 4-5 लिटर पानी जरूर पीएं. इस से शरीर के टौक्सिन और हानिकारक चीजें बाहर निकल जाती हैं. यदि आप गरम प्रदेश में रहती हैं तो और ज्यादा पानी पीने की जरूरत है. यदि आप को कोई बीमारी है तो कितना पानी पीना चाहिए इस संबंध में चिकित्सक से परामर्श जरूर लें.

डाइट :

फिट रहने के लिए संतुलित डाइट का सेवन जरूरी है. आप की डाइट में फाइबरयुक्त भोजन जैसे, चोकर, सब्जियां और फल जरूर होने चाहिए. कार्बोहाइड्रेट के बजाय प्रोटीनयुक्त भोजन का सेवन अधिक करना चाहिए. दिन की शुरुआत प्रोटीनयुक्त भोजन जैसे दूध और अन्य दुग्ध उत्पादों से करें. रोज फल, पपीता और सेब जरूर खाएं. नीबू पानी, लस्सी, छाछ, ग्रीन टी, कोल्ड कौफी को मिला कर रोज 15-16 गिलास पानी का सेवन वजन कम करने के लिए जरूरी है.

सैंपल डाइट (पहला और दूसरा दिन)

ब्रेकफास्ट : चाय, कौफी या दूध के साथ पनीर या सोया सैंडविच.

मिड मील : नीबू पानी के साथ 6-7 बादाम.

लंच: सलाद और चोकर की रोटी के साथ पनीर या सोया भुरजी.

शाम का नाश्ता: 2 डाइजैस्टिव बिस्कुट के साथ चाय.

डिनर: सलाद के साथ पनीर या सोया टिक्की.

तीसरा दिन

ब्रेकफास्ट: आमलेट के साथ बेसन का चिल्ला.

मिड मील: नीबू पानी के साथ सब्जियां.

शाम का नाश्ता: 2 डाइजैस्टिव बिस्कुट के साथ चाय.

डिनर: दूध और व्हीट फ्लैक्स.

चौथा दिन

घिया: इसे किसी भी रूप में खाएं. चाहें तो घिया स्टफ्ड रोटी बनाएं या सब्जी.

5वां और छठा दिन

नियमित भोजन, लेकिन चोकर की रोटी के साथ.

7वां दिन

तरल पेयपदार्थ और फलों के साथ डिटौक्स. 4 हफ्ते के इस डाइट चार्ट का पालन करने पर 4 किलोग्राम वजन घटाना आसान हो जाएगा. बस थोड़ी सी मेहनत और इच्छाशक्ति की जरूरत है. इस दौरान समयसमय पर चिकित्सक से परामर्श लेना न भूलें.

Anupamaa: फैंस ने की तोषु से शिकायत, अनुपमा-बरखा ने किया शानदार डांस

सुधांशु पांडे, रूपाली गांगुली स्टारर सीरियल अनुपमा में इन दिनों लगातार ट्विस्ट दिखाया जा रहा है. शो के अपकमिंग एपिसोड में दर्शकों को हाईवोल्टेज ड्रामा देखने को मिलने वाला है. दरअसल शो में राखी दवे की भी एंट्री हो चुकी है. जिससे दर्शकों को एंटरटेनमेंट का जबरदस्त तड़का देखने को मिल रहा है.

शो में दिखाया जा रहा है कि बा भी अनुपमा के ससुराल वालों से बदला ले रही है. वह बरखा की जमकर बेईज्जती कर रही है. शो के अपकमिंग एपिसोड का दर्शकों को बेसब्री से इंतजार है.  इस बीच शो के कलाकारों ने किंजल के बेबी शॉवर की झलक सोशल मीडिया पर शेयर की है.

 

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आशीष मेहरोत्रा (तोषु) ने इंस्टाग्राम पर निधि शाह (किंजल) संग कई तस्वीरें शेयर की हैं. फैंस ने अपना रिएक्शन भी देना शुरू कर दिया तो वहीं कई फैंस आशीष से शिकायत भी करने लगे कि उन्होंने काफी लंबे समय बाद किंजल के साथ तस्वीरें शेयर की हैं.

 

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सेट से एक वीडियो सामने आया है, जिसमें अश्लेषा सावंत यानी कि बरखा भाभी तो हरियाणवी गाने पर जमकर धमाल मचाती हुई नजर आ रही हैं. इस वीडियो में बरखा भाभी के साथ अनुपमा भी नजर आ रही हैं.

 

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शो में दिखाया जाएगा कि बा सभी के सामने बरखा की बेइज्जत करेगी तो दूसरी ओर बरखा भी अपनी अगली चाल चल  देगी. वह राखी दवे को किंजल के साथ हुए हादसे के बारे में बताएगी जिससे शाह हाउस में जमकर हंगामा होगा.

 

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द्रोपदी मुर्मू की प्रशासनिक दक्षता और देश

इन दिनों देश के चाक चौराहे, दफ्तर पर सोशल मीडिया में एक ही चर्चा है प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी का मास्टर स्ट्रोक, राष्ट्रपति चुनाव और उम्मीदवार द्रोपदी मुर्मू के गांव में बिजली लगाए जाने की तैयारियां.

दरअसल,इस सब को सुर्खियों में देख कर के यह सवाल उठ खड़ा हुआ है कि हमारी भावी राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू जो  मंत्री और राज्यपाल रही हैं अपने गांव का विकास नहीं कर पाई अपने गांव में बिजली नहीं पहुंचा पाई हैं तो फिर यह कैसी प्रशासनिक दक्षता है. क्या वे राजनीति में एकदम सीधी साधी भोली भाली है क्या उन्हें समस्याओं से कोई सरोकार नहीं है. जब आप अपने ही गांव में अपने ही क्षेत्र में विकास नहीं करवा पाईं है तो भला सबसे महत्वपूर्ण “संवैधानिक” पद पर बैठकर किए करके देश का क्या भला कर पाएंगी?

वस्तुत: भारत एक ऐसा देश है जहां कोई पंच और सरपंच बन जाता है तो अपने गली मोहल्ले और गांव का विकास करने लगता है. और उससे भी बड़ा सच यह है कि निककमा है, नहीं करता है तो लोग उसे उकसा करके विकास करने पर मजबूर कर देते हैं.

ऐसे में सीधा सरल सवाल है क्यों द्रोपदी मुर्मू के क्षेत्र में विकास नहीं हो पाया  जबकि आप इतनी प्रभावशाली मंत्री थीं, राज्यपाल थी. और जिनकी सीधी पहुंच मुख्य सचिव और मुख्यमंत्री से थी, और बातें हुआ करती थी, राजनीति में जिनका इतना  वर्चस्व था अगर उनका अपना गांव अंधेरे में था, तो यह एक आश्चर्य की बात है. कहीं ऐसा तो नहीं सुर्खियां बटोरता उपरोक्त समाचार ही गलत हो.

मगर,आजादी के 75 वर्ष बाद भी अगर ऐसा है तो फिर सवाल तो उठना स्वाभाविक है कि आखिर हमारी भावी राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू की प्रशासनिक दक्षता क्षमता भला कैसी है? जो अपने गांव का विकास नहीं करवा पाई, राष्ट्रपति जैसा सर्वोच्च पद मिलने का उनका गांव इंतजार करता रहा. हमारा विनम्र सवाल यह भी है कि

क्या आप राजनीति में बिल्कुल भी बिल्कुल सन्यासी हैं… आपको अपने गांव और क्षेत्र के विकास से कोई मतलब नहीं है, जो होना है अपने आप होगा, प्रशासन के अधिकारी करेंगे आप किसी से कुछ भी नहीं कहेंगी?

सवाल यह भी है कि आखिर आप इतने साल राजनीति में रह करके  पदों पर रह कर के संवैधानिक हस्ती बनने के बाद भी अगर अपने गांव बिजली नहीं पहुंचा पाई तो फिर आने वाले समय में यह गरीब विकासोन्मुखी देश आपसे क्या अपेक्षा करेगा.

यह है सच्चाई ….

इसे देश का दुर्भाग्य कहा जाए या लालफीताशाही का भयावह मकड़जाल की देश और प्रदेश के वीवीआईपी प्रमुख हस्तियों के गांव मोहल्ले और शहर भी समस्याओं से ग्रस्त हैं जाने किस समय का इंतजार किया जा रहा है जब विकास की गंगा बहेगी.

यह दुर्भाग्य है कि आज राष्ट्रपति पद पर सुर्खियां बटोर रहीं द्रौपदी मुर्मू का पैतृक गांव बिजली की रोशनी से कोसों दूर था. मयूरभंज जिले के कुसुम प्रखंड अंतर्गत डूंगुरीशाही गांव उस दिन का इंतजार कर रहा था जब गांव की बेटी देश के सर्वोच्च पद पर उम्मीदवार बनेगी.

द्रौपदी मुर्मू ओडिशा के मयूरभंज जिले के ऊपरबेडा गांव में पैदा हुई थीं. लगभग 3500 की आबादी वाले इस गांव में दो टोले हैं. बड़ा शाही और डूंगरीशाही. बड़ाशाही में तो बिजली है लेकिन डूंगरीशाही आज भी अंधकार में डूबा हुआ था. यहां के लोग केरोसीन तेल से डीबरी जला कर रात का अंधियारा भगाते रहे और मोबाइल चार्ज करने के लिए आसपास कहीं दूर जाते थे.  द्रौपदी मुर्मू राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार बनीं तो डूंगरीशाही चर्चा में आया. इस गांव में जब कुछ पत्रकार पहुंचे तो उन्हें यहां बिजली ही नहीं मिली. इसके बाद ये गांव सुर्खियों में आ गया. मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के निर्देश पर इस गांव में बिजली पहुंचाने की पहल हुई. यह सच है कि  भावी राष्ट्रपति  द्रौपदी मुर्मू के दिवंगत भाई भगत चरण के बेटे बिरंची नारायण टुडू समेत गांव में अन्य 20 परिवार कैरोसीन की रोशनी से रात के अंधकार को दूर भगाते हैं. वहीं, स्थानीय लोगों को मोबाइल चार्ज करने के लिए एक डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर बसे गांव जाना पड़ता था.

द्रौपदी मुर्मू का पैतृक गांव डूंगुरीशाही मयूरभंज जिले के रायरंगपुर से 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. गांव के लोगों को आज  गर्व है, क्योंकि उनके गांव की बेटी, उनकी बहन देश के सबसे बड़े संवैधानिक पद संभालने जा रही है. मगर उनके राजनीतिक और प्रशासनिक कामकाज पर लोग खुल कर बोल रहे हैं की आप अगर सक्रिय होतीं तो गांव में बिजली कब का पंहुच जाती .

Ghum Hai Kisikey Pyaar Meiin के करेंट ट्रैक से ऊबे फैंस, मेकर्स को किया ट्रोल

टीवी सीरियल ‘गुम है किसी के प्यार में’ इन  लगातार सोशल मीडिया पर छाया हुआ है. फैंस कई महीनों से सोशल मीडिया पर शो को लेकर मेकर्स को ट्रोल कर रहे हैं. आइए बताते हैं, क्या है पूरा मामला.

दरअसल हाल ही में शो में दिखाया कि सम्राट की मौत हो गई. इसके कहानी का ट्रैक पूरी तरह बदल गई है. सीरियल ‘गुम है किसी के प्यार में’ की कहानी में सेरोगेसी ट्रैक शुरू हो चुका है.

शो में दिखाया जा रहा है कि सई और विराट ने गीता को अपने बच्चे की सेरोगेट मदर के तौर पर चुना है. हालांकि भवानी इस बात से खुश नहीं है. वह जल्द ही भपाखी को सई के बच्चे की सेरोगेट मदर बना देगी

कहानी में यह बदलाव फैंस को हजम नहीं हो रहा है. फैंस का कहना है कि मेकर्स पाखी को बीच में लाकर विराट और सई की लव स्टोरी को बर्बाद कर रहे हैं.

 

शो के इस ट्रैक के कारण फैंस मेकर्स को सोशल मीडिया पर ट्रोल कर रहे हैं. फैंस लगातार सोशल मीडिया पर ‘गुम है किसी के प्यार में’ को बंद करने की गुहार लगा रहे हैं. फैंस मेकर्स को खूब सुना रहे हैं. फैंस का कहना है कि विराट और सई के बीच पाखी को लाकर कहानी को बर्बाद किया जा रहा है.

 

पुलिस के गले की फांस बनी गैंगस्टर पप्पू देव की मौत

सौजन्य- मनोहर कहानियां

संजय कुमार उर्फ पप्पूदेव सहरसा का डौन था. उस के खिलाफ डेढ़ सौ से अधिक केस दर्ज थे. लोग उस के नाम से ही कांपते थे, लेकिन पुलिस हिरासत में जिस तरह उस की संदिग्ध मौत हुई, उस से पुलिस पर अंगुली उठना स्वाभाविक है. अब देखना यह है कि क्या इस मामले की सच्चाई सामने आ सकेगी?

बिहार में उत्तरी सहरसा, मधेपुरा और सुपौर इन तीनों जिलों के इलाके को कोसी डिवीजन के रूप में

जाना जाता है. कोसी नदी का यह इलाका यानी पौराणिक मिथिला राज्य. राजा जनक की नगरी मिथिला यहीं थी. भारत में सब से अधिक मखाना की पैदावार कोसी डिवीजन में ही होती है. इस डिवीजन का मुख्य केंद्र सहरसा शहर है.

बिहार की पृष्ठभूमि को ले कर जो फिल्में बनी हैं, उन में गुंडागर्दी जम कर दिखाई गई है. सन 2005 में प्रकाश झा ने ‘अपहरण’ फिल्म बनाई थी, जिस में अपहरण को एक फलतेफूलते उद्योग के रूप में दिखाया गया था. तबरेज आलम नामक विधायक को इस उद्योग का संचालक बताया गया था. पूरे बिहार में जिस किसी का अपहरण होता था, वह तबरेज आलम के इशारे पर ही होता था.

फिल्म की कहानी भले ही काल्पनिक थी, पर इस की प्रेरणा कोसी के डौन के रूप में मशहूर संजय कुमार उर्फ पप्पूदेव नामक खूंखार डौन से ली गई थी. खेतीकिसानी से जुड़े ब्राह्मणों को बिहार में भूमिहार ब्राह्मण के रूप में जाना जाता है.

बिहार के बिहरा गांव के रहने वाले दुर्गानंद देव राज्य के विद्युत बोर्ड के पूर्णिया में स्थित औफिस में नौकरी करते थे. उन के बेटे संजय कुमार उर्फ पप्पूदेव ने पूर्णिया के एक इंटर कालेज से इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई की. उस के बाद उस का पढ़ने का मन नहीं हुआ तो पढ़ाई छोड़ कर वह दोस्तों के साथ आवारागर्दी करने लगा.

उस का गठा पहलवानों जैसा शरीर था, साथ ही जो होगा देखा जाएगा, वाली बिंदास सोच थी. इसलिए वह कुछ कर दिखाने के लिए तत्पर था. उस के मन में फिल्म ‘धूम’ की तरह बाइक चलाने की चाह थी, पर आर्थिक मजबूरी की वजह से उस की यह इच्छा पूरी नहीं हो रही थी.

खुद कमाता नहीं था और पिता के पास पैसे नहीं थे कि वह बेटे के लिए बाइक खरीद देते. फिर आवारा बेटे को पैसा होने पर भी कोई बाप बाइक खरीद कर नहीं देगा.

जब कहीं से बाइक मिलने की उम्मीद नहीं दिखाई दी तो अपनी इच्छा पूरी करने के लिए पप्पूदेव ने कछार गांव के पास हाईवे पर एक व्यक्ति की बाइक छीन ली. अपराध की दुनिया में संजय कुमार उर्फ पप्पूदेव का यह पहला कदम था.

उसी दौरान सहरसा में पप्पूदेव के चचेरे भाई का कुंवर सिंह नामक एक गुंडे से झगड़ा हो गया. मारपीट में पप्पूदेव के चचेरे भाई की हत्या हो गई. भाई की हत्या से युवा संजय कुमार उर्फ पप्पूदेव का खून खौल उठा.

पप्पूदेव ने सहरसा जा कर एक दिन मौका पा कर भरे बाजार में कुंवर सिंह की गरदन काट दी और फरार हो गया.

उन दिनों बिहार में अपराधियों का स्वर्णयुग चल रहा था. अलगअलग इलाकों में अलगअलग गैंगों का साम्राज्य था. जोगमनी में भोला तिवारी और मनोजदेव, खगडि़या में बुलेट सिंह, बेगूसराय में फंटूस सिंह, बाढ़ में टुन्नू सिंह. इन सभी में सब से अधिक शक्तिशाली डौन के रूप में सूरजभान सिंह को जाना जाता था. कुंवर सिंह की हत्या करने के बाद पप्पूदेव पूर्णिया जा कर बूटन सिंह गैंग में शामिल हो गया.

जबरदस्त हिम्मत, लापरवाह स्वभाव तो उस का था ही. इस में बूटन सिंह के साथ आने के बाद हाथ में हथियार आया तो पप्पूदेव तेजी से आगे बढ़ने लगा.

हथियार मिलने के बाद तेजी से बढ़ा गैंग

मोकामा में रजिस्ट्रार का अपहरण कर के रकम वसूल लेने के बाद उस की हत्या कर दी गई थी. उस समय पप्पूदेव को एक वाहन की सख्त जरूरत थी, इसलिए हाथीदह के पास उस ने पूर्व मुख्यमंत्री के समधी की कार छीन ली. जोगमनी में भगवान यादव की हत्या, मुजफ्फरपुर के पास भगवानपुर में टोलबा सिंह की हत्या में उस का नाम उछला.

इस सिलसिले के बाद पप्पूदेव आधुनिक हथियार खरीदने के लिए बूटन सिंह के साथ सीवान गया. वहां हथियार बेचने वाले से पैसों को ले कर कुछ कहासुनी हो गई तो गोली चला कर दोनों ने 4 लोगों की हत्या कर दी और हथियार लूट कर वापस आ गए.

सहरसा में अनुराग वस्त्रालय पर एके-47 से गोली चला कर पप्पूदेव ने 3 लोगों की हत्या कर दी थी. इस के बाद बिहार की सरकार ने उस पर 50 हजार रुपए का ईनाम घोषित कर दिया था.

उसे जीवित या मुर्दा पकड़ने के लिए एड़ीचोटी का जोर लगाने वाले इंसपेक्टर मेराज हुसैन और कांस्टेबल राजकिशोर की हत्या हो गई. इस में भी पप्पूदेव का नाम सामने आया. इस तरह 1990-95 के बीच कोसी डौन के रूप में पप्पूदेव की पकड़ बन गई.

उन दिनों बिहार में गैगस्टरों की खासियत अलगअलग थी. 13 जुलाई, 1998 को लालू सरकार के मंत्री बृजबिहारी वीआईपी सुरक्षा के साथ पटना के सरकारी अस्पताल इलाज के लिए गए थे. तभी मोकामा के महारथी सूरजभान सिंह के दाहिने हाथ निरजेश उर्फ नागा सिंह ने एके-47 से बृजबिहारी की हत्या कर दी थी. इस के बाद गैंग में नागा सिंह का रुतबा बढ़ गया था. उसी बीच पप्पूदेव के मन में मोकामा आ कर अपना वर्चस्व जमाने का विचार आया. पर उस के पास आधुनिक हथियार नहीं थे.

बूटन सिंह अपनी अमेरिकन कारबाइन जान की तरह संभाल कर रखता था. इस के अलावा उस के पास 2 एके-47 भी थीं. एक रात को तीनों हथियार चोरी कर के पप्पूदेव मोकामा आ गया. मोकामा आ कर उस ने नागा सिंह से दोस्ती कर ली. सहरसा आ कर पप्पूदेव ने अपहरण का धंधा शुरू किया.

बड़े व्यापारी, डाक्टर और वकीलों की लिस्ट बना कर उस ने धड़ाधड़ शिकार पकड़ने शुरू कर दिए. उस की गैंग काफी सशक्त थी. हथियारों की भी कमी नहीं थी. इसलिए बहुत थोड़े समय में ही पूरे बिहार में उस के नाम का सिक्का चलने लगा.

मात्र बिहार ही नहीं, पूर्वी उत्तर प्रदेश तक उस का अपहरण का कारोबार फैल गया था. सहरसा नेपाल की सीमा मात्र 170 किलोमीटर ही दूर है. इसलिए यहां पुलिस का दबाव बढ़ता तो वह भाग कर नेपाल चला जाता. वहां उस ने अपने रहने की बढि़या व्यवस्था कर रखी थी.

नेपाल में संबंध बन जाने के बाद उस ने नकली नोटों का कारोबार शुरू कर दिया. सन 2003 में 60 लाख नकली नोटों के साथ वह नेपाल में पकड़ा गया तो उसे वहां की जेल में रहना पड़ा.

उस के बाद पप्पूदेव ने नेपाल के विराटनगर के रहने वाले व्यापारी तुलसीदास अग्रवाल का अपहरण कर लिया तो इस में नेपाल और भारत सरकार के बीच तनाव पैदा हो गया था.

तुलसीदास को छुड़ाने के लिए मध्यस्थ के रूप में राज्यसभा के एक सांसद ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. कहा जाता है कि इस अपहरण में पप्पूदेव ने 11 करोड़ रुपए की फिरौती वसूली थी, जिस में से सांसद ने भी अपना हिस्सा लिया था.

बिहार ही नहीं, यूपी और नेपाल में भी चलने लगा पप्पूदेव का सिक्का

सूरजभान सिंह को राजनीति का चस्का लग चुका था. जेल में रहते हुए सन 2000 के बिहार विधानसभा के चुनाव में निर्दलीय के रूप में सूरजभान सिंह ने चुनाव लड़ा. चुनाव तक उन्होंने गैंग के सदस्यों से शांत रहने के लिए कहा था.

बिहार के इतिहास में कोई भी निर्दलीय उम्मीदवार इतने जबरदस्त बहुमत से नहीं जीता था, जितने बहुमत से सूरजभान ने यह चुनाव जीता था. तब तक पप्पूदेव ने अपहरण के धंधे में नेपाल तक अपना शासन जमा लिया था.

जिन दिनों सहरसा में पप्पूदेव का उदय हो रहा था, उस समय तक वहां आनंदमोहन सिंह गैंग का वर्चस्व था. 7 साल पहले दोनों एक साथ जब जेल में थे, उस समय दोनों के बीच लुकाछिपी का खेल चलता रहा था.

गैंगस्टर आनंदमोहन सिंह जल्दी ही जाग गया और राजनीति में जा कर समाज में रुतबे वाला स्थान प्राप्त कर लिया. यह देख कर पप्पूदेव की भी समझ में आ गया कि आज के समय में अपहरण के धंधे की अपेक्षा राजनीति अधिक मलाईदार और इज्जत वाला धंधा है.

अकेले सहरसा में ही पप्पूदेव पर 38 आपराधिक मामले दर्ज हो चुके थे और पूरे बिहार की बात की जाए तो डेढ़ सौ से भी अधिक आपराधिक मामले पप्पूदेव पर दर्ज थे. कुल 19 साल जेल में रहने के बाद पप्पूदेव ने धंधा बदल दिया.

धाक तो जमी ही थी, इसलिए विवादास्पद या बखेड़ेवाली जमीनों की सौदेबाजी में वह कूद पड़ा. सरकार या बैंक द्वारा जब्त की गई प्रौपर्टी पप्पूदेव खरीदने लगा. पप्पूदेव के इस आदेश के बाद जल्दी कोई आगे आने की हिम्मत नहीं कर रहा था.

जिन जमीनों पर मुकदमा चल रहा होता, उस तरह की जमीनों को पप्पूदेव पानी के भाव खरीद लेता था. दादागिरी की बदौलत मामला सुलटा कर मलाई काटने में पप्पूदेव को मजा आ गया.

इस के अलावा जुलाई, 2022 में होने वाले विधान परिषद के चुनाव में खड़े होने के लिए उस ने जनसंपर्क बढ़ा दिया, साथ ही अनेक राजनीतिक पार्टियों को भी अपने इरादे से अवगत करा दिया.

राजनीति में जाने के लिए वह तत्पर था. इस समय सहरसा की इस सीट पर बिहार के वन पर्यावरण और जल मंत्री नीरज कुमार बबलू की पत्नी नूतन सिंह एमएलसी हैं. ये दोनों इस समय भाजपा में हैं.

बंपरचौक में रहने वाले राकेशदास की सराही रोड पर एक मौके की जमीन पर अनेक बिल्डरों की नजर थी. लोगों की नजरों में चढ़ चुकी यह जमीन लगभग 20 करोड़ रुपए की थी. इसलिए उस जमीन के लिए पप्पूदेव ने राकेशदास को बयाना दे दिया.

संदिग्ध अवस्था में हो गई पप्पूदेव की मौत

18 दिसंबर, 2021 को उस जमीन की लेवलिंग करने के लिए पप्पूदेव के आदमी काम पर लग गए. किसी तरह का बवाल न हो, इस के लिए मजदूरों के साथ पप्पूदेव के आदमी हथियारों के साथ वहां मौजूद थे.

उसी शाम को लगभग 50 पुलिस वालों की टीम वहां पहुंची. ‘यह जमीन तो उमेश शाह की है, इस पर पप्पूदेव जबरदस्ती कब्जा कर रहा है.’ यह कह पुलिस ने पप्पूदेव के 3 सहयोगियों को पकड़ कर उन के रिवौल्वर और 14 कारतूस जब्त कर लिए.

बाकी के सहयोगी कार में सवार हो कर भाग निकले. उस के बाद यह पुलिस टीम पप्पूदेव के घर बिहरा पहुंची. 2 सहयोगियों को घर से खींच कर बाहर लाया गया और 2 रायफलों के साथ 50 कारतूस जब्त कर के उन का मुंह खुलवाया गया. पता चला कि उस समय थोड़ी दूर पर ही रहने वाले उमेश ठाकुर के घर पप्पूदेव खाना खाने गया हुआ था.

यह जानकारी मिलते ही पुलिस वालों की वह टीम उमेश ठाकुर के घर पहुंची और उमेश ठाकुर के घर को घेर लिया. आमनेसामने गोलियां चलने लगीं. हाथ में रायफल ले कर पप्पूदेव ने दीवार फांद कर भागने की कोशिश की, पर पुलिस वालों ने दौड़ कर उसे पकड़ लिया.

रात 9 बजे गिरफ्तार कर उसे सहरसा थाने लाया गया. वहां इंसपेक्टर के अलावा डीएसपी निशिकांत भारती ने उस से पूछताछ शुरू की. उसी दौरान एसपी लिपि सिंह ने प्रैस कौन्फ्रैंस कर के जो बताया, उस के अनुसार, पप्पूदेव ने छाती में दर्द की शिकायत की थी. इसलिए उसे सहरसा के अस्पताल ले जाया गया था.

रात 3 बज कर 10 मिनट पर डाक्टर ने बताया कि यह हार्टअटैक का मामला है, इसलिए इसे पटना अथवा दरभंगा ले जाना पड़ेगा. उसी बीच पुलिस की व्यवस्था की जा रही थी कि 4 बजे पप्पूदेव की सांसें थम गईं.

सुबहसुबह ही पुलिस पप्पूदेव की लाश का अंतिम संस्कार करने की तैयारी कर रही थी कि उसी बीच अस्पताल के बाहर पप्पूदेव के लगभग 5 सौ समर्थकों की भीड़ इकट्ठा हो गई. पप्पूदेव की लाश की हालत देख कर इकट्ठा भीड़ उग्र हो उठी और पुलिस के खिलाफ नारेबाजी करते हुए आरोप लगाया कि पुलिस ने पप्पूदेव की हत्या कर दी है.

एसपी लिपि सिंह ने प्रैस कौन्फ्रैंस में हार्टअटैक की बात बताई थी. पप्पूदेव के समर्थन में उमड़ी भीड़ में पप्पूदेव जैसे लोग भी शामिल हो गए थे, जिस से मामला और उग्र हो गया.

हाईवे पर चक्काजाम कर के समर्थकों ने टायर जलाए और 4 घंटे तक रोड को बंद रखा. भूमिहार ब्राह्मण एकता मंच के अध्यक्ष और राष्ट्रीय जनजन पार्टी के अध्यक्ष आशुतोष कुमार ने पूरी ताकत से समर्थकों के साथ प्रदर्शन किया और एसपी लिपि सिंह पर तमाम गंभीर आरोप लगा डाले.

जन अधिकार पार्टी (जपा) के अध्यक्ष पप्पू यादव ने भी प्रैस कौन्फ्रैंस कर के कहा कि पप्पूदेव विधान परिषद का चुनाव न लड़ सके, इसलिए पूरी योजना बना कर उस की हत्या कर दी गई है.

बिहार  के पूर्व परिवहन मंत्री अजीत कुमार ने पत्रकारों को जानकारी दी कि जिस विवादास्पद जमीन के लिए यह बखेड़ा खड़ा किया गया है, उस में उमेश शाह की मात्र एक सादे कागज की अरजी पर पुलिस ने कैसे मान लिया कि वह जमीन उमेश शाह की ही है.

अस्पताल में संजय कुमार उर्फ पप्पूदेव के बदले पुलिस ने संजय वर्मा नाम क्यों लिखाया? जरा भी झिझके बगैर उन्होंने कहा कि थाने में ही डीएसपी निशिकांत भारती ने पप्पूदेव की हत्या कर दी थी. उस के बाद लाश को अस्पताल ले जाया गया था. उस के बाद हार्टअटैक की कहानी बनाई गई है.

पत्रकारों से उन्होंने सवाल किया कि कृष्ण कुमार नामक एक अपराधी लंबे समय से सर्किट हाउस में रह रहा है. पप्पूदेव को थाने लाया गया तो वह किस हैसियत से वहां मौजूद था.

राज्य के पूर्व डीआईजी सुधीर कुमार सिंह ने आक्रोश व्यक्त करते हुए लिखित रूप में पूछा कि किस कारण से बिना वारंट के पुलिस पप्पूदेव के घर गई? आमनेसामने गोली चली है तो उन हथियारों पर फिंगरप्रिंट की जांच क्यों नहीं कराई गई?

थाना इंचार्ज, डीएसपी निशिकांत भारती और एसपी लिपि सिंह, इन तीनों को इस हत्या के लिए जिम्मेदार माना जाना चाहिए. अगर इस तरह पुलिस ही न्याय तोड़ने का काम करती है तो राज्य में अदालतों की क्या जरूरत है.

पुलिस आई शक के दायरे में

इस उग्रता के बीच अंत में पोस्टमार्टम के लिए मैडिकल टीम का गठन किया गया और वीडियोग्राफी का भी आदेश दिया गया.

डा. एस.पी. बिस्वास, डा. के.के. मधुप, डा. अखिलेश प्रसाद और डा. एस.के. आजाद की टीम ने जब पोस्टमार्टम कर के रिपोर्ट दी तो रिपोर्ट कुछ और ही कह रही थी. पप्पूदेव की लाश पर कुल 40 चोटों के निशान थे. इन में से 30 निशान अति गंभीर थे.

सख्त और भारी चीज से किए गए प्रहार किसकिस अंग पर थे, इस पूरी लिस्ट के साथ प्लास जैसे किसी चीज से नाखून उखाड़ने का भी उल्लेख किया गया था पोस्टमार्टम रिपोर्ट में.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में महत्त्वपूर्ण मुद्दा सब से भयानक प्रहार सिर के बाएं हिस्से पर था. 2 इंच लंबा और 2 इंच चौड़ा यह प्रहार सिर पर इतने जोर से किया गया था कि इस के कारण दिमाग के अंदर की नसें फट जाने से ही ब्रेन हेमरेज हुआ था और उसी से हार्ट और श्वसन क्रिया बंद हो गई थी और उस की मौत हो गई थी.

जिन अखबारों ने पहले लिपि सिंह के कहने पर हार्टअटैक की कहानी छापी थी, उन्हीं अखबारों ने पोस्टमार्टम की यह रिपोर्ट स्पष्ट रूप से छापी. जिस से ग्रामीण इलाके में ‘पुलिसिया गुंडा’ शब्द प्रचलित हो गया.

कोसी डिवीजन में उठे आक्रोश को दबाने के लिए डीआईजी के रूप में सुपरकौप आईपीएस अधिकारी शिवदीप लांडे को भेजा गया. इसी के साथ राज्य के अन्य

21 आईपीएस अधिकारियों का तबादला कर दिया गया.

सहरसा एसपी लिपि सिंह के खिलाफ पहले भी निकलने वाली शोभा यात्रा में लापरवाही का आरोप था. उस के बाद यह दूसरा गंभीर आरोप लगा. इस के बावजूद भी उन का तबादला नहीं किया गया.

दरअसल, लिपि सिंह के पिता आर.सी.पी. सिंह केंद्र सरकार में मंत्री हैं और नीतीश कुमार के खास मित्र हैं. नीतीश कुमार ने ही उन्हें राज्यसभा सांसद बनाया था. लिपि सिंह के पति सुहर्ष भगत भी बिहार में ही आईएएस अधिकारी हैं.

पप्पूदेव को न्याय मिल सके, इस के लिए भूमिहार ब्राह्मण एकता मंच और अन्य संगठनों द्वारा आंदोलन चलाया जा रहा है. बाबूलाल शौर्य नामक ग्रामीण नेता अनशन पर बैठे हैं. अनेक पार्टियों के नेता पप्पूदेव के परिवार वालों को सांत्वना देने आ रहे हैं.

पप्पूदेव की पत्नी पूनमदेव के पास जिला पंचायत का चुनाव लड़ने का अनुभव है. इसलिए राजनीतिक पार्टियां उन्हें आगामी चुनाव में उम्मीदवार बनाने की फिराक में हैं. द्य

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