इन दिनों देश के चाक चौराहे, दफ्तर पर सोशल मीडिया में एक ही चर्चा है प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी का मास्टर स्ट्रोक, राष्ट्रपति चुनाव और उम्मीदवार द्रोपदी मुर्मू के गांव में बिजली लगाए जाने की तैयारियां.

दरअसल,इस सब को सुर्खियों में देख कर के यह सवाल उठ खड़ा हुआ है कि हमारी भावी राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू जो  मंत्री और राज्यपाल रही हैं अपने गांव का विकास नहीं कर पाई अपने गांव में बिजली नहीं पहुंचा पाई हैं तो फिर यह कैसी प्रशासनिक दक्षता है. क्या वे राजनीति में एकदम सीधी साधी भोली भाली है क्या उन्हें समस्याओं से कोई सरोकार नहीं है. जब आप अपने ही गांव में अपने ही क्षेत्र में विकास नहीं करवा पाईं है तो भला सबसे महत्वपूर्ण "संवैधानिक" पद पर बैठकर किए करके देश का क्या भला कर पाएंगी?

वस्तुत: भारत एक ऐसा देश है जहां कोई पंच और सरपंच बन जाता है तो अपने गली मोहल्ले और गांव का विकास करने लगता है. और उससे भी बड़ा सच यह है कि निककमा है, नहीं करता है तो लोग उसे उकसा करके विकास करने पर मजबूर कर देते हैं.

ऐसे में सीधा सरल सवाल है क्यों द्रोपदी मुर्मू के क्षेत्र में विकास नहीं हो पाया  जबकि आप इतनी प्रभावशाली मंत्री थीं, राज्यपाल थी. और जिनकी सीधी पहुंच मुख्य सचिव और मुख्यमंत्री से थी, और बातें हुआ करती थी, राजनीति में जिनका इतना  वर्चस्व था अगर उनका अपना गांव अंधेरे में था, तो यह एक आश्चर्य की बात है. कहीं ऐसा तो नहीं सुर्खियां बटोरता उपरोक्त समाचार ही गलत हो.

मगर,आजादी के 75 वर्ष बाद भी अगर ऐसा है तो फिर सवाल तो उठना स्वाभाविक है कि आखिर हमारी भावी राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू की प्रशासनिक दक्षता क्षमता भला कैसी है? जो अपने गांव का विकास नहीं करवा पाई, राष्ट्रपति जैसा सर्वोच्च पद मिलने का उनका गांव इंतजार करता रहा. हमारा विनम्र सवाल यह भी है कि

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