सौजन्य- मनोहर कहानियां

संजय कुमार उर्फ पप्पूदेव सहरसा का डौन था. उस के खिलाफ डेढ़ सौ से अधिक केस दर्ज थे. लोग उस के नाम से ही कांपते थे, लेकिन पुलिस हिरासत में जिस तरह उस की संदिग्ध मौत हुई, उस से पुलिस पर अंगुली उठना स्वाभाविक है. अब देखना यह है कि क्या इस मामले की सच्चाई सामने आ सकेगी?

बिहार में उत्तरी सहरसा, मधेपुरा और सुपौर इन तीनों जिलों के इलाके को कोसी डिवीजन के रूप में

जाना जाता है. कोसी नदी का यह इलाका यानी पौराणिक मिथिला राज्य. राजा जनक की नगरी मिथिला यहीं थी. भारत में सब से अधिक मखाना की पैदावार कोसी डिवीजन में ही होती है. इस डिवीजन का मुख्य केंद्र सहरसा शहर है.

बिहार की पृष्ठभूमि को ले कर जो फिल्में बनी हैं, उन में गुंडागर्दी जम कर दिखाई गई है. सन 2005 में प्रकाश झा ने ‘अपहरण’ फिल्म बनाई थी, जिस में अपहरण को एक फलतेफूलते उद्योग के रूप में दिखाया गया था. तबरेज आलम नामक विधायक को इस उद्योग का संचालक बताया गया था. पूरे बिहार में जिस किसी का अपहरण होता था, वह तबरेज आलम के इशारे पर ही होता था.

फिल्म की कहानी भले ही काल्पनिक थी, पर इस की प्रेरणा कोसी के डौन के रूप में मशहूर संजय कुमार उर्फ पप्पूदेव नामक खूंखार डौन से ली गई थी. खेतीकिसानी से जुड़े ब्राह्मणों को बिहार में भूमिहार ब्राह्मण के रूप में जाना जाता है.

बिहार के बिहरा गांव के रहने वाले दुर्गानंद देव राज्य के विद्युत बोर्ड के पूर्णिया में स्थित औफिस में नौकरी करते थे. उन के बेटे संजय कुमार उर्फ पप्पूदेव ने पूर्णिया के एक इंटर कालेज से इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई की. उस के बाद उस का पढ़ने का मन नहीं हुआ तो पढ़ाई छोड़ कर वह दोस्तों के साथ आवारागर्दी करने लगा.

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