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तंत्र मंत्र: पैसों के लिए दी इंसानी बलि

तकनीक और विज्ञान के जमाने में तंत्रमंत्र को ताकतवर बता कर ठगी करने वाले ढोंगियों की कमी नहीं है.

छत्तीसगढ़ के जिला बिलासपुर में थाना सिरगिट्टी के प्रभारी शांत कुमार साहू सुबह करीब 10 बजे अन्य पुलिसकर्मियों को कोरोना प्रकोप से संबंधित आवश्यक निर्देश देने में मशगूल थे. केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा एक बार फिर लौकडाउन के नए दिशानिर्देश जारी किए जा चुके थे. उसे सख्ती से पालन के लिए राज्य सरकारों को भी विशेष हिदायतें दी गई थीं.

पुलिस को एक बार फिर बड़ी जिम्मेदारी निभानी थी. छत्तीसगढ़ में भी उसी दिन से लौकडाउन लगा दिया गया था. इस के चलते पुलिस के कंधों पर कानूनव्यवस्था को दुरुस्त रखने की और भी ज्यादा जिम्मेदारी आ गई थी.

इस मुद्दे को ले कर कई तरह की भ्रामक चर्चाएं भी गर्म थीं. इसे ध्यान में रखते हुए पुलिसकर्मियों को विभिन्न कार्यभार सौंपे जा रहे थे. उसी दौरान एक व्यक्ति काफी घबराया हुआ थाने में घुस आया. शांत कुमार उस के उड़े हुए चेहरे की रंगत देख कर समझ गए कि वह जरूर किसी गंभीर परेशानी में है.

उन्होंने उसे वहीं थोड़ी दूरी पर बैठने का इशारा किया. वह एक खाली कुरसी पर बैठ गया. उस के कपड़े अस्तव्यस्त थे. कुछ मिनट बाद थानाप्रभारी ने सहजता से पूछा, ‘‘क्या बात है? तुम कौन हो?’’

‘‘साहब, मेरा नाम रामप्रसाद साहू है. मैं खरकेना, कोडियापार से आया हूं. मेरे छोटे भाई सुरेश कुमार साहू की हत्या हो गई है. उस की लाश एक अनजान

वीराने घर में पड़ी हुई है…’’ कहते हुए वह सुबकने लगा.

थानाप्रभारी ने पहले उस के लिए एक गिलास पानी मंगवाया. पानी पीने के बाद थानाप्रभारी ने उस से कहा, ‘‘अब बताओ, कहां पर हत्या हुई है? उस के बारे में क्या जानते हो?’’

‘‘जी, साहबजी, कल शाम अंधेरा होने पर मेरा छोटा भाई किसी दोस्त के यहां जाने को कह कर बाइक से निकला था, उस की रात में ही किसी ने हत्या कर दी. हत्यारों ने उस का काफी बेरहमी से खून कर दिया है. आप अभी वहां पर चलिए. लाश वहीं वीरान घर में पड़ी हुई है.’’

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हत्या जैसे गंभीर मामले को सुन कर थानाप्रभारी शांत कुमार साहू ने कहा, ‘‘तुम्हें कैसे मालूम कि वहां हत्या हुई है? क्या तुम भी उस में शामिल थे? सब कुछ सचसच बताओ. झूठ मत बोलना.’’

इसी के साथ थानाप्रभारी ने एक कांस्टेबल को उस की पूरी बात लिखने के लिए कहा और खुद मोबाइल में रिकौर्ड करने लगे. रामप्रसाद बताने लगा, ‘‘साहबजी, मेरा भाई घर से जब निकला था तब उस के हाथ में एक थैला था. उस में पूजापाठ और दान का कुछ सामान था. उस ने जाते हुए कहा था कि थैले में पुजारी सुभाषदास का कुछ बचा हुआ सामान है. यही सामान पुजारी को देने जा रहा है.’’

‘‘फिर क्या हुआ?’’

थानाप्रभारी के टोकने के बाद रामप्रसाद आगे बोला, ‘‘देर रात तक जब वह नहीं लौटा तब मैं उस के बताए पुजारी के पास जाने के लिए निकला. किंतु पुजारी के रहने वाले स्थान से काफी पहले ही मुझे वीरान खंडहरनुमा घर के दरवाजे के बाहर उस का थैला दिख गया. उस में वह सामान नहीं था, जो वह ले कर गया था. लेकिन मैं ने उस थैले को पहचान लिया था, क्योंकि वह मेरे घर के बरामदे में ही 2 सप्ताह से टंगा था.

‘‘वहीं मेरे भाई की एक झाड़ी में चप्पल भी दिख गई. कुछ दूरी पर मेरे भाई की मोटरसाइकिल भी नजर आ गई. मैं समझ गया कि हो न हो भाई इसी मकान में होगा.

‘‘मैं ने उस के अधखुले दरवाजे से अंदर जा कर देखा तो मेरे होश उड़ गए. वहां का दृश्य देख कर मैं डर गया और भागाभागा सीधा आप के पास आ गया. आगे का वर्णन मैं नहीं कर सकता. आप खुद ही वहीं चल कर देख लीजिए और मेरे भाई के हत्यारे को पकड़ लीजिए.’’

यह बात 13 अप्रैल, 2021 की है. रामप्रसाद के बयान के आधार पर पहले उस की तरफ से थाने में एक लिखित शिकायत दर्ज की गई. उस के बाद थानाप्रभारी तत्काल घटनास्थल के लिए कुछ पुलिसकर्मियों को ले कर निकल पड़े. साथ में रामप्रसाद साहू को भी ले लिया.

घटनास्थल ठीक वैसा ही था, जैसा रामप्रसाद साहू ने थाने में वर्णन किया था. वहां पहुंच कर घटनास्थल का मुआयना किया, जो वास्तव में काफी वीभत्स और डरावना था. वहीं सुरेश साहू की क्षतविक्षत लाश पड़ी थी. उस के चेहरे और शरीर के दूसरे कई हिस्से जख्मी थी, जिन से खून निकल कर सूख चूका था.

पास में ही खून से सनी एक कुल्हाड़ी पड़ी थी और पूजापाठ के मुख्य सामान बिखरे पड़े थे. उन्हें देख कर ऐसा लग रहा था मानो पूजापाठ के बाद उस की बलि चढ़ाई गई हो.

यह घटना बीती रात 12 अप्रैल की थी, उस दिन अमावस्या की काली रात थी. शांत कुमार साहू को समझते देर नहीं लगी कि सारा घटनाक्रम तंत्रमंत्र और नरबलि से जुड़ा हुआ है.

जांचपड़ताल के अलावा रामप्रसाद के बयानों के अनुसार यह तथ्य सामने आ गया कि सुरेश साहू तंत्रमंत्र में बहुत विश्वास करता था. वह 2 तांत्रिकों के संपर्क में भी था. अब सवाल यह था कि आखिर सुरेश साहू की हत्या किस ने की? तांत्रिक पुजारियों ने या फिर किसी और ने तांत्रिकों के कहने पर उस की नरबलि दे दी?

मामला गंभीर होने के बावजूद पुलिस को कोई वैसी सूचना या जानकारी नहीं मिल पा रही थी, जिस से मामले को जल्द सुलझाया जा सके.

संयोग से प्रदेश में 13 अप्रैल से लौकडाउन लगने के कारण पुलिस और प्रशासन के जिम्मे अतिरिक्त जिम्मेदारियां आ गई थीं. नतीजतन सुरेश कुमार साहू हत्या की तहकीकात का मामला टल गया.

लगभग 2 महीने तक लौकडाउन लगा रहा. लौकडाउन खुलने के बाद थानाप्रभारी शांत कुमार साहू ने सुरेश साहू हत्याकांड की फाइल एक बार फिर से पलटनी शुरू की. उस की नए सिरे से जांच के लिए एक खास टीम बनाई गई.

पुलिस टीम ने अपराधियों का सुराग लगाने के लिए लगभग 70 संदिग्ध लोगों के बयान दर्ज किए. जांच में 2 तथाकथित तांत्रिक सुभाषदास मानिकपुरी और माखनदास मानिकपुरी के नाम सामने आ रहे थे. दोनों ही महीनों से लापता थे.

थानाप्रभारी ने दोनों की खोज करवाई. रामप्रसाद ने भी इस की पुष्टि कर दी कि उस के भाई की उन से जानपहचान थी और घटना के दिन वह उन के पास ही गया था.

उन की तलाश के लिए पुलिस ने मुखबिर की मदद ली. तब 16 नवंबर, 2021 को माखनदास पकड़ में आ गया. उस ने अपने घर वालों को बता रखा था कि वह सतना में रेलवे का गार्ड है. पुलिस उसे सतना से पकड़ कर बिलासपुर ले आई.

पूछताछ करने पर पहले तो उस ने साफ इंकार कर दिया और बताया कि वह रोजीरोटी कमाने के लिए सतना में प्राइवेट काम कर रहा रहा था. घर वालों से झूठ बोला था कि वह रेलवे में गार्ड है.

सुरेश हत्याकांड के सिलसिले में कड़ी पूछताछ में वह टूट गया. उस ने सुरेश के साथ हुई वारदात की सारी कहानी पुलिस को बता दी. उस के बाद पुलिस के सामने नई चुनौती सुभाषदास मानिकपुरी को ढूंढ निकालने की थी.

अपने साथी सुभाषदास के बारे में माखनदास ने सिर्फ इतना बताया था कि वह जबलपुर में कहीं सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी कर रहा है. वह विवाहित है. उस की एक प्रेमिका भी है. उस की पत्नी से बहुत पहले ही संबंध टूट चुके थे.

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पुलिस ने जांच को आगे बढ़ाते हुए सुभाषदास की प्रेमिका का नाम मालूम कर लिया. फिर जबलपुर बिल्डिंग निर्माण वाले इलाके में गार्ड की नौकरी में लगे लोगों से पूछताछ करने लगी.

पुलिस ने पहले छत्तीसगढ़ के रहने वाले गार्ड्स के बारे में जानकारी जुटाई. इस में जबलपुर पुलिस की मदद से जांच टीम को सुभाषदास की भी जानकारी मिल गई.

वह मैडिकल कालेज में बतौर गार्ड तैनात था. पुलिस उसे हिरासत में ले कर बिलासपुर आई. पहले तो उस ने नानुकुर की और गिरफ्तारी को ले कर सवालजवाब करने लगा. किंतु जब उसे सुरेश हत्याकांड और तांत्रिक अनुष्ठान के बारे में बताया, तब वह ठंडा पड़ गया. पूछताछ के दौरान पुलिस ने उस का सामना माखनदास से करवा दिया. उसे देख कर वह समझ गया कि अब उस का बचना नामुमकिन है. वह सुरेश हत्याकांड से संबंधित सारी बातें बताने को तैयार हो गया.

उस ने पुलिस के सामने अपने इकबालिया बयान में पूरे घटनाक्रम को सिलसिलेवार तरीके से बता दिया. साथ ही यह भी स्वीकार कर लिया कि सुरेश की हत्या में इस्तेमाल की गई कुल्हाड़ी भी उसी की थी, जिसे वह अपने घर ले आया था. दोनों ढोंगी तांत्रिकों की अंधविश्वास की करतूतें कुछ इस प्रकार सामने आईं—

सुभाषदास मानिकपुरी (40 साल) मूलत: छत्तीसगढ़ के सरगुजा के बुंदिया लखनपुर का रहने वाला था. बचपन से ही उसे यह विश्वास हो गया था कि तंत्रमंत्र के द्वारा सिद्धि प्राप्त होती है और खूब धन पाया जा सकता है.

उस ने मात्र 8वीं तक की ही पढ़ाई की थी. जैसेजैसे बड़ा हुआ उस की तंत्रमंत्र और पराशक्ति की साधना में रुचि लेने लगा. वह वैसे लोगों से ही अधिक मिलता था, जो तंत्रमंत्र की बातें करते थे.

उसे लगता था कि इस में इतनी अधिक शक्ति होती है कि इस से दुनिया का कोई भी काम चंद मिनटों में सिद्ध किया जा सकता है. यह बात उस के मनमस्तिष्क में काफी गहराई तक बैठ चुकी थी.

नतीजा यह हुआ था कि उस का मन कभी किसी काम में नहीं लगता था. वह लाखों रुपए कमाने के लिए तंत्रमंत्र सामानों हनुमान सिक्के, पीला कछुआ, रुद्राक्ष माला, पारद लिंग, अघोरपंथी, बारहसिंघा, हत्थाजोड़ी आदि को हासिल करने की कोशिश में लगा रहता था.

जहां कभी कोई ऐसी बात होती या कोई इस सोच का व्यक्ति मिलता, तो वह उस के साथ हो लेता था. घंटों तंत्रमंत्र की चर्चा में लगा रहता था. उस से मिलनेजुलने वाले लोगों को हर समस्या का उपाय तांत्रिक साधन से बताता था.

जब उस के घर में लोगों ने देखा कि सुभाष हमेशा तंत्रमंत्र की दुनिया में रमा रहता है, तब उस की शादी करवा दी. मातापिता ने सोचा घरगृहस्थी की जिम्मेदारी आने पर उस में सुधार हो जाएगा.

उस का विवाह सरगुजा के प्रेम नगर की एक युवती के साथ हुआ, लेकिन कुछ समय बाद ही पत्नी उस के व्यवहार और बातों से ऊब गई और उसे छोड़ कर अपने मायके चली गई.

सुभाषदास भी अपना गांव छोड़ बिलासपुर के कोरियापारा, सिरगिट्टी में जा कर रहने लगा. वहीं उस के एक महिला से प्रेम संबंध बन गए थे. अकेली रहने वाली महिला को लोग घरेलू उपचार करने वाली के रूप में जानते थे. वह उस के पास रहते हुए तंत्रमंत्र का काम भी करने लगा.

जब लोग महिला के पास किसी मर्ज को ठीक करवाने के लिए आते थे, तब वह उस से तंत्रमंत्र की बातें कर उस की ताकत के बारे में बताता था. दुख को दूर करने के लिए पूजापाठ करने की सलाह देता था. धीरेधीरे दूरदराज के लोगों के बीच वह तांत्रिक पूजापाठ करवाने वाले साधक के रूप में प्रसिद्ध हो गया था.

उसी दरम्यान उस की मुलाकात माखनदास मानिकपुरी से हो गई. वह भी उस का हमउम्र था और अमसैना, थाना सिरगिट्टी का निवासी था. उस की भी तंत्रमंत्र में गहरी रुचि थी.

उस की इच्छा थी कि कोई ऐसा जादू हो जाए और कहीं से गड़ा हुआ अकूत खजाना हाथ लग जाए, ताकि उस की जिंदगी मजे में कटने लगे. उस ने भी सुभाषदास की  प्रसिद्धि और साधना के बारे में सुन रखा था. माखनदास उस के पास आनेजाने लगा. उस ने उसे एक तरह से अपना गुरु बना लिया था.

अब दोनों ही गुरुशिष्य बन कर आसपास के लोगों की हर समस्या का समाधान तंत्रमंत्र से करने का दावा करने लगे थे. यही उन के जीविकोपार्जन का जरिया बन गया था. पूजापाठ के बदले में पैसे लेते थे, लेकिन उन्हें बड़ा हाथ नहीं लगा था.

दूसरों को तो धनसंपदा की बरसात का दावा करते थे, गड़े धन को ढूंढ निकालने का आश्वासन देते, लेकिन इस के लिए कोई वैसा इच्छुक व्यक्ति नहीं मिला था.

एक दिन की बात है. माखनदास मानिकपुरी ने सुभाषदास से जिज्ञासावश पूछा, ‘‘गुरु, क्या सचमुच कोई ऐसी अदृश्य ताकत है जो हमें रुपएपैसे से मालामाल कर सकती है? यह हनुमान सिक्का

क्या है? इस के बारे में सुना तो मैं ने बहुत  है, मगर…’’

संशय भाव से माखनदास के पूछने पर सुभाषदास ने जवाब दिया, ‘‘अरे, अगरमगर क्या होता है, क्या तुम्हें इस बात में शक है कि भूतप्रेत और आत्मा होती है. नहीं न…’’

‘‘ नहीं, कभी नहीं. यह तो मानना पड़ेगा कि आत्मा होती है भूतप्रेत होते हैं.’’ माखनदास ने सहमति में सिर हिलाते हुए कहा.

‘‘तो फिर इस में क्या इंकार कि इन शैतानी शक्तियों को अगर प्रसन्न कर लिया जाए तो उस के जरिए कुछ भी कियाकरवाया जा सकता है. और सुनो, हनुमान सिक्का अगर किसी को मिल जाए तो आदमी लखपति क्या करोड़पति बन सकता है. ऐसी ही कितनी विधाएं और साधनाएं हैं. मैं इस दिशा में सफलता की ओर बहुत आगे बढ़ चुका हूं. मुझे विश्वास है कि शीघ्र ही मुझे इन शक्तियों का आशीर्वाद मिलने लगेगा.’’ सुभाषदास ने आंखें घुमाते हुए कहा.

‘‘गुरु, फिर तो आप मालामाल हो जाओगे, अब मुझे विश्वास हो चला है कि यह ताकत होती है. मुझे जो भी कहोगे, मैं करूंगा.’’ माखनदास खुश होते हुए बोला.

‘‘मुझे बहुत अफसोस होता है कि तुझ जैसा समझदार आदमी क्यों बारबार रास्ते से भटक जाता है. तुम ने पहले भी मेरा साथ दिया था और मैं ने इस दिशा में कई सफलताएं पाई हैं. तभी तो लोगों का हम पर भरोसा भी बना है.’’ सुभाषदास ने समझाया.

‘‘गुरु, जब सफलता नहीं मिलती तो मन टूट जाता है, कितने ही लोगों को मैं ने आप से मिलवाया और आप ने उन को हनुमान सिक्के, 21 नाखून के रास्ते बतलाए, तंत्रमंत्र भी किया… मगर लाभ कहां मिला? ऐसे में आप ही बताओ, मन कैसे नहीं विचलित होगा. फिर भी मैं मानता हूं कि तंत्रमंत्र की इस विद्या से कोई भी लखपति, करोड़पति बन सकता है. कई बार साधना में असफलता भी मिलती है. उस के कई कारण हो सकते हैं. आप में कूवत भी है.’’ माखनदास बोला.

‘‘होगा, जरूर होगा. हमें सफलता भी मिलेगी, लोगों को हमारी साधना का भी लाभ मिलेगा. बस, भरोसा रखो. एक दिन तुम भी देखना, किस तरह मैं तंत्रमंत्र की ताकत से तुम को भी मालामाल कर दूंगा. असल में हमें जैसी साधना करनी चाहिए उस में चूक हो रही है. यह मैं ने एहसास कर लिया है. कल देखना, देखते ही देखते मानो छप्पर फट जाएगा और सोनाचांदी बरसने लगेगा.’’ सुभाषदास ने अपनी लच्छेदार बातों से माखनदास को प्रभावित कर दिया था.

‘‘ऐसा है तो गुरु, कुछ जल्दी करो. क्यों हम अपना समय नष्ट कर रहे हैं.’’ माखनदास बोला.

‘‘ठीक है, तुम ने एक बार मुझे सुरेश साहू से मिलवाया था, उसे तुम फिर ले कर आओ. और सुनो, इस बार जो तंत्रमंत्र मैं करूंगा वह किसी भी हालत में खाली नहीं जाएगा. हम दोनों मालामाल हो जाएंगे.’’ सुभाषदास बोला.

‘‘ठीक है गुरु, मैं आज ही सुरेश से मिलता हूं और उसे आप के पास ले आता हूं. बेचारा कितने सालों से धन की खोज में लगा हुआ है. आप ने भी उसे आश्वासन दिया था.’’

‘‘ठीक है, उसे जितनी जल्दी हो सके लाओ, हम मुरू पथराली खार में तंत्र साधना करेंगे. यह साधना बहुत महत्त्वपूर्ण होगी और सफलता मिलने की पूरी शतप्रतिशत गारंटी है.’’

अगले ही दिन माखनदास ने सुरेश कुमार साहू की सुभाषदास से मुलाकात करवा दी. खरकेन में संतराम साहू का बड़ा बेटा सुरेश कुमार साहू सुभाषदास से मिल कर काफी प्रभावित हुआ.

उस के सामने ही माखनदास ने कहा, ‘‘गुरु, यह हमारे गांव के खूब पैसे वाले हैं. पूरा परिवार सुखीसंपन्न और मानमर्यादा वाला है. अभी इन की आर्थिक स्थिति कुछ ठीक नहीं है. मगर इन्हें विश्वास है कि इन के पुश्तैनी घर में गड़ा धन रखा हुआ है. आप कृपा कर दो बड़ी मेहरबानी होगी.’’

सुभाषदास मानिकपुरी ने माखनदास की बातें सुन कर सुरेश साहू की ओर अपलक देखते हुए कहा, ‘‘मैं यहां बैठेबैठे सब ठीक कर सकता हूं. मैं देख रहा हूं कि तुम आने वाले समय में बहुत पैसे वाले बनने वाले हो, तुम्हारे मकान के नीचे खूब सोनाचांदी छिपा हुआ है, जो तुम्हारे पूर्वजों का है.’’

यह सुन कर सुरेश तांत्रिक सुभाषदास मानिकपुरी के पैरों पर गिर पड़ा और सविनय कहा, ‘‘गुरुदेव, हम पर कृपा करो. हम तो बरबाद हो गए हैं. अगर वह धन हमें मिल जाएगा तो हमारी जिंदगी संवर जाएगी. हमारे घर में खुशियां लौट आएंगी. हमारे कर्ज चुकता हो जाएंगे.’’

सुभाषदास ने सुरेश की अधीरता को भांपते हुए कहा, ‘‘मैं तुम्हारी मदद अवश्य करूंगा. इस के लिए मुझे तुम्हारे घर आ कर के एक तांत्रिक साधना करनी पड़ेगी.’’

यह सुन कर सुरेश ने हाथ जोड़ कर कहा, ‘‘गुरुदेव, हमारे घर का माहौल ठीक नहीं है. आप का वहां आना सब पसंद नहीं करेंगे, मेरा भाई और उस की पत्नी तो इस पर थोड़ा भी यकीन नहीं करते हैं.’’

इस पर हंसते हुए सुभाषदास ने मधुर वाणी में कहा, ‘‘दुनिया में ऐसे कितने ही लोग हैं, जो इस पर विश्वास नहीं करते. मगर जब वे देखेंगे कि पैसों की हांडी बाहर आ गई है, तो खुशी से नाच पड़ेंगे.’’

‘‘हां, यह बात तो सही है, मगर मैं उन्हें कैसे समझाऊं. कोई रास्ता निकालो गुरुदेव.’’ सुरेश बोला.

‘‘देखो भाई, तुम अपने घर में बात करो और उन्हें समझाओ. देखो अगर तंत्र साधना की तैयारी करोगे तो भला तो तुम्हारे परिवार का ही है. उन्हें इस साधना को घर में सुखशांति बनाए रखने वाला कह कर मना लो.’’

सुभाषदास की बातें सुन कर सुरेश समझ गया कि कैसे अपने परिवार के सदस्यों को इस साधना के बारे में आश्वस्त करना है.

यही फैसला कर सुरेश साहू अपने घर पहुंचा और अपने भाई रामप्रसाद से बात की. उस ने कहा, ‘‘भैया, अगर आप बुरा न मानें तो सिर्फ एक बार घर में तांत्रिक साधना करवा लें. मुझे विश्वास है कि आप को भी यकीन हो जाएगा.’’

सुरेश साहू की बातें सुन कर बड़े भाई रामप्रसाद साहू ने कहा, ‘‘भाई, मुझे तो इस सब में कोई विश्वास ही नहीं है, मगर तुम चाहते हो तो एक बार पूजापाठ करवा कर देख लो.’’

यह सुन कर कि सुरेश साहू खुश हो गया और 2 दिन बाद ही सुभाषदास और माखनदास को तांत्रिक साधना के लिए घर बुला लिया.

उन के घर पर सुभाषदास और माखनदास आए और रात भर तंत्र साधना करते रहे. उन्हें विश्वास दिलाया कि जैसे ही यह सिद्धि पूरी होगी, उन के घर में गड़ा हुआ रुपया उन्हें मिल जाएगा.

यह अनुष्ठान 3 दिन तक चला, जो रात के वक्त ही किए गए. इस के बदले में दोनों तांत्रिकों ने मोटी फीस वसूली. उस के बाद भी जब गड़ा धन नहीं निकल पाया तब दोनों तांत्रिक बगलें झांकने लगे.

सुभाषदास ने माखन से कहा, ‘‘भाई, मुझे लगता है यहां कोई गड़ा धन है ही नहीं.’’

माखनदास ने धीरे से कहा, ‘‘फिर आगे क्या होगा, सुरेश साहू तो हाथ से निकल जाएगा.’’

सुभाषदास ने कहा, ‘‘मैं ने तंत्र साधना पूरी कर ली है, अगर रुपए होते तो हमें इशारा मिल जाता. अब अगर यहां रुपए नहीं हैं तो मैं या तुम क्या कर सकते हैं. इन लोगों को गलतफहमी है कि उन के पूर्वजों ने पैसा जमीन में  गाड़ कर रखा था.

‘‘यह भी हो सकता है कि आसपास के किसी जानकार तांत्रिक ने साधना कर पहले ही यहां का गड़ा धन दूसरे की जमीन में खींच कर निकलवा लिया हो. कई बार यह भी होता है कि गड़ा हुआ धन अपने आप कहीं दूसरी जगह चला जाता है.’’

माखन ने हां में हां मिलाते हुए कहा, ‘‘हां, ऐसा हो सकता है, मैं ने भी सुना है.’’

इस पर दोनों ने तय किया कि सुरेश साहू और उस के परिवार को यह विश्वास कर लेना चाहिए कि तंत्र साधना के बाद भी गड़ा हुआ धन नहीं मिल रहा है, तो फिर आगे दूसरा उपाय भी किया जा सकता है.

जब यह बात सुरेश साहू को माखन ने बताई तो वह सिर पीट कर रह गया और बोला, ‘‘बड़े भैया तो मुझे घर से निकाल देंगे. उन्होंने साफसाफ कहा था कि ऐसा मत करो, मगर मैं ही नहीं माना. तुम लोगों ने तो मुझे बुरी तरह लूट लिया.’’

इस पर सुभाष ने कहा, ‘‘देखो, विश्वास में बड़ी ताकत होती है. आस्था रखो, एक दिन अगर गड़ा धन नहीं मिला है तो मैं अपनी तंत्र साधना से रुपयों की बारिश आसमान से करवा दूंगा. या फिर अगर तुम्हारा गड़ा धन किसी ने खींच लिया है, या कहीं चला गया है तो उस के लिए भी साधना कर छीन लाऊंगा. लेकिन इस में समय लगेगा. तुम्हें धैर्य रखना होगा.’’

आखिरकार सुरेश ने हाथ जोड़ कर के विवश हो तांत्रिकों के आगे घुटने टेक दिए. कई महीने के बाद एक दिन अचानक सुरेश साहू से माखन की मुलाकात हो गई. औपचारिक बातचीत करने के बाद सुरेश ने सुभाषदास का हालचाल पूछ लिया. माखन ने बताया कि वे बड़ी साधना में लगे हुए हैं.

‘‘मगर तुम्हारे गुरु ने तो हमारा बेड़ा गर्क कर दिया,’’ सुरेश ने नाराजगी दिखाई.

‘‘देखो भाई, विश्वास रखो. तंत्र साधना कोई मजाक या जादू की छड़ी नहीं है. हर किसी का इस से भला भी नहीं होता. हालांकि हमारे गुरु सुभाषदास बहुत पहुंचे हुए हैं. उस वक्त या तो तुम्हारा समय अच्छा नहीं चल रहा था या फिर तुम्हारे भाई और परिवार को विश्वास नहीं था. इस कारण भी साधना में कमी आ सकती है. मैं तो कहता हूं कि अगर तुम्हें विश्वास है तो गुरु की शरण में आ जाओ, फिर देखो कैसे तुम मालामाल हो जाते हो.’’

माखनदास की बड़ीबड़ी बातें सुन कर के सुरेश कुमार साहू को विश्वास हो गया कि घर में धन का घड़ा इसलिए नहीं मिला क्योंकि वह धन किसी ने अपने पास खींच लिया था. या फिर हो सकता है पहले ही किसी ने उसे निकाल लिया हो.

सुरेश साहू माखन की बातों से संतुष्ट हो कर बोला, ‘‘ठीक है, एक बार मुझे अपने गुरु सुभाषदास से मिलाना. मुझे भी अपने साथ जोड़ लो, ताकि मेरा भी खर्चा चलता रहे.’’

माखनदास ने सुभाषदास से सुरेश साहू की पूरी बात बताई. इस पर सुभाषदास की आंखों में चमक आ गई.

उस ने कहा, ‘‘देखो, इस बार मैं ने कुछ नई जानकारियां इकट्ठा की हैं. सोशल मीडिया पर यूट्यूब है. वहां पर तंत्रमंत्र साधनाओं को देख कर के मुझे पूरा यकीन है कि हम मालामाल हो जाएंगे. अब सुरेश साहू को कुछ मिले न मिले, तुम और मैं तो मालामाल हो सकते हैं. बताओ कैसा रहेगा?’’

‘‘ठीक है गुरु, जैसा आप कहो, आखिर हम भी कब तक गरीबी के दिन गुजारते रहेंगे.’’

‘‘तो तुम मुझे अपना पूरा साथ दोगे?’’

‘‘मैं तनमन से आप के साथ हूं.’’ माखनदास ने बड़ी श्रद्धा के साथ सुभाषदास मानिकपुरी के सामने हाथ जोड़ कर कहा.

‘‘तो सुनो, आज हम जो साधना करेंगे उस में हमें खून देना होगा. और अगर हम ने खून दे दिया तो समझो कि हम तो करोड़पति हो गए.’’

खून शब्द सुन कर माखनदास के ललाट पर पसीने की बूंदें उभर आईं. घबरा कर वह इधरउधर देखने लगा. यह देख कर सुभाषदास मानिकपुरी हंसने लगा, ‘‘देखो, तुम तो मेरे चेले हो. मुझे तुम्हारा खून नहीं चाहिए. हां, सुरेश का कैसा रहेगा.’’

‘‘हां, मुझे मंजूर है,’’ सुभाषदास की बात सुन कर माखन ने सहमति जताई.

देर शाम को सुरेश साहू तंत्रमंत्र के इंतजाम के साथ आ गया. तीनों तंत्रमंत्र साधना के सारे सामान जुटा कर मुरू पथराली खार, जो बिलासपुर के सिरगिट्टी में स्थित है, आ पहुंचे. यहां सुनसान जगह में देर रात को सुभाषदास ने अपना आसन जमाया और तंत्रमंत्र साधना करने लगा.

माखनदास और सुरेश साहू पास में बैठे हुए थे. 2 घंटे के अनुष्ठान के बाद सुभाष उठा और चलने का इशारा किया. मानिक ने वहां का सारा सामान समेटा और सुरेश की मोटरसाइकिल पर रख दिया.

कुछ देर में तीनों पैदल ही पास के खंडहरनुमा वीरान पुराने मकान में थे. वहां फिर से अनुष्ठान की तैयारी की गई. सुरेश को साधना पूरी होने तक आंखें बंद रखने की हिदायत दी गई. एक घंटे तक सुरेश साहू आंखें बंद कर के बैठा रहा.

सुभाष ने अपने थैले से कुल्हाड़ी निकाली और उस का पूजन किया. उस ने दीपक की लौ से कुल्हाड़ी की धार गर्म की. फिर एक झटके में सुरेश के सिर पर दे मारी. अचानक हुए तेज वार से सुरेश तिलमिला गया. उस की चीख  निकल पड़ी. आंखें खोलीं. तब तक सुभाषदास ने उस पर 3-4 वार और कर दिए.

कुल्हाड़ी की चोट से  वह लहूलुहान हो गया. और थोड़ी देर में उस की वहीं मौत हो गई. उस के खून से सुभाषदास ने थोड़ी देर और तंत्र साधना की. माखनदास हाथ जोड़ कर खड़ा आसमान से रुपएपैसे बरसने का इंतजार करने लगा. क्योंकि सुभाषदास ने खून देने के बाद रुपएपैसे आसमान से बरसने की बात कही थी.

जब कुछ देर बाद भी कोई रुपयापैसा नहीं बरसा, तब माखन ने सुभाष की तरफ सवालिया निगाहों से देखा. अब सुभाष भी घबरा गया. माखनदास बोला, ‘‘गुरु, अब क्या होगा?’’

सुभाष आकाश की तरफ देखते हुए बोला, ‘‘यार, मैं ने पढ़ा था कि खून देने के बाद मृतक की आत्मा आती है और वह सारी समस्या का समाधान कर देती है. लगता है, जरूर कोई चूक हो गई.’’

‘‘अब क्या होगा, हमें रुपए भी नहीं मिले और सुरेश की हत्या भी हो गई. अब तो जेल जाना पड़ेगा.’’

सुभाषदास ने कहा, ‘‘चलो, यहां से भाग चलते हैं.’’ उस के बाद दोनों नौ दो ग्यारह हो गए. शहर ही छोड़ दिया.

इस पूरे मामले की जांच के बाद 17 नवंबर, 2021 को एडिशनल एसपी रोहित कुमार झा, एसपी (सिटी) सुश्री गरिमा द्विवेदी और जांच अधिकारी शांत कुमार साहू ने मीडिया के सामने सुरेश साहू हत्याकांड पर से परदा हटा दिया.

पुलिस ने थाना सिरगिट्टी बिलासपुर में अपराध दर्ज कर के आरोपी सुभाषदास, माखनदास को भादंवि धारा 302, 201, 120बी के तहत गिरफ्तार कर के मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी बिलासपुर के समक्ष पेश किया, उन के अपराध की गंभीरता को देखते हुए मजिस्ट्रैट ने दोनों को जेल भेजने का आदेश दिया.

   —कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Rakhi 2022: अनमोल है मुंह बोले भाई-बहन का रिश्ता

रिश्ते अनमोल होते हैं. हमारे जीवन में रिश्तों की अहमियत फूल में खुशबू की तरह होती है. इंसान के जीवन से यदि रिश्तों को अलग कर दिया जाए तो जिंदगी बेजान और नीरस हो कर रह जाएगी. कुछ रिश्ते जन्मजात तो कुछ हमारी आपसी सहमति और प्यार से विकसित होते हैं. समाज है, दुनिया है तो रिश्ते भी जरूर होंगे. आजकल ऐसे ही एक रिश्ते का प्रचलन हमारी युवा ब्रिगेड में काफी जोरों पर है, वह है मुंहबोले भाईबहन का रिश्ता.

किशोरों में स्कूलकालेज की पढ़ाई, कोर्स या जौब के दौरान एकदूसरे से इतनी करीबी हो जाती है कि पहले वे दोस्त और फिर विचारों के मिलने पर मुंहबोले भाईबहन के रिश्ते में बंध जाते हैं. लेकिन रिश्तों में बंधना आसान है और उन्हें निभाना बहुत मुश्किल. रिश्तों के लिए नई शुरुआत करने से पहले खुद से कुछ कमिटमैंट जरूर करें. यदि इस दौरान कुछ बातों का ध्यान रखा जाए तो रिश्तों में हमेशा ताजगी बनी रहेगी :

सुरक्षा कवच है मुंहबोले भाईबहन का रिश्ता

जन्मजात रिश्तों में उम्र और परिवार की कुछ बंदिशें, सीमाएं और उन्हें हर हाल में निभाने का प्रैशर भी रहता है, जबकि मुंहबोले भाईबहन के रिश्ते तभी पनपते हैं, जब किशोरकिशोरियों में वैचारिक समानता होती है और वे हमउम्र भी होते हैं. साथसाथ रहने और पढ़ने के दौरान बड़े होतेहोते रिश्तों में भी प्रगाढ़ता आती है, साथ ही उन्हें एकदूसरे के स्वभाव के बारे में काफी कुछ पता भी चल जाता है.कोई भी रिश्ता यदि खुले दिल से आपसी विश्वास के साथ जोड़ा जाए तो वह एक सुखद एहसास देता है. भरोसा यदि पक्का हो तो ऐसे रिश्ते वक्त पर काम भी आते हैं. आज के हालात में जहां एक किशोरी को कदमकदम पर अपनी सुरक्षा को ले  कर चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. ऐसे में मुंहबोला भाई एक सुरक्षा कवच की तरह साबित हो सकता है.

रिश्ते को एवरग्रीन रखने का प्रयास करें

भाईबहन के रिश्ते को एवरग्रीन बनाए रखने के लिए दोनों पक्षों को हमेशा तैयार रहना होगा. रिश्ते की 2 मूल बातें यदि याद रखी जाएं तो वे हमेशा एक हरेभरे फूल की तरह महकते रहेंगे, पहली बात वक्त पर साथ देना. आप के साथ की दूसरे को जब सब से ज्यादा जरूरत हो तब बहानेबाजी कर के मुंह छिपा कर बैठ जाना यह अच्छे रिश्ते की पहचान नहीं है. कहते हैं वक्त पर जो काम आ जाए वही अपना है बाकी सालभर साथ रहने वालों को पराया समझा जाए तो अनुचित नहीं होगा.इस का दूसरा मूलमंत्र है अपनी अपेक्षाओं को कम कर के रखना. हर समय कुछ न कुछ दूसरों से मांगना औरखुद कुछ भी न करना रिश्ते के लिए घातक है. इसलिए खुद करने का प्रयास ज्यादा करें और दूसरों से उम्मीद कम रखें. गलतफहमियों  को आपसी बातचीत से मिटाते रहना जरूरी है ताकि रिश्ता दरक न जाए.

समाज में ऐसे रिश्ते अच्छी नजर से नहीं देखे जाते

हमारा समाज परंपरावादी है. खासतौर पर मध्यवर्ग में एक किशोरी और एक किशोर के रिश्ते को ले कर रूढि़वादी सोच से हमारा समाज मुक्त नहीं हो पाया है. परिवार के अंदर ही किशोरों को इन रिश्तों को ले कर विरोध का सामना करना पड़ता है और जब परिजन ही इस रिश्ते पर संदेह करते हैं तो समाज को बात का बतंगड़ बनाते देर नहीं लगती. समाज में इन रिश्तों पर छींटाकशी का कारण हैं, वे घटनाएं जिन से हम और आप अकसर रूबरू होते रहते हैं, रिश्तों को तारतार करने वाली घटनाओं से आएदिन अखबार और टैलीविजन चैनल्स भरे रहते हैं.

इन्हीं घटनाओं के कारण हम हर रिश्ते को शक की नजर से देखने पर विवश हो जाते हैं, जैसे कि हर रिश्ते में मर्यादा और निष्पक्षता बनाए रखने की जरूरत होती है, वैसे ही मुंहबोले भाईबहन के रिश्ते में भी एकदूसरे की भावनाओं को समझते हुए सामंजस्य के साथ चला जाए तो इस रिश्ते में कोई बुराई नहीं है. समाज खुद इन रिश्तों पर कमैंट करना बंद कर देगा.

बड़े धोखे हैं इस राह में

हर चीज के 2 पहलू होते हैं, रिश्ते भी इन से अछूते कैसे रह सकते हैं. रिश्ते भी दिल और दिमाग के संतुलन के साथबनाए और निभाए जाएं तो कभी कोई श्कियत या ऊंचनीच होने का खतरा ही नहीं रहता. परंतु जब रिश्ते चापलूसी, अकेलापन मिटाने या शारीरिक आकर्षण के मकसद से बनाए जाएं तो उन का अंत दुखद होने की आशंका कई गुना बढ़ जाती है. आज अकसर एक चेहरे के अंदर दूसरा चेहरा छिपाए लोग मिल जाते हैं. उन की असलियत जब खुलती है तब तक काफी नुकसान हो चुका होता है, कभीकभी तो उस नुकसान की भरपाई जान दे कर भी करनी पड़ती है. इन बातों से बचना बहुत आवश्यक है.

खासतौर पर युवाओं में जोश ज्यादा और होश कम रहता है, इस में उन का कुसूर भी नहीं है, यह उम्र ही कुछ ऐसी होती है और हारमोंस का बदलाव उन्हें एकदूसरे के प्रति आकर्षित करता है. किसी की सलाह व परिजनों का हस्तक्षेप उन्हें नागवार गुजरता है. रोजाना जिन शर्मनाक घटनाओं से हम दोचार होते हैं वे अनुभवहीनता का ही परिणाम हैं.

किशोरियां ऐसे रिश्तों में बरतें सावधानी

ऐसे रिश्तों में सतर्कता बरतने की जरूरत है, रिश्तों में धोखा मिलने के बाद सब से ज्यादा प्रभावित किशोरियों का जीवन ही होता है. पुरुष प्रधान समाज होने से उन्हें सब से ज्यादा नुकसान और मानसिक व शारीरिक पीड़ा झेलनी पड़ती है. समाज की उपेक्षा के साथ परिवार और दोस्तों से भी वे कट जाती हैं. दुष्कर्म, बलात्कार, छेड़छाड़ और झूठी अफवाहों का असर भी किशोरियों पर ही ज्यादा देखा गया है.आत्महत्या, तेजाब के हमलों से भी उन का जीवन बरबाद हो जाता है, जबकि दोषी को सजा दिलवाना भी हमारी कानूनी प्रक्रिया के अंदर एक भारी यंत्रणा जैसा है. अदालतें, कानून, कोर्टकचहरी और पुलिस के सवालजवाबों के आगे मजबूत और बोल्ड लोग भी हिम्मत हार जाते हैं, लेकिन हर समस्या का समाधान भी अवश्य होता है.

बस, थोड़ी सी समझदारी और परिवारजनों की सलाह मान कर चला जाए तो मुंहबोले भाईबहन के रिश्तों में आने वाली बहुत सी समस्याओं से बचा जा सकता है. अत: मुंहबोले भाईबहन का रिश्ता बनाने में कोई हर्ज नहीं पर इस रिश्ते को ईमानदारी और निष्ठा से निभाएं ताकि किसी को उंगली उठाने का मौका न मिले.

“मेरा शहर मेरा इतिहास”

”मेरा शहर मेरा इतिहास” कार्यक्रम का आयोजन इतिहास संस्था द्वारा उत्तर प्रदेश पर्यटन के सहयोग से किया गया. इस कार्यक्रम का उद्घाटन श्री मुकेश कुमार मेश्राम, प्रमुख सचिव, पर्यटन एवं संस्कृति, उत्तर प्रदेश तथा श्री अश्विनी कुमार पाण्डेय, विशेष सचिव, पर्यटन, उत्तर प्रदेश की उपस्थिति में रेजीडेन्सी परिसर, लखनऊ में किया गया.

इस कार्यक्रम में लखनऊ के 10 प्रमुख विद्यालयों के छात्रों द्वारा प्रतिभाग किया गया. इस कार्यक्रम का आयोजन वाराणसी और गोरखपुर में भी किया जाएगा, जिससे उत्तर प्रदेश की ऐतिहासिक धरोहरों एवं विरासतों के बारे में आज की युवा पीढ़ी को जागरूक किया जा सकेंगे तथा ऐसे धरोहरों के रख-रखाव हेतु  प्रशिक्षित एवं प्रोत्साहित किए जा सकेंगे .

उत्तर प्रदेश पर्यटन के प्रमुख सचिव श्री मुकेश कुमार मेश्राम ने छात्रों को संबोधित करते हुए विभिन्न प्रकार के पर्यटनों के बारे में उनको जानकारी दी. उन्होंने विद्यार्थियों को प्रदेश के विरासत स्थलों का भ्रमण करने एवं उनसे जुड़ी ऐतिहासिक घटनाओं के बारे में जानने तथा उनसे सीख लेने का आग्रह किया. यह कार्यक्रम युवाओं मे रुचि बढ़ाने के उद्देश्य से किया गया और युवा पर्यटन को प्रोत्साहित करेगा.

इतिहास, एक शैक्षिक संस्था है, जो कि देश की विरासतों के बारे में विद्यार्थियो एवं आम जनमानस को जागरूक करने का कार्य करते है. इसी क्रम में उत्तर प्रदेश पर्यटन के सहयोग से लखनऊ में रेजीडेंसी परिसर में “मेरा शहर मेरा इतिहास” कार्यक्रम का शुभारम्भ किया गया.

इतिहास की संस्थापक-निदेशक सुश्री स्मिता वत्स ने “मेरा शहर मेरा इतिहास” कार्यक्रम के उद्देश्य के बारे में बताते हुए कहा कि इस कार्यक्रम का उद्देश्य छात्रों में अपने शहर के संबंध में गर्व की भावना पैदा करना था. इसके साथ ही साथ धरोहरों से जुड़ेंगे, इतिहास तथा वास्तुकला के माध्यम से गणित जैसे विषयों को सीखने का था.

यह कार्यक्रम विद्यार्थियों को ऐसे स्मारकों और ऐतिहासिक रत्नों को देखने और उनकी सराहना करने के लिए तैयार किया गया है, जो उन शहरों में विराजमान है. लखनऊ शहर के 10% से भी कम छात्रों ने बताया कि रेजीडेंसी की यह उनकी पहली यात्रा थी.

लखनऊ में 15 दिवसीय कार्यक्रम की संरचना विद्यालय में एक ओरियन्टेशन सत्र के साथ शुरू हुई, जिसके बाद बच्चों ने “एक नारा” लेखन प्रतियोगिता में भाग लिया, जो उनके शहर और स्थायी पर्यटन पर केंद्रित था. यह एक अनुभवात्मक शिक्षण मॉड्यूल के साथ समाप्त होता है. इस क्रम में 3 अगस्त को रेजीडेंसी और 4 अगस्त को जरनैल कोठी का भ्रमण करेगें, जहां बच्चे इन स्मारकों के महत्व के बारे में सीखेगें.

कोई मिल गया फेम ‘मिथिलेश चतुर्वेदी’ का निधन, पढ़ें खबर

बॉलीवुड इंडस्ट्री के सीनियर एक्टर मिथिलेश चतुर्वेदी का निधन हो गया है. खबरों के मुताबिक एक्टर हार्ट संबंधी समस्याओं से जूझ रहे थे. उनके दामाद ने सोशल मीडिया पर ये जानकारी दी.

रिपोट्स के मुताबिक, उनका निधन दिल का दौरा पड़ने की वजह से हुआ, जैसे ही उन्हें दर्द की शिकायत हुई एक्टर को उनके होमटाउन लखनऊ ले जाया गया. लेकिन वहां दिल का दौरा पड़ने की वजह से उनकी देर रात मौत हो गई.

एक्टर के दामाद आशीष चतुर्वेदी ने उनकी तसवीरें पोस्ट कर भावुक पोस्ट लिखा. आशीष ने लिखा, आप दुनिया के सबसे अच्छे पिता थे, आपने मुझे दामाद नही बल्कि एक बेटे के तरह अपना प्रेम दिया, भगवान आपकी आत्मा को शांति प्रदान करे.

खबरों के अनुसार, एक्टर ने मानिनी डे के साथ ‘टल्ली जोड़ी’ नाम से एक वेब सीरीज भी साइन की थी. बता दें कि उन्होंने काफी लंबे समय तक इंडस्ट्री में काम किया था. एक्टर ने सनी देओल के साथ ‘गदर एक प्रेम कथा’, ऋतिक रोशन के साथ ‘कोई… मिल गया’ फिल्मों में भी काम किया था.

फोटो क्रेडिट- सोशल मीडिया

Anupamaa की ‘बरखा’ रख रही है बॉलीवुड में कदम, पढ़ें इंटरव्यू

एयरफोर्स के फाइटर पायलट की बेटी अश्लेषा सावंत ने बारहवीं की पढ़ाई पूरी करते ही सफलतम सीरियल क्योंकि सास भी कभी बहू थी में तिशा का किरदार निभाते हुए अपने अभिनय कैरियर की शुरूआत कर दी थी उसके बाद वह अभिनय में इतना व्यस्त हो गयीं कि आगे पढ़ाई पूरी नहीं कर पायीं इन दिनों वह सीरियल अनुपमा में बरखा के किरदार में नजर आ रही  हैं तो वहीं पांच अगस्त को प्रदर्शित हो रही फिल्म ‘हरियाणा’ को लेकर भी वह काफी उत्साहित हैं.

हाल ही में अश्लेषा सावंत से लंबी बातचीत हुई प्रस्तुत है उसका अंश

आपके पिता एयर फोर्स में थे ऐसे में आपका अभिनय के प्रति झुकाव कैसे हुआ था?

मैं आपका धन्यवाद करना चाहॅूंगी कि आपने इस बात का उल्लेख किया  क्योंकि इंडियन एयरफोर्स मेरी जिंदगी का अहम हिस्सा है. मेरे पिता फाइटर पायलट थे. अपने कैरियर में उन्होंने काफी उम्दा फ्लाइट की थी. प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी ने उन्हें अपने आफिस में सम्मानित भी किया था एयरफोर्स और अभिनय दोनों का कोई संबंध ही नहीं है. मेरे पिता जी कभी नहीं चाहते थे कि मैं अभिनय करुं क्योंकि उस वक्त मैं बहुत छोटी थी. पुणे में मेरी स्कूल की पढ़ाई पूरी हुई थी. मैंने बारहवीं पास किया था और तभी पुणे में ही एकता कपूर की कंपनी बालाजी टेली फिल्म के सीरियल क्या  हादसा क्या हकीकत के लिए ऑडिशन हो रहे थे. मैंने ऑडीशन में हिस्सा लिया और मेरा चयन हो गया था पर मेरे पिता जी मेरे अभिनय करने के खिलाफ थे उनका डर सही था मैंने बारहवीं के बाद आगे पढ़ाई ही नही की मैं तो अभिनय में ही व्यस्त हो गयी थी लेकिन जब मेरे पहले सीरियल क्योंकि सास भी कभी बहू थी में मेरा पहला दृश्य प्रसारित हुआ था तब वह बहुत खुश हुए थे उनको मुझ पर गर्व हो रहा था क्योंकि उन दिनों यह सीरियल नंबर वन सीरियल था. इसकी टीआरपी 26 से भी ज्यादा थी कुछ समय के लिए इसकी टीआरपी 32 तक भी रही इन दिनों तो लोग दो की टीआरपी पर भी खुश हो जाते हैं.

barkha

लेकिन आपने तो सीरियल क्या हादसा क्या हकीकत के लिए
ऑडीशन दिया था और आपका चयन भी हो गया था

जी हां! मेरे कैरियर की शुरूआत उसी से होनी थी एकता कपूरए सोनी टीवी के लिए क्या हादसा क्या हकीकत नामक एपीसोडिक सीरियल लेकर आने वाली थी इसका निर्देशन अनुराग बसु जी करने वाले थेण्मुझे इस सीरियल के लिए ही एकता कपूर ने साइन किया था हमने बीस दिन का वर्कशॉप किया दस दिन तक स्क्रिप्ट की रीडिंग की उसके बाद निर्देशक को लगा कि इस किरदार के लिए मैं काफी कम उम्र की यानी कि युवा हूं और यह किरदार एक उम्रदराज नारी का था तो मुझे इस सीरियल से हटाकर क्योंकि सास भी कभी बहू थी में शामिल कर दिया गया था मैंने तीशा गौतम विरानी का किरदार निभाया जहां कई कलाकार थे तो मुझे लगा कि यह तो अच्छा है हमारे किरदार में कई शेड्स है लीड में एक ही ढांचे में बंधे रहना होता है ऐसी वक्त मेरी उम्र महज 18 वर्ष थी तो मुझे यह भी अच्छा लगा कि हम एक ही किरदार में कई किरदार निभा लेंगे.

क्योंकि सास भी कभी बहू थी से मिली शोहरत को आप भुला नहीं पायी?

आपका सवाल काफी जायज व महत्वपूर्ण है क्योंकि हम सफलता टीआरपी व नाम में देखते हैं. दर्शक को लगता होगा कि इसने तो लीड किरदार नहीं किया इसने तो पैरलल किरदार निभाया है तो यह उनकी सोच है . मेरी सोच नहीं है मैंने तो काम करते हुए काफी इंजॉय किया उसके बाद मैंने सात फेरे, कसौटी जिंदगी के, कहीं तो होगा, जिस देश में निकला होगा चांद, पवित्र रिश्ता, ष्पोरसष्एष्आलिफ लैलाष् सहित कई सीरियल किए हैं. इन दिनों सीरियल अनुपमा में मैं बरखा कपाड़िया का किरदार निभा रही हॅूं अब मैंने एक फिल्म हरियाणा की है जो कि पांच अगस्त को सिनेमाघरों में प्रदर्शित होने वाली है एक कलाकार के लिए इससे बड़ा आशिर्वाद क्या हो सकता है कि उसे अलग अलग माध्यम में अपना हूनर दिखाने के लिए अलग अलग तरह के किरदार निभाने के अवसर मिले.

 

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आपने अभिनय कहां से सीखा?

मैं तुला राशि की हॅूं कुछ संकोची और कुछ बातूनी भी हॅूं  मैं कुछ कुछ एक्स्ट्रोवर्ट भी हॅूं लेकिन मेरी खूबी है कि मैं हर चीजएहर इंसान को आब्जर्व बहुत करती हूं मसलन. अभी मैं आपसे बातें कर रही हॅूं दो तीन बार आपसे मुलाकात होगी तो आपसे भी मैं खुलकर बात करने लगूंगी जब भी मैं पहली बार किसी इंसान से मिलती हूं तो चुप रहती हॅू पर मैं उसे आब्जर्व करती रहती हॅूंए कि सामने किस तरह से बात कर रहा हैण्उसके बात करने का लहजा क्या है वह अपनी आंखें कैसे घुमाता है वगैरह वगैरह यह गुण मेरे अंदर बचपन से रहा है मैं किसी को भी मिमिक बहुत आसानी से व अच्छा कर सकती हूं तो मैं जितने भी लोगों से मिलती हॅू वह मेरे अंदर रह जाता है और इस अभिनय कला का सबसे अच्छा सकारात्मक पहलू यह है कि हम तमाम विविध प्रकार के लोगों से मिलते हैं.

सेट पर जो लोग हमारे साथ खाना खाते हैं हम उनसे भी कुछ न कुछ सीखते रहते हैं फिर चाहे वह हेयर ड्रेसर हो या मेकअप वाला हो या स्पॉट वाला हो यह सारी चीजें एक अभिनेत्री या अभिनेता को अभिनय करने में बहुत काम आती हैं कलाकार जितना अधिक आब्जर्व करता है वह उतना ही अधिक ग्रो करता है इसके अलावा टीवी पर काम करते हुए मैंने सुरेखा सीकरीएअपरा मेहताएनीना गुप्ताए परीक्षित साहनी जैसे दिग्गज कलाकारों के साथ काम करते हुए इनसे बहुत कुछ सीखा यह सभी कलाकार अपने आप में अभिनय के इंस्टीट्यूट हैं इन सभी ने लीड किरदारए चरित्र व पैरलल हर तरह के किरदार निभाते हुए अदभुत परफार्मेंस से लोगों को अपना दीवाना बनाया है इन्होंने नगेटिब व पॉजीटिव किरदार भी निभाए हैं सुरेखा सीकरी ने तो श्याम बेनेगल जैसे फिल्मकार के साथ काम किया है इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि मेरी ट्रेनिंग कितनी तगड़ी रही.

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आपने सुरेखा सीकरीएअपरा मेहता व नीना गुप्ता का जिक्र किया आपने इन तीनों के साथ काम करके ऐसा क्या सीखा जो आपको हमेशा अभिनय में मदद करता है.

लॉजीविटी यह अंग्रेजी शब्द है इसे हिंदी में दूरदृष्टि दीर्घ जीवी कहते हैं आजकल तो हर कलाकार पहली फिल्म या एक सीरियल से ही स्टार बन जाता है आजकल सभी इंस्टाग्राम पर स्टार हैं सभी पैसा कमाते हैं एक सीरियल सफल होते ही कलाकार के पास बीएमडब्लू तो आ ही जाती है एक फिल्म सफल हो जाए तो 15 करोड़ का फ्लैट आ ही जाता है. लॉजीविटी आपको समझाती है कि अभिनय कैरियर दूर का खेल है इस कैरियर में जो छोटे छोटे पड़ाव या सपने आते हैं वह पानी के बुलबुले की ही तरह होते हैं कलाकार की वास्तविक भूख तो कभी खत्म ही नही होती यह भूख बीएमडब्लू गाड़ी या 15 करोड़ के फ्लैट से भी खत्म नहीं हो सकती यह भूख यात्राएं करके भी खत्म नही हो सकती यह भूख लॉजीविटी से ही खत्म हो सकती है और लांजीविटी होती है किरदार.

आपने अब तक कई सीरियलों में एक ही किरदार को पांच से छह वर्षों तक जिया है ऐसे में कभी किसी किरदार की किसी बात ने आपकी निजी जिंदगी पर असर किया हो

मेरे साथ ऐसा कुछ नही हुआ मेरे अंदर एक बच्चा है जो कभी बड़ा नहीं होना चाहता मैं उससे बहुत प्यार करती हूं उसे खेलने देती हूं उसे इंजॉय करने देती हॅूं सेट पर जैसे ही काम खत्म होता है मैं खुद को किरदार से बाहर ले आती हॅूं मैं काम को दिल से करती हूं हर दिमाग का भी इस्तेमाल करती हूं संवाद की लाइन याद करनी पड़ती हैं.

पिछले दस पंद्रह वर्षों में टीवी इंडस्ट्री में तो बदलाव आया है उसे आप किस तरह से देखती हैं

टीवी में कोई बदलाव नही आयाण्टीवी में बदलाव आना हैएपर यह दर्शकों पर निर्भर है आज भी हम वही दिखा रहे हैं जो हम बीस वर्ष पहले दिखाया करते थे हम आज भी वही किरदार निभा रहे हैं जो पहले निभाया करते थे

सच कह रही हॅूं मैं आज भी वही किरदार निभा रही हॅूं जिन किरदारों को मैने किसी सीरियल में निभाया था या किसी सीरियल में देखा था इसमें सीरियल बनाने वाले निर्माता व निर्देशकों की कोई गलती नही है सब कुछ टीआरपी का खेल है

जब दर्शक देखते हैं तभी टीआरपी बढ़ती है  तो जब टीआरपी अच्छी आ रही हो तो  निर्देशक उसमें बदलाव की बात नहीं सोचता अगर कुछ नया करना चाहो मसलन. यशराज फिल्मस ने 2008 से 2010 के बीच ष्पावडरष् सहित कुछ अलग तरह के सीरियल बनाने की कोशिश की थीए पर पसंद नही किए गए थे इसी तरह के कई अलग तरह के सीरियल आएएपर सफल नही हुए आजकल दर्शक पूरी तरह से ग्लोबल हो गयी है आज शहर में बैठी लड़की हो या गांव में बैठी लड़की वह सब कुछ देख सकती है जब तक हम वहीं एक ही तरह का परोसा हुआ खाना खाते रहेंगे तब तक बनाने वाले को दोष नहीं दिया जा सकता.

लेकिन आपको नहीं लगता कि दर्शकों ने आपको नकार दिया है पहले 22 से 32 तक की टीआरपी आती थी जबकि अब तो तीन की टीआरपी आना भी मुश्किल हो गया है इसकी वजह यह है कि अब चैनल ढेर सारे हो गए हैं अब दर्शक के पास देखने के लिए कंटेंट भी बहुत है लोग बोर हो रहे हैं और उन्हे कुछ नया चाहिए पर फिर वह वही पुराना देखते हैं आज ओटीटी सफल हैं तो उसकी वजह यह है कि दो वर्ष कोविड के दौरान सफल हुआ इसकी मूल वजह यह भी है कि अब दर्शक केवल हिंदी नहीं अंग्रेजी विदैशी और क्षेत्रीय हर तरह का कंटेंट देखना चाहता है पर ऐसे में कहीं न कहीं कंटेंट कम पड़ जाता है और तब स्तरहीन कंटेंट भी परोसा जाता है जिसे दर्शक देखता रहता है ऐसे में कंटेंट कहीं न कहीं गुम हो जाता है कंटेंट कहीं न कहीं मीडियोकर हो जाता है और अब वही दौर चल रहा है  लेकिन टीवी एक अजीब सा बदलाव आया है जहां अब किसी भी सीरियल में किसी भी कलाकार का नाम नहीं दिया जाता है इससे किसका नुकसान हो रहा है जी ऐसा हो रहा हैण्मैं तो आज भी टीवी सीरियल कर रही हॅूं लोग मुझे अति लोकप्रिय सीरियल अनुपमा में बरखा के किरदार मे देख रहे हैं आज की तारीख में बरखा का किरदार सिर्फ मैं ही क्यों कोई भी अभिनेत्री निभा सकती है आज हम उस मुकाम तक पहुंच गए हैं कि अब बरखा के किरदार को निभाने के लिए सिर्फ अश्लेषा की जरुरत नहीं रही पहले हम उस मुकाम पर थे जहां तुलसी का किरदार स्मृति इरानी ही निभा सकती थी उनके अलावा किसी अन्य कलाकार को दर्शक तुलसी के किरदार में देखना नहीं चाहते थे मगर आज ऐसा हो गया है कि अगर मैं बरखा का किरदार नही निभा रही हॅूं तो कोई भी बरखा हो सकती है तो एक वैल्यू ही खत्म हो गयी है अब दर्शक किसी भी चैनल पर कुछ भी देखने लगा है मुझे याद है कि पहले दर्शकों की अपनी पसंद हुआ करती थी जब मैं स्कूल में थी तो मेरी मां सैलाब बनेगी अपनी बात हसरतें हम पांच जैसे सीरियल देखती थी और उनके साथ बैठकर हम भी देखते थेण्वह बहुत ही बेहतरीन सीरियल हुआ करते थे इन सीरियलों की गुणवत्ता का हर कोई कायल था इसी वजह से आज भी लोग उस किरदार को और उन कलाकारों को याद करते हैं आज की तारीख में कितने सारे लोग हैं जिन्हे सेलीब्रिटी बनना हैण्जिन्हे वह चमक चाहिए ही चाहिए उन्हे कला की समझ भले न हो पर सेलीब्रिटी बनना है तभी तो आज ष्सैलाबष् या ष्हसरतेंष् कोई नही बना रहा है अब आप इसे टीवी की गिरावट कहें या कुछ और

टीवी से फिल्मों में आने में इतना वक्त क्यों लगा?

कहीं न कहीं एक वक्त के बाद कलाकार की अंदर की भूख को टेलीवीजन खा लेता है टीवी में लंबे समय तक काम करते हुए कलाकार को इतना कम्फर्ट मिलता है कि वह उसमें खो जाता हैण्तो मैं भी टीवी में गुम हो गयी थी पर इतना भी गुम नही हुई थी कि मैं खुद को ढूंढ़ नहीं पायी मैं मरते दम तक टीवी करते रहना चाहॅूंगी तो मैं भी एक दिन जग गयी और मैंने फिल्म हरियाणा की है जिसमें मेरा किरदार छोटा जरुर है मगर कहानी में इसकी उपस्थिति अनिवार्य है.

फिल्म ‘हरियाणा’ क्या है?

यह तीन भाइयों की बहुत प्यारी कहानी है हरियाणा ऐसा राज्य है जहां बहुत ज्यादा ऐतिहासिक या कल्चरल कहानियां नहीं हैं मसलन महाराष्ट् में छात्रपती शिवाजी महाराज व मराठाओं की कइ कहानियां विद्यमान हैं पंजाब व उत्तर प्रदेश सहित हर राज्य में कई कहानियां मिल जाएंगीए मगर हरियाणा में ऐसा नहीं है .

हरियाणा के बारे में लोगों की सोच यह है कि हरियाणा में खेती है जमीन है कुछ लोग एक जगह बैठकर हंसते हैं और एक दूसरे का मजाक उड़ाते हैं कुछ लोग खेल में व्यस्त रहते हैं कुछ लोग फौज में चले जाते हैं इसके अलावा कुछ नहीं है हरियाणा के लोगों के शौक भी नहीं है लेकिन अकड़ू बहुत हैं यही इस फिल्म की यूएसपी है णएक जाट अपने घर के अंदर खाट पर बैठकर हुक्का फूंकता रहता है यही उसकी जिंदगी है यह हमने सुना है लेकिन फिल्मों मे इसे ठीक से कभी पिरोया नही गया संदीप बसवाना और यश टोंक जी स्वयं जाट हैं तो उन्होंने इस फिल्म में हरियाणा के उसी फ्लेवर को पूरी सच्चाई के साथ पेश किया है इस फिल्म से आपकी समझ में आएगा कि हरियाणा में कैसे लोग रहते हैं कैसे उनके बीच प्रेम व अपनापन है उनकी रोमांटिक जिंदगी कैसी है इसमें तीन भाइयों की प्रेम कहानी के साथ जिंदगी में उनके आगे बढ़ने की कहानी है.

फिल्म ‘हरियाणा’ के अपने किरदार को लेकर क्या कहना चाहेंगी?

मैंने इस फिल्म में विमला का किरदार निभाया है वह हरियाणा के एक गांव में रहती है हरियाणा के गांव में लड़कियों  की शादी जल्दी हो जाती है मगर विमला ने शादी के लिए मना कर दिया है जबकि विमला की उम्र तीस से अधिक हो गयी है पर विमला को अभी पढ़ना है उसे पता है कि गांव में उसे घूमने को नहीं मिलता वह शहर में ही रहना पसंद करती है लेकिन जब उसे प्यार होता है उसे उसकी पसंद का हमसफर मिलता हैण्उसे ऐसे हमसफर की तलाश थी जो उससे प्यार करे उससे बातें करें गांव व शहर की जीवनशैली में काफी अंतर है गांव में प्यार रोमांस नाम की चीज बहुत कम देखने को मिलती है.

विमला के किरदार को निभाने के लिए आपने कोई खास तैयारी की?

विमला के किरदार को निभाने के लिए मुझे हरियाणवी भाषा के लहजे को पकड़ना था कस्ट्यूम डिजानयर रेणुका व निर्देशक संदीप बसवाना जी हरियाणा से ही हैं इन दोनो ने मेरे संवादों को लेकर कोचिंग दी संदीप जी के परिवार के सदस्यों से कुछ शब्द मैंने सीखे जितने संवाद थे उन्हें सदीप जी ने रिकार्ड किए फिर मैं उन्हे दिन भर सुनती थी जिससे वह लहजा मेरे कानों तक रह जाए वैसे भी मेरे आब्जर्वेशन की शक्ति कुछ ज्यादा तेज है तो उसने भी मुझे विमला के किरदार को निभाने में काफी मदद की.

पहली बार आपने संदीप बसवाना के निर्देशन में अभिनय किया है जो कि निजी जीवन में आपके पति भी हैं तो कहां असमंजस वाली स्थिति बन रही थी?

टीवी पर मैने संदीप जी के साथ बतौर अभिनेत्री भी काम किया है उस वक्त वह अभिनेता और मैं अभिनेत्री थी तब हम रिलेशनशिप में नही थे हम दोनों ही प्रोफेशनल हैं क्योंकि यह होमप्रोडक्शन हैं तो सेट पर पूरी तरह से प्रोफेशनल माहौल ही होता था संदीप को हर दिन सेट पर अपने वीजन के अनुसार मुझसे काम निकालने के लिए एक कलाकार की ही तरह व्यवहार करना होता था सेट पर मुझे कोई स्पेशल ट्रीटमेंट नहीं मिलता था गलती करने पर सभी के सामने डांट भी पड़ती थी रोना भी आता था वैनिटी वैन में जाकर थोड़ी देर मुंह फुलाकर बैठी रहती थी पर कोई मनाने नहीं आता था संदीप जी ने मुझे जब यह पटकथा सुनायी थी तभी मुझे यह पटकथा बहुत पसंद आयी थीण्और अब जब मैंने यह फिल्म देखी तो मुझे लगा कि जोगी मलंग ने इस फिल्म में मुझे बरखा का किरदार निभाने का अवसर देकर बहुत बड़ा अहसान कर दिया क्योंकि यह किरदार और यह फिल्म दोनों बहुत बेहतर हैं.

इसके अलावा क्या कर रही हैं?

सीरियल अनुपमा में काम कर रही हूं.

अनपुमा के अपने किरदार बरखा को लेकर क्या कहना चाहेंगी?

यह सीरियल अनुपमा यानी कि रूपाली गांगुली का सीरियल है कहानी उन्हीं के इर्द गिर्द घूमती है बरखा का काम केवल लड़ाई लगवाना है तो मैं लड़ाई करवाती रहती हूं.

आपके शौक क्या है?

मैं जिनसे प्यार करती हॅूं उनके साथ समय बिताना ही मेरा शौक है.

अभिनेत्री और पत्नी इन दो रूपों के बीच किस तरह से सामंजस्य बैठाती हैं

प्यार से यदि हर चीज को प्यार से देखा जाए तो वह निभानी नहीं पड़ती अपने आप निभ जाती है अगर प्यार न हो तो हर चीज के लिए प्रयास करने पड़ते हैं. जब कुछ नेच्युरली हो रहा होता है तो वहां प्यार ही होता है.

ओटीटी के लिए कुछ कर रही हैं

जी हां! कुछ बातचीत चल रही है जल्द ही अच्छी खबर दूंगी ओटीटी पर काम करना है क्योंकि मेरी समझ से ओटीटी पर निर्देशक और कलाकार दोनों के सामने कहानी व दृश्यों को लेकर प्रतिबंध कम होते हैं मैं यह बात महज न्यूडिटी और गालियों को ध्यान में रखकर नहीं कह रही हूं हम ओटीटी पर कुछ वास्तविक किरदार निभा सकते हैं.

गैर ऊंची जाति के राष्ट्रपतियों ने किया क्या?

वोटबैंक की राजनीति का विरोध करने वाली भाजपा द्वारा देश के सर्वोच्च पद पर दलित या आदिवासी व्यक्ति को बिठाना वोटबैंक की राजनीति के तहत ही खेला गया मास्टर स्ट्रोक है, जिस ने न सिर्फ राष्ट्रपति पद का राजनीतिकरण किया है, बल्कि देश के एक बहुत बड़े समुदाय से भावनात्मक छल किया है.

दलित समाज से आने वाले वर्तमान राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का कार्यकाल 24 जुलाई, 2022 को समाप्त हो रहा है. दलित समाज से आने वाले कोविंद के बाद एनडीए के नरेंद्र मोदी ने अब आदिवासी समाज से ताल्लुक रखने वाली द्रौपदी मुर्मू के नाम को देश के सर्वोच्च पद के लिए नामित किया है.

ओडिशा के एक गांव में एक संथाल परिवार में जन्मीं द्रौपदी मुर्मू के कैरियर की शुरुआत एक अध्यापिका के रूप में हुई, मगर जल्दी ही वे राजनीति में आ गईं. 2000 और 2009 में भाजपा के टिकट पर वे 2 बार जीतीं और विधायक बनीं. 2000 और 2004 के बीच उन्हें राज्य सरकार में वाणिज्य, परिवहन और बाद में मत्स्य एवं पशु संसाधन विभाग में मंत्री बनाया गया था. मुर्मू 2015 में ?ारखंड की राज्यपाल बनीं. उन्होंने 24 जून, 2022 को राष्ट्रपति पद के लिए अपना नामांकन भरा है.

देश को पहला दलित राष्ट्रपति कांग्रेस ने दिया था. केरल के राष्ट्रपति कोचेरिल रमण नारायणन (के आर नारायणन) जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के कुलपति, चीन, तुर्की, थाईलैंड और संयुक्त राज्य अमेरिका में भारत के राजदूत रहे. बतौर ?1997 से 2002 तक देश के राष्ट्रपति रहे. नारायणन को 1992 में उपराष्ट्रपति और 1997 में राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी के लिए कांग्रेस के साथ वामदलों का समर्थन मिला. राजीव गांधी सरकार में मंत्री भी बने.

के आर नारायणन के बाद 2017 में भाजपा की अगुआई वाले राजग की तरफ से राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बनाए गए रामनाथ कोविंद भी दलित समुदाय से ताल्लुक रखने वाले साधारण परिवार से आते हैं. लगभग एक दशक तक वकालत करने के बाद साल 1980 और 1993 में उन्हें उच्चतम न्यायालय में केंद्र सरकार का अधिवक्ता बनाया गया. कोविंद को भाजपा में संगठन के स्तर पर भूमिकाएं मिलती रहीं. कोविंद ने 2 बार चुनाव भी लड़ा लेकिन कामयाब नहीं हुए. भाजपा ने साल 1994 और साल 2000 में राज्यसभा में भेजा. इस के बाद वे बिहार के राज्यपाल बने. 25 जुलाई, 2017 को वे राष्ट्रपति पद पर आसीन हुए.

आइडैंटिटी पौलिटिक्स के माने

देश में काफी समय से दलित और आदिवासी की ‘आइडैंटिटी पौलिटिक्स’ चल रही है. जाति और वर्ग का पौलिटिकल गेम इतना बड़ा है कि राष्ट्रपति जैसे संवैधानिक पद को भी एक वर्ग विशेष के व्यक्ति को सौंप कर यह प्रोपगंडा किया जाता है कि उस विशेष वर्ग के नेता को भारत के सर्वोच्च पद पर आसीन करने से उस विशेष वर्ग को सम्मान दिया जा रहा है.

प्रधानमंत्री मोदी 2019 के आम चुनावों से पहले दलितों का समर्थन हासिल करने की कोशिश कर रहे थे. इस की वजह एक यह भी थी कि उस समय दलितों और दक्षिणपंथी हिंदू राष्ट्रवादियों के वोटों ने मोदी को 2014 में व्यापक जीत हासिल करने में मदद की थी.

रामनाथ कोविंद का राष्ट्रपति बनना उस समय दलितों को सम्मान देना कहा गया. इसे भारतीय जनता पार्टी ने प्रोपगंडा के जरिए बड़े स्तर पर प्रचारित भी किया. अब की बार भाजपा ने आदिवासी समाज पर डोरे डालने के लिए द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति पद का प्रत्याशी घोषित किया है.

एक तो महिला और फिर आदिवासी, इस बात को बढ़ाचढ़ा कर प्रचारित किया जा रहा है कि आदिवासी समाज से पहली बार किसी महिला को प्रथम नागरिक होने का सम्मान प्राप्त होगा. लेकिन बड़ा सवाल यह है कि दलित वर्ग या आदिवासी समाज के किसी नेता के राष्ट्रपति पद पर बैठने से क्या वाकई देश के दलितों और आदिवासियों को सम्मान व अधिकार हासिल होता है? उन्हें कोई फायदा होता है?

आखिर क्या मिला

भारत में जाति और वर्ग आधारित राजनीति आजादी के बाद से ही शुरू हो गई थी. पहले कांग्रेस और अब भारतीय जनता पार्टी सभी इसी फर्मूले पर अपना वोटबैंक बनाते हैं. दलित, आदिवासी या मुसलिम समाज के एक व्यक्ति को शीर्ष स्थान पर स्थापित कर के इमोशनल कार्ड खेला जाता है और संबंधित समाज के विकास का ढोल पीटा जाता है.

के आर नारायणन या रामनाथ कोविंद के राष्ट्रपति रहते दलित समाज का कितना फायदा हुआ? इस समाज को देश में कितना सम्मान मिला? कितना अधिकार मिला? क्या उन का शोषण बंद हो गया? क्या उन की औरतों से बलात्कार बंद हो गए? क्या उन की जमीनों पर दबंगों के कब्जे रुक गए? क्या उन के साथ हिंसा होनी बंद हो गई? क्या विवाह के वक्त दलितों के घोड़ी पर चढ़ने से सवर्णों को कष्ट नहीं होता? ऐसे अनगिनत सवालों के जवाब सिर्फ न में हैं तो क्या हुआ जो देश के सर्वोच्च पद पर कोई दलित या आदिवासी बैठा दिया गया हो?

केंद्रीय गृह मंत्रालय के राष्ट्रीय अपराध रिकौर्ड ब्यूरो के अनुसार, 2009 और 2015 के बीच दलितों के खिलाफ अपराध (अत्याचार के मामलों सहित) के लगभग 2,27,000 मामले दर्ज किए गए. 2009-2013 के दौरान दलित हत्याओं की 3,194 घटनाएं हुईं, 7,849 दलित महिलाओं के साथ बलात्कार हुए. इस अवधि के दौरान आंध्र प्रदेश, बिहार, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, ओडिशा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश यानी इन 7 राज्यों में कुल अपराधों व अत्याचारों का 80 प्रतिशत हिस्सा दलितों के नाम था.

अकेले यूपी में लगभग 25 प्रतिशत अपराध दलितों के प्रति हुए तो वहीं, केंद्र सरकार ने खुद संसद में बताया कि 2018 और 2020 के बीच विभिन्न राज्यों में दलितों के खिलाफ अपराध के लगभग 1,39,045 मामले दर्ज किए गए हैं. बीते साल यह आंकड़ा 50,291 का था. देशभर में बहुत बड़ी तादाद में दलित समाज हिंसा और प्रताड़ना का शिकार है तो क्या हुआ अगर देश का राष्ट्रपति एक दलित है?

रामनाथ कोविंद देश के 14वें राष्ट्रपति एक प्रतीक के रूप में अपने 5 साल का कार्यकाल पूरा कर रहे हैं और उन के बाद पूरी उम्मीद है कि आदिवासी समाज से द्रौपदी मुर्मू देश की प्रथम नागरिक बनेंगी, लेकिन भारत का दलित और आदिवासी समाज वैसे ही हाशिए पर रहेगा जैसे था और है.

बीते 5 सालों में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की विशेष चुनौती दलितों की पीड़ा को कम करना था, क्योंकि उन्हें बतौर एक दलित राष्ट्रपति के रूप में भारत के सर्वोच्च पद पर सुशोभित किया गया था, मगर दलितों के उत्थान के लिए उन्होंने कोई ऐसा कार्य नहीं किया जो इतिहास याद रखे.

अपमान है कि रूक नहीं रहा

पिछले वर्षों में दलितों को बहिष्कार और दमन का सामना करना पड़ा है, वह चाहे गांवदेहात का दलित हो या विश्वविद्यालय में अपनी मेहनत के दम पर पहुंचने वाला रोहित वेमुला जैसा कोई दलित छात्र.

ु क्या कोई भूल सकता है हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय से पीएचडी कर रहे छात्र रोहित वेमुला को? वेमुला ने आत्महत्या कर ली. उस के आखिरी शब्द थे- ‘मेरा जन्म एक भयंकर हादसा था…’ रोहित वेमुला अपने दलित होने की त्रासदी और अपमान से गुजरता हुआ पलपल टूटता चला गया. अपने सुसाइड नोट में उस ने लिखा, ‘मैं चाहूंगा कि मेरी शवयात्रा शांति से और चुपचाप हो. लोग ऐसा व्यवहार करें कि मैं आया था और चला गया. मेरे लिए आंसू न बहाए जाएं. आप जान जाएं कि मैं मर कर खुश हूं जीने से अधिक.’

ु उसे छात्रवृत्ति मिलती थी. यूनिवर्सिटी में वह अंबेडकर स्टूडैंट्स एसोसिएशन का सदस्य था और कैंपस में दलित छात्रों के अधिकार व न्याय के लिए लड़ता था. उस ने बड़ी हिम्मत दिखाई मगर सवर्णों की संकुचित मानसिकता के आगे वह हार गया.

ु 11 जुलाई, 2016 को गुजरात के उना में कुछ दलित युवकों को मृत गाय की चमड़ी निकालने की वजह से गौ रक्षक समिति के लोगों ने सड़क पर बुरी तरह पीटा. गुजरात सरकार ने इस घटना का तब संज्ञान लिया जब खबर सोशल मीडिया पर वायरल हुई. लेकिन पीडि़तों को न्याय आज तक नहीं मिला.

ु उत्तर प्रदेश में भाजपा के उपाध्यक्ष रहे दयाशंकर सिंह खुलेआम दलित नेत्री मायावती के लिए आपत्तिजनक और अभद्र भाषा का इस्तेमाल करते रहे. बसपा कार्यकर्ताओं के साथसाथ मायावती ने खुद राज्यसभा में उन का विरोध किया. जिस के बाद दयाशंकर सिंह को प्रतीकात्मक रूप से बाहर का दरवाजा दिखाया गया, लेकिन उस के बाद उन की पत्नी स्वाति सिंह को विधानसभा का टिकट मिला, वे चुनाव लड़ीं, जीतीं और कैबिनेट मंत्री बनीं.

राजस्थान में डेल्टा मेघवाल और हरियाणा के भड़ाना में दलित महिलाओं से बलात्कार की घटनाओं को कौन भूल सकता है? यहां भी दोषियों को आज तक सजा नहीं मिली.

इस सूची में यूपी के सहारनपुर को भी जोड़ा जा सकता है जहां तथाकथित ऊंची जातियों द्वारा दलितों को पीटा गया और उन की ?ांपडि़यों को जला दिया गया.

नवनिर्वाचित भाजपा सरकार तो दलित युवाओं के नेतृत्व वाली भीम आर्मी को भी खलनायक के रूप में ही चित्रित करती है.

दलितों को अपमानित करने की पराकाष्ठा का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 2017 में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कुशीनगर के मैनपुर कोट गांव में दौरे के दौरान मुसहर बस्ती के निरीक्षण से पहले प्रशासन के लोगों ने वहां के दलित निवासियों को शैंपू और साबुन बांटे कि वे खुद को इन से पवित्र कर के ही मुख्यमंत्री के निकट जाएं. कितना अपमान! आह!

अनुसूचित जातिजनजाति कानून को और मजबूत करने की मांग के लिए बने दलित संगठनों के एक राष्ट्रीय गठबंधन का कहना है कि देश में औसतन हर

15 मिनट में 4 दलितों और आदिवासियों के साथ ज्यादती होती है. रोजाना 3 दलित महिलाओं के साथ बलात्कार किया जाता है. 11 दलितों की पिटाई होती है. हर हफ्ते 13 दलितों की हत्या हो जाती है.

5 दलित घरों को आग लगा दी जाती है. 6 दलितों का अपहरण कर लिया जाता है. इस संगठन के मुताबिक, पिछले 15 वर्षों में दलितों के खिलाफ ज्यादती के साढ़े

5 लाख से ज्यादा मामले दर्ज किए गए हैं.

जमीन के लिए लड़ाई

आदिवासी समाज दशकों से जल, जंगल, जमीन की लड़ाई लड़ रहा है. अब तो उन के सामने अस्मिता का संकट भी खड़ा हो गया है. आदिवासियों से उन के पठार, पर्वत, जंगल, जमीन, नदियां लगातार छीनी जा रही हैं. जब वे विरोध करते हैं, आंदोलन करते हैं तो उन को नक्सली करार दे कर मार दिया जाता है. इस से देश में नए संघर्ष खड़े हो रहे हैं. सिंगूर, नंदीग्राम, नगडी, पोस्को, नियमगिरि आदि प्राकृतिक संसाधनों की लूट की लंबी शृंखला है.

नए खदान और खनिज विकास अधिनियम (2015) के माध्यम से आदिवासियों की जमीनों में हजारों हेक्टेयर क्षेत्र में खदान खोद दिए गए हैं. जन सुरक्षा अधिनियमों के अंतर्गत विकास का विरोध करने वाले सैकड़ों आदिवासी जेल की सलाखों में कैद हैं. वनाधिकार कानून (2006) के सुरक्षात्मक प्रावधानों के बावजूद आदिवासियों के लाखों दावे निरस्त किए जा चुके हैं.

मालूम नहीं कि सरकारों के इन कदमों से ‘सुशासन’ स्थापित हुआ अथवा नहीं लेकिन इन कार्रवाइयों पर आदिवासी हितों के लिए नियुक्त और जवाबदेह महामहिम राज्यपालों द्वारा कभी कोई निषेधाज्ञा जारी नहीं की गई. भारत की स्वाधीनता के 7 दशकों के पश्चात विविध जनजातीय विकास योजनाओं के कागजी लक्ष्य और जमीनी उपलब्धियों के बीच बढ़ते फासले के बीच खड़ा आदिवासी समाज भौचक है. वह ठगे जाने के गहरे एहसास से भरा हुआ है.

मोदी सरकार का विकास का ऐसा मौडल है जिस में पहला शिकार आदिवासी है. आदिवासी समाज आज अपनी सामूहिक तथा ऐतिहासिक सांस्कृतिक विरासत खोता जा रहा है. मोदी के विकास मौडल ने उस के अस्तित्व को ही नकार दिया है. इस विकास के मौडल में आदिवासी अनफिट हैं तो क्या हुआ जो आने वाले समय में देश के सर्वोच्च पद पर एक आदिवासी महिला को बिठा दिया जाएगा? क्या इस से कुछ बदल जाएगा?

ु 3 जुलाई, 2022 की एक दिल दहलाने वाली खबर मध्य प्रदेश के गुना से आई है. गुना के बमोरी थानाक्षेत्र के अंतर्गत आने वाले क्षेत्र में अपने खेत में काम करने गई एक आदिवासी महिला रामप्यारी बाई पर 8-10 लोगों ने डीजल डाल कर आग लगा दी. इस का वीडियो भी बना कर वायरल किया गया. कुछ ही दिनों पहले उस को लंबी कानूनी लड़ाई के बाद अपनी 6 बीघा जमीन पर कब्जा मिला था. लेकिन एक आदिवासी जमीन का मालिक हो जाए, यह ऊंची जाति के दबंग कैसे बरदाश्त करते. उस को भोपाल के एक अस्पताल में भरती कराया गया है. उस के बचने की उम्मीद कम है. एक आदिवासी महिला के साथ यह दिल दहला देने वाली घटना तब हुई है जब देश के सर्वोच्च पद पर एक आदिवासी महिला को बिठाने की बात हो रही है.

उम्मीद रखना बेमानी

दरअसल संविधान के अनुसार राष्ट्रपति को कोई खास अधिकार नहीं होते हैं. कुछेक मामलों को छोड़ दिया जाए तो जो सरकार चाहती है, उन्हें वह करना होता है. भारतीय राष्ट्रपति की कमोबेश वही स्थिति होती है जो इंग्लैंड में महारानी की होती है. कहने को वह मोनार्क हैं लेकिन उन्हें भी कोई अधिकार नहीं होते.

इंदिरा गांधी ने जो कहा, वही माना गया. संविधान के अनुसार, राष्ट्रपति सरकार को मशवरा दे सकते हैं, सरकार से पुनर्विचार करने के लिए कह सकते हैं, लेकिन अगर सरकार इनकार कर दे तो उन्हें हस्ताक्षर करने ही होंगे. राष्ट्रपति को वही करना है जो सरकार कहेगी. राष्ट्रपति का बाद में क्या होना है, वह भी तो सरकार को ही डिसाइड करना होता है. ऐसे में राष्ट्रपति के लिए आसान नहीं होता सरकार से लड़ाई मोल लेना. भारत के पहले दलित राष्ट्रपति के आर नारायणन अपने कार्यकाल में काफी प्रभावी माने जाते थे, मगर उन्होंने भी सरकार की इच्छानुरूप ही कार्य किया, दलित समाज के लिए कुछ नहीं किया. ज्ञानी जैल सिंह को देखें, जो इंदिरा गांधी की हर बात पर हां करते थे.

ऐसे में रामनाथ कोविंद या द्रौपदी मुर्मू से उन के समाज को कोई उम्मीद रखना बेमानी है. फिर ये दोनों लंबे समय से भाजपा की विचारधारा में रचेबसे रहे हैं. तो जो व्यक्ति आज आधी रात तक भाजपा का सक्रिय सदस्य है और उस की हर बात का समर्थन करता है, कल राष्ट्रपति बनते ही उन की सोच कैसे बदल जाएगी? वे कैसे न्यूट्रल हो जाएंगे?

परछाईं: स्मिता अपनी बेटी पर क्यों चिल्लाती थी?

‘‘क्या बात है, इतनी ङ्क्षचतातुर क्यों लग रही हो?’’ शाम को घर में दाखिल होते हुए अनिमेष ने स्मिता से पूछा.

‘‘इस लडक़ी ने मुझे परेशान कर दिया है. इस के पीछे इतना चिल्लाती हूं कि पूरा मोहल्ला मुझे पागल समझता है, लेकिन मजाल है जो इस के कानों पर जंू रेंग जाए.’’ स्मिता का क्रोध फूट पड़ा. पत्नी का इशारा किस ओर था, अनिमेेष समझ चुके थे. अब ज्यादा पूछताछ से कोर्ई लाभ नहीं होने वाला था. अत: वे थकान का बहाना बनाते हुए वाशरूम में घुस गए. ‘‘मैं जानती थी अपनी लाड़ली का नाम सुनते ही तुम्हारा मौन व्रत शुरू हो जाएगा. तुम्हारी ही शह पाकर वो और मट्ठर होती जा रही है.’’ स्मिता भुनभुनाने लगी.

हाल में बैठे अनिमेष के हाथ में न्यूजपेपर देख कर स्मिता समझ गई कि वे उस की बात को टालने की कोशिश कर रहे हैं. अत: वो भी गुस्से में बिना कुछ बोले टेबल पर चाय का कप पटक रसोईघर में वापस आ गई.

वो जानती थी, अनिमेष सब कुछ सुन सकते हैं लेकिन बेटी के खिलाफ एक  शब्द भी नहीं. पर वो ये क्यों नहीं समझते, वो भी तो उस की मां है कोई दुश्मन नहीं. अगर वो कुछ कह रही है तो कम से कम ध्यान से पूरी बात तो सुनें. जरूरत से ज्यादा लाड़प्यार बच्चों को बिगाडक़र रख देता है और फिर ईशा तो उन की इकलौती औलाद है. अगर उस के कदम गलत दिशा में बहक गए तो क्या होगा? ये सोच के ही स्मिता घबरा जाती थी.

वैसे भी आजकल माहौल इतना खराब है कि मांबाप के सिखाये संस्कार बच्चों को नौटंकी लगते है. वो तो टीवी, कम्प्यूटर, मोबाइल, इंटरनेट से अपनेआप सब कुछ सीखते हैं. उन के दोस्त, यार ही उन के सब से बड़े हितैषी और सलाहकार होते हैं, जिन से दिनभर फेसबुक और व्हाट्सऐप पर चैङ्क्षटग होती रहती है. ऐसा लगता है जैसे मांबाप की जरूरत सिर्फ जन्म देने तक सिमट कर रह गई है.

ईशा भी तो आजकल उस की किसी भी बात को गंभीरता से नहीं लेती है. जब छोटी थी तो उस के बगैर एक पल भी नहीं चाहती थी. पर आजकल अपने दोस्तों और मोबाइल में ही बिजी रहती है. पढ़ाई पर भी पूरा ध्यान नहीं देती. और जब कुछ समझाने चलो, तो तुनक जाती है. क्या मां जब देखो तब सिखाती रहती हो, अब मैं बच्ची नहीं हूं, अपना अच्छाबुरा सब समझती हूं. अनिमेष से कुछ कहो तो वे भी बेटी का पक्ष ही लेते हैं. कहते हैं आजकल के बच्चे सेल्फ मोटिवेटेड और बहुत टैलेंटेड होते हैं. उन के मांबाप बन कर नहीं बल्कि दोस्त बनकर रहना सीखो, तभी उन से तालमेल बैठा पाओगी.

ये कोई बात हुई, मांबाप मांबाप न रहकर बच्चों के दोस्त बन जाएं. यानी मांबाप का रिश्ता सिरे से खलास. एक छोटे से कस्बे से ताल्लुक रखने वाली सीधी सरल महिला स्मिता को पति का ये तर्क बेमानी लगता. वो अपनी बेटी को छोटेछोटे डिजाइनर कपड़ों में देख कर ही असहज हो जाया करती. अनिमेष एक मल्टीनेशनल कंपनी में सेल्स मैनेजर की पोस्ट पर थे. वे दकियानूसी सोच से परे एक आधुनिक इंसान थे, जो अपनी बेटी को खुले आकाश में स्वछंद उड़ान भरते देखना चाहते थे. वो उसे पढ़ालिखा कर इस योग्य बनाना चाहते थे कि वो अपनी स्वयं की पहचान बना सके तथा अपनी ङ्क्षजदगी के निर्णय खुद ले सके.

बापबेटी की ये मौर्डन विचारधारा स्मिता के पल्ले न पड़ती थी. वो इस इतना चाहती थी कि ईशा सलीके से कपड़े पहने, उस से तमीज से बात करे और अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे, चीजों की केयर करना और उन्हें व्यवस्थित रखना सीखे. इधर पापा की लाड़ली उन की शह पा कर थोड़ी ढीठ और मनमौजी हो चुकी थी. नतीजतन वो मां को कुछ समझती ही नहीं थी. न ही वो किसी काम से पहले मां की राय लेना जरूरी समझती और न ही कहीं जाने से पहले उन्हें कुछ बताना. उस का सामान और कमरा भी हमेशा बिखरा डला रहता था. वो पहले तो अपनी चीजें संभालकर नहीं रखती फिर जब जरूरत पड़ती तो पूरा घर सर पर उठा लेती. इन बातों पर स्मिता को बहुत गुस्सा आता था. लेकिन जब भी वो उसे समझाने की कोशिश करती ईशा बिफर उठती. इन बातों पर अक्सर मांबेटी के बीच जबरदस्त कहासुनी हो जाती, फलत: स्मिता का मुंह फूल जाता लेकिन ईशा के चेहरे पर एक शिकन भी न होती.

आज दोपहर भी यही हुआ था कालेज से आई ईशा ने अपना बैग एक तरफ फेंका, और बिना कपड़े बदले, बिना हाथमुंह धोए मोबाइल लेकर पलंग पर औंधे मुंह जा पड़ी. कुछ देर तो स्मिता देखती रही पर आखिरकार उसे टोकना पड़ा, ‘‘ईशा पहले कपड़े तो बदल लेती.’’

‘‘हां मां, थोड़ा रुको न.’’ लापरवाही से ईशा ने जवाब दिया.

‘‘ये चैट बाद में भी तो हो सकती है. पहले हाथ मुंहधो कर कुछ खा लो.’’

‘‘क्या मां सारा मजा किरकिरा कर देती हो. कह तो दिया कि जा रही हूं. थोड़ी देर में, मगर आप तो जब देखो तब पीछे पड़ जाती हो. वैसे भी आपने कोई पिज्जा, बर्गर नहीं बनाया होगा. वही बोङ्क्षरग दालचावल सब्जीरोटी…और तो कुछ आता ही नहीं है बनाना. दूसरों की मम्मी को देखो क्याक्या मस्त चीजें बनाती है.’’ ईशा झल्ला उठी और बाथरूम में घुस कर भड़ाक से दरवाजा बंद कर लिया.

‘‘हांहां मुझे कुछ टेस्टी बनाना नहीं आता, क्यों नहीं दोस्तों के घर ही जा कर खा लेती हो. कम से कम मां के हाथ का बोङ्क्षरग खाना तो नहीं खाना पड़ेगा.’’ स्मिता को भी गुस्सा आ गया. अपमानित होने के भाव से उस की आंखें छलक उठीं. बहुत देर तक वो यूं ही बड़बड़ाती रही.

शाम को अनिमेष ने भी जब उस की बात को गंभीरता से नहीं लिया तो उसे बड़ा दुख हुआ. वो बारबार अनिमेष को आगाह करती की इतनी छूट मत दो वरना लडक़ी हाथ से निकल जायेगी. लेकिन अनिमेष को ईशा पर जरूरत से ज्यादा भरोसा था. परेशानी तो तब हुर्ई जब फस्र्ट ईयर की मिड सैम में ईशा को बहुत कम माक्र्स आये. फलत: उस ने अपना रिजल्ट भी घर में नहीं बताया. बाद में उस की सहेली से उस के रिजल्ट का पता चलने पर अनिमेष काफी नाराज हुए.

मगर ईशा ने इस में भी अपनी गलती न मानते हुए इस बात का सारा दोष स्मिता के मत्थे मढ़ दिया ये कहते हुए, ‘‘कि आपकी बारबार की टोकाटोकी की वजह से ही हुआ है ये सब, अब तो खुश हैं आप पापा और मेरे बीच दुश्मनी करा के.’’ इसी तरह स्मिता और ईशा के बीच फासला बढ़ता जा रहा था. स्मिता समझ नहीं पा रही थी कि कैसे इस रिश्ते की कडुवाहट दूर की जाए. पलपल दूर होती बच्ची के अंदर आखिर उस की सांसें भी तो अटकी पड़ी थीं और इधर ईशा मां का प्यार समझने को बिलकुल तैयार न थी.

एक दिन कालेज से आई ईशा अपने कमरे में बेड पर लेटी किसी से मोबाइल पर बातें कर रही थी कि तभी जोर की चीख और गिरने की आवाज सुनाई दी. दौड़ कर कमरे से बाहर निकली तो देखा सीढिय़ों के पास मां बेहोश पड़ी हैं और उन के सर से खून निकल रहा है. पास ही धुले हुए कपड़े बिखरे पड़े थे. शायद ऊपर से धुले कपड़े लाते वक्त स्मिता का पैर सीढिय़ों से फिसला और वो गिर पड़ी.

ईशा को काटो तो खून नहीं. उस ने मां को होश में लाने की कोशिश की मगर कोई हरकत न होती देख वो बुरी तरह घबरा गई. जल्दी से औफिस में पापा को फोन लगाया. अनिमेष ने फौरन ही पास के हास्पिटल में फोन कर वहां से एम्बुलेंस बुलवाई. आननफानन में स्मिता को अस्पताल में भर्ती किया गया. इस पूरे वक्त ईशा ने पलभर भी मां के हाथ को नहीं छोड़ा.

स्मिता को तुरंत आईसीयू में भर्ती कर लिया गया. इतने में अनिमेष भी अस्पताल आ चुके थे. पापा को सामने देख इतनी देर से बंधा हुआ सब्र का बांध आखिर टूट गया. पापा के गले लग कर ईशा फूटफूट कर रो पड़ी. ‘‘ओह्ह पापामम्मी को बचा लो, बहुत खून बह रहा है उन के सर से.’’

‘‘घबराओ मत, तुम तो मेरी बहादुर बेटी हो. देखना मम्मा बिलकुल ठीक हो जाएंगी. अनिमेष ने बेटी को तो बहला दिया परंतु भीतर ही भीतर उन के मन में सैकड़ों तूफान उठ खड़े हुए. स्मिता के बगैर वो जीने की कल्पना भी नहीं कर सकते थे. स्मिता मात्र उन की जीवनसंगिनी ही नहीं अपितु उन के जीवन की धुरी थी. जिस के दूर ही कल्पना मात्र से ही वे सिहर उठे.

लगभग दो घंटे ईशा पापा के साथ आईसीयू के बाहर बैठी रही. डाक्टर ने बताया कि स्मिता की हालत अब स्थिर है. कमर व दाहिने पैर में अंदरूनी चोटों के कारण दर्द और सूजन है जो धीरेधीरे ही ठीक होगी. भौंह के पास एक गहरा कट शायद सीढ़ी के कोने से लग गया है. जिस में सातआठ टांके आये हैं. वे अब होश में हैं, आप उन से मिल सकते हैं. पर ज्यादा देर बात नहीं कर सकते क्योंकि मरीज को अभी आराम की सख्त जरूरत है.

ईशा को तेज रोना आ रहा था, पर उस ने अपने ऊपर कंट्रोल किया और मुस्कुराकर मां से मिली. थोड़ी देर मां से मिलकर वो घर चली आई क्योंकि हास्पिटल में मरीज के संग एक व्यक्ति ही अलाऊ था. पर घर के अंदर घुसते ही वहां का सूनापन जैसे उसे काटने लगा. फ्रेश होकर बेमन से उस ने कुछ खाया. बहुत देर तक मां की याद ने उसे सोने न दिया. सच वो कितना परेशान करती है अपनी मां को, जबकि वे दिनभर काम में लगी रहती हैं. वो इतनी बड़ी हो गई कालेज में पढ़ती है, पर घर के कामों में मां की कोई मदद नहीं करवाती उलटे बातबात पर बेवजह उन पर झुंझला उठती है. उन्हें उस वक्त कितना बुरा लगता होगा. उस की गलतियों की फेहरिस्त तो बहुत लंबी है. अगर आज मां को कुछ हो जाता तो…नहीं नहीं. पर मां के खोने का डर उसे रातभर सताता रहा. उस ने मन ही मन कुछ तय किया. देर रात न जाने कब उस की आंख लगी.

पूरे दो दिन बाद अनिमेष की बाहों का सहारा ले कर स्मिता ने धीरेधीरे घर में प्रवेश किया. अस्पताल में जब तक वो रही थी उसे ईशा और घर की ङ्क्षचता खाए जा रही थी. लेकिन घर में कदम रखते ही वो चौंक पड़ी. उस का घर बेहद ही सुरुचिपूर्ण ढंग से व्यवस्थित और साफसुथरा था. ठीक जैसे वो हमेशा रखा करती थी.

तभी हाथ में ट्रे लेकर आई ईशा ने मम्मीपापा को पानी का ग्लास पकड़ाया और वहीं मां के पास बैठ गई. ‘‘कैसी है मेरी रानी बिटिया?’’ बात की शुरूआत स्मिता ने की.

‘‘मम्मा, बिलकुल ठीक हूं मैं, वैसे ये बात तो मुझे आप से पूछनी चाहिए थी.’’ ईशा ने मां के दोनों हाथ अपने हाथों में लेते हुए कहा. ‘‘मम्मा, आप से आज कुछ कहना चाहती हूं मैं. आज तक मैं ने ढ़ेरों गलतियां कीं, पर आप हमेशा बड़ा दिल रख कर मुझे माफ करती रहीं. मैं ने आप को बहुत दुखी किया है और उस के लिए दिल से शॄमदा हूं. आप मुझे माफ कर दोगी न? आप की एबसेंस ने मुझे आप के प्यार और डांट दोनों की वैल्यू समझा दी है.’’ कहते हुए ईशा थोड़ा सा रुकी. ‘‘सच मां, आप विश्वास नहीं करोगी की इस बीच मैं ने आप के हाथ से बने दालचावल, रोटीसब्जी को कितना मिस किया है. अपनी नासमझी के कारण आप को बहुत सताया है मैं ने. पर अब समझ चुकी हूं कि एक बच्चे की ङ्क्षजदगी में मां की क्या अहमियत होती है. अब मैं कभी आप को परेशान नहीं करूंगी, आप दोनों की बात मानूंगी और खूब मन लगाकर पढ़ाई करूंगी. मैं आप की आंखों की नमी नहीं बल्कि आप का गौरव बनना चाहती हूं.’’ कहतेकहते ईशा की आंखें भर आईं.

‘‘ओह्ह मेरी नन्हीं परी आज इतनी बड़ीबड़ी बातें करने लगी. मैं ने तो कभी सोचा भी नहीं था कि तुम इतने अच्छे से घर को मैनेज करोगी. तुमने तो कमाल कर दिया मेरी बच्ची. मैं ही तुम्हें गलत समझ बैठी, आखिर हो तो तुम मेरी परछाईं.’’ स्मिता ने ईशा के सर पर प्यार से हाथ फेरते हुए उस की ओर गर्व भरी नजर डाली.

‘‘हां मम्मा, मैं आप की परछाईं ही हूं.’’ कहकर ईशा मां के गले लग गई.

‘आअई…’’

‘‘सौरी मां, मैं ने आप की चोट दुखा दी.’’ ईशा ने दुखियारा सा चेहरा बना लिया.

‘‘अरे बाबा, मजाक कर रही थी.’’ स्मिता हंस पड़ी.

इधर चुप हो कर देर से मां बेटी की प्यार और मस्तीभरी बातें सुन रहे अनिमेष ने खुशी से छलक आये अपने आंसुओं को धीरे से पोंछ लिया. आज उन्हें भी अपनी गलतियां नजर आ गई थीं और उन्होंने मन ही मन स्मिता की बातों को हल्के में न लेने का फैसला किया. वे आज बड़े खुश थे, मांबेटी के बीच की खाई पटने की कगार पर जो थी.

Manohar Kahaniya: संगीता के प्यार की झंकार

सौजन्य: मनोहर कहानियां

पति के देहसुख से वंचित संगीता जिस युवक के प्यार में पागल थी, उस की नजर कहीं और भी टिकी थी. लखनऊ के बहुचर्चित राम मनोहर लोहिया संस्थान में 28 दिसंबर, 2021 को कुछ ज्यादा ही गहमागहमी थी. ओपीडी से ले कर दूसरे विभागों में मरीजों की काफी भीड़भाड़ थी. हर विंडो और डाक्टर के चैंबर के बाहर अफरातफरी का आलम था.

ऐसा ही माहौल भरती वार्ड और जांच करवाने वाले विभागों के भीतर भी था. वहां के मरीज और उन के साथ आए अटेंडेंट ने पाया कि अस्पताल के कर्मचारी ड्यूटी करने के बजाय विरोध जता रहे थे. नतीजा अस्पताल का अधिकतर कामकाज पूरी तरह से ठप हो चुका था.

दरअसल, संस्थान में काम करने वाले चतुर्थ श्रेणी के एक कर्मचारी श्रीराम यादव का 18 दिसंबर, 2021 को अपहरण हो गया था. उसे मार कर नहर में फेंक देने की चर्चा थी, जबकि हत्या के जुर्म में उस की पत्नी संगीता यादव समेत 5 लोगों को हिरासत में लिया जा चुका था. लेकिन पुलिस लाश बरामद नहीं कर सकी थी.

इस हत्याकांड को ले कर ही संस्थान का स्टाफ गुस्से में था. नर्सिंग संघ के आह्वान पर सभी सुबह 9 बजे से ही हड़ताल पर थे. अस्पताल की स्थिति को देख कर मैनेजमेंट के हाथपांव फूल गए थे.

इस की शिकायत जब मैडिकल कालेज के सीएमएस यानी चीफ मैडिकल सुपरिंटेंडेंट तक पहुंची, तब उन्होंने जिला प्रशासन और पुलिस के उच्च अधिकारियों से संपर्क किया.

सीएमएस की सूचना पा पुलिस कमिश्नर डी.के. ठाकुर ने तुरंत डीसीपी अमित कुमार आनंद और एडिशनल सीपी एस.एम. कासिम आब्दी को लोहिया संस्थान में आई आकस्मिक समस्या का तुरंत समाधान निकालने के लिए कहा.

डीसीपी अमित कुमार टीम के साथ अस्पताल पहुंचे. उन्होंने आंदोलनकारियों की बातें सुनीं. उन की मांग को जल्द से जल्द पूरी करने का आश्वासन दिया. उन्होंने कहा कि वह पीडि़त परिवार को न्याय दिलाने और श्रीराम की लाश बरामद करने की कोशिश करेंगे.

श्रीराम यादव (42) अपनी पत्नी संगीता यादव, 3 बच्चों और परिवार के अन्य सदस्यों के साथ लोहिया संस्थान के परिसर स्थित सरकारी आवास में रहते थे. उन के पास 18 दिसंबर की देर शाम कार खरीदने के लिए 2 युवक आए थे.

श्रीराम ने अपनी कार बेचने के बारे में खास दोस्त अवशिष्ट कुमार को कह रखा था. उन के कहे मुताबिक ही दोनों युवक कार का ट्रायल लेने आए थे.

श्रीराम उन के साथ टेस्ट ड्राइव कराने के लिए चले गए. किंतु देर रात तक घर नहीं लौटने पर परिवार के सदस्य चिंतित हो गए. पत्नी संगीता ने इस की सूचना अपने देवर को दी. उन्होंने रिश्तेदारों व दोस्तों से संपर्क किया, लेकिन श्रीराम के बारे में कोई जानकारी नहीं मिल पाई.

अगले दिन 19 दिसंबर को भाई मनीष यादव ने विभूतिखंड थाने में उन की खास जानपहचान वाले प्रो. अवशिष्ट कुमार व अन्य अज्ञात युवकों के खिलाफ अपहरण की रिपोर्ट लिखवा दी थी.

पुलिस ने छानबीन के बाद 3 दिन के भीतर ही 22 दिसंबर को बाराबंकी में अयोध्या हाईवे से लिंक रोड पर कुरौली के पास यूपी32 बीएम 5048 नंबर की कार बरामद कर ली, लेकिन तब तक श्रीराम का कोई अतापता नहीं चल पाया.

पति की हत्या में संगीता हुई गिरफ्तार

कार मिलने के बाद घटनास्थल से ले कर लोहिया परिसर के सीसीटीवी कैमरे खंगाले गए. सभी फुटेज में श्रीराम की गाड़ी के पीछे एक कार जाती दिखी. उस के नंबर यूपी78 पीक्यू 2268 से पता चला कि वह कार अवशिष्ट की है, जिस पर श्रीराम के भाई ने एफआईआर में शक जताया था. साथ ही कार 18 दिसंबर, 2021 से ही अवशिष्ट के निवास स्थान परिसर में भी नहीं थी.

इसे आधार बना कर की गई गहन छानबीन के बाद पुलिस टीम ने श्रीराम की पत्नी संगीता समेत अवशिष्ट, संतोष, सुशील व कुंती को गिरफ्तार कर लिया. उन से पूछताछ में श्रीराम की गोली मार कर हत्या किए जाने की बात सामने आई.

उन्होंने स्वीकार कर लिया कि श्रीराम को गोली मार कर उस का शव इंदिरा नहर में फेंक दिया गया है. इस जानकारी के बाद श्रीराम की दोनों बेटियां व एक बेटा पिता की हत्या व मां की गिरफ्तारी से सदमे में आ गए.

इस हत्याकांड में सब से बड़े सवाल का जवाब मिलना बाकी था कि आखिर श्रीराम की हत्या क्यों की गई? इसी के साथ कई दूसरे सवालों के जवाब भी तलाशे जाने थे.

इस बारे में डीसीपी (पूर्वी) अमित कुमार आनंद ने अपनी प्राथमिक जांच के आधार पर मीडिया को बताया कि श्रीराम की पत्नी संगीता यादव अवशिष्ट कुमार की प्रेमिका है, जो बाराबंकी के जहांगीराबाद स्थित राजकीय पौलीटेक्निक परिसर में रहता है.

अवशिष्ट मूलरूप से लखीमपुर खीरी का निवासी है. हिरासत में लिए गए दूसरे आरोपियों में कुंती गांधीनगर, बाराबंकी की रहने वाली है. संतोष कुमार बाराबंकी में डखौली गांव और सुशील कुमार अशोक नगर का निवासी है.

विभूतिखंड थाने के इंसपेक्टर चंद्रशेखर सिंह ने उन की गिरफ्तारी के साथसाथ .32 बोर की पिस्टल, तमंचा, 7 कारतूस व एक खोखा और अवशिष्ट से संगीता की 4 फोटो, आधार कार्ड, पैन कार्ड व पोस्ट पेमेंट कार्ड बरामद किया.

पुलिस के मुताबिक संगीता का अवशिष्ट के साथ लंबे समय से प्रेमप्रसंग चल रहा था. दोनों चोरीछिपे मिलते रहते थे. अवशिष्ट से बात करने के लिए संगीता ने एक मोबाइल फोन छिपा कर रखा हुआ था.

दिसंबर 2021 की शुरुआत में श्रीराम ने वह फोन देख लिया था. उसे पता चल गया था कि संगीता चोरीछिपे अवशिष्ट से बातें करती है. इसे ले कर पतिपत्नी के बीच काफी झगड़ा हुआ. उस के बाद से श्रीराम पत्नी संगीता पर नजर रखने लगा.

…और शुरू हुई लव स्टोरी

संगीता ने जब अवशिष्ट को इस की जानकारी दी, तब दोनों ने श्रीराम को रास्ते से हटाने की साजिश रच डाली. उन्होंने योजना बना कर श्रीराम को मौत के घाट उतार दिया था. इसे अंजाम देने के लिए अवशिष्ट ने जहांगीराबाद में पौलीटेक्निक के पास स्थित तालाब में मछली पालन करने वाले जानकार संतोष व सुशील को राजी कर लिया था.

लोहिया संस्थान में 28 दिसंबर को हंगामे के बाद श्रीराम हत्याकांड को ले कर पुलिस नए सिरे से सक्रिय हो गई. थानाप्रभारी ने संगीता यादव को लखनऊ के बड़े पुलिस अधिकारियों अमित कुमार आनंद, कासिम आब्दी और एसीपी अनूप कुमार सिंह के सामने पेश किया.

संगीता से जब सख्ती से पूछताछ की गई, तब हत्याकांड और उस के पीछे के कारणों का सारा मामला सामने आ गया, जिस में अवशिष्ट कुमार की भूमिका भी काफी संदिग्ध थी. उस के बाद अवशिष्ट कुमार से भी गहन पूछताछ की गई. फिर जो कहानी आई, वह इस प्रकार है—

प्रो. अवशिष्ट कुमार बाराबंकी में फैजाबाद रोड पर राजकीय पौलीटेक्निक कालेज जहांगीराबाद में पिछले 8 सालों से नौकरी कर रहा था. उस के पिता रामनरेश लखीमपुर में रहते हैं.

उस का श्रीराम से 2020 में अचानक संपर्क तब हो गया था, जब वह अपने इलाज के सिलसिले में राम मनोहर लोहिया संस्थान में भरती था. वह कोविड-19 का क्वारंटाइन मरीज था. इसी बीच उस की जानपहचान बड़े अधिकारी से ले कर निचले तबके के कर्मचारियों तक से हो गई थी.

वह अकेला था और अपनी देखरेख उसे ही खुद करनी पड़ती थी. यह देख कर वहां काम करने वाला श्रीराम उस की मदद करने लगा था. सहानुभूति दिखाते हुए उस ने अपनी पत्नी संगीता को भी बीचबीच में देखरेख करने के लिए कह दिया. जल्द ही अवशिष्ट की श्रीराम और संगीता से अच्छी जानपहचान हो गई. उस की सेहत में भी काफी सुधार हो गया और अस्पताल से छुट्टी मिल गई. इस के लिए उस ने श्रीराम और उस की पत्नी को तहेदिल से धन्यवाद कहा. जवाब में पतिपत्नी ने उसे एक रोज घर पर आमंत्रित किया.

अवशिष्ट जब श्रीराम के घर गया, तब उन्होंने उस की खूब खातिरदारी की, जिस से उन के बीच का आत्मीय संबंध और गहरा हो गया. फिर तो अवशिष्ट का श्रीराम के घर अकसर आनाजाना भी होने लगा.

वह श्रीराम और संगीता के कागजी काम में मदद कर दिया करता था. जैसे बैंक, मोबाइल, बिजली बिल, गैस आदि के काम में पतिपत्नी दोनों अवशिष्ट की मदद लिया करते थे.

इसलिए जरूरत पड़ने पर श्रीराम या संगीता उसे गाहेबगाहे फोन कर बुला लिया करते थे. ऐसे में कई बार अवशिष्ट को संगीता के साथ अकेले में समय गुजारने का भी मौका मिल जाता था. जल्द ही दोनों आपस में काफी घुलमिल गए थे.

संगीता को अवशिष्ट की अदाएं, बातचीत करने का अंदाज, पहनावा, बोलचाल व बर्ताव काफी अच्छा लगता था. अवशिष्ट को भी संगीता एक सभ्य महिला की तरह लगती थी, जबकि वह बहुत कम पढ़ीलिखी थी.

संगीता जब कभी अवशिष्ट की तुलना पति श्रीराम से करती तब अवशिष्ट के मुकाबले पति बेवकूफ नजर आता था. संयोग से वह श्रीराम से अच्छे ऊंचे पद पर सरकारी नौकरी में था.

फिर क्या था, दोनों को जब कभी मौका मिलता वे साथसाथ खरीदारी करने या यूं ही सैरसपाटे के लिए निकल जाते थे. वे आपस में काफी खुल गए थे. उन के बीच हंसीमजाक भी होने लगा था. संगीता को वह कई बार गिफ्ट भी दे चुका था.

श्रीराम इन सब से अनजान बना रहा. सच तो यह था कि संगीता को अवशिष्ट काफी पसंद आने लगा था. जब कभी वह घर नहीं आता था, तब संगीता उसे किसी काम के लिए श्रीराम से फोन करवा कर बुला लेती थी.

इधर दोनों की मुलाकातों का सिलसिला बढ़ने लगा, उधर श्रीराम की संगीता के साथ तूतूमैंमैं होने लगी. फिर भी संगीता की लव स्टोरी परवान चढ़ रही थी.

कहने को संगीता 3 बच्चों की मां बन चुकी थी. उम्र भी 40 के करीब पहुंच चुकी थी, लेकिन वह यौवन के चरम पर थी. उस की जरूरतों को पूरी करने में श्रीराम असमर्थ था. वह घरेलू जरूरतों की पूर्ति में लगा रहता था. वह न तो संगीता की भावनाओं का खयाल रख पाता था और न ही उसे यौनसुख ही दे पाता था.

प्रेमी की मर्दानगी की कायल हो गई थी संगीता

संगीता की स्थिति एक जल बिन प्यासी मछली जैसी हो गई थी. ऐसे में वह अवशिष्ट का साथ पा कर कुछ पल के लिए सुखद एहसास का अनुभव करती थी. वह उस से एक दिन भी मिले बगैर नहीं रह पाती थी.

श्रीराम को इस बात का एहसास होने लगा था कि संगीता का लगाव अवशिष्ट के प्रति कुछ अधिक ही हो गया है. वह उसे एक भरपूर मर्द के नजरिए से देखने लगी है. सच तो यह भी था कि संगीता श्रीराम की उपेक्षा कर उसे कमजोर मर्द का ताना भी कसने लगी थी, जबकि उसे संगीता की यह हरकत बुरी लगने लगी थी.

वह नहीं चाहता था कि संगीता उस के दोस्त के साथ मेलजोल रखे. पानी उस के सिर के ऊपर से बहने लगा था. श्रीराम को संगीता का अवशिष्ट के साथ मिलनाजुलना अखरने लगा था.

यह देख कर श्रीराम संगीता पर अंकुश लगाने लगा. बातबात पर टोकने लगा. जब उस से बात नहीं बनी, तब उस ने इस बारे में अवशिष्ट से भी बात की. उस से कहा, ‘‘यार, तुम्हारी मेरी दोस्ती है.

मैं चाहता हूं कि वह हमेशा बनी रहे, लेकिन तुम्हारी खातिर मेरा पत्नी के साथ झगड़ा होता रहता है. इसलिए तुम उस से नहीं मिलो तो अच्छा होगा… उस से फोन पर बातें भी मत किया करो… ’’

इस पर अवशिष्ट ने उसे खरा सा जवाब दिया, ‘‘इस में मेरी क्या गलती है. तुम अपनी पत्नी संगीता पर क्यों नहीं अंकुश लगाते हो. उसे क्यों नहीं समझाते हो. वही मुझे फोन कर बुलाती रहती है.’’

श्रीराम को अवशिष्ट की बात बुरी लगी. वह समझ गया कि उसे संगीता पर ही किसी तरह से अंकुश लगाना होगा. उसे अवशिष्ट से दूर करना होगा.

वैवाहिक जीवन और नाजायज रिश्ता

इस के लिए उस ने एक तरीका निकाला और संगीता को उस के मायके कंचनपुर भेज दिया, लेकिन संगीता भी कहां मानने वाली थी. वह तो अवशिष्ट को दिल से चाहती थी. उस के खयालों में खोई रहती थी. दिल में उस के प्रति प्यार का तूफान उठ चुका था. शरीर में यौनांनद की काल्पनिक अनुभूति के

गुबार उठते रहते थे. उसे मिले बगैर रह ही नहीं सकती थी.

दूसरी तरफ अवशिष्ट की भी कुछ ऐसी ही स्थिति बनी हुई थी. संगीता के रूपयौवन से वह भी काफी प्रभावित था. जब कभी सजीसंवरी संगीता के मांसल शरीर के साथ कमसिन अल्हड़ जैसी हरकतें देखता था, तब उसे के कुंवारेपन में एक टीस की अनुभूति होती थी. यही कारण था कि वह उस के एक बुलावे पर दौड़ादौड़ा मिलने चला आता था.

श्रीराम यादव का विवाह संगीता के साथ 1996 में सामाजिक रीतिरिवाज के अनुसार हुआ था. तब से वह उस के साथ लखनऊ में ही रह रही थी. विवाह होने के कई सालों बाद गांव गई थी. वहां उस का मन नहीं लगा. 2 सप्ताह में ही वह अपने पति के पास आ गई. आते ही उस ने पति से माफी मांगते हुए कहा कि वह उस का हर कहा मानेगी.

अवशिष्ट को जब संगीता के गांव से लौट आने की जानकारी मिली, तब वह भागाभागा उस से मिलने आ गया. उस वक्त घर पर श्रीराम भी था. संगीता ने पति के सामने ही उसे रूखेपन के साथ कहा कि वह श्रीराम के रहने पर ही यहां आए. इस पर श्रीराम और अवशिष्ट चुप रहे.

जैसे ही श्रीराम कुछ मिनट के लिए कमरे से बाहर गया अवशिष्ट ने जेब से एक मोबाइल निकाल कर संगीता को पकड़ा दिया. बोला, ‘‘इसे छिपा कर रखना. जब बात करनी हो तो इसी से फोन करना.’’

उस रोज चायनाश्ते के बाद अवशिष्ट चला गया. कुछ दिन बीत गए. इस बीच जब श्रीराम ड्यूटी पर होता था तब वह अवशिष्ट के दिए फोन से बातें करती. अस्पताल में श्रीराम की ड्यूटी शिफ्ट में होती थी. उस रोज उस की ड्यूटी रात को होने वाली थी. अवशिष्ट को इस की सूचना संगीता ने फोन कर दे दी और उसे अपने घर पर बुला लिया.

शाम ढलते ही अवशिष्ट आ गया. उस से काफी देर तक बातें कीं. आगे की योजना बनाई. रात के 8 बजने वाले थे. संगीता ने अवशिष्ट को रात में वहीं रुकने के लिए कहा.

संगीता ने प्रेमी के साथ गटके पैग

अवशिष्ट तुरंत बाजार गया और बच्चों के लिए खानेपीने का कुछ सामान ले आया. साथ में शराब की एक बोतल भी खरीद लाया. पहले भी वह श्रीराम के साथ बैठ कर कई बार शराब की महफिल जमा चुका था.

इस में संगीता भी साथ दिया करती थी. उस रोज भी वह शराब की बोतल देख कर खुश हो गई. काफी दिनों बाद अवशिष्ट के साथ पैग लगाने का मौका जो मिल गया था. वह भी अकेले में.

अवशिष्ट ने फटाफट शराब के 2 पैग गटक लिए और कमरे में पड़े बैड पर पसर गया. थोड़ी देर में संगीता प्लेट में कुछ नमकीन ले आई. गिलास खाली देख कर बोली, ‘‘अकेलेअकेले गटक लिए.’’

अवशिष्ट लेटालेटा बोला, ‘‘एक और बना दो.’’

संगीता गिलास में 2 पैग शराब डालने के बाद अपने साथ गिलास में एक पैग बना लिया. गिलास को छोटे टेबल पर रख कर अवशिष्ट को उठने के लिए कहा. अवशिष्ट ने उठने के बजाए अपना हाथ बढ़ा दिया, ‘‘ये लो, खींच कर उठाना जरा.’’

संगीता मुसकराती हुई उस का हाथ खींचने लगी, लेकिन वह अपनी ताकत लगाती कि इस से पहले अवशिष्ट ने उसे ही खींच कर अपने ऊपर गिरा लिया, ‘‘अरे..अरे, यह क्या करते हो…’’

कहती हुई संगीता अवशिष्ट के शरीर पर गिर पड़ी. संगीता उठने का प्रयास करने लगी. हालांकि अवशिष्ट की मदद से ही वह उठ पाई और अपने अस्तव्यस्त कपड़े को संभालने लगी.

इस क्रम में अवशिष्ट की निगाह उस की मांसल शरीर पर गई. एक नजर उस ने उभार पर भी डाली और दूसरी नजर उस की शरमाई हुई आंखों पर. संगीता ने चुपचाप शराब का गिलास उसे पकड़ा दिया.

‘‘अपना गिलास तो उठाओ. चीयर्स करते हैं,’’ अवशिष्ट बोला.

झेंपती हुई संगीता ने अपना गिलास उठा लिया और चीयर्स करने के बाद उन्होंने अपनेअपने गिलास को एक साथ होंठों से लगा लिया.

उस के बाद संगीता ने 3 और पैग बनाए. उन्होंने नमकीन खाई. चीयर्स किया फिर पैग दर पैग गटकते रहे. अवशिष्ट पर शराब का नशा छाने लगा था, जबकि संगीता पर शराब के साथसाथ यौवन का नशा भी छा चुका था. दोनों कब दो जिस्म एक जान हो गए, पता ही नहीं चला.

आधी रात को जब संगीता को होश आया तब उस ने खुद को अवशिष्ट की बलिष्ठ बाहों में पाया. लंबे अरसे के बाद उस ने अपनी कामुकता को इतना शांत महसूस किया था. अवशिष्ट की भी आंखें खुल चुकी थीं. उसे भी संगीता के समर्पण को ले कर आश्चर्य हुआ.

दोनों एकदूसरे से अलग हुए. अपनेअपने कपड़े पहने और बैठ कर इधरउधर की बातें करने लगे. संगीता ने पति को ले कर आशंका जताई. चिंतित हो कर बोली, ‘‘हमारे संबंध के बारे में श्रीराम को नहीं मालूम पड़ना चाहिए, वरना वह हमें कहीं का नहीं छोड़ेगा.’’

‘‘उसे कैसे मालूम होगा?’’ अवशिष्ट बोला.

हालांकि सवाल तो दोनों के मन में था कि वे श्रीराम की नजरों से बचते हुए इस नए रिश्ते को कायम कैसे रखें. इस का हल संगीता ने ही निकाला कि वे चोरीछिपे मिलेंगे. उसे छिपा कर फोन पर बातें होंगी.

वे बातों में इतने खो गए कि उन्हें पता ही नहीं चला सुबह के 4 बजने वाले हैं. वे अपने संबंधों के आड़े आने वाली समस्या का समाधान निकालने लगे थे, तभी दरवाजा खटखटाने की आवाज आई.

संगीता ने ‘कौन है’ पूछा तो बाहर से श्रीराम की आवाज आई. उस ने भाग कर शराब की बोतल, नमकीन के प्लेट, गिलास आदि हटा कर बिस्तर ठीक किया और दरवाजा खोला. अवशिष्ट श्रीराम को आया देख कर सकपका गया. श्रीराम भी उसे घर में देख कर पूछ बैठा, ‘‘तुम यहां? रात को यहीं थे?’’

‘‘अरे, नहीं. मैं तो अभीअभी आया हूं. तुम्हारे बारे में पूछ ही रहा था. असल में मेरी गाड़ी चौराहे के पास ही खराब हो गई थी. मैं ने सोचा कि तुम से किसी मैकेनिक की

मदद मिल जाएगी. यहां तुम्हारी जानपहचान का कोई मैकेनिक होगा ही, इसलिए आ गया.’’ अवशिष्ट ने रुकरुक कर अपनी बात पूरी की.

संगीता आश्चर्य से उस का चेहरा देखने लगी. श्रीराम बोला, ‘‘अभी तो नहीं, सुबह 9 बजे के करीब ही मैकेनिक मिल पाएगा. तब तक तुम यहीं रुक जाओ.’’

‘‘नहींनहीं, मैं टैंपो से घर चला जाता हूं, सुबह तो होने वाली ही है.’’ कहता हुआ अवशिष्ट चला गया. उस के जाने के बाद श्रीराम ने गुस्से में संगीता से पूछा, ‘‘सचसच बताओ, वह यहां कब आया था? संगीता ने हाथ जोड़ लिए. माफी मांगते हुए बोली, ‘‘उस ने जो बताया सही था. मेरा उस के साथ कोई नाजायज संबंध नहीं है, जैसा तुम समझ रहे हो.’’

उस वक्त तो श्रीराम और ज्यादा कुछ नहीं बोला. सिर्फ हिदायत दी कि आगे से वह उसे अवशिष्ट के साथ देखना नहीं चाहता है.

पति से दूरियां, प्रेमी से नजदीकियां

उस के बाद अवशिष्ट कुल 2 महीने तक श्रीराम की नजरों से छिपा रहा, लेकिन संगीता से उस का मिलना बंद नहीं हुआ. वह श्रीराम के नहीं रहने पर अवशिष्ट को बुला लेती थी. इस तरह से उन के बीच नाजायज रिश्ते की रेल चलती रही. पति की नजरों में अच्छी बनी रहने के लिए वह उस की हर बात मान लेती थी.

इस की जानकारी श्रीराम को भी हो गई थी, लेकिन अपनी बदनामी के डर से चुप लगाए हुए था. धीरधीरे उस ने संगीता को सही रास्ते पर लाने की काफी कोशिशें कीं, मगर संगीता पर तो इश्क का भूत और जिस्म का नशा सवार था.

जब कभी पति शारीरिक संबंध के लिए कहता तो सिरदर्द का बहाना बना लेती थी. जबकि वह प्रेमी संग गुलछर्रे उड़ाया करती थी. शर्मसार श्रीराम उन के बीच के रिश्ते को रोक पाने में असफल था. वह विवश भी था. धीरेधीरे अवशिष्ट पहले की तरह बेधड़क संगीता के पास आनेजाने लगा.

फिर से अवशिष्ट को ले कर घर में श्रीराम और संगीता के बीच कलह होने लगी. एक दिन श्रीराम दोपहर के समय घर पहुंचा, तो संगीता को आधेअधूरे कपड़े में पाया. उस वक्त अवशिष्ट भी मौजूद था. उस ने उसे  काफी भलाबुरा कहा. उस के जाने के बाद संगीता को भी समझाया.

घर में रोजरोज के कलह से बचने के लिए संगीता जरूरी काम का बहाना बना कर मायके चली गई. मायके वालों को जब संगीता के अवैध रिश्ते के बारे में जानकारी मिली, तब उन्होंने भी उसे समझाने की कोशिश की. फिर वह मायके से वापस आ गई. लखनऊ आते ही उस का पुराना खेल फिर शुरू हो गया.

अगली बार जब संगीता और अवशिष्ट मिले, तब उन्होंने अपने भविष्य की योजना बनाई कि कैसे श्रीराम से छुटकारा पाया जाए. संगीता ने कहा कि श्रीराम के रहते एक साथ बगैर रोकटोक के सुखशांति से जीवन गुजारना मुश्किल है.

अवशिष्ट ने जब पूछा कि क्या किया जाना चाहिए, तब संगीता ने 2 प्रस्ताव रखे कि कहीं भाग चलें या फिर श्रीराम को रास्ते से हटाने का वही कोई तरीका बताए. दोनों की किसी भी बात पर रजामंदी नहीं बनी.

अवशिष्ट ने संगीता को सपने दिखाते हुए कहा कि वह उस के कहने पर श्रीराम को हमेशा के लिए रास्ते से हटा देगा. इस से उस के जीवन भर के लिए कांटा तो दूर हो जाएगा. साथ ही उस के मरने के बाद मकान, प्लौट, धन उस के नाम हो जाएगा. यहां तक कि अनुकंपा पर उसे नौकरी भी मिल जाएगी. इस तरह से वह श्रीराम की सारी संपत्ति की वारिस बन जाएगी.

यह प्रस्ताव संगीता को अच्छा लगा. जबकि सच तो यह भी था कि इस से अवशिष्ट को भी फायदा होने वाला था. वह चाहता था कि श्रीराम की मौत के बाद उस से शादी कर लेगा और फिर उस की संपत्ति का हकदार भी बन जाएगा.

भाड़े के हत्यारों को किया शामिल

संगीता के हामी भरने के बाद योजना बनाई गई. इस में संतोष और सुशील को पैसे का लालच दे कर योजना में शामिल किया गया. दोनों राजकीय पौलीटेक्निक के जहांगीराबाद कैंपस के तालाब से मछली का कारोबार करते थे.

श्रीराम अपनी कार बेचना चाहता था. यह बात उस ने अवशिष्ट को भी बता दी थी. तय कार्यक्रम के अनुसार 18 दिसंबर, 2021 की शाम राम मनोहर लोहिया मैडिकल संस्थान से अवशिष्ट ने श्रीराम से कहा कि कार खरीदने के लिए 2 युवक मैडिकल संस्थान में आए हैं. वे कार की टेस्ट ड्राइव करना चाहते हैं. उन के साथ उन के परिवार की एक महिला भी है.

वे युवक कोई और नहीं बल्कि अवशिष्ट द्वारा भेजे गए भाड़े के बदमाश सुशील और संतोष थे जो कुंती नाम की महिला को इसलिए अपने साथ लाए थे ताकि श्रीराम को उन पर शक न हो. टेस्ट ड्राइव के बहाने दोनों युवक श्रीराम को कार में बिठा कर फैजाबाद रोड पर ले गए इस के बाद वे किसान पथ से कार को इंदिरा नगर की ओर ले गए. वहां एक सुनसान जगह पर कार रोक दी.

अवशिष्ट अपनी कार से उन के पीछेपीछे चल रहा था. उस के साथ प्रेमिका संगीता थी. सुनसान जगह पर श्रीराम को कार से उतारने के बाद सुशील ने तमंचे से श्रीराम पर फायर झोंक दिया.

लेकिन फायर मिस हो जाने के कारण अवशिष्ट के दिए हुए पिस्टल से श्रीराम को गोली दाग दी. उस की घटनास्थल पर ही मौत हो गई.

उन्होंने शव को इंदिरा नहर में फेंक दिया. तीनों उस की कार को लखनऊ हाईवे से लिंक रोड पर करौली के पास छोड़ कर चले गए, जिसे बाद में पुलिस ने बरामद किया.

अवशिष्ट ने भी अपनी कार दूसरी जगह ले जा कर खड़ी कर दी. वह कार भी 24 दिसंबर, 2021 को पुलिस ने बरामद कर ली थी.

उसी कार कार से मिले कुछ दस्तावेजों के आधार पर संगीता और अवशिष्ट कुमार की गिरफ्तारी हो पाई. उन्होंने श्रीराम हत्याकांड में संतोष, सुशील और कुंती का नाम लिया, जिन की भी अगले दिन गिरफ्तारी हो गई.

इस पूरे मामले को निपटाने में एसआई उदयराज निषाद, अतिरिक्त क्राइम ब्रांच इंसपेक्टर विनोद यादव और पवन सिंह समेत महिला एसआई दीपिका सिंह व सिपाही पूजा देवी की सराहनीय भूमिका रही.

पुलिस सभी आरोपियों को गिरफ्तार कर जेल भेज चुकी थी. कथा संकलन तक श्रीराम की लाश बरामद नहीं हो पाई थी.

कुहनी और घुटने में कालापन बहुत ज्यादा है, कैसे हटाएं?

सवाल

मेरी उम्र 16 साल है. मेरे हाथपैरों के मुकाबले कुहनी और घुटने में कालापन बहुत ज्यादा है. इस वजह से मैं शौर्ट ड्रैसेज नहीं पहनती. घरेलू उपाय बताएं ताकि यह कालापन दूर हो सके.

जवाब

कुहनी और घुटने की ऊपरी त्वचा थोड़ी मोटी और खुरदरी होती है जिस कारण से वहां मैल तेजी से जमने लगता है और इसे साफ करना आसान नहीं होता. लेकिन कुछ उपाय अपना कर इस समस्या से काफी हद तक छुटकारा पाया जा सकता है.

दूध और हलदी का लेप कुहनी और घुटने पर लगाएं. थोड़ा सूखने पर रगड़ कर साफ करें. एलोवेरा का गूदा निकाल कर कुहनी और घुटने पर रोजाना लगाएं. नीबू के छिलकों के पाउडर में थोड़ा नीबू का रस व शहद मिला कर कुहनी और घुटनों पर उस का लेप लगाएं. कुछ दिनों बाद आप को फर्क नजर आएगा.

कौफी का इस्तेमाल चेहरे व आंखों के नीचे के कालेपन को दूर करने के लिए किया जाता है. कुहनी और घुटनों के कालेपन दूर करने में भी इस से मदद मिल सकती है. कौफी के साथ एलोवेरा मिला कर उस का लेप लगाना भी फायदेमंद हो सकता है.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

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Rakhi 2022: मुंहबोले भाई बहन को समय की जरूरत

स्नेहा अपने मातापिता की एकलौती संतान होने के कारण बहुत लाड़ली थी. स्कूल में उस के दोस्त भी बहुत थे लेकिन इस के बाद भी स्नेहा को अपने भाई की कमी महसूस होती थी. खासकर रक्षाबंधन पर तो वह अपने भाई की कमी बहुत महसूस करती. जैसेजैसे स्नेहा बड़ी हो रही थी उसे भाई की कमी काफी खलने लगी थी.

जब वह कक्षा 8 में पढ़ रही थी तभी उस के पड़ोस में सुरेश और नेहा का परिवार आ कर रहने लगा. पड़ोस में रहने के कारण स्नेहा का उन के घर आनाजाना होने लगा, वहां स्नेहा को अपना हमउम्र राकेश मिल गया. राकेश स्नेहा से एक क्लास आगे था. उस ने स्नेहा के स्कूल में ही ऐडमिशन ले लिया. अब स्नेहा और राकेश के बीच मुंहबोले भाईबहन का रिश्ता बन गया. दोनों एकसाथ पढ़ने जाते थे. स्कूल में भी ज्यादातर एकसाथ रहते थे. स्नेहा को अब लगने लगा जैसे उस का कोई बड़ा भाई भी है. स्नेहा पहले से अधिक खुश रहने लगी. दूसरी ओर राकेश भी स्नेहा का साथ पा कर खुश रहने लगा था. दोनों का मन अब पढ़ने में लगने लगा था. इस से उन के पेरैंट्स भी खुश थे.

यह बात केवल स्नेहा और राकेश की ही नहीं है, आज कई ऐसे बच्चे हैं जो अकेले होते हैं. कई बच्चों को अकेलापन परेशान करने लगता है, जिस से वे मानसिक रूप से परेशान हो जाते हैं. ऐसे में मुंहबोले भाईबहन जैसे रिश्ते समय की जरूरत बन जाते हैं. मुंहबोले भाईबहन के रिश्ते दोस्ती से अधिक मजबूत होते हैं, क्योंकि इन में एकदूसरे की भावनाओं का ज्यादा खयाल रखा जाता है.

समाजशास्त्री डाक्टर रेखा सचान कहती हैं, ‘‘मुंहबोले भाईबहन के रिश्ते बहुत जरूरी होते हैं. यह समय की जरूरत बनते जा रहे हैं. वैसे तो ऐसे रिश्ते इतिहास में भी मिलते हैं. मुगल बादशाह हुमायूं और चित्तौड़गढ़ की महारानी कर्णवती की कहानी ऐसे रिश्तों की पुष्टि करती है. कर्णवती राजा राणासांगा की पत्नी थी. वह हुमायूं को राखी बांधती थी. दोनों के बीच मुंहबोले भाईबहन का रिश्ता था. एक बार युद्ध के समय कर्णवती ने हुमायूं से मदद मांगी तो हुमायूं ने अपनी सेना सहित उन की मदद की.’’

एकल परिवार बने वजह

समाज में पहले संयुक्त परिवार का चलन था. जहां बच्चों को तमाम भाईबहन मिल जाते थे, जो सगे भाईबहन की कमियों को पूरा करते थे. छुट्टियों में बच्चे अपने नातेरिश्तेदारों के यहां रहते थे जिस से उन के बीच बेहतर रिश्ते बन जाते थे. अब यह चलन करीबकरीब बंद हो गया है. बच्चों पर पढ़ाई का इतना बोझ पड़ने लगा है कि वे छुट्टियों को तो भूल ही गए हैं. केवल बच्चे ही नहीं बल्कि उन के पेरैंट्स को भी छुट्टी नहीं मिलती. ऐसे में मुंहबोले भाईबहन समय की जरूरत बन गए हैं. कई बार बच्चे अपनी जो बातें मातापिता, सगे भाईबहन से नहीं कह पाते वे बातें मुंहबोले भाईबहन से कह देते हैं.

दिल्ली की रहने वाली पुनीता शर्मा कहती हैं, ‘‘मुंहबोले भाईबहन में यह जरूरी नहीं होता कि वे एक ही जाति या धर्म के हों. अलगअलग जाति और धर्म वाले भी मुंहबोले भाईबहन का रिश्ता बेहतर निभा सकते हैं. यह समय की ही नहीं समाज की भी जरूरत है. ऐसे रिश्तों से बेहतर भविष्य और समाज की संरचना हो सकती है. समाज में ऐसे तमाम रिश्ते दिखते हैं जहां मुंहबोले भाईबहन के बीच बेहतर कमिटमैंट और सहयोग होता है. कई बार तो यह रिश्ते सगे रिश्तों से भी अधिक कारगर साबित होते हैं. ’’

दोस्ती से ज्यादा भरोसा

किशोरावस्था में दोस्ती के रिश्ते बहुत बनते हैं. मुंहबोले भाईबहन के रिश्ते दोस्ती से कहीं अधिक जिम्मेदारी भरे होते हैं. दोस्ती बनतीबिगड़ती रहती है पर ऐसे रिश्ते आसानी से टूटते नहीं हैं. दोस्ती में जहां कई तरह की परेशानियां आ जाती हैं वहीं मुंहबोले भाईबहन के रिश्तों में हमेशा एक बंधन होता है. मुंहबोले भाईबहन के रिश्तों में परिवार भी जुड़ा होता है. ऐसे में यहां पर भरोसा दूसरे रिश्तों के मुकाबले ज्यादा होता है. परिवार के साथ होने से यह रिश्ते ज्यादा समय तक और भरोसे के साथ चलते हैं. मुंहबोले भाईबहन के रिश्ते में दोनों ही तरफ से जिम्मेदारियां ज्यादा होती हैं. परिवार के साथ होने से ऐसे रिश्तों में कोई परेशानी या तनाव आता है तो उस को दूर करना सरल होता है.

लखनऊ के लालबाग गर्ल्स इंटर कालेज में पढ़ने वाली रितिका अग्निहोत्री कहती है, ‘‘आज के समय में ज्यादातर किशोर उम्र के बच्चे ऐसे रिश्तों और उन की जरूरतों को कम समझ पाते हैं. समाज को ऐसे रिश्तों की बहुत जरूरत है. ऐसे रिश्तों से समाज में बेहतर माहौल बनता है. मुंहबोले भाईबहन के रिश्ते दोस्ती से ज्यादा गंभीर होते हैं. इन को समझ कर सहेजने की जरूरत है.’’

तालमेल बैठाना जरूरी

कोई भी रिश्ता हो उस में तालमेल और खुलेपन का होना जरूरी होता है. जब तक आप उस रिश्ते को सही से समझेंगे नहीं, उसे निभा नहीं पाएंगे. मुंहबोले भाईबहन के रिश्ते के प्रति यह समझना जरूरी होता है कि यह प्रेम और खून के रिश्ते जैसा नहीं होता. कभीकभी इस में दूरी भी आती है. यह दूरी कई वजहों से आ सकती है. जब ऐसे रिश्तों में दूरी आए तो परेशान होने की जरूरत नहीं होती, बल्कि आपसी तालमेल से गलतफहमियों को दूर करने की कोशिश करनी चाहिए.

संजोली श्रीवास्तव कहती हैं, ‘‘मुंहबोले भाईबहन के रिश्ते किशोर उम्र में ही बनते हैं. इस के बाद भी इन का एहसास जीवनभर बना रहता है. ऐसे रिश्ते आगे चल कर पारिवारिक रिश्तों की तरह बन जाते हैं और सगे रिश्तों से भी अधिक गहरे हो जाते हैं. हर रिश्ते की तरह मुंहबोले भाईबहन का रिश्ता भी बहुत कमिटमैंट के साथ निभाने की जरूरत होती है. इस रिश्ते में विश्वास और ईमानदारी का होना बहुत जरूरी होता है. आज जहां समाज में लड़कियों के अनुकूल माहौल बनाने की बात की जा रही है वहीं ऐसे रिश्तों की भी बहुत जरूरत महसूस होती है.’’

रिश्तों का अपनापन

मुंहबोले भाईबहन के रिश्ते में कोई बड़ी मजबूरी नहीं होती. यह दिल से बनते हैं और हंसीखुशी निभाए जाते हैं. लखनऊ के लामार्टिनियर गर्ल्स स्कूल में पढ़ने वाली दिया मनशा कहती है, ‘‘मुंहबोले भाईबहन के रिश्ते में अपनापन होता है. उस में एक भरोसा होता है. कैरियर के बारे में किशोरावस्था में तमाम तरह के सवाल मन में चलते रहते हैं. ऐसे में आपस में सलाह कर सही दिशा मिल जाती है.

‘‘यह बात सही है कि नए दौर में यह रिश्ते गुम से होते जा रहे हैं लेकिन इस के बाद भी ऐसे रिश्तों की जरूरत खत्म नहीं होती. इन को बनाए रखना समाज की जरूरत हो गई है.’’

अनुपम तिवारी कहता है, ‘‘मुंहबोले भाईबहन एकदूसरे की बेहतर मदद कर सकते हैं. इन को आपस में एकदूसरे के परिवार और घर की भी जानकारी होती है. ऐसे में यह घरपरिवार को सामने रख कर सलाह देते हैं जो ज्यादा बेहतर साबित होती है. हम इन रिश्तों के साथ खुद को ज्यादा सुरक्षित महसूस करते हैं. ऐसे में इन रिश्तों को सहेजने और बनाए रखने की भरपूर जरूरत है.’’

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