Download App

Manohar Kahaniya: टूट गया दिव्या के प्यार का सुर और ताल- भाग 1

दिव्या को बचपन से ही गाने का शौक था. इसी शौक को उस ने अपना प्रोफेशन बना लिया था. वह अकसर अपने गाने रिकौर्ड करने के लिए हरियाणा के विभिन्न स्टूडियो में जाती थी. कई जगहों पर वह उन गानों का वीडियो भी शूट करती थी. कभी खेतखलिहान में तो कभी किसी पार्क में. नहर के किनारे तो कभी माल आदि में दिव्या अपने वीडियो शूट करती थी.

इस काम में दिव्या का एक दोस्त रवि उर्फ रोहित काफी मदद करता था. रवि को भी गाने का शौक था. दोनों ने मिल कर कई गाने साथ में रिकौर्ड किए थे. कई वीडियो भी साथ में बनाए थे. दिव्या रवि की आवाज पर फिदा थी. जबकि रवि उस की डांस अदा और खूबसूरती पर जान छिड़कता था. रवि काफी अच्छा गाता था.

दोस्ती बदल गई प्यार में

रवि की आवाज सुरीली थी. धीरेधीरे दिव्या उस के अंदाज पर भी फिदा हो गई थी. फुरसत में दोनों काफी समय साथ बिताने लगे थे. हर जगह साथ आतेजाते थे और साथ में वीडियो शूट करते थे. कभी किसी एलबम की रिकौर्डिंग होनी होती थी तो कई बार रात में भी रवि दिव्या के साथ होता था. वह उस के घर भी आनेजाने लगा था.

प्यार की आग एक तरफ नहीं, बल्कि दोनों तरफ लगी हुई थी. रवि दिव्या की खूबसूरती का दीवाना था. उन की प्रोफेशनल फ्रैंडशिप प्यार में बदल चुकी थी. दिनरात की नजदीकियों से उन के बीच की सारी दूरियां मिट गई थीं. वे लिवइन रिलेशन में एक साथ भले ही नहीं रह रहे थे, लेकिन एकदूसरे पर फिदा रहते थे.

रवि के साथ पूरी जिंदगी बिताने की इच्छा लिए दिव्या ने सुंदर सपने देखे थे. मन में अपने भविष्य की जिंदगी की खूबसूरत दुनिया सजाई थी. इसी में वह खोई रहती थी. यह सब 2 साल तक चलता रहा. दिव्या के परिवार वाले इस प्रेम कहानी से वाकिफ थे. उन्हें भी उन के संबंधों को ले कर कोई ऐतराज नहीं था. सभी दिव्या की पसंद पर खुश थे.

रवि गाने और वीडियो बनाने के अलावा बजाज फाइनैंस कंपनी में भी काम करता था. उस की भी ठीकठाक आमदनी थी. सब से बड़ी बात यह थी कि वह दिव्या को बेहद पसंद था. परिवार वाले चाहते थे कि दोनों जल्दी शादी कर लें.

साल 2018 में एक दिन दिव्या ने रवि से कहा कि अब उन्हें शादी कर लेनी चाहिए. रवि ने भी हामी भरी. दिव्या ने उस से कहा कि वह शादी के लिए अपने परिवार वालों के बीच बात चलाए और उन्हें उस के घर वालों से मिलवाने लाए. रवि ने ‘हां’ में सिर हिला दिया. उस के बाद काफी वक्त निकल गया, पर रवि ने अपने रिश्ते के बारे में घर वालों को नहीं बताया.

इधर दिव्या शादी के लिए रवि की पहल करने का बेसब्री से इंतजार कर रही थी. वह जब भी रवि से उसे अपने मम्मीपापा से मिलवाने के लिए ले चलने को कहती तो वह कोई न कोई बहाना बना कर टाल देता था.

कह देता था कि कोई अच्छा मौका देख कर बात करेगा. मगर वक्त निकलता गया और वह मौका नहीं आया. शादी की बात को ले कर दिव्या और रवि के बीच खटपट होने लगी थी. दिव्या जब भी रवि से कहती कि अपने मातापिता को शादी की बात करने के लिए भेजे तो वह उसे अनसुना कर देता था.

रवि के लिए मौजमजे की चीज थी दिव्या

दरअसल, रवि के मन में दिव्या को ले कर कुछ और ही विचार थे. उस के लिए दिव्या महज एक इस्तेमाल करने वाली लड़की थी. वह जानता था कि उस के परिवार वाले कभी भी डांसर लड़की को बहू नहीं बनाएंगे. और फिर दिव्या के परिवार से रवि को दहेज मिलने की उम्मीद भी नहीं थी. लिहाजा वह दिव्या से कन्नी काटने लगा.

सिर्फ गाना रिकौर्ड करने या कोई वीडियो बनाने की गरज से ही वह उस से मिलता था. प्यार का जोश तो जैसे बिलकुल ठंडा ही पड़ चुका था.

दिव्या उस के बदले रूप से बेहद परेशान हो गई थी. कभीकभी वह गुस्से में आ कर उस से बुरी तरह झगड़ने लगती थी. उसे बारबार छले जाने का अहसास होने लगा था. मगर रवि अपनी चिकनीचुपड़ी बातों से उसे मना लेता था और अपना काम निकाल लेता था.

इसी बीच दिव्या को पता चला कि रवि ने किसी दूसरी लड़की से शादी के लिए हां कह दी है. वह अपने घर वालों की पसंद की लड़की से शादी करने वाला है. इस बारे में जब दिव्या ने रवि से सवाल किए, तब वह सीधेसीधे इनकार करते हुए बोला कि वह घर वालों की मरजी के खिलाफ कोई कदम नहीं उठा सकता. इस बात को ले कर दोनों के बीच जम कर झगड़ा हुआ.

कुछ दिन बाद रवि ने अपने घर वालों की पसंद की लड़की से शादी भी कर ली. रवि के ऐसा करने से दिव्या की तो जैसे पूरी दुनिया ही उजड़ गई. ख्वाबों के सातवें आसमान से वह सीधी जमीन पर आ गिरी. क्योंकि वह तो रवि के हाथों वह पूरी तरह लुट चुकी थी.

रवि दिव्या से सारे मजे ले चुका था. होटलों में उस के साथ गुजारी गई रातें रवि को वह सब कुछ दे चुकी थीं, जो एक मर्द को चाहिए.

रवि द्वारा दिव्या के बजाय दूसरी लड़की से शादी करने की बात आसपास, मोहल्ले, रिश्तेदारी में फैलते ही दिव्या के परिवार की काफी बदनामी होने लगी थी.

सभी जानते थे कि दिव्या और रवि एकदूसरे से प्यार करते हैं और उन की आज नहीं तो कल जरूर शादी हो जाएगी. किंतु जब ऐसा नहीं हुआ, तब लोग बातें बनाने लगे और उस पर छींटाकशी करने लगे. इस से दिव्या ही नहीं, उस के घर वाले भी बहुत परेशान रहने लगे.

इस हालत में दिव्या एक घायल शेरनी बन चुकी थी. वह हार मानने वाली नहीं थी. रवि के हाथों अपनी लुटीपिटी इज्जत का बदला लेने के लिए वह किसी भी हद तक जा सकती थी. उस ने ऐसा किया भी. रवि के खिलाफ थाने में बलात्कार का मुकदमा दर्ज करवा दिया. यह बात 2019 की है. और इस मामले में रवि को पुलिस ने गिरफ्तार कर जेल भेज दिया.

करीब 2 साल जेल में रहने के बाद रवि को बड़ी मुश्किल से जमानत मिली थी. उस ने जेल से छूटने के लिए किसी तरह से दिव्या को मना लिया था और उस के साथ घर बसाने का आश्वासन दे दिया था.

इस तरह से दोनों के बीच एक समझौता हुआ और रवि 6 मई को जेल से बाहर आ गया. वह जेल से छूटा जरूर, लेकिन उस के सिर पर दिव्या से बदला लेने का भूत सवार हो गया था.

नया द्वार: मां ने कैसे बनाई घर में अपनी जगह?

मनोज अपनी मां को गांव से ले तो आया पर मां बहू की गृहस्थी में अपनापन न पा सकीं. उन्होंने थोड़ी हिम्मत दिखा कर समाज सेवा और स्वार्जन का काम कर बहू को चाहे नाराज कर दिया, पर घर में अपनी स्वतंत्र जगह बना ली. एक दिन रास्ते में रेणु भाभी मिल गईं.  बड़ी उदास, दुखी लग रही थीं. मैं  ने कारण पूछा तो उबल पड़ीं. बोलीं, ‘‘क्या बताऊं तुम्हें? माताजी ने तो हमारी नाक में दम कर रखा है. गांव में पड़ी थीं अच्छीखासी. इन्हें शौक चर्राया मां की सेवा का. ले आए मेरे सिर पर मुसीबत.

अब मैं भुगत रही हूं.’’ भाभी की आवाज कुछ ऊंची होती जा रही थी, कुछ क्रोध से, कुछ खीज से. रास्ते में आतेजाते लोग अजीब नजरों से हमें घूरते जा रहे थे. मैंने धीरे से उन का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘चलो न, भाभी, पास ही किसी होटल में चाय पी लें. वहीं बातें भी हो जाएंगी.’’ भाभी मान गईं और तब मुझे उन का आधा कारण मालूम हुआ. रेणु भाभी मेरी रिश्ते की भाभी नहीं हैं, पर उन के पति मनोज भैया और मेरे पति एक ही गांव के रहने वाले हैं. इसी कारण हम ने उन दोनों से भैयाभाभी का रिश्ता जोड़ लिया है. मनोज भैया की मां मझली चाची के नाम से गांव में काफी मशहूर हैं.

बड़ी सरल, खुशमिजाज और परोपकारी औरत हैं. गरीबी में भी हिम्मत से इकलौते बेटे को पढ़ाया. तीनों बेटियों की शादी की. अब पिछले कुछ वर्षों से चाचा की मृत्यु के बाद, मनोज भैया उन्हें शहर लिवा लाए. कह रहे थे कि वहां मां के अकेली होने के कारण यहां उन्हें चिंता सताती रहती थी. फिर थोड़ेबहुत रुपए भी खर्चे के लिए भेजने पड़ते थे. ‘‘तभी से यह मुसीबत मेरे पल्ले पड़ी है,’’ रेणु भाभी बोलीं, ‘‘इन्हीं का खर्चा चलाने के लिए तो मैं ने भी नौकरी कर ली. कहीं इन्हें बुढ़ापे में खानेपीने, पहनने- ओढ़ने की कमी न हो. पर अब तो उन के पंख निकल आए हैं,’’ ‘‘सो कैसे?’’ ‘‘तुम ही घर आ कर देख लेना,’’ भाभी चिढ़ कर बोलीं, ‘‘अगर हो सके तो समझा देना उन्हें.

घर को कबाड़खाना बनाने पर तुली हुई हैं. दीपक भैया को भी साथ लाएंगी तो वह शायद उन्हें समझा पाएंगे. बड़ी प्यारी लगती हैं न उन्हें मझली चाची?’’ चाय खत्म होते ही रेणु भाभी उठ खड़ी हुईं और बात को ठीक तरह से समझाए बिना ही चली गईं. मैं ने अपने पति दीपक को रेणु भाभी के वक्तव्य से अवगत तो करा दिया था, लेकिन बच्चों की परीक्षाएं, घर के अनगिनत काम और बीचबीच में टपक पड़ने वाले मेहमानों के कारण हम लोग चाची के घर की दिशा भूल से गए. तभी एक दिन मेरी मौसेरी बहन सुमन दोपहर को मिलने आई. उस ने एम.ए., बी.एड कर रखा था, पर दोनों बच्चे छोटे होने के कारण नौकरी नहीं कर पा रही थी. हालांकि उस के परिवार को अतिरिक्त आय की आवश्यकता थी. न गांव में अपना खुद का घर था, न यहां किराए का घर ढंग का था. 2 देवर पढ़ रहे थे. उन का खर्चा वही उठाती थी.

सास बीमार थी, इसलिए पोतों की देखभाल नहीं कर सकती थी. ससुर गांव की टुकड़ा भर जमीन को संभाल कर जैसेतैसे अपना काम चलाते थे. फिर भी सुमन की कार्यकुशलता और स्नेह भरे स्वभाव के कारण परिवार खुश रहता था. जब भी मैं उसे देखती, मेरे मन में प्यार उमड़ पड़ता. मैं प्रसन्न हो जाती. उस दिन भी वह हंसती हुई आई. एक बड़ा सा पैकेट मेरे हाथ में थमा कर बोली, ‘‘लो, भरपेट मिठाई खाओ.’’ ‘‘क्या बात है? इस परिवार नियोजन के युग में कहीं अपने बेटों के लिए बहन के आने की संभावना तो नहीं बताने आई?’’ मैं ने मजाक में पूछा. ‘‘धत दीदी, अब तो हाथ जोड़ लिए. रही बहन की बात तो तुम्हारी बेटी मेरे शरद, शिशिर की बहन ही तो है.’’ ‘‘पर मिठाई बिना जाने ही खा लूं?’’

‘‘तो सुनो, पिछले 2 महीने से मैं खुद के पांवों पर खड़ी हो गई हूं. यानी कि नौ…क…री…’’ उस ने खुशी से मुझे बांहों में भर लिया. बिना मिठाई खाए ही मेरा मुंह मीठा हो गया. तभी मुझे उस के बच्चों की याद आई, ‘‘और शरद, शिशिर उन्हें कौन संभालता है? तुम कब जाती हो, कब आती हो, कहां काम करती हो?’’ ‘‘अरे…दीदी, जरा रुको तो, बताती हूं,’’ उस ने मिठाई का पैकेट खोला, चाय छानी, बिस्कुट ढूंढ़ कर सजाए तब कुरसी पर आसन जमा कर बोली, ‘‘सुनो अब. नौकरी एक पब्लिक स्कूल में लगी है. तनख्वाह अच्छी है. सवेरे 9 बजे से शाम को 4 बजे तक. और बच्चे तुम्हारी मझली चाची के पास छोड़ कर निश्ंिचत हो जाती हूं.’’ ‘‘क्या?’’ ‘‘जी हां. मझली चाची कई बच्चों को संभालती हैं. बहुत प्यार से देखभाल करती हैं.’’ खापी कर पीछे एक खुशनुमा ताजगी में फंसे हुए प्रश्न मेरे लिए छोड़ कर सुमन चली गई.

मझली चाची ऐसा क्यों कर रही थीं? रेणु भाभी क्या इसी कारण से नाराज थीं? ‘‘बात तो ठीक है,’’ शाम को दीपक ने मेरे प्रश्नों के उत्तर में कहा, ‘‘फिर भैयाभाभी दोनों कमाते हैं. मझली चाची के कारण उन्हें समाज की उठती उंगलियां सहनी पड़ती होंगी. हमें चाची को समझाना चाहिए.’’ ‘‘दीपक, कभी दोपहर को बिना किसी को बताए पहुंच कर तमाशा देखेंगे और चाची को अकेले में समझाएंगे. शायद औरों के सामने उन्हें कुछ कहना ठीक नहीं होगा,’’ मैं ने सुझाव दिया.  दीपक ने एक दिन दोपहर को छुट्टी ली और तब हम अचानक मनोज भैया के घर पहुंचे. भैयाभाभी काम पर गए हुए थे. घर में 10 बच्चे थे. मझली चाची एक प्रौढ़ा स्त्री के साथ उन की देखभाल में व्यस्त थीं. कुछ बच्चे सो रहे थे.

एक को चाची बोतल से दूध पिला रही थीं. उन की प्रौढ़ा सहायिका दूसरे बच्चे के कपड़े बदल रही थी. चाची बड़ी खुश नजर आ रही थीं. साफ कपड़े, हंसती आंखें, मुख पर संतोष तथा आत्मविश्वास की झलक. सेहत भी कुछ बेहतर ही लग रही थी. ‘‘चाचीजी, आप ने तो अच्छीखासी बालवाटिका शुरू कर दी,’’ मैं ने नमस्ते कर के कहा. चाची हंस कर बोलीं, ‘‘अच्छा लगता है, बेटी. स्वार्थ के साथ परमार्थ भी जुटा रही हूं.’’ ‘‘पर आप थक जाती होंगी?’’ दीपक ने कहा, ‘‘इतने सारे बच्चे संभालना हंसीखेल तो नहीं.’’ ‘‘ठहरो, चाय पी कर फिर तुम्हारी बात का जवाब दूंगी,’’ वह सहायिका को कुछ हिदायतें दे कर रसोईघर में चली गईं, ‘‘यहीं आ जाओ, बेटे,’’ उन्होंने हम दोनों को भी बुला लिया. ‘‘देखो दीपक, अपने पोतेपोती के पीछे भी तो मैं दौड़धूप करती ही थी? तब तो कोई सहायिका भी नहीं थी,’’ चाची ने नाश्ते की चीजें निकालते हुए कहा, ‘‘अब ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ की उम्र है न मेरी?

इन सभी को पोतेपोतियां बना लिया है मैं ने.’’ फिर मेरी ओर मुड़ कर कहा, ‘‘तुम्हारी सुमन के भी दोनों नटखट यहीं हैं. सोए हुए हैं. दोपहर को सब को घंटा भर सुलाने की कोशिश करते हैं. शाम को 5 बजे मेरा यह दरबार बरखास्त हो जाता है. तब तक मनोज के बच्चे शुचि और राहुल भी आ जाते हैं.’’ ‘‘पर चाची, आप…आप को आराम छोड़ कर इस उम्र में ये सब झमेले? क्या जरूरत थी इस की?’’ ‘‘तुम से एक बात पूछूं, बेटी? तुम्हारे मांपिताजी तुम्हारे भैयाभाभी के साथ रहते हैं न? खुश हैं वह?’’ मेरी आंखों के सामने भाभी के राज में चुप्पी साधे, मुहताज से बने मेरे वृद्ध मातापिता की सूरतें घूम गईं. न कहीं जाना न आना. कपड़े भी सब की जरूरतें पूरी करने के बाद ही उन के लिए खरीदे जाते. वे दोनों 2 कोनों में बैठे रहते. किसी के रास्ते में अनजाने में कहीं रोड़ा न बन जाएं, इस की फिक्र में सदा घुलते रहते. मेरी आंखें अनायास ही नम हो आईं. चाची ने धीरे से मेरे बाल सहलाए.

‘‘बेटी, तू दीपक को मेरी बात समझा सकेगी. मैं तेरी आंखों में तेरे मातापिता की लाचारी पढ़ सकती हूं, लेकिन जब तुझ पर किसी वयोवृद्ध का बोझ आ पड़े, तब आंखों की इस नमी को याद रखना.’’ दीपक के चेहरे पर प्रश्न था. ‘‘सुनो बेटे, पति की कमाई या मन पर जितना हक पत्नी का होता है उतना बेटे की कमाई या मन पर मां का नहीं होता. इस कारण से आत्मनिर्भर होना मेरे लिए जरूरी हो गया था. रही काम की बात तो पापड़बडि़यां, अचारमुरब्बे बनाना भी तो काम ही है, जिन्हें करते रहने पर भी करने वालों की कद्र नहीं की जाती. घर में रह कर भी अगर ये काम हम ने कर भी लिए तो कौन सा शेर मार दिया? बहू कमाएगी तो सास को यह सबकुछ तो करना ही पड़ेगा,’’ चाची ने एक गहरी सांस ली. ‘‘कब आते हैं बच्चे?’’ दीपक ने हौले से पूछा. ‘‘9 बजे से शुरू हो जाते हैं. कोई थोड़ी देर से या जल्दी भी आ जाते हैं कभीकभी. मेरी सहायिका पार्वती भी जल्दी आ जाती है. उसे भी मैं कुछ देती हूं.

वह खुशी से मेरा हाथ बंटाती है.’’ ‘‘और भी बच्चों के आने की गुंजाइश है?’’ मैं ने पूछा. ‘‘पूछने तो आते हैं लोग, पर मैं मना कर देती हूं. इस से ज्यादा रुपयों की मुझे आवश्यकता नहीं. सेहत भी संभालनी है न?’’ चाय खत्म हो चुकी थी. सोए हुए बच्चों के जागने का समय हो रहा था. इसलिए ‘नमस्ते’ कह कर हम चलना ही चाहते थे कि चाची ने कहा, ‘‘बेटी, दीवाली के बाद मैं एक यात्रा कंपनी के साथ 15 दिन घूमने जाने की बात सोच रही हूं. अगर तुम्हारे मातापिता भी आना चाहें तो…’’ मैं चुप रही. भैयाभाभी इतने रुपए कभी खर्च न करेंगे. मैं खुद तो कमाती नहीं.  चाची को भी मनोज भैया ने कई बहानों से यात्रा के लिए कभी नहीं जाने दिया था. उन की बेटियां भी ससुराल के लोगों को पूछे बिना कोई मदद नहीं कर सकती थीं. अब चाची खुद के भरोसे पर यात्रा करने जा रही थीं.

‘‘सुनीता के मातापिता भी आप के साथ जरूर जाएंगे, चाची,’’ अचानक दीपक ने कहा, ‘‘आप कुछ दिन पहले अपने कार्यक्रम के बारे में बता दीजिएगा.’’ रेणु भाभी और मनोज भैया की नाराजगी का साहस से सामना कर के मझली चाची ने एक नया द्वार खोल लिया था अपने लिए, देखभाल की जरूरत वाले बच्चों के लिए और सुमन जैसी सुशिक्षित, जरूरतमंद माताओं के लिए. हरेक के लिए इतना साहस, इतना धैर्य, इतनी सहनशीलता संभव तो नहीं. पर अगर यह नहीं तो दूसरा कोई दरवाजा तो खुल ही सकता है न? जीवन बहुत बड़ा उपहार है हम सब के लिए. उसे बोझ समझ कर उठाना या उठवाना कहां तक उचित है? क्यों न अंतिम सांस तक खुशी से, सम्मान से जीने की और जिलाने की कोशिश की जाए? क्यों न किसी नए द्वार पर धीरे से दस्तक दी जाए? वह द्वार खुल भी तो सकता है.

Rakhi 2022: बड़े घर की बहू- रक्षाबंधन के दिन राखी के साथ क्या हुआ?

उस की बात सुनते ही मां एकदम से अगियाबैताल हो गई, “हांहां, अब वह बड़े घर की मालकिन जो बन गई है न. उसे अब अपने भाइयों की याद क्यों आने लगी. हम ने उस की शादी के पीछे अपनी सारी धनदौलत लगा दी. अब वह हमें-तुम्हें क्यों पूछने लगी. अब तुम्हारे पापा भी तो नहीं रहे, जो उस का घर भरते. वो तो

पिछले ही साल इस कंबख्त कोरोना की भेंट चढ़ गए. वह तब नहीं आई, तो अब क्या आती इस रक्षाबंधन में.

“उस को इस तरह बनाने के पीछे तुम्हारे पापा ही थे, और क्या. मैं पहले ही मना कर रही थी कि बेटी जात को इतना सिर न चढ़ाओ. मगर मेरी सुनता कौन है.” सदा की तरह मां अपना कोप पापा पर प्रकट करने लगी थी, “सारी पूंजी उस की शादी में शाहखर्ची दिखाने में झोक दी. जरा भी न सोचा कि तीनतीन बेटे हैं, उन का क्या होगा. अब भुगतो सभी महारानी की बात. भाइयों को सहयोग करना तो दूर, देखने के लिए फुरसत तक नहीं. जब तक तुम्हारे पापा रहे, हर बार आआ कर नोंचखसोंट कर ले जाती रही. अब कुछ रहा नहीं, तो दो पैसे के धागे भिजवाना भी भारी पड़ने लगा. फोन पर कहती है, राखी भेजना भूल गई थी. वहीं खरीद बंधवा देना.”

“अब सुबहसुबह हुआ क्या जो इतनी शोर मचा रही हो,” बड़े भैया दिनेश परेशान स्वरों में पूछ बैठे, “किसी को चैन नहीं लेने देती.”

“तुम्हारी ही लाड़ली बहन की बात हो रही है,” मां उन पर चिल्लाई, “फोन कर बता रही थी महारानी कि राखी खरीद बंधवा देना.”

“ठीक ही तो है,” वे शांत स्वर में बोले, “भेजना भूल गई होगी.”

“जब तक यहां भरापूरा था, तब भूलती नहीं थी. अरे, यह कहो कि कोई कुछ मांग न दे, इस डर से वह आना नहीं चाहती. आना तो दूर, रिश्ता नहीं रखना चाहती. पिछले साल महेश गया था, तो उसे पुराना मोबाइल फोन दे एहसान जता रही थी. उस मोबाइल की मरम्मत में ही ढाई हजार रुपए लग गए थे. यह भी नहीं

सोचा कि यह वही भाई है जिस ने मुझ से लड़ कर मेरे सारे गहनेजेवर उसे दिलवा दिए कि बड़े घर में राज करेगी.”

“अरे, पुराना बड़ा व्यापारी परिवार है. वहां किसी एक की थोड़े ही चलती है,” भैया बोल रहे थे, “वहां सबकुछ नफानुकसान देख कर निर्णय लिया जाता है.”

“अब तो तुम लोग कुछ बोलो मत. सब तुम लोगों का ही मिलजुल कर कियाधरा है. तुम्हारे पापा ने बेटों के लिए कुछ किया नहीं. और सारा कुछ बेटी पर लुटा दिया.”

बड़े दिनेश भैया वहां से भनभनाते से उठ कर चाबी का गुच्छा संभाले तीर की तरह बाहर निकल लिए.

मझले भाई राकेश अपनी स्कूटी स्टार्ट कर पैट्रोल पंप की ओर चल दिए, जहां वे कैशियर का काम देखते थे.

सभी अभी तक घर में इसी राखी की आस में बैठे थे. मगर जब वह आई ही नहीं, तो रुकना बेकार था.

और महेश वहां से उठ कर तुरंत बाहर बरामदे में आ कर कुरसी पर बैठ गया. ये मां भी कहां से कहां बात उठा कर किस के माथे पर फेंक देगी, पता नहीं चलता. चूंकि त्योहार था, तो महल्ले में भी चहलपहल थी. छोटेबड़े बच्चे हाथ में राखी बंधवाए इधरउधर घूम व खेल रहे थे. उस ने देखा कि घर के चारों बच्चे भी चमकीली राखी बांध इठला रहे थे. और दूर कहीं रक्षाबंधन का कोई फिल्मी गीत गूंज रहा था. और वह अपने अतीत में डूब रहा था.

3 भाइयों के बाद बहन राखी सब से छोटी थी. उस के जन्म के बाद जैसे घर में रौनक आ गई थी. खासकर रक्षाबंधन के दिन घर में सभी का उत्साह देखते बनता था. घर में पूरे वौल्यूम में टेपरिकौर्ड पर राखी का गीत बजता. पुए-पकवानों की सुगंध रसोई से फिजां में उड़ती रहती. और पूरे उत्साह के साथ नए कपड़े

पहन वह सभी भाइयों को राखी बांध कर मनपसंद उपहार वसूल करती थी. वे सभी भी उस से राखी बंधवा धन्यधन्य महसूस करते थे.

लेकिन समय का फेर ऐसा कि पापा अवकाशप्राप्त कर पैंशनयाफ्ता हुए. दोनों बड़े भाइयों को ढंग की नौकरी मिल नहीं पाई थी. झख मार कर बड़े भाई ने घर के बाहर बने ओसारे में अपनी स्टेशनरी की दुकान खोल ली थी. और मझले भाई बीकौम कर एक पैट्रोल पंप में कैशियर के तौर पर लग गए थे. वैसे, वह एमए कर चुका था.

बैंक, विद्यालय से ले कर विविध सरकारी नौकरियों के लिए वह प्रयास करता रहा था. मगर नौकरी इतनी आसान कहां थी. और इसलिए एक लोकल प्राइवेट स्कूल में शिक्षक लग लिया था. इस के अलावा थोड़ीबहुत ट्यूशनें भी कर लिया करता था. मगर इस लौकडाउन ने इन सभी पर लौक लगा दिया था. प्राइवेट स्कूल घर

बिठा कर वेतन देने से तो रहे.

राखी सुंदर थी. और उस की सुंदरता पर ही रीझ कर उस की ससुराल वालों ने उसे पसंद किया था. मगर पापा वहां शादी तय करने में हिचक रहे थे कि इतना संपन्न परिवार है और उस के लिए वे दानदहेज जुटा नहीं पाएंगे. मां तो एकदम सख्त खिलाफ थी ही. मगर वे तीनों भाई राखी की ससुराल से अभिभूत थे कि घर की बेटी वहां जा कर राज करेगी. क्या पता, वहां से सहयोग भी मिले. हम जैसे कसबे और कसबाई मानसिकता वाले लोगों के लिए पटना जैसे शहर का आकर्षण भी एक बड़ा कारण तो था ही. और उन लोगों ने भी कह दिया था कि दानदहेज की जरूरत नहीं. आप, बस, अपनी बेटी के जेवरात जुटा दें और बरातियों का स्वागत अच्छी तरह से कर दें, यही बहुत है.

पहली समस्या तो जेवरात की आई. पापा ने अपने पीएफ की जमापूंजी से 10 तोले के जेवरात बनवाए थे. मगर उन का डिमांड 15 तोले का आ गया, तो मां के कुछ जेवरों को उन में शामिल कर उन की इच्छा पूरी करने की बात आई. मां का कहना था कि सब इसे ही दे दूं, तो महेश की शादी में क्या दूंगी?

मांपापा की इस बक-झक के बीच वह बोला, ‘मेरी चिंता मत करो. बहन बड़े घराने में ब्याही जा रही है. इस के अलावा हमें और क्या चाहिए?’

मगर इस के बाद चारपहिया वाहन की मांग आ गई. इस के अलावा कपड़े, बरतन, फर्नीचर में लाखों लग गए. कहां तो दो सौ बरातियों के आने की बात थी, अंतिम समय में पता चला कि बराती तीन सौ की संख्या में आने वाले हैं. और इस तरह खर्च बढ़ता चला गया था. पापा के साथ सभी भाई सिर्फ इस बात के लिए आश्वस्त थे कि बहन बड़े घर में जा रही है.

औकात से बढ़ कर लेनदेन हुआ. दोनों बड़े भाइयों ने अधिक खर्च न हो, इस के लिए अपनी ससुराल से मिले अनेक सामान भी दे दिए थे. मगर फिर भी राखी असंतुष्ट थी कि उसे अपने मायके से कुछ नहीं मिला. और यही शिकायत लिए वह अपनी ससुराल को विदा हुई.

और उसी बहन को अब फुरसत नहीं थी कि पलट कर मायके की गिरती हैसियत व प्रतिष्ठा का ध्यान रखे. पहले हर रक्षाबंधन के वक्त वह घर चली आती थी और नेग के तौर पर महंगेमहंगे उपहार वसूल कर जाती थी. वैसे वह जब भी आती, अपनी ससुराल की प्रशंसा में जमीनआसमान के कुलाबें मिलाती, सभी को उन की ही नजरों में छोटा कर जाती थी. कभी उस से यह नहीं हुआ कि वह अपने भाईभाभियों को छोड़ दे, भतीजेभतीजियों के लिए कुछ उपहार ला दे. मां के अनुसार, ‘उस ने देना नहीं, सिर्फ लेना सीखा है.’

पापा के रिटायरमैंट के बाद वैसे भी इस घर की स्थिति कमजोर होती जा रही थी. पैंशन से क्या होना था. और दोनों भाई थकहार कर छोटी सी दुकान व नौकरी में सिमट गए थे. रहीसही कसर लौकडाउन ने तोड़ दी थी. उधर राखी की ससुराल में अच्छा व बड़ा मैडिकल स्टोर था, जिस में नौनौ नौकर काम करते थे. और वह मैडिकल स्टोर लौकडाउन से अप्रभावित था. फिर उन्हें किस बात की कमी रहती.

सभी इन स्थितियों को समझ रहे थे. नहीं समझ रही थी, तो वह थी उन की बहन राखी. और इसलिए मां उस के नाम भर से चिढ़ जाती थी. विवाद की शुरुआत तब हुई जब राखी ने अपनी ससुराल के उच्चस्तरीय संबंधों की प्रशंसा के पुल बांधने शुरू कर दिए. वह उसी समय एक सरकारी विद्यालय में शिक्षक पद के लिए इंटरव्यू दे चुका था.

उस ने इस के लिए उस से सिफारिश करवाने की बात कही, तो वह साफ मुकर गई, कहने लगी, ‘मेरी ससुराल के लोग इस के सख्त खिलाफ हैं.’

‘तो रिश्तेदारी किस बात की,’ मां बोली, ‘अपने भाई के लिए ही कहनासुनना करेगी न? एक बार कह कर तो देखो.’

और इस प्रकार, मां के अनुसार, उस की नौकरी होतेहोते रह गई थी.

इस के पूर्व घर में एक और घटना घट चुकी थी. भैया दुकान का विस्तार करना चाहते थे. मगर इस के लिए पूंजी की जरूरत थी. मां ने एक बार राखी से कहा भी कि अपने घर में चर्चा कर देखो. शायद मदद कर दें.

मगर उस ने साफ मना कर दिया कि वह वहां मुंह नहीं खोल सकती. बाद में भैया की ससुराल वालों ने उन की मदद की, तो दुकान आगे बढ़ा पाए थे. लेकिन समयबेसमय के लौकडाउन के चक्कर से उन की दुकान प्रभावित हुई थी.

पिछले वर्ष किसी काम से वह पटना गया, तो राखी के घर भी चला गया था. राखी ने उस की औपचारिक आवभगत की. शाम में जब वह चलने लगा, तो एक बार भी यह नहीं कहा कि रात में कहां लौटोगे, आज यहीं रुक जाओ. वह उस के छोटे से मोबाइल को देख आश्चर्य दिखाती बोली, ‘आजकल के जमाने में ऐसा मोबाइल चलाते हो, महेश भैया.’

‘क्या किया जाए,’ वह फीकी हंसी हंस कर बोला था, ‘सब समय का फेर है. ढंग की नौकरी लगते ही स्मार्टफोन ले लूंगा.’

राखी अंदर जा कर एक पुराना मोबाइल ले आई और उसे देते हुए बोली, ‘इसे रख लो. ज्यादा पुराना है नहीं. मैडिकल स्टोर में किसी पार्टी ने इन्हें नया मोबाइल फोन गिफ्ट किया था. उसी से मेरा काम चलता है. और यह यों ही बेकार पड़ा रहता है. सो, अब तुम इस का उपयोग करो.’

घर वापस आने पर सारी बात जान कर मां ने फिर उसे कोसना शुरू कर दिया था- ‘बहुत दानी बनती है, महारानी. यह नहीं हुआ कि नए वाला ही फोन दे दे. आखिर, उसे भी तो वह मुफ्त में ही मिला था. इस की मरम्मत में ढाई हजार रुपए निकल गए. कभी तो यह हुआ नहीं इस पांचेक साल में किसी आतेजाते भाई को सस्ता, सूती कपड़ा ही पकड़ा जाती. इतनी बार यहां आईगई और गठरियां बांध ले गई. मगर मजाल कि कभी अपने भतीजेभतीजियों के लिए कुछ लाई हो या चलते वक्त उन के हाथ में एक रुपया भी धरा हो. ऐसी स्वार्थी, घटिया बहन किसी ने देखी भी न होगी.’

मां के कटाक्षों से आहत वह बोला था, ‘चलो, कोई बात नहीं. बड़े भैया का बेटा रामू मैट्रिक में आ गया है. लौकडाउन की वजह से अभी उस की औनलाइन पढ़ाई होती है. उस के लिए यह काम आएगा.’

और सचमुच रामू उस, पुराने ही सही, स्मार्टफोन को पा कर बहुत खुश हुआ था. पढ़ाई में वह तेज तो था ही. और अब तकनीकी सहयोग मिलने से उस की पढ़ाई भलीभांति होने लगी थी. इसी का नतीजा था कि वह मैट्रिक की परीक्षा में 82 प्रतिशत नंबर लाने में सफल रहा था.

मगर आज इस रक्षाबंधन के त्योहार में मां की जीभ कतरनी की तरह चल रही थी- “परिवार आखिर कहते किस को हैं. एकदूसरे के सलाहसहयोग से ही रिश्तेदारी चलती है. एक पड़ोस के सिद्धेश्वर बाबू हैं, जो अपनी बेटी नेहा की बड़ाई करते नहीं थकते. और क्यों न करें वे. बैंक की अच्छी नौकरी में है. फिर भी हर दूसरेचौथे माह मांबाप का हालचाल लेती रहती है. अरे, हालचाल तो बस बहाना है. इसी बहाने घरभर का घटाबढ़ा पूरा कर जाती है. पिछले साल लौकडाउन के वक्त वह हर महीने राशनपानी भिजवाती रही थी.

“उस को तो उस की ससुराल में कोई कुछ नहीं कहता. मगर इस बेटी राखी को देखो, बड़े घर की बहू बन गई है न!

“खैर, दिन सब के एक से नहीं रहते.”

Manohar Kahaniya: प्यार का दुखद अंत

शिव सिंह उर्फ मक्कू कस्बा अकबरपुर में बन रहे अपने मकान पर पहुंचे तो उन्होंने वहां जो देखा, वह दिल दहला देने वाला था. मकान के अंदर एक लड़के और एक लड़की की लाश पड़ी थी. लाशों को देख कर ही लग रहा था कि वे प्रेमीप्रेमिका थे, क्योंकि मरने के बाद भी दोनों एकदूसरे का हाथ थामे हुए थे. शिव सिंह ने तुरंत इस बात की सूचना थाना अकबरपुर पुलिस को दी. उन्होंने यह बात कुछ लोगों को बताई तो जल्दी ही यह खबर अकबरपुर कस्बे में फैल गई. इस के बाद सैकड़ों लोग उन के मकान पर पहुंच गए. लोग तरहतरह की बातें कर रहे थे. यह 20 अप्रैल, 2017 की बात है.

थाना अकबरपुर के थानाप्रभारी इंसपेक्टर ए.के. सिंह यह जानकारी अधिकारियों को दे कर तुरंत पुलिस बल के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. उन के पहुंचने के थोड़ी देर बाद ही एसपी प्रभाकर चौधरी, एएसपी मनोज सोनकर तथा सीओ आलोक कुमार जायसवाल भी फील्ड यूनिट की टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए.

अधिकारियों के आते ही घटनास्थल का निरीक्षण शुरू हुआ. लड़की की उम्र 18-19 साल रही होगी तो लड़का 23-24 साल का था. लाशों के पास ही फिनाइल की 2 खाली बोतलें पड़ी थीं. इस से अंदाजा लगाया गया कि फिनाइल पी कर दोनों ने आत्महत्या की है. उन बोतलों को पुलिस ने जब्त कर लिया.

इस के बाद पुलिस ने वहां मौजूद लोगों से लाशों की शिनाख्त कराने की कोशिश की, लेकिन वहां इकट्ठा लोगों में से कोई भी उन की पहचान नहीं कर सका. लाशों की पहचान नहीं हो सकी तो एसपी प्रभाकर चौधरी ने एक सिपाही से लड़के की जेब की तलाशी लेने को कहा. सिपाही ने लड़के की पैंट की जेब में हाथ डाला तो उस में 2 सिम वाला एक मोबाइल फोन, बीकौम का परिचय पत्र, जो कुंदनलाल डिग्री कालेज, रनियां का था, मिला.

लड़की की लाश के पास एक बैग पड़ा था. पुलिस ने उस की तलाशी ली तो उस में से हाईस्कूल, इंटरमीडिएट की मार्कशीट, आधार कार्ड, कालेज का परिचय पत्र, बैंक की पासबुक, मोबाइल फोन, कुछ दवाएं तथा जिला अस्पताल की स्त्रीरोग विशेषज्ञ का ओपीडी का पर्चा मिला.

आधार कार्ड के अनुसार, लड़की का नाम रोहिका था. उस के पिता का नाम अजय कुमार था. वह जिला कानपुर देहात के आधू कमालपुर गांव की रहने वाली थी. लाशों की शिनाख्त के बाद एसपी प्रभाकर चौधरी ने रोहिका के आधार कार्ड में लिखे पते पर 2 सिपाहियों को घटना की सूचना देने के लिए भेज दिया.

इस के बाद लड़के की जेब से मिले मोबाइन फोन को उन्होंने जैसे ही औन किया, फोन की घंटी बज उठी. उन्होंने फोन करने वाले से बात की और उसे तुरंत अकबरपुर कस्बा स्थित जिला अस्पताल के पीछे आने को कहा.

अभी आधा घंटा भी नहीं बीता था कि एक आदमी वहां आ पहुंचा. लड़के की लाश देख कर वह सिर पीटपीट कर रोने लगा. पूछने पर उस ने अपना नाम राजेंद्र कुमार बताया. वह जिला कानपुर देहात के आधू कमालपुर गांव का रहने वाला था. वह लाश उस के बेटे अंकित उर्फ रामबाबू की थी.crime-story

एक दिन पहले यानी 19 अप्रैल, 2017 को सुबह 10 बजे अंकित कालेज जाने  की बात कह कर घर से निकला था. देर शाम तक वह घर नहीं लौटा तो उस की तलाश शुरू हुई. मोबाइल पर फोन किया गया तो वह बंद था. नातेरिश्तेदारों से पता किया गया, लेकिन अंकित का कुछ पता नहीं चला.

सवेरा होते ही उस की खोज फिर शुरू हुई. उसे कई बार फोन भी किया गया. उसी का नतीजा था कि उस का फोन मिल गया. राजेंद्र एसपी प्रभाकर चौधरी को बेटे अंकित के बारे में बता ही रहा था कि उस के साथ मरने वाली लड़की रोहिका के घर वाले भी आ गए. फिर तो वहां कोहराम मच गया.

रोहिका की मां सुनीता और बहन रितिका छाती पीटपीट कर रो रही थीं. रोहिका के पिता का नाम अजय था. उन के भी आंसू नहीं थम रहे थे. रोतेबिलखते घर वालों को सीओ आलोक कुमार जायसवाल ने किसी तरह शांत कराया और उन्हें हटा कर अपनी काररवाई शुरू की.

लाशों को पोस्टमार्टम के लिए भिजवा कर पुलिस ने पूछताछ शुरू की. लाशों की स्थितियों से साफ था कि अंकित और रोहिका एकदूसरे को प्रेम करते थे. यह भी निश्चित था कि उन्होंने आत्महत्या की थी. उन्होंने आत्महत्या इसलिए की होगी, क्योंकि घर वालों ने उन की शादी नहीं की होगी. इस बारे में घर वालों से विस्तारपूर्वक पूछताछ की गई तो जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी—

कानपुर देहात के थानाकस्बा अकबरपुर का एक गांव है आधू कमालपुर. यह कस्बे से मात्र एक किलोमीटर की दूरी पर है. इसी गांव में अजय कुमार अपने परिवार के साथ रहते थे. उन के परिवार में पत्नी सुनीता के अलावा 2 बेटियां रितिका और रोहिका थीं. बड़ी बेटी रितिका की शादी हो चुकी थी.

अजय सेना में नौकरी करते थे. इस समय वह असम में तैनात थे. सरकारी नौकरी होने की वजह से उन्हें अच्छा वेतन मिलता था, इसलिए घर में किसी चीज की कमी नहीं थी. उन की छोटी बेटी रोहिका काफी खूबसूरत थी. उस की इस खूबसूरती में चार चांद लगाता था उस का स्वभाव.

रोहिका अत्यंत सौम्य और मृदुभाषी थी. वह तनमन से जितनी खूबसूरत थी, उतनी ही पढ़ने में भी तेज थी. अकबरपुर इंटरकालेज से इंटरमीडिएट करने के बाद वह वहीं स्थित डिग्री कालेज से बीएससी कर रही थी. पढ़ाईलिखाई और स्वभाव की वजह से वह मांबाप की आंखों का तारा थी.

अंकित भी रोहिका के ही गांव का रहने वाला था. उस के पिता राजेंद्र कुमार के पास खेती की ठीकठाक जमीन थी, इसलिए वह गांव का संपन्न किसान था. उस के परिवार में पत्नी के अलावा 2 बेटे और एक बेटी थी. संतानों में अंकित सब से छोटा था. कस्बे से इंटरमीडिएट कर के वह रानियां के कुंदनलाल डिग्री कालेज से बीकौम कर रहा था.

रोहिका और अंकित एक ही जाति के थे. उन के घर वालों में भी खूब पटती थी, इसलिए अंकित रोहिका के घर बेरोकटोक आताजाता था. इसी आनेजाने में रोहिका अंकित को भा गई. फिर तो वह कालेज आतेजाते समय उस का पीछा करने लगा.

अंकित रोहिका को तब तक चाहतभरी नजरों से ताकता रहता था, जब तक वह उस की आंखों से ओझल नहीं हो जाती थी. लेकिन रोहिका थी कि उसे भाव ही नहीं दे रही थी. धीरेधीरे अंकित के मन की बेचैनी बढ़ने लगी. हर पल उस के दिल में रोहिका ही छाई रहती थी. अब उस का मन पढ़ाई में भी नहीं लगता था.

रोहिका के करीब पहुंचने की तड़प जब अंकित के लिए बरदाश्त से बाहर हो गई तो वह उस के घर कुछ ज्यादा ही आनेजाने लगा. चूंकि घर वालों में अच्छा तालमेल था, इसलिए उस के घर आने और रोहिका से बातें करने पर किसी को ऐतराज नहीं था. उस के घर आने पर अंकित भले ही बातें दूसरों से करता रहता था, लेकिन उस की नजरें रोहिका पर ही टिकी रहती थीं.

अंकित की इस हरकत से जल्दी ही रोहिका ने उस के मन की बात भांप ली. अंकित के मन में अपने लिए चाहत देख कर रोहिका का भी मन विचलित हो उठा. अब वह भी उस के आने का इंतजार करने लगी. जब भी अंकित आता, वह उस के आसपास ही मंडराती रहती. इस तरह दोनों ही एकदूसरे की नजदीकी पाने को बेचैन रहने लगे.

अंकित की चाहतभरी नजरें रोहिका की नजरों से मिलतीं तो वह मुसकराए बिना नहीं रह पाती. इस से अंकित समझ गया कि जो बात उस के मन में है, वही रोहिका के भी मन में है. लेकिन वह दिल की बात रोहिका से कह नहीं पा रहा था.

अंकित ऐसे मौके की तलाश में रहने लगा, जब वह अपने दिल की बात रोहिका से कह सके. चाह को राह मिल ही जाती है. आखिर एक दिन अंकित को मौका मिल ही गया. उस दिन रोहिका को घर में अकेली पा कर अंकित ने कहा, ‘‘रोहिका, मैं तुम से कुछ कहना चाहता हूं. अगर तुम बुरा न मानो तो अपने मन की बात तुम से कह दूं.’’

‘‘बात ही कहनी है तो कह दो. इस में बुरा मानने वाली कौन सी बात है?’’ रोहिका आंखें नचाते हुए बोली. शायद उसे पता था कि वह क्या कहने वाला है.

‘‘रोहिका, तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो. मुझे तुम्हारे अलावा कुछ अच्छा ही नहीं लगता.’’ नजरें झुका कर अंकित ने कहा, ‘‘हर पल मेरी नजरों के सामने तुम्हारी सूरत नाचती रहती है.’’

अंकित की बातें सुन कर रोहिका की धड़कनें बढ़ गईं. शरमाते हुए उस ने कहा, ‘‘अंकित, जो हाल तुम्हारा है, वही मेरा भी है. तुम भी मुझे बहुत अच्छे लगते हो.’’

‘‘सच…’’ कह कर अंकित ने रोहिका को अपनी बांहों में भर कर कहा, ‘‘यही सुनने का तो मैं कब से इंतजार कर रहा था.’’

उस दिन के बाद दोनों का प्यार परवान चढ़ने लगा. रोहिका कालेज या कोचिंग जाने के बहाने घर से निकलती और अंकित से मिलने पहुंच जाती. अंकित उसे मोटरसाइकिल पर बैठा कर कानपुर शहर चला जाता, जहां दोनों फिल्में देखते, चिडि़याघर या मोतीझील घूमते और प्यार भरी बातें करते. कभी दोनों बिठूर पहुंच जाते, जहां गंगा में नौका विहार करते.

ऐसे में ही दोनों साथ जीनेमरने की कसमें खाते हुए भविष्य के सपने देखने लगे थे. मन से मन मिला तो दोनों के तन मिलने में देर नहीं लगी. समय इसी तरह बीतता रहा और इसी के साथ रोहिका और अंकित का प्यार गहराता गया. उन्होंने लाख कोशिश की कि उन के प्यार की जानकारी किसी को न हो, लेकिन ऐसा हो नहीं पाया.

एक दिन रोहिका के चचेरे भाई रवि ने नहर के किनारे दोनों को इस हालत में देख लिया कि सारा मामला समझ में आ गया.

उस ने अपने परिवार की बेइज्जती महसूस की और तुरंत यह बात अपनी चाची सुनीता को बता कर चेतावनी देते हुए कहा, ‘‘रोहिका और अंकित को समझा देना. अगर वे दोनों नहीं माने तो उन्हें मैं अपने ढंग से मनाऊंगा. तब बहुत महंगा पड़ेगा.’’

रोहिका की हरकत पता चलने पर सुनीता सन्न रह गई. वह घर आई तो सुनीता ने बेटी को आड़े हाथों लेते हुए कहा, ‘‘रोहिका, तुम पर तो मैं बहुत भरोसा करती थी. लेकिन तुम ने तो अभी से रंग दिखाना शुरू कर दिया. अंकित के साथ तेरा क्या चक्कर है?’’

‘‘मेरा किसी से कोई चक्कर नहीं है.’’ रोहिका ने दबी आवाज में कहा.

‘‘तू क्या सोचती है कि तेरी बात पर मुझे विश्वास हो जाएगा. जो बात मैं कह रही हूं, उसे कान खोल कर सुन ले. आज के बाद तू अंकित से बिलकुल नहीं मिलेगी और वह इस घर में कदम नहीं रखेगा. आज के बाद तूने कोई हरकत की तो तेरा बाप और चचेरा भाई तुझे जिंदा जमीन में गाड़ देंगे.’’ सुनीता ने चेतावनी देते हुए कहा.

मां ने जो कहा था, वह सच था. इसलिए रोहिका ने कोई जवाब नहीं दिया. मां बड़बड़ाती रही और वह चुपचाप उन की बातें सुनती रही. मां की चेतावनी से वह बुरी तरह डर गई थी. इस से साफ था कि मां उस के संबंधों को जान गई थी.

अजय असम में तैनात थे. कुछ दिनों बाद जब वह छुट्टी पर घर आए तो सुनीता ने उन्हें बेटी की करतूत बता दी. अजय ने उसे जम कर डांटा. चूंकि बात इज्जत की थी, इसलिए अजय ने अंकित को तो डांटा ही, उस के पिता राजेंद्र से भी उस की शिकायत की.

रोहिका पर अब कड़ी नजर रखी जाने लगी. उस का घर से निकलना भी लगभग बंद कर दिया गया था. अगर किसी जरूरी काम से कहीं जाना होता तो मां उस के साथ जाती थी. उसे अकेली कहीं नहीं जाने दिया जाता था.

कहते हैं, प्यार पर पहरा लगा दिया जाता है तो वह और बढ़ता है. शायद इसी से रोहिका और अंकित परेशान रहने लगे थे. दोनों एकदूसरे की एक झलक पाने को बेचैन रहते थे. रोहिका के प्यार में आकंठ डूबा अंकित तरहतरह के अपमान भी बरदाश्त कर रहा था.

कुछ समय बाद सुनीता को लगा कि बेटी सुधर गई है और अंकित के प्यार का भूत उस के सिर से उतर गया है तो उन्होंने उसे ढील दे दी.

ढील मिलते ही रोहिका और अंकित की प्रेमकहानी एक बार फिर शुरू हो गई. हां, अब मिलने में दोनों काफी सतर्कता बरतते थे. तमाम सतर्कता के बावजूद एक शाम रवि ने दोनों को एक साथ देख लिया. इस बार रवि आपा खो बैठा और अंकित के साथ मारपीट कर बैठा.

घर आ कर उस ने नमकमिर्च लगा कर चाची से रोहिका की शिकायत की. गुस्से में सुनीता ने रोहिका को भलाबुरा तो कहा ही, पिटाई भी कर दी. यही नहीं, उन्होंने फोन कर के सारी बात पति को भी बता दी.

अजय बेटी को ले कर परेशान हो उठा. उसे डर था कि कहीं रोहिका उस की इज्जत पर दाग न लगा दे. इसलिए किसी तरह छुट्टी ले कर वह घर आ गया. उस ने पत्नी सुनीता से इस गंभीर समस्या पर विचार किया. अंत में रोहिका का विवाह जल्द से जल्द करने का निर्णय लिया गया. दौड़धूप कर उन्होंने रोहिका का विवाह औरैया में तय कर दिया और अपनी ड्यूटी पर चले गए.

रोहिका को शादी तय होने की जानकारी मिली तो वह बेचैन हो उठी. किसी तरह इस बात की जानकारी अंकित को भी हो गई. एक दिन मौका मिलने पर वह रोहिका से मिला तो पहला सवाल यही किया, ‘‘रोहिका, मैं ने जो सुना है, क्या वह सच है?’’

‘‘हां अंकित, तुम ने जो सुना है, वह सच है. मेरे घर वालों ने मेरी मरजी के खिलाफ मेरी शादी तय कर दी है. लेकिन मैं बेवफा नहीं हूं. मैं तुम्हें जितना प्यार पहले करती थी, उतना ही आज भी करती हूं. मैं ने तुम्हारे साथ जीनेमरने की कसमें खाई हैं, उसे निभाऊंगी.’’

रोहिका की ये बातें सुन कर अंकित के दिल को थोड़ा सुकून मिला. लेकिन उस की बेचैनी खत्म नहीं हुई. अब तो उस का खानापीना तक छूट गया. उसे न दिन में चैन मिल रहा था न रात में. रोहिका पर हर तरह से पाबंदी थी, इसलिए वह उस से मिल भी नहीं सकता था. फिर भी जब कभी मौका मिलता था, वह फोन कर के बात कर लेता था.

15 मार्च, 2017 से रोहिका की परीक्षा शुरू हुई, इसलिए उस पर लगी पाबंदी हटानी पड़ी. वह परीक्षा देने अकबरपुर डिग्री कालेज जाने लगी. परीक्षा के दौरान उस की अंकित से मुलाकातें होने लगीं. लेकिन मिलते हुए दोनों काफी सतर्क रहते थे.

18 अप्रैल, 2017 को रोहिका का आखिरी पेपर था. उस दिन परीक्षा दे कर वह अंकित से मिली. तब उस ने उसे बताया कि कल उस के पापा असम से आ रहे हैं. उसे लगता है कि आते ही वह उस की शादी की तारीख तय कर देंगे. इस के पहले वह किसी और की हो जाए, वह उसे कहीं और ले चले. अगर उस ने ऐसा नहीं किया तो वह अपनी जान दे देगी. इतना कह कर वह रोने लगी.

रोहिका के गालों पर लुढ़के आंसुओं को पोंछते हुए अंकित ने कहा, ‘‘रोहिका, तुम्हें मुझ से कोई नहीं छीन सकता. हम कल ही सब छोड़ देंगे और तुम्हें ले कर अपनी अलग दुनिया बसाएंगे.’’

इस के बाद दोनों ने घर छोड़ने की योजना बना डाली. उसी योजना के तहत 19 अप्रैल, 2017 की सुबह रोहिका ने अपने बैग में शैक्षणिक प्रमाण पत्र, आधार कार्ड, बैंक की पासबुक तथा कालेज का परिचय पत्र और मोबाइल फोन रखा और मां से कालेज में जरूरी काम होने की बात कह कर घर से निकल पड़ी.

सड़क पर अंकित उस का बेसब्री से इंतजार कर रहा था. उस के आते ही दोनों टैंपो में बैठ कर अकबरपुर कस्बा आ गए. रोहिका को हलका बुखार था और जी मितला रहा था. अंकित उसे जिला अस्पताल ले गया और ओपीडी में पर्चा बनवा कर महिला डाक्टर को दिखाया. महिला डाक्टर ने कुछ दवाएं रोहिका के पर्चे पर लिख दीं.

दवा लेने के बाद रोहिका कुछ सामान्य हुई तो उस ने कहा, ‘‘अंकित, हम भाग कर कहां जाएंगे? हमारे पास तो पैसे भी नहीं है. कहीं मुसीबत में फंस गए तो बड़ी परेशानी होगी. इसलिए भागना ठीक नहीं है.’’

‘‘भागने के अलावा कोई दूसरा रास्ता भी तो नहीं है हमारे पास.’’ अंकित ने मायूस हो कर कहा.

‘‘एक रास्ता है.’’ रोहिका बोली.

‘‘क्या?’’

‘‘घर वाले हमें साथ रहने नहीं देंगे और हम एकदूसरे के बिना रह नहीं सकते. हम साथ जीवित भले नहीं रह सकते, लेकिन साथ मर तो सकते हैं.’’

‘‘शायद तुम ठीक कह रही हो रोहिका.’’ इस के बाद दोनों ने जीवनलीला समाप्त करने की योजना बना डाली.

योजना के तहत रोहिका और अंकित अकबरपुर बाजार गए और वहां 2 बोतल फिनाइल खरीदी. इस के बाद देर शाम दोनों जिला अस्पताल के पीछे बन रहे शिव सिंह के मकान पर पहुंचे. वहां वे आधी रात तक बातें करते रहे. इस के बाद एकएक बोतल फिनाइल पी कर एकदूसरे का हाथ पकड़ कर लेट गए.

कुछ ही देर में फिनाइल ने अपना असर दिखाना शुरू किया तो दोनों तड़पने लगे. कुछ देर तड़पने के बाद उन की जीवनलीला समाप्त हो गई. दूसरी ओर शाम तक जब रोहिका घर नहीं लौटी तो सुनीता को चिंता हुई. उस ने उस के मोबाइल पर फोन किया, लेकिन फोन बंद मिला. अजय घर आए तो पतिपत्नी मिल कर रात भर बेटी की तलाश करते रहे, लेकिन उस का कुछ पता नहीं चला.

सुबह 10 बजे पुलिस द्वारा बेटी की मौत की सूचना मिली. इसी तरह अंकित के घर वाले भी उस की तलाश करते रहे. सुबह उन्हें भी फोन द्वारा उस के मौत की सूचना मिली. पोस्टमार्टम के बाद रोहिका और अंकित की लाशें उन के घर वालों को सौंप दी गईं. घर वालों ने अलगअलग उन का अंतिम संस्कार कर दिया. इस तरह एक प्रेमकहानी का अंत हो गया.

लालसिंह चड्ढा एक क्लासिक: ट्रोल कंपनियां और झूठ का सच

आमिर खान की नई फिल्म लाल सिंह चड्ढा को आज फ्लाप बता कर नरेंद्र दामोदरदास मोदी की ट्रोल कंपनी खुश हो रही है कि हमने बहुत बड़ा तीर चला दिया. मगर वे भूलते हैं यह फिल्म सर्वश्रेष्ठ क्लासिक फिल्म की श्रेणी की है.

आप याद करिए -“मेरा नाम जोकर” अपने समय के महान शोमैन राज कपूर की एक ऐसी फिल्म थी जिससे उनकी बड़ी उम्मीदें थी. मगर मेरा नाम जोकर जब रिलीज हुई तो फ्लाप मानी गई थी मगर आगे चलकर के आज उसे याद क्लासिकल का दर्जा मिला हुआ है. इसी तरह राज कपूर अभिनीत और शैलेंद्र की कहानी पर तीसरी कसम फिल्म के साथ भी हुआ था जो शुरुआत में तो दर्शकों को आकर्षित नहीं कर पाई मगर बाद में इतिहास रच दिया. ऐसा ही कुछ होने की संभावना लाल सिंह चड्ढा के साथ भी बनी हुई है.
आमिर खान और अन्य खान बंधुओं के पीछे इन दिनों हमारे देश में प्रोपेगेंडा अपनी सीमाएं लांग चुका है चाहे वे कितना ही अच्छा करें श्रेष्ठतम करें संघ परिवार की ट्रोल कंपनियों को उसमें बुराइयां ही दिखाई देती है और बेवजह की बातों को किस्सा कहानी बनाकर के अफवाह फैलाना इनका काम है . लोग भूल जाते हैं कि सच सच होता है और झूठ के पांव नहीं होते लाल सिंह चड्ढा के संदर्भ में भी झूठ फैलाया जा रहा है पुराने वीडियो को दिखाकर या अफवाह फैलाई जा रही है कि आमिर खान ने स्वीकार कर लिया है लाल सिंह चड्ढा फ्लाप हो गई है .

झूठ का वायरल, सच

आमिर खान की फिल्म ने पहले दिन गुरुवार को सिर्फ 11.50 करोड़ की कमाई की. अब सोशल मीडिया पर आमिर का एक वीडियो वायरल हो रहा है.वीडियो में आमिर को यह कहते हुए सुना जा सकता है कि हमने कोशिश पूरी की, कोशिश में कोई कसर नहीं छोड़ी हमने, लेकिन कहीं न कहीं हम गलत गए. कुछ लोग हैं, जिन्हें फिल्म पसंद आई है और उनका हम शुक्रिया अदा करना चाहेंगे. हमें खुशी है कि कुछ लोगों को फिल्म पसंद आई है, लेकिन वो माइनॉरिटी में हैं.

आमिर ने आगे कह रहे हैं, -ज्यादातर लोगों को फिल्म पसंद नहीं आई हमारी और इस बात का हमें एहसास है. यकीनन कहीं न कहीं हम गलत गए हैं, मैं उस बात की पूरी जिम्मेदारी लेता हूं.
दरअसल, यह दावा किया जा रहा है कि फिल्म लाल सिंह चड्ढा के फ्लॉप होने पर आमिर खान ने ये बयान दिया .

मगर यह सौ फीसदी झूठ है –
वायरल वीडियो का सच जानने के लिए हमने इससे जुड़े की-वर्ड्स गूगल पर सर्च किए. सर्च रिजल्ट में हमें इसका पूरा वीडियो हिंदी rush के यू्ट्यूब चैनल पर मिला.अभिनेता निर्देशक आमिर खान का यह वीडियो नवंबर 2018 में रिलीज हुई उनकी फिल्म “ठग्स ऑफ हिंदोस्तान” के फ्लॉप होने के बाद का है.

आमिर ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर मीडिया से कहा था -” फिल्म ठग्स ऑफ हिंदोस्तान के फ्लॉप होने की पूरी जिम्मेदारी मैं लेता हूं. वीडियो में 40 सेकेंड की वायरल हो रही वीडियो क्लिप को देखा जा सकता है.
वस्तुत: हिंदी rush के यू्ट्यूब चैनल पर आमिर खान का ये वीडियो भी 27 नवंबर 2018 को अपलोड हुआ. वहीं, आमिर खान और अमिताभ बच्चन स्टारर फिल्म ठग्स ऑफ हिंदोस्तान 8 नवंबर 2018 को रिलीज हुई थी.

इस तरह यह साफ है कि सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो के साथ किया जा रहा दावा झूठा और गलत है.

पसंद की जा रही है लाल सिंह चड्ढा..
सच तो यह है कि लाल सिंह चड्ढा को दर्शकों का अच्छा प्रतिसाद मिल रहा है. फिल्म की कमाई अपनी जगह मगर लोगों की पसंद का ज्यादा महत्व हमेशा से माना गया है. ऐसे में हम आपको इस आलेख में बता रहे हैं कि देशभर में किस तरह की प्रतिक्रियाएं लोगों की आई है.
मध्यप्रदेश के प्रसिद्ध पत्रकार और लेखक राकेश अचल लिखते हैं-

दरअसल, असली जादू तो फिल्मों कि पास है ,नेताओं कि पास नहीं कुल मिलाकर लोकतंत्र में जादू तो जनता करती है . नेता भी जादू करने का प्रयास करते हैं ,किन्तु सब कर नहीं पाते .राजनीति में फ़िलहाल कोई जादूगर आनंद नहीं है. इसलिए फ़िल्म लालसिंह चड्ढा देखिये ,ये फ़िल्में ही हैं जो आपको एक ऐसी दुनिया में ले जाती हैं ,जहां कुछ देर कि लिए तो सुकून होता ही है .

वासुकी प्रसाद
मै ने भी परिवार के साथ इस फ़िल्म को देखी है।हर साम्प्रदायिक उन्माद चाहे वो सिख दंगा हो या बाबरी विध्वंस ,आम आदमी को ही खामियाजा भुगतना पड़ता है । मैं आपकी इस बेहतरीन टिप्पणी से सौ फ़ीसदी सहमत हूँ कि यह मनुष्यता के पक्ष में संवेदना की जुबान में बोलती, बेहतरीन और अद्भुत कला फ़िल्म है।मनुष्यता विरोधी घृणा के पैरोकार साम्प्रदायिक फ़ासीवादी ताक़तों को भला यह फ़िल्म क्यों अच्छी लगेगी।यह फ़िल्म कुरूप, विभत्स ,बहुसंख्यक साम्प्रदायिक फ़ासीवाद के बरक्स उसका कलात्मक सर्वोत्कृष्ट प्रतिवाद है।बेहतरीन टिप्पणी केलिए आप बधाई के पात्र हैं।

सुरेन्द्र कुमार
आमिर खान एक जीनियस है। उसकी फिल्में भले देर से आती हों लेकिन उनका जवाब नहीं होता। किसी से तुलना नहीं की जा सकती।

राजकुमार सोनी, पत्रकार
—–
अगर आप नफरती गैंग का हिस्सा नहीं है तो पहली फुरसत में आपको यह फिल्म देख लेनी चाहिए. फिल्म की शुरुआत कहीं से आ भटके हुए एक सफेद रंग के पंख से होती है. यह ‘ पंख ‘ जाने कहां-कहां से गुज़रता हैं और हम सब भी महसूस करने लगते कि एक इंसान की ज़िंदगी पंख जैसी ही होती हैं. बस…अभी इतना ही कहूंगा कि यह फिल्म मासूम सरदार की असरदार भूमिका निभाने वाले जानदार अभिनेता की शानदार फिल्म है. यह एक क्लासिक मूवी है. जिसका मूल्यांकन देर-सबेर अवश्य होगा. नफरत पर भारी इस फिल्म का जब कभी भी रेखांकन प्रारंभ होगा तब अखबारों और पत्र-पत्रिकाओं के पन्ने कम पड़ जाएंगे.

गर्भाशय फाइब्रॉयड कैसे बांझपन का कारण बन सकता है

अगर गर्भाशय में किसी भी तरह का सिस्ट या फाइब्रॉएड है तो ऐसी स्थिति में माँ बनना सम्भव नहीं हो पाता । इसके अलावा ओवरी सिंड्रोम, खून की कमी आदि कई ऐसी बीमारियां है जो हमे देखने मे तो छोटी लगती है पर बच्चा पैदा करने के लिए यही सब समस्याएं बहुत बड़ी बन जाती है।

गर्भाशय में विकसित होने वाले गैर-कैंसरकारी (बिनाइन) गर्भाशय फाइब्रॉयड, महिलाओं के बांझपन के सबसे प्रमुख कारणों में से एक हैं। इस बारे में बता रही हैं डॉ रत्‍ना सक्‍सेना, फर्टिलिटी एक्‍सपर्ट, नोवा साउथेंड आईवीएफ एंड फर्टिलिटी, बिजवासन।

गर्भाशय फाइब्रॉयड, फैलोपियन ट्यूब को बाधित करके या निषेचित अंडे को गर्भाशय में प्रत्यारोपित करने से रोककर प्रजनन क्षमता को बिगाड़ सकता है। गर्भाशय में जगह कम होने के कारण, बड़े फाइब्रॉयड भ्रूण को पूरी तरह से विकसित होने से रोक सकते हैं। फाइब्रॉयड प्लेसेंटा के फटने के जोखिम को बढ़ा सकता है क्योंकि प्लेसेंटा फाइब्रॉयड द्वारा अवरुद्ध हो जाता है और गर्भाशय की दीवार से अलग हो जाता है, जिसकी वजह से भ्रूण को ऑक्सीजन और पोषक तत्व कम मात्रा में मिलते हैं। इससे, समय से पहले जन्म या गर्भपात की संभावना काफी बढ़ जाती है।

गर्भाशय फाइब्रॉयड, गर्भाशय की मांसपेशियों के ऊतकों के बिनाइन (गैर-कैंसरकारी) ट्यूमर हैं। उन्हें मायोमा या लेयोमायोमा के रूप में भी जाना जाता है। फाइब्रॉयड तब बनते हैं जब गर्भाशय की दीवार में एकल पेशी कोशिका कई गुना बढ़ जाती है और एक गैर-कैंसरयुक्त ट्यूमर में बदल जाती है।
फाइब्रॉयड छोटे दाने के आकार से लेकर बड़े आकार के हो सकते हैं, जो गर्भाशय को विकृत और बड़ा करते हैं। फाइब्रॉयड का स्थान, आकार और संख्या निर्धारित करती है कि क्या वे लक्षण पैदा करेंगे या इलाज कराने की जरूरत है।
गर्भाशय फाइब्रायॅड, उनके स्थान के आधार पर वर्गीकृत किये जाते हैं। फाइब्रॉयड को तीन बड़ी श्रेणियों में विभाजित गया है:

1-सबसेरोसल फाइब्रॉयड: यह गर्भाशय की दीवार के बाहरी हिस्से में विकसित होता है। इस तरह के फाइब्रॉयड ट्यूमर बाहरी हिस्से में विकसित हो सकते हैं और आकार में बढ़ सकते हैं। सबसेरोसल फाइब्रॉयड, ट्यूमर आस-पास के अंगों पर दबाव बढ़ाने लगता है, जिसकी वजह से पेडू (पेल्विक) का दर्द शुरूआती लक्षण के रूप में सामने आता है।

2इंट्राम्यूरल फाइब्रॉयड: इंट्राम्यूरल फाइब्रॉयड गर्भाशय की दीवार के अंदर विकसित होता है और वहां बढ़ता है। जब इंट्राम्यूरल फाइब्रॉयड का आकार बढ़ता है तो उसकी वजह से गर्भाशय का आकार सामान्य से ज्यादा हो जाता है। जैसे-जैसे इन फाइब्रॉयड्स का आकार बढ़ता है, उसकी वजह से माहवारी में रक्तस्राव ज्यादा होता है, पेडू (पेल्विक) में दर्द और बार-बार पेशाब जाने की समस्या हो जाती है।

3-सबम्यूकोसल फाइब्रॉयड: ये फाइब्रॉयड गर्भाशय गुहा की परत के ठीक नीचे बनते हैं। बड़े आकार के सबम्यूकोसल फाइब्रॉयड, गर्भाशय गुहा के आकार को बढ़ा सकता है और फेलोपियन ट्यूब को अवरुद्ध कर सकता है, जिसकी वजह से प्रजनन में समस्याएं होने लगती हैं। इससे जुड़े लक्षणों में शामिल है, माहवारी में अत्यधिक मात्रा में रक्तस्राव और लंबे समय तक माहवारी आना।

कैसे पहचान करें-
पेडू की जांच, लैब टेस्ट और इमेजिंग टेस्ट के जरिये गर्भाशय फाइब्रॉयड का पता लगाया जाता है। इमेजिंग टेस्ट का इस्तेमाल, गर्भाशय की असामान्यताओं का पता लगाने के लिये किया जाता है। इसमें पेट का अल्ट्रासाउंड, योनि का अल्ट्रासाउंड और हिस्टेरोस्कोपी शामिल होती है। हिस्टेरोस्कोपी के दौरान हिस्टेरोस्कोप नाम की एक छोटी, हल्की दूरबीन को सर्विक्स के जरिये गर्भाशय में डाला जाता है। स्लाइन इंजेक्शन के बाद, गर्भाशय गुहा फैल जाएगी, जिससे स्त्रीरोग विशेषज्ञ गर्भाशय की दीवारों और फेलोपियन ट्यूब के मुख की जांच कर पाती हैं। कुछ मामलों में एमआरआई जैसे इमेजिंग टूल्स की जरूरत पड़ सकती है।
उपचार
गर्भाशय फाइब्रॉयड की दवाएं,उन हॉर्मोन्स को लक्षित करती हैं जोकि मासिक चक्र को नियंत्रित करता है, ताकि माहवारी के अत्यधिक रक्तस्राव जैसे लक्षण का उपचार किया जा सके। वैसे तो दवाएं, फाइब्रॉयड को हटा नहीं पातीं, लेकिन उन्हें छोटा कर देती हैं। फाइब्रॉयड्स को हटाने की सर्जरी में पारंपरिक सर्जरी की प्रक्रिया और कम से कम चीर-फाड़ वाली सर्जरी शामिल होती है। “लेप्रोस्कोपिक गाइनकोलॉजिक सर्जरी” जैसी सर्जरी न्यूनतम चीर-फाड़ वाली प्रक्रियाएं होती हैं, जिन्हें बिना ओपन कट किए, गर्भाशय फाइब्रॉयड को सावधानीपूर्वक निकालने के लिये किया जाता है।

कैमरे के साथ एक छोटी-सी ट्यूब वाले लेप्रोस्कोप जैसे सर्जरी के उपकरणों को डालने के लिये एक छोटा-सा चीरा लगाया जाता है। इससे स्त्रीरोग विशेषज्ञ को मॉनिटरिंग स्क्रीन पर गाइनेकोलॉजिक अंगों को हर तरफ से देखने में मदद मिलती है। छोटा-सा चीरा लगाकर लेप्रोस्कोपिक सर्जरी करने से दर्द कम होता है और सुरक्षा बढ़ती है, साथ ही साथ ऑपरेशन के बाद की समस्याएं जैसे संक्रमण का दर कम होता है, खून कम बहता है और कम से कम फाइब्रोसिस का निर्माण होता है। सर्जरी के बाद, रोगियों को गर्भधारण के बारे में सोचने से पहले कम से कम एक महीने तक गर्भनिरोधक गोलियां लेने की सलाह दी जाती है।

गर्भाशय फाइब्रॉयड, उच्च एस्ट्रोजन स्तर, गर्भाशय संकुचन, और ओव्यूलेशन डिसफंक्शन जैसी असामान्यताओं का कारण बनता है। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि फाइब्रॉयड फैलोपियन ट्यूब को अवरुद्ध करके और निषेचित अंडे को गर्भाशय में प्रत्यारोपित करने से रोककर प्रजनन क्षमता को बिगाड़ सकता है। इसलिये, फाइब्रॉयड को खत्म करने के लिये उचित और समय पर उपचार महत्वपूर्ण है।

YRKKH: शो में होगी इस एक्टर की एंट्री, अभिमन्यु से मिलाएगा हाथ

टीवी सीरियल का सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलता है’ में इन दिनों धमाकेदार ट्विस्ट देखने को मिल रहा है. बताया जा रहा है कि ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ में जल्द ही नयी एंट्री होने वाली है. शो में डॉक्टर कुणाल खेरा का किरदार में एक्टर मृणाल जैन नजर आएंगे. ये एक्टर पांच साल बाद ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ के जरिए टीवी पर दोबारा कदम रखेंगे.

आखिरी बार मृणाल जैन (Mrunal Jain) को टीवी शो ‘नागार्जुन: एक योद्धा’ में देखा गया था. तो वहीं अब लंबे समय के बाद ये रिश्ता क्या कहलाता है में नजर आएंगे. रिपोर्ट के अनुसार, मृणाल जैन ने इस बारे में बात करते हुए कहा है कि टीवी पर सबसे लंबे समय तक चलने वाले शो का हिस्सा बनना एक जबरदस्त मौका है.

 

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Mrunal Jain (@mrunaljainofficial)

 

उन्होंने आगे कहा कि मैंने अपने करियर में कभी भी डॉक्टर का किरदार नहीं अदा किया है और मैंने इस किरदार को समझने के लिए अपने कजिन से मदद ली है जो कि एक डॉक्टर है.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Mrunal Jain (@mrunaljainofficial)

 

बता दें कि ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ में मृणाल जैन, अभिमन्यु का हाथ ठीक करने के लिए एंट्री करेंगे. नयी एंट्री से शो में नया ट्विस्ट भी देखने को मिलेगा.

 

मृणाल जैन ने अक्षय कुमार स्टारर ‘सूर्यवंशी’ में अहम भूमिका में नजर आये थे. फिल्म में उनका किरदार नेगेटिव था, लेकिन इसके बाद भी उन्होंने फैंस का दिल जीतने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी.

 

जय भानुशाली और माही विज ने बेटी तारा के बर्थडे पर दी ग्रैंड पार्टी, देखें Photos

टीवी फेम जय भानुशाली और माही विज अक्सर सोशल मीडिया पर अपनी फोटोज शेयर करते रहते हैं. हाल ही में उन्होंने अपनी बेटी तारा का तीसरा बर्थडे मनाया सेलिब्रेट किया है. सेलिब्रेशन की फोटोज सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है, जिसे फैंस खूब पसंद कर रहे हैं.

फोटोज में आप देख सकते हैं कि इस स्टार कपल की बेटी की बर्थडे पार्टी में टीवी सीरियल के कई सितारे पहुंचे हैं. बच्चों की इस खास पार्टी में टीवी की कई हसीनाएं अपने बच्चों के साथ पहुंची थी.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Jay Bhanushali (@ijaybhanushali)

 

तारा का जन्म 3 अगस्त 2019 को हुआ था. ये स्टार कपल अपनी बेटी का तीसरा बर्थडे सेलिब्रेट कर रहा है. बर्थडे गर्ल बिल्कुल बेबी डॉल लग रही थी.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Jay Bhanushali (@ijaybhanushali)

 

बता दें कि कपल ने अपनी बेटी तारा के बर्थडे के लिए मिकी माउस वाली थीम पार्टी रखी थी. इस दौरान कपल ने तारा के बर्थडे के लिए पिंक कलर का 2 फ्लोर केक कटवाया था.

 

इस बर्थडे पार्टी में टीवी स्टार अनीता हसनंदानी, करणवीर बोहरा , देबिना बनर्जी, निशा रावल और कई सितारे अपने फैमिली के साथ शरिक हुए.  देबिना बनर्जी भी अपनी न्यूली बॉर्न बेटी को लेकर इस बर्थडे पार्टी में पहुंची.

फसल को नुकसान पहुंचाती दूब घास

फसल के साथ उगने वाले खरपतवारों को तो किसान निराईगुड़ाई, जुताई या फिर दवाओं से काबू में कर लेते हैं, पर उन का बस ऐसे जिद्दी खरपतवारों पर नहीं चलता, जो सालभर दिखते नहीं या फिर खेत में कहींकहीं दिखते हैं, लेकिन फसल के साथ ऐसे उगते हैं मानो बोया इन्हें ही गया हो.

घास कुल की खरपतवार दूब भी इसी किस्म की होती है. यह फसल को ऐसे नुकसान पहुंचाती है कि किसान देखते ही रह जाते हैं, कर कुछ नहीं पाते.

बागबगीचों की खूबसूरती बिगाड़ने वाली दूब घास खेतों में फसल और किसानों की सब से बड़ी दुश्मन साबित होती है. इस की हरियाली खेतों के बाहर ही अच्छी लगती है और अगर अंदर आ जाए तो किसानों की उम्मीदों पर पानी फेर देती है.

इस खरपतवार को ले कर देश ही नहीं, बल्कि दुनियाभर के माहिर परेशान हैं, क्योंकि इसे जड़ से काबू करने का कोई तरीका नहीं ढूंढ़ा जा सका है.

नुकसानदेह खूबियां

दूब घास में खूबियों की भरमार होती है, जिन में से पहली यह है कि यह गरमियों में सूख जाती है. इस से किसान बेफिक्र हो जाते हैं, लेकिन जैसे ही फसल बोते हैं तो पता चलता है कि उस के साथसाथ पूरे खेत में दूब घास भी उग आई है.

दरअसल, दूब घास उन खरपतवारों में से एक है, जो बीज से भी पैदा होते हैं और तने व पत्ती से भी अपनी तादाद बढ़ाते हैं.

इस की दूसरी खासीयत इस की जड़ है, जो जमीन में इतनी गहराई तक चली जाती है कि जुताई से खत्म नहीं होती, इसलिए फौरीतौर पर किसान खुद को तसल्ली देने के लिए निराई के नाम पर इस की पत्तियां उखाड़ते रहते हैं, जो देखते ही देखते फिर लहलहा कर फसल को कमजोर कर देती है.

दूब का तना जमीन से चिपक कर बढ़ता रहता है. यह बेल की तरह रेंगता है. बड़ा होने पर यह ऊपर की तरफ उठता है, तो किसान इसे खुशी से तोड़ देते हैं लेकिन 4-6 फुट नीचे तक फैली हजारों गांठों का कुछ नहीं बिगाड़ पाते, जो दोबारा तने और पत्तियां पैदा करती हैं. इस की पत्तियां 10 सैंटीमीटर तक लंबी और महज 4 मिलीमीटर तक चौड़ी होती हैं, जिन की ऊपरी परत रेशेदार और निचली खुरदरी होती हैं.

बहुवर्षीय होने की वजह से दूब घास रबी और खरीफ दोनों मौसम की फसलों को बराबरी से नुकसान पहुंचाती है, लेकिन खरीफ में इस का प्रकोप ज्यादा रहता है. ज्वार, मक्का और अरहर की फसलों को तो यह 50 फीसदी तक नुकसान पहुंचाती है और बाकी फसलों की पैदावार भी 20 फीसदी तक घटा देती है.

कैसे करें काबू

चूंकि यह पौधा धीरेधीरे पनप कर खेत में अपनी बादशाहत को बनाए रखता है, इसलिए इस से बचने का तरीका भी यही है कि इसे धीरेधीरे ही खत्म किया जाए. 1-2 साल की कोशिशों से यह खत्म नहीं होता. वजह इसकी गांठें हैं, जो गहराई तक पड़ी रह कर जिंदा रहती हैं.

किसान अगर यह बात अच्छी तरह सोच लें कि वे खरपतवारनाशी रसायनों के छिड़काव से इस से जीत जाएंगे तो जल्द ही उन की यह गलतफहमी भी दूर हो जाती है, इसलिए दूब घास को खेत से उखाड़ने के लिए सब्र से काम लेना पड़ता है और इसे सलीके से काबू करना पड़ता है.

स्मृति चक्र: कैसे टूट गया विभा और नितिन का सपना

विभा ने झटके से खिड़की का परदा एक ओर सरका दिया तो सूर्य की किरणों से कमरा भर उठा. ‘‘मनु, जल्दी उठो, स्कूल जाना है न,’’ कह कर विभा ने जल्दी से रसोई में जा कर दूध गैस पर रख दिया.

मनु को जल्दीजल्दी तैयार कर के जानकी के साथ स्कूल भेज कर विभा अभी स्नानघर में घुसी ही थी कि फिर घंटी बजी. दरवाजा खोल कर देखा, सामने नवीन कुमार खड़े मुसकरा रहे थे. ‘‘नमस्कार, विभाजी, आज सुबहसुबह आप को कष्ट देने आ गया हूं,’’ कह कर नवीन कुमार ने एक कार्ड विभा के हाथ में थमा दिया, ‘‘आज हमारे बेटे की 5वीं वर्षगांठ है. आप को और मनु को जरूर आना है. अच्छा, मैं चलूं. अभी बहुत जगह कार्ड देने जाना है.’’

निमंत्रणपत्र हाथ में लिए पलभर को विभा खोई सी खड़ी रह गई. 6-7 दिन पहले ही तो मनु उस के पीछे पड़ रही थी, ‘मां, सब बच्चों की तरह आप मेरा जन्मदिन क्यों नहीं मनातीं? इस बार मनाएंगी न, मां.’ ‘हां,’ गरदन हिला कर विभा ने मनु को झूठी दिलासा दे कर बहला दिया था.

जल्दीजल्दी तैयार हो विभा दफ्तर जाने लगी तो जानकी से कह गई कि रात को सब्जी आदि न बनाए, क्योंकि मांबेटी दोनों को नवीन कुमार के घर दावत पर जाना था. घर से दफ्तर तक का बस का सफर रोज ही विभा को उबा देता था, किंतु उस दिन तो जैसे नवीन कुमार का निमंत्रणपत्र बीते दिनों की मीठी स्मृतियों का तानाबाना सा बुन रहा था.

मनु जब 2 साल की हुई थी, एक दिन नाश्ते की मेज पर नितिन ने विभा से कहा था, ‘विभा, जब अगले साल हम मनु की सालगिरह मनाएंगे तो सारे व्यंजन तुम अपने हाथों से बनाना. कितना स्वादिष्ठ खाना बनाती हो, मैं तो खाखा कर मोटा होता जा रहा हूं. बनाओगी न, वादा करो.’ नितिन और विभा का ब्याह हुए 4 साल हो चुके थे. शादी के 2 साल बाद मनु का जन्म हुआ था. पतिपत्नी के संबंध बहुत ही मधुर थे. नितिन का काम ऐसी जगह था जहां लड़कियां ज्यादा, लड़के कम थे. वह प्रसाधन सामग्री बनाने वाली कंपनी में सहायक प्रबंधक था. नितिन जैसे खूबसूरत व्यक्ति के लिए लड़कियों का घेरा मामूली बात थी, पर उस ने अपना पारिवारिक जीवन सुखमय बनाने के लिए अपने चारों ओर विभा के ही अस्तित्व का कवच पहन रखा था. विभा जैसी गुणवान, समझदार और सुंदर पत्नी पा कर नितिन बहुत प्रसन्न था.

विलेपार्ले के फ्लैट में रहते नितिन को 6 महीने ही हुए थे. मनु ढाई साल की हो गई थी. उन्हीं दिनों उन के बगल वाले फ्लैट में कोई कुलदीप राज व सामने वाले फ्लैट में नवीन कुमार के परिवार आ कर रहने लगे थे. दोनों परिवारों में जमीन- आसमान का अंतर था. जहां नवीन कुमार दंपती नित्य मनु को प्यार से अपने घर ले जा कर उसे कभी टौफी, चाकलेट व खिलौने देते, वहीं कुलदीप राज और उन की पत्नी मनु के द्वारा छुई गई उन की मनीप्लांट की पत्ती के टूट जाने का रोना भी कम से कम 2 दिन तक रोते रहते.

एक दिन नवीन कुमार के परिवार के साथ नितिन, विभा और मनु पिकनिक मनाने जुहू गए थे. वहां नवीन का पुत्र सौमित्र व मनु रेत के घर बना रहे थे. अचानक नितिन बोला, ‘विभा, क्यों न हम अपनी मनु की शादी सौमित्र से तय कर दें. पहले जमाने में भी मांबाप बच्चों की शादी बचपन में ही तय कर देते थे.’

नितिन की बात सुन कर सभी खिलखिला कर हंस पड़े तो नितिन एकाएक उदास हो गया. उदासी का कारण पूछने पर वह बोला, ‘जानती हो विभा, एक ज्योतिषी ने मेरी उम्र सिर्फ 30 साल बताई है.’ विभा ने झट अपना हाथ नितिन के होंठों पर रख उसे चुप कर दिया था और झरझर आंसू की लडि़यां बिखेर कर कह उठी थी, ‘ठीक है, अगर तुम कहते हो तो सौमित्र से ही मनु का ब्याह करेंगे, पर कन्यादान हम दोनों एकसाथ करेंगे, मैं अकेली नहीं. वादा करो.’

बस रुकी तो विभा जैसे किसी गहरी तंद्रा से जाग उठी, दफ्तर आ गया था. लौटते समय बस का इंतजार करना विभा ने व्यर्थ समझा. धीरेधीरे पैदल ही चलती हुई घंटाघर के चौराहे को पार करने लगी, जहां कभी वह और नितिन अकसर पार्क की बेंच पर बैठ अपनी शामें गुजारते थे.

सभी कुछ वैसा ही था. न पार्क बदला था और न वह पत्थर की लाल बेंच. विभा समझ नहीं पा रही थी कि उस दिन उसे क्या हो रहा था. जहां उसे घर जाने की जल्दी रहती थी, वहीं वह जानबूझ कर विलंब कर रही थी. यों तो वह इन यादों को जीतोड़ कोशिशों के बाद किसी कुनैन की गोली के समान ही सटक कर अपनेआप को संयमित कर चुकी थी. हालांकि वह तूफान उस के दांपत्य जीवन में आया था, तब वह अपनेआप को बहुत ही कमजोर व मानसिक रूप से असंतुलित महसूस करती थी और सोचती थी कि शायद ही वह अधिक दिनों तक जी पाएगी, पर 3 साल कैसे निकल गए, कभी पीछे मुड़ कर विभा देखती तो सिर्फ मनु ही उसे अंधेरे में रोशनी की एक किरण नजर आती, जिस के सहारे वह अपनी जिंदगी के दिन काट रही थी.

उस दिन की घटना इतना भयानक रूप ले लेगी, विभा और नितिन दोनों ने कभी ऐसी कल्पना भी नहीं की थी. एक दिन विभा के दफ्तर से लौटते ही एक बेहद खूबसूरत तितलीनुमा लड़की उन के घर आई थी, ‘‘आप ही नितिन कुमार की पत्नी हैं?’’

‘‘जी, हां. कहिए, आप को पहचाना नहीं मैं ने,’’ विभा असमंजस की स्थिति में थी. उस आधुनिका ने पर्स में से सिगरेट निकाल कर सुलगा ली थी. विभा कुछ पूछती उस से पहले ही उस ने अपनी कहानी शुरू कर दी, ‘‘देखिए, मेरा नाम शुभ्रा है. मैं दिल्ली में नितिन के साथ ही कालिज में पढ़ती थी. हम दोनों एकदूसरे को बेहद चाहते थे. अचानक नितिन को नौकरी मिल गई. वह मुंबई चला आया और मैं, जो उस के बच्चे की मां बनने वाली थी, तड़पती रह गई. उस के बाद मातापिता ने मुझे घर से निकाल दिया. फिर वही हुआ जो एक अकेली लड़की का इस वहशी दुनिया में होता है. न जाने कितने मर्दों के हाथों का मैं खिलौना बनी.’’

विभा को तो मानो सांप सूंघ गया था. आंखों के आगे अंधेरा सा छा गया था. उस ने झट फ्रिज से बोतल निकाल कर पानी पिया और अपने ऊपर नियंत्रण रखते हुए अंदर से किवाड़ की चटखनी चढ़ा कर उस लड़की से पूछा, ‘‘तुम ने अभी- अभी कहा है कि तुम नितिन के बच्चे की मां बनने वाली थीं…’’ ‘‘मेरा बेटा…नहीं, नितिन का बेटा कहूं तो ज्यादा ठीक होगा, वह छात्रावास में पढ़ रहा है,’’ युवती ने विभा की आंखों में झांकते हुए कहा.

‘‘तुम अब क्या चाहती हो? मेरे विचार से बेहतर यही होगा कि तुम फौरन यहां से चली जाओ. नितिन तुम्हें भूल चुका होगा और शायद तुम से अब बात भी करना पसंद नहीं करेगा. तुम्हें पैसा चाहिए? मैं अभी चेक काट देती हूं, पर यहां से जल्दी चली जाओ और फिर कभी इधर न आना?’’ विभा ने 10 हजार रुपए का चेक काट कर उसे थमा दिया. ‘‘इतनी आसानी से चली जाऊं. कितनी मुश्किल से तो अपने एक पुराने साथी से पैसे मांग कर यहां तक पहुंची हूं और फिर नितिन से मुझे अपने 6 साल का हिसाब चुकाना है,’’ युवती ने व्यंग्य- पूर्वक मुसकराते हुए कहा.

थोड़ी देर बाद घंटी बजी. विभा ने दौड़ कर दरवाजा खोला. नितिन ने अंदर कदम रखते हुए कहा, ‘‘शुभ्रा, तुम…तुम यहां कैसे?’’

विभा की तो रहीसही शंका भी मिट चुकी थी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे और क्या न करे. युवती ने अपनी कहानी एक बार फिर नितिन के सामने दोहरा दी थी. विभा के अंदर जो घृणा नितिन के प्रति जागी थी, उस ने भयंकर रूप ले लिया था. नितिन बारबार उसे समझा रहा था, ‘‘विभा, यह लड़की शुरू से आवारा है. मेरा इस से कभी कोई संबंध नहीं था. हर पुराने सहपाठी या मित्र को यह ऐसे ही ठगती है. विभा, नासमझ न बनो. यह नाटक कर रही है.’’

पर विभा ने तो अपना सूटकेस तैयार करने में पलभर की भी देरी नहीं की थी. वह नितिन का घर छोड़ कर चली गई. कोशिश कर के नवीन कुमार के दफ्तर में उसे नौकरी भी मिल गई. कुछ समय मनु के साथ एक छोटे से कमरे में गुजार कर बाद में विभा ने फ्लैट किराए पर ले लिया था. घर छोड़ने के 5-6 माह बाद ही विभा को पता चला कि वह लड़की धोखेबाज थी. उस ने डराधमका कर नितिन से बहुत सा रुपया ऐंठ लिया था. उस हादसे से वह एक तरह से अपना मानसिक संतुलन ही खो बैठा था. चाह कर भी विभा फिर नितिन से मिलने न जा सकी.

नवीन कुमार के बेटे के जन्मदिन की पार्टी में विभा नहीं गई. जब विभा घर पहुंची तो मनु सो चुकी थी. विभा कपड़े बदल कर निढाल सी पलंग पर जा लेटी. उस दिन न जाने क्यों उसे नितिन की बेहद याद आ रही थी.

रात के 11 बजे कच्ची नींद में विभा को जोरजोर से किवाड़ पर दस्तक सुनाई दी. स्वयं को अकेली जान यों ही एक बार तो वह घबरा उठी. फिर हिम्मत जुटा कर उस ने पूछा, ‘‘कौन है?’’ बाहर से कुलदीप राज की आवाज पहचान उस ने द्वार खोला. पुलिस की वर्दी में एक सिपाही को देख एकाएक उस के पैरों के नीचे से जमीन ही निकल गई.

‘‘आप ही विभा हैं?’’ सिपाही ने पूछा. ‘‘ज…ज…जी, कहिए.’’

‘‘आप के पति का एक्सीडेंट हो गया है. नशे की हालत में एक टैक्सी से टकरा गए हैं. उन की जेब में मिले कागजों व आप के पते तथा फोटो से हम यहां तक पहुंचे हैं. आप तुरंत हमारे साथ चलिए.’’ ‘‘कैसे हैं वह?’’

‘‘घबराएं नहीं, खतरे की कोई बात नहीं है,’’ सिपाही ने सांत्वना भरे स्वर में कहा. विभा का शरीर कांप रहा था. हृदय की धड़कन बेकाबू सी हो गई थी. एक पल में ही विभा सारी पिछली बातें भूल कर तुरंत मनु को पड़ोसियों को सौंप कर अस्पताल पहुंची.

नितिन गहरी बेहोशी में था. काफी चोट आई थी. डाक्टर के आते ही विभा पागलों की भांति उसे झकझोर उठी, ‘‘डाक्टर साहब, कैसे हैं मेरे पति? ठीक तो हो जाएंगे न…’’ डाक्टर ने विभा को तसल्ली दी, ‘‘खतरे की कोई बात नहीं है. 2-3 जगह चोटें आई हैं, खून काफी बह गया है. लेकिन आप चिंता न करें. 4-5 दिन में इन्हें घर ले जाइएगा.’’

विभा के मन को एक सुखद शांति मिली थी कि उस के नितिन का जीवन खतरे से बाहर है.

5वें दिन विभा नितिन को ले कर घर आ गई थी. अस्पताल में दोनों के बीच जो मूक वार्त्तालाप हुआ था, उस में सारे गिलेशिकवे आंसुओं की नदी बन कर बह गए थे. बचपन में विभा के स्कूल की एक सहेली हमेशा उस से कहती थी, ‘विभा, एक बार कुट्टी कर के जब दोबारा दोस्ती होती है तो प्यार और भी गहरा हो जाता है.’ उस दिन विभा को यह बात सत्य महसूस हो रही थी.

नितिन ने विभा से फिर कभी शराब न पीने का वादा किया था और उन की गृहस्थी को फिर एक नई जिंदगी मिल गई थी. इतने वर्ष कैसे बीत गए, पता ही नहीं चला था. उस दिन विभा की बेटी मनु की शादी हो रही थी.

‘‘नितिन, वह ज्योतिषी कितना ढोंगी था, जिस ने तुम्हें फुजूल मरनेजीने की बात बता कर वहम में डाला था. चलो, मनु का कन्यादान करने का समय हो रहा है,’’ विभा ने मुसकराते हुए कहा. विदाई के समय विभा ने मनु को सीख दी थी, ‘‘मनु, कभी मेरी तरह तुम भी निराधार शक की शिकार न होना, वरना हंसतीखेलती जिंदगी रेगिस्तान के तपते वीराने में बदल जाएगी.’’

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें