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एक छोटी सी गलतफहमी- समीर अपनी बहन के बारे में क्या जानकर हैरान हुआ

भारत और पाकिस्तान के बीच पुन: एक दोस्ती का पैगाम. एक बार फिर से दिल्लीलाहौर बस सेवा शुरू होने जा रही है. जैसे ही रात के समाचारों में यह खबर सुनाई दी, रसोई में काम करतेकरते मेरे हाथ अचानक रुक गए. दिल में उठी हूक के साथ मां की ओर देखा तो उन का सपाट व शांत चेहरा थोड़ी देर के लिए हिला और फिर पहले जैसा शांत हो गया. आज के समाचार ने मुझे 2 साल पीछे धकेल दिया. वे सारी घटनाएं, जिन्होंने इस परिवार की दुनिया ही बदल दी, मेरी आंखों के सामने सिनेमा की तसवीर की तरह घूमने लगीं.

हम 2 बहन और 1 भाई थे. मातापिता का लाड़प्यार हर पल हमें मिलता रहता था. मैं सब से छोटी थी. भैया व दीदी जुड़वां थे. दीदी मात्र 4 मिनट भैया से बड़ी थीं. बचपन से ही वे आपस में काफी घुलेमिले थे पर झगड़े भी दोनों में खूब होते थे.

मैं उन दोनों से 7 साल छोटी होने के कारण दोनों की लाड़ली थी. मुझे तो शायद याद भी नहीं कि मेरी लड़ाई उन दोनों से कभी हुई हो. संजय भैया पढ़ाई में काफी होशियार थे. यद्यपि दीदी भी पढ़ने में तेज थीं किंतु उन का मन खेलकूद की ओर अधिक लगता था. जिला स्तर पर खेलतेखेलते कई बार उन का चुनाव राज्य स्तर पर भी हुआ जोकि मां को कभी अच्छा नहीं लगा क्योंकि मुझे व दीदी को ले कर मां की सोच पापा से थोड़ी संकरी थी. खासकर तब जब दीदी को खेलने के लिए अपने शहर से बाहर जाने की बात होती थी, तब भैया का साथ ही मां और पापा के प्रतिरोध को हटा पाता था और इस तरह दीदी को बाहर जा कर खेलने का मौका मिलता था.

मलयेशिया की राजधानी क्वालालम्पुर में कई देशों की टीमें आई थीं. वहीं पर दीदी की मुलाकात अनुपम से हुई जो किसी पाकिस्तानी खिलाड़ी का रिश्तेदार था और उस के साथ ही क्वालालम्पुर आया था. दोनों की मुलाकात काफी दिलचस्प थी. दिन में दोनों एकसाथ कौफी पीने जाया करते थे. चेहरे के नैननक्श अपने जैसे होने के कारण दोनों ने एकदूसरे से बात करने में दिलचस्पी दिखाई. धीरेधीरे दोनों ने ही महसूस किया कि उन में दोस्ती के अलावा कुछ और भी है. इसी तरह 7 दिन की मुलाकात में ही उन का प्यार परवान चढ़ने लगा था. दीदी जब लौट कर आईं तो कुछ बदलीबदली सी थीं. मां की अनुभवी आंखों को समझते देर न लगी कि दीदी के मन में कुछ उथलपुथल मची है. मां के थोड़े से प्रयासों से पता चला कि दीदी जिसे चाहती हैं वह पाकिस्तानी हिंदू है. यद्यपि लड़का पाकिस्तान में इंजीनियर है पर वह पाकिस्तान से बाहर किसी अच्छी नौकरी की तलाश में है. कुल मिला कर लड़का किसी भी तरफ से अनदेखा करने योग्य न था. बस, उस का पाकिस्तानी होना ही सब के लिए चुभने वाली बात थी.

यहां भी भैया ने दीदी का साथ दिया. आखिर एक दिन हम सब को छोड़ कर दीदी अपने ससुराल चली गई. हालांकि पाकिस्तान के नाम से दीदी के मन में भी थोड़ा अलग विचार आया था लेकिन वहां ऐसा कुछ नहीं था. अनुपम के परिवार ने दीदी का खुले दिल से स्वागत किया. एक खिलाड़ी के रूप में दीदी की शोहरत वहां पर भी थी, तो तालमेल बैठाने में दीदी को कोई परेशानी नहीं हुई.

दीदी के जाते ही पूरा घर सूना हो गया. भैया का मन नहीं लगता तो दीदी के घर का चक्कर लगा आते थे. मां कहतीं कि बेटी के घर इतनी जल्दीजल्दी जाना ठीक नहीं, पर भैया का यही उत्तर होता कि देखो न मां, दीदी के ससुराल जाते ही हमारी सरकार ने भारतपाकिस्तान के बीच बस सेवा शुरू कर दी है.

पढ़ाई समाप्त कर भैया ने भी नौकरी की तलाश शुरू कर दी. हमारा मध्यवर्गीय परिवार था. घर की आर्थिक स्थिति को देखते हुए भैया को नौकरी की जरूरत महसूस होने लगी. उन के प्रथम श्रेणी में पास होने के प्रमाणपत्र भी उन्हें कोई नौकरी नहीं दिला सके तो उन्होंने सोचा, जब तक नौकरी नहीं मिलती क्यों न राजनीति में ही हाथपांव मारे जाएं. कालिज में 2 बार उपाध्यक्ष पद पर रह चुके थे. ऐसे में उन्हें अपने दोस्त समीर की याद आई, जोकि उन के साथ कालिज में अध्यक्ष पद के लिए चुना गया था.

समीर हमारे घर भी काफी आताजाता था. उस के पिता विधायक थे. भैया को लगा, वे शायद कुछ मदद कर सकते हैं. पर भैया ने एक बात नोट नहीं की, वह थी कि दीदी की शादी होते ही समीर ने भैया के साथ अपनी दोस्ती काफी सीमित कर ली थी.

समीर के पिता ने आश्वासन दिया कि अच्छी नौकरी में वे भैया की मदद करेंगे, यदि कोई बात नहीं बनी तो राजनीति में तो शामिल कर ही लेंगे. इसी दौरान किसी काम के सिलसिले में भैया को दीदी के घर जाना पड़ा. इस बार समीर भी उन के साथ पाकिस्तान गया. दीदी के ससुराल वाले बड़ी आत्मीयता के साथ समीर से मिले. केवल बाबूजी यानी दीदी के ससुर से समीर की ज्यादा बातचीत नहीं हो सकी क्योंकि वे उस दौरान सरहदी मामलों को ले कर काफी व्यस्त थे और 2 ही दिन बाद भैया व समीर को वापस भारत आना था.

वापस आ कर भैया जब समीर के घर गए तो उस के पिता ने घुसते ही उन से सीधे सवाल पूछा, ‘संजय, क्या तुम बता सकते हो कि तुम्हारी बहन क्या जासूसी करती है?’

उन के मुंह से यह सवाल सुन कर भैया सन्न रह गए. उन्हें सपने में भी इस तरह के सवाल की उम्मीद नहीं थी. अत: वह पूछ बैठे, ‘अंकल, आप के इस तरह सवाल पूछने का मतलब क्या है?’

‘बड़े भोले हो तुम, संजय,’ वह बोले, ‘तुम्हारी बहन की शादी को 2 साल हो गए. अभी तक तुम वास्तविकता से अनजान हो. अरे, उस पाकिस्तानी ने जानबूझ कर तुम्हारी बहन को फंसाया है ताकि पत्नी के सहारे वह भारत की सारी गतिविधियों की खबर लेता रहेगा. यही नहीं उस का ससुर सेना में अधिकारी है. इसलिए उस ने तुम्हारी बहन को अपने घर की बहू बनाना स्वीकार किया ताकि देश के अंदर की जानकारी उसे हो सके.’

‘यह सब बेबुनियाद बातें हैं,’ इतना कह कर भैया घर वापस आ गए. पर जासूस वाली बात उन के दिल में कहीं चुभ गई. भैया ने नोट किया कि दीदी अपने ससुर से काफी हिलीमिली हैं. लगता ही नहीं कि दीदी उन की बहू हैं. वह उन के आफिस भी आतीजाती हैं. बाबूजी भी दीदी से काफी प्यार जताते हैं और जब भी मैं दीदी से मिलने जाता हूं तो मुझ से बात करने का भी उन के पास समय नहीं रहता. शक का छोटा बुलबुला जब कुछ बड़ा हुआ तो भैया दीदी से फोन पर घर के हालचाल से ज्यादा भारत के अंदर की खबरों के बारे में बात करते. दीदी सिर्फ सुनतीं और हां हूं में ही जवाब देतीं तो भैया को लगता कि दीदी पहले जैसी नहीं रहीं, सिर्फ पाकिस्तानी बन कर रह गई हैं.

पिछली बार जब समीर घर आया तो भैया से कहने लगा कि देख संजय, पिताजी की बातों में कुछ तो दम है. जब मैं तेरे साथ दीदी के घर गया था तो शायद तू ने ध्यान नहीं दिया हो, किंतु मैं ने ऐसी कई बातें नोट कीं जोकि मुझे शक करने को मजबूर कर रही थीं. जैसे तेरी दीदी के साथ उन के ससुराल वालों का हमेशा हिंदुस्तानी खबरों पर बात करना. और हमारे देश में भी उतारचढ़ाव होते रहे हैं, उन के बारे में विस्तार से चर्चा करना.

भैया उस की बातें चुपचाप सुनते रहे थे. एक बार भैया ने दीदी को फोन किया व जानबूझ कर अपनी नौकरी व देश के माहौल के बारे में बात करने लगे. थोड़ी देर तक दीदी उन की बातें सुनती रहीं फिर एकाएक भैया की बात काट कर वह बीच में ही बोल पड़ीं, ‘संजय, मैं तुम से रात में बात करती हूं, अभी मुझे कुछ जरूरी काम के सिलसिले में बाहर जाना है.’

अब तो भैया के मन में शक के बीज पनपने लगे. उन्होंने गौर किया कि आमतौर पर दीदी मेरा फोन नहीं काटतीं पर आज जब मैं ने थोड़ी अपने देश के अंदर की कुछ बातें उन्हें बताईं तो मेरा फोन काट कर फौरन अपने बाबूजी को खबर देने चली गईं.

इस दौरान जीजाजी को अमेरिका में नौकरी मिल गई. पतिपत्नी अमेरिका चले गए. वहां पर पाकिस्तानी ग्रुप एसोसिएशन के कारण काफी पाकिस्तानी लोग मिले. इन सब से वहां पर दीदी का मन लगने लगा. पिछली बार फोन कर के जब दीदी ने इस गु्रप के बारे में भैया को बताया तो वह बीच में ही बोल पड़े, ‘तुम कोई इंडियन ग्रुप क्यों नहीं ज्वाइन करतीं? ऐसा तो है नहीं कि अमेरिका में इंडियन नहीं हैं.’

भैया की यह बात सुन कर दीदी बोली थीं, ‘क्या फर्क पड़ता है…मात्र एक दीवार से दिल नहीं बंटते. वैसे भी बाहर आ कर सब एक ही लगते हैं…क्या हिंदुस्तानी क्या पाकिस्तानी.’

अब भैया का शक अंदर ही अंदर साकार रूप लेने लगा. इधर हम सब इन बातों से काफी अनजान थे. भैया परेशान दिखते तो हम सब को यही लगता कि नौकरी को ले कर परेशान हैं. वह जब भी दीदी से बात करते तो दीदी जानबूझ कर चिढ़ाने के लिए पाकिस्तानी ग्रुप की बातें ज्यादा किया करती थीं. पर उन्हें क्या पता कि यही सब बातें एक दिन उन की जान की दुश्मन बन जाएंगी.

समीर व उस के पिता की बातें सुनतेसुनते भैया के अंदर एक कट्टर विचारधारा ने जन्म ले लिया था. दीदी कुछ दिनों के लिए घर आ रही थीं. उन्हें पहले अपनी ससुराल पाकिस्तान जाना था फिर मायके यानी हिंदुस्तान आना था. उन का प्लान कुछ ऐसा बना कि वह पहले मायके आ गईं और एक हफ्ते रह कर अपनी ससुराल चली गईं.

‘देखा संजय, तुम्हारी बहन पहले अपनी ससुराल जाने वाली थी फिर यहां हिंदुस्तान आती पर नहीं, यदि वह ऐसा करती तो यहां की ताजा खबरें कैसे अपने ससुर को दे पाती? वाह, मान गए तुम्हारी बहन को,’ ऐसा कह कर समीर के पिता ने जोर से ठहाका लगाया.

इस घटना के दूसरे ही दिन भैया मां से बोले, ‘मैं दीदी से मिलने पाकिस्तान जा रहा हूं. हो सका तो साथ ले कर आऊंगा.’

‘अभी तो हफ्ते भर रह कर गई है. थोड़ा उसे अपने ससुराल वालों के साथ भी रहने दे. वरना वे क्या सोचेंगे?’ मां बोलीं.

भैया ने मां की बात अनसुनी कर दी. मां को लगा शायद भाईबहन का प्यार उमड़ रहा है.

दीदी के घर पहुंच कर उन के घर वालों से भैया बोले कि घर पर पापा की तबीयत अचानक खराब हो गई है इसलिए कुछ दिनों के लिए दीदी को ले कर जा रहा हूं. जल्दी ही वापस छोड़ जाऊंगा.

जीजाजी तो नहीं आए पर भैया दीदी को ले कर लाहौर से दिल्ली वाली बस पर बैठ गए. बस में ही भैया ने दीदी से उलटेसीधे सवाल करने शुरू कर दिए. दीदी को लगा, यों ही पूछ रहा है पर उन के चेहरे पर गुस्सा व ऊंची होती आवाज से दीदी हैरान रह गईं. फिर भी उन्होंने भैया से यही कहा, ‘इस बस में तो ऐसी बातें मत करो, संजय, और भी पाकिस्तानी बैठे हैं.’

भैया को उस समय किसी की परवा नहीं थी. उन्हें सिर्फ अपने ढेरों सवालों के जवाब चाहिए थे. किसी तरह दीदी, भैया को धीरे बोलने के लिए राजी कर पाईं.

‘सुनो संजय, मुझे अपना घर सब से प्यारा है. भले ही वह पाकिस्तान में क्यों न हो और सब से ज्यादा घर वाले, ससुराल वाले प्यारे हैं,’ इतना कह दीदी चुप हो कर खिड़की से बाहर की ओर देखने लगीं. भैया भी चुपचाप बैठ गए.

लाहौर से निकलने के बाद विश्राम के लिए एक स्थान पर बस रुकी. सभी यात्री नीचे उतर कर सड़क पार करने लगे. भैया व दीदी दूसरे यात्रियों से थोड़ा पीछे थे क्योंकि दोनों का मूड खराब था. वे एकदूसरे से बात भी नहीं कर रहे थे. जैसे ही दीदी व भैया सड़क पार करने लगे कि सामने से दूसरी बस को आती देख वे रुक गए.

सामने से आती बस उन्हें क्रास करने वाली थी कि जाने कहां से भैया के हाथों में हैवानी शक्ति आ गई और पूरे जोर से उन्होंने दीदी को बस के सामने धकेल दिया पर दीदी ने बचाव के लिए भैया की बांह भी जोर से थाम ली, दोनों एकसाथ बीच सड़क पर बस के आगे जा गिरे और दोनों को रौंदती हुई बस आगे चली गई. इस हादसे को देख कर सारे यात्री सन्न रह गए. आननफानन में एंबुलेंस बुलाई गई. दोनों में प्राण अभी बाकी थे.

‘यह क्या किया मेरे भैया, अपनी बहन पर इतना विश्वास नहीं,’ दीदी रोरो कर, अटकअटक कर बोलती रहीं मानो जाने से पहले सारी गलतफहमी दूर कर देना चाहती थीं, ‘यह तुम्हारा ही दिया संस्कार है न मां कि पति का घर ही शादी के बाद अपना घर होता है व उस के घर वाले अपने. बोलो न मां, मेरी क्या गलती है? अरे, मैं तो बाबूजी को खाना देने उन के आफिस जाया करती थी. उन के कोई बेटी नहीं थी इसी से वह मुझे बेटी बना कर रखते थे. वे लोग तो बहुत ही सीधे हैं मेरे भैया. हमेशा मुझे मानसम्मान देते रहे हैं.’

‘मुझे माफ करना, दीदी, मैं लोगों की बातों में न आ कर काश, अपने दिल की सुनता,’ इतना कह कर भैया भी अटकअटक कर रोने लगे.

कुछ ही पल बाद दोनों भाईबहन शांत हो गए. एकसाथ ही इस दुनिया में आए थे और साथ ही चले गए.

मांपापा को तो जैसे होश ही नहीं रहा. उन की आंखों के सामने ही उन की 2 संतानों ने अपनी जान गंवा दी, महज एक गलतफहमी के कारण. मैं पागलों की भांति कभी मां को देखती, कभी पापा को चुप कराती. एक ही पल में सबकुछ बिखर गया.

दूसरे दिन समाचार की सुर्खियों में छाया रहा, ‘देश की भूतपूर्व खिलाड़ी की उस के भाई के साथ बस दुर्घटना में दर्दनाक मौत.’

तब से समीर हमारे घर नहीं आया. आता भी क्यों, उस की मनोकामना जो पूरी हो चुकी थी. उजड़ा तो हमारा घर था.

घड़ी ने 10 बजने का अलार्म दिया, मेरी तंद्रा भंग हुई. अभी तक मम्मीपापा ने खाना नहीं खाया है. उन्होंने अपने को बंद कमरे में समेट लिया है. वहीं उन की सुबह होती है, वहीं रात होती है. उन्हें अपनी परवा नहीं है किंतु मुझे तो है. आखिर, मेरे अलावा उन्हें देखने वाला और कौन है?

‘अनुपमा’ के सेट पर हुई नये समर की एंट्री, देखें Photos

स्टार प्लस का सीरियल ‘अनुपमा’ में इन दिनों लगातार ट्विस्ट दिखाया जा रहा है. कुछ दिन पहले ही खबर आई थी कि शो से पारस कलनावत यानी समर शाह की छुट्टी हो गई है.  जिससे फैंस कॉफी नाराज थे. अब खबर आ रही है कि शो के मेकर्स ने नये समर की तलाश कर ली है.

‘अनुपमा’ का नया समर शाह टीवी एक्टर सागर पारेख हैं. एक्टर ने समर शाह बनकर शो की शूटिंग भी शुरू कर दी है. उन्होंने सेट पर पहुंचने के बाद एक्टर गौरव खन्ना संग फोटोज क्लिक कराईं. सागर पारेख ने सोशल मीडिया हैंडल पर शेयर किया है.

 

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सागर पारेख ने इन फोटोज को शेयर करते हुए कैप्शन में लिखा, मुस्कान… सागर पारेख ने इंस्टाग्राम स्टोरी पर भी कुछ तस्वीरें साझा की थीं, जो कॉफी तेजी से वायरल हो गई थीं.

 

सागर पारेख ने इन फोटोज को  शेयर करते हुए लिखा था, नया सफर शुरू हो गया है और यह बड़ा है.  एक इंटरव्यू के अनुसार, सागर ने बताया कि पारस के फैंस उनसे नाराज थे और वे लगातार उन्हें ट्रोल भी कर रहे थे. पारस के फैंस का कहना था कि समर का किरदार केवल पारस के लिए ही है.

 

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Anupamaa फेम रूपाली गांगुली अगले साल बनेंगी मां? पढ़ें खबर

अनुपमा की लीड एक्ट्रेस रूपाली गांगुली सोशल मीडिया पर कॉफी एक्टिव रहती है. वह आए दिन सोशल मीडिया पर अपनी फोटोज और वीडियोज शेयर करती रहती हैं.

हाल ही में रूपाली गांगुली का नया वीडियो सामने आया है जो सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहा है. जिसमें कॉमेडियन भारती सिंह भी नजर आ रही हैं. वीडियो में भारती मस्ती भरे अंदाज में कहते हुए नजर आ रही है कि रूपाली गांगुली अगले साल मां बनने वाली हैं. आइए बताते हैं क्या है पूरा मामला…

 

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दरअसल रूपाली और भारती ने यह वीडियो स्टार प्लस के पॉपुलर वीकेंड शो रविवार विद स्टार परिवार के सेट पर बनाया है. वीडियो में रूपाली गांगुली और भारती सिंह की मस्ती देखते ही बन रही है. वीडियो में भारती सिंह मस्ती भरे अंदाज में कहते हुए नजर आ रही हैं कि रूपाली अगले साल मां बनने वाली हैं.

 

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रूपाली गांगुली इस वीडियो को इंस्टाग्राम पर शेयर करते हुए कैप्शन में लिखा है, ‘बस यूं ही मम्मियों की बातें…भारती तुम बहुत ही क्यूट हो और काफी इंस्पायरिंग भी. जिस तरह से तुम काम और बच्चे को मैनेज कर रही हो…तुम्हे सलाम… अगले साल लक्ष्य के भाई/बहन का इंतजार रहेगा.’

 

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Senco Teej Special: तीज के मौके पर पत्नी को दें ये खास गिफ्ट

पति पत्नी के रिश्तों में त्योहार सबसे बड़ा महत्व रखता है. इन्ही त्योहार में से एक तीज का त्योहार है, जिसे बड़े धूमधाम से सेलिब्रेट किया जाता है. इस त्योहार में महिलाएं सोलह श्रृंगार करती हैं और अपने पति के लिए व्रत रखती है. लेकिन क्या पति को भी अपनी पत्नियों को तोहफा देकर शुक्रिया अदा नहीं करना चाहिए. इसीलिए सेन्को लाया है तीज के मौके पर लेटेस्ट गोल्ड एंड डायमंड्स सेट का कलेक्शन, जिसे आप गिफ्ट करके अपनी खूबसूरत पत्नी का दिल जीत सकते हैं.

सेन्को के इस खास कलेक्शन में आपको मिलेंगे एक से बढ़कर एक गोल्ड एंड डायमंड के हैवी नेकलेस, ईयरिंग और झुमके, कंगन, रिंग्स और बहुत कुछ…

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सेन्को तीज स्पेशल कॉन्टेस्ट…

आपकी तीज को डबल स्पेशल बनाने के लिए इस बार सेन्को लाया है एक खास मौका, जहां आपको मिल सकते हैं सेन्को की तरफ से खूबसूरत तोहफे, बस आपको लेना होगा सेन्को तीज स्पेशल कॉन्टेस्ट में हिस्सा और देनें होंगे कुछ सवालों के सही जवाब…

सही जवाब देनें वाले चुनिंदा यूजर्स को मिलेगा एक स्पेशल सरप्राइज तो फिर देर किस बात की, नीचे दिए बैनर पर क्लिक कीजिए और बनिए इस कॉन्टेस्ट का हिस्सा और शानदार ईनाम के साथ अपनी तीज को बनाएं यादगार…

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किसकी लड़ाई: नानी की बात सुनकर सब क्यों रो पड़े?

‘‘राजीव का अहमदाबाद से फोन आया है…’’

सेवानिवृत्त विंग कमांडर यशपाल ने किताब पर से नजर हटाए बिना बात काटी, ‘‘तुम्हारा मतलब है संजीव का?’’

‘‘जी नहीं, मेरा मतलब है हमारे बेटे कैप्टन राजीव पाल का,’’ लतिका ने चिढ़े स्वर में कहा.

‘‘हमारा बेटा वैलिंगटन से अहमदाबाद कैसे चला गया?’’

‘‘अगर तुम गोल्फ खेलने और उपन्यास पढ़ने के बजाय टीवी, समाचारपत्र और पत्रिकाओं में रुचि लो तो तुम्हें पता चले कि दुनिया में क्या हो रहा है और तुम्हारा बेटा अहमदाबाद कब और क्यों गया है?’’

‘‘जानेमन, दुनिया में जो हो रहा है उसे जानने के बाद दुनिया छोड़ने को मन करता है, सो इसलिए…’’

‘‘तुम अब सिवा मनोरंजन के और किसी चीज में रुचि नहीं लेते हो. अच्छा सुनो, राजीव ने कहा है कि…’’

‘‘पहले यह बताओ, जब अहमदाबाद में इतनी गड़बड़ चल रही है तो राजीव वहां क्यों गया है?’’

‘‘क्योंकि उसी गड़बड़ यानी सांप्रदायिक दंगों से निबटने के लिए सेना बुलाई गई है, सो सेनाधिकारी होने के नाते हमारा बेटा भी गया है.’’

यशपाल को जैसे किसी ने करंट छुआ दिया, तेज स्वर में बोल उठे, ‘‘अब पुलिस का काम भी सेना करेगी? मैं ने अपने बेटे को देश की सीमा का प्रहरी बनने सेना में भेजा था, सिरफिरे लोगों की आपसी रंजिशों से होने वाले दंगेफसाद रोकने के लिए नहीं.’’

लतिका  झुं झला गई, ‘‘राजीव ने क्यों फोन किया था, पहले वह तो सुन लो.’’

‘‘सुनाओ, यशपाल के स्वर में भी उतनी ही  झुं झलाहट थी.’’

‘‘पुष्पा बहनजी, प्रेम जीजाजी और संजीव को राजीव कल सुबह के जहाज से यहां भेज रहा है. उस का कहना है कि जब तक अहमदाबाद में हालात सामान्य न हो जाएं यानी दुकानें न खुलने लगें तब तक हम जीजाजी और संजीव को यहीं रखें.’’

‘‘ठीक कहता है, अब कैसे भी सही, जब फुरसत मिली है तो हमारे साथ गुजारें,’’ फिर कुछ क्षण रुक कर उन्होंने कहा, ‘‘मां को बताया?’’

‘‘मांजी अभी सैर कर के नहीं लौटीं.’’

‘‘उम्र के साथसाथ मां की सैर भी लंबी होने लगी है.’’

‘‘सैर तो ज्यादा नहीं करतीं मगर पार्क में बच्चों के साथ अंताक्षरी जरूर खेलती हैं,’’ लतिका हंसी, ‘‘फिल्मी गानों की नहीं, भौगोलिक या ऐतिहासिक जगहों अथवा किसी क्षेत्र के जानेमाने लोगों के नामों की. इस से बच्चों का सामान्य ज्ञान भी बढ़ता है और मां का समय भी गुजर जाता है.’’

‘‘मानना पड़ेगा, मां हैं जीवट वाली.’’

‘‘अगर जीवट वाली न होतीं तो अकेले आप सब भाईबहनों को पढ़ालिखा कर उच्चाधिकारी कैसे बनातीं?’’ कह कर लतिका तो बाहर चली गई लेकिन यश को उस का संघर्षों से भरा बचपन याद करवा गई.

मीरपुर, जम्मू के पास छोटा सा शहर था. जहां उस के पिता वकालत करते थे. मां स्कूल में पढ़ाती थीं. सुखीसमृद्ध परिवार था कि एक रोज पाकिस्तानी कबायलियों के हमले ने समूचा मीरपुर ही तहसनहस कर डाला. उस के पिता की कबायलियों ने बेहरमी से हत्या कर दी. मां किसी तरह अपने बच्चों और बूढ़ी सास को ले कर जम्मू पहुंची थीं. मां को स्कूल में नौकरी मिलने के बाद शरणार्थी शिविर छोड़ कर वे सब घुटनभरे एक कमरे में घर में आ गए थे और शुरू हुई थी एक अभावग्रस्त लेकिन प्रेरणाओं से भरी जिंदगी.

दादी रातदिन पोते को जीवन में फिर उसी मुकाम पर पहुंचने को कहती थीं जो उसे विरासत में तो मिला था पर उस से जबरन छिन गया था और मां का सपना था कि वह सेनाधिकारी बन कर देश के मानसम्मान की रक्षा करे.

मां ने अपनी अल्प आय में बेटियों को पढ़ायालिखाया था और फिर दोनों की शादी कर दी थी. यश के पायलट बनने के बाद अभावों की जिंदगी तो पीछे छूट गई थी पर मां ने अपनी कर्मठता नहीं छोड़ी थी.

अगली सुबह पुष्पा पति और बेटे के साथ आ गई. सभी बेहद दुखी और बु झेबु झे से लग रहे थे.

‘‘अच्छा किया राजीव ने हमें जबरदस्ती यहां भेज दिया. वरना वहां तो चारों तरफ नृशंसता और क्रूरता का नंगा नाच देखदेख कर हम पागल हो जाते,’’ संजीव बोला.

‘‘बस, देख कर ही? अरे, हम तो  झेल कर भी न पागल हुए, न मरे,’’ नानी नाती की ओर देख कर मुसकराई.

‘‘आप जैसा धैर्य हम में कहां है, मांजी,’’ प्रेम ने कहा, ‘‘आप ने तो राख से नवनिर्माण किया था, मगर हमारे लिए तो किसी ने राख भी नहीं छोड़ी.’’

‘‘क्या मतलब? आप लोगों को भी लूटपाट से नुकसान उठाना पड़ा?’’

संजीव और प्रेम एक गहरी सांस ले कर रह गए लेकिन पुष्पा विह्वल स्वर में बोली, ‘‘लूटपाट तो खैर नहीं हुई लेकिन दुकान लगभग 2 महीने से बंद पड़ी है, वह नुकसान तो हो ही रहा है और फिर समाज के जिस वर्ग के पास शौक के लिए और खाड़ी देशों का पैसा था हमारा सामान खरीदने को, वह तो तबाह हो गया. अब बाजार खुल भी जाएं तो भी ग्राहक नहीं आने के.’’

‘‘अपनी जाति की साख या भरोसा सब खलास हो गया, मां,’’ प्रेम ने कहा.

‘‘नानी को बताओ न कि मेरी दुनिया बसने से पहले ही कैसे उजड़ गई,’’ संजीव ने व्यथित स्वर में कहा.

सब ने हैरानी से संजीव की ओर देखा.

‘‘हमारे एक पड़ोसी थे, नासिर भाई…’’

‘‘थे का क्या मतलब?’’ लतिका ने चौंक कर पूछा, ‘‘कहां गए वे लोग?’’ तो संजीव ने आंसूभरी आंखों से आसमान की ओर उंगली उठा दी.

‘‘उन की बेटी शबाना तो आप ने देखी ही थी, भाभी…’’

‘‘देखी क्या? आप से ज्यादा वह मेरे साथ रही थी अहमदाबाद में.’’ शबाना और संजीव ने ही तो मु झे घुमायाफिराया था,’’ लतिका ने कहा, ‘‘बहुत ही प्यारी बच्ची है.’’

‘‘है नहीं, थी, मामी. शिकार हो गई वहशीपन और सियासत की,’’ संजीव ने भर्राए स्वर में कहा.

‘‘जैसा आप ने अभी कहा, भाभी, शबाना बहुत ही प्यारी बच्ची थी, सो संजीव का उस से लगाव देख कर हम ने दोनों की शादी करने का फैसला किया था. शबाना की एमए की परीक्षा के बाद सगाई और शादी की तारीख तय होनी थी लेकिन उस से पहले ही एक रात उन के बंगले में आग लगा कर वहशियों ने उन के पूरे कुनबे को जिंदा जला डाला.’’

‘‘मगर जीजाजी, उन का बंगला तो आप के बिलकुल सामने था. आप को आग की लपटें नजर नहीं आईं, क्या आप ने आग बु झाने या उन लोगों को बचाने की कोशिश नहीं की?’’ यश ने पूछा.

‘‘हम ने फायर ब्रिगेड और पुलिस को एक बार नहीं, कई बार फोन किए. शिकायत दर्ज करने के बावजूद कोई नहीं आया. खुद जा कर बचाना तो नामुमकिन था. न जाने दरिंदों को इतना पैट्रोल या मिट्टी का तेल कहां से मिला था कि उन्होंने कोठी ही नहीं, बगीचे और पूरी चारदीवारी को भी आग लगा दी थी. सिवा आग की लपटों के कुछ दिखाई ही नहीं देता था,’’ प्रेम ने बताया.

‘‘अगर फायर ब्रिगेड वाले आ भी जाते तो कुछ कर नहीं सकते थे. आग लगा कर असामाजिक तत्त्व वहीं सड़क पर खड़े हो कर चिल्ला रहे थे, ‘हम से जो टकराएगा चूरचूर हो जाएगा.’ मैं पूछती हूं, चूरचूर करना था तो टकराने वालों को करते, नासिर भाई जैसे भले आदमी के संभ्रांत परिवार को क्यों?’’ पुष्पा के स्वर में रोषमिश्रित व्यथा थी, ‘‘या हुसैन भाई को क्यों, जिन के होटल के अधिकांश कर्मचारी राजस्थानी थे?’’

‘‘हुसैन भाई, वही न जिन की बीवी अपने होटल में बचा हुआ खाना रोज रात को गरीबों में बांटती थी?’’ लतिका ने पूछा.

‘‘हां, भाभी, जिन्हें वह खाना बांटती थी उन्हीं लोगों ने बेरहमी से चाकू गोदगोद कर हुसैन भाई को जख्मी किया और फिर उन के होटल में आग लगा कर उन्हें उसी में  झोंक दिया. रोज गरीबों को खाना बांटने वाली उन की बीवी खुद दानेदाने को मुहताज हो गई है.’’

अब तक चुप बैठे संजीव ने नानी की ओर देखा, ‘‘है कि नहीं यह सब पागल कर देने वाली बर्बरता?’’

‘‘बर्बरता या जनून खुद में ही एक पागलपन है, बेटा जिसे चाह कर भी तुम कभी भूल नहीं सकते.’’

लतिका ने हैरानी से सास की ओर देखा, ‘‘तो क्या आप को अभी भी मीरपुर में जो हुआ वह याद है, मां?’’

‘‘बिलकुल, जैसे कल की ही बात हो. उस सब को पीछे छोड़ने को ही तो मैं हर समय कुछ न कुछ करती रहती हूं.’’

लतिका चौंक पड़ी. सोचने लगी तो यह वजह थी मां के आराम के नाम से घबराने की. वह हमेशा खुद को व्यस्त रखती थी. तभी मांजी और उमर सैर से लौट आए.

‘‘मीरपुर में ऐसा क्या हुआ था नानी, मु झे भी बताओ न,’’ संजीव बोला.

‘‘हां, मां, जब आप वह सब भूली ही नहीं हैं तो मैं भी जानना चाहूंगी कि पापा और बूआजी की हत्या अचानक क्यों और कैसे हुई थी?’’ लतिका ने कहा.

‘‘अचानक तो नहीं कह सकते पर हां, सीमावर्ती इलाका होने की वजह से वहां लूटपाट का खतरा तो बना ही रहता था. छोटीमोटी वारदातें भी होती ही रहती थीं, लेकिन उस रात तो सैकड़ों की तादाद में कबायलियों ने हमला किया था. मारकाट से ज्यादा उन की दिलचस्पी औरतों में थी. अपने घर के पास शोर सुन कर तुम्हारे पापा ने हम सब को परछत्ती पर छिपा दिया और खुद यह कह कर नीचे उतर गए थे कि अपनी पिस्तौल ले कर आता हूं, लेकिन जब वे कुछ देर तक पुकारने पर भी नहीं आए तो तुम्हारी बूआजी उन्हें बुलाने चली गईं.

तभी दरवाजा तोड़ कर हमलावर घर में घुस आए. तुम्हारी बूआजी बहुत सुंदर थीं और सगाई के बाद तो उन का रूप और भी निखर आया था.

‘‘हमारे घर पर हमला करने वाले कबायली तो उन्हें देखते ही पागल हो गए और उन पर लपके. तुम्हारे पापा ने पिस्तौल तान कर हमलावरों को ललकारा मगर इस से पहले कि वे गोली चला पाते, एक पठान ने लपक कर उन से पिस्तौल छीन ली और उन्हें बूट से ठोकरें मारमार कर गिरा दिया. फिर उन्हीं की पिस्तौल से उन्हें गोलियों से भून डाला. तभी किसी तरह दूसरे दरिंदों की गिरफ्त से छूट कर तुम्हारी बूआ अपने भाई के शरीर पर गिर कर रोने लगीं. 2 मुस्टंडों ने उन्हें पकड़ कर सीधा कर के तुम्हारे पापा के शरीर पर लिटा दिया. एक ने वहीं सब के सामने उन के साथ बलात्कार किया और दूसरों को बताया कि यार, इस मोटे की लाश तो गद्दे का काम कर रही है, मजा आ गया. बस, फिर क्या था, फिर तो एक के बाद एक सभी ने अपना मुंह काला किया.

‘‘फिर घर में से जो भी ले कर जा सकते थे, उसे समेटा. तुम्हारी बूआ बेहोश हो चुकी थीं, सो उन्हें एक ने कंधे पर डाल लिया और फिर तुम्हारे पापा की लाश को यह कह कर घसीटते हुए ले गए कि इस गद्दे को भी ले चलो, दोबारा काम आएगा.

‘‘अब तुम लोग खुद ही सोच लो, क्या गुजरी होगी तुम्हारी दादी पर, जिस ने अपनी आंखों से अपने बेटे का कत्ल होते और कुंआरी बेटी की इज्जत लुटते हुए देखी या मु झ पर, जिस ने अपने पति को तड़पतड़प कर दम तोड़ते और फिर उन की लाश को घसीटते हुए ले जाते देखा.

‘‘फिर भी तुम्हारी दादी की जिद थी कि हमें कैसे भी अपने कुल का नाम चलाना है. खानदान के चिराग यश को पढ़ालिखा कर बड़ा आदमी बनाना है, सो, हम सेवा समिति के लोगों के साथ जम्मू के शरणार्थी शिविर में आ गए. मु झे बच्चों के साथ शिविर में छोड़ कर तुम्हारी दादी ने शिविर की एक समाजसेविका के घर का काम करना शुरू कर दिया ताकि हाथखर्च को कुछ पैसा मिल जाए.’’

‘‘एक रोज जब वे अपनी मालकिन के साथ सब्जी मंडी गई थीं तो मीरपुर में हमारे घर में बरतन मांजने वाला कहार छज्जू उन्हें मिल गया. छज्जू से यह सुन कर कि मांजी का बेटा वकील था और बहू मास्टरनी, उस समाजसेविका ने मु झे स्कूल में नौकरी दिलवा दी. मांजी को भी घर में अन्य नौकरों पर नजर रखने और बच्चों की देखभाल करने पर लगा दिया. कुछ उन की सहायता से, कुछ अपनी मेहनत से जिंदगी किसी तरह आज के मुकाम तक पहुंच ही गई.’’

लतिका और संजीव तो यह कहानी सुन कर जैसे सहम गए. अन्य सब भी जैसे कहीं गहरे तक हिल गए थे. लेकिन यश फूटफूट कर रो रहा था. कुछ देर पुष्पा ने उसे चुपचाप रोने दिया, फिर चिढ़े स्वर में बोली, ‘‘यह कहानी तू दादी से पच्चीसों बार सुन चुका है और आज तो मां ने पापा या बूआ का आर्तनाद या छज्जू का विलाप नहीं दोहराया है, जिसे सुन कर तू पहले तो कभी नहीं रोया था, फिर आज क्यों रो रहा है?’’

‘‘आज इसलिए रो रहा हूं पुष्पा बहन कि 50-55 साल पहले जो बर्बरता हुई थी, उस की कोई वजह थी. पाकिस्तान को और जमीन की हवस थी. कबायलियों को, ध्यान बंटाने के लिए, उस ने जम्मूकश्मीर में लूटपाट करने को भेज दिया था. वे हमें अपना दुश्मन सम झने वाले अनपढ़, वहशी, हैवान थे,’’ यश ने संयत होने के बाद कहा, ‘‘मगर जो कुछ प्रेम ने बताया है उन हृदयविदारक, शर्मनाक हरकतों को करने वालों को न तो जमीन चाहिए, न ही उन का ध्यान बंटाने की जरूरत है और न ही वे अनपढ़, जाहिल, वहशी दरिंदे हैं. मरने वाले और मारने वाले सभी तो अपने भाईबंद हैं. फिर यह सब अमानवीय हरकतें क्यों हो रही हैं? यह किस की लड़ाई है?’’ कहतेकहते यश फिर रो पड़ा.

यश के प्रश्न को कोई न तो  झुठला सकता था, न उस का उत्तर दे सकता था और न ही उस के आंसू पोंछ सकता था.

कैसे अधिकार कैसे कर्तव्य

आजकल हमारे शासक संविधान के दिए गए अधिकारों की बात करते हुए उत्तरदायित्व और कर्त्तव्यों की बात भी करने लगते हैं. 1945 से 1950 के बीच जो संविधान तैयार किया गया वह इस आधार पर किया गया कि देश के शासक नेता वे ही लोग होंगे जो देश की जनता की सेवा करने के लिए चुनावी राजनीति से चुने जाएंगे पर हुआ कुछ और ही.

संविधान के बनने के तुरंत बाद उन्हीं लोगों, जिन में संविधान में अधिकार दिए थे, को कुरसियां मिलने पर जनता को मिले वे अधिकार अखरने लगे.

संविधान में बारबार संशोधन किए गए और हर संशोधन में कोई न कोई अधिकार छीना गया लेकिन फिर भी अभी भी इतने अधिकार आमजन के पास हैं कि देश के गृहमंत्री अमित शाह जैसे को भी याद दिलाना पड़ रहा है कि संवैधानिक अधिकारों के साथ संवैधानिक कर्तव्य भी पूरे संविधान और संविधान के अंतर्गत बने कानूनों में बिखरे हैं.

उन्होंने अपने भाषण में शासकों के कर्तव्यों की बात नहीं की, शासकों की जवाबदेही की बात नहीं की. यही नहीं, गलत निर्णय लेने पर शासकों को दंड मिलने की बात भी उन्होंने नहीं की क्योंकि 1947 के बाद से ही संवैधानिक अधिकार छीनने की जो आदत पड़ी है वही नरेंद्र मोदी की मौजूदा सरकार भी कर रही है.

जनता को जो संवैधानिक अधिकार दिए गए हैं, वे उस को सरकार से कुछ दिलाते नहीं हैं, वे सरकार को जनता के प्रति कुछ बुरा करने से रोकते मात्र हैं.

संविधान के तहत जनता के पास न रोजीरोटी, न चिकित्सा, न शिक्षा, न मनोरंजन, न सम्मान का जीवन, न साफ शहरों में रहने, न अपराधरहित जीवन जीने का हक है. संविधान तो सिर्फ सरकार को जनता से ये सब चीजें, जो जनता खुद जुटा रही है, छीनने से रोकता है वह भी आधाअधूरा. हर संवैधानिक अधिकार को पाने के लिए नागरिक को वर्षों सड़कों पर, विधानमंडलों में, अदालतों में, अखबारों में, टीवी में, लड़ाई लड़नी पड़ती है.

हाल यह है कि सरकार एक लाइन का आदेश पारित कर के जनता की सारी जमापूंजी रातोंरात नष्ट कर दे और गृहमंत्री जनता को कर्तव्यों की याद दिलाए? सरकार मनचाही कमेटी बना कर न्यू एजुकेशन पौलिसी के नाम पर शिक्षा का ढांचा बदल दे और छात्रों व अध्यापकों को कर्तव्यों की याद दिलाए.

अधिकारों और कर्तव्यों का यह कैसा खेल है? असल में जनता तो कठपुतली है, जो सरकारी इशारे पर नाच रही है. जनता को खुश करने के लिए संविधान में अधिकार बताए गए हैं जो असल में खोखले हो चुके हैं.

Rakhi 2022: त्यौहार पर बनाएं पनीर के कोफ्ते

कोफ्ते के स्वाद तो लजीज होते ही होते है पर पनीर के कोफ्ते की स्वाद की बात ही कुछ और है तो आइए आज इसकी रेसीपी बताते है. तो इस भाई-बहन के त्यौहार पर ये स्पेशल डिश जरूर बनाएं.

सामग्री

– थोड़ा सा पनीर कसा हुआ

– 2 बड़े चम्मच कौर्नफ्लौर

– 1 हरीमिर्च कटी

– 1/2 कप लाल पीली व हरी शिमलामिर्च कटी हुई

– 1 प्याज कटा

– 1 बड़ा चम्मच पनीर चिली मसाला

– 1/2 कप पानी

– 1 बड़ा चम्मच तेल तलने के लिए

– नमक (स्वादानुसार)

बनाने की विधि

– पनीर में नमक व कौर्नफ्लौर डाल कर छोटीछोटी बौल्स बना कर गरम तेल में सुनहरा होने तक तल लें.

– कड़ाही में तेल गरम कर प्याज, लाल, पीली व हरी शिमलामिर्च भूनें.

– इस में हरीमिर्च, पनीर, चिली मसाला व 1/2 कप पानी डाल पकने दें.

– गाढ़ा होने पर पनीर के कोफ्ते डाल कर

– 1 मिनट पकाएं और गरमगरम परोसें.

भगोड़ी: सलिल ने माता-पिता के खिलाफ जाकर क्यों शादी की?

सालों बाद वह उस शहर में आई थी. उस का अपना शहर, जिस की गलियां, सड़कें और बाजार उसे उंगलियों पर याद थे. उस दिन बाजार में अचानक बगल वाले अमित अंकल मिल गए थे. औफिस के काम से इस शहर में आए थे. दुनिया सचमुच गोल है, सलिल और लता यही सोच कर इस बड़े शहर में आए थे कि उन्हें यहां कोई नहीं पहचानता. इन बड़ेबड़े शहरों की बड़ीबड़ी इमारतों में एक पड़ोसी दूसरे पड़ोसी को नहीं जानता. उन के लिए अच्छा ही तो है कोई यह जानने की कोशिश नहीं करेगा कि वे कहां से आए हैं पर चाहने और सोचने में हमेशा फर्क होता है.

उस दिन बाजार में अचानक अमित अंकल से मुलाकात हो गई थी. उन की बेटी रोहिणी उसी की उम्र की थी. स्कूल से ले कर कालेज तक का साथ था उन का. अच्छे पड़ोसी थे वे. एकदूसरे के सुखदुख में हमेशा खड़े होने वाले. उन्होंने ही यह दुखद खबर दी थी कि बाबूजी नहीं रहे. उसे विश्वास नहीं हो रहा था बाबूजी उस से बिना मिले, बिना कुछ कहे, बिना कोसे इस दुनिया से कैसे जा सकते थे पर उस ने भी तो उन्हें इस बात का मौका ही कहां दिया था. वह तो चली आई थी सलिल के साथ अपनी नई दुनिया को बसाने के लिए. जानती थी बाबूजी इस रिश्ते के लिए कभी तैयार नहीं होंगे पर सलिल का प्रेम उस के सिर चढ़ कर बोल रहा था.

बचपन में सूई लगवाने पर घंटों रोने वाली लता इतनी कठोर हो सकती है, उस ने खुद भी न सोचा था. मां के जाने के बाद बाबूजी ने ही तो उसे और उस के भाईबहन को मां और बाप दोनों बन कर पाला था. सब ने कितना कहा था, ‘अभी उम्र ही क्या है तुम्हारी, दूसरी शादी कर लो,’ पर बाबूजी ने लता के सिर पर हाथ रख कर कहा था, ‘मैं अपने बच्चों के लिए सौतेली मां नहीं लाना चाहता. अब ये ही मेरी दुनिया हैं, मैं इन्हें देख कर ही जी लूंगा.’

जिन बाबूजी ने बच्चों का मुंह देख कर अपनी जिंदगी उन पर कुरबान कर दी, उस ने उन के बारे में एक बार भी नहीं सोचा. लता उन की सब से बड़ी संतान थी, नाजों से पाला था बाबूजी ने. बचपन में खाना खाते वक्त वह कितना तंग करती थी.

‘बाबूजी, मां कहां चली गईं?’

‘तेरी मां तारा बन कर आसमान में रह रही है और तू ने खाना नहीं खाया न, तो वह कभी लौट कर नहीं आएगी.’

और वह डर के मारे फटाफट सारा खाना खत्म कर देती. वे जानते थे मां अब कभी लौट कर नहीं आएगी. लेकिन बाबूजी ने मां की कमी कभी नहीं होने दी. लता इतनी एहसानफरामोश कैसे हो सकती थी? लता ने जवानी की दहलीज पर कदम रखा ही था कि एक नजर में उसे सलिल से प्यार हो गया था. रातदिन उसी के सपनों में खोई रहती. उस ने बाबूजी के प्रेम और त्याग को पलभर में भुला दिया. सलिल दूसरी जाति का लड़का था. जानती थी कि बाबूजी

उसे कभी भी शादी करने की अनुमति

नहीं देंगे.

ऐसी स्थिति में उस के पास सिर्फ एक ही रास्ता था भाग जाना. उस दिन से ले कर आज तक वह भाग ही तो रही थी. कभी अपने अतीत से, कभी अपनी यादों से तो कभी अनदेखे आरोपों से. लकड़ी का दरवाजा उसे अपिरिचितों की तरह देख रहा था. मां के हाथों से लगाया हुआ तुलसी का चौरा अपनी जीवनदायिनी के जाने से सूखने लगा था पर बाबूजी के प्रेम और अपनत्व से वह फिर से लहलहा उठा था.

मां तो उन की जिंदगी से जा चुकी थीं पर उन की इस अंतिम निशानी को वे अपने से दूर नहीं होने देना चाहते थे. आज उस चौरे को देख कर मां के साथसाथ बाबूजी की छवि भी साथ ही उभर आई थी. कहते हैं, एक लंबा समय साथ गुजारने के बाद पतिपत्नी एकजैसे दिखने लगते हैं. बाबूजी कुछकुछ मां की तरह लगने लगे थे.

गेट खुलने की आवाज को सुन कर लता की छोटी बहन नंदिनी दरवाजे तक आ गई. लता को देख कर वह ठिठक गई. उसे अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था.

‘‘दीदी, तुम यहां? क्या करने आई हो? अब तो बाबूजी भी नहीं रहे.’’

‘‘मु झे पता है बाबूजी अब…’’ शब्द उस के गले में अटक कर रह गए.

‘‘सारी बातें यहीं कर लोगी नंदिनी, अंदर नहीं बुलाओगी?’’

अपने ही घर में अंदर आने के लिए अनुमति लेनी पड़ेगी, लता ने कभी सोचा नहीं था. नंदिनी दरवाजे के सामने से हट गई. लता की आंखें तेजी से कुछ ढूंढ़ रही थीं.

‘‘विपुल नहीं दिख रहा है?’’

‘‘कालेज गया है.’’

‘‘कालेज?’’

हाफ पैंट पहन कर दिनभर इधर से उधर डोलने वाला विपुल, बातबात पर नंदिनी से लड़ने वाला विपुल इतना बड़ा हो गया, लता ने गहरी सांस ली. अच्छा ही था, भाई छोटा हो या बड़ा, भाई तो भाई ही होता है. पता नहीं उसे देख कर वह कैसे व्यवहार करता. लता जब घर से भागी थी तब वह बहुत छोटा था. तब उसे यह बात सम झ में नहीं आती थी लेकिन वक्त के साथ लोगों ने उस की बहन के कृत्यों से परिचित करा दिया था. बड़ी बहन के लिए नफरत दिलोदिमाग पर बस चुकी थी.

चिलचिलाती धूप में चल कर आने से उस का गला सूख रहा था. कमरे में सन्नाटा पसरा हुआ था. पंखे की आवाज के अलावा कोई आवाज नहीं आ रही थी. लता को बैठेबैठे काफी देर हो चुकी थी.

‘‘क्या एक गिलास पानी मिलेगा?’’

जिस घर में रिकशे वाले और मजदूरों को भी पानी और गुड़ दिए बिना जाने नहीं दिया जाता था, उस घर में पानी के लिए भी आग्रह करना पड़ा था. नंदिनी रसोई से पानी ले आई. लता अपने ही घर में मेहमानों की तरह बैठी थी. पंखे की तेज हवा से परदे उड़ रहे थे. लता का बहुत मन हो रहा था कि परदे के पीछे की वह दुनिया एक बार  झांक ले.  झांक ले उस बचपन को जो इस घर के आंगन में बिताया था.  झांक ले उस कमरे को जहां बाबूजी की गोदी में लेट कर वह घंटों उन से बातें करती थी. छू ले उस कुरसी को जिस पर बैठ कर बाबूजी घंटों अखबार पढ़ते थे. छू ले उस तकिए को जिस पर लेट कर न जाने कितनी ही रातें बाबूजी मां को याद कर अपनी आंखें और तकिया भिगो लिया करते थे. कितनी सारी यादें जुड़ी हुई थीं इस घर से पर वे यादें हाथ छुड़ा कर न जाने किस बियाबान जंगल में छिप गई थीं.

चाहती तो वह बहुत थी पर न जाने हिम्मत नहीं हुई. बाबूजी की तसवीर बैठक में लगी थी. उस तसवीर की ओर देखने की हिम्मत नहीं हो रही थी. जानती थी कि पिता के चेहरे पर फैली नाराजगी की तहरीर को पढ़ना इतना आसान न होगा पर ऐसी नाराजगी होगी, कभी सोचा भी न था.

अपनी लाड़ली की जीतेजी शक्ल भी न देखी बाबूजी ने. बाबूजी की आंखें तसवीर से  झांक रही थीं. कितना सोच कर आई थी कि जब भी मिलेगी, जीभर कर देखेगी पर उन्होंने तो वह मौका न दिया. लकड़ी के फ्रेम में वे मुसकरा रहे थे. इन 5 सालों में अचानक से कितने बूढ़े लगने लगे थे वे. ऐसा लगा मानो वे कह रहे हों, ‘यहां क्या करने आई है तू, जा तेरे लिए इस घर के दरवाजे हमेशा के लिए बंद हो चुके हैं.’

और फिर उन के खांसने की आवाज कमरे में भर गई. जैसा हमेशा होता था. बाबूजी जब बहुत गुस्से में होते तब उन्हें खांसी आने लगती. क्या आज भी ऐसा ही होता?

‘‘कैसी है तू?’’

‘‘ठीक हूं,’’ नंदिनी ने रूखा जवाब दिया.

‘‘विपुल कैसा है?’’

‘‘वह भी ठीक है.’’

‘‘तेरी शादी नहीं हुई?’’

‘‘शादी…’’

नंदिनी ने उसे ऊपर से नीचे तक कुछ ऐसी निगाहों से देखा मानो वह उसे खड़ेखड़े भस्म कर देगी.

‘‘दीदी, तुम ने अपना घर बसाया इस घर को उजाड़ कर. तुम ने सपने देखे इस घर के सपनों को तोड़ कर, तुम ने अरमानों को जिया इस घर के अरमानों को कुचल कर. जिस घर की लड़कियां भाग जाती हैं उस घर की और लड़कियों की शादी नहीं हो पाती. सिर्फ उस घर की ही क्यों, उस महल्ले की भी.’’

लता छोटी बहन के आरोपों से तिलमिला उठी, ‘‘कहना क्या चाहती हो?’’

‘‘तुम्हारे जाने के बाद कितना होहल्ला हुआ. न जाने कितनी बार पुलिस ने हमारे घर के चक्कर लगाए. सलिल के घर वालों ने.’’

‘‘जीजाजी, सलिल तुम्हारे जीजा हैं, नंदिनी, यह बात मत भूलो और उन के घर वाले तुम्हारी बहन की ससुराल वाले हैं,’’ लता ने सख्ती से कहा.

नंदिनी का चेहरा भावहीन था, फिर भी बोली, ‘‘जिस रिश्ते को बाबूजी ने स्वीकार नहीं किया वह मेरा कुछ भी नहीं. तुम तो चली गईं अपनी दुनिया बसाने पर बाबूजी को न जाने कितने आरोप  झेलने पड़े. बिन मां की बच्ची थी, कोई देखने वाला नहीं था. क्या कालेज में आजकल यही पढ़ाते हैं? तुम्हारे जाने के बाद इस महल्ले की जितनी भी लड़कियां थीं उन की जल्दीजल्दी शादी कर दी गई. सभी को डर था कि जब लता इस तरह का कदम उठा सकती है तो उन की बेटियां भी कुछ भी कर सकती हैं. रोहिणी दीदी की भी शादी हो गई.’’

‘‘रोहिणी, वह तो नकुल से शादी करना चाहती थी. वह तो उसी की बिरादरी का था?’’

‘‘अमित अंकल ने उन की एक नहीं सुनी. अंकलजी ने पास के ही शहर में उन की शादी कर दी. दीदी, जो लड़कियां अपने घरों से भाग जाती हैं वे सिर्फ अकेले नहीं भागतीं, वे भागती हैं अपनी मांओं के सुकून और संस्कार को ले कर. वे भागती हैं अपने पिता के सम्मान और परवरिश को ले कर, अपनी छोटी बहनों और आसपड़ोस की लड़कियों के अनदेखे भविष्य को ले कर. वे भागती हैं परिवार में उन के प्रति विश्वास और आजादी को ले कर, वे भागती हैं अपने भाई, परिवार और कुल की इज्जत को ले कर.

‘‘दीदी, तुम्हें याद है जब भी मां नानी के घर से लौटती थीं, तब नानी उन के आंचल में खोचा भरती थीं और उन के उज्ज्वल भविष्य की कामना करती थीं और बदले में मां भी चुटकीभर चावल अपने आंचल से निकाल कर उस घर में बिखेर देतीं. वे यह चाहती थीं कि उन के घर के साथसाथ यह घर भी आबाद रहे पर तुम इस घर से निकलीं तो इस परिवार को क्या दे कर गईं? मां को अपमान, पिता को दुनिया के आरोप और हमें लज्जा से  झुके सिर.

‘‘विपुल का क्या दोष था? वह तो इन बातों को ठीक से सम झता भी नहीं था पर वक्त ने उसे भी सम झा दिया. नन्हे विपुल के लिए राखी के धागे गले की फांस बन कर रह गए. मु झे अगर कहीं से आने में देर हो जाती है तो वह छटपटाने लगता है. जानता है, वह सब से छोटा है पर भाई तो है. मुंह से तो कुछ भी नहीं कहता पर उस की आंखें कुछ न कह कर भी बहुतकुछ कह जाती हैं.

‘‘दीदी, औरत एक नदी की तरह है. जब तक वह मर्यादा में रहती है तब तक वह खुशहाली लाती है पर जब वह मर्यादा को तोड़ती है तब हर जगह तबाही ही तबाही लाती है.’’

घर से निकलते वक्त उस ने सोचा था यह घर, गली और महल्ला हाथ पसारे उस का स्वागत करेगा पर आज वह शर्मिंदा थी. लता चुप थी, उस के पास नंदिनी की किसी भी बात का कोई जवाब नहीं था. जानती थी आज वह कुछ भी कहेगी तो उस की बातों पर कोई विश्वास नहीं करेगा. उस ने अपने साथसाथ नंदिनी और विपुल के भविष्य को भी दांव पर लगा दिया था. बाबूजी तो आज मरे थे पर जीतेजी तो वे कब के मर चुके थे. जीतेजी वे आरोप और अपमान का जहर पीते रहे. जहर का भी अपना हिसाबकिताब होता है, मरने के लिए थोड़ा सा और जीने के लिए ज्यादा पीना पड़ता है.

सलिल के साथ भागते हुए सोचा तो यही था कि वे कहीं दूर चले जाएं, दूर… इतनी दूर जहां पर दुनिया का कोई गम न हो पर आज वह दुनिया के लिए लता नहीं बल्कि भगोड़ी थी.

पर क्या सलिल के साथ भी ऐसा ही हुआ होगा? क्या उस के घर और महल्ले वालों ने भी उसे माफ नहीं किया होगा? क्या उस के साथ के हमउम्र लड़कों की भी शादियां कर दी गई होंगी? क्या किसी ने सलिल के पापा को भी दुत्कारा होगा कि जब सलिल भाग कर शादी कर सकता है तब महल्ले का कोई भी लड़का ऐसा कदम उठा सकता है?

Satyakatha: प्यार और प्रौपर्टी में अंधी हुईं बहनें

सौजन्य: सत्यकथा

सोनू और ऊषा की शादी 2 सगे भाइयों अशोक और राजू के साथ हुई थी. ससुराल में दोनों ही बहनों का अलगअलग युवकों से चक्कर चलने लगा.हरियाणा के पानीपत में शहर के बीचोबीच जाटल रोड के पास एक हनुमान मंदिर है. उस के ठीक सामने दिल्ली पैरलल नहर है. बीते साल 21 दिसंबर को दिन में नहर के किनारे लोगों की भीड़ जुटी हुई थी. कारण, नहर में कहीं दूर से बहती हुई एक लाश आ रही थी.

ज्योंज्यों वह निकट आ रही थी, त्योंत्यों लोग उसे देख कर तरहतरह के अनुमान लगा रहे थे. कोई नवयुवक की लाश बता रहा था तो कोई उस के नहर में कूद कर आत्महत्या करने की आशंका जता रहा था. भीड़ में हर चेहरे पर कई सवाल उभरे हुए थे. साथ ही एक अहम सवाल था कि लाश किस की होगी?

लाश जब काफी नजदीक आई तो लोगों ने देखा कि वह किसी पुरुष की थी. उस का चेहरा काफी काला पड़ चुका था, जिस से उसे पहचानना मुश्किल था.

इस की सूचना पानीपत पुलिस को भी मिल गई थी. पुलिस मौके पर अपने साथ गोताखोरों को भी साथ ले आई. लाश बाहर निकलवाई तो देखा उस का चेहरा काफी झुलसा हुआ था. पुलिस ने चेहरा देखते ही अंदाजा लगा लिया कि यह आत्महत्या का नहीं, बल्कि हत्या का मामला है. लाश की पहचान मिटाने के लिए ही चेहरे को जला दिया गया था.

गला घोंटे जाने के निशान भी साफ नजर आ रहे थे. ये निशान बेल्ट या मोटी रस्सी के थे. लाश की एक कलाई पर अशोक और सोनू नाम का टैटू बना था.

नहर से लाश मिलने की सूचना पा कर पानीपत के पुराना औद्योगिक थाने के प्रभारी बलराज यादव भी अपने दलबल के साथ तुरंत मौके पर पहुंच गए.

उन्होंने आसपास खड़े लोगों से लाश की पहचान करवानी चाही, मगर ऐसा कोई भी नहीं था, जो उसे पहचान पाए.

जब देर तक मृतक की पहचान नहीं हो पाई तब बलराज यादव ने एसआई राजपाल सिंह को लाश का पंचनामा कर पोस्टमोर्टम के लिए भेजने के आदेश दे दिए.

पुलिस कई दिनों तक लाश की पहचान की कोशिश में लगी रही. जब कोई सफलता नहीं मिली, तब एक सामाजिक संस्था की मदद से लाश का दाह संस्कार करवा दिया गया.

पोस्टमोर्टम रिपोर्ट से पुलिस को पता चला कि युवक की हत्या बेल्ट या मोटी रस्सी से गला घोंट कर की गई थी. हत्या के बाद उस की पहचान छिपाने की नीयत से उसे जलाने की कोशिश की गई थी, जिस से उस का चेहरा झुलस गया था.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार गला घोंटने से पहले युवक के साथ मारपीट की गई थी. उस के शरीर पर अनेक घाव और कटे के निशान थे.

इस से अनुमान लगाया गया कि उसे कई लोगों ने मिल कर पीटा होगा. आशंका जताई गई कि पिटाई से अधमरा होने के बाद ही उस का गला घोंट दिया होगा.

अज्ञात लाश के दाह संस्कार के बाद एक महीना गुजर गया. पुलिस शिनाख्त की कोशिश में लगी रही. शिनाख्त के लिए पुलिस ने सोशल मीडिया पर जानकारी अपलोड कर दी थी. पहनावे और हाथ पर गुदे टैटू का हवाला देते हुए पैंफ्लेट छपवा कर चिपकवाए गए थे.

14 जनवरी, 2022 को थानाप्रभारी बलराज यादव फाइलें निपटाने में व्यस्त थे. दिन के 11 बजे थे. तभी एक  युवती थाने आई और अपना परिचय दे कर बोली, ‘‘सर, मेरा नाम सोनू है. मैं भारत नगर काबड़ी रोड के रहने वाले अशोक की पत्नी हूं. मेरा पति अशोक 19 दिसंबर, 2021 से ही लापता है. मुझे कल ही मालूम हुआ है कि उस की हत्या हो गई है.’’

यादव अचानक एक युवती की बात सुन कर चौंक पड़े. बोले, ‘‘पति की हत्या के बारे में तुम्हें कैसे पता?’’

‘‘जी हुजूर, जिस ने उसे मारा उसी ने मुझे हत्या करते हुए वीडियो दिखाया है,’’ सोनू बोली.

‘‘गजब बात है, जिस ने मारा वही कहने आया कि उस ने तुम्हारे पति को मार डाला,’’ यादव एक बार फिर चौंके.

‘‘हैरानी हो रही है न हुजूर? जब हत्यारे ने मुझे वीडियो दिखाया है, तब मैं भी हैरान हो गई थी,’’ सोनू बोली.

‘‘जिस ने हत्या की है वह तुम्हें और तुम्हारे पति को पहले से जानता था? क्या नाम है उस का?’’ यादव ने पूछा.

‘‘जी, उस का नाम दीपक है. उस की मेरे पति से पुरानी दोस्ती भी थी,’’ सोनू बोली.

‘‘तुम तो हर बात में मुझे झटके पर झटका दे रही हो. जो भी तुम्हें मालूम है, पूरी बात विस्तार से बताओ.’’ थानाप्रभारी यादव सोनू को सामने की कुरसी पर बैठने का इशारा करते हुए बोले. उस के बाद सोनू ने उन्हें जो कहानी सुनाई, उस में और भी कई झटके थे.

सोनू ने थानप्रभारी यादव के कहने पर अपने पति के लापता होने से ले कर उस की हत्या किए जाने की बात इस तरह से सुनाई—

32 वर्षीय अशोक पानी के भारत नगर में रहता था. उस का एक दोस्त था दीपक, जो जींद जिले में सफीदों के करसिंधु गांव का रहने वाला है.

सोनू ने बताया कि दीपक 19 दिसंबर की रात अशोक को अपने साथ ले गया था. किस काम के लिए ले गया नहीं मालूम. इस से पहले उन दोनों ने बैठ कर शराब पी थी. दीपक ने बताया कि वह थोड़ी देर में आ जाएंगे.

उस के बाद से ही अशोक का कोई पता नहीं चल रहा था. जब वह घर नहीं लौटा तो दीपक को फोन किया, लेकिन उस का फोन बंद आ रहा था. इस से घर वालों की चिंता बढ़ गई.

इस के बाद घर के सभी लोग अशोक को इधरउधर ढूंढने लगे. जब उस का कहीं पता न चला तो थकहार कर उन्होंने सोचा कहीं यूं ही कहीं चला गया होगा. लेकिन चिंता हो रही थी कि वह बगैर बताए कहां जा सकता है?

उस के 3-4 सप्ताह बाद दीपक 13 जनवरी को सोनू के घर आया. जब सोनू ने उस से कहा कि जिस दिन से अशोक तुम्हारे साथ गया, आज तक नहीं लौटा है. यह सुनते ही वह भड़क गया और सोनू से झगड़ना शुरू कर दिया.

गालीगलौज करने लगा. बात इतनी बढ़ गई कि हाथापाई की नौबत आ गई. गालीगलौज करते हुए एक झटके में उस के मुंह से निकल गया कि उस ने अशोक का काम तमाम कर दिया है.

यह सुन कर सोनू एकदम से अवाक रह गई. उसे उस की बातों पर पहले तो विश्वास नहीं हुआ, लेकिन उस ने जब अशोक की हत्या के सबूत दिखाए तो वह एकदम से पत्थर बन गई. इस के बाद सोनू की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे.

सोनू को एक तरफ पति अशोक की मौत का गहरा सदमा लगा था, तो वहीं दूसरी तरफ वह गुस्से से पागल हुए जा रही थी. पति का हत्यारा उस के सामने ही था और उसे भी जान से मारने की धमकी दे रहा था. उस ने यह भी कहा कि उसे यहां आने से कोई रोक नहीं सकता. अगर किसी ने रोका तो वह उस का भी वही हाल करेगा, जो अशोक का किया है.

सोनू ने बताया कि दीपक उस की देवरानी ऊषा से प्यार करता है. वह उस से शादी करना चाहता है. ऊषा रिश्ते में उस की छोटी बहन भी है. दोनों बहनों की शादी एक ही घर में 2 भाइयों से हुई थी. अशोक का छोटा भाई राजू उस की छोटी बहन का पति है.

सोनू ने थानाप्रभारी को आगे बताया कि दीपक ने उस की बहन को अपने प्रेमजाल में फंसा लिया है. अशोक को इस बात की जानकारी हो गई थी. इस का उस ने मेरे सामने ही विरोध करते हुए दीपक को समझाया था.

अशोक ने दीपक से यह भी कहा था कि ऐसा करने से राजू और ऊषा की जिंदगी तबाह हो जाएगी. उन का बसाबसाया घर उजड़ जाएगा. अशोक ने दीपक को इतना तक कहा था कि इस से उन दोनों की दोस्ती पर भी असर पड़ेगा, पर दीपक ने ऊषा से मिलना नहीं छोड़ा.

सोनू अपने दिल की बात धाराप्रवाह बोले जा रही थी. बीच में ही थानाप्रभारी यादव ने टोकते हुए पूछा, ‘‘दीपक ने अशोक की हत्या का तुम्हें क्या सबूत दिया?’’

‘‘दिया नहीं साहबजी, मुझे उस की हत्या करते हुए वीडियो दिखाया. अशोक को मारते हुए उस के मोबाइल में वीडियो था,’’ सोनू बोली.

‘‘वीडियो तुम्हारे पास है?’’ यादव ने पूछा.

‘‘नहीं, वह तो उसी के मोबाइल में है. दीपक ने बताया कि उस ने अशोक की गला घोंट कर हत्या करने के बाद उस की लाश नहर में फेंक दी थी.’’

अशोक की लाश के नहर में फेंकने की बात सुन कर थानाप्रभारी बलराज यादव एक बार फिर चौंक गए. क्योंकि उन्होंने 3 हफ्ते पहले ही नहर से झुलसे हुए चेहरे वाली एक अज्ञात लाश बरामद की थी.

उन्होंने अपनी दराज से एक लिफाफा निकाल कर उस में से कुछ तसवीरें सोनू के सामने फैला दीं और पूछा, ‘‘इसे पहचानती हो?’’

सोनू उन तसवीरों को हाथों में ले कर गौर से निहारने लगी. कुछ देर बाद बोली, ‘‘लगता तो अशोक की ही लाश है. जिस दिन घर से निकला था उस दिन वैसे ही कपड़े पहने हुए था, जैसा इस में दिख रहा है.’’

‘‘वीडियो में ऐसा कोई सीन दिखाई दिया था, जिस में उस का चेहरा जलाने जैसी बात हो?’’ यादव ने पूछा.

‘‘हां, उस के चेहरे पर कुछ डालते हुए दिख रहा था,’’ सोनू बोली.

‘‘अशोक से दीपक का कोई पुराना झगड़ा या किसी तरह का विवाद हुआ हो तो बताओ,’’ यादव बोले.

‘‘झगड़ा तो हुआ था. बात थाने तक जा पहुंची थी, लेकिन बाद में थाने में सुलह हो गई थी,’’ सोनू ने बताया.

‘‘और कोई बात बताओ.’’

‘‘…और तो अशोक के मन में दीपक का मेरी बहन के साथ प्रेम संबंध को ले कर ही तकलीफ थी. उसे जरा भी नहीं पसंद था कि उस के भाई की पत्नी किसी गैर मर्द के साथ संबंध बनाए,’’ सोनू बोली.

‘‘झगड़े वाली बात कब की है?’’

‘‘दीपक का अशोक के साथ झगड़ा पिछले साल जून महीने में ही हुआ था. ठीक से तारीख याद नहीं है. दोनों के बीच मारपीट तक हो गई थी. इस की शिकायत अशोक ने  मौडल टाउन थाने में की थी.

‘‘उस के बाद दीपक अशोक के साथ दुश्मनी की भावना रखने लगा था, लेकिन शिकायत दर्ज होने के कुछ दिन बाद ही वह फिर अशोक का दोस्त बन गया था.

‘‘इस बात को ले कर सोनू ने अपने पति का विरोध भी किया था, मगर अशोक ने कहा था कि उस ने दीपक को माफ कर दिया है. उस के बाद दोनों अकसर साथ बैठ कर शराब भी पीते थे.’’

सोनू की बातें सुनने के बाद थनाप्रभारी यादव ने सोनू को थाने से घर भेज दिया और कह दिया कि जरूरत होने पर उसे बाद में बुलाया जाएगा, इसलिए शहर से कहीं और नहीं जाए.

जातेजाते सोनू बोलती गई कि उस की जान को दीपक से खतरा है. क्योंकि उस ने उसे भी मारने की धमकी दी है. बलराज यादव ने सोनू की बातों को गौर से सुना. उस के जाने के बाद थानाप्रभारी ने एसआई राजपाल सिंह के साथ मिल कर इस केस के संबंध में विचारविमर्श किया, तब सोनू की कहानी से कई सवाल भी खड़े हो गए.

राजपाल सिंह ने थानाप्रभारी से कहा कि अगर अशोक 19 दिसंबर, 2021 में ही लापता हुआ था तो उस की गुमशुदगी की सूचना अभी तक किसी ने क्यों नहीं लिखवाई? अगर दीपक ने अशोक की हत्या की है तो उस ने यह राज 25 दिन बाद आ कर उस की ही पत्नी सोनू के सामने क्यों खोला? उसे हत्या का वीडियो क्यों दिखाया? इस के पीछे उस की मंशा क्या थी? ऐसा कर के उस ने खुद के पैर पर कुल्हाड़ी क्यों मार ली?

इस पर थानाप्रभारी यादव ने कहा कि इन सवालों के जवाब अब दीपक से ही मिलेगा. इसलिए उसे जल्द से जल्द हिरासत में लिया जाना जरूरी है.

इसी के साथ थानाप्रभारी यादव ने एसआई राजपाल सिंह के नेतृत्व में तुरंत एक टीम बनाई और उसे दीपक के घर भेज दिया. दीपक अपने घर पर ही मिल गया. पुलिस उसे थाने ले आई.

थाने में सब से पहले उस का मोबाइल फोन चैक किया गया. उस में अशोक की हत्या का वीडियो आसानी से तुरंत मिल गया. उस वीडियो में साफसाफ दिख रहा था कि दीपक पहले अशोक को नहर किनारे ले गया. नहर किनारे 2 युवक पहले से ही बैठे शराब पी रहे थे. दीपक ने अशोक को भी शराब पीने को कहा, मगर अशोक ने मना कर दिया. उस के बाद दीपक ने उस से शराब पीने की जबरदस्ती की.

अशोक दीपक की जबरदस्ती का विरोध करते हुए दिखा. अशोक बोल रहा था कि उसे घर जाना है. उस के बच्चे उस का इंतजार कर रहे होंगे. फिर भी किसी तरह दीपक ने अशोक को शराब पिला दी.

उस के बाद दीपक के पास एक युवक आया. उन के आने पर दीपक ने अशोक के गले में अचानक अपने पैंट की बेल्ट डाल दी और पीछे की ओर घसीट लिया. एक युवक उस के साथ मारपीट करने लगा.

मारपीट के दौरान अशोक के मुंह से खून बहने लगा. उस वक्त रात हो चुकी थी. वीडियो पर दिखने वाले टाइम के अनुसार 11 बजे के बाद का समय था.

वीडियो में उस की बेरहमी से पिटाई करने का सीन आ गया था. वीडियो अस्थिर था. थोड़ी देर में मृत अशोक की मौत का सीन दिखा. मौत हो जाने के बाद हत्यारों ने बाइक से पैट्रोल निकाल कर उस के चेहरे पर डाल दिया.

यह सीन काफी स्पष्ट था, लेकिन इस काम को करने वाले का चेहरा नहीं दिख रहा था. जलता हुआ, फिर काफी झुलसा हुआ चेहरा ही दिखाई दिया था. बाद में शव को 2-3 लोगों ने मिल कर नहर में ले जा कर फेंक दिया था.

इस वीडियो को देखने के बाद पुलिस ने दीपक की गिरफ्तारी की औपचारिकताएं पूरी कर सीधे लौकअप में डाल दिया.

कुछ समय बाद उस से जब पूछताछ की, तब बेहद चौंकाने वाली कहानी का रहस्योद्घाटन हुआ. ऐसी कहानी सामने आई, जो सोनू द्वारा बताई गई कहानी से बिलकुल ही उलट थी.

उस में अपना बचाव करते हुए एकदूसरे को फंसाने की साजिश, प्रेम प्रसंग और संपत्ति हासिल करने का लालच भी शमिल था.

दीपक ने बताया कि यह सच है कि अशोक की हत्या में उस का और उस के साथियों का हाथ है, जैसा वीडियो में दिख रहा है, लेकिन ऐसा उस ने अशोक की पत्नी सोनू और उस की बहन ऊषा के कहने पर ही किया था. अब ये दोनों बहनें उसे ही फंसाने की कोशिश कर रही हैं. इस तरह से अशोक मर्डर की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार है—

दीपक का मुंह खुलने के बाद दोनों बहनों की खौफनाक साजिश भी उजागर हो गई थी. पुलिस ने आननफानन में सोनू और ऊषा को भी गिरफ्तार कर लिया. उन के साथ ही दीपक और उन के दोस्तों को भी गिरफ्तार कर लिया गया, जो अशोक की हत्या में शामिल थे.

दरअसल, हत्या का यह पूरा मामला जमीनजायदाद और नाजायज संबंधों से जुड़ा हुआ था. दोनों बहनें सोनू और ऊषा की शादी एक ही घर में 2 भाइयों अशोक और राजू से हुई थी. दोनों भाइयों के नाम एक एक आवासीय प्लौट और कुछ अन्य प्रौपर्टी थी. अशोक की पत्नी सोनू चाहती थी कि वह उस प्लौट को बेच दे. लेकिन अशोक इस के लिए तैयार नहीं था.

उस के बाद दोनों बहनों ने मिल कर तय किया कि वे अशोक को रास्ते से हटा देंगी. उन्होंने अशोक और राजू के खास दोस्त दीपक से इस बारे में बात की. दीपक के नाजायज संबंध राजू की पत्नी ऊषा से थे. वह ऊषा के हुस्न का दीवाना था.

इस का फायदा उठाते हुए दोनों बहनों ने अशोक को मरवाने के लिए दीपक को अपने प्लान में शामिल कर लिया. बदले में ऊषा ने दीपक को भरोसा दिलाया कि अशोक की मौत के बाद वह उस से शादी कर लेगी और सोनू छोटे भाई से शादी कर लेगी. इस तरह से अशोक के हिस्से की संपत्ति उन्हें हाथ लग जाएगी.

ऊषा का दीवाना दीपक शादी और अशोक के हिस्से की जायदाद मिलने के लालच में हत्या के लिए राजी हो गया. उस ने इस काम के लिए अपने 2 अन्य दोस्तों सोमबीर और अजीत को भी तैयार कर लिया.

अशोक को मारने की पूरी प्लानिंग सोनू और ऊषा ने बनाई थी. प्लान के मुताबिक दीपक को शराब पार्टी का बहाना बना कर अशोक को घर से ले जाना था. वहीं उसे शराब के नशे में मार डालना था. उस के घर नहीं लौटने पर सोनू को रोनेधोने और पति को ढूंढने का नाटक करना था.

किंतु सोनू और ऊषा चाहती थीं कि अशोक की हत्या का प्रमाण भी मिले. इस के लिए उन्होंने दीपक से अशोक की हत्या का वीडियो बनाने के लिए भी कहा था. सब कुछ तय योजना के मुताबिक हुआ. दीपक ने दोनों बहनों के इशारे पर हत्या भी की और उस का पूरा वीडियो भी बनवाया.

अशोक की हत्या के बाद दीपक ऊषा पर शादी का दबाव बनाने लगा. मगर ऊषा अपने पति राजू के होते उस से शादी कैसे करती? राजू को इस बात की भनक भी नहीं लगी थी और घर के दूसरे सदस्य अशोक के लापता होने को ले कर परेशान भी थे.

ऊषा के मन में यह भी खयाल आया कि अशोक के मरने के बाद उस प्लौट और प्रौपर्टी पर राजू का हक खुदबखुद बन गया था. ऊषा को यह भी मालूम था कि वह किसी भी कीमत पर प्लौट न तो बेचेगा और न ही किसी को बेचने देगा.

कुल मिला कर बात घूमफिर कर वहीं आ गई, जो पहले थी. अशोक की हत्या के बाद भी दीपक के हाथ कुछ नहीं आया. इस का मलाल दोनों बहनों को भी हुआ. उस के बाद  सोनू और ऊषा ने दीपक से राजू को भी खत्म करने के लिए कहा. यह विचार मन में आने पर धनसंपत्ति के लालच में वे भूल गईं कि दोनों ब्याहता हैं. एक की मौत तो हो चुकी है, दूसरे की मौत के बाद उन का भविष्य क्या होगा?

दूसरी तरफ दीपक भी दोनों बहनों का नया प्रस्ताव सुन कर काफी परेशान हो गया. वह पहले से ही एक की हत्या कर डरा हुआ था और अब वह दूसरी हत्या के लिए उकसाया गया था.

सच तो यही था कि वह दूसरी हत्या नहीं करना चाहता था. इस कारण उस ने साफ इनकार कर दिया. यही नहीं, उस ने सोनू और ऊषा को धमकाया भी कि अगर ऊषा ने उस से शादी नहीं की तो वह जा कर पुलिस को सारी बातें बता देगा.

दीपक की इस धमकी से सोनू और ऊषा डर गईं. इस खतरे के बारे में तो उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था. अगर दीपक ने पुलिस के सामने कुछ बोल दिया तो पुलिस सोनू और ऊषा को दबोच लेगी. इसलिए उन्होंने एक प्लान बनाया. इस से पहले कि दीपक उन्हें फंसाए, दोनों बहनों ने ही दीपक को पुलिस के हवाले करने की योजना बनाई.

योजना के अनुसार ही सोनू ने अपने पति के लापता होने और उस की हत्या के सबूत के बारे में जानकारी दी. अशोक की हत्या की कहानी सुना कर दीपक को उस का हत्यारा बताया.

दोनों बहनों की चाल एक बार फिर उलटी पड़ गई. अशोक मर्डर के मामले में उस का हत्यारा खुद कानून के शिकंजे में आ गया. साथ ही साजिशकर्ता बहनें भी पकड़ में आ गईं.

दोनों बहनों के खिलाफ भी साजिश रचने की धाराएं लगा कर आपराधिक मुकदमा दर्ज कर लिया गया. दीपक के मुंह खोलने से दोनों बहनों को भी हत्या के मामले में जेल जाना पड़ा और अशोक के बेगुनाह भाई राजू की जिंदगी बालबाल बच गई.

मूलरूप से करनाल के दाहा बछिदा का निवासी अशोक पानीपत के भारत नगर में रहता था. 3 भाइयों में वह सब से छोटा था. अशोक के परिवार में बड़ा भाई बिजेंद्र, मंझला राजू, बेटा रवि, बेटी अंजलि व बेटा ईशू हैं. पिता अशोक की हत्या और मां सोनू के जेल चले जाने के बाद तीनों बच्चे अब अकेले पड़ गए हैं.

5 साल पहले राजू जिस फैक्ट्री में काम करता था, उसी फैक्ट्री में करसिंधू निवासी दीपक भी मालिक का ड्राइवर था. दोनों की दोस्ती हुई और दीपक राजू के घर आनेजाने लगा. यहां उस की अशोक से भी दोस्ती हो गई.

दीपक की नजर जब राजू की पत्नी ऊषा पर पड़ी तो वह उस का दीवाना हो गया. राजू की गैरमौजूदगी में वह ऊषा से मिलने आने लगा और जल्दी ही दोनों का रिश्ता काफी करीब होता चला गया.

दूसरी ओर अशोक की पत्नी सोनू के भी किसी अन्य युवक के साथ अवैध संबंध थे. इन दोनों बहनों की नजर अशोक के एक प्लौट पर थी.

इस मामले की तेजी से जांच करने और निपटाने में पुराना औद्योगिक थाने के थानाप्रभारी बलराज यादव समेत एसआई राजपाल सिंह, बंसीलाल, एएसआई सुरेंद्र और हैडकांस्टेबल टिंकू की भूमिका सराहनीय रही.

हत्या से जुड़े सभी सबूतों और गवाहों के बयानों को दर्ज कर मामले को इतना मजबूत बना दिया गया कि आरोपियों का कानून के शिकंजे से बच पाना मुश्किल हो जाए. आरोपियों ने वारदात में इस्तेमाल बेल्ट को नहर में फेंक दिया था. वह कथा लिखे जाने तक बरामद नहीं हो पाई थी.

हत्यारोपी दीपक, जोशी गांव के अजीत और सोमबीर की निशानदेही पर पुलिस ने वारदात में इस्तेमाल बाइक व 3 मोबाइल फोन बरामद कर लिए गए. सभी आरोपियों ने अपना जुर्म भी कुबूल लिया. पुलिस ने सभी आरोपियों को कोर्ट में पेश करने के बाद जेल भेज दिया.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

मेरी एक्स गर्लफ्रेंड सेक्स करना चाहती है, मैं क्या करूं?

सवाल

मैं सरकारी सेवा में हूं, शादीशुदा हूं और 2 बच्चों का पिता हूं. शादी से पहले मेरी गर्लफ्रैंड थी जिस से मेरा फिजिकल रिलेशन भी था. गर्लफ्रैंड की शादी हुए 8 साल हो चुके हैं. लेकिन उस का कोई बच्चा नहीं हुआ. उस ने चैकअप करवाया तो पता चला कि कमी उस के पति में है. वह अब मु?ो बारबार फोन करती है और चाहती है कि मैं उस से फिजिकल रिलेशन बना कर उसे प्रैग्नैंट कर दूं. वह कहती है कि पति के साथ सैक्स तो होता ही है. क्या पता चलेगा कि वह प्रैंग्नैंट मुझसे हुई है, क्योंकि अभी उस के पति को अपनी मैडिकल रिपोर्ट के बारे में कुछ पता नहीं है. आप ही बताएं, क्या करूं? बड़ी उलझन में फंस गया हूं.

जवाब

हम भी नहीं चाहते कि आप किसी मुसीबत में पड़ें. जितना आसान आप की गर्लफ्रैंड को लग रहा है, उतना आसान है नहीं. बात कभी भी खुल सकती है. आप की अपनी अच्छीखासी गृहस्थी है, क्यों उसे तबाह करना चाहते हैं. देरसवेर आप की पत्नी को यह बात पता चल गई तो वह आप को कभी माफ नहीं करेगी.

आप एक बार सोच कर देखिए कि आप को पता चले कि आप की पत्नी किसी गैरपुरुष के साथ संबंध बना कर आई है तो आप को यह गवारा होगा? नहीं न. तो फिर आप कैसे सोच सकते हैं कि अपनी गर्लफ्रैंड के साथ शादीशुदा हो कर शारीरिक संबंध बनाएं. चाहे आप का मकसद सिर्फ अपनी गर्लफ्रैंड की मदद करने का हो लेकिन यह बिलकुल भी नैतिक नहीं.

आजकल बहुत सी मैडिकल तकनीकें आ गई हैं जिन से आप की गर्लफ्रैंड मां बन सकती है लेकिन उस में उस के पति की रजामंदी होगी. आप इस सब पचड़े में मत पड़ें, बेहतर यही है.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem

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