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त्यौहार 2022: महक उठा आंगन- प्रकाश ने बेटे होने का फर्ज कैसे निभाया?

फोन की घंटी की आवाज सुन कर धूल  झाड़ते मेरे हाथ एकदम से रुक गए. लगता है मेरे शहर में वापस आने की सूचना परिचितों को मिल गई, यह सोचते हुए मैं ने मुसकरा कर फोन का चोंगा उठा लिया.

‘‘हैलो…’’

‘‘हैलो, स्नेहा.’’

‘‘हाय, मोहिनी, यार…’’

‘‘स्नेहा, तुम घर आ जाओ,’’ मेरी बात बीच में ही काट कर मोहिनी ने फोन रख दिया.

हाथ में फोन लिए मैं स्तब्ध खड़ी थी. मेरी स्तब्धता की वजह मोहिनी का स्वभाव था. घंटों गप मारना तो मोहिनी की फितरत है, फिर आज जब इतने सालों बाद उस का फोन आया तो न कोई बात, न गिला, न शिकवा. जरूर कोई खास बात है जो वह फोन पर नहीं कहना चाहती है. मोहिनी की इस हरकत ने मु झे चिंता में डाल दिया और मैं  झट नहाधो कर उस के घर के लिए चल दी.

कार में बैठते ही एक अनाम डर मु झ पर छाने लगा. कहीं मोहिनी का डर सच तो नहीं हो गया? कहीं प्रकाश सचमुच उन लोगों को छोड़ कर चला तो नहीं गया? इसी उल झन में मेरा मन अनजाने ही अतीत की पगडंडी पर चलता हुआ 20 साल पीछे के समय में पहुंच गया.

मोहिनी की शादी को हुए 10 साल हो गए थे पर उस के आंगन का सूनापन बरकरार था. एक बच्चे की चाह में मोहिनी और नरेंद्र तड़प रहे थे. उन की अपनी संतान होने की उम्मीद अब समाप्त हो चुकी थी. नरेंद्र की इच्छा थी कि वे एक बच्चा गोद ले लें पर मोहिनी किसी दूसरे की औलाद को अपनाने को किसी भी कीमत पर तैयार नहीं थी.

नरेंद्र ने इस काम में मु झ से मदद मांगी. उन का खयाल था कि बचपन की सहेली होने के कारण शायद मैं मोहिनी को सम झा सकूं. मैं ने मोहिनी से बात कर के यह महसूस किया कि उस के मन के किसी कोने में यह बात घर कर गई है कि पराया बच्चा पराया ही रहेगा. वह दूसरे की वंशबेल को अपने आंगन में रोपने को तैयार नहीं थी. उस का मानना था कि दूसरे का खून कब धोखा दे जाए, क्या पता. वह अपनी सूनी गोद और घर में फैले सूनेपन को नियति

का क्रूर प्रहार मान कर स्वीकार कर चुकी थी.

हम सब के सम झाने और नरेंद्र की इच्छा के आगे आखिरकार मोहिनी  झुक गई. परिणामस्वरूप ओस की बूंद की तरह एक साल का मासूम प्रकाश उन के आंगन में आ गया और धीरेधीरे फैलता हुआ उन के सूखे आंगन को गीला करने लगा. अब उन के आंगन से मासूम प्रकाश की किलकारियों की आवाजें आने लगीं.

नरेंद्र ने उस मासूम का नाम प्रकाश इसीलिए रखा क्योंकि वह उन की अंधेरी दुनिया में खुशियों का प्रकाश ले कर आया था. मोहिनी नन्हे प्रकाश का हर काम बड़े जतन से करती और उस के सुखदुख का पूरा खयाल रखती पर जैसेजैसे प्रकाश बड़ा होता जा रहा था, मोहिनी का डर भी बढ़ता जा रहा था.

एक बार बहुत भावुक हो कर मोहिनी ने कहा था, ‘स्नेहा, प्रकाश मेरा बड़ा ही प्यारा खिलौना है. किंतु खिलौना कितना भी प्रिय क्यों न हो, सारी उम्र किसी के पास नहीं रहता, इसलिए देखो, यह कब मु झे छोड़ कर जाता है.’

मोहिनी को कुछ भी सम झ पाना बहुत मुश्किल था क्योंकि वह दिमाग से नहीं, दिल से सोचती थी.

उस दिन प्रकाश का इंटर का परीक्षाफल निकला था. वह प्रथम आया था. सभी बहुत प्रसन्न थे. मैं भी बधाई देने उस के घर गई थी. मु झे ले कर मोहिनी पीछे के बरामदे में आ गई और कबूतर के घोंसले को दिखा कर बोली, ‘इसे देख रही हो स्नेहा, इसे देख कर मु झे बहुत डर लगता है. कितने जतन से कबूतरकबूतरी एकएक तिनका जोड़ कर अपना घोंसला बनाते हैं, फिर 24 घंटे अपने अंडे की रक्षा करते हैं. एकएक दाना चुग कर बच्चों की नन्ही चोंच में डाल कर उन्हें पालते हैं और जब इन को उड़ना आ जाता है तब ये अपने पंख फैला कर सदा के लिए उड़ जाते हैं.

‘ऐसे ही एक दिन प्रकाश भी उड़ जाएगा और उस दिन से मैं बहुत डरती हूं क्योंकि नरेंद्र बिलकुल टूट जाएंगे. वे तो भूल ही गए हैं कि यह उन का बेटा नहीं है. आस लगाए बैठे हैं कि प्रकाश उन के बुढ़ापे का सहारा बनेगा. पर, पराया तो पराया ही होता है न?’

मैं आश्चर्य से मोहिनी को देख रही थी. उसे सम झने की कोशिश कर रही थी पर सब व्यर्थ. उस दिन मु झे सम झ में आया कि उस का डर कितना गहरा, कितना बड़ा है और मु झे विश्वास हो गया कि उस के मन से यह डर कभी कोई नहीं निकाल सकेगा. वह ताउम्र इसी भय के साथ जिएगी. आज अचानक इतने वर्षों बाद उस ने इस तरह फोन कर के बुलाया है. कहीं कुछ गड़बड़ जरूर है.

अतीत की यादों में खोई मैं कब मोहिनी के घर पहुंच गई, जान ही नहीं पाई. ड्राइवर की आवाज से मेरी तंद्रा टूटी. आशंकाभरे दिल के साथ मैं ने घर में प्रवेश किया. सामने मोहिनी बैठी थी. उस का कुशकाय शरीर देख मैं हैरान रह गई. कभी गोलमटोल, खिलीखिली रहने वाली मोहिनी मु झे इस हाल में मिलेगी, इस की तो मैं कल्पना भी नहीं कर सकती थी.

मोहिनी का डर विशाल रूप ले कर मेरे सामने खड़ा हो गया था. किसी तरह खुद को संभाल कर मैं आगे बढ़ी. मेरे पास पहुंचते ही मोहिनी एकदम से खिल उठी. बीमार हालत में भी उस के चेहरे का तेज और आंखों की खुशी छलकीछलकी पड़ रही थी. मेरा हाथ पकड़ कर मोहिनी बोली, ‘‘स्नेहा, तु झे यह खुशखबरी देने के लिए बुलाया था कि तेरी मोहिनी की गोद भर गई.’’

मैं फटीफटी आंखों से मोहिनी को देख रही थी. बड़ी मुश्किल से बोल पाई, ‘‘इस उम्र में?’’

‘‘हां, इस उम्र में एक जवान बेटे से मेरी गोद भर गई.’’

‘‘मतलब?’’

‘‘मतलब प्रकाश,’’ यह कहते समय उस की आंखों से एक मां का निश्चल प्यार छलक रहा था और मैं अपलक उसे निहार रही थी.

वह अपनी ही रौ में फिर बोलने लगी, ‘‘मेरे सब से बड़े डर की राजदार तुम हो पर आज मैं यह स्वीकार करती हूं कि मेरा डर बिलकुल बेबुनियाद था. नन्हा बच्चा तो बिलकुल मिट्टी की लोई होता है, उसे जैसा चाहो गढ़ लो, जैसा चाहो बना लो. वह अपनापराया जानता ही नहीं. वह तो पहचानता है सिर्फ प्यार.’’

‘‘अब प्रकाश को ही लो. आज के इस युग में जब बच्चों के लिए उन के अपने बूढ़े मांबाप बो झ बनते जा रहे हैं, वह सच्चे अर्थों में हमारे बुढ़ाने की लाठी बन कर खड़ा है. आज अगर हम दोनों जिंदा हैं तो सिर्फ प्रकाश की वजह से. पिछले साल नरेंद्र की तबीयत अचानक बहुत खराब हो गई थी. डाक्टर ने बताया कि उन की दोनों किडनियां खराब हो गई हैं. डर और चिंता से मैं ने भी चारपाई पकड़ ली पर प्रकाश दौड़भाग करता रहा और अंत में अपनी एक किडनी दे कर उस ने नरेंद्र को मौत के मुंह से वापस खींच लिया.

‘‘मेरी अपनी कोख से जन्मा बच्चा ऐसा ही करता, इस की क्या गारंटी है. सच है, प्यार के रिश्ते से बड़ा कोई रिश्ता नहीं है. प्रकाश की दिनरात की सेवा का परिणाम है कि कल नरेंद्र अस्पताल से घर वापस आ गए हैं.’’

मेरी प्यारी सहेली की बरसों की साध पूरी हो गई थी. उस की खुशी से मेरी आंखें नम हो आई थीं. उस के आंगन में खिले इस फूल की महक से मैं भी अछूती नहीं रही. मेरे चेहरे पर संतोष की एक शीतल मुसकान तैर गई जो उसे गोद भरने की बधाई दे रही थी.

सूर्यकिरण: मीना ने किस शर्त पर की थी नितिश से शादी

मीना और नितीश की गृहस्थी में अचानक तूफान आ गया था. दोनों के विवाह को मात्र 1 साल हुआ था. आधुनिक जीवन की जरूरतें पूरी करते हुए दोनों 45 वसंत देख चुके थे. पहले उच्चशिक्षा प्राप्त करने की धुन, फिर ऊंची नौकरी और फिर गुणदोषों की परख व मूल्यांकन करने के फेर में एक के बाद एक प्रस्तावों को ठुकराने का जो सिलसिला शुरू हुआ तो वह रुकने का नाम ही नहीं लेता था.

मीना के मातापिता जो पहले अपनी मेधावी बेटी की उपलब्धियों का बखान करते नहीं थकते थे. अब अचानक चिंताग्रस्त हो उठे थे.

बड़ी मुश्किल से गुणदोषों, सामाजिक स्तर आदि का मिलान कर के कुछ नवयुवकों को उन्होंने मीना से मिलने को तैयार भी कर लिया था, पर मीना पर तो एक दूसरी ही धुन सवार थी.मीना छूटते ही अजीब सा प्रश्न पूछ बैठती थी, ‘‘आप को बच्चे पसंद हैं या नहीं?’’

ज्यादातर भावी वर, मीना की आशा के विपरीत बच्चों को पसंद तो करते ही थे, अपने परिवार के लिए उन का होना जरूरी भी मानते थे. मगर यही स्वीकारोक्ति मीना को भड़काने के लिए काफी होती थी और संबंध बनने से पहले ही उस के पूर्वाग्रहों की भेंट चढ़ जाता था.

नितीश से अपनी पहली मुलाकात उसे आज भी अच्छी तरह याद हैं. चुस्तदुरुस्त और प्रभावशाली व्यक्तित्व वाले नितीश को देखते ही वह प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकी थी. पर उच्चशिक्षा और ऊंची नौकरी ने उस के आत्मविश्वास को गर्व की कगार तक पहुंचा दिया था. वैसे भी वह नारी अधिकारों के प्रति बेहद सजग थी. छुईमुई सी बनी रहने वाली युवतियों से उसे बड़ी कोफ्त होती थी. इसलिए नितीश को देखते ही उस ने प्रश्नों की झड़ी लगा दी थी.

‘‘आशा है पत्रों के माध्यम से आप को मेरे बारे में पूरी जानकारी मिल गई होगी?’’ मीना अपने खास अंदाज में बोली थी.

‘‘जी, हां,’’ नितीश उसे ऊपर से नीचे तक निहारते हुए बोला था.

मीना मन ही मन भुनभुना रही थी कि ऐसे घूर रहा है मानो कभी लड़की नहीं देखी हो, पर मुंह से कुछ नहीं बोली थी.

‘‘आप अपने संबंध में कुछ और बताना चाहती है? मौन अंतत: नितीश ने ही तोड़ा था.

‘‘हां, क्यों नहीं. शायद आप जानना चाहें कि मैं ने अब तक विवाह क्यों नहीं किया?’’

‘‘जी हां, अवश्य.’’

‘‘तो सुनिए, मेरे कंधों पर न तो पारिवारिक जिम्मेदारियों का बोझ था और न ही कोई अन्य मजबूरी पर अपना भविष्य बनाने के लिए कड़ा परिश्रम किया है मैं ने.’’

‘‘जी हां, सब समझ गया मैं. आप अपने मातापिता की इकलौती संतान हैं. पिता जानेमाने व्यापारी हैं, फिर पारिवारिक समस्याओं का तो प्रश्न ही नहीं उठता. पर मैं इतना खुशहाल नहीं रहा. पिता की लंबी बीमारी के कारण छोटे भाई और बहन के पालनपोषण, पढ़ाईलिखाई, विवाह आदि के बीच इतना समय ही नहीं मिला कि अपने बारे में सोच सकूं.’’

‘‘चलिए जब आप ने स्वयं को मानसिक रूप से विवाह के लिए तैयार कर ही लिया है, तो आप ने यह भी सोच लिया होगा कि आप अपनी भावी पत्नी में किन गुणों को देखना चाहेंगे.’’

‘‘किसी विशेष गुण की चाह नहीं है मुझे. हां, ऐसी पत्नी की चाह जरूर है जो मुझे मेरे सभी गुणोंअवगुणों के साथ अपना सके,’’ नितीश भोलेपन से मुसकराया तो मीना देखती ही रह गई थी. कुछ ऐसा ही व्यक्ति उस के कल्पनालोक में भी था.

‘‘आप के विचार जान कर खुशी हुई पर आप को नहीं लगता कि जीवन साथ बिताने का निर्णय लेने से पहले कुछ और विषयों पर विस्तार से बात करना जरूरी है?’’ मीना कुछ संकुचित स्वर में बोली.

‘‘मैं हर विषय पर विस्तार से बात करने को तैयार हूं. पूछिए क्या जानना चाहती हैं आप?’’

‘‘हम दोनों ने सफलता प्राप्त करने के लिए कड़ा परिश्रम किया है, पर जब 2 सफल व्यक्ति एक ही छत के नीचे रहें तो कई अप्रत्याशित समस्याएं सामने आ सकती है.’’

‘‘शायद.’’

‘‘शायद नहीं, वास्तविकता यही है,’’ मीना झुंझला गई थी.

‘‘मुझे नहीं लगता कि ऐसी कोई समस्या आ सकती है जिसे हम दोनों मिल कर सुलझा न सकें.’’

‘‘सुन कर अच्छा लगा, पर विवाह के बाद घर का काम कौन करेगा?’’

‘‘हम दोनों मिल कर करेंगे. मेरा दृढ़ विश्वास है कि विवाह नाम की संस्था में पतिपत्नी को समान अधिकार मिलने चाहिए,’’ नितीश ने तत्परता से उत्तर दिया.

‘‘और बच्चे?’’

‘‘बच्चे? कौन से बच्चे?’’

‘‘बनिए मत, बच्चों की जिम्मेदारी कौन संभालेगा?’’ ‘‘इस संबंध में तो कभी सोचा ही नहीं मैं ने.’’

‘‘तो अब सोच लीजिए. शतुरमुर्ग की तरह रेत में मुंह छिपाने से तो समस्या हल नहीं हो जाएगी.’’

‘‘मैं बहस के लिए तैयार हूं महोदया,’’ नितीश नाटकीय अंदाज में बोल कर हंस पड़ा.

‘‘तो सुनिए मुझे बच्चे बिलकुल पसंद नहीं हैं या यों कहिए कि मैं बच्चों से नफरत करती हूं.’’

‘‘क्या कह रही हैं आप? उन भोलभाले मासूमों ने आप का क्या बिगाड़ा है.’’

‘‘इन मासूमों की भोली सूरत पर न जाइए. ये मातापिता के जीवन को कुछ इस तरह

जकड़ लेते हैं कि उन्हें जीवन की हर अच्छी चीज को त्याग देना पड़ता है.’’

‘‘मैं आप से सहमत हूं पर फिर भी लोग संतान की कामना करते हैं,’’ नितीश ने तर्क दिया.

‘‘करते होंगे, पर मुझे नहीं लगता कि मैं अपनी नौकरी के साथ आप के बच्चों के पालनपोषण का भार उठा सकूं. मुझे तो उन के नाम से ही झुरझुरी आने लगती है.’’

‘‘आप बोलती रहिए आप की बातों से मेरी उत्सुकता बढ़ती जा रही है.’’

‘‘जरा सोचिए, दोगुनी कमाई और 2 सफल व्यक्ति साथ रहें तो जीवन में आनंद ही आनंद है, पर मैं ने अपने कई मित्रों को बच्चों के चक्कर में रोतेबिलखते देखा है. अच्छा क्या आप बता सकते हैं कि केवल मानव शिशु ही क्यों रोते हैं? मैं ने जानवर या चिडि़या के बच्चों को कभी रोते नहीं देखा,’’ मीना ने अपनी बात समाप्त की.

‘‘आप ठीक कहती हैं. मैं आप से पूर्णतया सहमत हूं, पर परिवार में बच्चे की जगह कोई तोता या कुत्ता नहीं ले सकता.’’

‘‘तो फिर इस समस्या को कैसे सुलझाएंगे आप?’’

‘‘मैं एक समय में एक समस्या सुलझाने में विश्वास करता हूं. पहली समस्या विवाह करने की है. फैसला यह करना है कि हम दोनों एक ही छत के नीचे साथ रह सकते हैं या नहीं. बच्चे जब आएंगे तब देखा जाएगा. अभी से इस झमेले में पड़ने की क्या जरूरत है?’’ नितीश गंभीर स्वर में बोला.

‘‘पर मेरे लिए यह प्रश्न महत्त्वपूर्ण है. मैं किसी भी कीमत पर अपने भविष्य से समझौता नहीं कर सकती. नारीजीवन की सार्थकता केवल मां बनने में है, मैं ऐसा नहीं मानती.’’

‘‘मेरे लिए कोई समस्या नहीं है. अब वह समय तो रहा नहीं जब बच्चे बुढ़ापे की लाठी होते थे. इसलिए यदि आप शादी के बाद परिवार की वृद्धि में विश्वास नहीं करतीं तो मुझे कोई समस्या नहीं है,’’ नितीश ने मानो फैसला सुना दिया.

मीना कुछ देर मौन रही. कोई उस की सारी शर्तों को मान कर उस से विवाह की स्वीकृति देगा ऐसा तो उस ने कभी सोचा भी नहीं था. फिर भी मन में ऊहापोह की स्थिति थी. नितीश सचमुच ऐसा ही है या केवल दिखावा कर रहा है और विवाह के बाद उस का कोई दूसरा ही रूप सामने आएगा.

मगर अनिर्णय की स्थिति अधिक देर तक नहीं रही. सच तो यह था कि उस के विवाह को ले कर घर में पसरा तनाव सारी सीमाएं लांघ गया था. अपने लिए न सही पर मातापिता की खुशी के लिए वह शादी करने को तैयार थी.

मीना की मां ममता तथा पिता प्रकाश बड़ी बेचैनी से मीना और नितीश के फैसले की प्रतीक्षा कर रहे थे. नितीश के मातापिता भी यही चाहते थे कि किसी तरह वह शादी के लिए हां कर दे तो वे चैन की सांस लें.

जैसे ही नितीश और मीना ने विवाह के लिए सहमति जताई तो घर में मानो नई जान पड़ गई. ममता तो मीना के विवाह की आशा ही त्याग चुकी थीं. उन्हें पहले तो अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हुआ और जब हुआ तो वे फफक उठीं. ‘‘ये तो खुशी के आंसू है,’’ ममता झट आंसू पोंछ कर अतिथिसत्कार में जुट गई थीं.

दोनों ही पक्ष जल्द शादी के इच्छुक थे. पहले ही इतनी देर हो चुकी थी. अब 1 दिन की देरी भी उन के लिए अंसहनीय थी.

हफ्ते भर के अंदर ही शादी संपन्न हो गई. शादी के बाद मीना और नितीश जिस आनंदमय स्थिति में थे वैसा आमतौर पर किस्सेकहानियों में होता होगा. मधुयामिनी से लौटी मीना के चेहरे पर अनोखी चमक देख कर उस के मातापिता भी पुलकित हो उठे थे.

मगर जीवन सदा सीधी राह पर ही तो नहीं चला करता. अचानक मीना की सेहत बिगड़ने लगी. वह बुझी सी रहने लगी. दूसरों को भी प्रेरित करने वाली ऊर्जा मानो खो सी हो गई थी.

तबीयत सुधरते न देख नितीश उसे डाक्टर के पास ले गया. डाक्टर ने जब नए मेहमान के आने का शुभ समाचार सुनाया तो मीना का व्यवहार सर्वथा अप्रत्याशित था. वह अपनी सुधबुध खो बैठी. डाक्टर बड़े प्रयत्न से उसे होश में लाईं तो चीखचिल्ला कर मीना ने पूरा नर्सिंगहोम सिर पर उठा लिया. आसपास के लोग डाक्टर रमोला के कक्ष की ओर कुछ इस तरह दौड़ आए मानो कोई अनहोनी घट गईर् हो.

‘‘इस तरह संयम खोने से कोई भी समस्या हल नहीं होगी मीनाजी. मैं ने तो सोचा था कि आप यह शुभ समाचार सुन कर फूली नहीं समाएंगी. खुद को संभालिए. मैं ने ऐसे व्यवहार की आशा तो सपने में भी नहीं की थी. डाक्टर रमोला मीना को समझाने का प्रयत्न कर रही थीं. मगर मीना तो एक ही रट लगाए थी कि वह किसी भी कीमत पर इस अनचाहे गर्भ से छुटकारा पाना चाहती थी.’’

‘‘माफ कीजिए, मैं आप को इस आयु में गर्भपात की सलाह नहीं दूंगी.’’

‘‘मैं आप की सलाह नहीं मांग रही…बहुत नम्रता से कहूं तो अनुरोध कर रही हूं. आप को दोगुनी या तिगुनी फीस भी देने को तैयार हूं.’’

‘‘माफ कीजिए, मैं किसी कीमत पर यह काम कभी न करूंगी और न ही आप को गर्भपात करवाने की सलाह दूंगी.’’

‘‘आप क्या समझती हैं कि शहर में और कोई डाक्टर नहीं है? चलो कहीं और चलते हैं,’’ मीना बड़े तैश में नितीश के साथ डाक्टर रमोला के कक्ष से बाहर निकल गई.

‘‘मेरे विचार से पहले घर चलते है. सोचसमझ कर फैसला करेंगे कि क्या और कैसे करना है? किस डाक्टर के पास जाना है,’’ कार में बैठते ही नितीश ने सुझाव दिया.

‘‘मैं सब समझती हूं. तुम सब की मिलीभगत है. तुम चाहते ही नहीं कि मैं इस मुसीबत से छुटकारा पा सकूं.’’

‘‘क्या कह रही हो मीना? लगता है 1 साल बाद भी तुम मुझे समझ नहीं सकीं. मुझे तुम्हारे स्वास्थ्य की चिंता है. मैं ने तुम्हारे और अपने मातापिता को सूचित कर दिया है. कोई फैसला लेने से पहले सलाह आवश्यक है.’’

‘‘किस से पूछ कर सूचित किया तुम ने? मुझे तो लगता है कि डाक्टर रमोला के कान भी तुम ने ही भरे थे. सब पुरुष एकजैसे होते हैं. साफ क्यों नहीं कहते कि तुम मेरी ग्रोथ से जलते हो. इसीलिए राह में रोड़े अटका रहे हो,’’ मीना एक ही सांस में बोल गई.

मीना का रोनाधोना न जाने कब तक चलता पर तभी उस की मां ममता का फोन आ गया. उन्होंने सख्त हिदायत दी कि वे पहली गाड़ी से पहुंच रही हैं. तब तक धैर्य से काम लो.

मीना छटपटा कर रह गई. वह समझ गई कि इस मुसीबत से निकल पाना आसान नहीं होगा.

दूसरे दिन सवेरे तक घर में मेहमानों की भीड़ लग गई थी. सब ने एकमत से घोषणा कर दी कि कुदरत के इस वरदान को अभिशाप में बदलने का मीना  को कोई अधिकार नहीं.

मीना मनमसोस कर रह गई. फिर भी उस ने निर्णय किया कि अवसर मिलते ही वह इस मुसीबत से छुटकारा अवश्य पा लेगी.

लाख चाहने पर भी मीना को अवसर नहीं मिल रहा था. उस के तथा नितीश के मातापिता एक पल के लिए भी उसे अकेला नहीं छोड़ते थे.

उस की मां ममता ने तो बच्चे को पालने का भार अपने कंधों पर लेने की घोषणा भी कर दी थी. फिर भला नितीश की मां कब पीछे रहने वाली थीं. उन्होंने भी अपने सहयोग का आश्वासन दे डाला था.

अब मीना बेचैनी से उस पल का इंतजार कर रही थी जब बच्चे के जन्म के साथ ही उसे इस शारीरिक तथा मानसिक यातना से छुटकारा मिलेगा. वह अकसर नितीश से परिहास करती कि नारी के साथ तो कुदरत ने भी पक्षपात किया है. तभी तो सारी असुविधाएं नारी के ही हिस्से आई हैं.

समय आने पर बच्चे का जन्म हुआ. सब कुछ ठीकठाक निबट गया तो सब ने राहत की सांस ली.

बच्चे को गोद में लेते हुए ममता तो रो ही पड़ी, ‘‘आज 35-36 साल बाद घर में बच्चे की किलकारियां गूजेंगी. कुदरत इतनी प्रसन्नता देगी, मैं ने तो इस की कल्पना भी नहीं की थी,’’ वे भरे गले से बोलीं.

‘‘यह तो बिलकुल अपने दादाजी पर गया है. वैसे तीखे नैननक्श, वैसा ही रोबीला चेहरा. तुम लोगों ने इस का नाम क्या सोचा है? नितीश की मां बच्चे को दुलारते हुए बोलीं.

‘‘आप लोग ही पालोगे इसे, नाम भी आप ही सोच लेना,’’ नितीश ने शिशु को गोद में ले कर ध्यान से देखा.

मीना कुतूहल से सारा दृश्य देख रही थी. वह बिस्तर पर बैठी थी. नितीश ने बच्चा उस के हाथों में दे दिया.

मीना को लगा मानो पूरे शरीर में बिजली दौड़ गईर् हो. उस ने बच्चे की बंद आंखों पर उंगलियां फेरी, छोटेछोटे हाथों की उंगलियां खोलने का प्रयत्न किया और नन्हे से तलवों को प्यार से सहलाया.

मीना को पहली बार आभास हुआ कि वह इस नन्ही सी जान को स्वयं से दूर करने की बात सोच भी नहीं सकती. उस ने शिशु को कलेजे से लगा लिया. और फिर उस कोमल, मीठे स्पर्शसुख में भीगती चली गई जिसे शब्दों में नहीं बयां किया जा सकता था. दूर खड़ा नितीश मीना के चेहरे के बदलते भावों को देख कर ही सब कुछ समझ गया था जैसे दूर क्षितिज से पहली सूर्यकिरण अपनी मौजूदगी दर्ज करा रही हो.

सुजैन खान बॉयफ्रेंड संग इंजॉय कर रही हैं वेकेशन, देखें Photos

बॉलीवुड एक्टर ऋतिक रोशन की एक्स वाइफ सुजैन खान (Sussanne Khan) सोशल मीडिया पर कॉफी एक्टिव रहती है. वो अक्सर फैंस के साथ अपनी खूबसूरत तस्वीरें शेयर करती रहती हैं. अब उन्होंने बॉयफ्रेंड अर्सलान संग अपनी तस्वीरें शेयर की हैं.

सुजैन खान ने अपनी इंस्टाग्राम पर अर्सलान के साथ कुछ  तस्वीरें और वीडियो शेयर किया है. एक तस्वीर में आप देख सकते हैं कि सुजैन खान रेड कलर के शॉर्ट बॉडी कॉन ड्रेस मैं बेहद ग्लैमरस और स्टनिंग लग रही हैं. जबकि अर्सलान ने ब्लैक शर्ट और जैकेट पहना है. दोनों फोटो मैं एक साथ पोज देते हुए शानदार लग रहे हैं.

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हाल ही में  अर्सलान और सुजैन कैलिफोर्निया से समर वेकेशन के बाद मुंबई लौटे थे.  कुछ दिन पहले ही खबर आई थी कि सुजैन और  अर्सलान  शादी कर रहे हैं.  एक  रिपोर्ट के अनुसार अर्सलान ने शादी को लेकर सवाल किया गया तो उन्होंने कहा, मुझे अपने निजी जीवन के बारे में बात करना पसंद नहीं है, यहां तक कि मैं अपने दोस्तों के साथ भी शेयर नहीं करता.

 

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अर्सलान ने आगे कहा कि मैं इसी तरह का इंसान हूं. वैसे भी मेरी पर्सनल लाइफ के आसपास बहुत सारी बातें हैं.

 

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धर्मेंद्र के साथ वापसी करेगी ‘‘फूल और कांटे’’ फेम मधु, पढ़ें खबर

हेमा मालिनी की भांजी और ईशादे ओलकीक जिन मधु ने 1991 में निर्माता वीरू देवगन की फिल्म ‘‘फूल और कांटे’’ से अजय देवगन के साथ ही अपने अभिनय कैरियर की शुरूआत की थी. इस फिल्म की शूटिंग के ही दौरानउन्हे एक तमिल और दो मलयालम भाषा की फिल्में भी मिल गयी थी. ‘फूल और कांटे’ की सफलता से वह भी अजय देवगन के साथ स्टार बन गयी थी.इतना ही नहीं वह फिल्म फेयर अवार्ड के लिए भी नोमीनेट हुई थीं.पर वह दो वर्ष तक तमिल,तेलगू,मलयालम व कन्नड़ सिनेमा हीकरती रहीं.1992 में मणिरत्नम की फिल्म ‘रोजा’ में उन्हें काफी पसंद किया गया था.उसके बाद ‘पहचान’,ऐलान’ व ‘प्रेम योग’ जैसी हिंदी फिल्मों में नजर आयी.इसके बाद तो हिंदी फिल्में ही वह ज्यादा करती रही.बीच बीच में दक्षिणभारत की फिल्में भी कर लिया करती थीं.1999 तक मधु ने ‘जालिम’, ‘हथकड़ी’, ‘रावणराज’, दिलजले’, ‘रिटर्न आफ ज्वेल थीफ’ व ‘चेहरा’ सहित कईफिल्में की. 1999 में मधु ने विवाह कर लिया और फिर उनके अभिनय कैरियर की गति धीमी पड़ गयी.2011 में वह ‘टेल मी खुदा’ व ‘लव यू मिस्टर कलाकार’ में नजर आयी थीं. और अब वह पूरे दस वर्ष बाद मनोज शर्मा निर्देशित हौरर कौमेडी फिल्म ‘‘खलीबली’’ से वह सुर्खियां बटोर रही हैं.

16 सितंबर को प्रदर्शित हो रही हौरर कौमेडी फिल्म ‘‘खलीबली’’ के निर्माता कमल किशोर मिश्रा ने हाल ही में फिल्म ‘‘खलीबली’’ का ट्रेलर व गानें लांच किए. इस अवसरपर मधु के अलावा निर्माता कमल किशोर मिश्रा,निर्देशक मनोज शर्मा, अभिनेता रोहन मेहरा और योगेश लखानी मौजूद थे. इस फिल्म में धर्मेंद्र,रजनीशदुग्गल, राजपाल यादव, कायनात अरोड़ा के अलावा कई कलाकार भी हैं.

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एक तरफ इस फिल्म से मधु की बौलीवुड में वापसी हो रही हैं,वहीं वह पहली बार हौरर कौमेडी जॉनर की फिल्म में नजर आने वाली हैं.तो ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ फेम टीवी कलाकार रोहन मेहरा इस फिल्म से फिल्मोंमेंकदम रख रहे हैं.

ट्रेलर व गानों के लांच के बाद मधु नेकहा- ‘‘मुझे फिल्म ‘खलीबली’ में काम कर के बहुत मजा आया. क्योंकि मैंने पहली बार हॉरर कॉमेडी जॉनर में काम किया है. आजकल हॉरर कॉमेडी फिल्में काफी पसंद की जा रही हैं. उम्मीद है कि हमारी इस फिल्म को भी दर्शक पसंद करेंगे. हमने काफी पहले इसकी शूटिंग शुरू की थी, फिर कोविड की वजह से दोसाल निकल गए, अब यह सिनेमाघरों तक पहुंचने के लिए तैयार है.’’

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निर्देशक मनोज शर्मा नेकहा-‘‘मैं अपने निर्माता कमल किशोर मिश्रा का दिल से आभार व्यक्त करता हूं.मैने इनके साथ तीन फिल्मे बनाई हैं.फिल्म में धर्मेंद्र,रजनी शदुग्गल, कायनात अरोड़ा जैसे कई मंझे हुए कलाकार हैं.इन तमाम लिजेंड्री कलाकारों को एक ही फिल्म में लेकर आना बड़ी चुनौती थी, जिसे करना मेरे लिए बड़ी उपलब्धि है.16 सितंबर को फिल्म रिलीज हो रही हैं, सभी की दुआओं की जरूरत है.’’

बतौर निर्माता प्रदर्शित होने वाली कमल किशोर मिश्रा की यह दूसरी फिल्म है.इस फिल्म से पहले उनकी फिल्म ‘‘देहाती डिस्को’’ प्रदर्शित हो चुकी है.इस फिल्म की एक और खासियत यह है कि इसमें होडिंग्सलगाने के व्यापार से जुड़ी कंपनी ‘‘ब्राइट आउटडोर’’ के मालिक योगेश लखानी ने भी असरानी व रजनीश दुग्गल के साथ एक छोटा सा किरदार निभाया है.

धर्म की जड़

एक धर्म प्रचारक टैलीग्राम चैनल पर एक महानुभाव, जो अपना नाम विलाव दावड़ा लिखते हैं, दावा करते हैं कि एक मंदिर के पास 10,80,00,000 रुपए की संपति थी जिसे ब्राह्मणों ने कुछ हजार रुपए के लालच में लूटने दिया और अपना चोरी का हिस्सा ले कर पूरे विश्व में वर्ण ब्रहता को बदनाम कर दिया.

मंदिरों की संपत्ति को ले कर इस तरह के बेसिरपैर के दावे आज भी हो रहे हैं और पहले भी होते रहे हैं. फर्क यह है कि आधुनिक टैक्नोलौजी के कारण आज ये दूरदूर तक फैलाए जा सकते है. पहले अपनेअपने धर्म का चोगा पहन कर इस तरह के झूठ प्रचारक घरघर पहुंचाते थे. वह काम कठिन था और उस के लिए प्रचारकों को अपने खानेपीने, पहनने व रहने की व्यवस्था करनी पड़ती थी.

हर धर्म में चमत्कारों का बहुत महत्त्व रहा है. हर धर्म के ग्रंथों में कहानियों का भंडार है जिन में रहस्य, रोमांच, प्रेम, हत्या, पुनर्जीवित होना, भूतप्रेत बनना सब शामिल हैं. हर धर्म कहता रहता है कि उस के पास अमर रहने का फार्मूला है. वह बीमारियों को ठीक कर सकता है, पहाड़ों को हिला सकता है, समुद्र को सुखा सकता है, आसमान में उड़ सकता है.

लेकिन हर धर्म का असल उद्देश्य वही है जो विलाव दावड़ा ने बताया- पैसा जमा करना. अगर ऐसा कोई मंदिर कहीं था जिस के पास अरबों रुपयों की संपत्ति थी तो सवाल उठता है कि वह संपत्ति आखिर जमा कैसे हुई? इस भारीभरकम संख्या का उद्देश्य यही है कि हर गांव, कसबे या मंदिर उतना नहीं तो लाखों तो मंदिर के नाम पर जमा करे.

मंदिरों में जमा पैसों की कहानियां सुनसुन कर बहुत से लुटेरे मंदिरों पर आक्रमण करते थे. आक्रमणकारियों में कुछ विद्यर्मी होते थे, कुछ विदेशी. हर आक्रमण में कुछ निर्दोष भक्त भी मारे जाते रहे हैं. सोमनाथ के मंदिर की कहानियां आज भी भारतीयों के मस्तिष्क में बैठी हैं जबकि उस का इतिहास घटना के कई दशकों बाद एक मुसलिम इतिहासकार ने लिखा था. सोमनाथ मंदिर की संपत्ति का बढ़ाचढ़ा कर वर्णन आज भी आम हिंदू को बेहद टीस होने वाला है पर यही टीस भक्त को अपने निकट के मंदिर या अपने इष्ट देवता के मंदिर को भरपूर चढ़ावा देने को प्रेरित करती है.

इस सपंत्ति का क्या होता है, यह भी भक्त प्रचारक ने 5 लाइनों के मैसेज में लिख दिया कि कुछ हजारों के लालच में मंदिर के रखवालों ने ही लुटवा दिया. यह आज भी हो रहा है.

धर्म की जड़ भक्तों का पैसा है. इसी मुफ्त के पैसे को पाने के लिए हर धर्म के भक्तों और प्रचारकों की भीड़ जमा होती है. भक्त देते और प्रचारक बिना काम किए खाते हैं. भक्त अनाज उगाते, जानवर पालते, शिकार करते, जोखिम लेते, शरीर तोड़ते, जबकि प्रचारक कहानियों के बदले अपने मंदिरों के लिए पैसा जमा करते हैं.

हर क्षेत्र में राजा के बाद सब से ज्यादा बड़ा भवन धर्म का होता है. वहीं, कई जगह धर्म का भवन राजा के भवन से भी बड़ा होता है. धर्म के नाम पर लोगों को उकसा कर एकदूसरे को मारने को तैयार किया जाता रहा है. सब से नए युद्ध रूस-यूक्रेन युद्ध में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को उकसाने वाला और्थोडौक्स क्रिश्चियन चर्च था. …???पैट्रियार्क किरील दी है…??? वह नहीं चाहता कि यूक्रेन का और्थोडौक्स चर्च उस का प्रभुत्व मानने से इनकार कर दे.

लाल भिंडी: वैज्ञानिक तकनीक से बंपर कमाई

डा. शैलेंद्र सिंह, डा. एसके तोमर, डा. एसपी सिंह, डा. एसके सिंह, डा. कंचन

भारतीय किसान पारंपरिक फसलों की खेती से परे अब नईनई फसलें और तकनीकों से खेती कर रहे हैं. किसान नई फसलों को अपने खेतों में स्थान दे कर अच्छी कमाई कर रहे हैं.

ड्रैगन फ्रूट की खेती के बाद अब भारतीय किसान लाल भिंडी की खेती करने के लिए उत्सुक हैं. आप ने हरी भिंडी के बारे में जरूर सुना होगा, लेकिन लाल भिंडी के बारे में शायद ही पहली बार पढ़ रहे होंगे. इसे ‘काशी लालिमा’ भी कहा जाता है.

भिंडी की इस किस्म की कीमत बाजार में काफी ज्यादा है. बड़े शहरों के लोग इसे ऊंचे दामों पर भी खरीदने के लिए तैयार हैं यानी इस की खेती कर के किसान बंपर कमाई कर सकते हैं.

लाल भिंडी की खेती कैसे करें

बाजार में हरी भिंडी की डिमांड हमेशा रहती है और अब लाल भिंडी की ओर लोग आकर्षित हो रहे हैं, क्योंकि हरी भिंडी के मुकाबले इस में पोषक तत्त्वों की मात्रा ज्यादा होती है.

भिंडी की इस नई किस्म की खेती कर के किसान बाजार से अच्छा पैसा कमाना चाहते हैं. लेकिन ऐसे कई किसान हैं, जो यह नहीं जानते कि लाल भिंडी की खेती कैसे की जाती है.

हरी सब्जी सेहत के लिए अच्छी मानी जाती है, लेकिन अब इन के रंगों में बदलाव किया जा रहा है. हरी दिखने वाली भिंडी अब आप को लाल रंग में भी दिखाई देगी. उत्तर प्रदेश के वाराणसी स्थित भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान ने भिंडी को लाल रंग में उगाया और वे ऐसा करने में कामयाब भी हुए. इसे ‘काशी लालिमा’ नाम दिया गया.

भिंडी की इस नई किस्म ‘काशी लालिमा’ में हरी भिंडी के मुकाबले ज्यादा पोषक तत्त्व होते हैं. बाजार में इस के बीज उपलब्ध होने के बाद से मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ में किसानों ने इस की खेती करना शुरू कर दिया है.

अनुकूल जलवायु और उपयुक्त मिट्टी

जलवायु और तापमान : साल में 2 बार लाल भिंडी की खेती की जा सकती है. फरवरीमार्च व जूनजुलाई महीने में आप इस की खेती कर सकते हैं. इस की खेती के लिए गरम और कम आर्द्र जलवायु अनुकूल होती है. पौधों के विकास के लिए 5-6 घंटे की धूप आवश्यक होती है. साथ ही, इसे ज्यादा पानी की जरूरत भी नहीं होती.

मध्य प्रदेश व उत्तर प्रदेश के किसानों ने लाल भिंडी की खेती करना शुरू कर दिया है. देश में लगभग सभी राज्यों में इस की खेती की जा सकती है.

उपयुक्त मिट्टी : बलुई दोमट मिट्टी लाल भिंडी की खेती के लिए उपयुक्त है. ध्यान रहे कि मिट्टी जीवांश व कार्बनिक पदार्थ वाली होनी चाहिए. बीज/पौध रोपण करने से पूर्व मिट्टी के पीएच मान की जांच अवश्य करा लें. इस की खेती के लिए मिट्टी का पीएच मान सामान्य होना चाहिए.

खेत तैयार करने की प्रक्रिया

*  किसान मानसून व ग्रीष्म ऋतु के समय लाल भिंडी की खेती कर सकते हैं.

* बोआई से पहले अच्छी तरह खेत की जुताई करें और कुछ समय के लिए खेत को खुला छोड़ दें.

* यदि आप इस की खेती कर रहे हैं,

तो इस में गोबर की सड़ी खाद डालें और अच्छी तरह खेत की जुताई कर दें. ऐसा

करने से गोबर की खाद मिट्टी में अच्छी तरह मिल जाएगी.

* प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 100 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस और 50 किलोग्राम पोटाश खेत में डाल दें.

* अब खेत में पानी दें और पलेवा कर दें.

* 2-3 दिन बाद जब जमीन की ऊपरी सतह सूखने लगे, तब दोबारा इस की जुताई कर दें.

* इस के बाद खेत को समतल करने के लिए पाटा चला दें.

बीज रोपण की विधि

खेत तैयार करने के बाद अब बीज रोपण की बारी आती है. इस के लिए सब से पहले ‘काशी लालिमा’ के बीजों को 10-12 घंटे के लिए पानी में भिगो कर रख दें. बीज का अच्छी तरह से अंकुरण हो, इस के लिए इन्हें छाया में सुखा दें.

लाल भिंडी के पौधों को लाइन से रोपित करें. लाइन से लाइन की दूरी 45-60 सैंटीमीटर व लाइन में पौधे से पौधे के बीच 25-30 सैंटीमीटर की दूरी रखें.

औनलाइन खरीद सकते हैं

लाल भिंडी के बीज

अगर आप अपने खेत में लाल भिंडी के बीज लगाना चाहते हैं, तो इस समय आप के स्थानीय बाजार में ये शायद ही उपलब्ध हों. लेकिन आप औनलाइन माध्यम से इस के बीज हासिल कर सकते हैं. औनलाइन ई-कौमर्स वैबसाइट से आप इन बीजों की खरीदी कर सकते हैं.

रोग व बचाव

वैसे तो अन्य सब्जियों के मुकाबले लाल भिंडी में कम रोग लगते हैं. भिंडी की इस किस्म में मच्छर, इल्ली और दूसरे कीट जल्दी नहीं लगते, लेकिन इस के पौधे को लाल मकड़ी से खतरा रहता है. ये पौधों की पत्तियों के नीचे की सतह पर झुंड बना कर रहने लगती हैं और इन का रस चूसते रहते हैं. इस से पौधे का विकास रुक जाता है और धीरेधीरे पूरा पौधा पीला हो कर सूख जाता है.

इस से बचने के लिए पौधों पर इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल की 10 मिलीलिटर दवा प्रति 15 लिटर पानी में घोल बना कर छिड़काव करना चाहिए.

लाल भिंडी की कीमत व कमाई

बाजार में मिलने वाली सामान्य भिंडी की अपेक्षा लाल भिंडी की कीमत काफी ज्यादा है. हरी भिंडी जहां 50 रुपए प्रति किलोग्राम तक की कीमत पर मिलती है, वहीं लाल भिंडी की कीमत 80 से 100 रुपए किलोग्राम तक जाती है. एक एकड़ में तकरीबन 40 से 50 क्विंटल तक उत्पादन हो सकता है.

इस की फसल भी सामान्य भिंडी की अपेक्षा जल्दी तैयार हो जाती है. 45 से 50 दिनों में यह फसल पक कर तैयार हो जाती है. इस की खेती से आप कम समय में ही अच्छी कमाई कर सकते हैं.

Manohar Kahaniya: टूट गया दिव्या के प्यार का सुर और ताल

त्यौहार 2022: मेरा प्यार था वह

मुझे ऐसा लगा कि नीरज वहीं उस खिड़की पर खड़ा है. अभी अपना हाथ हिला कर मेरा ध्यान आकर्षित करेगा. तभी पीछे से किसी का स्पर्श पा कर मैं चौंकी.

‘‘मेघा, आप यहां क्या कर रही हैं? सब लोग नाश्ते पर आप का इंतजार कर रहे हैं और जमाईजी की नजरें तो आप ही को ढूंढ़ रही हैं,’’ छेड़ने के अंदाज में भाभी ने कहा.

सब हंसतेबोलते नाश्ते का मजा ले रहे थे, पर मुझे कुछ अच्छा नहीं लग रहा था. मैं एक ही पूरी को तोड़े जा रही थी.

‘‘अरे मेघा, खा क्यों नहीं रही हो? बहू, मेघा की प्लेट में गरम पूरियां डालो,’’ मां ने भाभी से कहा.

‘‘नहीं, मुझे कुछ नहीं चाहिए. मेरा नाश्ता हो गया,’’ कह कर मैं उठ गई.

प्रदीप भैया मुझे ही घूर रहे थे. मुझे भी उन पर बहुत गुस्सा आ रहा था कि आखिर उन्होंने मेरी खुशी क्यों छीन ली? पर वक्त की नजाकत को समझ कर मैं चुप ही रही. मां पापा भी समझ रहे थे कि मेरे मन में क्या चल रहा है. मैं नीरज से बहुत प्यार करती थी. उस के साथ शादी के सपने संजो रही थी. पर सब ने जबरदस्ती मेरी शादी एक ऐसे इनसान से करवा दी, जिसे मैं जानती तक नहीं थी.

‘‘मां, मैं आराम करने जा रही हूं,’’ कह कर मैं जाने ही लगी तो मां ने कहा, ‘‘मेघा, तुम ने तो कुछ खाया ही नहीं… जूस पी लो.’’

‘‘मुझे भूख नहीं है,’’ मैं ने मां से रुखे स्वर में कहा.

‘‘मेघा, ससुराल में सब का व्यवहार कैसा है और तुम्हारा पति सार्थक, तुम्हें प्यार करता है कि नहीं?’’ मां ने पूछा.

‘‘सब ठीक है मां,’’ मन हुआ कि कह दूं कि आप लोगों से तो सब अच्छे ही हैं. फिर मां कहने लगी, ‘‘सब का मन जीत लेना बेटा, अब वही तुम्हारा घर है.’’

‘‘मांबेटी में क्या बातें हो रही हैं?’’ तभी मेरे पति सार्थक ने कमरे में आते ही कहा.

‘‘मैं इसे समझा रही थी कि अब वही तुम्हारा घर है. सब की बात मानना और प्यार से रहना.’’

‘‘मां, आप की बेटी बहुत समझदार है. थोड़े ही दिनों में मेघा ने सब का मन जीत लिया,’’ सार्थक ने मेरी तरफ देखते हुए कहा.

मेरी शादी को अभी 3 ही महीने हुए थे, मैं शादी के बाद पहली बार मां के घर आई

थी. हमारे यहां आने से सब खुश थे, पर मेरी नजर तो अभी भी अपने प्यार को ढूंढ़ रही थी.

सार्थक ने रात में कमरे में आ कर कहा, ‘‘मेघा क्या हुआ? अगर कोई बात है तो मुझे बताओ. जब से यहां आई हो, बहुत उदास लग रही हो.’’

‘‘ऐसी कोई बात नहीं है,’’ मैं ने अनमने ढंग से जवाब दिया. सार्थक मुझे एकदम पसंद नहीं. मेरे लिए यह जबरदस्ती और मजबूरी का रिश्ता है, जिसे मैं पलभर में तोड़ देना चाहती हूं पर ऐसा कर नहीं सकती हूं.

‘‘अच्छा ठीक है,’’ सार्थक ने बड़े प्यार से कहा.

‘‘आज मेरे सिर में दर्द है,’’ मैं ने अपना मुंह फेर कर कहा.

रात करीब 3 बजे मेरी नींद खुल गई. सोने की कोशिश की, पर नींद नहीं आ रही थी. फिर पुरानी यादें सामने आने लगीं…

हमारे घर में सब से पहले मैं ही उठती थी. मेरे पापा सुबह 6 बजे ही औफिस के लिए निकल जाते थे. मैं ही उन के लिए चायनाश्ता बनाती थी. बाकी सब बाद में उठते थे.

मेरे पापा रेलवे में कर्मचारी थे, इसलिए हम शुरू से ही रेलवे क्वार्टर में रहे. रेलवे क्वार्टर्स के घर भले ही छोटे होते थे, पर आगे पीछे इतनी जमीन होती थी कि एक अच्छा सा लौन बनाया जा सकता था. हम ने भी लौन बना कर बहुत सारे फूलों के पौधे लगा रखे थे, शाम को हम सब कुरसियां लगा कर वहीं बैठते थे.

मेरे घर के सामने ही मेरी दोस्त नम्रता का घर था, उस के पापा भी रेलवे में एक छोटी पोस्ट पर काम करते थे. मैं और नम्रता एक ही स्कूल और एक ही क्लास में पढ़ती थीं. हम दोनों पक्की सहेलियां थीं. बेझिझक एकदूसरे के घर आतीजाती रहती थीं. एक रोज मैं और नम्रता बाहर खड़ी हो कर बातें कर रही थीं, तभी मेरी नजर उस के घर की खिड़की पर पड़ी तो देखा कि नीरज यानी नम्रता का बड़ा भाई मुझे एकटक देख रहा है. मुझे थोड़ा अजीब लगा. नीरज भी सकपका गया. मैं अपने घर के अंदर चली गई, पर बारबार मेरे दिमाग में उलझन हो रही थी कि आखिर वह मुझे ऐसे क्यों देख रहा था.

मैं ने महसूस किया कि वह अकसर मुझे देखता रहता है. नीरज का मुझे देखना मेरे दिल को धड़का जाता था. शायद नीरज मुझे पसंद करने लगा था. धीरेधीरे मुझे भी नीरज से प्यार होने लगा. हमारी आखें चार होने लगीं. उस की आंखों ने मेरी आंखों को बताया कि हमें एकदूसरे से प्यार हो गया है. अब तो हमेशा मैं उस खिड़की के सामने जा कर खड़ी हो जाती थी. नीरज की भूरी आंखें और सुनहरे बाल मुझे पागल कर देते थे. अब हम छिपछिप कर मिलने भी लगे थे.

सुबह मैं फिर उसी खिड़की के पास जा कर बैठ गई. तभी पीछे से किसी का स्पर्श पाकर मैं हड़बड़ा गई और मेरी सोच पर पूर्णविराम लग गया.

‘‘मेघा, तुम कब से यहां बाहर बैठी हो? चलो अंदर चाय बनाती हूं,’’  मां ने कहा.

‘‘मैं यहीं ठीक हूं मां, आप जाओ, मैं थोड़ी देर में आती हूं.’’

मां ने मुझे शंका भरी नजरों से देखते हुए कहा, ‘‘तुम अभी तक उस लफंगे को नहीं भूली हो? अरे, सब कुछ एक बुरा सपना समझ कर क्यों नहीं भूल जाती हो? उसी में सब की भलाई है. बेटा, अब तुम्हारी शादी हो चुकी है, अपनी घरगृहस्थी संभालो. अपने पति को प्यार करो. इतना अच्छा जीवनसाथी और ससुराल मिली है. एक लड़की को और क्या चाहिए?’’

मां की बातों से मुझे रोना आ गया. मेरी गलती क्या थी? यही न कि मैं ने प्यार किया और प्यार करना कोई गुनाह तो नहीं है? अपने पति से कैसे प्यार करूं. जब मुझे उन से प्यार ही नहीं है?

‘‘अब क्यों रो रही हो? अगर तेरी करतूतों के बारे में जमाई राजा को पता चल गया, तो क्या होगा? अरे बेवकूफ लड़की, क्यों अपना सुखी संसार बरबाद करने पर तुली हो,’’ मां ने गुस्से में कहा.

‘‘कौन क्या बरबाद कर देगा मांजी?’’ सार्थक ने पूछा? जैसे उन्होंने हमारी सारी बातें सुन ली हों.

मां हड़बड़ा कर कहने लगी, ‘‘कुछ नहीं जमाईजी, मैं तो मेघा को यह समझाने की कोशिश कर रही थी कि अब पिछली बातें भूल जाओ… यह अपनी सब सहेलियों को याद कर के रो रही हैं.’’

‘‘ऐसे कैसे भूल जाएगी अपनी सहेलियों को… स्कूलकालेज अपने दोस्तों के साथ बिताया वह पल ही तो हम कभी भी याद कर के मुसकरा लेते हैं,’’ सार्थक ने कहा, ‘‘मेघा, दुनिया अब बहुत ही छोटी हो गई है. हम इंटरनैट के जरीए कभी भी, किसी से भी जुड़ सकते हैं.’’

हम मां के घर 3-4 दिन रह कर अपने घर रांची चल दिए. पटना से रांची करीब 1 दिन का रास्ता है. सार्थक तो सो गए पर ट्रेन की आवाज से मुझे नींद नहीं आ रही थी. मैं फिर वही सब सोचने लगी कि कैसे मेरे परिवार वालों ने हमारे प्यार को पनपने नहीं दिया.

प्रदीप भैया को कैसे भूल सकती हूं. उन की वजह से ही मेरा प्यार अधूरा रह गया था. मेरी आंखों के सामने ही उन्होंने नीरज को कितना मारा था. अगर तब नीरज की मां आ कर प्रदीप भैया के पैर न पकड़ती, तो शायद वे नीरज को मार ही डालते. उस दिन के बाद हम दोनों कभी एकदूसरे से नहीं मिले.

भैया ने तो यहां तक कह दिया था नीरज को कि आइंदा कभी यहां नजर आया या  मेरी बहन को नजर उठा कर भी देखने की कोशिश की, तो मार कर ऐसी जगह फेंकूंगा कि कोई ढूंढ़ नहीं पाएगा.

प्रदीप भैया की धमकी से डर कर नीरज और उस के परिवार वाले यहां से कहीं और चले गए.

नम्रता को हमारे प्यार के बारे में सब पता था. एक दिन नम्रता मेरी मां से यह कह कर मुझे अपने घर ले गई कि हम साथ बैठ कर पढ़ाई करेंगी. हमारी 12वीं कक्षा की परीक्षा अगले महीने शुरू होने वाली थी. अत: मां ने हां कर दी. अब तो हमारा मिलना रोज होने लगा.

एक रोज जब मैं नम्रता के घर गई तो कोई नहीं दिखा सिर्फ नीरज था. उस ने बताया कि नम्रता और मां बाहर गई हैं. मैं वापस अपने घर आने लगी तभी नीरज ने मेरा हाथ अपनी ओर खींचा.

‘‘नीरज, छोड़ो मेरा हाथ कोई देख लेगा,’’ मैं ने नीरज से कहा.

‘‘कोई नहीं देखेगा, क्योंकि घर में मेरे अलावा कोई है ही नहीं,’’ उस ने शरारत भरी नजरों से देखते हुए कहा. उस की नजदीकियां देख कर मेरा दिल जोरजोर से धड़कने लगा. मैं अपनेआप को नीरज से छुड़ाने की कोशिश कर भी रही थी और नहीं भी. मैं ने अपनी आंखें बंद कर लीं. तभी उस ने मेरे अधरों पर अपना होंठ रख दिया.

‘‘नीरज, यह क्या किया तुम ने? यह तो गलत है.’’

‘‘इस में गलत क्या है? हम एकदूसरे से प्यार करते हैं,’’ कह कर उस ने मेरे गालों को चूम लिया.

किसी को हमारे प्यार के बारे में अब तक कुछ भी पता नहीं था, सिर्फ नम्रता को छोड़ कर सुनहरे सपनों की तरह हमारे दिन बीत रहे थे. हमारे प्यार को 3 साल हो गए.

नीरज की भी नौकरी लग गई, और मेरी भी स्नातक की पढ़ाई पूरी हो गई. अब तो हम अपनी शादी के सपने भी संजोने लगे.

मैं ने नीरज को अपने मन का डर बताते हुए कहा, ‘‘नीरज, अगर हमारे घर वाले हमारे शादी नहीं होने देंगे तो?’’

‘‘तो हम भाग कर शादी कर लेंगे और अगर वह भी न कर पाए तो साथ मर सकते हैं न? बोलो दोगी मेरा साथ?’’

‘‘हां नीरज, मैं अब तुम्हारे बिना एक दिन भी नहीं सकती हूं,’’ मैं ने उस के कंधे पर अपना सिर रखते हुए कहा.

हमें पता ही नहीं चला कि कब प्रदीप भैया ने हमें एकदूसरे के साथ देख लिया था.

मेरे और नीरज के रिश्ते को ले कर घर में बहुत हंगामा हुआ. मुझे भैया से बहुत मार भी पड़ी. अगर भाभी बीच में न आतीं, तो शायद मुझे मार ही डालते. उस वक्त मांपापा ने भी मेरा साथ नहीं दिया था.

जल्दीजल्दी में मेरी शादी तय कर दी गई. इन जालिमों की वजह से मेरा प्यार अधूरा रह गया. कभी माफ नहीं करूंगी इन प्यार के दुश्मनों को.

‘‘हैलो मैडम, जरा जगह दो… मुझे भी बैठना है,’’ किसी अनजान आदमी ने मुझे छूते हुए कहा, तो मैं चौंक उठी.

मैं ने कहा, ‘‘यह तो आरक्षित सीट है.’’ तभी 2 लोग और आ गए और मेरे साथ बदतमीजी करने लगे. मैं चिल्लाई, ‘‘सार्थक.’’

सार्थक हड़बड़ा कर उठ गए. जब उन्होंने देखा कि कुछ लड़के मेरे साथ छेड़खानी करने लगे हैं, तो वे सब पर टूट पड़े. रात थी, इसलिए सारे पैसेंजर सोए हुए थे. मैं तो डर गई कि कहीं चाकूवाकू न चला दें.

अत: मैं जोरजोर से रोने लगी. तब तक डिब्बे की लाइट जल गई और पैसेंजर उन बदमाशों को पकड़ कर मारने लगे. कुछ ही देर में पुलिस भी आ गई.

‘‘मेघा, तुम ठीक हो न, तुम्हें कहीं लगी तो नहीं?’’ सार्थक ने मुझे अपने सीने से लगा लिया. उन के सीने से लगते ही लगा जैसे मैं ठहर गई. अब तक तो बेवजह भावनाओं में बहे जा रही थी, जिन की कोई मंजिल ही न थी.

‘‘मैं ठीक हूं, मैं ने कहा.’’ सार्थक के हाथ से खून निकल रहा था, फिर भी उन्हें मेरी ही चिंता थी.

तभी किसी पैसेंजर ने कहा, ‘‘आप चिंता न करें भाई साहब इन्हें कुछ नहीं हुआ है. पर थोड़ा डर गई हैं. खून तो आप के हाथ से निकल रहा है.’’

तभी किसी ने आ कर सार्थक के हाथों पर पट्टी बांध दी. तब जा कर खून का बहना रुका.

मैं यह क्या कर रही थी? इतने अच्छे इनसान के साथ इतनी बेरुखी. सार्थक को अपने से ज्यादा मेरी चिंता हो रही थी… मैं इतनी स्वार्थी कैसे हो सकती हूं?

अब सार्थक ही मेरी दुनिया है, मेरे लिए सब कुछ है. नीरज तो मेरा प्यार था. सार्थक तो मेरा जीवनसाथी है.

त्यौहार 2022: बंद मुट्ठी- पंडितजी ने नीता से क्या कहा?

रविवार का दिन था. पूरा परिवार साथ बैठा नाश्ता कर रहा था. एक खुशनुमा माहौल बना हुआ था. छुट्टी होने के कारण नाश्ता भी खास बना था. पूरे परिवार को इस तरह हंसतेबोलते देख रंजन मन ही मन सोच रहे थे कि उन्हें इतनी अच्छी पत्नी मिली और बच्चे भी खूब लायक निकले. उन का बेटा स्कूल में था और बेटी कालेज में पढ़ रही थी. खुद का उन का कपड़ों का व्यापार था जो बढि़या चल रहा था.

पहले उन का व्यापार छोटे भाई के साथ साझे में था, पर जब दोनों की जिम्मेदारियां बढ़ीं तो बिना किसी मनमुटाव के दोनों भाई अलग हो गए. उन का छोटा भाई राजीव पास ही की कालोनी में रहता था और दोनों परिवारों में खासा मेलजोल था. उन की पत्नी नीता और राजीव की पत्नी रिचा में बहनापा था.

रंजन नाश्ता कर के बैठे ही थे कि रमाशंकर पंडित आ पहुंचे.

‘‘यहां से गुजर रहा था तो सोचा यजमान से मिलता चलूं,’’ अपने थैले को कंधे से उतारते हुए पंडितजी आराम से सोफे पर बैठ गए. रमाशंकर वर्षों से घर में आ रहे थे. अंधविश्वासी परिवार उन की खूब सेवा करता था.

‘‘हमारे अहोभाग्य पंडितजी, जो आप पधारे.’’

कुछ ही पल में पंडितजी के आगे नीता ने कई चीजें परोस दीं. चाय का कप हाथ में लेते हुए वे बोले, ‘‘बहू, तुम्हारा भी जवाब नहीं, खातिरदारी और आदर- सत्कार करना तो कोई तुम से सीखे. हां, तो मैं कह रहा था यजमान, इन दिनों ग्रह जरा उलटी दिशा में हैं. राहुकेतु ने भी अपनी दिशा बदली है, ऐसे में अगर ग्रह शांति के लिए हवन कराया जाए तो बहुत फलदायी होता है,’’ बर्फी के टुकड़े को मुंह में रखते हुए पंडितजी बोले.

‘‘आप बस आदेश दें पंडितजी. आप तो हमारे शुभचिंतक हैं. आप की बात क्या हम ने कभी टाली है  अगले रविवार करवा लेते हैं. जो सामान व खर्चा आएगा, वह आप बता दें.’’

रंजन की बात सुन पंडितजी की आंखों में चमक आ गई. लंबीचौड़ी लिस्ट दे कर और कुल 10 हजार का खर्चा बता वे निकल गए.

इस के 2 दिन बाद दोपहर में पंडितजी राजीव के घर बैठे कोल्ड डिं्रक पी रहे थे, ‘‘आप को आप के भाई ने तो बताया होगा कि वे अगले रविवार को हवन करवा रहे हैं ’’

पंडितजी की बात सुन कर राजीव हैरान रह गया, ‘‘नहीं तो पंडितजी, मुझे नहीं पता. क्यों रिचा, क्या भाभी ने तुम्हें कुछ बताया है इस बारे में ’’ अपनी पत्नी की ओर उन्होंने सवालिया नजरों से देखा.

‘‘नहीं तो, कल ही तो भाभी से मेरी फोन पर बात हुई थी, पर उन्होंने इस बारे में तो कोई जिक्र नहीं किया. कुछ खास हवन है क्या पंडितजी ’’ रिचा ने उत्सुकता से पूछा.

‘‘दरअसल वे इसलिए हवन कराने के लिए कह रहे थे ताकि कामकाज में और तरक्की हो. छोटी बहू, तुम तो जानती हो, हर कोई अपना व्यापार बढ़ाना चाहता है. आप लोगों का व्यापार क्या कम फैला हुआ है उन से, पर आप लोग जरा ठहरे हुए लोग हैं. इसलिए जितना है उस में खुश रहते हैं. बड़ी बहू का बस चले तो हर दूसरे दिन पूजापाठ करवा लें. उन्हें तो बस यही डर लगा रहता है कि किसी की बुरी नजर न पड़ जाए उन के परिवार पर.’’

अपनी बात को चाशनी में भिगोभिगो कर पंडितजी ने उन के सामने परोस दिया. उन के कहने का अंदाज इस तरह का था कि राजीव और रिचा को लगे कि शायद यह बात उन्हीं के संदर्भ में कही गई है.

‘‘हुंह, हमें क्या पड़ी है नजर लगाने की. हम क्या किसी से कम हैं,’’ रिचा को गुस्से के साथ हैरानी भी हो रही थी कि जिस जेठानी को वह बड़ी बहन का दर्जा देती है और जिस से दिन में 1-2 बार बात न कर ले, उसे चैन नहीं पड़ता, वह उन के बारे में ऐसा सोचती है.

‘‘पंडितजी, आप की कृपा से हमें तो किसी चीज की कमी नहीं है, पर आप कहते हैं तो हम भी पूजा करवा लेते हैं,’’ एक मिठाई का डब्बा और 501 रुपए उन्हें देते हुए राजीव ने कहा. उन्हें 15 हजार रुपए का खर्चा बता और उन के गुणगान करते पंडितजी तो वहां से चले गए पर राजीव और रिचा के मन में भाईभाभी के प्रति एक कड़वाहट भर गए. मन ही मन पंडितजी सोच रहे थे कि इन दोनों भाइयों को मूर्ख बनाना आसान है, बस कुनैन की गोली खिलाते रहना होगा.

अगले रविवार जब रंजन के घर वे हवन करा रहे थे तो नीता से बोले, ‘‘बड़ी बहू, मुझे जल्दी ही यहां से जाना होगा. देखो न, क्या जमाना आ गया है. तुम लोगों ने हवन कराने की बात की तो राजीव भैया मेरे पीछे पड़ गए कि हम भी आज ही पूजा करवाएंगे. बताया तो होगा, तुम्हें छोटी बहू ने इस बारे में ’’

‘‘नहीं, पंडितजी, रिचा ने तो कुछ नहीं बताया.’’

नीता उस के बाद काम में लग गई पर उसे बहुत बुरा लग रहा था कि रिचा उस से यह बात छिपा गई. जब उस ने उन्हें हवन पर आने का न्योता दिया था तो उस ने यह कह कर मना कर दिया था कि रविवार को तो उस के मायके में एक समारोह है और वहां जाना टाला नहीं जा सकता.

हालांकि तब नीता को इस बात पर भी हैरानी हुई थी कि आज तक रिचा बिना उसे साथ लिए मायके के किसी समारोह तक में नहीं गई थी तो इस बार अकेली कैसे जा रही है, पर यह सोच कर कुछ नहीं बोली थी कि हर बार हो सकता है साथ ले जाना मुमकिन न हो.

रिचा के झूठ से नीता के मन में एक फांस सी चुभ गई थी.

2 दिन बाद नीता मंदिर गई तो आशीष देते हुए पंडितजी बोले, ‘‘आओ बड़ी बहू. भक्तन हो तो तुम्हारे जैसी. कैसे सेवाभाव से उस दिन भोजन खिलाया था और दक्षिणा देने में भी कोई कमी नहीं छोड़ी थी. छोटी बहू ने तो 2 चीजें बना कर ही निबटारा कर दिया और दक्षिणा में भी सिर्फ 251 रुपए दिए. मैं तो कहता हूं कि पैसा होने से क्या होता है, दिल होना चाहिए. तुम्हारा दिल तो सोने जैसा है, बड़ी बहू. तुम तो साक्षात अन्नपूर्णा हो.’’

उस के बाद नीता ने तुरंत 501 रुपए निकाल कर पंडितजी की पूजा की थाली में रख दिए.

कुछ दिनों बाद जब रिचा मंदिर आई तो वे उस की प्रशंसा करने लगे, ‘‘छोटी बहू, तुम आती हो तो लगता है कि जैसे साक्षात लक्ष्मी के दर्शन हो गए हैं. कितने प्रेमभाव से तुम सब काम करती हो. तुम्हारे घर पूजा करवाई तो मन प्रसन्न हो गया. कहीं कोई कमी नहीं थी और बड़ी बहू के हाथ से तो पैसा निकलने का नाम ही नहीं लेता. हर सामग्री तोलतोल कर रखती हैं. तुम दोनों बहुओं के बीच क्या कोई कहासुनी हुई है  बड़ी बहू तुम से काफी नाराज लग रही थीं. काफी कुछ उलटासीधा भी बोल रही थीं तुम लोगों के बारे में.’’

रिचा ने तब तो कोई जवाब नहीं दिया, पर उस दिन के बाद से दोनों परिवारों में बातचीत कम हो गई. कहां दोनों परिवारों में इतना अपनापन और प्रेम था कि दोनों भाई और देवरानीजेठानी जब तक एकदो दिन में एकदूसरे से मिल न लें, उन्हें चैन नहीं पड़ता था. यहां तक कि बच्चे भी एकदूसरे से कटने लगे थे.

पंडितजी इस मनमुटाव का फायदा उठा जबतब किसी न किसी भाई के घर पहुंच जाते और कोई न कोई पूजा करवाने के बहाने पैसे ऐंठ लेते. साथ में कभी खाना तो कभी मिठाई, वस्त्र अपने साथ बांध कर ले जाते.

नीता ने एक दिन उन्हें हलवा परोसा तो वे बोले, ‘‘वाह, क्या हलवा बनाती हो बहू. छोटी बहू ने भी कुछ दिन पहले हलवा खिलाया था, पर उस में शक्कर कम थी और मेवा का तो नाम तक नहीं था. जब भी उस से तुम्हारी बात या प्रशंसा करता हूं तो मुंह बना लेती है. क्या कुछ झगड़ा चल रहा है आपस में  यह तो बहू सब संस्कारों की बात है जो गुरु और ब्राह्मणों की सेवा से ही आते हैं. अच्छा, चलता हूं. आज रंजन भैया ने दुकान पर बुलाया है. कह रहे थे कि कहीं पैसा फंस गया है, उस का उपाय करना है.’’

धीरेधीरे पंडितजी दोनों भाइयों के बीच कड़वाहट पैदा करने में तो कामयाब हो ही गए साथ ही उन्हें भ्रमित कर मनचाहे पैसे भी ऐंठ लेते. एकदूसरे की सलाह पर काम करने वाले भाई जब अपनीअपनी दिशा चलने लगे तो व्यापार पर भी इस का असर पड़ा और कमाई का एक बड़ा हिस्सा पंडित द्वारा बताए उपाय और पूजापाठ पर खर्च होने लगा.

नीता और रिचा, जो अपने सुखदुख बांट गृहस्थी और दुनियादारी कुशलता से निभा लेती थीं, अब अपनेअपने ढंग से जीने का रास्ता ढूंढ़ने लगीं जिस के कारण उन की गृहस्थी में भी छेद होने लगे.

पहले कभी पतिपत्नी के बीच शिकवेशिकायत होते थे तो दोनों आपसी सलाह से उसे सुलझा लेती थीं. अकसर नीता राजीव को समझा देती थी कि वह रिचा से गलत व्यवहार न किया करे या फिर रिचा को ही सही सलाह दे दिया करती थी.

बंद मुट्ठी के खुलते ही रिश्तों के साथसाथ धन का रिसाव भी बहुत शीघ्रता से होने लगता है. बेशक दोनों परिवार अलग रहते थे, पर मन से वे कभी दूर नहीं थे. अब उन के बीच इतनी दूरियां आ गई थीं कि एक की बरबादी की खबर दूसरे को आनंदित कर देती. वे सोचते, उन के साथ ऐसा ही होना चाहिए था.

धीरेधीरे उन दोनों का ही व्यापार ठप होने लगा और आपसी प्यार व विश्वास की दीवारें गिरने लगीं. उन के बीच दरारें पैदा कर और पैसे ऐंठ कर पंडितजी ने एक फ्लैट खरीद लिया और घर में हर तरह की सुविधाएं जुटा लीं. उन के बच्चे अंगरेजी स्कूल में जाने लगे.

जब पंडितजी ने देखा कि अब दोनों परिवार खोखले हो गए हैं और उन्हें देने के लिए उन के पास धन नहीं है तो उन का आनाजाना कम होने लगा. अब राजीव और रंजन उन्हें सलाह लेने के लिए बुलाते तो वे काम का बहाना बना टाल जाते. आखिर, उन्हें तो अपनी कमाई का और कोई जरिया ढूंढ़ना था, इसलिए बहुत जल्दी ही उन्होंने दवाइयों के व्यापारी मनक अग्रवाल के घर आनाजाना आरंभ कर दिया.

‘‘क्या बताऊं यजमान, कैसा जमाना आ गया है. आप कपड़ा व्यापारी भाई रंजन और राजीव भैया को तो जानते ही होंगे, कितना अच्छा व्यापार था दोनों का. पैसों में खेलते थे, पर विडंबना तो देखो, दोनों भाइयों की आपस में बिलकुल नहीं बनती. आपसी लड़ाईझगड़ों के चलते व्यापार तो लगभग ठप ही समझो.

‘‘आप भी तो हैं, कितना स्नेह है तीनों भाइयों में. अगलबगल 3 कोठियों में आप लोग रहते हो, पर मजाल है कि आप के दोनों छोटे भाई आप की कोई बात टाल जाएं. यहां आ कर तो मन प्रसन्न हो जाता है. मैं तो कहता हूं कि मां लक्ष्मी की कृपा आप पर इसी तरह बनी रहे,’’ काजू की बर्फी के 2-3 पीस एकसाथ मुंह में रखते हुए पंडितजी ने कहा.

‘‘बस, आप का आशीर्वाद चाहिए पंडितजी,’’ सेठ मनक अग्रवाल ने दोनों हाथ जोड़ कर कहा.

‘‘वह तो हमेशा आप के साथ है. मेरी मानो तो इस रविवार लक्ष्मीपूजन करवा लो.’’

‘‘जैसी आप की इच्छा,’’ कह मनक अग्रवाल ने उन के सामने हाथ जोड़ लिए. वहां से कुछ देर बाद जब पंडितजी निकले तो उन के हाथ में काजू की बर्फी का डब्बा और 2100 रुपए का एक लिफाफा था.

आने वाले रविवार को तो तगड़ी दक्षिणा मिलेगी, इसी का हिसाबकिताब लगाते पंडितजी अपने घर की ओर बढ़ गए.

उन के चेहरे पर एक कुटिल मुसकान खेल रही थी और आंखों से धूर्तता टपक रही थी. बस, उन्हें तो अब तीनों भाइयों की बंद मुट्ठी को खोलना था. उन का हाथ जेब में रखे लिफाफे पर गया. लिफाफे की गरमाहट उन्हें एक सुकून दे रही थी.

त्यौहार 2022: घर पर ऐसे बनाये चटपटी और टेस्टी सिंघाड़े के आटे की पकौड़ी

पकौड़ी का नाम सुनते ही हमारे दिमाग में सबसे पहले प्याज़ की पकौड़ी ,आलू की पकौड़ी, पनीर की पकौड़ी और भी न जाने कितनी तरह की पकौड़ियों का ख्याल आता है.जो की सभी बेसन से बनती है. पर क्या कभी आपने सिंघाड़े के आटे की पकौड़ी का स्वाद चखा है.ये खाने में जितनी स्वादिष्ट होती है उतनी ही ज्यादा ये फायदेमंद भी होती है.

जी हाँ ,सिंघाड़ा , जिसे वाटर कैलट्रोप या वाटर चेस्टनट के रूप में भी जाना जाता है, एक जलीय फल होता है. जिसे कच्चा, उबला हुआ या आटे के रूप में खाया जाता है. सिंघाड़े का आटा हेल्थ के लिए बहुत फायदेमंद होता है. इसका उपयोग मुख्य रूप से उपवास और त्यौहारों के दौरान विभिन्न व्यंजनों को तैयार करने में किया जाता है.

सिंघाड़े के आटे का सेवन करने से बॉडी को एनर्जी मिलती है .सिंघाड़ा में मौजूद पोषक तत्व जैसे विटामिन ए, प्रोटीन, सिट्रिक एसिड, फॉस्फोरस, निकोटिनिक एसिड, कार्बोहाइड्रेट , डाइटरी फाइबर, कैल्शियम, जिंक हमारी बॉडी को हेल्थी रखने के लिए बेहद फायदेमंद है यानी ये हमारे सम्पूर्ण सेहत के लिए बहुत अच्छा होता है .

तो अगर आप भी इस फेस्टिव सीजन गर्म चाय के साथ इन कुरकुरी पकौड़ियों का स्वाद चखना चाहते है तो हम आज आपसे इसकी रेसिपी शेयर करने जा रहे है .तो चलिए जानते है की चटपटी और कुरकुरी सिंघाड़े के आटे की पकौड़ी कैसे बनाये-

कितने लोगों के लिए-3 से 4
समय-10 से 15 मिनट
मील टाइप -वेज

हमें चाहिए-
सिघाड़े या कूटू का आटा – 200 ग्राम
आलू उबले हुए – 200 ग्राम
काली मिर्च – आधा छोटी चम्मच
हरा धनिया – एक टेबल स्पून
हरी मिर्च – 2 बारीक कटी हुई
सेंधा नमक – स्वादानुसार
घी या तेल – पकोड़े तलने के लिये आवश्यकतानुसार

बनाने का तरीका-
-सबसे पहले एक बाउल में उबले हुए आलू को मैश कर ले. अब इसमें हरी मिर्च और हरा धनिया मिलाएं.
-अब इसमें सिंघाड़े का आटा , पिसी हुई काली मिर्च और सेंधा नमक मिलाकर इन सभी को अच्छे से मिक्स कर ले.
(ध्यान रहे की इसमें पानी बिलकुल भी नहीं डालना है)
-अब एक कढाई में पकौड़ी तलने के लिए तेल गर्म करे.तेल गर्म हो जाने के बाद इसमें एक छोटे चम्मच की सहायता से मिक्सचर को लेकर धीरे धीरे एक एक करके कढाई में डालते जाये.
(आप चाहे तो आप हाथ से इसकी गोलियां बनाकर भी कढाई में डाल सकती है)
-अब थोड़ी देर के बाद कलछी से एक पकौड़ी को उठा कर देखे .

(अगर ये पक गयी होगी तो आसानी से तली से छूट जायेगी.ज्यादा ज़ल्दिबाज़ी न करें)
-अब उसे दूसरी तरफ पलट दे और हल्का लाल होने तक पकाते रहे.
-. पकौड़ियों की साइड बदलते रहें ताकि दोनों ओर से गोल्डन ब्राउन हो जाए.
-अब इसे कढाई से निकालकर गर्मागर्म परोसे.तैयार है सिंघाड़े के आटे की स्वादिष्ट पकौड़ी.
-आप इसे चाय या धनिये और पुदीने की चटनी के साथ खा सकते है.

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