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शादी, शादी और शादी

भारत में भी मैरिज को टाला जा रहा है. एक सर्वे के हिसाब से 15-19 साल के युवा जो वर्ष 2011 में 17.2 फीसदी थे, वर्ष 2019 में बढ़ कर 23 फीसदी हो गए. पहले की अपेक्षा अब युवक ज्यादा देर से शादी करते हैं और काफी युवक शादी नहीं कर रहे. वर्ष 2011 में 15-29 साल के 20.8 फीसदी युवाओं की शादी नहीं हुई थी और यह फीसद 2019 में बढ़ कर 20.1 हो गया. वहीँ, 15 से 29 साल की युवतियां वर्ष 2011 में 13.5 फीसदी बिना शादी की थीं लेकिन वर्ष 2019 तक, केवल 8 सालों में, अविवाहित युवतियों का फीसद 19.9 हो गया था. वर्ष 2022 के आंकड़े अभी उपलब्ध नहीं हैं, ज़ाहिर है ऐसे युवकयुवतियों के फीसद अब और भी ज्यादा हो गया होगा.

शादी न करने की वजहें कई हैं. सब से बड़ी बात यह है कि कैरियर अब जन्म में नहीं मिलता, बनाना पड़ता है. गांवों में पुश्तैनी काम यानी किसानी कम होती जा रही है और शहरों में घरों के चलते व्यापार कम हो रहे हैं. युवाओं को पहले रोजीरोटी की फिक्र होती है, शादी व बच्चों की जिम्मेदारी की फ़िक्र बाद में. आज समाज के खुले माहौल में अपोजिट सैक्स से मिलने की आजादी शहरों में तो काफी बढ़ गई है और इसलिए युवकयुवतियों को वह कमी महसूस नहीं होती.

एक और वजह है मातापिता का घटता दबाव. आज के मांबाप जानते हैं कि बेटेबेटी की शादी करने का मतलब बहू या दामाद की मुसीबत को गले बांधो. पहले बच्चे जब बड़े हो कर शादी लायक होते थे तो मातापिताओं को घर में बहू लाने की जल्दी होने लगती थी कि वह आ कर घर संभालेगी. अब न तो मातापिता बूढ़े होते हैं और न घर में आ कर बहुएं खास जिम्मेदारियां लेती हैं.

ज्यादातर महिलाएं जानती हैं कि बहू आते ही उन की अपनी आजादी में खलल पड़ जाएगा. उन्हें किचन में ज्यादा रहना पड़ेगा और बच्चे हो गए तो उन्हें आया बन कर पालना होगा. बहू कामकाजी, घर से बाहर जा कर कमाने वाली होगी, तो और मुसीबत.

मकानों की बढ़ती कीमत और कम होती अवेलेबिलिटी भी इस के लिए जिम्मेदार है क्योंकि युवाओं को मालूम होता है कि वे यदि इतना न कमा पाए कि अपना घर ले सकें तो उन्हें मातापिता के साथ एडजस्ट करना होगा, जो हर रोज की आफत खड़ा करेगा.

आबादी की रफ्तार रोकने के लिए यह चेंज अच्छा है क्योंकि देर से शादी या शादी न करने से बच्चे नहीं होते और देश पर बोझ नहीं बढ़ता. पौपुलेशन कंट्रोल का जो हल्ला भारतीय जनता पार्टी मचा रही है वह इस गलतफहमी को भुनाने के लिए है कि मुसलमानों में बच्चे ज्यादा होते है जबकि सच यह है कि टोटल फर्टिलिटी रेट में हिंदू और मुसलमान औरतों का अंतर केवल 1.9 और 2.2 का है. इस रेट का मतलब है कि हर औरत औसतन कितने बच्चे पैदा कर रही है. यह रेट 1.9 या 1.8 हो जाए तो आबादी बढऩा रुक जाती है. वर्ष 1980 के आसपास यह रेट 3.5 था. देर से शादी करना इस रेट को घटा रहा है.

जहां देर से शादी करना अच्छा है वहीं अकेलेपन के चलते बढ़ रहीं डिप्रैशन, एंग्जाइटी की बीमारियां चिंता की बात है. युवाओं को अकेले बहुत से मोरचों को संभालना होता है. अब तो भाईबहन कम हो गए. चाचा, मौसा, फूफा जैसे रिश्तों में से हर घर में कुछ लुप्त हो गए हैं. इस वजह से घर की परेशानियों में अकेले बच्चों को देर तक मांबाप का साथ देना होता है और उन में से किसी को कभी गंभीर बीमारी हो जाए तो उन की देखभाल करने के लिए उन्हें अपने दोस्तों पर डिपैंड होना होता है जो पहले अपने मांबाप को देखते हैं, दूसरों के पेरैंट्स को बाद में.

शादी में देर या शादी न करने का ट्रैंड आंकड़ों में चाहे कितना ही अच्छा लगे लेकिन यह जिंदगी को हवा में उड़ाने वाला है और जिंदगी कटी पतंग की तरह कभी इधर तो कभी उधर भागती रहती है. कैरियर का या गर्लफ्रैंड का बोझ इतना नहीं होता कि वह युवाओं को बांध कर रख सके, इसलिए युवाओं को समय पर शादी कर लेनी चाहिए. शादी न करने या देरी करने के चलते युवाओं में नशे व कईकई पार्टनर रखने की आदत पड़ जाती है.

मेरा सहकर्मी दिनरात मैसेज भेजता रहता है, क्या करूं ?

सवाल

मैं 26 वर्षीय अविवाहित युवती हूं. एक मल्टीनैशनल कंपनी में काम करती हूं. औफिस का माहौल ठीक है पर अपने एक सहकर्मी से परेशान रहती हूं. दरअसल, वह मुझे व्हाट्सऐप पर दिनरात मैसेज भेजता रहता है. वह रिप्लाई भी करने को कहता है पर मुझे झुंझलाहट होती है. एक तो समय का अभाव दूसरा काम का बोझ. हालांकि उस के मैसेज मर्यादा से बाहर नहीं होते पर बारबार मैसेज आने से मैं परेशान हो जाती हूं. मेरा ध्यान भी काम से बंट जाता है. मैं नहीं चाहती कि उस सहकर्मी से मेरे औफिशियल व्यवहार पर ग्रहण लगे, पर साथ ही यह भी चाहती हूं कि वह मुझे इस तरह परेशान न करे. बताएं मैं क्या करूं?

जवाब

अगर आप को उस सहकर्मी का व्हाट्सऐप करना पसंद नहीं है, तो आप उसे सीधे तौर पर मना कर दें. आप कह सकती हैं कि संदेश काम से संबंधित हों तो ठीक है अन्यथा उलजलूल व्हाट्सऐप न करे. आप उसे यह भी कह सकती हैं कि औफिस के टाइम में व्हाट्सऐप पर टाइमपास करने से उस की छवि गलत बनेगी और बौस तक बात पहुंचने पर तरक्की पर ग्रहण लग जाएगा. वैसे लगातार उस के भेजे गए व्हाट्सऐप मैसेज को इग्नौर करेंगी और कोई जवाब नहीं देंगी तो कुछ दिनों बाद वह खुद ही व्हाट्सऐप करना बंद कर देगा. इस से सांप भी मर जाएगा और लाठी भी न टूटेगी.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem

वो बांझ औरत: शिखा के बच्चे वर्तिका को क्यों चाहने लगे?

‘‘अरे, ऐसे उदास क्यों बैठी हो?’’ उदास बैठी शिखा के कंधे पर हाथ रखते हुए अभय ने पूछा. अपने मनोभावों को छिपाते हुए शिखा हड़बड़ा कर उठी, ‘‘कुछ नहीं, ऐसे ही बैठी थी. आप के लिए चाय बना दूं?’’

शिखा के माथे पर खिंची लकीरों को देख कर अभय को अंदाजा तो हो गया था कि कोई तो विशेष घटना घटित हुई है. अभय ने रसोईघर में शिखा के पास जा कर प्यार से पूछा, ‘‘शिखा, तुम्हारे चेहरे पर उदासी मुझे अच्छी नहीं लगती. क्या बात है, बताओ न?’’ अभय के प्रेमपूर्ण स्पर्श ने जैसे उस के तपते मन पर बर्फ सी रख दी.

शिखा की आंखें पिघल उठीं, ‘‘क्या मैं इस कलंक से मुक्त नहीं हो सकती, अभय?’’

अभय उस के दिल की बात समझ गया. उसे सोफे पर बैठाया. खुद ही दोनों की चाय कप में पलट कर लाया और फिर प्रेम से पूछा, ‘‘क्या हो गया आज जो तुम्हारा दिल इतना भर आया है? क्या घर से फोन आया था?’’ शिखा ने न में सिर हिला दिया. अभय के बारबार पूछने पर आंखों में रुकी नदी बहने ही लगी, ‘‘शाम को तुम्हारे आने से पहले वर्तिका के घर बच्चों के लिए इडलीसांभर ले कर गई थी…’’

‘‘अच्छा, फिर?’’

‘‘वर्तिका भाईसाहब से कह रही थी कि आज सुबह उस मनहूस बांझ का मुंह देख कर गए थे इसलिए सब काम बिगड़ गया,’’ इतना कहते ही वह अभय से लिपट कर रोने लगी.

‘‘इतनी छोटी बात कर दी भाभीजी ने…’’ अभय भी अब थोड़ा गंभीर

हो चला.

आंसू पोंछते हुए वह आगे बोली, ‘‘सुबह औफिस जाने से पहले मैं ने भाईसाहब के प्रोजैक्ट के बारे में पूछा था. वह बड़ा प्रोजैक्ट उन के हाथों से निकल गया.’’

‘‘ओह, तो इस में तुम्हारा क्या दोष?’’ अभय शिखा को सीने से लगा कर शांत करने का प्रयास करने लगा. आज तक वह खुद को और उस को अपशब्दों की आग से बचाने की कोशिश ही करता रहा है.

‘‘अभय, मैं वापस जा रही थी कि वर्तिका की आवाज आई कि कौन है तो बच्चे धीमे से बोले कि अरे, वही पड़ोस वाली मनहूस आंटी थीं. ये शब्द मुझे भीतर तक छलनी कर गए,’’ फिर पुरानी बातें याद कर के शिखा रोतेरोते ही सो गई.

शिखा की शादी हुए 8 सावन बीत चुके थे लेकिन उस की गोद हरी नहीं हुई थी. संतानसुख पाने के लिए उन्होंने कितने ही जतन किए पर कुदरत की इच्छा के सामने दोनों असहाय हो गए. एक तो पारिवारिक दुख से वैसे ही आदमी अधमरा हो जाता है, उस पर इंसान भी इंसान को दर्द देने में पीछे नहीं रहता है. अपने कसबे की छोटी सोच के तानों से बचने के लिए ही वे दोनों इस अनजान शहर में आ कर बस गए थे. यहां हर समय लोग दूसरों के व्यक्तिगत जीवन में दखलंदाजी नहीं करते थे.

निजी जीवन में अधिक ताकझांक से मुक्त वे दोनों शांति से जी रहे थे. लेकिन इस घटना ने उन का यह भ्रम भी तोड़ दिया. जाहिर है, इस घटना के बाद से शिखा ने वर्तिका से बोलचाल बंद कर दी. उस के मन में घृणा के अंकुर फूट चुके थे.

ऐसे ही दिन बीत रहे थे कि कोरोना महामारी ने पूरे विश्व में कुहराम मचा दिया. लौकडाउन की जीवनचर्या ने अवसाद को चरम पर पहुंचा दिया था. चारदीवारी के भीतर घुटन के क्षणों से कुछ मुक्ति मिली ही थी कि कोविड की दूसरी लहर ने महाविनाश शुरू कर दिया. बोरियत से बचने के लिए शिखा औनलाइन हौबी क्लास में अपना समय व्यतीत करती थी. उस समय अभय वर्क फ्रौम होम के कारण घर पर ही रहता था.

एक दिन शाम को घर की घंटी बजी.

‘इस समय कौन होगा…’ यह

सोचते हुए अभय ने दरवाजा खोला. बाहर वर्तिका का पति पारस बहुत अधिक परेशान मुद्रा में खड़ा था, ‘‘क्या हुआ भाईसाहब, सब खैरियत?’’ अभय ने उन की परेशानी की रेखाएं पढ़ते हुए पूछा.

‘‘भाईसाहब, वर्तिका का औक्सीजन लैवल बहुत डाउन हो गया है, उसे अस्पताल में भरती कराने जा रहा हूं.’’

‘‘अरे, जल्दी कीजिए. बताइए मैं भी चलूं?’’ अभय ने अपना मास्क ठीक करते हुए कहा.

पारस ने हाथ जोड़ते हुए कहा, ‘‘भाईसाहब घर में दोनों बच्चे अकेले हैं, आप और भाभीजी उन का ध्यान रखिएगा.’’

‘‘जी जरूर, आप निश्ंिचत रहिए. भाभीजी को जल्दी अस्पताल पहुंचाइए.’’

अंदर शिखा दोनों की बातचीत सुन रही थी. पारस के जाते ही उस ने तुरंत अभय को टोका, ‘‘आप भी कितने नासमझ बनते हैं. वर्तिका को कोरोना है. घर के सभी सदस्य संदेह के घेरे में हैं. हम क्या मदद कर सकते हैं?’’

‘‘अरे, ऐसी समस्या आई है, मदद तो करनी ही होगी.’’

‘‘अपने दुनियाभर के रईस रिश्तेदारों का गाना गाते हैं, उन्हीं को बुला लें न.’’

‘‘तुम भी कैसी बातें करती हो, इस लौकडाउन में कोरोना के डर से कौन रिश्तेदार आ जाएगा?’’

शिखा का तो रत्तीभर मन नहीं था लेकिन अभय की नाराजगी के आगे उस की एक नहीं चली. वह फोन पर पारस से कुशलक्षेम पूछता, वह भी शिखा को बिलकुल पसंद नहीं आ रहा था.

2 दिन ही बीत पाए थे कि पारस की रिपोर्ट भी कोरोना पौजिटिव आ गई. अब तो स्थिति बहुत खराब हो गई.

कोई रिश्तेदार मदद को आ नहीं पाया. उन के दोनों बच्चों दिव्यांश और सृष्टि की देखरेख की जिम्मेदारी अभय ने ले ली. शिखा को यह सब फूटी आंख नहीं सुहा रहा था. इसी कारण दोनों के बीच तल्खियां भी बढ़ गई थीं.

शिखा जब भी दोनों बच्चों का खाना पैक करती तो उस के घृणास्पद हावभाव से अभय का मन खिन्न हो जाता. वह वर्तिका को निशाना बना कर कुछ न कुछ बड़बड़ाती ही रहती. इसी कारण बच्चों की रिपोर्ट नैगेटिव होने के बावजूद अभय उन को घर नहीं लाया.

अभय ने अगले दिन स्वयं पर नियंत्रण करते हुए शिखा से बच्चों को घर लाने का अनुरोध किया. उस ने उस की मनोदशा समझते हुए प्यार से समझाया, ‘‘देखो शिखा, हमारे कर्म हमारे साथ हैं और दूसरे के उस के साथ. हमें अपने खाते में अच्छी चीजें रखनी हैं या दूसरों की तरह कंकड़पत्थर…’’

शिखा ने अभय की बात का जवाब नहीं दिया. अभय ने मोबाइल में दिव्यांश और सृष्टि का वीडियो दिखाया जिस में वे मम्मीपापा से रोते हुए प्यार जता रहे थे और जल्दी सही होने की मनोकामना कर रहे थे उस वीडियो को देखने के बाद शिखा एकदम चुप हो गई और चुपचाप खाना बनाने लगी. उस रात वह सही से सो नहीं पाई. अंतर्मन के सकारात्मक और नकारात्मक पक्षों का आपस में टकराव होता रहा. इसी द्वंद्व में वह कब सो गई, उसे पता ही न चला.

सुबह पता चला कि वर्तिका की सांसें उस का साथ छोड़ चुकी थीं. शिखा को दिल में धक्का सा लगा. वर्तिका और उस के परिवार के सब सदस्यों के चेहरे एकएक कर के सामने आते और उन के अंतस को उद्वेलित कर के चले जाते.

पारस के बड़े भाईसाहब आ चुके थे. दिव्यांश और सृष्टि की रोने की आवाजें बाहर से ही सुनाई देनी शुरू हो गई थीं. शिखा ने बिलखते हुए बच्चों का रुदन देखा तो अंदर तक सिहर गई. 9 साल का दिव्यांश और 4 साल की सृष्टि बिना मां के कैसे रहेंगे… वह सोचती ही रही. काल की क्रूर आंधी यहीं नहीं ठहरी. 2 दिनों बाद ही पारस का भी हृदयगति रुकने से देहांत हो गया. इस खबर के साथ ही शिखा का दिल बैठ गया. अचानक से हुए इस घटनाक्रम में अतीत चलचित्र की भांति उस की आंखों के सामने चलने लगा. वर्तिका और पारस के साथ बिताए स्नेहपूर्ण 3 सालों के दृश्य आंखों के आगे आते और धुआं हो जाते. बस, एक दुर्भावना ने इस सौहार्दपूर्ण संबंध को फीका कर दिया था.

बच्चों को अपने मातापिता से आखिरी समय मिलना भी नसीब न हो सका. संवेदनाओं में डूबी शिखा निकलतेबैठते खिड़की से वर्तिका के घर को ही ताकती रही. शाम को उदासीभरी खामोशी तोड़ते हुए उस ने भरी आंखों से अभय को देखा और कहा, ‘‘अभय, वर्तिका के परिवार पर जो बीती उस ने मेरा मन बहुत झकझोर दिया है.’’

‘‘क्या कर सकते हैं, हम सब बेबस हैं,’’ अभय ने आंखें बंद करते हुए कहा.

‘‘अभय, मैं ने बहुत सोचा तो पाया कि अब उन बच्चों का कोई भविष्य नहीं है.’’

‘‘शिखा, ज्यादा परेशान मत हो. हमारे बस में कुछ नहीं.’’ शिखा चुप हो गई.

‘‘क्या कहना चाहती हो तुम? क्या हम उन दोनों बच्चों को हमेशा के लिए अपने पास नहीं रख सकते?’’ अभय यह सुन कर अवाक रह गया. शिखा की तरफ से इतने बड़े फैसले पर उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था. कानूनीतौर से हो पाए या नहीं लेकिन मैं उन दोनों बच्चों की जिम्मेदारी पूरी तरह से उठाने को तैयार हूं, उन की मां की तरह. आप घर वालों से बात कर के देखिए.

अभय एकटक शिखा का ममताभरा चेहरा देखता ही रह गया. शिखा की आंखों से करुणा का झरना फूट पड़ा था, जो उस के पथरीले विचारों को पूरी तरह भिगो चुका था. आज तो अभय की आंखों में भी पानी की बूंदें उतरने लगीं. समय की गरम आंच में शिखा के मन के सभी बुरे भाव जल चुके थे. अब उस के आंचल में केवल ममता ही ममता भरी थी, जिस ने उसे 2 बच्चों की मां बना दिया था.

इनरवियर हाइजीन का रखें ध्यान, वरना हो सकती हैं बीमार

ज्यादातर महिलाएं बाहरी कपड़ों को ले कर तो बहुत सजग रहती हैं, पर अंदरूनी कपड़ों पर ध्यान नहीं देती हैं, जबकि ये भी उन के वार्डरोब का अहम हिस्सा हैं, जिन की ओर पूरा ध्यान दिया जाना अतिआवश्यक है वरना आप कई दुष्प्रभावों का शिकार हो सकती हैं. अत: जब भी इनवियर, खासतौर पर पैंटी खरीदें, निम्न बातों का ध्यान जरूर रखें:

पैंटी सूती कपड़े की ही लें:

सूती कपड़ा त्वचा के लिए सब से अधिक स्वास्थ्यवर्धक होता है. अत: पैंटी जैसे अंदरूनी वस्त्र के लिए सूती ही चुनें. हालांकि सिल्क या सिंथैटिक कपड़े की पैंटी अधिक सैक्सी लगती है. किंतु ऐसी पैंटी हवा को आरपार नहीं जाने देती है, जिस से त्वचा रोग व इन्फैक्शन होने का खतरा बढ़ जाता है. यदि सिंथैटिक कपड़े की पैंटी खरीदनी ही हो तो उसे खरीदें, जिस के अंदर की लाइनिंग सूती कपड़े की हो.

सही नाप पर ध्यान दें:

पैंटी बड़ी होने के कारण झूलती हो तो दिक्कत और यदि बहुत तंग हो तो और भी दिक्कत यानी ढीली पैंटी चलनेफिरने में परेशानी करती है, तो तंग पैंटी में हवा आरपार नहीं होती है. साथ ही त्वचा में रगड़न की भी परेशानी हो सकती है. पैंटी का साइज अपनी ब्रा के साइज से बड़ा रखना चाहिए.

रंगबिरंगी पैंटी कम पहनें:

रंगबिरंगी पैंटी आकर्षक अवश्य लगती है, मगर डा. मोंटगोमरी के अनुसार कपड़े का रंग मुलायम त्वचा को नुकसान पहुंचा सकता है खासकर यदि त्वचा संवेदनशील हो. इसलिए सफेद पैंटी ही सर्वोत्तम है.

शेपवियर ज्यादा समय न पहनें:

पतली कमर और सुडौल शरीर के आकर्षण में महिलाएं शेपवियर पहन तो लेती हैं पर क्या उन्होंने इस तरफ ध्यान दिया कि इसे कितनी देर तक पहनना उचित है? डा. श्वेता के अनुसार ज्यादा देर तक शेपवियर पहनने से शरीर को दिक्कतें आ सकती हैं. शेपवियर शरीर के मांस को दबा कर रखता है. बहुत देर तक ऐसा करने से पित्त, अम्ल प्रतिवाह आदि समस्याएं हो सकती हैं. इसलिए कभीकभी ही पहनें और ज्यादा देर तक न पहनें.

वर्कआउट के समय:

व्यायाम करते समय भी ध्यान दें कि आप की पैंटी कैसी हो. गलत कपड़े की या तंग नाप की पैंटी आप का पसीना सोखने में असमर्थ रहेगी जिस से बैक्टीरिया पनपने की संभावना रहेगी. इसलिए पैंटी के चयन पर खास ध्यान दें.

ऐसे ही व्यायाम के बाद पैंटी बदलने का भी पूरा ध्यान रखें. पैंटी में सोखे गए पसीने का जल्दी सूख पाना संभव नहीं होता है. ऐसे में उसे देर तक पहने रखने से त्वचा में लाल चकत्ते आदि हो सकते हैं. अत: व्यायाम के बाद पैंटी बदल लें ताकि त्वचा सांस ले सके.

स्त्रीरोग विशेषज्ञों की राय

डा. मोनिका जैन सुझाती हैं कि महिलाओं को पैंटी धोते समय यह भी ध्यान रखना चाहिए कि यदि उस में थोड़ाबहुत श्वेत प्रदर लगा है तो चिंता की बात नहीं पर यदि उस में बदबू भी है या वह गाढ़ा है या आप को रक्तस्राव लगा भी दिखता है तो फौरन स्त्रीरोग विशेषज्ञा से अपनी जांच करवाएं.

क्लीवलैंड क्लीनिक की डा. पिलिआंग पैंटी को धोते समय इस्तेमाल होने वाले डिटर्जेंट के बारे में आगाह करती हैं कि डिटजैंट बिना खुशबू और रंग का होना चाहिए. उस में डाई भी नहीं होनी चाहिए ताकि त्वचा को ऐलर्जी का खतरा न हो.

ध्यान देने योग्य बातें

सोते समय पैंटी न पहनें:

जिन महिलाओं को सारा दिन बंधे कपड़ों में बिताना पड़ता है, उन्हें रात को सोते समय पैंटी नहीं पहननी चाहिए. इस का कारण है कि सारा दिन नमी में रहने की वजह से इन्फैक्शन या जलन होना आम बात है. मिशिगन स्टेट विश्वविद्यालय की डा. नैंसी हरता का कहना है कि थोड़ीबहुत हवा उस हिस्से को सूखा रखने के लिए बहुत जरूरी है. कुछ दिन बिना पैंटी के सो कर देखें. आप को स्वयं फर्क लगने लगेगा.

दिन में पैंटी न पहनी तो:

कुछ महिलाएं पैंटी पहनती ही नहीं हैं. ऐसा करना भी उचित नहीं है, क्योंकि ऐसा करने से कूल्हों का मांस लटक कर अपनी असली शेप खोने लगता है. पैंटी से कूल्हों का मांस बंधा रहता है, शेप बनी रहती है. पैंटी न पहनने के कारण कपड़ों से रगड़ खा कर दाने भी हो सकते हैं.

कब बदलें पैंटी:

हर मौसम के साथ बदलते फैशन में रंग कर महिलाएं फटाफट अपने कपड़े, जूते आदि तो बदल लेती हैं, पर पैंटी की तरफ ध्यान नहीं देती हैं. यह सोच कर पुरानी पैंटी से ही काम चलाती रहती है कि पैंटी को भला कौन देखता है. यह बात तो सही है पर साथ ही यह भी सच है कि पुरानी ढीलीढाली पैंटी पहनने पर बेहद परेशानी भी होती है. कभी जगह से सरक जाती है. फिर सब की नजरें बचाते हुए वापस जगह पर लाना मुश्किल होता है. इसलिए थोड़ी कंजूसी कम दिखाएं और पैंटी का इलास्टिक खराब होते ही नई पैंटी खरीद लें.

पर्यटकों के लिए मिलेगी अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की सुविधायें: जयवीर सिंह

उत्तर प्रदेश के पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री श्री जयवीर सिंह ने कहा कि उ0प्र0 में पर्यटन की असीमित संभावनायें एवं निवेशकों के रूचि को देखते हुए बड़े पैमाने पर अवस्थापना सुविधाओं का विकास किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश आगामी पांच वर्षों में 30 प्रतिशत घरेलू तथा 20 प्रतिशत विदेशी पर्यटकों के वृद्धि की संभावना है. जिससे 25 लाख लोगों को प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रोजगार मिलेगा. उन्होंने कहा कि प्रक्रियाधीन पर्यटन नीति 2022 के तहत 10,000 करोड़ रूपये से अधिक निवेश का लक्ष्य रखा गया है. इस लक्ष्य को एक जिला एक पर्यटन केन्द्र के तहत प्राप्त किया जायेगा.

पर्यटन मंत्री आज होटल डी-पोलो क्लब स्पा रिजार्ट, धर्मशाला, हिमांचल प्रदेश में पर्यटन एवं अवस्थापना सुविधाओं के विकास विषय पर आयोजित 03 दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन को सम्बोधित कर रहे थे. उन्होंने इस राष्ट्रीय सम्मेलन के आयोजन के लिए केन्द्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री श्री जी किशन रेड्डी तथा केन्द्रीय पर्यटन विभाग के अधिकारियों को बधाई दी. इस राष्ट्रीय सम्मेलन में विभिन्न प्रदेशों के पर्यटन मंत्री, केन्द्रशासित प्रदेशों के एलजी, प्रशासक, वरिष्ठ अधिकारी, भारत सरकार, पर्यटन मंत्रालय के उच्चाधिकारी, राज्यों के पर्यटन विभागाध्यक्ष एवं सेवाक्षेत्र के प्रतिनिधि भाग ले रहे हैं. उन्होंने कहा कि उ0प्र0 देश का सबसे बड़ा राज्य है. यहां पर हर जनपद में पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए धार्मिक, ऐतिहासिक, पुरातात्विक एवं पौराणिक स्थल मौजूद हैं. इन स्थानों पर पर्यटकों के पसंद के हिसाब से अवस्थापना सुविधाओं को विकसित किया जा रहा है.

श्री जयवीर सिंह ने कहा कि उ0प्र0 में सड़क, रेल, वायु तथा जल मार्ग के माध्यम से सभी धार्मिक एवं सांस्कृतिक स्थलों को जोड़ने के लिए अवस्थापना विकास के लिए वित्तीय वर्ष 2022-23 के बजट में 940 करोड़ रूपये का प्राविधान किया गया है. पर्यटन के विकास की दृष्टि से प्रदेश को 12 सर्किट में बांटा गया है. सभी सर्किटों पर बुनियादी सुविधाओं के विकास पर कार्य तेजी से चल रहा है. बहुत से कार्य पूर्णता के अंतिम चरण में हैं.

पर्यटन मंत्री ने कहा कि ब्रज परिपथ में मथुरा, वृन्दावन, आगरा, रामायण परिपथ में लखनऊ, प्रयागराज के बीच के सभी स्थान एवं वन इको टूरिज्म, साहसिक पर्यटन स्थल, जल विहार, हेरिटेज आर्क के रूप में आगरा, लखनऊ एवं वाराणसी को जोड़कर बनाया जा रहा है. इसके अतिरिक्त महाभारत मेरठ, हस्तिनापुर, जैन परिपथ, सूफी परिपथ आदि शामिल हैं. इसके अलावा बौद्ध परिपथ के अंतर्गत लुम्बिनी, बोध गया, नालन्दा, राजगिरी, बैशाली, सारनाथ, श्रावस्ती, कुशीनगर, कौशाम्बी जैसे स्थलों को जोड़ा गया है.

श्री जयवीर सिंह ने कहा कि भारत की बौद्ध संस्कृति का प्रभाव दुनिया के अधिकांश देशों में है. इन देशो के पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए बौद्ध आस्था से जुड़े सभी स्थानों पर विश्वस्तरीय सुविधायें उपलब्ध कराई जा रही हैं. इसके अतिरिक्त हेरिटेज, टूरिज्म को बढ़ावा देने के लिए बुन्देलखण्ड के 31 किलों को चिन्हित किया गया है. पर्यटन की दृष्टि से इन्हें सजाने एवं संवारने के लिए सेन्टर फॉर इनवायरनमेंटल प्लानिंग एण्ड टेक्नोलॉजी (सीईपीटी) विश्वविद्यालय अहमदाबाद से सहयोग लिया जा रहा है.

पर्यटन मंत्री ने कहा कि पर्यटन मंत्रालय भारत सरकार द्वारा संचालित स्वदेश दर्शन स्कीम की नई गाइडलाइन के अनुसार प्रदेश की वैभवशाली सांस्कृतिक विरासत को देखते हुए विन्ध्याचल, नैमिषारण्य, प्रयागराज, चित्रकूट, संगिसा, आगरा, कानपुर, झांसी, महोबा, गोरखपुर एवं कुशीनगर को अन्तर्राष्ट्रीय पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किये जाने के लिए भारत सरकार को प्रस्ताव भेजा गया है. इसके अतिरिक्त प्रदेश में इको टूरिज्म बोर्ड के गठन के साथ वेलनेस टूरिज्म के लिए तैयार किया जा रहा है. इसके साथ ही ग्रामीण पर्यटन को बढ़ावा दिया जा रहा है. इसके अतिरिक्त उ0प्र0 पर्यटन एवं संस्कृति प्रोत्साहन परिषद का गठन किया गया है.

श्री जयवीर सिंह ने कहा कि उ0प्र0 में पर्यटन की अनंत संभावनायें हैं. इस क्षेत्र में निवेश को आकर्षित करने तथा रोजगार सृजित करने के उद्देश्य से विभिन्न संभावनाओं को तलाशा जा रहा है. इसके साथ ही अध्यात्मिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, ऐतिहासिक, पुरातात्विक महत्व के स्थलों पर अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की सुविधायें विकसित की जा रही हैं. भगवान श्रीराम की अयोध्या नगरी, कृष्ण की मथुरा एवं काशी कॉरीडोर को अत्याधुनिक बनाया जा रहा है. श्री जयवीर सिंह ने कहा कि पर्यटन सेक्टर का अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान है. प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ जी ने उ0प्र0 की अर्थव्यवस्था को एक अरब डॉलर बनाने का लक्ष्य रखा है. जिसमंे पर्यटन का अहम योगदान होगा. उन्होंने कहा कि अगले वर्ष जी-20 सम्मेलन में पर्यटन विभाग बढ़ चढ़कर हिस्सा लेगा.

इस अवसर पर केन्द्रीय पर्यटन सचिव श्री अरविन्द सिंह ने सभी अतिथियों का स्वागत किया, इसके पश्चात केन्द्रीय पर्यटन रक्षा मंत्री श्री अजय भट्ट, एफएआईटीएच फेडरेशन के चेयरमैन श्री नकुल आनन्द, अध्यक्ष भारतीय पर्यटन विकास निगम श्री संबित पात्रा ने सम्बोधित किया. इसके अलावा असम के पर्यटन मंत्री, प्रमुख सचिव पर्यटन गुजरात तथा पर्यटन सचिव दादरा एवं नागर हवेली, दमन द्वीव ने भी अपने विचार रखे. उ0प्र0 के प्रमुख सचिव पर्यटन श्री मुकेश मेश्राम एवं अन्य अधिकारी इस सम्मेलन में मौजूद थे.

भगवंत मान: शराब और इस्तीफा

भारतीय राजनीति का विद्रूप है भगवंत मान . राजनीति से पहले भी चर्चा में बने रहते थे और अरविंद केजरीवाल की आप पार्टी में प्रवेश के बाद बड़े राजनीतिक दलों के धुरंधरों को पछाड़कर पंजाब के मुख्यमंत्री बन गए.

मगर, अपनी शराब पीने की लत के कारण आज विमान से उतार दिया गया और 4 घंटे कि देरी, फिर विपक्षी पार्टियों के लगातार हमले, यह सब इंगित करता है कि चाहे आप कितने बड़े पद प्रतिष्ठा को प्राप्त कर लें, सच और आपका अतीत, आपका कभी पीछा नहीं छोड़ता.

मुख्यमंत्री बनने से पहले ही 2019 में भगवान सिंह मान ने कहा था कि उन्होंने शराब को तौबा कर ली है और अपनी मां की सलाह पर शराब को हाथ भी नहीं लगाएंगे. मगर जिस तरह जर्मनी से लौटते वक्त विमान की घटनाएं चर्चा में आ गई हैं उससे कई प्रश्न उठ खड़े हुए हैं और उसका जवाब पुरजोर तरीके से भगवंत मान मुख्यमंत्री पंजाब को देना चाहिए.

बीते 48 घंटे का घटनाक्रम कुछ ऐसा है- पंजाब में विपक्षी पार्टी शिरोमणि अकाली दल (शिअद) ने मुख्यमंत्री भगवंत मान पर निशाना साधते हुए आरोप लगाया कि उन्हें फ्रैंकफर्ट हवाई अड्डे पर दिल्ली जाने वाली उड़ान से उतार दिया गया क्योंकि वे नशे में थे. कांग्रेस नेता और पंजाब विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष प्रताप सिंह बाजवा ने मामले की जांच की मांग कर दी जिससे या खबर पूरे देश में ट्रोल करने लगी.

आप के मुख्य प्रवक्ता ने आरोपों को निराधार और फर्जी बताया और विपक्षी दलों पर मुख्यमंत्री भगवंत मान को बदनाम करने के लिए नकारात्मक प्रचार करने का आरोप लगाया है .

मगर यह भी सच है कि आप पार्टी का जैसा चरित्र है उसके अनुसार इस गंभीर आरोप का प्रतिकार आप पार्टी को जिस तरह करना चाहिए नहीं कर रही है जिससे कई सवाल उठ खड़े हुए हैं. यह नहीं भूलना चाहिए कि आजकल सब कुछ दिखाई देता है अगर पंजाब के मुख्यमंत्री की बहैसीयत भगवंत मान यात्रा कर रहे थे और उन्होंने शराब पीकर के हंगामा किया तो निसंदेह यात्रियों ने इसके वीडियो भी बनाए होंगे जो अगर सामने आते हैं तो भगवंत मान के सामने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफे के सिवा कोई चारा नहीं रह जाएगा.

नशे और हंगामे का गंभीर आरोप

निसंदेह मुख्यमंत्री भगवंत मान पर यह आरोप बेहद गंभीर है और जिस तल्खी के साथ विपक्षी पार्टियां इसे उठा रही हैं उससे प्रतीत होता है कि भगवंत मान को इसका जवाब खुले मन से देना चाहिए. अगर गलती हुई है तो स्वीकार करने में भी कोताही नहीं की जानी चाहिए.

सुखबीर सिंह बादल ने ट्वीट किया, ‘सहयात्रियों के हवाले से मीडिया में आई परेशान करने वाली खबरों में कहा गया है कि पंजाब के मुख्यमंत्री को सुपयांसा की उड़ान से उतार दिया गया क्योंकि वह बहुत ज्यादा नशे में थे. इससे उड़ान में चार घंटे की देरी हुई.

आप पार्टी द्वारा कहा जा रहा है विपक्षी दल मुख्यमंत्री के खिलाफ अफवाह फैला रहे हैं क्योंकि मान की लोकप्रियता नहीं पचा पा रहे हैं . वह राज्य में निवेश लाने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं. मान सोमवार 19 सितंबर को जर्मनी से अपनी आठ दिवसीय यात्रा से लौटे जहां वह विभिन्न क्षेत्रों में निवेश प्रस्ताव आमंत्रित करने गए थे.

11 सितंबर को जर्मनी के लिए भगवंत मान रवाना हुए थे .जर्मनी में उन्होंने म्यूनिख, फ्रैंकफर्ट और बर्लिन का दौरा किया और पंजाब में निवेश का प्रयास किया. वह दुनिया के प्रमुख व्यापार मेले, ड्रिंकटेक 2022 में भी शामिल हुए. उनके साथ उनकी पत्नी और सुरक्षाकर्मियों के अलावा अन्य पंजाब के वरिष्ठ अधिकारी भी थे.

सच तो यह है कि यह एक ऐसा आरोप है जो अपने आप में सनसनीखेज है. क्योंकि भारतीय राजनीति में ऐसा आरोप शायद ही किसी मुख्यमंत्री अथवा संवैधानिक पद पर बैठे हुए व्यक्ति पर लगा हो. नैतिकता का तकाजा यह है कि आप पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अरविंद केजरीवाल इस पर गंभीरता से संज्ञान लें और अगर ऐसी घटना घटी है तो कम से कम माफी तो बनती है.

बच्चों पर जानवरों की तरह बोझ न लादे: रीना जाधव

सिनेमा जगत में बदलाव की बातें बहुत की जा रही हैं.लोगों का मानना है कि सिनेमा में कंटेंट पर ध्यान दिया जाना चाहिए. मगर बौलीवुड के फिल्मकार इस तरफ कम ध्यान दे रहे हैं. पर मराठी सिनेमा से जुड़े लोग सामाजिक कुरीतियों व सामाजिक समस्याओं पर लगातार फिल्में बनाते जा रहे हैं. मराठी टीवी सीरियल ‘‘फैमिली डाॅट काॅम’’ से अभिनय कैरियर की शुरूआत करने वाली अभिनेत्री रीना जाधव हमेशा सामाजिक कुप्रथाओं व सामाजिक समस्याओं को रेखांकित करने वाली फिल्मों में अभिनय करती रही हैं. उनकी मराठी फिल्म ‘‘हे मिलन सौभाग्याचे’’ को तो ‘दादा साहेब फालके’ सहित कई पुरस्कार मिले थे. मराठी फिल्मों में अभिनय करते करते उनके दिमाग में आया कि सामाजिक मुद्दों के साथ ही शिक्षा जगत को लेकर बहुत कुछ कहे जाने की जरुरत है. तब उन्होंने स्वयं हिंदी भाषा में फिल्म ‘‘मेरिट एनीमल’’ का सहनिर्माण करने के साथ ही उसमें अभिनय भी किया है, जो कि जल्द ही ‘हंगामा प्ले’ पर स्ट्रीम होगी. इस फिल्म में बच्चे को षिक्षा दिलाने और हर जगह सर्वाधिक नंबर की होड़ के चलते माता पिता अपने बच्चों के साथ जानवर की तरह ही पेष आते है,इस बात को खास तौर पर रेखांकित किया गया है.फिल्म ‘मेरिट एनीमल’ कई अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों में कई अर्वाड जीत चुकी है.

प्रस्तुत है रीना जाधव से हुई बातचीत के अंश..

आपने अभिनय कहां से सीखा?

-मैने अभिनय अपनी जिंदगी के अनुभवों से ही सीखा.अभिनय में नौ रस होते हैं.यह सभी नौ रस हर इंसान की जिंदगी में होते हैं.मैं सिंगल पैरेंट चाइल्ड हॅूं.जब मैं पांच छह वर्ष की थी,तभी मेरे मम्मी पापा का तलाक हो गया था.मेरी मां एकाउंटेंट है.उन्होने अकेेले जिस तरह से मेरी परवरिश की,उसे देखते हुए मैने काफी कुछ सीखा.उस दौरान मैने अपनी मम्मी की जिंदगी में बहुत से उतार चढ़ाव आते जाते देखे.जिन्हे देखते हुए मेरे अंदर भी जिम्मेदारी का भाव आता गया.तो अभिनय करते हुए मैं कई दृश्यों में अपनी जिंदगी के अतीत के घटनाक्रमों को यादकर लेती हॅूं.मुझे नृत्य का भी शौक है. मैंने अपने दोस्तों की भी जिंदगी को नजदीक से देखा है.यह सब मुझे अभिनय करने में मदद कर रहा था.

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नृत्य का शौक अभिनय में कितनी मदद करता है?

-बहुत मदद करता है.मैं माधुरी दीक्षित की फैन हॅूं.पर मैं गाने सुनकर खुद ही नृत्य की प्रैक्टिस करती रही हॅूं.

अपने अब तक के कैरियर को किस तरह से देखती हैं?

-मैने सबसे पहले सहयाद्रि टीवी चैनल पर मराठी भाषा की सीरियल ‘फैमिली डाॅट कौम’ में अभिनय किया.फिर मैने फिल्में करनी शुरू कीं.मेरी तीसरी मराठी फिल्म ‘‘हे मिलन सौभाग्याचे’’ में मेरे साथ मिलिंद गवली व दीपाली सय्यद थीं. इस फिल्म को कई पुरस्कार मिले. दादा साहेब फालके पुरस्कार मिला.यह 2012 की बात है.इसके बाद मैने ‘अपराजिता’,‘आभिरान’ सहित कुछ सामाजिक फिल्में की.‘अभिरान’ में देवदासी जैसी कुप्रथा में उलझे हुए लोगों के विचार को बदलने में लगी एक गुरू की बेटी का किरदार निभाया.मैने रूढ़िवादी परंपरा के खिलाफ बात करने वाली फिल्में की. मैने कुछ लघु फिल्में भी की.इसके बाद मेरे दिमाग में आया कि अब मुझे कुछ बेहतरीन कंटेट प्रधान फिल्में करनी चाहिए.मैं उन फिल्मों का प्राथमिकता दे रही थी,जो कि सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ बातें करती हो.सामाजिक मुद्दों को उठाती हों.इसी सोच के साथ मैने फिल्म ‘‘मैरिट एनीमल’’ से अभिनय के साथ साथ निर्माण के क्षेत्र में कदम रखा है.क्योंकि मैं अपनी बात को खुलकर कहना चाहती थी. आप मराठी में उन फिल्मों में अभिनय कर रही थीं, जो कि सामाजिक कुप्रथाओं को उठा रही थी.

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इसके बावजूद आपको अपना कुछ अलग करने की इच्छा क्यों हुई?

-जो बात मैं जिस ढंग से लोगों तक पहुॅचाना चाहती थी,उस तरह से नही हो रहा था.मेरी फिल्म ‘आभिरान’ बहुत कम सिनेमाघरों में प्रदर्तशि हुई,तो वह ठीक से लोगों तक पहुॅंची ही नहीं.मैं चाहती थी कि समाज से जुड़े मुद्दों पर फिल्म बने और वह ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुॅचे.इसलिए मैने सोचा कि जब मेरा अपना काॅंसेप्ट होगा और उसका निर्माण करने के साथ उसमें अभिनय भी खुद ही करुंगी,तो मैं उस फिल्म को अपने तरीके से लोगों तक पहुॅचा सकती हॅूं. जैसे कि मैं अपनी फिल्म ‘‘मैरिट एनीमल’’ को ओटीटी प्लेटफार्म ‘हंगामा प्ले’ पर रिलीज कर रही हॅूं.आज की तारीख में लोग ओटीटी प्लेटफार्म पर कंटेंट देख रहे हैं.

बतौर निर्माता पहली फिल्म के तौर पर ‘‘मैरिट एनीमल’’ ही क्यों?

-इसके लेखक व निर्देशक जुनैद इमाम ने जब मुझे यह काॅसेप्ट सुनाया तो मुझे बहुत अच्छा लगा. उनके अंदर बेहतरीन सिनेमा बनाने की भूख थी.जिस तरह से अभिनेता /अभिनेत्री को अभिनय की भूख होती है.जुनैद इमाम इससे पहले भी बाल विवाह सहित कई कुप्रथाओं पर लघु फिल्में बना चुके हैं.‘‘मैरिट एनीमल’’ में भी अच्छा संदेश है.मैं यह नही कहती कि शिक्षा व्यवस्था पर इससे पहले कोई फिल्म नही आयी.मगर ‘मैरिट एनीमल’ कुछ अलग है.यह कलात्मक फिल्म है.क्लायमेक्स में फिल्म एकदम से अलग ट्विस्ट ले लेती है.यह फिल्म हर दर्शक को सोचने पर मजबूर करने वाली है.

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फिल्म ‘मेरिट एनीमल’ क्या है?

-‘मेरिट एनिमल’ की कहानी स्कूल के एक युवा लड़के वरुण के इर्द-गिर्द घूमती है, जिसका शहरी जीवन कठिन है.एक स्कूल प्रतियोगिता के दौरान वरुण का एक्सीडेंट हो जाता है और जब तक उसकी आँखें खुलती हैं, वह खुद को एक ऐसे गाँव में पाता है जहाँ उसे जीवन के विभिन्न रंग और सच्चाई दिखाई देती है.

आपकी फिल्म भी बच्चों की पढ़ाई के ही इर्द गिर्द है.इस तरह के विषय पर अतीत में ‘तारे जमीं पर’ सहित कई बेहतरीन फिल्में बन चुकी हंै.तो उनसे आपकी फिल्म अलग कैसे है?

-यह फिल्म अब तक बनी हर फिल्म से अलग इस तरह है कि हमने इस फिल्म में दो चेहरे बताएं हैं.एक षहरी और एक ग्रामीण.हमारी फिल्म में नजर आएगा कि हर बच्चा एक समान नही होता है.फिर भी आप देखिए,अब षिक्षा व्यवस्था का आलम यह है कि हर बच्चे को सिर्फ एक जगह नहीं बल्कि सात सात जगहों पर स्कोरिंग करनी है,मैरिट में आना ही है. आपको ड्राइंग, स्पोर्टस, गणित,जीव विज्ञान सहित हर विषय मंे टाॅप पर आना है.गणित में मैरिट में आएंगे,तभी इंजीनियरिंग की ओर बढ़ सकते हैं. जीव विज्ञान में टाॅप पर आएंगे,तभी मेडिकल की तरफ जा सकते हैं.मेरी फिल्म में षहरी और ग्रामीण दोेनो चेहरों के साथ शिक्षा व्यवस्था के विरोधाभास का चित्रण नजर आएगा.ग्रामीण क्षेत्रों में स्कूल की हालत यह है कि इन स्कूलों में बच्चे महज ‘मिड डे मील’ के लिए जाते हैं. इनमें से भी आधे बच्चों को ‘मिड डे मील’ भी नही मिल पाता.हमने अपनी इस फिल्म में इस बात को जोरदार तरीके से रेखांकित किया है कि ग्रामीण स्कूलों में बच्चों को सप्ताह में सिर्फ तीन दिन ही षिक्षा मिल पाती है.क्योंकि ग्रामीण स्कूल में पढ़ाने वाले षिक्षक का तीन दिन सिर्फ अपने घर से स्कूल आने जाने की यात्रा करने में ही निकल जाता है.स्कूली बच्चों के लिए मनोरंजन का कोई साधन नही है.हमने जब ऐसे ही एक ग्रामीण स्कूल में षूटिंग की,तो उस वक्त वहां का टीवी भी बार बार आ जा रहा था.ग्रामीण क्षेत्रों में मोबाइल नेटवर्क भी नहीं पकड़ता.ऐसे में ग्रामीण लोग बिना मनोरंजन किस तरह रहते हैं,इसका भी चित्रण है.इस तरह हमारी फिल्म ‘‘मैरिट एनीमल’’ दूसरी फिल्मों से कई गुणा अलग है.

शिक्षा व्यवस्था की बात करते हुए आपने ग्रामीण व शहरी शिक्षा के अंतर को भी चित्रित किया है?

-हकीकत में सरकारी स्तर पर सुविधाएं तो काफी दी गयी हैं.फिर भी जो सुविधा शहरों में उपलब्ध है, वह ग्रामीण क्षेत्रों में नहीं मिलती.क्योंकि सरकारी सुविधाओं की तरफ ग्रामीणों का ध्यान ही नहीं गया है.कई बार बच्चो को स्कूल में प्रवेश नहीं मिलता.

फिल्म का नाम ‘मैरिट एनीमल’ क्यों?

-क्योंकि हमारे समाज में हर माता पिता यही सोचता है कि उसका बच्चा मैरिट में आना ही चाहिए. जिससे उसे अच्छे कालेज में प्रवेश मिलेगा.मेडिकल या इंजीनियरिंग में प्रवेश पाना आसान हो जाएगा.यह सब मैरिअ पर टिकी है.तो माता पिता अपने बच्चों पर लगातार दबाव बनाए रखते हैं कि उसे मैरिट में आना है. उसे टाॅप में आना ही है.कोई भी माता पिता यह नही देखता कि उनका बच्चा कितना कैपेबल है.इसतरह हर माता पिता अपने बच्चे को जानवर ही बनाकर रख देता है.

फिल्म के पोस्टर में रेस दिखायी गयी है?

-आप देखिए,हर क्षेत्र में रेस ही है.हर इंसान भागता हुआ नजर आता है.बच्चा पैदा होते ही रेस का हिस्सा बन जाता है.अच्छी षिक्षा,अच्छे स्कूल व कालेज में एडमीषन, अच्छी नौकरी हर जगह रेस ही है.मुझे मैरिट में आना है.मुझे निन्यानबे प्रतिशत अंक चाहिए.यह सब रेस ही है.हम चाहते है कि बिना भाषण बाजी किए फिल्म के पोस्टर व नाम से ही हमारी बात लोगों तक पहुॅच जाए.

आपका किरदार क्या है?

-मैंने इसमें गांव के एक गरीब आदिवासी किसान की पत्नी व गांव में पले बढ़े लड़के की मां का किरदार निभाया है, जिसका वरुण पर अपनी सादगी और मासूमियत से लंबे समय तक प्रभाव रहा है.इस किरदार को निभाने के लिए मैंने अपना लुक बदलने के साथ ही अपनी वेशभूषा पर भी शानदार ढंग से काम किया है,जो मेरे चरित्र को चरित्र के अनुसार अलग और वास्तविक बनाता है.इस किरदार को निभाने के लिए मैं कई आदिवासी औरतों से मिली,उनके साथ उनकी तरह से उठना बैठना व चलना सीखा.इस फिल्म में मैंने आदिवासी औरतों की ही तरह डस्टी मेकअप किया है.

फिल्म फेस्टिवल में किस तरह का रिस्पांस मिला?

-हर जगह बहुत अच्छा रिस्पंास मिला.हमारी फिल्म विष्व के कई फिल्म फेस्टिवल में जा चुकी हैं.अहमदाबाद के चिल्ड्ेन फिल्म फेस्टिवल की शुरूआत हमारी फिल्म ‘‘मैरिट एनीमल’’ से ही हुई और सर्वश्रेष्ठ मनोरंजक फिल्म का अवार्ड भी मिला. सर्वश्रेष्ठ शिक्षा की फिल्म का भी अवार्ड मिला. हर किसी ने कहा कि हमने षिक्षा व्यवस्था की खामियों को बहुत ही मनोरंजक तरीके से उभारा है.हमने शहरी लड़के के भटकने की कहानी भी दिखायी है.

इस फिल्म के माध्यम से आप क्या संदेश देना चाहती हैं?

-फिल्म ‘‘मेरिट एनीमल’’ के माध्यम से हम हर माता पिता से ही कहना चाहते हैं कि वह अपने बच्चे को बच्चे की ही तरह पाले,उस पर जानवरों की तरह बोझ न लादे.हमने फिल्म में ग्रामीण व शहरी दोेनों का पक्ष रखा है.क्योंकि दोेनों जगह काफी अंतर है.षहरों में सुविधाएं हैं,तो वहीं प्रतिस्पर्धा भी काफी है.तो दूसरी तरफ गांवों में षिक्षा को लेकर कोई जागरूकता ही नही है.

इसके अलावा क्या कर रही हैं?

-अगली फिल्म लक्ष्मण गायकवाड़ के उपन्यास ‘उर्सला’ पर होगी.18 भाषाओं में प्रकाशित यह अति चर्चित उपन्यास है.इसके राइट्स लेेने के बाद गणेश पंडित से इसकी पटकथा लिखवायी है.

‘‘खली बली”: भूत प्रेत व आत्मा का अंधविश्वास फैलाने वाली बोर करती फिल्म

रेटिंग: एक स्टार

निर्माताः कमल किशोर मिश्रा

निर्देशकः मनोज शर्मा

कलाकार: धर्मेंद्र,मधु,कैनाट अरोड़ा, रजनीश दुग्गल, असरानी,विजय राज,राजपाल यादव,एकता जैन,ब्रजेंद्र काला व अन्य

अवधिः लगभग दो घंटे

लेखक व निर्देशक के तौर पर पिछले 17 वर्षों से बौलीवुड में कार्यरत मनोज शर्मा ने महज आठ फिल्में निर्देशित की हैं.उनकी सातवीं फिल्म ‘देहाती डिस्को’ कुछ माह पहले प्रदर्शित हुई थी.और अब 16 सितंबर को उनकी आठवीं फिल्म ‘‘खली बली’’ सिनेमाघरों में पहंुची है.धर्मेंद्र,मधु,विजय राज,राजपाल यादव,रजनीश दुग्गल,एकता जैन, असरानी जैसे कलाकारों के अभिनय से सजी फिल्म ‘‘खली बली’’ सिर दर्द के अलावा कुछ नही है.

कहानीः 

कहानी के केंद्र में नवोदित मौडल और बौलीवुड अभिनेत्री संजना (कैनात अरोड़ा   ) हंै,जो कि कालरा (ब्रजेंद्र कालरा) के इशारे पर रोहित (रजनीश दुग्गल)  संग प्यार का नाटक करते हुए उससे पैसे ऐंठ रही है.इतना ही नही संजना खुद को बड़ी हीरोईन साबित करने के लिए रोहित से खुद को हीरोइन लेकर एड फिल्म, म्यूजिक वीडिया व फिल्में बनवा रही हैं. अब तक तीन निर्देशकों ने संजना की हीरोइन वाली फिल्म निर्देशित करने से इंकार कर दिया है.दो फिल्में अधुरी पड़ी हैं.एक विज्ञापन फिल्म की शूटिंग के दौरान संजना के साथ कुछ विचित्र अलौकिक घटनाएं घटित होती हैं.मसलन शूटिंग के दौरान अचानक एक फैन / पंखा गिर जाता है और संजना की स्कर्ट उपर उठकर उड़ने लगती है.दूसरे दिन बंद पड़ा पंखा अचानक चलने लगता है.सोते समय संजना किसी के संग प्यार में डूबे होने की हरकते करती है.मगर संजना अपने प्रेमी रोहित को इन सब पर यकीन न करने के लिए मजबूर करती है.मगर एक दिन कुछ ऐसा होता है कि संजना को अस्पताल ले जाना पड़ता है.मगर कालरा के इशारे पर डाक्टर भी कहता है कि इसे सुपरनेच्युरल पाॅवर की संज्ञा देने की बजाय कुछ समय के लिए मुंबई से बाहर जाकर समय बिताएं.डाक्टर उन्हे लखनउ में अपने बंगले पर रहने भेजता है.लखनउ में डाक्टर के बंगले का केअर टेकर गोपाल अपनी पत्नी बिंदिया के संग रहता है.लखनउ पहुॅचते ही रोहित व संजना का साबका पुलिस इंस्पेक्टर गुर्जर सिंह(विजय राज ) व हवलदार पांडे( हेमंत पांडे ) से पड़ता है.यहां संजना के साथ बहुत कुछ घटित होने लगता है.तब उसका इलाज करने के लिए पैरानॉर्मल स्पेशलिस्ट अनुश्का ( मधु )  आती हैं.वह पता लगा लेती हैं कि इसका इलाज संजना के गांव में हैं,जहां वह पहले रहती थी.अनुष्का व गुर्जर सिंह गांव जाते हैं,जहां वह मृत अमन(रोहन मेहरा)  के घर जाकर उसकी आत्मा को बुलाती है.अमन मन ही मन संजना से प्यार करता था.पर वह यह बात कभी कह नही पाया और मन की बात कहने के लिए जाते समय ही छत से गिरकर उसकी मौत हो गयी थी.अब वह संजना को छोड़ना नही चाहता.अनुष्का का प्रयास विफल हो जाता है.तब अनुष्का,प्रोफेसर गुरपाल सिंह(  धर्मेंद्र )  की मदद लेती है और मामला सुलझ जाता है.

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लेखन व निर्देशनः

भूत प्रेत व आत्मा की बात कर अंधविश्वास को बढ़ाने के नाम पर उलजलूल, बेसिर पैर की कहानी व पटकथा वाली यह फिल्म न डराती है और न हंसाती है.फिल्म सर्जक मनोज शर्मा ने  हौरर कॉमेडी हौलीवुड फिल्मों ‘फ्लिक’,‘एंटिटी’ व कुछ बौलीवुड की हौरर फिल्मों को मिश्रित कर ऐसा कचूमर बनाया है,जो दर्षक का मनोरंजन करने की बजाय उन्हे सिरदर्द ही देती है.फिल्म का क्लायमेक्स अंधविश्वास को बढ़ाने का काम जरुर करता है,मगर बहुत ही घटिया है.बतौर लेखक व निर्देशक मनोज शर्मा बुरी तरह से असफल हुए हैं.

फिल्म का वीएफएक्स भी बहुत ही घटिता है.इसी के चलते एक भी दृश्य में डरावना माहौल नही बन पाता.एक दृश्य में एक रोबोट मूर्ति से बेतरतीब ढंग से रोशनी और आवाजों का उत्सर्जित होना, एक दीवार घड़ी के कांटांे का हवा में उड़ना और पोक करना या दर्पण तोड़ना सब बहुत ही वाहियात सा लगता है.एडीटिंग टेबल पर भी इस फिल्म को कसा जाना चाहिए था.

अभिनयः

संजना के किरदार में  कायनात अरोड़ा का अभिनय निचले दर्जे का है.वह करीबन डेढ़ दशक से अभिनय जगत में हैं,मगर उन्हें आज भी अभिनय करना नहीं आता.रोहित के किरदार में रजनीश दुग्गल को लेना भी निर्देशक की भूल ही है.रजनीश दुग्गल कभी बड़े मौडल हुआ करते थे,मगर उन्हे अभिनय नही आता.लेकिन उनके अंदर अहम जरुरत से ज्यादा है.पैरानॉर्मल स्पेशलिस्ट के रूप में अनुष्का के किरदार में मधु और गुरपाल सिंह के छोटे किरदार में धर्मेंद्र जरुर अपनी छाप छोड़ते हैं.आखिर यह दोनो मंजे हुए दिग्गज कलाकार हैं.गुर्जर सिंह के किरदार में विजय राज और गोपाल के किरदार में राजपाल यादव निराष ही करते हैं.राजपाल यादव ने बहुत ही ज्यादा लाउड कौमेडी की है.एकता जैन का अभिनय ठीक ठाक है.असरानी और ब्रजेंद्र कालरा ने यह फिल्म क्यों की,यह समझ से परे है.

उप राष्ट्रपति बनना चाहते थे नीतीश कुमार: सुशील मोदी

बिहार में नीतीश कुमार भाजपा को झटका दे NDA गठबंधन से अलग हो चुके हैं जिसके बाद से ही भाजपा और JDU में एक दूसरे के खिलाफ जमकर बयानों के तीर चल रहे हैं लेकिन JDU के केंद्र बिंदु में हैं भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी जिनके एक बयान ने JDU को ख़ासा नाराज़ कर दिया है. दरअसल सुशील मोदी ने कहा था कि नीतीश कुमार उप राष्ट्रपति बनना चाहते थे लेकिन जब उनका ये सपना पूरा नहीं हुआ तब उन्होंने भाजपा से गठबंधन तोड़ दिया.

गठबंधन टूटने की सिर्फ यही एक वजह नहीं थी बल्कि सुशील मोदी ने मीडिया से बातचीत करते हुए वो तीन प्रमुख वजहें बताईं जिसकी वजह से नीतीश कुमार भाजपा से अलग हो गए. सुशील मोदी ने बताया कि तीन कारणों से गठबंधन टूटा है. नीतीश कुमार की महत्वकांक्षा, लालू परिवार की सत्ता की बेचैनी और ललन सिंह का केंद्र में मंत्री नहीं बन पाने की जलन. मोदी ने कहा कि यही वो तीन वजहें थे जिसकी वजह से नीतीश कुमार भाजपा से अलग हो गए. अब जब कोई बहाना नहीं सुझ रहा है और मैंने नीतीश कुमार की महत्वकांक्षा की बात कह दी जिसके बाद JDU परेशान हो गई है. सुशील मोदी ने कहा कि जान बूझकर मुझ पर बयान देकर जेडीयू राजनीति करना चाहती है लेकिन उसका कोई फायदा उन्हें नहीं मिलेगा.

मोदी ने कहा कि लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी की अगुवाई में शानदार सफलता मिलेगी. अटल आडवाणी दौर को याद कर JDU जानबूझकर कर भ्रम फैलाना चाहती है लेकिन इसका फ़ायदा उन्हें नहीं मिलने वाला है. हर बात का एक दौर होता है. समय के अनुसार बातें भी बदलती है. ये बातें JDU क्यों कर रही है उनकी मंशा साफ है लेकिन इसका फायदा उन्हें नही मिलने वाला है. मोदी ने कहा कि तेजस्वी यादव डिफैक्टो मुख्यमंत्री हैं. बिहार में उन्हीं की सरकार है. सरकार में अब जो भी होगा वही होगा जो लालू यादव और तेजस्वी यादव चाहेंगे. नीतीश कुमार सिर्फ मूकदर्शक बन कर देखने के सिवा कुछ नही कर पाएंगे.

Anupamaa: शाह हाउस छोड़कर जाएगी किंजल! अनुपमा को लगेगा शॉक

टीवी एक्ट्रेस रुपाली गांगुली और गौरव खन्ना स्टारर सीरियल ‘अनुपमा’ लगातार टीआरपी लिस्ट में टॉप पर बना हुआ है. यह शो सोशल मीडिया पर भी टॉप ट्रेंड में बना हुआ है. शो का ट्विस्ट एंड ट्रन दर्शकों का दिल जीत रहा है. शो में आपने देखा कि तोषु के एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर के कारण किंजल सदमे में चली जाती है. अनुपमा और वनराज तोषु को खूब खऱी-खोटी सुनाते हैं. वनराज तोषु को घर से बाहर निकाल देता है. शो के अपकमिंग एपिसोड में खूब धमाल होने वाला है. आइए बताते हैं, शो के नये एपिसोड के बारे में…

शो में दिखाया जा रहा है कि  काव्या और वनराज को अपने किए पर पछतावा होता है. शो के अपकमिंग एपिसोड में दिखाया जाएगा कि अनुपमा शाह परिवार को मुंहतोड़ जवाब देगी. दरअसल तोषू के घर छोड़कर जाने के बाद शाह परिवार के कई सदस्य अनुपमा के खिलाफ हो जाते हैं.

 

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बा की तरह पाखी भी अनुपमा को ताना मारती है और कहती है कि राखी आंटी की तरह मम्मी भी चुप रह सकती थी और परितोष को माफ कर सकती थी.  यह सब सुनते ही अनुपमा का पारा चढ़ जाता है औऱ वह करारा जवाब देती है.

 

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अनुपमा कहती है कि भगवान न करे कभी तेरे साथ ऐसा हो, लेकिन जब हो ना तो तू अपने पति को माफ कर देना इसपर पाखी कहती है कि मैं अपनी प्रॉब्लम खुद सुलझा सकती हूं. तो वहीं अनुपमा उसे जवाब देती है कि इसे याद रखना.

 

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शो में आप ये भी देखेंगे कि किंजल अपनी बेटी आर्या को लेकर घर से जाने की जिद पकड़ लेती है. पूरा शाह परिवार उसे समझाने की कोशिश करता है लेकिन किंजल कहती है कि अगर वो इस घर में रहेगी तो उसका दिमाग फट जाएगा. इसी बीच राखी दवे वहां आती है.

राखी दवे उससे पूछती है कि वह कहां जा रही है? इस पर किंजल से कोई जवाब नहीं बनता. तभी बा चौंककर पूछती हैं कि क्या उसने अपनी मां को इस बारे में नहीं बताया था? अब शो में ये देखना दिलचस्प होगा कि किंजल शाह हाउस छोड़कर कहां जाएगी?

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