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मुखरित मौन – भाग 3 : क्या अवनी अपने ससुराल की जिम्मेदारियां निभा पाई

सुजाता सिर्फ शारीरिक रूप से ही नहीं, मानसिक रूप से भी व्यस्त थीं. नौकरी की व्यस्तता के कारण उन का ध्यान दूसरी कई फालतू बातों की तरफ नहीं जाने पाता था. दूसरा, सोचने का आयाम बहुत बड़ा था. कई बातें उन की सोच में रुकती ही नहीं थीं. इधर से शुरू हो कर उधर गुजर जाती थीं.

2 बज गए थे. लंच का समय हो गया था. बच्चे अभी होटल से नहीं आए थे. सरस ने एकदो बार फोन करने की पेशकश की, पर सुजाता ने सख्ती से मना कर दिया कि उन्हें फोन कर के डिस्टर्ब करना गलत है.

‘‘तुम्हें भूख लग रही है, सरस, तो हम खाना खा लेते हैं.’’

‘‘बच्चों का इंतजार कर लेते हैं.’’

‘‘बच्चे तो अब यहीं रहेंगे. थोड़ी देर और देखते हैं, फिर खा लेते हैं. न उन्हें बांधो, न खुद बंधो. वे आएंगे तो उन के साथ कुछ मीठा खा लेंगे.’’

सुजाता के जोर देने पर थोड़ी देर

बाद सुजाता व सरस ने खाना खा लिया. बच्चे 4 बजे के करीब आए. वे सो कर ही 2 बजे उठे थे. अब कुछ फ्रैश लग रहे थे. उन के आने से घर में चहलपहल हो गई. सरस और सुजाता को लगा बिना मौसम बहार आ गई हो. सुजाता ने उन का कमरा व्यवस्थित कर दिया था. बच्चों का भी होटल जाने का कोई मूड नहीं था. परिमल भी अपने ही कमरे में रहना चाहता था. इसलिए वे अपनी अटैचियां साथ ले कर आ गए थे. थोड़ी देर घर में रौनक कर, खाना खा कर बच्चे फिर अपने कमरे में समा गए.

अवनी अपनी मम्मी को फोन करना फिर भूल गई. बेचैनी में मानसी का दिन नहीं कट रहा था. दोबारा फोन मिलाने पर अवनी की सुबह की डांट याद आ रही थी. इसलिए थकहार कर समधिन सुजाता को फोन मिला दिया. थकी हुई सुजाता भी लंच के बाद नींद के सागर में गोते लगा रही थीं. घंटी की आवाज से बमुश्किल आंखें खोल कर मोबाइल पर नजरें गड़ाईं. समधिन मानसी का नाम देख कर हड़बड़ा कर उठ कर बैठ गईं.

 

त्यौहार 2022: परवल स्वीट -नाम सब्जी का टेस्ट मिठाई का

पहले परवल स्वीट गांवों में शादियों के समय बनाई जाती थी. आमतौर पर पहले शादियां गरमी के मौसम में ही होती थीं. केवल खोए या छेने की मिठाई बनवाने का काम महंगा होता था. ऐसे में बचत के लिए परवल स्वीट की शुरुआत की गई. कुछ ही दिनों में इस मिठाई का स्वाद लोगों की जबान पर ऐसा चढ़ा कि लोग इस के दीवाने हो गए. रवींद्र गुप्ता कहते हैं, ‘परवल स्वीट दूसरी मिठाइयों से बिल्कुल अलग होती है. यह खाने में रसदार होने का एहसास जरूर कराती है, पर असल में सूखी मिठाई होती है. इसे कहीं लाने ले जाने में भी दिक्कत नहीं होती है.’

परवल स्वीट केवल लखनऊ में ही नहीं बनती. दूसरे शहरों की खास मिठाई की दुकानों में भी यह मिठाई मिल जाती है. इस का हराभरा मीठा स्वाद खाने का अलग मजा देता है. दूसरी मिठाइयों के मुकाबले इस में कैलोरी की मात्रा कम होती है. इसलिए भी परवल स्वीट ज्यादा पसंद की जाती है. जिन लोगों को परवल की सब्जी उस के बीजों की वजह से अच्छी नहीं लगती, वे परवल स्वीट का मजा ले सकते हैं.

कैसे बनाएं परवल स्वीट

परवल स्वीट को बनाना मुश्किल नहीं होता है. इसे बनाने के लिए सब से पहले अच्छे किस्म के एक साइज के ताजे परवल लेने चाहिए. एक साइज के परवल देखने में अच्छे लगते हैं.

परवलों को सही तरह से धोने के बाद उन का छिलका उतार दें. चाकू से परवलों के बीच में चीरा लगाएं. इस के बाद परवलों के बीज निकाल दें.

अब पानी और चीनी को मिला कर चाशनी बना लें. चाशनी में परवलों को डाल कर धीमी आंच पर चढ़ा दें और 10-15 मिनट तक पकने दें. खयाल रखें कि परवल जलने न पाएं.

परवलों में भरने के लिए मिल्क बरफी का इस्तेमाल किया जाता है. बरफी बनाने के लिए दूध के साथ चीनी, काजू, किशमिश और इलायची का इस्तेमाल किया जाता है.

बरफी बनाने के बाद परवलों के अंदर खाली जगह में उसे भरें. फिर परवलों को बाहर से चांदी के वरक से लपेट दें और 20 मिनट के लिए फ्रीजर में रखें. फिर तैयार परवल स्वीट का आनंद लें.

ऐसा स्वाद आप को किसी दूसरी मिठाई से नहीं मिलेगा. लौकी की बरफी और मूंग की बरफी की तरह आजकल परवल स्वीट की मांग भी तेजी से बढ़ रही है.

डायबिटीज को कैसे कंट्रोल किया जा सकता है?

सवाल

मेरी उम्र 46 साल है. मुझे डायबिटीज है. मेरी डायबिटीज ऊपरनीचे होती रहती है, यानी कि कंट्रोल में नहीं रहती, जबकि मेरा खानापीना सब नियमित है. मैं परिवार के साथ 15 दिनों के टूर पर जा रहा हूं. मैं ने घर में किसी से इस बारे में कुछ नहीं कहा लेकिन भीतर ही भीतर डर रहा हूं कि कहीं बाहर घूमतेफिरते शुगर की वजह से मेरी तबीयत खराब हो गई तो मेरे कारण घरवालों का मजा किरकिरा हो जाएगा. आप कुछ राय दे सकते हैं कि मैं घूमतेफिरते या घर से बाहर रहते हुए भी खुद को स्वस्थ रख सकूं.

जवाब

चिंता करना भी शुगर को बढ़ाता है. आप बेवजह चिंता कर ही क्यों रहे हैं. दवाइयां तो आप ले ही रहे हैं. हां, घर से बाहर रहते हुए देर से भोजन करना, सामान्य से ज्यादा ऐक्टिव रहना और अलगअलग टाइम जोन में रहना आप के डायबिटीज के मैनेजमैंट को बाधित कर सकता है लेकिन चिंता बिलकुल मत करिए. कुछ बातों का ध्यान रख कर चलेंगे तो कोई दिक्कत नहीं आएगी और आप अपने ट्रिप को पूरी तरह से एंजौय कर सकेंगे.

रोजाना अपने ब्लडशुगर लैवल को चैक करते रहिए. यात्रा के दौरान खुद को हाइड्रेट रखें. पर्याप्त पानी पीते रहें, इसलिए पानी की बोतल साथ ले कर चलें.

बेशक आप ट्रिप पर गए हैं लेकिन सुबह के वक्त फिटनैस के लिए समय निकालना जरूरी है. व्यायाम ब्लडशुगर को मैनेज करने में मदद करता है. बस, कोशिश कीजिए कि बौडी ओवर एक्जर्ट न हो. अपने साथ हैल्दी स्नैक्स और फूड्स को पैक करना न भूलें, ऐसा फूड जो आप के स्वास्थ्य के लिए अच्छा हो. रैस्तरां में ऐसा फूड और्डर करें जो आप की शुगर न बढ़ाए.

आप जिस भी होटल, रिजौर्ट में ठहर रहे हैं, उस के आसपास फार्मेसी, मैडिकल स्टोर, इमरजैंसी हैल्प की जानकारी ले लें और बेफिक्र हो कर घरवालों के साथ अपनी छुट्टियां एंजौय करें.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem

गावों के लिए पर्यटन स्थल सरीखे होंगे अमृत सरोवर

हर ग्राम पंचायत में लबालब भरे तालाब. इनके किनारों पर लकदक हरियाली. बैठकर सकुन के कुछ घन्टे गुजरने के लिए जगह-जगह लगी बेंचे. भविष्य में कुछ यही स्वरूप होगा आजादी  के अमृतमहोत्सव पर बन रहे अमृतसरोवरों का.

हर अमृत सरोवर खूबसूरत हो. इसके लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार एक स्वस्थ्य प्रतिस्पर्द्धा भी शुरू करने जा रही है. इसके तहत जो अमृत सरोवर सबसे अच्छे होंगे उनके निर्माण से जुड़े ग्राम प्रधानों, अधिकारियों और कर्मचारियों को ग्राम्य विकास विभाग सम्मानित करेगा.

हरियाली बढ़ाने के लिए 21 सितंबर को होगा सघन पौधरोपण

अमृत सरोवरों के किनारे लकदक हरियाली हो इसके लिए I21 सितंबर को पौधरोपण का सघन अभियान भी चलेगा. इस दौरान स्थानीय लोगों के अलावा 80 हजार होमगार्ड के जवान पौधरोपण में भाग लेंगे. इस बाबत गढ्ढे मनरेगा से खोदे जाएंगे और निःशुल्क पौधे वन विभाग उपलब्ध कराएगा.

“सबकी मदद से सबके लिए” की मिसाल बनेगें ये अमृतसरोवर

कालांतर में ये अमृत सरोवर,”सबकी मदद से सबके लिए” और पानी की हर बूंद को संरक्षित करने के साथ अपनी परंपरा को सहेजने की  नजीर भी बनेंगे.

बूंद-बूंद संरक्षित करने के साथ परंपरा को सहेजने की भी बनेंगे नजीर

उल्लेखनीय है कि पहले भी तालाब,  कुएं, सराय, धर्मशालाएं और मंदिर जैसी सार्वजनिक उपयोग की चीजों के निर्माण का निर्णय भले किसी एक का होता था,पर इनके निर्माण में स्थानीय लोगों के श्रम एवं पूंजी की महत्वपूर्ण भूमिका होती थी.

यही वजह है कि बात चाहे लुप्तप्राय हो रही नदियों के पुनरुद्धार की हो या अमृत सरोवरों के निर्माण की, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इन सबको जनता से जोड़कर जनांदोलन बनाने की बात करते रहे हैं. अमृत सरोवरों की रिकॉर्ड संख्या के निर्माण के पीछे यही वजह है. इसीके बूते पहले हर जिले में एक अमृत सरोवर के निर्माण का लक्ष्य था. बाद में इसे बढ़ाकर हर ग्राम पंचायत में दो अमृत सरोवरों का निर्णय लिया गया है. इस सबके बनने पर इनकी संख्या एक लाख 16 हजार के करीब हो जाएगी.

भविष्य में ये सरोवर अपने अधिग्रहण क्षेत्र में होने वाली बारिश की हर बूंद को सहेजकर स्थानीय स्तर पर भूगर्भ जल स्तर को बढ़ाएंगे. बारिश के पानी का उचित संग्रह होने से बाढ़ और जलजमाव की समस्या का भी हल निकलेगा. यही नहीं सूखे के समय में यह पानी सिंचाई एवं मवेशियों के पीने के काम आएगा. भूगर्भ जल की तुलना में सरफेस वाटर से  पंपिंग सेट से सिंचाई कम समय होती है. इससे किसानों का डीजल बचेगा. कम डीजल जलने से पर्यावरण संबंधी होने वाला लाभ बोनस होगा.

दरअसल बारिश के हर बूंद को सहेजने के इस प्रयास  का सिलसिला मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देश पर उनके पहले कार्यकाल से ही शुरू हो गया था. गंगा एवं अन्य बड़ी नदियों के किनारे बन रहे बड़े एवं बहुउद्देश्यीय तालाब और खेत-तालाब जैसी योजनाएं इसका प्रमाण हैं.

इसी मकसद से सरकार अब तक 24583 खेत-तालाब खुदवा चुकी है. इनमें से अधिकांश (80 फीसद) बुंदेलखंड, विंध्य, क्रिटिकल एवं सेमी क्रिटिकल ब्लाकों में हैं. मौजूदा वित्तीय वर्ष में 10 हजार और खेत-तालाब तैयार करने की है.

पांच साल का लक्ष्य 37500 खेत तालाब निर्माण की है. इनका निर्माण कराने वाले किसानों को सरकार 50 फीसद का अनुदान देती है. इस समयावधि में इन पर 457.25 करोड़ रुपये खर्च करने का लक्ष्य है.

भूगर्भ जल स्तर में सुधार और सूखे के दौरान सिंचाई के काम आने के लिए सरकार गंगा नदी के किनारे बहुउद्देशीय गंगा तालाबों का भी निर्माण करा रही है. आजादी के अमृत महोत्सव के उपलक्ष्य में बनाए जा रहे अमृत सरोवरों का भी यही उद्देश्य है. फिलहाल उत्तर प्रदेश इनके निर्माण में नंबर एक है. ग्राम्य विकास विभाग से मिले अद्यतन आंकड़ों के मुताबिक उत्तर प्रदेश में अमृत सरोवर के रूप में अब तक 15441 तालाबों का चयन हुआ है. 10656 के निर्माण का काम चल रहा है. 8389 तालाब अमृत सरोवर के रूप में विकसित किये जा चुके हैं.

यूपी में अब 5 मिनट में होगा ‘ई रेंट एग्रीमेंट’

उत्तर प्रदेश में अब आम नागरिकों और व्यापारियों को मकान, दुकान, गोदाम जैसी जगह किराए पर लेने के लिए कहीं भटकना पड़ेगा. योगी सरकार इनकी सुविधा के लिए ‘ई रेंट एग्रीमेंट’ के जरिए ऑनलाइन लीज डीड की शुरुआत कर रही है. इससे अब डीड राइटर की आवश्यक्ता नहीं रह जाएगी. सीधे मकान या बिल्डिंग के मालिक के साथ किराएदार ऑनलाइन अनुबंध कर सकेंगे. इससे आम नागरिकों समेत व्यापारियों को राहत मिलेगी. उन्हें मौजूदा जटिल प्रक्रिया से नहीं गुजरना होगा, बल्कि ऑनलाइन महज 5 मिनट में वो कांट्रैक्ट लेटर हासिल करने में सक्षम होंगे.

गौरतलब है कि योगी सरकार ने प्रदेश में नागरिकों को कई तरह की सेवाएं ऑनलाइन देकर उनके जीवन को सुगम बनाने का प्रयास किया है. ई रेंट एग्रीमेंट उसी मुहिम का हिस्सा है. फिलहाल इसकी शुरुआत गौतम बुद्धनगर से हुई है और जल्द ही अन्य जिलों में यह व्यवस्था लागू हो जाएगी.

जटिल प्रक्रिया से मिलेगा छुटकारा

रेंट एग्रीमेंट की मौजूदा व्यवस्था के तहत किराएदार को पहले डीड राइटर से संपर्क साधना पड़ता था. इसके बाद स्टांप पेपर खरीदने, उसकी नोटरी कराने के बाद दोनों पार्टियों के रेंट एग्रीमेंट पर सिग्नेचर होते थे. प्रस्तावित ऑनलाइन व्यवस्था में अब किराएदार को सिर्फ उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा अनुमोदित एग्रीमेंट पोर्टल पर जाकर अपने नाम और मोबाइल के जरिए लॉगिन करके लीज डिटेल भरनी होगी. उदाहरण के तौर पर गौतम बुद्धनगर में www.gbnagar.nic.in नाम से साइट विकसित की गई है. इस पर प्रॉपर्टी की डिटेल भरने के बाद स्टांप ड्यूटी अदा करते ही लीज डीड की प्रिंट कॉपी मिल जाएगी. पोर्टल पर रेंट डिटेल भरते ही स्टांप ड्यूटी का ऑटोमैटिक कैलकुलेशन हो जाएगा.

5 मिनट से भी कम समय में पूरी होगी प्रक्रिया

यह पूरी प्रक्रिया 5 मिनट से भी कम समय में पूरी हो जाएगी. यानी चाय ठंडी होने से पहले रेंट एग्रीमेंट मिल जाएगा. इसके लिए कहीं जाने की जरूरत नहीं होगी, सिर्फ अपने लैपटॉप, डेस्कटॉप या मोबाइल पर यह काम संभव हो सकेगा. इससे न सिर्फ आम लोगों को राहत मिलेगी, बल्कि व्यापार करने में सुगमता होगी. यह व्यवस्था पहले से ज्यादा सुरक्षित एवं विश्वसनीय होगी. साथ ही कहीं से भी और कभी भी इसके जरिए एग्रीमेंट किया जा सकेगा.

प्रदेश के राजस्व में भी होगी बढ़ोतरी

यह नई व्यवस्था प्रदेश के लिए राजस्व का भी अच्छा जरिया बनेगी. गौतम बुद्धनगर में मौजूदा व्यवस्था के तहत प्रतिवर्ष कम से कम 1.5 लाख लीज डीज होती हैं. स्टांप ड्यूटी के जरिए इस प्रक्रिया से प्रति वर्ष 1.5 करोड़ का राजस्व प्राप्त होता है. वहीं, प्रस्तावित लीज डीड के जरिए प्रत्येक 15 हजार से अधिक मासिक किराए पर 2 प्रतिशत स्टांप ड्यूटी के जरिए 3600 रुपए प्राप्त होंगे. कुल मिलाकर सरकार को सिर्फ गौतम बुद्धनगर से 54 करोड़ रुपए के राजस्व की प्राप्ति होगी. पूरे प्रदेश में व्यवस्था लागू होने के बाद सरकार को बड़ी मात्रा में राजस्व प्राप्त होगा.

‘कुबूल है’ फेम निशी सिंह का 50 साल की उम्र में हुआ निधन, पढ़ें खबर

टीवी सीरियल ‘कुबूल है’ और ‘इश्कबाज’ फेम एक्ट्रेस निशी सिंह (Nishi Singh) 18 सितम्बर यानी रविवार को निधन हो गया.  पैरालिसिस अटैक के बाद निशी सिंह बीमार चल रही थीं. एक्ट्रेस ने दो दिन पहले ही अपना 50वां जन्मदिन मनाया था.

एक रिपोर्ट के अनुसार, निशि के पति संजय सिंह ने बताया कि उनका निधन हो गया है. उन्होंने बताया कि एक साल में उन्हें दूसरा स्ट्रोक आया जिसकी वजह से उनकी हालत और बिगड़ गई थी.हमने उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया और वह बाद में डिस्चार्ज हो गईं. पिछले कुछ हफ्तों से गले में इंफेक्शन की वजह से उन्हें खाने में दिक्कत हो रही थी. वह खाने में केवल लिक्विड खाना ले रही थीं.

 

संजय सिंह ने आगे कहा कि हमने उनका 50वां जन्मदिन दो दिन पहले यानी16 सितंबर को ही मनाया. वह बात नहीं कर सकती थीं लेकिन वह बहुत खुश लग रही थीं. मैंने उनसे उनके पसंदीदा बेसन के लड्डू खाने का अनुरोध किया था तो उन्होंने खाया.

 

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संजय सिंह ने आगे बताया, जिंदा रहने के लिए उन्होंने कड़ा संघर्ष किया. 18 सितंबर को दोपहर करीब 3 बजे उनका निधन हो गया. मेरी बेटी ने मां की देखभाल के लिए अपनी पढ़ाई छोड़ दी थी. आदमी जब हारता है तो हर तरफ से हारता है.

 

रिपोर्ट के अनुसार उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं चल रही थी. जिसके बाद उनके पति ने मेडिकल के खर्चे के लिए मदद भी मांगी थी. एक्ट्रेस सुरभि चंदना और इंडस्ट्री के कुछ अन्य लोगों ने उनकी आर्थिक मदद की थी.

मैं अपनी बात को किसी के सामने ठीक ढंग से रख नहीं पाता हूं, क्या करूं?

सवाल

मैं 19 साल का एक लड़का हूं और  पढ़ाई में काफी अच्छा हूं. मेरे साथ दिक्कत यह है कि किसी अनजान के सामने मैं अपनी बात को ठीक ढंग से रख नहीं पाता हूं. सच कहूं, तो मेरी बोलती बंद हो जाती है. इस वजह से मेरे मन में हीनता का भाव रहता है.  मेरे दोस्त मुझे इस हीनता से बाहर निकालने के लिए काफी मदद करते हैं और उन के सामने मुझे लगता भी है कि भविष्य में यह समस्या नहीं होगी. पर जब मैं अकेला होता हूं, तो फिर वही ढाक के तीन पात वाली बात हो जाती है. मैं क्या करूं, आप कुछ सुझाव दें?

जवाब

आप में आत्मविश्वास की कमी है, जो बहुत बड़ी चिंता की बात नहीं. आप अपना ज्यादातर समय दोस्तों के साथ गुजारें और अकेले में आईने के सामने बोलने की प्रैक्टिस करें. हिम्मत कर के स्कूलकालेज की भाषण प्रतियोगिताओं में हिस्सा लें और एक बात खुद को समझाते रहें कि सारी दुनिया के लोग बेवकूफ हैं और सिर्फ आप पर ध्यान लगाए नहीं बैठे हैं.  जब भी आप को मौका मिले, बोलें जरूर. अनजान लोगों से बात करें. इस से भी आप के बोलने की समस्या हल होने में मदद मिलेगी. इस से भी अगर बात न बने, तो किसी माहिर मनोचिकित्सक से मशवरा लें.

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पार्थ चटर्जी केस: पावर और ग्लैमर ने बनाया कैश टौवर

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अपना वेतन नहीं लेतीं. सूती साड़ी और हवाई चप्पलों में सादगी का जीवन जीती हैं, जबकि उन का मंत्री पार्थ चटर्जी घोटालेबाज निकला. उस ने ‘शिक्षा घोटाले’ में हासिल किए नोटों के बंडल अपनी दोस्त हीरोइन अर्पिता मुखर्जी के हवाले कर दिए, जिन्हें वह छिपा नहीं पाई. ईडी ने जब इस का खुलासा किया तो…

पश्चिम बंगाल सरकार ने साल 2016 में स्कूल सेवा आयोग (एसएससी) को सरकार द्वारा संचालित और सहायता प्राप्त स्कूलों के लिए 13,000 क्लर्क और चपरासियों की भरती के लिए एक अधिसूचना जारी करने के आदेश दिए थे. राज्य में करोड़ों बेरोजगार युवाओं के लिए यह ऊंट के मुंह में जीरा जैसी ही थी. नतीजा इस सरकारी नौकरी को पाने की चाहत में बेरोजगार पैरवी और पहुंच के तार पकड़ने लगे.

स्कूलों में क्लर्क और चपरासी की नौकरी पाने के लिए लाखों उम्मीदवारों ने आवेदन किया था. उन्हें प्रतियोगी परीक्षा और इंटरव्यू के जरिए नियुक्त किया जाना चाहिए था. उस वक्त ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस की सरकार में पार्थ चटर्जी शिक्षा मंत्री थे.

एक तरफ शिक्षा विभाग द्वारा भरती के लिए प्रतितियोगिता परीक्षा की तैयारी चल रही थी तो दूसरी तरफ बिचौलिए किस्म के लोगों ने पद की बोली लगा दी थी और वे शहरों और कस्बे में फैल गए थे.

ऐसे ही एक व्यक्ति एक उम्मीदवार को ले कर सेटिंग कराने के लिए आसनसोल के एक होटल पहुंचा. वहां उस ने उस युवक की मुलाकात एक दलाल से कराई.

मुलाकात के दौरान दलाल ने उम्मीदवार से पूछा, ‘‘तुमी बंगाली?’’

‘‘ना ना, बंगाली नय. आमी बिहारी!’’ उस के साथ आया व्यक्ति बोला.

‘‘नन बंगाली ऐटा नौकरी ना होवे.’’ सिगरेट जलाते हुए दलाल इनकार करने के अंदाज में बोला.

‘‘टका देबो ना! आधार कार्ड एखना होबे.’’ उम्मीदवार के साथ आए व्यक्ति ने कहा.

‘‘क्लर्क आ चपरासी?’’ दलाल ने पूछा.

‘‘चपरासी,’’ साथ आया व्यक्ति बोला.

तब दलाल ने सकारात्मक गरदन हिलाते हुए सिगरेट के पैकेट का ऊपरी हिस्सा फाड़ा. छोटे से टुकड़े पर लिखने के लिए वह बैड पर ही पेन तलाशने लगा. तब तक उम्मीदवार के साथ आए व्यक्ति ने ही अपना बालपेन जेब से निकाल कर उस की तरफ बढ़ा दिया.

‘‘होशियार होबे.’’ दलाल मुसकराता हुआ बोला और उस का पेन ले कर लिखने लगा. कुछ सेकेंड बाद सिगरेट पैकेट की छोटी परची पेन के साथ उसे पकड़ा दी. परची पर लिखा अमाउंट देख कर उम्मीदवार चौंकता हुआ बोला, ‘‘5 लाख! बहुत होबे.’’

‘‘बहुत ना होबे! मिनिस्टर लेबे…ओकरा असिस्टेंट लेबे…! एतना से अधिक बंट जाबे.’’ दलाल अपने हाथ की 4 अंगुलियां दिखाते हुए बोला.

‘‘ठीक आचे… एकारा एडमिट कार्ड आ एडवांस! बाकी कल देबो.’’ साथ आए व्यक्ति ने बैग से फाइल निकाली. उस में से एक पेपर निकाल कर गौर से देखा, फिर पेन से एक जगह पर निशान लगा कर दलाल को पकड़ा दिया. उस के बाद उस ने साथ आए उम्मीदवार की तरफ इशारा किया तो उस युवक ने पैंट की भीतरी जेब से 2-2 हजार के कुछ नोट निकाल कर उस की तरफ बढ़ाते हुए बोला, ‘‘50 हजार होबे, बाकी कल ऐही टाइम.’’

नौकरी के नाम पर बटोरे पैसे

इस तरह पश्चिम बंगाल के शिक्षा विभाग में नौन टीचिंग स्टाफ के लिए एक सौदा तय हो गया था. उस उम्मीदार को नौकरी मिली या नहीं, यह पता नहीं चला, कारण उस जैसे पूरे पश्चिम बंगाल में हजारों की संख्या में उम्मीदवारों ने पैसा दे कर अपनी नौकरी पक्की करवाई थी.

किंतु इतना जरूर था कि विभाग में नियुक्ति की प्रक्रिया समय पर पूरी कर ली गई. इस का फायदा तृणमूल कांग्रेस को राज्य में विधानसभा चुनाव 2021 में मिला. इस चुनाव में भाजपा ने बहुत कोशिश की, मगर तृणमूल कांगे्रस को पछाड़ नहीं पाई.

इस के बाद भाजपा के निशाने पर ममता बनर्जी के विधायक से ले कर मंत्री तक आ गए थे. वे उन की खामियां निकालने के साथसाथ उन के द्वारा पिछली सरकार में हुई अनियमितताओं और भ्रष्टाचार की पोल खोलने में जुट गए.

जल्द ही ममता सरकार के चहेते मंत्री पार्थ चटर्जी निशाने पर आ गए. उन के खिलाफ कई शिकायतें दर्ज हुईं. यहां तक कि मामला अदालत तक पहुंच गया.

अदालत ने 2 मामलों में सुनवाई की. एक मामला एसएससी घोटाले से जुड़ा था, जबकि दूसरा मामला पश्चिम बंगाल माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (डब्ल्यूबीबीएसई) द्वारा कथित तौर पर कम से कम 25 व्यक्तियों की नियुक्तियों का था. साल 2019 में ये नियुक्तियां तब की गई थीं, जब इस से जुड़े लोगों के पैनल की समय सीमा खत्म हो गई थी.

दरअसल, नवंबर 2021 में कोलकाता हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी, जिस में इन नियुक्तियों को ‘अवैध’ कहते हुए व्यवस्था में भ्रष्टाचार बताया गया था. इस के बाद हाईकोर्ट ने एसएससी और पश्चिम बंगाल बोर्ड (डब्ल्यूबीबीएसई) से हलफनामे मांगे थे और मामले की सुनवाई आगे बढ़ा दी थी. इस का जवाब देते हुए दोनों संस्थाओं ने

खुली अदालत में एकदूसरे के विपरीत तथ्य पेश किए थे. एसएससी ने अपने हलफनामे में दावा किया था कि उस ने अपनी ओर से किसी कर्मचारी की नियुक्ति की सिफारिश के लिए चिट्ठी नहीं जारी की, जबकि डब्ल्यूबीबीएसई ने कहा कि उसे एक पेन ड्राइव में डेटा मिला था. इसी के तहत इन लोगों की नियमानुसार नियुक्ति हुई थी.

सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं ने यह भी दावा किया कि एसएससी पैनल का कार्यकाल खत्म होने के बाद बंगाल बोर्ड में 25 नहीं, बल्कि 500 से ज्यादा लोगों को नियुक्त कर दिया गया. इन में से ज्यादातर अब राज्य सरकार से वेतन ले रहे हैं.

सुनवाई के दौरान इस मामले में जस्टिस अभिजीत गंगोपाध्याय की बेंच ने सीबीआई जांच का आदेश दे दिया. दूसरी तरफ डिवीजन बेंच ने उन के आदेश पर 2 हफ्ते की रोक लगा दी. यह भी कुछ कम चौंकाने वाली बात नहीं थी. हालांकि बाद में जस्टिस गंगोपाध्याय ने भारत के चीफ जस्टिस और कलकत्ता हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश का ध्यान इस ओर खींचा.

उस के बाद ही जस्टिस गंगोपाध्याय ने सीबीआई को आदेश दिया कि वह डब्ल्यूबीबीएसई के पूर्व सलाहकार शांति प्रसाद सिन्हा और 4 अन्य लोगों से नियुक्ति में गड़बड़ी के लिए पूछताछ करे.

इस तरह से शिक्षा विभाग की संस्थानों से जुडे़ मामले में सीबीआई जांच शुरुआत हो गई. वैसे जांच शुरू होने से पहले अदालती आदेशों को लागू करने को ले कर भी नाटकीय घटनाएं हुईं. जहां सिन्हा से सीबीआई ने पूछताछ की, वहीं इस मामले में बाकी लोग डिवीजन बेंच जा पहुंच थे.

जस्टिस हरीश टंडन और रबींद्रनाथ सामंत की बेंच ने निजी कारणों से याचिकाकर्ताओं की अपील पर सुनवाई से इनकार कर दिया था. इस के बाद जस्टिस टी.एस. शिवगनानम और सब्यसाची भट्टाचार्य की डिवीजन बेंच ने भी अपील पर सुनवाई से इनकार कर दिया था.

बाद में यह याचिका जस्टिस सोमेन सेन और जस्टिस ए.के. मुखर्जी की बेंच को सौंपी गई थी. हैरानी की बात यह हुई कि इस बेंच ने भी याचिकाओं को सुनने से मना कर दिया. चौथी बार ए याचिकाएं जस्टिस जौयमाल्या बागची और बिवस पटनायक की डिवीजन बेंच के सामने आई जरूर, लेकिन इस बेंच ने भी मामले पर सुनवाई नहीं की.

दोनों जजों ने चीफ जस्टिस से केस को किसी और बेंच को सौंपने के लिए कहा. आखिरकार पांचवीं बार में जस्टिस सुब्रत तालुकदार और जस्टिस कृष्ण राव की बेंच ने सुनवाई के लिए हामी भरी और इस मामले पर सुनवाई आगे बढ़ी. तब मामला केंद्र के प्रवर्तन निदेशालय यानी इनफोर्समेंट डायरेक्टोरेट (ईडी) तक जा पहुंचा. ईडी ने इस मामले में मई 2022 में जांच शुरू कर दी, लेकिन 22 जुलाई को इस के द्वारा ममता बनर्जी सरकार के मंत्री पार्थ चटर्जी के ठिकानों समेत 14 जगहों पर छापेमारी की गई.

उस छापेमारी के दौरान ईडी को अर्पिता मुखर्जी की प्रौपर्टी के दस्तावेज मिले थे. इस बारे में जब पार्थ चटर्जी से अर्पिता के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कुछ भी बताने से इनकार कर दिया. ईडी को उस के बारे में सिर्फ इतना मालूम हो पाया कि वह एक औसत दरजे की हीरोइन है. उस ने कुछ बंगला फिल्मों और सीरियलों में काम किया है. साथ ही राजनीतिक पहुंच भी रखती है.

इस के बाद ईडी ने जांच का दायरा बढ़ा दिया और हीरोइन अर्पिता मुखर्जी के फ्लैट पर छापेमारी की. उस का फ्लैट पार्थ के निवास के करीब ही था. यह छापेमारी चौंकाने वाली थी.

एजेंसी को अर्पिता के फ्लैट से करीब 21 करोड़ रुपए कैश, 60 लाख की विदेशी करेंसी, 20 फोन और अन्य दस्तावेज मिले. 2 हजार और 500 रुपए के नोट अनाज के ढेर की तरह कमरे में पड़े थे. उन्हें सहेजने और गिनने में ईडी के अधिकारियों के पसीने छूट गए.

उस के बाद मीडिया में जैसे ही यह खबर फैली, इसे ले कर चौतरफा चर्चाओं का बाजार गर्म हो गया. अंगुली ममता बनर्जी पर उठी और उन की सरकार में कैबिनेट मंत्री पार्थ चटर्जी पर ईडी ने शिकंजा कस लिया. इस घोटाले के प्रभाव का असर यह हुआ कि पार्थ को तत्काल पश्चिम बंगाल सरकार में वाणिज्य और उद्योग विभाग के वर्तमान मंत्री पद से हटा दिया गया.

ईडी ने कई विधायकों पर कसा शिकंजा

वे राज्य के पूर्व शिक्षा मंत्री भी थे और जांच उन के कार्यकाल के दौरान हुए घोटाले से ही जुड़ी थी. यही नहीं, उन के पास तृणमूल कांग्रेस के पश्चिम बंगाल के महासचिव का राजनीतिक पद भी था.

ईडी द्वारा अर्पिता के दूसरे ठिकानों पर छापेमारी की गई, जिस में उन के घर से 27.9 करोड़ रुपए कैश मिला. इस तरह कथा लिखे जाने तक अर्पिता के ठिकानों से ईडी द्वारा 53 करोड़ से अधिक का काला धन बरामद किया जा चुका था. वहां से मिले दस्तावेजों और डायरी से कई दूसरे विधायक भी संदेह के घेरे में आ गए थे.

फिर क्या था, ईडी ने इस मामले में पार्थ चटर्जी, अर्पिता मुखर्जी के अलावा तृणमूल कांग्रेस के विधायक माणिक भट्टाचार्य और मंत्री परेश अधिकारी से भी पूछताछ की. इतना ही नहीं, अधिकारी की बेटी अंकिता अधिकारी की टीचर की नौकरी भी चली गई. आरोप लगा कि अंकिता अधिकारी को नियमों को ताक पर रख कर नौकरी दी गई थी.

पार्थ चटर्जी और अर्पिता मुखर्जी जिस मामले में फंसे हैं, वह पश्चिम बंगाल का एक बड़ा शिक्षा भरती घोटाला है. वह मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के काफी करीबी नेता माने जाते हैं. वह तृणमूल कांग्रेस के टिकट पर 2001, 2006, 2011, 2016 और 2021 में लगातार 5 बार विधायक चुने जा चुके हैं. पार्थ चटर्जी का जन्म 6 अक्तूबर, 1952 को कोलकाता में हुआ था. उन्होंने रामकृष्ण मिशन विद्यालय, नरेंद्रपुर से प्रारंभिक शिक्षा हासिल की थी. उस के बाद उन्होंने आशुतोष कालेज से अर्थशास्त्र की पढ़ाई पूरी की. बाद में उन्होंने एमबीए की डिग्री हासिल की और मल्टीनेशनल कंपनी ‘द एंड्रयू यूल ग्रुप’ में बतौर ह्यूमन रिसोर्स मैनेजर काम किया.

पार्थ चटर्जी का राजनीतिक करियर 2001 में चमका. इसी साल वह बेहाला (पश्चिम) विधानसभा सीट से पहली बार विधायक चुने गए. 2006 में उन्होंने दोबारा जीत हासिल की. जिस के बाद उन्हें पश्चिम बंगाल विधानसभा में विपक्ष का नेता चुना गया.

लगातार चमकती गई किस्मत

2011 में उन्होंने लगातार तीसरी बार जीत पाई. उसी साल वह मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की सरकार में कैबिनेट मंत्री भी बने. तब उन्हें वाणिज्य और उद्योग, सार्वजनिक उद्यम, सूचना प्रौद्योगिकी और इलेक्ट्रौनिक्स तथा संसदीय मामलों के विभाग दिए गए थे.

इस के बाद 2016 और 2021 में भी बेहाला (पश्चिम) की जनता ने उन्हें विधायक चुना. दोनों बार वह मंत्री बनाए गए. साल 2016 के विधानसभा चुनाव में जीत हासिल करने के बाद उन्हें उच्च शिक्षा और स्कूल शिक्षा विभाग का मंत्रालय सौंपा गया, जबकि 2021 के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में लगातार 5वीं बार जीतने के बाद उन्हें दोबारा वाणिज्य और उद्योग, सूचना प्रौद्योगिकी और इलेक्ट्रौनिक्स के विभाग मिले.

पश्चिम बंगाल शिक्षा विभाग के भरती घोटाले में पार्थ चटर्जी को हिरासत लिए जाने के बाद अब उन का नया ठिकाना कोलकाता की प्रेसिडेंसी जेल और पहचान कैदी नंबर 943799 की है. हालांकि उन्हें वहां कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.

पैर में सूजन की समस्या बढ़ गई है और डाक्टरों की निगरानी में हैं. उन्हें सोने और खानेपीने तक में परेशानियों से जूझना पड़ रहा है. बताते हैं कि थुलथुली देह की वजह से पार्थ का जमीन पर बैठना मुश्किल होता है. जबकि जेल की कोठरी में, बिस्तर तो दूर की बात, एक कुरसी तक नहीं दी गई है.

इस घोटाले में हीरोइन अर्पिता का नाम भी आया है, जो पार्थ की करीबी रही हैं. ईडी के मुताबिक अर्पिता मुखर्जी से भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) के 31 पौलिसी के बौंड मिले हैं, जिन का सालाना प्रीमियम 50,000 रुपए है. ज्यादातर पौलिसी चल रही हैं और इन में से अधिकतर में नौमिनी पार्थ चटर्जी हैं.

ईडी अब इस पैसे के स्रोत की जांच कर रही है. किस खाते से प्रीमियम जमा किया गया था. ईडी ने इस की जांच शुरू कर दी है. बीमा प्रीमियम का भुगतान किस ने किया? ईडी एलआईसी अधिकारियों से इस पैसे का स्रोत जानने के लिए कहेगा. इस के अलावा ईडी के अधिकारियों को 50 संदिग्ध बैंक अकाउंट की जानकारी भी मिली है.

अर्पिता को इस मामले में कैश क्वीन कहा जा रहा है, जो पार्थ को 10 साल से जानती हैं. दोनों ने साथ मिल कर प्रौपर्टी के तौर पर एक फार्महाउस खरीदा है, जिस की नेम प्लेट पर नाम ‘अ-पा’ लिखा गया था.

अर्पिता शिक्षा घोटाले में अब बुरी तरह से फंस चुकी हैं. उन के खिलाफ ईडी जांच में कैश के साथसाथ 6580 ग्राम सोना भी जब्त किया गया.

अर्पिता मुखर्जी का जन्म कोलकाता के उत्तरी उपनगर बेलघोरिया के एक मध्यवर्गीय परिवार में हुआ था. कालेज के दिनों में वह मौडलिंग किया करती थीं. उसी दौरान

उन्हें बंगाली फिल्मों में छोटेमोटे रोल मिल गए थे. हालांकि साल 2008 में फिल्म ‘पार्टनर’ से बंगाली फिल्म में मुख्य भूमिका निभाने का मौका मिला था. उस के अगले साल उन्होंने 2009 में बंगाली सुपरस्टार प्रोसेनजीत चटर्जी के साथ ‘मामाभागने’ नाम की फिल्म में भी काम किया था.

बंगाली के अलावा उन्होंने कई भूमिकाएं उडि़या फिल्मों में भी निभाईं. लग्जरी लाइफस्टाइल जीने वाली अर्पिता एक हीरोइन के रूप में 2008 से 2014 तक सक्रिय रहीं. उन्होंने झाड़ग्राम के एक बिजनेसमैन से शादी कर ली थी.

हालांकि कुछ महीने बाद ही वह पति से अलग हो गईं और कोलकाता आ कर फिल्मों में काम करने लगी थीं. इसी दौरान उन की दोस्ती पार्थ चटर्जी से हो गई.

ईडी को इस बात का यकीन है कि उन के यहां से जो नकदी बरामद हुई है, वह पार्थ चटर्जी की ही होगी. लेकिन कथा लिखे जाने तक उन्होंने अधिकारियों को यह बात नहीं बताई थी कि यह रकम उन के घर कहां से आई.

2500 लड़कियों से संबंध बनाने वाला टेनिस प्लेयर नसतासे

करीब 2500 लड़कियों को सैक्स पार्टनर बना चुका अपने जमाने का नंबर वन टेनिस प्लेयर नसतासे रोमांस का भी धुआंधार प्लेयर था. महिला खिलाड़ी को टेनिस कोर्ट में छेड़ने के कारण उस के खेलने पर पाबंदी भी लगी थी. वैसे लड़कियां भी उस से सैक्स संबंध बनाने को बेताब रहती थीं.

रंगीनमिजाजी के किस्से पूरी दुनिया में भरे पड़े हैं. इन में ह्यूज मारस्टन हेफनगर का नाम पहले नंबर पर लिया जाता है.

जिन्होंने 60-70 के दशक में अमेरिका में मर्दों के लाइफस्टाल और एंटरटेनमेंट की मैगजीन निकाल कर पूरी दुनिया में तहलका मचा दिया था.

नवोदित मौडलों का न्यूड फोटो सेशन करवाना और उन्हें मैगजीन में प्रमुखता से छापे जाने के कारण ही उस की काफी लोकप्रियता थी. नई मौडलें तो उस के कवर पर अपनी न्यूड फोटो छपवाने के लिए लालायित रहती थीं तो मौडलों के साथ रातें रंगीन करने में हेफनगर का कोई जवाब नहीं था. सैक्स का भरपूर मजा उस ने 91 साल की उम्र तक उठाया था.

उस की तरह ही किसी रंगमिजाज व्यक्ति का नाम लिया जा सकता है तो वह है रोमानिया के रहने वाला और ओपन टेनिस का एक महान खिलाड़ी इली नसतासे. आज की पीढ़ी भले ही उस खिलाड़ी को नहीं जानती है, लेकिन वह दुनिया के नंबर वन टेनिस खिलाड़ी रहा है.

नसतासे ने पिछले दिनों एक इंटरव्यू में अपनी रंगीनमिजाजी का खुलासा कर सब को चौंका दिया. हैरानी में डालने वाली बात बताते हुए स्वीकारा कि अनगिनत लड़कियां उस का सैक्स पार्टनर बनीं, जिन की संख्या ढाई हजार तक भी हो सकती हैं. उसे सैक्स की ऐसी भूख थी कि हर रात 2 पार्टनर की जरूरत होती थी.

इस की जानकारी लोगों को नसतासे की आटोबायोग्राफी से मिली. किताब में लिखी गई उन की निजी जिंदगी के अनुसार जितना लगाव नसतासे को खेल से था, उतना ही उस के मन में लड़कियों की चाहत बनी रहती थी.

यही नहीं, लड़कियां भी नसतासे को बेहद पसंद करती थीं और सैक्स पार्टनर बनने को बेचैन  रहती थीं. अधिक से अधिक युवतियों से रोमांस और प्यार को नसतासे भी गलत नहीं मानते थे.

यह कहना गलत नहीं होगा कि एक तरफ इली नसतासे की टेनिस के प्रति दीवानगी थी तो महिलाएं उस की मर्दानगी की दीवानी बनी हुई थीं. उन्हीं दिनों प्लेबौय नाइट एंटरटेनमेंट और लाइफस्टाइल की भी धूम हुआ करती थी.

इस तरह की लाइफ जीने के लिए मशहूर नसतासे ने अपने जीवन के अंतिम दौर में आटोबायोग्राफी के माध्यम से सैक्स लाइफ का खुलासा किया है. इस दावे के चलते उस की आटोबायोग्राफी की बिक्री भी जबरदस्त हुई.

हालांकि बताया जाता है कि आटोबायोग्राफी में उस के सैक्स संबंध की बातें कुछ अधिक ही बढ़ाचढ़ा कर लिखी गई थीं और महिलाओं की संख्या को काफी बढ़ाचढ़ा कर कथित तौर पर 2500 बताया गया था. इस बारे में पिछले दिनों जब नसतासे से पत्नी और दूसरी गर्लफ्रैंड से सैक्स संबंध के सही आंकड़े पूछे गए तब उस ने एक मजेदार जवाब दिया कि उन की सही संख्या उसे नहीं मालूम.

खेल के दौरान लड़कियां खुद आती थीं

नसतासे ने कहा था कि वह नहीं जानता कि उस के सैक्स पार्टनर की संख्या कितनी रही होगी, लेकिन इतना जरूर है कि हर रात 2 पार्टनर की चाहत होती रही है. साथ ही उस का यह भी कहना था कि सैक्स पार्टनर की संख्या 500-600 हो सकती है, आंकड़े को ले कर उन्हें कोई फर्क पड़ने वाला नहीं. कारण, इस से कोई मैडल नहीं मिलता है.

हां, इतना जरूर है कि खेल के दौरान भी लड़कियों के औफर मिलते थे, जिसे वह मना कर दिया करता था. फिर भी उस की दीवानी लड़कियां उस के पीछे लगी रहती थीं. कई बार जब खेल से कुछ समय पहले तक सैक्स करता था, तब उसे काफी थकान महसूस हुआ करती थी.

इस बारे में नसतासे ने बताया कि कभीकभी बहुत थक जाता था, क्योंकि टेनिस भी खेलना होता था. इस कारण कइयों को इस के लिए मना कर दिया करता था. नसतासे प्लेबौय की तरह अपना जीवन जीने के लिए मशहूर रहा है. इस कारण ही पुरुषों की एक पत्रिका ने अपने लिविंग सैक्स की लिस्ट में नसतासे को छठें स्थान पर रखा था.

नसतासे के बारे में जिन दिनों इस की चर्चा सुर्खियों में आई थी, तब वह तीसरी शादी करने जा रहा था.

रोमानिया की मौडल अमालिया टीओडोसेस्कु उस की तीसरी पत्नी बनने वाली थी. उस की पहली बार मुलाकात साल 2004 में हुई थी. नसतासे की इस रंगीनमिजाजी के बारे में जानते हुए भी उस ने उस से शादी की थी. उस के ढाई हजार लड़कियों के दावे को ले कर अमालिया ने कहा था कि वह इस बात से खुश है कि उन्होंने ऐसे शख्स को जीता है.

हालांकि शादी के 6 साल बाद ही दोनों साल 2010 में अलग हो गए थे. इस के 3 साल बाद 2013 में नसतासे ने रोमानिया की फैशन मौडल ब्रिगिट एसफैट से शादी कर ली थी. फिर साल 2018 में वे दोनों अलग हो गए थे.

इस के बाद साल 2019 में उस ने खुद से 30 साल छोटी लड़की आयोआना सिमियोन से शादी रचा ली थी. तब नसतासे की उम्र 73 साल की थी और यह उस की 5वीं शादी थी.

4 शादियां भी की थीं नसतासे ने

पूर्व विंबलडन टेनिस चैंपियन और 7 बार की ग्रैंड स्लैम विजेता इली नसतासे ने इस शादी से सब को हैरान कर दिया था. नसतासे की पिछली 4 पत्नियों से 4 बेटियां और एक बेटा है. उस ने यह शादी रोमानिया के तटीय शहर कौंस्टेंटा में मामिया रिसौर्ट में रचाई थी. इस शादी में उस के करीबी दोस्तों और परिवार के सदस्य शामिल हुए थे. शादी में मेहमानों में पूर्व रोमानियाई फुटबालर 34 वर्षीय सिप्रियन मारिका और उन की पत्नी भी शामिल हुई थीं.

वैसे नसतासे और सिमियन की शादी पिछले साल अप्रैल में ही हो चुकी थी, लेकिन उस ने चर्च समारोह करने तक लोगों को इंतजार करने को कहा था. इस से पहले उस ने अपनी चौथी पत्नी स्फत को तलाक दे दिया था. उस के बाद सिमियन को डेट करना शुरू कर दिया था.

नसतासे का जन्म 19 जुलाई, 1946 को बुखारेस्ट, रोमानिया में हुआ था. उस की पहचान रोमानियाई टेनिस खिलाड़ी के रूप में रही है. वह डेविस कप खेलने के लिए जाना जाता है. वह एक मिलियन डालर राशि से अधिक खेल पुरस्कार पाने वाला पहला यूरोपीय खिलाड़ी था और नसतासे को 1973 में दुनिया में नंबर एक स्थान दिया गया था.

1966 से डेविस कप खिलाड़ी नसतासे ने 1969, 1971 और 1972 में लगभग अकेले दम पर रोमानिया को फाइनल में पहुंचाया, हालांकि हर बार संयुक्त राज्य अमेरिका जीतता रहा.

नसतासे के लिए सब से दिल दहला देने वाली हार 1972 में हुई, जब स्टैन स्मिथ द्वारा एकल में नसतासे को हराने के बाद संयुक्त राज्य अमेरिका ने डेविस कप को बरकरार रखा. सन 1969 में पेशेवर बनने वाले नसतासे ने अगले वर्ष एसोसिएशन औफ टेनिस प्रोफेशनल्स (एटीपी) टूर पर कई खिताब जीते, जिस में फ्रैंच ओपन में युगल स्पर्धा भी शामिल थी. 1972 में यूएस ओपन में आर्थर ऐश को हरा कर नसतासे ने अपना पहला ग्रैंड स्लैम एकल खिताब जीत लिया.

1973 में नसतासे ने फ्रैंच ओपन में अपनी जीत के साथ अपना दूसरा और आखिर में एकल खिताब जीत लिया था. उस वर्ष उस ने विंबलडन में युगल स्पर्धा जीतने के लिए जिमी कोनर्स के साथ मिल कर काम किया. दोनों ने 1975 में यूएस ओपन में भी जीत हासिल की.

नसतासे को लगातार विश्व रेटिंग में उस के प्रमुख टूर्नामेंट रिकौर्ड की तुलना में बहुत अधिक स्थान मिलता रहा. इस तरह 1970 से 1977 तक शीर्ष 10 खिलाडि़यों में नसतासे की स्थिति बनी रही.

इस उपलब्धि ने नसतासे को अभिमानी बना दिया था. नतीजतन, औनकोर्ट उस के नखरे शुरू हो गए. यहां तक कि महिला खिलाडि़यों तक से बदतमीजी पर उतर आता था. इस कारण उसे एक बार अयोग्य ठहरा दिया गया था. यही नहीं उस पर जुरमाना लगाते हुए निलंबित भी कर दिया गया था.

इस के बावजूद नसतासे की पहचान एक तेज खिलाड़ी के तौर पर बनी रही. उस ने शानदार प्रदर्शन कर अपने करियर के दौरान एटीपी टूर पर 58 एकल खिताब जीते और 1991 में इंटरनैशनल टेनिस हाल औफ फेम में शामिल कर लिया गया. बाद में उस ने

एक आत्मकथा लिखी, जो 2004 में प्रकाशित हुई.

बहरहाल, पूर्व टेनिस स्टार इली नसतासे सेरेना विलियम्स के अजन्मे बच्चे के रंग के बारे में एक नस्लवादी मजाक करने के सिलसिले में जांच के दायरे में आ गया.

घटना के अनुसार, उस ने ग्रेट ब्रिटेन के कप्तान ऐनी केओथावोंग और खिलाड़ी जोहाना कोंटा को ‘कमबख्त कुतिया’ कह दिया था. उस के बाद हंगामा खड़ा हो गया. इस कारण उसे न केवल कोर्ट से बाहर निकाल दिया गया था, बल्कि रोमानिया के खिलाफ काररवाई हुई और उसे निलंबित कर दिया गया था.

क्या आपने खाई है टेस्टी मिठाई ‘रामकटोरी’

उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थनगर जिले से हो कर नेपाल को जाने वाली सड़क पर पड़ने वाले बाजार बर्डपुर में एक दुकान पर हर रोज हजारों की भीड़ देखने को मिलती है. यह भीड़ वहां की लोकप्रिय मिठाई रामकटोरी के चाहने वालों की होती है. यह मिठाई शुद्ध देशी घी और मैदे से बनाई जाती है. बर्डपुर की यह मिठाई इतनी लोकप्रिय है कि इस की मांग अरब देशों तक में है.

बर्डपुर से पलटा देवी मार्ग पर पड़ने वाली गायत्री स्वीट्स नाम की दुकान पर सिर्फ रामकटोरी मिठाई ही मिलती है. इस मिठाई को बनाने की शुरुआत इस के मालिक विनोद मोदनवाल ने 1991-92 में की थी. पहले वे खोए से तमाम तरह की मिठाइयां बनाते थे, लेकिन उन्होंने एक ऐसी मिठाई बनाने की सोची जो स्वाद से भरपूर और बेहद सस्ती हो. फिर उन्होंने मैदा, देशी घी, खोए और गरी के बुरादे से रामकटोरी नाम की मिठाई बनाने की शुरुआत की.

यह मिठाई छोटी कटोरी के आकार की होती है, जिस में खोया भरा जाता है. सिद्धार्थनगर जिले में नेपाल बौर्डर से 15 किलोमीटर दूर बर्डपुर ब्लाक रामकटोरी के लिए मशहूर है.

विनोद मोदनवाल का पूरा परिवार पिछले 25 सालों से रामकटोरी बनाने के कारोबार में लगा हुआ है. इस मिठाई को बनाने में विनोद मोदनवाल गुणवत्ता व स्वाद का पूरा खयाल रखते हैं, जिस की वजह से आसपास के जिलों के अलावा विदेशों में भी इस की मांग बनी हुई है.

बनाना है बेहद आसान :

-1 किलोग्राम रामकटोरी मिठाई तैयार करने के लिए 100 ग्राम देशी घी, 700 ग्राम मैदा, 290 ग्राम खोया, इच्छानुसार गरी का बुरादा, चीनी व तलने के लिए घी की जरूरत पड़ती है.

-इस के लिए पहले मैदे को घी में खस्ता किया जाता है और जब मैदा पूरी तरह खस्ता हो जाता है, तो इसे गूंध कर उस की छोटीछोटी गोलियां बना कर उन्हें चपटा कर के कटोरी का आकार दिया जाता है.

-फिर इसे हलकी आंच पर सुनहरा होने तक देशी घी में तला जाता है.

-जब कटोरी का आकार एकदम सुनहरी हो जाए तो इसे पहले से तैयार की गई चीनी की चाशनी में 5 मिनट के लिए डुबो कर बाहर निकाला जाता है.

-कटोरी से जब चीनी की चाशनी सूख जाती है, तो गरी के बुरादे व खोए को इस की खाली जगह में भर कर इसे ठंडा होने के लिए छोड़ दिया जाता है और खोया भरने के 10 मिनट बाद यह मिठाई खाने के लिए तैयार हो जाती है.

विनोद मोदनवाल का कहना है कि 1 किलोग्राम रामकटोरी को तैयार करने में 110 रुपए से 120 रुपए की लागत आती है. लेकिन आम लोगों तक इस मिठाई को पहुंचाने के लिए बेहद कम मुनाफे पर सालों से इन का परिवार लगा हुआ है. इस मिठाई का स्वाद और गुणवत्ता ही इस की पहचान है.

एक बार राम कटोरी मिठाई को जो भी चख ले, वह इस का मुरीद हो जाता है.

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